क्या आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का परिणाम है ?

आत्महत्या एक ऐसा रोग बनता नज़र आ रहा है । जो हम सब अपने चारों ओर देख रहे है। क्या इस का समाधान सम्भव हैं या नहीं ? ये मुझे  मालूम नहीं है । परन्तु यह सब कुछ पल का ही खेल नज़र आता है । अपने पीछे रोने पीटने के अतिरिक्त कुछ नहीं रह जाता है । यही सब कुछ जैमिनी जैमिनी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
 गुस्सा  मनुष्य का नकारात्मक आवेश गति है। गुस्सा का कारण बनता है अज्ञानता का कारण बनता है स्वयं की अक्षमता ही क्रोध का प्रदर्शन है।क्रोध घटना का ठीक से स्पस्ट न होने के कारण गुस्सा आता है । गुस्सा की जननी अहंकार है । अहंकार की जननी अज्ञानता है। अज्ञानता की जननी असत्य,सत्य को न पहचान कर, असत्य के प्रति आशक्ति होना, आसक्ति वस्तु ना मिलने के कारण तो आता है क्रोध आने से ज्ञान क्षीण हो जाती है।अंधकार मे कोई वस्तु दिखता नही है। अज्ञानता वशकुछ नकुछ अन होनी घटना कर डालतै है। जिसका परिणाम बहुत भयंकर होता है। आवेश गति मे आया हुआ क्रोध से कुछ सुझता नही और गलत घटनाए जैसे अवसाद प्रमाद,आत्म हत्या आदि घटनाएँ
 हो जाती है।अतः यही कहते बनता है की आत्म हत्या गुस्से के कुछ पल का परिणाम है ।
- उर्मिला सिदार
 रायगढ - छत्तीसगढ
स्वयं का जीवन स्वयं ही समाप्त करना अर्थात् आत्महत्या करना कोई आसान बात नहीं है। एक स्वस्थ मस्तिष्क युक्त मनुष्य कभी आत्महत्या नहीं कर सकता। आत्महत्या का सबसे पहला और मुख्य कारण है - मनुष्य के मन-मस्तिष्क का नकारात्मक हो जाना । इसके साथ ही मानवीय दुष्प्रवृत्तियों जैसे क्रोध, लोभ-लालच व अति महत्वाकांक्षा आदि पर नियन्त्रण न होना मनुष्य को अवसाद की ओर ले जाते हैं। 
गुस्से के कुछ पल भी आत्महत्या का कारण हो सकते हैं। परन्तु इसके अतिरिक्त तनाव, अवसाद (डिप्रेशन), नशे के साधनों का अत्याधिक प्रयोग, सामाजिक अथवा आर्थिक क्षति, अंधविश्वास, मानसिक विकार आदि भी आत्महत्या के कारण बनते हैं।
कभी-कभी पूरे परिवार द्वारा आत्महत्या का समाचार भी आता है। ऐसी स्थिति में परिवार के एक या दो सदस्यों द्वारा अन्य पारिवारिकजनों को भावनाओं के प्रवाह में मानसिक रूप से आत्महत्या के लिए तैयार करने की बात सामने आती है।
जहां तक प्रश्न 'गुस्से के पलों में आत्महत्या करने' का है तो मेरे विचार से आत्महत्या के अनेक कारणों में से यह भी एक कारण हो सकता है क्योंकि क्रोधित मनुष्य परिणाम की ओर ध्यान नहीं देता, स्वयं के भले-बुरे का उसे आभास नहीं रहता।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
     गुस्सा या क्रोध वो भड़कती हुई चिंगारी  है जो मानव के सब सद्गुणों को राख कर देती है ।जब इसके साथ किसी भी मनुष्य के मन में निराशा, अवसाद, परेशानी ,असफलता और अकेलेपन की दुविधा ,उसके मन मस्तिष्क पर राज करने लग जाती है तब आत्महत्या उसे एकमात्र हल नजर आता है । आत्महत्या गुस्से के कुछ पलों का परिणाम नहीं है। भीतर ही भीतर उबलते अनेक दिनों का अवसाद, निराश और हार का भी इसमें बड़ा हाथ है।  हमे जरा सी चोट लगती है तो हम रो पड़ते हैं ।तुरंत दवाई लगाते है। अपने शरीर की सुरक्षा करते हैं ।अब सोचिए उसी सुंदर, बुद्धिमान, प्यारे शरीर को एक झटके से खत्म कर देना सरल नहीं है। पर खुद ही जब खुद के दुश्मन बन जाएं । स्वयं को  स्वनिर्मित गुफाओं में कैद कर लें।  तब क्रोध का वो पल जब कमजोर पल के साथ जुड़ जाता है तो विस्फोट होता है। 
    यह सच है कि गुस्से का वो समय टल जाये तो स्थिति बदल सकती है पर  उसके लिए भी दृढ मानसिक ताकत और आसपास दोस्त या परिवार चाहिए । जिसे ऐसी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति कठिनाई से अपने पास आने देता है 
आत्महत्या भीतर दबे ज्वालामुखी की तरह है जो कभी भी फट सकता है।  जरूरत है तो इसे क्रोध और निराशा से दूर रखा जाए।
 - ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
       आवश्यक नहीं है कि क्रोध ही आत्महत्या का एकमात्र मुख्य कारण होता है और कुछ पल टाल दिए जाने पर क्रोधी आत्महत्या नहीं करेगा। बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा जाए तो आत्महत्या का सम्बंध समाज और सामाजिक न्याय से जुड़ा हुआ है। असुरक्षा से जुड़ा हुआ है। चूंकि आत्मनिर्भर आत्महत्या नहीं करते और न ही उन्हें क्रोध आता है।
      उल्लेखनीय है कि आत्महत्या करने वाला तभी आत्महत्या करता है। जब उसकी परिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परिस्थितियां खराब हो जाती हैं और सुधार की कोई आशा नहीं रहती। तब वह आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठाता। 
      जैसे कोई व्यक्ति पहाड़ पर चढ़ने से डरता है, उसे ऊंचाई से नीचे देखने पर डर लगता है, उसे किसी प्रकार का फोबिया है। जिसकी सर्वप्रथम वह प्रार्थना करता है। किंतु कोई सुनवाई नहीं होती। इसी प्रकार कोई सरकारी नौकरी की विवशताओं से परेशान है और समाधान के स्थान पर उसका उपहास उड़ाया जाता है। घरेलू कलह, लाईलाज बीमारी और घोर आर्थिक संकट भी आत्महत्या के प्रमुख कारण हैं।
      अतः उपरोक्त कारणों का समय रहते समाधान कर दिया जाए तो ना तो क्रोध आएगा और न ही आत्महत्या होगी।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अक्सर कहा जाता है कि आत्महत्या का पल टल जाए, तो अत्महत्या का उठा हुआ कठोर कदम भी पीछे मुड़ जाता है, पर ऐसा नहीं कहा जा सकता कि आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का परिणाम है. आत्महत्या के पीछे एक लंबा इतिहास होता है. लगातार हो रही असफलता, तनाव, उदासी, अकेलेपन का एहसास, सुनवाई न होना, किसी का साथ न देना, यौन उत्पीड़न, प्यार में धोखा, व्यापार में घाटा, अपमान, बात-बात पर नीचा दिखाने की कोशिश, किसी प्रियजन के जाने का दुःख, लंबी बीमारी आदि अनेक ऐसे कारण हैं, जिनसे कोई व्यक्ति मानसिक रूप से कमजोर होकर आत्महत्या के लिए विवश होता है. आत्महत्या करने का सबसे सामान्य कारण जो पाया गया है वह है ‘एक गलती’. दुनिया की नजर में वह गलती है या नहीं, छोटी गलती है या बड़ी, लेकिन जब उस गलती को करने वाला उसे बहुत बड़ा मानने लगे तो यह एक बड़ी दुर्घटना की ओर इशारा करता है. ऐसा अक्सर विद्यार्थियों के साथ होता है. जब कड़ी मेहनत के बाद भी वे परीक्षा में फेल हो जाते हैं या फिर उनके नंबर काफी कम आते हैं तो उन्हें यह एक बड़ी ‘गलती’ लगने लगती है. 
नोएडा के आम्रपाली जोडिएक सोसायटी में शेयर ब्रोकर दंपत्ति ने क‍िया सूइसाइड. दंपत्ति ने एक द‍िन पहले रिश्तेदारों को मेल पर दुनिया में न रहने की बात लिखी थी‌. आत्महत्या का कोई भी कारण हो, अगर समय पर सही सहायता मिल जाए, तो वह पल टल जाता है. इसके लिए व्यक्ति की बात को ध्यानपूर्वक सुनना, शिद्दत से उसकी पीड़ा को महसूस करना और उसका सच्चा साथी होने का भरोसा दिलाना अत्यावश्यक है. सभी तथ्यों के ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है, कि आत्महत्या महज गुस्से के कुछ पलों का परिणाम नहीं है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
नहीं, आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का परिणाम नहीं है।यह तो घोर निराशा और मानसिक तनाव का परिणाम है। गुस्से का परिणाम तो हत्या हो सकती है, आत्महत्या नहीं। गुस्से में आदमी सामने वाले के प्रति आक्रामक होता है, अपने प्रति तो वह रक्षात्मक होता है। इसीलिए क्रोध करता भी है।इसी के बढ़ने पर वह हत्या करने जैसे कदम भी उठा देता है।जबकि आत्महत्या का कारण घोर निराशा, अवसाद, चिंता,उपेक्षा और भविष्य का अंधकारमय होने का अहसास होता है।अब इन मनोभाव और स्थितियों के कारण हजारों हो सकते हैं। आत्महत्या करने वाले लोगों में सेरोटोनिन नामक कैमिकल (मस्तिष्क में) कम पाया जाता है।यह भी मनोभावों को नियंत्रित करने में अहम भूमिका निभाता है। इस प्रव‌त्ति के लोगों में सेरिब्रोस्पाइनल फ्लूड ( csf ) कम पाया जाता है। इस कैमिकल की कमी होने को भी आत्महत्या का कारण मान सकते हैं।  
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
गुस्सा अथवा क्रोध मानव के लिए हानिकारक है ।यह किसी भी व्यक्ति की कायरता को दर्शाता है  और धैर्य हीनता का सूचक है। 
परिस्थितियों से सामना न कर पाना , उनके अनुरूप स्वयं को न ढाल पाना, सहनशीलता और धैर्य की कमी का होना, सनकीपन, हीन भावना  जैसे बुरे भाव मनुष्य में  क्रोधी प्रवृत्तियां पैदा करते हैं ।
 क्रोध का आवरण मनुष्य की तार्किक मानसिक दशा को भ्रष्ट कर देता है ।  व्यक्ति सही गलत का निर्णय नहीं ले पाता । वह अवसाद का शिकार हो जाता है अपना शत्रु स्वयं बन जाता है अपनी ही जीवन लीला समाप्त करने के मौके ढूंढता है  आैर अंतत: इस परिणाम तक पहुंच भी जाता है ।
 यह सब क्रोध और निराशा का मिश्रण ही है । क्रोध अथवा गुस्सा भले ही कुछ पल का होता है मगर उसके परिणाम भयानक ही होते हैं । व्यक्ति आत्महत्या करने जैसे दुखद कदम भी तभी उठाता है जब वह एकाकी  अर्थात अकेला जीवन यापन कर रहा हो, परिवार से वंचित हो, समाज से बहिष्कृत हो  , तिरस्कृत हो, अवसाद में घिरा हुआ हो ,हर तरफ निराशा ही निराशा हो और  मन मस्तिष्क में क्रोध का वास हो जाए ।
 वह क्षणिक क्रोधित पल व्यक्ति के लिए अत्यंत घातक होता है , जब वह स्वंय को ही खत्म कर लेता है । आज वर्तमान परिस्थितियां ऐसी बन चुकी है कि मनुष्य क्रोध, निराशा और अवसाद में घिरा हुआ है और आत्महत्या जैसे कदम उठा रहा है । 
अतः आज जरूरत है श्रेष्ठ जीवन सिद्धांतों  की ,उच्च जीवन शास्त्र नियमों को अपनाने की , शुद्ध आचरण अपनाने की, पारिवारिक संयुक्तता  के महत्व को जानने की  तथा मानव मात्र के हृदय में  प्रेम , स्नेह की ज्योति जगाने की।
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है कि क्या आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का परिणाम है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा की यह बात काफी हद तक सही है कि गुस्सा और अवसाद आत्महत्या का बहुत बड़ा कारण हो सकते और गहरे अवसाद एवं अधिक गुस्से के कुछ पलों मे आदमी आत्म हंता हो सकता है और  आत्महत्या भी कर सकता है और यदि इन पलों में उसे समझाने वाला और सही रास्ता दिखाने वाला कोई सच्चा मित्र मिल जाए तो वह इन पलों को डाल सकता है पुरानी कहावत भी है की घड़ी डालने से वर्षों तक टल जाते हैं और बुरा समय धीरे-धीरे गुजर जाता है परिस्थितियां जब सामान्य होने लगती है तो व्यक्ति धीरे-धीरे अवसाद से बाहर निकलने लगता है और उसके जीवन के सभी क्रियाकलाप तथा आजीविका के संसाधन और पारिवारिक मित्रों एवं संबंधियों से भी संबंध सामान्य होने लगते है तथा धीरे-धीरे वह अपनी पुरानी दिनचर्या में लौटने लगता है और यह भी देखा गया है कि एक बार निराशा से उबरने के बाद व्यक्ति जब पूरे उत्साह और मन के साथ किसी कार्य को करने में टूट जाता है तो उन्नति के शिखर पर भी पहुंच सकता है और अपने लिए परिवार के लिए समाज के लिए और देश के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण भी प्रस्तुत कर सकता है ़़
 - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का परिणाम नहीं होता वास्तव में वह पहले से ही कुंठित होता है ! कुंठाग्रस्त स्थिति में यदि उसके घाव पर नासूर प्रहार  होते रहता है तो वह टूट कर बिखरने लगता है और आत्महत्या की ओर प्रेरित होता है ! यही वह क्षण है जब वह किसी के सहारे की अपेक्षा करता है ! उसकी कोई सुने उसे सलाह न दे केवल सुने और हमें उनकी मदद करनी चाहिए ! 
बुरी आदतें ,पारिवारिक समस्या का शिकार ,बार बार की असफलता ,,अपने मन का न होना ,नकारात्मक विचार अथवा जेनेटिक प्रोब्लम भी !इन सभी कारणों से डिप्रेशन का आना संभव है !यह एक मानसिक बीमारी के तहत आता है अतः यदि आत्महत्या जैसे विचार आने लगे इसके पहले डाक्टर की मदद लेनी चाहिए ! तनाव से पिड़ीत व्यक्ति की हमें सभी बात बिना सलाह दिये शांति से सुननी चाहिए एवं सबसे खास बात उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए ! उसके हितैषी बन उसका विश्वास जितना चाहिए ! 
यदि व्यक्ति को किसी तरह की पहले से मानसिक तकलीफ़ है तो घर वालों को छुपाना नहीं चाहिए उसका खुलकर इलाज करवाना चाहिए !
 - चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
आत्महत्या जीवन की एक अहम पहलू है जो कि वास्तविक स्वरूप मे गुस्से के कारणों को स्थापित करता है।मानव के स्वभाव मे क्रोध का समावेश होता है कभी कभी इंसान अपने गुस्से को आत्महत्या का रूप दे देता है जिससे हम मानव शरीर को अनेकों प्रकार के पीडा़ से गुजरना होता है।जीवन को जीने के लिए संयम की रूपरेखा तैयार करनी अतिआवश्यक है ताकि मनुष्य का कार्य सुचारू रूप से संचालित हो सके और मानसिक तनाव कम रहे।जीवन की डोर बेहद खूबसूरत और नाजुक होती है।आत्महत्या कायरता की निशानी ।ऐसा करने से हमारी आत्मा को शांति नही मिलती मौत एक सत्य है पंरतु आत्महत्या पाप की शृंखला मे होती है अपने गुस्से पर मानव का कब्जा होना चाहिए।अपराध है आत्महत्या जो व्यक्ति अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाते और जीवन लीला अपने हाथों से समाप्त करते है।उन्हें भगवान भी माफ नही करते है।हिन्दू रितिवाज और संस्कृति पंरपरा के अनुसार पाँच तत्वों का मिश्रित हमारे शरीर की आत्मा बेहद खूबसूरत और मनमोहक होती है और आत्महत्या करके हम कभी शांति प्राप्त नही कर सकते।चरम सीमा पर अनुभव की परतें परिश्रमी होती है पंरतु भुलवश हम अपने क्रोध को अपने निंयत्रण मे नही कर पाते और बोझिल होकर ऐसे कदम उठाने की कोशिश करते है ।गुस्से को प्रेम और अनुकूलता का साथ मिले तो ऐसी कायरता वाली घटनाएं थम सकती है।पर कभी कभी हमारे अपने भी हमारे साथ घृणित बर्ताव और उत्पिडि़त करते है जिससे हमे खुद पर गुस्सा आता है हम असहाय महसूस करने लगते और गुस्से की लकीरें लम्बी होने के कारण ऐसे काम कर बैठते है। आत्महत्या  गुस्से के पल का परिणाम सिद्ध होता है
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
क्रोध या गुस्सा दिखने में तो एक त्वरित प्रतिक्रिया लगती है किन्तु मेरा मानना है कि यह पहले से ही मन में भरे पूर्वाग्रह या चिंताओं का परिणाम होता है।
उदाहरण के तौर पर मान लीजिए किसी बच्चे ने सोच लिया कि उसे अमुक खिलौना या अमुक वस्तु चाहिए तो प्रथम बार वह आग्रह करेगा, रोएगा या रूठेगा। किंतु गुस्सा करना या चिल्लाना नहीं करेगा। लेकिन जब बार-बार उसे मना किया जाएगा तो उसके मन में यह बैठ जाएगा कि जैसे ही मैं कोई फरमाइश करूंगा तो मुझे मना किया जाएगा तो अबकि बार मना करते ही स्वतः उसकी प्रतिक्रिया क्रोध के रूप में प्रस्फुटित होगी।
बिल्कुल यही प्रतिक्रिया आत्महत्या की है जो दिखने में पल भर के क्रोध का परिणाम लगता है। लेकिन इसके पीछे एक सतत प्रक्रिया होती है जो कई दिनों से या महीनों से या फिर वर्षों से चली आ रही होती है।
अधिक चिंतन या उपेक्षा इसका एक महत्वपूर्ण कारक है जो कि एक त्वरित प्रतिक्रिया नहीं होता है।
- अजय गोयल
गंगापुर सिटी - राजस्थान
आत्महत्या सिर्फ अपनी आत्मा ही नहीं अपने देह की भी समाप्ति जी आत्महत्या उस कुण्ठा का परिणाम है जिसका व्यक्ति कुछ समय से शिकार हो चुका होता है और आत्महत्या उस कुण्ठा की जीत का पल होता है जब व्यक्ति हार जाता है अपनी परिस्थितियों से कभी कभी व्यक्ति स्वयं अपनी बुरी आदतों से तनाव का शिकार हो जाता है तो कभी घर परिवार के अन्य सदस्यों के कारण भी आत्महत्या हो जाती है।व्यक्ति उस पल सोचने समझने की शक्ति खो चुका होता है। निराशाएं और नाकारात्मक विचारों से घिर चुका होता है।वही एक पल उसे अपनी चपेट में ले लेता है।।
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
     भावनात्मक रूप से जब मन पूर्ण रूपेण ग्रसित हो जाता हैं , अंततः आत्महत्या की ओर ध्यानाकर्षण हो जाता हैं। लेकिन जब व्यक्ति अपनी समस्याओं को दूसरे के सामने व्यक्त करता हैं, कुछ तो समस्या का समाधान हो जाता हैं। परन्तु यह दूरगामी नहीं हो सकता हैं। एक बार मन मस्तिष्क विचलित हो गया तो, काबू में करने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। उतार-चढ़ाव के बीच जिसने अपनी इंद्रियों को बस कर लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं।  वर्तमान परिदृश्य में देखिए आत्महत्या बच्चों से लेकर वृद्धों तक, अच्छे-अच्छों के बीच क्षणिक हैं, गुस्सा एक मानसिक स्थिति का परिणाम हैं, जिसमें मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी कुछ नहीं कर पाया, कब कौन सी घटनाऐं घटित हो जायें, कहा नहीं जा सकता हैं। अगर मनोवैज्ञानिक मानव मस्तिष्क में क्या चल रहा हैं, यह बता दें,  तो किसी भी तरह की कोई विफलताओं का सामना नहीं करना पड़ सकता हैं। आवश्यकता प्रतीत होती हैं, अपनी इच्छा शक्ति को केन्द्रित करने की।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
       अधिकांशतः आत्महत्या कुछ पल के गुस्से के परिणाम स्वरूप होती है। अपवाद स्वरूप कुछ केस ऐसे भी होते हैं जब व्यक्ति अंदर ही अंदर घुटता रहता है किसी से अपने विचार व्यक्त नहीं कर सकता और नैराश्य का एक भाव उसके अंदर समाहित हो जाता है। किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है वह कि मैं क्या करूं क्या ना करूं। इसी उधेड़बुन में जब उसका धीरज खत्म होने लगता है और कोई विकल्प उसको नजर नहीं आता तब उसका मन यही मान लेता है कि अब आत्महत्या के सिवाय मेरे पास दूसरा कोई चारा नहीं है और तब   ना चाहते हुए भी वह यह कदम उठाने पर मजबूर हो जाता है।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
आत्महत्या अक्सर कुछ पल के गुस्से का ही परिणाम होता है। पल भर में ही वह इतना परेशान हो जाता है या गुस्से की पराकाष्ठा अपनी चरम स्थिति पर पहुँच जाती है तब व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है या आत्महत्या के लिए प्रेरित होता है। जब गुस्सा उसके बर्दाश्त करने की सीमा से बाहर हो जाता है तब वह आत्महत्या कर लेता है।
       कभी-कभी ऐसा भी होता है जब आदमी किसी व्यक्ति, किसी बीमारी से परेशान हो जाता है या किसी का अत्याचार, किसी की प्रताड़ना वह बर्दाश्त नहीं कर पाता है तब वह आत्महत्या कर लेता है।
     आत्महत्या क्षणिक आवेश का ही परिणाम है। कोई सोच समझ के आत्महत्या नहीं करता है। ये अचानक होने वाली ही दुर्घटना है। जब आदमी किसी समस्या से तंग हो जाता है और देखता है कि इससे बचने का कोई रास्ता या उपाय नहीं है तब वह आत्महत्या कर लेता है। कभी-कभी गुस्सा आत्महत्या नहीं करवाता है। आदमी का गलत कार्य उससे आत्म हत्या करवा देता है। ऐसा गलत काम जिससे उसे समाज में घर-परिवार में मुँह दिखाने के काबिल अपने-आप को नहीं समझता है तब आत्महत्या कर लेता है।
     आदमी की जब सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है तब वह आत्महत्या कर लेता है। उस वक्त यदि वह क्षण भर के लिए भी रुक जाता है तो वह फिर आत्महत्या नहीं कर सकता है। परिवार में जब कोई उसकी कद्र नहीं करते हैं तो वह सोचता है किसके लिए ये सब करना जब मैं इतना ही खराब हूँ तो रह कर मैं क्या करूँगा। जिसका परिणाम यह होता है कि वह आत्महत्या कर लेता है। कर्ज़ में डूबे किसान इसके अपवाद हो सकते हैं । या पल भर के लिए वो भी सोचते होंगें कि फसल बर्बाद हो गया कर्ज़ कहाँ से चुकेगा तो वह अवसाद में चले जाते होंगे और आत्महत्या के लिए बाध्य हो जाते होंगें। लेकिन इसमें भी आत्महत्या सोच में जरा सी चूक के कारण ही होती है। कुल मिला कर आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का ही परिणाम होता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं. बंगाल
आज का विषय है क्या आत्महत्या गुस्से का परिणाम है
आत्महत्या किसी एक दिन के गुस्से का परिणाम कभी नहीं हो सकता पूर्व में कहीं न कहीं बहुत ज्यादा हताशा निराशा विषाद मानसिक तनाव कुछ लंबे अरसे से व्यक्ति के दिमाग में बनता जाता है उबरने का रास्ता उसे खुद नहीं समझ में आता है और न वह किसी के सामने अपनी परेशानी को स्पष्ट रूप में व्यक्त कर पाता है खुद सुलझाने में उलझा रहता है और नहीं सुलझने के कारण गुस्सा होता है चिंता होती है तनाव होता है निराशा होती है तो ऐसी परिस्थिति में शरीर से जो हार्मोन निकलते हैं वह बिल्कुल ही नकारात्मक निकलते हैं और वह नकारात्मक हार्मोन व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर देते हैं और वह कब कैसे आत्महत्या कर लेगा जिसकी कि उसे खुद भी अनुमान नहीं हो पाता है और ना परिणाम सोच पाता है इसलिए किसी एक दिन के गुस्से का यह परिणाम नहीं है आत्महत्या कुछ दिनों से चलती आ रही तनाव निराशा विषाद और क्रोध चिंता का परिणाम आत्महत्या है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आत्महत्या के कारण व्यक्तिगत सामाजिक या आर्थिक हो सकता है। सबसे बड़ी बात अवसाद (डिप्रेशन) है।
भागदौड़ की जिंदगी में इंसान से कमियों और खूबियों से तुलना करना प्रमुख कारण है।
इसका इलाज सही नहीं कराने से आत्महत्या  हो सकता है। अधिक नशा करना,ड्रग्स की लत होने से अधिक आवेगशील हो जाते हैं ऐसी स्थिति में बिना सोचे समझे खुदकुशी करने का प्रयास करते हैं। मानसिक विकार आत्महत्या के कारण बनता है।
लेखक का विचार:- आत्महत्या के विचारों से बचने के लिए शारीरिक मानसिक स्तर पर  मेरा कुछ सुझाव है;-समय पर सोना और निश्चित समय पर उठना जरूरी है नियमित रूप से व्यायाम करना मेडिटेशन करना,योग करना,परिजनों के साथ खुशनुमा वक्त गुजारे, अपने मित्र टोली के साथ समय गुजारना और अपना दिल की बात अपने परिजनों के साथ शेयर करें अगर कोई सुझाव देते हैं तो उसे अमल करें।इस पर भी सफलता नहीं मिलती है तो मनोचिकित्सक से जांच कराएं। आत्महत्या जीवन का निवारण नहीं है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
आत्महत्या नकारात्मक सोच का दुष्परिणाम है। बहुत बार ऐसा देखा जाता है जब व्यक्ति निराश और दुखित होता है तब वह क्षणिक आवेश में यह ग़लत काम आत्महत्या कर लेता है। युवा वर्ग गुस्सा और अविवेकी में ऐसा गलत कदम उठा लेते हैं। बहुत बार व्यक्ति अपनी न ठीक होने वाली बीमारी के कारण भी आत्महत्या कर लेते हैं। जैसे अभी एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी ने आत्महत्या इसी कारण से कर लिया है। 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का ही परिणाम है गुस्सा हमारे अंदर एक ऐसी नेगेटिव एनर्जी को उत्पन्न करता है जिसमें मनुष्य को यह समझ नहीं आता है कि वह क्या सही कर रहा है और क्या गलत |  गुस्सा हर किसी व्यक्ति को आता है और जब उसको गुस्सा आता है तो वह उसको प्रकट भी करता है गुस्सा प्रकट करने का सबका अपना अलग अलग तरीका होता है,  परंतु जब आत्महत्या की बात आए, तो यह बहुत ही गंभीर विषय है | जब मनुष्य चारों तरफ किसी एक परेशानी से, घिरा  हुआ होता है और उसे उस समस्या से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई देता, और ना ही उसके मदद के लिए कोई व्यक्ति उसके साथ खड़ा होता है, तब आत्महत्या जैसे विचार मनुष्य के मन में आते हैं | वह गुस्से में यह सोचता है कि अगर वह आत्महत्या कर लेगा तो उसकी सभी समस्याओं का हल हो जाएगा, परंतु यह सिर्फ उसके गुस्से की वजह से मैं यह सब सोचता है, उसको यह ज्ञात नहीं होता है कि उसकी आत्महत्या के पश्चात उसके घरवालों के उसकी फैमिली पर क्या गुजरेगी | परीक्षा में बच्चों के सफल परिणाम न आने पर बच्चे कुछ ऐसे कदम उठा लेते हैं,  तो वह लोग अपने छोटे से गुस्से को एक बड़ा रूप दे देते हैं | गुस्से के कुछ पल का परिणाम ही आत्महत्या है,  तो ऐसा कदम उठाने से पहले कृपया सभी अपनी फैमिली के बारे में जरूर सोचे, और आत्महत्या करना ही समाधान नहीं है | 
 - रजत चौहान 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
आत्महत्या की प्रवृत्ति धीरे-धीरे हमारे समाज में बढ़ोतरी की और अग्रसर है।ये  आधुनिक समाज की एक बहुत ही दुखदाई स्थिती और पतन को इंगित करती है। सुनने में आता है कि परिस्थितियों से तंग आकर कोई भी व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश करता है। देखने में तो ये एक क्षणिक घटना लगती है कि फलां व्यक्ति ने इस वजह से अचानक आत्महत्या कर लिया।
परंतु मेरा मानना है कि आत्महत्या एक क्षणिक आवेग में उठाया गया कदम नही हो सकता। कोई भी व्यक्ति किसी भी मानसिक, शारीरिक , सामाजिक या व्यवसायिक कारणों में आने वाली परेशानियों से लड़ता हुआ इस मनोस्थिति में बहुत लम्बे समय तक रहता होगा।वो पूरी कोशिश करता होगा इस त्रासदी से बाहर निकल आने की और जब कोई रास्ता नहीं सूझता  होगा तो हारकर ये दर्दनाक राह अपनाता होगा।पर मैं कड़े शब्दों में इसकी भर्त्सना करती हूं। जीवन की कठिनाईयों से हार मानकर कभी भी आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण कदम को नही उठाना चाहिए।वर्ण अपने परेशानियों को दूसरे से सांझा कर के  उससे निकलने की कोशिश करनी चाहिए।
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का परिणाम भी हो सकता है।  बेशक अधिकतर आत्महत्याएं अवसाद में चले जाने और कोई रास्ता न सूझने का परिणाम होती हैं पर उनमें गुस्से का तथ्य नहीं होता।  गुस्से में, क्रोधातिरेक में, आवेश में आत्महत्या जैसे कदम उठा लिये जाते हैं और यह निर्णय क्षणिक होता है। अतः यह कहा जा सकता है कि किसी हद तक आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का परिणाम है।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली
आत्महत्या कोई ऐसे ही नहीं करता उसके पीछे कई कारण होते हैं हर व्यक्ति की सहन करने की अलग-अलग शक्ति होती है जब कभी व्यक्ति परेशानियों में घर जाता है और उसके अरमान पूरे होते समझ नहीं आते तो वह डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। और धीरे-धीरे मानसिक बीमार हो जाता है ।उसके जीवन में नकारात्मकता का असर होता है। और उसके दिमाग में आत्महत्या करने की धुन सवार हो जाती है फिर व्यक्ति मौत के अलावा कुछ नहीं सोचता और वह गुस्से में आकर आत्महत्या कर लेता है।
- पदमा ओजेंद्र तिवारी
 दमोह - मध्य प्रदेश
*निराश मन ही कमजोर क्षण*
जीवन में नैराश्य भाव व क्रोध के
क्षणिक परिणाम स्वरुप यह घटित हो
जाता है कोई बहुत विशेष कारण नहीं होता हैै उस समय जब कोई व्यक्ति निराशा के गहरे सागर में डूब रहा हो
यदि कोई सही दिशा मार्गदर्शन कर दे
तो यह आत्महत्या जैसी घटना को रोका जा सकता है बहुत दूरगामी सोच के साथ यह निर्णय नहीं लिया जाता है
क्षणिक आवेश मन में कहीं गहरा दुख,
अति महत्त्वाकांक्षाओं का होना भी कारक होते हैं कभी-कभी पल दो पल के निर्णय में यह घटित हो जाते हैं ।
यह बहुत दुखद होता है जाने वाला तो चला जाता है उसके पीछे उसका परिवार समाज बहुत दुखी होता है
भौतिकवादी युग भी इसका बहुत बड़ा कारक है प्रतिस्पर्धा धन वैभव की विलासिता स्वच्छंद जीवन शैली बहुत से ऐसे कारक हैं जो आत्महत्या को जन्म देते हैं एकाकी जीवन भी इसका बहुत बड़ा कारक है व्यक्ति के पास कोई राह नहीं होता उसका क्रोध खुद पर समाज पर परिवार पर कहीं न कहीं मन में घर करके बैठ जाता है आज की युवा पीढ़ी में यह बहुत अधिक बढ़ गया है।
*सबसे बड़ी चुनौती है आज की* 
*भारत की पुरानी परंपराओं को संयुक्त परिवार की महत्ता आवश्यक है*परिवार ही सबसे बड़ा संबल है*
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
आजकल  बदलती लाइफ स्टाइल में खासकर युवायों में स्टृेस के साथ साथ गुस्से की प्राब्लम भी वढ़ रही है, गुस्सा मानसिक शारीरिक और  सोशल लाइफ  खराब करने के साथ साथ कई विमारीयों  का खतरा  पैदा करता है। 
इसके एलावा कई वार इन्सान किसी वजह से इतने  स्टृेस में आ जाता है  उसको अपनी लाइफ भी वोझ लगने लगती है, 
ऐसे,  में इन्सान केवल एक ही रास्ता चुनता है  वो भी आत्महत्या का, आखिरकाल मौत की वली चढ़ जाता है।
तो आईये बात  करते हैं कि आत्महत्या क्या गुस्से के कुछ पल ही परिणाम है।  
आत्महत्या की बात करें तो इसके पीछे कई कारण हैं, जैसे परिक्षा में कम अंक आना या उतीर्ण न होना, घर में विवाद का कारण, अपनी चाहत के मुताबिक प्यार न मिलना इत्यादी इत्यादी, 
लेकिन इन सभी का मूल कारण गुस्सा ही वनता है, 
यह सारी भावनाएं गुस्से को प्रकट करती हैंऔर जब गुस्सा आपे से वाहर हो जाता है तो इन्सान ऐसा करने में मजबूर हो जाता है। 
यह सच है अगर किसी ढंग से  यह गुस्सा पल भर के लिए टल जाए तो इन्सान अपने प्राण वचाने में सफल हो सकता है, 
अपनी जिन्दगी से किसे प्यार नहीं होता चाहे हम रोजाना अपनी लाइफ  को कोसते हैं, 
लेकिन फिर भी  लोग आत्महत्या का रास्ता क्यों अपनाते हैं, उन्हें ऐसा क्या एहसास होता है कि वो अपने आप को इस दूनिया से अलविदा कह देते हैं, 
 किसी न किसी वजह के चलते लोग खुद को खत्म कर लेते हैं जिनमें गुस्सा ही सबसे वड़ा कारण है, कुछ भावनाएं जो इन्सान के अन्दर चलती हैं उनका पूर्ण न होना या उनसे ठेस पहुंचना इसका मूल कारण है, अक्सर लोग कुछ ऐसी गल्ती कर देते हैं जो उन्हें अन्दर ही अन्दर परेशान करती है और  उन्हें अपराधी कराने का एहसास कराती है। 
    क्रोध मानव के मस्तिक का एक ऐसा विकार है, जो इन्सान को क्षनभर के लिए पागल बना देता है, आमतौर पर गुस्सा सभी को आता है, परंतु जब हमारा क्रोध अपनी सारी हदें पार कर लेता है, यह हमारे लिए नुक्सान देह बन जाता है। 
गुस्सा अधुरी इच्छाओं का परिणाम है, जब हमारे दिल से क्रोध का गुबार बाहर निकलता है तब यह  तबाही का सबब बन जाता है, 
इसलिए गुस्से को अपने पास पनपने नहीं देना चाहिए क्योंकी सफल इन्सान  वोही है जो अपने गुस्से को हावी न  होने दें, और जब यह हावी हो जाता है हमें सही गल्त का एहसास नहीं रहता। 
आखिरकार  यह कहुंगा, समझदार वो है जो विवादों को  उपजाने की बजाय उन्हें टालने का प्रयास करे। 
 यही नही, जब भी गुस्सा आए ध्यान को वांटने की कोशिश करे, ब्यर्थ की बहस से वचे और अपने व्यवहार पर निंयत्रण रखे। 
इन सभी बातों पर ध्यान रखकर हम गुस्से को टाल सकते हैं और आत्महत्या  करने से भी वच सकते हैं। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
वेदांत दर्शन के अनुसार 'तत्वमसि सोअहम अयमात्मा 'जैसे सूत्रों का अभिप्राय यही है कि आत्मा ही ब्रह्म है l ईश्वर का प्रत्यक्ष अस्तित्व अपनी आत्मा में देखना ही वेदांत की साधना है l 
     आत्महत्या ब्रह्मा /ईश्वर की हत्या करना है l कैसे साधक हैं हम निःसंदेह आत्महत्या गुस्से के कुछ पल का ही परिणाम है l 
         इच्छा शक्ति और संकल्प बल की कमी के कारण जब व्यक्ति अपने चारों तरफ आशंका, निराशा और असफलता के चिह्न देखता है तो आवेश में आकर आत्महत्या ऐसे ही उद्दिग्न लोग कर बैठते हैं l 
      जीवन की महत्वपूर्ण सम्पदाओं में मनोबल का होना एक बड़ी विभूति है l लौकिक और पारलौकिक पुरुषार्थी की सफलता का प्रमुख आधार मनोबल ही है l कुमार्ग पर भटकने वाला मानव यदि आत्मज्ञान के प्रकाश में अपना सच्चा पथ प्राप्त करने वाला कभी भी आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठायेगा l 
          क्रोध तब आता है जब कभी कुछ मन अनुरूप नहीं होता है l क्रोध हमारी दुर्बलता से और यही हमारी सबसे बड़ी दुर्बलता बन जाता है l यदि क्रोध को वश में न रखें तो भ्रम जन्म लेता है और भ्रम को वश में न रखा जाये तो विवेक व्याग्र होता है और व्याग्रता को वश में न रखा जाये तो सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है l ऐसे में व्यक्ति स्वयं अपना पतन (आत्महत्या )कर लेता है l इसलिए अपने गुस्से पर नियंत्रण रखें और मन को शांत रखें l 
      अपराधी क्षणिक गुस्से का ही दण्ड भोगते हैं l क्या हम क्रोध पर अंकुश नहीं लगा पाते हैं l बालक की प्रतिक्रिया क्रोध है क्योंकि जो निर्बल है, निःसहाय है बालक अपने वजूद का एहसास अपने से बड़ों को क्रोध के माध्यम से कराता है l बड़े होने पर भी हम ऐसा नहीं करते है l क्या क्रोध हमारे भीतर बैठे बालक का प्रतिभाव नहीं है l जब अहंकार को घाव लगता है, भय लगता है तब हमें क्रोध आता है, क्षणिक पागलपन का परिणाम है आत्महत्या l 
             चलते चलते -------
क्यों सोचता है मरने की... 
मुसीबतें सब के पास होती हैं 
अपनेआप को पहचान कर ही
नयी दास्तान लिखनी होती है l 
अरे जिंदगी जीने का हुनर 
थोड़ा उन लोगों से भी सीख लें 
जिनके पास देखने को
 ऑंखें तक नहीं होती l 
      - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान

" मेरी दृष्टि में " आत्महत्या मानसिक रोग का परिणाम है । ऐसे रोगी को कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए । संगीत सुनना चाहिए ।  अच्छी पुस्तकें पढनी चाहिए । स्पेशलिस्ट डाक्टर की सलाह पर अमल अवश्य करना चाहिए ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान


Comments

  1. कार्य की विफलतायें, हताशा निराशा व्यापार आदि में हानि या घाटा लग जाना बात पर तवज्जो नहीं दिया जाना, बहुत से ऐसे कारण है जो मानसिक विकृति बन जाते हैं परिणाम स्वरूप मस्तिष्क सही निर्णय लेने में असमर्थ हो जाता है। जीवन उसे असार लगने लगता है और मन में आत्महत्या का भाव आ जाता है। यदि ऐसे व्यक्ति अपनी बात किसी से साझा कर ले तो आत्महत्या टल सकती है। किंतु यदि कोई मन में रखे रहे किसी को ना बताएं और एकदम से अपने आप को खत्म करना चाहे या खत्म कर दे तो फिर मुश्किल है। कभी-कभी क्षणिक आवेश में भी ऐसे कदम उठ जाते हैं अत्यधिक क्रोध या कोई चुभती हुई बात उससे भी व्यक्ति आत्महत्या का कदम उठा लेता है हुई बात जिससे किसी के मन को ठेस पहुंचे

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