रंगों के साथ होली में मारपीट क्यों ?

रंगों से होली मनाना भारतीय सस्कृति का उत्सव है। परन्तु मारपीट जैसी कुरीति भी देखने को मिलती है । कभी - कभी यह कुरीति भयंकर परिणाम भी देती है । जो किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । विस्तृत रूप से आये विचारों को देखते हैं : -
रंगों की आड में लोग दुश्मनी निकालते हैं। होली तो मिलने मिलाने का त्यौहार है आज के समय में किसके पास इतना समय है कि लोग उसे मेले दीवारों के बहाने ही हम अपनी संस्कृति को सीखते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं बड़े छोटे सब का भेद मिटाकर के सभी जाति धर्म के लोग एक साथ कल मिलते हैं मिठाईयां खाते हैं और त्योहार को मनाते हैं सदियों से ऐसे ही होता है पर आप त्योहार और त्यौहार के मायने बदल गए हैं कुछ नकारात्मक ऊर्जा वाले लोग अच्छे खासे त्यौहार को भी रंगों की आड़ में गुंडागर्दी करते हैं लोगों को मारते हैं अत्याचार करते हैं लड़कियों के ऊपर होली के बहाने ही रंग लगाते हैं इसीलिए इसी डर के कारण आजकल लड़कियां में होली मनाने निकलती नहीं है होली के बहाने लोग नशे में रहते हैं जब उन्हें अपना ही होश नहीं है ऐसे लोग समाज में किसी को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं उनके लिए मां बहन बेटियां की इज्जत भी कोई मायने नहीं रखती है वह सिर्फ अपना स्वार्थ देखते हैं अपनी इच्छा की पूर्ति किसी भी हालत में करना चाहते हैं। त्योहार बहाने लोगों कोके बहाने लोगों को अश्लील मजाक करने का भी मौका मिल जाता है और आप कुछ नहीं बोल सकते बुरा न मानो होली है। इसीलिए त्योहार के बहाने रंग लगाने के बहाने अपनी दुश्मनी निकालते हैं और मार पिटाई भी करते हैं।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
भारत देश त्यौहारों का देश है प्रत्येक पर्व – त्योहार के पीछे परंपरागत लोक मान्यताएं एवं कल्याणकारी संदेश निहित हैं।
पर्व त्योहारों की श्रृंखला में होली का विशेष महत्व है ।होली का आगमन इस बात का सूचक है कि अब चारों तरफ बसंत ऋतु का सुवास (सुगंध) फैलने वाला है। यह पर्व शिशिर ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का प्रतीक है। बसंत के आगमन के साथ ही फसल पक जाती है और किसान फसल काटने की तैयारी में जुट जाते हैं। बसंत की आगमन तिथि फागुनी पूर्णिमा पर होली का आगमन होता है जो मनुष्य के जीवन को आनंद और उल्लास से प्लावित कर देता है ।
लठमार होली जो कि बरसाने की है वह भी काफी प्रसिद्ध है ।इस में पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएं पुरुषों को लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं। इसी तरह मथुरा और वृंदावन में भी 15 दिनों तक होली का पर्व मनाते हैं ।वृंदावन के मंदिरों में होली की मस्ती और भक्ति दोनों ही अपने अनुपम छटा बिखेरती है ।
सही अर्थों में होली का मतलब शालीनता का उल्लंघन करना नहीं परंतु पश्चिमी संस्कृति की दासतां को आदर्श मानने वाली नई पीढ़ी प्रचलित परंपराओं को विकृत करने में नहीं हिचकती।
होली के अवसर पर छेड़खानी मारपीट मादक पदार्थों का सेवन उच्श्रृंखलता आदि के जरिए शालीनता की हदों को पार कर दिया जाता है।
आज कल होली के पावन पर्व में हुडदंग के साथ-साथ अश्लीलता भी अपनी जडें जमा लीं हैं। मगर गौर करने वाली बात है कि अब जब हम होली का निहितार्थ जान गए हैं तो फिर इसमें फूहड़ता और अश्लीलता का क्या काम! जिस तरह कपड़े गंदे होने पर हम उन्हें साफ करते हैं, गन्दे मकान व दुकान की मरम्मत और रंगाई – पुताई करते हैं तो फिर फूहड़ता व विकृतियों को निकाल फेंकने में संकोच क्यों? आइये, एक सत्साहस भरा संकल्प लें “हम होली मनाएंगे, खूब जमकर मनाएंगे मगर कलुष-कषाय-कल्मश और बुराइयों की होलिका जलाकर विकृतियों, फूहड़पन, हुडदंग और अश्लीलता को दूरकर प्रेम व सद्भाव के रंगों के साथ।
बड़ों के आशीर्वाद के साथ नये रंग नये जोश और नई मिशाल के साथ 
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
 कोई भी व्यक्ति कोई भी त्यौहार के दिन मारपीट होना नहीं चाहता लेकिन होली का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है जो मस्ती और उमंग भरी होता है कभी-कभी कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो नशा पान करके होली खेलने जाते हैं ऐसे लोग उतावले और अमानवीय व्यवहार करते हुए होली का त्यौहार मनाते हैं इसी समय अगर कोई व्यक्ति उसे कुछ चीज के लिए विरोध करता है तो वहां मस्ती में आकर गाली गलौज मारपीट में बदल जाता है इसका समाज पर बहुत खराब असर पड़ता है लोग बाग उसे निंदनीय दृष्टि से देखते हैं  अतः कोई भी त्यौहार खुशी के लिए मनाई जाती है इस खुशी के त्यौहार में कभी भी नशा  पान और उतावला पूर्वक त्यौहार नहीं बनाना चाहिए अगर ठीक से लोगों से व्यवहार करना नहीं आता है तो यह झगड़े में बदल जाते हैं अतः कहा जाता है है कि रंगों के साथ होली में मारपीट नासमझी के कारण होता है एवं नशाखोरी और उतावलापन आ के कारण होता है जो अमानवीय व्यवहार है हर किसी को पसंद नहीं होता उसका विरोध करते हैं विरोध करने से उतावला व्यक्ति और उतावला में आकर अनेक प्रकार की हरकत करता है जिसकी वजह से रंगों के साथ होली में मारपीट होता है या हो सकता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
 हर त्योहार हमारी जिंदगी में उमंग और खुशियां लाता है फिर होली तो केवल रंगों की नहीं बल्कि हमारी जिंदगी को उमंगो और खुशियों के रंग से भर देती है ! परंपरागत भक्त प्रहलाद की जीत और होलिका का दहन होता है यानी की बुराई में अच्छाई की जीत !
होली कई जगह देवर भाभी को पहले रंग लगाता है और यह मर्यादा के अंदर होता है किंतु आज शराब का नशा , भांग का नशा ने ऐसा रूप ले लिया है जहां मर्यादा तो है ही नहीं नशे में मर्यादा भंग होने पर भी मारपीट होती है !
 कहते हैं होलीका अविवाहित थी अतः लोग भद्दे मजाक भी करते हैं !छिछोरापन एवं मर्यादा का उल्लंघन ,नशा सभी ऐसे गंभीर विषय है जिससे मारपीट हो सकती है !
दूसरा कई लोगों को होली खेलना पसंद नहीं आता अतः रंग लगने से भी नाराजगी जाहिर करते हैं एवं कई बार आपसी द्वेष, ईष्या एवं रंजिश को लेकर भी मजाक करते हैं और रंग के नाम पर गंदा पानी पेंट लगाना आदि आदि कर नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं जिससे क्रोध में आकर आपस में मारपीट तक की नौबत आ जाती है !
तीसरा कारण पानी की कमी सोसाइटी में पानी की कमी होने के बावजूद होली में पानी भी डालते हैं अतः पानी के चलते छोटी सी बात पर बात बढ़ जाती है और मारपीट तक पहुंच जाती है !
हमारे देश में सभी पारंपरिक त्योहार आपसी भेदभाव को मिटाकर प्रेम और सौहार्द से मनाया जाता है रंगों की होली हमारे जीवन में भी रंग भर देती है हमारे बच्चे एक-दूसरे के साथ रंग खेल आपस में कितने खुश होते हैं !
  हां बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाती है एक पारंपरिक प्रथा है जिसमें औरतें आदमी को लट्ठ मारती है !
अंत में कहूंगी होली का त्यौहार रंगों की होली जाति भेदभाव को भुलाकर हमारे जीवन में इंद्रधनुषी रंग भर देती है बस नियमों का पालन कर मर्यादा के अंदर खेले तो हमारी भारतीय संस्कृति और परंपरागत मनाए जाने वाले पर्व का आनंद ही कुछ और होगा !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
होली के समय चेहरे रंग से पुते रहते हैं।चेहरे के आइने में दिल में तेरते भावों को तो साफ साफ देखा नहीं जा सकता।अतः जिनके मन में ईर्ष्या, द्वेश   रहते हुए भी उनके विचारों को पढ़ा नहीं जा सकता ,वे ही अवसर मिलते ही मारपीट पर उतारू है जाते हैं। जबकि होली प्रेम और समभाव का त्यौहार है।
 - डा. चंद्रा सायता
 इंदौर - मध्यप्रदेश
होली रंगों का त्योहार है। बच्चे हों या बड़े सभी को इस दिन अपने दोस्तों के साथ रंग-पिचकारी लिए मौज-मस्ती के मूड में देखा जा सकता है। यह दिन परिवार, रश्तेदारों और दोस्तों के मेल-मिलाप का दिन है। 
संजीदा प्राकृतिक रंगों से खेली गई होली जहां आपसी प्रेम बढ़ाती है वहीं कई लोग होली पर छेड़-छाड़, छींटा-कशी से भी बाज नहीं आते। कुछ लोग सस्ते कृत्रिम रंगों या ग्रीस, डॉमर, कीचड़ से भी होली खेलते हैं जिससे लोगों में प्रेम-सौहार्द की जगह बुराई या रंजिश ही पैदा होती है। होली पर कुछ लोग तो इतनी मस्ती के मूड में होते हैं कि वे अपने पेट्स या कोई राह चलते जानवर पर भी रंग डालने से नहीं चूकते, जो खतरनाक हो सकता है।
छेड़ छाड कई दफ़ा रंजिश का कारण बन जाती है । 
दोस्तों, चाहे आपका अपना पेट्स हो या कोई भी जानवर इनकी त्वचा बहुत ही सेंसिटिव होती है इन पर रंग डालना खतरनाक हो सकता है। रंगों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए हम और आप तो उपाय कर लेते हैं पर, ये जानवर इन्हें क्या पता कि इन रंगों का उन पर क्या असर होने वाला है। रंग लगने के बाद जानवरों को यदि एलर्जी या तकलीफ होती भी है तो वे इसे बोलकर बयां भी नहीं कर सकते और जब तक उनकी तकलीफ हमें समझ में आती है तब तक कई बार बहुत देर हो चुकी होती है। कई बार रंग इतने पक्के होते हैं कि जानवरों पर से इन्हें छुड़ाते समय उनके शरीर पर से बाल या फर ही गायब हो जाते हैं जो सर्दी-गर्मी से उनकी त्वचा की सुरक्षा करते हैं।  
होली की मस्ती में कई जगह लोग रंगों से भरे गुब्बारे  फेंकने की शैतानी कर बैठते हैं, ये रंग आंखों में जाने का खतरा रहता है, इससे आंखों की रोशनी खराब हो सकती है। पानी में घुले रंग ही नहीं बल्कि सूखे रंग भीआंखों  के लिए हानिकारक होते हैं, ये रंग श्वास के जरिए नाक में जलन, एलर्जी या इन्फेक्शन पैदा करते हैं। इनसे भी दूर रखना चाहिए। 
बच्चों, त्योहार या उत्सव हमने हमारी खुशियों के लिए बनाए हैं... हमारी जिम्मेदारी है कि मौज-मस्ती में हम कहीं इतने न डूब जाएं कि हमारे सैलिब्रेशन से कोई आहत हो।
झंगडे का रुप धारण कर लेता है और त्यौहार ख़ुशी की जगह मातम में बदल जाता है । 
कई बार होली की आड़ में कुछ ग़लत मानसिकता के लोग देवर भाभी के रिश्ते को शंक के घेरे में डाल बिगाड़ देते है । 
कई बार होली का त्यौहार मार पीट में बदल जाता है पुलिस तक बात पंहूच जाती है , जो निहायत शर्मनाक है ।आओ हम लोग यह सब 
होलिका राक्षसी का दहन मानो सारी बुराइयों को मिटाने का संदेश देता है।
इस प्रकार समता और बन्धुत्व के भावों को अपनी जीवन-विधा का शाश्‍वत स्वर बनाते हुए हमें कामना करनी चाहिए कि प्रतिवर्ष इसी तरह प्रेम-प्रसार का पर्व, समरसता का सूचक होलिकोत्सव आता रहे और हम सब द्विगुणित उत्साह, उल्लास एवं उमंग से भरपूर हो यह पर्व मनाते रहें,। 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन सतरंग है-- हर्ष, उल्लास ,प्रेम ,ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, बैर इत्यादि। फिर जीवन का यह सतरंगी रूप होली के त्यौहार में तो पूरी तरह दर्शनीय होता है जैसे-- लाल, पीला, नीला, हरा, गुलाबी, काला, केसरिया रंग इत्यादि। रंगों का त्योहार यह शिक्षा देता है कि बुराइयों को दहन कर प्रेम से सद्भाव पूर्वक अपनी पसंद का प्यारा रंग लगाकर एक दूसरे को पवित्र व सच्चे मन से गले मिलकर, नाना प्रकार के पकवानों से मुंह मीठा कराकर, एकता का संदेश देता, हर्षोल्लास से परिपूरित होली का त्योहार बड़ा ही मनभावन, मनमोहक, मन के मैल दूर करने वाला है। पर कुछ लोग जन्मजात नकारात्मक प्रवृत्ति के होते हैं वह सहयोग, सद्भावना, सामंजस्य से कोसों दूर होते हैं।वही लोग होली में कभी-कभी मादक पदार्थों शराब, भांग इत्यादि का सेवन कर, जरा जरा सी बात पर मारपीट करके रंग में भंग कर डालते हैं। या हंसी- मजाक, गलत रंगों के प्रयोग इत्यादि से भी झगड़ा बढ़ा लेते हैं। कभी-कभी पुराने बैर को भी होली पर लोग निकालते हैं; क्योंकि इतना बड़ा पावन साल भर का यह त्यौहार लोग खुशहाली की उम्मीदों से भरपूर होते हुए मनाते हैं; पर कुछ अराजक लोगों को दूसरे की जरा जरा सी बात में वह भी पुरानी रंजिश निकालने में ऐसे ही मौकों की तलाश रहती है। इसीलिए ऐसा कहीं-कहीं होता भी देखा जाता है; जो कि ठीक नहीं है।
            होली की पावनता को प्रेमचंद जी ने बड़े अच्छे शब्दों में व्यक्त किया है, उन्होंने कहा----" कि होली व्रत है, तप है, अपने भाइयों से प्रेम और सहानुभूति करना ही इसका खास मतलब है "
  होली शब्द का अर्थ अंग्रेजी में भी *पवित्र* है अतः इसकी पवित्रता को बनाए रखने के लिए नफरत, लड़ाई -झगड़ा, मारपीट ठीक नहीं। प्रेम का प्रतीक लाल रंग लगाकर सच्चे मन से गले मिलो ;यही इस होली का संदेश है।
   मेरी ओर से सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
- डॉ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
      होली के रंग हों या प्राकृतिक रंग,उनके संग मारपीट के रंग हमेशा देखे गए हैं।जिनके अनेक रंग हैं।जिन्हें मैंने कहीं अनुभव किया और कहीं खुली आँखों से स्पष्ट देखा है।जैसे भ्रष्टाचारी का भ्रष्टाचार से पहले और बाद का काला रंग, बलात्कारियों का बलात्कार करने से पहले और बाद की मनोदशा का रंग, स्वार्थियों के स्वार्थ से पहले और स्वार्थसिद्धि के बाद का घिनौना रंग,अपनों का अपनों के प्रति सुखों और दुखों मे बदलते स्वरों के रंगों के रंग, संकट में मित्रों की मित्रता के गिरगिट की भाँति बदलते रंगों को अत्यंत करीब से देखा है।जो मारपीट से कहीं घातक हैं।
      इसके अलावा भगत सिंह की राष्ट्रभक्ति के राष्ट्रीय भावनात्मक रंग को अनुभव किया है।उसकी फांसी और फांसी के उपरांत उसकी बूढ़ी मां की व्यथा का रंग देखा है।अपनी सरकारों का नेताजी सुभाष चंद्र बोस और चंद्रशेखर जैसे असंख्य देशभक्तों के प्रति तिरस्कार का रंग देखा है।युद्ध में सीमा की ओर जाते सैनिकों के वीरता के रंगों को देखा है।स्वतंत्रता का अनुचित लाभ उठाते क्रूर अधिकारियों और भ्रष्ट नेताओं के राक्षस वृत्ति रंग में रंगे रंगों को देखा है।
      देखा यह भी है कि तिरंगे में लिपटे शहीदों के शवों पर दहाड़ मारती नवबधुओं की मेंहदी सूखने से पहले तोड़ती चूड़ियों के संग पति की अर्थी को कंधा व उसके अंतिम संस्कार की आग देते विरह के रंग भी देखे हैं।जो अथक प्रयास के बाद भी आंखों से ओझिल नहीं होते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
वास्तव में होली रंगों के साथ साथ दिल से दिल को मिलाने का पर्व है ।यही सार्थकता भी है ।पर अन्य त्यौहारों की भांति लोग  होली का दुरुपयोग करने से भी नहीं चूकते ।दिल और दिमाग का प्रेम के स्थान पर घृणा के लिये प्रयोग करते हैं ।भारतीय संस्कृति परम्परा इतिहास की भांति यहां भी एक तरफा उदारता सहनशीलता विनम्रता और शालीनता कभी-कभी हर प्रकार से महंगी साबित होती है ।अतः यही कहा जा सकता है कि रंगों के पर्व होली को होली की तरह मनानी की आदत होनी चाहिए ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
होली  रंगोत्सव है ; जहाँ एक दूसरे के रंग में रंग कर समरंग हो जाना ही उद्देश्य रहता है । परंतु कुछ लोग इसी बहाने आपसी वैमनस्यता को भी भुनाने लगते हैं । इस त्योहार में कई लोग , नशा युक्त पदार्थ जैसे भांग, शराब का प्रयोग करते हैं जिससे उनका स्वयं पर संतुलन नहीं रह जाता । ऐसे लोग ही रंग में भंग डालते दिखते हैं ।
इस उत्सव के दौरान  कींचड़ , गोबर, पेंट आदि से भी होली खेलते हैं । एक दूसरे से झूमा झटकी भी होती है जिससे आपस में कहासुनी हो जाती है । ऐसे ही बहुत से कारण हैं जहाँ बात बढ़कर मार पीट तक पहुँच जाती है । 
यदि हम होली मिलन को सादगी पूर्वक गुलाल से ,  सूखे रंगों से मनाए । नशे से दूर रहें , इसे प्रेम का त्योहार समझे तभी इसकी सार्थकता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर  - मध्यप्रदेश
मैंने तो होली के त्योहार पर मारधाड़ नहीं देखी है । शराब , भांग का नशा गर किसी चढ़ जाए तो अलग बात है । तब मार पिटाई हटी होगी । मैंने कभी नहीं देखा है । रंगों , प्रेम , प्रीत का त्योहार है । होली मेरी नजर में क्या है ।उन्हीं विचारों को परोस रही हूं ।आज छोटी होली है .आज ही होलिका का दहन है . संदेश है सत्य की असत्य पर जीत .नवी मुम्बई में  चौराहों पर आम की लकड़ी -अन्य लकडियों से ,गोबर की मालाओं से होलिका को बनाया गया है .८ बजे के मुहूर्त में होलिका को प्रज्जवलित किया  . पूर्णिमा की रात में जलती अग्नि का नजारा बेमिसाल है .
वाकई जो उत्साह , उमंग होली की रस्मों में यहाँ  हाथरस में मुझे  दिखा । वह  मेरे लिए अविस्मरणीय ,  उत्साहवर्द्धक रहेगा । बचपन में मैंने देखा था  एक दूसरे के चूल्हे से आग लाकर अपने चूल्हे को पेट की आग बुझाने के लिए जलाते थे । जो निस्वार्थ प्रेम , भाईचारे , अपनापन , उदारता  का प्रतीक है । वैसे ही यहाँ पर  अपने घर में छोटी होली पर  होलिका को जलाने के लिए  गांव , गली , नुक्कड़ के लोग चौराहे की  जलती होलिका  की आग को ले जाकर  होलिका को जलाते हैं । यह भाईचारे की पवित्र  आग जो प्रतीक है प्रह्लाद जैसे क्रांतिकारी सत्य के आगे न जलने वाली होलिका का वरदान का  दुरुपयोग होलिका की  मौत का कारण बना ।  अच्छाई पर बुराई का अंत हुआ ।सत्य पर असत्य की हार हुई । अधर्म पर धर्म की जीत हुयी ।  भारत देश ही विश्व में  इकलौता देश है । जहाँ रंगों की  होली खेलकर नफरत , भेद , वैर भुलाके सारे एक ही  प्रेम रंग में रंग जाते हैं । ऐसी हमारे देश की संस्कृति  है । 
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
रूप,रंग और स्वभाव सब के अलग-अलग भले ही हों परंतु ये हमारी संस्कृति है कि हम 'अनेकता में एकता' के आदर्श को अपनाते हुये मिलजुल के सामजंस्य और सोहार्द्र बनाकर रहें।इससे अपनत्व, सुख और सुकून के साथ-साथ शांतिपूर्ण वातावरण भी रहता है, जो हमें तनाव रहित कर समृद्धि और खुशहाली का मार्ग प्रशस्त करता है। होली के त्योहार की परिकल्पना में भी यही उद्देश्य समाहित है। रोजमर्रा के जीवन में आपस में कभी कोई अनबन होना स्वभाविक है, उसे दूर करने के लिये क्षमा मांग लेना हमारे चरित्र का सबसे उत्तम गुणों में से एक है। इस माध्यम से आपसी मतभेद और मनभेद मिटाये जाते हैं, इसके बावजूद भी यदि बात नहीं बनती तो होली के इस पावन त्योहार पर सामाजिक मान- मर्यादा और रीतिरिवाजों के अन्तर्गत इन्हें दूर करने की परंपरा  है। जिन्हें धर्म और साहित्य के माध्यम से भी महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक बनाने का प्रयास किया गया है।
 होली पर रंग खेलना, ठिठोली करना, आपस में गले मिलना, घरघर जाकर बड़े-बुजुर्गों को तिलक लगाकर पैर छूकर आशीर्वाद लेना आदि ऐसे प्रेम और सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाते हुये खिन्नता, कटुता और तकरार मिटाने का कार्य किया जाता है।
   ऐसे में चंद लोग जो इस त्योहार की परंपराओं को तोड़कर मारपीट कर , प्रेम और सोहार्द्र के वातावरण को मलिन करते हैं , वे अशिक्षित तो हैं ही,निंदनीय भी हैं। साथ ही ऐसे लोगों के जो पक्षधर बनते हैं,वे भी दोषी हैं। 
 प्रशासनिक रूप में से ये आवश्यक है कि इन्हें उचित दंड मिले वहीं सामाजिक दृष्टि से हम सबका,विशेष रूप से उनसे संबंधित परिजनों का नैतिक दायित्व है ऐसे लोगों को सही रास्ते पर लाने की समझाइश और संस्कार देने का प्रयास करे।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
होली प्रेम और सदभाव का त्योहार है। इसमें दुश्मनी भी दोस्ती में बदल जाती है। लोग धर्म और रीति-रिवाजों की बेड़ियाँ तोड़ कर प्रेम से गले मिलते हैं। मगर अपवाद इस पर्व में भी होते हैं । पहला कारण है - कुछ लोग बैर को मन में पाल कर रखते हैं । उसे फलने-फूलने के लिए समय देते हैं । वही परिपक्व वृक्ष होली के अवसर पर प्रहार का काम करते हैं।क्योंकि रंगों की बहार में लोग पहचान नहीं पाएंगे ।
दूसरा कारण है - भांग और शराब का नशा। मद्य के नशे में चूर व्यक्ति 'रंग में भंग' कर देता है। चूंकि उसकी बुद्धि काम करना बंद कर देती है इसलिए सही गलत समझना मुश्किल हो जाता है। 
इस तरह पर्व का असली महत्व समाप्त हो जाता है, साथ ही पूरा परिवार खुशी की जगह दर्द के आगोश में खामोशी से इन पलों को गुजार देता है । इसका उन्हें मलाल भी नहीं होता । ये मानसिकता हमें ही ढोनी होती है। इसलिए हर पर्व को या कहें हर पल को उत्कृष्ट बनाने के लिए हमें माता-पिता बनने के बाद से ही प्रयत्नशील हो जाना चाहिए। बच्चों को शुरू से ही त्योहार का महत्व बताना चाहिए, उनके मष्तिष्क में इसके लिए आदर भाव भरना होगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में "  होली मे कोड़े मारने की प्रथा महिलाओं द्वारा चल रही है । काफी पुरानी भी है । परन्तु कुछ पुरुष तो महिला बन कर पुरुषों को कोड़े मारे जा रहे हैं । ऐसी प्रथा का दुरुपयोग को तो रोका जाना चाहिए । आज नहीं कल कानून बनाने की आवश्यकता अवश्य पड़ेगी ।
                                                      - बीजेन्द्र जैमिनी




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