क्या भविष्य में कोरोना के साथ जीना होगा ?

कोरोना वायरस ने लोगों की जीवन शैली को बहुत अधिक प्रभावित किया है । फिलहाल कोई स्थाई इलाज भी नहीं आया है । सोशल डिस्टेंसिंग जैसे फारमूले से ही जीवन की रक्षा करनी होगी । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
आज जिस कोरोना वायरस से हम डर रहे हैं लॉक डाउन के चलते घरों में बंद हैं बार बार हाथ धो रहे हैं मुँह ढाँप के रहने को विवश हैं भविष्य में इसी कोरोना वायरस के साथ जिएँगे । जी हाँ ये बिल्कुल सत्य है ऐसा पहली बार नही हो रहा है अतीत में भी इस तरह संक्रमण होते रहे हैं और कुछ दिन में ही मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता उन वायरस संक्रमणों से लड़कर मज़बूत हुई है और संक्रमण को रोकने में स्वयं समर्थ हुई है वर्तमान में शरीर की जाँच करने पर पता लगता है कि शरीर के साथ बहुत सारे पैथोजन रहते हैं वह साथ तो रहते हैं पर अब हानि नहीं पहुँचाते जबकि जब वह सारे शुरूआत में आये थे तो बहुत बुरा प्रभाव छोड़ रहे थे ठीक इसी प्रकार जैसे आज कोरोना वायरस 🦠 ।
 रिसर्च तो यह भी बताती है कि शरीर में नब्बे प्रतिशत पैथोजन सैल तथा दस प्रतिशत वास्तविक सैल होती हैं जिनकी मृत्यु होती है । वैसे भी वायरस मनुष्य के जन्म के पहले से ही है और मनुष्य के साथ रह रहा है साथ ही नही मनुष्य शरीर में रह रहा है जैसे अनेक प्रकार के वायरस पहले से ही शरीर के साथ रह रहे हैं एक और सही ।
  प्रकृति के पास सबको ज़िन्दा रखने की ज़िम्मेदारी है और सबको प्रकृति ने जीने का अधिकार दिया है देश काल परिस्थिति के अनुसार जीने का तरीक़ा बदल सकता है अतीत में भी जीने के तरीक़े बदलते रहे हैं सभी जीवधारियों ने परिस्थितियों के साथ जीने के तरीक़े बदले हैं और मनुष्य ने सभी जीवधारियों के मुक़ाबले बहुत तेज़ी से परिवर्तन किए हैं वर्तमान में फिर एक बार मनुष्य जीवन जीने का तरीक़ा बदलेगा और वायरस के साथ जीने की राह निकाल लेगा । निश्चित तौर कहा जा सकता है कि भविष्य में कोरोना के साथ जीना ही होगा ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
 फिलहाल वर्तमान में करुणा से मुक्ति पाने के लिए विभिन्न उपाय अपनाएं जा रहे हैं करुणा को मारने का अभी तक कोई वैक्सीन प्रमाणित रुप से नहीं मिल पाई है। करुणा से बचने का एक ही उपाय है करुणा से दूर रहें मानव और करुणा में दूरी बने रहने से सरोना को विकसित होने का स्रोत नहीं मिल पाएगा विश्व करुणा की चैन धीरे-धीरे टूटने लगेगी ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है अगर इतना नियंत्रण होकर भी लाभ डाउन का पालन करते हुए भी करो ना कि बने रहने की सोच को नहीं मिटा पाए तो करना के साथ ही जीना होगा मुनीराम हर व्यक्ति को सकारात्मक सोचना चाहिए सकारात्मक सोच के मन में भय आशंका का जो विस्तार बनता है और व्यक्ति में सकारात्मक सोच के प्रति ध्यान ना जाकर नकारात्मक सोचने लगता है तो सकारात्मक सोचने समझने की शक्ति में चीनी होते जाती है और सामने आए हुए समस्या का मुकाबला करने का सामर्थ्य कमजोर होने लगता है इसलिए नसकारात्मक सोच के बजाय सकारात्मक सोचना चाहिए करुणा का अंत ना होते तब अपनी जीवनशैली सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए। हम हर पल हर क्षण शुभकामना के साथ व्यवहार और कार्य करते रहें वर्तमान में तो करुणा के साथ जीना हो ही रहा है भविष्य में भी अगर करो ना का अंत नहीं होगा तो करो ना के साथ जीना हो सकता है अगर करो ना का अंत भी हो जाए तो फिर भी करो ना को लोग याद करके जीने की शैली को सकारात्मक बनाए रखते हुए अपने को सकारात्मक की ओर बदलाव लाना होगा इस प्रकार से देखा जाए तो प्रकृति को नियंत्रित करने वाले मानव को सबक या सचेत कराने के लिए करुणा का आगमन हुआ है जैसा लगता है धनवान ओ का अहंकार गरीबों की शोषण कुल मिलाकर प्रकृति का दोहन वस्तुओं का अनावश्यक दुरुपयोग से प्रकृति की व्यवस्था बिगड़ने लगी है इसी व्यवस्था को सुधार कर जीने का संदेश देने के लिए करो ना आई है तभी तो लोगों को अपने जीवन शैली में बदलाव आते हुए दिखाई पड़ रहा है कुछ लोग अभी भी दबाव और प्रभाव में जी रहे हैं जो मजबूरी वस घर पर रह रहे हैं जैसे ही अवसर ऐसे लोगों को मिलता है वह लाख डाउन का उल्लंघन कर अनियंत्रित हो हरकत करने लगते हैं जैसे शराब ठेका खोलना और लोगों में असंतोष का भाव पैदा होना देखा जा रहा है ऐसी स्थिति को देखने से करो ना को भगाने में सहायक ना होकर उसे बढ़ावा देने में सहयोग कर रहे हैं जैसा लगता है यह हमारी भूल है भूल को पुनः सुधारा जा सकता है और बार-बार सकारात्मक प्रक्रिया अपनाकर करो ना को हराया जा सकता है जागरूकता ही करो ना हराने का बहुत बड़ा मानसिक समाधान है अगर सभी जनता जागरूक होकर नियम के साथ वर्तमान और भविष्य में पालन करते रहे यही हमारी करुणा के लिए उपलब्धि होगी अधिक परेशानी का सामना के बजाय कम परेशानी होने की संभावना हो सकती है संयम सतर्कता के साथ जीने से करो ना के साथ ज्यादा दिन तक जीना नहीं होगा और अनियंत्रित होकर जीने से भविष्य में करुणा के साथ जीने की संभावना बन सकती है अतः हमें कैसे जीना है वर्तमान और भविष्य में हमें तय कर निर्णय लेना होगा और निर्णय के आधार पर ही हमारा जीना होगा।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
आज के हालात तो यही बता रहें जब तक कोरोना का कोई सफल टिका या दवाई नही विकसीत हो जाती तब तक तो हमें कोरोना के साथ ही जीना होगा ओर साथ साथ कोरोना से सुरक्षा के तमाम उपाय भी करते रहना होगा सरकार द्वारा जारी निर्देशों का कड़ाई से पालन करना होगा हमें याद रखना होगा की कोरोना वायरस से सुरक्षात्मक उपायों को जीवन में दैनिक दिन चर्या में उतार कर ही हम कोरोना को मात दे सकते हैं दोस्तो यह लड़ाई बहुत ही लम्बी चलने वाली हैं अतः जो परहेज हमें बताये जा रहें हैं उनका कड़ाई से पालन हमें करना हैं ओर मानव जाती पर आई इस विपदा से हमे हर हाल मैं जीतना हैं यह स्मरण रखना हैं यह लड़ाई लम्बी चलने वाली हैं ओर एक बार मानवता जीतने वाली हैं।
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्यप्रदेश
     भविष्य में कोरोना के साथ जीना एक वर्तमान भीमकाय चुनौती है। जिसे स्वीकार करना हमारी विवशता है। क्योंकि अस्वीकार करने वाले भी उपरोक्त चुनौती से बच नहीं सकते। इसलिए क्यों न योद्धाओं की भांति इसे परास्त करने के लिए स्वीकार कर लें। 
     उल्लेखनीय है कि धरा पर इससे पहले भी चेचक, तपेदिक, डेंगू इत्यादि अनेक महामारियों ने जन्म लिया और असंख्य मानव प्राणों को असमय के काल का ग्रास भी बनाया था। जिसका मानवजाति ने डटकर निडरता से सामना करते हुए जैसे उन पर विजय प्राप्त की, उसी प्रकार आज धेर्य और साहस के सामूहिक बल से जारी युद्ध से 'कोरोना' महामारी पर विजय प्राप्त करनी है। ताकि अनमोल जीवन तब तक बचाया जा सके जब तक इस विषाणु की उचित दवा बना नहीं ली जाती।
     दवाई बनाना विज्ञान और वैज्ञानिकों की प्रचण्ड चुनौती है। जिसे उन्हें सहर्ष स्वीकारते हुए निरंतर अनुसंधान करने चाहिए। 
     यूं भी चुनौतियां स्वीकार करना शूरवीरों का ही कार्यक्षेत्र होता है। क्योंकि चुनौतियां ही मानव और मानवीय शक्तियों का मूल्यांकन करती हैं। जिससे उक्त व्यक्ति का व्यक्तित्व भी निखरता है। उदाहरण स्वरूप चाणक्य ने चुनौतियों को गले लगाया और चाणक्य नीति का निर्माण किया। जिसे आज भी 'चाणक्य नीति' से जाना जाता है।
     गीता के उपदेश अनुसार भी कर्म करना अति अनिवार्य है। कर्म अच्छा या बुरा करना कर्मकर्ता के अधीन है। कर्म ही हमारी पहचान है और हमारी पहचान ने ही तय करना है कि क्या भविष्य में कोरोना के साथ जीना है या कोरोना को मार कर विश्व विख्यात होना है?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
     प्राकृतिक आपदाएं तो आती और जाती हैं, जीवन को नई राह सिखा जाती हैं और पाठ पढ़ा जाती हैं। पूर्व से लेकर वर्तमान, भविष्य में कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना चुनौती पूर्ण करना हैं। प्राचीन काल में किसी भी तरह की बीमारियां आती थी, जिसका ईलाज वनाच्छादित क्षेत्रों में ही मिल जाता था, आज भी किसी तरह की गंभीर बीमारियों को वनों में रहे निवासरत भलीभांति जानते हैं। महिलाओं को प्रसव के दौरान, वे सकुशल सुविधाऐं भी अपने स्तर पर कर लेते हैं। उन्हें तो नई-नई बीमारियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता  वे इसका इलाज स्वयं जानते हैं। विदित हो कि ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा बीमारियां शहरी क्षेत्रों में संख्याओं की बढ़ोतरी होती हैं, जहाँ मृत्युदरों की भी। शहरों में कई-कई प्रकार की बीमारियों का तांडव खान पान के कारण होता हैं। जहाँ नई-नई बीमारियों का ईलाज मशीनरी के माध्यम से होता हैं, जिसके उपरान्त भी आत्मसंतुष्टी नहीं हो पाती और अनावश्यक रुपयों की बर्बादी। देखने तो यह भी आता हैं, कि मरे हुए को कई दिनों तक रख कर धनार्जन किया जाता हैं। वर्तमान परिदृश्य में देखिए कोरोना जीता जागता उदाहरण है, जिसकी कोई दवाईयां नहीं, जिसका मात्र एक ही ईलाज हैं, घर पर रहिये, सुरक्षित रहिये और शुद्ध जल, खान पान स्वच्छ रखिए। अप्राकृतिक और गंभीर स्थिति यों से दूरी बनाए। यह सच हैं, कि नवोदित पीढ़िओं को भविष्य में कोरोना जैसी और बीमारियों का सामना करना पड़ सकता, इसलिए देर आये दुरुस्त आये, जीवन जीना होगा।
ऐसा नहीं कोरोना चला गया, लाँकडाऊन तो एक व्यवस्था हैं, बार-बार लाँकडाऊन से गंभीर समस्याओं को आमंत्रित करना हैं, आमजनों को भविष्य में सोचना होगा, स्वयं ही स्थितियों को नियंत्रित कर बीमारियां ही सिखाती हैं जीवन को प्रगति के सोपानों अग्रसर करें।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
आज के हालात में कोराना के संबंध में बहुत से जानकार व्यक्तियों के, वैज्ञानिकों के, डॉक्टर्स के विचार हमारे सामने दिन- प्रतिदिन आते हैं। इस संदर्भ में  उनका मत है कि जिस तरह एच• आई•बी• तथा  डेंगू के वायरस के लिए कोई वैक्सीन तैयार नहीं की सकी है उसी तरह कोरोना के वायरस के लिए भी कोई वैक्सीन तैयार नहीं हो सकेगी और भविष्य में भी हमें अपनी सतर्कता को रखते हुए कोरोना के साथ ही अपना जीवन व्यतीत करना होगा। अभी तक पूरी दुनिया में इस बात पर संदेह है कि यह पशु- पक्षियों के द्वारा फैलाया हुआ है या मानव निर्मित है ।दूसरी बात इसके संक्रमण के लक्षण भी अभी तक अलग-अलग देशों में अलग-अलग प्रकार से सामने आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में वैक्सीन का निर्माण हो पाना मुश्किल जैसा प्रतीत होता है इसलिये यह कहना गलत नहीं होगा कि  भविष्य में भी इंसान को कोरोना के साथ जीना होगा ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया - मध्य प्रदेश
इंसानियत को निकट भविष्य में कोरोना वायरस के खतरे के साथ ही जीना होगा। ये चेतावनी दी है लंदन के इंपेरियल कॉलेज में ग्लोबल हेल्थ के प्रोफेसर और कोविड-19 पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दूत डेविड नैबारो ने। की रिपोर्ट के मुताबिक, नैबारो ने कहा है कि सफलतापूर्वक वैक्सीन तैयार कर लेने की कोई गारंटी नहीं है।
ग्लोबल हेल्थ के प्रोफेसर के मुताबिक, नए माहौल में इंसानों को सामंजस्य स्थापित करना होगा। उन्होंने कहा कि लोगों को यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि निश्चित तौर से जल्द ही कोरोना वायरस की वैक्सीन बन जाएगी। डेविड नैबारो ने कहा- 'हर वायरस के खिलाफ अनिवार्य तौर से आप एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन नहीं बना पाते हैं। कुछ वायरस की वैक्सीन तैयार करना काफी मुश्किल होता है। इसलिए वायरस के खतरे के बीच ही हमें अपनी जिंदगी जीने के लिए नए तरीके तलाश करने पड़ेंगे।'
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को एक टीवी न्यूज चैनल के कार्यक्रम में कोरोना वायरस पर बोलते हुए कहा कि हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन कोरोना वायरस का इलाज नहीं है बस ये इसको फैलने से रोकता है। उन्होंने कहा कि ऐसा कभी नहीं होगा कि कोरोना को एक भी केस भविष्य में फिर ना मिले। 
केजरीवाल ने प्रधानमंत्री की तारीफ करते हुए कहा कि हम केंद्र सरकार और पीएम मोदी को बधाई देते हैं जिन्होंने समय रहते 24 मार्च को देश में लॉकडाउन की घोषणा की। इससे हमें अपनी तैयारी करने का वक्त मिल पाया। आज हम कोरोना से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। 
केजरीवाल ने कहा कि इस वक्त कोरोना ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। हमारे देश में भी यह बाहर से ही आया। किसी भी व्यक्ति विशेष को इसका दोषी बताना गलत होगा। 
धीरे-धीरे राज्यों में खोले जाएं लॉकडाउन
केजरीवाल ने कहा कि कोरोना से जंग के लिए दिल्ली पूरी तरह से तैयार है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वो अब अर्थव्यवस्था को खोलना शुरू करे। राज्यों से लॉकडाउन भी धीरे-धीरे खोलना शुरू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो रेड जोन है केवल उन इलाकों को बंद रखना चाहिए बाकी इलाकों को खोलना चाहिए।
कोरोना महामारी और उसके बाद हुए लॉकडाउन के लंबा चलने के वजह से अब लोगों में तेजी से डिप्रेशन के मामले बढ़ने लगे है। लॉकडाउन के चलते जो लोग लंबे समय से घरों में रह रहे हैं वह अब मानसिक तनाव से गुजरने लगे है, लोगों को अब अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है। ऐसे में अब मानसिक स्वास्थ्य (मेंटल हेल्थ) पर अधिक फोकस करने की बात होने लगी है।
 आज हम सब एक ऐसी संक्रामक बीमारी से लड़ रहे है जो वास्तव में एक आपदा ही है और इस आपदा से मुकाबला करने के लिए हमको खुद स्वप्रबंधन करना होगा जिसमें मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार के प्रबंध अनिवार्य और आवश्यक रूप से लागू करने होंगे। 
अब हमको कोरोना के साथ जीना सीखना होगा, हमें अपने जीवन जीने के तरीके में बदलाव लाना होगा। 
तमाम रिपोर्ट और रिसर्च बता रहे हैं कि कोरोना संक्रमण का दौर लंबे समय तक चलने वाला है ऐसे में तब जरूरी हो गया है कि हम अपने को भी बदलें। 
में हमको आंतरिक बल यानि आत्मबल बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। वह कहते हैं कि हमें अपने विचारों को सकारात्मक रखने की जरूरत है। वह कहते हैं कि हम जैसा सोचते है कि उसी के अनुसार हमारे शरीर में हार्मोन्स का निर्माण होता है। वह कहते हैं कि ऐसे समय में हमको मानसिक रूप में मजबूत करने की जरूरत है। 
लॉकडाउन के चलते युवा पीढ़ी में आ रही नकारात्मकता ऐसे में युवा पीढ़ी को अपना अधिक से अधिक समय परिवार के बड़े बुजुर्गो के साथ बितना चाहिए, जिससे कि वह अपने मूल्यों को फिर से पहचाने। वह कहते हैं कि जीवन में जो भी चुनौती आती है वह अपना समाधान भी लेकर आती है और कोरोना की चुनौती भी समय को अवसर में बदलने का समाधान लेकर आई है। 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, निश्चित तौर पर । लेकिन यह भी सही है कि इस बीमारी का संकट अभी लंबा चलेगा ।ऐसा कुछ लोगों का अनुमान है ।अभी तक कोरोना के वैक्सिंग का अविष्कार नहीं हो पाया है जिसके कारण हम इसे खत्म करने में फिलहाल नाकाम रहे हैं भविष्य में अवश्य ही कोई निदान निकलेगा । अतः अब और कितने दिनों तक सब तरह की बंदी रखी जाए । इसीलिए सरकार ने भी थोड़ी बहुत ढील देनी शुरू कर दी है । लाल,नारंगी,हरे रंग के तीन जोन बनाए गये हैं और उसी के मुताबिक छूट दी जा रही है ।हम सब को जो भी बचाव हेतु दिशानिर्देश कोरोना बीमारी के लिए दिए गये हैं उनका सब को निश्चित रूप से पालन करना चाहिए तभी ये लंबी चलने वाली बीमारी  से कुछ हद तक बचा जा सकता है । आगे जैसी भी परिस्थिति आए सामना तो करना हीं है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना -  बिहार
जी हाँ, समय के अनुसार बदलना ही प्रकृति का नियम है । इतनी सावधानी बरतने के बाद भी मरीजों की संख्या बढ़ रही है । आर्थिक संकट भी गहराने लगा है । सारे कार्य ठप्प हो गए हैं । लोगों में मानसिक बीमारी घर करने लगी है । घरेलू हिंसा की बृद्धि हो रही है । इस सब को देखते हुए लगता है कि अब लॉक डाउन को खोलना ही होगा । लोगों के व्यस्त रहने पर बहुत सी समस्याएँ स्वयं सुलझ जायेंगी।
इतने दिनों तक सबको इससे कैसे बचा जाए समझा दिया गया है ; अब लोगों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी । हम सब खुद भी नियमों का पालन करें और दूसरों से भी करवाएँ ।
जिस तरह से चेचक होने पर, आँख लाल होने पर   या अन्य संक्रामक बीमारी होने पर हम लोग खुद दूसरों से दूर रहते हैं वैसे ही इसके लिए भी हमें मन से तैयार होना । दो गज दूरी बहुत जरूरी का पालन करना होगा, मास्क लगाना, अनावश्यक न घूमना, हाथों को समय - समय पर धोना, बाहर न थूकना,  सर्दी - खाँसी पर मुँह में रुमाल रखना ।
स्वच्छता के साथ ही कोरोना से लड़ा जा सकता है । 
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
कोरोनावायरस के साथ जीवन जीना सीखना ही इसका समाधान है  ऐसा बहुत ही मुश्किल है पर असंभव नहीं है जब अतीत की ओर झांकती हूं तो स्पष्ट होता है कि कितनी ऐसी बीमारी है जिसके साथ जीना सीखा है जैसे पोलियो डेंगू एड्स चेचक हैजा कौरला इत्यादि  और मानव का इम्यून सिस्टम भी उसी तरह बढ़ता गया ।लाकडाउन की प्रक्रिया बीमारी के प्रसार को नियंत्रण का एक माध्यम है यह दवा नहीं है
सावधानी के साथ नियंत्रण में रहकर जीवन को जीना सीखना होगा ।परिवर्तन को स्वीकार करना होगा और सकारात्मक विचारों के साथ जिन्दगी में आग बढ़ना होगा । कोरोना से स्वस्थ हुए इंसानों को देखने से हौसला बुलंद होगा।
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
कहा  जाता  है  कि "धीरे-धीरे  दर्द  ही  दवा  बन  जाता  है ।" ये  बात  यदि  पूर्णरूप  से  लागू  न  हो  फिर  भी  देखते  हैं  कि  धीरे-धीरे  हम  उसी  के  साथ  सामंजस्य  करना  सीख  जाते  हैं  या  हमारे  जीवन  का  हिस्सा   हो  जाता  है  । 
        कोरोना  के  साथ  भी  हमें   इसके  नियमों  का  पालन  करते  हुए........सावधानी  व  सतर्कता   से  सामंजस्य  बना  कर  जीना  सीखना  होगा  ।  जब  तक  इसका  वैक्सीन  या  इसके  तोड़  की  कोई  दवाई  नहीं  बन  जाती  क्योंकि  इसके  अलावा  हमारे  पास  कोई  विकल्प  भी  तो  नहीं  है  । 
        प्राचीन  समय  पर  यदि  दृष्टि  डालें  या  जानकारी  हासिल  करें  तो  हमें  पता  चलेगा  कि  किन-किन  महा मारियों  से  संघर्ष  करते  हुए  उनके  साथ  किस  प्रकार  तालमेल  स्थापित  कर  जीवन  जिया  है  । 
       यह  सच्चाई  है  कि  जीवन  में  खुद  की  तकलीफ  खुद  को  ही  सहनी  पड़ती  है  ।  परिवार  के  अथवा  अन्य  लोग,  जहां  तक  बन  पड़े........जितनी  हो  सके.........देखभाल  कर  सकते  हैं  और  वो  भी  यदि  हमारे  पास  पैसा  हो  फिर  इसकी  भी  एक  सीमा  होती  है । करते-करते  कुछ  समय  बाद  चाहे  अपने  हों  या  पराए,  सभी  ऊब  जाते  हैं  ।  और  कामना  करने  लगते  हैं  कि  ईश्वर  इन्हें  उठा  लें  । 
       आवश्यकता  है  स्वयं  को स्वयं  ध्यान  रखने  की । कोरोना के  जीने  के  लिए  भी  हमें  हर  कदम  फूंक-फूंक  कर  रखना  होगा । 
        जो  परिस्थितियां  हैं  उन्हें  स्वीकार  करना  भी  आवश्यक  है ।  ऐसा  करने  से  तनाव  नहीं   घेरता  ।  यदि  मन  इस  बात  को  स्वीकार  कर  ले  कि  जब-जब  जो  भी  होता  है, होकर  रहता  है  । 
       फिलहाल  तो  भविष्य  में  हमें  कोरोना  के  साथ  ही  जीना  होगा  ।  मगर  अपनी  सूझबूझ   का  परिचय  देते  हुए, स्वयं  को  हर  हालत  में  सुरक्षित  रखते  हुए  । 
        - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
पर हम ऐसे समय में विचार कर रहे हैं जबकि कोरोना के मरीजों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। भारत में यह संख्या 60,000 पहुंच चुकी है।इसमें लगभग 1900 मरीज काल के गाल में समा चुके हैं। आज के ही समाचार पत्रों में, एक समाचार 'रिकवरी रेट और बढ़ा, सरकार ने कहा- कोरोना के साथ जीना होगा' शीर्षक से मुख्य पृष्ठों पर छपा है। इसमें कहा गया है, कि फिलहाल हर दिन कोरोना के 3000 से अधिक नए मरीज सामने आ रहे हैं लेकिन अच्छी बात यह है कि रिकवरी रेट भी बढ़ा है। लाकडाउन 3 में मिली छूट का असर अगले हफ्ते सामने आने के बाद, हर दिन नए मरीजों की संख्या और ज्यादा होना तय माना जा रहा है सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि लोगों को कोरोना के साथ ही जीना सीखना होगा। 
तो अब यह सुनिश्चित ही है। हां,यह मानव के अपने हाथ में है कि वह कैसे जिये?इससे कैसे बचें? सुरक्षित रहे। सीधी सी बात है,अपनी सुरक्षा अपने हाथ।क्योंकि इसका इलाज तो अभी कोई मिला नहीं। एक ही तरीका है अपनी इम्युनिटी को बरकरार रखना और इसके लिए सरकार के आयुष मंत्रालय ने आयुष क्वाथ के सेवन की सलाह भी दी है। घर पर बनाए इसे। तुलसी पत्र, दालचीनी,सोंठ या अदरक और काली मिर्च का काढ़ा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएगा। कोरोनावायरस से बचाएगा। समाज में रहते, जीते हुए सावधानी ही वह मंत्र हैं,जो हमें कोरोना के साथ जीने में सहायक होगा। सुरक्षा के समस्त नियमों का पालन करते हुए तैयार रहें ,कोरोना के संग जीने के लिए।
- डॉ.अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
मानव जीवन के प्रारम्भ से ही छोटी-बड़ी समस्याएं साथ-साथ चलती हैं, परन्तु मानव अपने हौसले और बुद्धिमता से समस्याओं का समाधान कर ही लेता है। जिस मानव ने नभ-जल-तल को जीत लिया है, उसके लिए कोरोना वर्तमान में एक भीषण समस्या तो है परन्तु उसने कोरोना पर विजय प्राप्ति के साधन, समस्या उत्पत्ति के साथ ही ढूंढने शुरू कर दिये हैं।
     भले ही समय लगा परन्तु मानव जाति ने कोरोना से भी भयंकर समस्याओं का समाधान किया है इसलिए मेरा मानना है कि देर-सबेर कोरोना से बचाव की वैक्सीन अवश्य बन जायेगी तथा साथ ही इसके उपचार के उत्तम साधन भी हमारे समक्ष अवश्य होंगे।
मेरा विश्वास है कि...... 
"उत्साह से भरे कदम मंजिल की ओर बढ़ाएगा मानव, 
कोरोना के दुष्चक्र से दृढ़ता से टकराएगा मानव। 
सफलता कदम चूमेगी, मिलेगा समाधान निश्चय ही, 
मन-मस्तिष्क से कोरोना को अवश्य भगाएगा मानव।" 
     परन्तु यह भी दृष्टिगत है कि पूरे विश्व में जिस प्रकार इसने व्यापक रूप से पैर पसार लिए हैं और इसकी भीषणता में अभी वृद्धि हो रही है उससे प्रतीत होता है कि कोरोना का अतिशीघ्र सम्पूर्ण रूप से समाप्त होना मुश्किल है। यह सर्वविदित है कि कोरोना के लक्षण बहुत देर से प्रकट होते हैं और इस अवधि में संक्रमण दबे पैरों से फैलता रहता है। इसकी यही अदृश्यता ही इसको मजबूत बना रही है, जबकि यह कटु सत्य है कि अभी उपचार तो दूर की बात है, हमारे पास बचाव के संसाधन भी अपर्याप्त हैं। 
     इसलिए कोरोना के उपचार की संभावनाओं के प्रति पूर्णत: आशावान होते हुए भी वर्तमान स्थिति में मुझे यही प्रतीत होता कि कोरोना अभी दीर्घ समय तक हमारे साथ कदम-दर-कदम चलेगा और निकट भविष्य में हमें कोरोना के साथ ही जीना होगा।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना वायरस (कोविड19) महामारी की चपेट में पूरी दुनियां आ गई है। भारत मे अब-तक 1981 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 59662 हजार लोग कोरोना संक्रमित हैं। 39334 लोगों का इलाज चल रहा है। 17847  को इलाज के बाद ठीक होने पर अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है। पिछले 24 घंटे में 3 हजार 320 नए केश मिले है और 95 लोगों की मौत हुई है। कोरोना के मामले इसी तरह बढ़ते रहे तो देश को तबाही से बचाना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा। अभी तक इस बीमारी की दवा नही बन पाई है। पूरा विश्व कोरोना के इलाज के लिए दवा बना रहा है पर अभी तक सफलता नही मिली है। एम्स के निदेशक के पिछले गुरुवार को कहा था कि इसी तरह देश मे कोरोना की रफ्तार  बढ़ती रही तो जून और जुलाई के महीने कोरोना से चरम पर होंगे। यह देश के लिए अच्छे संकेत नही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी सक्रिय है। इस स्थिति में जैमिनी अकादमी द्वारा पेश आज की चरम क्या भविष्य में कोरोना के साथ जीना होगा? यह बहुत ही सही सवाल है। कोरोना महामारी को नियंत्रित करने में महिनों लग जायेंगे। भविष्य में कोरोना के साथ वर्षो तक जीना होगा । क्योंकि यह कोरोना भविष्य में बीमारी का रूप ले लेगा।
अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
यह कहना अभी बहुत मुश्किल है कि भविष्य में हमें कोरोना के साथ जीना होगा अथवा नहीं। इस महामारी से आज संपूर्ण विश्व एक युद्ध लड़ रहा है, तथा सभी विकसित देशों के द्वारा इस महामारी से लड़ने के लिए वैक्सीन बनाने का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है। यदि किसी भी देश का चिकित्सा संस्थान इस वैक्सीन को बनाने में सफलता हासिल कर लेती है, तो निश्चित रूप से हमें इस बीमारी से उबरने में सहायता मिलेगी, और भविष्य में यह उम्मीद भी की जा सकेगी कि शायद हमें आगे इस बीमारी को ना झेलना पड़े। परंतु सब कुछ मानव के वश में नहीं है कहीं ना कहीं हमें इस बात को स्वीकार करना होगा। प्रकृति स्वयं में बहुत बलवान है और मनुष्य उसके आगे कुछ भी नहीं। प्रश्न यह है कि अगर इस महामारी से लड़ने के लिए किसी भी प्रकार की वैक्सीन का निर्माण शीघ्र नहीं हो पाया तो क्या होगा। ऐसी स्थिति में हम यह कह सकते हैं कि शायद हमें आगे भी इस महामारी के साथ रहना पड़ सकता है। परंतु विश्वास पर ही दुनिया कायम है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि शीघ्र ही संपूर्ण विश्व को संकट के इस दौर से  निकालें, और विश्व की अर्थव्यवस्था और मानव सभ्यता के जीवन को पुनः पटरी पर ले आएं। कोविड 19 के संदर्भ में बस यही कहना चाहूंगा कि भविष्य में इस बीमारी के साथ जीने का तो पता नहीं परंतु यह अवश्य कह सकता हूं, कि इस बीमारी ने हमें हाइजेनिक रूप से इतना मजबूत कर दिया है जो शायद जीवन पर्यंत किसी भी व्यक्ति के लिए छोड़ पाना बहुत मुश्किल होगा। आप सभी के उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं और निवेदन करता हूं जब तक हमें इस बीमारी से लड़ने का कोई मार्ग प्राप्त नहीं होता कृपया सरकार द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों का पालन करते हुए एक जिम्मेदार नागरिक होने का कर्तव्य निभाएं।
जय हिन्द, जय भारत।
कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
हां यह सत्य कि हम सभी को अभी कुछ महीनों तक कोरोनावायरस के साथ जीना ही पड़ेगा, क्योंकि ये हमारी वर्तमान में मजबूरी है जब तक कि इसका वैक्सीन तैयार नहीं हो जाता।
          विश्व भर में अनेक देशों के वैज्ञानिक दिन रात प्रयासरत है लेकिन  वैक्सीन बनाने में अभी वक्त लगेगा कम से कम छह महीने या एक साल भी लग सकते हैं। अभी शोध एवं प्रयोग जारी है। 
       हम सभी को फिलहाल तो कोराना वायरस के साथ अपनी जान बचाते हुए जीना सीखना ही पड़ेगा। सावधानी में ही हम सब की सुरक्षा है। गसी में सबकी भलाई है जिस तेज गति से भारत में यह वायरस फैल रहा है वह बहुत चिंताजनक है। स्थिति बहुत गंभीर रूप धारण करती जा रही है अभी तो पीक टाइम आने वाला है तब और भयानक स्थिति होगी इसीलिए हम सबको अपना बचाव करना है।
- राजीव नामदेव "राना लिधौरी"
  टीकमगढ़ - मध्यप्रदेश
कोरोना इतनी भयानक महामारी है कि ऐसे भयानक वायरस से विश्व कभी नही जूझा । जिसने न केवल हमे बीमार कर तोड़ दिया है बल्कि न केवल हमारी आर्थिकस्थिति बल्कि विश्वभर की आर्थिकस्थिति को हिलाकर रख दिया है । बायलोजिकल हथियारों का विश्व मे पहले भी इस्तेमाल होता रहा है परंतु इसने जो रेकॉर्ड कायम किया है , वो पृथ्वी को मानुषहीन करने के लिए काफी है ।
जैसे इस वायरस के लक्षण है उससे बचने के लिए पूरी तरह देश की गतिविधियां रोकनी होगी , तभी इस महामारी से पार पाया जा सकता है । अब वो कितने समय के लिए रोकनी होगी , कहना संभव नही है । परंतु इस वायरसरूपी बीमारी के अलावा भी इन्सान अन्य बीमारियों से जूझ रहा है , जिसके चलते गतिविधिया होना तो स्वाभाविक है । साथ ही इंसान को जीना है तो रोजमर्रा की जरूरतों को दरकिनार नही किया जा सकता है , जिसके लिए भी गतिविधियों का होना व एक दूसरे के संपर्क में आना लाजमी है । सच यही है कि केवल ओर केवल स्वयम अपनेआप को सुरक्षित रख और जरूरी बातो का ध्यान रखते हुए हमें समाज मे कार्य करने होंगे । क्योंकि विश्वस्वस्थ्य संगठन तक भी ये नही जानता कि ये वायरस कब खत्म होगा या इसकी क्षमता कब तक क्षीण होगी । इसीलिए भूख का इंतेजाम करते हुए इस वायरस के रहते हुए भी सतर्कता बरतते हुए अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को अंजाम देना होगा ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर -  उत्तरप्रदेश
कोई भी बीमारी आती है तो कोई कोना हमेशा के लिए खोज लेती है , जो उसका स्थायी निवास बन जाता है । पुराने जमाने में ये ब्लड प्रेशर, शुगर , हार्ट की बीमारी, बर्ड फ्लू, डेंगू कहाँ थे ? 
जिस तरह से हमारी सभ्यता का विकास होता गया, हमारा रहन-सहन बदलता गया, उससे प्रकृति में भी बदलाव आने लगे । इससे हमारे शरीर की इम्युनिटी भी बदलती गई । जिस तरह आज मच्छड़ को मारने के लिए ज्यादा पावर के कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है उसी तरह हमारा शरीर विभिन्न दवाओं के असर से उन ही पर निर्भर होता जा रहा है। कोरोना प्राकृतिक बदलाव का नतीजा कहें या मानव की विकास यात्रा। अब अनुसन्धान के बाद जब इसकी भी दवा निकलेगी तो मनुष्य जैसे और सभी बीमारियों से जूझ रहा है उसी तरह इसके साथ भी दवा के सहारे जूझेगा । कैंसर को ही देखें तो कोई इलाज नहीं है, यह भी पता नहीं है कि कैसे होता है । फिर भी लोग उससे जूझ रहे हैं और मँहगा से मँहगा इलाज करते हैं। कुछ ठीक होते हैं और कुछ मार जाते हैं। उसी पंक्ति में एक और बढ़ोत्तरी हुई है - कोरोना ।
इसे भी हमें साथ लेकर चलना होगा। इसके साथ हमेशा सतर्कता बरतनी होगी और जिस तरह अन्य रोगों से बचने के लिए हम प्रयत्नशील रहते हैं आगे भी अपने तंत्र को ताकतवर बनाना है और 
'वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो'
वाली उक्ति के साथ चलना है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आज पूरा विश्व कोरोना के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा है।   
                 covid - 19  सहित वायरल- संक्रमण के इलाज के लिए अब हमें अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ानी होगी । शारीरिक व्यायाम करना होगा ।
  आहार में रसोई की  ही  स्वास्थ्य वर्धक चीजों का प्रयोग त था फ ल व सब्जी उपलब्ध न होने पर भोजन के विकल्पों  का आहार  पोषण में सेहत से भरपूर बनाना पड़ेगा ।
वर्क  फोर्म होम  को प्राथमिकता ।
             कार्य स्थलों पर थर्मल स्क्रीनिंग, हैंड- बास  व मास्क का प्रयोग जीवन का अनिवार्य अंग बनाना पड़ेगा । क्योंकि दिन प्रतिदिन संक्रमितो  की संख्या का ग्राफ बढ़ने पर ही है ।
        लो कडाउन  भी कितने दिन रहेगा   ?17 मई तक लगभग 2 महीने( 54 दिन )में सब कोरोना से बचाव के लिए तरीके सीख रहे हैं । जरा सी लापरवाही का खतरनाक मंजर से भी अनजान नहीं है ।
जो इंसान घर से बाहर ही नहीं निकला  और ना ही कोरोना पॉजिटिव के संक्रमण में आया-
          उस महिला का कुछ दिन पहले पपीता खरीदना कोरोना -संक्रमण का कारण बना  -आदि ये केस भविष्य में हमें क्या- क्या सावधानियां रखनी चाहिए ।  
        ह में जीना सिखा रहे हैं । यह अदृश्य वायरस भविष्य में इतनी जल्दी जाने वाला  भी नहीं है।
प्र ति एक नागरिक को बचा ब की सभी सावधानियों का पालन करते हुए सामाजिक जिम्मेदारी
 के तौर पर ट्रांसमिशन की
श्रंखला तोड़ने में योगदान देना
 पड़ेगा।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की   SNBNCBS ने प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाने हेतु  नैनोमेडिसिन का विकास किया है ।
अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आरोग्य सेतु यूजर को आवश्यक सावधानी से जुड़ा नया एप  भी  कारगर होगा।
              इसलिए वैक्सीन आदि बनाने में सरकार तो प्रयासरत है ही हमें भी कोरो ना के संक्रमण से बचाव का प्रतिरोधक रूपी कवच पहनकर जीना चाहिए ।
कोरोना शत्रु को दृढ़ इच्छाशक्ति से ही हरा सकते हैं।
           -  रंजना हरित 
बिजनौर -  उत्तर प्रदेश
यह सच है कि अब हमें इस महामारी के साथ ही जीना पड़ेगा अपने जीवन के तौर-तरीके में बदलाव करना पड़ेगा और हमेशा सोशल डिस्टेंस , मुंह पर कपड़ा रखना या दुपट्टे या गमछे से कवर करना पड़ेगा।  साबुन से हाथ धोना 20 सेकंड तक । हमेशा के लिए इस नियम सभी नियमों को को पालन करना पड़ेगा जैसे 100 साल पहले खसरा ,चेचक जैसी बीमारियां आई थी।
पोलियो और टीवी जैसी बीमारियों के साथ हम सब ने मिलकर लड़ाई लड़ी और हमारे पूर्वज ने जो आयुर्वेदिक तरीके बताए हैं उनका पालन करना चाहिए उस समय भी जब मेडिकल साइंस फेल होता दिखाई दे रहा था तब आयुर्वेद से ही सबने जीवन की जीने की राह जुड़ी थी और अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया था।
डॉक्टर लगे हुए हैं इसके टीके जल्दी आ जाएंगे।
आशा और उम्मीद रखनी चाहिए कि 1 दिन हमें सफलता अवश्य मिलेगी।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्यप्रदेश
वास्तव में यह लगता है कि लॉक डाउन के  बाद भी जीवन पहले की तरह नहीं हो पाएगा । दिल्ली के मुख्यमंत्री भी कह चुके हैं कि को रोना के साथ जीना सीखना होगा ।यह भी सच है कि आज तक किसी भी वायरस का पूरी तरह से उन्मूलन नहीं हो सका ।कोरोनावायरस की वैक्सीन का खोज में अभी समय लग सकता है ।लॉक डाउन तो करोना संक्रमण को रोकने का तात्कालिक उपाय है ,इलाज नहीं। दवा बनने में देर लग सकती है इसलिए उनको ज्यादा लंबा नहीं खींच सकते वह इसलिए भी क्योंकि गरीबी और भुखमरी का सामना करना मुश्किल हो जाएगा।
 डेढ़ ,दो महीने में ही दुनिया के धनी देशों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई ,उनको भी उद्योग धंधे शुरू करने की इजाजत देनी पड़ी। इसलिए अब हमें करो ना के खतरो के बीच ही जीने की कला सीखनी होगी ।इस वायरस की प्रकृति ऐसी है इसका वैक्सीन खोजना कठिन हो रहा है। कब तक हम  घरो मे कैद रह सकते हैं। कोरोना का खतरा लगातार बना रहेगा ,और हम सबको जीने के लिए बाहर निकलना पड़ेगा। ये हम पर निर्भर है कि बाहर कैसे अपनी सुरक्षा करते हैं ,यानी अब दिल को समझाना है कि कोरोना  के संग जीना है ।अब तक दुनियां मे 30 करोड़ लोग एड्स से जान गंवा चुके हैं ।40 साल हो गए लेकिन वैज्ञानिक अब तक इसका इलाज नहीं  खोज  सके। वैसे ही डेंगू से हर साल 10 करोड लोग मरते हैं, इंसेफेलाइटिस ,चमकी बुखार से हर साल सैकड़ों बच्चों की जान जाती हैं ,लेकिन इन सब बीमारियों का सही तोड़ आज तक तक नहीं मिल सका ।
 भारत में ऐसी कई बीमारियां हैं जिनका कोई इलाज नहीं ।उसी तरह कोरोना  के साथ ही हमें जीना ही पड़ेगा ।हम खतरों के अभ्यस्त हो चुके हैं। वैसे ही मनःस्थिति अब हम सबको बनानी होगी ।मन को अनुशासन के बंधन में बांध  सामाजिक दूरी रखनी होगी ।
,,पार्टी तो बनती है ,,जैसे जुमले भूल जाने होंगे और मौज-मस्ती है बीते दिनों की बात हो जाएगी। अब जीवन का एक ही मूल मंत्र होगा ,, सुरक्षित रहना और रोजी-रोटी का इंतजाम करना ,,
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जिस गति से कोरोना वायरस के प्रभावितों की संख्या में वृद्धि हो रही है और अब तक इसका प्रतिरोधक वैक्सीन बनाने में वैज्ञानिकों को सफलता नहीं मिल पाई है , उसे देखकर तो लगता है कि यदि वैक्सीन की खोज हो भी गई , तो भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में सबको महंगी वैक्सीन उपलब्ध हो पाना मुश्किल ही होगा ।
और दो महीने के लाॅकडाउन ने जिस तरह  अर्थव्यवस्था की कमर पहले ही तोड़ दी है ऐसे में देश को आखिर कब तक लाॅकडाउन में रखा जा सकेगा ? धीरे-धीरे उद्योग, धंधे, व्यापार, परिवहन
आदि को सामाजिक दूरी, माॅस्क और स्वच्छता की शर्त पर खोलना ही होगा । भरतीय स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के प्रति कितने जागरूक हैं इसकी बानगी तो हमारे सामने है  ।
हाँ भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य देशों के नागरिकों  के मुकाबले कुछ ज्यादा है , ऐसा देखने में आ रहा है । क्योंकि अन्य देशों की बनिस्बत भारत में कोरोना मृत्यु दर कम है । कोई भी जीवाणु , कोई भी विषाणु प्रारम्भ में तो अपना प्रकोप दिखाते हैं , पर धीरे-धीरे मानव शरीर में  उनसे लड़के या उसके साथ जीने की क्षमता विकसित होने लगती है  और वह जीवाणु व विषाणु शरीर पर कम असर करने लगता है । इस प्रकार इस थमी हुई जिंदगी को पुनः गतिशील करने के लिए, या कोरोना के आदि होकर या सावधानी और सुरक्षा रख कर कोरोना के साथ ही जीने की आदत बनाना होगा , और ऐसा न करने की स्थिति में भुखमरी और डिप्रेशन में लोगों की मृत्यु संख्या बढने लगेगी ।
- वंदना दुबे
  धार - मध्यप्रदेश
कोरोना के साथ जीना नही होना चाहिए। लेकिन यही हालात रहे तो जीना पड़ सकता है किन्तु क्या अभी तक इलाज का मुख्य दवा है कि नही यह भी एक रहस्य है। सब अलग अलग बात करते है। आज लोग भूखे प्यासे लोग अपने बच्चों के साथ पैदल चलने भूखे रहने के लिए मजबूर है । रोजगार का इतना बड़ा संकट अब कठिनाई की ओर करवट लेने की फिराक में है। हमारे देश की आबादी के हिसाब से सुविधाएं कम है। एक तरफ लॉक डाउन , दूसरी तरफ जरूरी सामान की दुकान मगर आप बाजार जा नही सकते क्योंकि लॉक डाउन है।यह कैसा न्याय है।आदमी क्या करें। वर्तमान हालात कई जगह बिगड़ रहे है अर्थात कुछ लोग बेरोजगार जो अपनी गृहस्ती नही चला पा रहे है वो आत्महत्या कर रहे है। चलती  रेलगाड़ी, ट्रक के नीचे घुसकर मर रहे है। जिनकी स्थिति ठीक है वो अपनी स्थिति को ठीक रखने के  लगातार काम कर रहे है। प्राइवेट नौकरी वाले जिम्मेदारी के साथ अपनी नौकरी बचाने के लिए काम कर रहे है।सभी तरह के हालात आगे नही सुधरे तो भविष्य में सबको कोरोना के साथ काम करना पड़ सकता है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
आने वाला समय बहुत ही सावधान रहने का है। क्योंकि  जिस तेजी से भारत में संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं उससे तो लगता है कि आने वाले समय में स्थिति भयावह हो जाएगी। और अभी तक विश्व भर के वैज्ञानिक इस बीमारी की दवा नही बना पाए हैं।मौत का ग्राफ विश्व भर में तेजीसे बढ़ रहा है।
भारत में भी रोज़ हज़ारो की संख्या में लोग संक्रमित हो रहे हैं और एक रिपोर्ट के मुताबिक देश मे जुलाई आते आते ये आंकड़ा सैकड़ो नही, हज़ारों नही,लाखों में भी नही, करोड़ो में पहुँच जाएगा।
जब ये स्थिति नज़र आ रही है तो हम सबको अपना ध्यान ज्यादा रखना पड़ेगा।आने वाले दिनों में गर्मी का भी प्रकोप बढ़ने वाला है। और लोग मास्क लगाने में भी परेशान हो जाएंगे। ग्लव्स की बात तो रहने ही दीजिए।
फिर ऐसा क्या करें कि अगर हम कोरोना की गिरफ्त में आ भी जाए तो उसके शिकंजे में न फँसे।
उसका सबसे अच्छा और बढ़िया तरीका है अपनी रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाना। अभी लॉक डाउन चल रहा है और ये हमेशा नही रहेगा। धीरे धीरे सरकारे छूट दे रही है। लोग पहले से ज्यादा  एक दूसरे के सम्पर्क में आ रहे है और कोरोना संक्रमण भी तेजी से बढ़ रहा है। लॉक डाउन खुलने से खतरा बहुत अधिक बढ़ जाएगा।
तो ऐसे में सिर्फ और सिर्फ सावधानी ही आपको बचा सकती है। और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए विटामिन सी का बहुतायत में प्रयोग करें। रोज निम्बू की शिकंजी पीयें। योग करें। प्रोटीनयुक्त भोजन करें। वसा का कम से कम प्रयोग करे।और शारिरिक और मानसिक रूप से खुद को तैयार रखें।सरकार द्वारा दी गई गाइडलाइंस का भी पालन अवश्य करें। तभी अपने आप को बचाने में कामयाब हो पाएंगे।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
 कोरोना वायरस का तीव्र गति से फैलना और उसकी कोई उचित दवा और वैक्सीन का मौजूद ना होना हमें संकेत दे रहा है कि खुद को कोरोना वायरस के साथ जीने के लिए मानसिक रूप से तैयार करना होगा। यह बीमारी जल्द खत्म होने वाली नहीं है ।सावधानियां और एहतियात बरतते हुए फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहें।हाथों को साबुन से धोते रहें। किसी संदिग्ध व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें। कोरोना वायरस के उचित लक्षण दिखे तो तुरंत हेल्थ स्क्रीनिंग कराएं और एहतियात बरतते हुए बीमारी से बाहर निकलने का अथक प्रयास करें। जिस तरह चिकन पॉक्स जैसी  फैलने वाली बीमारी से सावधानियां बरतते हैं उसी तरह बिना घबराए इससे भी हम खुद को बचा सकते हैं।
  हमारे देश में पिछले कुछ दिनों से प्रतिदिन करीब 3000 मामले सामने आ रहे हैं। जिसके कारण स्वास्थ्य मंत्रालय का भी मानना है कि भविष्य में कोरोना के साथ जीना होगा। 
    दुख के साथ खुशी की बात यह भी है कि 216 जिलों में कोई पॉजिटिव मामला सामने नहीं आया है।भारत में फिलहाल संक्रमितों की संख्या लगभग 59,662 हो चुकी है,करीब 19000 लोग जान भी गंवा चुके हैं पर सुखद बात यह है कि 1,273 लोग ठीक भी हो चुके हैं।
    स्वास्थ्य मंत्रालय के निदेशक लव अग्रवाल और दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया के अनुसार जून-जुलाई में कोरोना वायरस के मामले अपने चरम पर पहुंच सकते हैं।यह लड़ाई मुश्किल है। इससे निपटने के लिए आपसी सहयोग की जरूरत है।
    अतः हम आम जनता का फर्ज बनता है कि सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए खुद को सुरक्षित रखें । अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दें।
                             - सुनीता रानी राठौर
                                ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस के चलते दुनिया को भविष्य में आने वाले ऐसे खतरों से आगाह कराया है जिसके लिए हमें हर वक्त तैयार रहना होगा ! ऐसे खतरों से निपटने के लिए वर्तमान में तैयारियां भी बड़े पैमाने पर करनी होगी ! कोरोना के कहर ने पूरी दुनिया के कदमों को तो रोका पर साथ ही एक दूसरे की मदद को भी आगे आए कोरोना ने समस्त विश्व को आर्थिक चपत तो लगाई किंतु मानवता को बचाने का लक्ष्य सभी देशों को साथ लेकर आया ! अर्थव्यवस्था में मंदी की परवाह न करते हुए सभी ने जरूरी कदम उठाए ! 
हमें कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा और एहतियात कदमों को अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा क्योंकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इस वायरस का प्रभाव कब तक रहेगा इसकी वैक्सीन अब तक नहीं बनी है!  हमें ही सावधानी रखते हुए एहतियात के कदमों को अपनी जीवनशैली बना कोरोना के साथ रहना होगा !
 यह बहुत बड़ी चुनौती है माना कि लॉकडाउन हीऐसा उपाय है जिससे संक्रमण नहीं फैलता किंतु अब आर्थिक स्तर और अन्य तकलीफों को देखते हुए धीरे-धीरे लॉकडाउन में कुछ छूट देकर शहर खुलने का वक्त आ गया है !हमें  कोरोना  वायरस के साथ ही जीना सिखना होगा! कुछ समय पहले केजरीवाल ने कहा था !
पहले भी कई संक्रामक रोग और वायरस आए --चेचक, प्लेग हैजा, 
इबोला वायरस,  सास वायरस सभी का सामना किया! बस सोच सकारात्मक  हो तो बड़ी से बड़ी कठिनाई  छोटी लगने लगती है! 
 प्रमाणित वैक्सीन जब तक नहीं  बनती तब तक हमे कोरोना  से बचने के लिए  सकारात्मक सोच ,संयम, धैर्य के साथ संक्रमण न फैले इसके लिए एहतियात कदमों को अपनी जीवन शैली बना कोरोना  के साथ रहना होगा!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है कोई नहीं जानता। लेकिन इस विषय को देखते हुए। कि क्या कोरोना के साथ जीना होगा..? तो यह हमें तब भी पता चलेगा जब 17 मई को हम देखेंगे की बाजार किस तरह खुलते हैं। कितनी छूट दी जाएगी लोग किस तरह से नियमों का पालन करेंगे या फिर सोशल डिस्टेंसिंग का उल्लंघन करते हुए कोरोना को यहीं रुकने के लिए मजबूर करेंगे। ऐसे बहुत से प्रश्न है ऐसे में ऑफिसों में वर्कर्स के कार्य करने की क्या नीतियां तय की जाएंगी।किस तरह से कार्य करने के लिए लोगों को कहा जाएगा ।और जो कहा जाएगा  उन नियमों का लोग पालन करेंगे भी कि नहीं.. ऐसी बहुत सी बातें हैं। रही बात कोरोना के साथ जीने की तो जिसका जन्म हुआ है उसका अंत निश्चित है।समय अवधि कम ज्यादा हो सकती है। लेकिन आज नहीं तो कल कोरोना संक्रमण खत्म होगा ही। क्योंकि हर 100 साल बाद एक महामारी आती है।यह अभी हाल ही में सब ने पढ़ा होगा। तो आई है तो निश्चित ही चली भी जाएगी। हां.. भविष्य में कुछ मुश्किलों का सामना जरूर करना पड़ सकता है। उसके लिए हमें अपने मन और विचारों से तैयार रहना होगा।जिससे कि हम परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को उसमें ढालकर समयानुसार चलना  सीखना होगा। चाहे वह कोई भी समस्या हो या कोरोना के साथ जीना हो।
हमें अपने इरादे मजबूत रखने होंगे।
         -  वंदना पुणतांबेकर 
                  इंदौर - उत्तर प्रदेश
जी हां, यह निर्विवाद सत्य है कि हम सबको भविष्य में कोरोना के साथ ही जीना होगा। अब चाहे हंसकर जिंदगी काटो अथवा रोकर। कोरोना का शाब्दिक अर्थ भी यह संकेत दे रहा है-- को=  क्यों। रोना = रोना। अर्थात क्यों रोना??
         देश- विदेश के सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञ रात- दिन नए-नए अनुसंधान करके इसकी वैक्सीन और दवा निर्माण में लगे हैं। अतः कारगर समाधान खोजने के अनिश्चित समय में हम सबको इस बीमारी के प्रसार को रोकने के लिए मास्क, सैनिटाइजर के साथ बाहर निकलने में भी, प्रति व्यक्ति से 2 गज की दूरी बनाए रखने एवं नियमित व्यक्तिगत स्तर पर योग, प्राणायाम, सात्विक आहार; भारतीय जीवन पद्धति ---सादा जीवन उच्च विचार ,यानि बिलासिता से दूर, आध्यात्मिक स्तर पर--- धार्मिक वाह्य आडम्बरों ,शोभा यात्राओं , आयोजनों में भीड़ से बचने हेतु बहिष्कार कर घर पर ही पूजा- पाठ करना, परिवार के साथ हवन एवं मंत्रों से आत्मिक शुद्धीकरण एवम पर्यावरण को स्वच्छ एवं शांत बनाने के लिए प्रतिदिन इन सब को अमल में लाना होगा।
        इस प्रकार जीवन- यापन करते हुए तन- मन से सकारात्मक रहते हुए ही, हम सब परिवार ,समाज एवं देश को कोरोना ही क्या, हर आक्रामक, संक्रामक, महामारी से बचा सकते हैं।
     इन दिनों मीडिया को भी अशोभनीय, भद्दे कार्यक्रम दिखाने की अपेक्षा ज्ञानवर्धक, स्वास्थ्यवर्धक, धार्मिक, स्वस्थ मनोरंजन से भरपूर हास्य सीरियल का प्रसारण ही होना चाहिए जिससे व्यक्ति की नकारात्मकता दूर होगी। करो ना एक दुष्ट व्यक्ति जैसा है अतः कोरोना को मारने का जब तक इंतजाम नहीं हो जाता; तब तक हमें उसके साथ रहते हुए उसकी दुष्टता से तो बचना ही है।
 - डॉक्टर रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
हाँ! भविष्य में इससे मुक्ति की संभावना बहुत कम है। जिस तरह से आहिस्ता-आहिस्ता कोरोना अपने पग से पूरी पृथ्वी वामन की तरह नापता जा रहा है, उससे तो यही लगता है कि यहाँ संसार में इसका स्थाई निवास होने जा रहा है। खासकर तब तक, जब तक इसका मुक्कमल इलाज नहीं खोज लिया जाता। 
हम कितना भी बचना चाहें, बच नहीं सकते। जैसे-जैसे लाॅकडाउन खुलता जाएगा, इसका प्रकोप बढ़ता जाएगा। सोशल डिस्टेंसिंग पूर्णतः संभव ही नहीं। 
एक देश से दूसरा देश, एक राज्य से दूसरा राज्य, एक घर से अनेक घर इसके संपर्क में आएँगे ही आएँगे। हम कितना भी प्रयत्न कर लें, किस-किस से और कैसे दूर रह सकते हैं। अपने परिवार, मुहल्ले, डॉक्टर, रोजमर्रा के साथी से हमें मिलना ही होगा और इस तरह कोरोना हमारे जीवन का एक जरूरी हिस्सा बन जाएगा।
हाँ, हम अभी के तमाम एहतियात का पालन करते रहना होगा। यथा - हाथ धोना ( कठिन क्योंकि पानी की विकराल समस्या द्वार पर ) दूर से बातें करना ( पुराने जमाने का छुआछूत शुरू ) और भी उपाय अंशतः साथ देंगे। 
तो हमें एक नवीन रंगत की जंग के साथ रहने, बरतने, जीने का शऊर सीख लेना चाहिए। 
बस, शुभकामनाएंँ हैं हाथ में, उपाय नहीं। आँखें चुराने से कुछ नहीं होगा, यह सच्चाई है।
- अनिता रश्मि
रांची - झारखण्ड
भविष्य में हमें कोरोना के साथ ही जीना होगा । महाराष्ट्र में कोरोना पीड़ितों का हाल बेहाल है ।अस्पताल की तस्वीरें डरा रही हैं । अस्पताल के एक बेड पर 2 मरीज मिल जाएंगे , वहीं पर मरीजों की लाशें पड़ी हैं ।
मुम्बई में कोरोना के 12 हजार मामले हैं । खतरा बढ़ता जा रहा है । 
 महाराष्ट्र में संक्रमण होने से अस्पताल भी बंद हैं ।
सरकारी अस्पताल में बीमारियों को न्योता दे रहे हैं ।
 हमारी साँसों के साथ कोरोना का वायरस रहेगा ।
अब तो भविष्य  बुरे हालात में जा सकता है । कोरोना बम की प्रलय आ गयी है । अर्थव्यवस्था में आर्थिक मंदी आयी है । 
लोगों को नोकरी से हाथ धोना पड़ा है ।प्रवासी  मजदूरों  के बुरे हाल हो गए ।  राष्ट्र की ये रीढ़ हैं । इनको सम्मान नहीं मिला , इनका हमेशा से शोषण होता आया है ।
देश निर्माण में इनकी कमी  आएगी।
 कोरोना से मरनेवालों की संख्या बढ़ेगी और आर्थिक दुष्परिणाम  आएँगे । 
कोरोना का वैक्सीन अभी तक नहीं बना है । हमें तो वायरस  के साथ ही जीने पड़ेगा । बलवान  ताकतवर इंसान एक वायरस को नहीं मार सका , वही वायरस अमीर -गरीब  , ऊँच  - नीच , नस्ल , वर्ण को नहीं देख के पूरी दुनिया का दुश्मन बन गया है । इस रक्तबीज को मारने दुर्गा माँ  का भक्तों  की पुकार सुननी होगी ।
तभी जिंदगी का सुचारू रूप में  पुनर्जन्म होगा ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
भविष्य में कोरोना के साथ ही जीना होगा क्योंकि" परिवर्तन का मानव के मस्तिष्क पर व्यापक प्रभाव पड़ता है l डरपोक लोगों के लिए धमकी भरा होता है क्योंकि उन्हें लगता है कि स्थिति और बिगड़ सकती है और आशावान के लिए उत्साह का स्रोत, उत्साह पूर्ण होता है l वे सोचते हैं स्थिति और बेहतर हो सकती है l "-राजा हिटनी जूनियर 
पिछले कई महीनों से कोरोना की मार झेल रही पूरी दुनियाँ आने वाले समय में कहाँ ख़डी होगी, क्या होगा, स्वयं का, दोस्तों का,
 परिजनों का,क्या होगा मेरी आजीविका का ये ऐसे प्रश्न हैं जो प्रत्येक मानव मन को बेचैन किये बैठे हैं l 
भविष्य हमें निश्चित रूप से कोरोना के साथ लम्बे समय तक गुजरना पड़ेगा, इस बारे में कई अनुमान हैं लेकिन ये सभी इस बात पर निर्भर करते हैं कि सरकारें और समाज कोरोना वायरस का मुकाबला कैसे करते हैं? 
हम उम्मीद करते हैं कि इस संकट के दौर से ज्यादा बेहतर, ज्यादा मानवीय अर्थ व्यवस्था बनकर उभरेंगे l विपरीत अनुमान यह भी है कि अधिक बुरे हालात भी हो सकते हैं लेकिन निःसंदेह आने वाला समय हमें कोरोना के साथ ही गुजारना होगा लेकिन -
"चिंता चिता के समान है l"
"चिंता करता हूँ मैं जितनी उस अतीत के सुख की, 
उतनी ही अनंत में बहती 
जाती है रेखाएं दुःख की l"
                    -जय शंकर प्रसाद 
लेकिन हमें सावधान होना है, भय ग्रस्त नहीं. क्योंकि "भय से ही दुःख आते हैंऔर ग़म से ही मृत्यु होती है l "-विवेकानंद 
आँखों में रहा, दिल में उतर कर नहीं देखा l "कश्ती "के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा ll 
जीवन में" ज्वार भाटे "के रूप में सुख दुःख आते ही रहते हैं l हमें आने वाले समय में स्थित प्रज्ञ होकर तर्क संगत निर्णय लेने
होंगे -
1. कैसे आर्थिक क्रिया कलाप क्लाइमेट चेंज, मजदूरों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को अनुकूल बनाये रख सकेंगे l 
2. कैसे हम सामाजिक तौर पर न्यायोचित श्रेष्ठ पर्यावरण बना सकेंगे l 3. कोरोना संक्रमण सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों का माध्यम है ऐसे में ग्लोबल रेस्पॉन्स कैसा होगा l 4. कोविड -19 और क्लाइमेंट चेंज से निपटना तब ज्यादा अच्छा होगा जब हम गैर जरूरी आर्थिक गतिविधियों को कम कर देंगे l 
5. नए संक्रमण को रोकने के lलिए एडवाइजरी की पालना करनी ही होगी जिससे अन्य नियंत्रण रणनीतियों में भी मदद मिलेगी l 
6. यदि कारोबार और मुनाफा नहीं होगा तो कामगारों को वेतन देना सम्भव नहीं होगा और कामगारों के अभाव में उद्योगधंधे चौपट हो जायेंगे l हम आर्थिक मंदी की चपेट में आ जायेंगे l 7. राज्य सरकारें एवं उद्योगपति वर्किंग वीक को छोटा करें जिससे कर्मचारी /मजदूर कम प्रेशर में काम कर सकें l 
8. हैल्थ और सोशल सेक्टर क्राइसिस भी देखने में आ रहा है l जीवन जीने के लिए आवश्यक वस्तुएँ, दवाइयाँ खरीदने के लिए आजीविका आवश्यक होगी l 
9. मार्केट हमें अच्छी क्वालिटी का जीवन देता है इस संक्रमण काल में इसे सुरक्षा मिलनी चाहिए 
10. इस समस्या पर भी विचार करना होगा कि मार्केट को चलाने के लिए लॉक डाउन नहीं किया जाता है तो संक्रमण फैलने का खतरा भी रहेगा l 
11. समाज में आपसी मदद संक्रमण को प्रभावी तौर पर रोकने में कारगर साबित होगी l कम्युनिटी नेट वर्क जोख़िम भरे लोगों को सुरक्षा देंगे तथा पुलिस चिकित्सा के आइसोलेशन की व्यवस्था कराएंगे l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कोविड-19 की वजह से लागू लॉकडाउन में छूट या ढील और प्रवासी श्रमिकों की घर वापसी की पृष्ठभूमि में शुक्रवार को भारत सरकार ने कहा कि हमें कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा और ऐहतियाती कदमों को अपनी जीवन शैली का हिस्सा बनाना होगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने कहा कि देश में कोविड-19 मरीजों की संख्या दोगुने होने का समय पहले के मुकाबले कम हुआ है। उन्होंने बताया कि दो दिन पहले तक औसतन 12 दिन में संक्रमित लोगों की संख्या दोगुनी हो रही थी लेकिन आज यह औसत 10 दिन का है। लेकिन साथ ही अग्रवाल ने इस बात पर जोर दिया कि इन दिनों ‘क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए' का यदि कड़ाई से पालन किया गया, तो कोविड-19 के मामलों को चरम पर पहुंचने से रोका जा सकता है। अग्रवाल ने कहा,‘ऐसे में जब हम लॉकडाउन में छूट या ढील की बात कर रहे हैं और प्रवासी श्रमिक अपने-अपने घर लौट रहे हैं, तो हमारे सामने एक बड़ी चुनौती पैदा हो रही है और हमें अब कोरोना वायरस के साथ रहना सीखना होगा।'
संयुक्त सचिव ने कहा,‘और जब हम वायरस के साथ जीना सीखने की बात कर रहे हैं तो यह महत्वपूर्ण है कि स्वयं को वायरस संक्रमण से बचाने के लिए जारी दिशा-निर्देशों को पूरा समाज अपने अंदर समाहित करे और उसे अपनी जीवन शैली का हिस्सा बनाए।'उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ी चुनौती है और सरकार को इसके लिए समाज का सहयोग चाहिए। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी हाल ही में लॉकडाउन में कुछ छूट देते हुए लोगों से कहा था कि अब शहर को खोलने का वक्त आ गया है और सभी को इस कोरोना वायरस के साथ जीना सीखना होगा।
कोरोना वायरस संक्रमण पर जिलेवार स्थिति बताते हुए अग्रवाल ने कहा कि देश के करीब 216 जिलों में कोरोना वायरस संक्रमण का अब तक कोई मामला सामने नहीं आया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक मई को देश के 733 जिलों को विभिन्न श्रेणियों में बांटते हुए 130 को रेड जोन, 284 को ऑरेंज जोन और 319 जिलों को ग्रीन जोन में रखा था। अग्रवाल ने बताया कि 42 जिलों में पिछले 28 दिन से और 29 जिलों में पिछले 21 दिन से कोविड-19 का कोई नया मामला नहीं आया है। उन्होंने बताया कि 36 जिले ऐसे हैं, जहां पिछले 14 दिन में कोविड-19 का कोई नया मामला नहीं आया है। वहीं, 46 जिलों में पिछले सात दिन से कोरोना वायरस संक्रमण का कोई नया मामला सामने नहीं आया है। 
भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के जून या जुलाई में अपने चरम पर पहुंचने संबंधी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया की टिप्पणी के संबंध में पूछे जाने पर अग्रवाल ने कहा,‘क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए' का यदि हम कड़ाई से पालन करते रहें, तो संभवत: हम (कोविड-19 के संक्रमण के मामलों में) चरम पर पहुंचे ही नहीं और हमारा ग्राफ सीधा ही रह जाए।' 
यह पूछने पर कि यदि कोरोना वायरस संक्रमण जून-जुलाई में अपने चरम पर पहुंचता है तो देश में संक्रमित लोगों की संख्या कितनी होने की आशंका है, अग्रवाल ने कहा कि अलग-अलग संस्थाओं ने अपने विश्लेषण के आधार पर कुछ हजार से लेकर करोड़ तक की संख्या बतायी है। उन्होंने कहा,‘हम मामलों के बढ़ने की वर्तमान दर, संक्रमित लोगों की संख्या दोगुनी होने में लगने वाले समय आदि के आधार पर विश्लेषण करते हैं। फिलहाल संक्रमित लोगों की संख्या दोगुनी होने में 10 दिन का वक्त लग रहा है, हम उन जिलों और शहरों का भी विश्लेषण करते हैं जहां मामले बढ़ रहे हैं।'
अग्रवाल ने कहा,‘उसके आधार पर हम तय करते हैं कि कहां और क्या कदम उठाना है। फिलहाल हमें संक्रमित लोगों की संख्या दोगुनी होने में लगने वाले समय को बढ़ाना है।' रेखांकित करते हुए कि कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र, गुजरात,दिल्ली, राजस्थान और मध्यप्रदेश में पिछले कुछ दिनों में मामले बढ़े हैं, अग्रवाल ने इस बात पर जोर दिया कि वहां वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कड़े उपाय और लोगों को सामाजिक दूरी बनाकर रखने जैसे कदम उठाने होंगे। 
संयुक्त सचिव ने कहा,‘ऐसे में जबकि प्रवासी श्रमिक अपने-अपने घर लौट रहे हैं, यह ध्यान रखना होगा कि यात्रा के दौरान संक्रमण से बचने के लिए हर संभव ऐहतियात बरती जाए और पृथक-वास तथा पृथक-वास केन्द्रों के नियमों का भी पालन किया जाए।' उन्होंने कहा,‘हम सभी श्रमिकों से अनुरोध करते हैं कि वे इस बात को समझें कि यह उनके, उनके लोगों, गांव और शहर की भलाई के लिए है। उन्हें ‘दो गज की दूरी', स्वच्छता आदि बनाकर रखनी होगी और स्थानीय प्रशासन के साथ सहयोग करना होगा।' 
देश में अभी तक इलाज के बाद कोरोना वायरस संक्रमण से मुक्त हुए लोगों की जानकारी देते हुए लव अग्रवाल ने कहा कि देश में कोविड-19 मरीजों के संक्रमण मुक्त होने की दर 29.36 प्रतिशत है। उन्होंने बताया कि देश में अभी तक इलाज के बाद 16,540 लोग संक्रमण मुक्त हुए हैं, जबकि पिछले 24 घंटे में 1,273 लोगों को अस्पतालों से छुट्टी दी गई है। अग्रवाल ने बताया कि कोविड-19 के जिन मरीजों का इलाज चल रहा है उनमें से 3.2 प्रतिशत को ऑक्सीजन दिया जा रहा है, 4.2 प्रतिशत आईसीयू में हैं, जबकि 1.1 प्रतिशत को वेंटिलेटर पर रखा गया है। 
मंत्रालय ने बताया कि पिछले 24 घंटे में, शुक्रवार सुबह आठ बजे तक देश भर में कोरोना वायरस संक्रमण के 3,390 नए मामले सामने आए हैं, जबकि कोविड-19 से 103 लोगों की मौत हुई है। अग्रवाल ने बताया कि देश में अभी तक कुल 56,342 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई है और 1,886 लोगों की संक्रमण से मौत हुई है। अग्रवाल ने बताया कि आईसीएमआर (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद) ‘कॉन्वेलसेंट प्लाजमा थेरेपी' के सुरक्षित होने और इसके वांछित नतीजे देने का आकलन करने के लिए 21 अस्पतालों में चिकित्सीय परीक्षण करेगी। ‘कॉन्वेलसेंट प्लाजमा थेरेपी' के तहत डॉक्टर कोरोना वायरस संक्रमण से मुक्त हो चुके लोगों के रक्त से प्लाजमा लेकर उसका उपयोग अन्य कोविड-19 मरीजों के इलाज मे करते हैं। 
डॉक्टर संक्रमण मुक्त हुए लोगों के प्लाज्मा को ‘कॉन्वेलसेंट प्लाज्मा' कहते हैं क्योंकि उसमें कोरोना वायरस का एंटीबॉडी मौजूद होता है। जिन अस्पतालों में ये परीक्षण होने हैं, उनमें से पांच महाराष्ट्र में हैं जबकि गुजरात में चार, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश में चार-चार और कर्नाटक, चंडीगढ़, पंजाब, तेलंगाना में एक-एक हैं। इस दौरान अग्रवाल ने बताया कि ट्रेन के 5,231 डिब्बों को कोविड-19 देखभाल केन्द्र में तब्दील किया गया है, उन्हें 215 स्टेशनों पर लगाया जाएगा और उनका उपयोग कोरोना वायरस से संक्रमित बहुत मामूली, हल्के लक्षणों वाले मरीजों के इलाज के लिए किया जाएगा।
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " कोरोना अन्य बिमारियों की तरह जीवन का हिस्सा बनता नज़र आ रहा है । फिर भी हम सबको सावधान हो कर कोरोना की जंग से लड़ना होगा । विशेष रूप से जब कोई दवाई तैयार नहीं हो जाती है।
                                                         - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र







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