क्या विदेशी चंदे पर रोक लगनी चाहिए ?

विदेशी चंदे का उपयोग गलत ढंग से होने लग गया है । जिस के कारण से  विदेशी चंदे पर सवाल उठना वाजिद हो गया है । ऐसे में लोगों की सोच मे  परिवर्तन जरूरी है । क्यों कि विदेशी चंदा आतकंवाद जैसी गतिविधि में साबित हो रहा है । जो किसी भी देश के लिए उचित नहीं है । यही सब कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
      बिल्कुल विदेशी चंदे पर रोक लगनी चाहिए और माननीय उच्चतम न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। ताकि विदेशी चंदा भारतीय राजनीति को प्रभावित न कर सके।
      उल्लेखनीय है कि भारतीय राजनीतिज्ञ दिन दुगनी और रात चौगुनी उन्नति करते हैं। वह दिन प्रति दिन अमीर हो जाते हैं। जिनके पीछे अन्य कारणों के साथ-साथ विदेशी चंदा भी एक अद्वितीय कारण है। अन्यथा साधारण व्यक्ति चुनाव लड़ने के लिए सम्पूर्ण जीवन इतना धन एकत्रित ही नहीं कर सकता। जितना एक राजनीतिज्ञ एक चुनाव में खर्च कर देता है और पांच वर्ष बाद फिर चुनावी अखाड़े में आकर डट जाता है।
      वरना जिसे एक बार करारी हार मिली हो वह तो कानों को हाथ लगा कर तौबा कर ले। किंतु वह राजनेता बार-बार चुनाव लड़ता है और हार कर भी सम्पन्न हो जाता है।
      चूंकि उसे जीतने वाला प्रत्याशी विदेशी चंदों से मिले धन के बल पर खरीद लेता है। अतः शुद्ध राजनीति के लिए विदेशी चंदे पर सम्पूर्ण रोक लगनी चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
''पिता की दौलत पर क्या घमंड करना, 
मज़ा तो तब है..जब दौलत अपनी हो और घमंड पिता करे.''
एक बच्चा अपने पिता की दौलत को अनाप-शनाप उड़ाता रहता था, पिता कब तक ''नेकी कर, दरिया में डाल'' पर विश्वास करके चुप रहता! एक दिन उसने बेटे को कड़ाई से एक रुपया कमाकर लाने को कहा. बड़ी मेहनत से वह एक रुपया कमाकर ला पाया. पिता ने उसको वह रुपया कुंएं में डालकर आने को कहा. बच्चे की मायूस शक्ल देखने वाली थी! वह मेहनत की कद्र समझ गया था.
ऐसा ही हाल विदेशी चंदों का भी होता है. विदेशी चंदे लेकर व्यर्थ की टीमटाम, धरने-तोड़फोड़, हड़तालें-हुजूमे करवाना आसान होता है, क्योंकि वह अपना पैसा नहीं होता है. इससे देश-हित और जान-माल की हानि तो होती ही है, साथ ही विदेशी चंदा लेने वाले राजनीतिक दल विदेशों के पिट्ठू और गुलाम बन जाते हैं. कालांतर में ये ही विदेशी देश के बेखौफ आक्रांता बन जाते हैं, क्योंकि उनको चंदे के एवज में देश के राजनीतिक दलों की आंतरिक सहायता मिल जाती है.
राजनीतिक चंदे का नियमन करने के लिए जितने कानून बने हैं, उससे अधिक उन कानूनों के तोड़ भी बने हैं. नतीजा वही, ढाक के तीन पात! इसलिए बेहतर है, कि विदेशी चंदे पर रोक लगाई जाए. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी!
- लीला तिवानी 
दिल्ली
लोकतंत्र में आस्था रखने वाले हर नागरिक चाहेंगे विदेशी चंदे पर रोक लगनी चाहिए। 
यहां तक सुप्रीम कोर्ट की नजर भी इस पर गई है। 
तभी सभी राजनीतिक दल सत्ता पक्ष या विपक्ष मिलकर विदेशी चंदा नियमन कानून 2018  में संशोधन कर दिए क्योंकि 2019 में आम चुनाव होने से पूर्व राजनीतिक दलों के पास आ रहे धन का नियमन एवं नियंत्रण जरूरी न रहे।
देश के हर नागरिक चाहते हैं,
इसे पूरी तरह से कैसे खत्म किया जाए इस पर ठोस कार्रवाई की अपेक्षा है।
 लोकतंत्र की बड़ी विसंगति है यह समस्या उस काले धन को लेकर है, जो चुपचाप दलों को या उम्मीदवारों को पहुंचाया जाता है। यानी व काला धन जिससे देश के बड़े आयोजन चलते हैं।
लेखक का सवाल:- 2016 मैं बने विदेशी चंदा कानून में संशोधन की जरूरत क्यों पड़ी?
पहले नियम से घरेलू चंदा 20000/-अधिक देने पर नाम बताना पड़ता था चंदा दाता अपना नाम दल विशेष के साथ नहीं जोड़ना चाहते हैं।
जब सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे चंदे की वैधता जांच करने के आदेश दिए तो राजनीतिक दल मिलकर नियम ही बदल डाले।
इसलिए आज चुनाव होने वाले खर्च लोकतंत्र की एक बड़ी समस्या है।
सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता से यह मुद्दा गरमाया है तो इसका निष्कर्ष लोकतंत्र को मजबूत करने की आधार बनना है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
जनप्रतिनिधित्व कानून जिसमें चुनाव के बारे में नियम बनाए गए हैं राजनीतिक दलों को विदेशी चंदा लेने पर रोक लगाता है।राजनीति में काले धन को कम या पूरी तरह से कैसे खत्म किया जाए इस पर ठोस कार्रवाई की अपेक्षा है। लोकतंत्र की एक बड़ी विसंगति उस धन को लेकर है जो चुपचाप बिना किसी लिखा- पढ़ी के दलों के नेताओं को पहुंचाया जाता है और उस काले धन से देश के बड़े आयोजन चलते हैं -राजनीतिक रैलियां, सभाएं, चुनाव प्रचार होता है।
 यह चंदे का मामला 1976 से शुरू हुआ। पहले विदेशी चंदा लेने पर पूरी तरह रोक लगा दी गई थी पर 2010 में इस कानून में संशोधन कर इस रोक को खत्म कर दिया गया। आज चुनाव में होने वाले खर्च लोकतंत्र की एक बड़ी समस्या बन गई है। राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाकर ही समस्या का समाधान हो सकता है। किसी भी कीमत पर चुनाव जितना आज राजनीतिक पार्टी का ध्येय बनता जा रहा है।
 कंपनियों के लिए राजनीतिक चंदा दे सकने की भी एक कानूनी सीमा तय है। राजनीति करने वाले सामाजिक उत्थान के लिए काम नहीं करते सिर्फ वोट की राजनीति करते है। राजनीतिक चंदे के नाम पर लोकतंत्र को दूषित करने की कोशिशों पर विराम लगाना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता से मुद्दा गरमाया है अब इस लोकतंत्र को मजबूत बनने का एक रास्ता भी दिखाई दे रहा है। कोर्ट ने आदेश जारी किया है कि ऐसे सभी दल जिनको चुनावी बांड के जरिए चंदा मिला है वे सील कवर में चुनाव आयोग को ब्यौरा देंगे ।चुनावी बांड राजनीतिक दान के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए बड़ा कदम है।
इस दिशा में सख्त और ठोस कदम उठाने की अति आवश्यकता है।
                             - सुनीता रानी राठौर 
                    ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
           नहीं,विदेशी चंदे पर रोक नहीं लगनी चाहिए।क्योंकि यह विभिन्न राजनीतिक दलों,संस्थाओं और एनजीओ को प्राप्त होता है जो किसी न किसी रूप में जनहित में ही काम आता है। केंद्र सरकार के नियमो के अधीन ही यह प्रक्रिया संचालित होती है लेकिन नियमो और कानून को ताक पर रखकर जिस प्रकार विदेशी चंदे के बल पर देश को अस्थिर करने व हिंसा को बढ़ावा देने के प्रयास सामने आ रहे है तो निश्चित रूप से कठोर कार्यवाही की आवश्यकता है।
           अब तक विदेशी चंदे का खेल एक मोटी रकम प्राप्त कर उसकी हेरा - फेरी करने तथा भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में ही अधिक हुआ है।अब तक इसमें कहीं न कहीं सरकार की शिथिलता और दृढ़ इच्छा शक्ति की कमी रही है। 
            अतः सरकार को विदेशी चंदे के हिसाब - किताब की जांच करने के लिए नए संशोधित नियम बनाने चाहिए।तभी उसके दुरुपयोग को रोक कर जनहित में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- सुरेंद्र सिंह
अफ़ज़लगढ़ - उत्तर प्रदेश
विदेशी चंदा अर्थात फंड पैसा  चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियां इसका इस्तेमाल करती हैं । विदेशों से यह चंदा इन पार्टियों को, संगठनों को मिलता है । 
विदेशी चंदा लेने से संबंधित नियम और कानून भी बनाए गए हैं । जहां इन नियमों की अवहेलना  , कानून की उपेक्षा होती है वहां भारत सरकार ने लगभग 9000 ऐसे गैर सरकारी संगठनों का लाइसेंस रद्द भी किया है जिन्होंने पिछले 3 वर्षों में अपने वार्षिक वित्तीय रिटर्न भी दाखिल नहीं की है । 
गृह मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 8975 संगठनों के विरुद्ध विदेशी चंदा (विनियम )अधिनियम एफसीआर 2010 और उसके अधीन बने विदेशी चंदा (विनियम) नियम 2011 के अंतर्गत संगठनों के विरुद्ध  कार्यवाही  केवल कागजों तक ही सीमित रही  ।एक साथ इतनी बड़ी संख्या में संगठनों के विरुद्ध इस प्रकार की सख्त कार्रवाई नहीं की गई है ।    
यह कानून मूल रूप से विदेशी चंदा और विदेशी खातिरदारी को नियंत्रित करता है जिसमें चंदा और खरीदारी स्वीकार करने संबंधी पात्रता और अनुमति संबंधी नियम बनाए गए हैं  । 
कुछ ऐसे भी संगठन है जो विशेष सामाजिक कार्य में लगे हुए होते हैं ये संगठन पंजीकरण के बाद चंदा ले सकते हैं । इसके अलावा यदि हम राजनीतिक पार्टियों की मानसिकता का ध्यान करें तो सभी विदेशी चंदे की पक्षधर हैं । दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे विदेशी चंदे के केस में बचने के लिए केंद्र ने वित्त विधेयक में 40 साल पुराने कानून को बदलने का प्रस्ताव रखा है । इसमें विपक्षी पार्टी का भी उसे समर्थन मिल रहा है ।
 मौजूदा सरकार ने फरवरी 2016 में एफसीआरए एक्ट (2010) में संशोधन किया । इसमें क्लॉज यह जोड़ा गया कि कोई भी ऐसी विदेशी कंपनी जिसकी भारत में शाखा या इकाई हो और उसमें 50 फ़ीसदी से ज्यादा भारतीय हिस्सेदारी हो तो वह भारतीय राजनीतिक पार्टियों को फंड दे सकती है ।  सरकार के विचार अनुसार विदेशी चंदा लेने का रास्ता खुल गया लेकिन हाईकोर्ट ने एफसीआरए एक्ट (1976) के तहत दोषी करार दिया था । कोर्ट भले ही विदेशी चंदे पर रोक लगाए परंतु राजनीतिक पार्टियां चाहे सत्ता में हो चाहे सत्ता के बाहर विदेशी चंदे की हमेशा पक्षधर रही है भविष्य में भी रहेंगी। 
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
विदेशी चंदा यदि गलत कामों में प्रयोग होता है तो उस पर रोक लगनी चाहिए। आजकल चंदा गलत कामों में ही प्रयोग हो रहा है। पहले सही कार्यों के लिए इकट्ठा किया जाता था लेकिन अब तो यह गलत कार्य में ही ज्यादा प्रयोग होता है। आतंकवाद को फैलाने में विशेष रूप से इसका प्रयोग हो रहा है। जातिगत दंगे फैलाने के काम में प्रयोग हो रहा है। नवीनतम घटना हाथरस की इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कैसे विदेशों से चंदा इकत्रित हुआ था दंगा फैलाने के लिए। इस तरह से तो विदेशी चंदा बंद होना ही चाहिए।
            कुछ देर के लिए हम मान ले कि विदेशी चंदा से विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ेगा । लेकिन इसका प्रयोग जब गलत कार्यों के लिए होगा तो भंडार बढ़ा के क्या होगा। ज्यादा नुकसान ही हो जाएगा।
       इसलिए विदेशी चंदे पर रोक लगनी ही चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश'' 
कलकत्ता - प. बंगाल
 दो हज़ार दस  में एक कानून बनाया गया था ,  जिसे संशोधित विदेशी चंदा नियमन कानून कहा जाता था| इस कानून के अंतर्गत राजनीतिक पार्टियों को विदेशों से चंदा लेने पर रोक लगाई गई थी| फिर एक कानून 2016 में बना जिसमें इन दलों के लिए विदेशी चंदा लेना शुरु    कर दिया गया था यह इसलिए कि 1976 से लिए जा रहे चंदे की जांच करने को समाप्त कर दिया गया|
आजकल यह मुद्दा पुन: उठाया गया है| मेरे विचार में विदेशों से चंदा लेने पर रोक लगनी चाहिए बेशक कोर्ट ने इसकी अनुमति दे दी है| विचारणीय है  कैसे इस चंदे  रूपी काले धन को समाप्त किया जाए |यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है क्योंकि यह धन बिना किसी प्रमाण  के दलों के नेताओं को, उम्मीदवारों को पहुंचाया जाता है| इससे रैलियां,  चुनाव, मतदाताओं  को प्रलोभन देना व  अन्य बड़े आयोजन किए जाते हैं परिणाम स्वरूप चंदे का या काले धन की वापसी जनता के पैसे से की जाती है |
अतः चंदा लेने वाले ट्रस्ट समाप्त होने चाहिए| इतना तो हो गया है कि चंदा लेने व देने वाले का नाम बताना जरूरी हो गया है| लेकिन यह तो समय ही बताएगा  कि कितना सुधार हुआ है | क्योंकि इस प्रकार चंदा लेने की समस्या लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है |  और अगर कानून इसकी छूट देता भी है तो  इस राजनीतिक चंदे को पारदर्शी बनाना चाहिए ताकि समस्या का पूर्णतया समाधान हो सके| क्योंकि चुनाव आदि  स्वतंत्र  व निष्पक्ष  होने चाहिए | तभी जनता  के लिए व देश के लिए  कुछ किया जा सकता है |इसलिए मेरे विचार में तो इन राजनीतिक चंदों  पर रोक लगनी चाहिए| किसी नेता को यह  हक नहीं होना चाहिए  कि वह नेता बनने के लिए विदेशों से चंदा ले , मतदाताओं को भ्रमित करें, चुनाव लड़े, रैलियां करें  इत्यादि| क्योंकि इन सब कार्यों को करने वाला व्यक्ति कभी  देश हित के लिए नहीं सोच सकता | ऐसे व्यक्ति को नेता बनने का भी कोई अधिकार नहीं है| चंदा लेना तो दूर की बात है| ऐसे क्रियाकलापों के विरुद्ध जनता को आवाज उठानी चाहिए  ताकि ऐसा कोई कानून न बने  उससे कोई नेता या राजनीतिक पार्टी लाभान्वित हो
 लेकिन हमें समझना चाहिए कि यदि  इस चंदे का उपयोग जनता के लिए नहीं किया  जाता तो  इस प्रकार के चलन से लोकतंत्र को दूषित किया जाता है अत:  इस पर रोक लगनी चाहिए|
  क़ानून कोई भी बनाया गया हो, एक बात ध्यान में रखनी अनिवार्य है कि हर कानून लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए बनाया जाना चाहिए|
 - चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
भारत में सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय अनगिनत गैर-सरकारी संस्थाएं जिन्हें एनजीओ भी कहा जाता है या कुछ धार्मिक-सामाजिक संस्थाएं अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विदेशों से चन्दे की कामना रखती हैं।  चन्दा देने वाली विदेशी संस्थाएं ऐसी किसी भी संस्था को चन्दा देने से पूर्व उसके बारे में विस्तार से जानना चाहती हैं।  जब तक कि विदेशी संस्थाएं पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं हो जातीं वे चन्दा देने की प्रक्रिया आरंभ नहीं करतीं।  यदि विदेशी संस्था संतुष्ट हो जाती है तो आयकर विभाग और रिजर्व बैंक आफ इंडिया द्वारा पूर्ण तहकीकात के बाद चन्दा भेजने की स्वीकृति मिलती है और नियमों के अनुसार चन्दा भेजा जाता है और उसके समय-समय पर प्रयोग की पूरी रिपोर्ट इन सभी संस्थाओं को भेजनी पड़ती है। विदेशी चन्दे की राशि इतनी अधिक होती है कि कुछ भ्रष्ट और लालची लोग झूठे दस्तावेज पेश कर चन्दा लेने की कोशिश करते हैं और संभवतः कुछ लोग सफल भी हो जाते होंगे। यह एक अपराध है। इसके अलावा राजनीतिक पार्टियों को भी विदेशों से चन्दा मिलता है। पर हर ऐसी प्रक्रिया में पारदर्शिता जरूरी होती है। आपसी मिलीभगत के कारण जब ऐसा नहीं हो पाता तो संदेह होने पर सरकारी तंत्र सक्रिय हो जाता है और उक्त संस्था को मिलने वाले विदेशी चंदे पर न केवल रोक लगती है, उसे ब्लैक-लिस्टेड कर दिया जाता है तथा पूरी जांच पड़ताल होने के बाद दोषियों को कानूनन सजा भी मिलती है। विदेशी चंदा अनेक सामाजिक संस्थाओं के उद्देश्य प्राप्ति में सहायक होता है अतः उस पर रोक नहीं लगानी चाहिए क्योंकि रोक लगाने से समाज का जरूरतमंद वर्ग सहायता से वंचित रह जायेगा। यदि विदेशी चंदे का प्रयोग राजनीति में गलत कार्य के लिए हो रहा है तो उस पर रोक अवश्य लगे।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
विदेशी चंदे पर रोक लगनी चाहिए क्योंकि यह देश हित के लिए बहुत ही जरूरी है। भारत में विदेशी चंदे का दुरुपयोग एनजीओ वाले बेखौफ कर रहे हैं। यह बात जांच के बाद सरकार के सामने भी आई है। विदेशी चंदे से एनजीओ वालों द्वारा राष्ट्रहित के विरोध में जैसे आतंकवाद, नक्सलवाद, संप्रदायिक दंगा भड़काने और देश में अस्थिरता पैदा करने का काम किया जा रहा है। भारत सरकार ने लगभग 302 एनजीओ यानी कि गैर सरकारी संगठन की मान्यता उन्हें दोषी पाए जाने पर रद्द कर दी है। केंद्र सरकार की नियमों की अवहेलना कर विदेशों से भारी मात्रा में चंदा लेने वाले एनजीओ केंद्रीय गृह मंत्रालय के रडार पर आ गए हैं। यह एनजीओ उत्तर-पूर्व के राज्यों में चल रहे हैं। जांच एजेंसी को शक ही नहीं बल्कि उनके पास प्रमाण भी है कि यह संगठन कथित तौर पर दूसरे देशों से पैसा लेकर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में उसका इस्तेमाल कर रहे हैं। केंद्र सरकार की चेतावनी को नजर अंदाज कर चंदा लेने वाले 72 एनजीओ को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है। इसके अलावा 302 गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उनकी मान्यता रद्द कर दी गई है। कई एनजीओ के खिलाफ केंद्र सरकार ने वित्तीय जांच बैठा दी है। विदित हो कि कुछ वर्षों में कई एनजीओ जो कि विदेशों से चंदा ले रहे हैं उनका कथित तौर पर गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। जांच में सामने आया है कि कुछ एनजीओ को मिले चंदू को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संचालित हो रहा है ऐसे दर्जनों मामले जम्मू कश्मीर में भी सामने आए थे। उत्तर पूर्वी राज्यों के भी ऐसे एनजीओ देखे गए हैं जिनका सीधा संबंध गैरकानूनी कार्यों को अंजाम देने वाले संगठनों के साथ रहा है। खुफिया जांच एजेंसी सरकार को सतर्क किया था कि सामाजिक और शैक्षणिक संगठनों की आड़ में दर्जनों एनजीओ विदेशी चंदे का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं। जब सरकार ने इनके दस्तावेज मांगे तो कई संगठनों ने इसका जवाब नहीं दिया और विवेक खुद ही शक के घेरे में आ गए। जो जानकारी मांगी गई थी उसे नहीं दिया गया। दर्जनों संगठन ऐसे हैं जो सरकार के प्रश्न का जवाब देना भी उचित नहीं समझे, जबकि नियम है कि विदेशी चंदे का सारा रिकॉर्ड सरकार को देना है। इसमें हर वर्ष वार्षिक रिटर्न, आय व्यय का विवरण प्राप्तियों, भुगतान का लेखा जोखा व बैलेंस शीट आदि प्रस्तुत ना करना एफसीआरए 210 और 211 के प्रावधानों का उल्लंघन है। जिन एनजीओ का सरकार द्वारा मान्यता रद्द हुआ है उनमें असम के 64 मणिपुर के 154 नागालैंड के 33 त्रिपुरा के साथ मेघालय के 21 मिजोरम के 12 और अरुणाचल प्रदेश के 11 एनजीओ शामिल है। ऐसे हालात में देश हित में विदेशी चंदे पर रोक लगाना है उचित होगा।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
विदेशी चंदे पर जरूर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि यह चंदा अच्छे कामों में कम और बुरे कामों में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है | जैसा की अभी आपने हाथरस कांड के बारे में सुना है और जो रिपोर्ट आई है उसमें यह कहा गया है कि हाथरस का जो कांड था उसमें जो दंगा भड़काने के लिए बाहर से फंडिंग हुई थी जिसमें कि ₹50 करोड़ इंडोनेशिया से आया था और ₹50 करोड़ अन्य अन्य जगहों से आया था, इन पैसों का इस्तेमाल देश में हिंसा फैलाने और उपद्रव मचाने और तोड़फोड़ करने और धर्मों के बीच में लड़ाई करने में इस्तेमाल किया जाता है | हमारे देश के जो नौजवान आतंकवादी बन जाते हैं उनको भी इसी तरीके से आतंकवादी बनाया जाता है बाहर से फंडिंग होती है जो लोग बाहर वाले लोगों से मिले हुए रहते हैं उस पैसों को फिर इसमें इस्तेमाल किया जाता है, और यह बाहर का आया हुआ पैसा देश के लिए काफी नुकसानदायक साबित होता है दूसरे देश के लोग चंदा इसीलिए ही देते हैं ताकि दूसरे देशों में हिंसा फैलाई जा सके मेरा मत यही है कि इस पर पूर्णता रोक लगनी चाहिए ताकि आने वाले भविष्य में कोई भी घटनाएं ना हो | 
 - रजत चौहान
 जिला बिजनौर - उत्तर प्रदेश
           चंदा मांगना कोई अच्छी बात नहीं है। उससे स्वयं की छवि धूमिल होती है। संपूर्ण राष्ट्र की छवि को उसके अस्तित्व को ठेस पहुंचती है। उस पर रोक लगाई जाना बहुत जरूरी है। देश को अपने संसाधनों को विकसित करना चाहिए और उसके द्वारा अपना आय स्रोत बढ़ाना चाहिए। आत्मग्लानि के साथ जीने से अच्छा है स्वाभिमान के साथ जीना।
 चंदा भी एक तरह से भीख ही है। नाम परिवर्तन से क्या फर्क पड़ता है? कार्य तो वही है।
       विदेश से चंदा लेना अर्थात संपूर्ण राष्ट्र की  इज्जत को दांव पर लगाना है जो कतई उचित नहीं है। राष्ट्र गरिमा बनाए रखने के लिए देश में ही प्रौद्योगिकी तथा संसाधनों का विस्तार एवं विकास होना चाहिए।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
     भारतीय अर्थव्यवस्था विदेशी चंदे के ऊपर निर्भर हैं। जिसके कारण जनजीवन के साथ ही साथ जीवन यापन कर जीवित अवस्था में हैं। शासन-प्रशासन, राजनीतिक दल आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हैं। विदेशी चंदों के कारण ही, एक पक्षीय कार्यवाही करने में सक्षम नहीं हैं। पूर्व में विदेशी चंदे विधेयक का काफी विरोध हुआ। अन्ततः ध्वनिमत से पारित कर दिया हैं। जिसका स्वयं सेवी संस्थाओं ने कम से कम विरोध तो प्रकट किया। बैंकिंग का भी वही हाल हैं? यह हमारे देश की व्यवस्था हैं। कब तक विदेशी चंदे तंत्र के ऊपर निर्भर करते रहेंगे। भविष्य में देश 22 वीं सदीं की ओर अग्रसर होगा और क्या भावी पीढ़ियां भी ऐसे ही विदेशी चंदों का स्वागत करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होगा। अब समर आ चुका हैं, पूर्णतः विदेशी चंदे पर रोक लगनी चाहिए? तभी भारत पूर्व की भांति सोने की चिड़िया कहलाने वाला होगा?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
विदेशी चंदा अधिनियम क़ानून दायरे में चंदा और विदेशी
खातिरदारी को नियमित करता है जिसमें चंदा स्वीकार करने संबंधी पात्रता और अनुमति संबंधी नियम बनाये गये हैं l 
       विशेष सामाजिक संगठन पंजीकरण के बाद चंदा ले सकते हैं इसके लिए गृहमंत्रालय भारत सरकार अनुमति देती है l विदेशी चंदा अधिनियम 2020 में संशोधन इसके दुरूपयोग को देखते हुए किया गया l एफ सी आर ऐ के तहत आने वाले संगठनों को विदेशी फंड का 20% से ज्यादा प्रशासनिक खर्च में नहीं प्रयोग करेंगे l यह राशि पहले 50% थी तथा पदाधिकारियों का आधार नंबर अनिवार्य किया गया l लोकसेवक ऐसे चंदे को स्वीकार नहीं कर सकेंगे l उपर्युक्त संशोधन द्वारा पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित की गई l 
       चंदा चाहें स्वदेशी हो या विदेशी,  लोक कल्याण की भावना से लिया गया हो तथा भारत के राजनैतिक, सार्वजनिक विमर्श पर हावी न हो तो रोक नहीं लगनी चाहिए l लेकिन विडंबना यह है कि केंद्र सरकार को वर्ष 11 से 19 के मध्य 19000 से अधिक एनजीओ द्वारा विदेशी धन का दुरूपयोग करने पर पंजीकरण रद्द किये गये l संभावना है कि अधिनियम 2020 इस प्रकार की गतिविधियों पर अंकुश लगाएगा l लेकिन कुछ अनसुलझे प्रश्नों का जवाब आना ही चाहिए l 
1. राजनर्तिक दल /संगठन आदि विदेशी फंडिंग के स्रोत बताना क्यों नहीं चाहते? 
2. राजनैतिक दल आर टी आई के दायरे में क्यों नहीं आना चाहते? 
3. क्यों नहीं चुनाव से संबंधित राजनैतिक निर्णयों को छोड़कर राजनैतिक दलों के सभी प्रशासनिक फैसले व उनको मिलने वालीफंडिंग सार्वजनिक होनी चाहिए l लेकिन प्रश्न तो यह है कि पहल कौन करे? 
पार्टियों के चुनाव में भ्र्ष्टाचार, चंदा और काला धन ही लगता है तो इस प्रकार धन संग्रह पर रोक लगनी ही चाहिए और यदि चंदा लोककल्याण की भावना से लिया जाता है और उसी के अनुरूप व्यय किया जाता है तो उस पर रोक कभी नहीं लगनी चाहिए l 
          चलते चलते ------
मंदिर भी साफ हमने किये, 
मस्जिदें भी की पाक l 
मुश्किल तो यह है कि 
एक बिल की  सफाई हो न सकी हमसे l 
यदि मन का आँगन बुहार कर हमने चंदा लिया है तो 
उस पर रोक का डंडा नहीं चलाया जाये l
       - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
आज की चर्चा में जहाँ तक यह प्रश्न है की क्या विदेशी चंदे पर रोक लगनी चाहिए तो इस पर मैं कहना चाहूंँगा विदेशों में बहुत से भारतीय भी रहते और यदि वह अपने देश के हित के लिए कुछ ऐसी संस्थाओं को चंदा देते हैं जिनका उपयोग शत प्रतिशत देशहित और लोक कल्याण के कार्यों में किया जाता है तो इस प्रकार के चंदे से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए हां यदि इस तरह का चंदा किसी ऐसे काम में उपयोग में लाया जाता है जिससे किसी भी तरह का अहित होता है देश का नुकसान होता है लोक कल्याण में बाधा पहुंचती है या उसका उपयोग किसी गलत कार्यों में किया जाता है तो इस पर पूरी तरह रोक लगा दी जानी चाहिए और इस तरह का पैसा देश में बिल्कुल नहीं आना चाहिए बहुत-बहुत धन्यवाद
 - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
भारत में कड़े प्रावधानों वाला विदेशी चन्दा संसोधन कानून संसद के दोनों सदनों ने पास कर दिया है, 
विदेशी चन्दें पर निर्भर एनजीओ और स्वयंसेवी संस्थाओं ने  इस  कानून को मानवाधिकारों और समाजिक व्कास के लिये निर्णायक झटका वताया है। नये प्रावधानों के मुताबिक विदेशी चंदे के लाभर्थी एनजीओ को अपने सभी पदधिकारीयों के आधारकार्ड जमा कराने होंगे कि किस वजह से चंदा मिला है उसी में खर्च करना सुनिचित करना होगा। 
केन्द्र सरकार के पास यह निर्णायक अधिकार होगा कि कौन से संगठन को विदेशी फंड मिलना चाहिए और किस एनजीओ पर फंड की रोक लगानी चाहिए। 
भारत सरकार के पास लगभग इस समय देश में विदेशी चंदा हासिल करने वाले २२४४७एनजीओ पंजीकृत हैं, इसलिए यह सुनिश्चत करना चाहिए चंदा पाने वाले दल से इसका ब्योरा लेकर पारदर्शिता बरतनी चाहिए। 
यही नही मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता में याचिका पर सुनवाई हो रही है तथा याचिकाकर्ताओं ने  मांग की है कि चुनावी ब्रांड जारी होने पर कुछ वक्त के लिए रोक लगानी चाहिए ताकी मौजूदा चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती जा सके। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
फंडिंग क्यों और कहां से आ रही है, किसके लिए आ रही है ये मायने रखता है। बहुत सारे सामाजिक सरोकारों के लिए जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला उत्थान के लिए कई विदेशी संस्थाएं मसलन माइक्रोसाॅफ्ट का 'प्रथम',यूनिसेफ इत्यादि फंड देते हैं जो नितांत आवश्यक है। विश्व बैंक और अन्य बड़ी संस्थाएं पूरे विश्व में जरूरतमंद देशों को फंड मुहैया कराती हैं , हमारे भारत देश को भी ,जो नितांत आवश्यक है।इसे बंद करना उन देशों के लिए घातक हो सकता है और ये मानवता के विरुद्ध है। सरकारों को ये सुनिश्चित करना होगा कि टेरर फंडिंग न हो और इस पर अंकुश लगाने के लिए कठोर से कठोर नियम बने।टेरर फंडिंग और अन्य अवांछित तत्वों द्वारा फंडिंग पर पूरी तरह रोक लगे और कानून में उनके लिए कठोर सज़ा का प्रावधान हो।
एक और बात,बहुत सारी एनजीओ भी अवांछनीय फंडिंग को बढ़ावा देती हैं। सरकार को ऐसे एनजीओ को इंगित कर उसके कार्यकलापों पर अंकुश लगाने का काम बहुत कठोरता से करना चाहिए।
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
विषय है क्या विदेशी चंदे पर रोक लगानी चाहिए
भिन्न-भिन्न एनजीओ के माध्यम से विदेशी चंदा इकट्ठा किया जाता है साथ ही साथ राजनीतिक दलों में भी विदेशी चंदा प्राप्त होते रहते हैं यहां पर दो मुख्य बात है यदि चंदा प्राप्त होते हैं जिस उद्देश्य के लिए वह काम पूरा होना चाहिए लेकिन व्यवहारिक तौर पर यह देखा जाता है चंदे द्वारा इकट्ठा किए हुए धन का दुरुपयोग सबसे अधिक होता है उद्देश्य पर 10 से 20 प्रतिशत ही खर्च होता है बाकी अन्य व्यक्तिगत सुविधाओं पर खर्च किए जाते हैं और जिनका मूल्यांकन भी कुछ गलत ही तरीके से किया जाता है तो विदेशी चंदा का दुरुपयोग होना बिल्कुल ही गलत है या तो चंदा देने वाले पर रोक लगाया जाए और नहीं तो खर्च करने वाले पर शख्ती रखा जाए वर्तमान समय में बहुत ऐसे एनजीओ हैं जिनका के मुख्य काम ही सिर्फ होता है चंदा इकट्ठा करना और वर्क काम जो होते हैं वह सिर्फ कागजी पन्नों पर ही होते हैं जिसकी कोई देखरेख करने वाला इमानदारी से नहीं होता है वैसे समय में थोड़ी तकलीफ तो जब अवश्य होती है कितना ज्यादा बेईमानी इंसान में छाया हुआ है इसे रोकने के लिए कोई न कोई तो उपाय करना ही पड़ेगा
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज कोई राजनीतिज्ञ या राजनीति दल सभी वोट बैंक मजबूत करने में लगे हुए हैं लोकहित राष्ट्रहित सर्वोपरि नहीं रहा बस वोट बैंक मजबूत करने के सभी हथकंडे अपनाए जाते हैं और आम जनता को प्रलोभन दिया जाता है
उसके लिए प्रचार प्रसार सभी प्रकार से धन को खर्च किया जाता है और सत्ता में आने के बाद उन्हें पैसों को फिर से बनाया जाता हैै चंदा ब्रांड बनने से कारपोरेट जगत को अत्यधिक छूट मिल जाएगी पारदर्शिता नहीं रह जाएगी लोकतंत्र में लोकहित ना होकर
लोकतंत्र में प्रदूषण फैल जाएगा।
विदेशी चंदों पर रोक लगनी चाहिए  ।
लेकिन सभी राजनीतिक पार्टियां जब 
केंद्र सत्ता में रहती है तो वह चाहती है कि वह स्वतंत्र रूप से सभी कार्य को करें उन पर कानून का संविधान का किसी का भी कोई नियम नहीं होना चाहिए ऐसा होने से कोई भी ब्रांड खरीद सकता है आरबीआई से उनका उसको हिसाब नहीं देना पड़ेगा विदेशी चंदे पर रोक लगना चाहिए ऐसे में
कोई भी ब्रांड को खरीद सकता है।
यह लोक हित में नहीं है लोकतंत्र की पारदर्शिता को नष्ट करते हैं प्रदूषण फैलाते हैं।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
भारत में अनेक स्वयं सेवी संस्थाएं ,गैर सरकारी संस्थाएं  धार्मिक संस्थाएं अपने विस्तृत कार्यों को अंजाम तक पहूंचाने के लिए विदेशों से चंदा लेती है और इसके तहत अनेक नियम भी प्रस्तावित किए गए हैं ! संसद के दोनो सदनो ने यह नियम मान्य रखे हैं बशर्ते नियमों का उल्लंघन ना हो ! विदेशों से आये चंदे की राशि उसी में खर्च हो जिसके लिए लिया गया हो !बड़ी राशि हो तो गृहमंत्रालय में इसकी पूर्ण जानकारी दी जानी चाहिए !  गैर सरकारी संस्थाओं के तहत आने वाले एनजीओ के लिए ली गई विदेशी राशि का लाभ उन्हें ही मिलना चाहिए !इसके खर्च में पारदर्शिता होनी चाहिए ! मंदिर निर्माण के लिए लिया गया चंदा उसी में खर्च होना चाहिए तात्पर्य यही है यदि भ्रष्टाचार का राज्य चल रहा हो तो संस्था को मिले चंदे उन्हें मिल भी रहे हैं या नहीं इसकी जांच समय समय पर होनी चाहिये ! वैसे मेरी राय में विदेशी चंदे मिले तो उससे  हमें बहुत फायदे है ! बस इसके खर्च में पारदर्शिता होनी चाहिये एवं भ्रष्टाचार और राजनीतिक दांवपेंच न हो !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " विदेशी चंदे ने अभी हाल में बहुत कुछ साबित कर दिया है । ऐसे में सरकार को कुछ ना कुछ करना आवश्यक है । कम से कम सरकार का सूचना देना आवश्यक कर देना चाहिए । जिससे सरकार जरूरी कदम , समय रहते उठा सकें ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान

Comments

  1. आजकल विदेशी चंदे का दुरुपयोग अधिक हो रहा है हाथरस का कांड इसका प्रमाण है इसके पहले पंजाब में भी उसका दुरुपयोग किया गया था।
    सरकार को इस पर कड़ा प्रावधान बनाना चाहिए ताकि उस रुपए का गलत काम आतंकवाद नक्सलवाद अराजकता फैलाने आदि मैं प्रयोग ना हो।

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