क्या कोरोना के चलते अपनी जीवन शैली बदलने का समय है ?

कोरोना ने सभी की जीवन शैली को प्रभावित कर दिया है । जिसके कारण रहन - सहन व खान पीन में काफी परिवर्तन हो रहा है । छोटे बच्चे से लेकर बुर्जुग तक सभी प्रभावित हो गये हैं । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । आये विचारों को देखते हैं : -
अब कोरोना के चलते ही सही, निश्चित ही अपनी जीवन शैली बदलने का समय आ गया है। व्यक्ति में अनुकरण करने की ऐसी विकृत प्रवृत्ति विकसित होती जा रही है कि वह अनुकरण करते समय यह भी नहीं सोचता कि वह उसके लिए लाभदायक होगी या हानिकारक। अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण वह अपनी भारतीय संस्कृति के मूलभूत आचार-विचारों, खान-पान के नियमों को परे कर पाश्चात्य जीवन शैली अपनाने की ओर बढ़ता चला जा रहा है। प्रकृति के विरुद्ध होकर जब हम गलत कार्य करते रहते हैं तो प्रकृति हमें सचेत करती है और इसके लिए वह विभिन्न रूपों जैसे बाढ़, सूखा, बीमारी, महामारी आदि रूपों में प्रकट होकर संकेत देती है कि हमें अपनी गल्तियों को सुधारने की आवश्यकता है।
       इसीलिए हमें अपनी जीवन शैली में बदलाव लाने की आवश्यकता है। हम सुबह जल्दी उठें, योग, अनुलोम-विलोम, सूर्य नमस्कार,कपालभाति आदि प्राणायाम करें। कोरोना से बचाव के लिए गले मिलना छोड़ें, अपनी भारतीय परंपरा की नमस्कार शैली ही अपनाएँ, हाथ मिला कर अभिवादन करना तो वैसे भी हमारी भारतीय परंपरा का अंग नहीं हैं।
       खान-पान में केवल शाकाहार को ही अपनाएँ। मांसाहार के आदी भी हों तो उसे त्याग दें। रास्ते में ठेलियों पर मिलने वाले मोमोज, बंद टिक्की, गोलगप्पे आदि खाने के शौक का भी त्याग करें। होटल के खाने के बजाय घर में बने खाने को वरीयता दें,पौष्टिक आहार लेकर अपने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ायें। दिन में कई बार साबुन से हाथ धोने की आदत डालें। घर को सैनिटाइज करना अपनी आदत बनायें, ये सारी बातें वहीं हैं जिन्हें हम बड़ों नानी-दादी के समय से सुनते-करते रहे, पर आधुनिकता की होड़ में इन्हें पीछे छोड़ते चले गए।स्वस्थ रहना सभी के लिए आवश्यक है। अतः हम सभी आज इस कोरोना महामारी के कारण ही सही, प्रकृति के इस संकेत को समझ कर अपनी जीवन शैली और खान-पान में आयुर्वेद के अनुसार बदलाव लायें और उन्हें अपना कर, जीवन का अंग बना कर स्वस्थ रहें और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करें।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
    देहरादून - उत्तराखंड
अपनी आदतों में बदलाव लाना बहुत जरुरी है । और हम सब लोग अपनी आदते बदल भी रहे है । कोरोना के चलते लोगों में जागरूकता बढ़ रही है। लोगों की जीवनशैली बदल गई है। घर में तुलसी, नींबू के साथ ही हरी सब्जियों की मांग बढ़ गई है। कई सब्जियों के दामों में इजाफा हुआ है। आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से जुड़े विशेषज्ञ कहते हैं कि जीवनशैली बदलने से ही स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है। संक्रमित बीमारियों से बचाव को बहुत से लोगों ने खुद ही एहतियात बरतनी शुरू कर दी है और आयुर्वेद की तरफ भी मुड़े हैं। बच्चों के बार-बार धुलवा रहे हाथ
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि स्वच्छता पर ध्यान देने की जरूरत है। रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण बच्चों को संक्रमण की आशंका रहती है। इसी बात पर ध्यान देते हुए अब माता-पिता, दादा-दादी और नाना-नानी बच्चों को बार-बार हाथ धुलवा रहे हैं। बार हाथ धुलवाते हैं। बच्चों को बताया गया है कि वे हाथ धोने पर ज्यादा ध्यान दें। तुलसी और नींबू से बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता
हमें अपनी पुरानी दिनचर्या और आदतों को अब नई आदतों और तौर-तरीकों से बदलना होगा. हमें अपने आचरण को इस महामारी के हिसाब से ढालना होगा.
तो हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए? आज जब कोरोना के कारण हाथ मिलाना और गले लगना असामाजिक माना जा रहा है, तब भी हम कैसे सामाजिक रह सकते हैं?
सामान्य दौर में जब कोई बेचैन होता था या परेशान होता था तो उसे छूकर, थपथपाकर दिलासा दिया जाता था. मगर अब सामान्य दौर नहीं है. छूना आज सबसे ख़तरनाक काम बन गया है ।  जिस किसी चीज़ के संपर्क में हम आ रहे हैं या कोई और आ रहा है, वह चीज़ वायरस की संवाहक हो सकती है. ऐसे में ज़रूरी है कि इस ख़तरनाक वायरस को फैलने का मौक़ा ही न दिया जाए. हो सकता है कि हाथ धोने जैसा एक मामूली काम भी किसी एक की, दो की, पचास की या फिर हज़ारों की ज़िंदगी बचा ले. हाथ धोते वक्त हमें इस बात को याद रखना चाहिए. बदले हुए हालात में हमें ऐसे काम करने की आदत डालनी पड़ रही है जो अशिष्ट या अभद्र माने जाते हैं.हमें लोगों से एक फुट बाक़ी लोगों से कम से कम दो मीटर दूर खड़े होना, उनसे हाथ न मिलाना, दोस्त के गले न लगना... ये सब हमारे दौर के नए शिष्टाचार हैं और हमें इन्हें जल्द अपनाना होगा. इस महामारी के दौरान हमारा व्यवहार ही लाखों लोगों की क़िस्मत का फ़ैसला करेगा.
 कई बार समाज बिखरता है. कई बार डर के कारण ऐसा होता है, मगर कई बार बेवकूफ़ी भरी सोच और लालच के कारण भी. जब लोग अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हैं और दुनिया बहुत ख़तरनाक नज़र आने लगती है तो डर बढ़ता चला जाता है.
यह कहा जा रहा है कि जापान, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देश कोरोना वायरस को इसलिए नियंत्रित कर पा रहे हैं क्योंकि वहां पर पश्चिमी देशों की तरह व्यक्तिवाद की संस्कृति कम है. हमें भी सुरक्षा दृष्टि से अपनी आदतों को सुधारना ही होगा यह जरुरी है हमारे लिये समाज के लिये 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
गलत खान-पान के कारण है आज हम और हमारे पड़ोसी देश ने हमें महामारी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया जाने क्या क्या मांस खाया और मुसीबत सब के सर पर आ गई,आजकल हमको अपने खानपान में पौष्टिक आहार लेना चाहिए और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले चीजों को ही खाना चाहिए .शाकाहारी रहना चाहिए हमें भोजन में अंकुरित अनाज, दाल चावल रोटी सात्विक आहार और अदरक लहसुन का प्रयोग ज्यादा करना चाहिए जिससे हमें इस रोग से लड़ने की शक्ति मिलेगी वैसे भी हम जैसा आहार लेते हैं वैसे ही हमारी प्रवृत्ति होती है सात्विक आहार लेने वाले व्यक्ति सात्विक रहते हैं और मांस खाने वाले व्यक्तियों की सोच भी हिंसा की होती है अपने आचार विचार को सुधारने के लिए हमें साथ भोजन करना चाहिए। हमारे वेदों की परंपरा और आयुर्वेद का ज्ञान संपूर्ण देश में संदेश फैला रहा है हमारी संस्कृति के बताए हुए तौर-तरीके को सब अपना रहे हैं नमस्ते सब कर रहे हैं हमें अपनी संस्कृति पर गर्व है और हमारा आयुर्वेद बहुत विशाल है जिसमें हमें सब रोगों से लड़ने की शक्ति मिलती है और उपाय भी है आजकल लोग पाश्चात्य सभ्यता में के ढंग में रंग गए थे और हमारा में पुराना ख्याल के कहते थे दकियानूसी कहते थे आज वही सब अपना रहे हैं और उसी के कारण सबको जीने की राह मिल रही है हमें अपनी संस्कृति की विशालता पर गर्व है वंदे मातरम 
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्यप्रदेश
      बदलाव प्रकृति का नियम है और जीवन का आधार प्रकृति है।इसलिए कोरोना हो या कोरोना जैसी कोई भी अन्य विकट वैश्विक चुनौती हो,जीवन शैली बदलने की अति आवश्यकता होती है। चूंकि प्रकृति जीवन जननी है और प्रत्येक जीव-जन्तु प्रकृति की कोख से उत्पन्न हुआ है।जिसे विभिन्न धार्मिक ग्रंथ एवं विद्वानों सहित वैज्ञानिक भी मानते हैं।इसीलिए प्रकृति को ही ईश्वर की संज्ञा दी गई है।
      संभवता प्रकृति कोरोना के माध्यम से मानव जाति को संकेतिक सुझाव दे रही है कि हे मानव संभल जा और प्रकृति से मत खेल।अन्यथा परिणाम इससे भी भयंकर होंगे।
      सर्वविधित है कि वर्तमान मानसिकता अंधे को अंधा,काने को काना,गंजे को गंजा, लंगड़े को लंगड़ा और मानसिक तनाव से गुजरने वाले रोगियों को पागल शब्दों के प्रयोग से आनंद लेते हैं।जबकि अब स्तिथि यह हो गई है कि ऊपरोक्त अत्याधिक मानव इसलिए पागल हुए जा रहे हैं कि उनके भ्रष्टाचार द्वारा अर्जित धन तो क्या,खून-पसीने के गाढ़े परिश्रम से कमाया धन भी काम नहीं आएगा।किन्तु फिर भी अपने शब्दों में बदलाव नहीं ला रहे।जो दुर्भाग्यपूर्ण है।हालांकि तथा कथित बुद्धिमान,ईमानदार, जनसेवक,विभिन्न धर्मों के धर्मात्मा अपने-अपने कुकर्मों का प्रायश्चित तालियां,थालियां व घंटा बजाकर एकांतवास का एक मात्र सहारा ले रहे हैं।किन्तु अपने आचार-व्यवहार में बदलाव का प्रयास नहीं कर रहे।
      इसलिए एटम बम, हाईड्रोजन बम व हवा से हवा मे मारने वाली मिज़ाईलों पर ऐंठने वाले राष्ट्र भी घुटने टेक चुके हैं।जिसके बावजूद शवों की भांति ऐंठने वाले अंहकारी,दुराचारी मानव व राष्ट्र समय की दृष्टि को गच्चा देते हुए अपनी-अपनी जीवन शैली को बदलने का प्रयास तक नहीं कर रहे।जबकि समय 'कोरोना' के रूप में नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करने का राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय अथक संदेश दे रहा है। 
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कोरोना वायरस ने कयी नये प्रश्नों को हमारे सामने खड़ा कर दिया है । .इस संकट की घड़ी में जिस तरह हम सब छोटी सी छोटी बात का ध्यान रख रहें हैं वो प्रशंसनीय तो है पर ड़र के कारण है ।वो भी मौत   से बदतर जि़दगी जीनी ना पडे इसलिए। अब हमारी जीवन शैली कुछ -कुछ पुराने समय जैसी हो गयी है । सब से ज्यादा सफाई का ध्यान रखना।  जरूरतें सीमित रखना।घर का शुद्ध भोजन करना। भोजन से पहले और बाद में हाथ धोना । बाहर के भोजन से परहेज करना। आवाश्यक ना हो तो बाहर ना घूमना।
सब चलता है। कुछ नहीं होगा।  घर के खाने में बोरियत होती है सब भूल गये हैं हम। छोटी छोटी बातों पर अस्पताल जाना अब बंद है। जो जरूरी है। भारतीयों की जो सब से बुरी आदत कि जरा सी बात है तो मजमा लगा कर खड़े हो जाना ।पर इस कोरोना ने सब को  भीड़ से ड़रा दिया।  अपने आप पर संयम , सहज जीवन, सरल भोजन, घर में अपनों के सुख दुख बाँटना, पुरातन परंपरा ,को जीवन शैली में जोड़ने पर ही पृथ्वी पर मानव जाति की रक्षा होगी वरना विनाश पक्का है ।इस से पर्यावरण भी शुद्ध होगा। 
 - ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
जी हाँ , किरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए संकट ग्रस्त देश में हर भारतीय नागरिक , जो प्रवासी भी भारत में हैं । सभी को अपनी जीवन शैली में बदलाब लाने का समय है । तभी हम वायरस को खत्म कर सकेंगे । भारत में कोरोना के 500  केस आए हैं । एकजुट हो के हम , जीवन शैली में बदलाब ला के हम कोरोना की जंग जीत सकते हैं ।
भारतीय संस्कृति में  हमारी जीवन शैली सुचारू रूप स से चले और हम धर्म , अर्थ , काम मोक्ष की प्राप्ति कर सकें तो चार आश्रमों की व्यवस्था की है ।ब्रह्मचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थ , संन्यास थी । समाज ने नियमबद्ध इन आश्रमों का पालन किया । सदियाँ आयी , समाज में बदलाब आया । पाश्चात्य संस्कृति का बोलावाला भारत में छाया । आश्रमों की अवेहलना हुई । वर्तमान में यह व्यवस्था  खत्म हो गयी है । 
अब कोरोना के आने से भारतीय संस्कृति का महत्त्व फिर उजागर हुआ है । भारत में लॉकडाउन हो जाने से लोगों का बाहर जाना बन्द हुआ । हमें जब भी जाना हो तो सेनेटाइजर मास्क गलब्स जरूर रखना होगा ।कम से कम सबसे एक मीटर दूरी से बात करनी होगी ।घर मे भी हाथ साफ रखिए मुँह नाक आंख पर हाथ न रखें कोई भी ठंडी चीज न लें गर्म पानी  एक घंटे पर जरूर पीएं सादा ताजा सुपाच्य भोजन को लें और चटपटा तेलयुक्त वस्तुएँ  नही खाएँ । भारतीय संस्कृति के परिचायक महात्मा गाँधी जी ने गृहस्थ आश्रम के चलते हुए अपनी पत्नी से उल्टे फेरे लिए थे । जिसमें संदेश यही था कि धार्मिक जीवन जीते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए   हम घर में अलगाव से  रहेंगे । यह स्वास्थ्य का दर्शन आज प्रासंगिक हो रहा है । यही जागरूकता हमें ,समाज को अपनानी होगी ।
इंफेक्शन नहीं फैले हम साबुन पानी का प्रयोग करें । पुष्ट शरीर , बलिष्ठ मन प्रबुद्ध प्रज्ञा के लिए और  प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए हम च्यवनप्राश , नीम , तुलसी , शाकाहारी भोजन का प्रयोग करना हमारी जीवन शैली का हिस्सा हो ।
जिसने भारतीय संस्कृति को माना है । आज भी  ऐसे लोग हाथ , पैर धोकर के अंदर घर में प्रवेश करते हैं । 
कोरोना से बचने का यही मंत्र वैज्ञानिक दृष्टिकोण से वायरस फैलाने से इंसान को बचाता है । 
लोग अपने घरों में स्वास्थ्य के लिए सुबह - शाम सूरज की किरणों से ' सन बाथ ' को जीवन का हिस्सा बनाएँ ।जो विटामिन डी से  हमारी हड्डियों को मजबूत करेगा ।
 समय का सदुपयोग सद्साहित्य  को पढ़कर करें ।
मनोरंजन के लिए सांपसीढ़ी , लूडो आदि खेल भी खेल सकते हैं । फिर से जनता कर्फ्यू  के लिए हमें 15 दिन  फिर वायरस से बचाब के लिए सभी को एकजुट होके सरकार के लिए नियमों का कढाई से पालन करना होगा ।
 परिवार सुरक्षित रहना है  तो घर में रहे  । सबका साथ से ही सबका बचाव होगा । तभी मानवता हेतु जिंदगियों को बचा सकते हैं । 
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
जी वर्तमान समय व विश्व की परिस्थितियों को देखते हुए अपनी  जीवन शैली बदलने का समयही नहीं अपितु यह कहिये कि कोई दूसरा विकल्प नहीं है ।कुछ लोगों का जीवन उनकी दिनचर्या अनावश्यक दौडभाग यहां वहां खड़े रहने की होती है ।कहीं पर कुछ व्यवस्थित नहीं होता उनके लिए तो बदलाव किसी सजा से कम नहीं है ।पठन पाठन चिन्तन व मनन से जुड़े लोगों के लिए एक अवसर की तरह है लाभ उठायें ।आजकल बहुत से कार्य घर पर रहकर या कहूं एक जगह से किये जा सकते हैं ।एकाकी जीवन शैली वालों के लिए कोई समस्या ही नहीं है । कुछ भी कोरोना की भयंकरता उसके तेजी से संक्रमण को देखते हुए अपनी जीवन शैली तुरन्त बदलने का समय है ।सरकार व उसके अंगों की सलाह मानने का अवसर है।व्यस्तताओं में परिवार को भरपूर समय देने का माध्यम है ।लाभ और जीवन का अभी आधार भी यही है ।देर न कीजिए ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर -उत्तर प्रदेश
कहा जाता है कि प्रकृति समय- समय पर हमें हमारी गलतियों की सजा देती रहती है । ये महामारी भी एक आपदा ही है जो प्रकृति विरुद्ध  खान -पान व आचरण के चलते हुयी है । पाश्चत्य प्रभाव हमारे ऊपर इतना हावी हो चुका है कि हम बिना कुछ सोचे दूसरों की सभ्यता को अपनाने लग गए हैं । खान- पान में जब से मांसाहार  वो भी  कीटों, पतंगों , जलीय व स्थलीय जीव;  जो  आप सोच भी नहीं सकते वो सब अब आधुनिकता के चक्कर में लोग खाने लगे हैं ।
भारतीय संस्कृति व संस्कार सदैव ही मानवता के रक्षक रहे हैं । जल्दी सोना , जल्दी उठना हमारे जीवन का अंग था । ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर योग, सूर्यनमस्कार व सात्विक भोजन ; यहाँ तक कि अन्न किस तरह से कमाया गया है इस पर भी विचार किया जाता था । हर किसी के घर खाना खाना हमारी प्राचीन परम्परा में शामिल नहीं था ।
समय बदला , लोग बदले , ये बदलाव जरूरी था पर इस कदर बदलना कि गिरगिट भी हार जाए ठीक नहीं है । ये महामारी चेतावनी है कि अभी भी समय है अपनी संस्कृति व परिवार से जुड़ो । केवल पैसे की हाय- हाय में इनका अनादर न करो क्योंकि जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तो केवल घर का दरवाजा ही खुलता है । 
बहुत से घरों में तो हर  खान- पान का समान डब्बा बंद आ रहा था । होटल का खाना, ठेले के सामने खड़े होकर दोस्तों के साथ चाट फुलकी खाना । ये सब कम करने चाहिए अन्यथा इसी तरह तकलीफ होगा जैसी अभी हो रही है जब सब कुछ लॉक डाउन है । केवल मूलभूत आवश्यकता की चीजें ही मिल रहीं हैं वो भी निश्चित अवधि में ।
अंततः कहा जा सकता है कि हमें अपनी जीवन शैली को पुनः व्यवस्थित करना चाहिए तभी समय के साथ कदमताल कर सकेंगे । स्वस्थ रहना आज के समय की सबसे बड़ी माँग है । कहा भी गया है जान है तो जहान है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
प्रकृति समय-समय पर हमें बहुत कुछ सिखाती है कुछ समय तक के लिए तो हम जागृत हो जाते हैं किंतु पुनः अपनी पुरानी चाल पर आ जाते हैं ! आज कोरोना जैसे संक्रमित वायरस ने हमें दबोच लिया है जीवन में हमने जो गलतियां की है वह सब हमारे सामने आ रही है !  प्रकृति के साथ हमने कितने खिलवाड़ किए हैं वही हम अब भोग रहे हैं आज हमारी जीवन शैली कितनी बदल गई है हमारा खान-पान ,हमारे रहन-सहन ,हमारी आदतें , और उससे भी ज्यादा हमारी आवश्यकताएं !
हम आज इतनी भौतिक चीजों के आदी हो गए हैं कि उसने हमें पंगु बना दिया है माना कि आज मनुष्य सफलता की दौड़ में अग्रसर हो रहा है !एक देश दूसरे देश की नीति , नियम ,रहन-सहन ,खानपान सभी अपना रहा है किंतु आज इस वायरस ने जो समस्त विश्व को पछाड़ा है उसे देखकर लगता है हमारे पूर्वजों के खानपान की आदत ,आवश्यक चीजों में संतुष्ट रहना ,वन्य जीवन और प्राणियों से प्रेम ,सात्विक भोजन लेना ,भोग विलास का त्याग ,आदि आदि वही ठीक था !
 कितने अनुशासित थे प्रातः जल्दी उठना ,रात जल्दी सोना किंतु आज हम कौन से अनुशासन का पालन करते हैं आज हमारी जीवनशैली में किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं है !
प्रथम तो हमें अपनी जीवनशैली में अपनी आदतों को सुधारना होगा तत्पश्चात अपने आहार पर ध्यान देना होगा !आहार हमारे जीवन में बहुत महत्व रखता है सात्विक और पौष्टिक आहार हमारे जीवन शैली की रीढ़ है !सादा और पौष्टिक आहार हमें स्वास्थ्य प्रदान करता है और स्वास्थ्य अच्छा होने से हमारी क्षमता भी बढ़ती है एवं सकारात्मक विचार आते हैं ! आजकल महिलाएं भी काम करती है अतः फूड पैकेट ,होटल से मंगाना यानी कि थक जाने की वजह से बाहर का खाना होता है जो पोष्टिक और शुद्ध नहीं होता लोग मांसाहारी हो गए हैं माना कि कुछ हद तक ठीक किंतु सभी जीव जंतु का सेवन तो हानिकारक है (चमगादड़ ,सांप ,छिपकली, चीन और अन्य जगह है जो खाते हैं ) 
हरियाली का होना घर पर ही हमें छोटे-छोटे पौधे जैसे तुलसी ,गुलाब ,छोटे-छोटे फूल पत्ती वाले पौधे लगाने चाहिए हरियाली देख मन आनंदित होता है ! उसे रोज पानी देना यह सब बच्चे देखते हैं तो उन्हें भी इसका महत्व समझता है !जीवन में शुद्ध हवा का होना कितना आवश्यक है !
सबसे खास बात है हमारी आवश्यकताओं को सीमा रेखा में रखें आज जितने भी कल कारखाने हैं उनसे जो विषैली गैस निकलती है उससे बचने के पर्याय को तो हमने स्वयं काटकर नष्ट कर दिया है कंक्रीट के घर बना जंगल के जंगल साफ किए सरोवर पाट दिए !आज वायुमंडल के गर्म होने से ही यह भी हम पर किसी ना किसी रूप में कहर ढा रहा है हमने जो विष बोया वह हमें कोरोना वायरस के रूप में सूद सहित मिल रहा है !
अंत में मैं यही कहूंगी कोरोना जैसे वायरस से तो हम अभी लड़ ही रहे हैं  यदि हमने अपनी जीवनशैली ना बदली और अपनी आवश्यकताओं को सीमित ना किया अर्थात आवश्यकताओं को नियंत्रण में ना लिया तो हमें आने वाले वायरस से कोई नहीं बचा सकता पूरे विश्व का अंत निश्चित है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
 करोना की उत्पत्ति कहां से हुई है। कैसे हुई है ,अभी तक स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कुछ लोगों का कहना है कि मनुष्य ने हीं इसको बनाया है और कुछ लोगों का कहना है कि अभी जहां मांसाहारी है वही से उत्पत्ति हुआ है। करो ना का कहीं से उत्पत्ति हुआ हो यह मानव की गलती के कारण हुआ है मानव प्रकृति को शोषण और दोहन करके  प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ दिया है। जिसके चलते विभिन्न प्रकार की समस्याएं आती है समस्या दो तरह की आती है एक मानव द्वारा एवं प्रकृति के द्वारा इन समस्याओं से मानव जाति के साथ-साथ की धरती पर आने वाले जीव-जंतु पेड़-पौधे हवा पानी अनेक प्रकार के तत्वों को भी हानि पहुंचती है ।अतः मनुष्य को प्रकृति के नियम के अनुसार अपनी जीवनशैली को बदलना होगा तभी मनुष्य इस संसार में सुख चैन से जी पाएगा। कोई भी विषाणु से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता का मजबूत होना अति आवश्यक है और यह रोग प्रतिरोधक क्षमता हमारे भोजन से निर्भर है अतः हमें ऐसी भोजन करना चाहिए ,जो हम को नुकसान ना हो ना प्रकृति को नुकसान ना हो और हमारी सेहत और रोग प्रतिरोधक क्षमता समृद्ध हो यह तभी संभव है जब मनुष्य जागरूक होंगे बिना जागृति का मनुष्य सही कार्य नहीं कर पाता जाने अनजाने में उनसे गलती हो  है।गलती है  तो समझ नहीं समझ है तो गलती नहीं ।यह सूत्र मनुष्य जाति में लागू होती है ।अगर समझदारी है तो मनुष्य हर कार्य को समझ के साथ प्रकृति से तालमेल रखते हुए जिंदगी जिएगा और अगर समझ नहीं है तो आज जो वर्तमान में करो ना महामारी के रूप में इस संसार को जकड़ रखा है ऐसे ही नासमझी में मनुष्य समस्या पैदा करेगा ।अतः हर व्यक्ति को अपनी सुरक्षा के लिए एवं प्रकृति की व्यवस्था को बनाए रखने के लिए एवं संस्कारिक सुदृढ़ समाज बनाने के लिए कृतसंकल्प होकर अपनी जीवनशैली को बदलना  होगा जीवन शैली बदले बिना हम समस्याओं से निजात नहीं पा सकते अतः समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए हमें जागरुक होकर अपने मन ,तन ,धन का सदुपयोग करना चाहिए क्योंकि सदुपयोग ही सुरक्षा है और हर आदमी सुरक्षा के साथ जीना चाहता है। अतः हमें वर्तमान में जो समस्याएं आई है उन समस्याओं से कैसे निजात पाया जाए इसके बारे में चिंतन करने की आवश्यकताहै और सभी को एकजुट होकर के इस वायरस को इस संसार से दूर भगाना है  साथ-साथ अपनी जीवनशैली को भी बदलना है। वास्तविक जिंदगी जीना है ,ना की दिखावा जिंदगी। दिखावा जिंदगी ही परेशानी का जड़ है। अतः हमें प्रकृति की व्यवस्था को समझते हुए जिंदगी जीने की शैली बनाना है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
सामान्य रूप से प्रातःकाल पक्षियों के किलोल से मेरी नींद खुल जाया करती  है। एक-आध घंटे तक यह दृश्य और ध्वनि इतनी मनोहारी होती है, कि पूरे दिन के लिये एक ताजगी और ऊर्जा मिल जाती है। फिर जीवन क्रिया की व्यस्तता में दिन व्यतीत हो जाता है। 
22 मार्च को प्रधानमंत्री के आह्वान पर लाॅकडाउन था। सभी अपने अपने घरों में थे वातावरण शांत होने से आसपास के पेड़ों पर दिन भर पक्षी स्वतंत्रता से चहचहाते रहे या यूँ  कहें कि मानवकृत शोर शराब के कारण पक्षियों की मधुर आवाज़ अब तक दब कर रह जाती थी और उनकी चंचल हरकतें देखने का समय ही नही होता था। चूँकि उस दिन एकात में यह सब देखा तो कर लगा कि हमने उस आनंद देने वाली प्रकृति से स्वयं को कितना दूर कर लिया है । 
धन की दौड़ में हमने जानबूझकर अपनी जीवन शैली ऐसी बना ली है कि हमारे पास दिन भर व्यस्तता के अलावा कुछ नही बचा । न रिश्तों  का सुख, न प्रकृति का आनंद। स्वयं को व्यस्त रखने के लिए ,कृत्रिम मनोरंजन के फेर में हम टीवी या सोशल मीडिया से चिपक गए । जिसने स्वास्थ्य को तो खराब किया ही हमारे भीतर नकारात्मकता भी भर दी ।  इंसान से दूरी बना लेने के कारण हम रूक्ष हो गए । किसी का दबाव और लिहाज खोते जाने के कारण हम स्वतंत्र हो गए । अब न रीति रिवाजों की बाध्यता रही न संस्कारों की जरूरत । पहले जहाँ प्रातः काल उठने और रात को समय पर सोने के अलावा खानपान और रहन सहन का एक पारिवारिक अनुशासन होता था जिसके कारण हर कार्य व्यवस्थित और समय पर होने के साथ ही शारीरिक व्यायाम भी हो जाया करता था । सीमित धन और संसाधनों के बावजूद भी रिश्तों को महसूस करने का समय था । इस आधुनिकता और आपाधापी भरी जिंदगी ने स्वयं को ही स्वयं से दूर कर दिया।
कोरोना महामारी के चलते जब लोग घरों में बंद हुए तब उन्हें स्वयं को समझने के साथ ही परिवार के सुख का अनुभव हुआ ।  रोज़ ज़ोमेटो के खाने में जो आनंद नहीं मिलता था आज दाल रोटी को भी बहुत रस लेकर खाया ।
सचमुच! ये आपदाएं मनुष्य को बहुत कुछ सिखा जाती है। धन के पीछे भागते भागते बहुत कुछ खो रहे हैं हम । आज जब सारी ट्रेनों के पहिये रुक गए है , सारे कारखाने कार्यालय बंद हो गए है तो एहसास हो रहा है कि  अपनी जीवन शैली को बदलते हुए, थोड़ा कम में भी जिया जा सकता है ।
इसके लिये थैंक्स कोरोना तो नहीं  कहूँगी क्योंकि कोरोना बहुत वीभत्स और डरावना है ।  पर हाँ यह बात जरूर है कि बहुत कुछ सिखा जाएगा वह इंसान को ।  
- वंदना दुबे 
  धार,मध्य प्रदेश
जी हां, अभी भी हमें सीख लेनी चाहिए कि हमारी भारतीय संस्कृति, हमारी पुरातन मान्यताएं सर्वोपरि हैं।हाथ जोड़कर नमस्ते और प्रणाम करने की परंपरा आज अपनाई जा रही है। स्वच्छता की जरूरत तो हमेशा रहेगा।एक समय था जब बिना स्नान किए रसोई घर में जाना मना था।बाहर से कोई भी आए बिना हाथ-पैर धोए अंदर आने की इजाजत नहीं थी।सादा भोजन उच्च विचार तो जीवन का उद्देश्य था। शाकाहारी भोजन ही उत्तम माना जाता था।आज जंक फूड,फास्ट फूड का चलन जोरों पर है जो स्वास्थ्य के लिए घातक है।आज जरूरत है पुनः पुरानी जड़ों को सींचा जाए। तुलसी,नीम,अदरक, एलोवेरा,गेलोए आदि जड़ी बूटियों का उचित प्रयोग किया जाए।योग और प्राणायाम को अपनी रुटीन में शामिल किया जाए।जीव हत्या करना तो पाप है उनसे प्यार करें, उन्हें भोजन बनाना खतरनाक बन जाता है। अतः हमें अपनी जीवन शैली बदलने की आवश्यकता है।
-डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
रांची - झारखंड
हम उस अवस्था में पछताते है जब कुकृत्यों के दुष्परिणाम भयानक प्रतिक्रिया के रूप में हमारे सामने आ खड़े होते हैं और वर्तमान महामारी भी उन्हीं कृत्यों का प्रतिफल है l संतों की वाणी कभी निरर्थक नहीं जाती l पं .रामसुखदास जी महाराज की कही गई बातें हमें मज़ाक व अन्धपरम्परगत लगी ,आज चीन और सम्पूर्ण विश्व में यह वाक्य चरितार्थ हो गया  ,उन्होंने कहा -"धरमम सनातमम ज्ञानं विज्ञान समत:"दिनचर्या में माँस ,अंडा खाने से पशु पक्षियों के रोग मनुष्य में आ जायेंगे और ये रोग मिलकर ऐसा वर्ण शंकर रोग पैदा करेंगे जिसका कोई इलाज़ नहीं होगा l 
आज विश्वव्यापी इस संकट में अपनी दिनचर्या ,रीतिनीति सुधारने के आलावा कोई चारा नहीं है ,इन समस्याओं की तह तक हमें जाना होगा l
1. वातावरण में सतत घुल रहा जहर ,विषम होती प्राण वायु .
2. जल -ध्वनि और प्रदूषित वातावरण ,रासायनिक खादें ,कीटनाशकों का विष आहार में शामिल होकर बिगड़ता हमारा इम्यून सिस्टम .
3. प्रकृति का अंधाधुंध दोहन .
4, जन साधारण का शारीरिक ,मानसिक स्तर बुरी तरह गड़बड़ा गया है l इतने अधिक रोग बढ़ रहें है कि उनके निवारण के लिए बनने वाले चिकित्सक ,अविष्कार और अस्पताल सभी बोने पड़ते जा रहें हैं l 5, प्रत्यक्षवाद ने आदर्शो पर से आस्थाएँ बुरी तरह डगमगा दी हैं l परिणामतः मानवीय उत्कृष्टता का व्यवहारिककरण कहीं देखने को विश्वभर में नज़र नहीं आता l पाखंड और प्रपंच ने मानव को "दानव "बना दिया हैं l 
         हमारा मष्तिस्क विकृत ,ह्रदय निष्ठुर ,रक्त दूषित ,पाचन अस्तव्यस्त ,शरीर के अंग प्रत्यंगो में विषाणुओं की भरमार हो तो इस काया पर चंदन का लेपन और इत्र फुलेल का मर्दन बेकार है l 
       हमारी दिनचर्या में "सादा जीवन उच्च विचार "का सिद्धांत अपनाते ही विश्वव्यापी महामारी का अंत सम्भव होगा और समशीलता ,सभ्यता ,सुसंस्कारिकता तथा "समत्वं योग उच्च्येत "हमारे आदर्श और व्यवहार में आने पर समस्याओं के रूप मे छाया अंधकार सिमटता चला जायेगा l 
जब आवेश की ऋतु आती है तो जटायु जैसा जीर्ण क्षीण भी रावण जैसे योद्धा के साथ निर्भय होकर लड़ सकता है ,गिलहरी श्रद्धा मे श्रम दान देने लगती है ,निर्धन शबरी अपने संचित बेरों की पोटली समर्पित करने मे संकोच नहीं करती l हमारे मन मे ये अदृश्य लहराता दीर्घ प्रवाह ,जो नव सृजन के देवता की में समय दान ,अंश दान ही नहीं अपितु, अधिक साहस जुटाकर हरिश्चंद्र की भांति अपना राजपाट और निज का ,स्त्री ,बच्चों का शरीर तक बेचने में आगा पीछा नहीं सोचता l आज कोरोना वायरस महामारी का मुकाबला करने हेतु इसी नव सृजन की आवश्यकता है l जीवन शैली में बदलाव के साथ मानव श्रंगार के निम्न बिन्दुओ को आत्मसात करना होगा -
1. सुख का आधार प्रसन्नचित्त जीवन शैली हो .
2. पलायनवादी नहीं आशावादी बनें .
3. सुख दुःख का अधिष्ठाता मन है हम मन के गुलाम नहीं ,मालिक बनें .
4. संसार को सही दृष्टि से देखें -जाकी रही भावना जैसी ...
5. मनन करें ,समस्याऐ प्रगति में बाधक नहीं सहायक हैं .
6. भारतवासी प्रतिकुलताओ में भी पुष्प खिलाने का सामर्थ्य रखते हैं .
7.मानवता और नैतिकता के मूल्यांकन का मापदंड बदलें .
  मैथिलीशरण गुप्त जी ने ठीक ही कहा है -
अपने सहायक आप हों ,होगा सहायक प्रभु तभी ....।
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
बील्कुल आज कोरोना वायरस से पूरा विश्व एक युद्ध लड़ रहा है |इस परिस्थिति में प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि अपने आप को इस युद्ध से सुरक्षित बचाए |अपने अपने घरों में रहें |जान है तो जहान है |हम रहेंगे तभी आगे की दुनिया देख पाएँगे |हमें अपने दिनचर्या में अवश्य बदलाव करना चाहिए  |घर में रहकर योगा करें,पौष्टिक भोजन करें |धर्मग्रंथों का अध्ययन करें |बच्चों ,सगे संबंधियों से वार्ता लाप कर समय का सदुपयोग करें |जीवन में कुछ छूट गया हो ,जैसे चित्रकारी,गायन,वादन,लेखन ,या पाक कला में अपना हाथ आज़माया जा सकता है|आत्ममंथन करें ऐसे अनेकों क्रियाकलापों के द्वारा हम अपने जीवनशैली में बदलाव कर इस कोरोना वायरस के संक्रमण काल से बच सकते हैं और समय को उपयोगी बना सकते हैं |
     - सविता गुप्ता 
    राँची  - झारखंड

" मेरी दृष्टि में " कोरोना के चलते सभी की जीवन शैली बदल रहीं हैं । जिस से नये सिरे से जीवन शैली सामने आ रही है । यही कोरोना का खोप कहा जा सकता है 
                                                          - बीजेन्द्र जैमिनी









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