क्या सरकार से चाहिए छोटे उद्योगों को बड़ी राहत ?

कोरोना वायरस की वजह से सरकार को लॉकडाउन लागू करना पड़ा है । जिससे सभी तरह का व्यापार प्रभावित हुआ है । कामगारों की स्थिति काफी खराब हो गई । सरकार से लेकर समाज सेवियों ने कामगारों की काफी सहायता की है । परन्तु छोटे छोटे उद्योग खत्म के कगार पर खड़ा है । ऐसी स्थिति में बिना सरकारी सहायता के  उद्योगों का जिन्दा रहना असम्भव है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख मुद्दा है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
छोटे उद्योग इस महामारी के दौर में अन्तिम सांसें गिन रहे हैं ।छोटे उद्योगपति और उनके उद्योगों में कार्यरत कामगार बिना काम धाम के घर बैठ गये हैं और बेरोजगारी के अन्धेरे में दिन काट रहे हैं । हालात ये हैं कि उन्हें अपने और परिवार के पेट पालने की भी समस्या खडी हो गई है । केंद्र और राज्य सरकारों को लघु उद्योग पतियों और वहां कार्यरत कामगारों की सुध लेनी चहिये और आर्थिक पैकेज की शीघ्र घोषणा करनी चहिये ।लॉक डाऊन के बाद भी इन्हें पुना उद्योगों को चलाने के लिये आर्थिक पैकेज प्रदान कर के राहत देनी चहिये ।
  - सुरेन्द्र मिन्हास
 बिलासपुर - हिमाचल 
कोरोना वायरस  (कोविड 19) के कारण देश भर में 17 मई तक लॉकडाउन है। केन्द्र सरकार कोरोना महामारी के समय से ही जरूरत की  राशन, दूध, गैस, सब्जी की दुकानों को खोलने की छूट दे रखी है। इसी दौरान शराब, इलेक्ट्रॉनिक आदि की दुकानें भी खुल गई। जैमिनी अकादमी 
द्वारा पेश "आज की चर्चा " में सवाल उठाया गया सवाल है कि क्या सरकार से चाहिए छोटे उद्योगों को बड़ी राहत ? अभी लॉकडाउन में सभी तरह के उधोग धंधे बंद पड़े हैं। मालिक से लेकर मजदूर तक आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं। छोटे उधोगों में काम करने वाले मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी की बहुत ही बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है। उन्हें घर चलना मुश्किल हो गया है, क्योंकि काम बंद होने से उन मजदूरों को वेतन मिलना बंद हो गया है। इसके साथ ही छोटे उद्योग वालों को भी आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। उनकी भी अपनी जिम्मेदारियों व जरूरतों को पूरा करना है। इसके साथ ही बैंकों से लिए गए लोन का किश्त, सरकार को टैक्स देना भी जरूरी है। इस परिस्थिति में सरकार से छोटे उधोगों को बड़ी राहत मिलनी चाहिए ताकि वो आर्थिक संकट से उबर सके। वही दूसरी तरफ देश मे कोरोना के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। सिर्फ पांच महानगरों दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, चैन्नई, पुणे में 50 प्रतिशत कोरोना संक्रमण के मामले हैं। आईआईटी गुवाहाटी व सिंगापुर मेडिकल स्कूल  का विश्लेषण है कि अगले 30 दिन में डेढ़ से पांच लाख कोरोना से संक्रमित होंगे। ऐसे हालातों का सामना करने के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर लाना आवश्यक है। बड़े से लेकर छोटे उधोगों को सरकार से बड़ी राहत मिलनी चाहिए। 
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
लाॅकडाउन में उद्योग पूर्ण रूप से बन्द हैं जबकि किराया, बिजली का बिल, स्थायी कर्मचारियों का वेतन आदि के खर्चें उनके सामने यथावत हैं। लाॅकडाउन की समाप्ति के बाद भी बहुत समय तक व्यापार में अनिश्चितता बनी रहेगी।
भारत में कुटीर, लघु एवं मध्यम उद्योग देश की जीडीपी में बहुत बड़ा योगदान करते हैं परन्तु उनकी स्वयं की स्थिति ही यदि डांवाडोल रहेगी तो वे अर्थव्यवस्था में किस प्रकार सहयोग करेंगे?
यह स्पष्ट है कि कोरोना वायरस की वजह से उत्पन्न लाॅकडाउन की सबसे अधिक मार छोटे उद्योगों पर पड़ी है जबकि ये भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं जो बाजार की निरन्तरता बनाये रखने और बड़े पैमाने पर रोजगार का सृजन करते हैं।
इसलिए वर्तमान में यह आवश्यक है कि सरकार ब्याज दर में राहत, कम ब्याज दर पर ऋण की उपलब्धता, विक्रय शक्ति में वृद्धि हेतु प्रयास एवं टैक्स में राहत देने जैसे  तरीकों से छोटे उद्योगों की सहायता करे।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
     छोटे उद्योग ने ही योजनाओं को क्रियान्वित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं। जहां विशेष रोजगार की संभावना रहती हैं, निम्न वर्गों को राहत मिलती हैं। वर्तमान में सभी प्रकार के छोटे उद्योग बन्द हो गये हैं।
वहां से मजबूर अपने परिवार के साथ गंतव्य की ओर बढ़ने लगे हैं, जैसी सुविधाएं मिली निकल पड़े हैं, जिसका दूरगामी परिणाम भी देखने को मिल रहा हैं। सरकार को चाहिए छोटे उद्योग की सूची तैयार कर योजनाबद्ध तरीके से पहल करनी होगी ताकि समय पूर्व छोटे उद्योगों को बड़ी राहत मिल सके।
कई-कई छोटे उद्योग तो कर्जो के ऊपर कर्ज हैं और वर्तमान समय में लाँकडाऊन की कोई सीमाएं निर्धारित नहीं हैं, भविष्य में छोटे उद्योग महानगरों में खुलने की व्यवस्था नहीं हैं, छोटे उद्योग के मालिक अपना कर्जा दे या मजदूरों का वेतन, इन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ा रहा है , कच्चा माल रखा हुआ हैं,  बने बनाये माल धूल खा रहा, चिंता की लकीरें माथे पर झलक रही हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
बालाघाट - मध्यप्रदेश
बड़े उद्योगों से छोटे उद्योगों को अधिक राहत चाहिए।जी बिल्कुल चाहिए लेकिन अब ये चाहना भी बेईमानी ही होगा। उद्योग चाहे छोटे हो या बड़े अब राहत देने का समय नहीं है। इन्हें निश्चित रूप से कुछ देने योग्य समझा ही न जाय।कारण स्पष्ट है ये उद्योगपति लोग किसी मायने में बेइमानी में कम नहीं है।जब भी कोई आपदा आई हो गए शुरू हम लुट गए बर्बाद हो गए। सिर्फ घरयाली आंसू यह उन उद्योगों से जुड़े मजदूरों की दयनीय स्थिति को देखकर कह रहा हॅं‌। जिनके लिए ये श्रम वीर अपनी खून पसीना एक कर दिए। और जब विपत्ति आई तो उन्हीं मजदूरों को लात मारने में कोई कोर कसर न छोड़ी। हजारों लोग सड़कों पर आ गए। बेशक उद्योग धंधों से जुड़े लोग सरकार को टैक्स के रूप में मोटी रकम देता है। लेकिन उस मोटी रकम को कमाने में मजदूर वर्ग को अलग करना बेईमानी है। उद्योग से पहले मजदूरों को बचाइए तभी उद्योग बचेगा।जब मजदूर ही न होंगे तो उनके मशीनों को चलाएगा कौन? इस विकट परिस्थिति का सामना मैं भी कर रहा हूॅं‌। चूंकि मैं भी फैक्ट्री में काम करने वाला एक मजदूर ही हूॅं‌। यहां हरियाणा की सरकार किसी मजदूर को एक किलो आटा दिया हो तो बताइए जिनके यहां उनके राज्य को समृद्ध करने में मजदूरों ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। मजदूर तब भी मेहनत की खा रहे थे और अब भी खा रहे हैं। उद्योग धंधों के नाम पर सरकार बड़े बड़े धन्ना सेठों की हजारों करोड़ गबन करने के बाद माफ कर देती है। किया उन पैसों में सिर्फ मालिकों का योगदान है। जवाब है बिल्कुल नहीं फिर सरकारी मदद या छूट सिर्फ कम्पनी मालिकों को क्यों?
दरअसल आपके द्वारा पूछा गया यह सवाल ही फिजूल है। मैं मानता हूॅं‌ उद्योगों के दम पर देश तरक्की करता है। तो सबसे पहले कृषि उद्योग को मदद पहुंचाई जाए। आप लोहा प्लास्टिक से बने सामान को नहीं खा सकते।खाने के लिए सबसे जरूरी है।अनाज, और अनाज किसान उगाता है। देश में कितना उद्योग है जो देश का एक दिन का खाने का खर्च वहन कर सकता है। उद्योगपति दान में जितना देते हैं उससे अधिक सरकार से वसूल लेते हैं। किसान कर्जा लेकर खेती करता है और नुकसान होने पर फांसी लगा लेता है। जबकि देश का एक तिहाई लोग कृषि रोजगार पर ही आश्रित है। सरकार को उद्योग को बाद में सबसे पहले कृषि क्षेत्र पर ध्यान देना चाहिए। अन्न रहेंगे तो हजारों प्राकृतिक आपदा झेली जा सकती है। लेखक का यह निजी विचार है किसी को सहमत होना अनिवार्य नहीं।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुडगांव - हरियाणा
24 मार्च, 2020. रात को 8 बजे पीएम मोदी पूरे देश को लॉकडाउन करने की घोषणा करते उससे पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. ऐलान किया कि अब किसी भी एटीएम से पैसे निकालने पर फीस नहीं देनी होगी. और बैंक अकाउंट में मिनिमम अमाउंट रखने की कंडीशन को भी हटा दिया गया है. इसके अलावा वित्त मंत्री ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों से जुड़े लोगों के लिए भी एक राहत भरा ऐलान किया. वित्त मंत्री ने अब कर्ज न चुका पाने की स्थिति में दिवालिया घोषित करने की सीमा को बढ़ाकर एक करोड़ कर दिया गया है. अब तक ये एक लाख रुपए था.
वित्त मंत्रालय के इस फैसले का सीधा फायदा छोटे उद्योगों से जुड़े लोगों को होगा. क्योंकि कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन का सबसे ज्यादा प्रभाव इन्हीं पर पड़ा है. लॉकडाउन की वजह से छोटी कंपनियों पर दिवालिया होने का खतरा मंडराने लगा है. वित्त मंत्रालय ने ये भी कहा कि ये स्थिति अगर 30 अप्रैल तक बनी रहती है तो फिर IBC 2016 की धारा 7, 9 और 10 को 6 महीने तक के लिए निलंबित करने पर विचार किया जा सकता है.
आज लॉकडाउन 2 खत्म हो चुका है और लॉकडाउन 3 शुरु हो चुका है. अलग-अलग सेक्टर में अलग-अलग तरह की रियायतें दी जा रही हैं. सरकार ने आज से इंडस्ट्री और आर्थिक गतिविधियों को छूट की सीमा बढ़ा दी है. उद्योग जगत ने मांग की है कि सरकार को उद्योग जगत के लिए आर्थिक राहत का पैकेज लाना चाहिए.
सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने वाले, अर्थव्यवस्था की रीढ़ छोटे और मझोले उद्योग पूंजी और कर्ज के अभाव, खपत की कमी और सस्ते आयात से तबाही केकगार पर लेकिन उबारने के सरकारी प्रयास थोड़े.
कुटीर, लघु और मझोले उद्योगों की जैसे रीढ़ ही टूटती जा रही है. कहीं कारखाने बंद होने का सिलसिला जारी है तो कहीं खपत घटने से उत्पादन सिकुड़ रहा है और रोजगार छिन रहे हैं. देश भर में फैले हस्तकला और पारंपरिक छोटे उद्योगों के लिए मशहूर इलाकों में सन्नाटा पसरने लगा है. उत्तर प्रदेश के मेरठ, सहारनपुर, अलीगढ़, आगरा, बुलंदशहर, खुर्जा, बनारस, मिर्जापुर जैसे कभी स्थापित केंद्रों में कारीगरों के दिन-रात फाकों में गुजरने लगे हैं. संकट भारी है और उम्मीदें धुंधली नजर आ रही हैं.
पहले नोट बंदी की मार फिर जी.एस .टी .की मार से ऊपर भी न पाए थे की लाकडाऊन की मार ने तो मार ही डाला ...
सरकार क्या कदम उठाती है देखना है। 
राहत तो देना ही पड़ेगा पर कैसे यहविचार करना है 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
इस समय ने उद्योग धंधों की कायापलट कर दी है । जो आने वाले समय अर्थात लोकडाउन खुलने के बाद पता चलेगी । दरअसल बिहार, बंगाल , उड़ीसा आदि कई राज्यो के एक बहुसंख्यक मजदूर अन्य राज्यो की फैक्टरियों , कंपनियों  व कल कारखानों में काम कर रहे थे । जो  कोरोना महामारी के चलते अपने राज्यो में वापस चले गए । इनकी जो दुर्गति सरकार की अनदेखी व लापरवाही की वजह से हुई है , उसने इन्हें हिलाकर रख दिया है । जिससे शायद ही सालो तक ये मजदूर किसी अन्य राज्यो में मजदूरी के लिए जाए । ऐसे में पहले ही ठप पड़े उद्योग धंधो की हालत खस्ता थी कि आगे भी न  तो इनके वैसे ही चलने की उम्मीद है और न ही मजदूर होने के कारण इनका चलना इतना आसान प्रतीत हो रहा है । वही ब्याज की रकम लेकर कर्ज में डूबे उद्योग धंधों को उभारने के लिए सरकार को आगे आने की जरूरत है । वैसे भी आज मजदूर हो या व्यापारी हर कोई सरकार से ही आस लगाए बैठा है । वैसे भी डूबते हुए व्यापार उद्योग धंधों व व्यापारियों को उभारने सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने वाले, अर्थव्यवस्था की रीढ़ छोटे और मझोले उद्योग पूंजी और कर्ज के अभाव, खपत की कमी और सस्ते आयात से तबाही के कगार पर हैं लेकिन उन्हें उबारने के सरकारी भी प्रयास जारी हैं। देश में मैन्युफैक्चरिंग, कपड़ा, चमड़ा, हीरे-आभूषण और वाहन—ये पांच गहन श्रम वाले क्षेत्र हैं, जहां सबसे ज्यादा रोजगार पैदा होता है और उससे लाखों छोटे उद्यमियों की शृंखला जुड़ी होती है. इन क्षेत्रों में कर्ज का मर्ज पुराना है और खपत घटने से गहराती मंदी नई चुनौती है. छोटे और लघु उद्यम से जुड़े हुनर और उत्पाद बाजार की तलाश में हैं और सस्ते आयात और बदलते फैशन के सामने पारंपरिक उद्योग अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं.लॉकडाऊन के तीसरे चरण के तहत सरकार ने हर जोन में उद्योग धंधे खोलने की ज्यादा छूट दी है. लेकिन 40 दिन से बंद पड़े उद्योगों-फैक्टरियों को खोलने में छोटे उद्योगों को कई तरह के संकट से जूझना पड़ रहा है. अब सरकार उनके लिए एक विशेष राहत पैकेज तैयार कर रही है जिससे  उनका कारोबार सही से खुल सके. लॉकडाऊन के असर से छोटे उद्योगों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी है. अब उन्हें COVID-19 संकट से उबारने के लिए राहत भरी कुछ व्यवस्था तो अवश्य ही देनी होगी।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तरप्रदेश
राहत ऐसा शब्द हैं जीसे हर कोई लेना चाहता हैं। छोटे उघोगों को भी कोरोना वायरस के चलते लाॅकडाउन का खामियाजा भुगतना ही होगा साथ साथ जो काम की लिंक टुट चुकी हैं उसे पाने में भी उनहें वक्त लगेगा वैसे भी छोटे उघोग बमुश्किल चलते हैं उपर से लाॅकडाउन ने उनकी कमर ही तोड़ कर रख दी हैं। सरकार को अब इन छोटे उघोगों को भी प्रयाप्त सुविधा देना चाहिये उनके उघोग को बड़ाने के प्रयास होने चाहिये उनहे बराबर काम मिल सके इसके भी प्रयास होने चाहिये सरकार को याद रखना चाहिये की इन छोटे उघोगो में देश के करोड़ो मजदूर मजदूरी करते हैं जब यह उघोग चलेंगे तो मजदूर का घर सम्भलेगा अतः छोटे उघोगों को भी बड़ी राहत सरकार को देना चाहियें।
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्यप्रदेश
आज राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ श्री विजेंद्र जैमिनी जी का भी बहुत-बहुत धन्यवाद कि आज राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर ही राष्ट्रीय समस्या पर परिचर्चा में विचार आमंत्रित किए ।
कोरोना संक्रमण काल में यह महा विश्व युद्ध मिलकर लड़ना चाहिए न कि एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप या टकटकी लगाए रखना ।
उद्योगों को भी सरकार से राहत चाहिए क्योंकि अब उनके पास न तो श्रम है और न  ही धन ।
      उत्पादन कैसे करें  ?
ऐसे में केंद्र सरकार और राज्य सरकार को उद्योग के लिए आपातकालीन पैकेज और उद्योग के मालिकों को अपने श्रमिकों के लिए आपातकालीन पैकेज की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे उद्योगों के मालिक व कामगारों की  डूबती   नैया    को  किनारा मिल सके ।
उद्योगों के श्रमिकों का भी पलायन रुक सके।
या 
श्रमिकों के जाने से कहीं उद्योग ही बंद ना हो जाए।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने यहां पड़े बंद उद्योगों को फिर से चलाने की मुहिम जारी की है।
यूपी आइए  -उद्योग लगाइए
आखिरी 100 दिनों  -में N O C पाइए।
12 से 20 मई तक विशाल  लोन मेला लगाने की योजना है तथा अपने यहां कम लागत से छोटे उद्योग लगाने  N O C की जारी की है।
जी बिल्कुल छोटे उद्योगों को सरकार से राहत अवश्य चाहिए। और यह कदम सराहनीय है।
       - रंजना हरित 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
लाॅक डाउन के कारण हमारे देश में आर्थिक विकास बुरी तरह प्रभावित  हुआ है । सबसे ज्यादा असर छोटे उद्योगों पर पड़ा है यह भी कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में छोटे उद्योगों की कमर टूटी हुई है ।इन उद्योगों से जुड़े लगभग  1.2 करोड़ लोगों के रोजगार पर संकट उत्पन्न हो गया है। देशव्यापी बंद से अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है यह अनुमान किया जाता  है कि 7 से 8 लाख करोड़ रुपए का इस दौरान नुकसान हुआ है।सबसे ज्यादा प्रभाव छोटे उद्योगों पर पड़ा है । इन सभी स्थितियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि छोटे उद्योगों को बचाए रखने के लिए तुरंत ऑक्सीजन की जरूरत है यदि उन्हें समय पर ऑक्सीजन नहीं दी गई तो उनके लिए गंभीर स्थिति पैदा हो जाएगी ।धन्यवाद।
 - अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया - मध्य प्रदेश 
सबसे ज़्यादा प्रभावित तो लघु उद्योग ही हुऐ है , 
छोटे कारख़ाने मृत्यु शैया पर लेटे है , अब दम निकले तब दम निकले वाला हाल है , कारीगरों का जीवन अंधकारमय है , क्या होगा कहाँ जायेगे कैसे जीयेगे , 
कुछ भी स्पस्ट नहीं है ...
पेट की भूख कुछ समझती नहीं है ये लाकडाऊन  को , उसको तो खाना चाहिए नहीं तो उपद्रव मचाने लगती है , न मिलने पर दिमाक कसरत करवाता है और शुरुवात लुट पाट से होना है । शुरुवात और फिर धीरे धीरे यह मजबूरी पेट भरने की आदत में बदल जाती है । समाज को ये दुष्प्रभाव बहुत  कष्ट पहुँचाते है । केंद्र सरकार जल्द ही उद्योग जगत के लिए 2.5 लाख करोड़ रुपये का एक और राहत पैकेज देने का ऐलान कर सकती है। राहत पैकेज के तौर पर जीएसटी में रियायत के साथ-साथ छोटे कारोबारियों को ब्याज मुक्त कर्ज देने पर विचार हो रहा है। ऐसे उद्योगों पर जोर रहेगा जो बड़े पैमाने पर रोजगार देते हैं। सूत्रों के जरिए मिली जानकारी के मुताबिक लॉकडाउन खत्म होने से पहले आने वाले इस पैकेज में सरकार मैन्युफैक्चरिंग, एविएशन और एमएसएमई सेक्टर को टैक्स छूट और आसान ब्याज पर सशर्त कर्ज जैसे ऐलान कर सकती है। सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि किसी भी तरह से रोजगार पर संकट न पैदा हो।
राज्य और केंद्र के बीच तालमेल बढ़ाने की भी अपील की गई है ताकि लागू किए जाने वाले नियम कानून प्रभावी ढंग से काम कर सकें। आयकर रिटर्न को देखते हुए 500 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाले उद्योग जगत को सशर्त ब्याजमुक्त कर्ज देने की अपील की गई है। इसका लाभ लेने वालों के लिए शर्त ये होगी कि कारोबारी अपने कर्मचारियों को एक साल तक निकाल नहीं सकेंगे।
सरकार को बताया गया है कि 53 फीसदी भारतीय कारोबार में कोरोना महामारी के दौर में शुरुआती समय में ही बुरा असर पड़ना शुरू हो गया था। फिक्की के ताजा सर्वे में बताया गया है कि कंपनियों की ऑर्डर बुक में 73 फीसदी तक की गिरावट दिखने की आशंका है। वहीं कैशफ्लो 81 फीसदी तक घटने के संकेत मिल रहे हैं। सरकार से अगले छह माह के लिए जीएसटी समेत सभी तरह के टैक्स टालने की भी सिफारिश की गई है। मांग ये भी की गई है कि सरकारी विभागों में फंसी उद्योग की राशि को तुरंत देने का भी प्रावधान हो ताकि इस संकट के समय काम आ सके।
पिछले महीने सरकार ने देश के गरीब लोगों को राहत देने के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपये का पैकेज दिया था. कोरोना के कहर से देश की इकोनॉमी को बचाने के लिए सरकार अब छोटे और मझोले उद्यमों के लिए 1 लाख करोड़ रुपये का पैकेज देने की तैयारी कर रही है. उद्योग चैम्बर्स इस बात का दबाव डाल रहे हैं कि कोरोना से अगर उद्योग जगत को बचाना है तो सरकार को जल्द से जल्द इसके लिए राहत पैकेज का ऐलान करना चाहिए.
बहुत से उद्योगपतियों के सामने कच्चा माल लाने और बहुत के सामने तैयार हुए माल को बेचना समस्या बनी हुई है। कई तरह का माल दूसरे राज्यों से आता है। ऐसी अनेक व्यवहारिक दिक्कतें हैं। इन्हीं समस्याओं की वजह से अभी उद्योग धंधों को पटरी पर आने में वक्त लगेगा। अब उद्योगपतियों की नजरें 17 मई पर टिकी हुई हैं। वह उम्मीद कर रहे हैं कि समूचे देश में लॉकडाउन खुल जाएगा, तभी उद्योग सुचारू रूप से चल सकेंगे। उद्योगों की पूरी सप्लाई चेन खुलनी चाहिए। छोटी से लेकर बड़ी फैक्ट्रियां चलनी चाहिए। माल कहां से आएगा और तैयार माल कैसे बेचा जाएगा, इसकी पूरी व्यवस्था होनी चाहिए। अभी तो मार्केट ही नहीं खुली है, हार्डवेयर का सामान कहां से लाएंगे। इस तरह की काफी दिक्कतें आ रही हैं, जिनका समाधान जल्द होना चाहिए।
देखो लाकडाऊन के बाद सरकार सच्च में मददत करती है 
या वादे झूठे साबित होते है 
कुछ भी हो परिस्थितियाँ बहुत निकट है इनका सामना करना तो करना है धैर्य व संयम रखकर 
सरकार से गुहार लगाकर जरुरत 
पडी तो आंदोलन कर के लाखों लोगों की ज़िंदगी का सवाल है । सब चुप तो नहीं रह सकते यह लड़ाई मिलकर एकता के साथ ही लड़ना है ....
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बेशक छोटे उद्योगों को बडी राहत सरकार द्वारा मिलना ही चाहिए । क्योंकि ये सभी आर्थिक रूप से बहुत टूट चुके है लगभग तीन माह से इनका काम बंद है ऐसे में इनकी कमाई का जरिया खत्म हो गया है। उद्योगों में कार्य न होने पर भी मेंटीनेंस रखरखाव आदि पर बहुत खर्च होता ही रहता है जब नया उत्पादन नहीं होगा तो बिक्री कैसे होगी न ही कोई आय होगी ऐसे इनके मालिक अपनी पूर्व बचत से कब तब और कैसे वर्तमान खर्च चलाते रहेंगे।
ऐसे में सरकार को उनके हितों को देखते हुए वर्तमान कोरोनावायरस के संकट की इस घड़ी में उन्हें आर्थिक मदद करनी चाहिए उन पर टैक्स आदि पर छूट देकर कम से कम छः माह तक पूरा माफ कर देना चाहिए। 
उन्हें पुनः स्थापित करने और अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए बैंकों से बिना ब्याज लिए  कुछ सयम के लिए कर्ज भी दे देना चाहिए।
उन्हें कच्चा माल में भी समय पर उपलब्ध कराने के लिए प्रयत्न करना चाहिए तथा इन कच्चा माल की कीमतों पर वृद्धि न करते हुए इसमें भी कुछ रियायत दी जानी चाहिए।
सरकार को इन पर खाम ध्यान देने की जरूरत है अन्यथा इनसे जुड़े हुए देश के लाखों लोगों का भविष्य एवं जीवन अंधकारमय हो जायेगा और देश में भुखमरी बढ़ जायेगी क्योंकि वास्तव में ये छोटे-छोटे उद्योग ही देश की रीढ़ है । गरीबों की जीविका का साधन है। उनके परिवार का सहारा है।
- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
टीकमगढ़ - मध्यप्रदेश
भारत के आर्थिक विकास में लघु उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका है। रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली वस्तुएं इन उद्योगों पर आधारित हैं। करोड़ों श्रमिकों का जीवन इन छोटे उद्योगों के उत्पादन से जुड़ा है; जैसे-- कपड़ा उद्योग -सूती- रेशमी वस्त्र बनाना। जूते, चप्पल, चमड़े का बैग बनाना। टोकरी बनाना। एलमुनियम से बनी सामग्री बनाना। कूलर, स्टेबलाइजर, साइकिलें, चूड़ी, घड़ियां बनाना। रंग -रोगन, साबुन, तेल ,खेलकूद के सामान ,रेफ्रिजरेटर, उर्वरक, रसायन, दवाएं ,रबड़ उद्योग इत्यादि।
 मुख्यत: मुंबई। हुगली प्रदेश। बेंगलुरु ।तमिलनाडु। विशाखापट्टनम। गुड़गांव- दिल्ली- मेरठ।तिरुअनंतपुरम मुख्य रूप से यह उद्योगी प्रदेश है; जहां सब जगह करोड़ों श्रमिक काम करते हैं।
          कोरोना में लॉक डाउन  के चलते 40,45 दिनों में उत्पादन पूरी तरह ठप हो गया है । आर्थिक व्यवस्था चरमराने लगी है ।  मजदूरों की मजबूरी, खाली पेट रहना, अपनों से दूर रहकर ही मर जाना; ऐसी विकट विषम परिस्थितियों में सैकड़ों लोग हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करके असहनीय कष्ट झेलते हुए घर- वापसी के लिए देखे जा रहे हैं। फिर सूझबूझ से यही नारा दिया गया- कि जान है, जहान भी है।
         अतः अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने प्रभावित क्षेत्रों को लॉक डाउन में ही जोन वाइज बांटकर धीरे-धीरे उद्योगों को संचालित करने का निर्णय लिया है; क्योंकि यह छोटे उद्योग सामान्यता 10 से 15 लाख, अधिकतम एक करोड़ की लागत में लग जाते हैं। ऐसे में कारोबारियों के लिए बड़े पैकेज का ऐलान भी हो सकता है तथा बैंक से इनके लिए बिना ब्याज के कर्ज की सुविधाएं भी दी जायेंगी ।  इसके साथ- साथ यह भी आवश्यक  होना चाहिए  कि स्थानीय स्तर पर श्रमिक को निश्चित समयावधि में सवैतनिक, सशर्त ,अनुबंध के साथ रोजगार की व्यवस्था हो जिससे हर श्रमिक  को अपने श्रम का उचित प्रतिफल  मिल सके ।यही कारोबारियों एवं श्रमिक के लिए सबसे बड़ी राहत होगी।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
      सरकार इस हालत में कहां है कि वह छोटे उद्योगों और उद्यमियों को राहत दे। क्योंकि वह स्वयं राहत की अभिलाषा में हाथ फैला रही है। वह चाहती है कि जन साधारण उसकी इस विकट परिस्थिति में अधिक से अधिक सहायता करे। किन्तु जन साधारण यह न पूछे कि मात्र 45-60 दिनों में खजाने रिक्त क्यों और कैसे हो गये हैं? जिसका प्रमाण यह है कि सर्वप्रथम सरकार ने बच्चों के गुल्लक के पैसे भी सहर्ष स्वीकार किए और उसके तुरन्त बाद शराब बेचने चल पड़ी।
      सरकार ने कोरोना के चलते आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए अपने कर्मचारियों के महंगाई भत्ते पर भी ढेड़ वर्ष तक रोक लगा दी है। जबकि वही कर्मचारी अपनी जान पर खेल कर कोरोना से युद्ध कर रहे हैं।
      इस परीक्षा की घड़ी में राष्ट्र के कर्त्तव्यनिष्ठ कर्मठ विधायक और सांसद कितने सफल हुए हैं? इस पर गम्भीर प्रश्नों की प्रसवपीड़ा अभी बाकी है। जिस पर राष्ट्रहित में राष्ट्रीय मंथन अत्यंत आवश्यक एवं अनिवार्य है।
      क्योंकि भारत देश अनेक वनस्पतियों, खनिज पदार्थों, हीरे मोतियों की खानों इत्यादि से भरा पड़ा है। इसके बावजूद मात्र 45 या 60 दिनों में देश का खजाना खत्म होने की बात पच नहीं रही। क्योंकि प्राकृतिक आपदा एक है और प्राकृतिक धरोहरें अनेक हैं।   
      अतः इन प्राकृतिक धरोहरों पर दीमक कहां लगी है? जब तक ऐसे प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल जाते, तब तक केन्द्र एवं राज्य सरकारों से किसी भी चुनौती में राहत की आशा करना निराधार है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
चीन देश की तरक्की का मुख्य कारण उसने छोटे-छोटे उद्यमियों को प्रमुखता से फैलाया ।  वहां वे सभी वस्तुएं बनने लगी जो घरेलू व वैश्विक स्तर पर उपयोगी हो गई ।  वैसे भारत में भी बड़ी फैक्ट्रियों के स्थान पर लघु एवं मध्यम कुटीर उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है । 
छोटे-छोटे उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सरकार द्वारा कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है । जैसे 
१- क्रेडिट गारंटी निवेश योजना जो केवल भारतीयों द्वारा देश में ही इस्तेमाल किया जा सकता है।
२- सीजीएमएसएमई पूंजी योजन जिसका पूरा नाम क्रेडिट गारंटी सूक्ष्म एवं लघु उद्योग फण्ड योजना है । जो केवल भारत में बन रहे उद्योगों को स्थापित करने के लिए क्रेडिट प्रदान करती है ।
३-इस योजना में नए व पुराने उद्योगों को शामिल किया गया है ।  इसके लिए एक ट्रस्ट गठन किया गया है जिसका नाम है- सीजीएफटी (क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट) इसे चलाने के लिए डेवलपमेंट बैंक आफ इंडिया फार स्माल इंडस्ट्रीज (एस आई डी बी आई) को कारभार सौंपा है ।
1- इनके द्वारा छोटे स्तर पर जैविक खेती के लिए छूट- इस स्कीम में जैविक खाद, जैव उर्वरक एवं जैविक खेती आदि के लिए सब्सिडी प्रदान की जाती है। जो 50 प्रतिशत के लगभग होती है।
2- वस्त्र उद्योग तकनीकी अपग्रेडिंग फण्ड योजना- इसमें सरकार जूट उद्योग को भी सहायता प्रदान करती है ।  साथ ही डिजाइन एवं वस्त्र संबंधित उद्योगों को भी सब्सिडी देने का प्रावधान है ।
3- खाद्य उद्योगों जिसमें मुर्गीपालन, दूध, मांस, कृषि भोजन, मछली पालन एवं फल समेत सभी उद्योगों को शामिल किया गया है। प्लांट व मशीनरी में 25 प्रतिशत राहत का प्रावधान है ।
इसी प्रकार कईं छोटे-छोटे उद्यमियों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है । साथ ही प्रशिक्षण एवं उपकरण के लिए भी सहायता प्रदान की जाती है । 
इन सबके बावजूद भी आज हमारे देश में इन सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए बहुत सारी खानापूर्ति करना पड़ती है । 
आज देश बहुत विकट परिस्थितियों से गुजर रहा है । कोरोना जैसी महामारी ने हमारे देश की तरक्की को रोक दिया है ।  ऐसे में सरकार उक्त एजेंसियों के माध्यम से देश में चल रहे लघु उद्योग को अनुदान प्रदान करे व जो आर्थिक विषमता के कारण बन्द हो चुके हैं उन्हें पुनः चालू करने के लिए क्रेडिट उपलब्ध करावे तो वे रोजगार के साथ साथ पलायन को भी रोकने में कारगर साबित हो सकते है ।
- मनोज सेवलकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
लघु उद्योग वाले एक तो वैश्विक महामारी का आघात दूसरे लाक डाउन की चोट, दोनों ने इंसान की रीढ़ की हड्डियों को तोड़ डाला है। पुनः आत्मनिर्भर होने के लिएं तो स्वयं और सरकार के मदद के फलस्वरूप ही खड़े हो सकते हैं।
राहत देने और लेने के कितने तरीके है जिसमें समय की पाबंदी आर्थिक सहायता की पाबंदी , सरकारी योजनाओं के तहत कार्य करना इत्यादि
अब क्षेत्र उम्र कुशलता वातावरण के पृष्ठभूमि में व्यक्ति को अपने आत्मीय गुणों के आधार पर सरकार से कागजी खाते के साथ आवेदन करना पड़ेगा और सरकार भी बहुत ही संवेदनशील है इसलिए हाथ अवश्य बढ़ाएगी।
मनोबल को मजबूत बना कर रखना है । वैसे भी छोटे उद्योगों वालें का व्यवहार इरादा बहुत अच्छा और मजबूत होता है । चूंकि उन्हें परिश्रम करना आता है ।उनके पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं होता है ।
हौसलों को यह न बताना तुम क्या खोये हो तुम्हें क्या पाना है यह अवश्य बताना।
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
व्यवसाय कोई भी हो, इस समय परेशान सभी हैं। लॉकडाउन की वजह से बिखराव-सा आ गया है।अनिश्चितता और नीरसता से भरा माहौल है। हरेक व्यक्ति इतना परेशान और हैरान है। इतना तंगहाल है कि उसे ग्राहक के रूप में देखना और पाना मुश्किल है। आज की स्थिति में वह शौक पूरे नहीं करना चाहता बल्कि जो अत्यंत आवश्यक हैं उनकी ही पूर्त्ति करने को प्राथमिकता दे रहा है। कहना गलत न होगा कि व्यवसाय के दोनों पक्ष मालिक और ग्राहक दोनों की वर्तमान स्थिति अच्छी नहीं है। अतः सरकार को चाहिए कि वह कुछ बड़ी राहत न देने पाने में भले ही उदारता न दिखला पाए परंतु वह अनावश्यक परेशान भी न करे । स्थानीय स्तर पर संबंधित व्यवसायीयों एवं जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक आयोजित कर उनकी समस्याओं और सुझावों पर विमर्श कर समुचित व्यवस्था और उचित  निराकरण करे। साथ ही सरकार को छोटे उद्योगों को राहत देते समय इस बात का भी गंभीरतापूर्वक ध्यान रखना होगा कि उनके अधीनस्थ कामगारों का शोषण न होने पाए और ग्राहकों के साथ भी लूट-खसोट न हो।
  - नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कोरोना काल में बंद हुए छोटे उद्योगों की स्थिति बहुत ही विचलित करने वाली है। अधिकांश कंपनियाँ अप्रैल की तनख्वाह देने की स्थिति में नहीं है। जी एस टी के कारण पहले ही कई उद्योग मंदी में चल रहे थे। अब कई महीनों से कारखाने बंद होने के कारण बंद होने के कगार पर है। रेड जोन होने के कारण वह अपना उद्योग शुरू भी नहीं कर सकते हैं।
                 लघु उद्योग भारती की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक विडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से की गई। जिसमें कर्मचारियों के सैलरी का मुद्दा उठाया गया इसमें निर्णय लिया गया कि उद्योगों को बचाने के लिए उद्यमी, सरकार और श्रमिक तीनों की एक तिहाई हिस्सेदारी होनी चाहिए। जिससे उद्योगों पर दबाव न पड़े। अध्यक्ष ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि लाॅक डाउन को लीव मानते हुए पी एफ फंड से भुगतान करने का मार्ग सुझाया। बिजली चार्ज में भी कटौती की मांग की। कर्मचारियों के बढ़े हुए डी ए को स्थगित करने की मांग की। सरकारी विभागों से मिलने वाले अनुदान को जल्द से जल्द मुहैया कराने की मांग की। बैंक अकाउंट में मिनिमम अमाउंट रखने की कंडीशन को हटाने की मांग की। कर्ज न चुका पाने की स्थिति में दिवालिया घोषित करने को एक लाख से हटाकर एक करोड़ कर दिया गया। IBC 2016 की धारा 7,9और 10 को छ:महीने के लिए निलंबित कर दिया गया है। इस तरह से छोटे उद्योगों को बंद होने से बचाने की पूरी कोशिश जारी है, और आगे भी इस पर ध्यान देने की जरूरत है। 
                       -  कल्याणी झा 
                         राँची - झारखंड
छोटे - मोटे उद्योग धंधे बंद होने की कगार पर खड़े है। लोकडाउन में उनका सब काम बंद पड़ा है। तो वह मजदूरों को तंख्वा कैसे देंगे? सरकार की अोर से उन्हें कोई छूट भी नहीं मिली उन्हें बिजली का बिल, पानी का खर्चा तो देना ही पड़ेगा। लाखो मजदूरों का खर्चा वे कैसे उठा सकते है।
उनके उद्योग धंधे कब खुलेंगे और कैसे चलेंगे वह निश्चित नहीं है, वे मजदूर भी इधर उधर ही गए है। उन बिचारो ने इतनी तकलीफ सही है कि वे अब अपने गांव में ही कुछ कर लेंगे।
सरकार को चाहिए कि कुछ राहत दे जिससेवे अपने मजदूरों को वापस बुला सके या जो मजदूर उनके पास रुक गए हैं उनके लिए उचित प्रबंध कर सकें खाने-पीने और रहने का।अगर छोटे-मोटे उद्योग धंधे बंद हो गए तो हमें रोज के अपनी जरूरतों के सामान के लिए बहुत परेशानी हो जाएगी क्योंकि छोटे ही धंधों के कारण ही हमारे रोज के काम चलते हैं मजदूर तो देश की नींव है और उद्योग धंधे के सहारे ही सबका विकास होता है। उदाहरण के लिए जैसे चूड़ियां प्लास्टिक के सामान डिब्बे पहले कपड़े पहने के शर्ट आदि चीजों का खाने पीने की चीजें बहुत तरीके के छोटे उद्योग जानते हैं जैसे लोग अचार भरी पापड़ मसाले आदि काम करते हैं जिससे उनकी तो जीविका चलती है और ग्राहकों का भी भला होता है। इस महामारी में तो देश की काया ही बदल दी है आगे क्या होता है इस बारे में किसी को भी कुछ कह पाना असंभव है आर्थिक स्थिति में तो हम बहुत पीछे चले जाएंगे।
हम सभी को मिलकर सहयोग करना चाहिए यथासंभव प्रयास सभी को करना चाहिए।
जान है तो जहान है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्यप्रदेश
उद्योग छोटे हो या बड़े सभी सरकार की गाइडलाइन में कार्य करते हैं और सरकार उनका पूरी तरह से ध्यान रखती है जब भी कोई परेशानी होती है तो सरकार नियमों को बनाती है और आपदा प्रबंधन करती है । छोटे उद्योगों को बड़ी राहत की उम्मीद क्यों ? अगर छोटे उद्योगों को बड़ी राहत की ज़रूरत है तो बड़े उद्योगों को और बड़ी राहत देनी चाहिए क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में दोनों को परेशानी का अनुपात तो एक ही है इसलिए दोनो को राहत का अनुपात भी समान ही होना चाहिए । सरकार ने यही किया भी है सेल टैक्स, इनकम टैक्स, क़र्ज़ चुकाने के लिए समयावधि बढ़ाकर राहत दी है और ये सही भी है ।
    उद्योग छोटे हो या बड़े सभी को निःसंदेह कोरोना काल में लॉस हुआ है और सभी को नयी योजनाओं के साथ पुनः शुरुआत करनी होगी इसमें भविष्य को ध्यान में रखते हुए तैयारी करनी चाहिए । सरकार से किसी भी उद्योग विशेष को राहत देने का प्रावधान कभी नही होता है और होना भी नहीं चाहिए ।
ये आपदा प्रबंधन की कुशलता का इम्तिहान है छोटे उद्योगों को बड़े पैमाने पर जाने के लिए ये इम्तिहान मुश्किल ज़रूर है पर नामुमकिन बिल्कुल नही ।
भविष्य बदल रहा है चुनौती सभी के सामने है सरकार या किसी के मुँह ताकने का समय नही है असंभव को संभव कर दिखाने का समय है प्रयास करें सफलतापूर्वक आगे बढ़ें ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
वर्तमान स्थिति में छोटे उद्योगों का भविष्य नजर आ रहा है। स्थानीय स्तर पर चलने वाले उद्योग धंधों को सरकार राहत दे। उनको चलाने की नियमावली में आवश्यक संशोधन कर, ऐसे प्रावधान किए जाएं, जिससे लघु उद्योग चलाने वालों को परेशानी का अनुभव ना हो ।
लघु उद्योग चलने पर जहां एक और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा,वही उस क्षेत्र विशेष की होने वाली उपज और संसाधनों का भी सदुपयोग हो सकेगा।उदाहरण के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश को ले तो यह क्षेत्र गन्ना बेल्ट कहलाता है । यहां की प्रमुख फसल गन्ना और प्रमुख उद्योग खांडसारी है। पिछले कुछ वर्षों में स्थानीय स्तर पर चलने वाले क्रेशर,कोल्हू उद्योग सरकारी नीति के कारण बंदी के कगार पर पहुंच गए और बंद हो गए। एक समय जहां पर सैकड़ों पावर कोल्हू और दर्जनों क्रेशर हुआ करते थे। अब उंगलियों पर गिनने लायक भी नहीं चल रहे। इसका कारण सरकारी नीतियां ही रहीं। व्यापारियों ने उद्योग बंद कर दिए और अन्य काम शुरू कर लिए। लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता है तो खुशहाली आएगी।सरकार छोटे उद्योगों को भी समय की यही मांग है।
- डॉ.अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
छोटे उद्योग को नोटबंदी और जीएसटी से पहले ही  जबरदस्त झटका लगा था। जीएसटी की मार से  उबर भी नहीं पाए थे कि लॉकडाउन ने इनका कमर तोड़ दिया। इसलिए बेशक सरकार को चाहिए कि छोटे उद्योगों को आर्थिक पैकेज प्रदान करे ।   वर्तमान परिस्थिति में छोटे उद्योगों की सप्लाई चेन चरमरा गई है। छोटे उद्योग अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहलाते हैं क्योंकि इनके द्वारा सरकार को अच्छा खासा राजस्व प्राप्त होता है और सबसे अधिक रोजगार भी पैदा करने की क्षमता रखता है। छोटे उद्योग पूंजी की कमी और खपत ना होने की स्थिति में कमजोर पड़ते जा रहे हैं। कुटीर, लघु और मझोले उद्योगों की जैसे रीढ़ हीं टूटती जा रही है। 
     छोटे उद्योग सरकार से बड़े राहत पैकेज की उम्मीद लगाए बैठे हैं। कई कारखाने बंद हो चुके हैं। खपत घटने से उत्पादन सिकुड़ रहा है और रोजगार छीन रहे हैं।
   देशभर में फैले हस्तकला और पारंपरिक छोटे उद्योग बदहाली के कगार पर हैं।  सरकारी बैंक भी इन्हें लोन देने से कतराते हैं। पैसे डूबने के डर से इन्हें प्राथमिकता नहीं देते। 
    देश में मैन्युफैक्चरिंग, कपड़ा, चमड़ा, हीरे आभूषण और वाहन  --ये से भी 5 श्रम वाले क्षेत्र हैं जहां सबसे ज्यादा रोजगार पैदा होता है। ये सभी छोटे उद्योग उचित बाजार की तलाश में हैं जिसमें सरकार से राहत की उम्मीद रखते हैं।
 ऐसे समय में सरकार जब स्वरोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए नई स्कीम लॉन्च कर रही हैं, छोटे उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए कर्ज से जुड़ी विभिन्न स्कीमें चला रही हैं फिर भी समस्या जस की तस है।
   नि:संदेह हमारा कहना है कि छोटे उद्योग रोजगार ही नहीं अर्थव्यवस्था के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर  MSME अर्थात सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग को वित्तीय समेत दूसरे तरह के मदद जल्द से जल्द करने की आवश्यकता है।
 देशहित में आर्थिक प्रोत्साहन देकर सरकार उनका मनोबल बढ़ाएं ताकि लोगों को भी अधिक से अधिक रोजगार मिले और हमारा देश आर्थिक रूप से सुदृढ़ और मजबूत बने।
                             - सुनीता रानी राठौर
                             ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
आज लॉक डाउन में हमारे आर्थिक, सामाजिक ,औद्योगिक ,मुसीबत के साथ हमारी जीवन की जो डावाडोल नैया है उसमें प्रथम तो हमें सामंजस्य और संतुलन बनाना जरूरी है क्योंकि फिलहाल वायरस का कोई समाधान नहीं है जब तक इसकी वैक्सीन तैयार नहीं  होती! 
प्रश्न यह है कि क्या छोटे उद्योगों को सरकार से बड़ी राहत चाहिए ?
अवश्य चाहिए क्योंकि जहां प्रजा और राज्य में तकलीफ आती है तो वह राजा से ही अपेक्षा करता है!
 लॉक डाउन में हमारा आर्थिक स्तर काफी नीचे आ गया है जब उद्योग ही बंद हो गए हो तो चाहे सूक्ष्म और लघु उद्योग या अन्य दूसरे उद्योग तो राज्य और केंद्र सरकार का आर्थिक स्तर तो गिरना ही है क्योंकि लघु और छोटे उद्योग ही देश के आर्थिक तंत्र की रीढ़ की हड्डी है अतः जब गिरी हुई आर्थिक स्थिति में तेजी लाना है तो छोटे बड़े सभी उद्योगों को राहत मिलनी ही है ! 
लॉक डाउन में महामारी से भी बचना है या यूं कहें कोरोना के साथ ही जीना है ! हमारी रोजमर्रा की जरूरतें लघु उद्योग के द्वारा ही होती है इसमें हमारे मजदूरों का श्रम ही होता है करोड़ों मजदूर इससे जुड़े होते हैं उनका भरण-पोषण का आधार ही उद्योग है! कपड़े की मिले ,चमड़े का व्यवसाय ,ईंटो की भट्टी का व्यवसाय, बोझा उठाना, आदि आदि सैकड़ों काम है सभी में मजदूरों की जरूरत है अतः उन्हें भी विश्वास में लेना होगा !
सरकार से उद्योग की राहत तो मिलती है जिसे हम सब्सिडी कहते हैं परंतु अभी हमारे आर्थिक स्तर को उठाने के लिए सरकार राहत तो जरूर देगी 
कितनी और कैसे वह तो आज के फैसले के बाद ही पता चलेगा !
आर्थिक गतिविधियां बढ़ाने की जो सरकार सोच रही है तो लघु उद्योग को राहत तो मिलेगी 
ही !
अंत में कहूंगी लघु उद्योग वाले धैर्य रखें  और सकारात्मकता लाये राहत अवश्य मिलेगी !
लॉकडाउन खुलते ही मस्ती में न आये सभी कोरोना से बचने के नियमों का पालन   रख लेनी है जब तक कोरोना के साथ जीना है! 
"जान है तो जहान है"
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
लघु उद्योग सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करनेवाले अर्थ व्यवस्था का रीढ़ स्तम्भ कोरोना संक्रमण के चलते पूंजी और कर्ज के अभाव में साथ ही साथ खपत की कमी और सस्ते आयत से तबाही के कगार पर आ गये हैं अतः फिर से इन्हें खड़े करने के लिए माकूल माहौल, सरकारी कर्ज या मदद की बेहद आवश्यकता है l 
देश में मेन्युफेक्चरिंग, कपड़ा, चमड़ा, वाहन आदि श्रम वाले क्षेत्र हैं जहाँ सबसे ज्यादा रोजगार पैदा होता है, l इनसे लाखों छोटे उद्यमियों की श्रंखला जुडी होती है l 
परन्तु 
वर्तमान समय में पारम्परिक उद्योग अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं ऊपर से बैंक छोटे व लघु उद्योगों को कर्ज देने से कतराते हैं l अलग अलग उद्योगों की अपनी अलग अलग तरह की समस्याएँ होती हैं जिनका समाधान एक समान नीति बनाकर नहीं किया जा सकता अतः लघु उद्योगों के पुनर्जीवन व संवर्धन हेतु स्पष्ट नीति के साथ नियत भी होना जरूरी है l 
कोरोना संकट व भविष्य के जीवन हेतु छोटे उद्योगों को सरकार बड़ी राहत व अनुदान 
देवे -
1. लघु उद्योगों को विशेष पैकेज स्वीकृत कर राहत देवे l 
2. उद्योगों को लॉक डाउन के दौरान बिजली के फिक्स चार्ज से मुक्त रखा जा सकता हैl 
3. आगामी चार माह तक उद्योगों को मुफ्त बिजली आपूर्ति होनी चाहिए l 
4. उद्योगों को बैंक ऋण प्रदान कर दो वर्ष की छूट दे l 
5. तीन माह तक जी. एस. टी. में राहत दे सकते हैं l 
6. निर्यात के कारण वर्तमान में जो भुगतान अटक गये हैं उसे दिलाने में सरकार दखल करे l 
7. लॉक डाउन में भी चरणबद्ध तरीके से उद्योगों को संचालन की अनुमति प्रदान की जावे l 
8. औद्योगिक क्षेत्र व उद्योगों को सेनेटाइज करावें l 
9. सभी बैंकों को वर्किंग कैपिटल बढ़ाई जानी चाहिए l 
10. कामगारों का पलायन हो चुका है उन्हें आश्वस्त करें कि उनको पूर्ण सुरक्षा भोजन, आवास प्राप्त होगा l कामगारों की उपलब्धि सुनिश्चित करावें l 
   भारत का अध्तात्मिक दृष्टिकोण दुखों कष्टों को जहाँ धैर्यपूर्वक सहन करने के लिए कहता है वहीं हमें परिस्थितियों से संघर्ष करने के लिए भी प्रेरित करता है l हमें विकट परिस्थितियों में निष्क्रिय होकर नहीं बैठना है l आध्यात्मिक मान्यतानुसार दुःख प्रकृति की पाठशाला का एक पाठ्यक्रम ही है जिसमें मानव की अंतर्निहित क्षमताओं को उभर कर व्यक्त होने का अवसर मिलता है l इन्हीं भावनाओं के अनुरूप अपने उद्योगों को पुनर्जीवन प्रदान करना होगा l 
चलते चलते -
उद्यनेमेव सिँहयन्ति कर्मणि न मनोरथे :l 
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविश्यन्ति मुखे मृगा :ll 
जीवन में सफलता केवल कठोर परिश्रम से ही सम्भव है ठीक उसी प्रकार शेर जंगल का राजा होता है उसके सोते रहने से उसके मुँह में स्वतः शिकार नहीं आ जाता, उसे भी परिश्रम करना पड़ता है l 
उद्योगों के पुनर्जीवन हेतु सरकारें अनुदान, मदद, सहायता सभी कर दें लेकिन उद्यमी को आत्मविश्वास, संयम, विवेक से संघर्ष करने पर ही सफलता प्राप्त होती है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
 हां छोटे उद्योगों को चाहिए सरकार से बड़ी राहत क्योंकि छोटे उद्योग अपनी जीविका चलाने के लिए यह उद्योग चलाते हैं और अपने घर की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं लगाकर लॉक डाउन होने के कारण काम धंधे चौपट हो गए हैं जिसके कारण छोटे उद्योगपति बड़ी परेशानी में फंसे हैं अतः हमको सरकार से उद्योग को चलाने के लिए राहत की आवश्यकता महसूस हो रही है अगर ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उनका जीना दूभर हो जाएगा अगर सरकार बड़ी राहत देती है तो पुनः उनका उद्योग धंधा चल सकता है और अपनी समस्याओं का सामना करते हुए समाधान कर आगे बढ़ सकता है नहीं तो समस्या की समस्या उद्योगपतियों को आएगी अतः सरकार को चाहिए कि उद्योगपतियों को उद्योग धंधे चलाने के लिए बड़ी राहत देनी चाहिए जिससे उनकी समस्या का समाधान हो सके।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
लघु कुटीर उद्योग का सपना हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने देखा था।उनकी नजर मे भारत जैसे देश की परिस्थिति लघु उद्योग के ही अनुकूल थी जिसमें देश का हर नागरिक समानता के अधिकार के साथ साथ शोषक मुक्त वातावरण मे स्वालंबी होकर जी सकता था।गांधी को निश्चित रुप से पता था कि वृहद उद्योग समाज की सबसे छोटी इकाई को वह भूमिका प्रदान नही कर सकता है जो लघु उद्योग करते हुए स्वयं के लिए अर्जित करता है।।तथा स्वभिमान के साथ जीने का हक प्रदान करता है। 
समय का राजनीतिक चक्र चला और लघु उद्योग अपने उद्देश्य में गांधी के सपने को पूरा नही कर सके । जो कुछ लघु उद्योग बच गए बड़े पूंजीपति उनके नाजायज़ इस्तेमाल अपने नीजि हित ओर लघु उद्योग के उत्पाद का विस्व बाजारीकरण हो गया और मल्टीनेशनल कंपनियां उनकी मार्केटिंग          करने लगीं।ऐसा करने से छोटे उद्योगों के मकसद के साथ छेड़छाड़ होता है और मुनाफे की बड़ी रकम एक बड़ी कंपनी झटक ले जाती है।पहले से ही बीमार चले आ रहे छोटे उद्योग मंदि के दौर में आकर ओर संकेत में घिर गए।अभी तो करोना महामारी में स्तिथि न सिर्फ छोटे उद्योगों की खराब हुई है बल्कि बड़े उद्योग भी बुरी तरह से पिटे हैं।
सच पूछिये तो उद्योगों का खड़ा होना बहुत जरूरी है,क्योंकि अर्थ का पहिया उद्योग धंदे ही चलाते हैं तथा जनता के लिए रोजगार सृजित करते हैं।सरकार द्वारा छोटे उद्योगों को राहत अवस्य मिलना चाहिए क्योंकि राहत की राशि अंततः जनता की ही होती है। और उद्योग जनता के हित के लिये ही होता है।अगर प्राथमिकता देखी जाए तब भी छोटे उद्योगों को फोरी तौर पर पहले इस महामारी के दौर में राहत मिलनी चाहिए और तब इसके बाद बृहद उद्योगों के लिए सोचना चाहिए।छोटे उद्योग करने वाले के पास विकल्प अत्यंत सीमित होते हैं और वो बाजार के छोटे झटके को भी बरदास्त करने में  असमर्थ होते हैं।छोटे उद्योग के मालिक  भी मजदूर होता है।पूंजीपति नही होता और उसमें काम करने वाला तो मजदूर होता ही है।अगर लघु उद्योग को राहत न मिले तो वह सुद्ध रूप से मजदूरों का  शोषण है।आज के 21सवीं सताब्दी में और इस कोरोना महाकाल में अगर कोई वर्ग अभिशप्त है तो वह मजदूर वर्ग है।सड़क और रेल की पटरियों पर चलना उसकी जिंदगी हो गयी है।पता नही सरकार किसके लिए योजना बनाती है कम से कम तो इन गरीब मजदूरों के लिए तो नही बनाती है।अगर बनाती तो इस चिचिलती धूप में सड़क पर मजदूर अपने पत्नी और छोटेछोटे बच्चों के साथ सड़क,खेत और रेल की पटरी पर न चल रहा होता।
राहत शब्द छोटे,गरीब और मजदूर के लिए होता है जहाँ सम्पन्नता होती है वहाँ राहत घुटन महसूस करती है।सरकार के द्वारा राहत हो या की अन्न के द्वारा रहता का धर्म लघु और लाचारों की मदद में ही परिलक्षित होता  है।
                                - रंजना सिंह
                                 पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " छोटे - छोटे उद्योगों को बिना सरकारी सहायता के चला पाना कठिन हो गया है । फिलहाल सरकार को इस और ध्यान अवश्य देना चाहिए । तभी छोटे छोटे उद्योगों को बचाया जा सकता है । 
                                                         - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 








Comments

  1. बहुत बढ़िया विचार रखे गये।
    चर्चा सार्थक रही।
    बधाई श्री जैमिनी जी

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