क्या बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृभाषा में देनी चाहिए ?

बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा किस भाषा मे हो रही है ? कम से कम मातृभाषा में नहीं हो रही है । मातृभाषा के बिना बच्चों को ज्ञान कैसे प्राप्त होगा । यही सब कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है ।अब आये विचारों को देखते हैं : - 
बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृभाषा में ही होनी चाहिए, यह उसके संस्कार और विकास के लिए बहुत ही जरूरी है। हालांकि वर्तमान समय में निजी स्कूलों में शिक्षा अंग्रेजी में ही दी जा रही है। यह देश के लिए और हमारे युवा पीढ़ी के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है। सरकारी स्कूलों के साथ-साथ निजी स्कूलों में भी प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में अनिवार्य होना चाहिए। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संशोधित मसौदे में भी मातृभाषा और अन्य भारतीय भाषाओं के संबंध में अनेक अहम सिफारिशें हैं, लेकिन मातृभाषा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण बिंदु को लेकर शिक्षा नीति तैयार वाले कस्तूरीरंजन समिति ने शायद इस पर बहुत गंभीरता से विचार नहीं किया है।  यह बिंदु है प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा का। हालांकि मातृभाषा किसे कहते हैं इसे लेकर विवाद है। क्या है मातृभाषा कि भारतीय कल्पना ? मातृभाषा में शिक्षा क्यों जरूरी है ? इस संदर्भ में शोधों के क्या तर्क है ? यह अभी क्या राष्ट्रहित में किया जाना चाहिए ? पिछले कुछ वर्षों से देश में सरकारी उस स्कूली शिक्षा में भारी गिरावट आई है। दूसरी तरफ निजी स्कूल कुकुरमुत्ता की तरह महानगरों को तो छोड़िए छोटे शहरों और कस्बों तक में चौतरफा उग आए हैं। सरकारी स्कूलों में शिक्षण का माध्यम जहां अपने अपने राज्यों की भाषा या यूं कहे की मातृभाषा हुआ करता था, वहीं अब लगभग सभी निजी स्कूलों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी हो गया है। हालांकि मातृभाषा की अवधारणा को लेकर एक बड़ा  विद्वान विवाद खड़ा करते हैं। वास्तु में मातृभाषा की भारतीय संकल्पना का पश्चिमी नजरिए से देखना उचित नहीं है। मातृभाषा का अर्थ है मां की भाषा, यानी झूले पालने की भाषा। प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक रविंद्र नाथ श्रीवास्तव लिखते हैं कि प्रयोजन की दृष्टि से मातृभाषा के दो आयाम है। पहले रूप में मातृभाषा का अर्थ है मां की भाषा यानी झूले पालने की भाषा। जिसके द्वारा शिशु अपने भाषाई बोध का निर्माण करता है। लेकिन पश्चिम से अलग भारत जैसी बहू भाषी देश में मातृभाषा का एक और ही आयाम है। वह भाषा भी मातृभाषा है, जो सड़कों बाजारों और व्यापक सामाजिक जीवन की भाषा है जिसके माध्यम से व्यक्ति विचार संस्कार और जाती है इतिहास व परंपरा से जुड़ता है। इसलिए बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा में मातृभाषा का होना बहुत ही अनिवार्य है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
आज की चर्चा का जो हमारा टॉपिक है वह है क्या बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृभाषा में देनी चाहिए जी बिल्कुल बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही देनी चाहिए | मातृभाषा में बच्चे कठिन विषय को भी आसानी से समझ लेते हैं, जबकि दूसरी भाषाओं में उन्हें मुश्किल होती है
| क्योंकि प्रारंभिक शिक्षा में हमारी भाषा की नींव रखी जाती है और अगर वह हमारी मातृभाषा में हो तो हम हर चीज आसानी से सीख सकते हैं | हर शिक्षक का यही लक्ष्य होता है कि बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा अच्छे से अच्छे दी जाए | और वह तभी संभव है जब बच्चा उस चीज को सीखें और इस सीखने में मातृभाषा का बहुत ही अहम योगदान है | नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में भी यह कहा गया है कि बच्चे चाहे किसी भी राज्य का हो उसको पांचवी तक यानी कि जो प्राथमिक शिक्षा हमारी होती है और जिसको हम प्रारंभिक शिक्षा बोलते हैं उसको हमारी मातृभाषा और राज्य भाषा में होना चाहिए | प्राथमिक स्तर के बाद जब उच्च माध्यमिक में बच्चा जाता है उसके बाद वह अनेकों भाषाओं में अपनी शिक्षा ग्रहण कर सकता है परंतु उसको अपनी मातृभाषा का ज्ञान होना आवश्यक है | 
 - रजत चौहान 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
मातृ भाषा अर्थात मां की भाषा जिससे प्रत्येक बच्चे का लगाव और स्नेह जुड़ा होता है ।
मां अपने बच्चे को कभी इशारों से तो कभी तोतली भाषा में सिखाने का प्रयास करती है।
 जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है वह अपनी मातृभाषा को पूरी तरह से सीख जाता है ,हर बात आसानी से समझ लेता है , विचारों को व्यक्त कर लेता है ।
 बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा यदि मातृभाषा में हो तो वह बहुत सहजता से सीख पाएगा।
 मां उसकी प्रथम गुरु तथा परिवार प्रथम पाठशाला होती है  ,मातृभाषा से बच्चा परिचित होता है उसे समझने में और ग्रहण करने में सफलता मिलती है ।
 घर परिवार में जिस भाषा में बातचीत करते हैं वही भाषा बच्चे की प्रारंभिक शिक्षा के लिए लाभप्रद मानी जाती है ।
 इसके अलावा मातृ भाषा हमारी संस्कृति को पुष्ट भी करती है और संस्कारों की नींव भी मजबूत करती है  ।
अपनी बाेल चाल में दिए गए संस्कार , सीख बच्चे शीघ्र आत्मसात करते हैं । 
परिवार में बड़े बूढ़ों का अच्छा व्यवहार , सकारात्मक सोच श्रेष्ठ विचारों को जन्म देते हैं । 
इन सब का आधार मातृभाषा ही होती है ।
 अतः प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए क्योंकि बच्चे की प्राथमिक शिक्षा का उसके जीवन में विशेष स्थान है , यह उसकी विशेष अवस्था है  जब वह शिक्षा की  सीढ़ी के प्रथम पायदान पर अपना कदम रखने जा रहा होता है ।
 शिक्षा का आगामी क्रम यहीं से शुरू होता है । शिक्षा क्षेत्र की पृष्ठभूमि को मातृभाषा बल प्रदान करती हैं । 
पाठशालाओं में ,शिक्षण संस्थाओं में, शिक्षा का माध्यम चाहे हिंदी हो या अंग्रेजी  विद्यार्थी का आधार मजबूत होना चाहिए ।
 इसीलिए अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए प्रारंभिक शिक्षा में मातृभाषा का विशेष महत्त्व है। समय के वेग में ढलने हेतु अन्य भाषाओं का ज्ञान भी जरूरी है । उच्च शिक्षा प्राप्ति में अंग्रेजी भाषा का अपना महत्व है । लेकिन उसमें भी विद्यार्थी पारंगत तभी होगा जब उसका मूल आधार बलिष्ठ होगा।  इसके लिए मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा अति आवश्यक है  ।
-  शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
     जिस घर संसार में जैसा परिवार होगा, उसी प्रकार से बच्चों में संस्कार हमेशा आते-जाते रहते हैं। इसीलिए कहा जाता था, कि गर्भवती महिलाओं को ज्ञान अर्जित करने की शिक्षा दी जाती थी, ताकि भविष्य में बच्चे होनहार निकले और बच्चे के मन मस्तिष्क में गहरी छाप पड़े। आज परिवर्तित समय में भारत में अंग्रेजी के प्रति लगाव काफी हो गया हैं, जिसके कारण मातृभाषा पिछड़ती जा रही हैं।  मान सम्मान और प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखा जाए तो आज हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में गृह युद्ध जैसी स्थिति निर्मित हो गई हैं।   कौशिश यही करनी चाहिए कि बच्चों में माता-पिता के माध्यम से मातृभूमि की रक्षात मातृभाषा का ज्ञान देना चाहिए। 
जैसी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा होगी, उसी तरह से परिपक्व होता जायेगा, कम से कम तो 7 वर्षों तक प्रारंभिक, नैतिक शिक्षा दी जा सकती हैं  भले ही उच्च शिक्षा में अन्य भाषाओं से परिचित हो। वैसे भी पिछले दिनों शिक्षा प्रणाली में संशोधन किया गया हैं ताकि जन मानस में हमेशा प्रभाव बना रहे। 
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
घर पर बोली जाने वाली भाषा को मातृभाषा कहा जाता है। बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए। क्योंकि बच्चा इसी भाषा से सहजता और सरलता से घर में ही काफी कुछ सीख सकता है।
बिल्कुल होनी चाहिए क्योंकि मातृभाषा से बालक परिचित होता है। इससे उसे समझने में,ग्रहण करने में सरलता मिलती है। मेरा मानना है बिल्कुल घर के बोलचाल में प्रारंभिक शिक्षा होनी चाहिए।
 वैसे तो जितनी अधिक भाषाएं हम सीख सके अच्छा ही है।
लेखक का विचार:-मातृभाषा केवल एक भाषा ही नहीं अपितु यह भावी पीढ़ी का संस्कृति सिखाने का माध्यम है‌। क्योंकि बच्चे अपनी जड़ों से जुड़ सकें तथा अपना आधार मजबूत कर सके ।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
प्रारंभिक शिक्षा को बच्चे की बुनियादी शिक्षा माना जाता है। बच्चे को प्रारंभिक शिक्षा मातृ भाषा में ही देनी चाहिए क्योंकि बच्चा मातृभाषा को सहजता और सरलता से घर में ही काफी कुछ सीख सकता है। माँ की लोरियाँ, दादी नानी की कहानियाँ और संस्कार सभी कुछ मातृभाषा में आसानी से ही ग्रहण करता है। फिर अपने आस पास के माहौल से भी अपनी मातृभाषा के द्वारा ही ग्रहण करता है। इस लिए आंरभिक शिक्षा मातृ भाषा में देने से शिक्षा की नींव मजबूत होगी।
      इस बात को यु.एन.ओ.ने भी माना है कि बच्चों की प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में अनिवार्य हैं। अब हमारे देश की नई शिक्षा नीति 2020 में भी प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में देने की व्यवस्था की है।आठ वर्ष में तीन भाषाई फार्मूला लागू होगा ।अगर हम मातृभाषा छोड़ कर दूसरी भाषा में ज्ञान देते हैं तो बच्चे मानसिक तनाव का शिकार सकते हैं। मनोवैज्ञानिक भी यही मानते हैं कि प्रारंभिक शिक्षा मातृ भाषा में ही देनी चाहिए। 
- कैलाश ठाकुर 
 टाउनशिप - पंजाब
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है कि क्या बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में देनी चाहिए तो यह बहुत अच्छा प्रश्न है और बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए इस बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं इसका कारण यह है की मातृभाषा में हम सभी चीजों को बहुत अच्छी तरह से समझ पाते हैं और उन पर अपने विचार और मनोभाव को भी व्यक्त कर पाते हैं इसका सबसे बड़ा फायदा यही है की भ्रम की स्थिति से बचे रहते हैं और प्रत्येक बात सही ढंग से स्पष्ट रूप से समझी जा सकती है कही जा सकती है और सुनी भी जा सकती है इसलिए प्रारंभिक शिक्षा ही क्यों बल्कि संपूर्ण शिक्षा को मातृभाषा में ही देने का प्रबंध होना चाहिए यदि ऐसा कर पाते हैं तो यह न केवल बच्चों के लिए बल्कि परिवार के लिए देश के लिए हितकर होगा जब हम सभी चीजों को ठीक ढंग से अच्छी तरह समझ कर चलेंगे तो उन्नति के नए आयामों को छूने में यह बहुत सहायक होगा़ 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
मातृभाषा बच्चों को समझ में आने वाली भाषा है. मातृभाषा में शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए, ताकि बच्चे अपनी संस्कृति को न भूलें और जो संस्कारों का क्षरण हो रहा है उसमें भी कुछ हद तक लगाम लग सकेगी और बच्चों को अपने समाज व रिश्तों की समझ भी आएगी. मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा देना लाभकारी हो सकता है, पर सिर्फ मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा देना कतई लाभकारी नहीं हो सकता. मातृभाषा का ज्ञान होना अनिवार्य है.. मातृभाषा लिखना-पढ़ना-बोलना-समझना भी आना चाहिए, लेकिन मातृभाषा के अतिरिक्त क्षेत्रीय भाषा, राष्ट्रभाषा और अंतर्राष्ट्रीय भाषा पर अच्छी पकड़ होना भी अत्यंत आवश्यक है. अनेक भाषाओं के ज्ञान से व्यक्ति की बुद्धिमता का विकास तो होता ही है, उसमें आय्मविश्वास भी बढ़ता है और अनेक भाषाओं के साहित्य, इतिहास व विज्ञान की जानकारी से वह लाभान्वित होता है. रोजमर्रा के जीवन के लिए क्षेत्रीय भाषा की शिक्षा भी महत्त्वपूर्ण है. इसी तरह राष्ट्रभाषा की शिक्षा और अंतर्राष्ट्रीय भाषा की शिक्षा की आवश्यकता भी निर्विवाद है. प्रारंभिक शिक्षा में प्रारंभ से ही मातृभाषा और क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा देना शुरु करना चाहिए और धीरे-धीरे राष्ट्रभाषा व  अंतर्राष्ट्रीय भाषा का ज्ञान भी दिया जाना चाहिए. यहां यह भी ध्यान रखना होगा, कि मातृभाषा कौन-सी है? शिक्षा की शुरुआत में शिक्षक सभी की मातृभाषा को जानता हो यह संभव नहीं है. अगर मातृभाषा भी हिंदी है, तो सोने पे सुहागा. शिक्षा के माध्यम की बात करते समय यह भी सोचना होगा, कि हमारी कोई राष्ट्रभाषा अवश्य हो. राष्ट्रभाषा छात्रों के लिए तो लाभकारी होगी ही, राष्ट्र की एकता के लिए भी अत्यावश्यक है. निष्कर्ष यह है कि सिर्फ मातृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा देना कतई लाभकारी नहीं हो सकता. 
- लीला तिवानी 
दिल्ली
      जब मां अपने बच्चों को स्तनपान अपनी भाषा में करवा सकती है तो शिक्षा विदेशी भाषाओं में क्यों? जबकि भाषा मात्र भाषा होती है और जैसे मां का दूध पाचक और स्वास्थ्यवर्धक होता है, उसी प्रकार मातृभाषा भी सरल और सहज होती है। जो अबोध बालक के कोमल मस्तिष्क में शीघ्रता से समा जाती है।
      यदि गम्भीरता से विचार किया जाए तो मां प्रथम गुरू होती है। जिसकी अनमोल शिक्षा जीवन भर साथ निभाती है। जिसे कभी रटना नहीं पड़ता। वह तो सदैव याद रहती है। फिर प्रश्न स्वाभाविक है कि क्यों शिक्षकों द्वारा दी गई शिक्षा के स्थान पर उनके द्वारा दी गई यातनाएं और थप्पड़ याद रहते हैं? क्यों बुद्धिमान अधिवक्ता और न्यायाधीश उत्पन्न नहीं होते? स्वतंत्रता के इतने दशकों बाद भी भारत आत्मनिर्भरता से कोसों दूर क्यों है? क्यों बेरोजगारी सिर चढ़कर बोल रही है? क्यों अधिकांश भारत गरीबी रेखा से नीचे है?
      कारण उल्लेखनीय हैं कि उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा के स्थान पर विदेशी भाषाओं को चुना। जो बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं। यही विशेष कारण हैं जो बच्चे पढ़ने के बावजूद बेरोजगार रहते हैं। अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि क्या कभी कोई सौतेली मां के दूध से पहलवान बन पाया है?
      अतः उपरोक्त प्रश्नों से छुटकारा पाने एवं सुनहरे विकास के लिए अग्रसर होने के लिए हमें कई नए ठोस सकारात्मक कदम बढ़ाने होंगे। जिनमें बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृभाषा में देना भी एक है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा अर्थात बुनियादी शिक्षा जिससे संस्कार व्यवहार शिष्टाचार बच्चे सीखते हैं इसके लिए हिंदी में दी जाने वाली शिक्षा ही उत्तम शिक्षा कह लाएगी चुकी बच्चों का मस्तिष्क एक कोरा कागज है उस पर सभी विषयों का अच्छी तरह ज्ञान होना सही जानकारी होना अपनी मातृभाषा में ही सहज एवं सरल होता है दूसरी भाषाएं को इंसान बड़े होने के बाद भी सीख सकता है पर जो बुनियादी शिक्षा है वह बचपन से मनुष्य में डालना अति आवश्यक है बच्चों को सिखाना अति आवश्यक है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
इसमें कोई दो राय नहीं कि..... 
"स्पर्श मातृभाषा का हमसे हमारी पहचान कराता है, 
संस्कारों की जड़ों की गहराई की अनुभूति कराता है। 
मातृभाषा में शिक्षा ठोस आधार है जीवन का, 
ज्ञान मातृभाषा का जीवन-पथ सरल कर जाता है।।"
यह सही है कि एक बच्चे के जन्म के समय से ही उसके चारों ओर मातृभाषा का वातावरण होता है। इसलिए जब वह प्रारम्भिक शिक्षा के लिए स्कूल जाता है तो पढ़ने का माध्यम मातृभाषा होने के कारण उसे ज्ञानार्जन करने में सहजता-सरलता होती है। मातृभाषा बच्चों को प्रत्येक विषय को शीघ्र और सरलता से सीखने-समझने के लिए अत्यन्त सहायक होती है। 
साथ ही यह भी दृष्टिगत है कि प्रारंभिक शिक्षा बच्चों की नींव होती है। इस समय उनके ज्ञानार्जन का क्षेत्र जितना व्यापक होगा उतना ही भविष्य में उन्हें सरलता होगी। वैश्वीकरण के युग में, जब अनेक भाषाओं का ज्ञान मनुष्य के सफल होने की प्रतिशतता में वृद्धि करने का सूचक है तब बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृभाषा में देनी सही नहीं है। बल्कि मातृभाषा को प्रमुख स्थान पर रखते हुए अन्य भारतीय भाषाओं एवं वैश्विक स्तर पर सर्वमान्य भाषा की शिक्षा देना भी अति आवश्यक है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
प्रारंभिक शिक्षा का व्यक्ति के जीवन में वही स्थान होता है जो एक मां का होता है अतः बुनियादी शिक्षा उसकी मातृभाषा में हो तो अच्छा है ! बच्चा प्रथम बोलना सीखता है तो अपनी मातृभाषा में ही बोलता है !सभी वस्तुओं की पहचान भी वह अपनी मातृभाषा मे करता है ! यही समय होता है जब उसका जीवन विकास क्रम भी गति लेता है ! चूंकि अन्य भाषा तो वह अपने उम्र के अनुसार बुद्धि विकास के साथ सीख जाता है ,वैसे भी बच्चों की ग्रहण शक्ति तीव्र होती है ! बच्चों में अपनी मातृभाषा  का संस्कार पर भी गहरा असर पड़ता है !बच्चे का बौद्धिक विकास ,शारीरिक ,मानसिक विकास मे भी मदद होती है !
अतःबच्चे की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
जो भाषा  मां से सीखी जाती है उसे मातृभाषा कहते हैं|  अर्थात घर पर बोली जाने वाली भाषा को मातृभाषा ही कहा जाता है | बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा देना इसलिए भी अनिवार्य है क्योंकि  बच्चे अपनी संस्कृति व  संस्कारों  से जुड़ सकते हैं |  जब बच्चे छोटे होते हैं तो  भाषा का ज्ञान बड़ी सुगमता से अर्जित कर सकते हैं | उनमें आत्मविश्वास की भावना  जगती है | इस प्रकार उनके आत्मविश्वास   का भी विकास होता है | अगर हम कहें कि मातृभाषा का स्थान वही है जो घर में एक मां का होता है |  तो  अतिशयोक्ति न होगी  अपनी मातृभाषा में बात को बड़ी सुगमता से, सरलता से समझ सकते हैं |
 बच्चा अपने परिवार व अपने वातावरण से बहुत कुछ सीखता है  |जिसे दूसरी भाषाएं नहीं सिखा सकती | प्राथमिक शिक्षा पूरी होने पर  अपनी भाषाओं के चुनाव के लिए वे स्वतंत्र हैं |  इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि बच्चा दूसरी  भाषाएं नहीं सीख सकता | जिसने भाषाएं व सीखेगा उतना ही उसका मानसिक विकास होगा |  बच्चों की मौलिक संभावनाओं का विकास होगा| देश में  हम भावनात्मक एकता को भी स्थापित कर पाएंगे | क्योंकि बच्चों का बचपन उनके संपूर्ण जीवन का आधार है  इसलिए मातृभाषा को अपनाने से  बच्चों का विकास तेजी से हो सकता है| इसलिए प्राथमिक रूप से घर की भाषा और स्कूल  की भाषा में समानता होनी आवश्यक है  तभी हम बच्चे के सर्वांगीण विकास में सहायक हो सकते हैं
- चंद्रकांता अग्निहोत्री 
पंचकूला - हरियाणा
मेरे विचार में बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृ भाषा में ही देनी चाहिए।  मातृ भाषा आपसी संवाद की एक ऐसी भाषा है जिसे समझने में कोई भी परेशानी नहीं होती।  मातृ भाषा में शिक्षा देना मानो एक मजबूत नींव की स्थापना करना है।  एक बार नींव मजबूत स्थापित हो जाए तो फिर उस पर विविध प्रकार की अनेक मंज़िलें निर्मित की जा सकती हैं।  बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृ भाषा में देने में शिक्षक वर्ग भी सहज होगा तथा बच्चे भी सहजता महसूस करेंगे।  बच्चों के माता-पिता भी बच्चों से यह जान पायेंगे कि वे किस प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और बच्चे भी माता-पिता को भली प्रकार से समझा पायेंगे कि उन्होंने क्या सीखा।  यह निराला गुण है मातृ-भाषा का।  इसके विपरीत यदि बच्चे मातृ-भाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा में शिक्षा ग्रहण करते हैं तो उसमें वह उतने कुशल नहीं हो पायेंगे और न ही उनके माता-पिता उनसे उसी सहजता से संवाद कर सकेंगे। एक स्तर पर मातृ-भाषा में पढ़ाने के बाद बच्चों में शिक्षा ग्रहण करने के प्रति रुचि जाग्रत हो जाती है और उन्हें शिक्षा ग्रहण करना किसी प्रकार का हौवा नहीं प्रतीत होती।  एक बार रुचि जाग्रत होने के बाद बच्चे विभिन्न विषयों में सुलभता से शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं और उसमें अन्य भाषाओं का समावेश भी हो सकता है।  मैं अपनी बात को पुनः दोहराना चाहूंगा कि बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृ भाषा में ही देनी चाहिए।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
 जी हां बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृ भाषा में होना चाहिए। क्योंकि बच्चा मातृ भाष से ही बुनियादी शिक्षा प्राप्त करता है। बच्चों की प्रथम पाठशाला उसका परिवार होता है परिवार में जिस तरह से भाषा बोलते हैं या बोली बोलते हैं बच्चा उसकी बोली भाषा से अस्तित्व को पहचानता है ज्यादा मात्री भाषा से वस्तु को समझता है उसे वस्तु को समझने में या ज्ञान प्राप्त करने में कोई परेशानी नहीं होती है और बचपन से ही हम अपनी मातृभाषा का शिक्षा ना देखा अन्य भाषा की शिक्षा देते हैं तो बच्चों के ऊपर भारी पड़ता है एक तो वस्तु को पहचानता नहीं है ना उस वस्तु का निरंतर रोज की भाषा में उसका प्रयोग नहीं होता है तो बच्चा ऐसी वस्तु को दबाव में आकर रखना शुरू कर देता है रखकर ही वस्तु की पहचान करता है समझ पर नहीं अतः साथ में किया बुनियादी शिक्षा मात्तृ भाषा में होना बच्चों के लिए अति आवश्यक है जब बच्चा थोड़ा समझने लगता है तो मिडिल क्लास में दूसरी भाषाओं का ज्ञान देने से बच्चा समझ कर उस भाषा को धीरे से पकड़ लेता है कोई भी वस्तु को पहले वहां अपनी मातृभाषा में समझता है फिर दूसरी भाषा में उसका ट्रांसलेशन कर लेता है और शुरुआती दौर पर ही वह अन्य भाषा से पढ़ाई करता है तो उतना समझ नहीं आ पाता है अतः यही कहते बनता है कि मात्तृ भाषा यही बुनियादी शिक्षा बच्चे को देनी चाहिए।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
हाँ बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में हो देनी चाहिए। क्योंकि उनके कानों में जन्म से ही मातृभाषा की आवाज सुनाई पड़ती है। माँ जो भाषा बोलती है बच्चे के लिए वही उसकी मातृभाषा हो गई। वैसे जब बच्चा जन्म लेता है तो उसे किसी भी भाषा का ज्ञान नहीं होता है फिर भी वह हिंदी में ही बोलता है कहाँ-कहाँ या केहां केहां। बाद में धीरे-धीरे वो भाषा बोलने की कोशिश करता है जो उसके माँ-बाप बोलते हैं। 
           इसलिए बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही देनी चाहिए जिसे वो सहज रूप से ग्रहण कर सकते हैं।या करते हैं। शुरू से ही उस भाषा का उस पर प्रभाव रहता है। माँ-बाप या घर वाले जो भी अपनी भाषा में बोलते हैं वो समझ जाता है भले बोल नहीं पता है। इस तरह अपनी भाषा में उसे कुछ सीखने में दिक्कत नहीं होती है। 
          मान लीजिए किसी बच्चे की मातृभाषा हिंदी है उसे तेलगु में पढ़ाया  जाय तो उतनी सहजता से वो किसी बात को नहीं समझ पायेगा जितनी जल्दी वो हिंदी में बताने पर समझ जाएगा।ठीक उसी तरह तमिल और तेलगु बच्चे के साथ भी होगा यदि उसे  दूसरी भाषा में शिक्षा दी जाय।पाँचवी कक्षा तक शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही होनी चाहिए। उसके बाद वो जितनी भाषा सीख सकें उनके लिए अच्छी बात होगी।
                इसलिए बच्चों की शिक्षा उनकी मातृभाषा में ही देनी चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
विद्यार्थी की प्रारंभिक शिक्षा उसकी मातृभाषा में अवश्य हो । ऐसा विचार है कि शिक्षा मातृभाषा के अलावा उस विद्यार्थी को अंग्रेजी और हिंदी का भी ध्यान देना चाहिए यह ज्ञान अगर उसे बचपन से ही मिलेगा तो उसका संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सकेगा। क्योंकि मातृभाषा में पढ़कर आगे उसका विकास कैसे होगा क्योंकि जितनी भी कॉम्पिटेटिव एग्जाम्स होते हैं उसकी भाषा हिंदी या इंग्लिश ही रहती है तो वह एग्जाम यदि बच्चा मराठी कन्नड़, तेलुगू ,तमिल पंजाबी ,मलयाली आदि भाषाओं में पढ़ाई कर रहा है, तो वह आगे प्रतियोगी परीक्षाओं को कैसे दे पाएगा। और उसका एक अच्छी नौकरी का सपना कैसे पूरा होगा यह तो संभव नहीं है इसलिए उससे बचपन से ही उसकी मातृभाषा के अलावा हमें उसे सभी भाषाओं का ज्ञान देना चाहिए इससे उसको सब भाषाओं के प्रति आदर एवं सम्मान भी रहेगा एक बच्चे के संपूर्ण सर्वांगी विकास के लिए यह अति आवश्यक है कि बचपन से ही उसे सर्व धर्म भाव सम्मान की शिक्षा देनी चाहिए वासुदेव कुटुंबकम् का ज्ञान होना चाहिए। 
उदाहरण के लिए यदि बच्चा पढ़ने में बहुत होशियार है उसे स्कॉलरशिप मिली और वह बाहर उच्च शिक्षा के लिए गया तो विदेश में जाने के लिए और शिक्षा प्राप्त करने के लिए उससे अंग्रेजी का भी तो ज्ञान होना चाहिए भाषा कोई भी खराब नहीं होती सभी भाषाएं बहुत अच्छी है और हमारे देश में सभी को संपूर्ण आजादी अपनी भाषा और धर्म मानने का हमें इस बात का गर्व है कि हम हिंदुस्तान में रहते हैं और हिंदुस्तान में ही हमने शिक्षा दीक्षा प्राप्त की है।
स्वस्थ रहें मस्त रहें
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
              बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में देने से पाठ्यवस्तु को समझाने में मदद मिलती है बच्चे अच्छी तरह से समझ जाते हैं। पर इसका मतलब यह नहीं कि हिंदी को दरकिनार कर दिया जाए। मेरे ख्याल से तो उसे साथ में चलने देना चाहिए ताकि हिंदी का भाषा ज्ञान भी मातृभाषा के माध्यम से मिलता रहे और आगे जाकर पढ़ाई करने में दिक्कत ना हो। नहीं तो आगे जाकर वह भी एक नए   विषय के रूप में शामिल हो जाएगी संस्कृत और अंग्रेजी की तरह।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
मातृभाषा में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए नई शिक्षा नीति में विशेष जोर दिया गया है। प्राथमिक स्तर पर, मातृभाषा में ही बालक को पढ़ाया जाएगा, ऐसा नई शिक्षा नीति की अब तक आई सूचनाओं में कहा गया है। इसमें मातृभाषा का क्या योगदान हो सकता है? यही 
आज का विचारणीय विषय है। मातृभाषा में सिखाई गई, पढ़ाई गई, बात संस्कार हमेशा बने रहते हैं। मातृभाषा में बालक जल्दी ही चारों दक्षताओं में निपुण हो जाता है। यह दक्षताएं हैं- सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना। जब बालक इन दक्षताओं में निपुण हो जाता है तो फिर आगे कहीं भी उसके पिछड़ने का कोई अवसर नहीं होता। इसके प्रयोग से बालक का चहुंमुखी विकास होता है। सबसे बड़ी बात यह यह कि आत्म अभिव्यक्ति का गुण विशेष रुप से विकसित हो जाता है। जब संस्कार और अभिव्यक्ति के गुण विकसित हो जाएं तो बालक की नींव मजबूत हो ही जाएगी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -  उत्तर प्रदेश
बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा सिर्फ मातृभाषा में देनी चाहिए यह परिस्थिति और उनके मानसिक अवस्था पर भी निर्भर करता है। मात्रृभाषा का ज्ञान बच्चों को अवश्य होनी चाहिए पर अगर इसके साथ-साथ दूसरे भाषाओं का भी ज्ञान हो तो आगे चलकर उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई नहीं होगी। 
यह सिद्ध हो चुका है कि मातृभाषा में शिक्षा बालक के उन्मुक्त विकास में ज्यादा कारगर होती है। अलग-अलग आर्थिक परिवेश के बालक को विषय  को ग्रहण करने की क्षमता सामान नहीं होती।
  मात्रृभाषा के माध्यम से जब पढ़ाया जाता है तो बालक के चेहरे पर मुस्कान दिखाई देती है। दूसरी भाषा सीखना भी अच्छी बात है, लेकिन मात्रृभाषा की उपेक्षा करना ठीक नहीं। 
केंद्र सरकार कार्यालय में हिंदी कामकाज को बढ़ावा देने की बात कहती है पर व्यावहारिक रूप से अंग्रेजी का वर्चस्व बना हुआ है।
 हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है लेकिन कार्यालयों में हिंदी में कामकाज के लिए कोई जगह नहीं है। 
 ईमेल, इंटरनेट, कंप्यूटर, लैपटॉप फेसबुक आदि सब हिन्दी में भी अब प्रयोग होने लगे हैं फिर भी अभिभावक हिंदी की जगह अंग्रेजी में बच्चों को पढ़ाना ज्यादा अच्छा मान रहे हैं।
अच्छी नौकरी पाने के लिए, ज्ञान अर्जित करने के लिए अंग्रेजी सीखना बहुत अच्छी बात है पर  अंधानुकरण में आज अंग्रेजी को ही सभी महत्व दे रहे हैं और सभी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाना ज्यादा पसंद कर रहे हैं ताकि वह आगे अपनी पढ़ाई उचित ढंग से कर सके।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि मात्रृभाषा में प्रारंभिक शिक्षा अनिवार्य रूप से मिलनी चाहिए इसके अलावा दूसरे भाषाओं का ज्ञान हो तो अति उत्तम है।
               - सुनीता रानी राठौर
                ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
*महात्मा गांधी जी की बुनियादी शिक्षा इसी पर आधारित थी*
*मातृभाषा का स्थान मां की तरह होता है*
बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में
देना बच्चों के विकास क्रम की गति को निर्धारित करता है मातृभाषा में बच्चे सहजता और सरलता से सीखते हैं
बच्चे उसमें अपने आप को सहज महसूस करते हैं जल्दी सीखते हैं खेल खेल जैसे ही उनके लिए यह मातृभाषा होती है मातृभाषा में वह सब कुछ सीख जाते हैं उनका सर्वांगीण विकास तीव्रता से होता है सीखने की क्षमता में अधिक वृद्धि होती है मातृभाषा हमारी सामाजिक भाषायी पहचान होती है
देश राष्ट्रहित से भी हमें जोड़ती है मन में देश राष्ट्र के प्रति उत्प्रेरक विचार
उत्पन्न करती है निश्चित ही बालक की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए इससे बच्चों की क्षमता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है।
*निज भाषा बिना उन्नति नहीं भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने भी कहा है*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
आइयै आज बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा  पर बात करते हैं, कि बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा किस भाषा में देनी चाहिए।
मेरे ख्याल में यहां तक प्रारंभिक शिक्षा की बात है वो मातृभाषा में ही बच्चों को दी जाए तो यह सोने पै सुहागा जैसी बात होगी, 
क्योंकी हम सभी संस्कार मातृभाषा में से ही पाते हैं, मातृभाषा ही  आत्मा की आबाज है तथा हमें राष्टृीयता से जोड़ती है, 
यही नहीं जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे मातृभाषा कहते हैं और इसे हम जन्म से ही प्रयोग करते हैं,
सभी संस्कार एंव् व्यवहार इसी के द्वारा हमें मिलते हैं, फिर क्यों न हम बच्चों को पारंभिक शिक्षा इसी भाषा में दें
अगर सारे भारत की बात करूं तो भारत के हर प्रांत की
अलग अलग संस्कृति है और अलग अलग पहचान है, उनका अपना एक विशिष्ट भोजन, संगीत  और लोकगीत है, 
इस विशिष्टता को बनाये रखनाव प्रत्सोहित करना अति आवश्क है, इसलिए प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए, 
यही नहीं, बच्चे अपनी मातृभाषा भूलचुके हैं, मैं उन्हें प्रोत्साहित करना चाहता हुं कि अपनी मातृभाषा को सीखें व प्रयोग करें व इस धरोहर को  संभाल कर रखें। 
मातृभाषा में बात न करना एक फैशन सा हो गया है, जिससे शहर और गांव के बच्चों में दूरियां वढ़ती जा रही हैं, इसलिए मातृभाषा हर प्रांत  के स्कूल में अनिवार्य होनी चाहिए  जिससे हर प्रांत संस्कृति को वढ़ावा मिल सके, 
मेरे विचार में भारतिय भाषाएं एंव संस्कृति एक विश्व की अनुपम धरोहर है, इसलिए हमें अपनी सभ्यता के निष्ठा के प्रति सचेत रहना चाहिए। 
आखिर में यह कहना चाहुंगा, 
"मातृभाषा को मित्रभाषा बनाएं, इसे मृतभाषा न वनाएं"।
क्योंकी मातृ तो मां होती है मां से वढ़कर कौन होता है इसलिए मातृभाषा को मां का  दर्जा ही दें  और बच्चों  की  प्रारंभिक  शिक्षा सिर्फ मातृभाषा से ही  आरंभ करें इसे लुप्त मत होने दें। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्म् - जम्मू कश्मीर
प्रारम्भिक शिक्षा जीवन की वह अवस्था है जब व्यक्ति के जीवन विकास क्रम को गति मिलती है जिसमें बच्चों का शारीरिक, संज्ञानात्मक बौद्धिक, सृजनात्मक, अभिव्यक्ति और सौंदर्यबोध विकास होते है l वर्तमान में बालकेंद्रित  शिक्षा  का दौर है जिसमें शिक्षक की भूमिका पथ प्रदर्शक के रूप में होती है, ऐसे में नितांत आवश्यक है कि बच्चों से अपनी ही मातृभाषा में बात की जाये ताकि स्वाभाविक विकास संभव हो l बालक मानसिक रूप से स्वतंत्र और दवाबों से मुक्त होगा l घर में बच्चा हिंदी या मातृभाषा में बात करता है और स्कूल में अंग्रेजी तोते की तरह रटना ऊपर से माँ -बाप और शिक्षक की डॉट स्कूल जाने के नाम से ही बच्चा डर एवं तनाव में आ जाता है l इसे समझने में आज अभिवावक और शिक्षक असमर्थ हैं l 
     बालक को अन्तोगत्वा समाज में ही रहना है और समाजीकरण शिक्षा का अहम उद्देश्य है, समाजीकरण की प्रक्रिया का आधार भाषा है l अतः मातृभाषा के आधार से विमुख नहीं होवें l मातृभाषा वह है जिसे हम माता के दूध के साथ सीखते हैं तथा अपनी अभिव्यंजना का माध्यम बनाते हैं l दूसरी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाना बालकों की स्वतंत्र गति को पंगु बनाना है l मनोविज्ञान यह कहता है कि सीखने की प्रक्रिया में पूर्व ज्ञान अपना अहम रोल अदा करता है बालक के अनुभव अपनी भाषा में ही सीखे गये होते हैं, कैसे जुड़ पायेगा बालक अन्य माध्यम में ? 
     गाँधी जी के अनुसार "विदेशी माध्यम का रोग बिना किसी देरी के तुरंत रोक देना चाहिए l उनका मत था कि मातृभाषा का स्थान दूसरी भाषा नहीं ले सकती l  उन्होंने कहा कि -"गाय का दूध भी माँ का दूध नहीं हो सकता l "
        ------चलते चलते 
पिता की डॉट से माँ की लोरियों तक 
स्कूल की किताबों से घर की टोलियों  तक 
जिनसे कुछ भी मैंने पाया है 
मातृभाषा ने इन सब में अपना क़िरदार निभाया है l 
    - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान

" मेरी दृष्टि में " मातृभाषा के ज्ञान के बिना अन्य भाषा सिखना असम्भव है । इसलिए मातृभाषा का पूर्ण ज्ञान सबसे पहले आवश्यक है । परन्तु ऐसा नहीं हो रहा है ।अत : बिना मातृभाषा के ज्ञान के बिना शिक्षा पिछड़े रही है ।
 - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान

Comments

  1. बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए जिससे विषय वस्तु उसकी समझ में आ सके। शैशव काल से जिस भाषा को वे सुनते आ रहे हैंं, उस भाषा में शिक्षा देने से अधिक अच्छी तरह से ग्रहण कर सकेंगे। यह तो निर्विवाद सत्य है। पर हिंदी को भी साथ में रखना चाहिए ताकि थोड़ा बहुत उसका भी ज्ञान मिलता रहे।

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  2. आज की दिनचर्या में, विदेशी भाषाओं के प्रभाव में बच्चों का हिंदी के प्रति आकर्षण कम हो रहा है। इससे हमारी मातृभाषा को खतरा हो सकता है। हमें इसे संरक्षित रखने के लिए समय पर कदम उठाने की आवश्यकता है। Hindi Sahayak

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