जो मजाक दु:ख देता है वह मजाक कभी नहीं होता है

 यदि किसी को दु: ख पहुचाने के उदेश्य से किया गया मजाक भी किसी भी तरह से उचित नहीं होता है । यह मजाक तो दुश्मनी की श्रेणी में आ जाता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । देखते हैं लोगों के विचारों को : -
वास्तव वह मजाक हो ही नहीं सकता जिससे किसी को दुःख पहुंचता है मजाक का उद्देश्य कहीं न कहीं मनोरंजन हास-परिहास है जहाँ यह सब नहीं है वहां वास्तव में मजाक नहीं केवल दुख का  कष्ट का आधार है ।वह मजाक कभी हो ही नहीं सकता । मजाक करने के लिए मजाक करने वाले को मजाक की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए उसके अनुसार ही कार्य व्यवहार करे किसी को कष्ट न हो किसी के लिए असहज स्थिति उत्पन्न न हो सार्थक मजाक होगा और ऐसा होना भी चाहिए ।
- शशांक मिश्र भारती
शाहजहांपुर- उत्तर प्रदेश
किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी करना किसी के शारीरिक दो शादी बस उपहास करना कुछ लोगों का स्वभाव होता है। ऊपरवाला किसे कब शारीरिक दोष दे कहां नहीं सकते। इसलिए भूल कर भी किसी का उपहास। दुनियादारी में बहुत से संबंध निभाने पड़ते हैं जिसमें किसी को कुछ कहना पड़ता है, टिप्पणी भी करना पड़ सकती है। अपने जीवनसाथी पर कोई व्यक्तिगत टिप्पणी या उसके किसी शारीरिक दोष का उपहास ना करें। जब हम अपने घर में होते हैं तो चार काम बड़े मॉल लेख और निजी रूप में करते हैं वस्त्रों पूजन भोजन और। पर ध्यान रखिए जब कहीं बाहर से आकर घर में प्रवेश करते हैं तो अपने जूते चप्पल बाहर। इसी तरह अपना अहंकार और भारी विचार भी घर के बाहर ही छोड़ दें। यह दो चीजें भीतर आ गई तो फिर एक दूसरे पर टिप्पणी दोषारोपण होगी ही नहीं। परिमाण नहीं आएगा कलह अशांति के रूप मैं होता है। जियो और जीने दो ।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
दो इन्च मुस्कान मनोरंजन करता है माहौल बनाया जा सकता है एक विवेकपूर्ण हो मन को अच्छा लगता है व्यंग्य की विधा है पर  वह किसी को कोई नुकसान न हो इसकी सावधानी जरूरी है सूफीसंत कवि जायसी पर दरबार मे। हंसी उडाया गया उन की शक्लें उन्होंने कहा मुझ पर हंस रहे हो या मुझे बनाने वाले पर,मजाक करने की कला हो पर दुखी न करो,कल तुम्हारे साथ भी ऐसा हो सकता है वाणी का ध्यान रखिए भाषा की जानकारी हो शब्दो का अर्थ होता है शब्द ब्रह्म है अर्थ रखता है 
- सुषमा शर्मा
जयपुर - राजस्थान
कहते हैं नशे में और मजाक में व्यक्ति सच बोल जाता है ।
मजाक के अलग-अलग अर्थ लिये जाते हैं- 
कुछ लोग विनोद और हास-परिहास को मजाक मानते हैं 
कुछ व्यंग्य और ताने देने को मजाक मानते हैं 
कुछ की दृष्टि में उपहास और खिल्ली उड़ाने ही मजाक है ।
हिन्दी में ब्याज निंदा ब्याज स्तुति  अलंकार मजाक का ही रूप है ।
कुछ लोग मज़ाक को मात्र विनोद या हास- परिहास मानकर वातावरण को खुशनुमा कर देते हैं । तो कुछ उपहास समझ कर खिल्ली उड़ा कर किसी का अपमान करते हैं । अपनी बात उस विशेष व्यक्ति तक पहुंचा देना व्यंग्य कहलाता । मजाक का एक रूप द्विअर्थी बातें भी हैं । वास्तव में कोई सीधी बात सामने वाले पर उतना प्रभाव नहीं डालती जितना मजाक का प्रभाव रहता है । अप्रत्यक्ष रूप से मीठे ढंग और प्रफुल्लित मुद्रा में  सामने वाले तक अपनी बात पहुँचा कर उसके दिल पर चोट करना मजाक का ही एक रूप है ।  दूसरों तक अपनी बात पहुँचाने के लिये निंदा और क्रोध का भी सहारा लिया जाता है किन्तु मजाक के जरिये उद्देश्य में सफल होकर, लडाई झगड़े की संभावना को टाल दिया जाता है 
कुल मिलाकर मजाक किसी की कमियां उजागर करके उसके दिल को तकलीफ देने का भी काम करता हैं ।
मजाक-मजाक में किसी को दुख पहुँचाने के पीछे ईर्ष्या और नफरत के साथ ही अपमान का भाव ही मुख्य रूप से दिखाई देता है । वास्तव में इसके पीछे सद्भावना नहीं होती क्योंकि सद्भावना रखने वाला व्यक्ति मार्गदर्शक होता जो अपमान से  बचाता है । व्यंग्यात्मक, एवं द्विअर्थी मजाक निश्चित ही दुख देने वाले होते हैं । किसी का मजाक बना कर उसका अपमान करने से व्यक्ति कुंठित और निराश होकर आत्महत्या तक की सोचने लगता है । अतः मजाक हल्के फुल्के परिहास के रूप में सबको आनंद देने वाला हो किसी का उपहास करके उसकी निजता पर चोट करने वाला नहीं ।
- वंदना दुबे  
  धार - मध्य प्रदेश
 जो मजाक दुख देता है वह मजाक नहीं होता है ?यह सही बात है ।मजाक उसे कहते हैं ,जो किसी का दिल ना दुखे और मजाक से खुश लगे ,उसे मजाकिया ठिठोली कहा जाता है। जो वातावरण को भी खुशनुमा कर देता है। कुछ लोग मजाक का गलत इस्तेमाल करते हैं ,जो व्यंगात्मक रहता है। व्यंगात्मक मजाक चुुभता है। अर्थात मन को दुख पहुंचाता है और उस मजाक को दुखी व्यक्ति उसी व्यक्ति को प्रहार के रूप में इस्तेमाल करता है ,तो मजाक किया कह कर टाला जाता है। लेकिन व्यंगात्मक व्यक्ति को कोई दूसरा व्यक्ति, उसी तरह मजाक करें ,तो उसे बुरा लगेगा। अतः मजाक दुखी करने के लिए नहीं और न ही अपमान और उपेक्षा के लिए है ,बल्कि हँंसी विनोद के लिए मजाक होता है। हर व्यक्ति सम्मान पूर्वक जीना चाहता है ,हंँसी खुशी जीना चाहता है अतः हर व्यक्ति को एक दूसरे का सम्मान ध्यान में रखते हुए मजाक करना चाहिए ना कि दुख पहुंचाने के लिए अगर मजाक से किसी का दिल दुखता है ,तो वह मजाक नहीं उपेक्षा भरा अपमान है। अतः कहा जा सकता है ,कि मजाक दुख देता है वह मजाक कभी नहीं होता है? एक मानसिक वेदना होता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जो शब्द किसी के दिल को आहत करे वो मज़ाक़ हो ही नहीं सकता ..मज़ाक़ तो गमगीन माहौल को हल्का कर दे रोती आँखों में चमक ले आये सारे तनाव को खत्म कर दे वह है मज़ाक़ , किसी के दिलको तकलीफ़ पहुँचाये वह मज़ाक़ हो ही नहीं सकता ..,
कभी ना कभी यह संदेह हर किसी के मन में पैदा होता है, क्या यह व्यक्ति सिर्फ मजाक कर रहा है या बातों बातों में मेरा मजाक उड़ा रहा है? हमारे दिमाग के लिए इस फर्क को समझना कोई आसान काम नहीं है. कई लोग शब्दों के साथ खूब अच्छी तरह खेल सकते हैं, इतना कि एक ही वाक्य के दो अलग अलग मतलब भी निकल आते हैं. भाषा के इस हुनर को वे लोगों को नीचा दिखाने के लिए भी बहुत आसानी से इस्तेमाल कर लेते हैं. इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें शब्दों का यह खेल समझ ही नहीं आता. उनके लिए यह समझ पाना भी मुश्किल होता है कि सामने वाले की बात का दोहरा मतलब था क्या.?
जर्मनी के ट्यूबिंगन में वैज्ञानिक इस बात का पता लगा रहे हैं कि दिमाग हंसी के अलग अलग संकेतों को किस तरह से पढ़ता है. अमेरिका की 'प्लोस वन' नाम की विज्ञान पत्रिका में छपे एक लेख में इस रिसर्च के बारे में बताया गया है. सूचना के आदान प्रदान के लिए इंसान का बात करना ही जरूरी नहीं है, इशारों से या फिर चेहरे के हाव भाव से भी कई तरह के संदेश दिए जा सकते हैं. इसे 'नॉन वर्बल कम्यूनिकेशन' कहा जाता है. लेख में कहा गया है कि दिमाग सकारात्मक और नकारात्मक संदेशों को अलग अलग तरह से आंकता है.
ट्यूबिंगन यूनिवर्सिटी के डिर्क विल्डग्रूबर हंसी से दिमाग में होने वाली प्रतिक्रिया पर शोध कर रहे हैं. वह बताते हैं, "जब बात समाज में मेल जोल की आती है तो हंसी एक बेहद जरूरी भूमिका निभाती है. यदि लोग मुस्कुरा कर मिलें तो इंसान को लगता है कि उसे अपनाया जा रहा है. लेकिन वहीं अगर उसे ताना दिया जाए या हंसी बनावटी हो तो वह खुद को उस समूह से अलग मानता है".
किसी का ऐसे मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, क्‍या पता वक्‍त कब किस तरफ करवट बदल ले?”
आपने ऐसे कई लोगों को देख होगा जिनका अंदाज ही मजाकिया होता है। और होना भी चाहिए क्योंकि हंसी-मजाक जिंदगी का अहम हिस्सा होता हैं। लेकिन मजाक करते समय थोडा ध्यान रखने की जरूरत है कि आप किसके साथ मजाक कर रहे हैं और क्या मजाक कर रहे हैं। क्योंकि जिस मजाक से किसी का अपमान हो या उसे दुख पहुंचे, ऐसा काम भूल कर भी नहीं करना चाहिए। इसलिए आज हम आपको मनुस्मृति में वर्णित उन लोगों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका मजाक कभी भी नहीं उडाना चाहिए।
हीन (कम) अंग वाले : हीन अंग वाले लोग यानी जिनके शरीर का कोई न कोई हिस्सा या तो है ही नहीं या अधूरा है जैसा- लूला, लंगड़ा, काना आदि। कुछ लोग तो जन्म से ही हीन अंग वाले होते हैं, वहीं कुछ लोग दुर्घटना में अंगहीन हो जाते हैं। मनु स्मृति के अनुसार, ऐसे लोगों का कभी भी मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। यदि हम ऐसे लोगों का मजाक उड़ाते हैं तो ये दुखी होते हैं। इसका बुरा परिणाम किसी न किसी रूप में हमें भविष्य में मिलता है। 
* अधिक अंग वाले : कुछ लोगों के शरीर में अधिक अंग होते हैं जैसे किसी के हाथ या पैर में 6 उंगलियां होती हैं। मनु स्मृति के अनुसार शरीर में अधिक अंग होने पर भी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, क्योंकि वह तो जन्मजात ही ऐसा है। भगवान ने उसे इसी रूप में धरती पर भेजा है। यदि हम ऐसे लोगों का मजाक उड़ाते हैं तो समझना चाहिए कि हम परम पिता परमेश्वर का मजाक उड़ा रहे हैं।
* कुरूप : हर इंसान का चेहरा, रंग-रूप व शारीरिक बनावट एक-दूसरे से अलग होती है। किसी का चेहरा गोरा होता है तो किसी का काला। कुछ लोग सुंदर होते हैं तो कुछ के चेहरा इसके विपरीत होता है। कोई व्यक्ति अगर काला है या वो सुंदर नहीं है तो इसमें उसका कोई दोष नहीं होता, यह सब तो जन्म से ही होता है। हमें ऐसे व्यक्ति के रंग-रूप को ध्यान में न रखते हुए उसके चरित्र के गुणों को देखना चाहिए।
* गरीब : कोई भी इंसान अपनी मर्जी से गरीब नहीं होता। कुछ लोग जन्म से ही अमीर होते हैं, वहीं कुछ अपनी मेहनत से पैसा कमाते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बहुत मेहनत करने के बाद भी गरीब ही रहते हैं। गरीब इंसान मेहनत-मजदूरी करता है और अपने परिवार को पालता है।
* छोटी जाति के लोग : जाति आधारित व्यवस्था भगवान ने नहीं बल्कि इंसानों ने ही बनाई है। भगवान के लिए तो सभी इंसान एक समान हैं। जब हवा, पानी, धरती और आग इंसानों में भेदभाव नहीं करती तो हमें भी जाति के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं करना चाहिए और न ही किसी का मजाक उड़ाना चाहिए
मज़ाक़ मज़ाक़ तक सीमित रहे तो ही अच्छा कई बार मज़ाक़ मज़ाक़ में भयानक लड़ाई झगड़ा हो जाता है दुश्मनी हो जाती है 
इस लिये मज़ाक़ ऐसा हो जो महौल को खुशनुमा कर दे। 
गमगीन माहौल सामान्य हो जाए 
लोगों का दुख कुछ समय के लिये चला जाए 
मज़ाक़ भी एक सिमा में हो तो सही रहता है । 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कभी-कभी मजाकिया स्वभाव के लोग किसी की शारीरिक आकृति या बात करने के ढंग इत्यादि को हास्य प्रकट करने की दशा में पहले तो बड़े ही सीधे मन से व्यंगात्मक हास्य जैसी टिप्पणी करते हैं; फिर उसकी प्रतिक्रिया देखकर अपना मनोरंजन करते हैं; जिसे साधारणतया लोग मजाक कहते हैं।
       कभी-कभी यह सामूहिक भी और व्यक्तिगत भी होता है। शादी- विवाह ,होली आदि के अवसर पर अक्सर मजाक का माहौल रहता है; पर इसमें अधिकांशत मजाक साधारण सा होकर दुखदायी नहीं होता और यदा-कदा होता भी है तो, वह मजाक ना होकर दुश्मनी का रूप लेकर दुखदायी बन जाता है; फिर इसे मजाक नहीं कह सकते । यदि मजाक करने वाला और जिस पर किया जा रहा है  दोनों आनंद लेकर सबका मनोरंजन कर रहे हैं; तो ठीक है अन्यथा एक तरफा आनंद की प्राप्ति दूसरे को अपमानित कर दुख पहुॅचाने  वाला मजाक नहीं बल्कि भावनाएं आहत कर बैर बढ़ाने वाला है।
         ऐसे ही एक बार नारद के व्यक्तित्व को देखकर श्री हरि द्वारा नारद के सुंदर मुख को बंदर का रूप बनाकर विवाह हेतु प्रस्तुत करना और वरण ने होने पर दुखित नारद ने मजाक का प्रत्युत्तर अभिशाप में दिया; जिससे भविष्य में राम को सीता का वियोग सहना पड़ा।  आजकल भी शिक्षण संस्थानों में नवागत शिक्षार्थियों का परिचय प्राप्त करने के दौरान कुछ हंसी-मजाक जैसे क्रियाकलाप ( रैगिंग )का ट्रेंड  बन गया है जो अति अव्यावहारिक स्थिति में दुखदायी ही हो जाता है।             अतः हर क्षेत्र में अशोभनीय दुखदायी मजाक सर्वथा त्याज्य होना चाहिए।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
हां,,ये बात बिल्कुल सही है,, क्योंकि हम मज़ाक आनन्द, खुशी के लिए करते हैं,, लेकिन यदि मज़ाक से किसी को दुःख लग जाए , फिर वैसे मज़ाक का क्या  मज़ा  है । इसलिए ये कहा गया है कि " तोल मोल के बोल" ।इस बात का हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए । समय और परिस्थितियों को देखते हुए हीं हमें मज़ाक करना चाहिए और सही शब्दों में अन्यथा कभी_ कभार अर्थ का अनर्थ हो जाता है । मज़ाक करने से पहले समझ जरूर लेना चाहिए कि इसका प्रभाव क्या पड़ सकता है । इसलिए यह बात अक्षरशः सत्य है कि जो मज़ाक दुःख देता है ,वह मज़ाक कभी नहीं होता ,और ऐसे मज़ाक से व्यक्तिगत जीवन में खटास और दूरियां भी व्यक्ति विशेष से  बढ़ जाती हैं । 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
भला दुख देने वाले शब्द कभी मज़ाक़ हो सकते है कदापि नहीं .. किसी का आत्मा दुखाना तो पाप है । हाँ रोते को जो हंसा दे गुदगुदा दे वो शब्द मन में घर कर जाते है । 
और हल्की फुल्की  मज़ाक़ करते रहना चाहिए माहौल ख़ुशनुमा रहता है । मज़ाक करने में क्या-क्या जोखिम हैं? किस तरह के जोखिम हैं?
ऐसा है न, कि किसी को थप्पड मारा हो और जो जोखिम आता है, उससे अनंत गुना जोखिम मज़ाक करने में है। मज़ाक़ करना कई बार जी का जंजाल बन जाता है । मज़ाक़ जब उपहास हो जाता है तब तकलीफ़ का कारण बन जाता है 
मज़ाक़ करते समय कुछ मर्यादा का ख़्याल करना बहुत जरुरी है । मज़ाक़ करने बाला बहुत शब्दों का खिलाड़ी होता है पर कभी कभी किसी के व्यक्तित्व पर या उसकी व्यत्तिगग बात पर होती है तो सामने वाला परेशान व क्षुब्ध हो जाता है । 
कोई लँगडाता हुआ चलता हो और उस पर हम यदि हँसे, मज़ाक उडायें, तो भगवान कहेंगे, 'लो यह फल भुगतो।' इस दुनिया में किसी प्रकार का मज़ाक मत उड़ाना। मज़ाक करने के कारण ही ये सारे दवाखाने खड़े हुए हैं। ये पैर-बैर आदि सारे जो लूले-लंगड़े अंगड-बंगड माल है न, वह मज़ाक का ही फल है। हमें भी यह मज़ाक का फल मिला है। इसलिए हम कहते हैं न कि, 'मज़ाक करना वह बहुत बुरी बात कहलाये, क्योंकि मज़ाक भगवान का उड़ाया कहलाये। भले ही गधा है, पर आफ्टर ऑल (आखिर) क्या है? भगवान है।' हाँ, आखिर तो भगवान ही है। जीवमात्र में भगवान ही बिराजमान है। मज़ाक किसी का नहीं कर सकते। हमारे हँसने पर भगवान कहे कि, 'हाँ आ जा, अब तेरा हिसाब बराबर कर देता हूँ इस बार।तेरा मज़ाक़ हम बनाते है । मज़ाक़ सीमा में हो तो सही पर अति सर्वत्र वर्जिते 
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
हास परिहास अच्छी बात है किंतु जब ये उपहास में बदलता है तो दुखदायी हो जाता है । अक्सर लोग मजाक में वो सब कह देते हैं जो सीधे कहने से झगड़ा हो सकता  है । बाद में उसे मजाक किया है कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं । हिंदी में तो बहुत से ऐसे शब्द हैं जो गागर में सागर भरते हुए पूरे वाक्य का अर्थ समझा देते हैं जैसे- सूरदास, काना , कोढ़ी, पागल,  भोंदू , लंगड़ा इत्यादि । ये सब शब्द शारीरिक दुर्बलता को ही दर्शाते हैं किंतु ऐसे शब्द आमजन अपनी बोली में अक्सर प्रयोग करते हैं । हास्य व्यंग्य का रूप धारण करे जिससे मन हल्का हो तभी उचित होता है अन्यथा ये मजाक भी एक प्रकार से मानसिक शोषण की श्रेणी में रखा जा सकता है । मानसिक अत्याचार शारीरिक अत्याचार से किसी भी तरह से कम नहीं होते हैं ये मीठे जहर की तरह हमारे मनोमस्तिष्क में नकारत्मकता भरते जाते हैं और हम अंदर ही अंदर खोखले हो जाते हैं ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
मजाक तो हंसने और हंसाने की अवस्था है जिसमें रूठा उदास दुखी इंसान भी हंसने लगता है चेहरे पर खुशी और चमक ला देता  है माहौल में खिलखिलाहट की मधुर आवाज़  खनखनाती है । वह मजाक  है । पर यदि मजाक के शब्द किसी को या माहौल  को आहत कर दे    वह मजाक नही बल्कि एक व्यंग्य है ।जिसे परिहास भी कह सकते हैं परिहास की स्थिति  में इंसान शब्दों को इस तरह कहता  है जो उपहासी लगे पर चोट भी लगे । सीधे कहने से झगड़ा की स्थिति पैदा हो सकती है। इस तरह मानसिक अत्याचार हिंसा बड़ी चालाकी से की जाती है
नकारात्मक व्यक्तित्व की पहचान है 
- डाँ. कुमकुम वेदसेन 
मुम्बई - महाराष्ट्र
यह सत्य है कि जो मजाक किसी के दुःख का कारण बने वह मजाक हो ही नहीं सकता। कई लोगों का यह स्वभाव बन जाता है कि वह अपनी कही बात को मजाक का नाम देकर सामने वाले को कुछ भी कुछ भी कहते चले जाते हैं। कभी तो मजाक की आड़ में अपना द्वेष तक निकालने में लग जाते हैं क्योंकि उनका उद्देश्य केवल सामने वाले को दुखी करके स्वयं खुशी पाना रहता है। ऐसे लोग इतने अप्रिय हो जाते हैं कि उन्हें देखते ही कन्नी काट लेते हैं।  स्वस्थ हास-परिहास करने—सुनने में अच्छा लगता है। उससे उदास मन भी प्रसन्न हो जाता है, पर जब यह उपहास में बदलने लगे तो मन पर अत्याचार करने के समान हो जाता है जो केवल दुःख का कारण ही बनता है।  हास-परिहास में किया मजाक किसी के अधरों पर हँसी लाने का कारण बने... हमें ऐसा प्रयास करना चाहिए।किसी के लिए दुःख का कारण बन कर कोई स्वयं भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
      छोड़ो सम्माननीयों।कैसी सतयुग की बातें कर रहे हो।यह कलयुग है और कलयुग में वह मजाक मजाक ही कहां होता है?जो सामने वालों को गहरा दु:ख ना दे।  
   आदरणीयों मजाक मजाक में अंतर होता है।एक में मजाक किया जाता है और दूसरे में मजाक उड़ाया जाता है।जैसे लंगड़े को लंगड़ा कह कर, गंजे को गंजा, काने को काना, गूंगे को गूंगा, कम सुनाई देने वाले को बहरा और पागल को पागल कह कर मजाक उड़ाना शमिल है।
इसमें यदि पीड़ित विरोध करे तो यह कह कर और अधिक दु:खी करते हुए कहना कि यार मैं तो मजाक कर रहा था।
   उक्त तथाकथित बुद्धिमानों का उक्त मजाक हर दिन की दिनचर्या है।जबकि पीड़ितों पर इसका प्रभाव उक्त कहावत 'चिड़ियों की मौत और गंवारों की हंसी' चरितार्थ होती है।इसके बावजूद उक्त दु:खदायिक मजाक कर्ताओं का सुवह, दोपहर व रात का खाना नहीं पचता और तब तक नींद नहीं आती।जब तक वो उक्त पीड़ितों को मजाक के रूप में कष्ट ना दे दें।जो अत्यंत निंदनीय अपराध है और वर्तमान सरकार के टाएं-टाएं फिस हो चुके दिव्यांगता अधिनियम 2016 में दण्डनीय भी है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
वाकई ऐसी  गलत बात  मजाक  में कही जाती है ।वह  बात दुख देती है ।तो वह मजाग नहीं होता है । तब उस कहने वाला व्यक्ति का अंहकार बोलता है । इसलिए कहा भी गया कि ऐसा मीठा , मधुर वाणी बोलो जो दूसरे के मन को अच्छा लगा । यानी शब्दों के तीर से दूसरे का दिल घायल नहीं हो । मन के तरकस से निकला कटु वाणी का तीर वापिस नहीं आ सकता है । इसलिए आपस में जो भी बोलो सोच समझ कर बोलो ।
   किसी के मजाग का व्यंग्य दिल को ऐसा चुभता है कि महाभारत ही मच जाता है । जैसे द्रौपदी ने दुर्योधन को ताना कसा था । अँधे का बेटा अँधा । यह सुन कर दुर्योधन ने द्रौपदी को भरी सभा में चीर हरण कर के अपमानित किया ।नतीजा महाभारत हुआ ।
 एक बार राधा जी कीमती मोतियों का हार पहन कृष्ण के पास आयी । कृष्ण ने जैसे ही हार देखने के लिए हाथ बढ़ाया । तो राधा एक दम अपने गले को पीछे की तरफ करती हूँ बोली , " अगर मोतियों का यह हर टूट गया तो । नन्द बाबा बिक के भी यह हार नहीं खरीद पाएँगे । परिणाम यह हुआ कृष्ण की राधा से दूरी और राधा का रो - रो के बुरा हाल हुआ । दुनिया का काम तो मजाग करना है । क्या ही अच्छा हो कि मानव इनकी आलोचनाओं पर ध्यान न दे कर अपना 
अपने व्यक्तित्व निर्माण करके और आंतरिक क्षमताओं को जगा के समाज , राष्ट्र के लिए  उपयोगी बन देश हित में समग्र जीवन लगा दिया । मिसाल के तौर पर महात्मा गांधी जी , अमिताभ बच्चन  । उनकी लम्बाई आदि का मजाग बनाया जाता था ।  एक बार राजा जनक ने अपने  दरबार में  शास्त्रार्थ करने के लिए विद्वानों को बुलाया ।  जो जीतेगा उसे सोने के सींग से मढ़ी एक हजार गाय दान में दी  जाएगी । ज्ञानी 
अष्ट्रावक्र के पिता जी जीतते हुए हारने लगे । यह खबर बारह साल के  पुत्र अष्ट्रावक्र  को पता लगी । तो वह दौड़ा - दौड़ा राजा जनक के दरबार में पहुँचा । वहॉं बैठे राजा के सारे  दरबारी अष्ट्रावक्र के 8 जगह से टेढ़े - मेढ़े अंगों को देख के हँसने लगे । राजा जनक भी हँसे । तब ये हँसी देख के अष्ट्रावक्र बोले ,' तू चमार है ।'  इस शरीर को देखने से क्या है ।मेरे भीतर की सरलता , सहजता को देखा क्या  ? 
यह सुन के राजा जनक  को आत्मबोध हुआ । अष्ट्रावक्र को अपना गुरु बनाया ।अष्ट्रावक्र गीता इसकी मिसाल है । 
बजेन्द्री पाल  का गाँववाले उसके कम कद के लिए चिढ़ाते थे । बजेंदी पाल ने  माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर लोगों के सवालों को जवाब दे दिया । अगर हमारे  साथ के लोग इस तरह  का मजाग करते हैं । तो हमें इनसे दूरी बना लेनी चाहिए । अपने कामों से इनका मुँह बंद कर देना चाहिए ।  उन्हीं लोगों में कमी होती है । जो इस तरह की ओछी बात करते हैं । 
- डा मंजु गुप्ता 
मुम्बई - महाराष्ट्र
मजाक  तो  माहौल  को  खुशनुमा  बनाने  के  लिए  होता  है,  किसी  का  दिल  दुखाने  के लिए  नहीं  ।   मजाक  करते  समय  आयु   और  शब्दों  की  मर्यादा  का  ध्यान  रखना  अति आवश्यक  है    वर्ना  कई  बार  मजाक  झगड़े  का  रूप  भी  ले  लेती  है ।  मजाक  में  शब्दों  के  व्यंग्य  बाण  चलाने  से  भी  बचना  चाहिए  ।  मजाक  के  बहाने  किसी  को  आहत  करने  का  प्रयास  न  करें । कुछ  लोग  ऐसे  भी  होते  हैं,  जो  मजाक  पसंद  नहीं  करते  या  मजा  में  कही  गई  बात  को  स्वयं  से  जोड़  कर  गंभीर  हो  जाते  हैं,  ऐसे  लोगों  से  मजाक  सोच  समझकर  करना  चाहिए  ।  परिस्थितियां  और  सामने  वाले  के  मूड  को  भी  ध्यान  में  रखते  हुए, हल्की-फुल्की  बातों  से  मजाक  द्वारा  माहौल  को  खुशनुमा  बनाया  जा  सकता  है  । 
             - बसन्ती पंवार 
              जोधपुर - राजस्थान 
इसमें कोई दो राय नहीं है जो मजाक दुख देता है गुनाह की घंटी और दस्तक होता है! मजाक हास, परिहास बहुत अच्छी बात है जब तक वह किसी के लिए नुकसानदेह न  हो! हास परिहास जीवन के लिए बहुत ही जरूरी है !जिंदगी में कभी खुशी कभी गम वाली घड़ी भी आती है जो व्यक्ति गम में अथवा दुख में हमें हंसाता है वह हमारा हितैषी होता है हास, परिहास ऐसा हो जो उपहास न बन जाए ! मजाक करने की भी एक सीमा और मर्यादा भी होती है मजाक कभी किसी की गरीबी का नहीं उड़ाना चाहिए किसी के शारीरिक दोष अथवा कमी को लेकर भी नहीं करना चाहिए किसी को चोट पहुंचे ऐसा मजाक नहीं करना चाहिए ! किसी पर व्यंग करना और कहना मैं तो मजाक कर रहा था अथवा किसी की खिल्ली उड़ा कहना मैं तो मजाक कर रहा था तू तो बुरा मान गया वास्तव में हम अपनी खुन्नस उतारते हैं !मानसिक तनाव बने ऐसा  मजाक करना ही नहीं  चाहिए  बहुत बार मजाक भारी पड़ जाता है! मानसिक तनाव आ जाने से कई लोग अवसाद में  भी आ जाते है किसी का जीवन संवरने की जगह बिखरे लगे ऐसा गंदा और वाहियात मजाक मजाक न हो गुनाह का रुप ले लेता है!  अंत में  कहूंगी मजाक में सभी के हंसने की गूंज माहौल को इतना खुशनुमा बना दे कि जिसकी महक चंदन की तरह शीतल ठंडी तो हो साथ ही  जीवन की कटुता में भी आनंद को मुखरीत करती हो
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " कई बार मजाक झगड़े का रूप ले लेता है । जो मार - पीट से लेकर हत्या तक हो जाती है । फिर मजाक जैसे शब्दों का प्रयोग कर के बात को छोटी सी बात कहँ कर घटना को दबाने की कौशिश की जाती है । परन्तु दिलों की दरार नहीं भर पाती है ।
                                               - बीजेन्द्र जैमिनी



Comments

  1. बहुत सुंदर व लगातार अच्छी व उपादेय चर्चा बधाई

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