अपराध को रोकने के लिए कानून का भय कितना आवश्यक है ?

कानून का भय अपराधियों में खत्म होता जा रहा है। जिस से अपराध दिनों दिन बढ रहा है । सरकार के साथ - साथ प्रशासन व जनता प्रभावित हो रही है परन्तु समाधान निकालने के कोई प्रयास नहीं हो रहे है । यही जैमिनी अकादमी की " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
अपराध को रोकने के लिए क़ानून का भय उतना ही आवश्यक है जितना घाव के लिए चीर फाड़ आवश्यक है। वर्तमान स्थिति में कानून का भय किसी को नहीं है। अगर कानून का भय होता तो रोज-रोज इतनी हत्याएं और बलात्कार की घटना नहीं होती। कानून का भय जरूरी है लेकिन उससे भी जरूरी है नेताओं दादाओं की सरपरस्ती खत्म करना। निर्भया के आरोपियों को फाँसी देने में आठ साल से ज्यादा का  समय लग गया। फिर भी बलात्कार हो ही रहा है। चाहे कानून कितना भी कड़ा क्यों न बन जाय जबतक अपराधी को कोई न कोई संरक्षण प्राप्त होता रहेगा तबतक अपराध रुकने वाला नहीं। अपराधी सोचता है यदि कोई फैसला उसके विरुद्ध आएग तो उसमें भी आठ दस साल का समय मिल ही जायेगा। तो क्यों न अपने मन की मुराद पूरी कर ली जाय। कोई अपराध हो उसे रोकने के लिए तुरंत कार्रवाई की जरूरत है। कोई भी जमानत नहीं कोई भी वकील उसके साथ नहीं। कोई मानवाधिकार नहीं। तब ही जाकर अपराधी डरेंगे। इस पर भी यदि नहीं डरें तो जैसा का तैसा ही करना पड़ेगा तभी अपराध रुकेगा।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
किसी समाज, राष्ट्र द्वारा  निर्धारित किसी नियम का उल्लंघन या अवहेलना करना अपराध है । यह ऐसा कार्य है या गलती है जिसके लिए दोषी व्यक्ति को कानून द्वारा निर्धारित दंड देने का  प्रावधान  है ।
 हर छोटे बड़े अपराध के लिए कानून में सजा का प्रावधान रखा गया है । कानून सबके लिए बराबर है । यदि कोई अपराध करता है तो उसे संबंधित कानून के तहत दोषी करार दिया जाता है और सजा दी जाती है । अपराध को रोकने के लिए कानून का भय अति आवश्यक है । भारत में न्याय व्यवस्था अति लचीली है । संगीन जुर्म करने वाले अपराधी को भी शीघ्र सजा नहीं मिलती है। संबंधित मामलों में तफ्तीश करने वाले पुलिस अफसरों की भूमिका भी सदैव संदेह जनक रहती है । भ्रष्टाचार का बोलबाला है। 
संविधान में छोटे-बड़े अपराध के लिए सजा का प्रावधान रखा गया है लेकिन आगे चलकर वह कानून एक मजाक बनकर रह जाता है । भ्रष्टाचार के अन्ध कूप में सभी नियम ,सिद्धांत डूब रहे हैं। किसी भी अपराधी को सजा देने के लिए समय सीमा का होना अति आवश्यक है । एक निश्चित अवधि के भीतर संबंधित मामलों का निपटारा होना अति आवश्यक है । अपराधी को कानून का भय तभी होगा जब निश्चित समय के भीतर जुर्म की सजा कड़ी से कड़ी हो और न्यायिक प्रणाली जटिल हो। सभी विचाराधीन मामले भी निश्चित समय अवधि के भीतर भीतर निपटाए जाएं । जांच पड़ताल करने वाले तफतीशी अफसरों के लिए भी सख्त कानून बने ताकि समय पर अपनी रिपोर्ट पेश करें।
-  शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
     भारतीय कानून-व्यवस्था की स्थिति लचीली हैं। जिसके कारण जनजीवन-प्रशासनिक व्यवस्थाओं में न्याय पालिका प्रभावित हो जाती हैं। कानून व्यवस्था चरमरा गई हैं। जिसके कारण कोई भी अपराधी, कानून को मजाक ही समझता हैं, जहाँ अपराधियों की संख्याओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तियां होती जा रही हैं, इसके लिए कौन जिम्मेदार हैं, प्रश्न उत्पन्न होता हैं। अपराधी को जेल जाने के पूर्व ही जमानत मिल जाती हैं। न्याय भी पक्षपात की भावनाओं से मिल रहा हैं, जब ऐसी व्यवस्थाएं रही तो कानून व्यवस्था से विश्वास उठ जायेगा और आत्मविश्वास में जागरूकता आयेगी, इसके लिए कौन दोषी हैं, हमारा राजतंत्र या प्रजातंत्र? जब तक कानून का भय नहीं होगा, तब तक अपराधियों की संख्याओं में कमी नहीं आयेंगी। सब को मालूम हैं, कुछ भी करों, कुछ नहीं होता? कुछ पर ही विराम की आवश्यकता प्रतीत होती हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
अपराधी को जब तक सज़ा का भय नही होगा तब तक समाज में अपराधी सर उठा कर चलते रहेगे और दिन दिहाड़े किसी का भी खून करके भाग जायेंगे | अपराधी को जब तक कड़ी से कड़ी सज़ा ना मिल जाए तब तक अपराध को रोका नहीं जा सकता | आम जनता तो कानून के ही सहारे ही बेफिक्री बाहर घुमती है और जब घर के अंदर रहना और बाहर घूमना मुश्किल हो जाता है तो यह हमारे समाज, कानून पर बड़ा सवाल खड़ा कर जाते हैं |
- मोनिका सिंह
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
अपराध को रोकने के लिए कानून का भय बहुत आवश्यक है। पर इसके लिए कानून का कड़ाई से लागू होना जरूरी है। आज भी देश में कड़े कानून हैं पर उनका पालन उस हिसाब से नहीं हो पाता। अपराधी को बचाने के लिए बहुत-से लोग आ जाते हैं। उन्हें ऊंचे लोगों का आश्रय मिलता है। निर्भया जैसे मामले को निपटाने में सालों लग जाते हैं। मानवीय अधिकार वाले अपनी दुहाई देते हैं। चलती मोटरसाइकिल से किसी की चेन खिंच जाती है और इस आपाधापी में पीड़ित गिर जाता है, चोट लगती है या मृत्यु को प्राप्त होता है पर अपराधी पकड़ा जाने के बाद भी छूट जाता है। यह कैसा कानून और कानून का पालन! उसे क्यों नहीं मृत्युदंड तुरन्त ही दिया जाता। एटीएम से पैसे निकलवा कर कोई अस्पताल में मरीज के इलाज के लिए बिल भरने जा रहा होता है, उसका पैसा लुट जाता है। मरीज का इलाज नहीं हो पाता, वह मर जाता है। अपराधी सीसीटीवी से पकड़ा जाता है। पैसा वसूल हो या न हो पर अपराधी कुछ दिनों के लिए जेल जाकर छूट जाता है फिर अपराध करने के लिए। क्यों न उसे मृत्युदण्ड दिया जाये।  अपराध तो अपराध है कोई व्यापार नहीं जिसमें बेईमानी की, सजा भुगती और छूट गये। कानून के भय के साथ शीघ्रता से पालन की आवश्यकता है। एक बार तो इस तरह से कानून को लागू कीजिए अपराध के आंकड़े कम होते जल्दी ही नजर आयेंगे।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
अपराध को रोकने के लिए कानून का वास्तविक स्वरूप होना आवश्यक है।भय से इंसान क्षणभंगुर परिस्थितियों मे अपराध से दुर हो सकता है इंसान अपराध को अंजाम देने वक्त कानूनी प्रक्रिया को भूलकर करता है।कानून का भय इतना उच्चतम स्तर पर होना चाहिए।कि ताकि अपराध करने से पहले कानून की चिंता हो।मानव जीवन मे यह नियमित रूप से भय उजागर हो ताकि घृणित कार्य अपराध को करने से पहले बारंबार मानव के ज़ेहन मे कानून का भय हो।आज हमारे देश मे बलात्कार,चोरी हत्याकांड मामले बेहद विस्तृत रूप धारण करने में अपनी भूमिका निभाई जा रही है।कानून संविधान का इतना भय हो कि अपराधियों को अपराध करने के पहले मनन चिंतन करें कि आगे ऐसा हो सकता है।कानून का सरल और लचीलापन के कारण अपराध और अपराधियों की संख्या निंरतर बढोतरी हो रही। संविधान का अपमान कर रहें ये मानसिक रूप से बिमार अपराधी।समाज और देश मे कानून व्यवस्था सख्त हो इसका भय चारो तरफ हो ताकि अपराधियों को अपराध करने के लिए हजारों बार सोचना पडें।संविधान का संशोधन होना अनिवार्य है।भय की सीमा कानूनी कार्यवाही हो।कानून व्यवस्था सृंढ़ढ और ससख्त  हो और न्याय और न्यायालय पर विश्वास हो।यहां अपराधी पर रोकथाम के नये कानून की आवश्यकता है।प्रत्येक बीस मिनट मे बलात्कारी अपनी हबस मिटाने को देश की मान सम्मान देवी कहलाने बाली नारियों के असितत्व को मिटाता है।कानून व्यवस्था इतनी बेडौल है कि सजा का प्रावधानों मे सालों गुजर जाता ।अपराधी भी निडरता से समाज मे गंदगी फैलाने मे सफल हो जाता है।कानून का भय नाममात्र का रह गया है। परिस्थिति ही अपराधियों और अपराध को जन्म देती हैं पंरतु इसपर नियंत्रण करने के लिए कानून व्यवस्था में सुडौल और सजगता के नियमों का समावेश होना अतिआवश्यक है।तभी अपराध को रोकने मे और कानूनी प्रक्रिया मे भय का लेखांकन किया जा सकता है।अतः अपराध को रोकने के लिए कानून का भय काफी हद तक आवश्यक है
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
              अपराध को रोकने के लिए कानून का भय होना बहुत जरूरी है। कानून का भय इतना सख्त होना चाहिए कि उसको याद करके ही शरीर में सिहरन दौड़ जाए। अपराध करने वाला अपराध करने से पहले हजार बार उसके संबंध में सोचे। जिस प्रकार भूत प्रेत को देखकर इंसान डरता है या फिर फांसी की सजा देने वाले जल्लाद को देखकर। अपने सामने मौत को खड़ी देखकर जीवन की चाह रखने वाले अपराधी के मन में जो डर का भाव पैदा होता है ।उसी तरह  का भाव कानून के भय का भी होना चाहिए तभी अपराधी कानून से डर पाएगा अन्यथा नहीं।
-  श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
अपराध को रोकने के लिए क़ानून का भय है किसे? कहीं अपहरण, कहीं हत्या l  देश की न्याय व्यवस्था क़ानून और क़ानून के धंधे में लगे पुलिस, प्रशासन, जज वकील और तमाम संस्थाएँ लगभग बेमानी हो चुकी हैं l जो इनकी गलतियाँ बता रहा है, वह देशद्रोही या अदालत की अवमानना का दोषी बता दिया जाता है l हरियाणा के वल्ल्भगढ़ का संदेश क्या है? घर से लड़कियों को निकलने न दें l मंत्री जी को सलामी ठोकने में व्यस्त पुलिस घर वालों की शिकायत पर कोई ध्यान नहीं देगी और सिरफिरे लोग हत्या करते रहेंगे l पुलिस गवाह और अपराधी, अदालत 20/30साल मुकदमे का ड्रामा करेंगे और फिर सजा हुई भी यह बडा गुंडा बनकर दुकानदारों से धन उगाना शुरू करेगा l और किसी राजनीतिक दल की नज़र पड़ी तो टिकट देकर जनप्रतिनिधि बना विधायिकाओं में क़ानून बनाने भेज दिया जायेगा l यानि इस क़ानून व्यवस्था में सत्ता के खिलाफ बोलने वालों को राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून में निरुद्ध की चेतना तो है लेकिन गुंडे से बचाने की व्यवस्था नहीं l पुलिस के काम में अपराध नियंत्रण नहीं सत्ता को खुश करने के लिए उनके विरोधियो को पकड़ना आता है l 
जब रक्षक ही भक्षक हो जाए,  क़ानून की धज्जियाँ उड़े वहाँ क़ानून है कहाँ? हम किस क़ानून की बात करते हैं l 
-डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अपराध की प्रकृति ऐसी है कि कानून होने के बावजूद यह निरन्तर घटित होता रहता है। कानून का भय भी अपराधियों की वीभत्स हरकतों को रोकने में असक्षम रहता है तो केवल इसलिए कि वर्तमान में कानून के होने और धरातल पर कानून के लागू होने में बहुत अंतर है जिससे अपराधियों के मन-मस्तिष्क को कानून का भय प्रभावित नहीं करता। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि कानून का होना अपराध करने वाले को सजा दिलाने में मुख्य भूमिका निभाता है। परन्तु अपराध को रोकने के लिए कानून का भय पूर्ण रूप से होना अनिवार्य है क्योंकि अपराधी को सजा मिल भी जाये तो भी पीड़ित की वास्तविक क्षतिपूर्ति कहां हो पाती है। 
इसलिए यह नितान्त आवश्यक है कि कानून के रखवाले अपने कर्तव्यों को पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाएं ताकि अपराधियों में कानून का भय उत्पन्न हो और अपराध करने वाला अपराध करने से पहले हजार बार सोचे। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
अपराध को रोकने के लिए कानून का भय अपरिहार्य है. अपराध कानूनी नियमों-कानूनों के उल्लंघन करने की नकारात्मक प्रक्रिया है, जिससे समाज के तत्वों का विनाश होता है. अपराध को रोकने के लिए कानून बने हुए भी हैं, पर उन कानूनों में इतनी खामियां होती हैं, कि संगीन से संगीन अपराधों के आरोपियों को भी राहत मिल जाती है. हमारे बुजुर्गों ने कहावत बनाई- ''लातों के भूत बातों से नहीं मानते.'' यह सच भी है. ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, सिंगापुर, ईरान आदि जिन देशों में कड़े कानून बने हुए हैं और कड़ाई व त्वरितता से उनका अनुपालन भी किया जाता है, वहां अपराध न के बराबर कभी-कभार होते हैं. अतः कानून का भय भी आवश्यक है और कानून का त्वरित सक्रियता से लागू होना भी. देर से मिला न्याय अन्याय ही होता है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
कानून का डर होना बहुत जरूरी है, अपराध रोकने के लिए। अपराधी को भय होगा तो वह अपराध करने में हिचकेगा, नहीं करेगा। अपराधों के लिए कानून तो है, लेकिन उनकी सुनवाई और सजा की प्रक्रिया में इतना लंबा समय बीत चुका होता है कि उसमें सजा का कुछ महत्त्व नहीं रह जाता। न्याय त्वरित हो,तो अपराधी डरे भी।
हाल ही में हाथरस कांड और अभी हरियाणा में निकिता की दिन दहाड़े हत्या, ऐसे अपराधियों को यदि त्वरित सुनवाई,फैसला और सजा हो जाएं तो और लोग भय खाएं ऐसा करने से। परंतु सुनवाई और जांच की लंबी प्रक्रिया में अपराधी के बीच निकलने के चांस बढ़ जाते हैं।
कानून का भय कम हो जाता है तो अपराधी के हौंसले बढ़ जाते हैं।
कानून का डर पैदा करने का एक ही रास्ता है हर अपराध के दंड के साथ,समय सीमा भी निश्चित हो,जो कि बहुत जरूरी है। सुनवाई के नाम पर अपराधी को भी निकलने का मौका न दिया जाए।
- डॉ अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
किसी भी देश में कानून-व्यवस्था ही वह तंत्र है जो देश के नागरिकों को मूलभूत अधिकार लागू रखने में मदद करता है। अपराधिक तत्वों से समाज को निडर बनाता है। कानून के समक्ष हर नागरिक को समान रूप से समझा जाए और उसके बुरे या अच्छे कर्मों की विवेचना की जाए, यही नागरिक को संतुष्टि देती है। वरना चारों तरफ अराजकता फैल जाएगी।
 लेकिन जब वही कानून कुछ खास लोगों का पिट्ठू बन जाता है या धन का लोभी हो जाता है, तभी अपराध उनकी क्षत्र-छाया में सिर उठाने लगता है। अगर कानून की तलवार की धार का एहसास अपराधियों को हो जाये तो अपराध खुद-ब-खुद कम हो जाते।
 अपराध की शुरुआत अनभिज्ञता में होती है, परन्तु आगे वह आदत और कारोबार का रूप ले लेती है, सिर्फ इस कारण कि पैसा देकर या बाहुबलियों के आश्रय में होने पर कानून कुछ नहीं करेगा। इस लिए कानून का डर जरूरी है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
समाज में शांति बनाए रखने के लिए समाज का अपराध मुक्त होना आवश्यक है। यह प्रत्येक देश की सरकार का मुख्य काम और कर्तव्य भी है। अपराध को रोकने के लिए बहुत सारे कानून बने हुए हैं लेकिन आज कल बढ़ते अपराध इस बात का प्रमाण है कि अपराधी के मन में कानून का भय नहीं है कयोंकि आज कल कानून बिकाऊ है। सिर्फ गरीब को ही सजा मिलती है। अमीर या असर-रसूख वाला अपराध करके भी निर्भय होकर घूमता है जैसे कानून उस की जेब में है।कानून का भय तभी होगा जब कानून के रक्षक सभी को एक नजर से देखें। तभी अपराध रोका जा सकता है। अपराधी को शीघ्र से शीघ्र सजा देने की व्यवस्था की जाए,और किसी अपराधी को सजा से  बच पाने का अवसर ना मिल पाए।
      समाज को अपराध मुक्त रखने के लिए आवश्यक है कि शिक्षा में चरित्र निर्माण पर विशेष जोर दिया जाए।लोगों की मूल समस्याओं का समाधान जल्दी से जल्दी किया जाए।समाज में पनपने वाले असंतोष को समय रहते दूर किया जाए।लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत है। जब लोग जागरूक होंगे तभी कानून का भय होगा।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
अपराध को रोकने के लिए कानून का भय बहुत आवश्यक है। मगर वर्तमान में बढ़ते अपराध को दृष्टिगत रखते हुए अग्रिम जमानत और जमानत का प्रावधान है वह चिंतन - मनन और विमर्श का विषय बन गया है। इस प्रावधान को अब संशोधन  की महती आवश्यकता है। क्योंकि इस प्रावधान की वजह से अपराधी बेखौफ और निरंकुश रहते हुए नि्श्चिंत रहकर निर्भय होकर अपराध करते हैं, वे जानते हैं कानून के ये प्रावधान से बच निकलेंगे। जिन प्रकरणों में अपराधी, अपराध करते हुए दिख रहे हैं, या यूँ कहें कि स्पष्ट प्रमाण हैं तब सजा त्वरित मिलना चाहिए। माननीय न्यायालय की जो चरणबद्घता है, अपराध के अनुसार कम होना चाहिए। वकीलों की भूमिका भी निर्धारित होना चाहिए। अपराधी और पीड़ित के वकील द्वारा पक्ष रखा जाता है तब उनके कौशल, ज्ञान और विवेक पर प्रकरण निर्भर हो जाता है,असल स्थिति परे हो जाती है। अपराधी और पीड़ित से सवाल-जबाब सीधे माननीय न्यायाधीश द्वारा पूछे जाकर निष्कर्ष निकाला जावे तो अपराधी का बचना मुश्किल हो सकता है। वर्तमान में जब अपराध बढ़ रहे हैं और अपराधी बच रहे हैं बल्कि यूँ कहा जावे कि अपराधी, अपराध कर निर्भीक घूम रहे हैं। यह स्थिति चिंतनीय तो है ही, निंदनीय भी है। कानून के कमजोर पहलूओं पर विमर्श और संशोधन की बहुत आवश्यकता है। अपराधी के मन में भय होना बहुत आवश्यक और महत्वपूर्ण है।
   विचारों की क्षमायाचना सहित प्रस्तुति।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
अपराध को रोकने के लिए सरकार के द्वारा बनाए गए नियम संविधान के तहत दिए गए दंड के प्रावधान पर ही निर्भर करता है कि आप अपराध को किस प्रकार से  रोकने में सफल हो सकते हैं कम समय में ही दंड विधान को लागू करना चाहिए अधिक समय होने से उनको बचने के रास्ते आसान हो जाता हैं अधिक समय नहीं लेना चाहिए निर्णय लेने में देरी होने से
 अपराधियों को बच निकलने का अवसर मिल जाता है।
अपराध की गंभीरता के अनुसार उस पर कार्रवाई की जानी चाहिए अपराध को रोकने के लिए आज की वर्तमान कानून व्यवस्था को और भी अधिक कठोर कानून बनाने की और उस पर अमल करने की आवश्यकता है आजकल अपराध का स्वरूप भी बदल गया है अपराध बहुत ही शातिर तरीके से करते हैं तथ्य को ढूंढना कठिन होता है कानून में भी संशोधन होना चाहिए तभी हम अपराध को रोक पाने में सक्षम होंगे आज की कानून व्यवस्था बहुत ही लचर है बहुत ही कम अपराधी पकड़े जाते हैं इससे और अपराधियों को बल मिलता है दंड का विधान कठोर होना चाहिए जिससे कि अपराध को रोकने में कामयाबी प्राप्त हो सके कई सामाजिक संगठनों को भी आगे आना चाहिए अपराध को कम करने के लिए आम नागरिक को भी जागरूक होना पड़ेगा तभी अपराध को रोकना संभव है।
*कठोर से कठोर कानून बनाकर ही अपराध को रोका जा सकता है*
*भय बिन होय न प्रीत*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
कानून नियम एक ऐसा हथकंडा है जिसके माध्यम से अपराध पर रोक लगाई जा सकती है लेकिन विकृति इस नियम का ऐसा हो गया है कि जो कानून बनाने वाले हैं और कानून को लागू करने वाले हैं वह कहीं ना कहीं से इस तरह से मुंह फेरे हुए रहते हैं कि देश राज्य गांव जिला में होने वाले अपराध को बढ़ावा मिल जाता है कानून में सुधार की आवश्यकता तो है ही है उससे ज्यादा सुधार की आवश्यकता कानून लागू करने वाले उन व्यक्तियों के ऊपर है जो कानून को अनदेखा कर बढ़ते हुए अपराध पर पर्दा डालते हैं पर्दा डालने के लिए तरह-तरह के गलत नियमों का उपयोग करते हैं कानून अपने आप में बिल्कुल ही सही है लेकिन कानून के दो रखवाले हैं जो इस क्यूट करने वाले हैं वह इस इसका गलत उपयोग कर रहे हैं इसलिए अनुरोध मेरा यह है कि कानून को रखवाले पर इमानदारी का संकल्प अवश्य करें ताकि जो रक्षक है वह भक्षक ना बने
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
अपराधियों में कानून का भय बनाना नीति में प्राथमिकता से शामिल होना चाहिए। साथ में न्यायालय को उचित कार्रवाई करते हुए दंड देने के प्रावधान जल्द से जल्द पूरी कर देना चाहिए। अपराधियों को बचाने के लिए राजनीति नहीं होनी चाहिए। इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारे राजनेता सभी ने सभी अपराधियों के संचालन में सलंग्न है चाहे सत्तापक्ष हो या विपक्ष हो पर इस पर रोक होनी चाहिए।
 जिससे दूसरे अपराधियों का भी मनोबल अपने आप टूट सकता है।
 न्यायालय की प्रक्रिया मैं देरी होने के कारण निर्भया के गुनहगार अब तक बच रहे हैं। उचित फैसला नहीं हो पा रहा है।
त्वरित न्याय से महिला अपराधों पर लगाई जा सकती है लगाम।
दंड देने की प्रावधान जल्द से जल्द होने से सभी वर्ग को व्यापारी, महिलाएं, युवती, को सुरक्षा मिल सकता है।
लेखक का विचार:-अपराध कम करने के लिए नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाना जरूरी है।  नैतिकता लोगों को अपराध करने से रोकती है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
  अपराध को रोकने के लिए कानून का भय को आवश्यक समझते तो आज समाज में किसी भी प्रकार की अमानवीय घटनाएं नहीं होती। वर्तमान समाज में कुछ लोगों को भय का बिल्कुल परवाह नहीं है तभी तो निर्भय होकर दरिंदगी करने में बाज नहीं आते। अपराध को अपराध से रोकना गलत को गलत से रोकना युद्ध को युद्ध से रोकना यही परंपरा असफलता होते हुए चली आ रही है किसी अपराध को इसलिए दंड दिया जाता है कि वह अपराध ना करते हुए और सही स्थिति में आ जाए लेकिन किसी को दंड देने के बावजूद भी वह नहीं सुधरता है ऐसी स्थिति को क्या करना चाहिए। अपराध करने वाले या गलती करने वाले को समझा कर ही सुधारा जा सकता है लेकिन समझाने के पुरवा उन्हें उनकी गलती का एहसास होना चाहिए अगर गलती का एहसास हो जाता है तो वह व्यक्ति सही करने के लिए सोचता है इसी समय उसे सही मार्गदर्शन दी जाए तो वह व्यक्ति अपराध से मुक्त होने के लिए सही को समझने के प्रति जिज्ञासा रखता है और समझ कर अपने अपराध को सुधार लेता है यही मानवीयता है अपराध को रोकने के लिए कानून का भय की आवश्यकता नहीं है बल्कि गलती या अपराध हो रहे हैं उसकी कारण जानने की आवश्यकता है और कारण जानकर उसकी समस्या का हल करने की आवश्यकता है कोई भी व्यक्ति गलती से ही अपराध करता है जानबूझकर अपराध नहीं करता। अतः अपराध रोकने के लिए कानून का भय आवश्यक नहीं समझ कर जीने की आवश्यकता है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ -  छत्तीसगढ़
  आज के समय में अपराध स्तर काफी बढ़ गया है अपराध की वैरायटी भीअलग -अलग है।अपराध वृत्ति शिशु काल से ही उभरना शुरू होती है, कुछ में बाद में भी उम्र और स्थिती के अनुसार।
अपराध को रोकने के परिवार  भरसक प्रयास करते हैं पर फिर भी स्थिती सामान्य नहीं होती वह विरल होती हुई विनाशकारी रूप धारण कर मनुष्य के सभी पक्षों पर प्रभाव डालती है।
  आयु बढ़ने के साथ अपराध नग्न रूप में प्रदर्शित होते हैं, ये छोटी उम्र की गलतियां न रह, बड़ी हो जाया करती हैं यह मामला कानून को सौंप दिया जाता है।
कानून के भय का स्तर पुराने जमाने में अधिक था,पर अब स्थिती वैसी नहीं है।सकारात्मक प्रभाव से स्थिती को सही करने की जिद्द है।ऐसी कई एजेंसियां इस आधार पर काम कर रही हैं। कुछ मायनों में कारगर सिद्ध होता है कुछ में कहने भर...।
अतः भयावह रूप धारण करने से अच्छा आप उनके दोस्त बन कर बदलाव लाए व उसी रूप में समाज स्वीकारे तो ही अच्छा है।
                 - तरसेम शर्मा
              कैथल -  हरियाणा
अपराधियों में कानून का खौफ होना बहुत जरूरी है सरकार की नीति है कि प्रदेश की आम जनता की सुरक्षा के लिए अपराधियों में खौफ होना चाहिए कि उन्हें अपने किए गए अपराध की सजा अवश्य मिलेगी। अपराधियों को जेल भेजकर उनके लिए भय पैदा करना चाहिए जिससे कि वह आगे गलत कार्य ना करें और अपराधों से बचें। पुलिस की सभी सदस्य ईमानदारी व कर्तव्य परायणता से काम करके अपराधियों में भय पैदा करते हैं और जघन्य अपराधियों को एनकाउंटर भी करते हैं। जिससे अपराधियों में भय बना रहता है।
- पदमा तिवारी 
दमोह - मध्यप्रदेश
अपराध रोकने के लिए कानून का भय तो होना ही चाहिए वर्ना बेखौफ अपराध होंगे हां कानून के नियम में कुछ बदलाव आने चाहिए साथ ही कानून बनाने वाले स्वयं इस नियम को भंग ना करे !
भ्रष्टाचार के तहत नियम धरम सब धरे  रह जाते हैं ! दूसरा दण्ड तुरंत देना चाहिए देर होने से हिम्मत बढ़ जाती है ! बाकी कानून बनाने वाले स्वयं  रक्षक से भक्षक ना बने ! न्याय निष्पक्ष हो दें!
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
         अपराध की मानसिकता को कानून का भय ही रोक सकता है। किंतु देखने में आ रहा है कि अपराधिक मानसिकता इतनी प्रबल हो गई है कि कानून का भय भी समाप्त हो चुका है। 
       चूंकि चारों ओर देखने व सुनने में आ रहा है कि वहां दिनदहाड़े एक ने दूसरे को गोली मार कर मार डाला। पकड़े गए अपराधियों से देसी कट्टे बरामद हुए। जिनकी जांच-पड़ताल चल रही है। फिर मालूम होता है कि सामूहिक बलात्कार के बाद निर्मम हत्या।
       यह समाचार सुनने और पढ़ने पर कलेजा मूंह में आता है। लेकिन अपराधियों को अपराध करने से पहले न फांसी से डर लगता है और ना ही फर्जी इनकाउंटर से डरते हैं। देश भर में अपराध पर अपराध होते जा रहे हैं।
      उल्लेखनीय है कि इन सब अपराधों के पीछे भ्रष्टाचार का नशा है। जिसके सहारे अपराधिक प्रवृत्ति दिन दोगुना और रात चौगुना विकास कर रही है। जिसे रोकने की नई प्रक्रियाओं की जरूरत है।
      अतः सर्वप्रथम भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कड़े कानूनों को बनाने एवं उन्हें लागू कराने की इच्छाशक्ति को जागृत करने की आवश्यकता है। 
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू -  जम्मू कश्मीर
कानून का भय होना अतिआवश्यक है। अधिकांशतः देखा जाता है कि लोगों में कानून का डर ना होने के कारण किसी भी तरह का अपराध करने से कतई नहीं ‌डरते हैं और कानून का मज़ाक उड़ाते हुए कुछ भी ग़लत कर बैठते हैं।  कानून का सख्त होना अतिआवश्यक है तभी लोग कानून का महत्व समझेंगे और कुछ भी ग़लत काम करने के पहले दस बार सोचेंगे। हमारी न्यायिक व्यवस्था काफी पुरानी और जर्जर हो गई है।  आजकल अपराधीकरण दिन ब दिन नये तरीके और आधुनिकीकरण  के कारण बढ़ गये हैं। इसलिए नये कानून का प्रावधान अतिआवश्यक है, तभी हम ऐसे आधुनिक अपराधियों पर नकेल कस पाएंगे। कानून में  लोच रहने के कारण अपराधी जघन्य अपराध कर के भी अपने पैसे और पैरवी के बलबूते पर सजा मिलने पर भी तुरंत रिहा हो जाता है जिसका  बहुत हीं ग़लत  असर होता है हमारे पूरे समाज पर। इसलिए कानून का सख्त और कड़ा होना अतिआवश्यक है ताकि कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह का अपराध करने के पहले दस बार सोचें कि उसका परिणाम और प्रभाव उस पर कितना सख्त होगा।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
कानून को संशोधन करने  के बाद भी कई  अपराधिक मामले तूल पकड़ रहे हैं , चाहे दुष्कर्म के मामले हों या अन्य अपराधिक दिन व दिन बढ़ते दिखाई दे रहे हैं, आइयै जानते हैं कि इन सब को रोकने के लिए  क्या क्या कदम उठाने चाहिए, 
क्या कानून को सख्ती के साथ लागु करने की जरूरत है।
तो देखते हैं अपराध को रोकने के लिए कानून का भय कितना जरूरी है। 
अगर हम  विभिन्न  संगठनों से जुड़े लोगों की सुनें तो उनका कहना है कि कानून का भय समाप्त हो चुका है, 
जिसका कारण यह है कि अधिकतर लोगों के मन में यह रहता है कि जो होता है होने दो आगे मैनेज कर लेंगे इसका मतलब यही निकलता है कि लोगों के दिल से खौफ निकल चुका है, 
जब तक लोगों के अन्दर यह भय नहीं होगा कि गल्ती  करने पर सजा मिलनी तय है, तब तक  किसी भी कानून का कोई मतलब नहीं क्योंकी जब तक कानून का भय नहीं होगा तब तक कोई भी व्यवस्था पटरी पर नहीं आ सकती। 
कानून में संसोधन तो किया जाता है लेकिन जमीनी स्तर पर काम नहीं दिखता, क्योंकी विकृत मानसिकता बाले  व अन्य लोगों से  दुष्कर्म व दुसरी अपाराधिक बातें आना ही यही दर्शाता है कि उन्हें कानून का डर नहीं है। 
अगर ऐसे लोगों को जल्द से जल्द सजा सुना दी जाए तो उन के मन में अपने आप ही डर पैदा होने लगेगा और कई किस्म के अत्याचार खत्म होनें लगेंगे। 
जब दुष्कर्म जैसे मामलों की सुनवाई जल्दी होगी व कढ़ी से कढ़ी सजा दि जाएगी तो  दुष्कर्मी  के मन में डर पैदा  होने लगेगा और वो ऐसा काम करना छोड़ देंगे। 
यह जरूरी भी है क्योंकी जिस समाज में छोटे से छोटे बच्चे तक  असुरक्षित हो जाएं वह समाज कैसे विकास कर सकता है। 
यही नहूं समाज को अपराध मुक्त कराने के लिए जरूरी है शिक्षा में चरित्र निर्माण पर विशेष जोर दिया जाए व जनता की मूल समस्याओं का समाधान शीघ्र से शीघ्र किया जाए व अपराधी को जल्द से जल्द सजा देने की व्यवस्था की जाए तथा अपराधियों के  बिरूद जीरो टालरेंस की नीती अपनानी चाहिए क्योंकी कानून का भय होगा तो घटेंगे अपराध। इसलिए अपराध के रोकने के लिए कानून का भय अति आवश्यक है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अगर अपराधों की सूची देखी जाय तो वह काफी लम्बी है ।अपराधी अपराध करने के रोज नये तरीके खोजता है ।और पकड़े जाने पर उसे छूटने की भी अनेक उपाय उपलब्ध हैं । अपराधियों को रसूकदार नेताओं का भी संरक्षण प्राप्त होता  है ।कानून इतना कड़ा और कानून पालन में सफाई  हो जिसके ख्याल से ही अपराधी की  रुह काँप जाय ।तभी अपराध में कमी आयेगी ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश

           अपराध को रोकने के लिए सरकार द्वारा कानून बनाया गया।लेकिन उसके नागरिकों को संविधान व कानून की सम्यक जानकारी न होने के कारण अपराध पर पूर्ण नियंत्रण नहीं हो सका इसके लिए कोई एक घटक या कानून में दोष नहीं है।
           कानून का भय पूर्ण काम करेगा अगर अपराधी को निष्पक्ष व पारदर्शिता के साथ उचित दंड दिया जाए।लेकिन रसूख,राजनीति,सबूत अभाव,पीड़ित का सामने न आना  और कानून की लंबी प्रक्रिया के कारण व्यक्ति कानून से भय भीत नहीं होता।और अपराध सिर्फ कानून का भय दिखाने या सिर्फ पुस्तक में लिखे रहने के लिए नहीं होना चाहिए।प्रत्येक नागरिक को उसके प्रति सरकार द्वारा जानकारी देकर जागरूक किया जाए ।
           प्रत्येक व्यक्ति अपराध के बारे में और दंड विधान के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए तभी अपराध पर अंकुश लगाया जा सकता है।और अन्य उपाय जैसे अपराधियों का मनोवैज्ञानिक उपचार किया जाए।समाज को जागरूक किया जाए।शिक्षकों द्वारा बच्चों के चरित्र निर्माण पर विशेष जोर दिया जाए।नशीले पदार्थो की रोकथाम सरकार द्वारा की जाए।
           अतः अपराध को रोकने में कानून में संशोधन कर अतिशीघ्र न्याय दिलाने की व्यवस्था होनी चाहिए।तभी अपराध को रोका जा सकता है।प्रतिं हजारों अपराध होने पर न्याय सिर्फ कुछ ही लोगों को मिलता है।बाकी सब न्याय को खरीद लेते है।रसूखदार केस दर्ज होने पर भी पूरा जीवन निर्भय होकर व्यतीत कर लेते है। इसलिए  कानून का सिर्फ भय दिखाकर अपराध नहीं रोका जा सकता है।
    - सुरेंद्र सिंह
अफ़ज़लगढ़ - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " अपराधियों के लिए समय के अनुसार सख्त कानून की आवश्यकता है । जिससे अपराधियों में कानून का भय पैदा हो सके । वर्तमान में सख्त कानून से ही अपराध को कम किया जा सकता है । 
 - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान



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