क्या धैर्य की भी कोई सीमा होती है ?

जीवन के हर क्षेत्र में धैर्य की आवश्यकता होती है । फिर भी धैर्य की सीमा की आवश्यकता पड़ती है । यही " आज की चर्चा  " का प्रमुख विषय है । आये विषय पर विचारों को देखते हैं : -
धैर्य की एक अनिश्चित सीमा होती है, ऐसा हम मान सकते हैं। यह सीमा व्यक्ति के सहनशीलता पर निर्भर करती है। प्रत्येक व्यक्ति की सहन करने की शक्ति भिन्न-भिन्न होती है। एक व्यक्ति की खुद की सहनशीलता उसके उस वक्त की उसकी मानसिक अवस्था पर निर्भर करती है। अतः हम कह सकते हैं कि एक ही व्यक्ति की धर्य की सीमा विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न होती है। यदि कोई व्यक्ति यह कहता है कि अब उसकी धैर्य की सीमा समाप्त  हो गई है, तो यह उसकी उस वक्त की मानसिक अवस्था की स्थिति होगी।
 - रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
धैर्य की सीमा तय करना बहुत मुश्किल है । धैर्य हरव्यक्ति में अलग अलग होता धैर्य को किसी सिमा में बांधना मुश्किल ही नहीं असम्भव है ।  धैर्यवान होना सरल काम नहीं है। यह कहना भी शायद गलत न हो कि आज की दुनिया में धैर्यवान बनना सबसे कठिन काम है। धैर्यवान होना विशेषता है व इसे विकसित होना चाहिए। धैर्यवान बनने के लिए अभ्यस्त होना भी सरल काम नहीं है लेकिन जो लोग धैर्यवान होते हैं उन्हें विभिन्न मार्गो से इसका फल मिलता है। हर व्यक्तिके अपनी दिनचर्या के लक्ष्य होते हैं जो उसके प्रयास का कारण बनते हैं। केवल इस अंतर के साथ उद्देश्यों का महत्व एक जैसा नहीं होता। उदगम से गंतव्य तक पहुंचना सरल काम नहीं होता बल्कि इस बात की संभावना होती है कि लंबे मार्ग में समस्याओं के कारण मनुष्य की रफ्तार कम या फिर पूरी तरह रुक जाए। यदि व्यक्तिके पास पर्याप्त अनुभव न हो तो संभव है कि वह प्रारंभिक रुकावटों का सामना होने पर हताश व निराश हो जाए। इस हताशा व निराशा से वह आगे बढ़ने से रुक जाए। अगर वह हताशा और निराशा से अपने कदम रोक लेता है तो इसमें कोई संदेह ही नहीं रह जाता कि वह लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग से दूर हो जाएगा। लेकिन यदि व्यक्तिके पास पर्याप्त अनुभव हो और वह उद्देश्य तक पहुंचने में सहायता करने वाले तत्वों को पहचानता हो तो इस बात में संदेह नहीं कि उसकी सफलता की संभावना कई गुना बढ़ जाएगी। धैर्य रखने का अर्थ शाति के साथ कदम उठाना और परिणाम की प्रतीक्षा करना है। उतावलेपन का अर्थ तुरंत परिणाम तक पहुंचने की प्रतीक्षा करना है कि यह मनुष्य की बहुत बड़ी कमियों में से एक है। शब्दकोष में धैर्य का अर्थ स्वयं को रोकना है। जब कोई व्यक्ति ख़ुद को किसी काम से रोक ले कि जिसे वह कर सकता हो तो ऐसे व्यक्ति के बारे में यह कहा जाएगा कि उसने धैर्य से काम लिया। इसलिए धैर्य की आम परिभाषा यह होगी कि ख़ुद को ऐसे काम से रोकना जो लक्ष्य तक पहुंचने में रुकावट या उस तक देर तक पहुंचने का कारण बने। इस परिभाषा के तहत धैर्य अपने आप में कोई नैतिक गुण नहीं कहलाएगा बल्कि यह एक प्रकार का प्रतिरोध है जो मन पर काबू होने से प्राप्त होता है। यह प्रतिरोध ऐसी स्थिति में नैतिक विशेषता कहलाएगी जब किसी धैर्यवान व्यक्ति का उद्देश्य नैतिक परिपूर्णत: तक पहुंचना और ईश्वर का निकटता प्राप्त करना हो। इसलिए जीवन में लक्ष्य तक पहुंचने के लिए यह आवश्यक है कि मानव धैर्य के सदाचार को अपने जीवन का अंग बनाए और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करे।
धैर्य रखना बहुत जरुरी है धैर्य रखने से बिगड़ें काम भी बन जाते है । 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
गहरी की तो कोई सीमा नहीं होती है इसी तरह धैर्य की भी कोई सीमा नहीं होती। यह तो आशावादी मनुष्य की सहनशीलता पर निर्भर होती है कि वह किस हद तक सहनशील हो सकता है अधिकतर यह गुण महिलाओं के अंदर होता है क्योंकि उन्हें बचपन से ही सहने की आदत हो जाती है प्रकृति भी बहुत कुछ बर्दाश्त करती है जब गैर की अति होती है तभी प्राकृतिक आपदाएं आती है मनुष्य जब उनके साथ खिलवाड़ करता है तब उदाहरण जैसे केदारनाथ में भूकंप का आना। किस से मनुष्य के या जानवर को हद से अधिक परेशान नहीं करना चाहिए नहीं एक दिन उसके सब्र का बांध टूट जाएगा आखिर वह कब तक बर्दाश्त करेगा एक दिन अवश्य विरोध उठेगा जैसे 18 57 की क्रांति मैं रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था उसके भी धैर्य को चुनौती दी गई थी। कुछ लोग भी बात के भी उड़ जाते हैं जोर-जोर से चिल्लाते हैं क्रोध पूर्वक उत्तेजना आत्मक चित्रों द्वारा युद्ध कारी दृश्य को प्रस्तुत कर देते हैं दूसरों की बात सुनने का तो ध्यान ही नहीं होता वह वातावरण को तनावपूर्ण बना देते हैं ताकि धीरे-धीरे उग्र होते जाएं समझौते के भी अवसर दूर होते जाएं कटु स्वभाव वाले लोग बातों पर भी सिद्धांतों और प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेते हैं वह बिंदु ही विवाद उठा देते हैं तथा साधारण बातों को भी बढ़ा चढ़ा कर बता देते हैं जिनकी उपेक्षा कर देनी चाहिए वास्तव में वे दया के पात्र होते हैं उन्हें धैर्य और शांत किया जाना चाहिए क्रोध अपूर्ण भड़कानो का भी समाधान सौहार्द्र से कर देती है तथा नासमझ लोग दूसरों के लिए समस्या खड़ी कर देती हैं आप उत्तेजना होते हुए भी शांति और प्रेम स्थापित करना चाहिए।
तुलसी या संसार में भांति भांति के लोग। सबसे हिलमिल चलिए , नदी नाव संजोग।।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
क्या धैर्य की भी कोई सीमा होती है?
 धैर्य की  सीमा होती है बिना  धैर्य के कार्य पूर्ण नहीं होता अगर कोई भी व्यक्ति धैर्य से कार्य करता है तो धर्य के पीछे उसके कार्य की सफलता जुड़ी रहती है अगर हम धैर्य से काम नहीं लेते हैं तो हमने उतावलापनऔर निराशा आती है ,जो हमारी सफलता का बाधक होता ह।ै अतः कोई भी कार्य में धैर्य की सीमा होती है अगर धैर्य से अधिक कोई भी कार्य व्यवहार 
 सीमा के अंतर्गत ना हो पाने से धैर्य अनियंत्रित होकर हमारा कार्य व्यवहार को असफल कर देता है। धैर्य की सीमा में रहकर ही हमारा कार्य सफल होता है। धैर्य समस्या के लिए नहीं समाधान के लिए धारण करना पड़ता है ।धैर्य की सीमा ना होने से ही हमें समस्या में फसना होता है अतः धैर्य की  सीमा होती है। इस सीमा के अंतर्गत रह कर हम कोई भी समस्या का हल ढूंढ निकालते हैं अगर धैर्य से काम नहीं लिया जाता है तो हम निराश होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। हमे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए धैर्य और सहनशीलता की आवश्यकता होती है ।जो एक दायरे क्षेत्र में होता है धैर्य और सहनशीलता की कमी और अधिक होने से हमारी व्यवस्था बिगड़ जाती है  धैर्य के साथ ही हम अपने जिंदगी में व्यवस्था पूर्वक देने के लिए आगे बढ़ते हैं अतः कहा जा सकता है कि धैर्य की सीमा होती है  ।धैर्य नकारात्मक के लिए नहीं सकारात्मक के लिए होता है ।कुछ लोग का कहना होता है कि धैर्य से कायरता दिखाई पड़ती है ऐसा नहीं है धैर्य कायरता नहीं है धैर्य धारण करने वाले की महानता होती है धैर्य धारण करने वाले व्यक्ति अपनी महानता का व्यक्त धैर्य की सीमा में रहकर आगे बढ़ता है अतः धैर्य धारण करने वाले व्यक्ति सहनशीलता के साथ समाज के सामान्य व्यक्ति से उसकी पहचान अलग होती है जो सबके लिए भला होता है धैर्य धारण नहीं करने वाले व्यक्ति हमेशा आवेशित उतावले होते हैं उतावलामें कोई भी कार्य  व्यवहार करने से कहीं न कहीं त्रुटियां या  बाधाएं आ ही जाती है। जिसे बाद में दुख का एहसास होता है जबकि मनुष्य दुख में जीना नहीं चाहता अतः इस दुख से निजात पाने के लिए हर मनुष्य को धैर्य से काम लेना चाहिए और साथ साथ सहनशीलता भी होनी चाहिए ।
धैर्य सहनशीलता से ही मनुष्य अपने को एक महत्वपूर्ण इंसान के रूप में देख पाता है यही उसकी खुशबू है खुशबू ही
उसका सुख है। इस सुख को बनाए रखना हम सभी मानव जाति का कर्तव्य है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
        धैर्य वह शब्द है।जिसकी कोई सीमा नहीं होती।दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि धैर्य जीवन की समस्त इच्छाओं की पूर्ति का वह स्वपन्न है।जो अंतिम सांस तक चलता है।जीवनचक्र भी आशा और धैर्य पर टिका हुआ है।
     धैर्य की शक्ति से ही हम असक्षम से सक्षम होते हैं।धैर्य वह राम बान है।जिससे हम कठिन से कठिन विपत्तियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। जैसे यदि पहले परिश्रम से जब हम सफल नहीं होते हैं।तब हम धैर्य की शरण लेते हुए पुनः सफलता का प्रयास करते हैं और तब तक प्रयास करते रहते हैं।जब तक हम सम्पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं कर लेते।  अतः इतिहास साक्षी है कि कर्मवीरों व शूरवीरों ने धैर्य के आधार पर असम्भव को सम्भव किया हुआ है।
-इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हमें सबसे पहले धैर्य का अर्थ  जानना होगा । धैर्य का मतलब  धीरता , धीरज , चित्त की दृढ़ता , स्थिरता है । धैर्य मानव को विषम परिस्थितियों में मुकाबला करने के लिए  सहनशीलता देता है । जो हमको नकारात्मक मनोवृत्तियों को पनपने से बचाता है । जैसे हमें किसी काम को काफी समय तक कर रहे हैं और हमें सफलता नहीं मिले । ऐसी अवस्था में हमें क्रोध  , क्षोम , काम अधूरा ही छोड़ देना , तनाव का पैदा हो जाना आदि नकारात्मक सोच की प्रवृति पैदा हो जाती है । लेकिन ऐसे में धैर्य की डोर  उस स्थिति से निकलने के लिए हमें बाँधे रखेगी ।  यही चारित्रिक दृढ़ता  धैर्य का रूप है । फिर हम धैर्य की सीढ़ी पर चढ़कर सफलता हासिल कर लेते हैं ।
धैर्य खोने से हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं।
आप सबने कछुआ और  खरगोश की दौड़ की कहानी पढ़ी जरूर होगी । कछुआ धीरे - धीरे , अपनी मंजिल पर धैर्य के साथ पहुँच जाता है। कछुआ के   चित्त में  मंजिल तक पहुंचने की दृढ़ता थी । कछुआ  ने जीतकर लक्ष्य हासिल किया ।
जब की खरगोश जल्दबाजी से दौड़ के बीच में सुस्ताने के लिए आराम करने लग जाता है और उसे नींद आ जाती है । जब खरगोश उठता है । तो उसका लक्ष्य हाथ से निकल जाता है । क्योंकि  खरगोश की रफ्तार ने आराम करके अपना धैर्य , रफ्तार को खो दिया । परिणाम खरगोश हार गया । आराम  ने उसका संतुलन गड़बड़ा दिया । एक कलाकार कई दिनों की मेहनत करने जे बाद सुंदर  खूबसूरत पेंटिंग बनाता है ।  उस पेंटिग बनाने में उसका धैर्य और गुणवत्ता ही बोलती  है । अगर वह जल्दबाजी करेगा । तो पेंटिंग सुंदर नहीं बनेगी । 
इसलिए कहा भी गया जल्दबाजी से काम बिगड़  जाता है ।अधीरता मानव का विनाश कर देती है । जैसे गर्म उबलता दूध हम पीए तो मुँह जलेगा । इसलिये उक्ति भी है । तत्ता - तत्ता न पी , खा । मुँह जल जावेगा । हमें ऐसे विनाशकारी  भव से बचने के लिए जीवन में धैर्य को अपनाना होगा ।
इसलिए हम धैर्य को सीमा में नहीं बाँधे । गुणवत्ता का संबंध धैर्य से जुड़ा है । विपत्तियों , संकटों धैर्य की परीक्षा होती है । सीता स्वयंवर के समय जब राजाओं से धनुष नहीं टूटा तो राजा जनक ने अपना आपा खो बैठे थे । तभी प्रभु राम ने धीरज धर के  जनक जी को धैर्य बँधाया और धनुष तोड़कर प्रतिज्ञा  की मर्यादा रख के सीता से विवाह
 किया । शादी के बाद सीता पर विपत्तियों का पहाड़ टूटा । मारीच बना  कपट सवर्ण  मृग देख के सीता का अपरहण रावण ने किया । राम ने धैर्य से विषमताओं में परीक्षा दे के सीता को रावण के चुंगल से छुड़ा के रावण को मार के  विभीषण को राजा बनाया । इतने सालों तक सीता ने धैर्य की परीक्षा दी । विषम परिस्थितियों में सीता जी घबरायी नहींथी ।
कहने मतलब यही है कि मानव को धैर्य नहीं खोना चाहिए । धैर्य ही हमें सफलता के द्वार ले जाते हैं ।   पंडित  सप्तपदी में वर - वधु को संयम , धैर्य  , समर्पण  के पाठ का बोध कराता है । वधु तो नए परिवेश में  धैर्य धारण करके उस अजनबी माहौल को दायित्वों का निर्वाह करके  एक दिन सब सदस्यों को अपना बना लेती है । रोग, शोक विफलताएँ में हमें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए । जिसने  दुख , कष्ट को सह लिया । धैर्य ही उनका साथ देता है । धैर्य की नाव पर आशा सवार होती है । जो तन - मन के जख्मों को भर देती है । जो व्यक्ति साधना मार्ग  में अपनी उन्नति, प्रगति चाहता है । तो उसे विपत्तियों में धीरज धर के ही विपत्ति भाग  जाती है ।
गांधी जी  की जीवनी में उल्लेख आता है कि एक बार पानी के जहाज में बैठ कर विलायत जा रहे थे । तभी भयंकर तूफान आया । जहाज में बैठे सभी लोग चिल्लाने और रोने लगें । लेकिन गांधी जी पूर्वत की तरह बैठे रहे और ईश मनन करने कगे ।   उन्हें देख के सभी लोग आश्यर्य चकित हुए । गांधी जी ने अपना धैर्य नहीं खोया था । तुलसीदास जी ने कहा है , " तुलसी असमय के सखा , धीरज , धर्म , विवेक ।
साहित , साहस , सत्यव्रत , रामभरोसो एक ।
धैर्य के संग विवेक काम करता है । विश्व में  जितने भी संत , महापुरुष , महावीर , बुद्ध , ऋषि , मुनि आदि सभी ने धैर्य को अपने जीवन धारण किया ।  जीवन को सार्थक किया । 
कहने का मतलब यही है अधीर मन फल को खोता है । चैरी से हम सब कुछ हासिलबकर लेते हैं । अहिंसा भी धैर्य पर विश्वास करने को कहती है । अँधेरी राहों में धैर्य का दीया ही रास्ता दिखलाता है । माउंट एवरेस्ट पर  शेरपा तेनसिंह आठ बार  चढ़ने पर गिरा  था । अंत में हिमालय के शिखर पर चढ़ा । हिम्मत न हारी । धैर्य के दम पर विजय हासिल की ।
भारत के छम्ब क्षेत्र के मोर्चे पर कर्नल मेघसिंह के पास केवल 45 सैनिकों का साथ था । अचानक पाकिस्तानियों की सेना ने उन्हें अँधेरे में घेर लिया । तभी  कर्नल मेघ सिंह ने धैर्य , साहस से सैनिकों के साथ  ऐसा परिवेश बना के आदेश देने लगे  । जैसे उनके साथ  की सौ भारतीय सैनिक हो ।  पाकिस्तानियों को वहाँ से भगा दिया । यह घटना भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से रेखांकित है । धैर्य को कोई सीमा नहीं होती है । मानवता , अहिंसा  के परिवार में धैर्य का आधारभूत सूत्र है । यही पाठ हम अपने परिवार से सीखते हैं । तभी हम अच्छा समाज , देश निर्माण कर सकते हैं । हम अपने मन के कोरे कागज पर धीरज की मोहर लगा दें । धैर्य की अनमोल कीमत हमारे व्यवहार , कामों  में चमत्कार पैदा कर देगी । हम सफलता के सौपानों के शिखर छूने लगेंगे । 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
जी इसमें कोई संदेह नहीं है धैर्य की सीमा की भी कोई सीमा होती है ।आदमी कितना भी धैर्य शाली हो ।उदार हो ।उसके अन्दर सहनशीलता कूट-कूट कर भरी हो।पर कब तक कोई  सहन करेगा ।जब अस्तित्व बात आती है ।स्वाभिमान मरने लगता है तो आदमी का धैर्य जबाव दे जाता है और वह प्रतिरोध के लिये उठकर खड़ा हो जाता है ।रामायण में रामचंद्र जी के द्वारा तीन दिन समुद्र से रास्ता मांगने की बात हो।महाभारत में पाण्डव की अधिकार के लिए आधा राज्य पांच गांव या सुई के नोक के बराबर न देने की जिद साथ ही
आजकल का सामाजिक राजनीतिक व आर्थिक समय सब यही सन्देश देते हैं कि धैर्य की भु कोई सीमा है।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर- उत्तर प्रदेश
हां, धैर्य की सीमा होती है; क्योंकि धीर- वीर व्यक्ति जीवन की विषमताओं और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद अपना धैर्य का विश्वास बनाए रखता है। इसके मूल में कारण यह होता है कि व्यक्ति जीवन- लक्ष्य की ओर निरंतर चलने वाली प्रगति या उस कार्य में सफल होने के लिए बाह्य प्रतिक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित न करके अंतर्मुखी होकर घटना के मूल में जाकर उसको हल करने के लिए अनुकूल  व उचित दिशा के लिए योजनाएं बनाता है; जो विवेक पूर्ण होती हैं। कबीर ने भी धैर्य की सीमा के पक्ष में इस प्रकार कहा है-
" धीरे धीरे रे मना ,धीरे सब कुछ होय/ माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय।।"
            धैर्य का फल शुरू में कड़वा होता है पर अंत में मीठा ही रहता है। प्राचीन काल से  वर्तमान तक देखें; तो धैर्य की सीमाओं का अतिक्रमण सदैव विनाशकारी सिद्ध हुआ है। भयानक क्रोध, गाली- गलौज,हिंसायुक्त माहौल महाभारत काल के युद्ध में स्वार्थ पर कब्जा जमाए बैठे (कौरव पक्ष) विवेक शून्य लोगों से सब परिचित हैं; पर एक पक्ष धर्मयुक्त होकर भी जब अहम् पर चोट खाता है; तो धैर्य की सीमा नहीं रहती है; क्योंकि कभी-कभी अंतिम विकल्प तलाशना ही और वास्तविक दुष्ट को सबक सिखाना भी शास्त्र व धर्म - सम्मत होता है; असत्य पर सत्य की जीत के लिए।
- डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
ये तो कड़वा सच है कि धैर्य की कोई सीमा नहीं होती पर यह भी मीठा सच है कि इससे जो परिणाम मिलते हैं वे भी सुख, सुकून, मान-सम्मान आदि अनेक उपलब्धियों से हमें समृद्ध कर देते हैं। इसे यूँ समझना होगा कि ऐसा
कहा गया है जिसने क्रोध जीत लिया उसने दुनिया जीत ली अर्थात  हमारे जीवन में जो सबसे बुरा अवगुण है वह है क्रोध। हमें जीवन में सफल होना है तो हमें इस क्रोध से बचना है और इससे बचने का सबसे उचित,सही और आसान तरीका है हमें धैर्यवान होना। हम इसमें जितने परिपक्व होते चलेंगे,हम क्रोधित होने से बचते चलेंगे। इसीलिए हमें हमेशा धैर्य रखने की आदत बनाने का प्रयास करते रहना चाहिए। छोटी-छोटी बातों पर बुरा मानना, किसी बात को सुनते ही आवेश में आ जाना, हठी होना  आदि ऐसे अनेक व्यवहारिक जीवन में अवसर आते हैं उस हमय यदि हमने धैर्य से काम नहीं लिया और आवेश में आकर गलत निर्णय लेते हुये हमसे अनुचित और अशोभनीय व्यवहार या कृत्य हो गया तो जीवन भर के लिये पछतावा   ही रह जायेगा। इसके बावजूद भी यह भी उचित होगा कि हमें अपनी समझ, विवेक और विमर्श से इस धैर्य की सीमा  तय करें ।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
क्या धैर्य की भी कोई सीमा होती है ?

धैर्य की कोई सीमा नहीं होती क्योंकि व्यक्ति स्थिति समय के अनुसार धैर्य को सीमा में बांधना संभव नहीं है हर व्यक्ति का अपना अलग व्यक्तित्व होता है कोई क्रोध में अपना आपा या धैर्य  कहो खो बैठता है वह कुछ भी कर बैठता है क्योंकि क्रोध में उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होती उसमें इतना संयम नहीं रह पाता कि स्वयं को संभाल सके क्योंकि व्यक्ति का व्यक्तित्व ही उसका आचरण होता है अतः हर व्यक्ति के धैर्य की सीमा नहीं नापी जा सकती !

स्थिति के अनुसार भी धैर्य रखना पड़ता है जैसे यदि हमारे जान पर बन आती है या उस समय सामने वाला जो कहता है वह हमें करना पड़ता है धैर्य और संयम रखते हुए हम वही करते हैं जो हमें वह कहता है ताकि हम अपनी जान बचा सके इसे मजबूरी भी कह सकते हैं इससे विपरीत परिस्थिति में बार-बार प्रताड़ित होने पर धैर्य की सीमा टूट जाती है वह सामने वार करने को तैयार हो जाता है वरना ना करने पर यही धैर्य कायरता का रूप ले लेता है  और लोग हमे कायर कहते हैं !

समय के अनुसार विपत्ति में कभी-कभी हम अपना धैर्य खो बैठते हैं संघर्ष करने के बावजूद यदि हार जाता है अथवा नुकसान उठाता है कारोबार एकदम बैठ जाता है तू जो संयम और धैर्य से काम लेता है वह संभल जाता है किंतु कोई घबराहट में अपना संतुलन खो बैठता है अथवा गलत डिसीजन भी लेता है अतः अंत में कहूंगी व्यक्ति का व्यक्तित्व , समय ,स्थिति ,के अनुसार ही  धैर्य होता है उसका आंकलन कर उसकी सीमा नहीं नापी जा सकती । मोदी सरकार ने भी तो अति होने पर पाकिस्तान पर स्ट्राइक किया धैर्य बहुत किया किंतु यदि सामने वाला कायर समझने लगे तब तो अपनी वीरता का जवाब देना चाहिए!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
सीमा तो हर चीज की होती है और होनी भी चाहिए । जब पानी सिर से ऊपर होने लगे तो धैर्य को छोड़ उचित उपाय करने ही पड़ते हैं । इस संदर्भ में श्रीकृष्ण व शिशुपाल की कथा याद आती है । भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी वुआ को वचन दिया था कि शिशुपाल की 100 गलतियों को क्षमा कर दूँगा किन्तु उसके बाद नहीं । इतिहास गवाह है कि 101 वीं गलती पर शिशुपाल का शीष सुदर्शन चक्र द्वारा श्रीकृष्ण ने अलग कर दिया था ।
धैर्य मनुष्यता का परिचायक होता है । हम सभी को धैर्य रखना चाहिए क्योंकि धैर्य का दामन थामने वाला हमेशा सुखी रहता है । अनावश्यक झगड़े भी नहीं करता है । साथ ही देखने में आता है कि कुछ देर धैर्य रख लो तो बहुत सी समस्याएँ स्वयं सुलझ जाती हैं ।अनुचित किसी भी कार्य को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए । ऐसी स्थित में धैर्य कायरता की श्रेणी में आ जाता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
मैं यहाँ पर हमारे महापुरुषों ने धैर्य को किस रुप में जाना बताऊँगा साथ अपने मन की बात भी रखूगा ..क्यों की धैर्य की सीमा तय करना जटिल काम ही नहीं दुरुह है ...किसीने कहाँ है ...
जिसके पास धैर्य है उसे उसका फल अवश्य मिलता है। -
जैसे सोना अग्नि में चमकता है, वैसे ही धैर्यवान आपदा में दमकता है।
धैर्यवान व्यक्ति कभी उबाल नहीं खाते है । 
कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति की सहनशीलता की अवस्था है जो उसके व्यवहार को क्रोध या खीझ जैसी नकारात्मक अभिवृत्तियों से बचाती है। दीर्घकालीन समस्याओं से घिरे होने के कारण व्यक्ति जो दबाव या तनाव अनुभव करने लगता है उसको सहन कर सकने की क्षमता भी धैर्य का एक उदाहरण है। वस्तुतः धैर्य नकारात्मकता से पूर्व सहनशीलता का एक स्तर है। यह व्यक्ति की चारित्रिक दृढ़ता का परिचायक भी है।
सहनशीलता को धृति या धैर्य कहा जाता है। विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो जाने पर भी मन में चिंता, शोक और उदासी उत्पन्न न होने देने का गुण धैर्य है। धैर्य मनुष्य के व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने का एक उत्तम गुण है। धैर्यवान व्यक्ति विपत्ति आने पर भी अपना मानसिक संतुलन बनाए रखता है और शांतचित्त होकर इस पर नियंत्रण करते हुए दुख से बचने का सरल मार्ग खोज लेता है। सुख-दुख, जय-पराजय, हानि लाभ, गर्मी सर्दी आदि अनेक ऐसे द्वंद्व हैं, जो जीवन में अनुकूलता या प्रतिकूलता का अनुभव कराते रहते हैं। द्वंद्वों पर विजय पाने के लिए किया गया पुरुषार्थ एक प्रकार का तप है। इन द्वंद्वों पर विजय पाने के बाद व्यक्ति धीर पुरुष बन जाता है। इस गुण के कारण वह सुख के समय प्रसन्नता से गदगद नहीं होता और न दुख में हताश होकर बैठता है बल्कि हर एक अवस्था में समान रूप से कार्यशील बना रहता है। धैर्य के गुण को प्राप्त करके मनुष्य में असाधारण साम‌र्थ्य आ जाती है। वह न केवल अपने लक्ष्यों को अविचल रूप से प्राप्त करता जाता है, बल्कि दूसरों को उचित सलाह देने के लिए भी सदा तत्पर रहता है। गीता में मनुष्य के इस गुण को दैवीय संपदा बताया गया है। इस गुण के अभाव में मनुष्य अधार्मिक कामों या कुकर्र्मों में संलग्न हो सकता है। ऐसे में समाज में आसुरी वृत्तिबढ़ती जायेगी। समाज में मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए हमें धैर्यशाली बनना चाहिए। मनुष्य को जीवन मार्ग पर चलते हुए अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है, अनेक संघर्ष करने पड़ते हैं, परंतु इनका सामना धीरज रख कर ही किया जा सकता है। सामान्य परिस्थितियों में तो जीवन यथावत चलता रहता है, परंतु धैर्य की परीक्षा विपत्तिआने पर ही होती है, इसीलिए संत तुलसीदास ने उचित ही कहा है, (धीरज, धर्म, मित्र और नारी) यानी इन चारों को आपातकाल में परखना चाहिए। इसी तरह भतर्ृहरि का कहना है कि चाहे नीति निपुण व्यक्ति हमारी निंदा करें और चाहे स्तुति करें, लक्ष्मी यानी धन संपत्तिाचाहे रहे या न रहे, आज ही मरना हो या चाहे एक युग के बाद मरना हो, लेकिन धीर पुरुष न्याय के रास्ते से विचलित नहीं होते हैं। धैर्य के गुण का महत्व जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है।धैर्य हमारे जीवन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है यदि हम जीवन में धैर्य रखते हैं तो बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं, यहां तक की बड़ी से बड़ी सफलता भी हम धैर्य रखकर प्राप्त कर सकते हैं। बहुत सारे लोगों ने यह साबित किया है की धैर्य रखकर हम अपने सारे सपनों को भी पूरा कर सकते हैं लेकिन धैर्य की भी एक सीमा होती है, हद से ज्यादा धैर्य नहीं रखना चाहिए। जिंदगी में हमें हर किसी  की जरुरत पड़ती है ,साथ मे धैर्य की भी हमें आवश्यकता पड़ती है क्योंकि किसी भी कार्य में सफलता हमेशा समय से पहले नहीं मिलती। यदि हम बिल्कुल भी धैर्य नहीं रखेंगे और समय का इंतजार बिल्कुल भी नहीं करेंगे तो हम जीवन में पीछे रह जाएंगे। हमको जीवन में यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम वह कार्य सही दिशा में कर रहे हैं, सही तरह से कर रहे हैं और यह दोनों बातें आपकी सही हैं तो समझ लीजिए आपको थोड़ा सा धैर्य रखने की जरूरत है तब आपको सफलता जरूर मिलेगी। धैर्य के बिना जीवन में किसी बड़े कार्य में सफलता नहीं मिल सकती
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " जीवन में धैर्य बहुत ही जरूरी है । बिना धैर्य के मनुष्य तो जानवर सामान है । फिर भी धैर्य की सीमा अवश्य होती है । बिना सीमा के धैर्य की हत्या हो जाती है । इसलिए धैर्य की सीमा अवश्य होनी चाहिए ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी





Comments

  1. धीरज धर्म मित्र और नारी
    आपत्काल परंख यह चारी
    - मुरारी लाल शर्मा
    पानीपत - हरियाणा

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