डॉ. सुरेन्द्र मन्थन की स्मृति में लघुकथा उत्सव

जैमिनी अकादमी ने इस बार लघुकथा उत्सव डॉ. सुरेन्द्र मन्थन की स्मृति में रखने का फैसला लिया है । डॉ. सुरेन्द्र मन्थन का जन्म 04 अप्रैल 1937 को अमृतसर - पंजाब में हुआ है । इन की शिक्षा , एम ए , बी एड् , पी एच डी हिन्दी विषय में की है । इन की पहली लघुकथा ' घातक प्रवृत्ति ' शीर्षक से 21 नवम्बर 1961 को दैनिक वीर पताप में प्रकाशित हुई है । इन के दो लघुकथा संग्रह घायल आदमी (1984 ), भीड़ में ( 2008 ) प्रकाशित हुए हैं । सहयात्री लघुकथा संकलन का सम्पादन किया है । वन्दना , स्नेहगंधा , सर्वहित पत्रिकाओं का सम्पादन किया है । इन की मृत्यु 25 मई 2012 में हुई है ।
 इन्हीं का लघुकथा संग्रह " भीड़ में " शीर्षक पर ही कार्यक्रम का विषय रखा गया है । विषय के अनुकूल सभी लघुकथाओं को " लघुकथा मैराथन सम्मान - 2020 " से सम्मानित किया गया है और सम्मानित लघुकथा को " लघुकथा मैराथन " से जोड़ कर श्रृंखला को आगे बढने का निर्णय लिया गया है । यह कार्यक्रम WhatsApp द्वारा पेश किया गया है । अब  सम्मान पत्र के साथ लघुकथा : -
                          मै दोषी कैसे 
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नरेन अपने गाँव की ग़रीबी से तंग आकर भूखा प्यासा ही शहर की ओर निकल आया ।दिल्ली जैसे शहर की चकाचौंध देखकर तो वह अंचभित ही हो गया । कुछ दिन ऐसे ही निकल गए उसे कहीं काम ही नहीं मिला । कभी मंदिर कभी गुरुद्वारे से बस पेटभर खाने को मिल जाता कभी नहीं भी मिलता । वह परेशान हो गया ना ढंग से खाना मिल रहा था ना काम ।ऐसे में एक व्यक्ति उसके पास आया उसने अपना नाम रामधन बताया और कहा कि वह उसे काम दिलवाएगा और खाने को भी अच्छा  देगा रहने को जगह भी देगा । नरेन ख़ुश होकर उसके साथ चल पड़ा । अगले दिन उसे एक टिफ़िन दिया गया और समझाया गया ,” नरेन ये सबसे ज़्यादा भीड़ वाली जगह पर रख देना जिससे तुम्हारे जैसे किसी भूखे को खाना मिल सकें ।” नरेन को लगा इतने बड़े शहर में भी कितने अच्छे लोग रहते हैं । भीड़ वाली जगह पर टिफ़िन रखने के बाद उसे लगा उसने बहुत बड़ा पुण्य का काम कर दिया । खानेवाले के चेहरे पर ख़ुशी देखने के लिए टिफ़िन रखकर वह दूर जाकर खड़ा हो गया । लगभग आधे घंटे के बाद एक ज़ोरदार धमाका हुआ और सब कहीं धुँआ ही धुँआ और चीख़ पुकार सुनाई देने लगी । उसे समझ नही आ रहा था कि एकाएक ऐसा क्या हो गया । ****
     - नीलम नारंग 
 हिसार - हरियाणा
                       लेखनी की आत्महत्या
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           बिहार दिवस का उल्लास चहुँ ओर बिखरा पड़ा नजर आ रहा था। ... मैं किसी कार्य से गाँधी मैदान से गुजरते हुए कहीं जा रही थी कि मेरी दृष्टि तरुण वर्मा पर पड़ी जो एक राजनीतिक दल की सभा में भाषण सा दे रहा था। पार्टी का पट्टा भी गले में डाल रखा..। तरुण वर्मा को देखकर मैं चौंक उठी।...और सोचने लगी यह तो उच्चकोटी का साहित्यकार बनने का सपने सजाता... लेखनी से समाज का दिशा-दशा बदल देने का डंका पीटने वाला आज और लगभग हाल के दिनों में ज्यादा राजनीतिक दल की सभा में...,
स्तब्ध-आश्चर्य में डूबी मैंने यह निर्णय लिया कि इससे इस परिवर्त्तन के विषय में जानना चाहिए...। मुझे अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी... मुझे देखकर वह स्वत: ही मेरी ओर बढ़ आया।
     औपचारिक दुआ-सलाम के बाद मैंने पूछ लिया , "तुम तो साहित्य-सेवी हो फिर यह यह राजनीति?"
   उसने हँसते हुए कहा, "दीदी माँ! बिना राजनीति में पैठ रखे मेरी पुस्तक को पुरस्कार और मुझे सम्मान कैसे मिलेगा ?"
        मैंने पूछा "तो तुम पुरस्कार हेतु ये सब...?
  मेरे बन्धु! राजनीति में जरूरत और ख्वाहिश पासिंग बॉल है...।
"पढ़ा लिखा इंसान राजनीति करें तो देश के हालात के स्वरूप में बदलाव निश्चित है...!"
"दवा बनाने वाला इलाज़ करने वाला नहीं होता... कानून बनाने वाला वकालत नहीं करता...,
    इसलिए साहित्य और राजनीति दो अलग अलग क्षेत्र हैं तो उनके दायित्व और अधिकार भी अलग अलग है..."
मेरी बातों को अधूरी सुन और मुझे छोड़कर वह पुनः राजनीतिज्ञों की भीड़ में खो गया... साँझ में डूबता रवि ना जाने कहीं उदय हो रहा होगा भी या नहीं...
   अगर स्वार्थ हित साधने हेतु साहित्यकार राजनीतिक बनेगा तो समाज देश का दिशा दशा क्या बदल पायेगा... मैं अपनी मंजिल की ओर बढ़ती चिंतनमग्न थी...****
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना-भारत

                     भीड़-भीड़ में अन्तर
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     चार पुत्र, पुत्र-वधुओं और आठ पोते-पोतियों से भरे हुए घर की भीड़ में रामावतार जी के मन को बहुत शान्ति मिलती थी। धर्मपत्नी के स्वर्गवासी हो जाने के बाद इस परिवार के कोलाहल में भी सुखद अनुभूति होती थी उन्हें। 
जिस सुखी सामूहिक परिवार को देखकर दुनिया को आश्चर्यमिश्रित जलन होती थी उसी परिवार में वक्त के परिंदे ने शान्ति की शाख से उड़कर अलगाव की ओर प्रस्थान करना शुरू किया तो जिस भीड़ में रामावतार जी को शान्ति मिलती थी उसके बिखराव के भय ने उन्हें अशांत करना शुरू कर दिया। 
एक दिन चारों पुत्र एकमत होकर आये और बड़े बेटे रमेश ने कहा, "पिताजी! हम सभी अलग-अलग होना चाहते हैं। हमारी गृहस्थी की मजबूती के लिए आप हमारा हिस्सा दे दीजिए।" 
लाख समझाने के बाद वृद्ध पिता हार मान गये। सबका हिस्सा अलग होने के बाद दूसरे बेटे सोमेश ने प्रश्न किया कि पिताजी किसके पास रहेंगे? 
कृतघ्न बेटों के मध्य सहमति बनी कि पिताजी वृद्धाश्रम में रहेंगे। 
रामावतार जी ने लाख कहा कि बेटों! मुझे इस पारिवारिक भीड़ में आनन्द और चैन मिलता है। परन्तु वृद्धाश्रम के द्वार पर बेटों ने उन्हें पहुंचाकर ही दम लिया।
वृद्ध स्त्री-पुरूषों की भीड़ को दिखाते हुए रमेश ने कहा, "पिताजी! देखिये, यहां पर भी कितनी भीड़ है। 
रामावतार जी बेटों को समझा नहीं पाये कि परिवार की भीड़ और वृद्धाश्रम की भीड़ में जमीन-आसमान का अन्तर है। ****
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
                               बेबाक 
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सर ---- आपने इस गुंडें को पकड़ कर बंद तो कर दिया,पर परिणाम बहुत बुरा होगा __  हवलदार राम सिंह ने डरते हुए कहा।
लेकिन __ इतने  नामी- इनामी गुंडे को क्यूं छोड़ू ,जब मैंने इसे  मौके वारदात से रंगे हाथों पकड़ा है।
एस०पी०अजय कुमार को यहां आए हुए महज एक महीना हीं हुआ था।पूरा थाना परिसर सहमा हुआ था,  बड़े साहब इस कारनामें के कारण। दरअसल पूरा गांव वहां के दबंग खद्दर धारी के दबदबे से कांपता था। आज बड़े साहब ने उन्हीं के दाहिने हाथ को पकड़ कर  थाने के हाजत में बंद कर दिया था।आरोपी पर कई गम्भीर आपराधिक मामले थे।
लेकिन सब जानते हुए भी, वहां के पुलिस महकमे पर गांव के खद्दर धारी श्यामा प्रसाद जी के रसूख का पूरा दबदबा भी था।
मेरा नाम अजय है__ मैं किसी से नहीं डरता ।
तभी पूरी फ़ौज के साथ नेता जी थाने में आकर अपनी धौंस का परचम लहराने लगे। एस० पी० साहब __ आप यहां अभी नये आएं हैं।ये मेरा इलाका है। यहां कानून और जुर्म सब मेरे अधीन है।
मैं नहीं डरता और ना हीं,आपके नियमों को मानता हूं , मैं सिर्फ कानून को जानता हूं  ---अजय कुमार ने बेबाक ज़बाब दिया।
नेता जी  गु्स्से से आग-बबूला हो उठे। उन्हें आज तक ऐसा ज़बाब किसी ने नहीं दिया था। उन्हें ऐसी उम्मीद हीं न थी।
अंततः नेता जी ने साम -दाम ,भेद-दडं सारे हथकंडे अपनाए, लेकिन अजय कुमार पूर्णतः अडिग रहे।नौबत झड़प के बाद हल्की हाथा-पाई तक पहुंच गयी।एस० पी० के तेवर पर अपनी एक ना चलती देख,  पहली बार बेबस हो नेता जी ने धमकी देते हुए ,थाना से निकल जाने में हीं अपनी भलाई समझी।
हवलदार रामसिंह --सर जी क्यूं इनसे दुश्मनी मोल ले रहें हैं ?
आखिर हमें रहना यहीं हैं।
चाहें अब जो भी परिणाम हो। मैं ऐसे कुख्यात अपराधी को नहीं छोडूंगा।
मेरी आवाज़ ऐसे नेता बंद नहीं कर सकतें। मेरी आवाज़ कल भी ग़लत सिस्टम के लिए बुलंद थी,आज भी है,कल भी रहेगी।ऐसे लोग मुझे चुप नहीं करा सकते।
मैंने वर्दी के साथ ही शपथ ली है। जिसका पालन आजीवन करने की ठानी है।
रामसिंह -- फोन लगाओ।आगे कि कार्रवाई हेतु ,अभी मुख्यालय से बात करनी है।
आज से तुम भी जब तक इस वर्दी में हो प्रण लो कि - कानून के रक्षक बनोगे और हम सब किसी निरपराधी को कभी ना पकड़े और अपराधी को कभी ना छोड़ें।
रामसिंह --साहब की निडरता और बुलंद  हौसले को देख बड़े जोशीले अंदाज में 
सैल्यूट मारते हुए जोर से बोल उठा ---यस  सर।****
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
भीड़ में
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    शोभा हर साल गणपति आगमन का नहीं पर गणपति विसर्जन का बेसब्री से इंतजार करती है । आज पूरे दस साल हो गये हैं उस की भूल को  माता पिता ने माफ नहीं किया।  कालेज के द्वितीय वर्ष में उम्र के सुनहरे दिनों में उसने घर से भाग कर सुधाकर से शादी कर ली थी। चाहती तो थी माँ से कहे पर जानती थी वो मानेंगी नहीं ।
पिता के आगे माँ की चलती भी नहीं थी।  मित्रों ने भी यह सलाह दी कि बाद में सब के घरवाले के मान जाते हैं।  पर शोभा के नहीं माने । शादी के बाद फोन किया। माफी माँगी पर उस ओर से पिता ने दृढ़ आवाज में कहा कि इस चौखट पर मत आना। आयेगी तो हमारा मरा हुआ मुँह देखेगी।  शोभा खूब रोयी ,गिड़गिड़ाई सुधाकर ने भी क्षमा माँगी पर उस दिन जो  उन्होंने फोन काटा तो फिर कभी नहीं उठाया। 
  अब तो हर साल  विसर्जन की भीड़ में शोभा  राम मंदिर के तालाब के एक कोने में खड़े होकर अपने आई बाबा को पहचान लेती है । भीड़ में सभी के चेहरों पर गुलाल, सिर पर गणेश जी विराज मान होते हैं । पर वो अपने बाबा की पीठ भी पहचान ले और यहाँ तो सामने दिख रहे  हैं ।साथ में नौवारी साड़ी , नाक में नथ, जूड़े में मोगरे के गजरे लगाए सुंदर और उदास माँ को तो वो देखते ही प्रफुल्लित हो जाती है।तब वो बचपन में पहुँच जाती है ।यही भीड़ और माँ बाबा की मित्र मंड़ली के साथ नन्ही शोभा। माँ की उदासी का कारण भी वो समझती है। भीड़ का शोर उसे सुनाई नहीं देता है। सुनाई देता है तो माँ बाबा की आवाज का जयकार ।  भीड़ लुप्त हैकर दै चेहरे बन जाती है। कान ,आँख सब एकाकार हो कर उन्हे देखते हैं और मौन क्षमा याचना माँगते हैं । अनेक बार सुधाकर ने कहा कि चलो मिल आते हैं ।पर शोभा के कानों में पिता की आवाज गूँज जाती है।
नहीं वो  एकबार और उनका दिल नहीं तोड़ेगी। हाँ इस भीड़ में ,साल में एकबार ही सही उन्हे देख लेती है । काश यह भीड़ बढ़ती रहे और वह बप्पा और बाबा दोनों का  दर्शन पाती रही है
  - ड़ा.नीना छिब्बर
     जोधपुर - राजस्थान
 भीड़ में
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अधिक मास  में हम सभी महिलाएं रोज मंदिर जाकर प्रभु के दर्शन कर पंडित जी से प्रवचन सुनते और श्रद्धा जितनी दक्षिणा चढा़वा देतीं ! 
मंदिर से आते हुए मीना ने कहा  अमावस्या को पंडित जी को सीधा देने सुबह जल्दी आ जाऊंगी फिर भीड़ बहुत हो जायेगी! ससुर जी की तबीयत भी ठीक नहीं है ,तुम सब कितने बजे आओगी ? जया ने अपने कंधे उचकाते हुए कहा भई मै तो लेट आऊंगी! दान में भी तो बहुत कुछ देना है ! बाकी सभी ने भी जया की बात का समर्थन किया ! तभी गुड्डी ने कहा  हम सभी मेरी इनोवा में चलेंगे और दान का सामान भी तो बहुत होगा !सभी ने हस्ते हुए हामी भर दी !
मीना जल्दी जल्दी अपना काम निपटाकर पहले ससुर जी के चरण स्पर्ष कर आशीर्वाद लिए और जैसे ही मंदिर के लिए निकलने लगी ससुर जी ने आंखों में आसूं लेते हुए कहा बेटा सदा खुश रहो ! मीना ने पलटकर देखा और कहा क्या बात है पिताजी ? तबीयत तो ठीक है ? साधारण हैसियत थी किंतु उनकी सेवा में कोई कमी नहीं रखती थी ! अपने खर्च में कटौती कर लेती पर ससुर जी की दवा कभी न भूलती ! 
पिताजी का माथा सहलाते हुये कहा सारा दिन है मैं किसी भी समय चली जाऊंगी !
मंदिर में वह सीधे की थाली लिये खड़ी थी ! गाड़ी से अपना सामान उतारते हुए जया की नजर मीना पर पड़ी अरे मीना! 
काफी भीड़ थी !पंडित जी ने दूर से उनके हाथों में बड़े बड़े थैले देख जगह करते हुए पास आकर कहा आप आईये !
मंदिर से बाहर निकलते हुए गुड्डी ने कहा कितने अच्छे दर्शन हुए ! 
मीना "भीड़ में " अपनी सीधे की थाली लिए सोचने लगी ससुर जी की तबीयत ठीक नहीं है जाने कितनी देर लग जाये  ! 
उसके कदम घर की ओर  बढ़ चले  यह सोचते हुए किसी गरीब जरुरतमंद को दे दूंगी ...
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
ट्रेफिक  ज़ाम 
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रितेश  ने गाड़ी बाहर निकाली और रितु का इंतजार  करने लगा । तीन चार दिनों से अनबोला ठना हुआ था दोनों  के बीच ।
प्रेम  विवाह  किया था दोनों  ने। मेट्रो सिटी  में  घर बसायेंगें ,दोनो कमायेंगे । पर यह क्या इन चार पांच  सालो से  मशीनी जीवन जी रहें हैं  दोनों ।
रितु को सुबह  भागते दौड़ते बेटे को तैयार  करना अपना दोनों  का लंच  पैक  करना ।शाम को गिरते पड़ते लौटना उल्टा सीधा  जो मिला खाकर सो जाना ।
कई दिनों से दोनो यंत्र वत सा जीवन जी रहे थे ।
 कई बार दोनो में  खटपट हो जाती और शुरू  हो जाता मौन व्रत  जो आज फिर जारी था ।
रितु लदी फदी आती दिखी तो रितेश ने हार्न बजाना बंद कर दिया .....l
गाड़ी में  बैठते ही रितु ने फोन में  नज़रें  गड़ा दी....... मोड़ पर मुड़े ही थे कि ट्रैफिक जाम में  फंस गये ,थोड़ी  आगे बढ़ते ही  भीड़   में पुलिस  वाले ने गाड़ी रोक कर  रितेश  को नीचे  बुलाया लिया ।बैल्ट ना लगाने पर अच्छा खासा चालान ठोक  दिया ।
 रितु मोबाइल  छोड़  कर नीचे उतरी हाथ पैर  जोड़ कर चालान की रकम कम करवाई । आधे घन्टे की चिकचिक के बाद दोनों  ने माफी मांगी  तब गाड़ी में  बैठे ।रितु रूंआसी होकर रितेश के गले लग गई  ।गुस्सा  जल सा छलक कर बह निकला ।रितेश ने  रितु को हंसाते हुयें  कहा "यार अब तो तुम्हें  रिश्वत  देनी पड़ेगी  पुलिस को तो तुमने बातें  बनाकर बना लिया ".....
"कुछ  दिन छुट्टी  लेकर  घूमने  कही बाहर चलते है".....
ट्रैफिक  ज़ाम हटने लगा था l
- अपर्णा गुप्ता 
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
बहरी भीड़ 
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       '' पकड़ो-पकड़ो, जाने न पाए... वो मेरा पर्स ले कर भाग रहा '' किसी औरत की आवाज़ सुन माधव जो अपनी बीमार माँ के लिए दवाई खरीदने जा रहा था मुड़ कर देखा तो एक बदमाश हाथ में एक पर्स लिए भाग रहा था। माधव ने आव देखा न ताव दौड़ पड़ा उस बदमाश के पीछे। थोड़ी ही देर में  उसने बदमाश को पकड़ लिया और उससे पर्स छीन वापस औरत को लौटाने आ रहा था।
  तबतक उस औरत के शोर मचाने पर वहाँ भीड़ इकट्ठी हो गयी। जैसे ही भीड़ ने माधव के हाथ में पर्स देखा उस पर टूट पड़ी। माधव ने कुछ कहने की कोशिश की पर भीड़ सुनती कहाँ है... उसके  कान जो नहीं होते। माधव को कुछ भी कहने का मौका दिए बिना भीड़ ने पीट पीट कर उसे मार डाला ।
   भीड़ में से किसी ने महिला को पर्स देते हुए कहा, '' मर गया साला! भीड़ की ताकत से कैसे बच सकता है... ''
     महिला माधव के मृत शरीर को देख सन्न रह गई और उसके मुँह से निकल पड़ा, '' हे भगवान्! पर्स छीनने वाला तो कोई और था, इसे बचाने की सजा मिल गयी ''!             
           -   गीता चौबे "गूँज" 
                  रांची --झारखंड
किसी न किसी
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मैं मोटरसाइकिल से सड़क पर जा रहा था। मेरे बगल से एक 10-12 साल का लड़का तेजी से अपनी बाइक से ओवरटेक करके निकल गया। मैंने देखा, उसने ऐसा ही अगली गाड़ियों के साथ भी किया।
मुझे अभी कुछ दिन पहले की घटना याद आ गयी, जब एक लड़के की दुर्घटना इसी तरह हुई थी और वह लड़का अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझता हुआ दम तोड़ गया था।  उसके परिजनों और अन्य लोगों ने करीब 8-10 घंटे तक सड़क पर जाम लगा दिया था। उन्होंने सड़क पर से गुजरने वाली गाड़ियों को रोका भी और कुछ गाड़ियों को तोड़-फोड़ भी दिया था। राहगीर बुरी तरह परेशान हो गए थे और कईयों के कई जरूरी काम भी करने से रह गए थे। एक बेचारे बुजुर्ग मरीज को तो बड़ी ही मिन्नत-तरले करके, मरे हुए लड़के का ही वास्ता दे कर बड़ी मुश्किल से हस्पताल जाने के लिए रास्ता बनाया गया था। पुलिस भी भीड़ को नियंत्रित करने में नाकाम लग रही थी।
मैं सोच रहा था, ‘यदि इसी तरह बच्चे तेज रफ़्तार से गाड़ियाँ चलाएंगे और माँ-बाप बच्चों को समझाने के बजाए सड़क या रेल यातायात जाम करेंगे, तो हर दूसरे दिन जाम ही लगा रहेगा और किसी न किसी घर का चिराग भी...।’  *******
- विजय कुमार
सह-संपादक, शुभ तारिका (मासिक पत्रिका)
अम्बाला छावनी- 133001 (हरियाणा)
   संस्कार
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शोभा के एक बेटा है उसके बाद शारीरिक अक्षमता के कारण उसके दूसरा बच्चा नहीं हो सकता था ।तब उसके रिश्तेदारो व आस पड़ोस की बहुत सी महिलाओं ने उसके ऊपर मानसिक दवाब बनाया।
 तुम्हारे एक बेटा ही क्यों है ?
 तुमने दूसरा मोका क्यों नहीं लिया?
 उधर उसके पति की भी यही हालत थी।लोग उससे तरह-तरह की बातें करते ।जब इसके दूसरा बच्चा नहीं हो सकता तो तुम दूसरी शादी क्यों नहीं करते?
 पर राज शोभा को दिल जान से चाहता था।
  राज व शोभा दोनो बचपन से ही अपने बेटे में अच्छे संस्कार बो रहे थे। बेटे आदित्य को बचपन से ही सुबह 6:00 बजे उठकर 
15 मिनट योगासन करना।
 सब के पैर छूना। 
तेज आवाज में बात न करना। 
अपनी पढ़ाई व क्रिकेट का जुनून था।
अपने क्रिकेट के शौक के अलावा किसी चीज से आदित्य को कोई मतलब न था।उधर उसके भाई बहनों के चार तो किसी के पाँच बच्चे थे। कोई किसी तरह तो कोई किसी तरह  बच्चों की पढ़ाई को लेकर या शादी विवाह को ले परेशान था। एक लड़के की चाह में एक भाई के तो चार बेटियाँ हो गई। 
आज राज के बेटे का बैंक में मैनेजर पद के लिए बुलावा आने पर दोनों ही बहुत खुश हैं।कहते है न:-
  सूरज हमेशा गगन में अकेला चमकता है।
- अलका जैन
मुम्बई - महाराष्ट्र
बेटा 
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ठेलेवाला अपनी क्षमता से अधिक माल को लादकर भीड़भरे मुख्य मार्ग की चढ़ाई पर पूरा जोर लगा ठेला धकेल रहा था । परंतु टूटी चप्पल और तेज धूप उसके प्रयास को विफल कर रहे थे । परिणाम स्वरूप मार्ग अवरूद्ध हो गया ।
मार्ग के अवरूद्ध होते ही वाहनों की लम्बी कतार लग गई । सभी वाहन चालक परेशान हो ठेलेवाले को कोसते रहे । 
बहुत देर से सब कुछ देख सुन रहे एक नवयुवक से यह सब देखते नहीं बना । उसने अपना वाहन एक किनारे लगा, ठेलेवाले के हाथ चार कर ठेला चढ़वा दिया । थका-हारा मजदूर कुछ कह पाता उसके पूर्व वह युवक अपना वाहन लेकर रवाना हो गया । अवरोध दूर होते ही अन्य वाहन भी धुआं उड़ाते आगे बढ़ गये ।
इस भीड़ में भी किसी की मदद मिलना बड़ा सौभाग्य होता है । मजदूर धन्यवाद देने का अवसर दिए बिना चले जाने वाले युवक के बारे में  बहुत देर तक सोचता रहा, अन्त में वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि " हो न हो वह मददगार निश्चित ही किसी मजदूर का बेटा होगा ।"
- मनोज सेवलकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
           भीड़ में वहशी
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 राधा बाजार जाने के लिए घर से निकली थी। अचानक उसे शोर-शराबा सुनाई दी। वह शोरगुल सुनकर रुक गई।
  शोर-शराबे के बीच में एक महिला की कराहती हुई आवाज सुनाई दी। चारों तरफ सशंकित नजरें दौरायी। एक गली में लोगों की भीड़ दिखाई  दी।कौतूहल वश धीरे-धीरे भीड़ के करीब पहुंच गई।
       काफी संख्या में लोग चिल्ला रहे थे ---मारो !मारो! छोड़ना नहीं।
        जिसके हाथ में जो चप्पल, ईंट के टुकड़े थे वह फेंके जा रहा था। भीड़ के बीच में वो औरत पड़ी हुई कराह रही थी। 
        रुक रुक कर आवाज दे रही थी-- भगवान से डरो--मुझ पर रहम करो --मुझे छोड़ दो --मैंने कुछ नहीं किया-- मैंने किसी का बुरा नहीं किया --पर भीड़ गूंगी- बहरी बन उस पर लात घूंसे, पत्थर से प्रहार करती रही।
         लोगों के गुस्से का अंत नहीं हुआ --दो व्यक्तियों ने उस्तरा लाकर उसके सिर के बाल काट मुंडन कर दिया।
        अर्द्धनग्न स्थिति में वह स्त्री पड़ी तड़पती रही पर किसी के हृदय में दया और सहानुभूति के भाव दिखाई नहीं दिए।
         वह तड़प रही थी, कराह रही थी--औरतें भी थोड़ी दूर खड़े चुपचाप इस दृश्य को देख रही थीं पर भीड़ को किसी ने रोकने की हिम्मत नहीं दिखाई।
         राधा एक सामाजिक कार्यकर्ता थी। वह हिम्मत जुटा भीड़ को धक्का देते हुए महिला के पास पहुंची और उसको बचाते हुए मारने का कारण पूछी।
        लोगों ने बताया-- वह डायन है। एक बच्चे पर जादू टोना की है।
         राधा उस बच्चे के पास गयी-- वह बेहोश पड़ा था। उसे बात समझ में आ गई थी। गर्मी के कारण बच्चा बेहोश पड़ा था।
         राधा लोगों को समझाने का प्रयास की--बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाओ-- उसकी जान बचाओ-- पर भीड़ अंधी और बहरी हो चुकी थी।
          अपने गुस्से के जुनून में उस औरत को पीट-पीटकर अपने आत्मा को तृप्त कर रही थी क्योंकि उन सभी का विवेक काम करना बंद कर चुका था, उनमें इंसानियत बची नहीं थी।
          अंततः भीड़ अपने मकसद में कामयाब हुई और वह निर्दोष औरत दर्द से कराहती हुई अपना प्राण त्याग दी। छोटा बच्चा जो बेहोशी में पड़ा था, ध्यान न देने के कारण वह भी दम तोड़ चुका था। ****
                  - सुनीता रानी राठौर
                   ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
शेरनी
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    मीरा आज बहुत खुश थी।उस की और बेटी की तपस्या का फल मिल गया था। उसी शहर में वह आज एस.डी.एम.नियुक्त हो गई थी जिस शहर में वह पलकर बड़ी हुई थी ।शहर वासियों ने उस के स्वागत के लिए बहुत बड़ा आयोजन रखा था। मीरा अतीत में खो गई----जब उस के पति के तीनों भाइयों के घर तीन- तीन लड़के हो गए थे और उन के घर एक बेटी के बाद दूसरा बच्चा ही नहीं हुआ ।संयुक्त परिवार में लड़कों की भीड़ में बेटी अकेली दुबकी रहती।मीरा के पति रोहन को भी सभी ने दूसरी शादी का दबाव और बेटा न होने के ताने ने मानसिक रोगी बना दिया और वह समय से पहले चल बसे। 
        मीरा ने टयूशन पढ़ा पढ़ा कर बेटी को पढ़ाया और अपने संस्कारों से सबल बनाया ।अपना  पूरा ध्यान बेटी पर केंद्रित किया। बेटी ने खूब मेहनत की। दिन रात एक कर दिया। जिस का फल आज सब के सामने था।जेठों के बेटों की लगाम खुली छोड़ने से सभी आवारा और नशेड़ी बन गए। लोगों के रोज़ रोज़ के उलाहनों ने उन के परिवारों को दुखी कर दिया। मीरा अतीत से तब बाहर आई जब पुलिस कर्मी ने नम्रता से आकर कहा,"आप को स्टेज पर बुला रहे हैं। "
      मीरा की आंखों में खुशी के आंसू थे और मन में सोच रही थी, सच में शेरनी तो एक होती है, बाकी तो गीदड़ों की भीड़ होती है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
भीड़ में गुम
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"बाबूजी,देखिए मैंने पन्द्रह वर्ष की सरकारी नौकरी में ही गाड़ी-बंगला और आरामदायक जिंदगी के लिए आवश्यक सभी साधन जुटा लिये। अब आप भी गाँव छोड़कर मेरे साथ रहने चलिए।वैसे भी वार-त्योहार पर छुट्टी लेकर गाँव आना मुश्किल रहता है और फिर बच्चों का भी यहाँ मन नहीं लगता है।"
"लेकिन बेटा तुम्हारे उन सिद्धांतो और आदर्शों का क्या हुआ जिनकी कॉलेज के दिनों में बहुत दुहाई देते थे। आम जन के दुख-दर्द दूर करने और उनकी सेवा के लिए ही तो तुमने सरकारी नौकरी का रुख किया था।"
"ये सब किताबी बातें हैं बाबूजी।नौकरी में आने के बाद ही समझ  आई।हरेक आदमी अपना घर भरने में लगा हुआ है तो मैं ही क्यों इन आदर्शों के चक्कर में अपना जीवन खराब करूं।मैंने अपने बच्चों को  व्यवहारिक ज्ञान ही दिया है।वे नीति-अनीति की बात नहीं करते।"
"ठीक है बेटा,तुम्हें जैसा उचित लगे।लेकिन मैं तुम्हारी तरह भीड़ में गुम नहीं होना चाहता। भले ही रूखी-सूखी ही मिले ,मैं अपनी स्थिति में ही खुश हूँ।मेरी आज भी पहचान मेरे सिद्धांतों, आदर्शों और मूल्यों के कारण  है और मैं इसे खोना नहीं चाहता।****
- डॉ प्रदीप उपाध्याय
देवास - मध्यप्रदेश
भीड़
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अपने राज्य में जाने वाली बस के बार्डर पर मिलने की खबर सुनकर, बबलू भी बार्डर पर पंहुच गया।
बस तो कोई न लिखी। चारों तरफ सिर ही सिर नजर आ रहे थे।ऐसी भीड़ तो उसने कुंभ के मेले में भी न देखी थी।
तभी उसके कानों में किसी के रोने की आवाज सुनाई पड़ी।देखा नीचे बैठी एक औरत अपनी गोद में लिए बच्चे के मुंह में उंगली देकर चुसवाने का प्रयास कर रही है।बालक शायद भूखा प्यासा था। 
आसपास खड़ी भीड़ उसे देखकर भी न देखने का दिखावा कर रही थी।
बबलू ने तुरंत अपने थैले से एक केला निकाल कर महिला की ओर बढ़ाया, महिला ने आधा केला खुद खाकर बालक के मुंह से उसे लगा दिया। बालक ने केला चूसना शुरू कर दिया।अब बालक हंस रहा था,मानों भीड़ को मुंह चिढ़ा रहा हो।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
भीड़ मे
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     बस छूटने ही वाली थी।दरवाजे की तरफ से अजीब सा शोर उठा,जैसे कोई कुत्ता हकाल रहा हो।परेशानी और उत्सुकता के मिले जुले भाव लिये मैंने उस ओर देखा तो पता चला कोई बूढा व्यक्ति है,जो शहर जाना चाह रहा है।वह गिडगिडा रहा था,'"तोर पांव परथ ऊं बाबू.मोला रायपुर ले चल।मैंगरीब टिकीस के पैसा ला कहां ले लाववुं।"उसका शरीर कांप रहा था।
     -"अरे चल चल।मुफ्त में कौन शहर ले जायेगा।चल उतर।तेरे बाप की गाडी है न।कंडक्टर की जुबान कैंची की तरह चल रही थी।"।किसी गाडी के नीचे आजा,शहर क्या सीधे उपर पहुंच जायेगा."एक जोरदार ठहाका गुंज उठा।
     एक सज्जन जिन्हें ड्यूटी पहुंच ने के लिये देर हो रही थी बोले,इनका तो रोज का है।इनके कारण हमारा समय मत खराब करो।निकालो बाहर"।
     एक अन्य साहब ने चश्मे के भीतर से कहा,औऱ
 क्या।धक्के मार कर गिरा दो।तुम भी उससे ऐसे बात कर रहे हो.जैसे वह भिखारी न हो कोई राजा हो।
    और सचमुच।!एक तरह से उसे धक्के मार कर ही उतारा गया।यात्रियों ने राहत की सांस ली।डा्ईवर ने मनपसंद गाना लगाया।बस चल पडी।
    मेरी सर्विस शहर में थी।रोज बस या ट्रेन से अपडाउन।अपने कान और आंखे बंद कर लिये थे।नहीं तो और भी जाने क्या क्या सुनना पडता।
     पर साथ ही पिछले सप्ताह की एक घटना याद हो आयी।इसी बस में एक सज्जन जल्दबाजी में चढे।बाद में जनाब को याद आया कि बटुआ वे घर पर ही भूल आये है।।मुझे अच्छे से याद है,चार चार लोग आगे बढे उनकी सहायता करने को,उनकी टिकीट कटाने को।अंत में कंडक्टर स्वयं, यह रोज के ग्राहक है।कल ले लूंगा कह कर अपने रिस्क पर उन्हें शहर ले जाने को तैयार हो गये।
    सोचना बंद कर एक बार पीछे मूडकर देखा।सभी अबतक वही बात कर रहे थे।जल्दी से आगे की तरफ नजर धूमा लेता हूँ।तभी मेरी नजर सामने की तरफ लगे,दर्पण पर पडी।उस भीड़ में मुझे अन्य लोगों के साथ अपना भी चेहरा  साफ नजर आया। 
- महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़
सुकून
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टैक्सी में बैठकर मृदुला ने घड़ी देखा -
--ओह !! मात्र चालीस मिनट ही बचे  हैं, भैया ! जरा जल्दी चलाना गाड़ी। मेरा समय पर पहुँचना बहुत जरूरी है।
-- जी मैडम जी!! आप चिंता ना करो। मैं आपको समय से पहले ही पहुँचा दूँगा।
    आप जैसे  नेक दिल लोगों को कभी परेशानी नहीं हो सकती है।
                  मृदुला सोचने लगी, कितना कुछ घट गया इन दस से पंद्रह मिनटों के भीतर। 
     भीड़ तो उसने दूर से ही देख लिया था और ड्राइवर ने भी किसी तरह की किनारे से गाड़ी निकालने का प्रयास कर ही लिया था। तभी मृदुला की नजर उस खून से लथपथ शरीर पर पड़ गई और उसने गाड़ी रुकवा ली।
            उस घायल शरीर के चारों तरफ इकट्ठी  भीड़ बस आपस में बहस और चर्चा में ही लगी हुई थी, कोई पुलिस को बुलाने की बातें कर रहा था तो कोई कुछ और लेकिन घायल को अस्पताल पहुँचाने के लिए किसी में तत्परता नहीं दिख रही थी। 
मृदुला को भी अपनी मीटिंग में देरी हो रही थी और वह असमंजस में घड़ी की तरफ देख रही थी। तभी उसके दिल से आवाज आई, मीटिंग से ज्यादा जरूरी है किसी की जान बचाना। उसने अपने ड्राइवर को साथ में लिया, भीड़ को चीरते हुए अंदर घायल शरीर के पास पहुँची और उसे अपनी गाड़ी में उठाकर बैठाने का प्रयत्न करने लगी। उसे इस तरह से प्रयासरत देखकर वहाँ कुछ लोगों ने उसका सहयोग भी किया और एक दो व्यक्ति साथ में बैठकर अस्पताल जाने को भी तैयार हो गए। 
घायल को उन लोगों के साथ अस्पताल भेजकर  मृदुला इधर उधर देख ही रही थी कि उसे वहांँ खड़ा ये टैक्सी ड्राइवर दिख गया था। 
         मृदुला इन्हीं सोचों में डूबी हुई थी कि तभी उसकी फोन की घंटी बजी, ड्राइवर का फोन था --
-- मैडम जी घायल को अस्पताल में भर्ती करा दिया है और घर वालों को भी खबर हो गई है। वे लोग भी बस आते ही होंगे। उनके आते ही मैं यहाँ से निकल जाऊँगा आप परेशान मत होना।
              मृदुला ने भी चैन की साँस ली। भीड़ से अलग सोचते हुए और इंसानियत का अपना फर्ज निभाकर मृदुला को अत्यंत ही सुकून की अनुभूति हो रही थी। 
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची - झारखंड
            भीड़             
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 दो मासूम आंखों में आंसू लिए भटक रहे थे.सारी भीड़ तितर-बितर अपनों के लिए आशियाना तलाशने में लगी थी.सरकारी फरमान जारी किया गया.कि जितने भी शरणार्थी हैं.उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी.आपको और आपके परिवार को समान नागरिकता के अधिकार दिए जाएंगे.और आप गर्व के साथ भारतीय कहलायेंगे.लाउड स्पीकर की आवाज सुनकर भीड़ उन बच्चों को धकेलते हुए.वहाँ आए अधिकारियों की और भागने लगी.उन मासूमों को कुछ समझ नहीं आ रहा था.कि यह सब क्या हो रहा है.वह आंखों में आंसू लिए मां-बाप के मिलने की उम्मीद में उसी दिशा की और देखने लगे!कि शायद हमें भी कही हमारे माता-पिता मिले! तभी उन अफसरों के सेवादारों ने उन्हें एक और धकेलते हुए! साब की कुर्सी लगा दी।
           - वन्दना पुणतांबेकर
                   इंदौर - मध्यप्रदेश
 भीड़ में
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तीन बजे स्कूल की छुट्टी होते ही घर पहुंचने की जल्दी में शर्मा जी अपने ही विचारों में खोए हुए स्कूटर तेजी से चलाने की आदत  थी ।
रास्ते में सड़क पर भीड़ लगना तो जैसे आम बात हो गई ।भीड़ लगाने बालो को ये भी नहीं पता कि  कोरो ना के संक्रमण का खतरा अभी गया नहीं है । कितने लापरवाह है ये सब ?
सरकार की गाइड लाइन को बिल्कुल भी फॉलो नहीं करते ,
क्या  इन्हे अपने आप और अपने परिवार से बिल्कुल भी लगाव नहीं है?
अरे!  पुलिस भी खड़ी तमाशा देख रही  है ?
हेल्मेट ऊपर करते हुए स्कूटर थोड़ा धीमे किया और चलते चलते एक आदमी से जिज्ञासा वश मालूम कर ही लिया ।
अरे भाई यन्हा इतनी भीड़ क्यों लगा रखी है ?
 क्या कोरो ना बोरो ना का किसी को कुछ डर नहीं है ? 
देखो किसी के मुंह पर मास्क भी नहीं है ।
बहुत तखडा  एक्सि डेंट ट हुआ है जी ,
एम्बुलेंस नहीं आ रही ,जल्दी हॉस्पिटल पहुंच जाए तभी जान बच सकती है। 
एक्सीडेंट तो रोज  होते रहते हैं यह कहते हुए शर्मा जी   बड़बड़आते हुए घर की ओर बढ़ गए।
रास्ते में घर के लिए कुछ फल और सब्जी खरीदी के घर से दोबारा भीड़ में नहीं आना पड़ेगा।
यह क्या ? कालोनी में घुसते ही  उन्हें घर के बाहर भी भीड़ दिखाई दी ।
और जोर जोर से रोने पीटने की आवाज?
 पड़ोसी से शर्मा जी ने पूछा कि क्या हुआ ? इतने में ही अपने घर से जोर जोर से रोने चीखने चिल्लाने की आवाज आई। नीरज की मां दरवाजे पर खड़ी खड़ी चिल्ला रही थी ।
चलो मेरा नीरज.... मेरे नीरज को.... चलो ......उसे ......बचा... लो ....
जल्दी से पड़ोसी ने  अपनी गाड़ी में बैठाया और उसी भीड़  के पास आकर रोक दिया ।
जिस भीड़ को  छोड़ कर गया था......
.......................नी....र.... ज..….…।
- रंजना हरित           
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
भीड़ में 
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"अरे ! देख दोस्त गोपाल ,   यह रहीम  लग रहा है जो हमारे ऑफिस में काम करता है । बाजार में कैसी भीड़ लगी है  और सड़क पर ट्रैफिक जाम होने से ट्रक भी  रुका हुआ है , इसमें गौ वंश की देसी गाय भरी  हैं"
राम ने  कहा।
" लगता है गौ वंश को बूचड़खाने में ले जा रहा है ।   "
" फिर तो इनका जिंदा बचना मुश्किल है । "
"  हाँ मुझे भी ऐसा ही आभास हो रहा है । पुलिस को फोन लगाओ ।"
"हेलो पुलिस चौकी , जी शिकायत लिखवाओ ।   मुम्बई के बैल बाजार में एक ट्रकमें  गौ वंश से भरा है । इन गौ वंश को बचाना है । ट्रक का नम्बर एम एच 983456 है।
ठीक है,  आते हैं।
यह  पुलिस शिकायत का वार्तालाप रहीम ने सुन लिया ।
तभी रहीम  अपना छुरा लिए ट्रक से उतर राम और गोपाल से हाथापाई करने लगा । भीड़ तमाशा देखने बढ़ती जा रही थी , किसी ने भीड़ में से रहीम के हाथ से छुरा छीन के रहीम का काम तमाम कर दिया । खून की धारा से सड़क लाल हो गयी ।
 भीड़ में से किसी   हिन्दू भाई ने कहा , " चलो हमारे गौ वंश की हत्या होने से बच गयी  । गौ तो हमारी माता है  ।"
पुलिस  भी आ गयी  । पुलिस लोगों से पूछताछ करने लगी  और उसने उस लाश के चारों ओर सफेद निशान से गोलघेरा खींच के   लाश के संग ट्रक को भी  और भीड़ मेंमीडिया से कुछ लोगों को अपने डंडे के बल से  पकड़ के थाने में ले गयी ।
 सारे दिन मीडिया की खबरों में गौ वंश की रक्षा सुर्खियों , चर्चाओं में था । पकड़ में असली मुजरीम पुलिस की हाथों से दूर आजाद घूम रहा था । 
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
भीड़ में 
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श्याम और सैम की दोस्ती अब काफी चर्चित थी मोहल्ले में।दोनों ने ही शहर की नौकरी छोड़ यहीं अपने मोहल्ले में जो कि शहर से काफी दूर था एक अपना ही काम शुरू कर दिया।दोनों पढ़े लिखे थे और व्यापार करना भी जानते थे तो अच्छा खासा लाभ भी हो रहा था।बाजार श्याम देखता था और फैक्ट्री का काम सैम।मोहल्ले के लोगों को भी काफी रोजगार मिला हुआ था।सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था।
          अब कुछ और ही मंजूर था इस दोस्ती को या यों कहें कि जमाने की नजर लगी।श्याम आज शहर में तो था पर इरादे शायद कुछ और थे। सैम को इसकी भनक लगी और वो श्याम के पीछे पीछे शहर चले गया।वो देखता है कि श्याम किसी के साथ कुछ कागजात लेकर बात कर रहा है।इतने में ही सैम के मोबाइल में मैसेज आता है कि आपके खाते से 7 लाख रुपए निकाल लिए गए हैं।उधर श्याम मानो सफलता का जस्न मना रहा था। सैम निराश होकर श्याम की तरफ बढ़ने लगा तो श्याम जल्दी जल्दी आगे बढ़ने लगा।थोड़ी ही देर बाद श्याम एक ऐसी भीड़ में समा गया जहां केवल धुआं धुआं सा था सब कुछ।सभी के हाथों में जिन्दगी की पुड़िया। सैम ने बहुत कोशिश की श्याम को वापस लाने की पर श्याम अब इस भीड़ का हो चुका था। सैम समझ गया कि शायद वो अब श्याम को खो चुका है ।उसके पैसे जाने का दुख जैसे दोस्त को इस भीड़ में खोने की वजह से बहुत कम हो गया था।एक दोस्त को आज फिर नशे की लत ने इस भीड़ में अपना बना लिया और जीवन से दूर कर दिया।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
फर्ज
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        स्कूल बस अचानक चौराहे से पहले ही रुक गयी। एक शिक्षिका ने उत्सुकतावश पूछा - " क्या हुआ ड्राइवर भइया"? ड्राइवर ने चिंतित होते हुए कहा - " मैडम जी, लगता है कि चौराहे पर दुर्घटना हो गयी है। अब बच्चे शाम तक भूखे - प्यासे, थके हारे बैठे रहेंगे।" बस में दो ही शिक्षिका थी। रूपाली और मीना, दोनों आस - पास ही रहती थी। भीड़ अब बेकाबू होकर बस की तरफ आ रही थी। दोनों शिक्षिकाओं ने सबसे पहले स्कूल के आॅफिस में खबर कर दी कि 9 (नौ) नं की बस हंगामें में फंस गई है। सभी अभिभावकों को खबर मिल गई। उसके बाद इंटरनेट की मदद से पास के थाने में फोन किया। तुरंत ही फिर एंबुलेंस को आकस्मिक सेवा के लिए फोन किया।
                     बच्चों को बस में बंद करके निडरता के साथ भीड़ के सामने खड़ी हो गई। भीड़ को धिक्कारते हुए कहा - "आप सभी हंगामा करने से पहले थाना और पुलिस को फोन करते तो दुर्घटनाग्रस्त इंसान की जान बच सकती है।फिर विडियो लेते हुए एक लड़के को देखकर कहा कि -" ऐसे ही किसी दिन चौराहे पर आपके घर के बच्चे भी स्कूल बस में हो सकते है। सामने से आती एंबुलेंस की आवाज़ से भीड़ छंटने लगी। घायल को एंबुलेंस में बिठा कर ले गई। कुछ अभिभावक भी घबराए हुए वहाँ तक आ गए थे। पुलिस ने भी आकर स्थिति को सम्हाल लिया। 
                     दूसरे दिन स्कूल के प्राचार्य ने रूपाली और मीना की तारीफ करते हुए कहा - "आप दोनों ने सच्चे अर्थों में शिक्षित होने का फर्ज निभाया"। आज स्कूल मे सभी उनकी तारीफ कर रहे थे। 
                    - कल्याणी झा "कनक" 
                     राँची -  झारखंड
सितारों की भीड़ में चाँद
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प्रियांशी गुमसुम सी बैठी हुई थी, मम्मी ने पास आकर प्यार से पूछा- "अरे, क्या हुआ मेरी गुड़िया को? ऐसे चुपचाप कैसे बैठी है मेरी प्रिंसेस??"
"मत बोलो मुझे गुड़िया ! मैं गुड़िया नहीं हूँ...पन्द्रह साल की हो गयी हूँ अब !!"- प्रियांशी तमतमाती हुई बोली।
"क्या हुआ बेटा? मैं तो आपको हमेशा गुड़िया ही तो बोलती हूँ, आज गुस्सा क्यों हो गयी आप??"- माँ कुछ समझ नहीं पायी।
"मेरी हाइट कम है तो इसका मतलब ये तो नहीं कि मुझे सब गुड़िया, छुटकू, छोटी, छुटकी...ऐसे ही बुलाये !
पहले से तो कम लंबाई और फिर उस पर गुड़िया कहकर बुलाना ! बच्ची थोड़ी ना हूँ मैं...
मेरे साथ की सब लड़कियाँ मेरा बहुत मजाक बनाती है"- प्रियांशी की आँखों में आँसू आ गये।
माँ को समझ आ गया कि प्रियांशी अपनी कम हाइट की वज़ह से डिप्रेशन की ओर जा रही है... उन्होंने प्रियांशी के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और फिर पूछा- "अच्छा, एक बात बताओ बेटा, आपको चाँद और तारों में से ज्यादा क्या पसंद है?"
-"चाँद"
-"क्यों, उसमें तो कितने दाग़ है, उसमें पसंद करने जैसा क्या है?
प्यारे तो इतने सारे तारे हैं, सुंदर- सुदंर टिमटिमाते हुए"...
-"अरे मॉम...उनकी खुद की पहचान क्या है? वो तो भीड़ में है, ढेर सारे और सब एक जैसे...
सुन्दर तो चाँद है, तारो की भीड़ में सबसे अलग चमकने वाला, सबसे चमकीला।"
-"वेरी गुड बेटा, तो आप भी तो चाँद जैसी ही हो, भीड़ में सबसे अलग, आपकी अलग पहचान है...
भगवान यदि कुछ कमी देते है तो वापस कुछ ना कुछ खास पॉवर भी देते हैं...जैसे चाँद को दाग दिये तो वापस एक अलग पहचान भी तो दी, तारों की भीड़ में सबसे अलग चमक...वैसे ही आपको भी अगर कम हाइट दी तो देखो आपको कितना टेलेन्टेड बनाया...स्कूल में आप ड्राॅइंग, सिंगिंग, डांस...हर एक्टिविटी में फर्स्ट आते हों।
आप की साथ वाली गर्ल्स सबके सामने अच्छे से बोल भी नहीं पाती, शर्म आती है उनको और आप कैसे फर्राटे से डिबेट कॉम्पिटिशन में भाग लेती हो और विनर शील्ड जीत कर लाती हो...
इसलिए बेटा, आप अपनी हाइट को लेकर परेशान मत हो बल्कि ये देखो कि भगवान ने आपको तारों की भीड़ में सबसे अलग चमकने वाले चाँद जैसा बनाया है।
सबसे अलग, सबसे यूनिक"....
माँ की बात सुनकर प्रियांशी की सारी उदासी और डिप्रेशन छू-मंतर हो गया।
वो अपनी कीमत समझ गयी थी।
- सुषमा सिंह चुण्डावत
उदयपुर - राजस्थान
भाग्यशाली 
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नवरात्रि में रामलीला के मैदान में नीलू और राकेश, उनकी 6 महीने की लड़की के साथ रामलीला देख रहे थे। रामलीला में रावण का प्रसंग चल रहा था। राकेश का भी रावणत्व जाग उठा। उसने उसकी दो बेटियों को पहले ही ननिहाल में रखा हुआ था। राकेश सोचने लगा इतनी बड़ी भीड़ में उनको कौन पहचानेगा? क्यों न लड़की को यहीं छोड़ दिया जाए? राकेश ने देखा बेटी गहरी नींद में है। उसने नीलू से कहा, “बेटी को यहीं छोड़ देते हैं, कोई न कोई इसे पाल ही लेगा।" राकेश ने स्थिति को भाँपा और लड़की को चादर सहित जमीन पर लेटा कर उसे ढ़क दिया और दोनो वहाँ से भागने लगे। इतने में लड़की के रोने की आवाज सुनकर भीड़ का ध्यान बंटा। पुलिस वाले भी वहाँ आ गए, उन्होंने अनाउंसमेंट करवा कर पूरे मेले की सीमा को सील करवा दिया और फोर्स भी बुलवा ली। सी.सी. टीवी फुटेज खंगाल लिए गए। सी. सी. टीवी फुटेज में राकेश के हाथ में वही लड़की दिखी जो उनके पास थी। मेले में चप्पे-चप्पे पर पुलिस थी। राकेश और नीलू बाहर निकल ही नही पाए थे और भीड़ में भी पकड़ लिए गए। पुलिस ने कार्यवाही शुरु कर दी। राकेश पुलिस के पैरों पर गिर गया। राकेश और नीलू माफी मांगने लगे, रोने और गिड़गिड़ाने लगे। पुलिस ने सारी कार्यवाही पूरी कर दोनो से लिखित में वादा करवा लिया और चेतावनी दी कि वह लड़की के साथ आइंदा से ऐसा अत्याचार नहीं करेंगे। राकेश, नीलू और अपनी बेटी के साथ भीड़ से निकल कर बाहर आ गया था। उन दोनो ने गहरी साँस ली। वह सोच रहा था कि वह कितना भाग्यशाली है कि उसकी बेटी ने उसे गिरफ्तार होने से बचा लिया।
- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़़ा - राजस्थान
भीड़ 
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राधा दो दिनों से अपने बेटे राहुल की तलाश में दर दर भटक रही थी।वह दो तीन दिनों के लिए अपनी बीमार माँ को देखने मायके गयी थी।उसका छोटा बेटा राहुल मानसिक रूप से थोड़ा असामान्य था।उसका बड़ा बेटा महेश और उसकी बहू रमा राहुल को नापसंद करते थे।वे किसी तरह उससे छुटकारा पाना चाहते थे।राधा उनलोगों के भरोसे राहुल को छोड़ कर मायके अपनी बीमार माँ को देखने गयी।लेकिन उनलोगों ने उसके साथ पता नहीं ऐसा क्या किया कि जो कभी भी माँ के बिना घर की दहलीज भी पार नहीं करता था,वह अपनी माँ की खोज में घर से  निकल गया ।
      भूखी प्यासी राधा अपने बेटे की तलाश में एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले भटक रही थी।तभी ...... "मारो मारो....बच्चा चोर .....बचने न पाये ..." की आवाज आने लगी।राधा ने उधर देखा,भारी भीड़ लगी हुई थी,लोग किसी को बुरी तरह मार रहे थे ।तभी भीड़ में से 
ही एक आदमी बोला,...."विक्षिप्त लग रहा है ......बच्चा चोर नहीं है ।"
   यह सुनते ही राधा दौड़ कर भीड़ को चीरते हुए अन्दर घुसी,देखा...उसका बेटा खून से लथपथ जमीन पर पड़ा है ।माँ को देख कर जमीन पर पड़े पड़े ही बड़े कातर आवाज में बोला,....." माँ " ।
   - रंजना वर्मा उन्मुक्त
राँची - झारखंड
भीड़ 
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             मेरी मति मारी गई थी,भीड़ में रावण दहन देखने निकली थी। दोनों भैया- भाभी मैं और मेरी जवान भतीजी घर पर दोपहर के खाने के समय तय कर लिए , बहुत वषों से रावण दहन नहीं देखा। आज शाम मोरहाबादी मैदान चलते हैं। चल पड़े रावण दहन देखने।
           मैदान के दरवाजा संख्या एक के पास पहुंचे। पास देखने के बाद पुलिस ने भाई - भाभी को तो अंदर भेज दी। हमने जब पास दिखलाया, पुलिस ने कड़ाई से तीन नम्बर गेट से अंदर जाने की बात कही। दरवाजा संख्या एक से प्रवेश करके पास खड़े भाई -भाभी विनती कर रहें हैं कृपया इन्हें भी अंदर आने दीजिए। पर पुलिस ने बिल्कुल नकार दिया। भाई ने कहा मैं कुछ जान -पहचान वाले से अंदर बात करता हूं। आप दोनों भुआ और भतीजी दरवाजे के बाहर यहीं पर खड़े रहें। वे अंदर चले गए।     मुश्किल से दस मिनट ही हुए थे, मैं और मेरी जवान भतीजी गप्प करते हुए उनका इंतजार करने लगे। 
            अचानक ही देखते-देखते अथाह भीड़ हो गई। कोई इधर से धक्का दे और कोई उधर से। हर धक्के में हम दरवाजा संख्या एक से दूर होते जा रहे थे।
             मालूम पड़ता था, पूरा शहर उस गली में घुस गया हो। वहां से निकल कर घर चलें जाए, ये असंभव हो चुका था।भीड़ में एक भी औरत नहीं नजर आ रही थी। धीरे -धीरे उस गली में लोगों के खड़े रहने की जगह भी खत्म हो गई। आसपास के लोगों को एक- दूसरे के शरीर को स्पर्श करते हुए,दबाते हुए खड़ा होना पड़ रहा था। 
दरवाज़ा पुलिस ने बंद कर रखा था। बाहर बेकाबू भीड़ थी। न चाहते हुए भी हम लोगों को अपने देह के करीब पा रहे थे। इतनी देर में भतीजी चीखी, "भुआ जी"। किसी ने शायद उसे गंदी मंशा से स्पर्श किया था।हम दोनों पूरी ताकत से एक दूसरे से लिपटे हुए थे। अचानक एक पुलिस पर हम दोनों की नजर गई। दोनों लिपटे हुए उसी अवस्था में पूरी ताकत से चिल्लाते हुए पुलिस से मदद की गुहार लगाने लगे। दूर खड़े पुलिस की नज़र हम पर गई।
 एक बार तो उसने टका- सा जवाब दिया, "क्यूं निकले थे घर से। अब भुगतो " ।
 मैंने कहा, "मुझे बिल्कुल खबर नहीं थी। आपके हाथ जोड़ती हूं। "
 पुलिस ने तुरंत खींचते हुए भीड़ से मुझे अलग कर दरवाजा संख्या एक के अंदर कर दिया। अंदर घुस कर मरते हुए रावण को देखना छोड़कर दोनों अपने आप को संभाल रहे थे।
आज गोविंद फिर आए थे द्रोपती की लाज बचाने।
- मीरा जगनानी
अहमदाबाद - गुजरात
सुपर नानी
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नेहा की पांच साल की बेटी  रोली रोज़ रात में सोने से पहले कहानी सुनने की रट लगाए जा रही थी। नेहा के टाल-मटोल करने पर भी जब वो नहीं मानी तो नेहा उसके बगल में लेटकर उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर बोली,"ठीक है मेरी लाडो!तुम जीती मैं हारी। इतना कहकर वो ख्यालों में खो गई। रोली ने उसे हिलाया तो नेहा चौंक पड़ी और बोली,"चलो आज मैं अपनी नानी की कहानी संक्षेप में सुनाती हूं।"नेहा ने कहानी प्रारंभ की,"सुनो बिटिया!
"मेरी नानी भीड़ में अलग ही दिखाई देती थीं,वो नानी नहीं सुपर नानी थीं। ऐसा कौन-सा काम है जो नानी को नहीं आता था। नानी अच्छी पढ़ी-लिखी थी।सात बहनों और एक भाई में से एक।बचपन से ही मेधावी और हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई नानी ने। थोड़ी हिसाब-किताब समझने वाली हुईं तभी से अपने पिता जी के साथ खेती-बाड़ी का हिसाब-किताब रखने में उनकी सहायता करने लगीं। मां के साथ चुल्हा-चौका, भाई-बहनों के साथ खेल-कूद.. असिमित कार्य-क्षमता  की मालकिन। नानी की शादी भी उनके रूतबे के हिसाब से बढ़ , हाथी-घोड़े वाले परिवार में हुई । नानाजी ऑडिटर थे और बड़े नानाजी डॉक्टर । ससुराल में भी नानी सबकी लाडली थी। सिलाई-कढ़ाई,बुनाई,अचार-पापड़, बड़ियां बनाना, गीत-कहानी,संगीत और न जाने क्या-क्या आता था उन्हें, मुझे शायद सारी बात पता भी न हो ।हमें तो नानी के घर जाने पर हर बार उनकी किसी नई  खूबी के बारे में पता चलता था और मैं मज़ाक में कहती थी ,"अरे! नानी जी आपने हमारे लिए तो कुछ छोड़ा ही नहीं "?और वो गर्व से खिलखिलाती हुई मेरे माथे को चूम लिया करतीं थीं । नानी को घूमना-फिरना भी बहुत पसंद था। वो अकेली ही हमें रेलवे स्टेशन पर लेने आ जाती थीं। नानी के हाथ के व्यंजनों का स्वाद आज तक सांसों में रचा-बसा है।अगर हम गर्मियों की छुट्टियों में आठ-दस दिन भी वहां रहते थे तो कोई भी व्यंजन कभी रिपीट नहीं करती थीं हमारी नानी मां। मेरी शादी के बाद समय-समय पर जीवन के उतार-चढ़ावों के बारे में अक्सर मुझे समझाया करती थी। मेरी सुपर नानी को चंद शब्दों में बांधना मुश्किल है वो भीड़ से अलग इकलौते आकाश की तरह अनंत थीं भी और रहेंगी भी।"
-  संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
 दाने  मीठे   हैं 
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" जरा चखो इन्हें।"
 " मीठे हैं क्या ? "
" नहीं ! कड़वे हैं । "
" तो मैं क्यों खाउं ? "
" नहीं खातीं तो  मैं ही खा लेता हूं । "
" नहीं । मुझे दो ।  जिंदगी कि शुरुआत से ही  मेरे हिस्से की भी हर कड़वाहट को अपने अंदर ज्जब करते रहे हो ।"
" भाग्यवान , ये कड़वे नहीं ,  बहुत मीठे है । अकेले कैसे खा सकता हूं ? "
" नटखट आज भी वैसे ही हो । "
" वैसे मतलब ? "
" क्या सुनना चाहते हो ? "
" जो तुम कहने में आज भी शर्माती हो ।"
" देखो , अब कुछ और कहोगे तो मैं रो दूंगी ।"
" तो फिर चख कर ही  देख लो ।"
 " चखने की क्या जरूरत है ? मैं तो पूरे ही खाऊंगी । "
" बदली तुम भी नहीं हो ।" 
" दांत नहीं हैं मेरे अब। "
" कोई बात नहीं , मैंने मसल दिया है इनको । " 
" नहीं , इन्हें थोड़ा चबा कर  दो । "
" कोशिश करता हूं । " 
उसने , उसके हाथ से दाने लिए और अपने मुंह में रख लिए ,ये तो मीठे हैं बिलकुल तुम्हारी तरह। "
- सुरेंद्र कुमार अरोड़ा  
साहिबाबाद - उत्तर प्रदेश
भीड़ मे
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आज होली की धुम थी किसन की हवेली में हर साल कि तरह इस वर्ष भी होली की जम कर तैयारियाँ हुई थी , स्विमिंग पूल रंगों से भर मुस्कराह रहा था साल में एक ही दिन तो विभिन्न रंगो से सजता है बाकी दिन तो वही अपना सफेद रंग , कोठी के बहार जगह जगह रंगो से भरे थाल  , कोठी की शोभा बढा रहे थे , कई जगह पर बैठने  व चाय नाश्ते की उत्तम व्यवस्था , नाचने वालीयां , छम्मक छल्लो यहाँ वहाँ पुरुषो के सामने से बल खाती निकलती ,सब की सब मन मसोस के रह जाते , और वो खिलखिलाकर हंस पड़ती , 
कुछ ही देर में कोठी मेहमानों की भीड़ से भर गई ठहाकों वचुटकुले के दौर , सबहंस बोल रहे थे तभी किसन ने उन छबिली लड़कियों को आवाजलगाई और बोले सबको भांग अपने हाथो  से पिलाओ  सब लड़कियाँ एक ट्रे में भांग के गिलास व गुलाल की तस्तरी ले आगे बढ़कर टीका लगाती और भांग का गिलास पकड़ाती जब सब मेहमान को भांग मिल गई तब किसन ने ढोल बालों को आवाज़ दी बजाओ और लड़कियों से कहा नाचो व सबके साथ होली खेलो नाच नाच के , अब क्या था सब मेहमान खुश कुछ बुज़ुर्गों ने मूँछों पर ताव देना शुरु कर दिया कुछ कामुक  नज़रों से लड़कियों को घूर रहे थे और किसन तो सोफ़े पर बैठ अपने शान शौक़त के गुमान मे चूर बेहुदा हरकतें कर रहा था जो कुछ लोगो को नागवार लग रहा था पर सब उनकी शानोशोकत के आगे मूक दर्शक बने बैठे थे ,
तभी एक सत्तर साल के बुजुर्ग उठे व किसन की बलैयाँ ले बोले बेटा तुमने तो अपने बाप दादाओं को पीछे छोड़ दिया इतना उम्मदा इंतज़ाम तो वह भी नही कर पाते थे खाना पीना मौज मस्ती सब होती थी पर ये नचैनीया नही आती थी तुमने कोई कमी नही रखी जुग जुग जियो व लड़खड़ाकर वही एक जगह धम से बैठ गया ,
किसन के दादा पर दादा ज़मींदार थे बडी इज़्ज़त .मान .प्रतिष्ठा थी दूर दूर तक शराफ़त के क़िस्से मशहुर थे , बहन बेटियाँ सुरक्षित थी !
ज़मींदारी रही नही पर किसन आज भी उसी माया जाल में जकड़ कर अपना व परिवार का अहित कर रहा है ! अपने घर की बहन बेटियों को पर्दें मे रख बहार की औरतों कीबेइज्जती करता व करवाता है , जो किसन की पढ़ी लिखी समझदार पत्नि शोभा देवी को रास नही आती है , वो बहुत बार दबे स्वर में विरोध कर चुकी है , पर किसन के आगे हर बार लाचार हो गई मार खाकर गालियाँ खा कर चुप रह जाती थी , पर विद्रोह अंदर ही अंदर बढ रहा था ,वह किसन
को सही राह दिखाती पर किसन तो झूठे आडंबरों ,वाह वाही में अंधा हो चुका था !
उसको पुरी आजादी चाहिये थी पर घर वालो को  कठोर बंदिश में रखता स्कुल,कालेज के दोस्त घर नही आ सकते , महिलायें अकेले बहार नही जा सकती कोई रिश्ते दार बिना किसन की इजाज़त से मिलने नही आ सकते आदि आदि जो शोभा को विचलित करता था !
आज भी वह ऊपर की बालकनी से नीचे का अभद्र होली का नजारा देख रही थी और अंदर ही अंदर कुढ रही थी ! इतने भीड़ में सबके सम्मुख अश्लिल हरकत करते बुढो को शर्म नहीं छी : ठी : 
उसे उन लड़कियों पर भी ग़ुस्सा आ रहा था कि वहपैसो के लालच में अपने जिस्म की नुमाईस इन गंदे विचारों वाले पुरुषो के सामने करती है ! 
वह यह सब सोचरही थी तभी उसकी  नजर एक अधेड़ उम्र के पुरुषप्रधान पर पड़ी जो बड़े भद्दे तरीक़े से एक लड़की को अपने पास खींच रहा था वह मना कर रही थी तभी उसने देखा किसन एक कमसिन लड़की को अपनी जाँघ पर बैठा कर चुंबन ले रहा है और वह लड़की रो रही है यही दृश्य अलग अलग आदमी लड़कियों के साथ कर रहे है एक व्यक्ति की तरफ नजर जाते ही शोभा शर्म से गढ़ गई उसका क्रोध क़ाबू से बहार तभी एक लड़की की आवाज़ कानों से टकराई बचाओ बचाओ !
भीड़ में सब नंगा नाच कर रहे थे बचाता कौन .....? 
अब शोभा ने मन ही मन निर्णय 
लेकर पुलिश को फोन किया सारी बाते बताई व पुरी पुलिस फ़ौज लाने को कहा  , और अपने मन को कुछ समझा कर शांत कर दुसरे क़दम को उठाने का  प्रण 
किया व किसन के रुम से रिवाल्वर ले कर नीचे पहूंच गई व एक हवाई फ़ायर किया सब जहाँ के तहाँ बुत बन गये शोभा ज़ोर से चिल्लाई व उस आदमी की तरफ गन तान दी जो लड़की के साथ ज़बरदस्ती कर रहा था और एक दुसरा फ़ायर गोली आदमी की बाँह को छीलती हुई निकल गई , सबके चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी किसन उसको मारने के लिये लपका ही था कि शोभा ने कहाँ बस किसन आज तुम्हारा पाप का घड़ा भर गया है मेरी तरफ जरा सा भी बढ़ने की कोशिश मत करना में तुम्हें मौत के घाट उतार दूँगी व जरा भी मेरे हाथ नही काँपेंगे ,तुम मेरी बेजज्ती करते रहे मैने बर्दाश्त किया पर अब तुम गुनाह कर रहे हो इन मासुम बच्चीयो के साथ इनकी ग़रीबी के साथ यह गुनाह तुम्हारा माफी के क़ाबिल नही है मैने बहुत समझाया अपना पत्नी धर्म निभाती रही पर अब नही तुम्हारा खुन भी कर के इन मासूमों को बचाना पडा तो में यही करुगी ! 
सब लोग बहार भागने लगे तो शोभा ने नौकर  से कहाँ गेट बंद 
इस भीड़ का एक भी दानव बहार न जाने पाये । 
करो कोई बहार जाने न पाये जैसे ही नौकर गेट बंद करने लगा की दरोग़ा जी को खडें पाया व साइड में हट गया दरोग़ा जी  के साथ पुरी पुलिस फौज अंदर आ चुकी थी !
शोभा ने कहाँ आईये दरोग़ा साहब मेने ही आप को बुलाया है यहाँ पर जितने पुरुष है सबको हथकड़ी पहनायें , एक एक के जुर्म में बताती हू !
और उसने लड़कियों से कहाँ तुम सब निडर होकर अपने साथ हुये अभद्र व्यवहार करने वाले का नाम लिखवाओं ! जरा भीडरना नही है !
और हाँ दरोग़ा जी 
सबसे पहले गुनाह गार मेरे पति किसन का नाम लिखिये ,
किसन शोभा तुम पागल हो गई हो मुझे बंद करवाएगी अपने पति को नही तुम ऐसा नही कर सकती !
शोभा बोली आप भुल रहे है यदि एक औरत सावित्री बन कर अपने पति को यमराज से छीन सकती है ,तो शोभा बन कर महिलाओं की अस्मिता बचाने के लिये हज़ारों किसन जैसे पतियों को मौत की गोद में सुला सकती है ,
ओर वह सबको पुलिस की गाडी में भेज नौकर को गेट बंद करने  की हिदायत दे अंदर रुम में आ किसन की तस्वीर को सीने से लगा फफक पड़ी !
किसन यह कैसी होली खेली 
मेरे हाथो में  रंगो की पिचकारी की जगह,खूनी पिचकारी थमा दी !
- अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
 ट्रैफिक 
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"अरे देखकर नही चलता !अन्धा है क्या ?"
क्या कहाँ तूने?"अरे अन्धा होगा तेरा बाप !
"चल गाड़ी से निकल !अभी देखता हूँ तुझे सा..!
गाली किसे देता है!
सड़क के बीच में कार ,मोटर साईकिल वाहक के बीच झगड़ा देख ट्रफिक मे इर्द गिर्द तमाशबीनो की भीड़ इकट्ठा हो गयी ।बात इतनी बढ़ गयी ।तभी दोनों ने एक दुसरे को लात घुसे से मारना शुरु कर दिया !
एक बुज़ुर्ग उन दोनों को बीच से हटाने की कोशिश करने लगे ।
"कोई पुलिस को बुलाओ !
भीड़ देख मीडिया के लोग आ पहुँचे और लाइव रिपोर्टिंग करने लगे ।"हटिये ज़रा कैमरे के सामने से "लोगों को हटाते हुए बोले !लाईव रिपोर्टिग  चल रही है !
बुज़ुर्ग ने बीच बचाव करने के उद्देश्य से समझाने की कोशिश की !"अरे लड़ाई से कुछ हासिल नहीं होगा ।केवल दोनों पक्षों का नुक़सान ही होता है ।चलो ख़त्म करो झगड़ा ।क्या जानते नही रोडरेज के कारण समाचारों में कितनो की जान चली गयी । पढ़ें लिखें समझदार हो ।"
एक दुसरे से हाथ मिलाओ ।"और तुम सब तमाशबीनो  तुम्हारा कोई फ़र्ज़ नही झगड़ा बढ़ाने में आग में घी का काम कर रहे हो "हम सब को झगड़ा ख़त्म कराना चाहिए !"
"मीडिया वालों लाईव  कवरेज दे रहे हो क्या साबित करना चाहते हो! कहाँ मर गयी तुम्हारी संवेदना क्या ख़बर बेचने तक ही सिमित  है "।
अब तक दोनों सवार उनकी बातें सुन कुछ सम्भल कर !दोनो  आपसी ताल मेल से बातें करने लगे ।
"सुबह ऑफिस के समय जल्दी के कारण ...।दुसरे ने कहाँ
तभी हा...।
ऐ हटो सब चलो सब अपनी मंज़िल ! इस बीच सिपाही ने आ कर सारी भीड़ को वहाँ से हटाया !
और झगड़ा ख़त्म होते देख !
बुज़ुर्ग की आँखें भर आयी ।
भर्रायी आवाज़ में उन के मुँह से बस यही निकला दो साल पहले यदि कोई झगड़ा ख़त्म करा देता तो मेरा पच्चीस साल का बेटा भी आज जीवित होता ।"
- बबिता कंसल 
दिल्ली










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