क्या सोशल मीडिया अफवाहों और नकारात्मक सुचनाओं का मंच बन गया है ?

सोशल मीडिया पर अफवाहों का बाजार हमेशा गर्म रहता है।  जो नाकारात्मकता का   प्रतीक माना जाता है । देखने वाले को भी तुरन्त पता चल जाता है कि ये सिर्फ अफवाहें है । फिर भी सोशल मीडिया पर अफवाहों का बोल - बाला रहता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख मुद्दा है । देखते हैं आये विचारों को : -
क्या सोशल मीडिया अफ़वाहों का और नकारात्मक सूचनाओं का मंच बन कर रह गया है आज के दौर में सोशल मीडिया जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है जिसके बहुत सारे फीचर हैं, जैसे कि सूचनाएं प्रदान करना, मनोरंजन करना और शिक्षित करना ```मुख्य``` रूप से शामिल हैं।
लोकप्रियता के प्रसार में सोशल मीडिया एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म है, जहां व्यक्ति स्वयं को अथवा अपने किसी उत्पाद को ज्यादा लोकप्रिय बना सकता है। आज फिल्मों के ट्रेलर, टीवी प्रोग्राम का प्रसारण भी सोशल मीडिया के माध्यम से किया जा रहा है। वीडियो तथा ऑडियो चैट भी सोशल मीडिया के माध्यम से सुगम हो पाई है जिनमें फेसबुक, व्हॉट्सऐप, इंस्टाग्राम कुछ प्रमुख प्लेटफॉर्म हैं।
सोशल मीडिया जहां सकारात्मक भूमिका अदा करता है वहीं कुछ लोग इसका गलत उपयोग भी करते हैं। सोशल मीडिया का गलत तरीके से उपयोग कर ऐसे लोग दुर्भावनाएं फैलाकर लोगों को बांटने की कोशिश करते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से भ्रामक और नकारात्मक जानकारी साझा की जाती है जिससे कि जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कई बार तो बात इतनी बढ़ जाती है कि सरकार सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल करने पर सख्त हो जाती है और हमने देखा है कि सरकार को जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध तक लगाना पड़ता है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हुए किसान आंदोलन में भी सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया ताकि असामाजिक तत्व किसान आंदोलन की आड़ में किसी बड़ी घटना को अंजाम न दे पाएं।
जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, ठीक उसी प्रकार सोशल मीडिया के भी दो पक्ष हैं, जो इस प्रकार हैं-
दैनिक जीवन में सोशल मीडिया का प्रभाव : -
• यह बहुत तेज गति से होने वाला संचार का माध्यम है
• यह जानकारी को एक ही जगह इकट्ठा करता है
• सरलता से समाचार प्रदान करता है
• सभी वर्गों के लिए है, जैसे कि शिक्षित वर्ग हो या अशिक्षित वर्ग
• यहां किसी प्रकार से कोई भी व्यक्ति किसी भी कंटेंट का मालिक नहीं होता है।
• फोटो, वीडियो, सूचना, डॉक्यूमेंटस आदि को आसानी से शेयर किया जा सकता है
सोशल मीडिया का दुष्प्रभाव : -
• यह बहुत सारी जानकारी प्रदान करता है जिनमें से बहुत सी जानकारी भ्रामक भी होती है।
• जानकारी को किसी भी प्रकार से तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सकता है।
• किसी भी जानकारी का स्वरूप बदलकर वह उकसावे वाली बनाई जा सकती है जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता।
• यहां कंटेंट का कोई मालिक न होने से मूल स्रोत का अभाव होना।
• प्राइवेसी पूर्णत: भंग हो जाती है।
• फोटो या वीडियो की एडिटिंग करके भ्रम फैला सकते हैं जिनके व्दारा कभी-कभी दंगे जैसी आशंका भी उत्पन्न हो जाती है।
• सायबर अपराध सोशल मीडिया से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या है।
                             - अश्विन पाण्डेय
                              मुम्बई - महाराष्ट्र
             यह एक विडम्बना है कि झूठ सौ बार बोला गया तो वह सच लगने लगता है। लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। वर्तमान में सोशल मीडिया में  आई हुई खबरों के साथ ऐसा ही हो रहा है। किन्तु सभी को मिलजुलकर यह कोशिश करना है कि सच पर झूठ का पर्दा न रहे। हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने सौ को छोड़कर पांच का साथ दिया था।  आने वाले समय में भी सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने में ही दुनिया की भलाई है। 
- उदय श्री. ताम्हणे 
भोपाल - मध्यप्रदेश
 वर्तमान में समाज के लोग यही कहते हैं लेकिन ऐसा नहीं है सोशल मीडिया नकारात्मक और सकारात्मक दोनों सूचनाएं प्रस्तुत करती है लेकिन हम सकारात्मक पर ध्यान न देकर नकारात्मक पर ज्यादा ध्यान जाता है हर वस्तु सदुपयोग के लिए बना होता है ना कि दुरुपयोग के लिए लेकिन उसका सदुपयोग करना नहीं आता है तो कुछ का कुछ भी कहना पड़ता है इसी  भाँति सोशल मीडिया की स्थिति है। नकारात्मक सोचने वाले नकारात्मक सूचनाओं का मंच कहते हैं सकारात्मक सोचने वाले सोशल मीडिया का प्रशंसा करते हैं की वर्तमान युग में बहुत कुछ ज्ञान को समाज तक पहुंचाने का कार्य करती है लेकिन हमारा ध्यान ज्ञान की और ना होकर नकारात्मक सूचनाओं की ओर ज्यादा जाता है सोशल मीडिया गलत नहीं है इसका इस्तेमाल करने वाले नकारात्मक सोच लेकर गलत कह सकते हैं नकारात्मक सोच के साथ सकारात्मक सोच भी सोशल मीडिया प्रस्तुत करती है। आ जा सकता है कि सोशल मीडिया सकारात्मक और नकारात्मक दोनों सूचनाएं प्रस्तुत करती है जिस किसी की जैसी नजरिया होती है उसी के अनुसार उनकी सूचनाओं का ग्रहण करते हैं।
- उर्मिला सिरदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मीडिया का अर्थ जनसंचार का माध्यम ---- इनका उद्देश्य समाज के विभिन्न अंगों के बीच संवाद पैदा करना है !
मीडिया का काम जनता एवं प्रशासन दोनों को सही मार्गदर्शन दे दोनों को वास्तविकता दिखाना है किंतु यह तभी संभव है जब मीडिया के लोग ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ हो परंतु आज देश का मीडिया बटा हुआ है ! सच कहने की जगह वह दलबदलू राजनीति नेताओं का हथियार बन गया है अधिकतर मीडिया अपने स्वार्थ को लेकर किसी न किसी दल से जुड़े हैं अतः किसी तरह की घटना का सही विवरण देने की जगह में एक ही तरफ के चित्र दिखाते हैं उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए क्योंकि ,इससे जनता में शासन प्रशासन के प्रति गलत धारणा पैदा होती है और देश में दंगे फसाद बढ़ जाते हैं !
ऐसा नहीं है कि मीडिया हमें गुमराह ही करती है आज तो सोशल मीडिया ने हमारी जिंदगी में स्थान बना लिया है इसके अनेक फीचर है जैसे टीवी द्वारा प्रचार प्रसारण,  उद्योग को बढ़ाने में,  शिक्षा मिनिट क्या सेकंड में फेसबुक, व्हाट्सएप द्वारा लोगों से संपर्क होता है हमारी दूरियां नज़दीकियां में तब्दील होती है आदि आदि अनेक फायदे के चलते वह हमारा करीबी मित्र बन गया है जिसके चलते हम मीडिया से दूर नहीं रह सकते ! वह हमारा अंतरंग मित्र हो गया है !
 अतः अंत में कहूंगी कि मीडिया हमारी जिंदगी में धूप छांव दोनों का साथ देती है वास्तव में मीडिया में काम करने वालों का दायित्व है कि वह समाज कल्याण के लिए कार्य करें और निष्पक्षता से ना कि लोगों में ,यानिकी जनता में है भय और नकारात्मकता की भावना पैदा करें !मीडिया ही लोकतंत्र की सच्ची सेवा कर सकता है क्योंकि मीडिया ही जनता और प्रशासन के संबंधों के बीच की कड़ी है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
सोशल मीडिया के दो पक्ष होते हैं जैसे एक सिक्के के दो पहलू होते हैं एक तरफ सच दिखाना और एक तरफ झूठी खबरों को दिखाना कभी-कभी एक थाली को सजाते समय यह खाने को बनाते समय उसमें नमक मिर्च डालते हैं सुंदर बनाने के लिए चैनल वाले अपनी नौकरी चलाने के लिए कुछ ज्यादा ही नमक मिर्ची लगा देते हैं और अपना पत्रकारिता का धर्म भूल जाते हैं लोग स्वार्थ में अंधे हो गए हैं वह अपनी दुकान चलाने के चक्कर में सही गलत लोगों के समक्ष लाना ही भूल गए हैं बहुत कम लोग आज की दुनिया में ईमानदारी से काम करते हैं जहां विज्ञान हमारे लिए वरदान है हमें इतनी सुख सुविधाएं मिली है अभिशाप भी है मेरा सभी भाइयों बहनों से अनुरोध है कि आप जहां भी जो भी काम कर रहे हैं ईमानदारी से करिए।
अंत में कवि दिनकर ने कहा है :-
यह समय विज्ञान का,
सब भांति पूर्ण समर्थ।
खुल गया है गुढ संसृति केअमित गुरु अर्थ,
चीरता तमको , संभाले बुद्धि की पतवार,
आ गया है ज्योति की नव भूमि में संसार।।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
बड़ा गम्भीर सवाल है । कुछ हद तक सही भी 
यह एक सवाल भी उछला कि क्या सोशल मीडिया अफवाहों और नकारात्मक सूचनाओं के प्रचार-प्रसार का जरिया बनकर रह गया है? सामाजिक जुड़ाव के नाम पर सोशल मीडिया तमाम विकृतियों की शिकार हो गई यह भी पढ़ें शायद यह इंसान की जन्मजात कमजोरी है कि वह सच पर यकीन जरा देर से करता है। इसके उलट झूठ की उड़ान उसे तुरंत ही रोमांचित करने लगती है। हालांकि जब तक मामला किस्सागोई किस्म की गप्पबाजी तक रहता है तब तक ठीक रहता है। वक्त काटने का यह सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। आखिर सामाजिक जुड़ाव के ये तौर-तरीके ही तो हमारी सोसायटी को एक हद तक इंसानी बनाते हैं, लेकिन बीते करीब एक-सवा दशक में सोशल मीडिया के आ जाने से यह कला तमाम विकृतियों का शिकार हो गई है। फेसबुक और ट्विटर जैसे जितने भी इंतजाम सामाजिक जुड़ाव के नाम पर किए गए, आखिर में जाकर वे झूठ को पंख देने के काम आते भी दिख रहे हैं। सोशल मीडिया पर गलत जानकारियों, झूठ और अफवाहों को विस्तार देने का जो आरोप लगा, वह फिजूल नहीं है, क्योंकि राजनीतिक फायदे उठाने से लेकर उत्पादों के नाम पर सिर्फ सपने बेचने का एक पूरा अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र इससे कायम हुआ है। सोशल मीडिया में अफवाहों, झूठी और फर्जी खबरें तेजी से फैलती है । 
अफवाह और झूठ के इस तंत्र को जांचने की एक अहम कोशिश दो साल पहले मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के डाटा विश्लेषकों ने की थी। वे भी इसी नतीजे पर पहुंचे कि अफवाहों, झूठी और फर्जी खबरों में जंगल की आग की तरह बेइंतहा तेजी से फैलने की भरपूर ताकत होती है। फेक न्यूज के सिलसिले कहां, क्यों और कैसे बनने शुरू होते हैं और कहां जाकर खत्म होते हैं, इसे 2006 से 2016 के बीच 10 वर्षों में 30 लाख लोगों द्वारा सिर्फ ट्विटर पर प्रेषित की गई सूचनाओं (ट्वीट्स) में मौजूद झूठ की पड़ताल से परखा गया। ट्विटर हो, फेसबुक, इंस्टाग्राम में फर्जी खबरें तेजी से और बहुत दूर तक फैलती हैं विज्ञान जर्नल-साइंस में छपे एक लेख के मुताबिक यह पड़ताल डाटा विश्लेषकों को इस निष्कर्ष पर ले गई कि ट्विटर हो, फेसबुक, इंस्टाग्राम या कोई और प्लेटफॉर्म-इनसे फर्जी खबरें तेजी से और बहुत दूर तक फैलती हैं। सच उनके मुकाबले में कहीं टिक नहीं पाता है 
बहुत से उदाहरण है ।
जो दिये जा सकते पर .....
झूठ के नकाब उतारे जाएं हालात में किसी सुधार की उम्मीद सिर्फ इससे है कि वे लोग जो सोशल मीडिया पर झूठ का कारोबार करते हैं, पकड़े जाने और सजा पाने के भय पर खुद ऐसी हरकतों से बाज आएंगे। बेहतर दुनिया बनाने के लिए जरूरी है कि झूठ के ये नकाब उतारे जाएं। 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी यह बिल्कुल सच नहीं है ।अधिकांश लोगों द्वारा अभी भी सोशलमीडिया को गम्भीरता से लेकर उसका सकारात्मक दिशा प्रयोग किया जा रहा है अच्छे परिणाम प्रदर्शन देने के प्रयास किए जा रहे हैं ।हां कुछेक लोग हर जगह की तरह सोशलमीडिया पर भी नकारात्मकता फैलाने में लगे रहते हैं सूचना समाचार या ज्ञान देखे समझे परखें बिना  यहां वहां बांटते रहते हैं ।फारवर्ड करने की बीमारी भी इनमें रहती है ।अफवाहों का बाजार यही तय करते हैं ।
- शशांक मिश्र भारती 
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
अच्छाई  और  बुराई  दोनों  साथ-साथ  चलती  है  । जैसे  सर्वगुण  संपन्न  कोई  भी  नहीं  होता  उसी  प्रकार  प्रत्येक  क्षेत्र के  सकारात्मक  और  नकारात्मक  दोनों  पहलू  होते  हैं  ।  सोशल  मीडिया  ने  जहां  अनेकों  सुविधाएं  उपलब्ध  करवाई  है  जिसके  कारण  पूरी  दुनिया  में  कहीं  भी  किसी  से  भी  संपर्क,  जानकारियाँ,  सूचनाओं  का  आदान-प्रदान  आदि  वायु  की  गति  से  भी  तेजी  से  हो  जाता  है  ।  सबकुछ  हमारी  मुट्ठी  में  समाया  हुआ  है ।  वहीं  असामाजिक  तत्व  अपने  निजी  लाभ  के  लिए  इस  सुविधा  का  भरपूर  दुरूपयोग  करते  हैं जो  अफवाहें  और  नकारात्मक  सूचनाएं  भेजकर  लोगों  को  गुमराह  करते  हैं  ।   अतः सावधान  और  चौकन्ना  रहना  आवश्यक  है  । किसी  भी  सूचना  के  आदान-प्रदान  से  पहले  उसकी  सत्यता  क  जांच  भी  जरूरी  है   ।  इसका  इतना  ही  उपयोग  किया  जाय,  जितना  आवश्यक  हो । 
             - बसन्ती पंवार 
              जोधपुर - राजस्थान 
ऐसा बिल्कुल नहीं है। जिस प्रकार सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं, धूप और छाया मौसम के दो पहलू हैं, ठीक उसी प्रकार सोशल मीडिया के भी दो पहलू हैं... सकारात्मक और नकारात्मक पोस्ट्स ।  मानव की सोच और दृष्टि ऐसी है कि वह बुराई और नकारात्मक बातों की ओर शीघ्रता से आकर्षित होता है, उन्हीं की चर्चा अधिक करता है। इसलिए ऐसा लगने लगता है कि सोशल मीडिया पर आने वाली बातें नकारात्मक ही होती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।   सोशल मीडिया में अपनी बात और विचारों को स्वतंत्रता से रखा जा सकता है, जहाँ समाचारपत्रों में अपनी बात कहने के लिए आपको उनके कार्यालय में लिख कर, ईमेल से भेजना होता है, और उसके प्रकाशित होने न होने की बात उनके ऊपर निर्भर करती है, वहाँ सोशल मीडिया में अपनी बात आसानी से पहुँचाई जा सकती है।बहुत सी जरूरी सूचनाएँ भी समाचारपत्र और टी वी से पहले सोशल मीडिया से लोगों तक पहुँच जाती है। यह इसका सकारात्मक पहलू है।फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, वाट्सअप से भी सूचनाएँ तीव्रता से पहुँचती हैं। तो हर किसी व्यक्ति को इसे सकारात्मकता के प्रचार-प्रसार के लिए उपयोग करना चाहिए।  नकारात्मक बातें, अफवाहें, झूठी बातें...इन्हें समझने का प्रयास करते हुए इनसे दूर रहना चाहिए ताकि आपस में जुड़ने का यह शक्तिशाली मंच सबके लिए वरदान बने, अभिशाप नहीं। यह हम सबका दायित्व है कि इस उपयोगी का सबके लिए सदुपयोग हो, दुरुपयोग नहीं। ओक्ली लिए सभी को अपना ज्ञान निरंतर बढ़ाते रहना चाहिए।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
    देहरादून - उत्तराखंड
      सोशल मीडिया अर्थात सामाजिक मीडिया मीडिया का वह सशक्त माध्यम है।जो दूसरे मीडिया से अधिक तीव्र गति से प्रकाशित एवं प्रसारित होता है।इस पर पाबंदी भी नहीं है।जबकि वर्तमान मीडिया कारोबारी बन चुका है।
      इसके अलावा यह पारस्परिक संबंध के लिए उचित माध्यम है।मेरा निजी अनुभव है कि जो कारोबारी पत्रकारिता क्षेत्र में नहीं हो रहा।वह सोशल मीडिया में हो रहा है।क्योंकि कारोबार मीडिया ने सरकार एवं सम्पन्न व्यक्तियों से विज्ञापन लेने होते हैं।जबकि सोशल मीडिया स्वतंत्र है।यदि यह ना हो तो चारों स्तम्भ मिल कर नागरिकों का बिना मरे ही अंतिम संस्कार कर दें और कानोंकान किसी को मालूम भी ना हो।जबकि सोशल मीडिया पूरे विश्व को सूचनाओं के अंतरजाल सूत्र में पिरो रहा है और सशक्त व सक्षम दायित्व निभा रहा है।इसे संविधान का पांचवा स्तम्भ कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अत्यंत दुखद यह भी है कि समाचारपत्रों में पेड न्यूज का बोलबाला है।जो विज्ञापन से सस्ती होती है।इसलिए आम गरीब नागरिक का एक मात्र शस्त्र सोशल मीडिया है।
    जिसकी सब से बड़ी उपलब्धियां यह हैं कि प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं।अत: सोशल मीडिया  अफवाहों और नकारात्मक सूचनाओं के बावजूद अत्यंत महत्वपूर्ण सकारात्मक सूचनाओं का विश्व व्याप्त मंच बन गया है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
भारतीय संविधान ने हर भारत के नागरिक को मूल अधिकार में बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी दी है ।
पूरा विश्व के लोग सोशल मीडिया जैसे व्हाटसऐप्स,ट्विटर ,  इंसाटाग्राम , फेसबुक , आदि मंच जानकारियाँ साँझा करने का मंच बन गया है । मानव अपने दुख - सुख की सब बातें शेयर कर रहा है । इसी सोशल मीडिया ने ट्यूनीशिया में लोकतांत्रिक अधिकारों को स्थापित करने के लिए  अरब क्रांति की नींव बनी । जहाँ सोशल मीडिया रचनात्मक भूमिका निभा रहा है । वहीं पर इस मंच का अफवाहों दूसरी सूचनाओं के  दुरुपयोग  कई रूपों में विश्व में दिखायी दे रहा है । दहशतगर्दी का अड्डा बनाके भावनाएं आहत करते हैं ।
भारत में यह मंच चिंतनिय बन गया है । देश को तोड़ने में लगी ताकतें सच्ची बातों के खिलाफ  झूठ का पुलिंदा बनाके  अफवाहों के रूप में परोस रहा है । इसके द्वारा सामाजिक , धार्मिक उन्माद , नफरत , सांप्रदायिकता फैलाया जा रहा है। साजिशकर्ता साजिश की योजनाओं को अमूर्त रूप भी दे रहे हैं ।  नकारात्मक बाते दुनिया को बता रहे हैं ।
झूठ बोलने वाले पहले अपने  चेहरे का दाग तो मिटाओ। इन लोगों ने इन मंचों में समूह बना रखें हैं हिंसा करके राष्ट्रीय संपत्ति  में आग लगाते हैं । प्रबुद्ध लोगों , समाज सुधारकों , आदि की हत्या करते हैं। नकारात्मक कामों के सुराग भी यही पर मिलते हैं । राजनैतिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए फेक सामाचार भेजे जाते हैं । गलत बातें साँझा करते हैं । 
ये सब बातें मनुष्य के जीवन , राष्ट्र , समाज के विकास में , सांप्रदायिक सौहार्द में  बाधक हैं । भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए यह मंच माहौल बिगाड़ सकता है । हिंसा के नाम पर वोट बैंक का खेल स्वार्थी राजनीति पार्टियाँ खेल रही हैं ।
हाल ही में भारत में अमेरिका के राष्ट अध्यक्ष ट्रंप आये । तब दिल्ली में  दंगे करवा के हिंसा की आग जली । भारत विरोधी  देशों ने इस आग के खेल में रोटियाँ सेंकी ।
सरकार को देश हित में भारत के तोड़ने वाली शक्तियों , गद्दारों के खिलाफ , सांप्रदायिकता फैलानेवालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने होंगे और कड़े कानून बनाने होंगे । 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
जी नहीं सोशल मीडिया का काम हीं है समाज के दोनों रूपों को दिखाना । हाँ ये अलग बात है कि नमक-मिर्च कुछ ज्यादा हो या कम। आज की सोशल मीडिया सच्चाई को सामने लाने के लिए जान पर भी खेलते हैं । हाल के दिनों में कई इस तरह की घटनाएं सामने आईं हैं । आज जानकारी के लिए सोशल मीडिया सबसे विशाल माध्यम है। वह गुरु है , हर विषय पर। उन्हें भी अपनी कमाई करनी है  इसलिए इधर-उधर को जोड़ कर खबर बना ली जाती है। इस संदर्भ में देखें तो कहीं भी सच्चाई नहीं है । हमारे समाज में हर तरफ अच्छी और बुराई का सामना होता रहता है । उसी तरह यह मीडिया का संसार है । यहाँ भी झूठ और सच दोनों पलते हैं । अगर हम उसे नकारेंगे तभी उनकी कार्यवाही बदलेगी । हमारे बीच के अनेकों लोग उनके साथ खड़े हैं, तो फिर उन्हें रोकना संभव नहीं है । जैसा कि *cb vyas* जी द्वारा कहा गया है *मीडिया हमारा अंतरंग मित्र* बन गया है बिल्कुल सही है ।
उन्हें भी अपने कहे की विश्वस्तता तौल लेनी चाहिए । दंगे-फसाद फैलाने वाली बातों से परहेज करना चाहिए। लेकिन अभी के दिल्ली कांड में मीडिया ने शांति के लिए बढ़-चढ़ कर काम किया है। उन्होंने नेताओं के कथन की भी आलोचना की है। भीड़ में पत्थरबाजी रोकने वालों का भी संज्ञान लिया है। दंगा-भड़काने वालों की सत्यता भी दिखाई है । इस वक्त कोरोना वायरस के प्रति जागरूकता फैलाने का काम भी मीडिया वाले कर रहे हैं । सभी काम के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू होते हैं। हम अपने अनुसार उसकी व्याख्या करते हैं । जो गलत है ।
- संगीता गोविल 
पटना - बिहार
मीडिया का समाज के चहुँमुखी विकास के योगदान में  महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस दृष्टि से इसे समाज में चौथा स्तंभ भी माना गया है। अतः मीडिया का यह दायित्व है कि उसके माध्यम से जो प्रस्तुत किया जा रहा है,वह तथ्यात्मक, गुणात्मक के साथ-साथ सकारात्मक भी हो। सिर्फ पठनीय, मनोरंजक और व्यवसायिकता की सोच वाली सामग्री यदि दूरगामी सुखद और अच्छे परिणाम देने में संदेहस्पद है तो प्रस्तुत और प्रकाशन के पूर्व चिंतन,मनन और परामर्श लेना सार्थक निर्णय होगा। वर्तमान में सभी तो नहीं परंतु कुछेक  ऐसे जिम्मेदार मीडिया वर्ग इसे गंभीरता से न लेते हुये निष्पक्ष, निष्ठा और नैतिकता के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। उनकी यह व्वसायिक और निजी स्वार्थ निहित सोच और उनके कार्यान्वयन से जो परिणाम निकल रहे हैं, वे असंतोषजनक तो हैं ही, चिंतनीय भी हैं। कथित मीडिया के प्रस्तुतिकरण में ऐसी अफवाहों और नकारात्मक सूचनाओं को भी शामिल किया जा रहा है ।जिनका वास्तविकता से कोई लेनादेना नहीं। इससे सामाजिक टकराव, मतभेद,मनभेद,अपराध, हिंसात्मक गतिविधियों को गति मिल रही है।मीडिया,बल्कि मेरा तो ये व्यक्तिगत सुझाव है कि हम सभी को कहानीकार आदरणीय सुदर्शन जी की कहानी "हार की जीत" के कथानक में एक पात्र बाबा भारती के कथन का अनुसरण  करना चाहिए ।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कहा जाता है कि "अति सदैव वर्जते"। यही हाल आज सोशल मीडिया का हो गया है ।आज अनेक तरीके हो गये हैं किसी भी बात को "हाईलाइट" करने में क्षणिक देरी लगती है और कोई भी बात सबको पहुंच जाती हो,,देश में तो क्या विदेश में भी आग कि तरह फैलाया जा सकता है। इतना  फास्ट सिस्टम हो गया है । यहां अब ये ध्यान देने वाली बात है कि हम इतने अच्छे सिस्टम का सही सदुपयोग करें ना कि उसका दुरूपयोग करें ।ये बात हम सभी जानते हीं हैं कि अच्छी बातें देर से फैलती हैं, परन्तु गलत नकारात्मक सूचनाएं जल्दी फैलती हैं । हमें इसी नकारात्मक सूचनाओं पर लगाम या अंकुश लगाने की जरूरत है । सोशल मीडिया खुद को अपडेट रखने के चक्कर में बिना जांचे, परखें कुछ अफवाहों और नकारात्मक सूचनाओं को यूं हीं  फ़ैला देती है और हम भी कभी कभार बिन जाने समझे उसको फैलाने में सहयोगी बन जाते हैं जो सरासर ग़लत है और इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है । इसलिए हमें इन सब अफवाहों और सूचनाओं से सचेत रहने की अतिआवश्यकता है ।ऐसी बातों की सच्चाई बिना जांचे परखें दूसरों को कभी नहीं भेजनी चाहिए ।सोशल मीडिया पर हम बहुत विश्वास रखते हैं,,फलत: मिडिया को भी इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि वह अपनी साख बनाए रखे ।
- डॉ पूनम देवा
पटना- बिहार
ऐसा नहीं है । जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही सोशल मीडिया में सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों ही पोस्ट्स आती हैं । मानव मन अक्सर ही नकारात्मक चीजों की ओर आकर्षित होता है ; जो सुख निंदा रस से मिलता है वो अन्यत्र कहा संभव है । सो हम ऐसी पोस्ट से ज्यादा जुड़ जाते हैं । यदि इसके लाभ का अध्यन करें तो पायेंगे कि ये एक ऐसा मंच है जो आम जनमानस को आपस में जुड़ने , अपने विचारों व प्रतिभा को व्यक्त करने का अवसर देता है । बहुत सी लाभदायक जानकारी यहाँ से प्राप्त होती है । गूगल तो सभी के लिए वरदान हैं जहाँ कोई भी जानकारी पलक झपकते एक क्लिक पर उपलब्ध हो जाती है । अन्ततः कहा जा सकता है कि स्वविवेक व स्वनुशासन से हम सोशल मीडिया को अपने लिए उपयोगी बना सकते हैं । जिस प्रकार कमल दलदल में खिलता  है परंतु हम केवल कमल पर ध्यान देते हैं । इसी तरह गुलाब के साथ काँटे भी होते हैं परंतु हम फूल की सुंदरता व महक की ही चर्चा करते हैं । कहने का तात्पर्य हमें हर हाल में सकारात्मक ही सोचना चाहिए जिससे ये शक्तिशाली मंच हमारी ताकत बन सके ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
सोशल मीडिया सूचनाओं और खबरों का प्रसारण करने में दोनो पहलूओ  की चर्चा करता है  चूंकि आज़ के परिवेश में चैनल की संख्या अधिक हो गई है और एक ही सूचनाओं की पुनरावृत्ति एवम् प्रसारण अपने तरीके से करते हैं तो ऐसा महसूस होता है कि सूचनाओं का यह मंच नकारात्मक मंच बन गया है। व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के अनुसार सूचनाओं का perception करता है। आपको काला पसंद है या सफेद 
यह तो व्यक्ति विशेष की सोच पर निर्भर करता है ।
कहा ही गया है विज्ञान अभिशाप भी है और वरदान भी।
 हमारे विचार से तो यह एक ऐसा मंच है जो हमें एक अवसर देता है अपनी बातों को प्रस्तुत करने का । बग़ीचे में सुंदर फूल के साथ यदि सूखे पत्ते न हो तो बग़ीचे की प्राकृतिक सुंदरता कम हो जाती है ।
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " सोशल मीडिया नये जमाने का सत्य है । जो लेखक , पत्रकार , माकेर्टिंग आदि अनेक की पहचान बन गई है । फिर भी अफवाहें व ठंगी आदि ने बदनाम कर रखा है । इन्हें समस्याओं को दूर करने की आवश्यकता है ।
                                            -  बीजेन्द्र जैमिनी 



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