सरकार से लेकर व्यापारियों तक की प्रथम पसंद है शराब ?

कोरोना वायरस के चलते सरकार को लॉकडाउन लागू करना पड़ा है । जिससे सरकार की हालत बहुत खराब हो गई । सिर्फ सरकार ने अपनी हालत सुधारने के लिए शराब के ठेके खोल दिये । शराब के व्यापारियों ने भी शराब का कोई संकट पैदा नहीं होने दिया है । शराब हर स्थिति में उपलब्ध हो रही है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
भाजपा सरकार ने पिछले साल से कई प्रदेशों में ठेका प्रथा खत्म कर खुद ही शराब दुकान चलाने का फैसला लिया। इस फैसले के पीछे यह बताने की कोशिश की गई कि प्रदेश में शराब लॉबी को खत्म किया जा रहा है और आने वाले साल में शराबबंदी कर दी जाएगी, लेकिन शराब लॉबी खत्म होने के बजाय उनके द्वारा तैयार नए-नए ब्रांड की शराब दुकानों में बड़ी मात्रा में खपाई जाने लगी और पापुलर ब्रांड की शराब दुकानों से गायब सी हो गई। बताया जाता है कि नए-नए ब्रांड की शराब में 70 से 80 फीसदी कमीशन सरकार को मिल रहा था और मंहगी शराब खरीदने पर ग्राहकों की जेब हल्की हो रही थी। बहरहाल, प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में शराब प्रेमियों को उनके पसंद के ब्रांड की शराब दुकानों से मिलने लगेगी।
विभागीय सूत्रों की मानें तो आबकारी विभाग के कुछ अफसर ही नए-नवेले शराब का ब्रांड तय कर उसकी सप्लाई मंगवाते रहे और आइबी, बीपी, ग्रीन लेबल, ऑफिसर च्वाइस, रायल स्टेज (आरएस) समेत बियर में थंडर बोल्ट, फाइव थाउजेंट की सप्लाई कम मात्रा में मंगवाकर उनके स्थान पर सींबा आदि नए ब्रांड की शराब दुकानों में बिकवाने लगे। वह भी ब्रांडेड शराब और बियर से अधिक दर पर। सूत्रों का दावा है कि मोटी रकम देने वाले शराब निर्माताओं की शराब चाहे ग्राहकों को पसंद आए या न आए, उसे जबरिया अफसर ही बिकवाते रहे हैं। एक मंत्री ने तो  एक न्‍यूज चैनल से कहा कि,’ कुलीन लोग जैसे डॉक्‍टर, इंजीनियर और वकील काम की थकान के बाद शराब पीते हैं। वे अच्‍छी नींद आने के लिए पीते हैं। इसे श्‍राब की लत नहीं बोल सकते। इसके चलते अंग्रेजी शराब पर प्रतिबंध लगाना मुश्किल हो सकता है।’
शराबी को शराब चाहिए जेब चाहे ख़ाली हो . पिलाने वाले मिल ही जाते है । आज के दौर में पीना भी स्टेट्स
सिंबल है न पिनें वाला पिछड़ा कहलाता है . 
पुरुष तो पुरुष महिलाओं की भूख संख्या बढ़ती जा रही है । 
बेधड़क पीने लगी है ।
आज हर वर्ग के लोग शराब को पंसद करने वाले मिल जायेगे 
अबशराब पीना बुरा नहीं समझा जाता . लोग खुलेआम पीते है । 
 कहीं कहीं तो माँ - बाप बच्चों सब साथ बैठ कर पीते है । 
आज शराब जन जन की पंसद बनती जा रही है 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना वायरस कोविड 19) को नियंत्रित करने के लिए देशभर में लॉकडाउन  का तीसरी चरण चल रहा है, जो 17 मई तक जारी रहेगा। इस दौरान देश भर में 1800 कोरोना मरीजों की मौत हो गई। 52 हजार से अधिक संक्रमित है। दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, यूपी, एमपी, तमिलनाडु, केरल, बिहार सबसे अधिक कोरोना से संक्रमित है। लॉकडाउन के तीसरे चरण में केन्द्र सरकार की ओर से शराब की बिक्री शुरू करा दिया गया है। यह भी सही है कि सरकार से लेकर व्यापारियों तक कि प्रथम पसंद शराब है, क्योंकि शराब के कारोबार में सरकार से लेकर व्यापारियों तक को राजस्व की प्राप्ति सबसे अधिक होती है। यही कारण है कि लॉकडाउन में भी सरकार ने शराब दुकान को खोलवाने का फैसला सरकार ने अर्थब्यवस्था को मजबूर करने के लिए किया।
जिस दिन शराब की दुकानों को खोला गया, शराब खरीदने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा। लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाते हुए लोगों ने सोशल  डिस्टेंसिंग को तार तार कर दिया। शराब की कीमत को दिल्ली में 70 प्रतिशत  बढ़ा दिया गया फिर भी खरीदने वालों की भीड़ हर रोज उमड़ने लगी। सबसे आश्चर्य की बात तो यह देखने को मिला कि दिल्ली के सभी 13 जिला कोरोना संक्रमित के कारण रेड जोन में है। इसके बाद भी दिल्ली सरकार के आदेश पर शराब की दुकानों को खोल दिया गया। इससे तो कई गुना बेहतर झारखंड राज्य है जहां सिर्फ रांची के हिंदपीढ़ी इलाका में 93 कोरोना संक्रमित है जहाँ रेड ज़ोन घोषित किया गया है। बाकी जिला ग्रीन ज़ोन में है। झारखंड सरकार ने शराब दुकान को खोलने की बात तो दूर किसी तरह की छूट 17 मई तक नही दिया है ताकि कोरोना को नियंत्रित किया जा सके।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
आज से पहले तो हम शराब को मात्र नशा करने का पेय समझते थे आज के लाॅकडाउन ने हमें बताया की शराब राज्सव पाने का सबसे बढ़ा माध्यम हैं सरकार के लिये है यही वो कारण हैं जो राज्य सरकारें शराब पर प्रतिबंध नहीं लगाती हैं ओर तो ओर राज्य सरकारों ने लाॅकडाउन में सरकार का खाली खजाना भरनें के लियें भी 70% से 30% तक कोरोना टेक्स लगाया हैं जिस से ऐसा प्रतिक होता है की सरकार की पहली पसंद शराब ही हैं व्यापारियों के लिये भी बढ़े ही फायदे का व्यापार हैं न प्रचार न प्रसार पता चलते ही शराब की दुकानों पर लम्बी लम्बी लाईन लगना मन चाहा दाम व्यापारियों की तो बस बल्ले बल्ले हैं तो क्यों न शराब व्यापारियों की पहली पसंद शराब होगी।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
राज्य सरकारों व व्यपारियो का शराब बिक्री पहली पसंद होना सरकार की तय रणनीति का ही एक हिस्सा है । जिसमे आश्चर्य की कोई बात नही है । जिस चीज से ज्यादा कमाई हो और गुल्लक तुंरत भर जाती हो, तो जाहिर सी बात है वो जरिया हर किसी का पसंदीदा होना स्वाभाविक है ।
दरसल शराब और पेट्रोल को जीएसटी से बाहर रखा गया है । जिससे राज्य सरकारें गुल्लक भरने के लिए अपनी सुविधानुसार इनपर टैक्स लगाकर राजस्व वसूली करती है । जाहिर सी बात है यदि सरकार को अपनी मनमर्जी टैक्स के रूप में एक मोटी रकम प्राप्त हो रही है तो समाज मे उस चीज की खपत एक लंबे स्तर पर होगी और फिर व्यापारियों को भी अच्छी आमद होना स्वाभाविक है । लोकडाउन में दिल्ली सरकार द्वारा शराब पर लगाया गया 70 प्रतिशत टैक्स चर्चा का विषय है । जहां 70 प्रतिशत टैक्स के वावजूद भी लोग उसे ऐसे स्टॉक करते नजर आए मानो कोरोना मुक्ति की दवाई बट रही हो ।
महज इसी टैक्स के कारण समाज में शराब को बुराई के रूप में स्वीकार न करने वाली सरकारों व ब्लैक व शराब को ओवर रेटिंग बेच कर मोटी रकम कमाने वाले व्यपारियो की निसंदेह शराब प्रथम पसंद है । 
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर -  उत्तरप्रदेश
शराब एक ऐसी दवा है जिसके मोहताज अमीर और गरीब सभी होते है। बारो और शराब दुकानों में सब एक समान है। शराब तो बड़े बड़े घरों में शान शौकत से पी और रखी जाती है। काम से थके सरकार के आदमी और घर आते व्यापारी शाम होते ही थकान के बहाने शराब पीकर शांति महसूस करते है। और खाने में तमाम तरह के शाकाहारी और मांसाहारी खाने का आनन्द उठाते है। चाहे कोई भी हो शराब के शौकीन लोग  रहते है। इससे कहा जा सकता है कि शराब के शौकीन सरकार और व्यापारी दोनों है क्योकि पसंद वाली चीज के ही लोग शौकीन होते या रहते है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में लगभग 32 प्रतिशत पुरुष और 12 प्रतिशत महिलाएं शराब का सेवन करते हैं। इस दर में समय-समय पर उतार-चढ़ाव आते रहते हैं परन्तु फिर भी शराब की खपत के मामले में भारत विश्व में तीसरा सबसे बड़ा बाजार है।
सरकार और व्यापारियों की प्रथम पसन्द शराब होना लाजिमी है क्योंकि शराब और पेट्रोल ऐसे दो व्यवसाय हैं जिन पर राज्य सरकारें अपने अनुसार टैक्स लगाकर सबसे ज्यादा राजस्व वसूली हैं और व्यापारियों के मुनाफे की दर भी अन्य व्यवसायों की अपेक्षा शराब व्यवसाय में अधिक है।
लाॅकडाउन में शराब बिक्री पर छूट के पश्चात हर राज्य में शराब की दुकानों पर उमड़ी भीड़ से यह प्रतीत होता है कि शराब की पसन्द के मामले में जनता सबसे पहले नम्बर पर आती है तभी तो कोरोना के वर्तमान भयभीत करने वाले माहौल में भी अपनी जान की परवाह न कर बिना सुरक्षात्मक उपायों के शराब के लिए दुकानों पर टूट पड़ी। 
भारत में पिछले दस वर्षों में शराब की खपत दोगुनी से ज्यादा बढ़ी है। यह खपत केवल सरकार और व्यापारियों, (जिनको इससे लाभ ही लाभ है) की पसन्द से नहीं बल्कि शराब का सेवन करने वाले लोगों की पसन्द की वजह से बढ़ी है जबकि शराब सेवन से जनता ही सभी प्रकार (आर्थिक, शारीरिक, सामाजिक) का नुकसान उठाती है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
     जब तन की प्यास शराब पीकर होती हैं तो सोच लीजिये इसमें सरकार  और व्यापारी कहां पीछे रह सकते हैं। जैसा देश वैसा मन? जहाँ प्रातः काल की बेला मदिरा से प्रारंभ होती हो, दिनचर्या परिवर्तित होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीँ होता। जिसे इसकी लत लग जाये, कर्ज लेकर, कर्म करने लगता है। हम कितना भी उद्देश्य दे दें,
उसके परिणाम के बारें में बता दे कुछ नहीं होने वाला हैं। एक नारा भी हैं, चेतावनी भी हैं, शराब स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।  कच्ची शराब से लेकर बहुमूल्य शराब तक हैं। जिसका आनंद ही आनंद है? प्रत्यक्ष रूप से देख लीजिए जो इसका सेवन करता हैं, उसके हाव-भाव, उसके विचार मंथन की कड़ी में कहाँ-कहाँ ऐसे विचार आते हैं, सुन कर हैरानी होने लगती हैं। खैर? अगर दवा के रुप में सेवन किया जाए तो नुकसान नहीं हैं। अगर जरूरत से ज्यादा सेवन किया जाए तो नुकसान होगा ही। शराब की प्रतिष्ठित दुकानें संचालित हो रही है तथा अनेकों व्यावसायिकता करण का जन्म हो रहा हैं। जहाँ निम्न वर्ग से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त महिला-पुरुष आनन्दित हो रहे हैं। यह हमारा दुर्भाग्य हैं? भारतीय संस्कृति प्राच्यवाद की ओर अग्रसर है। कई-कई शराब के व्यवसायिक पूंजीपति बन गये हैं, जिसके परिणामस्वरूप सरकारी तंत्र को फायदा हैं। चुनाव के दौरान सभी प्रकार की दुकानें बंद करवा दी जाती हैं, तरह-तरह के नियम के तहत  प्रतिबंधित कर दिया जाता हैं, जिसके उपरान्त भी चुनाव परिणामों को   प्रभावित करने व्यवस्था हो ही जाती हैं । आज वर्तमान परिदृश्य में शराब का महत्व देख लीजिएगा। जब पहली बार  वह भी इतना लम्बा लाँकडाऊन हुआ तो सरकार-व्यापारियों की अर्थव्यवस्था नगण्य हो गई, जैसे ही संचालित किया गया, तो विभिन्न समुदायों की अपार भीड़ उमड़ पड़ी। जैसे विष्णु भगवान अमृत जल धारा लेकर पृथ्वी पर अवतरित हुए हो? अंत में यही कह सकते हैं, शराब प्रसन्नता की ओर अग्रसर हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
शराब व्यापारियों की पहली पसंद तो है ही क्योंकि इसमें खूब कमाई होती है और सरकार को भी खूब टैक्स मिलता है।
लेकिन कोरोनावायरस संकट को देखते हुए अभी शराब पर प्रतिबंध जारी रहना चाहिए था क्योंकि इससे लाक डाउन करने का सही लाभ नहीं मिल पायेगा और इन दुकानों पर फिजीकल  डिस्टेंस का पालन बिल्कुल भी नहीं होगा जिससे संक्रमण का खतरा बहुत बढ जायेगा।
लगता है सरकार के पास पैसा नहीं बचा है। खजाना खाली हो गया है और कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं है। इसलिए वे शराब की कीमतें बढ़ा कर उसकी बिक्री करवा रही है। सरकार दोहरा लाभ कमा रही है।
उन्हें आम जनता से कोई मतलब नहीं जहां 50000 मर गये वहां  देश पांच लाख भी पर जाये तो इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। इनका कोश तो भर जायेगा। मरती तो आम जनता ही है।
जनता का पैसा जनता से लूटने का इससे अच्छा अवसर कहा मिलेगा।
दोहरी मार तो आम जनता पर पडे़गी।
शराब की दुकाने खोलकर देश में हजारों परिवारों का भविष्य और जीवन दांव पर लगा दिया गया है।
देखना एक माह है अंदर ही देश में संक्रमितों की संख्या एक लाख से अधिक बढ जायेगी।
- राजीव नामदेव " राना लिधौरी "
टीकमगढ़ - मध्यप्रदेश
लगभग  सरकार  से  लेकर  व्यापारियों  तक  की  प्रथम  पसंद  शराब  है  जो  कतई  उचित  नहीं  है । आखिर  क्यों  ?  क्या  इसके  बिना  काम  नहीं  चल  सकता  ?  महत्व  दाल-रोटी  का  है  या  शराब  का ?  क्या  यह  प्रवृत्ति  जन्मजात  होती  है  ?  जो  इसका  सेवन  नहीं  करते, वे  मर  जाते  हैं  ?  कई  ऐसे  सवाल  हैं  जो  सोचने  को  मजबूर  करते  हैं  । 
        पैसे  वाले  तो  ठीक  हैं  मगर  जब  साधारण  मध्यम  वर्ग  के  लोग  इस  लत  का  शिकार  होते  हैं  तब  उनका  घर-परिवार  औग  बच्चों  की  क्या  स्थिति  होती  है, कल्पना  की  जा  सकती  है  । 
       इसकी  खरीद  में  जो  पैसा   लगता  है,  उससे  पौष्टिक  भोजन  किया  जा  सकता  है  जिससे  स्वास्थ्य  पर  सकारात्मक  प्रभाव  पड़ेगा  ।
        संस्कारविहीन,  संवेदन हीन,  लापरवाह  लोगों  की  जो  पीढ़ी  तैयार  हो  रही  है,  उसकी  जड़  किसी  न  किसी  रूप  में  ये  शराब  ही  है । 
         अगर  नशा  ही  करना  है  तो अपनत्व ......प्रेम .......स्नेह .....भाईचारा ........त्याग ........सेवा भाव..........ईश्वर  के  प्रति  आस्था  आदि  का  करो  फिर  देखो  जीवन  कितना  आनंदमय   लगने  लगेगा  । 
      शराब  के  नशे  में  सुख  और आनंद  नहीं  है  ।  वो  तो  हमारे  भीतर  है,  जो  सकारात्मक  सोच  पर  निर्भर  करता  है  । 
         सरकार  से  लेकर  व्यापारियों  तक  को  इस  संबंध  में  आत्मविश्लेषण  की  आवश्यकता  है  । 
          - बसन्ती पंवार 
            जोधपुर  - राजस्थान 
कहा गया है ' एक मछली पूरे तालाब को गंदला कर देती है ।' या एक बुराई, सब अच्छाई पर पानी फेर देती है। ऐसे ही अनेक संदर्भ मिल जायेंगे। याने कि अभी तक सब अच्छा ही चल रहा था। सभी उत्साहपूर्वक, तन्मयता से लॉकडाउन में अपनी जिम्मेदारी समझ भी रहे थे और निभा भी रहे थे तभी शराब की दूकान खोले जाने की खबर पाकर जो पीने के शौकिया ताली बजाने लगे और जो शराब के न शौकीन हैं, न पक्षधर वे हतप्रभ रह गये। उन्हें निराशा भी हुई। माना कि और जैसा सुनने में आया है कि यह सरकार का आय का अच्छा स्त्रोत है और शराब - व्यापारियों  का मुनाफे का धंधा है। परंतु क्या ऐसे समय में जब जान पर बन आयी है, अच्छा स्त्रोत और मुनाफे की सोच बनाना उचित है? जी, नहीं। शराब सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से अनेक बुराइयों, नुकसानदेह और आपसी वैमनस्यता बढ़ाने वाली कलह सामग्री है। यह गंभीर और चिंंतन- मनन  का विषय है। इसे प्राथमिकता दी जाना चाहिए । मगर ऐसा हो नहीं रहा। यह दुःखद पहलू है। इससे अन्य किस्म के संघर्ष प्रारंभ हो जायेंगे। जो अतिरिक्त बोझिल करने वाला साबित होगा। मेरा ऐसा मानना है, इस विषय पर जिम्मेदारों को एक बार पुनर्विचार करना चाहिए और शराब पर प्रतिबंध लगाए जाने का निर्णय लेना चाहिए।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जी हां सरकार से लेकर व्यापारियों की शराब पहली पसंद है । शराब की बिक्री से सरकार का राजस्व खजाना भरता है । होटल , पब , रेस्टोरेंट के मालिक भी शराब बेचने की अनुमति सरकार से मांग रहे हैं । शराब की बिक्री से शराब का स्टॉक खाली हो । जिससे इस राशि से अन्य कामों में काम आ सके ।लाकडाउन से पहले शराब की बिक्री से 700 करोड़ रुपये का टैक्स मिलता था । शराब व्यापारियों पर लाकडाउन संकट गहरा गया है । दुकानों में शराब की सप्लाई नहीं कर पा रहे हैं । जिससे उन्हें नुकसान हो रहा है ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
इस की जानकारी भी जनमानस को तब हुई जब इसकी ख़रीददारी हेतु लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी । सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी नहीं हुआ । इतनी भगदड़ तो जब भोजन बाँटा  जाता रहा तब भी नहीं हो रही थी । जिसको जो भी मिला उसने वही ब्रांड मनमानी कीमत पर खरीद लिया ; क्या पता कब रोक लग जाए ।
कुछ राज्यों में तो इसकी बिक्री पर रोक पहले से ही थी । किन्तु कुछ ने ये सब देखकर एक दिन बाद ही इसकी बिक्री पर रोक लगा दी । परन्तु कुछ राज्य सरकारें तो इसके द्वारा प्राप्त कर से ही अपनी अर्थव्यवस्था का गणित सुधारने हेतु दृढ़ संकल्पित हैं ।
कोरोनो को यदि इसके द्वारा हराया जा सकता है ; तब तो इसकी बिक्री को उचित कदम कहा जा सकता है । पर एक बात जरूर सोचनी चाहिए कि शराब क्या मानसिक शांति का उपाय है ; क्या इसके प्रयोग से समाज व घरों में हिंसा की  बृद्धि नहीं होगी ; ऐसे समय में जब लोगों की आमदनी शून्य है वहाँ जब  वे इस पर अपना पैसा खर्च करेंगे तो इसकी पूर्ति कहाँ से करेंगे । जाहिर है किसी भी तरीके से कमाने का सोचेंगे जिससे अंततः जनमानस ही प्रभावित होगा ।
नशायुक्त पदार्थों की बिक्री पर रोक लगनी ही चाहिए ; ये सब मानवता के शत्रु होते हैं । 
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
 लॉकडाउन 3.0 के गंभीर हालात में रिस्क के साथ सरकार द्वारा शराब की दुकान खोलने की इजाजत देना और व्यापारियों द्वारा बाहुल्य मात्रा में शराब की बिक्री करना --साबित कर दिया कि सरकार से लेकर व्यापारियों तक की प्रथम पसंद 'शराब' ही हैं।  जिस तरह से शराब खरीदने वालों की भीड़ दुकानों पर उमड़ी, लॉकडाउन और फिजिकल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गई। कोरोना वायरस का तीव्र गति से फैलने का खतरा मंडराने लगा।
 फिर भी सरकार और व्यापारियों द्वारा शराब की बिक्री जारी रखना सिद्ध कर दिया कि राजस्व प्राप्ति हेतु शराब बेचना जरूरी है। 
     यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर रोक न लगाकर भीड़ को नियंत्रण करने हेतु ऑनलाइन बिक्री और होम डिलीवरी की इजाजत दे दी। दिल्ली सरकार ने भी बेतहाशा भीड़ को नियंत्रण करने हेतु ई -टोकन की शुरुआत की है।
     सरकार को हर दिन 700 करोड़ रुपए अल्कोहल की बिक्री से टैक्स की प्राप्ति होती है। 40 दिनों में अनुमानत: राज्य सरकारों को ₹28000करोड़ का नुकसान हो चुका है। अपने फायदे के लिए सरकार ने शराब बिक्री का निर्णय लिया। अब रेस्टोरेंट, पब व बार में भी शराब बेचने की अनुमति पर विचार कर रही है। इन लोगों को शराब पिलाने की लाइसेंस मिलती थी बोतलबंद शराब बेचने की नहीं पर अब बेचने की भी अनुमति मिलने जा रही है ।
देशभर में अल्कोहल का कारोबार 4 लाख करोड़ से अधिक का है। टैक्स के रूप में सालाना लगभग 2.5 लाख करोड़ राज्य सरकारों को मिलते हैं। इस फायदे को मद्देनजर रखकर ही व्यापारियों की सांठगांठ से सरकार की पहली पसंद 'शराब' बनती जा रही है।
‌   एक आम नागरिक होने के नाते मेरा मानना है कि इस फैसले से सरकार और व्यापारियों का तो भला होगा पर आम जनता का बिल्कुल नहीं।  कोरोना वायरस के गंभीर खतरे को भांपते हुए लॉकडाउन कर सरकार ने सारे उद्योग धन्धो को बंद करवा दिया जिससे करोड़ों लोगों को रोजी-रोटी के संकट से जूझना पड़ रहा है। इस स्थिति में सरकार अपने राजस्व प्राप्ति हेतु जो शराब बिक्री का फैसला लिया है और अपना और व्यापारियों की पहली पसंद साबित किया वह काबिले तारीफ नहीं है। बेरोजगारों में जनाक्रोश पैदा होगा जो सरकार और देश हित में ठीक नही होगा । राजस्व प्राप्ति हेतु सरकार को उन कार्यों पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है जिसमें सरकार, व्यापारी और जनता का भी हित हो। 
‌                                - सुनीता रानी राठौर
                              ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
विश्व व्यापी त्रासदी में हर भारतीय को स्वयं से केवल यह नहीं पूछना चाहिए कि देश आपको क्या दे सकता है अपितु यह सोचना चाहिए, आप देश को क्या दे सकते हैं l समय की दरकार है कि अधिकार एवं कर्तव्य के मध्य  संतुलन होना ही चाहिए l कोरोना वायरस राजनेताओं एवं सुरा प्रेमियों के साहस की परीक्षा ले रहा है l शराब की दुकानें खोलने का निर्णय सरकारों की नेतृत्व क्षमता और प्रशासनिक कौशल को भी यह विषाणु उजागर कर रहा है उन्मादी लोगों के सरगना साद और ऐसे दुश्मनों के खिलाफ आज तक क्या कार्यवाही हुई? उलटे साम्प्रदायिक रंग देने के प्रयास हुए तथा लॉक डाउन एवं संक्रमण तीव्रता के मध्य शराब की दुकानें खोलने का निर्णय, दोनों ही निर्णय सियासी ताकतों के मंसूबे जनता -जनार्दन के सामने परिलक्षित हो रहे हैं l दोनों ही अवस्थाओं में शारीरिक दूरी की उपलब्धियाँ बौनी साबित हुई हैं और लगातार हो रही हैं l ऐसे में सरकार से लेकर व्यापारियों तक की प्रथम पसंद है शराब, क्योंकि दोनों का उद्देश्य पैसा कमाना है l चाहें नीति से, चाहें अनीति से, यह दोनों के स्वभाव का एक एक अंग बन गया है ये परिस्थितियाँ समाज एवं राष्ट्र के लिए घातक हैं l महामारी के चलते मानव जीवन संकट में  है l मानव जीवन को दाँव पर लगाकर सरकार द्वारा व्यपारियों से हमदर्दी दिखाकर राजस्व बटोरना मानवता और सरकारों पर कलंक है l क्या हम पैसों से किसी का जीवन बचा सकते हैं? यदि नहीं तो पैसों के पीछे मानव जीवन को संकट में डालने का अधिकार न तो सरकार को और न ही व्यापारियों तथा सुरा प्रेमियों को है l आज बर्बादी के इस मंजर पर समाज का सुधि  वर्ग जार जार आँसू बहा रहा है, अब तो आँसू भी सूख गये हैं -
ए खुदा !रेत के सहरा को समंदर कर दे l
या छलकती हुई इन आँखों को पत्थर कर दे ll 
आज आत्म विश्वास के साथ आत्म संतोष की आवश्यकता है l सरकार और व्यापारियों का साधन के रूप में धन कमाना तो ठीक है लेकिन धन साध्य बन जाये तो यह रोग बनकर कोरोना वायरस का सहोदर भ्राता बनकर कई जिंदगियों को लील लेगा l ध्यान रहे हमारे विचारों में, कर्मों में और व्यवहार में जो कुछ भी अच्छा /बुरा होता है वह हमारी तरफ पलट कर अवश्य ही आता है l लॉक डाउन और संक्रमण काल में शराब का अवैध कारोबार काफी फल -फूल रहा है l ऐसे में राज्य सरकारें केवल मात्र चिकित्स्कीय प्रमाण के आधार पर ही भारी टैक्स लगाकर शराब की प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट के साथ होम डिलेवरी करवाकर भागीरथी प्रयासों के द्वारा इंसानी जिंदगी को बचाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करें l इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि राजनितिक वर्ग अपनी सियासी विचारधारा को पीछे छोड़कर एकमत होकर  इस दिशा में कार्य कर संघर्ष के इन क्षणों में सकारात्मक नेतृत्व प्रदान करे अन्यथा ये महामारी तथा सरकारों के अदूरदर्शिता पूर्ण निर्णय हमें तबाह कर देंगे l 
लॉक डाउन में राहत मिलने के बाद जिस तरह शराब की दुकानें सजी, सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियाँ उड़ाते हुए जिस तरह लोगों का हुजूम जुटा वह किसी से छिपा नहीं है l व्यपारियों पर तो कोई कार्यवाही नहीं हुई लेकिन सरकारों ने इसे अपना खज़ाना भरने का जरिया जरूर बना लिया क्योंकि दोनों की पहली पसंद जो ठहरी "शराब "l 
चलते चलते -
ज्ञान के समान नेक नहीं, 
सत्य के समान तप नहीं 
राग के समान दुःख नहीं 
और त्याग के समान कोई  सुख नहीं
अपनी बुराइयों को त्यागिये 
कोरोना संक्रमण के विरुद्ध 
हमारी वचन बद्धता में हमारी 
जीत दर्ज है 
कैसी हो हमारी "मधुशाला "
बने पुजारी प्रेमी साकी 
गंगाजल पावन हाला 
रहे फेरता अविरत गति से 
मधु के प्यालों की माला 
मैं शिव की प्रतिमा बन बैंठू 
मंदिर हो यह मधुशाला ll 
     - डॉ. छाया शर्मा
अजेमर -राजस्थान
*सरकार से लेकर व्यापारियों तक की प्रथम पसंद है शराब* 
हमारे देश में लगभग बीस करोड़ के आसपास लोग शराब का सेवन करते हैं ।इतनी बड़ी संख्या में शराब का सेवन करने वालों के कारण जहां सरकार को रेवेन्यू का लाभ होता है वहीं व्यापारियों को भी अच्छी खासी आय होती है।जब लाॅक डाउन के दौरान शराब बन्दी हुई तो इसका प्रभाव राज्य सरकारों की रेवेन्यू में गिरावट के रूप में देखा गया। जब लाॅक डाउन के कुछ समय पश्चात शराब की बिक्री प्रारंभ की गई  तो शराब की खरीददारी के लिए दुकानों पर बहुत बडी संख्या में लोगों के एकत्रित होने से राज्य सरकारों तथा व्यापारियों का एक बड़ा आय का श्रोत  प्रारंभ हो गया । यह माना जाता है कि शराब की बिक्री से लगभग 20-22 प्रतिशत कुल आय का रेबेन्यू  राज्य सरकारों को तथा  करोड़ों-अरबों  रुपए का मुनाफा  व्यापारियों को प्राप्त हो जाता है ।यदि शराब की बिक्री नहीं होती है तो राज्य सरकारों को आर्थिक क्षेत्र में काफी मुश्किलात का सामना करना पड़ता है। इसलिए यह सच्चाई है कि सरकार से लेकर व्यापारियों तक की प्रथम पसंद शराब है ।
 - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
दतिया - मध्य प्रदेश 
लॉक डाउन के चलते शराब के ठेको पर भारी भीड़ यही दर्शाती है कोरोना महामारी का संकट काल संक्रमण की परवाह ना करते हुए जान जोखिम मे डालकर लम्बी लम्बी कतारों में लगना भारी भीड़ का होना यही दर्शाता है । सरकार व्‍यापारियो की पहली पसंद शराब है।
किसी को लॉक डाउन पालन की परवाह नही इस समय आर्थिक व्यवस्था खराब है। शराब के आगे किसी को फर्क नही पड़ता मैने पहले भी सरकार के फैसले की निन्दा की है । घरो मे खाने को भोजन नही है रोजगार नही है पर व्यक्ति शराब खरीद २हा है। क्या जरूरत थी सरकार को ठेके खुलवाने की व्यापारियो को अपने व्यापार की चिन्ता है देश की नही देशहित सोचते तो लॉक डाउन मे इतना बड़ा कदम ना उठाते जनता को खतरे मे नही डालते इससे यही लग रहा है सरकार से लेकर व्यापारियों की पहली पंसद शराब है।
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
सरकार से लेकर व्यापारियों की पहली पसंद शराब है 
शराब नशीली पेय पदार्थ है पीने के साथ साथ बेचने में भी नशा है । इसलिए दोनों की पहली पसंद शराब बन गयी है सरकार को रेवेन्यू का नशा  और व्यापारी को पीने का नशा।
मेरे मन में हमेशा यह प्रश्न उठता रहता है कि एक ओर शराब नहीं पीने की अपील की जाती है और दूसरी ओर शराब बेचना इस लाकडाउन में प्राथमिक बना दिया ।कितनी दोहरी भूमिका सरकार की है। कितने घर बर्बाद हो रहें हैं कितनी महिलाओं शराबियों के यातनाओं से पीड़ित हैं। एक कहावत है न्यायालय में गीता और कुरान पर हाथ रखकर कसम खाते हैं सच बोलने का ।और लगातार झूठ बोलते हैं  और शराब पीकर सभी सच उगलते हैं । हर चीज की एक सीमा होती है सीमा हीन आदत या भावना हर वक्त परेशानी का कारण बन जाता है।
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
सरकार से लेकर व्यापारियों तक की प्रथम पसंद शराब वाक्य पूरी तरह से ठीक नहीं है देश में 4 मई से शराब की दुकानें लगभग 40 दिन बाद खोल दी गई और इन  पर लोगों की भारी भीड़ दिखी कुछ स्थानों पर सामाजिक दूरी का भी उल्लंघन किया गया। सरकार की शराब की दुकानें खोलने की अनुमति के पीछे भयंकर मजबूरी छुपी है  सरकार को जितना राजस्व शराब से मिलता है उतना अन्य किसी चीज से नहीं ,इस बात का जीता जागता उदाहरण यह रहा  कि पहले ही  दिन 3 अरब की शराब बिकी ।जाहिर है कि लॉक डाउन के तहत बिगड़ती राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए शराब की दुकानें खोलने की अनुमति सरकार द्वारा दी गई। रही व्यापारियों की तो शराब व्यापारियों को शराब बिक्री से ज्यादा फायदा होता है जिससे उनकी अच्छी कमाई होती है।  व्यापार का उद्देश्य मुनाफा  ही होता है ,तो वह मुनाफा क्यों नहीं चाहेंगे ।
लेकिन सरकार  व शराब व्यापारियों ने भी शराब बिक्री के कुछ मानक , कुछ दायरे  तय किए हैं ,जिनमें सोशल डिस्टेंसिंग है  का विशेष रूप से पालन करना अनिवार्य रखा गया है ,मास्क पहनना भी आवश्यक   किया गया है ,लेकिन लोग उसका पालन नहीं कर रहे ,वह बात अलग है। परंतु मेरे विचार से यह कहना उचित नहीं होगा कि सरकार से लेकर व्यापारियों तक की प्रथम पसंद है शराब है ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
केंद्र सरकार और राज्य सरकारों पर जब शराब की बड़ी बड़ी कम्पनियों ने दबाव डाला,जोकि पार्टी के खजाने में मोटी मोटी रकम देती है, लॉक डाउन के चलते उनका हज़ारो करोड़ रूपए का नुकसान हो रहा था। व्यापारी जानते थे कि अगर ये लोग पैसा देना बंद कर देंगे तो इन राजनैतिक पार्टियों के खर्चे कौन उठाएगा। इसी बात का फायदा उठाते हुए कम्पनियों ने सरकारों को समझाया,कि भारत जैसे देश जहाँ शराब का रुतबा रोटी से ऊँचा है। हर हाल में फायदे का सौदा है। इससे सरकार को भी मोटा राजस्व प्राप्त होगा और लोगों को इतने दिनों के बाद प्यास बुझाने का मौका मिलेगा। इसलिए इस की खरीद पर कोई रोक टोक न लगे ताकि लोग जी भर कर खरीदे और स्टॉक भी कर लें। "
"महफ़िल न सजे तो क्या, 
                                बहार भी न आए क्या"।।

सरकार ने जब पहले दिन इन प्यासों का हाल देखा, तो उसे लगा कि इनसे तो अगर मोटा टैक्स भी वसूलना पड़े तो ले लो। उससे सरकार के खजाने ही भरेंगे। चाहे इसके लिए लड़ाई झगड़े हो, या कोरोना की संख्या कितनी भी बढ़ जाए। अपने घर भरते रहो। जनता जाए भाड़ में। वैसे भी इस देश में अनगिनत मौते भूख से होती है और ये तो वैश्विक महामारी है।  सुपर पावर जैसे देश अपने नागरिकों को नही बचा पाए रहे।  हम तो समर्थहीन है। तो छोड़ दो प्यासे हाथियों शराब के दलदल में और देश को कोरोना के संक्रमण के लिए। परन्तु अपनी जेब तो भर जाएंगी।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
     जी हां सरकार और व्यापारियों की प्रथम पसंद शराब बन गई है और शराबी दोनों की आय की आधारशिला हो गई है। जिस पर सरकार एवं उसके समस्त महारथियों की रोजी-रोटी निर्भर है।  एक समय था जब कोई नागरिक शराब बेचता था, तो समाज उसे घृणा की दृष्टि से देखती थी। पुलिस उसे मार-मार कर सुधारती थी। शराबी को भी शासन, प्रशासन और समाज 'सामाजिक कलंक' की संज्ञा देता था। जबकि वर्तमान कोरोना युद्ध ने 'शराब और शराबी' की परिभाषा ही बदल दी है। क्योंकि सरकार ने सार्वजनिक माना है कि खजाने खाली हो गए हैं और सरकार और सरकारी सेवकों को वेतन-भत्ता देने के लिए शराब एक मात्र रामबाण है। 
   इतिहास साक्षी है कि सतयुग हो या द्वापरयुग, त्रेतायुग हो या कलयुग सर्वविधित कि शराब और शराबी को वर्तमान 'कोरोना काल' से पहले इतना मान-सम्मान कभी नहीं मिला।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जब अचानक सरकार ने शराब के ठेके और दुकानों को खोलने की दें दी । दुकानों और ठेके पर उमड़ी भीड़ को देखकर ऐसा लगा‌ कि जैसे इतने दिनों से लोग भूखे नहीं बल्कि " प्यासे" थे । सचमुच अजीब बेचैनी और होड़ सी लोगों में लगी हुई थी । सरकार भी जनता के इस नब्ज को पहचानती थी तभी तो दाम बढ़ाने पर भी लुट सी मची हुई थी ।कल तक सब भूख और कोरोना वायरस के डर  से घिरे हुए थे । लेकिन शराब की दुकानों पर लगी भीड़ ने देश की तस्वीर हीं बदल डाली हो जैसे ।अमीर और गरीब सब लाईन में खड़े दिखाई दीये । बहुत जगह नारियों ने भी लाईन लगा रखी थी यानी वो भी मानों कंधे से कंधा मिलाकर इस क्षेत्र में भी अग्रसर होना साबित कर रहीं थीं । पूरे देशवासियों पर कोरोना का कहर की मार पड़ी है फिर भी सरकार से लेकर व्यापारियों तक की पसंद" शराब" यह भी एक विडंबना ही है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
 जब से इधर आ पर मनुष्य का प्रादुर्भाव हुआ है उस समय मानव में ज्ञान का विकास अल्प रूप में था जैसे जैसे समय का चक्र चलते गया मनुष्य प्रकृति से प्रेरणा पाकर ज्ञान का धीरे-धीरे विकास होने लगा आदिम जमाना से आज वर्तमान तक देखें तो मानव की बौद्धिक विकास बहुत ज्यादातर शरीर सापेक्ष अर्थात भौतिक वस्तुओं पर था मानव इस दुनिया को भोग की वस्तु समझकर दोहन कर रहा है भ्रम वर्ष आस्था प्रलोभन में जीता हुआ मानव इस दुनिया को मनोरंजन बना लिया जैसे सरकार वैसे जनता सरकार शराब को वर्धमान पर खुलेआम पीने और पिलाने की तथा बिकरी की छूट दी है जबकि शराब मानव शरीर के लिए हानिकारक है हमारे शरीर को अस्वस्थ बनाकर फिर कर देती है और एक दिन यह शरीर विरचित हो मृत्यु को प्राप्त करता है  इसका ज्ञान ना तो सरकार को है ना जनता को जिस दिन यह ज्ञान सरकार और समाज को पता लगेगा उस दिन शराब का बिक्री एवं सेवन दोनों बंद हो जाएंगे अभी लोग बाग कहते हैं कि सरकार जानबूझकर शराब की बिक्री आए कमाने के लिए एलाऊ कर दी है लेकिन कोई भी व्यक्ति कार्य जानबूझकर नहीं करता अज्ञानता वश करता है अगर सरकार और समाज को वास्तविकता अर्थात सच्चाई का पता होता तो कदापि नहीं करता भ्रमित अवस्था में मानव शराब को मनोरंजन का साधन बना लिया है इसके परिणाम गलत आते हैं बहुत कुछ शरीर का बिगड़ चुका होता है तब हो जाता है जबकि जल और भोजन या पेय पदार्थ शरीर की स्वास्थ्य के लिए  किया जाता है शराब में निकोटिन की मात्रा पाई जाती है जो हमारे शरीर के लिए हानिकारक होता है फिर भी लोग अज्ञानता वश पीते हैं और अपना मन तन धन का दुरुपयोग करते हैं जिसका परिणाम सुखद होता है और समाज और सरकार सुख देने के लिए शराब को बाध्य मान रही है कि दुख देने के लिए खुद सोचें पैसा वालों की दुनिया शराब से मनोरंजन लेते हुए चलती है आत्मा शांति के लिए नहीं इसलिए शराब व्यापारी और सरकार के लिए प्रथम प्रश्न मनोरंजन के रूप में होता है जो उचित के नहीं है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
 सरकार से लेकर व्यापारियों की प्रथम पसंद शराब है और यह उचित नहीं है! शराब एक व्यसन है !
महामारी के चलते जब मानव जीवन संकट में है तब ऐसी अवस्था में सरकार द्वारा व्यापारियों से हाथ मिला कर राजस्व भरना कहां का न्याय है क्या यह उचित है ?
 लोगों को खाने की रोटियां नहीं है जब पेट की आग बुझानी है तब जरूरी है शराब देकर आग बढ़ाना! 
इस लॉकडाउन में शराब सरकार के रेवन्यू का नशा बना है जो व्यापारियों के माध्यम से ही भर सकता है! 
शराब नशा ही है जो व्यसन बन पीने वालों के लिए  अनिवार्य वस्तु बन जाती है और वह उसे किसी तरह भी लेता है! 
जनता ने इस महामारी से एक योद्धा की तरह युद्ध किया है और कर रही है, जाने कब तक करेगी! 
सरकार देश की जनता से इस महामारी मे जनता का साथ चाहती है तो उसे भी उसका साथ देना चाहिए ना की शराब खोल  लोगों की जिंदगी से खिलवाड़!  कई लोगों की घर बर्बाद हो गए  इस लॉक डाउनलोड में हमें भोजन और सावधानी की जरूरत है ,सोशलडिस्टेंसिंग से बनाकर रखें !
अंत में कहूंगी सरकार की जो यह दोहरी नीति है यह तर्कसंगत लगती है !व्यापारी और सरकार के शराब से कमाने का जरिया कहीं देश के लिए देश के अर्थतंत्र को ही ना डूबा दे !
- चन्द्रिका व्यास 
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी हां आज शराब मदिरा, सोमरस ,सुरा ,ग्रामीण क्षेत्रों में ठर्रा ,दारू नामों से जाने  जाना वाला मादक पेय पदार्थ  सरकार और व्यापारियों की पहली पसंद माना जा रहा है ; जहां तक सरकार की पसंद का सवाल है; तो जाना जा सकता है कि यह सरकार की राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है ।सरकार इसको स्वास्थ्य के लिए हानिकारक चेतावनी के साथ ही बेचने की अनुमति देती है।
     आगे व्यापारियों की प्रथम पसंद यह इसलिए भी है कि इसकी बिक्री में सर्वाधिक लाभ रहता है; क्योंकि लागत और बेचने के मूल्यों में काफी अंतर होता है। साथ ही शराब की खूबी यह है कि यह कभी भी एक्सपायर डेट नहीं होती। अतः इसे स्टोर करने में और बिक्री में अधिक से अधिक मुनाफा होने के कारण  व्यापारियों के लिए फायदे का सौदा रहता है।
 चेतावनी और लाभ के मध्य जनता फंसती है। इस विषय में हर वर्ग को इसके दुष्परिणामों के प्रति स्वयं सजग रहना होगा।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " शराब के चाहने वालें हर युग में रहें हैं । तभी तो सरकार से लेकर व्यापारियों की प्रथम पंसद में देखा जा रहा है । सरकार की सबसे बड़ी आय का प्रमुख साधन बन गया है । इस का व्यापारी किसी भी स्थिति में फेल नहीं होता है । यही शराब की महिमा है ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 






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