क्या अज्ञानता का परिचायक घमंड है ?

घमंड की कोई सीम नहीं होती है । परन्तु परिणाम से बहुत कम सतुष्ट होते हैं । नराज की सख्या बहुत अधिक होती है । परन्तु यह सब प्रमुख रूप से अज्ञानता के कारण अधिक होता है । इसके लिए दोषी ओर कोई नहीं , स्वयं होता है । यही सब कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है ।अब आये विचारों को देखते हैं : -
मेरे ख्याल में अज्ञानता नहीं मूर्खता का परिचायक घमंड है। घमंड बड़े बड़ों का विवेक हर लेता है और बुद्धि भरष्ट कर देता है। रावण बहुत बड़ा विद्वान था।वो अज्ञानी नहीं था लेकिन घमंड ही उस के विनाश का कारण बना।घमंड एक प्रकार की बुराई है जो मनुष्य को आगे बढ़ने के लिए रोकता  है। घमंड मनुष्य का सर्वनाश करके ही छोड़ता है।
      हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी यही लिखा है कि फलदार वृक्ष हमेशा-हमेशा  झुके होते हैं। सिंबल वृक्ष को अपने ऊंचे होने का गर्व है लेकिन न तो उसकी छाया है और फल भी इतने ऊंचे लगते है कि किसी की पहुँच में नही आते। हमें यही सीख दी जाती है कि कभी घमंड नहीं करना चाहिए। हमारे कई महापुरुषों ने किसी प्रकार की शिक्षा ग्रहण नहीं की थी लेकिन वो अनपढ़ होते हुए भी ज्ञानी थे। उनकी शिक्षाएं आज भी हमारा मार्गदर्शन करतीं हैं। इस भाव से हम कह सकते हैं कि अज्ञानता का परिचायक घमंड है। जरूरी नहीं पढ़ लिख कर इंसान ज्ञानी बन जाता है। जैसे कबीर जी ने कहा है---
पोथी पढ़ पढ़ जगह मुआ
पंडित भयो ना कोई  ।
    पढ़ाई लिखाई से ही ज्ञानी नहीं बन जाते।कुछ गुणों और संस्कारों को अपने अंदर  ग्रहण करना जरूरी होता है। इन के अभाव में अज्ञानता  का परिचायक घमंड है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
           जब हमें किसी कार्य में दक्षता,इच्छित वस्तु या पद की प्राप्ति या अपेक्षा से अधिक धन की प्राप्ति हो जाती है, तब कुछ समय में ही अधिकांश व्यक्ति अपने को दूसरे से कुछ ऊपर समझने लगते हैं, जो कि उचित नहीं कहा जा सकता।
            मनुष्य ज्ञानी होने पर यह भी सोचने लगता है कि मेरे ज्ञान को कोई छीन या चोरी भी नहीं कर सकता तो वह उसका सदुपयोग के बजाय दुरूपयोग अधिक करने लगता है, और वह अत्यधिक महत्वाकांक्षी हो जाने के कारण इस बात को समझ भी नहीं पाता कि वह गलत कर रहा है।और उसे अपने ज्ञान ,वस्तु या पद अथवा पूंजी का घमंड हो जाता है। जिस योग्यता का समाज या मानवता को लाभ मिलना था उसी के दुरूपयोग से समाज के लिए हानि करने लगता है। ऐसे दृष्टिकोण को  ज्ञान नहीं बल्कि अज्ञान ही कहा जाना चाहिए।
         मनुष्य घमंड करने पर जिस प्रकार के क्रिया कलाप और व्यवहार करने लगता है, उसे अज्ञानता ही कहा जा सकता है। क्योंकि ज्ञानी होने पर तो मनुष्य को " फल से लदे वृक्ष " के समान हो जाना चाहिए अर्थात विनम्रता,सहनशीलता, धैर्य,नम्रता आदि गुण विकसित होने चाहिए।
         अतः घमंड करना अज्ञानता का ही परिचायक है।
- सुरेंद्र सिंह
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
ज्ञान का अभिमान होना निश्चित तौर पर घमंड  कहलाता है। ज्ञान का अभिमान सबसे बड़ी अज्ञानता है। लोगों में महाज्ञानी  होने का घमंड छा जाता है। उस अभिमान में वह दूसरे को नीचा दिखाने लगता है। 
    मजाक उड़ाना, दूसरे को छोटा समझना उकी आदत बन जाती है। अपने को बड़ा समझने में उन्हें मानसिक शांति महसूस होती है, उनका मन प्रफुल्लित होता है-- यही ज्ञान का अभिमान है।
     हर समय किसी का हीन भावना से मजाक उड़ाना, उसके व्यक्तिगत आचरण पर चोट पहुंचाना --यह भी इंसान के घमंड को ही दर्शाता है और यह घमंड अज्ञानता का ही परिचायक है।
     कोई भी मनुष्य पूर्ण ज्ञानी नहीं होता। बचपन से बुढ़ापे तक कुछ न कुछ सीखते ही रहता है। अपने अहम भाव में  किसी की बेइज्जती करना,बात बात पर अपमानित करना यह उसके अहंकार को प्रदर्शित करता है। अगर आप ज्ञानी हैं तो दूसरों का भी सम्मान करना सीखें। अहंकार का विनाश निश्चित रूप से कभी न कभी होता है। ज्ञान का अभिमान सबसे बड़ी अज्ञानता है और अज्ञानता का परिचायक घमंड है।
               - सुनीता रानी राठौर
            ग्रेटर नोएडा --उत्तर प्रदेश
एक पुरानी कहावत है
"अधजल गगरी छलकत जाय"
ये बात काफी हद तक सही है कि कम ज्ञान रखने वाले अक्सर अधिक घमंडी होते हैं। थोड़ा ज्ञान रखने वाले लोग अक्सर अपने आस-पास एक दीवार बना के रखते हैं ताकि कोई उनके पास न आ पाए और अगर कोई ऐसा करता  है तो फिर वो अचानक विफर पड़ते हैं और सामने वाले को बहुत मानसिक या 
भावनात्मक आघात भी पहुंचा देते हैं। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि फलदार वृक्ष अक्सर झुका रहता है और ठूंठ अकड़ के खड़ा रहता है।ऐसे ही ज्ञानी मनुष्य  विनम्र रहता है और खामोशी से अपना काम करता रहता  है और कोशिश करता है कि उसकी वज़ह से किसी कोई तकलीफ़ न हो।
-  संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
बिल्कुल सही सोच है घमंड अज्ञानता का ही परिचायक है एक कहावत है अधजल गगरी छलकत जाए इसी संदर्भ में एक दूसरी कहावत है नाच न जाने आंगन टेढ़ा
यह दोनों कहावत इसी अज्ञानता का परिचय देता है थोड़ी सी ज्ञान हो जाने के बाद यह समझ में आने लगता है कि हमसे ज्यादा ज्ञानी कोई नहीं है और तब वहां पर मन मस्तिष्क दिलों दिमाग में यह घमंड की भावना आ जाती है इस घमंड को छोटे-छोटे कथनों के माध्यम से लोग व्यक्त कर देते हैं एक उदाहरण दे रही हूं कोई समस्या है जिसके समाधान में एक ऐसा व्यक्ति आता है जिसको उसका ज्ञान है लेकिन अपने इस ज्ञान को अज्ञानता वश जो कथन प्रस्तुत करता है उसमें घमंड छलक जाता है जैसे मुझे ही आता है कोई दूसरा नहीं कर सकता यह कथा घमंड को दर्शाता है इसी कथन को यदि इस प्रकार कहा जाए मुझे आता है मैं कोशिश करता हूं शायद समस्या का समाधान हो जाए तो आपकी विनम्रता प्रदर्शित होती है तो घमंड अज्ञानता का ही परिचायक है एक प्रकार का भ्रम है और इस भ्रम को टूटने में बहुत कम समय लगता है और बहुत जल्दी ही टूट जाता है अहंकार घमंड मनुष्य के व्यक्तित्व के नकारात्मक विचारधारा है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
यह सत्य है अज्ञानता से  घमंड आता है  लेकिन यह भी सत्य है कि हर अज्ञानता घमंड का परिचायक नही होती  है । कभी -कभी व्यक्ति में अज्ञानता वश अज्ञानता  दीख पड़ती है लेकिन व्यक्ति विशेष का उद्देश्य किसी को चोट पहुँचाना नहीं होता है ।अज्ञानता का आधार  केवल लक्ष्य की प्रप्ति के लिए आगे बढ़ना  होता है ,उसे जीत हार से कोई मतलब नहीं होता ।
मेरे विचार से आत्म - संयम शक्ति देता है घमंड जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता बंद करता है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
 यह हम कहते सुनते हैं कि इसे अपने ज्ञान पर बहुत घमण्ड है किंतु वास्तव में ऐसा होता है क्या ? घमंड तो कोई भी किसी भी चीज को लेकर करते हैं !शिक्षा ,ज्ञान,धन आदि आदि .....का ! व्यक्ति में जब मैं नाम का अहम् आ जाता है तब वह घमंडी हो जाता है ! अपने ज्ञान, धन, शक्ति अथवा शारिरीक सौंदर्य कुछ भी हो सकता है !वह अपने सामने सब को तुच्छ और कम समझता है केवल मैं ही सब हूं मेरे जैसा कोई नहीं ! यही तो उसकी अज्ञानता है !उसने दुनियां कहां देखी केवल अपना परिक्षेत्र  ही देखा ! जो ज्ञानी होते हैं उनमें विवेक और विनम्रता होती है वह घमंडी हो ही नहीं सकते ! आम जब कच्चा होता है तब तन कर खड़ा रहता है कह सकते हैं कि अपने सौंदर्य को लेकर अज्ञानता लिए ऐंठता है घमंड से भरा होता है किंतु ज्यों ज्यों वह पककर मीठा होता है अपनी जवानी पार करता है वह विनम्र होकर झुक जाता है ! उसका ज्ञान मीठास लिए होता है ! सभी उसे पसंद करते हैं अर्थात  उसने मैं का त्याग कर विनम्रता को अपनाया ! 
तात्पर्य यही है मैं नाम का अहम हमारी अज्ञानता है ! दुनियां में हमसे भी बढ़कर महान लोग हैं !
कहते हैं न जो नमता है वह ईश्वर को भी प्यारा है !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
कहते हैं कि फलदार पेड़ झुक जाते हैं जिस पेड़ पर ज्यादा फल होते हैं उस पेड़ की डाली हमेशा झुकी हुई होती है।
 उसी तरह ज्ञानी पुरुष हमेशा विनम्र रहते हैं जो व्यक्ति ज्यादा सचमुच में शिक्षित होते हैं उन्हें अपनी शिक्षा का घमंड नहीं होता ।
जो व्यक्ति अज्ञानी होते हैं चाहे वह कितनी भी शिक्षा ग्रहण करने कर ले ,उन्हें अपनी शिक्षा यानी पढ़ाई पर घमंड होता है अर्थात जो व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करके भी घमंड करें वह सचमुच में अज्ञानी ही होता है।
- रंजना हरित  
बिजनौर  - उत्तर प्रदेश
घमंड का कोई वजूद नहीं घमंड कुछ भी नहीं होता यह केवल आदमी की अपनी एक सोच वह अपने आप मन में कुछ धारणा बना लेता है  अपने बातों से स्वभाव से व्यवहार से और क्रियाकलाप के माध्यम से इस बात को
बताने जताने की कोशिश करता है।
यह जाने अनजाने होता है सामने वाले को पता नहीं चल पाता कि मैं किस तरीके से व्यवहार कर रहा हूं।
दूसरा घटक पद पैसा ऊंचे रसूखदार पदाधिकारियों तक अपनी पहुंच और 
अपने को लोगों से अलग समझना कई कारणों से मानव में चाहे अनचाहे घमंड आ जाता है जो मानव जीवन को
संवेदना पूर्ण मानवता भाईचारे की भावना से देखते हैं उनके अंदर घमंड जैसी बातें देखने को रंच मात्र भी नहीं मिलती है तो हम कह सकते हैं पूर्ण रूप से किसी बात की समझ ना होना
अज्ञानता वश मानव में घमंड का होना
स्वाभाविक हो जाता है।
*फलदार वृक्ष, ज्ञान , उच्च विचार वाले विनम्र धैर्यवान सहनशील*
*मानव में घमंड नहीं आता है*
*ज्ञान ना होना ही घमंड का कारण बन जाता है*।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
इंसान का ज्ञान भी उसी अवस्था में शोभा देता है जब वह घमंड रहित हो l ज्ञान का सीधा अर्थ है अज्ञानता से मुक्त l यदि ऐसा नहीं है तो निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि अज्ञानता का परिचायक है घमंड l अहंकार युक्त होने पर व्यक्ति पतन की तरफ बढ़ने लगता है l कहा गया है कि अधजल गगरी छलकत जाये l 
अहंकार व्यक्ति के अज्ञानता व मूर्खता का परिचायक है क्योंकि मनुष्य में अपने ज्ञान, धन, बल, सौंदर्य, कौशल,  सत्ता का नशा ही अहंकार / घमंड है l गीता में कर्म, ज्ञान, भक्ति इन तीनों योगों में अहंकार को त्यागने पर विशेष बल दिया गया है l 
जब तक ही हरिवास है तब तक दूर गरूर l 
आवत पास गरूर के प्रभु हो जाते  हैं दूर ll 
     संसार में ज्ञानी व्यक्ति उदार और विनम्र होता है l यदि ज्ञानवान व्यक्ति में अहंकार है तो उसने सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं किया, वह ज्ञानी होकर भी अज्ञानी ही है l 
विद्या ददाति विनियम...... 
     जैसे फल लगने के बाद वृक्षों की डालियाँ झुक जाती हैं वैसे ही विज्ञजन को विनम्र होकर, घमंड रहित हो जाना चाहिए l झुकना जिन्दा होने का तथा अकड़ना मुर्दे की पहचान है l 
अहंकार ज्ञान का शत्रु है और अज्ञानता का परिचायक l 
अहंकार आने का स्वाभाविक कारण है 'सफलता 'l इसे पाकर बहुत से लोग उसी को सफल, श्रेष्ठ मानकर औरों को तुच्छ समझने लगते हैं, यह है घमंड l  जो हमें क्षणिक सुख तो दे सकता है लेकिन भविष्य में व्यावहारिक जगत में हमें अज्ञानी बना देगा l रावण ज्ञानी, ईश भक्त होते हुए भी अहंकार का सबसे बडा नमूना है जो कि अज्ञानता का परिचय देता हुआ मारा गया l 
          चलते चलते ------
घमंड न करना जिंदगी में, 
      तकदीर बदलती रहती है l 
शीशा वहीं रहता है बस 
      तस्वीर बदलती रहती है ll 
          - डॉ. छाया शर्मा 
अजमेर - राजस्थान
घमंड करना ही बतलाता है कि वह व्यक्ति ज्ञान या सज्जनता का अर्थ नहीं जानता है। सही अर्थ में ज्ञानी को कभी घमंड नहीं होगा। उसे तो अपने ज्ञान में ही हमेशा कमी नजर आती है। इसलिए वह नतमस्तक रहता है। घमंड तो वह भावना है जो अल्प ज्ञानी को ज्ञान के सागर का पानी चखने मात्र से हो जाता है। जो उस सागर में डुबकी लगा लेता है उसे तो बाहर निकलने की इच्छा ही नहीं होती। उसे विश्व के आलोचकों से मुक्ति मिल जाती है। व्यर्थ बातों के लिए उसके पास समय ही नहीं बचता यह देखने के लिए कि कौन हमसे कम है या किसी दिखाना है? उसे तो ज्ञान प्राप्ति से ही फुर्सत नहीं मिलती।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
जी मैं सहमत हूं:-अज्ञानता का परिचायक घमंड है?
इंसान को अपने ज्ञान पर घमंड नहीं करना चाहिए और ना ही अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझना चाहिए ।जब अंहकार का प्रवेश हो जाता है तो व्यक्ति पतन की ओर  जाने लगता है।
रावण संसार मैं बहुत बड़े ज्ञानी महापुरुष थे ।लेकिन अपने ऊपर घमंड होने के कारण उनका नहीं कुल का नाश हो गया।
ज्ञान ऐसी चीज है जितना आप समझ जाएंगे,जितना आप बाटेंगे, जितना
 लोग को जागरूक करके विस्तृत रूप करेंगे, उतना आपका ज्ञान और बढ़ेगा।
दूसरे को फायदा होगा तो आपको मानसिक शांति मिलेगी।
दूसरा उदाहरण:-*ज्ञान का घमंड*
गंगा पार करने के लिए कई विद्वान नाव में सवार हुए नाव पर बैठने के बाद धीरे-धीरे किनारे की ओर चल निकला। रास्ते में सभी विद्वान नाविक से ज्ञान के  प्रश्न करने लगे -भूगोल ,इतिहास, विज्ञान, अर्थशास्त्र इत्यादि।
नाविक किसी के उत्तर नहीं दिया। उसने कहा मेरी जिंदगी के एक चौथाई भाग पानी में ही गुजर गया है।
इसी बीच अचानक गंगा के पानी का बहाव तेज होने लगा नाविक सभी विद्वानों के तूफान आने की चेतावनी दी।
नाविक सभी विद्वानों से पूछा तैरना आता है? सभी लोग ना बोले। स्थिति को भापते हुए नाविक ने कहा सारी जिंदगी और ज्ञान पानी में गई  और नाव डूबने लगी नाविक तेजी से पानी में कूदकर तैर था -तैरता किनारे लग गया परंतु सभी विद्वान पानी में डूब गये।
ज्ञान वाद-विवाद के विषय नहीं है दूसरों को नीचा दिखाने के लिए नहीं है ।जो लोग ज्ञान के अभिमान करते हैं, दूसरों के सामने अपने को घमंड करना नहीं चाहिए।
लेखक का विचार:-ज्ञान का जो व्यक्ति अभिमान करता है तो बिल्कुल सही बात है उसकी सबसे बड़ी अज्ञानता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
ज्ञान का घमंड सबसे बड़ी अज्ञानता है एवं अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है. इंसान का ज्ञान तभी शोभा देता है जब वह घमंड रहित हो. ज्ञान का सीधा अर्थ होता है,सभी क्षेत्रों में या किसी विशेष क्षेत्र में विशेष ज्ञान का होना. ज्ञान का एक अर्थ यह भी है " अज्ञानता से मुक्त " इसलिए यदि कोई बहुत बड़ा ज्ञानी है तो उसका प्रमाण है उसकी सहजता. कई बार हम अज्ञानता के कारण अपने को दूसरों से श्रेष्ठ समझते हैं, परंतु जब विपत्ति आती है तो वही व्यक्ति हमें सीख दे के चले जाते है. ऐसे में हमें अपनी अज्ञानता का बोध तो होता ही है, हमारा घमंड भी चूर-चूर हो जाता है. जब अहंकार का प्रवेश हो जाता है तो व्यक्ति पतन की तरफ़ बढ़ने लगता है. कोई कितना भी ज्ञानी हो कभी-कभी उसको भी सहायता की ज़रूरत पड़ जाती है इसलिए किसी भी इंसान को अपने ज्ञान पर घमंड नहीं करना चाहिए और न ही अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझना चाहिए. एक ज्ञानी व्यक्ति हमेशा सीखने की कोशिश करता है, वह कभी भी अपने आप को संपूर्ण गुणों से संपन्न नहीं मानता है, जबकि थोड़ा-बहुत ज्ञान रखने वाला व्यक्ति अपने आप को संपूर्ण ज्ञानी प्रदर्शित करता है. यही प्रदर्शन घमंड है और अज्ञानता का परिचायक भी है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
मनुष्य अपनी योग्यता और प्रतिभा के बल पर जब ऐसी स्थिति को प्राप्त कर लेता है जिससे उसे गर्व की अनुभूति होती है तो यह स्वाभाविक है। यह गर्व करने योग्य स्थिति मनुष्य को सकारात्मकता प्रदान करते हुए कल्याणकारी कार्यों को करने के लिए प्रेरित करती है और मन में मानवीय दृष्टिकोण उत्पन्न करती है। गर्व का भाव ज्ञान का सूचक है। 
परन्तु बुलन्दियों पर खड़े होकर घमण्ड के कहकहे लगाने वाला लाख शक्तियों का स्वामी होने और सर्वज्ञ होने के बावजूद ऐसे कार्य करता है जो स्वयं उसके और अन्यों के लिए अहितकारी होते हैं। घमण्ड उत्पन्न होने पर मनुष्य को अपने गलत होने का आभास तक नहीं होता। घमण्ड ऐसी प्रवृति है जिसमें संबंधों की गरिमा भुला दी जाती है। घमण्ड मानवीयता को चकनाचूर कर देता है। घमण्ड, जिसके मन-मस्तिष्क में समा जाता है वह मनुष्य दूसरों के वास्तविक हितों को कुचलते हुए अंतत: अपना भी सर्वनाश कर लेता है। 
पूर्ण रूप से दुर्गुणों से युक्त घमण्ड सदैव दुष्परिणाम देता है इसलिए घमण्ड अज्ञानता का ही परिचायक है। 
इसीलिए कहता हूं कि..... 
"रूप, रुपया, और रुतबा वाहवाही का हकदार होता है,
घमण्ड की उत्पत्ति का भी लेकिन जिम्मेदार होता है।
जीवन के इस क्रत्रिम आकर्षण से मुग्ध होता नहीं जो, 
मानव वही धरा पर स्थितप्रज्ञ और समझदार होता है।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
अज्ञानता का सबसे बड़ा परिचायक घमंड है। इंसान जब घमंड दिखाने लगे तब हमें उससे कभी बहस नहीं करनी चाहिए और ना ही उसको जवाब देना चाहिए, क्योंकि घमंड हमेशा नीचा दिखाता है। उसे उसके सहारे छोड़ देना चाहिए, क्योंकि परेशानियों से बचना चाहते हैं तो कभी भी अपने ज्ञान पर घमंड ना करें वरना पछताना पड़ता है। घमंड करने पर शरीर और बुद्धि दोनों ही नष्ट होती है, क्योंकि यह क्षणभंगुर होता है। इसमें ना केवल शारीरिक क्षमता कमजोर होती है बल्कि बुद्धि का भी कम होने लगता है। अहंकार की परिभाषा ही घमंड है। घमंड वह है जो इंसान अपने आप पर या किसी वस्तु के गुण के ऊपर करता है, यानी आपके किसी वस्तु के गुण पर किए जाने वाले को ही घमंड कहा जाता है। मनुष्य को जीवन में कभी घमंड नहीं करना चाहिए। अज्ञानता की सीमा को जानना ही सच्चा ज्ञान है। अधिकतर लोग ईश्वर को सत्ता मान लेते हैं, फिर क्या वजह है कि लोग यह मानते हुए भी उसे नहीं देख पाते। इसका जवाब यह है कि उन लोगों को ईश्वर दिखाइ नहीं दिखाई देता है क्योंकि माया का आवरण हैं मनुष्य के ऊपर पड़ता है। जैसे सूर्य सबको प्रकाश और ऊष्मा देता है,vलेकिन वह बादलों में विराजमान हो जाए तो अपना काम नहीं कर पाता। माया का प्रयास भी इसी तरह है। अब सवाल यह है कि l क्या माया ही हमारा अहंकार है। अहंकार के रूप में यह अज्ञानता माया बिल्कुल सूर्य के सामने आए मेघ की तरह है। इसी कारण हम ईश्वर को नहीं देख पाते। जब अहंकार रहता है तब ना तो ज्ञान होता है और ना ही मुक्ति मिलती है। अज्ञानता के कारण ही घमंड आता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री 
जमशेदपुर - झारखंड
अवश्य अज्ञानता का परिचायक घमंड है। क्योंकि ज्ञानी कभी घमंड नहीं करता है। वो जानता है कि इस संसार में सबकुछ नश्वर है स्थाई कुछ भी नहीं है। तो फिर घमंड किस बात का। जानकार व्यक्ति कभी नहीं कहता है कि मैं जानकार हूँ , मैं जानकार हूँ। अल्पज्ञानी जब थोड़ा कुछ जान लेता है तो वह अपने आप को बड़ा सिद्ध करने के लिए ढोल पिटता है। और घमंड में आ जाता है कि उससे बड़ा ज्ञानी दूसरा कोई है ही नहीं।
        जिस तरह फल से लदे वृक्ष सदा झुके हुए रहते हैं उसी तरह ज्ञानी भी नम्र और झुके हुए रहते हैं। जबकि  अज्ञानी बिना फल वाले वृक्ष की तरह तनकर घमंड में फुला रहता है कि मुझसे बड़ा कोई नहीं।
             जिस तरह सोना भी कभी नहीं कहता कि वह एक बहुमुल्य वस्तु की श्रेणी में आता है। जबकि अज्ञानता अपने को प्रगट कर सिद्ध करता है या सिद्ध करना चाहता है कि वह घमंडी है। वह अपने व्यवहार से ही प्रगट कर देता है कि वह अज्ञानी है एवं घमंडी है।
             इसलिए ये बात सत्य है कि अज्ञानता का परिचायक घमंड है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं बंगाल
अज्ञानता का परिचायक घमंडी है क्योंकि अज्ञानी व्यक्ति अपनी छोटी बुद्धि से काम करता है और वह सब को उसी केटेगरी का समझता है वह किसी की बात नहीं सुनता अज्ञानता में व्यक्ति की सोच छोटी होती है उस छोटी छोटी सोच से मूर्ख जाकर बैठता है मैं अपनी बात के सामने किसी की बात सुनने को तैयार नहीं होता आता है वह सोचता जो मैं कह रहा हूं वही सब सच है जो मैं करता हूं वही सही है उसकी वही अज्ञानता घमंड का रूप ले लेती है जो अज्ञानता की परिचायक है।
- पदमा तिवारी 
दमोह - मध्यप्रदेश
आओ आज  ज्ञान और अज्ञान के  विषय में बात करते हैं  साथ में यह भी जानने का प्रयास करते हैं 
कि अज्ञानता का परिचायक घमंड होता है, क्या अज्ञानी ही  घमंडी होता है।  
 अज्ञानी की बात करें तो अज्ञानी जगत को देखता है और जगत की अनेकता को भूलता है और अनेक प्रकार के फलों की कामना करता है
जबकि ज्ञानी एक सत्य को देखता है। 
यही नहीं अज्ञानी में जप, तप ब्रत  आदि सादनों से अंहकार की वृदि होती है और वो संसारिक सुखों के लोभ का रोगी होता है। 
यही नहीं अज्ञानी असत्य को ही सत्य मानता है, जबकि ज्ञानी इन सब बातों से परे होता है और उसे ज्ञान की मूल समझ होती है। 
अज्ञानी तो अपने दोष  रखता है इसलिए उसे सब दोषी ही दिखते हैं। 
सही मायने में सोचें तो वासना में आसक्त मनुष्य अज्ञानी है, और वो परतन्त्र होकर संसार संसार में भटकता है। 
ज्ञानी में एकमात्र घमंड नहीं होता जबकि अज्ञानी थोथा चना बाजे घना की तरह होता है काम कम दिखावा ज्यादा दिखाता है और अपने आप को ही सबसे होशियार समझता है। 
अज्ञानी का परिचय ही बता देता है कि वह किस  किस्म का इन्सान है, हर पल उस के सर पर घमंड सबार रहता है। 
जबकि समझदारी अज्ञानता के अंहकार को मिटाने को कहते हैं और अज्ञानता ही मानब का दुश्मन है, ज्ञान का सबसे वड़ा शत्रु भ्रम है, वास्तव में ज्ञान अज्ञानता की एक प्रभावशाली खोज है, स्वंय को पहचानना ही सबसे बड़ा ज्ञान है। 
हम समाज मेंअक्सर कुछ ऐसे लोगों को देखते हैं जो थोड़ा  बहुत,  अध कचरा जुटाकर शेखी मारते हैं तथा समाज मे अपने आप को महान समझते हैं। 
यही नहीं अज्ञानी  इंसान मंडूक होता है और सदैव इसी  भ्रम में जीता है कि  वह सब कुछ जानता है, यही नहीं अज्ञानी दरिद्र व शक्तिहीन होता है और हमेशा परतन्त्र रहता है और अपने मात्र ज्ञान को वहुत महत्व देता है यही नहीं उसकी अज्ञानता उसके घमंड से साफ झलकती है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
     हम ही हम हैं, यह हमारी अत्यंत  भूल हैं, जिसका दीर्घकालिक तौर पर विभिन्न प्रकार से परिणाम भुगतना ही पड़ेगा, जिसके लिए हम ही उत्तरदायी हैं, कारण जो भी हो? अज्ञानता का परिचायक घमंड हैं,  जिसने सभी को आते-जाते देखा हैं। आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए समस्त प्रकार के उदाहरण देखने को मिल रहे हैं, ज्ञानी हो अज्ञानी, जो वृहद हैं और इतिहास साक्षी हैं। कीचड़ में कमल जरूर खिलता हैं, लेकिन उसका भी दूरगामी प्रभाव हैं, उसका भी अपना एक घमंड हैं,  साल में एक बार ही लक्ष्मी को चढ़ता हैं, फिर उसके बाद अनन्त समय तक प्रतीक्षा करता रहता हैं, हाथी भी अपने मद होश से घिरा रहता हैं, किन्तु एक क्षणिक चीटी से चला जाता हैं, शेर जरूर जंगल का राजा हैं, परंतु आग से भाग जाता हैं, इसी प्रकार माया रुपी संसार हैं, जहाँ अज्ञानताओं से घिरा हुआ, उसका अपना वर्चस्व संसार हैं
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट -मध्यप्रदेश
कहते हैं न "थोथा चना बाजे घना"। सच में जो घमंड करता है वह अज्ञानी ही है ।ज्ञानी तो जानता है कि उसके जीवन मे उसे प्राप्त हुई सभी उपलब्धियों के पीछे किसी अज्ञात शक्ति का ही हाथ है ।वह तो बस माध्यम मात्र है ।अज्ञानी सोचता है ,,,,मैंने किया ।उसके द्वारा किसी का भला हुआ तो भी सोचता है ,मैने किया ।मैं यह कर लूं ,ऐसा कर लूं ।लोग मुझे जाने  पहचाने।बस यही उसका घमंड है । जिसे घमंड नहीं होता वह जानता है कि उसकी मर्जी से न जन्म हुआ न मृत्यु होगी।जब मौत आती है तो अपनी मर्जी से तो कोई सांस भी नहीं ले सकता ।यह सारा ब्रह्मांड कैसे चलायमान है ।चारों ओर प्रकृति का विस्तार क्यों है ।
घमंडी व्यक्ति कभी आभार व्यक्त नहीं करता ।वह कभी संतुष्ट नहीं होता अतःऐसे व्यक्ति को  घमंडी ही कहा जा सकता है।
चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
सही कहा, अज्ञानता का ही परिचायक है घमंड।अब बात यह है कि हम जिसे किसी घमंड कह रहे हैं,वो कहीं उसका स्वाभिमान तो नहीं।घमंड और स्वाभिमान में थोड़ा सा ही अतंर होता है। जब अपने सामने किसी को कुछ न समझा जाये,बस मैं ही मैं हूं वाली सोच हो,तो यह है घमंड। इसके विपरीत आत्मसम्मान को बरकरार रखना स्वाभिमान है। घमंडी गलत बात पर भी अड़ जाता है,कारण अज्ञानता। स्वाभिमानी,गलत बात से दूर रहना पसंद करता है। यदि भूलवश कोई गलती हो जाए तो उसे सहजता से मान लेता है।
सर्वविदित हैं कि घमंड तो रावण का भी नहीं रहा,और विनम्र स्वाभिमानी विभीषण ने राजपद पाया। वास्तविक जीवन में घमंड के कारण कितने ही संबंध टूट जाते हैं।कितना ही नुकसान उठाना पड़ जाता है घमंडी को।मानव, घमंड अधिकांशतः अपने धन और नश्वर वस्तुओं पर ही करता है, जबकि वह स्वयं नश्वर है।यह सब पता होते हुए भी, न मानना ही,अज्ञानता है।जिसकी गिरफ्त में हर मानव है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
           घमंड एक तरह से अज्ञानता का ही परिचायक है। घमंडी व्यक्ति अपने आप को सबसे बड़ा और सबसे अधिक ज्ञानी समझता है। वह सोचता है जो वह कर रहा है वही सही है। सामने वाले पर उसकी क्या प्रतिक्रिया हो रही है वह जाने का वह प्रयास नहीं करता और ना ही सोचता है। इसका दुष्परिणाम भी उसे ही भोगना पड़ता है। जब तक किसी बात की क्रिया प्रतिक्रिया नहीं होगी तो सही बात  कैसे पता चलेगी।  जानकारी के अभाव में वह अपने मन से कुछ भी करता रहेगा। हर समय अपने को श्रेष्ठ  बताना उचित नहीं। कभी कभी तो छोटे बच्चे भी उचित सलाह दे देते हैं। इसलिए प्रत्येक की बात सुनकर घमंड को तिलांजलि देकर कार्य करना चाहिए।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
निःसंदेह अज्ञानता का परिचायक घमंड है। उड़ती पतंग कहती है ‘जब अनेक लोग आनन्द प्राप्ति के लिए आसमान में पतंगें उड़ाते हैं तो हर पतंग के साथ उनका घमंड जुड़ा होता है। और वह घमंड और कुछ नहीं बल्कि मांझा है।  जब बहुत सी पतंगें आकाश में होती हैं तो समझो उतने ही घमंड होते हैं।  घमंड तो चाहता यही है कि उसे कोई नीचा न दिखा सके।  अब इतने घमंड होंगे तो उनमें कितने घमंड जीतेंगे।  अपने-अपने घमंडों की रक्षा के लिए पतंगबाज कभी मांझे को खींचते हैं तो कभी ढीला छोड़ते हैं’ पतंग फिर कहती है।  ‘अक्सर दो घमंडों का टकराव होता है।  यदि किसी पतंगबाज का घमंड तलवार की भांति तेज़ धार वाला होता है तो वह हमें इस प्रकार से खींचता है जैसे किसी पर तलवार से वार किया गया हो।  ऐसे में दो स्थितियां हो सकती हैं।  या तो सामने वाले घमंड का पतन हो जाए या अपना घमंड ही डूब जाए।  इसी प्रकार यदि घमंडों के टकराव में कोई पतंगबाज सोचता है कि उसका घमंड भारी है तो वह पहले दूसरे घमंड से ज्यादा उड़ान भरता है फिर उससे ऊपर जाकर सामने वाले घमंड पर एक भारी-भरकम बोझ की भांति गिरता है ताकि सामने वाले घमंड की रीढ़ ही टूट जाए और उसका अंत हो जाए’ पतंग ने आगे कहा।  ‘घमंडों की यह लड़ाई तो बहुत दिलचस्प होती होगी’।  ‘हां दिलचस्प होती है उनके लिए जो घमंडहीन होकर उस लड़ाई को देख आनन्दित होते हैं।  और इनमें अधिकतर बच्चे होते हैं। वरना घमंडों की यह लड़ाई तो महाभारत के युद्ध की भांति अंत होने का नाम ही नहीं लेती।  यहां तक कि खून-खराबे हो जाते हैं’ पतंग ने बोलना जारी रखा ‘शुक्र है पक्षियों में घमंड नहीं होता।  चिड़िया उतना ही ऊंचा उड़ती है जितना उसके भाग्य में लिखा है।  वह कबूतर, कौए या चील को देखकर परेशान नहीं होती।  वह उसी में खुश और संतुष्ट रहती है।  यही स्थिति कबूतर और कौए की है। पंछियों में आपस में भी कभी घमंड का टकराव नहीं होता। सिर्फ इंसानों में ही होता है जो अज्ञानता का परिचायक है।’
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली 
यह कथन बिल्कुल सही है कि  'घमंड का अंकुर अज्ञान से ही फूटता है ।'
 घमंड वह अंहकारी भाव है  ,जो किसी व्यक्ति द्वारा अपनी  किसी वस्तु ,संपदा, प्रतिभा ,गुण पर रोबदार प्रदर्शन , जो अंह से भरपूर होता है ,घमंड कहलाता है। 
घमंड तुच्छ, घृणित एवं नकारात्मक सोच का परिणाम है जिसके मूल में अज्ञानता की बहुलता होती है । 
व्यक्ति अपने आप को औरों से बहुत अधिक योग्य , समर्थ , सक्षम ताकतवर या बढ़कर  समझने लगता है ।बनावटी ओछा प्रदर्शन करता है । अपनी बढ़ाई स्वयं ही करता है । आत्म प्रशंसा का भूखा होता है । दूसरों की प्रशंसा सहन न करके केवल अपनी ही प्रसिद्धि बिखेरने का पक्षधर होता है ।
 घमंड एक बुराई है जिसे अनेकों प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है । सामाजिक स्तर पर श्रेष्ठता दर्शाते हुए जाति का घमंड ,आर्थिक स्तर पर उच्चता दर्शाते हुए पैसा, धन का ,संपत्ति का घमंड । गुण, प्रतिभा की महानता दर्शाते हुए ज्ञान का घमंड । नश्वर शारीरिक सौंदर्य पर घमंड । 
घमंड किसी भी प्रकार का हो उसका मूल अज्ञानता ही है । अज्ञानी व्यक्ति समाज को भेदभाव में बांटता है ,धन के नशे में चूर व्यक्ति दिशाहीन होकर अमर्यादित जीवन जीता है । अपने ज्ञान पर घमंड करने वाला व्यक्ति सदैव नकारात्मक सोच में ही घिरा रहता है । ज्ञानी होते हुए भी अज्ञान के अंधकार में डूबा रहता है ।
घमंड व्यक्ति को सामाजिकता के महत्व से अनभिज्ञ रखता है। घमंड भाईचारे का दुश्मन है  ।अज्ञानता वश अनमोल रिश्तो  के सानिध्य से वंचित रह जाता है  । अतः  आत्म सुधार  नीति को अपना कर ,श्रेयकर जानते हुए  अपनी अज्ञानता की सीमा को भी जानना जरूरी है और वही सच्चा ज्ञान है ।
 - शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
अज्ञानता का परिचायक घमंड है,  यह कहना गलत नहीं होगा। घमंड में जो भाव छुपा होता है उसका आशय अहम भरा ही होता है। अहम याने ' मैं '। इसके आगे और पीछे कोई नहीं। इसमें अकड़ भी निहित होती है। स्वयं के अलावा किसी को कुछ न समझने का भ्रम, जो कुछ हूं मैं ही हूं का अहम। यही अज्ञानता है। क्योंकि यही भ्रम है। दुनिया विशाल है। यहाँ प्रतिभाशालियों की कमी नहीं है। परंतु घमंड से भरे मन-मस्तिष्क में यह सोचने की शक्ति का अभाव होता है। यह भी तय है कि अज्ञानता का यह भ्रम भी एक दिन टूटता अवश्य है। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। तब पश्चाताप के सिवाय कुछ नहीं रह जाता। अतः जीवन में यह प्रयास अवश्य करते रहना चाहिए कि किसी उपलब्धि पर अहम न होने पाये बल्कि इसे ईश्वर की अनुकंपा मानकर अपने भाग्य को सराहें। जीवन में अहम नहीं विनम्रता को स्थान दें। तभी जीवन सफल,सरस,समृद्ध, सुखद और सार्थक होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
अपने ज्ञान पर अभिमान करना भी अज्ञानता का ही सूचक है। ज्ञान और अभिमान का एक दूसरे से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है, "मैं'" से जितना दूर रहेंगे ज्ञान से नजदीकी बढ़ती जायेगी इसलिये कहा जा सकता था कि अज्ञानता का परिचायक घमंड है।
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
आज की चर्चा में जहांँ तक यह है कि क्या अज्ञानता का परिचायक घमंड है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा की घमंड वास्तव में नासमझी और अज्ञानता का परिचायक ही है व्यक्ति कितना ही ज्ञानी क्यों ना हो यदि वह घमंडी है तो ज्ञान का दुरुपयोग कर बैठता है और ऐसा व्यक्ति न केवल अपने लिए बल्कि परिवार के लिए समाज के लिए देश के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है उसके ज्ञान का सदुपयोग पूरी तरह से नहीं हो पाता और वह समय-समय पर इस बात का घमंड दिखाता रहता है और सही बात तो यह है कि एक समय ऐसा भी आता है जब वह अपने लिए ही संकट खड़े कर लेता है ऐसे व्यक्ति की छवि समाज में खराब होती चली जाती है और लोग उसे वह आदर और सम्मान नहीं दे पाते जिसका कि वह अपने ज्ञान की पूंजी की वजह से अधिकारी होता है वह यह बात भूल जाता है कि जिस ज्ञान की बदौलत वह घमंड कर रहा है वह उसे भी कहीं से प्राप्त हुआ है और उसे इस ज्ञान को विनम्रता के साथ दूसरों तक पहुंचाना चाहिए यह भी देखने में आता है इस देश से बहुत सारी विद्या और ज्ञान इसीलिए विलुप्त हो गए हैं की व्यक्तियों ने उसे केवल अपने तक सीमित रखा बहुत सारी ऐतिहासिक पुस्तक में विलुप्त हो गई हैं लोगों ने उनका प्रचार और प्रसार नहीं किया और केवल अपने तक ही सीमित रखा यह बहुत ही कष्टकारी विषय है अशिक्षित व्यक्ति यदि किसी चीज का दुरुपयोग करता है तो समझ में आता है कि वह अशिक्षित है और बहुत सारी बातें नहीं जान सकता परंतु  एक शिक्षित और ज्ञानी व्यक्ति अपने ज्ञान का दुरुपयोग करता है और अज्ञानता का परिचय देता है तो उस पर वास्तव में तरस आता है कि वह सब कुछ जानते हुए भी क्या कर रहा है ऐसा नहीं किया जाना चाहिए और अपने ज्ञान और अपनी क्षमताओं का उपयोग समाज और देश हित में ही किया  जाना चाहिए ़़
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
       घमंड अर्थात अहंकार होता है जो अज्ञानता का परिचायक माना जाता है। परंतु ज्ञानी ही नहीं बल्कि महाज्ञानी भी घमंडी होते हैं। जो साधारण अज्ञानियों से कहीं अधिक घातक होते हैं।
       उदाहरणार्थ त्रेता युग मेंं लंकापति महाराजा रावण महागुणी थे। सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि के पौत्र और विश्रवा के पुत्र थे। वह परमपिता भगवान शिवजी के परमभक्त थे। वह निपुण राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त बलशाली , शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान, महापंडित एवं चारों वेदों के ज्ञाता महाज्ञानी थे। 
       किंतु इसके बावजूद उल्लेखनीय है कि उन्होंने अपने घमंड के आधार पर पराई नार अर्थात माता सीता का अपहरण कर लिया था।इस बात का ज्ञान होते हुए भी कि पराई स्त्री को हाथ लगाने मात्र से वह भस्म हो जाएगा।
    परंतु अहंकारवश उसी अहंकार में अपने समस्त कुल का नाश कर दिया था। हालांकि सब ने मिलकर उसे समझाया भी था। 
        अतः उपरोक्त तर्कों से स्पष्ट हो जाता है कि घमंड प्रत्येक युग में सिर चढ़कर बोलता था और ज्ञान विज्ञान एवं अज्ञान का कदापि मोहताज ना था, ना है और ना ही भविष्य में होगा।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में "  घमंड अधिकतर रूप से ताकत का नशा होता है । ताकत पद , धन और भी कई रूप हो सकते है । जो उम्रभर कभी नहीं हो सकता है ।इस का भविष्य अंधकार में डूबा होता है ।
                                           - बीजेन्द्र जैमिनी 
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