क्या लॉकडाउन की चुनौतियों से निखरेगा अपना व्यक्तित्व ?

लॉकडाउन में तरह - तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है । सकारात्मक दृष्टिकोण से सामना करते हुए हर स्थिति से निपटने से व्यकितत्व में निखार अवश्य आता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन है सभी घरो मे कैद है लॉक डाउन मे चुनौतियों का सामना कर रहे है।मेरी राय में तो सचमुच व्यक्तित्व से निखार आया है। इस भाग दौड़ की जिन्दगी में पहले हमारे पास समय नही था खुद का समझने का लॉक डाउन चल २हा है समय ही समय है खुद की प्रतिभा को समझने का उन्हे निखारने का स्वभाव के परिवर्तन की जगह व्यवहार परिवर्तन करे लॉक डाउन मे कोई भी चुनौती हो उसे स्वीकार करे। सरकार का आदेश समझकर पालन करना घर परिवार के साथ समय बिताना उन सब को समझना मिल बांटकर घर के काम करना लॉक डाउन में जीवन को मनचाही दिशा दे रहे है सभी चुनौतियो का पालन कर रहे है अनावश्य क्रिया का कलापो से बहार घुमना बहार का खाना सब नुकसान देता था इस लॉक डाउन में चुनौती को स्वीकार कर तरह तरह के व्यंजन घर मे सब मिलकर बनाते है सोशल डिस्टेशिंग से आपसी दूरी बढ़ी है मगर दिलो की दूरी कम हुई है।
. लॉक डाउन के चलते जीवन अनुशासित हुआ। सभी ने अपनी कमियों को पहचाना उन्हे दूर करने की कोशिश की एक छत के नीच नीचे एक साथ रहना बड़ी चुनौती थी लेकिन लॉक डाउन मे उस चुनौती की स्वीकार और प्रेम भाव से सब एक साथ जीवन बिता 
रहे है बच्चे पेटिंग डांस ऑनलाईन गेम खेलते है जिससे उनके व्यक्तित्व में भी निखार आया है मुहँ पर मास्क लगाना हाथ बार बार धोना बाहर निकलना कोरोना महामारी की हर चुनौती स्वीकार है उससे लड़ने को हम तैयार है हर नियम हर चुनौती का सामना करेगे रहेगे हम सुरक्षित देश होगा सुरक्षित निखरेगा व्यक्तित्व ।
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन ही क्यों हर चुनौती के बाद आदमी निखरता है। यह निर्भर इस बात पर करता है कि आप चुनौती को लेते किस तरह हैं। कुछ लोग अपनी पूरी निष्ठा और ताकत के साथ चुनौती का सामना करते हैं तो कुछ दूसरों का मुँह देखते हैं। निखरने का अर्थ यही है कि हम पूरी ताकत से लड़ते हैं और हमारी छिपी हुई विशेषताएँ प्रकट होने लगती है। यदि हम सावधानी से देखें तो हममे कई खूबियां हैं जो खुद हमारे ही ध्यान में नहीं आती या जिन्हें कुछ मजबूरियों के चलते हम पीछे छोड़ आए हैं। लॉक डाउन में हम अकेले नहीं असंख्य लोग हैं इसलिए हम इस लंबे अंतराल में आत्मावलोकन कर कई नये काम कर सकते हैं या अपनी पुरानी खूबियों को उभार सकते हैं। 
- मनोज पाँचाल
इंदौर - मध्यप्रदेश
 देश मे कोरोना से संक्रमण की चपेट में 39 391 हजार से अधिक मरीज आ चुके हैं, जबकि 1694 से अधिक मरीजों की मौत हो चुकी है। इसी बीच 14183 कोरोना मरीज ठीक होकर घर लौटे हैं। देश मे कोरोना मरीजो की संख्या तेजी से बढ़ रही है। देश की चर्चित संस्था जैमिनी अकादमी की ओर से " आज की चर्चा " में पूछा गया है क्या लॉकडाउन की चुनौतियों में निखरेगा अपना व्यक्तित्व ? यह बहुत ही गंभीर चर्चा का विषय है। लॉकडाउन की चुनोतियाँ बहुत ही सरल है जिसे आम लोग सही तरीके से पालन करेगा वह लॉकडाउन की चुनोतियों से जरूर उसका व्यक्तित्व निखरेगा। इसके लिए उसे लॉकडाउन के हर नियम का पालन करना पड़ेगा। जैसे घरों पर रहना।  जरूरी काम से ही बाहर निकलना। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना। मास्क पहनना। बाहर सर घर आने पर जूते, चप्पल को बाहर रखना। साबुन से हाथ धोना। सेनेटेराइज करना। अपनी व परिवार को सुरक्षित रखने के लिए सावधानी बरतना बहुत ही जरूरी है। यह हर व्यक्ति के लिए नितांत आवश्यक है।
इस बात को जो गंभीरता से पालन करेगा तो उसी का लॉकडाउन की चुनोतियों में व्यक्तित्व निखरेगा। 
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
आज का विषय लाजवाब हैं जब कोई मुशिबत हम पर आती हैं वह हमें कुछ न कुछ सिख अवश्य दे जाती है पर आज हम जिस लाॅकडाउन की बात कर रहें हैं वैसा न पहले कभी हुवा है ओर न कभी आगे होगा मुझे तो ऐसा ही लगता हैं मैं अपने उपर से ही लुतो  मुझे प्रायवेट कम्पनी में काम करते हुये लगभग 29 वर्ष हो गये हैं मैं अपने सहक्रमी मित्रो से शान से कहता था की मेने आज तक देवास में रहते हुये कभी छुट्टी नही मारी या कोई अति महत्वपुर्ण कार्य होने पर ही छुट्टी मारता था आज 23 अप्रेल से बिना कोई काम के घर पर फालतु बैठा हुँ बच्चे बड़े हो गये है सो बाकी काम वे कर लेते हैं घर का काम श्रीमती जी कर लेती हैं मेरे हिस्से मे केवल आराम ही आरम रहा अब केवल कुछ सिखा ही जा सकता हैं यह तो साबित हो चुका हैं की जितना हम पैसो के पिछे भागते हैं उससे बहुत कम में हमारा काम चल सकता हैं। आज जो हम लाॅकडाउन का जीवन जी रहे हैं बाहर का कुछ खा पि नही रहें हैं तो हम पहले से ज्यादा स्वस्थ हैं।घर पर रह कर यह भी महसुस हो रहा हैं कि 90% कार्य हमारे छोड़े जा सकते थे जो आज हम छोड़ कर जी रहें हैं।धन सम्पती जोड़ने की भी चिन्ता नही रही सही मायनो में आज इंसान एक संयासी का जीवन जी रहा हैं। जीवन में इतना अछ्छा,कढ़वा सयमीत जीवन जीने का अनुभव जरूर हमरे व्यक्तित्व को निखारेगा।
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्यप्रदेश
लाक डाउन की चुनौतियों से निखरेगा अपना व्यक्तित्व ? इसमें प्रश्नवाचक चिह्न की आवश्यकता ही नहीं मित्र। इन दिनों प्रकृति में निखार आया है। हम ही नहीं, हमारा व्यक्तित्व भी प्रकृति से प्रभावित होता ही हैं,तो प्रकृति के साथ साथ इसमें निखार आएगा ही। यह तो रही स्वाभाविक बात।अब इसका एक पहलू और है, परिस्थिति। जैसे इन दिनों लाक डाउन के चलते  लोगों में सेवाभाव का गुण बढ़ा, वैसे ही लालच और अवसर से लाभ उठाने की प्रवृति भी बढ़ी।जबकि स्पष्ट रुप से कोरोनावायरस की आपदा संकेत दे रही है कि प्रकृति अपना संतुलन स्वयं बना लेती है,और उसने इसे करके दिखाया भी।मानव प्रकृति से भिन्न नहीं,कहा भी है यथा ब्रह्माण्डे तथा पिंडे,तो प्रकृति के साथ साथ व्यक्तित्व निखर रहा है सबका ही। जो केवल बाहरी चमक दमक रंग रुप को ही व्यक्तित्व मानते हैं उनको अवश्य शंका हो सकती है इसमें। लेकिन जो व्यक्तित्व का वास्तविक अर्थ(जिसमें मानवीय गुण व जीवन मूल्य भी समाहित होते हैं) समझते हैं उनके व्यक्तित्व में तो नित नया निखार आ रहा है। हर प्राणी परमात्मा को स्मरण करने लगा है,यह इस निखार का ही प्रभाव है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
       प्राचीन काल में संयुक्त परिवार हुआ करता था। एकता में अनेकता थी। शनै:-शनैः बिखराव होता चला गया। प्रकृति से खिलवाड़ होता गया। वृक्ष कटते गये, हरा-भरा जंगल  विनाश को ओर बढ़ता गया। पृथ्वी पर कारखानों का अविष्कार होता गया। वर्षा अप्राकृतिक और गंभीर होते जा रही हैं। पूर्व में नालियाँ, रोड़े कच्ची हुआ करती थी। पानी का संगहण होता था। वातावरण स्वच्छ, निर्मल  एवं सुन्दर हुआ करता था। प्राकृतिक चिकित्सा हुआ करती थी, नाड़ियों को देखकर, पेशाब को तांबे के बर्तन में रख अलसी के तेल की बूँद डालकर शरीर में व्याप्त बीमारियों का पता चलता था। वर्तमान में नये-नये संसाधन, दवाईया हो चुकी। क्या ये सब कुछ देख कर बीमारियों का तांडव कम हुआ नहीं? इन सब भौगोलिक स्थिति का परिणाम ही हैं,  जो वर्तमान परिदृश्य को आमंत्रित किया?  आज यही अप्राकृतिक और गंभीर स्थितियों का सामना चुनौतीपूर्ण 
हम सब कर रहे हैं। ये तो अच्छा हुआ समय पूर्व स्थितियां नियंत्रित हो गई और लाँकडाऊन के परिप्रेक्ष्य में परिवार भाग दौड़ की जिंदगी से हट कर एकजुट होकर भक्ति भाव से एकत्रित तो गया, मिलन भी ऐसा प्रतीत होता है।  नदियों का जल भी स्वच्छ हो चुका, रोडों का धूल भरा वातावरण भी प्रभावित हो चुका। प्रश्न पुनः सामने चुनौतियों को आमंत्रित कर रहा हैं? यह तो सच हैं, लाँकडाऊन की चुनौती के बीच व्यक्तित्व में निखार तो आया है। वहीं प्राकृतिक संसाधनों के बीच जीवन को पुनः जीवित अवस्था में लाया हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
 बालाघाट -मध्यप्रदेश
मानव के जीवन में समय-समय पर परिस्थितियां रूप बदल-बदल कर चुनौतियां बनकर सामने आती रहती हैं। यह व्यक्ति के स्वविवेक पर निर्भर है कि वह उन चुनौतियों का सामना, सकारात्मक या नकारात्मक, किस रूप में करता है।
‌लाॅकडाउन ने हमें अन्तर्मन में झांकने और स्वयं पर मनन-चिन्तन करने का अवसर प्रदान किया है। जिन्दगी की विलासिताओं को प्राप्त करने के लिए एक मशीन की तरह कार्य करते हुए हम अपनी नैसर्गिक संवेदनाओं से विमुख होते जा रहे थे। लाॅकडाउन में ध्यान, योग, स्वचिन्तन, स्व-वार्तालाप के माध्यम से स्वयं से साक्षात्कार करके हम स्वयं को निखार सकते हैं। इस लाॅकडाउन में हम भली प्रकार से समझ गये हैं कि जीवन न्यूनतम आवश्यकताओं से भी सुन्दर हो सकता है। निश्चित रूप से लाॅकडाउन की चुनौतियों से हमें अपने व्यक्तित्व को निखारने का अवसर प्राप्त हुआ है परन्तु इसका लाभ तभी मिलेगा जब स्वयं को निखारने का यह सिलसिला अनवरत रूप से चलता रहेगा।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
हाँ! निश्चित ही। शत-प्रतिशत!  जो दिल से चाहते हैं कि व्यक्तित्व निखरे, उन्हें कोई ताकत रोक नहीं सकती.... यह तो बस और बस खुद पर निर्भर है।   हाँ, जो नहीं चाहते निखार, सुधार, उनका खुदा ही मालिक। उनको तो खुदा भी चमका नहीं सकता। इस कठिन वक्त में हम घर बैठे मच्छर मारने की बजाय, अपने को सुधार सकते हैं। अपने अंदर एक नवीन आभा पैदा कर सकते हैं। समय की कमी ने जिन शौकों से किनारे रखा था, उन सारे शौकों को खुलकर उभार सकते हैं। 
   बहुत सारी कलात्मक अभिव्यक्तियाँ दम तोड़ रहीं थीं हमारे भीतर, उन्हें बाहर ला सकते हैं सभी। बहुत मुश्किल से यह समय मिला है, जब समय ही समय है। तो अपनी कमियों को सुधारकर, थोड़ा आध्यात्मिक होकर, थोड़ा सामाजिक होकर ( दूर से ) थोड़ा पारिवारिक होकर और अपने बात-व्यवहार में स्नेह घोलकर, तमाम तरह की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर,
छूट गए परिजनों के निकट जाकर, दूर रह रहे लोगों को फोनादि से हिम्मत - हौसला बढ़ाकर हम अपना व्यक्तित्व भी निखार सकते हैं। मन पर पड़ी निराशा, हताशा नकारात्मकता को हटाने में संगीत, मीठी-शांत नींद, योग-व्यायाम और अपने शौक में डूबना कारगर। आपाधापी से परे इस सुखद समय का सदुपयोग सुखद परिणाम देगा। एक स्वच्छ, सुंदर, निखरे व्यक्ति में ढलने में ये सब सहायक।
- अनिता रश्मि
रांची - झारखण्ड
लाकडाउन ने बहुत कुछ सहेजा और सवारा हे ।आज की उहापोह स्थिति में भाग दौड़ के ताने बुनती हमारी जीवन शैली अस्थिरता के केन्द्र की चहूँ और अपने गंतव्य के लिये नित्य ही परिक्रमा करती रहती है। जिसमें बहुत कुछ करने योग्य भी छुट जाता  है। लाकडाउन से मिला समय खुद के मूल्यांकन के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ और हम शान्तचित्त से एकाग्र होकर ये समझ पाये की हमने कितना कुछ उलट पलट कर दिया जो हमारे सुख के मुख्य स्रोत थे उनके कपाट तो हमने लगभग बंद ही कर दिया है।
आज घर मे रहकर पता चला कि सब के साथ बैठकर अपनी खुशी बांटना अपनी परेशानियां बांटना कितना सुखद होता है ।
घर के बड़े- बुजुर्ग हमारे लिये कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं हमारे लिए कितने चिन्तित रहते हैं ।
उनका स्नेहिल अपनापन हमारे लिए कितना ऊर्जावान हैं।
हम तो धन्य हो गये लाकडाउन के दौरान घर में अपनों के साथ रहकर ।
एक अलग ही स्फूर्ती का अनुभव कर रहे हें अपने  में ।
आज अहसास हुआ की हर चीज का महत्व हे हमारे जीवन मे स्वास्थ्य जीवन शैली शुद्ध वातावरण पेड पौधे योग साधना कर्त्वनिष्ठा ऐकरूपता देश के लिये कुछ कर गुजरने की चाह अपना पन एक दूसरो के आपसी सहयोग की अविरल बहती निर्मल धारा आपसी भाई चारा ।
लाकडाउन ने हमारे व्यक्तित्व की  सोयी पड़ी संवेदनाओं को  अंकुरित कर दिया है 
और हम आत्मविभोर होकर मानव कल्याण देश कल्याण की भावना से ओत प्रोत होकर अपने इस बदले व्यक्तित्व के साथ ये संदेश दे रहे हैैं कि हमारा ध्येय सर्व जन सुखाए सर्व जन हिताय होना चाहिए ।
- पं0 आभा अनामिका 
मंडला - मध्यप्रदेश
ये बात सही है कि लोकडाउन ने यदि हमे आर्थिक रूप से कमजोर किया है तो कहीं न कही हमे अपने व्यक्तित्व को निखारने का भी अवसर प्रदान किया है । जिससे हम अपने व्यक्तित्व को निखार कर दुनिया में श्रेष्ठ व्यक्तित्व के सबसे बड़े धनी व्यक्ति बन सकते है । बशर्ते बस इस ओर ध्यान केंद्रित अच्छी पुस्तकें पढ़, उम्दा लोगो के विचारों को ग्रहण कर और श्रेष्ठ लोगो के पद चिन्हों को फॉलो करने की आवश्यकता है ।
दरअसल किसी भी इंसान के आचार, विचार व क्रियाकलापों से उसके व्यक्तित्व का पता चलता है । इसीलिए ये समय अपने विचारों पर विचार कर, उन्हें श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाकर अपने व्यक्तित्व को सर्वोपरि बनाने का सुनेहरा अवसर है । इस दौड़ती भागती जिंदगी में अपने कृत्यों पर विचार , अपने विचारों पर विचार करने का मौका 
मिलना मुश्किल था । जिसे यदि हम इस ओर ध्यान देकर एक सुअवसर की भांति ग्रहण करें तो कोई बुराई नही होगी ।
- परीक्षित गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
    इसमें कोई संदेह नहीं है कि लॉक डाउन की चुनौतियों से व्यक्तित्व निखरेगा क्योंकि ये जीवन में होने वाली पहली घटना है इससे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा ।
जीवन सीखने की एक प्रक्रिया है. और इसे एक अवसर मानकर सदा कुछ नया सीखने  को जागरूक रहना ज़रूरी है। अपनी आवश्यकता या अपने शौक पूरे करते हुए हर पल कुछ नया सीख सकते हैं। इससे नयी चीज़ों के बारे में जानकारी ही नहीं मिलती अपितु विभिन्न क्षेत्रों में हमारे ज्ञान की बढ़ोतरी भी होती है । यह व्यक्तित्व को सकारात्मक रूप प्रदान करने में सहायक सिद्ध होता  है। अतः सदैव कुछ  नया सीखने को जागरूक रहें।लॉक डाउन से अच्छा अवसर शायद ही कभी पहले मिला हो जितना समय सीखने के लिए प्रयोग किया जा सकता है कमी नही है ऐसे में एक ही बड़ी चुनौती है कि कोई बहाना न बनाया जाए । ख़ूब पढ़े पढ़ने से हमारे विचारों को नए आयाम मिलते हैं। अपने मनपसंद लेखक की पुस्तकों का अध्ययन करें। इससे हमारी विचार क्षमता का विकास होता है और हमारे व्यक्तित्व निर्माण में  विचारों  का महत्वपूर्ण योगदान है। सकारात्मक पुस्तकों का ज्ञान व्यक्तित्व को भी सकारात्मक  बनाएगा। लेखन कार्य करें विचारों को काग़ज़ पर उतारे इससे भी व्यक्तित्व में निखार आता है विभिन्न पहलू हैं जो लॉक डाउन में चुनौती बनकर आए हैं जिन्हें स्वीकार कर व्यक्तित्व को निखारा जा सकता है । बहुत सारे लोग वायरस के संक्रमण से बचने के लिए घरों में ही हैं और समय का सदुपयोग कर रहे हैं निश्चित ही सकारात्मक विचारों के धनी लोग अपने व्यक्तित्व को निखारेंगे  ऐसी आशा भी है और विश्वास भी ।
डॉ भूपेन्द्र कुमार 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
संकट जीवन का सहचर है, वह सबके साथ चलता है। लेकिन आदमी संकट के नाम से ही घबड़ाता है। संकट का आभास होते ही वह उससे बचने के उपाय करने लगता है। लेकिन संसार में शायद ही ऐसे व्यक्ति का जन्म हुआ हो जिसने संकटों का सामना न किया हो। संकट तो जीवंत व्यक्ति का परिचय है। इसीलिए महापुरुषों ने संकट को जीवन की पाठशाला कहा है। संकट की पाठशाला में व्यक्ति जितना अधिक सबक याद करता है, वह जीवन में उतना ही सफल होता है। ये सूक्तियाँ हैं, कोरा उपदेश नहीं। संकट का मुकाबला करके नया जीवन जीने वालों के अनुभवों की पोथियाँ आशा की किरण हैं, दीपक हैं। आखिरकार जीवन का उद्देश्य उसे जीना और इष्टतम अनुभवों को हासिल करना, नए और समृद्ध अनुभवों को उत्सुकता से और निर्भर होकर आजमाना है।'' इसलिए संकटों से घबराए नहीं, बल्कि अपने लिए एक नई राह बनाएं, ताकि अपने जीवन को भरपूर जी सकें।
संकटों के बिना जीवन का असली आनंद नहीं आता। संकटमयी घटनाएँ इतिहास का निर्माण करती हैं। व्यक्तित्व का निखार है संकट वाली घटनाएँ। असफलताओं को सफलताओं में बदलने के प्रयास ही अनुभव है। इतिहास में उन्हीं का उल्लेख होता है जिन्होंने चुनौतियाँ स्वीकार करने का साहस दिखाया है। सभी की प्रसिद्धि का सूत्र यही है कि नैतिक बल के सहारे संकटों का मुकाबला किया जा सकता है। अनैतिक लोगों के हाथ लगी सफलता तात्कालिक होती है, अल्पकालिक होती है, नैतिक बल से प्राप्त सफलता स्थायी होती है, सदियों तक सुगंध देने वाली।
अधिकांश मनुष्यों के दुर्भाग्य का मूल कारण यही होता है कि उन्हें अपने ऊपर भरोसा नहीं होता। वे अपने भाग्य को ही कोसने में अपना बहुमूल्य समय नष्ट कर देते हैं। जो व्यक्ति अपने को निर्बल और कमजोर समझता है उस व्यक्ति को कभी विजय नहीं मिल सकती। अपने को छोटा समझने वाला व्यक्ति इस संसार में सदा कमजोर समझा जाता है। उस व्यक्ति को कभी वह उत्तम पदार्थ नहीं मिल पाते जो सदैव यह कहकर अपने भाग्य को कोसता है कि वह पदार्थ मेरे भाग्य में नहीं था। उत्तम पदार्थ उस व्यक्ति को प्राप्त होते हैं जो उन्हें अपनी शक्ति से प्राप्त कर सकता है। हर व्यक्ति में शक्ति का जागरण और उस शक्ति का रचनात्मक दिशा में उपयोग सुखी परिवार अभियान का हमारा मूल उद्देश्य है। 
पिछले करीब सवा महीने की समीक्षा की जाए तो पता चलता है कि लॉकडाउन के कारण जनता को भले ही परेशानियों का सामना करना पड़ हो, लेकिन पर्यावरण आदि कई मामलों को लेकर लॉकडाउन का सकारात्मक पहलू भी सामने आया है। पूरी दुनिया में प्रदूषण का स्तर काफी कम देखने को मिल रहा है। हवा लगभग साफ हो गई है। लॉकडाउन के कारण पर्यावरण में आया सकारात्मक बदलाव हमें इस बात का अहसास कराता है कि यदि प्रकृति और उसके संसाधनों का अनुचित दोहन नहीं किया जाए तो हम कई मुसीबतों जैसे बाढ़, सूखे, बढ़ते तापमान आदि से बच सकते हैं तो ग्लेशियरों को पिघलने से भी बचा सकते हैं। कोरोना महामारी ने हमें यह भी समझा दिया है कि यदि हमें पृथ्वी को बचाना है तो उसके संरक्षण के लिए हमें कोई कारगर नीति बनानी ही होगी। पेड़-पौधों, जंगलों और जानवरों को बचाना एवं संरक्षण देना होगा। जीवनदायिनी नदियों को प्राकृतिक तौर पर आगे बढ़ने के लिए संरक्षण दिया जाए, उसमें गिरने वाले नालों और फैक्ट्रियों के गंदे पानी पर रोक लगाई जाए। सिर्फ कानून बनाकर यह काम नहीं हो सकता है, इसके लिए जनता को जागरूक भी करना पड़ेगा।
दरअसल, देश की जनता के दिमाग से जब तक यह बात नहीं निकलेगी कि कारों का काफिला बढ़ाना कोई स्टे्टस सिंबल नहीं होता है, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। इसी थोथे स्टेट्स सिंबल के कारण तेजी से बढ़ती वाहनों की संख्या हमारे लिए सिरदर्द बनती जा रही हैं। बहरहाल लॉकडाउन के कारण प्रदूषण का स्तर कम होना हमें एक सकारात्मक संदेश दे रहा है। अगर हम अब भी नहीं जागते हैं तो यह अपने पैरों पर कुल्हाडी मारने जैसा होगा। हमें यह समझना होगा कि प्रदूषण कम होने पर ही पृथ्वी बच पाएगी, जब पृथ्वी बचेगी, तभी जीवन बचेगा।
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा क्योंकि बंद के इस माहौल में जिनके पास कुछ है। वो तो बैठे ठाले खा पीकर मोटे हो जाएंगे। और जिनके पास कुछ नहीं है उनके तो हो सकता है अस्थि पंजर भी बाहर आ जाए। अभी यातायात के मोटर से चलने वाले वाहनों का प्रचलन बंद है। तो धुआं या धूल का कोई निशान नहीं दिखता इस वजह से वातावरण कुछ हद तक स्वच्छ हुआ है। लोग घरों में बंद हैं तो ऐसे में नहाने के लिए नदी, पोखर और तालाब का उपयोग कम हुआ है।जिसकी वजह से उसमें विद्यमान जल स्वच्छ हुए हैं। हमारे देश की आबादी बहुत अधिक है और संसाधन कम इसका नतीजा यह कि इस विपत्ति के समय में बचने के लिए ठीक से मैडिकल सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। तो ऐसे में यदि बचे हुए रह गए तब तो शायद कुछ दिन तक स्वच्छ वातावरण मिलेगा। लेकिन जब लाॅकडाउन टूटेगा तब जो स्थिति पहले थी पुनः कुछ दिन बाद वैसा ही हो जाएगा। सो लाॅकडाउन से कुछ विशेष हासिल नहीं होगा ऐसा मेरा मानना है।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
लाॅकडाउन  की  चुनौतियों  ने जीवन में  कई  सकारात्मक  और  नकारात्मक  परिवर्तन  किये  हैं  ।  आवश्यकताएं  सीमित  हो  गई.......जीवनशैली ........विचारधारा ......रहन-सहन  में  भी  बदलाव  आ  गया  है  । 
        कुछ  घंटों  के साथ  के फलस्वरूप  जो  लोग  झगड़  पड़ते  या  हिंसा  पर  उतारू  हो  जाते  थे  ।  उन्होंने  सामंजस्य  बना  कर  रहना  सीख  लिया  है  । 
         लोगों  आध्यात्मिक  भावना.........धैर्य .......संतोष ........जैसी  विचारधारा  बलवती  हुई  है  । 
         बाहरा  खाना  न  मिलने  के  कारण   लोग  सात्विक  भोजन  करने  लगे  हैं  जिससे  पेट  संबंधी  बीमारियों  भी  कम  घेरती  हैं  । 
         अधिकांश  लोग  अपनी  हाॅबी  को  पूरी  कर  रहे  हैं .......साहित्य   पढ़  रहे  हैं  । बच्चों  को  समय  दे  रहे  हैं  ।  अपने  व  करीबियों  से  मोबाइल  द्वारा  जुड़े  हैं  । 
       सिक्के  के  दो  पहलू  की  तरह  जहां  बहुत  कुछ  सकारात्मक  है  वहीं  आर्थिक  दृष्टि  से  लोग  कमजोर  हो  रहे  हैं  ।  जिसके  कारण  तनाव  भी  सिर  उठा  रहा  है  । 
       गरीबों  की  हालत  बहुत  दयनीय  होती  जा  रही  है  । ये वर्ग  और  पिछड़ता  जा  रहा  है  ।  ऐसी  स्थिति  में  धैर्य  और  संतोष  ही  धन  है  । 
        लाॅकडाउन,  स्वयं  एवं  स्वयं  से  जुड़े  अपनों  के  व्यक्तित्व  को  विचारों  में  सकारात्मक  बदलाव  कर निखारने  का  समय  है । इसका  उपयोग  परिस्थिति  व  आवश्यकतानुसार  सूझ-बूझ  से किया  जाना  चाहिये  । 
         - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
जीवन अनिश्चितताओं से भरा है। कब, क्या हो जाये कहना कठिन है। इसके अलावा हमारे इस व्यक्तिगत संघर्ष में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अन्य लोग भी जुड़े होते हैं। प्राकृतिक और कृत्रिम चीजें भी हमसे जुड़ी होती हैं। इन सब के बीच हमारा जीवन गुजरता चलता है। जीवनयापन की शैली और हमारी व्यक्तिगत सामर्थ्य हमें इन स्थितियों से सफलता और असफलता के साथ हमें खुशी और ग़म देती हुई चलती है। शनैः- शनैः हम अनुभवी होते चलते हैं जो हमें बुद्धि, विवेक और साहस देकर हमें मजबूत बनाता है और हमारे जीवन- संघर्ष को सरल करता है।
  लॉकडाउन की चुनौती हमारे जीवन की आकस्मिक आपदा है।    यह नई जरूर है मगर ऐसी भी नहीं कि हमें तोड़ दे। इससे भी भयावह आपदाएं और विपदाएं हमने देखीं और सुनीं हैं। लॉकडाउन तो एक बचाव का तरीका है। असल आपदा तो कोरोना संक्रमण है और यह विश्व स्तरीय है। सामाजिक आपदा भी कह सकते हैं। इससे सभी जूझ रहे हैं। अतः प्रतिस्पर्धा, शर्म, संकोच जैसी कोई बात नहीं है। बस, बचाव और सुरक्षा के दिशानिर्देशों का निष्ठा से पालन करना है। जो किया भी जा रहा है। हमारा यही धैर्य और उत्साह हमें इस आपदा से उबरने के लिए सामर्थ्यवान बना रहा है। यही हमें ऊर्जावान बना रहा है। हमारी नकारात्मकता को नष्ट और सकारात्मकता को परिपक्व कर रहा है। सच और सार यही है कि इस चुनौती से हम अपने व्यक्तित्व को निखारने में सक्षम और सफल होते हुए भविष्य के लिए और सजग व सशक्त हुए हैं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
          1920 में भी एक महामारी आयी थी उस वक्त ना हम थे ना आप । उस समय भी लाखों की संख्या में मौतें हुई थी  उस समय चिकित्सा सुविधायें विकसित नहीँ थी । एक आज हम वा दुनिया खुद को अति विकसित मानते हैं  किन्तु कोरोना का ईलाज या दवाई ना होने से पूरा विश्व असहाय हो कर रह गया है । ऐसे में केवल सोसल डिस्टेंसिंग  हैंड वाशिंग   मास्क लगाना ही एकमात्र बचाव है जहां पे भी जरा सी चूक हो रही हैवहीं पे कोरोना के मरीजों की बाढ सी आ रही है ।
हम पिछ्ले दो से अधिक महिनों से लॉक डाऊन के दौर से गुजर रहे हैं । अपनी जान बचाने के लिये ये सब जरुरी है ।काम धन्धे चौपट हो चुके हैं और सभी लोग बेरोजगार हो गये हैं ।
      लॉक डाऊन के दौरान हमारी जीवन शैली बिल्कुल बदल गई और हम ने सीमित साधनों के साथ जीना सीख लिया ।हमारा ध्यान परिवार,घर, ईश्वर  , योग, बजुर्गों  और अपनी जमीन की तरफ केंद्रित हुआ ।
       जितना आनन्द इस दौरान आ रहा है कभी नहीं आया था ।यदि लॉक डाऊन ना होता तो हमें ये अनुभव कभी नहीं मिल पाता ।
    - सुरेन्द्र मिन्हास  
बिलासपुर - हिमाचल  प्रदेश
 
बरसों से अपने रोज के काम से छुट्टी पाना चाहते थे और अपने कुछ शौक और इच्छाओं को अपने अंदर दबा के रखा था जैसे अच्छे साहित्य को पढ़ना गाना सुनना डांस करना कुछ खाना बनाना आज उन्हें यह सब करने का मौका मिला है बच्चों के साथ कुछ लोग समय नहीं बिता पाते थे अपने काम के सिलसिले में बाहर रहते थे आज वे सब बच्चों के को समय दे साथ रहे हैं कई माता-पिता दोनों काम करते थे बच्चे स्कूल चले जाते थे वे सिर्फ रात में ही मिल पाते थे आप पे पूरा दिन एक साथ मिलकर खेल रहे हैं और छुट्टी का मजा कर रहे हैं लोग दोनों ने एक दूसरे को समझने का मौका दिया युवा पीढ़ी जो अपने दादी दादा से संस्कार नहीं ले पा रही थी वह भी लॉक डाउन के दौरान संभव हुआ उन्होंने रामायण महाभारत टेलीविजन में दिखी यह सब लोग में ही संभव हुआ कि हमारे जमाने की चीजें उन्होंने दी कि आजकल बहुत सारे सीरियल आ रहे हैं हमें दूरदर्शन में कितने अच्छे प्रोग्राम आते हैं इस बात का पता ही नहीं था यह लाभ के दौरान पता चला कि देखने हैं उपनिषद देख रहे हैं कृष्णा देख रहे हैं जय श्री कृष्णा कृष्ण के चरित्र को जान रहे हैं राम को जाना यह मौका लाभ डाउन के दौरान ही नसीब हुआ अच्छा है लोग अपनी हिंदू संस्कृति से जुड़ सकें बच्चों को भी संस्कार की जरूरत है ज्ञान तो सभी के पास है।
तीसरा चरण पर यह पूरी जीवन सभी को याद रहेगा कि हमने कितने मजे से एक अच्छा टाइम बिताया और हम सब को एक साथ रहने का मौका मिला मनुष्य महेश का दुश्मन हो गया था अब वह एक दूसरे के दर्द को समझ रहा है और हमारा देश या विदेश हम सब एक ही दर्द से पीड़ित हैं अपनेसंयम को बनाए रखें और अपने व्यक्तित्व को  निखारें हमने जितने दिन अच्छे से घर में बताएं हैं और भी दिन अच्छे से घर में बताएं जीवन बार-बार नहीं मिलता जान है तो जहान है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
 लाकडाउन की चुनौतियां काफी हद तक हमारी भारतीय संस्कृति को फिर से दोहरा रही हैं । लाकडाउन की चुनौतियां - घर और बाहर ,आत्म -संयम , आत्ममंथन तथाअपना काम स्वयं करना   व सृजन क्षमता बढ़ा रही है।लाक  डाउन की चुनौती घर और घर से बाहर रहने का ढंग  ! नए तरीके से हमें सिखा रही है ।स्वस्थ रहने के लिए घर और बाहर ,घर में ही बनाया खाना हितकर है। पिज्जा बर्गर वगैरह आदि अपनाकर हम अपनी भारतीय संस्कृति को भूलकर अपने स्वास्थ्य व व्यक्तित्व के साथ अन्याय कर रहे थे ।लाकडाउन के बाद भी बिना किसी काम के फालतू घर के बाहर नहीं जाना।   योग -व्यायाम के साथ संयमित जीवन ,मुंह पर मास्क ,अपनीपोशाक पूरी तरह शरीर को  ढकी हुईहो । स्वयं ही सीख जाएंगे।शादी वगैराह आदि सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कंपटीशन पर रोक से दिखावे की प्रथा को बंद कर वास्तविक  प्रसन्नता  से व्यक्तित्व में निखार आएगा।
तथा 2 गज की दूरी बहुत जरूरी से  फिल्मी दुनिया तथा पश्चिमी- सभ्यता का रंग हमारी नई -पीढ़ी को भटकने नहीं देगा ।समाज  के व्यक्तित्व में  भी  निखार लाएगा।
          अतः   लोक डाउन की चुनौतियों को स्वीकार कर ,अपनाना भी बहुत सरल है। इससे हमारा जीवन और भी आसान हो जाएगा । सभी के व्यक्तित्व में निखार लाएगा ।
- रंजना हरित 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
लाॅकडाउन में अपने घर की चार दीवारी के अंदर , सिर्फ भोजन संबंधी जरूरत पूरी करना जब प्राथमिकता रह गई हो तथा बाहरी अन्य कोई काम न होने पर , व्यक्ति को यह तो समझ में आया कि कम खर्च में , बिना आडंबर के, बिना किसी बाहरी व्यक्ति के सहारे ,
बिना किसी भागदौड़ और विवाद के भी जिंदगी को जिया जा सकता है बल्कि जिंदगी पहले से अधिक शांत,  पहले से अधिक स्निग्ध हो गई  है ।
लोगों को यह एहसास हुआ है कि वह, अब तक केवल भाग रहा था । ये ठहराव उसे चिंतन करने पर विवश कर रहा है कि  धार्मिक स्थलों के बिना भी वह जी सकता है । व्यर्थ की चली आ रही सामाजिक परंपराओं के बिना भी वह जी सकता है, 
अंधविश्वास और टोने-टोटके अब उसे डराएंगे नही ।
लूट खसोट करने वाले अस्पताल और डॉक्टरों की सच्चाई सामने आने पर व्यक्ति  स्वस्थ्य रहने के प्रयास करेगा और उन लुटेरों से किनारा तो करेगा ही ।
शाकाहार और सात्विकता के फायदे  जब प्रत्यक्ष देखने को मिल रहे हैं , तो संभव है लोग आगे भी इसे अपनाते हुए अपनी जीवन चर्या में परिवर्तन ले आएं और  कम साधन में ही जीवन यापन को आदत बना लें तथा  परिवार के साथ सुखी और संतुष्टि भरा जीवन ही उसकी प्राथमिकता हो जाए ।
बिल्कुल संभव है कि इन चुनौतियों से मनुष्य का व्यक्तित्व और निखर आए तथा एक नये भारत की कल्पना साकार हो जाए ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्यप्रदेश
लॉक डाउन की चुनौती आसान नही थी किन्तु स्वीकार करना होगा और मानना होगा। हम अपनी व्यक्तित्त्व के धनी और सम्पन्न है। और यदि नियम का पालन करते और मानते है तो हमारा फायदा है।  अतः सभी  लॉक डाउन के नियम और चुनौती को  हम मानते और स्वीकार करते है तो अपना व्यक्तित्व अलग होगा और निखरेगा भी।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
लॉक डाउन की चुनौतियों ने व्यक्ति के अंदर एक सकारात्मक सोच विकसित की है जो मेरे विचार से सबसे महत्वपूर्ण है। जीवन जीने का जीवन शैली बदलने का दृष्टिकोण विकसित किया जिसकी ओर हम महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए होने वाली दिन-रात की भाग-दौड़ और आपाधापी में ध्यान ही नहीं दे पाते थे।
अपने बड़े-बुजुर्गों को सम्मान-प्यार देने का समय मिला, उनके अनुभवों को सुन कर उनका महत्व जाना तो जीवन में उन्हें अपनाया। अपने शौक, रुचियों, सपनों को पहचान कर उन्हें जीने की कोशिश की। समय के महत्व को समझा। लॉक डाउन से पहले के जीवन की व्यस्तता और भागदौड़ से परेशान होते हुए भी उसे छोड़ पाने की सोचा भी नहीं जा सकता था, पर लॉक डाउन चाहे जिस भी कारण से जीवन से जीवन में आया...कुछ परेशानियों के साथ कुछ सकारात्मक बदलाव भी जीवन के लिए लेकर आया।
        बाहर के, स्ट्रीट फूड के खाने के लिए लोग पागल हुए रहते थे, घर के खाने से ऊबे रहते थे,पर अब घर के बने पौष्टिक खाने का महत्व समझा, बाहर मिलने वाली चीजों को अच्छे स्वस्थ रूप में स्वयं बनाना सीखा, योग-व्यायाम को जीवन का अंग बनाने की सोच विकसित हुई। आयुर्वेद के नियमों और शाकाहार को अपनाने की ओर प्रवृत्त हुए। ये सारी चीजें उसी तरह व्यक्तित्व को निखारने का काम कर रही हैं जैसे सोना निखरता है। 
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
   लाक डाउन की चुनौतियों से व्यक्ति का व्यक्तित्व निकलेगा या नहीं निकलेगा यह कहा नहीं जा सकता हां इतना कहा जा सकता है कि पहले की अपेक्षा  कुछ व्यक्तियों में व्यक्तित्व  मैं सुधार हुआ है जिसने लाभ डाउन किया है उसी का व्यक्तित्व तो अभी सुधरा नहीं है तो जनता का व्यक्तित्व सुधारने की अपेक्षा करना कुछ हद तक नामुमकिन है। लाक डाउन का ऐलान सरकार ही की है लोगों की भलाई के लिए नागदोन पालन करने से जितना जल्दी हो सके भारत से रोना वायरस को भगाना है इसके लिए उन्होंने लाभ डाऊन किया लेकिन खुद पालन नहीं कर पाए, शराब की आड़ लेते हुए शराब दुकान खोलने  का छुट दे दिया।
  यह सरकार की महिमा  लाक टाउन को जोरदार तमाचा मारा है  यह कौन सी व्यक्तित्व है सरकार की एक तरफ जनता को बचाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है और दूसरे तरफ जनता को शराब की नशे में लाभ डाउन को लात मार रहे हैं यह कैसी सरकार की विडंबना है क्या ऐसी सरकार की या ऐसे सरकार के जनता की व्यक्तित्व का निखरने का क्या उम्मीद कर सकते हैं जिसने लिया बनाया उसी ने नियम तोड़ने के लिए शराब की दुकान को खोल दिया एक तो इसी में ही घर में झगड़े झंझट का माहौल बना हुआ है कहीं पर रोटी की मारामारी है तो कहीं पर घर में कैद होकर बोर हो रहे हैं फिर भी सर्वा मानव जाति के भलाई के लिए किसी न किसी तरह से जनता लाख डाउन का पालन कर रही है लेकिन पता नहीं सरकार को शराब की दुकान खोले बिना उसकी जीना दुबर हो गई है। शराब के चलते आज तक जगती बिना शराब पिए मर गया ऐसा बहुत कम सुनने को मिलता है या नहीं भी मिलता है लोग शराब बिना नहीं मरते शराब की आमदनी नहीं आने से सरकार मरती है जिस देश की सरकार शराब से धन अर्जित करती है वह देश की व्यक्तित्व कैसे होगी आम जनता इसे समझ सकती है कितनी खुशी हो रही थी समाज में कि चलो कोरोनावायरस के चलते यह बड़ा वायरस शराबियों को अभी झेलना होता था कुछ दिनो तक  झेलने जलाने की समस्या होती थी वह अभी स्थिर है शराबियों के पत्नियां भी थोड़ा राहत का सांस ले रहे हैं।  लेकिन उनकी खुशी ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाई और सरकार शराब की दुकान खोल का उनकी खुशियों में पानी फेर दी ऐसी घटनाओं से देखते ही देखते कैसे कहें कि हमारी या मानव जाति की व्यक्तित्व में निखार आ रहा है हां कुछ व्यक्ति है अगर लाभ डाउन है नहीं है फिर भी समझदार लोगों का व्यक्तित्व  निखरा हुआ है। ऐसा कहा जा सकता है। कुछ व्यक्तियों का व्यक्तित्व की ओर ध्यान जा रहा है कुछ व्यक्ति अभी भी बेहोश में है हां इतना जरूर है धीरे-धीरे लो व्यक्तित्व पर ध्यान देंगे तो जरूर समझदारी के साथ करो ना को भगाने में सफल हो सकते हैं लेकिन सरकार है बीच में करो ना को शराब दुकान खोल कर सबल देख रही है।   ऐसी स्थिति में कैसे कहा जाए सभी लोगों के व्यक्तित्व का निखार हो रहा है कौशल्या वाले मुद्दा है।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
 इसमें तो कोई दो राय नहीं है की आज लॉक डाउन हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है !
इसने हमें जीवन की हर घटना चक्र को जो हम से जुड़ी है ला खड़ा किया है !
प्रकृति समय-समय पर हमें बहुत कुछ सिखाती है जो गलतियां हमने की है वह सब हमारे सम्मुख आ रही है !प्रकृति संग जो खिलवाड़ किए हैं वही हम भोग रहे हैं !
 इस लॉक डाउन की चुनौती ने हमें बहुत कुछ सिखाया! 
 इस लॉकडाउन ने हमारी 
१) जीवनशैली ही बदल दी ! 
२)हमारी आवश्यकताओं की सीमा रेखा का बोध कराया !
३) समय का महत्व बताया !
४)प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य के प्रति सजग हो गया !
५)जीवन है तो कठिनाइयां आएंगी हमें धैर्य और संयम को रखना चाहिए इसका पाठ पढ़ाया !
६)दूसरों के प्रति सद्भावना सद्विचार की भावना आने से व्यवहार कुशलता का बोध हुआ !
७) विपत्ति के समय धैर्य संयम से काम लेना चाहिए और समय को मान देना चाहिए!
८) अहंकार का त्याग कर विनम्रता का बोध कराया विनम्रता से संवेदनशीलता की भावना भी जागृत हुई !
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है उसमें मानवीय गुण होते हैं संवेदनशील होने से वह जिसके प्रति संवेदना दिखाता है वह उसे दुखी नहीं देख सकता !पशु पक्षी का भी ध्यान देना चाहिए इसका बोध हुआ !
लॉक डाउन में मुक पशु-पक्षी भी भूख से सड़कों पर हमारे करीब वेदना भरी नजरों से निर्भीक याचना लिए खड़े रहते हैं कि हम उन्हें दाना पानी दे और हम उनके प्रति संवेदनशील हो जाते हैं !
९) हमें संघर्ष करना सिखाया !
१०) परिवार और रिश्तो का महत्व समझाया ईश्वर के करीब लाया !  
अंत में कहूंगी इस लॉक डाउन में अहंकार त्याग लोग एक दूसरे के साथ समानता की भावना और अच्छा आचरण करने लगे !
जीवन में कब क्या हो जाए इसका ज्ञान होते ही ईश्वर की लीला को समझते हुए सभी की मदद करते हुए जीवन का महत्व समझ गए हैं ! किसी भी व्यक्ति  का व्यक्तित्व उसका आचरण होता है !यही लॉकडाउन ने सिखाया है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
व्यक्ति के आचार -विचार ,व्यवहार एवं गतिविधियाँ व्यक्तित्व को निरूपित करते हैं जो स्थिर नहीं गत्यात्मक Dynamic अवस्था है जो वंशानुक्रम एवं परिवेश से प्रभावित होता है l 
वर्तमान में लॉक डाउन काजो  परिवेश है  तथा जिन चुनौतिओं का सामना हम कर रहे हैं ,हमारे व्यक्तित्व में निखार आना स्वाभाविक है l लेकिन आवश्यकता इस बात की है -
सफलता जितनी अधिक ऊँचाई पर होगी l 
मेहनत रूपी सीढ़ी उतनी ही लम्बी होगी ll 
शब्द वही होंगे ,
बस !उन्हें कहने का सलीका ,
  आपका व्यक्तित्व बनाएगा l 
लॉक डाउन में सबसे ज्यादा चुनौतियां समाज कंटकों द्वारा कोरोना वारियर्स के लिए पैदा की जारही हैं l लेकिन धर्म युद्ध लड़ रहे ये जाँबाज कहते है -
अपमान करना किसी के स्वभाव में हो सकता है l 
लेकिन सम्मान और सेवा करना 
हमारे संस्कार में है l 
अर्थात मन ,विचार ,भाव ,संकल्प और आशा पूर्ण दृष्टिकोण आपके व्यक्तित्व का प्रदर्शन लोक मानस पर करते हैं तथा भिन्न भिन्न व्यक्तित्व वाले व्यक्तियों से हम मिलते हैं l 
लॉक डाउन से मिलने वाली चुनौतियों से जीवन निखरेगा या बिखरेगा यह व्यक्तिशः निर्भर करेगा l लेकिन जरा उन्हें -
  यह कोई बता दे 
वक्त बदल रहा है 
कह दो अकड़ छोड़ दें 
क्योंकि वक्त संभल रहा है l 
इस जन सागर में मात्र एक बून्द सा है ,हमारा अस्तित्व l 
जो हमें औरों से जुदा करता है ,वह है हमारा व्यक्तित्व l 
ये लॉक डाउन हमारी पहिचान बनेगा 
हर कदम होंसलों का "प्रकाश"
 होगा ,
हर"संघर्ष "विजय का गान होगा ,
सफ़ऱ अधूरा तो व्यक्तित्व अधूरा होगा l 
पूरे सफ़ऱ में सफलता का संगीत और चुनौतियां देंगी जीवटता और जीत पर जीत l 
जीवन यात्रा में सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जो 
जीवन को रसमय बनाता है l पतझड़ के मौसम से बसंत की बहार का पता चल जाता है l लॉक डाउन में आने वाली चुनौतियों से आँख मूंद लेना या भागना आत्मघाती कदम हो सकता है l प्रतिकूलताओं से संघर्ष करने की क्षमता का नाम है मनोबल ,और मनोबल सम्पन्न व्यक्तित्व चुनौतियों का मुकाबला करेगा ,भागेगा नहीं l इतिहास साक्षी है -
वर्षो तक वन में घूम घूम ,
बाधा विघ्नों को चूम चूम 
सह धूप- घाम ,पानी -पत्थर ,
पांडव आये कुछ ओर निखर 
सौभाग्य न सब दिन सोता है ,
देखें ,आगे क्या होता है l 
    पांडव पुत्रों और धृतराष्ट्र पुत्रों में आनुवंशिक वंशानुगत समानता थी लेकिन आचार -विचार मन ,भाव ,संकल्प और संगत ने दोनों में वैयक्तिक भिन्नता ने "महाभारत "का ऐतिहासिक युद्ध 
करवा ही दिया l 
सबका था व्यक्तित्व भिन्न भिन्न 
अस्तित्व पर सबके थे प्रश्न चिह्न ?
ह्रदय होते जा रहे पाषाण सम कठोर ,
नहीं था कोई "भाव विभोर "
विज्ञान है आज यहाँ प्रमेय ,
किन्तु मनुष्य आज हो रहा अमेय l
हम संस्कारित व्यक्तित्व की माला जपते रहे और समाज कंटक हमारी तपस्या साधना पर पानी फेरते रहे ,कोरोना वारियर्स पर हमले करते रहे और हम व्यक्तित्व 
पर निखार रूपी "धार "लगाते रहे ,-
पाप नहीं ये पुण्य है ,
विच्छिन्न कर देना 
उस हाथ को तेरी तरफ 
बढ़ रहा जो हाथ है l 
चलते चलते -
होठों की निःशब्दता को 
मेरा व्यक्तित्व न समझ लेना 
मन के उफानो से उपज !
जो कागज़ पर सँवर जाये 
वह माधुर्य शोर हूँ  मैं 
       शोर हूँ मैं l
- डॉ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
जीवन में आने वाले उतार-चढाव हमें बहुत कुछ सिखा जाते हैं। लाकडाउन में भी जहाँ एक ओर जीवन की गति थम गई है, थोड़ा डर है तो वहीं अपनों का प्यार और साथ भी है। भौतिक सुख-साधन जुटाने के प्रयास में  रिश्तों के तार जो कहीं टूटने लगे थे ,वो फिर से जुड गए हैं। वो बचपन का गाँव, पीपल की छांव, खेतों की हरियाली, गौरैया, कोयल सब फिर से याद आने लगे हैं। कितनों ने तो गाँव की डगर भी पकड ली ,बूढ़े माँ-बाप जिनसे मिलने की फुर्सत नहीं थी आज उनके साथ बिताने को वक्त मिल गया, बच्चों को दादा-दादी का प्यार और संस्कार सीखने को मिल रहा है। यूँ कहें तो गलत नहीं होगा कि जो संस्कृति और सभ्यता हम भारतीय भूलते जा रहे थे उसे फिर से याद करने का मौका मिल गया है। जब इतना कुछ मिला है लाकडाउन में तो इस खुशी से हमारे व्यक्तित्व का निकलना तो तय है। इस लाकडाउन में हमारा ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भारत का भी एक अलग व्यक्तित्व सामने आया है। "सबल राष्ट्र, सजग राष्ट्र, सफल राष्ट्र "
         - डॉ ममता सरूनाथ
           नोएडा - उत्तर प्रदेश
यह सत्य है कि संघर्ष की स्थिति में अथवा चुनौतियों का सामना करते हुए मानव के व्यक्तित्व का सही रूप सामने आता है ।बहुत से लोग जिनका व्यक्तित्व कुछ दबा हुआ सा महसूस होता है  संघर्ष या चुनौतियों के सामने बहुत प्रखर हो उठते हैं। व्यक्तित्व से हमारा तात्पर्य है- मानव के गुणों का समन्वित रूप ।यह व्यक्ति के  जन्मजात तथा अर्जित स्वभाव, मूल प्रवृत्तियों ,उसकी भावनाओं तथा इच्छाओं इत्यादि का एक समुदाय होता है। वास्तविक रूप में व्यक्तित्व का संबंध मनुष्य की उन शारीरिक तथा आंतरिक वृत्तियों से है जिनके आधार पर व्यक्ति अपने वातावरण के साथ समायोजन स्थापित करता है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि लॉक डाउन की चुनौतियों का सामना करते हुए मानव में एक अलग ढंग की क्षमता विकसित हुई है और उसकी सहनशक्ति, उसकी जुझारू प्रवृत्ति मुखर होकर सामने आई है । मैं यह भी  मानता हूं कि वर्तमान समय में लाॅक डाउन  की चुनौतियों से मानव के व्यक्तित्व में एक अलग ही तरह का निखार उत्पन्न हुआ है  जो भविष्य के अनेक विपरीत मौकों  पर उसे मजबूती प्रदान करता रहेगा ।धन्यवाद 
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' 
दतिया - मध्य प्रदेश 
विश्व- संस्कृति की प्रथम पाठशाला परिवार में तन- मन के रूपीय आयामों की वास्तविकता का दर्शन ही मनुष्य का व्यक्तित्व है। आज कोरोना संकट के चलते लॉक डाउन में हर व्यक्ति को यह अवसर मिला है; जहां विश्व, राष्ट्र, समाज और स्वयं उसकी अपनी आदतों एवं स्वभाव में अपेक्षित परिमार्जन का भरपूर मौका मिला है। इन दिनों हर व्यक्ति ने अपने व्यक्तित्व का समग्र मूल्यांकन किया है। अपनी शक्तियों,, दुर्बलताओं, दोष- दुर्गुण तथा जीवन की वास्तविकता क्या है। यह उसने भली प्रकार समझा है। क्योंकि जिस विकास की प्रक्रिया में हम निकले थे; उत्साह- जोश को लाॅक डाउन ने किस प्रकार डाउन  कर दिया। इस तरह के विचार हमें आत्मसुधार करके  हताशा और निराशा भरी त्रासदी से बचाते हैं। जहां व्यक्ति के धैर्य जीवट एवं आस्था की परीक्षा हुई है।
       इसके आगे 3 चरणों में लॉक डाउन होता देख हम नित्य अभ्यास के आयामों से भी जुड़े हैं जो व्यक्तित्व में अपेक्षित गरिमा एवं भव्यता का समावेश कराते हैं जिसमें समग्र सफलता की संतोष भरी झलक भी मिलती है। संतुष्टि का भाव उत्पन्न होने लगता है; जो व्यक्तित्व का एक सोपान रहा। यानी *आत्मनिर्माण*।
      इसके बाद समय, श्रम ,धन, प्रभाव का लोक हित में नियोजन ने  हमें परमार्थी भी बनाया।जो संकीर्ण स्वार्थों एवं क्षुद्र अहंकार के विसर्जन की मूल प्रक्रिया है ।
      इन दिनों असहाय, अशक्त, बीमार- लोगों की निस्वार्थ सेवा के रूप में आत्मविस्तार भी हुआ है जो कि यह परम पुरुषार्थ है।
      इस प्रकार उच्च वर्ग से लेकर निम्न वर्ग तक के व्यक्तियों को एक दूसरे की परेशानियों को समझने तथा उनको चुनौती मानकर उन पर पूर्ण रूप खरे उतरने का भी समय मिला है।नि:संदेह यह सारी प्रक्रियाएं व्यक्तित्व को  निखारती हैं।
 - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
     चुनौतियों की पवित्रता का रसपान धरा पर विरले ही करते हैं। क्योंकि कायरों को चुनौती शब्द ही दिन को तारे दिखा देता है। जबकि महारथियों, ज्ञानियों, विद्वानों, मुनियों, आलोचकों, लेखकों, साहित्यकारों, शूरवीरों, महावीरों और कर्मवीरों के लिए चुनौती अमृत समान है। जिसे पीने के लिए वह हमेशा लालायित रहते हैं। चूंकि वह जानते हैं कि कुम्हार द्वारा मिट्टी को रौंद कर बनाए कच्चे घड़े का मूल्य आग में पकने के उपरांत ही पड़ता है और पकते ही सोने पर सुहागा हो जाता है। इसलिए चुनौती चाहे लाॅकडाउन की हो या पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक की हो, उससे व्यक्ति का व्यक्तित्व हमेशा निखरता ही है। चूंकि चुनौतियां असल में कर्मवीरों के आभूषण होते हैं। जिन्हें स्वीकार करके वे अपनी गुणवत्ता को दर्शाते हैं।इसलिए चुनौतियां ही सफल जीवन का आधार होती हैं।
     लाॅकडाउन की भांति जीवन में कई चुनौतियां आती हैं। जिनका कर्मवीर सहजता से सामना करते हैं और कायर दुम दबाकर भाग निकलने का प्रयास करते हैं। जिसके फलस्वरूप कर्मवीर यश प्राप्त करते हैं और कायर अपमान पाते हैं।
     उल्लेखनीय है कि यदि किसी व्यक्ति को जीवन में निखरने की अभिलाषा हो तो उसे चुनौतियों को दावत देनी चाहिए। वह चुनौती चाहे सामाजिक हो या आर्थिक,  स्वच्छता की हो या स्वास्थ्य की, राजनीति की हो या घरेलू, पत्रकारिता की हो या शुद्ध लेखनकला की, राष्ट्रीय हो या अंतरराष्ट्रीय, कोरोना का लाॅकडाउन हो या ठेके पर उमड़ी भीड़, छोटी हो या बड़ी हो, उसे स्वीकारने मात्र से व्यक्ति का व्यक्तित्व निखरना पत्थर की लकीर है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी हाँ , लाकडाउन की चुनोतियों से निखरेगा अपना व्यक्तित्व  
पहले हम व्यक्तित्व के बारे में जान लें । हर व्यक्ति में जन्मजात  कुछ न कुछ विशेषताएँ होती हैं। जो अन्य व्यक्ति में नहीं होती हैं , इसलिए है व्यक्ति एक दूसरे से अलग होता है । मनुष्य के आचार -व्यवहार , विचार , क्रियाएँ , गतिविधियों में व्यक्ति का व्यक्तित्व  पता चलता है । 
मैं परिवार का ही उदाहरण देती हूँ । आप अपने परिवार में ही देख लें , हर जने का आचार - विचार , व्यवहार , काम करने का तरीका अलग ही होगा । यही व्यक्तित्व का निर्माण करता है । 
जो व्यक्ति साधारण होते हैं , वे नैतिक मूल्यों को धारण करके समाज का हित , कल्याण करते हैं , मानवता को जिंदा रखते हैं । ऐसे व्यक्ति साधारण से असाधारण बन जाते हैं । हम उनके चरित्र की साकारत्मकता को स्वीकार कर प्रेरणा लेते हैं ।
लाकडाउन की वजह से लोग अपने घरों रहकर ही कोरोना से सुरक्षित है ।  लाकडाउन का पीरियड हर मानवजाति के लिए चुनोतियों से भरा है ।  लोग घर में रहकर मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं । ऐसे में बुरे विचारों , नकारात्मक भावों से बाहर निकलें , क्योंकि हर व्यक्ति को स्वयं ही उन परिस्थितियों से निबटना है , फिर क्यों नहीं हम  आशावादी बने । क्यों हम निराश हो ?
   हमें साकारत्मक रहना होगा । छोटे - छोटे कामों में  खुशियाँ  ढूँढनी  होगी ।
हमें धैर्य की परीक्षा देनी पड़ रही है , हम अपने आपको अपनी रुचि के अनुसार काम करने में व्यस्त रखें ।
कहा भी खाली दिमाग शैतान का घर ।
हमें लाकडाउन ने अपने आपको निखारने का खूब समय  दिया । 
मुझे रचनात्मक कामों जैसे पेंटिग , गार्डीनिंग , लेखन में  रुचि है ।  लिखने के लिए पढ़ना होता है । किताब पढ़कर मैं उन पर अमल करती हूँ , मुझे सीखने को मिलता है ।, ऑन लाइन कविसम्मेलन , श्लोक , छंद पेंटिग प्रतियोगिता आदि में हिस्सा ले के अपने। व्यक्तित्व को निखारती हूँ । 
 जब प्रबुद्धवर्ग मेरे क्रियाकलापों , गतिविधयों को देख कर। मेरे व्यक्तित्व से  प्रेरित होता है , तो मेरे लिए तो गर्व की बात है । मेरा जीवन के व्यक्तित्व निखारने के ये संकल्प हैं , इन्हीं को अमल करती हूँ - 
मैंने  सादा जीवन उच्च विचारों को ब्रांड बनाया ।
मैं  सच , मीठा बोलने को व्यवहार में लामती हूँ ।
 मैंने प्रेम को  छोटे , बड़े के साथ अपने जीवन में स्थान देती हूँ । प्रेम से दुनिया जुड़ जाती है । 
मैं हमेशा आशावादी और सकारात्मक सोच के सूत्र को मानती हूँ ।
यही सब तथ्य , तत्व , पहलू मेरे व्यक्तित्व को निखारते हैं । 
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन का पालन करने वालों के लिए तो पहले अपनी मानसिक स्थिति से लड़ना ही मुश्किल हो रहा था । 21 दिनों के बाद जब संतुलन बना तो व्यक्ति अपने बारे में सोचने लगा । अपनी रुचि को खोजने लगा ।  दूसरे दौर में उसने कुछ क्रिएटिव करने की ठानी । लेकिन आदत है बाहर दोस्तों के साथ अपनी हर परेशानियां बांटने की , तो फिर से असमंजस की स्थिति हो गई । कुछ तो फिटनेस या सोशल मीडिया पर व्यस्त हो गए। साहित्य से जुड़े कुछ पढ़ने और लिखने में लग गए । अन्य लोग घर पर के कार्य में हाथ बटाने लगे। इसलिए मुझे तो लगता है कि वैसे लोगों की संख्या कम ही होगी जिन्होंने अपने जीवन की इस चुनौती से व्यक्तित्व में निखार लाने का प्रयास किया होगा । हाँ। बच्चों की बात करें तो उनकी क्रिएटिविटी में जरूर पंख लग गए हैं । लेकिन उसमें भी सामानों की बिक्री बंद होने के कारण उनकी चाहतें पूरी नहीं हो पाती थीं। इन सभी कारणों से महसूस करती हूँ कि व्यक्तित्व में निखार कम ही आया होगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
लाकडाउन इस एक शब्द ने  24 मार्च 2020 सज संपूर्ण विश्व का परिदृश्य ही बदल दिया है । ना सोचा, ना जाना, असंभव सा अदृश्य दुश्मन संसार की गति मती और प्रगति को लील जाने के लिए  फैल गया है ।इस का एकमात्र उपाय है ।सोशल ड़िस्टेंस यानि समाजिकता पर कुठाराघात।  अपने आप को स्वैछा से घर में एक तरह से कैद कर लेना। आरंभ में तो यह कठिनाऐ का पहे लगा पर आदरणीय प्रधानमंत्री जी के संदेशों ने , विश्व में हुई मौतों ने सभी को इसे काल्पनिक या हल्के तौर फर लेने की गल्ती ना करने की और सावधान किया। बाजार, कार्यालय, यातायत ,आवागमन , स्कूल ,खेल के मैदान, मनोरंजन सब तात्कालिक रूप से बंद ।एक तरह से दैनिक जीवन से गायब ।कब लौटेंगे? किस रूप में लोटेंगे? उतर अभी उपलब्ध नहीं है । लौटेंगे जरूर क्योंकि मानव अपनी मानसिक ताकत से हर प्रश्न ,समस्या का हल कर लेता है 
  चुनौती घर में रह कर , शारिरिक ,मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से खुद को और औरों को बल प्रदान करना।
सच कहें तो इस नकारात्मक पहलू का एक सकरात्मक रूप भी है ।इन दिनों घर परिवार एकसाथ उठना बैठना, खाना -पीना, बातें करना, पुराने किस्सों को याद कर के अपनी जिंदगी के  कई अनमोल.पलों को बाँट रहे हैं ।आधुनिकता की दौड़ में परिवार ,बच्चे ,बुजुर्ग छूट गये थे। वो फिर जुड़ रहे हैं । घर में रहने वाली गृहिणी को कितना काम होता है आज पता चला। आफिस में गये पापा को  कितनी माथा पच्ची करनी पड़ती है ,बच्चों को अब दिखा । वर्क फ्राम होम में मोबाइल लेपटोप  पर लगातार बैठ कर काम करते देख समझ आता है कि ए.टी.एम में पैसे यूँ ही नहीं आते । 
  मानवियता अपने चरम पर है । नंकर चाकर, दीन दुखियों, असहाय पशु पक्षियो के लिए भी आम जन अपनी हैसियत के अनुसार धन ,अनाज, दवाइयाँ , जरूरी वस्तुएं मुहैया करवा रहा है । स्वच्छता ,संयम, संतोष, संतुलित आहार के पुराने नियमों को मान कर लाकडाउन उतना त्रासद नहीं रहा है । यह जंग यदि लंबी है तो धैर्य ही सबसे बड़ा हथियार है । 
  युवा पीढ़ी को तो शायद घर के पौष्टिक खाने के अनेक व्यंजनों का स्वाद अब पता चला है क्योंकि पहले तो सप्ताह में चार दिन तो पार्टी में बितते थे ।
   दया,ममता,सहयोग, स्वच्छता, आस्था ,मनोबल, मानसिक ताकत सौ गुणी हो गयी है ।
 जीवन बिना बाहरी शोर गुल, आपाधापी, तनाव से ,मितव्यता
से चल सकता है ।यह जानने का अवसय इस घर बंदी ने दिया।
 प्रत्येक मानव के भीतर छुपे राम कृष्ण और बुद्ध को जाग्रत किया इस महासंकट ने ।
 हमारी पुलिस, सफाई कर्मचारी, डाक्टर , नर्स , डाक विभाग सब के प्रति  नया दृष्टिकोण दिखा।
 जी हाँ यह बदलाव आदत बनेंगे और बेहतर ,नया,  चमकदार, शानदार  व्यक्ति त्व कायम रहेगा।
- ड़ा.नीना छिब्बर 
जोधपुर - राजस्थान
सिक्के के दो पहलू होते हैं इससे हम सब वाकिफ हैं।अभी का समय शायद यही दिखा रहा है कि बहुत कम सन_ साधनों के साथ भी हम सब जीवन यापन कर सकते हैं ।आज इस आधुनिक युग में व्यक्ति हर ऐशो आराम को अपनाने की होड़ में लगा रहता था । परन्तु आज इस लाॅकडाउन के समय जब लगभग  हर  चीज बंद है ,फिर भी हम सब अच्छे से जीवन यापन कर रहे हैं ,तो यही बहुत बड़ी बात है ।लोग भागम _ भाग की उबाऊ जिंदगी जी रहे थे ।दो मिनट किसी के पास बैठने, या बात करने तक की फुर्सत नहीं थी ।अब लोगों के पास समय हीं समय है जिसका हर कोइ भरपूर आनन्द उठा रहा है ।ये बात सही है कि यह समय हर तरह से बहुत चुनौतीपूर्ण है और यही व्यक्ति की परीक्षा है कि हम इससे कैसे बेहतर तरीके से निकल पाते हैं ।अभी इस समय हर व्यक्ति अपना पसंदीदा काम कर रहा है क्योंकि यह सब करने का उसे पहले समय नहीं मिल पा रहा था और आज समय हीं समय है । बहुत सारे कार्य जो हम सब पहले कभी ना करते थे , परन्तु आज मजबूरी वश हीं सही हम सब वैसे सारे कार्य खुद ब खुद बखूबी कर रहे हैं । जो लोग कल तक खाना बनाना नहीं जानते थे आज इस समय कोई दूसरा उपाय ना होने के कारण तरह_ तरह  के व्यंजन बना रहे हैं । व्यक्ति के धैर्य की भरपूर परीक्षा हो रही है ।इतने दिनों से घर में बंद रहकर भी अपने सारे दायित्व जिस तरह से भी संभव बन पड़ रहा है बखूबी निभा रहे हैं । हर व्यक्ति को यह समय संयम का पाठ भी पढा रहा है ।एक दूसरे की यथोचित सहायता की भी लोग कोशिश कर रहे हैं । इसलिए चुनौतीपूर्ण समय से जो पार हो जायेगा तो निश्चय ही उसके व्यक्तित्व में निखार भी आएगा ही।
- पूनम देवा
पटना -  बिहार
लॉक डाउन की चुनौतियों से लोगों के व्यक्तित्व में निखार अवश्य आया है। सुंदर व्यक्तित्व वह माना जाता है जिसमें आंतरिक एवं बाह्य दोनों ही प्रकार के सौंदर्य का समावेश होता है ।वाकई  लॉक डाउन ने लोगों के आंतरिक एवं वाह्य  दोनों ही प्रकार के सौंदर्य का विकास किया  है ।लॉक डाउन के तहत  लोगों ने मानव धर्म को निभाना सीखा है । इसकी वजह से लोगों में नैतिक गुणों का विकास हुआ है अधिकतर लोगों के अंदर दयालुता, समायोजन की भावना सहयोग, संयम, सहनशीलता ,परोपकार ,मैत्री, भाईचारा,और सेवा भाव  विकसित हुए हैं ।
इस समय मे में लोगों ने कम पैसे में खर्च चला अपने अंदर मितव्ययता  का गुण  विकसित किया है एवं मानव सेवा को सर्वोपरि मानते हुए मानव धर्म निभाना सीखा  है ।स्वदेश प्रेम, पारिवारिक निकटता, सौहार्द, आपसी लगाव को इस लॉक डाउन के कारण  बढ़ावा मिला है , क्योंकि बहुत समय बाद लोग अपनों के साथ  इस बहाने  घरों में मिल सके ।जो लोग विदेश में थे घर लौटे स्वदेश लौटे ,जो दूसरे राज्यों में थे ,वह घर लौटे ।
सरकार द्वारा दिखाए जाने वाले रामायण और महाभारत आदि धार्मिक सीरियलों का भी मानवता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और सभी लोगों से अधिक सदाचरण प्रिय बन गए। हाथ मिलाने की जगह नमस्कार करना ,साफ-सफाई  रखना ये सब सुन्दर गुण है जो व्यक्तित्व निखारने मे सहायक है ,वह सब लॉक डाउन मे अपनाये जा रहे है ।
बीमारी के डर से ही सही लोग योग ,नियम संयम  पूजा पाठ अध्यात्म का सहारा लेकर अपने आंतरिक व्यक्तित्व को विकसित करने में प्रयास कर रहे  हैं  ।लोगों में सृजनात्मकता व कलात्मकता को विकसित करने का अवसर मिला ,इस समय का लोगों ने भरपूर फायदा उठाया । किसी ने कला की अभिरुचि पूरी की किसी ने  साहित्य सृजन के शौक पूरे किये तो किसी  ने नृत्य ,गायन, वादन आदि कलाओं में महारत हासिल की ।कुछ लोगों ने ठीक प्रकार से अपनी बागवानी की देखभाल की ,कुछ लोगों में पशु पक्षियों और जानवरों पर दया की भावना विकसित हुई ।   किसी ने  आपसी  रिश्ते सुधार लिए।  इस प्रकार तमाम प्रकार का आंतरिक सौदर्य विकसित हुआ रही बात वाह्य सौदर्य की तो  महिलाएं अपने सौंदर्य व फिटनेस की देखभाल ठीक से कर सकी। जिससे उनके सौंदर्य में निखार आया ।पुरुष वर्ग ने  भी अपनी फिटनेस टिप्स और योगा, मनोरंजन आदि को अपनाकर अपने आंतरिक व बाहरी  सौन्दर्य को विकसित किया है ।
कुल मिलाकर कर  हम कह सकते हैं कि लॉक डाउन की  चुनौतियों ने लोगों के व्यक्तित्व को निखारा है , पहले की अपेक्षा लोगों मे आंतरिक सौन्दर्य भी बढ़ा है व वाह्य सौन्दर्य भी बढा है ।
  - सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ- उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " लॉकडाउन में मानसिक स्तर पर इंसान काफी प्रभावित होता है । फिर चुनौतियां तो चुनौतियां होती है । जो इंसान अपने आप में शान्त रहते आगे बढ रहा है । वह तो अपने व्यक्तित्व में निखार ला रहा है बाकी का क्या होगा । वह कोई नहीं जानता है । 
                                                           - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र




Comments

  1. Dr. Mamta Sarunath
    I am agree with her thoughts that this corona virus and lockdown remind us our culture

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  2. Dr. Mamta Sarunath aapne Shi kha hm wapas se apni Purani Sanskriti ko Ji rhe hai Sabhi apne pariwar ke karib Ja rhe hai Jo pass to the pr saath nhi ye sb is negative mai positive ko darshata hai Jo hamare pure samaj ke vyaktitva ko nikhar rha hai

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    1. बहुत ही सुन्दर लिखा आपने रिश्तो मे समय की अहमीयत बहुत महत्वपूर्ण है

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  3. Dr. Mamta sarunath i agree with you our country is now leading the world. India is great!

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  4. Dr. Mamta sarunath ma'am apne sahi kaha hai isse lockdown me ham sbhi log apne purane din me wapas aya rahe hai aur sare pariwar ek dusre ke Karib aya gaye hai

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  5. Dr mamta sarunath main aapki baat se puri tarha shamat hu hum wapas apane purane samay ki tarha dubaar ji pa rahe or apane Baccho ko sikha pa rahe ki family ke shaat kase khushiya milti he

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  6. Dr. mamta sarunath bilkul sah bat kahi aapne..👌👌

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  7. Dr. Mamta Sarunath jii, Mai apki baat se sehmat hu.. Apne bhut achi baat likhi hai

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  8. Dr.mamta sarunath ji,bilkul shi kaha aapne...bohot khub...👌🏻👌🏻

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  9. डॉ ममता सरूनाथ जी, बिलकुल सही फ़रमाया आपने इस लॉक डाउन में हम सबका व्याक्तिव निखर कर सामने आया है, केवल एक व्यक्ति ही नहीं वरन एक भारतीय के तौर पर भी । "सबल राष्ट्र, सजग राष्ट्र, सफल राष्ट्र "

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    1. ममता सरुनाथ जी आपकी बात से पूरी तरह सहमत हुँ मै आप ने बिल्कुल सही लिखा है,इस भागदौड की जिन्दगी मे हम कही खोते से जा रहे थे और अपने कार्यो के लिये दूसरो पर निर्भर हो गये थे हम,एहसास दिला दिया इस नकारात्मकता ने भी हमे की असली सुख शान्ति तो हमारी संस्कृति और संस्कार मे ही है अगर हम अपनी संस्कृति और संस्कार को याद रखे तो जीवन मे हमे कभी भी रोना न्ही पडेगा।

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  10. Neema Sharma ji apka kathan
    bilkul sahi hai

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  11. 🌼Neema Sharma 🌼 आप हमारी प्रेरणा है । अपने बहुत सुंदर लिखा हम इस मुश्किल दौर में सही में निखरे है । 👌👌👌
    मैंने आपकी प्रेरणा से ही खुद में मैं बदलाव लाये
    धन्यवाद 🙏

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  12. 🌸Neema sharma🌸 you are our inspiration and well said about this quarantine period👌

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  13. Dr. Mamta Sarunath Madam, you have written exactly right

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  14. बहुत ही अच्छा सुझाव नीमा जी का

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  15. मालिक काव्य मंच की संयोजिका आदरणीय नीमा जी हंसमुख आपके विचार सटीक और सत्य हैं बहुत सुंदर विश्लेषण किया है आपने हार्दिक बधाइयां

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  16. नीम शर्मा जी आपके विचार पूर्णरूप से सत्य है इस महामारी के चलते भले ही हमारे सांसारिक कार्यों में कमी आयी हो लेकिन हम सभी अपने परिवार के काफी निकट आ गए हैं | 'धन्यवाद'

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  17. Dr. Mamta Sarunath Ma'am I'm totally agree with you.

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  18. नीमा शर्मा जी मैं आपके विचारों से बिल्कुल सहमत हूं और इस समय विविध गतिविधियों में लगे हुए व्यक्तित्व विकास की ओर अग्रसर हूँ । मेरा अनुरोध है आप यह बात सभी तक पहुंचाएं जिससे अन्य लोग अपने व्यक्तित्व में विकास कर सकें

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  19. Mrs. Neema Sharma
    So admirable toughts represented by you

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