कोरोना ने जीवन और जीविका को कहाँ पहुंचा दिया है ?

कोरोना वायरस ने लॉकडाउन दिया है । जिससे जीवन और जीविका बहुत अधिक प्रभावित हुई है । गरीब से गरीब और अमीर से अमीर सभी प्रभावित हो रहे हैं ।  यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
करो ना ने जीवन और जीविका दोनों को एक बीच मझधार में लाकर खड़ा कर दिया है जिससे कहीं जाने का रास्ता समझ में नहीं आता बहुत मुश्किल है क्योंकि जीविका बहुत लोगों की समाप्त हो चुकी है और जीवन की भी कोई गारंटी नहीं है कि किस समय कब कौन व्यक्ति संक्रमित हो जाए लॉक डाउन खोलने के बाद संक्रमण का खतरा और बढ़ जाएगा। पहले हम जैसे निश्चिंत होकर मार्केट जाते थे सामान खरीदते थे, बाहर होटल में खाना खाते थे, दार्शनिक यात्रा करती थी पर्यटक के स्थान पर घूमते थे, तीर्थ यात्रा करते थे, ट्रेन में बैठ कर यात्रा किया करते थे पर आप यह सब संभव नहीं हो पाएगा कितना भी हम निश्चिंत हो जाएं पर मन में डर रहेगा हमेशा कि कहीं वायरस तो नहीं पब्लिक प्लेस ओं में हम अब निश्चिंत होकर नहीं जा पाएंगे मुंह पर कपड़ा बांधना ही पड़ेगा बच्चों को स्कूल भेजने में भी डर लगेगा।
यह वायरस नहीं तो सभी के जीवन को एक अनजाने डर से ग्रसित कर दिया है इतना भूत का भी डर नहीं लगता जितना इस वायरस का डर लगता है।
इसकी ना कोई दवाई है और ना यह पता है कि यह कितने दिनों तक रहेगा कैसे फैलता है इस विषय में किसी को भी कोई जानकारी नहीं है सिर्फ स्वच्छता और सावधानी अब हमें अपने पूरे जीवन काल में अपनानी पड़ेगी यदि हमें अधिक लंबे समय तक जीना है तो सात्विक आहार लेना होगा और संयम के साथ जीवन व्यतीत करना पड़ेगा।कम से कम जब जरूरी हो तब घर से बाहर निकले और आने के बाद अच्छी तरह से स्नान करें बार-बार किसी भी चीजों को छूने तो साबुन से हाथ धोने यह साफ साफ सफाई के तरीके को अपनी दिनचर्या में अपनाना पड़ेगा योग करना पड़ेगा योग करने से सुबह-शाम टहलने से ही हम स्वस्थ रह पाएंगे और हमारी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी
रोजमर्रा के जो छोटे-मोटे काम के लिए हम दूसरों के ऊपर निर्भर रहते थे अब वह काम हमें स्वयं करने पड़ रहे हैं इससे उन लोगों की भी जीविका में असर पड़ेगा जैसे घरों में काम करने वाले मेड।जो लोग दुकानों में काम करते थे अब दुकानें भी बहुत दिन से बंद है आप लॉक डाउन 4 में कह रहे हैं, सभी का जनजीवन बदलेगा।
ऑनलाइन को अधिक बढ़ावा मिलेगा जिससे मजदूरों को बहुत आर्थिक नुकसान होगा।
अब तो भगवान जैसे रखेगा वैसे ही रहना पड़ेगा उसकी सत्ता को मानना पड़ेगा और उस पर ही विश्वास रखना पड़ेगा।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
देश में कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही है। इससे ना सिर्फ लोगों की जान जा रही है, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ रहा है। 
इससे ऑटोमोबाइल उद्योग, पर्यटन उद्योग, शेयर बाजार और दवा कंपनियों सहित कई सेक्टर प्रभावित हो रहे हैं। ना सिर्फ आईपीएल, बल्कि देश-दुनिया के बड़े-बड़े समारोह भी टाल दिए गए हैं। चीन में उत्पादन में आई कमी का असर भारत के व्यापार पर भी पड़ा है। इससे भारत की अर्थव्यवस्था को करीब हज़ारों करोड़ डॉलर तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है।
कोरोना का पर्यटन कारोबार पर भी असर दिखने लगा है क्योंकि कई देशों ने चीन और कोरोना वायरस से प्रभावित दूसरे देशों से आने वाले यात्रियों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। इस वजह से बड़ी संख्या में लोगों ने आगामी कई महीनों के लिए अपनी यात्रा रद्द करनी शुरू कर दीथी ।कई साललगेगे  अब इस महामारी से उबरने में । 
मुर्गी पालन उद्योग को भारी नुकसान हो रहा है। उपभोक्ता मांस, मछली, चिकन और अन्य मांसाहारी उत्पाद खरीद ही नहीं रहे हैं। जिसके चलते दामों में भारी गिरावट आ चुकी है। भारत मांस का प्रमुख निर्यातक है लेकिन आयातक देशों द्वारा आयात पर प्रतिबंध लगाने के कारण सब कुछ ठप्प पड़ा है। भारत में असंगठित क्षेत्र में 86 फीसदी लोग काम करते हैं। शहरों में छोटा-मोटा काम करने वाले श्रमिकों, फैक्टरी कर्मचारियों, दिहाड़ीदार मजदूरों के लिये काम बंद है। लोगों की आमदनी घटने, काम बंद होने, नौकरी जाने या मजदूरी का काम नहीं मिलने के कारण ये लोग शहरों से अपने गांवों की ओर पलायन कर चुके हैं।
गांवों की ओर पलायन करते बदहवास लोगों का दृश्य तो वर्तमान युवा पीढ़ी ने पहले कभी नहीं देखा होगा। किसानों को कटाई के लिये मजदूर नहीं मिल रहे हैं। बड़े किसान तो हारवेस्टर कम्बाईनों से कटाई कर लेंगे लेकिन फसल के लदान के लिये भी उन्हें मजदूरों की जरूरत पड़ेगी। छोटे किसानों को भी मजदूरों की जरूरत पड़ेगी। केंद्र और राज्य सरकारें मजदूरों का पलायन करने से रोकने के लिये सख्त कदम उठा रही हैं और उनके लिये भोजन की व्यवस्था कर रही है।
वर्तमान स्थिति में यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि कृषि के साथ-साथ शहरों में उद्योगों का अस्तित्व ग्रामीण मजदूरों पर टिका है। अगर लघु एवं कुटीर उद्योगों के साथ फैक्ट्रियों के लिए मजदूर ही काम पर नहीं आए तो उत्पादन प्रभावित होगा ही। 23 जून 1946 को ‘हरिजन’ में छपे एक लेख में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लिखा था- ग्रामीण रक्त ही वह सीमेंट है जिससे शहरों की इमारतें बनती हैं। अगर मजदूर ही नहीं मिलेंगे तो शहरों में निर्माण कार्य कैसे होंगे। दूसरी ओर मजदूरों के पलायन से बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान बड़े जोखिम की ओर बढ़ रहे हैं। अगर इन राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना वायरस का विस्फोट हुआ तो संभालना मुश्किल हो जाएगा। सड़कों पर भीड़ के निकलने से संक्रमण का खतरा बढ़ चुका है और इन राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर हैं। 
इसमें कोई संदेह नहीं कि लॉकडाउन लम्बा चला तो भारत में खाद्यान्न की कोई कमी नहीं होगी। सरकार राशन कार्ड  धारकों को पात्रता से अधिक खाद्य सामग्री दे रही है परन्तु पिछले कुछ वर्षों से कृषि और उससे जुड़े क्षेत्र में स्थिति बदतर हुई है। वास्तविक आय और मजदूरी में न के बराबर वृद्धि हुई है। कृषि के फायदेमंद न रहने के चलते किसानों की संख्या घट रही है। पिछले कुछ समय से कृषि विकास दर तीन फीसदी से कम रही है।  2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए 15 फीसदी कृषि विकास दर की जरूरत है जो कि असंभव है। कृषि लागत बढ़ी है लेकिन मांग लगातार कमजोर हो रही है। कोरोना संकट के चलते कृषि क्षेत्र को चपत तो लगेगी ही, सरकार को खेती को बचाये रखने के लिए कुछ और उपाय करने होंगे। किसान निधि की राशि को 6 हजार से अधिक बढ़ाना होगा तभी किसानों की उम्मीद बरकरार रहेंगी। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मजदूरों के भरोसे को कैसे कायम किया जाए, यह काम तो सरकारों का ही 
जीवन और जिविका दोनों एक दूसरे के पूरक हैं जीवन तभी चलेगा जिविका होगी , नहीं तो बहुत मुश्किल होगा । 
आने वाला समय घोर संकट है धैर्य व हिम्मत से काम करना है खर्च कम करना है और अब जिवन को और व्यवसाय को बहुत बतलाव की जरुरत पड़ेगी 
यह समय क्या क्या करवायेगा कह नहीं सकते . 
पर इतना तय जीवन को सुधार रहा है । 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन और जीविका दोनों ही कोरोना से प्रभावित हुए हैं। जहां जीवन संकट में है, वही जीविका के साधन भी सीमित हो गए हैं।व्यापारी, मजदूर, किसान, नौकरी पेशा लोग सभी के सामने एक संकट का समय उपस्थित हो गया है। जीविका के साधन लाकडाउन के कारण बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इससे जीवन भी दुष्प्रभावित हुआ है। फैक्ट्रियां बंद होने, मकान निर्माण बंद होने, दुकानें बंद होने, और छोटे व्यवसाय बंद होने, बाजार बंद होने से आमदनी के, जीविका के साधन कम हुए हैं। जनजीवन थम सा गया है। विषम परिस्थितियां उत्पन्न हो गयी है। ऐसे में केवल आवश्यक आवश्यकता वाले रोजगार वाले जैसे दवाई, सब्जी, फल, दूध, किराना, आटा चक्की आदि व्यापार ही चल रहे हैं। मजदूर जो घरों को लौट गये उनके सामने रोजगार की समस्या है, तो फैक्ट्री मालिकों के सामने लेबर की समस्या। आर्थिक गतिविधि मंद होने से अर्थव्यवस्था भी चरमरा गई है। 
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
 धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना के कारण उत्पन्न वर्तमान परिस्थितियों की किसने कल्पना की थी? इन परिस्थितियों का एकमात्र सकारात्मक पहलू यही है कि मानव जीवन और प्रकृति की निकटता बढ़ी है जिसके सुन्दर प्रभाव मानव जाति को अवश्य लाभान्वित करेंगे। भारतीय परम्परा के अनुसार "सादा जीवन" की सार्थकता भी हमें ज्ञात हो गयी है। फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि प्रकृति की सौम्यता और कोरोना संकट काल में हमारे द्वारा अपनायी जा रही जीवनचर्या कितने समय तक हम सहेज पायेंगे। 
कोरोना ने हमारे जीवन और जीविका को लाभ की अपेक्षा भीषण रूप से क्षति अधिक पहुंचाई है। 
भारतीय संस्कृति में जिस आपसी मेलजोल को प्राथमिकता दी गयी है उसी को त्यागने अर्थात् सामाजिक दूरी का पालन ही अनिवार्य हो गया है। कोरोना ने सुख-दुख में उस मानवीय उपस्थिति को गौण कर दिया, जिस निकटता से प्रेमभावना का विकास होता है। 
जीवन में तकनीक पर निर्भरता में वृद्धि हुई है जिससे आॅनलाइन द्वारा कार्यों के निस्तारण में अधिकता हो गयी है, परन्तु यह तकनीक की सुविधा सर्वसुलभ नहीं है, जिससे  सामाजिक/आर्थिक विषमताओं में वृद्धि होगी। 
भारत के परिप्रेक्ष्य में जीविका के अनेक साधनों पर कोरोना ने अत्याधिक दुष्प्रभाव डाला है। हमारे यहां दैनिक श्रमिक, स्ट्रीट वेन्डर, और अनेक छोटे रोजगार के साधनों से लोग जीविकोपार्जन करते हैं। इन सभी के कार्यों पर कोरोना के कारण विपरीत प्रभाव पड़ा है और यह प्रभाव दीर्घ समय तक रहेगा, यह निश्चित है। 
इन सबके साथ-साथ कोरोना ने जितनी अधिक संख्या में मानव जीवन को लील लिया है और जीविका को कितनी अधिक क्षति पहुंचाई है यह सर्वविदित है। कोरोना के द्वारा की गयी भीषण हानि से मानव जीवन को पटरी पर आने में कितना समय लगेगा यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना (कोविड - 19) महामारी में लोग सबसे पहले अपनी जान बचाने में लगे हुए हैं। एक कहावत है कि जान है तो जहान है। देश के प्रवासी मजदूरों की संख्या 10 करोड़ के करीब है। कोरोना महामारी के कारण देशभर में 90 हजार 978 संक्रमित है, जबकि 50 हजार से अधिक मरीजों का इलाज चल रहा है। 2872 लोगों की मौत हो गई। वही 34 हजार से अधिक कोरोना मरीज ठीक होकर घर लौट चुके हैं। कोरोना काल मे लॉकडाउन के कारण लाखों मजदुरों की रोजी रोजगार छीन गई है । करोड़ो लोग बेरोजगार हो गए। उनके सामने रोजी रोटी की समस्याएं उतपन्न हो गई है। देश मे रेलवे द्वारा 400 से भी अधिक स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही है, जिससे अब तक 30 लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों को उनके राज्य व गांव पहुँच गए। जैमिनी अकादमी द्वारा पेश रविवार की चर्चा में सवाल पूछा गया है कि क्या कोरोना ने जीवन और जीविका को कहा पहुंचा दिया? इस सवाल का एक ही जवाब है कि कोरोना ने जीवन और जीविका को रसातल में पहुंचा दिया है तो कोई गलत बात नहीं होगी। जीवन को जीने के लिए जीविका जरूरी है। देशभर में कोरोना ने करोड़ों लोगों की जीविका छीन लिया है। लोग हर हाल में सबसे पहले अपने शहर व गांव पहुँचना चाहते है। चाहे वो देश के किसी राज्य में फंसे है या फिर विदेशों में। कोरोना के भय से सभी अपने आशियाने में जा रहे हैं। केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें मजदूरों व आम लोगों को घर पहुचाने का हर संभव प्रयास कर रही है। कोरोना का खोफ लोगों में इतना हो गया है कि वो पैदल ही अपने घर चल दे रहे हैं। हालांकि लोगों की जीविका चलाने के लिए केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ का राहत पैकेज की घोषणा की है, ताकि लोगों का जीवन स्तर में  सुधार  हो सके और उनकी जीविका चलती रहे। राज्य सरकारों ने भी लोगों को अपने ही राज्य में रोजगार व काम के अवसर तलाश रही है ताकि उन्हें काम की तलाश दुज़रे राज्यों में न जाना पड़े। कोरोना काल मे भले ही लोगों के जीवन और जीविका को काफी निचले स्तर तक पहुचा दिया है। पर यह बात सरकार भी कह रही है कि जान है तो जहान है। जीवन बचे रहेगा तो जीविका को भी ठीक कर लिया जाएगा। संकट की इस घड़ी में पूरा देशवासी एक हैं और कोरोना वायरस को हराने की जंग लड़ रहे हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
     भारतीय इतिहास की प्रथम  अनोखी पृष्ठभूमि पर कोरोना ने जीवन शैली की दिनचर्या को बदल ही दिया। पूर्व में मानव अपनी मनमौजी का शिकार हो गया था, अपनी इच्छानुसार जीवन यापन कर रहा था, जब चाहे तब? और एक तरफ अत्याचार, भष्ट्राचार, बलात्कार की ओर ध्यान केन्द्रित था। शिष्टाचार सुसंस्कृत व्यक्तित्व के परिधान से काफी दूर निकल गया था। परिवार नाम मात्र रह गया था, दूसरों के प्रति आकर्षित हो चला था। खान-पान दुष्परिणामों के बीच रहस्यात्मक पूर्ण रूप से हो चुका था। वर्तमान परिदृश्य कोरोना महामारी ने अपनों के बीच रह कर जीवन शैली की दिनचर्या पूर्णतः प्रभावित कर दिया। पहले खुले वातावरणीय जीवन छाया में परिवार सहित होटलों, सिनेमाघरों में जाकर रुपयों को खर्च कर रहा था, दूसरों के प्रति आकर्षित हो चला था, जिसके परिणामस्वरूप पूर्व बीमारियों को आमंत्रित तो किया ही साथ ही रुपयों का मूल्यांकन नहीं कर पाया, बजट असंतुलित हो गया। आज देखिये 54 वाँ दिवस में परिवर्तन कितना प्रभावित किया कि परिवार, परिवार बन गया। वसुदेव कुटुंब का पक्षधर हो गया। दिखावटी शान-शौकत से दूर ,
अपने खर्चों को अंकुश कर दिया, दूरदर्शन चैनलों को देखकर अपनी दूरदर्शिता का परिचय दिया, इस दिव्य दृष्टि से जीवन और जीविका को आत्म संतुष्टि एक सबक मिल गया। जीवन ऐसा भी होता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
पूरे विश्व के लिए साल 2020 सदी का सबसे कठिन काल है। इस समय कोरोना जैसे घातक वायरस ने लोगो के जीवन और जीविका को बुरी तरह प्रभावित किया है।।
 विश्व के लगभग सभी देश इस समय बहुत ही आर्थिक व सामाजिक रूप से त्रस्त है। लम्बे समय से अनेक देशों में लॉक डाउन है। बाहर जाने पर कोरोना के संक्रमण का खतरा और घर पर रहने से पारिवारिक खर्चो का वहन करना मुश्किल हो गया है।
जीवन जीने के लिए जीविका के साधन जरूरी है। आज देश बड़ी ही विकट स्तिथि का सामना कर रहा है।इधर कुआँ उधर खाई। अगर सरकारें लॉक डाउन में ढील देकर कार्यालयों को खोलती है तो यातायात के साधनों को भी खोलना पड़ेगा। मार्किट, माल या रेस्टोरेंट आदि में लोगों की भीड़ से कोरोना से बच पाना नामुमकिन हो जाएगा।देश मे पहले से ही कोरोना मीटर की रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रहा है। ऊपर से मज़दूरों का पलायन भी कोरोना की संख्या को लगातार बढ़ाता जा रहा है। ये पलायन भी कोरोना का परिणाम है। लोगो के पास पैसे खत्म होते जा रहे हैं और सरकारों के खजाने खाली होते जा रहे हैं।
तो आने वाले समय में अगर लॉक डाउन खुलता भी है तो माहौल बिलकुल अलग होगा। बाज़ारो और कामगारों के ढंग बदल जाएंगे। लाखों की संख्या में लोग बेरोज़गार हो जाएंगे।जिससे देश में अपराध और आरजकता का माहौल बढ़ने का अंदेशा है।
"हाय!कोरोना किया बड़ा बेहाल।"
"जीवन की तूने बदली चाल"।
"घर मे अंदर बस है फांके",
"घर से बाहर तेरे झांसे।"
"अब तो बक्श दे इंसा को तू"
"कहीं से ढूंढो इसकी ढाल।"
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
आज जब ★हम अपने घर में बैठे **अपने परिवार के साथ शांति से जीवन यापन कर रहे हैं ।
 लोक डाउन के कारण बाहर निकलने को उत्सुक हैं 
        **और एक वे प्रवासी **
लॉ क डाउन के कारण 
सड़क पर भूखे प्यासे थके हारे धक्के खाते हुए अपने घर हर हाल में आने को उत्सुक हैं इतना अंतर ।
कि तनी जिंदगी इसी लालसा में दम तोड़ गई  कि हम किसी तरह अपने घर पहुंच जाएं ।
जीविका का तो उनके  लिए अभी अधर में ही ल टकी है  ।
    इस संकट की घड़ी में कई महान व्यक्तियों ने अपना यह जीवन समाजोपयोगी कार्य  निस्वार्थ भाव से जैसे भोजन बांटना राशन बांटना मास्क और  किट आदि बनाने में लगा रहे हैं  
आगे भी उनका जीवन  समाज उपयोगी  कार्यों में लगा रहेगा ।
कोरो ना काल  कम से कम में  ही संतुष्ट रहने का शिक्षा भी देता है । 
परंतु दूसरी ओर कुछ ऐसे व्यक्ति भी हैं जो करो ना कॉल का नाजायज लाभ उठा रहे हैं जैसे प्रवासी मजदूरों से किराए के लिए ₹3000 तक  किराया  लेकर और उन्हें फिर बीच रास्ते में ही छोड़कर गायब हो जाना जैसा घृणित कार्य भी कर रहे हैं
फिलहाल तो करो ना  ने जीवन को आत्म संयम व जीविका को आत्मनिर्भरता का संदेश दिया है।
जीवन और जीविका को संभालने में हमारे सामाजिक कार्यकर्ता और सरकार राहत पैकेज के द्वारा संभालने में प्रयासरत है ।
       यह सच है कि कोरो ना ने जीवन और जीविका को पलायन करने का मोह छोड़ आत्मनिर्भर बनाने की शिक्षा दी है।
- रंजना हरित
                 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
निसंदेह कोरोना ने जीवन और जीविका  दोनों को बहुत अधिक प्रभावित किया है।बहुत सारे लोगों की जीविका ही छीन गई है, तो जीवन चलाने में भी बहुत कठिनाइयों का सामना नित्य करना पड़ रहा है।
           उच्च वर्ग और मध्यम उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग को अवश्य इतनी कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ रहा है पर निम्न वर्ग जीविका और जीवन दोनों मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है।किसान, मजदूर, छोटे-छोटे व्यापार करने वालों के सामने जीने-मरने का प्रश्न उपस्थित हो गया है।
           जीवन शैली भी बहुत बदली है क्योंकि सभी जानते हैं कि कोरोना की वैक्सीन अभी तक नहीं बनी,इसलिए लॉक डाउन के नियमों का अनुशासन में रह कर पालन किए बिना कोई चारा नहीं है। घर को कम से कम खर्च करके व्यवस्थित रूप से चलाना भी एक चुनौती बनी है। 
           जबकि रोज कोरोना से संक्रमित होने के मामले आ रहे हैं तो सभी को अब इस बदली हुई जीवन शैली को अपना कर अनुशासन में रहते हुए, कम खर्च में घर चलाने, अपने अधिक से अधिक कम स्वयं करने की आदत को अपने जीवन का अंग बना ही लेना चाहिए एक लम्बे समय तक के लिए, तभी कोरोना से युद्ध में जिता जा सकता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
जीवन में  बिखराव आ गया है! कोरोना  ने जीविका ही छीन ली है! 
लॉकडाउन के चलते उद्योग बंद, समस्त बाजार बंद, रिक्षा, टैक्सी, मजदूरी सभी तरफ से आय के श्रोत बंद ,बिना आय के रोज कमाने वाले और खाने वाले खाए क्या ?
आजीविका के श्रोत बंद तो कैसा जीवन? 
कीड़े मकोड़े जैसी जिंदगी हो गई  है! 
कोरोना  ने समस्त विश्व की जिंदगी तबाह कर दी है! 
करोना ने जीवन और जीविका दोनों को प्रभावित किया है! 
जीवन तो कोरोना के संक्रमण के भय से लॉकडाउन मे घर ,काम,उद्योगबंद कर स्वयं को बचाने मे लगा है और जीविका बहुत की समाप्त हो चुकी है! 
इस कोरोना  काल में लोगो की नौकरी चली गई, व्यापार व्यवसाय, लघु, कुटीर गृह उद्योग सभी बंद हो गए इससे कई लोगो की जिवीका जुडी़ थी उनका जीवन तो नर्क बन गया! मजदूर पापी पेट के चलते अपनी आजीविका चलाने गाँव से आए थे  भूखे प्यासे पलायन होने लगे यह कहते नमक रोटी खाएंगे पर शहर लौट कर नहीं  आएंगे! मजदूरों  के घर लौटने की दयनीय एवं करुण स्थिति ने जो रुप लिया है वह बयान नहीं की जा सकती! उनके साथ उनका परिवार  जुड़ है! 
मानाकि  मोदी जी ने मजदूरों  के लिए आत्म निर्भर पैकेज दे सकारात्मक कदम उठाएं हैं किंतु ऐसी विकट स्थिति में भी राजनीति का खेल खेला जा रहा है जबकि संकट की घड़ी में  हमे देश के साथ रहना है! 
कोरोना  ने जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है! हमारी स्वतंत्रता, खुशीयां सभी छीन गई है! आज अपना जीवन बचाने के लिए अपने भी( रिश्ते) छूटने जा रहे है !
जीविका चलाने के लिए आय का कोई श्रोत ही नहीं है तो कैसा जीवन और जिंदगी! 
आज कोरोना के चलते जो हालत हुई है इसका मुख्य कारण कहीं न कहीं अंधाधुंध औद्धयोगिरण एवं शहरीकरण है! 
मजदूर गांव से शहर की ओर अपनी जीविका के लिए आ गए हैं  !
अंत में  करेंगी गांव के लोगों को कृषि, कुटीर,  एवं लघु उद्योग  द्वारा आत्म निर्भर बनना होगा और यही बात पर हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने भी कहा ही नहीं बल्कि आत्म निर्भर पैकेज बीस लाख करोड़ का हर राज्य के प्रत्येक सेक्टर में  डिस्ट्रीब्यूट किया है! जो इमानदारी  से सभी वर्ग को मिलनी चाहिए! 
बाकी जीवन के लिए हमे कोरोना के संक्रमण से बचते हुए हमारी आजीविका के लिये संघर्ष के साथ सकारात्मक  सोच लिये जीना है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना महामारी के कारण वैश्विककृत दुनियाँ की एक दूसरे के साथ मजबूती से जुडी प्रणालियाँ पूरी तरह से बदल गई है l इस महामारी पर काबू के विभिन्न प्रयासों में आने जाने तथा सामाजिक मेल जोल पर पाबंदियाँ लगा दीं l जिसके कारण दुनियाँ की 7.8 बिलियन आबादी में से एक तिहाई आबादी अपने घरों में बंद रहने को मजबूर हैं l ऐसे में जीवन और जीविका पर पड़ने वाला प्रतिकूल प्रभावों का अंदाजा सहज ही लगाया ja सकता है l 
       आज यह आम सहमती बनी है कि आगामी डेढ़ दो वर्षो तक पूरी दुनियाँ किसी न किसी रूप में कोविड -19 के खतरों से ही जूझती रहेगी तथा पुनर्निर्माण व स्थायी प्रभाव कई वर्षो तक महसूस किये जाते रहेंगे l देश के कई हिस्सों में सीमाएं बंद, हवाई अड्डे, होटल तथा अन्य व्यावसायिक बंद हैं l ये अभूतपूर्व उपाय सामाजिक ताने बाने को तोड़ रहे हैं और कई तरह कई अर्थ व्यवस्था को बाधित कर रहें हैं l परिणाम यह हो रहा है कि बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियाँ छूट रही हैं और व्यापक पैमाने पर भय, भूख और ग़रीबी बढ़ रही है l 
         आज की सर्वोच्च प्राथमिकता जीवन बचाना है (जान है तो जहांन है )l कोरोना युद्ध ऐसा युद्ध है जिससे लड़ा नहीं जा सकता l इसके लिए तो विवेक पूर्ण योजना ही उपाय है, क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति में है, संघर्ष के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों पर दवाब बन रहा है व बना रहेगाl वैक्सीन, विकास, उत्पादन और न्याय संगत वितरण की बाधाओं को दूर करने के लिए सामूहिक प्रयासों की दरकार रहेगी, मास्क से लेकर वेंटीलेटर तथा अन्य जीवन रक्षक उपकरणों एवं आपूर्ति श्रंखला को तैयार रखना होगा l 
         कोविड -19 ने न केवल सम्पत्ति मूल्य को ही प्रभावित किया है अपितु जीवन और वास्तविक गति विधियों (जीविकोपार्जन साधनों व अन्य को )को भी बुरी तरह प्रभावित किया है l
ज्वैलरी सेक्टर को करीब सवा अरब डॉलर का नुकसान होने की आशंका है l जीविकोपार्जन के अवसर छिन गए, वो अलग l 
        पर्यावरण और उद्योग दोनों के बिना मानव जीवन मुश्किल है l उद्योग धंधों से प्रदूषित वातावरण को समय पर संतुलित नहीं किया जाता है तो ऐसी कई महामारियों का सामना मानव को करना पड़ेगा l या यूँ कहें कि उद्योग हमारी जीविका तो पर्यावरण हमारा जीवन है l दोनों का संरक्षण हमारा नैतिक और बोधिउत्तरदायित्व है l 
चलते चलते -
"शरीरमआद्यम खलु धर्म साधनम"अर्थात शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों )को पूरा करने का साधन है l अतः शरीर को सेहतमंद बनाये रखना जरूरी है l इसी के होने से सभी का होना है l अतः शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना सर्व प्रथम कर्तव्य 
है lइसके बाद जीविकार्जन है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
कोरोना ने जीवन और जीविका को छीन लिया है ।लाकडाउन होने  की वजह से उत्पाद कम हो रहा है ।औद्योगिक गतिविधियाँ , बाजार , मॉल , आवागमन के साधनों  रेल ,  बस फैक्ट्रियाँ ,ऑफ़िस , स्कूल  होटल आदि सभी के बंद होने से  जीवन और जीविका पर बुरा  असर पड़ा है ।प्रवासी मजदूरों को  मजदूरी चौपट हो गयी । लाकडाउन 3 तक यह सब आदेश  देशवासियों ने माना ।
 देश की अर्थव्यवस्था , शैक्षिक , सामाजिक  गतिविधियों कोरोना बिगड़ी है । हजारों नागरिकों का  रोजगार  खत्म हुआ है । जिसका असर दवेध , दुनिया में दिखायी देता है ।
श्रम  , रोजगार  उद्योग , कामगारों के न मिलने की समस्या मुँह फाड़े  खड़ी होगी।
ट्रैवल और टूरिज्म , मैन्युफैक्चिरिंग  सेक्टर  तो चौपट हो गया । बंद करना आसान है , फिर से इन्हें तैयारियों के साथ खड़े होने पर समय लगेगा ।
कोरोना से सुरक्षा करने के लिए सामाजिक दूरी बनाने भी जरूरी है ।  सरकारी नियमों को पालन करना होगा ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
कोरोना ने समाज के कार्यकलापों को ही बदल दिया है । जीवन और जीविका में संघर्ष की पुनः आवश्यकता बन आई है । बड़े उद्योगपति की जीवनशैली या जीविका में बदलाव की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन माध्यम वर्ग और मजदूर वर्ग के कितनों को कोरोना ने निगल लिया, कितने भूख से मरे, हजारों की संख्या में मजदूर हादसों का शिकार हुए । अभी जब हर परिस्थिति का आंकलन होगा तो हमारे नफा-नुकसान का भी हिसाब लगेगा । उस वक्त निचले तबके के नुकसान की भरपाई मुश्किल होगी । जो भी पैकेज सरकार दे रही है , वह जरूरतमंदों तक कितना पहुंच पाता है यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है । 
उसके बाबजूद जीवन को प्रारम्भ करना कठिनाइयों की शुरुआत है । आज हर व्यक्ति का व्यवसाय उजड़ चुका है । केवल सब्जी और फल के दुकानें अनवरत चल रहीं हैं । छोटे-छोटे चाय वाले , रिक्शा चालक व अन्य लोग भी इसी धंधे में उतर आए हैं । थोड़े समय के लिए तो ठीक है , लेकिन जिंदगी का आधार तो समाप्त हो गया है, नींव हिल गई है।
कोरोना ने अधिकतर जिंदगियों को गुमनामी के अँधेरे में गम कर दिया है । अब जो हिम्मत करेगा वही खड़ा हो पायेगा। सारी पुरानी साख धूल में मिल गई है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
कोरोना मानव जीवन और जीविका को एक ऐसे रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है जंहा से आगे का रास्ता बिल्कुल धुंधला 
है सिर्फ अतीत की यादें हैं और वर्तमान का ठहराव है ।
विश्व में चारों ओर जीवन रूक सा गया है 
हर वर्ग पेशा व्यापारी नौकरी वाले इंसान इस बात का अनुमान ही नहीं लगा पा रहे हैं कि आगे क्या होगा ।
कुछ जिंदगियां को कोरोना ने खत्म कर दिया है और कुछ को 
भूखे बेरोजगारी  और कुछ को आकस्मिक मौत ने खत्म कर दिया है ।
लाकडाउन के नियमों ने भी जान की सुरक्षा अवश्य की है पर साथ ही साथ अनेक जिन्दगी 
खतरे में पड़ गयी है ।
मजदूर मजबूर हो गए ।
आवागमन बंद है अपने से अपनों की सहायता नहीं मिल पा रही है न मृत्यु के समय न 
बीमारी की हालत में
वेतन भोगी को पूरा वेतन नहीं मिला बैंक और पीएफ से भी पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है  
एक अच्छी बात है कि लोगों में साहस और धैर्य की सीमा इस कदर है वे संकल्पित है कि कोरोना को‌ हराया जाएगा।
सिर्फ किसी तरह जीवन जी रहे हैं । सही में जो इंसान गांव से रोटी कमाने शहर की ओर आए थे न घर के है न घाट के। वापस गांव जाना टेढ़ी खीर बन गयी है
कोरोना और जीविका दोनों अधर में लटका है 
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
            यह सत्य है कि कोरोना के संक्रमण के कारण देश में लाॅक डाउन लागू होने से लोगों की सोच व मनोवृत्ति  प्रभावित हुई है। जहां तक जीवन और जीविका का प्रश्न है इस पर बहुत बड़ा प्रभाव देखा गया है ।एक ओर जहां व्यक्ति में आत्म- अनुशासन,स्वाबलंबन ,संवेदनशीलता, पारस्परिक सहयोग का भाव विकसित  होते हुए  देखा गया  वहीं दूसरी ओर कई लोगों का जीवन नकारात्मकता की ओर बढ़ गया।बहुत  से लोग  निराश, हताश,परेशान और दुःख से ओत-प्रोत दिखे। जहां तक जीविका का प्रश्न है इसका प्रभाव  बिभिन्न तबके के लोगों पर विभिन्न प्रकार से पड़ा। नियमित रूप से आय वाले व्यक्तियों ,सरकारी कर्मचारियों आदि पर या धनिक वर्ग पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा लेकिन मजदूर, छोटे दुकानदारों,  कुटीर उद्योगों के संचालन कर्ता व उनसे जुड़े लोगों,  दैनिक वेतन भोगियों,फल-सब्जी विक्रेताओं  कृषक आदि की जीविका पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा। सरकार की मदद भी उनके लिए पर्याप्त साबित नहीं हुई। इसलिए यह कहा जा सकता है कि कोरोना  ने जीवन और जनता को बहुत प्रभावित किया । कुछ के लिए अच्छा तो कुछ के लिए नकारात्मक प्रभाव डाला । 
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया - मध्य प्रदेश
ईसमे कोई दो राय नही कीरोना जेसी इस अदृश्य महामारी ने मानव के जीवन ओर जीविका को निम्न स्तर पर पहुचा दिया है.इस बिमारी के चलते पिछले लगभग दो महीने से मानव जाति लोक डाउन के कारण अपने घरों में केद हे.चाहे वह समाज के किसी भी जाति.धर्म अथवा समाज का कयो  ना हो इस बिमारी ने सभी के जीवन ओर जिविका को प़भावित किया है. मानव को आज इस बात की चिंता सताये जा रही है कि चोपट होते काम... धधो. बढती बरोजगारी  के कारण वह दो जून की रोटी कहा से जुटाएगा ओर अपना व अपने परिवार के जिवन और जिविका को केसे चलाएगा. इस बिमारी के कारण मानव की जिविका ओर जिवन को भूखमरी.बेरोजगारी. चोरी... चाकरी करने तक पहुचा दिया है
- विनय कंसल
 त्रि नगर - दिल्ली
कोरेना ने जीवन अौर जीविका को कठिन बहुत कठिन दौर में पहुँचा दिया हैं यह अकल्पनीय समय है जब विभिन्न देशों में पशु पक्षी सडकों पर दिखें और आदमी घरों मे बन्द खिडकियों के शीशों से झाँकता दिखा निरीह प्राणी की तरह वास्तव में यह प्राकृतिक आवासों को नष्ट करने .स्वार्थवश वनों को नष्ट करने व मानव की अति महत्वा काँक्षा का परिणाम है कोरोना भी चीन की अति महत्वाकाँक्षा का ही फल है जिसने एक महामारी के रूप में फैलकर मानव जीवन को संकट मे डाल दिया है और जो लोगो की आजीविका पर भी भारी पड रहा है मजदूर भूखे प्यासे बेहाल है नौकरीयाँ न रहने से संकट मे है जीवन यापन का कोई साधन न रहने के कारण वापस अपने घरों की और लौट रहे हैं बच्चे भी भूख प्यास से बेहाल है सडकों पर हादसें बहुत लोगो का जीवन लील चुके हैं सरकार द्वारा हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं पर बडी जनसंख्या के कारण नाकाफी प्रतीत हो रहें हैं.देश की अर्थ व्यवस्था के लिए यह बहुत अधिक नुकसानदायक है जिसने देश व दुनिया पर व्यापक असर डाला है आजीविका के साधनो को गहरी चोट पहुची हैं वास्तव मे कोरोना ने जीवन और आजीविका को जिस हालात में पहुँचा दिया है वहाँ से निकलना देश के लिए बहुत आसान नही है और हालात बदलनें मे बहुत समय लगेगा बहुत सावधानी व समझदारी के साथ आगे,बढना होगा......।- - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना आपदा ने जीवन और जीविका को जैसे तहस - नहस कर दिया है। एक बिखराव भरा और नीरस- सा वातावरण है जहाँ सिर्फ वर्तमान है और अतीत की यादें। भविष्य के सपने अभी धूमिल हैं। बस, सिर्फ घर में बैठे -बैठे खाना-पीना रह गया है। ऐसे दिन और ऐसी दिनचर्या कभी देखी-सुनी ना थी। सच पूछा जाये तो अब हँसना- मुस्कुराना बेईमानी लगता है। जैसे-तैसे सभी सामंजस्य बनाते हुए जी रहे थे कि मजदूरों का पलायन, उनके दुःख-दर्द, उनकी परेशानियों ने हृदय को हिलाकर रख दिया। 
आये दिन हो रही दुर्घटनाएं सुन -सुन के आँखें नम हो जाती हैं। 
ये हम सभी जानते हैं, अँधेरी रात के बाद सुबह होगी। मगर अभी एक-एक पल मुश्किल में कट रहा है। मानता हूं कि ये नकारात्मक नजरिया है पर जब भी अच्छा सोचना चाहते हैं, मजदूरों के चेहरे सामने आ जाते हैं। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
ये तथ्य है कि कोरोना ने आजीविका के सारे रास्ते ही बन्द कर दिये हैं और मध्यम वर्ग, किसान,मजदूर और असंगठित वर्ग के लिये जीवन मरण का प्रश्न खडा कर दिया है ।
    दूसरी तरफ कोरोना ने मनुष्य के जीवन को अत्यधिक सादा वा सरल बना दिया है ।
         आम जनता की आवश्यकताएं वास्तव में सीमित होती हैं किन्तु विलासताओं के चक्कर में इन्सान जिन्दगी भर अत्यधिक भाग दौड़ करता है कीटिंग ।एक पल का समय भी उसके पास अपने लिये नही होता है
- सुरेन्द्र मिन्हास
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कोरोना वायरस के कारण जीवन और जीविका पर गहरा प्रभाव पड़ा है।कोरोना के कारण लाखों लोगों की जॉब चला गया । सभी का व्यापार आर भी असर डाला हैं। जिसके कारण लोगों को घर चलाने में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
लोगो को जीविका चलाने में कठिनाई हो रहा है। लोग मानसिक तनाव के कारण आत्महत्या जैसी कदम उठा रहे है। कोरोना के कारण पूरा विश्व थम से गया हैं। आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों के कारण 50% तक घरेलू हिंसा बढ़ गया हैं। लोगो मे टेंशन के कारण शुगर, बीपी और ब्रेन हेमरेज जैसी बीमारियों की बढ़ोतरी हुआ है।
   कोरोना से निबटने के हर मोर्चे पर मोदी सरकार की विफलता दिख रही हैं। जो लोग मोदी समर्थक थे , वो भी आज खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। आज मजदूरों की हालत दयनीय हैं। इस पर सरकार की मदद नाकाफी हैं।
कोरोना के चलते देश दुनिया लाचार नजर आ रहा है।  फिलहाल कोरोना से छुटकारा मिलता नहीं दिख रहा। लोगों को आने वाले दिनों में और जयक़द कठिनाईयो का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में लोगों को सकारात्मक सोच बनाये रखने की आवश्यकता है।  कम खर्च में जीविका चलना सीखना होगा। 
     - प्रेमलता सिंह
 पटना - बिहार
जीवन और जीविका के विषय पर यदि बात करें तो ये स्पष्ट है कि जीवन को चलाने वाली जीविका तो शून्य स्तर पर पहुंच चुकी है । महज चंद महीनों में मानो देश कई साल पीछे पहुंच गया हों । अपने जीवन की जमा पूंजी हो अथवा रोजमर्रा की उपयोग की चीजें सभवतः हर वो चीज जिसे बेचकर दो वक्त की रोटी का इंतेजाम हो सके , लोगो ने अब उन्हें औने पौने दामो में बेचना तक शुरू कर दिया है । जिस इंसान के पास दो बैल हो और वह दो रोटी का इंतेजाम करने के लिए अपना एक बैल औने पौने दामो में ये सोचकर बेच दे कि वह अपने बीबी बच्चो को हजारो किलोमीटर लेकर जाने वाली बुग्गी में दूसरे बैल के साथ स्वयम भी तो लग सकता है । तब शायद ही जीविका के बारे में इससे ज्यादा किसी को बताने की जरूरत हो और परीक्षीत की कलम शायद ही इससे ज्यादा हृदयविदारक घटना के बाद कुछ लिख पाये ।
वही जीविका के बिना जीवन की कल्पना मुंगेरी लाल के हसीन सपनो जैसी ही मानी जा सकती है । जो बे आधार है और जिसका धराशायी होना लाजमी है । फिर भी गर  केवल मन को तसल्ली देने वाली बात करें तो लोकडाउन ने हमे साथ रहने , संभ्य बनने व अपने व अपनो को समझने के लिए भरपूर वक्त दिया है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
कोरोना ने जीवन और जीविका को एक नये मोड़ पर पहुँचा दिया है जहाँ से सभी को जीवन की शुरुआत करनी होगी. कुछ छोड़ना होगा तो कुछ अपनाना होगा जैसे भीड़ लगाने की कार्यशैली को छोड़कर सीमित लोगों के साथ कार्य करने होंगे, हाथ मिलाने की परम्परा को त्यागना होगा और हाथ जोड़कर नमस्ते करने की आदत को अपनाना होगा. शादी विवाह के आयोजनों को कम से कम मेहमानों के साथ सम्पन्न करना होगा. फ़ैक्टरियों में लेबर को लेकर सावधानी बरतनी होगी और टेक्नॉलॉजी के इस्तेमाल पर ज़ोर देना होगा. ट्रेन हवाई यात्रियों को सोशल दूरी बनाए रखने के लिए तैयार रहना होगा । स्कूल कालेजों में ऑन लाइन पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा आदि सारी व्यवस्था को कोरोना की देन कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा ।  
     आर्थिक व्यवस्था को कोरोना ने एक नई दिशा में मोड़ दिया है रोज़गार का बड़ा संकट पैदा कर दिया है । भारत एक घनी आबादी वाला देश है मज़दूरों की संख्या बहुत अधिक है और वह भी अनस्किल्ड की संख्या ज़्यादा है टेक्नोलॉजी बदलेगी जिसमें बहुत कम मैनपॉवर की ज़रूरत होगी तो ऐसे में मज़दूरों की बहुत बड़ी संख्या  बेरोज़गारी का सामना करेगी ये सब कोरोना की देन है ।
 कोरोना के नकारात्मक प्रभाव के विपरीत परिस्थितियों का आकलन किया जाए तो ग्लोबल वार्मिग में सुधार हुआ है प्रदूषण नियंत्रण हुआ है लोगों के बीच सकारात्मक विचारों का आदान-प्रदान हुआ है प्रकृति के लिए दया भाव पैदा हुआ है यह सब कोरोना ने जीवन पर अपने प्रभाव छोड़े हैं जीवन और जीविका को एक अनजाने मोड़ पर ला दिया है जहां से एक नई दिशा तय करनी होगी ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
 करोना ने जीवन और जीविका  दोनों को प्रभावित किया है। जीवन करुणा के चपेट में खत्म हो रहा है और जिंदा रहने वाले मानव जीविका के अभाव में समस्या ग्रसित होकर शंका और त्रासदी जीवन बिता रहा है मानव में वर्तमान से विरोध भविष्य की चिंता और भूतकाल की पीड़ा समाई हुई है। मनुष्य का जिंदा रहने के लिए मूलभूत आवश्यकताएं रोटी कपड़ा मकान है जो हर मानव परिवार के लिए अनिवार्य है इसके बिना मानव जिंदा नहीं रह पाएगा इसके अलावा मनुष्य की महत्त्व का आवश्यकताएं हैं जिसे विलासिता भी कहा जा सकता है मूलभूत आवश्यकताएं सभी के लिए अनिवार्य है लेकिन महत्व का आवश्यकता है सभी के लिए अनिवार्य नहीं है जो मनुष्य वास्तविकता को नहीं समझ कर विलासिता को अधिक महत्व देता है यही मानव की जीने की व्यवस्था चरमराती नजर आ रही है। यहीं से विलासिता की पूर्ति के लिए पूंजीपति  उद्योगपति का जन्म हुआ है यहीं से अमीरी और गरीबी का समाज में एक खाई के रूप में दृष्टब्य है। पोषण करने वाले पूंजीपति जो पैसा और दिमागी खेल कर मजदूरों कामगार और प्रगति का शो सरकार श्रीधर संग्रह में भिड़े हैं और दूसरा पक्ष गरीबी मधु जो शोषित होकर अपने मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ है इस तरह मानव समाज में अमीरी और गरीबी की खाई स्पष्ट दिखाई दे रही है। करोना के आने से गरीबी और अमीरी दोनों पर प्रभाव पड़ा है क्योंकि लाभ डाउन में मजदूर अमीर सब घर पर चित कर करुणा को हराने की मंतव्य बनाए हैं लेकिन कब तक इस तरह जिया जाएगा इसी तरह स्थिति बनी रहेगी जो आने वाला वक्त मंदी का वक्त होगा जो सभी वर्ग के लोगों के लिए चुनौती साबित होगा अगर मानव बाहर निकलेंगे तो जीवन मृत्यु का डर और घर पर रहेंगे तो धन की कमी होने का डर इस तरह मानव प्रबंधन पद अभिमान भय से ग्रसित होकर समस्या ग्रसित होकर जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं मेरे विचार में रोना लोगों की अपराध नियंत्रण कर मानव और प्रगति के बीच संतुलन बनाने के लिए उत्पत्ति हुई है ऐसा लगता है क्योंकि प्रकृति नियम नियंत्रण और संतुलन से ही प्रवृत्ति में व्यवस्था बनी हुई है इस व्यवस्था को बनाए रखने के लिए करो ना एक सूचना के रूप में आई है ऐसा प्रतीत होता है यह मुद्दा मानव को पुनः चिंतन करने के लिए मजबूर कर दिया है करो ना जीवन और जी का दोनों को प्रभावित किया है अब मनुष्य को जीवन और जी का दोनों को कैसे दिखती या विकास की ओर ले जाना है वक्त ही बताएगा मनुष्य की समझदारी के साथ फिलहाल वर्तमान में करो ना जीवन और जी का दोनों पर पर ढा रही है मनुष्य को चिंता की नहीं चिंतन की आवश्यकता है जब तक चिंतन नहीं होगी इस धरती के नाना विकास की ओर नहीं बढ़ पाएंगे अभी सभी को करुणा से लड़कर आगे भविष्य के लिए चिंतन की आवश्यकता है। चिंतन शैली समाधान निकलती है चिंता है तो चिंतन नहीं चिंतन है तो चिंता नहीं।  चिंता करने की आवश्यकता नहीं समाधान ढूंढना होगा समस्या है तो समाधान है ही किसी समाधान को समझदारी के साथ मानव जाति को ढूंढना होगा और आगे भविष्य को एक मजबूत संस्कारित दुनिया बनाना होगा।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
      मानव जीवन के साथ-साथ जीविका भी आवश्यक है। जिसके लिए मानव शारीरिक एवं मानसिक परिश्रम करता है। उस परिश्रम के लिए मानव को दूसरे स्थानों, राज्यों या विदेशों में जाना पड़ता है।
      इसी उद्देश्य से श्रमिक अन्य स्थानों, राज्यों और विदेशों में अपनी-अपनी योग्यता अनुसार गये हुए थे कि चीन के वृहान में कोरोना विषाणु ने हड़कम्प मचा दिया। जिस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नकारात्मक भूमिका निभाई। जिसके आधार पर अन्य देशों ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया था। फलस्वरूप कोरोना ने चीन से अधिक दूसरे देशों में कहर ढाया है और महामारी का रूप धारण कर लिया।
      चूंकि कोरोना विषाणु की दवा किसी भी देश के पास नहीं थी। इसलिए चारों ओर मौत का तांडव नृत्य होने लगा। समस्त देश अपने-अपने नागरिकों को अपने देश लाने लगे। जिससे कोई भी देश कोरोना विषाणु से अछूता नहीं रहा। जिसे रोकने के लिए लाॅकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग किया गया। संगरोधक केंद्र स्थापित किए गए हैं।
      इसके बावजूद अमेरिका में मृत्यु का आंकड़ा विश्व में सबसे अधिक है। जिससे क्रोधित हो कर वह चीन पर दवाब डाल रहा है। जिसे चीन गम्भीरता से नहीं ले रहा। जिसके चलते अमेरिका-चीन में कोरोना विषाणु को लेकर तनाव बढ़ रहा है।जो तृतीय विश्व युद्ध का संकेत दे रहा है।
      जिसके कारण सब काम-धंधे बंद हो गये और श्रमिक अपने-अपने घरों में जाने के लिए विवश हो गये। इन्हीं उपरोक्त कारणों के कारण कोरोना ने मानव जीवन एवं उसकी जीविका को गहरे खतरे में डाल दिया है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
इस युग में जंहा मानव चाँद तक पहुंच गया और जीविका के लिए कई प्रकार के नए कार्यो का निर्माण किया। नए अविष्कारो की खोज।नए युग का अवतार। सच में मानव शायद समय के पहले हर वस्तु को पाने चाहत की रखते हुए आगे जा रहा था। पीछे हो जाने के सवाल ही नही था। किन्तु अचानक से क्या से क्या हो गया। सब अपने पराये हो गए। अपनो ने अपनो को छूना तो दूर बात करना भी उचित नही समझा। कारण मानव का दुश्मन मानव हो गया तब । बदले की भावना और गलत नियत रखने वाला चीन ने आखिर कोरोना नामक वायरस का निर्माण कर समस्त मानव जाती के जिन्दगी में ऐसा तूफान लाया की लोगो को सोचने तक का वक्त नही दिया। और लोग कुछ ही समय अपनो से बहुत अलग हो गए। जान बचाने के लिए लॉक डाउन हो गया, कुछ दिनों के बाद लोग भूखे मरने के नौवत में आ गए फिर अपने प्रदेश से गाँव जाने के अलावा कोई रास्ता नही बचा, जिस शहर में वर्षो से काम कर रहे थे वही मिनटों में पराये हो गए। आखिर मानव ने स्वार्थ दिखाया और मानव ने मानव को ही घर जा रास्ता दिखा दिया। सुनसान और बीहड़ जंगलो के बीच किसी भी तरह अपने परिवार के साथ पेट के लिए मन मे आस लिए अपने घर चल दिये। रास्ते मे अनके कठिनाईयो का सामना सो अलग। चीन द्वारा उत्पन्न कोरोना ने जीवन को बुरी तरह से बिगाड़ दिया है और जीविका का तो अभी पट तक नही खुला है। सच मे कोरोना ने सब कुछ तबाह कर तबाह कर दिया है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
सूक्ष्म , अदृश्य और लाइलाज कोरोना वायरस ने सम्पूर्ण विश्व में तहलका मचाया हुआ है । इस वायरस का संक्रमण आदमी का आदमी से मिलने पर फैलाव होता है । यहाँ " मिलने " का अर्थ हाथ मिलाने , गले मिलने व क्लोज काॅटैक्ट से लिया गया है । या फिर इसका फैलाव बाॅयोमैट्रिक अटैंड़ेंस , रेलिंग - ग्रिल व डोर हैंड़ल को स्पर्श करने से बढता है । इसके प्रभाव को बढने से रोकने के लिए लाॅकडाउन ही एकमात्र उपाय है । देश में लाॅकडाउन होने से यातायात के साधन कार - जीप , बस - ट्रक , ट्रेनें , हवाई जहाज  , समुद्री जहाज सब का परिचालन रुक गया है । स्कूल - काॅलेज , मन्दिर , माॅल , सिनेमा , खेलें , विवाह - शादी , धार्मिक अनुष्ठान आदि  सब बंद हैं । फैक्टरियाँ ,  उद्योग - धंधे , परियोजनाएं , खानें - खदानें , होटल - रेस्टोरेन्ट  , पर्यटन इत्यादि बंद हैं  । लोग अपने ही घरों में कैद होकर रहने को विवश हैं  । अधिकांश कार्य  , लेन - देन  आनलाइन ही हो रहे हैं  । रामायण , महाभारत  , श्रीकृष्णा जैसे  धार्मिक सीरियल का प्रसारण पुनः टीवी चैनलों पर शुरू करना पड़ा । लोगों की दिनचर्या बदल गई  । खाने - पीने , सोने - उठने  , आने - जाने के तौर तरीकों में बदलाव आ गया  । हाथों को बार बार साबुन से धोना  । यदि घर से बाहर जाना पड़े तो मास्क लगाकर निकलना  । सैनिटाइजर का प्रयोग करना  । सामाजिक दूरी के नियम का पालन करना  ।  यही नहीं , स्थिति यह है कि आज आदमी आदमी से भय खाने लगा है । भय इसलिए कि कहीं संक्रमण का शिकार न हो जाएं । दूसरे पिछले चौवन दिनों से लोग घर पर ही हैं । प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों को और भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है । सैलरी नहीं मिल रही है । दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है । रोजगार से बेरोजगार हुए मजदूर - श्रमिक मजबूरी में अपने राज्य - घर वापस लौट रहे हैं । सरकार की राहत ऊँट के मुँह में जीरा साबित हो रही है । कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं अवश्य संजीवनी का कार्य कर रही है । फिर भी लेकिन  , किन्तु  , परन्तु  जुड़ते रहते हैं  । और हालात किसी से छुपे नहीं हैं  । शुक्रवार 08 मई 2020 को महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मालगाड़ी से 16 मजदूरों का कट कर मौत होना स्थिति की भयावहता को प्रकट कर रहा है  । तीसरे देश के कमाऊ पूत बंद होने से रोजगार , विकास और आय पर सीधा असर हुआ है । अर्थव्यवस्था चौपट हो गई  है । विकास दर गिर गई है  । शेयर मार्केट और नेफ्टी बुरी तरह प्रभावित हो गई है  । सूक्ष्म - अदृश्य वायरस ने चाँद पर आशियाना बनाने की ख़्वाहिश रखने वाले आदमी को धरती पर ही अपने घरों में कैदी की तरह जीवन यापन करने को विवश कर दिया है । 
- अनिल शर्मा नील 
  बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कोरोना ने जीवन को काफी सुधार दिया हैं पहली बार इन्सान को लगा की जीवन हम जीसे मान बैठे हैं कम से कम वह तो जीवन  नही हैं अभी तक का हमारा जीवन मैं से सूरू ओर परिवार कुछ रिश्ते नाते कुछ एक दोस्तो तक ही सिमित हो कर रह गया था। यही हमारी दुनियाँ थी कोरोना ने इस भावना को ही बदल कर रख दिया हैं अब तो केवल मैं ओर परिवार ओर आस पड़ोस  तक सिमित हो गया हूँ खुदा न खास्ता यदी कोरोना से प्राण चले जाये तो सोच कर देखना जीन जीन को हम अपना मान रहे थे उन में से कितने साथ हमारें होंगे? हमारे जीवन की सम्पुर्ण सच्चाई सामने आ जायेगी क्या दोस्त, रिस्तेदार क्या पड़ोसी सब नदारत नजर आयेगें, यह भी छोड़ दो जो पड़ोसी एव अपने खून के रिस्ते हैं वै भी निशप्राण बाडी से दूर दूर नजर आयेगें यही कोरोना की उपलब्धी भी हैं जो बात हमारे साधु संत हमें समझाते थे हमारे समझ नहीं आती थी वही कोरोना वायरस समझा रहा हैं अकेले आये थे अकेले जावोगें सुधारलो अपना भविष्य अब भी मौका हैं मुझे यही संदेश बदलाव के रूप में नजर आता हैं। रही बात जीवीका की तो वह तो चलती रहेगी सोच कर देखना यदी गावॅ में रोटी न मिलती तो क्या इतने मजदूर पुनः अपने गावँ जाते? इन मजदूरो को पता हैं गाव में शहर समान चमक दमक न हो पर शगुन की रोटी जरूर हैं। अछ्छा कोरोना वायरस के रोक थाम के लिये सरकार ने।लाॅकडाऊन लगाया इस लाकबाउन ने हमें बता दिया ओर समझा भी दिया की तेरी जरूरत केवल कुछ रोटी ओर एक कटोरी सब्जी हैं बाकी का तमाम मजमा माया जाल हैं जीसमें उलझ कर इन्सान सभ कुछ भुल बैठता है ओर अन्याय आनीति अनाचार अधर्म समान कार्य करते रहता है क्यो? लाॅकडाउन की बहार की जीन्दगी जीने के लिये जो इन्सान को पतन की ओर ले जाती हैं अतः मेरे मत से जीविका में भी मूल भूत सुधार आने ही चाहिये।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
कोविड19 ने संपूर्ण विश्व का जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया है।ऐसे में अब लोग घरों में रहकर भी आर्थिक परेशानियों का सामना तो कर ही रहे हैं। साथ ही महामारी का भय हर किसी को परेशान कर रहा है। लोगों ने 50 दिनों तक तो अपनी जीविका चला ली। लेकिन अभी बहुत से ऐसे लोग हैं हमारे समाज में की अब उनको अपनी जीविका का साधन शीघ्र अति शीघ्र चालू करना जरूरी हो गया है। अन्यथा आने वाले समय में उन्हें आर्थिक परेशानियों के साथ-साथ मानसिक परेशानियों का सामना भी करना पड़ सकता है। वैसे प्रशासन जरूरतमंदों को सूखी खाद्य सामग्री बांट रही है।लेकिन कब तक  .? इसके अलावा भी जीवन में जो आवश्यकता है। उनको पूरा करना प्रशासन के हाथों में नहीं है। व्यवसाय के तौर पर देखें तो आज सभी बड़े से बड़े  और छोटे से छोटे  सभी व्यवसाय ठप पड़े हैं,अब सभी को बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही है। आगे का जीवन कैसा होगा और कब तक चालू होगा। यह चिंता हर किसी को सता रही है। बाय पास से गुजर रहे श्रमिकों को शारीरिक ,आर्थिक और मानसिक ,तीनों चिंताओं का सामना करना पड़ रहा है। चिंता की लकीरें साफ उनके चेहरे पर पढ़ी जा सकती हैं। आज ऐसा लगता है कि कोविड19 ने हमें किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। जान है तो जहान है,यह सत्य है पर जीवन बचाने के लिए जीविका की आवश्यकता होती है। आज हम न जाने किस मोड़ पर आकर खड़े हो गए हैं।कुछ समझ नहीं आता परमेश्वर पर भरोसा रख कर अपना कर्म करते जाएं।  सरकार ने सभी को आत्मनिर्भर बनने पर जोर दिया है। लेकिन इसके लिए भी अभी समय लगेगा। कोविड19 ने हमें दोराहे पर  लाकर खड़ा कर दिया है।
       - वंदना पुणतांबेकर 
           इंदौर - मध्यप्रदेश
 
कोरोना ने जीविका दो छीन ही लि है लाखों लोग नौकरियों से हाथ धो बैठे है । काम धंधे बंद है 
खुलने के कोई आसार जल्दी नज़र नहीं आ रहे । 
जीवन तो कठिनाइयों से चल रहा है ...चलेगा जब जिविका नहीं तो जीवन चलाना कितना मुश्किल है आप सब जानते है । 
जीवन में हमारे साथ पुरा परिवार जुड़ा हुआ है । बच्चे उनकी पढ़ाई वृद्ध उनकी दवा कैसे होगा रोज़ खाना तो चाहिए ज़िंदा रहने को 
कोरोना वायरस की वजह से पूरे दुनिया में कोहराम मचा हुआ है. 1 लाख से भी ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. यह वायरस अभी कहीं थमता सा नहीं दिख रहा. दुनिया के कई देश लॉकडाउन हैं. पूरी दुनिया रुक सी गई है. उद्योग, सड़कों पर गाड़ियां, लोगों का ट्रेवल करना बंद है और न जाने हमारे दैनिक जीवन में कितने बदलाव आए हैं. इसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ रहा है. अनुसंधान में सामने आया है कि प्रदूषण का स्तर घट रहा है, नदियां साफ हो रही हैं और सड़कों पर जंगली जानवर निकल आए हैं. 
लॉकडाउन की वजह से न केवल लोगों की जीवन शैली में बदलाव आया है, बल्कि उनके मनोविज्ञान पर इसका प्रभाव देखने को मिला है।
दरअसल, कोरोना महामारी की वजह से उपजी आर्थिक व सामाजिक चुनौतियों की वजह से घरेलू हिंसा और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के मामलों में इजाफा हुआ है।
इसका प्रमुख कारण आर्थिक गतिविधि का बंद होना और आवाजाही बंद होने की वजह से व्यवहार में आई चिड़चिड़ाहट भी मानी जा रही है।
दरअसल कोरोना की चुनौती से निबटने के मोर्चे पर सरकार की लापरवाही और नाकामी को लेकर आम जनता ही नहीं, बल्कि संघ और भाजपा से हमदर्दी रखने वाले लोग भी बडी संख्या में हलकान और निराश हैं।”
जब लाखों की संख्या में लोगों की नौकरियों पर ख़तरा मंडरा रहा हो और उनकी जान भी जोखिम में हो तो ऐसे में ये कहना मुश्किल है कि कोरोना वायरस महमारी से किसी का भला भी होगा.
अगर केवल निवेश के बारे में देखा जाए तो शेयर की क़ीमतें कम होना शेयर ख़रीदने का एक सुनहरा मौक़ा है, इस उम्मीद के साथ कि मार्केट स्थिर होगा तो शेयर की क़ीमतें बढ़ेंगी.
बहरहाल, इस बात में कोई दो राय नहीं कि कोरोना वायरस का असर पूरी देश-दुनिया पर पड़ा है। चीन-अमेरिका जैसे बड़े देश और मज़बूत अर्थव्यवस्थाएं भी इसके सामने लाचार दिखाई दे रहे हैं। इटली-फ्रांस की हालत से सभी वाकिफ ही हैं। इस कोरोना त्रासदी से भारत में विदेशी निवेश के ज़रिए अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने की कोशिशों को भी बड़ा धक्का पहुंचेगा। क्योंकि जब विदेशी कंपनियों के पास भी पैसा ही नहीं होगा तो वो निवेश में भी रूचि नहीं दिखाएंगी। हालांकि, जानकारों का यह भी कहना है कि अर्थव्यवस्था पर इन स्थितियों का कितना गहरा असर पड़ेगा, यह निकट भविष्य में घटित होने वाली दो बातों पर निर्भर करेगा। पहला तो ये कि आने वाले वक़्त में कोरोना वायरस की समस्या भारत में और कितनी गंभीर होती है, और दूसरा ये कि कब तक इस पर काबू पाया जाता है। अब जो भी हो, लेकिन किसी भी नेतृत्व के लिए यह स्थिति किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
     सच पुछिये तो कोरोना ने समाज के सबसे निचले पायदान पर रह रहे लोगों  की जिंदगी को तबाह कर दिया है। इनका जीवन   छिन्न -भिन्न हो चुका है। जीविका के नाम पर इनके पास कुछ नही बचा है। ऐसा बदलाव भला किसे भायेगा जहाँ जिंदगी जीना दुष्कर हो गया है।
          कोरोना एक अति संक्रामक बीमारी है। यह बड़ी तेजी से फैलती है। बीमारी हो जाने पर शरीर मे जो हलचल होती है वही सिर्फ  हमें पता है। बीमारी का इलाज का अभी तक हमें  पता नही है। मतलब कि बीमारी का हम सिर्फ लक्षण जानते हैं। इलाज के  नही पता होने से पूरे मानव जाति मे भय ब्याप्त है । मौत के डर से इस बीमारी से बचने का जो उपाय हो सकता है उसे करने मे मनुष्य की जिंदगी ही बदल गई है। इसी बचाव की  परिस्थिति मे लाकडाउन जैसी गतिविधियों का जन्म हुआ है। मास्क, सोशल डिसटेन्सींग तथा 20 सेकेण्ड साबुन से हाथ धोने के नियम को जीवन मे शामिल किया गया है।जीवन की आर्थिक गतिविधियाँ भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है।ऐसा होने से समाज का जो हिस्सा रोज कमाता था और खाता था वह मर रहा है या मौत के मुहाने पर खड़ा है।
      कुछ जिंदागियों को कोरोना निगल रही है तो कुछ ज़िंदगियाँ कोरोना से बचाव के लिए प्रशासन/सरकार द्वारा बनाए गये नियमो से जा रही है। जैसा भी है इसी आशा के साथ लोग जी रहे हैं कि जल्द ही कोरोना का कहर टूटेगा और जिंदगियाँ सामान्य होगी।
- रंजना सिंह
पटना - बिहार
जीवन और जीविका में अन्योन्याश्रित संबंध है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जीविका है तभी जीवन सुरक्षित है और जीवन सुरक्षित है तभी जीविकोपार्जन संभव है। कोरोना जैसी विकराल महामारी ने जीवन और जीविका दोनों को विकट संकट की स्थिति में डाल दिया है। 
   लॉकडाउन में उद्योग-धंधे बंद होने के कारण लाखों लोगों के बेरोजगार हो जाने से लोगों के जीवन और जीविका खतरे में पड़ गई है। विशेषकर निम्न वर्ग के लोगों की स्थिति ज्यादा दयनीय हो गई है। यही कारण है कि लाखों की संख्या में लोग उल्टी दिशा में गांव की ओर पलायन कर रहे हैं। 
    कोरोना संकट के मुश्किल घड़ी में लोगों का जान बचाना सर्वोच्च प्राथमिकता है, हालांकि आर्थिक मजबूती भी बेहद जरूरी है। ऐसे में जीवन और जीविका के बीच संतुलन बनाकर हमें कार्यों को अंजाम देने के लिए आगे आना होगा।
    रोजगार छूटने के वजह से जो मजदूर अपने गांव लौटे हैं उन्हें रोजगार से जोड़ने हेतु मनरेगा की योजना को लागू करने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। मनरेगा के बजट दर बढ़ाकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की तैयारी हो रही है।
  लॉकडाउन की वजह से जीवन और जीविका दोनों बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। इसलिए सरकार अब जीवन को सुरक्षित रखते हुए जीविकोपार्जन हेतु अर्थव्यवस्था के सारे पहलुओं पर धीरे-धीरे काम शुरू करने पर विचार कर रही है। इसमें खेतीबाड़ी से जुड़े कामकाज को छूट देना, फैक्ट्रियों में उत्पादन शुरू करना ,लघु उद्योगों को बढ़ावा देना और सामान का ट्रांसपोर्टेशन शुरू करने जैसे काम शामिल हैं।
  विश्व स्वास्थ्य संगठन(WHO) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी कहा है कि कोरोना वायरस महामारी के बीच आजीविका बचाने के लिए जरूरी है कि पहले मानव जीवन को बचाया जाए।
आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने के लिए पहले कोविड-19 पर काबू पाना जरूरी है।'
     अतः ऐसी विकट परिस्थिति में हम सभी को समझदारी पूर्वक जीवन और जीविका के बीच सामंजस्य बनाते हुए जीवन को जीना होगा। जीवन सुरक्षित है तो जीविका का भी इंतजाम हम कर सकते हैं।
                            - सुनीता रानी राठौर
                         ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " कोरोना के लॉकडाउन ने सभी के जीवन और जीविका  पर अपना प्रभाव जमा दिया है । जिससे छुटकारा पाने में काफी समय लग सकता है । सरकार अपने स्तर पर काफी कुछ कर रही है । जो भविष्य की रुप रेखा तैयार करने में बहुत अधिक सहायक सिद्ध होगा । फिलहाल प्रवासी मजदूरों की हालत बहुत अधिक चिंताजनक है । सरकार के प्रयास से ही समाधान निकाला जा रहा है ।
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र
पानीपत -  182 कवियों का काव्य संंकलन " कोरोना " का सम्पादन करने व " आज की चर्चा "  के कोरोना व लॉकडाउन के विषयों पर चर्चा का आयोजन व सम्पादन करने हेतु बीजेन्द्र जैमिनी को सम्मान पत्र दिया गया है । आज की चर्चा के सदस्यों ने बधाई देकर अपनी खुशी जाहिर की है । बीजेन्द्र जैमिनी ने सभी धन्यवाद किया है ।

महामारी के इस दौर में  आपके द्वारा कोविड-19 के लिए किए गए सामाजिक कार्य हेतु मदर टेरेसा फाउंडेशन धन्यवाद प्रेषित करता है एवं इस संकटकालीन समय में मदर टेरेसा फाउंडेशन आपके द्वारा किए गए योगदान के लिए सदैव आपका ऋणी रहेगा एवं आपको प्रशस्ति पत्र देकर गौरवान्वित महसूस कर रहा है !
हम आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं !
शुभेच्छु
निशा शर्मा 
अध्यक्ष
 मदर टेरेसा फाउंडेशन संस्थान





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