क्या परिवार की प्रगति का पर्याय बन गई हैं कामकाजी महिलाएं ?

जिस परिवार में कामकाजी महिलाएं होती है । वह परिवार हमेशा प्रगति की ओर बढता है । ऐसा हम सब ने अपने आस पास देख रहे होगें । ऐसा ही विषय " महिला दिवस " के अवसर पर " आज की चर्चा " का रखा है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
पर्याय तो नहीं कहा जा सकता लेकिन नींव को मजबूती जरूर देतीं हैं । महिला का बाहर निकलना जितना जरूरी होता है उतना ही जरूरी है पुरुषों का घर के कामों में सहयोग देना । आज के मंहगाई के युग में आर्थिक रूप से निर्बलता ही भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है। लोगों के रहन-सहन का स्तर काफी ऊंचा हो गया है। उस स्तर को बनाये रखने के लिए ज्यादा आमदनी चाहिए । इसका एक ही उपाय है महिलाओं द्वारा आर्थिक सहयोग प्रदान करना। परंतु वे सहयोग करती है तो उसे भी सहयोग की जरूरत होती है। उसे भी मानसिक तौर पर अपनी सुखद गृहरथी की चाहत होती है , जो भारतीय नारी के संस्कार हैं । जब दोनों परिस्थिति परिपूर्ण होती है तभी परिवार भी समय के साथ अपने उच्च स्तर को पा सकता है। क्योंकि परिवार के बनने या बिखरने का दायित्व हमेशा से स्त्री के कंधे पर ही रहा है। स्त्रियाँ हमेशा से कंधे-से-कंधा मिलती आईं हैं चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम हो या कार्यालय हो या लड़ाई की जगह, सभी समय महिलाएँ पुरुषों के साथ खड़ी हैं । पुरुष हैं उन्हें अपने साथ खड़े नहीं देख पा रहे हैं । एक हिचकिचाहट अभी भी बाकी है "मेरे घर की महिलाएँ बाहर नहीं काम करतीं हैं।" यह भावना महिलाओं की बेड़ियों का पर्याय बन गया है। 
गाँव-घर में भी महिलाएँ पुरुष की अपेक्षा ज्यादा काम करतीं हैं , इसे पुरुष वर्ग हमेशा नकारने की कोशिश करता है। जो कहीं से भी तर्क संगत नहीं है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
परिवार में सभी सदस्यों का अपना एक निश्चित महत्व और.स्थान होता है । यह सच है कि परिवार में महिला का महत्व सबसे अधिक है ।वह चाहे माँ, बहन,भाभी,बेटी, दादी ,चाची किसी भी रूप में हो।  नारी सर्वत्र अपनी उपस्थिति दर्ज करती है।अब प्रश्न उठता है कामकाजी महिलाओं । वह महिलाएँ जो नौकरी करने के लिए घर से बाहर जा कर अर्थ उपार्जन करती हैं ।यकिनन इस से परिवार क़ आर्थिक संबल मिलता है ,सुख सुविधाएं बढ़ती हैं। बच्चे भी कम उम्र में स्वावलंबी बनते हैं। महिला घर -बाहर दोनों में सामंजस्य कर के प्रगति को गति देती है पर दूसरी ओर यह भी देखा जाना चाहिए कि जो महिलाएं  सिर्फ़ गृहस्थी संभालती हैं वो भी परिवार  की प्रगति में योगदान देती हैं।आजकल ऐसी महिलाओं के लिए हाउस मैनेजर शब्द का प्रयोग ही पूरी कहानी देते हैं । वे महिलाएं जो नौकरी नहीं करती वो भी घर पर रह कर जो नैतिक, सामाजिक, मानसिक आत्मशक्ति  बच्चों को देती हैं वो अमूल्य है। वे घर पर रह कर भी आर्थिक सहायता गृह उधोग के रूप में करती हैं।तो यह कहना कि कामकाजी महिलाऐ परिवार की प्रगति का पर्याय बन गयी  हैं यह आधा सच है ।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
बदलते वक्त ने महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया है और उनकी हैसियत एवं सम्मान में वृद्धि हुई है. इसके बावजूद अगर कुछ नहीं बदला तो वह है महिलाओं की घरेलू जि़म्मेदारी. खाना बनाना और बच्चों की देखभाल अभी भी महिलाओं का ही काम माना जाता है. यानी अब महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है. घरेलू महिलाओं की तुलना में कामकाजी महिलाओं पर काम का बोझ ज्यादा है. इन महिलाओं को अपने कार्यक्षेत्र और घर, दोनों को संभालने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है. घर और ऑफिस के बीच सामंजस्य बिठाने में हुई दिक्कत का सामना करना पड़ता है । 
रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों का वर्चस्व तोड़ रही हैं. खासकर व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त महिलाओं के काम का दायरा बहुत बढ़ा है. लेकिन कामयाबी के बावजूद परिवार से जो सहयोग उन्हें मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है.
आज के दौर में महिलाएं शिक्षा, पत्रकारिता, कानून, चिकित्सा या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं दे रही हैं. पुलिस और सेना में भी वे जिम्मेदारी निभा रही रही है. पर ज्यादातर महिलाओं को पेशेवर जिम्मेदारियों के साथ ही घर की जि़म्मेदारी भी उठानी पड़ती है. जिसका उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है.
विवाहित औरत से सास, ससुर, पति और समाज एक सवाल पूछता है: तुम काम करने निकलोगी, तो घर और बच्चे कौन संभालेगा? ग्रेजुएट महिलाओं के पास शायद इस सवाल का जवाब है, वे इतना कमाने योग्य हो सकती हैं कि किसी अन्य महिला को घरेलू सहायिका के रूप में नियुक्त करें. लेकिन यदि मैट्रिक पास कर किसी महिला की अनुमानित आय घरेलू सहायिका के वेतन के लिए पर्याप्त न हो, तो वह न चाहते हुए भी घर और रसोई संभालेगी.
ग़ौरतलब है कि प्रत्येक शिक्षा वर्ग की ग्रामीण महिलाओं की कार्य बल में भागीदारी शहरी महिलाओं के बनिस्बत ज़्यादा है. यह कहना ठीक होगा कि गांव में संयुक्त परिवारों की कामकाजी महिला अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी घर की अन्य महिलाओं को सौंप सकती है. यह विकल्प एकल परिवारों की शहरी महिलाओं के पास अक्सर नहीं होता, और यदि उनकी क्वालिफ़िकेशन पर लाभप्रद रोज़गार दुर्लभ हो, या कार्य-स्थल पर डे-केयर जैसी सुविधाएं उपलब्ध न हो, तो घर का काम ही उचित विकल्प होगा. अंत में, शहर की मेहनतकश महिलाएं, जो प्राथमिक शिक्षा के आगे नहीं बढ़ पाई, घर की मौलिक आवश्यकताओं के लिए कार्यरत है । 
अंत में यही कहूँगा की यदि आर्थिक जरुरत हो तो ही महिला काम करे ..क्यों की बच्चों व परिवार में उसकी जरुरत ज़्यादा अहम है ।  यह भी सच्च है की उसके कमाने से परिवार को आर्थिक उन्नति में सहयोग मिलता है परन्तु यदि आवश्यकता न हो तो घर में रह कर भी वह बहुत आर्थिक सहयोग करती है , बच्चों की अच्छी परवरिश , ट्यूशन का पैसा बचता है , कामवाली की पगार बचती है , और बहार का नहीं घर का खाना मिलता है जिससे बिमारी से बचते हैं । डॉ . का पैसा बचता है । घर में ख़ुशहाली रहती है । झगडे कम होते हैं बच्चों में अचछे संस्कार आते है । जरुरत के हिसाब से जो जरुरी है वह निर्णय ले ..क्यों की घरेलू महिला भी परिवार की प्रगति में सहयोगी होती है वक्त आने पर वह घर खर्च में से बचत किये पैसों से पति की मददत कर अश्चर्य चकित कर देती है । 
कामकाजी महिलाओं के खर्चे भी ज़्यादा होते है । 
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
परिवार रूपी गाड़ी के पहिए स्त्री पुरुष दोनों होते हैं अतः दोनों को ही प्रगतिशील विचारों से पूर्ण होना चाहिए । जिस घर में दोनों कार्य करते हैं वहाँ आर्थिक समस्या कम होती है । साथ ही महिलाएँ जब पढ़ी लिखी होती हैं तो  वो  बच्चों को पढ़ा भी सकती हैं तथा समय के साथ बदलाव भी उनको बखूबी आता है ।  शोध से ये  सिद्ध हुआ है कि कामकाजी महिलाएँ घर व बच्चे को ज्यादा ध्यान दे पाती हैं क्योंकि उनमें कार्य को योजनाबद्ध रूप से करने की आदत होती है । उनके जान- पहचान का सर्कल बड़ा होता है जिससे कई कार्य आसानी से हो जाते हैं जिनका लाभ उनके बच्चों को मिलता देखा गया है ।
आजकल तो घर बैठे भी बहुत से कार्य ऑन लाइन भी किये जाते हैं जिनको महिलाएँ बखूबी करती हैं और परिवार को आर्थिक सहयोग करने में समर्थ हो जाती हैं जिनसे बच्चों की परवरिश में सुविधा होती है ।
अंततः कहा जा सकता है कि सामंजस्य भाव के साथ जो भी कार्य किया जायेगा वो अवश्य ही प्रगति में सहायक होगा ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
प्रगति बन भी गई है और नही ..
क्यो की आज परिवार विघटन की समस्याऐ  बढरही है 
कई महिलाएँ अपनी स्वतंत्रता का ग़लत फ़ायदा उठाती है , 
घर में दादा गिरी करना काम न करना ,सब नौकरानियों के भरोसे छोड़ देना , बड़ों की इज़्ज़त नहीं करना और बात बात में घर छोड़ना तलाक़ लेना और मोटी की माँग करना ...
मेरा एक ही कहना है महिलाओं को अपनी आज़ादी का ग़लत फ़ायदा न उठायें , 
एक दो महिलाओं के ग़लत आचरण से पुरा महिला समाज बदनाम होता है , जो सही नहीं है अब आते है आज के विषय पर फिर भी इस मंहगाई के दौर में महिलाओं  का काम करना आर्थिक मज़बूती देता है । किसी भी देश की प्रगति के लिए जरूरी है उस देश की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका। इसके लिए जरूरत है ¨लग असमानता खत्म करने की जरुरत है । आज की तारीख में हर क्षेत्र में महिलाएं आगे हैं लेकिन अतीत में ऐसा नहीं था।
एक नजर 
अगर हम महिलाओं की आज की अवस्था को पौराणिक समाज की स्थिति से तुलना करे तो यह तो साफ़ दिखता है की हालात में कुछ तो सुधार हुआ है। महिलाएं नौकरी करने लगी है। घर के खर्चों में योगदान देने लगी है। कई क्षेत्रों में तो महिला पुरुषों से आगे निकल गई है। दिन प्रतिदिन लड़कियां ऐसे ऐसे कीर्तिमान बना रही है जिस पर न सिर्फ परिवार या समाज को बल्कि पूरा देश गर्व महसूस कर रहा है।
टेलीविजन पर आधुनिक भारत की महिलाओं की तस्वीर देखकर कोई विदेशी भ्रम में जरूर पड़ सकता है कि आधुनिक भारत के शहरों में रहने वाली महिलाएँ बाहर काम करने को लेकर काफी उत्साहित होती होंगी पर वस्तुस्थिति बिलकुल भिन्न है। गाँवों में महिलाएँ घर के बाहर जाकर ज्यादा काम करती हैं शहरी आबादी की तुलना में। गाँवों में 35 प्रतिशत से ज्यादा महिलाएँ खेतों में काम करती हैं और इनमें से 45 प्रतिशत महिलाएँ वर्षभर में पचास हजार रुपए भी नहीं कमा पातीं और इनमें से भी सबसे ध्यान देने योग्य बात यह है कि मात्र 26 प्रतिशत महिलाएँ अपने पैसों को अपनी मर्जी अनुसार खर्च कर पाती है। हमारे समाज में महिला अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक एक अहम किरदार निभाती है। अपनी सभी भूमिकाओं में निपुणता दर्शाने के बावजूद आज के आधुनिक युग में महिला पुरुष से पीछे खड़ी दिखाई देती है। पुरुष प्रधान समाज में महिला की योग्यता को आदमी से कम देखा जाता है। सरकार द्वारा जागरूकता फ़ैलाने वाले कई कार्यक्रम चलाने के बावजूद महिला की जिंदगी पुरुष की जिंदगी के मुक़ाबले काफी जटिल हो गयी है। महिला को अपनी जिंदगी का ख्याल तो रखना ही पड़ता है साथ में पूरे परिवार का ध्यान भी रखना पड़ता है। वह पूरी जिंदगी बेटी, बहन, पत्नी, माँ, सास, और दादी जैसे रिश्तों को ईमानदारी से निभाती है। इन सभी रिश्तों को निभाने के बाद भी वह पूरी शक्ति से नौकरी करती है ताकि अपना, परिवार का, और देश का भविष्य उज्जवल बना सके। कुछ अपवाद छोड़ दिये जाऐ तो कुल मिलाकर महिलाएँ आज परिवार की प्रगति में सहायक है 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
महिला सदियों से कामकाजी है बस उस काम का मेहनताना उनने कभी नही मांगा, बाहर जाकर पैसे कमा कर लाना आर्थिक सहयोग करना ही कामकाजी नही है वो जो पूरा दायित्व उठा रही है वो उनके हरसमय कामकाजी होने की गाथा कहता है और वर्तमान परिवेश में अधिकतर महिलाएं चाहे वो गाँव शहर कस्बे कहि भी रह रही हो पढ़ी लिखी है तो वह घर के काम के साथ बाहर भी काम कर रही है और अपने पूरे परिवार का दायित्व बखूबी निभा रही है अपनी परिवार की भूमिका के साथ साथ वो बाहर भी अपनी पहचान छवि व अस्तित्व बनाए हुए है इसलिए यह बात बिल्कुल कहि जा सकती है कि परिवार की प्रगति का पर्याय बनी है कामकाजी महिलाएं।
- मंजुला ठाकुर 
भोपाल - मध्यप्रदेश
परिवार की प्रगति न कह कर यदि यह कहा जाए कि परिवार की प्रगति की शक्तिशाली कड़ी बन गई हैं महिलाएँ...यह कहना अधिक उचित होगा । गृहस्थी की गाड़ी के दो पहिए होते हैं स्त्री-पुरुष। दोनों का सहयोग ही गृहस्थी को सुचारू रूप से संचालित करता है। हर युग में स्त्री ने अपने कार्यों के सहयोग से जीवन के विविध क्षेत्रों में अपने को साबित किया है। अनपढ़ हो या पढ़ी-लिखी... अपनी योग्यतानुसार महिलाएँ हर क्षेत्र में अपनी पहचान बनाती हैं और घर-परिवार को अच्छी तरह संभालती हैं। गृहस्थी में महिला का आर्थिक सहयोग बहुत मायने रखता है। आज के समय में एक की कमाई से घर चलना कठिन हो जाता है। दोनों काम करते हैं तो सुविधाजनक तो होता ही है। काम करने वाली महिला घर और बाहर के कामों में व्यवस्था भी सही ढंग से बैठा लेती है।
         अतः स्त्री और पुरुष आपसी सहयोग और सामंजस्य से काम करते हुए परिवार की प्रगति में शक्तिशाली कड़ी बन कर अपनी भूमिका अच्छी तरह निभा सकते हैं।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
     देहरादून - उत्तराखंड
 जी हां परिवार की प्रगति का पर्याय बन गई है कामकाजी महिलाएं सभी का परिवार साधन संपन्न है ऐसा नहीं कहा जा सकता जहां अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति पूरे परिवार  के पुरुष वर्ग मिलकर नहीं कर पा रहे हैं वहां पर महिलाओं को काम के लिए बाहर जाना पड़ता है और अपने घर की समृद्धि के लिए भागीदारी करनी पड़ती है परिस्थिति के अनुसार  महिलाएं  कामकाजी बनती हैं। ताकि हमारी घर की परिस्थिति  ठीक हो जाए  कुछ  ऐसी महिलाएं हैं , जो अपने स्वार्थ के लिए  कार्य करने के लिए बाहर जाती हैं  ।जबकि महिलाओं का कार्य  घर गृहस्थी  मैं रह कर  परिवार की सेवा में भागीदारी  करना होता है । श्रम करने का कार्य अधिकतर पुरुषों को होता है  लेकिन जितना श्रम  से जो आय प्राप्त होती है  उसके घर की गुजारा  न चलने पर  महिलाओं को भी  कार्य में भागीदारी करना होता है  ।जिससे घर की आवश्यकता की पूर्ति के साथ साथ प्रगति भी होती है ।अतः कहा जा सकता है कि परिवार की प्रगति का पर्याय बन गई हैं कामकाजी महिलाएं।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
कामकाजी महिलाएं और परिवार की प्रगति चिंतन का विषय है। परिवार की प्रगति का आधार भौतिक सुख सुविधा के साथ-साथ परिवार की भावात्मक महत्ता और लगाव, सामाजिक एवं स्वयं उसकी व्यक्तिगत स्थितियों का आकलन भी जरूरी है। आज हजारों की संख्या में गांव, शहर, राजधानी इत्यादि में कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत लगभग 30% होगा। जिसमें निजी संस्थानों एवं सरकारी सभी विभागों में अपनी योग्यता अनुसार कामकाजी महिलाएं बड़े से बड़े पदों पर बड़े आत्मविश्वास के साथ कार्य करती हुई नए-नए कीर्तिमान भी गढ़ रही हैं; ऐसे में परिवार का भौतिक स्तर काफी प्रगति पर पहुँच जाता है; ठीक है। दूसरी तरफ गांव में तो अनपढ़ महिलाएं मजदूरी करके परिवार का भरण- पोषण भी करती हैं; जिससे परिवार में आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में दोनों ही तरह की महिलाओं का योगदान है; पर महिलाओं की शारीरिक, मानसिक स्थितियों से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। अगर परिवार चाहे वह संयुक्त हो अथवा एकल पर उसकी योग्यता कार्य -निपुणता, घर चलाने की दक्षता में सबका यथोचित मान- सम्मान, सहयोग मिल रहा है, पारिवारिक रिश्तो में संतुलन व सामंजस्य इत्यादि बना हुआ है; तब तो प्रगति मान्य है वरना घुटन, संत्रास के मध्य परिवारों की टूटन, सामाजिक असुरक्षा, कार्य- स्थलों पर अनुचित व्यवहार इत्यादि से परिवार की प्रगति छदम ही लगती है।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जी हाँ , समय ने करवट बदली है।आज की नारी में आँखों में आँसू नहीं है ।नारी  घर के काम करके नोकरी करके दोहरी भूमिका सन्तुलन करके  निभा रही है ।आज महिलाएँ आर्थिक , शैक्षिक सामाजिक, धार्मिक  रूप से सशक्त हो कर परिवार के संग राष्ट्र  की प्रगति , विकास का पर्याय बन गयी है । महिलाएं अपने कार्यक्षेत्र में पुरुषों के संग कंधा -कंधा मिलाकर  परिवार को आर्थिक रूप से सशक्त कर रही है । परिवार के खर्चों  में अपना योगदान दे रही है  । आज इतनी महंगाई  है जिससे परिवार चलाने के लिए पति - पत्नी  दोनों को नोकरी करनी पड़ती है । तभी   घर का बजट सही चलता हर ।परिवार की  बेटी को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । शिक्षित हो कर अपने संग देश का भविष्य होती है । यूँ कह सकते हैं ।  शिक्षा होती है जीवन का आधार ।इसी से खुलते हैं । भविष्य के द्वार ।  नारी समाज , परिवार की धुरी , शक्ति होती है । समाज की सशक्त ईकाई है । जगतजननी है । शक्ति की परिभाषा है ।
 आज नारी डाक्टर , इंजीनियर , पायलट , लोकसभा अध्यक्ष ,  लेखिका ,प्रधानमंत्री  , राष्ट्रपति , पत्रकार , बैंक में  , वालीबुड,  सेना में , विज्ञान के क्षेत्र , जल , थल , नभ आदि में शिखर पर पहुँची हैं । 
 भारत की 70 प्रतिशत आबादी गाँवो में रहती है । वहाँ पर महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकार के द्वारा 
कौशल विकास शिक्षण योजना द्वारा सिलाई, कढाई , साबुन बनाने , फिनेहल बनाने आदि के शिक्षण से महिलाएँ आत्मनिर्भर हो कर परिवार का आर्थिक संबल दे रही हैं ।
 आज  जीने के तरीके  बदल गए हैं । समाज में सब काम मशीनों , कंप्यूटर से हो रहे हैं । मा  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने  सोशल साइट्स को महिला के नाम करके नारी शक्ति  संभाल रही हैं । जयपुर के गाँधी नगर स्टेशन भारतीय महिलाओं द्वारा संचालित हो रहा है । नारी समाज , देश , परिवार की विकास की कड़ी बन प्रगति कर रही है ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
महिला  है  तो  संसार  है  । महिला  के  बिना  इसकी  कल्पना  भी  नहीं  की  जा  सकती  है  । महिला  अपने  विभिन्न  रूपों  में  विभिन्न  रिश्तों  को  बखूबी  निभाती  है  । 
         घरेलू  महिला  बिना  किसी  प्रतिफल  की  चाह  के  समय  असमय,  कभी  भी  बिना  किसी  वेतन  या  लाभ  के  प्रत्येक  कार्य  में अपना  सर्वस्व  निछावर  करती  रहती  है  । ( कुछ  अपवादों  को  छोड़ कर )
        कामकाजी  महिलाएं  दोहरी  भूमिका  का  निर्वहन  करते  हुए  परिवार  की  आर्थिक  सहायता  करती  है  जो  कि  द्रोपदी  के  चीर  की  तरह  बढ़ती  ख्वाहिशें  तथा  वक्त  के  साथ  चलने  के  लिए  भी  अति  आवश्यक  है ।
        इस  दोहरी  जिम्मेदारी  निभाने  में  उसे  कहीं  पति  अथवा  परिवार  का  सहयोग  मिलता  है  तो  कहीं  वह  अकेली  ही  जूझती  रहती  है । क्योंकि  संयुक्त  परिवार  का  निरंतर  विघटन  हो  रहा  है  । 
         महिला  चाहे  घरेलू  हो  अथवा  कामकाजी,  वह  सदैव  परिवार  की  प्रगति  का  पर्याय  रही  हैं । क्योंकि  समय  नियोजन  और  मैनेजमेंट  का  दायित्व  वह  बखूबी  निभाना  जानती  हैं  । 
           - बसन्ती पंवार 
              जोधपुर - राजस्थान 
हां,,आज इस आधुनिक युग में महिलाएं हर क्षेत्र में जिस तरह से आगे बढ़ रहीं हैं,उस हिसाब से यह बात अक्षरशः  लागू होती है । कहा जाता है कि परिवार दो पहिए की गाड़ी के द्वारा सुचारू रूप से चलती है और वह दोनों पहिए हैं पति _ पत्नी । पहले महिलाएं सिर्फ घर के काम काज तक हीं सीमित थीं और पुरुष वर्ग बाहरी कार्य में अपना योगदान देते थे । लेकिन आज परिवार की प्रगति के लिए महिलाओं ने घर और बाहर दोनों जगह में अपनी कार्य क्षमता का सिक्का जमा लिया है जिसे महिलाएं बख़ूबी निभा भी रहीं हैं।आज महंगाई के इस दौर में सिर्फ पुरुष की आमदनी से घर चलाने में कभी दिक्कत होती है तब महिला की भी आमदनी से  बड़े आराम शानो-शौकत से घर परिवार चलता है । जो महिलाएं घरेलू है वह भी हर तरह से अपने बाल बच्चों की देखभाल, पढ़ाना,खान बनाना,घर की देख भाल इत्यादि अनेकों काम संभालती हैं,जिसके कारण पुरुष घर से निश्चित होकर बाहरी कार्य को करने में सफल होते हैं । इसलिए यह कहना सही भी है कि परिवार की प्रगति में महिलाओं का हर तरह से योगदान रहता‌ है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
यह सच है कि आज महिलाएं प्रगति की दौड़ में पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर गति कर रही है फिर भी ममता ,मधुरता ,गहरी विश्वास को लिए बच्चों की मां और समर्पण का भाव लिए पुरुष की सहयोगिनी ,सहधर्मिणी और जीवनसंगिनी है वह समय आने पर दोनों जिम्मेदारियां निभाती है आज बढ़ती हुई महंगाई को देखते हुए दोनों को ही कामकाज करना जरूरी हो गया है महिलाएं भी शिक्षित होती है अतः कार्य करने घर से बाहर निकल घर परिवार को एक सशक्त स्थान दिलाने में मदद करती है ! हां यह बात शत प्रतिशत सही है कि कामकाजी महिलाओं को दोहरे संसार में जीना पड़ता है उसे घर बाहर दोनों के काम में सामंजस्यता लानी पड़ती है! घर का खाना ,पति की तीमारदारी ,और बच्चों को देखना यहां पत्नी पति से मदद की अपेक्षा तो रखती है और दोनों को एक दूसरे का सहयोग करना भी चाहिए क्योंकि पति पत्नी एक दूसरे के पूरक हैं !यहां एक कामकाजी महिला में ममता और प्रेम दोनों का प्रवाह बराबर होता है! पति प्रेम की अभिलाषा रखता है और बच्चे अपनी मां से निर्मल प्रेम की अपेक्षा करते हैं कामकाजी महिलाओं का दायित्व पुरुषों की अपेक्षा बढ़ गया है किंतु वह दिव्य दृष्टि रखते हुए पहले ही अपने कामकाज को निपुर्णता से पूर्ण कर लेती है ! महिलाएं आत्मनिर्भर होकर परिवार के साथ समाज के विकास में भी सहयोग कर रही है आज नारी एक साथ दो कर्तव्य निभाती है कामकाजी महिलाओं की दोहरी जिंदगी होते हुए भी अपने घर परिवार को बांधने का भरपूर प्रयास करती है कामकाजी महिलाएं समय प्रबंधन को लेकर चलती हैं तभी घर बाहर दोनों जिम्मेदारी उठा सकते हैं एक बात और कहना चाहूंगी केवल बाहर काम करने वाली महिलाओं को ही कामकाजी महिला का खिताब नहीं देना चाहिए ! घरेलू कुशल ग्रहणी बिना वेतन के घर की पति की जिम्मेदारी निभाती है वह भी इस श्रेणी में आती है और खेतों में पति के साथ काम करने वाली महिला भी इस खिताब की हकदार है !
अंत में कहूंगी समय के साथ रथ के दोनों पहियों को कुशलता से अपने जीवन की गाड़ी को लेकर परिवार की खुशी के लिए सुरक्षित भागना ही है इसी का नाम जिंदगी है तभी जिंदगी की रफ्तार तेजी पकडेगी और हम खुश रहेंगे! अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर समस्त सशक्त महिलाओं का अभिनंदन 
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
ये कहना ग़लत न होगा कि किसी भी घर की धूरी महिला के इर्द-गिर्द ही घुमती है|यदि महिला शिक्षित या सशक्त होती हैं तो उसका लाभ घर और समाज दोनों को होता है|लेकिन महिला अगर कामकाजी है तो उसके कंधे पर दोहरी ज़िम्मेदारी आ जाती है घर के साथ ही साथ कार्य स्थली की ज़िम्मेदारी भी आ जाती है|
आज के युग महिलाएँ पढ़ लिख कर स्वावलंबी बन रहीं हैं जिनसे उनके व्यक्तित्व में निखार तो आता ही है बल्कि वो  परिवार को आर्थिक सहायता प्रदान कर अपनी और  परिवार की स्थिति को बेहतर बनाने में मददगार साबित होती है|
आजकल घर बैठे या अनपढ़ महिलाएँ भी घरों में ,खेतों में या अन्य कार्य करके अपने परिवार की जीवन यापन कर रहीं हैं ताकि परिवार की आर्थिक रूप से मदद कर सकें अपने बच्चों को बेहतर कल दे सके|वैसे तो ऐसी महिलाओं का प्रतिशत बहुत कम है  फिर भी यह कहना बिल्कुल सही है कि कामकाजी महिलाएँ परिवार की प्रगति की पर्याय निश्चित ही हैं |
                     -  सविता गुप्ता 
                     राँची - झारखंड
कामकाजी महिला कहने से पहली छवि आंखों के सामने आती है कि घर से बाहर निकल कर काम करने वाली महिलाएं। परंतु महिला के लिए घर संभालना एक मुकम्मल नौकरी है। भले ही उसे कोई महत्व नहीं दिया जाता है और न ही कोई मेहनताना। महिला यदि दो घण्टे भी घर से बाहर रहे तो घर अस्त व्यस्त हो जाता है। अपनी दुकान हो, बिजनेस हो या खेती बाड़ी। गांव हो या शहर, महिलाएं हमेशा से सारी जिम्मेदारियां संभाल लेती हैं।ये महिलाओं की शक्ति और हुनर है कि वो घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी आराम से संभाल लेती हैं।ये सब वो परिवार की प्रगति के लिए करतीं हैं।
मौजूदा समय में जहां मंहगाई के साथ भौतिक सुख सुविधाओं के उपभोग की चाहत बढ़ती जा रही है,स्टेटस सिंबल जरूरी हो गया है तो हर महिला घर-परिवार में आर्थिक सहयोग करना चाहती है। पढ़ी लिखी महिलाएं अपनी शिक्षा और समय का सदुपयोग कर परिवार को आर्थिक सहायता करतीं हैं।कहीं कहीं कामकाजी महिलाओं के कारण घर और बच्चे उपेक्षित भी होते हैं क्योंकि उसके पास बच्चों के लिए समय की कमी होती है। घर टूटने की नौबत भी आ जाती है। ऐसे में पति या परिवार के अन्य सदस्यों को सहयोग देना चाहिए। कुल मिलाकर कामकाजी महिलाओं के साथ यदि परिवार संतुलन बना कर चलता है तो निश्चित ही परिवार की प्रगति होती है।
- डॉ सुरिन्दर कौर नीलम
रांची  - झारखंड
      महिला सशक्तिकरण का उद्देश्य ही उन्हें अपने पांव पर खड़ा करना है।उनके ब्रह्मचर्य काल से लेकर गृहस्थ जीवन तक के मनोबल को बढ़ाना है।वह शादी के बिना भी मां-बाप पर बोझ ना बने और अपना जीवनयापन अपनी इच्छा अनुसार स्वतंत्रतापूर्वक जी सके।उसे अबला से सबला बनाना मुख्य उद्देश्य के पर्याय हैं।  मान्यता यह भी है कि गृहस्त खुशहाल जीवन के पीछे नारी शक्ति का हाथ होता है।बुद्धिजीवियों का तो यहां तक मानना है कि प्रत्येक पुरुष की सफलता एवं विफलता का श्रेय नारी शक्ति को ही जाता है।
      इसके अलावा नारी शक्ति को सशक्त करने का उद्देश्य यह भी है कि ईश्वर ना करें कि यदि शादीशुदा महिला के परिवारिक जीवन में,पति द्वारा धोखा देने के उपरांत या पति के अस्वस्थ होने की स्थिति में या पति को किसी भी कारण नौकरी से निकाल देने पर या अपने पति के मरणोपरांत अपने परिवार का दायित्व कंधों पर पड़ जाए।तो वह उक्त दायित्व का निर्वाह सफलतापूर्वक करते हुए अपने परिवार का भरणपोषण कर सके।  ऐसे ही एक और एक ग्यारह होते हैं और वर्तमान आर्थिक चुनौतियों के चलते अकेले पति की कमाई से परिवार की प्रगति संभव ही नहीं है।प्रगति नहीं है, तो पति-पत्नी के सपने पूरे नहीं होते।जिससे परिवारिक जीवन खुशहाल नहीं हो सकता।जिसके परिणाम स्वरूप घरेलू हिंसा आरम्भ हो जाती है।रोज के झगड़े बढ़ जाते हैं।जो घर से निकल गली-मोहल्ले से होते हुए विवाह विच्छेद का विकराल रूप धारण कर लेते हैं।जिसका सब से अधिक दुष्प्रभाव निर्दोष बच्चों पर पड़ता है और उनका जीवन नर्क में परिवर्तित हो जाता है। किंतु यदि महिला पढ़ी-लिखी,बुद्धिमान,कुशल और सर्वसम्पन्न होगी, तब ऊपरोक्त कठिनाईयों से परिवार को बचाने में वह सक्षम होंगी।ऐसे में विपत्तियों एव चुनौतियों की क्या औकात कि वह नारी शक्ति के समक्ष ठहर पाएं?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
परिवार की प्रगति का पर्याय है महिला । यह बात पूर्ण रूप से सत्य है ।  पर  "बन गई हैं"  वाक्य से आपत्ति है मुझे । क्योंकि आज से नहीं युगों-युगों से महिलाओं के कारण ही परिवार में प्रगति होती आई है । पूर्व में जब पुरुष बाहर के कार्य संभालते थे तब स्त्रियां घर की सभी जिम्मेदारी के साथ बच्चों को भी अच्छे संस्कार देकर सुरक्षित करती थी , यह बात अलहदा है कि तब बच्चे को केवल पिता का नाम मिलता था । एक बेटी के विवाह उपरांत उससे कोई भूल होने पर उसे यह उलहना दिया जाता था कि - "यही सिखाया है माँ ने ?"
कहने का तात्पर्य महिलाएँ तब भी परिवार की प्रगति में पूरी हिस्सेदारी रखती थीं, जब वह एक मकान को घर का स्वरूप देती थी और उस चार दीवारी के भीतर स्वर्ग बना देती  और आज जब वह घर के अलावा बाहर की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही है तब दो जिम्मेदारी एक साथ पूरा कर रही है ।   महिलाएँ जहाँ ईमानदार और जिम्मेदार वर्कर है, वही जीवन में  अच्छी प्रबंधन, संयोजक और व्यवहारकुशल गृहिणी भी हैं। हाथ में आए हर काम कुशलता के साथ पूरा करती है । तभी तो सुबह सो कर उठने से लेकर रात सोने तक फिरकी की भागती रहती है । सबकी जरूरतों , सबकी इच्छाओं, सबकी भावनाओं को समझते- समझते स्वयं उपेक्षित रह जाती है।  पर इतना तो तय है कि परिवार में नारी है तो खुशी और खुशी है तो प्रगति है ।
- वंदना दुबे
धार - मध्यप्रदेश

" मेरी दृष्टि में " कामकाजी महिलाएं से परिवार की स्थिति को काफी मजबूती प्रदान हुई है । आर्थिक दृष्टि से तो परिवार का स्तर काफी सुधर जाता है । आगे चल कर यहीं परिवार की ताकत बनता हैं ।
                                                      - बीजेन्द्र जैमिनी




Comments

  1. आज की चर्चा का विषय महिला दिवस के अवसर पर रखा गया था " क्या परिवार की प्रगति का पर्याय बन गई है काम काजी महिलाएं।" इस पर महिलाओं द्वारा उत्साह के साथ अपने अपने विचार प्रस्तुत किए गए हैं। उनके विचार पढ़ कर अच्छा लगा। परिवार ही नहीं सारे समाज में जो प्रगति का दौरा दौर चला है उसमें महिलाओं की महती भूमिका है। मैं अपरिहार्य कारणों से समय पर अपने विचार प्रस्तुत नहीं कर सका । साथ ही अफसोस इस बात का हुआ की इस चर्चा में मात्रा दो ही पुरुष के विचार आए हैं।
    - उदय श्री. ताम्हणे
    भोपाल - मध्यप्रदेश
    ( WhatsApp से साभार )

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