लॉक डाउन के चलते लम्बी - लम्बी पैदल यात्रा का क्या प्रभाव है ?

लॉक डाउन के चलते लम्बी - लम्बी पैदल यात्रा करना किसी भी स्थिति में उचित नहीं है । जो ये यात्रा कर रहें हैं । वह अपने सहित परिवार , गांव , प्रदेश व देश को खतरे में डाल रहे हैं । ये लॉक डाउन हम सब को सुरक्षित बचाने के लिए किया गया है । हम ही तोडऩे में लग जाऐ तो फिर प्रभु ही मालिक है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । आये विचारों को देखते हैं : -
 संयोग है ये लेख मुझे उस समय लिखना पड़ रहा है जब कोरोना संक्रमण अपनी विनाशकारी यात्रा के तीसरे पड़ाव की ओर उन्मुख है ऐसे में लम्बी तो छोड़ो, छोटी यात्रा करना भी ख़तरे से ख़ाली नही है। ये लम्बी लम्बी दूरी की पैदल यात्रा करना संक्रमण को फैलने में सहायक है । 
      हमारे देश में जनसंख्या घनत्व शहरों में अधिक होने के पीछे गाँवों का पलायन है और वह निर्धनता के कारण है रोज़ी रोटी के चक्कर में बड़ी संख्या में लोग अपने पैतृक घर को छोड़कर दूर - दूर निकल जाते हैं परन्तु उनका लगाव अपने गाँव से, घर से,परिवार से, परम्पराओं से बना ही रहता है  और वह जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा है उसमें पढ़े लिखे व अनपढ़ दोनों ही तरह के लोग हैं पढ़े लिखे लोग शारीरिक शक्ति की कमी के कारण पैदल यात्रा करने से डरते हैं परन्तु कम पढ़े लिखे मेहनत करने वाले मज़दूरों को पैदल चलने की आदत होने के कारण इस प्रकार की लम्बी लम्बी पैदल यात्राओं का जन्म होता है जो प्रत्यक्ष सड़कों पर दिखाई दे रही है । दूसरी बात ये है कि ये लोग बहुत कम संसाधनों के साथ जीवन यापन करते हैं रोज़ कमाते हैं और रोज़ खाते हैं काम धंधा न मिलने के कारण ये शहर में ठहर नहीं सकते भूख और भय से सहमे दुखद समय में अपने परिजनों के बीच रहने के लिए पैदल ही निकल पड़े हैं जिससे इन लम्बी लम्बी पैदल यात्राओं का उदय हुआ । वजह कुछ भी हो ये पैदल यात्राएँ ख़तरे से ख़ाली नहीं है इन पर तत्काल कार्रवाई करते हुए प्रभावी कदम उठाने चाहिए तभी हम कोरोना के ख़तरे से निपटने में सफल हो सकेंगे ।
    ख़तरे को भाँप कर पशु पक्षी भी अपने घरों में छिप जाते हैं आंधी में एक जगह ठहर जाते हैं क्योंकि वो समझते हैं कि इसी में भलाई है और जान बच सकती है आख़िर मनुष्य होने के नाते हमें बुद्धि और विवेक का प्रयोग करना चाहिए और कोरोना संक्रमण की चैन को तोड़ने में मदद करना चाहिए । 
  लॉक डाउन के चलते इन लम्बी लम्बी पैदल यात्राओं को तत्काल रोका जाना चाहिए । इसी में मानव समाज की भलाई है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउनहोने के बावजूद भी भी जनता परेशान होकर जो शहरों में कमाने के लिए गए थे वह लोग अपने घरों की ओर पैदल ही पलायन कर रहे हैं, अगर लोग करोना वायरस से संक्रमित हुए तो वह अपने गांव में भी जाकर वहां भी सबको संक्रमित करेंगे।
जनमानस में तरह-तरह की भ्रांतियां फैली है लोग यह बात को समझ ही नहीं रहे हैं कि इस समस्या का हल जाने में नहीं है जाने से तो समस्या और बढ़ेगी समस्या को हल करने के लिए उसके उपाय और उपचार जो तरीके आयुर्वेद में बताए जा रहे हैं उन्हीं का पालन करना चाहिए घर गांव जाकर भी समस्या तो यही रहेगी। आर्थिक परिस्थितियों में भी अपने आप को ढाल लेना चाहिए।
रेलगाड़ी, बस कोई भी परिवहन साधन नहीं चल रहे हैं इस तरह पैदल चलकर तो और तबीयत खराब हो जाएगी खाने-पीने की भी कोई व्यवस्था नहीं रहेगी और संक्रमण होने का ज्यादा खतरा रहेगा ऐसे हजारों में लंबी यात्रा कैसे तय कर सकेंगे यह संभव नहीं है लोग इस बात को नहीं सोच रहे हैं एक जा रहा है उसके पीछे पीछे सभी चल देते हैं जैसे उदाहरण के लिए एक सियार हुआ बोलता है तो सभी बोलने लगते हैं अपना विवेक का उपयोग नहीं करते हैं , संयम खो देते हैं। हर समस्या का समाधान होता है हर रात के बाद सुबह आती है।
उम्मीद रखनी चाहिए और अपनी हिम्मत को नहीं खोना चाहिए।
'बीतेगी हर मुश्किल की घड़ी गम छोटा उम्मीद बढ़ी'
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर -मध्य प्रदेश
लॉक डाउन के चलते लंबी लंबी पदयात्रा करना प्रवासी लोगो  की मजबूरी है । लेकिन उन लोगों को भी समझना चाहिए कि इससे लॉक डाउन फेल या प्रभावित हो सकता है , लेकिन वहां की सरकारों एवं प्रतिनिधियों को भी यह  सुनिश्चित करना होगा कि लोगों को राशन  व ठहरने की उचित व्यवस्था की जाए।  जिससे वह पलायन ना करें और जो मजदूर पदयात्रा करके अपने गृह गांव लौट रहे है  उनकी स्क्रीनिंग की जाए या उन्हें शिविर व  घर में ही  14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन किया जाए । तभी हम वैश्विक महामारी कोरोना को मिलकर हरा सकते हैं यही हमारी और सरकार की जिम्मेदारी है।
- प्रीति शर्मा
भिंड - मध्य प्रदेश
देश में कोरोना प्रभावित लोगों के आकडो पर नजर डाले तो आज 29 मार्च 2020 तक लगभग 900 मामले देश में सामने आये है.  फ़िलहाल लॉकडाउन के चलते इन आकडों मे गिरावट देखी जा रही है परंतु क्या ये सच है.
दिल्ली और अन्य राज्यों विशेषतः उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड आदि राज्यों में हाल ही में पैदल यात्रा करके वापस घर जाने की भीड हमे दिखाई दे रही है. ये वे लोग हैं जो किसी भी प्रकार अपने घरो को लौट जाना चाहते हैं चाहे माध्यम उपलब्ध हो या ना हो अर्थात् ये लोग लम्बी लम्बी पैदल यात्राओ के माध्यम से ही अपने अपने घरों की लौट रहे है जिस कारण ये न सिर्फ़ अपने स्वास्थ्य पर विपरीत असर डाल रहे हैं वरन रास्ते में मिलने वाले अन्य लोगों को भी प्रभावित कर सकते हैं।
ये लोग उत्तर प्रदेश, उत्तराखन्ड, बिहार जैसे राज्यों के मजदूर तबके के लोग है जो प्रतिदिन कार्य करके अपना जीवनयापन करते हैं परंतु लॉकडाउन के चलते सभी परिवहन सुविधा बन्द होने के कारण ये लम्बी लम्बी यात्रा करने को मजबूर हो गए हैं।
इतना ही नहीं इनके साथ इनका पूरा परिवार होता है जिनमे इनके छोटे छोटे बच्चे भी शामिल होते हैं ।
लम्बी लम्बी पैदल यात्रा के कारण इन बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर दिखायी देगा, इसमे कोई दो राय नहीं है। जब ये व्यक्ति लम्बी लम्बी यात्राये करेंगे तो इससे विदेशों में भी भारत की छवि धूमिल होगी साथ ही ये जितने भी व्यक्तियो से रास्ते मे मिलेगे, उनके सम्पर्क में आने के कारण उनके स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकते हैं।
आज कल कोरोना के चलते लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प रह गया है वही ये भीड का हिस्सा बन कर लॉकडाउन की सीमा को भी लाँघ रहे हैं क्योंकि यदि इनमे से कुछ व्यक्तियों को भी कोरोना हुआ तो देश के लिए परिणाम कितने भयावह होंगे, ये आप अच्छी तरह जानते हैं अतः सरकार को चाहिये कि इन लम्बी लम्बी पैदल यात्राओ पर पूर्णत पाबंदी लगाये और इनके रहने की उचित व्यवस्था भी करे क्योंकि केवल घोषणा करने से ही कार्य नहीं चलता, उसका निरीक्षण भी जरुरी है।
- विभोर अग्रवाल 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन के चलते मालिकों ने मजदूरों को काम से हटा दिया,जो उनके पास धन था वो समाप्त हो गया,उधार मिलता कैसे जब इस समय नकद भी सामान मिलना सहज नहीं । मकान मालिकों ने बिजली पानी की सप्लाई बंद कर दी।अब मजबूरी बन गया पलायन करना। लॉक डाउन के चलते वाहन बंद तो पैदल ही एकमात्र विकल्प बचा। ऐसे मरने से अच्छा तो जीवन को बचाने की कोशिश में जूझना है। बस चल पड़े ५०० से १५०० किलोमीटर पैदल। मार्ग में खाने को कुछ नहीं मिला,जब कोई शहर आया तो मिल गया कुछ खाने के लिए।सिर पर बोझ,बगल में बालक लिए पैदल चलना किसे भाता है,पर लाचारी में और कोई चारा भी न था इनके पास। सरकारी स्तर पर इनको वहीं पर बंद पड़े स्कूलों में शरण दी जा सकती थी,लेकिन अब तो देर हो गयी। इनके साथ प्रशासन का मानवीय व्यवहार ही रहा लेकिन कहीं कही इनको सख्ती भी झेलनी पड़ रही है।इसका प्रभाव यह है कि संभावित कोरोना का समाज में भय बढ़ रहा है।इन लोगों में अपने उन मालिकान के लिए अच्छे भाव नहीं जिन्होंने इनको इस विषम परिस्थिति में सड़क पर छोड़ दिया भाग्य के सहारे। इस लम्बी  पैदल यात्रा से जहां इन कर्मवीरों की जीजिविषा सबल हो रही है, वहीं कथित धनिकों का अमानवीय व्यवहार समाज के सम्मुख आ रहा है।
डॉ अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर -  उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन होने का अर्थ ही यह है कि जो जहाँ है वहीं रहे, घर में रहे। बहुत आवश्यक होने पर ही दिए गए निर्धारित समय में जाए और अपनी आवश्यकता की वस्तु लेकर आए और कहीं भी भीड़ करने का कारण न बने।कोरोना से बचाव के लिए इस उपाय को किया गया ताकि किसी संक्रमित व्यक्ति से दूसरे को कोरोना का संक्रमण न हो पाए।
      लेकिन जाने किसी बहकावे में आकर या अफवाहों का शिकार होकर ये सैकड़ों की संख्या में जो मजदूर अपने बल-बच्चों को लेकर अपने गाँव जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े, यह अच्छा नहीं हुआ। ये गाँव में पहुँचे भी तो कोरोना को लेकर ही पहुँचेंगे और बीमारी की भयावहता को और बढ़ाने में ही सहायक बनेंगे। लॉक डाउन जिस बचाव के लिए किया गया गया इन्होंने तो उसे ही ध्वस्त कर डाला। दूसरे देशों में इसकी विभीषिका देखने को मिल ही रही है। ऐसे में केंद्र और दिल्ली सरकार को जल्दी ही इस पलायन को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की तरह कठोर कदम उठाने होंगे, अन्यथा कोरोना के बढ़ते, पैर पसारते पंजों की गिरफ्त से निकलना मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जायेगा।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
बहुत लोगों को काफ़ी तकलीफ़ उठाना पड़ रही , लम्बी दूरियाँ पैदल तय कर रहे है । तेजी से साथ बढ़ते जा रहे कोरोना वायरस के प्रकोप को तोड़ने के लिए जरूरी है कि इसके चेन रिएक्शन को तोड़ा जाए। इसी के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की है। वहीं लॉकडाउन के चलते आवागमन के साधनों पर पांबदी है। 
ऐसे में एक बेटे के लिए आज का दिन खासा मुसीबत भरा रहा। जहां वह अपने पिता के अंतिम संस्कार करने के लिए तड़प गया अंततः उस बेटे ने हिम्मत बांधी और मध्य प्रदेश के ग्वालियर से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के लिए 298 किमी की पदयात्रा पर निकल पड़ा।
बता दें कि कन्हैयालाल शाहजहांपुर के गांव सिमोरा के रहने वाले हैं और ग्वालियर में अचार बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। उन्हें घरवालों ने पिता के निधन की सूचना फोन पर दी। वहीं लॉकडाउन के दौरान वाहन पूरी तरह से बंद है। घर जाने के लिए कोई साधन न मिलने की सूरत में कन्हैयालाल ने पैदल ही जाने की ठानी और अपने 14 वर्षीय बेटे के साथ पदयात्रा पर निकल पड़े।
अंत्येष्टि के लिए घर पर हो रहा है इंतजार 
इटावा-फर्रुखाबाद मार्ग के रास्ते शाहजहांपुर जा रहे कन्हैयालाल ने दुखी मन से बताया कि वाहन नहीं चल रहा। ऐसे में मजबूरी में पैदल जाने के सिवा दूसरा रास्ता नहीं था। अंत्येष्टि के लिए घर पर उनका इंतजार हो रहा है। वह जल्द से जल्द अपने पिता की अंतिम दर्शन के लिए घर पहुंचना चाहते हैं। पूरे देश में लॉक डाउन हो गया है। इसकी जानकारी बाहर शहरों में मेहनत मजदूरी करने वाले लोगों को हुई तो उन्होंने अब अपने गांव का रूख कर लिया, लेकिन वाहन नहीं मिलने से उन्हें पैदल चलना पड़ा है। यह लोग दिल्ली व अन्य प्रदेशों से तो संभल तक किसी तरह आ गए लेकिन संभल से अपने गांव तक का सफर मुश्किल भरा रहा। कई ऐसे लोग मिले जिनके पैरों में पैदल चलने से छाले पड़ गए। तो कुछ के इस परेशानी के चलते आंसू निकल आए।कई लोग अपने घरों में पहूचने के लिये कई कई दिन तक चलते रहे वाहन न होने से मज़दूर वर्ग ने बहुत तकलीफ़ उठाई , 
वो समझ नहीं पा रहे है बस हज़ारों मील की पैदल यात्रा पर निकल पड़े व परेशानियाँ मोल ले रहे है । 
व पैरों कोजख्मी कर पहूचे अपने घर , अचानक बिना तैयारी के लाकडाऊन  करने व वाहन पर पाबंदी के चलते काफी लोग प्रभावित हुये । 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
       लाॅक डाउन के चलते  लम्बी लम्बी पैदल यात्रा ने यह साबित कर कि अपने अपने राज्य के मुखिया को अपने लोगो की चिन्ता कम है । इस भीड़ ने भारत देश बासियो की धड़कन बड़ा दी । यदि कोई पोजिटिव मरीज भीड़ मे है तो बह अनेक लोगो को संक्रमित कर देगा । हम लोगो की यह बडंबना है कि देश के मुखिया की अपील को गम्भीरता से नही  समझते है 
आज कल विश्व मे कोरोना कहर ढहा रहा है । ये लोग तो गरीब है अगर इनकी व्यवस्था हो जाती तो ये बिचारे क्यो पैदल चलते ।
- बालकृष्ण पचौरी
भिण्ड - मध्यप्रदेश
आज देश के  लॉकडाउन का पाँचवा दिन और नवरात्रे का चौथा दिन है । देशभर में कोरोना के 979 लोग पीड़ित हैं । जीवन बच सके ।  सरकार को 21 दिन को भारत बंद करना पड़ा । जीवन तहस , नहस जरूर हुआ है । कोरोना का संक्रमण को रोकने के लिए ये कदम सराहनीय है ।
कुछ भुटठीभर भारत विरोधी ताकतों ने इन गरीब तबकों को भड़काया है । जिससे ये गरीब तबके  पलायन करने के लिए मजबूर  हुए हैं ।
महानगरों से मजदूर , गरीब , वंचित वर्ग  जो किराए आदि पर रहते थे । मकानमालिकों ने  उन्हें निकाल दिया । रोज दिहाड़ी पर खाते , कमाते ये गरीब तबका को अपने गाँव को  पैदल चलकर लौटना मजबूरी है ।  इन्हें 2 जून की रोटी नहीं खाने को है । गाँव में जाकर कुछ तो पेट भरने का  जुगाड़ मिल ही जाएगा ।
इन नदानों को यह नहीं मालूम सरकार ने लॉकडाउन  कोरोना के फैलने से बचने के लिए किया है।
भूखे , प्यासे अपने अबोध बच्चों को गोदी में लिए लंबे - लंबे पथरीले वीरान रास्तों पर चल दिये हैं ।
देश की जनता घर में बंद है । 
 नवरात्रे चल रहे हैं । देवी दुर्गा की नो रूपों भवन पूजा होती है । धरा पर  राक्षसों का संहार कर  पावन पुण्य मानवता को विजयी किया था । रक्तबीज की तरह कोरोना का वायरस को मारना चुनोती है । इसका उपाय सामाजिक दूरी है । घर पर भी हर जन से 6 फीट की दूरी जरूरी है ।  मजदुरों , ऐसे लोगों को 14 दिन क्वरानटाइन  , आइसोलेशन भी जरूरी है ।
ये वर्ग कानून की धज्जियाँ उड़ा रहा है ।  राज्य सरकार लॉकडाउन  होने से पहले इन वर्गों को समझाना था । 10 , 20साल से ये लोग  वहाँ काम कर रहे थे ।   
मकानमालिकों की हैवानियत है। इनको निकलना पड़ा ।  अब हर राज्य सरकार को इन पालयन हुए गरीब लोगों को सेल्टर में रखें । इनके खाने  की व्यवस्था हो । इनके कोरोना की जांच होनी चाहिए ।  लोग लॉकडाउन का उल्लंघन कर रहा है । सरकार ने पालयन रोकने का आदेश दिया है । लोगों को 'आप सरकार 'के वालंटियर, कार्यकर्ता  को भेजकर इन मजदूरों की बस्तियों में जाकर समझाना था । 
सड़कों पर निकले लोगों ने लाकडाउन फेल कर दिया है । इन लोगों में भी कोरोना हो सकता है । इनकी जाँच होनी चाहिए । 
 अब ये वर्ग जहाँ है , वही इन्हें रोके । इनकी खाने ,रहने की व्यवस्था की जाए । इनकी परेशानी , समस्या दूर करें।
 पूरा भारत तभी कोरोना से बचेगा ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन का अर्थ है - सभी को किसी के सम्पर्क में नहीं आना है । लेकिन देहाड़ी मजदूर रोज कमाते और रोज खाते हैं। वे खाने-पीने की व्यवस्था नहीं होने के कारण अपने घर लौटने की चाह में सड़क पर उतर आए हैं। धीरे-धीरे यह संख्या बढ़ती गई , जिसने खतरनाक रूप अख्तियार कर लिया। लंबी पैदल यात्रा उनके स्वास्थ्य को कमजोर कर देगी । जिससे कोरोना का खतरा बढ़ जाएगा।  उसमें अगर एक भी कोरोना ग्रसित व्यक्ति होगा , वह बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित कर देगा । घर पहुंचने का सपना सड़क पर ही टूट जाएगा। 
 इसके लिए आप पुलिस से संपर्क करें। हर जगह कई तरह की व्यवस्था की गई है। उनसे जानकारी लें । खाने-पीने की सुविधा अवश्य मिलेगी ।भागना कोई समाधान नहीं है । आप सावधानी बरतते हुए खुद भी बचें और दूसरों को भी बचाएं। इस तरह आप अपनी सहायता के साथ-साथ दूसरों को भी बता सकते हैं । इस तरह कई जानें बच जाएंगी।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
मजदूर वर्ग के लोगों का दिल्ली व उसके  आसपास के क्षेत्रों से पलायन करना पूरी व्यवस्था को धता बताकर कमजोर करना है । जहाँ एक व्यक्ति के निकलने पर उसे पुलिस द्वारा दंडित किया जा रहा है  समझ में नहीं आता कि राजधानी दिल्ली में जहाँ केंद्र  व राज्य दोनों प्रभावशाली हैं । संसद व विधान सभा भी वहीं हैं ; वहाँ पर इतने लोग चल दिये कोई भी रोकने नहीं आया ।  एक ओर प्रधानमंत्री जी लक्ष्मण रेखा पार न करने की विनती करते हैं तो दूसरी ओर ऐसी कौन सी शक्तियाँ हैं जो इन्हें बस से दिल्ली के बॉर्डर तक पहुँचा रहीं हैं । सच कहूँ तो बटवारे का दृश्य जो 1947 में था वो तो अधिकांश लोगों ने नहीं देखा पर ये दृश्य कहीं न कहीं उसी की दिला रहा है । क्या संकट के दौर में भी हम केवल मानव हित का चिंतन नहीं कर सकते ?
ये समय *दलगत राजनीति* से ऊपर उठकर कोरोना से लड़ने का है । इस तरह के पलायन पूरे गाँवों को संक्रमित कर देंगे । *भारत का तो दिल ही गाँवों में बसता है तो सोचिए क्या होगा ?*
ऐसे समय में जनमानस को एक जुट होकर लॉक डाउन का समर्थन करना चाहिए । जरूरतमंद लोगों की सहायता करके उनको गाँव जाने से रोकना चाहिए क्योंकि यदि उनके पास खाने व रोजगार की व्यवस्था होती तो वे गाँव छोड़कर काम करने दिल्ली क्यों आते । 
विदेशों के इतना नुकसान देखने के बाद भी अगर हम लोग सचेत नहीं हो सकते हैं तो जो होगा उसके लिए तैयार रहना चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
अपने मन से जानो पीर पराई उम्र चाहे जो भी हो पैदल लम्बी यात्रा करना बहुत कष्टकर है वह भी भय की स्थिति में , अनियोजित तरीके से परिवार के साथ पदयात्रा जोखिम से भरा हुआ है । हम सभी को उन लोगो के लिए एक सैलुट तों बनता है। उनके हिम्मत आत्मविश्वास, साहस परिश्रम को  ताली बजा कर स्वागत करतीं। हूं।
उन लोगो के लिए दो पंक्तियां 
अपनी समस्या को अवश्य बताना तेरा हौसला क्या है
लेकिन अपनें हौसले को कभी न
कहना तेरी समस्या क्या है?
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
 लाँक डाउन के चलते लंबी लंबी पैदल यात्रा लोग कर रहे हैं जो अपने परिवार से अलग हैं अर्थात अपने घर से अलग अपने  जिओ को उपार्जन के लिए शहरों में आए हैं ऐसे लोग ही लाँकडाउन का पालन ना कर अपने परिवार के साथ रहने के लिए लंबी लंबी पैदल यात्रा कर रहे हैं क्योंकि अगर वहां अपनी जगह पर रह कर लाक डाउन का पालन करता है तो उसे अपने घर की याद आ रही है और वहां पर उनका काम धंधा नहीं चलने से जीने में परेशानी आ रही है ऐसी स्थिति में मरता क्या नहीं करता इसीलिए परिस्थितियां बस जनता अपने आशियाना की ओर लंबे लंबे पैदल यात्रा कर रहे हैं उनका एक ही लक्ष्य है किसी भी तरह लंबी दूरियां तय कर अपने घर परिवार के साथ रहे इस विषम परिस्थिति में अलग रहना नहीं चाहते ।इस समय उनकी सूझबूझ खो गई है। की इस को रोना महामारी  से मुझे और मेरे परिवार  भी सुरक्षित नहीं रह पाएंगे इसको जानते हुए भी वह अपनी गंतव्य की ओर लंबी लंबी यात्रा कर रहे हैं। यह  देश के हित के लिए ठीक नही है। लेकिन ऐसा नहीं करने से भी उनके मन में असन्तुष्टि के भाव से मृत प्राय के समान जीते। इसीलिए लॉक डाउन  होते हुए भी अपने घर कीओर लंबी दूरी तय कर लंबे लंबे पैदल यात्रा कर रहे हैं।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
यह देखा जा रहा है लॉक डाउन का सबसे गहरा असर गरीबों पर पड़ा है रोज कमाना रोज खाना ! भूख के चलते कोरोना से तो हम बाद में मरेंगे पहले हमारा परिवार भूख से मर जाएगा रहने खाने की चिंता में उनके सोचने की शक्ति मंद पड़ गई कि कोरोना जैसी संक्रमण से बचने के लिए यह लॉक डाउन किया गया है ! 
पेट की आग में इस महामारी से आने वाली विपत्ति के बारे में तो सोचना ही छोड़ दिया और सभी अपने गांव की तरफ पलायन करने लगे !
इस गरीबी की महामारी से नकारा नहीं जा सकता किंतु इनके पलायन से उन्हें यह नहीं मालूम कि यह अपने साथ एटम बम भी गांव ले जा रहे हैं जिसके ब्लास्ट होते ही पूरा गांव भी ब्लास्ट हो जाएगा! जब पूरा देश महामारी से जूझ रहा है 21 दिन का लॉक डाउन है यह टूटना नहीं चाहिए हमारे प्रधानमंत्री ने यदि निर्णय लिया है तो इस महामारी से होने वाली परिणाम को देखते हुए दूरदर्शिता को लेकर ही किया होगा! 
बहुत बार कुछ निर्णय ताबड़तोड़ लिए जाते हैं चर्चा का समय ही नहीं होता फिर भी स्थिति को देखते हुए उन्होंने जनता से माफी भी मांगी है!उनकी विनम्रता, उनके हिम्मत का लोहा मानना पड़ेगा वायरस ना फैले लॉक डाउन बना रहे इसके लिए उन्होंने तुरंत सारे राज्य के जिलों की सीमा को बंद कर दिया ! पुलिस ने दिल्ली आनंद विहार के रास्ते बंद कर दिए ,दिल्ली से बाहर जाने वाली डीटीसी बसें बंद कर दिए ,ट्रेन की पटरी से जाने वाले लोगों को रोका गया !पलायन रोकने के लिए तुरंत दिल्ली पुलिस की कार्यवाही चालू हो गई !
लोगों को आदेश दिया गया जो जहां है वहीं रुक जाए उन्हें राहत दी गई कोई भूखा नहीं रहेगा हमारी पुलिस दिन रात उन्हें भोजन पानी सभी देने में मदद करती रही !
लोग सरकार से नाराज होकर पलायन कर रही थी किंतु जिंदगी बचाने की जंग में यह नाराजगी कैसी ? अन्न देने का आंदोलन छिड़ गया सभी को खाना दिया गया!
 पलायन को लेकर केंद्रीय गृह सचिव के कई निर्देश दिए उन्हें पूरी पगार दी जाएगी ,मकान मालिक को किराया नहीं देना होगा ,किराने की दुकान से यदि उधारी सामान लेता है तो स्थिति को देखते हुए अवश्य देना चाहिए यह कोरोना और मानव के मध्य युद्ध तो है किंतु उससे अधिक मानवता और कोरोना के बीच युद्ध है! 
मानवता को लेकर हमें उनकी मदद करनी चाहिए पलायन से लौट रहे लोगों को 14 दिन शेल्टर होम में रखें (क्वॉरेंटाइन ) सरकार यही चाहती है सबका साथ होगा तभी हम इस महामारी को भगा पाएंगे !
जीवन से बड़ी और कौन सी जंग है हमारे सिपाही, डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ ,अन्य मानवता को लेकर जो मदद कर रहे हैं यही तो हिंदुस्तान की खासियत है और ताकत है समय आने पर जाति भेदभाव भूल एकता में अनेकता को लेकर हर मुसीबत का सामना करने को तैयार हो जाते हैं !
 महामारी की जंग तो थी साथ ही गरीबी की महामारी से पलायन करते लोगों की जंग फिर भी हमारे प्रधानमंत्री ने स्थिति को कंट्रोल में कर लिया है और इस लॉक डाउन की चेन बनी रही कोरोना की चेन तोड़ने के लिए!   कोरोना काल में भारत की शक्ति से दुनिया चकित है !
अंत में कहूंगी इस कठिन परिस्थिति में भी हमारे प्रधानमंत्री ने अपना संयम और संकल्पता नहीं तोड़ी क्योंकि उन्हें मालूम है कि समस्त भारत उसके साथ है !उन्होंने पहले ही कहा था सबका साथ सबका विकास आज सबका साथ पाकर एक नया नारा उठा है
" खतरा जितना विकट भारत उतना अटल" !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॅाक डाउन के चलते लम्बी पैदल यात्रा ,कोरोना जैसी महामारी को बढ़ाने का कारण  होगी ।जो राज्य इसकी गिरफ्त से दूर हैं वहाँ भी यह बिमारी पसरेगी ।कोरोना के बचाव का एक ही उपाय है ।हम सभी लाॅक डाउन के नियमों का पालन करें ।बाहर जारहे लोगों को भी समझायें और उनकी हर तरह की मदद करें ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " लॉक डाउन के समय ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती है जिससे एक जगह से दूसरी जगह जाया जा सके । फिलहाल सरकार ऐसी व्यवस्था करने में लग गई है कि जो जहाँ है उसे वहीं पर सभी सुविधाएं प्रदान कर दी जाऐ । लगता भी है ऐसा सब कुछ सम्भव भी हो जाऐगा ।
                                                      - बीजेन्द्र जैमिनी






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