क्या शुरुआत किसी भी कार्य का सबसे मुश्किल पड़ाव होता है ?

सभी कार्य शुरूआत में कठिन नज़र अवश्य आते है । पूरी लग्न और मेहनत से किया गया कार्य कभी असफल नहीं होता है । इसी विश्वास के साथ कार्य शुरू करना चाहिए । यह मुश्किल तो होता ही है । परन्तु असम्भव नहीं होता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
ये सही है कि अच्छी शुरुआत अर्थात आधा कार्य पूर्ण हो गया ।  पर देखने में आता है कि अधिकांश लोग देखा देखी शुरुआत तो जोर शोर से कर देते हैं किंतु बाद में उन्हें समझ आता है कि अमुक कार्य तो उनके रुचि का है ही नहीं और यहीं से कार्य की गति धीमी हो जाती है । अक्सर लोग धीरे -धीरे  उदासीन होने लगते हैं क्योंकि वो कुछ नया अपने कार्य में करना ही नहीं  चाहते । जैसे जोरशोर से कार्य आरंभ करते हैं उससे कहीं अधिक हमें उसे पूर्ण करने की ओर ध्यान देना चाहिए । उसमें गुणवत्ता सबसे महत्वपूर्ण बिंदु है ।
जब हम पूरे मन से कार्य को करेंगे तो अवश्य ही सकारात्मक विचारों के साथ उसे पूर्णता तक पहुँचायेंगे । योग्य मार्गदर्शक के निर्देशन में  जब किसी कार्य की शुरुआत की जाती है तो वो अवश्य ही शुभफलदायी होती है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
हौसलें अगर बुलंद हों तो मंजिलें आसान हो जाती हैं। कुछ कर गुजरने का जज्बा अगर हममें हो तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं होता। हमारी ¨जदगी का हर पल इम्तिहानों से भरा होता है। कदम-कदम पर मुश्किलों का सामना होता है और मुश्किलों से भाग जाना तो आसान होता है, साथ ही सामना करने वालों के कदमों में जहां होता है। किसी ने खूब कहा है :- तारों में अकेला चांद जगमगाता है, मुश्किलों में अकेला इंसान डगमगाता है, हमें कांटों से घबराना नहीं चाहिए, 
क्योंकि कांटों में ही गुलाब मुस्कुराता है।
नया करने का जज्बा देता है अलग पहचान
कुछ नया और अलग करने का जज्बा इंसान को एक अलग पहचान दिलाता है। हमारे महान वैज्ञानिक न्यूटन, मैरी क्यूरी, रॉबर्ट हुक, एपीजे अब्दुल कलाम, राजा रमन, टीवी रामाकृष्णन आदि में कुछ नया खोजने की, कुछ नया करने की जिज्ञासा से संसार में बदलाव लाए और उन लोगों के नामों को हमेशा-हमेशा के लिए अमर कर दिया। अकसर हम नए प्रयोग करने से कतराते हैं या डरते हैं। यदि कोई पहल ही नहीं करेगा तो संसार में बदलाव आएगा कैसे? सभी के मन में कुछ नया सोचने, करने की जिज्ञासा होनी चाहिए। तभी हमारे जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आएगा।
नया करने के लिए हौसला जरूरी
कुछ अलग, कुछ नया, जो सबसे अलग हो, ऐसा ही कुछ करने की हम सब सोचते हैं। पर कुछ लोग ही कर पाते हैं क्योंकि कुछ अलग करने का जज्बा जिनमें होता है, वो ही अपना नाम दुनिया में कर जाते हैं। फिर क्षेत्र चाहे जो भी हो। कुछ नया और अलग करने के लिए केवल हौसले की आवश्यकता होती है ।हम सभी में वो जज्बा होता है पर आवश्यकता है बस उसको जानने की।
फिर छोटी मोटी मुश्किलें तो आती ही है शुरुवात दौर में पर हमारे अंदर हौसला देख पस्त हो जाती है और हम धीरे धीरे मुश्किलों को दोस्त बना मंजिल हासिल कर मुस्कुराते है । 
आपके अंदर कुछ अलग करने की हिम्मत होनी चाहिए। दूसरों से अलग सोचने का साहस होना चाहिए । जब आप कुछ नया, कुछ अलग सोचते हैं, तभी आप कुछ अलग कर पाते हैं। समाज को नया रास्ता दिखा पाते हैं।
कुँछ नया कर पाते है । शुरुआत कर दिजिये  हौसले के साथ राहें मिलती जायेगी हिम्मत आती जायेगी , मुश्किलें आती जाती रहेगी उनसे क्या घबराना , 
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
 कार्य मन के ऊपर रहता है, मन लगा तो सरल, नहीं तो मुश्किल । कोई भी कार्य अनुभव के ऊपर निर्भर करता है  ,साथ साथ इच्छाशक्ति और कार्य जीवन में कितना  आवश्यक और महत्वपूर्ण है ,इस पर भी निर्भर करता है।अगर कोई कार्य के पुर्व उस कार्य को करने के लिए तीव्र इच्छा शक्ति है ,तो उस कार्य का अनुभव होना आवश्यक होता है। अनुभव के आधार पर कार्य का क्रियान्वयन कर ,योजनाबद्ध तरीके से करने पर कोई भी कार्य आसानी से पूर्ण किया जा सकता है। अगर मन में कार्य करने की सामान्य इच्छा है लेकिन अति महत्वपूर्ण आवश्यक नहीं है, तो कार्य पर रूचि तीव्रता के साथ नहीं होने पर कार्य पूर्ण नहीं हो पाता। कार्य करने में मुश्किल लगता है ,क्योंकि उस कार्य में आवश्यक तीव्र इच्छा शक्ति और अनुभव का अभाव होने से मुश्किल लगता है । कोई भी कार्य शुरुआत करने के पूर्व उस कार्य का अनुभव संपन्न होना और तीव्र इच्छा शक्ति होना आवश्यक है। तीव्र इच्छा शक्ति जहां जागृत होती है, तो कोई भी कार्य मुश्किल नहीं  सरल हो जाता है। नासमझ और इच्छा ना होने से ही कार्य में मुश्किल आती है। ऐसा कहा जा सकता है। समझ कर सही निर्णय लेकर कार्य करने से मुश्किल भी सरल हो जाता है। नासमझी से किया गया कार्य मुश्किल लगता है और समझदारी से किया गया कार्य सरल एवं सफल होता है। अतः कहा जा सकता है कि अनुभव के अभाव में नासमझी से किया गया कार्य शुरुआत में सबसे मुश्किल पडाव होता है। अनुभव संपन्न व्यक्ति को कोई भी कार्य मुश्किल नहीं लगता।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
यदि आप किसी काम को करने के पहले पुरी तरह शिक्षित होकर समझ कर सही समय सही तरीक़े से नये काम की शुरुवात  करते हैं तो मुश्किल कम हो जाती है । 
परन्तु शुरुवात दौर में कुछ न कुँछ तो मुश्किलों का सामना करना पड़ता है पर वह धीरे धीरे नगण्य हो जाती है । 
हममें से बहुत से लोग जब नए सपने, नई सोच, रखने की कोशिश करते हैं तो बहुत से सवाल हमारे दिमाग में आते हैं। क्या, क्यों, नहीं होगा, लोग क्या कहेंगे आदि-आदि। इन सभी सवालों के जवाब भी हमें खुद ढुढ़ने हैं। कुछ नया करने के लिए बड़ी सोच का होना जरूरी है। हमें अपनी उस सीमा रेखा से बाहर निकलना है, जिसे हमने एक छोटी सोच के कारण अपने चारों तरफ खींच लिया है और हम उसी दायरे में अपनी पुरी ¨जदगी काट लेते हैं।
हम जोखिम लेना नहीं चाहते। कुछ कर गुजरने के लिए ¨जदगी में जोखिम लेना पड़ता है। इसलिए दूसरों की सफलता पर खुश होने के साथ हमें अपनी छोटी सोच के दायरे को तोड़ना है और अपनी सफलता के लिए भी तालियां बजानी हैं। बड़ी सोच रखने के बहुत फायदे हैं। इंसान का दिमाग सोच के हिसाब से ही मुश्किलों का समाधान भी बताता है। उदाहरणतया अगर हमें नदी पार करनी है तो हम नाव का प्रयोग करेंगे और अगर हमें समुद्र पर करना है तो हमें समुद्री जहाज की सवारी करेंगे। बड़ी सोच रखने की वजह से हम अपनी मंजिल तक आसानी से पहुंच जाते हैं।
कुछ नया और अलग करने की होड़ में अगर हम आगे निकल जाते हैं तो हम अपना तो भला करेंगे ही, साथ देश व प्रदेश की जनता का भी भला करेंगे। मान लीजिए अगर हम बड़े डॉक्टर बन गए तो लाखों लोगों की ¨जदगी बचाएंगे। हमें हमेशा यह याद रखना है कि हर बड़े कार्य की शुरुआत छोटे से ही होती है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम बचपन में रोज सुबह अखबार बांटने का काम करते थे और बाद में दुनिया के बड़े वैज्ञानिक बने। ऐसा नहीं कि इन लोगों को कभी डर नहीं लगा होगा या कभी हतोत्साहित नहीं हुए होंगे। इनको भी डर लगा होगा, इनको भी मंजिल मुश्किल लगी होती, लेकिन डर के आगे जीत है। इसलिए ये ¨जदगी आपकी, सोच आपकी है। ¨जदगी दोबारा मौका नहीं देती, आपके अंदर पुरी क्षमता है, आप खुद को बदल सकते हैं। एक नई और बड़ी सोच के मालिक बन सकते हैं। एक बड़ी सोच के साथ आपकी मंजिल दूर नहीं है। इसलिए हम यह प्रण करते है कि एक बड़ी सोच के साथ हमें खुद को अपने शहर को, प्रदेश को, देश को व पूरी दुनिया को बदलना है।
नये काम में शुरुवात में कुछ कठिनाइयाँ आ सकती है थोड़ा मुश्किल भी हो सकता है पर धीरे धीरे अनुभव के साथ सब सामान्य लगने लगता है , हमें कोई काम शुरुआत करने के पहले तक मुश्किल लगता है फिर नहीं , कहावत है .... कोशीश करने वालों की कभी हार नहीं होती ....
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
मेरे विचार से जब भी हम कोई नया कार्य शुरू करते हैं; तो उसमे मुश्किल पड़ाव मानना गलत है; क्योंकि कार्य के शुरू करने में तो एक नया उत्साह, ऊर्जा और प्रसन्नता होती है। जिसके द्वारा व्यक्ति को उस कार्य में सफलता मिलने की भरपूर आशा रहती है। यही आशा उसे अंत तक क्रियाशील भी बनाए रखती है। अगर कार्य रुचि- अनुकूल है ,तब तो और भी अच्छा है; क्योंकि रुचि- अनुकूल  कार्यों में परिस्थिति भी व्यक्ति का कुछ नहीं बिगाड़ सकती; क्योंकि मनोयोग से वह उस कार्य की शुरुआत कर रहा है।  ऐसे कर्मवीर विघ्न बाधाओं की भी परवाह न करके उस कार्य को पूरा करके ही विश्रांति लेते हैं; जैसा कि कवि हरिऔध जी ने कहा भी है-----
" देखकर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं/ रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं/ काम कितना भी कठिन हो किंतु उबताते नहीं/ भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं/ हो गए एक आन में उनके बुरे दिन भी भले/ सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले"।
 अतः तन्मयता से कार्य करने में कोई भी पड़ाव मायने नहीं  रखता।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
    जी हां किसी भी कार्य का आरम्भ कैसे और कहां से करें?उसका सब से कठिन अर्थात मुश्किल पड़ाव होता है।क्योंकि जिस कार्य का आरम्भ होगा उसका अंत भी होगा।चूँकि यह प्राकृतिक नियम है।जैसे जो बनता है।वह टूटता है।जो जन्म लेता है।उसकी मृत्यु निश्चित होती है।
     प्रथम प्रसव पीड़ा भी नारी के विवाहिक जीवन का पहला  कठिन पड़ाव माना जाता है।जिसे झेलने के बाद उसे मां का दर्जा प्राप्त होता है।जिसे पाकर वह समस्त पीड़ाओं को भूल कर सुख का अनुभव करती हैं।जबकि मानव जीवन का आरम्भ मां की कोख अर्थात गर्भ से होता है।जिसे नर्क भी माना गया है।     किंतु जन्म लेते ही ऊपरोक्त कठिन पड़ावों से उल्टा मानव जीवन का उक्त पड़ाव मां की गोद व उसके स्तनपान से आरम्भ होता है।जिससे सुखद पड़ाव विश्व में कोई हो ही नहीं सकता।क्योंकि मां की गोद स्वर्ग के समस्त सुखों से उत्तम होती मानी गई है।इसलिए मां और मातृभूमि का ऋण जन्म-जन्मांतर तक चुकाया नहीं जा सकता। 
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कोई भी कार्य का श्रीगणेश करने से पहले इंसान के मन में कई सवाल उठना स्वाभाविक है |जैसे अमुक कार्य में सफलता मिलेगी या नहीं?शुरू करें ?कोई अड़चन तो नही आएगी?भारतीय संस्कृति में हम ग्रह दशा,मुहूर्त,पंचांग,आदि में विश्वास रखते हैं तो इन बातों को ध्यान में रखते हुए किसी कार्य की शुरुआत करने में निर्णय लेना एक मुश्किल पड़ाव ज़रूर है ;परंतु किसी भी कार्य को आरंभ करने से पहले यदि सोच -विचार,भूत -भविष्य को ध्यान में रखा जाए |निज क्षमता का भी अवलोकन करके ;ये नहीं की किसी से प्रभावित होकर कार्य शुरू कर दिए लेकिन आपकी बुद्धि या सामर्थ्य नहीं तो ऐसी स्थिति में असफल होने की संभावना रहती है|इन सब बातों का ख़्याल कोई भी कार्य की शुरुआत करने में रखा जाए तो काफ़ी हद तक हमें अवश्य सफलता मिलती है|
                     - सविता गुप्ता 
                      राँची - झारखंड
किसी भी काम की शुरुआत में  मेरे शब्दकोश में  मुश्किल पड़ाव नहीं होता है ।  मैं जो काम  ठान लेती हूँ । उस काम  में कितनी भी बाधाएँ आये । उस राह में पहुँचने के लिए कितने भी संघर्ष करने पड़े । पैरों पर चल - चल कर कितने छाले भी पड़ जाएँ । तो भी मेरे कदम पीछे नहीं हटते हैं ।  क्योंकि मेरे सामने उस लक्ष्य को छूने की चाह होती है । असंभव को संभव करके ही मैं दम लेती हूँ । क्योंकि काम में मेरे संग धैर्य , परिश्रम , दृढनिश्चय ,लगन , ईमानदारी से मुश्किल काम आसान हो जाते हैं । सीबीएससी स्कूल में शिक्षिका बन कक्षा 9 , 10 वीं के छात्र - छात्रों को पढ़ाना  हर दिन चुनोतियों से कम नहीं होता  था । लेकिन  मेरे परिश्रम  को सफलता मिली । साकारात्मक ऊर्जा मेरे संग रहती है । कोई काम में बीच में नहीं छोड़ती हूँ । पूरा काम होने मेरा लक्ष्य होता है ।
जो व्यक्ति काम को जिस नजर से देखता है । उसे वैसे ही परिणाम मिलते है । मेरा  3 साल पहले कार से जबरदस्त एक्सीडेंट हुआ था । मेरे दोनों  कूल्हे की हड्डी टूट गयी । मैं खड़ी नहीं हो सकती थी । मेरा धैर्य , मेरी मेरी दृढ़ इच्छा शक्ति , मेरे पति और डॉक्टर बेटी की सेवाओं से फिर पहली जैसी नॉर्मल हो गयी । कहने का मतलब यह हैं परीक्षाएँ हमारे जीवन में आती हैं । जो व्यक्ति इन पड़ावों को  पार कर लेते हैं । उन्हें मंजिल आसानी से मिल जाती है ।
-डॉ मंजु गुप्ता 
मुम्बई - महाराष्ट्र
एक कहावत है कि शुरुआत अच्छे से हो जाये तो सब अच्छा हो जायेगा ।फर्स्ट इम्प्रेशन इन द लास्ट इम्प्रेशन की बात आजकल के पढ़े लिखे अक्सर कहते हैं ।यह सच ही है कि जब हम किसी कार्य का आरम्भ करते हैं तो मन के किसी न किसी कोने में यह भय रहता है कि क्या होगा कैसे होगा और कब होगा पर धीरे-धीरे दिन बदलने के साथ हम तैयार होते जाते हैं और आरम्भ मुश्किल लगने वाला पड़ाव हमारी सामान्य दिनचर्या का अंग बन जाता है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
 हां! किसी भी कार्य को प्रारंभ करना सबसे ज्यादा मुश्किल होता है। आलसी मन किसी कार्य को आरंभ नहीं करने देता, टालमटोल करता रहता है आज करूंगा..कल करूंगा.. अभी करूंगा पर आरंभ नहीं करता। इस मन के पास एक से बढ़कर एक बहाने होते हैं कि अमुक-अमुक कारण से मैं कार्य आरंभ नहीं कर पाया। इसी कारण से हमारे अनेक कार्य जो अधूरे पड़े होते हैं वह संपन्न नहीं होते। अधूरे कार्य तनाव देते हैं जबकि 10 में से एक भी पूर्ण  कार्य प्रसन्नता देता है। यदि हम  संकल्प लेकर समय का प्रबंधन करके चलें तो कार्य को समय पर प्रारंभ करके पूर्ण किया जा सकता है। क्योंकि जो कार्य आरंभ हो चुका है वह पूर्ण भी अवश्य ही होगा। जैसे कहते हैं  किसी भी मकान की नींव रखना ही मुश्किल काम होता है जब नींव रख दी जाती है तब घर तो तैयार हो ही जाता है। अतः कार्य को आरंभ करके ही सबसे  मुश्किल पड़ाव से हम आसानी से बच जाते सकते हैं। 
- संतोष गर्ग
मोहाली - चंडीगढ़
किसी  भी नये  कार्य  को  प्रारम्भ करने  से  पूर्व  मन में  शंकाएं  उत्पन्न  होना  स्वाभाविक  है  और  यही  शंकाएं  मुश्किलों  के रूप  में  सामने  आती  हैं  । 
      किसी  भी कार्य  को  प्रारम्भ  करने  से  पूर्व  उससे  संबंधित  अनुभवी  लोगों  से विस्तृत  जानकारी  जुटाना, उसकी  रूपरेखा  बनाना,  आवश्यक  संसाधन  जुटाना, सकारात्मक  के  स्थान  पर  यदि  नकारात्मक  परिणाम  प्राप्त  होते  हैं  तो  उसके  लिए  तैयार  रहना, आर्थिक  स्थिति  को  ध्यान  में  रखना,  समय  नियोजन,  नये  कार्य  के  प्रति  मानसिक  रूप  से  तैयार  होना  इत्यादि  बातों  का गंभीरता  से  चिंतन  करने  के उपरांत  पूर्ण  लगन, जोश  और  उत्साह  के  साथ  कार्य  आरम्भ  किया  जाना  चाहिए  ।  कोई  कार्य  प्रारंभ  करने  पर  मुश्किलें,  अड़चनें  भी  आती  हैं,  जिनका  सामना  धैर्य  के  साथ  करना  चाहिए  । 
       -- बसन्ती पंवार 
         जोधपुर - राजस्थान 
किसी भी कार्य के प्रारंभ में मुश्किल पड़ाव होता ही है। इसकी वजह यह भी होती है कि उस समय हमें कार्य के निष्पादन के लिये विस्तार से सभी विकल्पों के साथ सावधानीपूर्वक ,सजगता के साथ तैयारी करना होती है। उस समय हमारे पास सिर्फ अनुमान ही होता है,अनुभव बिल्कुल नहीं। जिससे हम उत्साही भले ही होते हैं,मगर किसी न किसी रूप में ,भले ही यह आंशिक हो,हम घबराये हुये तो होते हैं। ज्ञान, मार्गदर्शन, अभ्यास, हौसला, हिम्मत,रुचि, आत्मविश्वास  होते हुये भी हमारे दिलोदिमाग में कहीं न कहीं ,कुछ न कुछ कमी ना रह जाने की संभावना के अंदेशे से असफल हो सकने का भय भी समाहित रहता है। इस सब बातों और हालातों को दृष्टिगत रखते हुये कह सकते हैं कि कार्य की शुरुआती का समय सबसे मुश्किल पड़ाव होता है। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जीवन में जब भी हम कोई नया कार्य करने जाते है तो बहुत कठिनाई आती है, क्योंकि समाज के ठेकेदारो को लगता है कि कोई उनका स्थान ले लेगा । जैसे जब कोई भी तपस्या करता है तो इन्द्र को लगता है कि उसका आसन को कोई प्राप्त कर लेगा । दुनिया के माहन वैज्ञानिक गैलिलाइओ को उसकी खोज पर यूनान के लोगो ने उसे फांसी दे दी थी , यही सुकरात के सात भी यही हुआ था । समाज में जब बाल विवाह सती प्रथा नारी शिक्षा के लिए समाज सुधार को बहुत लड़ाई लड़नी पड़ी थी। महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए संघर्ष करना पड़ा । दुनिया के हर एक व्यक्ति को यह बात याद रखनी चाहिए की कभी भी जो इंसान हिम्मत रखता है तो उसकी मदद ईश्वर तक करते है।
लहरों से सरकार नोका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
 - प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
शुरूआत शब्द से बचपन याद आया। बचपन में जब किसी भी काम की शुरूआत करते थे तो माँ -पिताजी शाबाशी के रुप में या तो गोद में उठाते या ताली बजा कर उत्साहित करते । शुरुआत करना कठिन तो है पर नामुमकिन नहीं। प्रत्येक व्यक्ति काम की शुरुआत अपने तरीके से कर के खुश होता है ।अँग्रेजी में कथन है कि well begun is half done.सही शुरुआत गति तीव्र करता है ।यकिनन कुछ लोगों के लिए शुरूआत कठिन होता है व कुछ के लिए अंत। यह अपनी -अपनी जीवन शैली और कार्यप्रणाली पर निर्भर होता है। कार्य का हर पड़ाव अपने अपने तरीके की कठिनाई लिए होता है ।बस पूरा कर के ही विश्राम लेना चाहिए।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
निःसंदेह। किसी कार्य की शुरुआत ही सबसे कठिन पड़ाव होता है। पहला कदम अपने साथ बहुत सी दुश्चिंताएं और भय लिए होता है लेकिन जैसे ही दूसरा कदम उठता है पहले कदम की सारी कठिनाइयों पर विजय प्राप्त हो जाती है कि--
"" रास्तों के सन्नाटे और 
मंजिलों की दुश्वारियां
सारे ही अंदेशे हैं बस
एक कदम बढ़ाने तक।। ""
    शिशु जब डगमगाता हुआ खड़ा होता है और  माता की उंगली छोड़ कर एक कदम बढ़ाता है वह क्षण इस दुनिया में उसकी आत्मनिर्भरता का पहला क्षण होता है वह कदम सध जाए तो फिर वह पीछे नहीं होता लेकिन अगर वह पहले कदम पर लड़खड़ा कर गिर जाए और चोट लग जाये तो उसके भीतर भय व्याप्त हो जाता है और वह सदैव डरता रहता है कदम बढ़ाने के लिए। लेकिन पहले कदम पर ही दो हाथ उसे सहारा दे दें तो उसके भीतर एक विश्वास एक भरोसा पैदा हो जाता है नसिर्फ खुद के प्रति बल्कि दुनिया के प्रति भी। यही बात जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है। किसी बिजनेस को आरंभ करने का माद्दा कोई भी रख सकता है लेकिन ठोकर खाकर सम्हलने का हुनर सबमें नहीं होता जो सोच ले कि "गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग में "
आज के इस जेटयुग में नेनो टेक्नालॉजी पर सवार इंसान हर कदम के साथ आगे बढ़ता है मगर मन में यह भाव भी लिए चलता है कि
बुलंदियों पर पहुंचना आसान है मगर
बुलंदियों पर टिके रहना कमाल है
       और बुलंदियों पर से गिरने का मानसिक संतुलन उसे पहला कदम उठाने तक मथता रहता है लेकिन यह भी सच है कि उसे सोचना होगा कि---
वह पथ क्या उस पथ पर चलना क्या
जिस पथ पर बिखरे शूल ना हो
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या
जब धारा ही प्रतिकूल ना हो।।
----और इसी सकारात्मक ऊर्जा के साथ उसका पहला कदम ही उसकी मंजिल का नजराना होगा।।
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
कोई  लक्ष्य, कोई  मंजिल, कोई  सफलता तभी प्राप्त हो सकती है ,जब उसकी शुरुआत हो । कार्य आरंभ ही नहीं होगा तो समाप्त कैसे होगा। केवल सपनों में मंजिल नही पाई जा सकती । हाँ मंजिल का सपना जीवित जरूर रहे । 
अक्सर देखने में आता है कि किसी कार्य की बड़ी-बड़ी योजना बनाने के बाद भी व्यक्ति उसे शुरू करने का साहस नहीं कर पाता । आशंका- कुशंका उसे कार्य शुरू करने से रोकती है । कार्य के अच्छे बुरे परिणाम की कल्पना करके ही वह पीछे हट जाता है। अनिश्चय से घिरा वह  स्वयं की शक्ति पर भी भरोसा नहीं कर पाता । अपने निर्णय पर अडिग न रह कर पहले ही हार मान लेता है । कार्य आरंभ करने में वह जितना अधिक विचार करता , जितना अधिक समय व्यतीत करता है , उतना ही भय और निराशा से घिरा जाता हैं। 
विलंब उसके आत्म विश्वास को डिगाने लगता है और वह कार्य से दूर हो जाता है। कहते हैं दूर से ही अंधकार से डरने की बजाय अंधकार में प्रविष्टि हो जाने वाले को उस अंधकार में भी सब कुछ दिखाई देने लगता है । कार्य का श्रीगणेश ही कार्य को अंजाम तक पहुंचाता। कई लोग कार्य के बीच में ही भाग खड़े होते हैं । अपना लक्ष्य सदा स्मरण रहे , अपनी शक्ति पर भरोसा रहे , अपने निर्णय पर तटस्थता रहे , विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने का साहस रहे ; तो कार्य करते हुए किसी के अनुभव ,योग्यता और धन आदि की मदद भी सहज हो जाती है । अनुशासित रहकर ,समय नियोजन का कड़ाई से पालन करने वाले को सफलता निश्चित ही मिलती है । ।दूसरों के भरोसे रहकर, टाल-मटोल की प्रवृत्ति असफलता का कारण बनती है । किसी ऊँची इमारत की पहली सीढ़ी  पर कदम रखना ही सबसे कठिन काम है ।  मशहूर पर्वतारोही, तैराक, पायलट आदि, यदि प्रारंभ में ही डर जाते तो कभी अपनी पहचान नही बना पाते । एक शिशु खड़े होने के प्रयास में जाने कितनी बार गिरता है पर अंत में दौड़ने लगता है। 
निश्चित रूप से शुरूआत किसी कार्य का सबसे मुश्किल पड़ाव होता है जिसने यह पार कर लिया वही सफलता का स्वाद चखता है ।
- वंदना दुबे
धार - मध्यप्रदेश
हाँ.. आरंभ में शुरुआत किसी भी कार्य का सबसे मुश्किल पड़ाव होता है क्योंकि किसी भी कार्य को करने का निर्णय लेना हर किसी के लिए सरल नहीं होता। बहुत सारी चीजें उसके निर्णय को प्रभावित करने के लिए तैयार रहती हैं। कभी किसी के दबाव में आकर कार्य करने का निर्णय लेने के लिए विवश होना पड़ता है, कभी अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने का निर्णय लेने में उससे प्रभावित करने वाली बातों और स्थितियों पर विचार करके निर्णय लेने में समय लगता है।
        दबाव में आकर बेमन से शुरू किये काम की सफलता में संदेह ही रहता है। जब व्यक्ति अपनी रुचि के कार्य को करने का पूरी तरह से सोच विचार करके पूरी तैयारी से उसे करने की शुरुआत करता है तो सफलता की संभावना शत-प्रतिशत की जा सकती है। तब व्यक्ति पूरी तन्मयता और समर्पण से युद्ध स्तर पर अपने कार्य को पूर्ण करने के लिए काम करता है। उसमें आने वाली बाधाओं से आँखें चार करते हुए आगे बढ़ कर अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। बीच में अपने कार्य को छोड़ने का तो प्रश्न ही नहीं उठता उसके लिए।
       इसलिए हम कह सकते हैं कि शुरुआत किसी भी कार्य का सबसे मुश्किल पड़ाव होता है और जो इस पड़ाव को पार कर लेता है वह उसे पूरा करके ही विश्राम लेता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
    देहरादून -उत्तराखंड

           " मेरी दृष्टि में " किसी भी कार्य को शुरू करने के लिए अनुभव व सलाहकार की आवश्यकता होती है । यहीं शुरुआत का प्रथम चरण माना जाता है । अगर शुरुआत सहीं हो गई तो आगे कठिनाई बहुत कम सम्भावना होती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी


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