क्या लॉकडाउन में स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर खड़ा है ?

लॉकडाउन में स्थानीय रोजगार  बहुत अधिक प्रभावित होने की सभावना बन गई है ।  अघिकतर मजदूर अपने - अपने घरों को चलें गये है । जिससे पुनः स्थानीय रोजगार चालू करने के लिए बहुत ही मुश्किल भरा कार्य हो गया है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
लॉक डाउन में स्थानीय रोजगार वाकई खत्म होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। काम छोड़ कर घर लौटे सर्वहारा वर्ग से लॉक डाउन ने तो  जीने का सहारा ही छीन लिया है ।चिलचिलाती गर्मी हो या कड़ाके की सर्दी या झमाझम बरसात पर  मौसम के थपेड़ों की परवाह किए बिना मेहनत कशों के भाग्य में 2 जून रोटी कमाने के लिए हांढ़तोड़ मेहनत करने के अलावा अन्य कोई विकल्प भी तो नहीं होता, लेकिन कोरोना संकट ने उससे उसकी मेहनत का यह अधिकार भी छीन लिया ।हम कह सकते हैं कि करोना संकट ने आम आदमी को वाकई बहुत मुसीबतों में खड़ा कर दिया है ।भवन निर्माण हो या दिहाड़ी मजदूरी, फैक्ट्रियों में कटिंग टेलरिंग ,कार्पेंट्री ,फिटर ,मशीनिस्ट कंबाइन चालक आदि तकनीकी काम करने वाले खाली ही तो बैठे हैं ।जो उद्योग चालू हुए उनमें सामाजिक दूरी के पालन की अनिवार्यता लागू होने से कई कामगारों को घर में बैठना पड़ रहा है ।इससे घर  चलाना भी मुश्किल है ।भवन निर्माण  बंद हैं जिससे मिस्त्री और मजदूरों का काम बंद  है ,जो बिल्डिंग मटेरियल की दुकान पर  काम करते थे उनका भी काम रुक गया है ,वही हाल मजदूर मिस्त्री का  भी है ।बाजार में जो लोग दुकानों पर काम करते थे तो दुकानें बंद होने से उनका काम बंद  हो चुका है ।छोटे-मोटे लकड़ी के कारखाने मे जो काम करते थे वह भी बैठे है तमाम लोग स्थानीय कामगार जो काम किया करते थे वह  सभी  बेरोजगार हैं, उसी तरह गल्ला मंडी बंद है ,उसमें काम करने वाले तमाम लोग  बेरोजगार हो चुके  है ।टैक्सी चालक, रिक्शेवाले ,छोटे-छोटे स्थानीय रोजगार वाले बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं ।कोरोना का डर अलग सता रहा है ,भूख  अलग खाये जा रही है । परंतु फिर भी लॉक डाउन 3 के आधार पर कुछ परिस्थितियों को देखते हुए रेड जोन ,ऑरेंज जोनऔर  और ग्रीन जोन वाले क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। जिसमें कई कार्यो  की छूट भी दी गई है ।ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा कार्य व कृषि संबंधी कार्यों को सामाजिक दूरी का पालन करने के नियम के साथ ही छूट दी गई है ।
परंतु जीवन पटरी पर लौटने मे अभी काफी वक्त लगेगा क्योंकि जान है तो जहान है । यह भी अंततः सत्य है ।
 लेकिन यह भी कटु सत्य है स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर हैं ।
ईश्वर करें जल्दी से देश कोरोनावायरस  से मुक्त हो । फिर से सभी रोजगार पूर्ववत चालू हो सके एवं देश में खुशहाली एवं समृद्धि तथा शांति की लहर दौड़ सकें ,जीवन पटरी पर लौट सके। 
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
लाकडाउन के चलते स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर हैं, ऐसा मानना ठीक नहीं लगता है। हां रोजगार प्रभावित हुए हैं लेकिन खत्म होने के कगार पर नहीं है।जो भी दैनिक उपभोग से जुड़े रोजगार हैं, वह यथावत चल रहे हैं । इन रोजगारों में डेयरी उद्योग फल सब्जी उत्पादन जैसे रोजगार शामिल है। हां,वह रोजगार जो आवश्यक आवश्यकताओं से नहीं जुड़े है, अवश्य प्रभावित हो रहे हैं। कृषि में भी फूलों की खेती प्रभावित हुई है। हमारे क्षेत्र में ही लाखों रुपए के फूल कूड़े के ढेर पर डाल दिए जाते हैं ,क्योंकि उनकी खपत इन दिनों नहीं है इतना सब होते हुए भी यह मानना कि स्थानीय स्तर पर रोजगार समाप्त हो रहे हैं, उचित नहीं लगता, क्योंकि परिस्थितियां बदलेंगी तो रोजगार के साधन यथावत चलने लगेंगे। आमदनी के हिसाब से ही बाजार चलता है,इस समय हर उपभोक्ता की आमदनी प्रभावित हुई है ,तो रोजगार का प्रभावित होना स्वाभाविक है, और यह स्थिति संपूर्ण विश्व में ही है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
 वायरस का असर सिर्फ इंसानो के स्वास्थ पर ही नही बल्कि दुनिया भर के रोजगारो के लिए खतरनाक साबित हुआ है । लॉक डाउन के कारण बाजार मॉल छोटी बड़ी दुकाने सब बन्द है जो मजदूर काम करते थे सभी बेरोजगार है । वैश्विक अर्थ व्यवस्था को बड़ा झटका लगा है ऐसे में । श्रमिकों पर संकट है सभी बेरोजगार है कोरोना संकट से भारत भी अछुता नही है भारत में बिमारी से संक्रमित होने वालो की संख्या हर दिन बढ़२ही है। इस कारण लॉक डाउन बढ़ गया इससे रोजगार नही जब रोजगार नही तो बेरोजगारी की समस्या बढ़ रही है स्थानीय रोजगार खत्म हो २हा है क्योकि वाहन न चलने के कारण माल ना आ पा रहा है ना जा पा २हा है। सब्जी और खीरे खरबूजे की खेती करने वालो को भारी नुकसान उठाना पड़२हा है उनका माल बाहर नही जा पा रहा और उन्हे सस्ते दामों में बेचना पड़ २हा है यही समस्या फूलो की खेती वालो की भी हैं मजदूरी कर रहे  श्रमिको को भी रोजगार नही मिल रहा लॉक डाउन के चलते सब काम बंद है तो २ोजगार कैसे मिलेगा। स्थानीय व्यापारी सभी परेशान है ऐसे लॉक डाउन की स्थिति मे रोजगार खत्म होने की कगार है।
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
यदि रेड ज़ोन की बात करें तो स्थानीय रोजगार बुरे दौर में है। निर्माण कार्य अधूरे रह गए है और वहाँ काम करने वाले कुशल और अकुशल मजदूर दो माह से घर बैठे हैं। जिनको रोज़ वेतन मिलता था वे मुसीबत का सामना करने को मजबूर हैं। कुछ कारखाने ज़रूर चालू हुए हैं लेकिन उनमे भी वहीं रहने वाले लोगो को ही काम दिया जा रहा है। ऐसे में ये कहना बिल्कुल सही है कि स्थानीय रोजगार पर बड़ी मार पडी है। 
ग्रीन और ऑरेंज ज़ोन में इस मामले में राहत मिलने से थोड़ा सुकूंन ज़रूर मिला है। सरकार को इस मामले में दुरनदेशी नीति बनाना चाहिए। 
- मनोज पाँचाल
 इंदौर - मध्यप्र
 नाउम्मीदी भी नहीं होनी चाहिए।पर हां, यह निर्विवाद सत्य है कि लॉकडाउन के वजह से रोजगार पर संकट की स्थिति उत्पन्न हो गए हैं। आवागमन और आयात निर्यात बंद होने के कारण सामानों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। ऐसी परिस्थिति में स्थानीय रोजगार पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।
   * किसान के फसल की खरीद बिक्री बंद है सब्जी , फल जैसे खराब होने वाले फसल को उचित बाजार उपलब्ध नहीं हो पा रहा जिसके कारण किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने ऑरेंज और ग्रीन जोन में फसलों की बिक्री को छूट देने का प्रावधान किया है ताकि उत्पादनकर्ता पर मंदी का दोहरी मार ना पड़े। 
   *दूध का रोजगार करने वाले जिनका दूध दूर-दूर शहरों और होटलों में जाता था आज लॉकडाउन के वजह से दूध बर्बाद हो रहा है।
   *स्थानीय रोजगार में परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए लॉकडाउन में मास्क बनाने का कार्य भी तीव्र गति से चल रहा था पर अब कपड़े की कमी और अनुपलब्धता के कारण मास्क बनाने की गति भी धीमी होने लगी है।
   * लॉकडाउन के कारण तालाबों की सफाई ना होने के कारण मछली पालन व्यवसाय पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
     * पश्चिम बंगाल का जूट कारखाना बंद होने से कई लाख श्रमिक बेरोजगार हो चुके हैं।
   *स्थानीय रोजगार में चीनी मिल और चावल मिल भी प्रभावित हुआ है। अधिकांश जगह गन्ना उत्पादन की कमी के कारण चीनी मिल बंद हो चुकी है और उस में कार्यरत श्रमिक बेरोजगार हो चुके हैं।
   *चौरसिया वर्ग जो पान की खेती कर हर चौराहे पर पान की छोटी दुकान खोल अपना व्यवसाय करते थे।पान के पत्तों की अनुपलब्धता के कारण उनका व्यवसाय भी प्रभावित हो रहा है।
    * ग्रामीण स्तर के लोग जो चटाई, झाड़ू , मिट्टी के गमले , मिट्टी के घड़े आदि बनाकर स्थानीय स्तर पर बेचकर जो जीवन यापन कर रहे थे उनकी आमदनी का स्रोत बंद हो गया है।
   * फूलों की खेती कर जो दूर- दूर शहरों में देश-विदेश फूलों का व्यापार करते थे ।आज उनकी बिक्री नहीं हो पा रही और फूलों को ज्यादा दिन संभाल कर भी नहीं रख सकते। इस कारण लागत दाम भी उनका डूबने लगा है।
    * इस तरह वर्तमान परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि लॉकडाउन से स्थानीय रोजगार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं पर खत्म होने के कगार पर है ऐसी नाउम्मीदी मन में नहीं रखनी चाहिए।पर हां निसंदेह बुरी तरह प्रभावित हुआ है । इसी कारण सरकार सभी का ध्यान रखते हुए रेड जोन को छोड़कर ऑरेंज और ग्रीन जोन में सावधानियां बरतते हुए फिजिकल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए स्थानीय रोजगारों को करने की छूट प्रदान की गई है । जैसे --सैलून को छोड़कर कूलर मरम्मत ,बिजली रिपेयरिंग, स्टेशनरी की दुकान सब्जी, फल किराना आदि दुकानों को खोलने की छूट दी गई है जो अनिवार्य भी है और जनता और देश हित में भी है।
                                - सुनीता रानी राठौर
                              ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
जी हाँ कई रोज़गार बंद से हो गये है कईयों की नौकरियाँ चली गई है लोग भूख से बेहाल है एक भाई कह रहाँ है , घर में छोटा बच्चा है, दूध नहीं है, डायपर खरीदने में दिक्कत है, किराए का घर है, राशन भी जमा नहीं किया है. नौकरी जाने के बाद करो या मरो की स्थिति हो गई है.’
किशोर कहते हैं कि उनके माता-पिता बीमार हैं और वो घर में अकेले कमाने वाले हैं. अचानक नौकरी जाने से उनका भविष्य अनिश्चित हो गया है. कोरोना की वजह से दुनियाभर में लॉकडाउन है. सबसे ज़्यादा असर एयरलाइनों और पर्यटन से जुड़े काम-धंधों पर पड़ा है. मेरीनौकरी जाने से बहुत परेशान हूँ ।
छोटे रोज़गार वालो का तो हाल न पूछे ....
ढेले लगाने वाले , बडापाव बनाने वाले , चाय की टप्परी  ज्यूसकार्नर , खाऊ गली , मिठाई की दुकान आदि तो एकदम बदं ये लोग रोज़ कमाने खाने वाले 
कहाँ जाएँ किससे रोये क्यों आया कोरोना कहाँ ले जायेगा किसको पता ...
बेहाल हो रहे है लोग ...
पत्तल दोने बनाने वाले, ट्रेलर , नाई , मोची , मंदिर व मस्जिद के बहार फूल , प्रसाद बेचने वाले 
फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले फेरी वाले किस किस का नाम ले इस कोरोना ने सबको बर्बाद कर दिया संतोष की बाते यह की “जान है तो जहान “है ..
आज ही खबर आई है सायन में भूख से बेहाल एक औरत ने अपने दो बच्चों को फाँसी पर लटका खुद भी लटक गई ...
बेचारी एक माँ कैसे बच्चों को भूख से तडफते देखती ...
आये दिन कम्पनियों से टरमिनेडेट के नोटिस लोगों को मिल रहे है । 
आँकड़े बताते हैं कि दो हफ़्तों में पाँच करोड़ लोगों की नौकरियाँ गई आगे का हाल ..,मत पूँछों यारो ..,,,
कोरोना की मार से अर्थव्यवस्था के साथ आम लोगों की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की वजह से कारोबार बंद होने से देश में 13.6 करोड़ लोगों के बेरोजगार होने का खतरा पैदा हो गया है। इसकी सबसे अधिक मार पर्यटन और होटल उद्योग के साथ मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र पर पड़ने की आशंका है। 
बेरोजगारी का सबसे अधिक उन लोगों पर जो नियमित रोजगार में नही और जिन्हें कोई लिखित दस्तावेज नौकरी का नही मिला है। नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक देश में ऐसे लोगों की संख्या करीब 13.6 करोड़ लोग है जो गैर-कृषि क्षेत्र में काम कर रही संख्या का 50 फीसदी है। आंकड़ों के मुताबिक 2.8 करोड़ लोग मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में बिना किसी दस्तावेज के काम कर रहे हैं जिन्हें कभी भी हटाया जा सकता है। इसी तरह 4.9 करोड़ गैर-मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में और 5.9 करोड़ लोग सेवा क्षेत्र हैं जिनके पास रोगजार का कोई लिखित दस्तावेज नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि किसी कंपनी की कमाई पर जैसे ही असर पड़ता है वह इस तरह के कर्मचारियों की पहले कटौती करती है।
फ़ैक्टरियां, कारखाने सभी ठप पड़े हैं.
ऐसे में संस्थान लगातार लोगों की छंटनी कर रहे हैं और हर कोई इसी डर के साये में जी रहा है कि न जाने कब उसकी नौकरी चली जाए.
इसके अलावा स्वरोजगार में लगे लोग, छोटे-मोटे काम धंधे करके परिवार चलाने वाले लोग सभी घर में बैठे हैं और उनकी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है.
"बेरोज़गारी की वैश्विक महामारी आने वाली है. इसे संकट के भीतर का संकट कहते है ! 
जिन लोगों की नौकरियाँ अचानक चली गयी हैं या लॉकडाउन के कारण रोज़गार अचानक बंद हो गया है, उन्हें आर्थिक परेशानी के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है.
सरकारों, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आर्थिक मदद दी जा रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि नौकरी जाने या रोज़गार का ज़रिया बंद होने पर अपनी भावनाओं को कैसे संभालें? कैसे नकारात्मक भावनाओं को खुद पर हावी न होने दें?
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
लोकडाउन मे स्थानीय रोजगार खत्म होने की कगार पर खड़ा है क्या ? आज का यह विषय इस बात के लिए भी खास है कि इसमें जो सवाल है वह स्वयम में ही जवाब रखता है । दरअसल जिन व्यक्तियों ने बैंक के माध्यम अथवा कर्ज लेकर स्वरोजगार स्थापित किये थे, उनका व्यपार तो बन्द है परंतु अब न केवल कर्ज ज्यो का त्यों है बल्कि कर्ज की एवज का बैंक ब्याज भी लगातार जारी है । वही उन कर्जदारों की दशा तो ओर भी बुरी है, जिन्होंने किसी व्यक्ति से 5 से 10 प्रतिशत ब्याजदर पर पैसा उठाया हुआ है । जिनकी समझ में बस यह आने को तैयार नही है कि वह घर का खर्च चलाये कि ब्याज के पैसे चुकता करे या फिर व्यापार आगे चलने के लिए व्यापारिक सामान खरीद व्यापार को आगे बढ़ाएंगे । अब ऐसे में शायद ही किसी को समझने में कुछ कठनाई हो कि छोटे व मंझोले न केवल व्यापार बल्कि व्यापारियों का अस्तित्व खतरे की चरम सीमा पर है ।
- परीक्षीत गुप्ता
हीमपुर दीपा - उत्तर प्रदेश
कोरोना संक्रमण के कारण लॉकडाउन का तीसरा चरण 4 मई से शुरू हो रहा है, जो 17 मई तक रहेगा। लॉकडाउन में जो ग्रीन व ऑरेन्ज ज़ोन में सरकार सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक छूट देने जा रही है, लेकिन देश मे 120 जिले रेड ज़ोन में है जहां पर किसी भी तरह की छूट नहीँ मिलेगी। देश की ख्यातिप्राप्त संस्था जैमनी अकादमी द्वारा चर्चा में जो विषय है कि क्या लॉकडाउन में  स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर है? यह सवाल बहुत ही उचित है। सही में लॉकडाउन के कारण कुछ कारोबार को छोड़कर स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर है। राशन, दूध, गैस, सब्जी की बिक्री पर ही शुरू से छूट दी गई है। म मछली, चिकन, मटन के कारोबार पर भी प्रतिबंध नही हैं, लेकिन इसका बाहर से आयात नही हो रहा है। इस कारण मांसाहारी कारोबार भी दम तोड़ रहा है। स्थानीय रोजगार के दम तोड़ने के कारण देश मे लाखों नही बल्कि करोड़ों की संख्या में लोगों के सामने भुखमरी की स्थिति उतपन्न हो गई है। लॉकडॉउन 3 में केन्द्र सरकार ने सैलून, दर्जी, शराब, इट भट्ठा व ग्रामीण क्षेत्रों में काम व कारोबार करने की छूट दी है, जुसमे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य कर दिया गया है। इसी बीच दूसरे राज्यों में फंसे मजदूरों, छात्रों को राज्य सरकारें स्पेशल ट्रेन , बस से लाने का काम शुरू कर दिया है। देशभर में 7 स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है, जिसमे झारखंड, बिहार, एमपी, यूपी, छत्तीसगढ़ के मजदूर घर लौटना शुरू कर दिए है। इनकी स्क्रीनिंग व मेडिकल जांच की जा रही है। जो पूरी तरह से ठीक है उन्हें घर भेजा जा रहा है। उन्हें 14 दिनों तक घर मे ही रहना होगा। जिसमें थोड़ी भी गड़बड़ी है उन्हें कलोरटाईन सेंटर में 14 दिनों के लिए रखा जाएगा। इन प्रवासी मजदूरों के घर वापसी भी कम खतरनाक नही है। इस स्थिति में भी स्थानीय रोजगार पर असर पड़ेगा।
अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
लांक डाउन के चलते स्थानीय लोग का रोजगार बंद होने की कगार पर है। उदाहरण के लिए हमारे रोजमर्रा के काम वाले बाई जो घरों में काम करती हैं।
जो लोगों के बाल काटते नाई की दुकान है छोटे-मोटे इलेक्ट्रिक के सामान की दुकान जो छोटी सवारी गाड़ियां एक मोहल्ले से लोगों को बाजार तकिया ऑफिस तक लेकर जाते थे जो बच्चों को स्कूल में बयान लेकर जाते थे मंदिरों के बाहर फूल वाले छोटी मुझे प्रसाद की दुकाने वाले जो छोटे-मोटे ठेले लगाते थे चाय की टपरी, समोसे खाने के सामान बेचते थे। कई लोग ऑफिस इसमें चाहिए टिफिन भाग जाते थे लोगों को खाना वह सब लोग बेरोजगार हो गए हैं लेकिन हां कि रानी की छोटी मोटी दुकान वाले लोग बहुत हिम्मत का काम कर रहे हैं वह लोग हमारी जरूरत के समय जो मॉल के कारण उनकी दुकानें कम चल रही थी आज हमारी मदद करने के लिए खड़े हैं वह बोल रहे हैं आप लिस्ट सामान की हमें भेज दीजिए हम किराने का सारा सामान आपके घर भेज देंगे इसी तरह दवाई की दुकान वाले भी सब जनता का सहयोग कर रहे हैं सब्जी बेचने में आज की जो छोटे-मोटे धीरे लगाते थे वह सभी लोग लगाए हैं घर-घर लोगों को बचा रहे हैं।
लोग ऑनलाइन शॉपिंग करते थे और बड़ी-बड़ी मॉल में जाकर किराने का सामान या तरह-तरह के सामान खरीदते थे छोटे-मोटे रोजगार जो किराने की दुकानें थी वह नहीं चल पा रही थी बंद होने की कगार में थी डॉन के चलते उनका भला हो गया उनकी दुकानें बहुत अच्छी तरह से चल निकली और वह बहुत अच्छी तरीके से लोगों के घरों में सामान सप्लाई कर रहे हैं इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
लांक डाउन चलते परेशानी तो समाज का हर वर्ग कर रहा है।
जान है तो जहान है हर अंधेरे के बाद उजाला आता है सूरज भी रोज रुकता रोज उगता है जीवन ही संघर्ष का नाम है यह तो चलता ही रहेगा अब जो भी समस्या उत्पन्न हुई है इसका सामना हम सभी को करना है और सभी कोई आशा रखनी चाहिए कि 1 दिन हम इस पर जीत हासिल कर लेंगे।
हम होंगे कामयाब एक दिन हो मन में है विश्वास पूरा है विश्वास।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
 लाकडाउन के चलते न केवल आम आदमी बल्कि पूरे देश को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। और लाकडाउन भी लगातार ही रहा है। इसके चलते वो रोजगार जो खाने,पीने से संबंधित है वो तो कुछ मात्रा में चल रहे हैं। पर जो छोटे छोटे व्यापार है। वो बन्द होने की कगार पर है और मजदूर ,कुली, नौकर आदि जैसे काम बंद ही हो गया । स्थानीय रोजगार भी विचारणीय अवस्था में आ गए है। ऐसे में उस व्यक्ति पर अधिक गाज गिरी है जो रोज़ कमा कर रोज़ खा रहा था जैसे  एक रिक्शे वाला, अब वो मांग कर खा नहीं सकता भूखा मर नहीं सकता।
हां यह भी सत्य है कि हमारी सरकार पुरजोर कोशिश कर रही है ऐसे लोगों की मदद हेतु ।
पर यह भी सत्य है की मेहनत कश व्यक्ति एक हद तक ही बिना काम किए घर बैठ कर खा सकता है।
  लाकडाउन की मार पड़ी रोज़गार पर
पर मेहनत करने वालों के लिए काम की कोई कमी नहीं।
क्योंकि- जान है तो जहान है।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
अरे भाई लाॅकडाउन ना कहो कोरोना वायरस के कारण कहो लाॅकडाउन लगाकर ही कोरोना वायरस को रोकने का कारगर उपाय कहा जा सकता है। ओर सरकार ने अपना काम बखुबी किया कोरोना को काफी  हद तक रोकने में सरकार कामयाब भी रही पुरी दुनिया आज हमारी तारीफ कर रहें है यदीं नहीं करते तो क्या रोजगार बचते?अब कहा जा सकता है की लाॅकडाउन से स्थानिय रोजगार को बहुत बड़ी हानी होने वाली है पर जीवन एक संग्राम हैं आज यह महामारी का शिकार हमारे स्थानीय रोजगार ओर गरीब मध्यम वर्ग हो रहा हैं पर जब जब जंग हुई जंग के बाद लाभ हानी का ही समीक्षा होती रही हैं। इस लाॅकडाउन से हमें जो आहुती देनी थी वह हमरें गरीब लोग स्थानिय रोजगार मध्यम वर्ग को देनी पढ़ रही हैं।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
             लाक डाउन  में  स्थानीय  रोजगार  एक तरह  से  अभी पूरी तरह  बंद है  । रोज कमा कर खाने वाले व्यक्ति तथा फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिक     सामाजिक संस्थाओं के भोजन तथा राशन पर निर्भर है राशन भी सभी को नहीं मिल पा रहा
इसलिए सभी फल और सब्जी बेच रहे हैं  । किसी की सब्जी व फल बिक जाते हैं तो ठीक, वरना परिवार के सदस्यों के साथ भूखे पेट ही सोना पड़ता है इसलिए सब अपने अपने- अपने गृह राज्य में पैदल ही  कई किलोमीटर की दूरी तय करके पहुंचना चाहते हैं।कुछ राज्यों ने अपने श्रमिक वापस अपने राज्य में गुलाबी लिए गए हैं । गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को आदेशित किया है कि सभी  की रोजगार  की  व्यवस्था गृह राज्य  में  ही  होनी  चाहिए ।
                परंतु कुछ मजदूर अपने राज्य में वह काम करना पसंद नहीं करते जो दूसरे राज्य में जाकर करते हैं अपने राज्य में वही नौकरी करते उन्हें शर्म आती है।
दूसरे
हर राज्य में फैक्ट्री व कंपनी भी तो नहीं जो उन्हें अपने राज्य में स्थानीय  रोजगार मिले तब काफी लोग बेरोजगार होंगे ही ।
          दूसरा पहलू  -जिस राज्य में फैक्ट्री व कंपनी है वहां पर इतने श्रमिक नहीं है  
लॉक़डाउन में श्रमिकों का अपने जनपद चले जाना मालिक की फैक्ट्री व कंपनी बंद होने के कगार पर ही है। 
अतः  लाक डाउन में स्थानीय रोजगार  बिना काम के वेतन ना मिल पाने के कारण बंद होने के
 कगार पर ही है।
 - रंजना हरित 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
     प्राकृतिक असंतुलन के परिप्रेक्ष्य में पूर्व से स्थिति पर योजनाबद्ध तरीके से शुभारंभ किया जाता तो परिणाम दूरगामी होता किन्तु अचानक लाँकडाऊन लगाने से स्थानीय रोजगार  खत्म होने के कगार पर पहुँच गया है।
वैसे आंकलन किया जाये तो बेरोजगारी 25 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है,  करीब एक लाख के ऊपर नौकरियों खतरे में है,  कपड़ा उधोग, होटल व्यवसाय, मछली, मुर्गा पालन केन्द्र,  डेयरी  उधोग, आटो पार्ट, भवन निर्माण, ठेलों पर, फूटपाथ पर प्रतिदिन आजीविका के लिए व्यवसाय, दर्जी, नाई, मिट्टियों से बने बर्तन, खेल खिलौने, प्लास्टिक के सामान आदि व्यवसाय पूर्णतः बंद होने के कगार पर पहुँच गया है। निरंतर अगर ऐसा रहा तो ....    व्यवस्थाएं मंद हो जायेगी। इस पर गंभीरता पूर्वक सोचिए परिणाम सार्थक भूमिका होगी।
-आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
कोरोना वायरस की वजह से उत्पन्न लाॅकडाउन का सबसे अधिक दुष्प्रभाव स्थानीय रोजगार पर पड़ा है। दिहाड़ी मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के कामगार भुखमरी के कगार पर हैं। बेरोजगारी का जो संकट पहले से ही भयावह था उसमें लाॅकडाउन में राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के कारण नौकरियों एवं स्वरोजगार के संकट को संघर्ष में परिवर्तित कर दिया है। सीधे तौर पर समझा जा सकता है कि जब श्रम इकाइयों की आय बन्द होगी तो वह अपने कामगारों को वेतन कहां से देगा और कामगार जब स्वयं धनराशि विहीन होगा तो एक उपभोक्ता के रूप में उसकी क्रय क्षमता प्रभावित होगी जिसका सीधा प्रभाव बाजार पर पड़ेगा और विक्रय क्षमता से प्रभावित स्वरोजगार करने वाले लोग भी अपने यहां के कर्मियों की सेवाएं लेना बन्द कर देंगे। इस प्रकार स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर आ जायेगा।
सेंटर फॉर मानिटरिंग आॅफ इकोनॉमी की एक रिपोर्ट के अनुसार बीते दिनों अल्प समय में ही करीब बारह करोड़ भारतीयों ने रोजगार गंवाया है इनमें से लगभग आठ करोड़ लोग ऐसे हैं कि उन्हीं की आमदनी से उनके परिवार का भरण-पोषण निर्भर है। ऐसे में जीविका का एक बहुत बड़ा संकट उनके सामने है।
यह सही है कि रोजगार का यह संकट स्थायी नहीं है परन्तु लाॅकडाउन में भी तो जीवन-यापन करना ही है और यह भी निश्चित है कि लाॅकडाउन के तत्काल पश्चात रोजगार दौड़ने की स्थिति में नहीं आयेगा।
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि लाॅकडाउन में स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
लॉकडाउन ,कोरोना संक्रमण से बचाव का बेहतरीन विकल्पों में से एक सरल और सहज विकल्प माना गया है और इसीलिए विश्व भर में इसे अपनाया गया है। लॉक डाउन के संबंध में ये एक पक्ष है, इसी के दूसरे पक्ष और उसके प्रभाव को भी  गंभीरता से लिया जाना समझदारी होगी।अतः इस सच्चाई की भी अनदेखी नहीं किया जाना चाहिए कि लगातार बढ़ते लॉकडाउन की अवधि से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए ये परेशानियों का सबब भी बन रहा है। हम सभी का जीवन एक-दूसरे  के सद्भाव और सहयोग से चल रहा है। जिजीविषा की सामाजिक व्यवस्थाएं  कुछ इस तरह से पारस्परिक रूप से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष ढंग से बंधी हुई हैं कि कोई भी कमजोर हुआ कि संतुलन डगमगाया। कहा भी गया है कि जिस उद्योग में मजदूर खुश और सुखी नहीं होंगे वह उद्योग सफल नहीं हो सकता। हमारे ही घर या व्यवसाय में जब कोई कर्मचारी नहीं आता तो हम कितने परेशान हो उठते हैं। सार यह कि लॉकडाउन की पाबंदियां लंबे समय तक लागू रहेंगी तो मजदूर वर्ग को उसका और उसके परिवार के भरण-पोषण की  जो समस्या बढ़नी शुरू होती जा रही है, वह कहीं भयावह न होने लगे। फुटपाथी दुकानदार हों या होटल, दुकानों और कारखानों में काम करने वाले मजदूर सब व्यथित हैं। यहाँ तक कि अनेक मध्यम वर्गीय परिवार के पास भी उनकी जमा पूँजी खत्म हो रही है। अतः यह सच है कि लॉक डाउन में स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर खड़ा है और पाबंदियों में ढील नहीं दी गई तो स्थितियाँ बिगड़ भी सकती हैं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
स्थानीय रोजगार  लाक डाउन के कारण खत्म होने के कगार पर है यह बिल्कुल सही प्रतीत हो रहा है। छोटे रोजगार वाले जैसे चाय पान ठेले वाले पावभाजी वाले बैलून वाले रोड के किनारे बेचनेवाले दर्जी सभी छोटे रोजगार वाले को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।
घर में काम करने वाली हेल्पर मजदूर वर्ग सभी अत्यन्त कठिनाई में पड़े हैं।
लेकिन जान है तो जहान है इस उक्ति पर विश्वास कर बड़े हिम्मत साहस के साथ परिस्थितियों से मुकाबला कर रहें हैं।एक उम्मीद बंधी हुई है धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा 
 एक कहावत है अभाव इंसान का स्वभाव बदल देता है ।यह वर्तमान समय में देखने को मिल रहा है् व्यापार बंद होने के कगार पर है घर में आर्थिक तंगी की धूम मची है फलस्वरूप आपस में झगडे मारपीट बढ़ गयी है
मानसिक तनाव चिंता क्रोध हैवानियत की खबरें समाचार में सुन रहे हैं।
अवागमन बंद होने के कारण बहुत सारे लोग अपने गांव नहीं जा पा रहें हैं  उन्हें ऐसा लग रहा है कि गांव जाकर ठीक हो जाएगा पर यह तो विश्व की समस्या है । गांव की भी स्थिति दयनीय है।पर करें तो क्या करें
प्यासा इस उम्मीद में आगे चलता जाता है कि आगे पानी मिल जाएगा इस तरह से मंजिल पा लेता है।
अभी जान बचाना मुख्य लक्ष्य है
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन की मार सबसे ज्यादा स्थानीय रोजगार पर पड़ी है । ऐसे लोग कुछ दिनों तक तो ये सब सहन कर सकते हैं  पर अब इनके सामने भी समस्या आन पड़ी है कि ये क्या करें । ये न तो माँग कर खा सकते हैं न ही कोई अन्य कार्य ।  आजकल सब्जी व फल बेचने वालों की संख्या बढ़ रही है क्योंकि इस कार्य में बहुत लोग जिनके काम धंधे बन्द हो चुके हैं वे भी शामिल हो गए हैं ।
सड़क पर चाट, पकौड़ी का ठेला लगाने वाले, चाय के टपरे वाले, पान वाले, पापड़ , अचार, बड़ी बनाने वाले ; ऐसे ही न जाने कितने लोग हैं जो सब भुखमरी की कगार पर आ खड़े हैं । बेरोजगारी पहले ही ज्यादा थी अब तो जो लोग मेहनती हैं वे भी घर पर बैठ गए हैं जिससे घरेलू हिंसा में बृद्धि हो रही है ।आर्थिक तंगी तो हमेशा से ही घरों में लड़ाई का कारण रही है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
लॉक डाउन के  प्रभाव इंसानों के स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ रहे  है  वरन स्थानीय रोजगार के लिए भी खतरनाक साबित हो रहे  है l निःसंदेह स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर है l 
1. ठेके पर कार्य करने वाले दिहाड़ी मजदूरों के सामने पेट पालने की समस्या आ गई है l 
2. खाने पीने के सामान के अलावा दूसरे कारोबार बंद हो गये ,आय का नुकसान होने से मजदूरी भुगतान करने में असमर्थ हैं l
 3. कुल कार्यबल का 80%हिस्सा अनौपचारिक क्षेत्र में दिहाड़ी मजदूरी करता है ,वे बंद हो गये हैं.
4. ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन से आये श्रमिक वर्ग बैठे हैं ,रोजगार बंद हैं l ऐसे में दो जून की रोटी के लाले पड़ गये है l 
   सत्य -अहिंसा ,प्रेम -त्याग ये सब भारतीय संस्कृति के मूल्य हैं l ये आज भी सनातन हैं l रोजी रोटी के संकट काल में -
हर टूटे ,असहाय के माथे का 
चंदन बन जाइये l
जीवन की कर्तव्य शिक्षा पर 
अमिट "छाप "छोड़ जाइये ll 
आज आवश्यकता है हम मानवता के उपासक बनकर कर्म रूपी पूजा में संकट में फंसी मानवता के लिए सकारात्मक प्रयासों में श्रद्धा और भक्ति के पुष्प चढ़ाइयेl 
  विवेकानंद जी ने कहा है -"मैं तो उस ईश्वर का पुजारी हूँ जिसे अज्ञानी लोग मनुष्य कहकर पुकारते हैं l "
स्वयं के स्तर ,समूह str,राज्य एवं प्रशासनिक स्तर पर बंद हो रहे रोजगार के उत्थान एवं मानव उत्थान के लिए श्रद्धा और भक्ति के पुष्प चढ़ाने हेतु -
1. श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के प्रभावी कार्यक्रम हाथ मेँ लेवें l 
2. कम अवधि के कामों को प्रोत्साहन व वैतनिक अवकाश की व्यवस्था होवे l 
3. स्थानीय स्तर पर वार्ड वाइज समिति बनाकर रोजगार बंद होने ,बेरोजगार हुई आबादी के नुकसान को कम करने के लिए आर्थिक मदद हो l 
4. खाने पीने के सामान के अलावा अन्य आवश्यक वस्तुएँ भी प्रदान करें l 
5. सरकारें सस्ती राशन व्यवस्था ,सेवकार ,कर्ज के ब्याज में राहत प्रदान कर संकटग्रस्त की मदद कर सकती है l 
6. कोरोना संकट के फैलाव को देखते हुए जो भी मानदण्डानुसार 
आर्थिक सहायता घोषितकरे वह नगद हस्तांतरण व्यवस्था करे l
 7. सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना सभी के लिए लागू हो l 
8. जमाख़ोरी आपूर्ति श्रंखला में व्यवधान को देखते हुए वस्तुओं के रूप में सहायता करे l 
9. सहयोग के लिए कोरोना फैलाव की संभावना को देखते बायोमेट्रिक प्रणाली तुरंत बंद की जाये l 
10. सरकारें यह देखें कि प्रवासी श्रमिकों का उत्पीड़न न हो l 
11. जिला एवं ब्लॉक स्तर पर सामुदायिक रसोई संचालन को प्राथमिकता दें l 
चलते चलते -
       हर दिन नया आता है 
        लेकर इक इम्तिहान 
     कभी आती है ईद ,कभी होली 
         तो आते कभी रमज़ान 
      लेकिन इस मानव त्रासदी में 
          कर्म धर्म ही है mhan पर वक्त से कौन है बलवान .. .?
- डॉ. छाया शर्मा 
अजमेर - राजस्थान
जी हाँ  लाकडाउन में स्थानीय रोजगार    खत्म होनेके कगार पर है । सरकार ने  पूरे  भारत में लाकडाउन की व्यवस्था  सोशल डिस्टेंसिंग के लिए की गई है ,   कोरोना के संक्रमण  न बढे तभी  सब लोग घर में सुरक्षित रहें   , ऐसे में स्थानीय रोजगार , नोकरी छूट गयी । देश में रोजगार की स्थिति सोचनीय है । 
 राज्य में लोगों को निजी क्षेत्र में  नोकरी  काम देने की 
सरकार  शीघ्र कानून बनाए ।
  रोजगार तो खत्म होने से परिवार चलाना भारी  हो रहा  हैं । भारत में गरीबों  , मजदूरों की      जनसँख्या ज्यादा है । महानगरों में गरीब अनपढ़ तबका फुटपाथ पर  रेडीमेड कपड़े , खाने पीने का सामान , खेल खिलौने आदि बेच कर  अपने परिवार का पेट भर रहे थे । अचानक कोरोना की मार ने उनके पेट पर लात मारी है । 
संसार पूरा बदल गया ।
  कुम्हारों के  रोजगार चौपट हो गया ।मुम्बई    की गर्मी में मिट्टी के मटके  की ज्यादा मांग होती है । लाकडाउन कि वजह से  ग्राहक नहीं आ रहे हैं ।  रोजगार घुटने टेक रहा है ।
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन में स्थानीय रोजगार की स्तिथि ठीक नही है।किन्तु कगार पर नही है। अब समय आ गया है। घटते कोरोना को देखते हुए धीरे धीरे रोजगार चालू हो रहा है।मैं यदि छत्तीसगढ़ राज्य की बात करूं तो वर्तमान में हालात अच्छे है। एक जिला रेड, एक जिला यलो बाकी सभी जिले ग्रीन है और आठ कोरोना पीड़ित व्यक्ति है जिनका इलाज जारी है। छत्तीसगढ़ राज्य के सभी जगह धीरे धीरे से बाजार खुल रहा है।यह वर्तमान की अच्छी खबर है।और देश की बात करें तो महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश,  और दो चार राज्य ही है जंहा कोरोना पीड़ित ज्यादा है।लेकिन वँहा की सरकार स्तिथि को देखकर काम कर रही है। और वर्तमान स्थिति को देखकर यही कहा जा सकता है कि लॉक डाउन में रोजगार कम जरूर काम हुआ है लेकिन  रोजगार कगार पर नही खड़ा है। परेशानी तो है मगर जान से बढ़कर नही। अतः जान रहेगी तो सब है।और वर्तमान हालात पर सबको साथ होकर लड़ना चाहिए यही सही है
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
लॉक डाउन के चलते छोटे-बड़े सभी रोजगार पर असर पड़ा है। परंतु छोटे स्थानीय रोज़गार तो बुरी तरह प्रभावित हुआ है। गली गली समान बेचने वाले जैसे  आइस-क्रीम,गोला,कबाड़ी वाले, साप्ताहिक बाजार लगाने वाले,
रिक्शा चालक, ऑटो,टैक्सी चालक, अनेको ऐसे लोग  भुखमरी के कगार पर है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
लॉकडाउन से महामारी की समस्या का तो समाधान हुआ है !
महामारी ने अन्य देशों की तरह विकराल रूप नहीं लिया है  किंतु लॉक डाउन समस्या का समाधान है तो समस्या भी बनी है !  लॉकडाउन होने से स्थानीय रोजगार पूर्ण तरीके से खत्म होने की कगार में है !
 लघु उद्योग वाले -: 
चाय की टपरी वाले, खोमचे वाले ,पान वाले ,रेहड़ी वाले ,वडापाव वाले ,पंचर बनाने वाले, गुब्बारे बेचने वाले ,हेयर कट वाली ,टैक्सी ,रिक्शा ,आदि आदि अनेक लोग हैं जो रास्ते पर आ गए हैं!  इसके अलावा घर काम करने वाली, दिहाड़ी मजदूर, बोझा ढोने वाले ,जाने कितनों की समस्याएं आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रही है !
 कितनों की नौकरी चली गई और अब आगे तो लॉकडाउन के बाद जो समस्या उठेगी वह तो अलग है !
स्थानीय रोजगार के गिरने से आर्थिक स्तर भी गिर गया है !मध्यम श्रेणी वाले भी आर्थिक तंगी की वजह से मानसिक तनाव से घिरे हैं अतः घर का माहौल भी टना रहता है ! 
अभाव में स्वभाव में परिवर्तन आना स्वाभाविक है ! लॉक डाउन में मॉल बंद होने से छोटी किराने की दुकान एवं सब्जी भाजी का थोड़ा बहुत धंधा चल रहा है !
स्वाभिमान से जीने वाले भी अपने और बच्चों की पेट की खातिर क्या मान और क्या अपमान मदद के लिए हाथ फैला रहे हैं !
लोगों में एक दूसरों के प्रति संवेदना जागृत होती दिन रही है ! 
लघु उद्योग हमारे देश के आर्थिक स्तर को बनाए रखने की अहम भूमिका निभाता है !
अंत में कहूंगी यह तीसरा लॉक डाउन है -- स्थिति गंभीर है यदि लॉक डॉन बढा़ तो और भी विकट स्थिति आ जाएगी और कोरोना की चैन को तोड़ने का लॉक डाउन से अच्छा कोई विकल्प नहीं है जो हम कोरोना की चैन को तोड़ने  में  कामयाब हो पाते हैं तो सारी समस्याओं से आजादी मिल जाएगी  !(हमें  भी ईमानदारी से लॉकडाउन के नियमों का पालन करना होगा) 
"जान है तो जहान है "
वरना एक तरफ 
"कुआं दूसरी तरफ खाई है" !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
 लॉक डाउन के चलते हमारी ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्था पर इसका असर पड़ेगा। और पड़ भी रहा है। क्रय विक्रय की सारी प्रक्रिया अभी थमी हुई है। कुछ जरूरी वस्तुओं का आयात निर्यात किया जा रहा है।इस समय लॉक डाउन में स्थानीय रोजगार की बात करें। तो लॉक डाउन में भी कुछ लोगों अपना रोजगार चला रहे हैं। प्राथमिकता के सभी जरूरी रोजगार सुचारू रूप से कार्यरत हैं। यह विषय अवसरवादीता का है जो कर्मठ  है वह अवसर को तलाश कर लाभ उठाकर रोजगार करने में सक्षम रहते है।और जो व्यक्ति समय पर विश्वास करते है। उसका समय हाथ से निकल जाता है। और वह समय के साथ -साथ सरकार को भी दोषी ठहराते है। आज के समय में यह एक ज्वलंत विषय है। कि आगे स्थानीय रोजगार खत्म होने के कगार पर है, क्या..? तो यह कहना गलत होगा। रोजगार तो उत्पन्न किए जाते हैं। हर समय हर परिस्थिति में प्रत्येक व्यक्ति की जरूरते भिन्न-भिन्न होती है। ऐसे में चाहे वह फार्मासिटीकल हो कपड़ा मार्केट हो या खाद्य से संबंधित रोजगार चाहे बड़े हो या छोटे पैमाने पर समाज और जनता की आवश्यकता का ख्याल रखते हुए ऐसा नहीं लगता कि स्थानीय रोजगार खत्म होने की कगार पर है।क्योकि जहां व्यक्ति है,वहां जरूरत है, जहां जरूरत है हैं। वहां रोजगार! किसी न किसी रूप में रोजगार अपनी जगह बना ही लेता है।रही आर्थिक  मंदी की बात तो स्थानीय रोजगार  लघु उद्योगों से भी प्रारंभ कर कार्यरत हो सकते हैं। और होंगे भविष्य में इसी आशा के साथ यह बात कहना  चाहती हूं। कि रोजगार खत्म नहीं हो सकते और नहीं होंगे। 
          -  वंदना पुणतांबेकर
                   इंदौर - मध्यप्रदेश
     स्थानीय रोजगार खत्म होने की कगार पर नहीं बल्कि खत्म हो गया है। दुकानदार सर्वोच्च आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। वह इस चिंता में हैं कि लाॅकडाउन के दिनों में दुकानों के किराए और बिजली के बिल कैसे चुकाएंगे? अपनी कमाई तो दूर की बात है।
     इसके अलावा व्यापारी वर्ग इसलिए परेशान है कि वह खुशहाली के स्वप्नपूर्ति हेतु बैंक से लिए ऋण का भुगतान कैसे करेंगे? बच्चों की फीस देंगे या बैंकों का ब्याज चुकाएंगे? किसान तो रक्तरंजित आंसु बहा रहा हैं।वह इस चिंता में हैं कि एक ओर लाॅकडाउन है और दूसरी और बेमौसमी बारिश ने फसलों को बर्बाद कर दिया है। छमाही फसलों को बेचने के उपरांत भी घाटा पड़ रहा है। जिससे किसान किसानी छोड़ने का मन बना रहे हैं। मजदूर वर्ग इसलिए परेशान है कि उद्योग बन्द होने पर रोजगार खत्म हो जाएंगे, तो वे पापी पेट की आग कैसे बुझाएंगे?
     सोशल मीडिया और दूरभाष पर चर्चा यह भी है कि लाॅकडाउन में विधायकों एवं सांसदों का राष्ट्र के प्रति क्या योगदान है? उनका न तो बैंकों का ब्याज बढ़ रहा है और ना ही फसलें खराब हो रही हैं। उन्होंने न तो कार्यालय का किराया देना है और ना ही उन पर कोई उत्तरदायित्व है। क्योंकि देश और देशवासियों के लिए मात्र और मात्र देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही उत्तरदाई हैं। माननीय मोदी जी यह कह रहे हैं और मोदी जी वो कर रहे हैं।बस यही कहने मात्र का भारतीय विधायक और सांसद लाखों रुपए डकार जाते हैं। जबकि इतना तो भारतीय बच्चा-बच्चा जानता है।
     उल्लेखनीय निम्न गंभीर प्रश्र भी स्वाभाविक है कि लाॅकडाउन में विधायकों और सांसदों का राष्ट्र और राष्ट्रवासियों हेतु आउटपुट अर्थात उत्पादन क्या है? सरकार जब अपने कर्मचारियों के लिए भविष्य निधि का प्रावधान करती है तो उसकी आपातकालिक प्राकृतिक आपदा, भुखमरी, महामारी इत्यादि की अपनी भविष्य निधि क्या है? वह 40 दिन के कालचक्र में ही कटोरा थामें भीख मांगती क्यों दिखाई दे रही है? क्यों बच्चों की गुल्लकों में जोड़ी धनराशि को स्वीकार कर रही है? जिससे ग़रीबों और मध्यम वर्ग की रातों की नींद उड़ हुई है कि जिस सरकार से हम आशा लगाए बैठे हैं, वह स्वयं नागरिकों से मांग रही है। जबकि एक-एक विधायक व सांसद परम धनवान है।
     अतः राष्ट्रहितों में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 के अंतर्गत अपनी अभिव्यक्ति की  स्वतंत्रता के मूल अधिकार का प्रयोग करते हुए उपरोक्त चर्चा के माध्यम से मेरा पत्रकारों, सम्पादकों, विद्वान लेखकों, साहित्यकारों, आलोचकों, बुद्धिजीवियों, शोधकों इत्यादि से विनम्र आग्रह है कि वे सरकार की भविष्य निधि और विधायकों व सांसदों के सकारात्मक उत्तरदायित्व निर्धारित करने की पुकार  को सुनिश्चित कर भारत के सामाजिक, आर्थिक, विधिक एवं स्वास्थिक विकास के उज्जवल भविष्य में योगदान करें।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
लॉक डाउन की मार सबसे ज्यादा छोटे-छोटे कामगार और रोजगार पर ही पड़ी है । इसके प्रथम फेज की प्रक्रिया में  लोग आश्वस्त थे कि 21 दिन के बाद तो सूरज फिर से निकलेगा । लेकिन द्वितीय फेज में लोगों की आशा पर पानी फिर गया। छोटे रोजगार बंद की मार झेलने में अशक्त हो गए । क्योंकि उनके कितने ही तैयार माल बर्बाद हो गए या आर्डर कैंसिल हो गए। इस घाटे के बाबजूद उन्हें कामगारों को वेतन देना पड़ रहा है । यह केवल एक महीने की बात नहीं रह गई । यह अब दूसरे और तीसरे महीने में प्रवेश कर गया है ।
अब कामगारों का वेतन भी मुसीबत बन गया है । अगर इनके रोजगार को जिंदा करना है तो इन्हें आर्थिक मदद की जरूरत पड़ेगी । सरकार को इस तरफ भी ध्यान देना होगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
लंबे  लाॅकडाउन  के  कारण  स्थानीय  रोजगार  पर  भयंकर  संकट  मंडरा  रहा  है  । छोटे-छोटे  धंधों  द्वारा  अपनी  आजीविका  चलाने  वाले,  प्रतिदिन  के  रोजगार  पर  जिनका  घर  चलता  है, जो  मिलों  फैक्ट्रियों  में  काम  करते  हैं ,  जो  चाय  की  दुकान  अथवा  केबिन  चलाते  हैं, ढाबे  चलाते  हैं  सभी  वर्तमान  और  भविष्य  को  लेकर  चिंतित  हैं  ।  सरकार  अथवा  निजी  संस्थानों  द्वारा  ऐसे  लोगों  को  कितनी   मदद  इमानदारी  से  पहुंचायी  जा  रही  है  यह  भी  अहम्  मुद्दा  है । 
          ऐसे  में  कुछ  नासमझ  अथवा  उदंड  लोगों  की  हठधर्मिता  के  कारण  कोरोना  अपने  पांव  पसारने  में  कामयाब  हो  रहा  है  । 
         ऐसी  स्थिति  में  स्थानीय  रोजगार  खत्म  होने  के  कगार  पर  खड़े  जरूर  हैं  मगर  धैर्य  और  सकारात्मक  सोच  के  साथ  वस्तुस्थिति  का  सामना  तो  करना  ही  होगा  ।  
       इसी  विश्वास  के  साथ  कि  एक  दिन  ये  रोजगार  फिर  आसमान  छुएंगे  ।  रात  लंबी  जरूर  है  मगर  सूर्योदय  जल्दी  ही  होगा  । 
        - बसन्ती पंवार 
         जोधपुर  - राजस्थान 
हां,,कोरोना के कारण हुई बंदी का सबसे ज्यादा बुरा असर स्थानीय रोजगार और निचले तबके के लोगों पर हीं पड़ रहा है । रोज जो व्यक्ति ओटो ,या रिक्शा,,मजदूरी,खोमचे वाले,, सब इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं ।इनका रोजगार अभी लगभग ठप्प हो गया है।फलत: इनकी रोजी _रोटी की किल्लत पड़ गई है । अभी बहुत से कल कारखाने बंद हो गये हैं तो इस कारण गरीबों के रोजगार भी प्रभावित हो रहें हैं । समस्याओं का अभी इस लाॅक डाउन में अंबार सा लग गया है और ये भी है कि यह बुरा वक्त अभी लंबा चलेगा । सरकार हर संभव अपनी ओर से मदद का प्रयास कर रही है लेकिन फिर भी वो नाकाफी है ।ऐसे में बहुत सी सामाजिक संस्थाओं द्वारा भी मदद की जा रही है । हम सब को मुसीबत की इस विकट परिस्थितियों में एक-दूसरे की जहां तक संभव हो मदद करें।हम सब मिलकर इस मुसीबत का सामना करें । सरकार के हर बताएं गये निर्देशों का अनुपालन करना चाहिए । उम्मीद हीं नहीं पूर्ण विश्वास है कि इस वायरस जंग से हम सब उबरेगे हीं ।हां ,समय जो लगे हमें धैर्य और होंसला बनाएं रखना होगा ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में "  स्थानीय रोजगार के मजदूर अपने - अपने घर जा रहे हैं । जिससे पुनः स्थानीय रोजगार के लिए मजदूर कहाँ से आयेंगे । मजदूरों के बिना स्थानीय रोजगार खत्म के कगार पर है ।
                                                         - बीजेन्द्र जैमिनी
                                   
सम्मान पत्र




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