सामुहिक दुष्कर्मियों को तुरन्त सजा देने के लिए क्या - क्या कानून में संशोधन होना चाहिए ?

सामुहिक दुष्कर्मियों के खिलाफ एक जुटता लोगों में आनी चाहिए । हाथरस कांड में सिर्फ मीडिया ही आगे नज़र आ रही है ।बाकी तो राजनीति में बट गये हैं । हम सब को राजनीति से ऊपर उठ कर कार्य करना चाहिए । ऐसा कानून तैयार होना चाहिए । सामुहिक दुष्कर्मियों के खिलाफ तुरन्त कारवाई करते हुये कानून इंसाफ कर सके । यहीं जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा "  का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
 सामूहिक दुष्कर्मयो को  उसका अपराध का प्रमाण मिलते हीं उसे उसके कर्मों के अनुसार जैसा सजा सुनाई जाती है ।उसे तत्काल उस सजा भुगतने के लिए समय नहीं देना चाहिए और जितनी जल्दी हो सके सजा तत्काल दे देना चाहिए ।वर्तमान दुनिया भ्रष्टाचार की दुनिया में अपराधी को पैसे के बल पर न्यायिक बना दिया जाता है। अपराधी को लालच वश पनाह देने वाले उस अपराधी से ज्यादा अपराधी कहलाता है ।उन्हीं लालचीयों के चलते समाज में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। सामूहिक कर्मियों को भ्रष्टाचार करने का मौका या अवसर नहीं देना चाहिए ।उन्हें तत्काल सजा देना चाहिए ।ताकि समाज में और कुकर्मि  पैदा ना हो। कर्मियों मैं भय का भाव बना रहे।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
ज्वलंत उदाहरण:-हाथरस सामूहिक दुष्कर्म उत्तर प्रदेश में। हैदराबाद में डॉक्टर से सामूहिक दुष्कर्म और फिर हत्या। २०१२ मैं दिल्ली में निर्भया कांड यह सब याद आने पर सभ्य समाज के चेहरे पर चिंता की लकीरें और साफ दिखाई पड़ने लगे हैं।
 रेप से जुड़े कानून को सरकार जल्द से जल्द सशक्त बनाए।
अगर देश की आधी आबादी चहारदीवारी के अंदर कैद हो जाएंगे तो देश के विकास की  प्रक्रिया  प्रभावित होगा। 
 लाख कोशिश के बावजूद क्या हम समाज मैं उन्नत कहलाने लायक रह जाएंगे।
 मेरे विचार से सामूहिक दुष्कर्म को तुरंत सजा देने के लिए कानून में जल्द से जल्द संशोधन होना चाहिए।
लेखक का विचार:-बलात्कारियों को सजा देने संबंधी जो अध्यादेश को माननीय राष्ट्रपति जी से मंजूरी मिली है वह उचित है ।लेकिन इसे और कठिन बनाया जाए। इस नियम मैं  न्यायालय की लंबी प्रक्रिया से गुजारना पड़ेगा।
जिस प्रकार निर्भया के दोषी अब तक बचे हुए हैं।
मेरा मानना है बलात्कारियों को पकड़कर
दोषी साबित कर शहर के बीच चौराहे पर
सूट कर दिया जाए जिससे शहर में दहशत फैल जाएगा और दुष्कर्मीओं
को सोचना पड़ जाएगा। यह लेखक का व्यक्तिगत विचार है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
  छोटे से छोटा अपराध क्यों ना हो सजा तुरंत मिलनी चाहिए वर्ना कुछ समय के बाद मामला ठंण्डा पड़ जाता है , कोई ताजी घटना उभर कर आ जाती है और मामला रफा दफा अथवा कमजोर पड़ जाता है एवं पुनः जधन्य अपराध की पुनरावृति होती है अतः कार्यवाही त्वरित की जाए !
16-17 साल के अपराधी को माइनर की गिनती में रख रियायत न दे ! जो बलात्कार जैसे जधन्य अपराध करता है जिसकी मानसिक स्थिति इतनी घृणित है वह माइनर की श्रेणी में आ ही नहीं सकता !
  वकील अपने पेशे के कारण किसी भी पक्ष को बचाकर तगड़ी फीस ले नामी वकील बनता है और न्याय प्रणाली संविधान के नियमों का पालन करती है यानी सौ अपराधी छूट जाए किंतु एक निर्पराध दंडित नहीं होना चाहिए यानीकि न्याय प्रणाली के हाथ बंधे हैं और अपराधी खुले सांड के जैसे अपराध पे अपराध करता है ! कानून में संशोधन तो होना ही चाहिए ! बलात्कारियों को तो सजाए मौत तो मिलनी ही चाहिए  किंतु उससे भी पहले एनकाउंटर कर देना चाहिए !
  राजनीति खेल नहीं होना चाहिए !
  मेरा न्याय तो यही कहता है कि उसे जनता के हवाले कर देना चाहिए फिर वह किसी भी तरह की सजा दे चाहे उनके लिंग काट दे और नंपुसक कर दे अथवा उसके टूकडे कर दे !किंतु मौत इतनी दर्दनाक हो कि ऐसे जधन्य अपराध की पुनरावृति करने से भी कांप जाए !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
                  सामूहिक दुष्कर्मियों को तुरंत सजा देने के लिये शीघ्रातिशीघ्र कार्रवाई होनी चाहिए। गिरफ्तारी के एक माह के अंदर ही सबकुछ होना चाहिए। कानून में ऐसे संशोधन होना चाहिए जिसमें जमानत वगैरह की कोई बात न हो। दया याचिका की कोई बात न हो। 
                सजा ऐसी होनी चाहिए कि सजा भी उसे देख कर डरे , अपराधी खौफ खाये। फाँसी तो पल भर की बात है। उसमें अपराधी को कुछ पता भी नहीं चलता कि ऐसे दुष्कर्म का अंजाम कितना भयानक होता है। पल-पल वो जलता रहे पल-पल वो मरता रहे। मरना चाहे पर मरे नहीं। जीना चाहे पर जी न पाये। ऐसी सजा का प्रावधान होना चाहिए।
             अंग भंग कर उसे बीच चौराहे पर बैठा देना चाहिए। जो भी आये उसे दो थप्पड़ मारे। उसके बदन पर थूके। ऐसी-ऐसी भयानक सजा का प्रावधान होना चाहिए तभी ये दरिंदगी वाली हरकत बन्द हो सकती है। उसके बचाव में जो कोई आये उसे भी दंड मिलना चाहिए। इससे भी अगर कोई कड़ा कानून हो तो उसे रखना चाहिए। तभी ये दरिंदगी बन्द हो सकती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं बंगाल
     भारत में अपराधियों की संख्याओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तियां होती जा रही हैं, अपराध कैसा भी हो अपराध ही होता हैं, संरक्षण प्राप्त होने के कारण हौसले बुलंद हैं, इसलिए रोकथाम के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया हैं, हम कानूनों में कितना भी संशोधन करवा ले, जिसका प्रतिफल शून्य ही होता हैं। प्रति दिन दुष्कर्मियों ने अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो रहे हैं,  उनको तत्काल सजाऐं देने, निर्णय लेने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं, तब ही जाकर वास्तविक संख्याओं में कमियां आयेंगी। दुष्कर्मियों को वृहद स्तर पर रोक लगाने महिलाओं में जागरूकता लाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने प्रयत्नशील होना चाहिए।  
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
सबसे पहले तो प्रशासन-व्यवस्था इतनी सुदृढ़ और चुस्त-दुरुस्त होनी चाहिए कि दुष्कर्म या सामुहिक दुष्कर्म होने ही न पाएं. इसके बावजूद ऐसा हो जाता है, तो यथासंभव सामुहिक दुष्कर्मियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए और त्वरित न्याय की व्यवस्था करते हुए उनको सरेआम कड़ा दंड देना चाहिए. जब तक ऐसा नहीं होगा, सामुहिक दुष्कर्मियों का साहस बढ़ता ही जाएगा. विलंब से किया हुआ न्याय भी अन्याय के समान ही होता है. इसके अतिरिक्त पीड़ित का विसरा सुरक्षित रखा जाना चाहिए, आनन-फानन उसका अंत्येष्टि संस्कार नहीं करना चाहिए, इससे सभी सुबूत मिट जाते हैं और सामुहिक दुष्कर्मियों का गुनाह साबित होने में कठिनाई आती है. यदि सामुहिक दुष्कर्मियों में से कोई दुष्कर्मी नाबालिग हो तो, उसे बच्चा समझकर बख्शा नहीं जाना चाहिए. वह तो और अधिक गुनहगार माना जाना चाहिए. दुष्कर्मी हों या सामुहिक दुष्कर्मी, देश-समाज-मानवता-न्याय सबके लिए दुर्दांत कलंक हैं, उनको तुरंत सरेआम कड़ा दंड देना वांछनीय है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
सामूहिक दुष्कर्म एक स्त्री के लिए अभिशाप है। पीड़िता के लिए जीवन भर के लिए पीड़ादायक है। ऐसे दुष्कर्मियों को सजा देने के लिए और पीड़िता को तत्काल न्याय की व्यवस्था हो इसके लिए त्वरित न्यायिक प्रक्रिया होनी आवश्यक है।  निर्णय के लिए कम से कम अवधि निर्धारित होनी चाहिए। सामूहिक दुष्कर्म के अपराधियों में बालिग-नाबालिग सबको एकसमान सजा का प्रावधान होना चाहिए। सामूहिक दुष्कर्म के आरोपियों को एक के बाद एक स्तरों पर अपने बचाव की स्थिति को समाप्त होना चाहिए। 
इसके आरोपियों को किसी भी सूरत में जमानत नहीं मिलनी चाहिए। और अपराधियों का अपराध सिद्ध हो जाने पर फांसी अथवा अपराधी की मृत्यु तक जेल में रहने की सजा के अतिरिक्त और कोई सजा का प्रावधान नहीं होना चाहिए। 
साथ ही, ऐसे आरोपियों को संरक्षण देने वाले व्यक्ति/व्यक्तियों तथा सामूहिक दुष्कर्म की जांच में जान-बूझकर अथवा लापरवाहीवश कोताही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि कोई भी ऐसे अपराधियों को बचाने से पहले सौ बार सोचे। 
एक सभ्य समाज के लिए दुष्कर्म अथवा सामूहिक दुष्कर्म एक कोढ़ है, एक भयानक तमाचा है। इसलिए कानून के साथ ही समाज को भी इसे रोकने में अपनी भूमिका अदा करनी आवश्यक है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
सामूहिक दुष्कर्मियों को तुरंत सजा देने के लिएसख्त कानून बनाने की आवश्यकता है इससे अपराधियों के मन में खौफ रहेगा अभी तो जो दबंग और पैसे वाले रहते हैं अपराधी उन्हें पता है कि वह अपने पैसे और ताकत के बल पर छूट जाएंगे  पुलिस
और कानून सब उनको लगता है कि उनकी जेब में है इस तरह से इसीलिए समाज में अधिक अपराध बढ़ रहे हैं इसके खिलाफ संविधान में संशोधन करके सत्य सशक्त कानून बनाना चाहिए और उन्हें तुरंत ही फांसी की सजा दे देनी चाहिए।
अगर हम सही अर्थों में नारी का सम्मान करते हैं तो इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
आजकल सामुहिक दुष्कर्म व हत्याओं ने   देश समाज को शर्मसार कर रखा है, आखिर कब तक होता रहेगा देश शर्मसार ऐसा लग रहा है, अपराधियों  में डर  नां की कोई चीज ही नहीं रही वो निडर होकर ऐसे शर्मसार कार्यों को इन्जाम दिए जा रहे हैं। 
लगता है, देश की सरकारें और पुलिस तंत्र   महिलाओं की सुरक्षा देनें में नाकाम साबित होने लगे  हैं। 
संयुक्त राष्टृ की बात करें तो उसने महिला सुरक्षा के लिहाज से  भारत को दूनिया के सबसे असुरक्षित  देशों में एक माना है। 
यही नहीं एक के वाद एक सामुहिक बलात्कार और हत्याओं की खबरों से महिलाएं दहशत में हैं, देश मे शर्मसार करने वाली घटनाओं की वाढ़ आ गई है। 
हर दिन वड़े से वड़ा जूर्म देखने  को मिल रहा है ऐसा लग रहा है देश में कानून नाम की कोई चीज ही नहीं, 
और तो  और हर दिन नाबलिग बलात्कार की  शिकार हो रही हैं, लग रहा है कानून को नये सिरे से सख्त करने की जरूरत है। 
कानून को संशोधन करके दुष्कर्मीयों को कम से कम फांसी की सजा होनी चाहिए, ताकी आम लोगों में खौफ पैदा हो और दुष्कर्मों पर अंकुश लगे, 
यही नहीं दुष्कर्मीयों को जल्द से जल्द सजा देने का प्रावधान होना चाहिए, क्योंकी बहुत से मामलों में दुष्कर्मों का आरोप सिद्ध जल्दी नही हो पाता और दुष्कर्मी बाइज्जत बरी हो जाते हैं, 
इसके अलाबा  महिला के ब्यान  सुविधाजनक  जगह पर लेने चाहिए, पीडि़त, दोषी, गबाहों के बयानों की आडियो, विडियो रिकार्डिग होनी चाहिए, 
यही नहीं एफ आई आर के साथ मैडिकल रिपोर्ट की कापी लगानी चाहिए  और फास्ट टृैक कोर्ट में फैसला तरूंत सुनाना चाहिए, 
कहने का मतलब अदालती कार्यवाही तरूंत होनी चाहिए ताकी दुष्कर्मीयों को सबूत मिटाने मैं समय न मिले। 
अगर इस तरह के नियम सख्ती से लागूं हों तो काफी हद तक   सामुहिक दुष्कर्मों व हत्याओं से देश को वचाया जा सकता है, जिससे हमारी नारी जाति भी निडर होकर इज्जत से सुरक्षित  रह सकती है,  जो हर  देशवासी का  कर्तव्य  भी है जिससे हमारे देश की आन व शान वनी रहे। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
आज के विषय के संदर्भ में .... दुष्कर्मीयो के आरोप सिद्ध हो जाने पर सजा अति सख्त होना चाहिये अपराध अपराध होता है और इस तरह के अपराध को जघन्य अपराध की श्रेणी में रख कर सजा ऐसी होनी चाहिए कि यदि दुष्कर्मी जिंदा है तो अपनी स्थिति देखकर दहल जाए,हमारे इस तरह के अपराध के कानून में भी लचीलापन है जो बिल्कुल नहीं होना चाहिये जब तक कानून सख्त और त्वरित कार्यवाही नहीं होगी तब तक इस तरह के अपराध बढ़ते रहेंगे,दुष्कर्मी चाहे कितनी भी पहुंच रखता हो उसके लिए दण्ड संविधान नियम मे छेड़ छाड़ नहीं करना चाहिए,इस तरह के अपराध में राजनीतिक संरक्षण, दखल नहीं होना चाहिए
इनको किसी भी प्रकार की जमानत पर बाहर नहीं आने देना चाहिए,इनको देशनिकाला और नपुंसक बनाने की ओर भी कानून सख्त बनाना चाहिए जिससे विश्व की बेटियां कन्याएं पूरा स्त्रीजगत
सुरक्षित रह सके।
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
सामूहिक दुष्कर्मियों को तुरन्त सजा देने के लिए कानून में संशोधन की प्रक्रिया में उलझने की बजाय उन्हें तुरन्त ही मृत्यु-दण्ड दे देना चाहिए या ऐसा अंग-भंग कर देना चाहिए जो उन्हें जीवन भर की सजा के समान हो। मानव अधिकार कमीशन को बीच में नहीं पड़ना चाहिए।  ये दुर्दांत अपराधी लचर कानून के चलते इस तरह के जघन्य कृत्य कर जाते हैं और कानून पर हंसते हैं। बादशाह अकबर के काल में वे भेष बदलकर जनता के मध्य जाया करते। एक बार उन्होंने बाजार में पाव रोटी ली। उन्हें कुछ कम वजन की लगी। तुलवाया गया तो वास्तव में कम वजन था।  तुरन्त हाथ काटने की सजा हुई और तुरन्त अमल हुआ।  उस पल के बाद से हर दुकानदार के पास पाव रोटी अपने वजन से ज्यादा थी। यह खौफ होना चाहिए।  पकड़े जाने पर एक पल की भी देर नहीं होनी चाहिए। लगातार इस प्रकार के दण्ड दिये जाने पर लगाम लगेगी, आशा है।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
हमारे देश का कानून अब बहुत पुराना हो गया है । अतः कानून में आमूल -चूल परिवर्तन की  अति आवश्यकता है। आज यह  इतना संगीन अपराध है सामूहिक दुष्कर्म लेकिन सजा मिलने में वर्षों लग जाते हैं । जैसे निर्भया वाले केस में बारह वर्षों के अनवरत कानूनी लड़ाई के पश्चात हीं  दोषियों को मुकम्मल सजा मिल पाई थी। सबसे जरूरी है त्वरित कार्रवाई का कानून जैसे हीं अपराधी पकड़ा जाता है, और अगर उसकी पहचान हो जाती है और वह इकरारनामा पर अपनी सहमति दे देता है , फिर तनिक भी देर नहीं होनी चाहिए वैसे अपराधी को फांसी के फंदे पर लटकाने में। दूसरा कि कोई नाबालिग है फिर वह रहमनामा के तहत आता है , ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए। जब वह नाबालिग होकर इतना जघन्य अपराध कर सकता है फिर क्यूं उस पर रहम या इनायत की जाए? ऐसा नाबालिग आगे बड़ा होकर कितना कूकृतय करेगा जब वह कम उम्र में ऐसी सोच और हरकतें करता है फिर। भीड़ व्यवस्था पर भी उस अपराधियों को छोड़ देना चाहिए या लड़की के परिजनों के हवाले अपराधी को दे देना चाहिए वहीं उन्हें सजा देने के असली हकदार हो। इनकाउंटर भी अच्छी पहल है इससे भी अपराधी में कुछ डर होगा कि पकड़े गए तो ओन दी स्पौट  इनकाउंटर कर दिया जाए। बीच चौराहे पर ऐसे जघन्य कृत अपराधियों को फांसी देनी चाहिए ताकि दूसरे भी इस तरह की मानसिकता वाले व्यक्ति ऐसे अंजाम से डरें। हमारे यहां कानून का डर हीं लोगों  में खत्म होता जा रहा है। ऐसा है भी क़ानूनी प्रावधान में बहुत    सारे लूप होल्स है जिसके कारण बड़ा से बड़ा अपराधी भी छूट जाता है और वह कानून व्यवस्था की लचर अवस्था का भरपूर इस्तेमाल करता है पाॅकेट  में नोट हो फिर तो और भी बेख़ौफ़ होता है। आज बार -बार ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं, अतः बेहद जरूरी है कि कड़े कदम और सख्त कानूनी कार्रवाई हेतु नया कानून लागू हो। 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
      सामूहिक दुष्कर्मियों को ही नहीं बल्कि समस्त अपराधियों को कड़े से कड़े दण्ड देने की आवश्यकता है। ताकि अपराधियों का बढ़ा हुआ मनोबल टूटे और संविधान के तीसरे सशक्त स्तम्भ न्यायपालिका का कद बढ़े। अन्यथा संविधान के दूसरे स्तम्भ कार्यपालिका ने दुष्कर्मियों पर जो एनकाउंटर की शुरुआत की है। उसके परिणाम गंभीर रूप धारण कर लेंगे। चूंकि एनकाउंटर करने वालोंं पर नागरिकों द्वारा की गई पुष्प वर्षा न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिन्ह है। चूंकि न्यायालयों द्वारा दी जाने वाली तारीख पर तारीख से जनता जनार्दन ऊब चुकी है।
     उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों वर्ल्ड हेड न्यूज वैब चैनल के मुख्य सम्पादक चक्रपाणि चक्र जी ने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर से 'यह कानून बदल डालो ताकि न्याय जिंदा रहे' नामक कार्यक्रम फेसबुक के माध्यम से लाईव चलाया था। जिसमें कानून में पीएचडी की उपाधि धारक अधिवक्ताओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। वह कार्यक्रम इतना विख्यात हुआ कि न्यायधीशों का भी पसंदीदा कार्यक्रम बन गया था।
        चूंकि कानूनों में संशोधन नहीं बल्कि उन्हें लागु करने की इच्छाशक्ति या बदलने की आवश्यकता है। न्यायालयों में सीसीटीवी कैमरे एवं आडियो/वीडियो लगाने की आवश्यकता है। अधिवक्ताओं एवं न्यायधीशों की आत्मनिर्भरता की आवश्यकता है। न्यायपालिका के विश्वास बहाली की आवश्यकता है। 
       अतः स्पष्ट शब्दों में न्याय को जिंदा रखने के लिए संसद से लेकर सड़कों पर और विधानसभाओं से लेकर गलियों तक संवैधानिक अधिनियम, नियम और न्याय की बचनबद्धता पर गहन आत्ममंथन की अत्यंत आवश्यकता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
बलात्कार जैसी घिनौनी हरकत में शामिल होने वाले हर व्यक्ति को चाहे वो किसी भी उम्र का क्यों न हो कठोर से कठोर सज़ा मिलनी चाहिए।अगर कोई नाबालिग भी अगर ऐसे विभत्स कृत्य में शामिल होता है तो उसे भी एक व्यस्क अपराधी की तरह ही कठोर सज़ा मिलनी चाहिए। जब एक नाबालिग  या व्यस्क एक विक्षिप्त मानसिकता लिए हुए किसी असहाय लड़की की अस्मत लूटने में मानवता की सारी हदों को पार कर सकता है । जानवरों की तरह नोंच-खसोंटकर,पीटकर उसकी जान ले सकता है तो वो कठोर सज़ा(मौत) से कैसे वंचित रह सकता है। 
सामूहिक दुष्कर्मी में शामिल दोषियों को सजा देने के लिए
फास्ट ट्रैक कोर्ट और बनने चाहिए,तेजी से सुनवाई होने की व्यवस्था होनी चाहिए,किसी भी सूरत में बीमारी या अन्य बहानों से उन्हें माफी कभी नहीं मिलनी चाहिए ताकि आगे से ऐसा कृत्य के बारे में सोचने से पहले कोई भी अपराधी सौ बार सोचे।
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
आज पूरी तरह से हमारे समाज की तस्वीर दूषित हो चुकी है , इस समाज को दूषित करने वाले उन सभी दुष्कर्मियाें के खिलाफ पूरे भारत में आवाज उठाई जा रही है।  आज हमारे समाज में बढ़ रहे बलात्कार के मामले, सामूहिक दुष्कर्म के मामले हर एक आत्मा को झकझोर कर रख दे रहे हैं ।
 समाचार पत्रों में टीवी चैनल पर हर रोज यही एक विषय देखने को मिल रहा है ।
 आज हर वह व्यक्ति जो मानव/ समाज का हितेषी है यही प्रश्न बार-बार करता है - क्या हो  गया है आज हमारी पवित्र पोषित संस्कृति को ?  संस्कारों में यह कैसा परिवर्तन ?  कहां गई वह महापुरुषों की शिक्षा ?  वह नारी सम्मान ? 
 क्या आज की संताने संस्कार हीन है उन्हें अच्छे संस्कार नहीं दिए गए हैं ?   इस प्रकार के अनेकों प्रश्न मानस पटल पर घूमते हैं परंतु उनका सही उत्तर कहीं नहीं मिलता है ।
 अपराध हो रहे हैं दिन प्रतिदिन इन में बढ़ोतरी हो रही है ,लचीली न्यायिक व्यवस्था भी इसके लिए बहुत जिम्मेवार हैं ।
 बीस- बीस, पच्चीस पच्चीस वर्ष लग जाते हैं किसी मामले को परिणाम  तक पहुंचते-पहुंचते। अपराधी बिना किसी भय के घूमते रहते हैं । पुलिस का रवैया भी संतोषजनक नहीं होता । आज जरूरत है ऐसे सख्त से सख्त कानून बनाने की जिसको सुनते ही अपराधी अपराध करने से पहले अवश्य कुछ सोचे ।   सजा का कड़ा से कड़ा प्रावधान होना चाहिए ।  हर एक बलात्कारी ,दुष्कर्मी को फांसी की सजा तो अवश्य होनी चाहिए।  इससे कम नहीं । 
7 दिनों के भीतर पूरी रिपोर्ट प्रेषित की जानी चाहिए और 6 महीने के भीतर भीतर फांसी की सजा होने का प्रावधान होना चाहिए। भारतीय दंड संहिता के अनुसार अपहरण के लिए 363 अपहरण की सजा 366 और सामूहिक दुष्कर्म के लिए 376. D  धाराएं लगाई जाती है । किसी लड़की का अपहरण होता है तो आधी मौत उसी वक्त उसकी हो जाती है और जब बलात्कार होता है तो वह पूरी तरह से मर जाती हैं । तो क्यों ना ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 307 हत्या का प्रयास  लगानी चाहिए और जुर्माना राशि भी बहुत होनी चाहिए ताकि पता चले कि अपराध क्या होता है और उसकी सजा क्या होती है । शीघ्र अति शीघ्र मामले का निपटारा हो और 6 महीने के भीतर भीतर सजा का प्रावधान हो । 
बलात्कारी को आजीवन कारावास  तो अवश्य ही होना चाहिए ।
 किसी लड़की की मौत के लिए जिम्मेदार दुष्कर्मियाें को शीघ्र अति शीघ्र 6 महीनों के भीतर फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए । 
एसआईटी का गठन होना, फास्ट ट्रेक कोर्ट इत्यादि सही है परंतु इसके लिए कड़े नियम बनाने चाहिए और समय पाबंदी पर भी ध्यान देना चाहिए । एक निश्चित अवधि में मामलों का निपटारा होना चाहिए ।
 समय पर किसी मामले का निपटारा ना होने पर संबंधित अधिकारियों पर भी कार्रवाई होनी चाहिए उनके लिए भी सजा का प्रावधान होना चाहिए । पुलिस के मन में जब अपने लिए डर पैदा होगा तभी वह इमानदारी से इन मामलों को निपटाने की शीघ्रता करेंगे ।
 आत़: सामूहिक दुष्कर्म और हत्या आरोपियों को शीघ्र अति शीघ्र 6 महीनों के भीतर फांसी की सजा का प्रावधान होना चाहिए ।
 - शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
हमारे देश मे बलात्कार की प्रक्रिया  निंरतर बढ़ रही है।आये दिन हर बीस मिनट मे बलात्कारियों ने मासूम बच्चियों का शिकार किया है ।कानून मे संशोधन की अति आवश्यकता है।कानूनी कार्यवाही की बिडम्बना और अशीघ्रता को खत्म करने की आवश्यकता है।कानून व्यवस्था मे दडंनीय अपराधियों को सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए। नारियों का सम्मान बरकरार रहे और सामूहिकता बलात्कार के शिकार बहनों बेटियों की आत्मा को शांति मिले।न्यायालय और न्यायपालिका के माध्यम से शीघ्रता से फैसला हो और फाँसी की सजा हो।ह सजा जल्द से पारित कर दिया जाये।ताकि  न्यायालय से इंसाफ के चक्कर मे हम नारियां धक्का ना खाते रहे।आज कितनी शर्मनाक घटना को दोगले दूषित, क्रुर मानसिकता के पशु जो इसान कहलाते है ।मासुमियत के परियो को नोचते है और साथ ही घायल कर उनके शरीर को खत्म कर देते हैं आत्मा को मलिन करने वाले सामुहिक बलात्कारी को कानून व्यवस्था मे जीने का कोई हक नही वह समाज के लिये खतरा और गंदगी है जिसे सशक्तिकरण और कानूनी कार्यवाही संशोधन के बिल मे फाँसी की सजा होनी चाहिए ताकि सत्य की जीत हो और समाज मे अपराधियों को सबक मिले।निःशब हूँ ,असिफा,दामिनि, प्रियंका, मनिषा ना जाने ऐसे कितनी बेटियों ने इस जलिलता का शिकार हूई फिर भी हमारा देश हमारा कानून हमारी सरकार चूपचाप है।बेहद दूखद परिस्थितियों से हम गुजर रहे।हमारा घर कहा है हम अपने ही देश मे अपने ही कानून व्यवस्था से परेशान है।हम नारियां खुबसुरत अवतार की तुलना मे है परंतु हमारा हाल बेहद बुरा है।समाज पतनोन्मुख हो चुका है सरकार निःशंतान हो चुकी है।प्रशासन की लाचार व्यवस्था को भी कानून संशोधित करना अति आवश्यक है।नारी की सुरक्षा व्यवस्था को उच्चतम सीमा पर रखना ,जिस देश की नारी सुरक्षित नही वह विकसित देश कभी नही हो सकता।कानूनी कार्यवाही की अवधि कम हो फांसी की सजा हो नारियों को अपनी अस्मत बचाने के लिए किया गया कार्य भी उस पल मे बलात्कारी की हत्या भी जायज हो।कब देश का कानून व्यवस्था सविधान बदलेगा और हम सुरक्षित रह पायेंगे।बलात्कारियों को तुरंत जला देना चाहिए उसके अंगों को चीर फाड़ देना चाहिए ऐसी कानून मे संशोधन हो हर लडकियों को अपनी सुरक्षा हेतु हथियार अपने पास हो ताकि किसी के गंदगी भरी आँख फोडऩे की समक्षता हो।अब कानून मे नारियों की सम्मान की इक बिल पास हो और सुरक्षित हो ।तुरंत ही फैसला हो ताकि समाज के बलात्कारियों को सीख मिले।
कलियों को नोच कर हबस पुरा करने वाले मानसिक रोग रूप के शिकार दरिंदे को फाँसी की सजा मिले जीने का हक नही इन्हें।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
ऐसे दुष्कर्मियों को तुरंत गोली से उड़ा देना चाहिए ।क्योंकि पीड़िता की निर्मम हत्या भी की जाती हैं।
लेकिन अगर समाज पर दृष्टि डालें तो ज्ञात होगा कि समाज में जो भी घटना या दुर्घटना घटती है उसके लिए हमारा पूरा समाज दोषी होता है ।आजादी के बाद हमने किया क्या है ? हमने अपने बच्चों को क्या सिखाया है ? योग सिखाया ? ध्यान सिखाया ? इन्हीं से होते हैं संस्कारित । युवकों और युवतियों को योग की शिक्षा देने की अपेक्षा हमने उन्हें अश्लीलता परोसी ।  और जिनका हम अनुकरण करते रहे हैं ,वे ड्रग्स लेते हैं ।रेप पार्टीज करते हैं ।क्या दे रहे हैं ऐसे लोग समाज को ।
हमें ऐसे अपराधों की जड़ तक जाना होगा ।जो भी कानून बने उसमें निम्न बातों पर  ध्यान दिया जाए।
1 जनसंख्या वृद्धि पर रोक
2 स्कूल व कॉलेज में योग और ध्यान  की शिक्षा  अनिवार्य। 
3 मनोरंजन के नाम अश्लीलता का बहिष्कार।
4 वर्गभेद को समाप्त किया जाए । 
5सबका साक्षर होना आवश्यक ।
ऐसा वातावरण हो कि  कोई किसी का शोषण न कर सके । संक्षेप में तो बस इतना ही कहा जा सकता है 
अगर हम इतना भी कर सके तो सुधार अवश्य होगा ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
सामूहिक दुष्कर्मियों को सजा देने से पहले उसका सत्यापन जरूरी है। अगर वह अपराधी साबित हो जाता है तो फिर किसी तरह की अपील की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
नाबालिग के लिए तो कोई अलग प्रावधान इस तरह के अपराध में होना ही नहीं चाहिए। नाबालिग तो वह किसी तरह रह हीं नहीं जाता। सबसे बड़ी बात अभी से जब मानसिकता इतनी विभत्स है तो आगे क्या होगी।
तीसरी बात सजा भी विभत्स होनी चाहिए, फाँसी नहीं।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
बलात्कार एक जघन्य अपराध है भारत में आए दिन महिलाओं के साथ घटित हो रहा है यह एक महामारी की तरह दिन प्रतिदिन फैलता जा रहा है वीभत्स रूप दर्द  विदारक घटना रुह को कंपाती छोटी बच्चियों से लेकर अधेड़ प्रौढ़ावस्था तक सभी महिलाएं असुरक्षित है आईपीसी की धारा 376 में संशोधन कर कठोर नियम बनाने होंगे पहले भी आईपीसी की धारा 376 में 376 (क) 376 (ख) 376 (ग)
376 (घ) में अलग-अलग अपराधों के अनुसार दंड का विधान है कम से कम 7 साल सजा 10 साल की अवधि तक
और आजीवन कारावास की भी सजा है 12 साल से कम बालक या बालिका
के साथ दुष्कर्म पर फांसी की सजा है।
लेकिन लचर व्यवस्था के कारण अपराधी बच निकलते हैं अब त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है पीड़िता को साक्ष्य देने की आवश्यकता ना पड़े
पुलिस और वकील साक्ष्य के न होने पर मामले को भटका देते हैं ऐसी स्थिति में कोई ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जो पीड़िता को न्याय दिला सकें संविधान पर सभी को भरोसा है
न्यायिक प्रणाली को कठोर से कठोर तम बनाने की आवश्यकता है आजीवन या फांसी होना‌ भी आज के परिपेक्ष में आवश्यक हो गया।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
कानून में संशोधन करवा पाना तो बहुत दूर की बात है पर कानून व्यवस्था को सुचारू रूप से लागू करवाना इतना मुश्किल नहीं है। इसके लिए नेताओं और पुलिस महकमे को अपने आचार-व्यवहार में परिवर्तन लाने की जरूरत है ताकि आम इंसान को भी न्याय और सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार मिल सके।
सामूहिक दुष्कर्मियों को तुरंत सजा देने के लिए सर्वप्रथम पुलिस को नैतिकता और ईमानदारी के साथ काम करने की जरूरत है।
नेताओं के दबाव से मुक्त होकर पुलिस निष्पक्ष भाव से काम करे। अनैतिक रूप से गलत को सही और सही को गलत ना साबित करें।
 जब पुलिस साथ देगी तभी कोर्ट का दरवाजा पीड़ित न्याय की खातिर खटखटा पाएगी।
  नि:संदेह हमारे कानून में बहुत खामियां हैं तभी तो पहुंच वाले लोगों का गुनाह साबित नहीं होता, तारीख पर तारीख देते हुए अंत में उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया जाता है जबकि गरीबों को या तो तुरंत किसी तरह एनकाउंटर में मार दिया जाता है या फांसी की सजा हो जाती है।
  संविधान के अनुच्छेद 21 की आड़ में दोषी न्याय प्रक्रिया से खेलते हैं। उसे सख्त बनाने की जरूरत है। कोर्ट हर नागरिक के मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में पीड़ित और उनके परिजनों की शिकायतों का निवारण करें। 
  दुष्कर्म सिर्फ एक व्यक्ति और समाज के नहीं बल्कि पूरी मानवता के खिलाफ अपराध है।अदालत अपने कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखें। ताकि इस व्यवस्था से लोगों का भरोसा न उठे। पीड़ित परिवार की मनोस्थिति को समझते हुए व्यवस्था में परिवर्तन लाने की अति आवश्यकता है।
  क्या किसी नेता की बेटी के साथ दुष्कर्म हो और उसे 25लाख का मुआवजा और एक सदस्य को नौकरी दे दिया जाए तो क्या उन्हें शांति मिल जाएगी-- विचारणीय प्रश्न है?
  न्याय प्रक्रिया सभी के लिए एक समान हो, दबाव में पुलिस काम न करें। आम जनता बस सरकार से यही उम्मीद रखती है।
                    -  सुनीता रानी राठौर
                 ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है किसामूहिक  दुष्कर्मीयों को तुरंत सजा देने के लिए कानून में क्या-क्या संशोधन होना चाहिए दुष्कर्म अपने आप में एक घृणित और बहुत ही घिनौना अपराध है समाज की मानसिकता के बारे में क्या कहा जाए समझ नहीं आ रहा है क्यों इस तरह के अपराध दिन-ब-दिन देखने में आ रहे हैं और संस्कृति एवं संस्कारों में लगातार गिरावट आ रही है इन मामलों में सख्त से सख्त कानून होने के साथ-साथ उसका तुरंत अनुपालन भी सुनिश्चित होना चाहिए और ऐसे अपराधियों को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए जिससे इस तरह की अपराधिक प्रवृत्ति वाले दूसरे लोग भी सबक ले सकें और उनके दिलों में एक भय पैदा हो तभी इस पर रोक लगाई जा सकती है दूसरी ओर ऐसे लोगों पर विशेष नजर भी रखी जानी चाहिए हालांकि यह कहना बहुत आसान है और यह कार्य बहुत कठिन है क्योंकि इस देश में एक बहुत विशाल जनसंख्या निवास करती है और हर एक व्यक्ति पर हर समय नजर नहीं रखी जा सकती इसके लिए विचारधारा में परिवर्तन बहुत आवश्यक है कुछ ना कुछ ऐसा अवश्य होना चाहिए जिससे इस तरह के अपराधी करते वक्त करने वाले लोगों को इतना भय व्याप्त हो जाए कि वे इस तरह के कामों को करना तो दूर विचार तक भी ना कर सके
 - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
सामूहिक दुष्कर्मियों को  तुरंत सजा देने के लिए मेरे निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत हैं,
  सर्वप्रथम  तो उन्हें सार्वजनिक रूप से हांसी दे दी जाए ताकि जनसाधारण जो भी व्यक्ति इस तरह की वारदातें करने का आदी हो या इस मनोवृत्ति का हो उनके  अंदर भाई का भाव पैदा हो। दूसरे नंबर पर मेरा सुझाव है कि पीड़िता और उसके परिजनों को अपराधी तत्वों की संपत्ति जप्त कर के दे दी जाए जिससे वह अपना जीवन पर्यंत गुजारा कर सके तथा अपराधियों को परेशान होना पड़े। तीसरी बात फास्ट ट्रेक कोर्ट के माध्यम से एक माह के अंदर फैसला सुनाया जाए ताकि अपराधियों को अपने बचाव या संरक्षण के लिए समय एवं सहयोग ना मिल पाए और पीड़िता को समय पर न्याय भी उपलब्ध हो जाए। अगला मेरा सुझाव है अपराधी तत्वों के सहयोगियों को आजीवन मृत्यु दी जाए ताकि लोगों के अंदर इस तरह के कार्य करने के प्रति डर का भाव सजा का खौफ पैदा हो और इस तरह की वारदातों पर लगाम लग सके। इसके अलावा अपराधियों के माता पिता को अपने पुत्र की बजाएं पीड़िता का साथ देना चाहिए। ऐसे तत्वों को यह समझ जाना चाहिए कि हम इतना गलत काम कर रहे हैं कि हम को पैदा करने वाले माता पिता भी हमारे साथ नहीं है और पीड़िता को भी एक प्रकार का संबल मिल जाएगा।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर -मध्य प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " हाथरस सामुहिक कांड में राजनीति व जातिवाद का बोलबाला बहुत ज्यादा हो गया है । जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए । इस से पीड़ित को इंसाफ की उम्मीद कम होने लगती है । जो कानून , समाज व देश के भविष्य के उचित साबित नहीं हो सकता है । राजनीति व जातिवाद से अलग कर के इंसाफ की बढना चाहिए । 
 - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान

Comments

  1. सामूहिक बलात्कारियों को एक माह के अंदर सजा दिए जाने का प्रावधान सुनिश्चित किया जाए ताकि पीड़िता को समय पर न्याय मिल सके और अपराधी सबूतों से खिलवाड़ न कर सके। न्यायिक व्यवस्था से संबंधित पुलिस आदि को भी ईमानदारी से अपना कार्य करना चाहिए और जो अधिकारी अक्षम पाया जाए उसे तत्काल सजा दी जाना चाहिए। सामूहिक बलात्कारियों को सामूहिक रूप से फांसी की सजा दी जानी चाहिए राखी जनमानस में अराजक तत्वों में कानून का न्याय व्यवस्था के प्रति डर बना रहे। न्याय व्यवस्था में राजनीति या सरकार का दखल ना हो उनमें से कोई भी अपराधी तत्वों की पैरवी न करें। पीड़िता की आजीवन व्यवस्था अपराधियों की संपत्ति से की जाए। अपराधियों के माता पिता अपने पुत्र की वजह पीड़िता का साथ दें नैतिक व आर्थिक तौर पर।

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