सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना , क्याअपराध घोषित नहीं होना चाहिए ?

सरकारी विभाग में जीवित को भी मृत दिखा कर लोगों को तंग किया जाता है। परन्तु ऐसे अधिकारियों के खिलाफ पहले कारवाई  होती नहीं है। अगर हो भी जाऐ तो  सिर्फ दिखावे के अतिरिक्त कुछ नहीं होता है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना अपराध घोषित  होना चाहिए ! कई केस में व्यक्ति स्वयं जान बूझकर अपने फायदे के लिए स्वयं को मृत घोषित करता है ! इंश्योरेंस की बड़ी रकम  पाने के लिए बहुत बार ऐसा होता है !  सरकारी विभाग में  भ्रष्टाचार की मदद से यह संभव होता है ! अतः कागजी कार्यवाही द्वारा  जो  घोषणा पत्र दिया जाता है उसकी पुष्टि के लिए पहले पूर्ण रुप से शिनाख्त होनी चाहिए !बहुत बार पेंशन पाने वाले व्यक्ति
 का ही नाम मृत घोषित कर दिया जाता है!गरीब वृद्ध बेचारा स्वयं को खडाकर जीवित होने का प्रमाण देता है किंतु सरकारी  कागजी कार्यवाही को झूठ साबित करने के लिए उसे  अपने जीवित होने का प्रमाण देना पड़ता है  उसका आधार कार्ड, राशनकार्ड, पास्टपोर्ट रद्द हो जाते हैं !उसकी अपनी पहचान जीते जी गुम हो जाती है !पेंशन न मिलने से जो उसका हक्क है न मिलने से परिवार कितनी तकलीफ़ से गुजरता है !किसी को बेवजह प्रताणित करना अपराध नहीं है तो क्या है ? भ्रष्टाचार हो तो इसका उल्टा भी होता है आदमी मर जाता है जीवीत बता पेंशन आती रहती है !  आज जीवन एक मजाक बनकर रह गया है !व्यक्ति को अपने जीवित होने का प्रमाण पेंशन के लिए देना पड़े इससे भद्दा मजाक और क्या हो सकता है !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
मेरे विचार में सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना अपराध घोषित होना चाहिए।  ऐसी घटना लापरवाही की पराकाष्ठा है कोई मज़ाक नहीं है। चाहे अनजाने में हुई हो या जानबूझ कर की गई हो।  इस कृत्य का प्रभावित व्यक्ति पर कितना बुरा मानसिक प्रभाव पड़ता होगा उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। पेंशन के मामलों में सामने खड़े जीवित से भी जीवित होने का प्रमाण मांगा जाता है। ऐसी स्थिति के लिए किसे दोष दिया जाए?
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली 
सरकारी विभाग में जीवित व्यक्ति को यदि मृत घोषित कर दिया जाता है तो इसे अपराध की श्रेणी में लाना सही होगा, क्योंकि जो व्यक्ति जिंदा है और उसे मृत घोषित कर दिया गया है तो उसे जीवित होने के लिए दर-दर भटकना पड़ता है और उसे प्रमाण देना पड़ता है कि हम जीवित हैं। आप कल्पना कीजिए कि आप जीवित हैं और सरकारी विभाग में किसी काम को लेकर जाते हैं और वहां क्या पता चलता है कि विभाग में आपको मृत दिखा दिया गया है तो आप पर कैसा गुजरेगा। इस तरह की घटना अपने देश में आए दिन घटते रहती है। उदाहरण के तौर पर प्रधानमंत्री आवास कुटीर का लाभ सिरोही तहसील के गांव के शेर सिंह तथा उसकी पत्नी राम कुंवर बाई को नहीं मिल पाए इसलिए ग्राम पंचायत के सचिव ने दोनों के मृत होने का प्रमाण पत्र जारी कर दिया। जब इस मामले की जानकारी दंपति के पुत्र रघुवीर सिंह दांगी को मिली तो उन्होंने इसकी शिकायत जिला पंचायत माता पिता के स्वस्थ होने का प्रमाण प्रस्तुत किया। इसी तरह का एक और उदाहरण छतरपुर की है। मां के लिए उसके बेटे से बढ़कर कुछ नहीं होता है। जरा एहसास कीजिए उस मां को उस समय उस पर क्या बीती होगी जब उसके जवान और जीवित बेटे का ग्राम पंचायत ने मृत्यु प्रमाण पत्र थमा दिया। यह घटना गौरिहार ब्लाक की ग्राम पंचायत की है। महेश्वरी दिन साहू ने बताया कि वह वृद्ध मां गुजराती का जैसे-तैसे भरण पोषण करता था। गांव में रोजगार नहीं मिलने की तलाश में महानगरों की ओर पलायन कर गया। ग्राम पंचायत सचिव मुलायम सिंह राजपूत को जब यह बात नागवार गुजरी तो उसने महेश्वरी दिन का गरीबी रेखा सूची में नाम काटने के लिए षड्यंत्र रचा और शासकीय रिकॉर्ड में महेश्वरी दिन को मृत घोषित कर दिया। महेश्वरी की मां गुजरिया ने बताया कि वह अनपढ़ है।सचिव ने उसे कुछ दिन पहले पंचायत कार्यालय बुलाया और कहा उसके बेटे के कुछ दस्तावेज आए हैं उस पर उन्हें उसने अंगूठा लगवा लिया। पड़ोस में रहने वाले सुरेश सोनी, बराती लाल, भूपेंद्र कौशिक को सचिव द्वारा दिए गए दस्तावेज दिखाएं तो उसे देखकर दंग रह गए कि वह महेश्वरी दिन का मृत्यु प्रमाण पत्र था। यह सुनकर उसकी मां फफक फफक कर रोने लगी,  क्योंकि उसके जिंदे बेटे का प्रमाण पत्र मीत दिखा दिया गया था। अब आप ही अंदाजा लगा लीजिए कि जीवित व्यक्ति को यदि सरकारी विभाग द्वारा मृत दिखा दिया जाय तो उस पर और उसके परिवार पर क्या गुजरेगी। इसलिए यदि सरकारी विभाग द्वारा जीवित को यदि मृत घोषित कर दिया जाय तो इसे अपराध घोषित किया जाना चाहिए।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
जिस पर अपराध घोषित किया जाना चाहिये। अधिकांशतः चुनाव नामावलियों में देखने को मिलता हैं। दूसरी ओर बीमा के लोभी भी सरकारी तंत्र से मिलकर जीवित को मृत घोषित करवा देते हैं और आराम से मृत्यु प्रमाण पत्र भी प्राप्त कर लेते हैं, जबकि सम्पूर्ण जांचोंपरांत मृत्यु प्रमाण पत्र जारी होना चाहिए। भ्रष्टाचारी राशियों का  बटवारा कर जीवन यापन करते हैं, और उन्हें वृहद स्तर पर अनेकों जन सहयोग भी करते रहते हैं। इसकी समुचित जांच होनी चाहिए, ताकि भविष्य में अंकुश लगाया जा सके।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
सरकारी विभाग में कहीं-कहीं जो गोरखधंधा  हो रहा है --जीवित व्यक्ति को मृत साबित कर उसका प्रमाण पत्र बना देना ताकि उन्हें जो सुविधाएं सरकार द्वारा दी जा रही थी वह न देना पड़े --यह अक्षम्य अपराध है।
 अधिकारी फर्जी हस्ताक्षर करके प्रमाण पत्र बना रहे हैं। जीवित व्यक्ति को मृत बताकर झूठा प्रमाण पत्र बनाकर उसके जमीन को बेचने का मामला खुलकर सामने आ रहा है।
राजधानी दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मैक्स अस्पताल का लाइसेंस शुक्रवार को दिल्ली सरकार ने इसलिए रद्द किया क्योंकि कुछ दिन पहले डिलीवरी के दौरान पैदा हुए जीवित बच्चे को मृत बता दिया गया था।अस्पताल को सामान्य तौर पर दोषी मानते हुए यह कार्रवाई सटीक जान पड़ती है।
   व्यक्ति की प्रतिष्ठा समाज में उसके लिए बहुमूल्य संपत्ति है जो अक्सर उसे भौतिक संपदा प्राप्त करने में सक्षम बनाती है। अगर उसके प्रतिष्ठा के खिलाफ कोई भी काम होता है तो वह कानूनी मानहानि का दावा कर सकता है।
    जीवित व्यक्ति को मृत साबित करना एक अपराध है ऐसे व्यक्ति या संस्था पर सख्त से सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें सजा देने का प्रावधान होना चाहिए। विशेषकर सरकारी अधिकारी जो सच्चाई को जानबूझकर दबाने की कोशिश करते हैं उनके खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिेए, उन्हें अपराधी घोषित करना चाहिए।
                         - सुनीता रानी राठौर 
                      ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
सरकारी हो या प्राइवेट किसी भी विभाग में  जीवित को मृत दिखाना  अवश्य अपराध घोषित होने चाहिए।
साथ-साथ ये भी अपराध घोषित होना चाहिए जहाँ पर मृत को जीवित दिखा कर बहुत दिनों तक उसके नाम का फायदा लेते रहते हैं। आज देश में ऐसे बहुत सारे मामले मिल जायेंगे जहाँ पर आदमी कब का मर चुका है और उसके नाम से लोग पेंशन उठा रहें हैं। कोई आदमी कब का मर चुका है लेकिन वो स्कूल में पढ़ा रहा है। कोई आदमी कब का मर चुका है पर मतदाता सूची में उसका नाम चल रहा है।
    उसी तरह किसी से दुश्मनी निकलने के लिए कहीं-कहीं पर जीवित को मृत दिखा दिया गया है। ये तो सरासर अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे कुकृत्य तो अपराध घोषित होने ही चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना महज अपराध ही नहीं जघन्य अपराध घोषित होना चाहिए. छपरा जिले की गरीब महिला चानो देवी जब लॉकडाउन के दौरान अपने जनधन खाते से पैसा निकालने गई तो उन्हें जवाब मिला- 
'आप तो मर चुकी हैं, आपको आपके खाते के पैसे कैसे दें?' 
कितने शर्म की बात है जीवित को मृत दिखाना! अब जीवित व्यक्ति अपने जीवित होने का प्रमाण जुटाता फिरे! किसी को भी मृत दिखाने से पूर्व सरकारी विभाग को पूरे  प्रमाण जुटाने चाहिएं. सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना अपराध घोषित होना चाहिए और उसके खिलाफ सख्त कार्यवाही भी करनी चाहिए, ताकि ऐसी धांधलियां बंद हो सकें. 
-लीला तिवानी 
दिल्ली
सरकारी विभाग जहाँ दोहरी-तिहरी जांच कर भर्ती किया सरकारी मुलाजम जनता जनार्दन की सेवा में शपथ दिलवा कर सेवा में लीन होकर दायित्व निभाता,वही शख्सियत उसी जनता को जीते जी मार देता कितनी मार्मिक बात होगी जो ऐसा करते हैं। चिकित्सक जो भगवान का साक्षात रूप माना जाता है उनसे हमें बहुत -सी उम्मीदें हैं,वो उन पर खरा उतरें बस यही कामना है आपसे उस जनता को अपना मान कर सोचो वो अपना सब कुछ देने को आतुर है, एक बार नजर घुमा कर तो देख कितना स्नेह उनको आप के लिये
-  तरसेम शर्मा 
कैथल - हरियाणा
 सरकारी विभाग में जीवित  मृत दिखाना अपराध घोषित अवश्य होना चाहिए।  इसको लोग मजाक में ले लेते हैं या कंप्यूटर की त्रुटि समझ बैठते हैं। कुछ तो लापरवाह के कारण त्रुटियां हो जाती है और कुछ जानबूझकर प्रलोभन में आकर लोग मृत को जीवित और जीवित को मृत घोषित करते हैं। सरकार की दोनों स्थिति अपराध है। गलत को ही अपराध कहा जाता है जब गलतियां होती है गलतियां समस्या पैदा करती है समस्या पर देवा पैदा करने वाले को ही अपराध कहा जाता है तो अवश्य ऐसी हरकत या गलती करने वाले को अपराध के दायरे में गिना जाना  चाहिए।  अतः सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना अपराध घोषित अवश्य करना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मैं भी सहमत हूं, सरकारी विभाग के जो भी कर्मचारी, अधिकारी ऐसे घिनौना काम में संलिप्त हैं उन पर कानूनी शिकंजा कसना जरूरी है। भ्रष्टाचार मिटाने के लिए यह पहला कदम होगा। 
लेकिन हमारे देश में एक दो नहीं बल्कि हर राज्य में फैला हुआ है। समाज कल्याण विभाग के
जो बाबू लोग और अधिकारीगण अधिकतर एक ही जगह पर बैठे हुए हैं।
उन के माध्यम से बिचोलिया काम कर रहे हैं।
अभी हाल में झारखंड के घाटशिला प्रखंड में एक 80 वर्ष बुजुर्ग औरत का पेंशन बंद हो गया। वो पंचायत से लेकर डीसी ऑफिस तक चक्कर लगाई, लेकिन इस बात की जानकारी नहीं मिल पाई मेरा पेंशन क्यों बंद हुआ। 
इसी बीच एक सफेदपोश व्यक्ति बुजुर्ग औरत के पास जाकर जानकारी लिए और आश्वासन दिए की आपका पैसा मिल जाएगा लेकिन जो मिलेगा उसमें आधा हमें देना होगा ।बेचारी बुजुर्ग औरत सहमत होकर सभी कागजात उस व्यक्ति को दे दिए 10 दिन के अंदर 2 साल का पैसा उन्हें मिल गया।
इस बात की जानकारी  उच्च स्तरीय समाज कल्याण विभाग को मिला तो एक उच्च स्तरीय इंक्वायरी बिठाया और जो लोग दोषी निकले   उनको कानूनी कार्रवाई के शिकंजे में कसा गया। यह बात प्रिंट मीडिया से जानकारी होने के बाद हुआ।
लेखक का विचार:-इस तरह का खेल देश के हर राज्य में है अगर दिल से चाहते हैं भ्रष्टाचार मिटा ना है।
 तो ऊपर से शुरू किया जाए नीचे अपने आप बंद हो जाएगी। ए सब खेल राजनेता के इशारे पर होता है। अगर समाज कल्याण विभाग का सुचारू रूप से काम करना हो तो इस तरह का खेल बंद किया जाए।
*देश की प्रगति करना है तो भ्रष्टाचार मिटाना है*
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
सरकारी विभागों के अधिकारियों के द्वारा अनेकों ऐसे कारनामे सामने आए हैं जो अचंभे में डाल देते हैं । जैसे जीवित को मरा दिखा देना सरकारी कर्मचारियों के मानव बाएं हाथ का खेल है  ।
सामाजिक पेंशन योजना के तहत वृद्धावस्था पेंशन के लिए कई घोटाले सामने आए हैं । वृद्धजन वृद्धा पेंशन के लिए आवेदन करते हैं साथ ही बैंक खाते की पास बुक के प्रति लगाने के साथ-साथ अन्य कागजी प्रक्रिया भी पूरी की जाती है । उनके खाते में तत्काल पेंशन का पैसा आना शुरू हो जाता है लेकिन कर्मचारियों की कार्य कारी भूल कई बार कागजों में उन्हें मृत घोषित कर देती है और पेंशन बंद हो जाती है । 
सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार भी स्पष्ट देखा जाता है पेंशन लगाने के लिए पेंशन धारियों से पैसे की मांग करना और पैसा ना देने पर पेंशन रोकने की धमकी देना , आम बात है ।
 जीवित को मृत दिखाने का मामला काफी गंभीर है । यह अपराध है संगीन अपराध है । ऐसे मामलों में सही जांच पड़ताल करके दोषी को सजा अवश्य मिलनी चाहिए । विधवा पेंशन मे भी कई गरीब जरूरतमंद विधवाओं को यह मार झेलनी पड़ी है । समय पर सभी दस्तावेज पहुंचने के बाद भी विभाग कार्यवाही नहीं करता है । उच्च अधिकारियों तक शिकायत पहुंचने के बाद ही किसी  आदेश की तामील हो पाती है । 
इस प्रकार के कई मामले देखने को मिलते हैं । लेकिन बार-बार गलती दोहराना सजा के काबिल है । एक जागृत और कड़ा नियम ही  कानून की पालना करवा सकता है । उच्च अफसरों द्वारा इन विभागों को  सख्त आदेश दिया जाना चाहिए ताकि किसी प्रकार की कोई गलती या अवहेलना ना हो जिसका खामियाजा किसी जरूरतमंद व्यक्ति को भोगना पड़ेगा। 
ऐसे दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए और सजा का प्रावधान अवश्य अवश्य होना चाहिए ।
 - शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
मगर सरकारी विभाग में जीवत को मृत दिखाना  बहुत वड़ा अपराध  घोषित होना चाहिए। 
 ऐसा करने से  सरकारी विभाग मैं कई तरह की ठगी की जा सकती है। 
जिस से सरकारी खजाने को चूना  लग सकता है, व  जीवत  इंसान को मृतक घो षित करके उसकी जगह  गैर कानूनी ढंग से एस आर ओ के तहत  दुसरे को  नियुक्त  कि्या जा सकता है  जो एक कानून के खिलाफ है 
आजकल लोग लालच के चक्कर में लाखों के इन्सोंरिस को चुना लगा रहे हैं, जबकि ऐसा करना अपराध है, 
कई बार  सरकारी विभाग वाले जानवुझ कर   प्रिंट डाटा में गल्त डाटा फीड कर देते हैं और उक्त   मुलाजिम को जीवत ही मृत करार कर देते हैं, यह सब धोखाधड़ी के  मामले हैं,  ऐसे   मामले अपराधिक मामलों में ही आते हैं इसलिए किसी जीवत को मृत दिखाना एक  कानुनी अपराध है।  
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
*जीवित को मृत घोषित करना अपराध है*
सरकारी विभाग द्वारा जीवित व्यक्ति को मृत घोषित करना इसके लिए कानून बना हुआ है यह मान्य है कि
इंडियन एविडेंस 1872 धारा 108 के तहत किसी भी व्यक्ति के गुमशुदा या
गायब होने के 7 साल बाद तक अगर उसकी कोई खबर नहीं होती तभी उसे मृत घोषित किया जा सकता है।
इस बीच कोई कितना भी खास हो
कितनी भी सत्यता पूर्वक बात को कहें
सरकार उसको मृत घोषित नहीं कर सकती है। ऐसी स्थिति में सरकारी विभाग के द्वारा किसी जीवित व्यक्ति को मृत घोषित करना निश्चित ही अपराध माना जाएगा। जब तक की प्रमाण सभी तथ्य सामने ना हो किसी भी व्यक्ति को मृत घोषित नहीं किया जा सकता है फिर भी कई बार ऐसे मामले सामने देखने को मिलते हैं जीवित व्यक्ति को मृत घोषित किया जाता है उसकी पेंशन रोक दी जाती है
जब वह व्यक्ति स्वयं ही अपनी पेंशन की अर्जी लगाता है तब पता चलता है
ऐसे मुंबई का एक मामला जीवित महिला की जमीन को बेच दिया गया।
अभी मैक्स में दो जुड़वा बच्चों में से एक जीवित था उसको मृत घोषित कर दिया गया अस्पताल का लाइसेंस रद्द कर दिया गया है डॉक्टर सत्येंद्र जैन
जी ने संज्ञान में लिया है।
*जीवन अनमोल है आप किसी को*
*बिना सबूत के सत्य प्रमाण के मृत* *घोषित नहीं कर सकते हैं
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
जीवित को मृत दिखाने से बड़ा भ्रष्टाचार नहीं हो सकता बल्कि मैं तो कहूंगा कि यह बहुत बड़ा पाप है। किसी व्यक्ति के लिए स्वयं को जीवित सिद्ध करने से बड़ा मजाक और क्या हो सकता है।
सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली से सभी परिचित हैं। इन विभागों में छोटे से, सीधे कार्यों को भी किस तरह टेढ़ा कर दिया जाता है यह भुक्तभोगी ही जानता है।
यह अत्यन्त आश्चर्यजनक और भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है कि कुछ समर्थ लोगों की स्वार्थपूर्ति हेतु सरकारी विभागों में जीवित को मृत दिखाने का खेल बड़ी आसानी से हो जाता है।
यह एक मानसिक कष्ट देने वाला कार्य है इसलिए सरकारी विभागों में जीवित को मृत दिखाना एक अपराध घोषित होना चाहिए। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
          इतनी बड़ी लापरवाही अपराध के  समान ही है। एक जीवित इंसान को मृत दिखा देना उसकी अक्षमता का परिचायक है। रिकॉर्ड संधारण करते समय हर चीज को गंभीरता पूर्वक लेकर रिकॉर्ड तैयार करना चाहिए। किसी की सुनी बात पर या यूं ही कुछ भी  लिख देना बहुत ही गलत कार्य है। जब तक उस व्यक्ति को उस कार्य की सजा नहीं दी जाएगी तब तक उसे यह बात समझ में भी नहीं आएगी ।इसलिए गंभीरता पूर्वक उस पर कार्यवाही की जानी चाहिए क्योंकि उसकी वजह से जीवित व्यक्ति को  कितनी परेशानियां उठाना पड़ेगी यह उसने सोचा भी नहीं। आज के समय में समस्याएं वैसे भी कम नहीं है ।जरा सा भी काम करवाने के लिए कई दिनों ,महीनों और सालों तक भी परेशान होना पड़ता है।
     गलत टीप लिखने वालों को निश्चित रूप से सजा मिलनी चाहिए ताकि औरों को भी सबक मिले कि किसी भी कार्य को ईमानदारी से निष्ठा पूर्वक करना कितना आवश्यक है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर -मध्य प्रदेश
           कई बार सरकारी विभाग के अधिकारियों या कर्मचारियों द्वारा किन्हीं कारणों से जीवित व्यक्ति को मृत दिखाकर सुविधाओं से वंचित कर दिया जाता है।यह बात सुनने में अटपटी लगती है लेकिन है सोलह आने सच। इसको किसी भी प्रकार या नियम से उचित नहीं ठहराया जा सकता। यह बात और भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस प्रकार का कृत्य करने वाले कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगड़ता।उनको कोई दंड नहीं दिया जाता अर्थात् किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही भी नहीं होती।इससे सरकारी तंत्र के प्रति जनता के विश्वास और व्यवस्था पर भी प्रश्न चिन्ह लगता है जो कि स्वस्थ लोकतंत्र के बहुत हानिकारक है।
          किसी जीवित व्यक्ति को मृत दिखाने के पश्चात् उस व्यक्ति की सुविधाओं या सामाजिक स्थिति किस प्रकार की होगी। इसकों कोई विभाग नहीं समझ सकता।सरकारी विभाग द्वारा किसी जीवित व्यक्ति को मृत दर्शाने पर किसी का वेतन,किसी की पेंशन या अन्य सुविधाओं से वंचित होने पर जीविका पर संकट आ जाता है।
           अतः सरकार द्वारा ऐसे कृत्य रोकने के लिए आवश्यक उपाय किए जाने चाहिए।संबंधित अधिकारी के खिलाफ जांच कर आवश्यक कार्यवाही करने का प्रावधान करना चाहिए जिससे इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
           इस आधार पर कहा जा सकता है कि किसी भी सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना  संज्ञेय अपराध घोषित होना चाहिए ।
- सुरेंद्र सिंह
अफ़ज़लगढ़ - उत्तर प्रदेश
प्रत्येक व्यक्ति का शरीर पवित्र और स्वतंत्र समझा जाता है l यदि कोई व्यक्ति उसकी स्वाधीनता को संकुचित करता है तो उसका यह कृत्य आपराधिक घोषित किया जाना चाहिए l 
      राजकीय कर्मचारी और प्रशासक के मध्य संबंध सेवक व राजा के संबंध को परिलक्षित करता है l ऐसे परिवेश में वह सशरीर आपके सामने अपनी सेवाएँ दे रहा है उसे आप प्रामाणिक करते हुए पारिश्रमिक भुगतान भी कर रहे हैं और आपके मातहत कर्मचारी उसे मृत घोषित कर दें तो इससे बड़ी विडंबना कोई हो नहीं सकती l ऐसे कृत्य को आपराधिक कृत्य घोषित कर देना चाहिए l हास्यास्पद स्थितियाँ तो उस समय पैदा हो जाती हैं जब आप जीवित अधिकारी के समक्ष खड़े हैं और आपसे जीवित प्रमाण पत्र माँगा जाता है l 
आखिर क्यों एक जीवित व्यक्ति का सपना मर जाता है? 
कम्प्यूटर त्रुटी के नाम पर जीवित को मृत बता 
उन्हीं से जीवित प्रमाणपत्र माँगा जाता है l 
      समाज में संवेदना का क्षरण और अपराधी के प्रति नरम रवैया चिंता का विषय है l एक समय में झूँठ बोलना अपराध की श्रेणी में आता था लेकिन सरकारी विभाग जीवित कार्मिक को मृत बताकर असहनीय वेदना देने वाले अपराधी घोषित नहीं होने के कारण मदमस्त हो जाते हैं l 
           चलते चलते -----
उप मरांत हो गये कमीने लोग 
ख़ाक में मिल गये नगीने लोग 
हर मुहिब्ब -ऐ -वतन, जलील हुआ 
जब जीवित सेवक को मृत बता दिया आपने l 
          -- डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
      जी हां! सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना अपराध घोषित अवश्य होना चाहिए और सत्य यह भी है कि बहुत कुछ होना चाहिए। किन्तु क्या अपराध घोषित होने मात्र से अपराधियों को दण्ड मिल जाता है? दूसरे शब्दों में क्या मृत जीवित हो जाता है?
       उल्लेखनीय है कि मुगलों और अंग्रेजों के अधीन रहते-रहते हमारी आत्मा गुलाम हो चुकी है। जिसे झिंझोड़ने की अत्याधिक गम्भीर आवश्यकता है।
       सर्वविदित है कि न्यायालय में झूठा शपथ पत्र (एफिडेविट) भरना संगीन अपराध है। यह जानने हुए भी सरकार एक के बाद एक झूठा शपथ पत्र दाखिल करती है और माननीय न्यायालय के माननीय न्यायाधीश भी जानते हैं कि उपरोक्त शपथ पत्र झूठा है। फिर भी नग्न सत्य हारता है और झूठ सत्य के वस्त्र धारण कर विजयश्री प्राप्त करता है। 
        अतः अपराध घोषित होने से अधिक हमें अपराध के विरुद्ध आवाज बुलंद करने के लिए वीरता की परम आवश्यकता है। सत्य पर सब कुछ न्यौछावर करने की इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। माननीय न्यायालय के माननीय न्यायाधीश के समक्ष छाती ठोककर सत्य बोलने की आवश्यकता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना गंभीर गलती है, जिसे अपराध माना जा सकता है। आये दिन अक्सर ऐसे अनेक उदाहरण देखने मिलते हैं। जो समर्थ पीड़ित होते हैं वे तो इसे ठीक करा लेते हैं, परंतु जो गरीब और कमजोर तबके के होते हैं, उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि भूखे मरने की नौबत तक आ जाती है। पीड़ित का प्रकरण यदि राशन कार्ड से होता है  और उसमें यदि जीवित होते हुए भी मृत दिखा दिया गया है तो उस परिवार को राशन नहीं मिल पाता। कोई राहत, सहायता या पेंशन जैसे प्रकरण में पीड़ित को मृत दिखा दिया गया तो वे शासन या विभाग से मिलने वाली कोई भी योजना का लाभ नहीं ले पाता और स्वयं को जीवित बताने के प्रमाण में सरकारी संस्थाओं के चक्कर लगाते-लगाते हिम्मत खो बैठता है मगर रिकार्ड सही नहीं हो पाता।
 विभागीय इस भूल या गलती का परिणाम भयाभव होते हुए भी संबंधित कर्मचारी/अधिकारी या यूँ कहें कि जिम्मेदार लोग तनिक भी द्रवित नहीं होते। मेरा सुझाव है कि ऐसे प्रकरण में सबसे पहले उस पीड़ित का रिकार्ड अविलंब ठीक किया जाना चाहिए क्योंकि उसकी जीविका का सवाल होता है, इसके बाद ऐसी गलती/ अपराध करने वाले दोषियों को दंडित किये जाने की कार्यवाही होना चाहिए। सामान्यतः ऐसा नहीं होता और जाँच  प्रारंभ हो जाती है और प्रकरण तब तक लंबित रहता है जब तक जाँच पूरी नहीं हो जाती और तब तक पीड़ित को कोई राहत नहीं मिल पाती। जब भी कोई मदद करने की बात आती है, यह कह। दिया जाता है, 'जाँज जारी है।'
 अतः ऐसे प्रकरणों में त्वरित कार्यवाही होने का प्रावधान होना चाहिए और दोषियों के विरूद्ध कड़ी कार्यवाही होना चाहिए। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव, 
गाडरवारा मध्यप्रदेश
सरकारी विभाग में जीवित को मृत दिखाना अपराध घोषित होना चाहिए । 
सरकार के लोगों की मिलीभगत होती है । जीवित व्यक्ति को मारा दिखा देते हैं । जिससे वह उनकी   अनुग्रह अनुदान , बीमा राशि आदि ले सकता है ।हाल ही में जिन्दी ओरत को मृत दिखा दिया । पति उसकी पेंशन ले रहा था ।
ऐसे कुकृत्य करने वाले इंसान पर आपराधिक मामला दर्ज करना चाहिए । यह झूठ  कानून की दृष्टि में अपराध है ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है किस सरकारी विभागों में जीवित को मृत दर्शना क्या अपराध घोषित नहीं होना चाहिए तो इस पर मैं कहना चाहूंगा कि यह कहीं ना कहीं लापरवाही का बहुत बड़ा उदाहरण है कि जब एक वास्तविक रूप से जीवित व्यक्ति सरकारी अभिलेखों में व्रत के रूप में दर्द हो जाए इस संबंध में बहुत सावधानी बरती जानी चाहिए और कभी-कभी यह बहुत कष्टकारी जब हो जाता है जब वह व्यक्ति अपने आप को इन अभिलेखों में जीवित दर्शाने के लिए लगातार चक्कर काटता रहता है यदि कभी किसी कारणवश या टाइपिंग मिस्टेक या किसी और वजह से यदि ऐसा हो जाता है मानवीय भूल के कारण तो उसका निदान त्वरित गति से होना चाहिए जिससे संबंधित व्यक्ति को अधिक परेशानी न हो कभी-कभी ऐसी दशा समन्धित व्यक्ति के लिए बहुत पीड़ादायक हो जाती ऐसा मैं समझता हूं ऐसा जानबूझकर तो नहीं किया जाता होगा कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ भूल जरूर होती होगी ऐसा कोई जानबूझकर वास्तव में नहीं करेगा कि किसी जीवित व्यक्ति को दर्शा दिया जाए और यदि कोई जानबूझकर ऐसा करता है और साक्ष्य इस बात की गवाही देते हैं तो निश्चित रूप से ऐसे व्यक्ति को दंडित किया जाना चाहिए.।
- प्रमोद कुमार प्रेम
 नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
जीवित को मृत दिखाना यह तो सचमुच एक बहुत बड़ा अपराध है और ऐसा करने वाले व्यक्ति को अपराध करने वाले के कटघरे में रखना हीं चाहिए। यह एक बहुत ग़लत और अन्याय है किसी भी जीवित व्यक्ति को मृत घोषित कर के। ऐसा करने से व्यक्ति विशेष की पेंशन में जो रकम मिलती है वह बंद हो जायेगी,जिसके कारण वह व्यक्ति विशेष बहुत परेशान और मुसीबत में फंस सकता है। प्रतिवर्ष व्यक्ति को अपने जीवित होने का सबूत या प्रमाण पत्र तो देना ही पड़ता है , लेकिन अगर कोई सरकारी विभाग का कर्मचारी इसे सही मानने से इंकार करता है और उसके पैसे मिलने में बाधा या अड़ंगा लगाने की कोशिश करता है तो निश्चित रूप से ऐसा गलत करने वालों को अवश्य हीं दंड स्वरूप अपराधी घोषित करने का प्रावधान होना हीं चाहिए ताकि वह सरकारी कर्मचारी यह ग़लत क़दम कभी ना उठाएं उन्हें ऐसा करने का डर हो। इसलिए मेरे विचार से जांच पड़ताल करना सही है,  लेकिन जब व्यक्ति अपने जीवित होने का सही प्रमाण दे रहा हो तो उसे कदापि परेशान नहीं करना चाहिए यह मानवता धर्म के भी खिलाफ है और अपराध तो है ही।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
सरकारी विभाग में जीवित को मृत्यु दिखाना यह एक अपराध ही है और इसमें कहीं ना कहीं मैं समझता हूं कि हमारे कर्मचारी हमारे विभाग की थोड़ी सी लापरवाही रह जाती है जिससे कि वह सही जांच पड़ताल किए बिना ही किसी को भी मृत घोषित कर देते हैं, कई विभागों में मैंने भी ऐसा देखा है कि वहां पर दिखाया जाता है कि इस व्यक्ति की मृत्यु कहीं साल पहले हो चुकी है परंतु वह व्यक्ति जीवित होता है तो इसमें गलत जानकारी जो हमारे विवाह को पहुंचाई जाती है वह बिना किसी जांच पड़ताल के उनकी बात को सही समझ कर उसको मृत घोषित दिखा देते हैं और बिना जांच पड़ताल के कोई भी निर्णय लेना है यह अपराधी है और किसी व्यक्ति को अगर वह जीवित है और उसका अमृत दिखाओगे तो वह तो बहुत बड़ा अपराध है तो इस पर जरूर कार्रवाई होनी चाहिए और ऐसी गलतियां आगे ना हो इस पर सुधार हमारी सरकार को हमारे विभागों को करना चाहिए  ।
 - रजत चौहान
  बिजनौर -उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कानून बना कर कोर्ट के हवाले कर देना चाहिए । कोर्ट कानून के हिसाब न्याय करेगा । तभी जनता को सरकारी विभागों से तंग किया जाना बन्द हो सकता है ।
                           - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान

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