लॉकडाउन की वजह से अपनी आय की कमी से भविष्य में क्या प्रभाव पड़ेगा ?

लॉकडाउन की वजह से गैर सरकार कर्मचारियों के साथ - साथ सभी की आय में कमी आई है । जो भविष्य के लिए किसी भी स्तर पर उचित नहीं कहाँ जा सकता है । कोरोना ने बहुत बड़ाई पीढा दी है । जिसने वर्तमान के साथ - साथ भविष्य भी चौपट कर दिया है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब देखते हैं आये विचारों को : -
कोरोना कालखंड इतिहास में एक काले युग के रूप में दर्ज होगा  । इस कालखंड में एक अदृश्य लाइलाज वायरस  के सामने सारी दुनिया विवश नजर आई । संक्रमण रोकने के लिए  लोगों को अपने घरों में कैद होना पड़ा । मजदूरों - श्रमिकों का रोजगार चला गया । उन्हें मजबूरन अपने घरों की ओर पलायन करना पड़ा । सरकारी नौकरी करने वालों को करीब डेढ साल तक कोविड फंड देना पड़ेगा । दुकानों में ग्राहक कम हैं । कम्पनियों - फैक्टरियों में कम श्रमिकों से कम सैलरी पर अधिक समय तक कार्य लिया जा रहा है  । वस्तुओं के दाम बढ गए हैं । मंहगाई से त्रस्त हैं लोग ।बच्चों की आनलाइन स्टडी हो रही है  , जिसके अतिरिक्त चार्ज किए जा रहे हैं । कहने का तात्पर्य कि जेब पर हर ओर से कैंची । बचत कम होगी । व्यवसाय में तेजी नहीं होगी । प्रतियोगिता परीक्षा  नहीं हो पाने से  रोजगार प्रभावित होगा  । होटल - ढाबे  , पर्यटन , परिवहन व्यवसाय प्रभावित होगा  । इन क्षेत्रों जुड़े लोग नुकसान में हैं  । सरीया  - सीमेंट से जुड़े व्यवसायी , माॅल ,  ब्यूटी पार्लर  , बार्बर , रिपेयर - स्पेयर कार्य  ठप्प हो गए हैं  । ट्रक - बस आपरेटर , टैक्सी , निर्माण कार्य से जुड़े लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं  । शेयर मार्केट  , अर्थव्यवस्था कैसे सुधरेंगे , चिंता का विषय है  । रोड टैक्स  , इन्सोरैंस क्षेत्र  प्रभावित हुआ  ।
- अनिल शर्मा नील 
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
लाकडाउन के कारण छोटे, बड़े या खुदरा व्यापार हो हर वर्ग के व्यक्ति की आय पर एक बड़ा प्रभाव पड़ा है और व्यापार ही क्यों हर तरह की सरकारी या निजी कंपनियों में कार्यरत युवा वर्ग की आय में कटौती हुई है या बिना आय ही छुट्टीयों पर बैठना पड़ा है और इधर यदि सरकारी स्कूलों की या सरकारी विभागों की बात करें तो वहां भी आय में कटौती हुई है इस तरह तीन महीने पैसों में आई कमी ने घरों का सारा गणित बिगाड़ कर रख दिया है कई घरों में तो यहां तक देखा गया कि एक महीने के राशन को दो महीने में बांट कर पकाया व खाया जा रहा है इस प्रकार और बात भविष्य की करें तो हर वर्ग चिंता में हैं कि किस प्रकार घरेलू आर्थिक व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाया जाएगा जो आवश्यक खर्च हैं उनकी पूर्ति किस प्रकार होगी। 
और यहां बात है रियल एस्टेट की तो उसकी व्यवस्था तो बहुत ही प्रभावित हूई है क्योंकि यदि जेब में पैसा ही नहीं होगा तो आम आदमी खर्च क्या करेगा? और राज्य की अर्थव्यवस्था तो उद्योग पर टिकी है और उद्योग बाजार पर  व बाजार जनता पर तो वर्तमान में यही कहा जा सकता है कि हर क्षेत्र का वर्तमान डगमगा गया है और उस पर टिका भविष्य   को संभालना मुश्किलों में डाल रहा है।
- ज्योति वधवा "रंजना"
  राजस्थान - बीकानेर
दुनियाभर में कोरो ना के खिलाफ जंग जारी है । दिन भर में 10 बार 8 घंटे तो घर में बूढ़े -बच्चे और जवान भी सब का समय करोना की चर्चा में ही गुजर रहा है ।
आने वाले दिनों में मंदी की मार सब इन्हीं बातों से परेशान हैं आय की कमी से कई लोगों  को डिप्रेशन की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है ।
निकट भविष्य में कोरो ना संक्रमण व  आय   की कमी का संकट गहरा ता नजर आ रहा है ।
 लॉकडॉउन की वजह से भविष्य की योजनाओं पर प्रभाव तो पड़ेगा ही निश्चित है ।
      परंतु लॉक डाउन में हमने कुछ अच्छी शिक्षा  भी ग्रहण की है जैसे आ व श्यकता नुसार ही वस्तुएं  खरीदना  ,फालतू कार्यों में  दिखावा व फिजूलखर्ची बंद होना।
  बिना लोग डाउन के भी अधिकांश लोग  तो अपनी कम आय का रोना   पहले  से भी रोते आए हैं क्योंकि  सभी को अपनी आय पहले भी कम लगती थी अब तो स्थिति शोचनीय है। बेरोजगारी दर 27% घट गई है।
 दिहाड़ी मजदूर और छोटे व्यवसायों को काफी झटका लगा है  । कोरो ना संक्रमण ने ही कई करोड़  लोगो  की रोजी-रोटी छीन ली है ।   6 हफ्ते में तीन करोड़ लोगों ने जॉब्लेस क्लेम कर दिया है । 
         लॉ क डाउन  की वजह से  नौकरी पेशा व्यक्ति तो  अपने खर्च कम करके अपनी आय का कुछ अंश भविष्य के लिए बचत कर सकता है  परंतु  दिहाड़ी मजदूर भी लॉ क डाउन की वजह से भविष्य  में सुधार ला कर अपने जीवनस्तर में सुधार ला सकता है।
         परीक्षा की घड़ी है देश जरूर सफल होगा ,आत्मविश्वास के साथ देशवासी आत्मनिर्भर बनेंगे और सभी का भविष्य उज्जवल होगा।
 -  रंजना हरित           
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
लॉक डाऊन से विश्व के साथ साथ भारत में भी हरेक क्षेत्र पर विपरीत प्रभाव पडा है ।सभी की आय लॉक डाऊन की वजह से समाप्त हो चुकी है या आंशिक धन राशि ही पल्ले पड़ पाई ।
सबसे ज्यादा भुखमरी का सामना तो असंगठित क्षेत्र और मिडिल क्लास को झेलना पड़ रहा है ।एक तो उन्हें कोरोना काल में कर्फियु के दौरान रोजगार से वंचित कर दिया गया दूसरे उन्हें पगार भी नहीं दी गयी । उन्हें उनके हाल पर मरने को छोड दिया गया ।दूसरे सरकारी मदद गरीब और मजदूर-किसान वर्ग को दी गयी जिससे मिडिल क्लास की हालात बहुत खराब हो गयी और भुखमरी तक की नौबत आ गयी । अता इन वर्गों को आय की कमी के कारण भविष्य में भरी मुश्किलों से जूझना पडेगा ।।
     - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
लांक डाउन के कारण सभी के काम धंधे ठप पड़े हैं कोई नया सामान मैन्युफैक्चरिंग भी नहीं हो रहा है और बन भी नहीं रहा है तो लोगों को पेमेंट कैसे मिलेगी सभी सरकारी कर्मचारी पेंशनर के भी सभी के पेमेंट में से मंगाई भत्ता नहीं मिलेगा डेढ़ साल तक जब सभी के पास पैसा और पूंजी नहीं रहेगी तो मार्केट में कैसे पैसा आएगा सभी किसी तरह से अपनी गुजर-बसर करेंगे क्योंकि सभी को अपने बच्चों की फीस देना है और खाना खर्चा आदि को चलाना है वह सब कैसे चलेगा लोग जो उनके कारण वैसे ही सब घरों में बंद थे परेशानी है मजदूर परेशान होकर और इसी परेशानी और अफरातफरी में अपने घर और गांव को जा रहे हैं वह जहां घर गांव जा रहे हैं वहां पर भी तो खाने और पीने की समस्या खड़ी हो जाएगी पहले इंसान अपनी जरूरत की दाल रोटी की व्यवस्था करता है उसके बाद शौक अन्य सामान खरीदना है जब यह सब पैसा मार्केट में आएगा ही नहीं तो यह असर आर्थिक अर्थव्यवस्था पर तो जरूर पड़ेगा ऐसा पहली बार हुआ है कि एक साथ पूरा विश्व एक ही समस्या जूझता हुआ दिखाई दे रहा है अब तो सबको यही चाहिए कि हम स्वदेशी सामान ही खरीदेंगे अपने देश का बनाया हुआ सामान का ही इस्तेमाल करेंगे जैसे दवाइयों के लिए हमारे पास बहुत सारी आयुर्वेदिक औषधि मौजूद है नीम की दातुन तुलसी काढ़ा आदि से हम बहुत हद तक अपनी पैसे को बचा सकते हैं प्रतिरोधक क्षमता को बचाकर स्वस्थ रहेंगे तो हम आगे हर समस्या को लड़ सकेंगे और इस समस्या से हमने यही सीखा कि शरीर और स्वस्थ ही सच्चा धन है।
हेल्थ इज वेल्थ
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्यप्रदेश
उपभोक्ताओं के जेब खर्च के विश्लेषणों से ज्ञात हुआ है कि लॉक डाउन से भारत की 35% खपत पर प्रतिकूल असर पड़ा है l 
1. निकट भविष्य में निवेश की मांग नहीं होगी l 
2. वैश्विक विकास पर असर पड़ने से भारत के निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ेगा l 
3. श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने, अर्थ व्यवस्था को मदद के साथ उनकी आमदनी बढ़ाने के प्रयास करने होंगे ताकि वे सामान्य जीवन जी सकें l 
4. सामाजिक गतिविधियों और क्रियाकलापों के लिए सामान्य आमदनी को भी ऋण लेकर अपने कार्य करने पड़ सकते हैं l 
5. बेरोजगारी का आलम यह होगा कि भारत में 47 करोड़ मजदूरों में से एक करोड़ बेरोजगार होने की संभावना है l तो फिर आमदनी ही नहीं तो भविष्य में संभावनाएं कैसी? 
6. जिनके पास आय के साधन नहीं रहे हैं वे गरीब और गरीब हो जायेंगे विशेषतः दिहाड़ी मजदूर l 
      आपकी कमी का दूसरा पक्ष यह देखने को मिलेगा कि लोगों में मितव्यता की आदत पड़ेगी l फिजूल खर्चे रोककर बचत की तरफ अग्रसर होंगे l संकट से हम निज़ात पाकर सामान्य आर्थिक गतिविधियों के संचालन योग्य बनेंगे l अपने मनोबल को बनाये रखें l 
          चलते चलते -
मनुष्य वह है जो बाधा रूपी चट्टानों को तोड़कर गिरा देता है l संकटों से डरकर हट जाने से कभी कोई काम नहीं बनता l जिस कार्य को पूर्ण होने में कोई बाधा न आये वह उल्लेखनीय नहीं हो सकता l इसलिए बाधाओं का स्वागत करिये l वे आपको सफलता के रहस्य समझायेंगी l 
सावधान !आया तूफ़ान अब दूर नहीं है किनारा l 
अजगर बनकर गरज रहा है सागर बाधाओं का l 
दूर गगन पर चमक रहा है तारा आशाओं का l 
वीर बढ़ चलो, धीर बढ़ चलो 
चीर चपल जल धारा 
है डर कोई? 
कोई डर नहीं l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
आर्थिक मंदी से सभी कुछ प्रभावित होता है हर तरफ़ इसका असर पड़ता !भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे कमजोर आबादी यानी किसान, असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूर, दैनिक मजदूरी के लिए शहरों में पलायन करने वाले मजदूर और शहरों में सड़क के किनारे छोटा-मोटा व्यापार करके आजीविका चलाने वाले लोग.
दूसरा, भारतीय अर्थव्यवस्था में उत्पादन करने वाले यानी वह क्षेत्र जो इस देश में पूंजी और गैर-पूंजी वस्तुओं का उत्पादन करता है. सामान्य भाषा में कहें तो मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर या बिजनेस सेक्टर.
दुनियाभर की सरकारें इन दोनों ही पहलुओं पर काम कर रही हैं. सरकारों ने अपने देश में स्थिति से निपटने के लिए बड़े राहत पैकेज का एलान किया है और उसी क्रम में भारत सरकार ने भी गरीबों की मदद के लिए एक बड़े पैकेज का एलान किया है.
मिडिल क्लास को चर्चा का केंद्र बिंदु बनाना इसलिए जरूरी है क्योंकि अर्थव्यवस्था में जारी हर संकट के बीच मिडिल क्लास सबसे अधिक कमजोर होता है. सरकारों द्वारा जारी होने वाले राहत पैकेज में यह क्लास शामिल नहीं हो पाता है.
आर्थिक संकट की घड़ी में अक्सर मिडिल क्लास कमजोर होता है और उसका एक हिस्सा अर्थव्यवस्था में गरीब आबादी की तरफ शिफ्ट हो जाता है. वर्तमान में कोविड-19 का संकट भी कुछ ऐसा संकेत दे रहा है.
यह संभव है कि अधिकतर छोटी सैलरी पर काम करने वाला मिडिल क्लास इस संकट में अधिक कमजोर हो और वह लोअर मिडिल क्लास या उससे भी नीचे की श्रेणी की तरफ शिफ्ट हो जाए. आईएमएफ ने भी अपनी रिपोर्ट में इसी तथ्य का जिक्र किया है कि भारत का मिडिल क्लास सिकुड़ रहा है. इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि संकट के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था में मौजूद मिडिल क्लास की भी आर्थिक परिस्थितियों को प्रमुखता से ध्यान दिया जाए.

अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से तो यही सही होगा कि जारी आर्थिक संकट से निपटने के लिए इसकी बुनियाद को ईमानदारी से चुना जाए. वर्तमान जारी आर्थिक संकट से पहले ही भारत में एक बड़ी 'मांग आधारित आर्थिक सुस्ती' आ चुकी थी और अब यह मांग के साथ-साथ आपूर्ति आधारित सुस्ती का रूप धारण कर चुकी है.
वर्तमान की बात करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था एक गहरी संकट की तरफ बढ़ रही है. विभिन्न प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर के संदर्भ में जो आकलन जारी किए हैं, वे चिंताजनक हैं.
आर्थिक परेशानी आम जीवन में गहरा परिवर्तन लायेगी , पहले लोग पेट भरने की चिंता करेंगे बाद में सुविधाओं को देखेगे , बच्चों की फ़ीस , मकान का किराया लाईट बील की व्यवस्था ही अब मिडिल क्लास को भारी पड़ रही है । तकलीफ़ बहुत है , धीरे धीरे गाड़ी आयेगी पटरी पर 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
लोकड़ाऊंन की वजह से  बहुत ज़्यादा आर्थिक नुकसान हुआ है।आर्थिक मंदी हुई है।इस नुकसान की वजह से बहुत सारे लोगों की नौकरी खतरे में आ गई है,बहुतों की तनख्वाह कम कर दी गई है जिससे लोगों की क्रय शक्ति में कमी आएगी और उसका असर मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों पर पड़ेगा।रोज़ कमाने खाने वालों की स्थिति भी बिगड़ने के कारण गरीब और गरीब हो रहे हैं और इसका नकारात्मक असर समाज पर पड़ना निश्चित है।चोरी लूट जैसी वारदातें बढ़ेंगी।दुकान वाले अपनी आर्थिक घाटे को पूरी करने के लिए समान महंगे दामों पर बेचेंगे,मतलब महंगाई बढ़ेगी।आय की कमी के बहुत सारे दुष्परिणाम होंगे उदाहरणार्थ आर्थिक मंदी,नौकरी में कमी,चोरी लूट,महँगाई, गरीबी बढ़ेगी
                         -  संगीता सहाय
                           रांची - झारखण्ड
लॉक डाउन में अपनी आय की कमी से भविष्य की जो योजना थी अब सिमट कर राह गई है। इसको पूरा करने में काफी वक्त लग सकता है। आय की कमी से सभी सेक्टर बहुत पीछे चले गए है। इससे हम जो भविष्य में बढ़ने की योजना बना रहे थे।अब इसे पूरा करने के लिए बजट के अनुसार की कार्य कर सकते है। सभी लोग लॉक डाउन की वजह से कई कदम पीछे हो गए है लेकिन वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कम बजट का प्लान तय करना होगा।  और इसी को बढ़ाना होगा।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर -  छत्तीसगढ़
कामकाज पूरी तरह से बन्द होने के कारण आय के मार्ग बंद हो चुके है और अब तक जो भी जमा पूंजी लोगो के पास थी वो सब खर्च हो चुकी है , आलम ये भी है कि एक बड़ी संख्या में लोग कर्जदार भी हो गए है । लोगो की आय पर प्रभाव पड़ना तो लाजमी है और इसका दुष्प्रभाव कुछ इस तरह देखने को मिलेगा कि भविष्य में एक बड़ी संख्या में लोग कर्ज में डूबे मिलेंगे और जो इस कर्ज से एक लंबे समय तक जूझते मिलेंगे ।
इस त्रासदी के चलते अपनी आय में कमी भविष्य में लोगो को कर्जदार बना देगी , साथ ही समाज मे चोरी , डकैती , व लूट पाट बड़े स्तर पर बढ़ने का खतरा अपने चरम पर होगा । जिसे ज्ञानवान लोग बन्द आंखों से भी देख सकते है । ऐसा डरावना भविष्य देखने के बाद शायद ओर अनुमान लगाने की आवश्यकता नही है ।
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
लंबे समय से हम सब लॉकडाउन में जी रहे हैं। इस कारण हमारे काम धंधे बंद पड़े हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने स्तर अनुसार कमाई करता है। कोई दिन में ₹50 कमाता है तो कोई 50000 या इससे अधिक। लॉक डाउन की वजह से हमारी कमाई में विराम लग गया है। निसंदेह यह हमारे भविष्य को अवश्य प्रभावित करेगा। उन्नति की राह में हम सब पिछड़ जाएंगे। क्योंकि जब तक हमारे कमाई के साधन रुके रहेंगे तब तक हमें अपनी जमा पूंजी से घर चलाना पड़ेगा। यह हमारी सुख समृद्धि व जीवन स्तर को गहरे तक प्रभावित करेगा। कर्जदा रों को कर्ज चुकाने में अतिरिक्त समय लगेगा। रोजगार की उम्मीद लगाए बैठे लोगों को बहुत बड़ा धक्का लगेगा। कई युवा निश्चित आयु सीमा समाप्ति के कारण प्रतियोगी परीक्षाओं से बाहर हो जाएंगे। रोजगार में कमी के कारण मनुष्य में मानसिक तनाव बढ़ेगा।
आज लॉकडाउन के कारण मनुष्य की प्रगति रुक गई है। जिसका सीधा असर हमारे भविष्य पर पड़ना निश्चित है। व्यापार इतनी जल्दी नहीं उठेंगे। धीरे-धीरे उन्नति होगी। परिणाम स्वरूप कामकाज के तरीके धीमे पड़ जाएंगे। यह सब हम सब को झेलना पड़ेगा।
- केवल सिंह भारती
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
लाकडाउन की वजह से आमदनी में हुई कमी ही क्या,हर कमी का प्रभाव भविष्य पर पड़ता ही है और पड़ेगा। आमदनी, तो मानव जीवन को सीधे-सीधे प्रभावित करती ही है। आमदनी में कमी होने से आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति में तो कटौती नहीं की जा सकती। हां,आमदनी को बढ़ाने के विकल्पों पर कार्य किया जा सकता है। अपने अनावश्यक खर्चों में कटौती की जा सकती है।लग्जरी आइटम,महंगे कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम, घूमना फिरना,बाहर खाना पीना,मनोरंजन आदि पर होने वाला खर्च बंद किया या घटाया जा सकता है। जीवन की मूलभूत आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान के खर्च में तो कोई कटौती संभव नहीं। हां, कुछ काम इसमें हो सकते है जैसे दिन में लाइट का अनावश्यक उपभोग बंद करना।यह हम कर सकते हैं और लाकडाउन ने यह सिखा भी दिया है। समाज में शादी में 50 और मृत्यु में 20 से अधिक लोगों को शामिल न करने की बंदिश ने दिखावे और बहुत तरतीब खर्च की प्रवृत्ति पर रोक लगा दी है। बड़ी मीटिंग,सम्मेलन,आयोजन अब आनलाइन विभिन्न एप्स के द्वारा हो रहे हैं।
इस लाक डाउन का असर सभी की आमदनी पर हुआ है तो सभी के खर्च करने की क्षमता भी प्रभावित हुई है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -  बिजनौर
लाॅकडाउन की वजह से उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग एवं निम्न आय वर्ग की आर्थिक स्थिति में कमी प्रत्यक्ष दिखाई दे रही है और भविष्य में भी प्रथम पायदान से लेकर अन्तिम सीढ़ी तक के कारोबारियों/कर्मियों की आय में फर्क पड़ना जारी रहेगा क्योंकि कोरोना ने अर्थव्यवस्था पर जो प्रभाव डाला है उससे उबरने में समय तो लगेगा ही। 
इस फर्क के कारण मनुष्य की प्राथमिकताएं बदल जायेंगी। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु अनेक भौतिक खर्चों पर लगाम कसी जायेगी, जिसका सीधा प्रभाव बाजार और उससे जुड़े हुए लोगों पर पड़ेगा। लाॅकडाउन ने यह भी समझाया है कि ऐसी किसी विषम परिस्थितियों के लिए 'बचत' कितनी आवश्यक है इसलिए मनुष्य में भविष्य हेतु 'बचत' की प्रवृत्ति में वृद्धि होगी।
सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन में दिखावे की प्रवृत्ति हमारे समाज में बहुतायत रूप में पाई जाती है परन्तु लाॅकडाउन में बिना किसी दिखावे और ताम-झाम के सार्वजनिक और व्यक्तिगत कार्य सम्पन्न हुए हैं और मेरे विचार से यह भविष्य में भी जारी रहेगा। 
मेरे दृष्टिकोण में जीवन के उतार-चढ़ाव के मध्य आय में कमी या वृद्धि मनुष्य जीवन का एक अंग है परन्तु परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालने की शक्ति भी मनुष्य को प्राप्त है। इसलिए विभिन्न प्रभावों को स्वीकार करते हुए मानव जीवन पुन: विकास के मार्ग पर अग्रसर होगा। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना वायरस की वजह से लाॅकडाउन ओर इसी की वजह से ही आ रही तमाम सम्सायें ओर वह भी रह क्षेत्र में रह कारोबार पर ओर हर वर्ग को इसका नुकसान का सामना करना होगा अपनी आय की कमी भी नजर आने लगी हैं अब मुझे ही लो मैं एक प्रायवेट कम्पनी में 29 वर्षो से काम कर रहा हु कम्पनी भी अछ्छी चल यही है विगत 10-12 वर्षो से कम्पनी लाभ में हैं किन्तु इस लाॅकडाउन में अप्रेल माह में आधा वेतन या न्युनतम वेतन 7220₹ ही दिया गया हैं ओर लाअॅकडाउन के नुकसान का रोना धोना चालु हो गया है अब तिन चार वर्षो मे वेतन वृद्धी समझौता होगा क्या देगी आप खुद समझ सकते हैं? की मजदूरों ओर गरीबो पर क्या मार पढ़ने वाली हैं भविष्य तो युही अंधकार मय रहा हैं ओर  लाॅकडाउन ने इसे ओर घौरअंधकार मय कर दिया हैं वर्तमान 14550₹ मैं चल रहा हैं आप खुद सोच सकते हैं मेरा ओर मेरे समान मेरे मजदूर भाइयों क्या भविष्य होने वाला हैं।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
     सर्वाधिकार पूर्व में विस्तार पूर्वक था, अपनी-अपनी इच्छानुसार जीवन यापन कर रहे थे, अनेकों-अनेकों प्रकार के कार्यों में आय से अधिक रुपयों को खर्च कर शान-शौकत की ओर पूर्णतः अग्रसर हो चुका था। कईयों की तो  ऊपरी आय थी, कई तो सीमित संसाधनों के कारण तरह-तरह के कर्जा लेकर, कर्जमय हो गया था, जिसे चुकाने के लिए चिंतामय डूबा हुआ था।  एक समय तो ऐसा आ गया जब कर्ज पटाने रुपये भी नहीं बचे?  आज वर्तमान परिदृश्य में आय का महत्व कोरोना महामारी के कारण  समझ में आया रुपयों का मूल्यांकन? 
जैसे ही असमय लाँकडाऊन घोषित किया गया, किसी ने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी समय आयेगा जब आय ही सीमित रह कर, रह जाये और भविष्य में जो योजनाओं को क्रियान्वित किया था, वह धड़कन में धरकता रह जाये क्योंकि जैसे ही लाँकडाऊन पूर्णतः खुलेगा, वैसे ही मंहगाई चरम सीमा में पहुँच जायेगी, वैसे भी  खर्चीला मय जीवन रह चुका हैं? साथ ही शासन-प्रशासन द्वारा मूल वेतन के अतिरिक्त जो मंहगाई भत्ता,  वार्षिक वेतन वृद्धि, भविष्य निधि, पार्ट फाइनल आदि पूर्णतः  प्रतिबंधित कर दिया हैं। दूसरी ओर ध्यान केन्द्रित किया जायें, तो व्यापार की व्यवस्था भी चौपट हो चुकी, निम्न वर्गों की हालत गंभीर हो चुकी, यानें जो भी संकट आयें परिस्थितिवंश सहन करता चला जायें, आज भी आर्थिक जंजीरों से जकड़ा हुआ हैं? मात्र उच्च वर्ग ही भव्यता की ओर अग्रसर हैं? फिर वही विचार मंथन भविष्य में बैंकों से कर्ज लेकर आहूत दें?  भविष्य में मंहगी बच्चों का शिक्षण सत्र, जीवन के मायानगरी में आवश्यकता ही जीवन दायिनी वस्तुओं को क्रय करने में परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।कुल मिलाकर जन जीवन को जीवित रखना चाहते हैं तो भविष्य में सीमित संसाधनों के बीच जीवन को पुनः जीवित अवस्था में पहुँचा होगा?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
 बालाघाट - मध्यप्रदेश
आगे का जीवन आम आदमी का बहुत कठिन होने वाला है। जब तक जेब में पैसा है सब ठीक ठाक चलता रहेगा। इधर एक प्रचलन सा हो गया है। खेती किसानी से जुड़े लोग भी जो खासकर यूपी, बिहार तथा भारत के अन्य राज्यों से हैं।खेत में फसल लगाकर गांव से बाहर निकल जाते हैं ताकि दो पैसे कमा सकें और जब फ़सल तैयार होते ही गांव की ओर लौटना शुरू कर देते हैं। लाॅकडाउन के बाद जो जत्था गांव की ओर रवाना हुए थे। उनमें से अधिकतर ग्रामीण मजदूर अपने फसलों की कटाई के लिए जा रहे थे। चुकी गेहूं और मक्के की फसल तैयार होने वाली थी। मैं भी जाना चाह रहा था पर जा नहीं पाए। आजकल खेती किसानी घाटे का सौदा है। जितनी लागत लगाते हैं उसका आधा भी ठीक से नहीं निकल पाता। इसलिए किसान लोगों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रहती। शहर में भी कमोवेश यही स्थिति है। जिनके पास संसाधन हैं वे अपना जीवन अच्छे से बसर करते हैं। जिनके पास अभाव है वो मेहनत मजदूरी करके अपना पेट पालते हैं। लाॅकडाउन करीब करीब हर आदमी को अपने आगोश में ले लिया है।स्थिति संभलने में अभी काफी वक्त लगेगा। हां लोगों को इस लाॅकडाउन में मितव्ययिता सीखा दिया है।लोग अब कम पैसों में भी गुजर बसर कर लेंगे।
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुरुग्राम - हरियाणा
      भविष्य का क्या कहें कि वर्तमान दांव पर लग गया है। चूंकि 12 मई को भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में आत्मनिर्भर बनने के लिए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी। जो विशेष रूप से कोरोना महामारी और लाॅकडाउन से प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए था। जिसका लक्ष्य किसानों, श्रमिकों एवं मध्यम वर्ग के लोगों सहित समाज के समस्त प्रभावित वर्गों और क्षेत्रों को राहत देना था।
      सर्वविदित है कि उक्त संबोधन में माननीय प्रधानमंत्री जी ने देशवासियों से लोकल के लिए 'वोकल' बनने का आह्वान किया था। उन्होंने पूरे विश्वास से आशा जताई थी कि हमारा देश और देशवासी ऐसा करने में सक्षम है।
      उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री जी के विश्वास में विश्वास प्रकट करते हुए उनके समर्थन में मैंने भी अपनी एक एकड़ जमीन में मछली पालन का मन बनाया और प्रधानमंत्री जी को 16 मई 2020 को प्रार्थनापत्र भेज दिया था। जिसे पत्रांक PMOPG/E/2020/0423772 अंकित करते हुए उसी दिन जम्मू-कश्मीर सरकार को भेज दिया। जिस पर उप-राज्यपाल के नेतृत्व वाली सरकार ने कार्रवाई करते हुए पत्रांक 999001394936 के अंतर्गत दिनांक 20-05-2020 को मछली पालन विभाग को शीघ्र उचित कार्रवाई हेतु भेजा। जिस पर मछली पालन विभाग हरकत में आया और मेरी जमीन को मछली पालन के लिए उपयुक्त पाया। जिसके बाद तीन सदस्यीय समिति ने जांच की और मौखिक रूप से उपयुक्त भूमि को अनुपयुक्त बता दिया।
      उक्त कार्रवाई के लिखित विवरण हेतु जब मैंने समिति से मांग की तो उन्होंने बताया कि वह अपने कार्य विवरण को जिला अधिकारी के पास जमा करवा चुके हैं। जब उनसे पूछा तो वह धारा 370 टूटने से पहले की भांति क्रोधित हो गए। उन्होंने अभद्र भाषा प्रयोग करते हुए मुझे ही नहीं बल्कि उपराज्यपाल और प्रधानमंत्री जी के लिए भी असंसदीय/असंवैधानिक शब्दों का प्रयोग करते हुए कहा कि '20 लाख करोड़ का पैकेज मात्र राजनैतिक ड्रामा है'। जिसे मानने के लिए वह बाध्य नहीं हैं। जिसकी निष्पक्ष जांच हेतु मैंने प्रधानमंत्री जी को प्रार्थना-पत्र भेज दिया था। जिसे पुनः जम्मू-कश्मीर सरकार के पास कार्रवाई हेतु भेजा गया है।
      अतः यदि मछली पालन विभाग के जिला अधिकारी, जो सहायक निदेशक के पद पर कार्यरत हैं, उक्त पैकेज को 'राजनैतिक ड्रामे' की संज्ञा दे रहे हैं। तो ऐसे में प्रधानमंत्री जी के पैकेज एवं लोकल के लिए वोकल का सपना संजोए कृषक का इससे बड़ा अपमान क्या होगा?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
लाॅकडाऊन की वजह से अपनी आय की कमी से भविष्य में पड़ने वाले प्रभाव को अनेक परिदृश्यों में देखा जाना चाहिए।  आय के स्रोत भिन्न-भिन्न होते हैं। मुख्य रूप से दो - व्यापार और नौकरी।  व्यापार अनेक प्रकार के हैं - उद्योग से लेकर होलसेलर तथा रीटेलर। उद्योग में कृषि जगत से लेकर हर प्रकार की औद्योगिक गतिविधियां।  लाॅकडाऊन की वजह से पूरी कड़ी प्रभावित हुई है। औद्योगिक गतिविधियां श्रमिकों के सहारे चलती हैं। लाॅकडाऊन में बहुत सारे श्रमिक अपने अपने स्थानों पर लौट गए हैं या लौटने की प्रक्रिया में हैं। उनके प्रवास के कारण सभी जानते हैं। जिन मुश्किलों का सामना उन्होंने किया है उनसे सभी परिचित हैं लेकिन वे भी लाचार हैं। जिन श्रमिकों को रहने का खाने का कोई आधार मिला है वह वहीं रुक सकने की हिम्मत जुटा पाया है।  इस उथल पुथल में सम्पूर्ण व्यवस्था चरमरा गई है। आर्थिक गतिविधियों पर लाॅकडाऊन की वजह से जो विराम लगा उसने अर्थव्यवस्था के चक्के जाम कर दिये। लाॅकडाऊन खुलने की अवस्था में आधी-अधूरी सुविधाओं के साथ अर्थव्यवस्था की गाड़ी चलाना दुष्कर कार्य है। इन सभी बातों का सीधा-सीधा प्रभाव व्यक्तिगत आय पर पड़ेगा।  चाहे धनाढ्य वर्ग हो, मध्यम आय वर्ग हो, निम्न आय वर्ग हो अथवा गरीबी की रेखा से नीचे रह रहा वर्ग हो। सबसे पहली आवश्यकता आय अर्जन की है । धनाढ्य वर्ग को छोड़कर बाकी वर्गों के लिए प्राथमिकता उत्तरजीविता अर्थात् सर्वाइवल की है।  आय की कमी का प्रत्यक्ष प्रभाव इन वर्गों पर पड़ेगा। अपनी आय की कमी से सोच में जबर्दस्त बदलाव आयेगा। विलासिता से टूटा नाता अभी नहीं संभलेगा। व्यापार में मंदी फिर बंदी, नौकरी खोने का डर, असुरक्षा का माहौल ये सभी बातें प्रभावित करेंगी। आय अर्जित करने के माध्यमों में डिजिटल युग क्रांति लाने में सक्षम है।  इस क्षेत्र के अनुभवी लोगों से मेरा निवेदन है कि वे जरूरतमंद लोगों का इस दिशा में उचित मार्गदर्शन करें जिससे वे धनार्जन के प्रयास करते हुए किसी के जाल में न फंसें।  केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों से भी यह वांछित है कि आयु वर्ग को बिना ध्यान में रखते हुए वे न्यूनतम डिजिटल कौशल वाले हर आयु वर्ग के बेरोजगारों को भी आय अर्जित करने के साधनों के बारे में मार्गदर्शन करे तथा हो सके तो कुछ इस प्रकार के रोजगार प्रदान करें जो घर से बैठे किये जा सकें। यदि आय अर्जन आरम्भ हो जाता है तो कम से कम कुछ तो भरपाई होती रहेगी अन्यथा अपनी आय की कमी से भविष्य में कुप्रभाव होने निश्चित हैं। समय रहते चेतना होगा और भविष्य सुरक्षित करना होगा। 
-सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
भविष्य की आर्थिक गतिविधियों को लेकर अभी अनिश्चितता है। एक अध्ययन के मुताबिक भविष्य में यह गतिविधियां लॉकडाउन की अवधि, वैश्विक मंदी और उपभोक्ताओं के व्यवहार में आए बदलाव से ही तय होंगी। डन एंड ब्रैडस्ट्रीट (डीएंडबी) के ताजा आर्थिक अनुमान में कहा गया है कि उपभोक्ता के व्यवहार या रुख में बदलाव से यह तय होगा कि इस महामारी को काबू पाने के बाद कौन से क्षेत्र तेजी से आगे बढ़ेंगे।
लॉकडाउन से करोड़ों लोगों की की नौकरी जाने की नौबत आ गई है। कहा जा रहा है कि लॉकडाउन गरीबों और खासकर मजदूर वर्ग के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। एक गैर सरकारी संगठन (NGO) जन साहन द्वारा कराए हालिया सर्वे के मुताबिक देश में पिछले तीन हफ्तों में करीब 90 फीसदी मजदूर अपनी आय के साधन खो चुके हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की वजह से बेरोजगार हुए निर्माण क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों को मुआवजा देने की घोषणा की है। लेकिन इसमें से ज्यादातर श्रमिकों के लिए मुआवजा लेना आसान नहीं होगा।
कोरोना संकट की मध्यम खराब स्थिति में वैश्विक स्तर पर आय और खपत में 10 फीसदी की कमी होगी और भारत के करीब 5 करोड़ नए लोग गरीबी रेखा से नीचे आ जाएंगे। वहीं कम से कम खराब स्थिति में 2.5 करोड़ नए लोग गरीबी रेखा से नीचे आए जाएंगे। वैश्विक स्तर पर गरीबी इन्हीं पैटर्न के आधार पर बढ़ेगी। रिसर्च के मुताबिक इस महामारी का सबसे ज्यादा असर साउथ एशिया में निम्न और लोअर मिडिल आय वर्ग वाले देशों पर पड़ेगा। रिसर्च में अनुमान जताया गया है कि वैश्विक स्तर पर पैदा होने वाले नए गरीबों में से दो-तिहाई सब-सहारा अफ्रीका और साउथ एशिया के नागरिक होंगे।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने इस माह की शुरुआत में भारत में रोजगार पर एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक भारत की कुल वर्कफोर्स 50 करोड़ है जिसका 90 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र से है। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि इस कोरोना संकट के कारण 40 करोड़ से ज्यादा कामगार और गरीब हो जाएंगे। रिपोर्ट में ऑक्सफोर्ड कोविड-19 गवर्नमेंट रेस्पॉन्स स्ट्रिन्जेंसी इंडेक्स के हवाले से कहा गया है कि भारत में कोरोना संकट से निपटने के लिए अपनाए जा रहे लॉकडाउन जैसे उपायों से यह कामगार मुख्य रूप से प्रभावित होंगे। इन उपायों के कारण अधिकांश कामगार अपने गांवों को लौटने के लिए मजबूर हो जाएंगे। यदि आईएलओ का अनुमान सही रहता है तो असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ेगी जिससे पर-कैपिटा आय और खपत में कमी होगी। इसी बात का जिक्र यूएनयू के अनुमान में किया गया है।
सरकारी रिपोर्ट भी बड़ी भयंकर स्थिति बता रही है   , हर आदमी अमीर हो या गरीब आर्थिक मंदी का शिकार हो रहा है नौकरियाँ चली गई व्यवसाय बंद हो गये अब करे तो क्या करे कितनी कटौतियाँ करें .  दो वक्त खाना भी न मिले तो क्या करेगा । हर तरफ़ आर्थिक मंदी से लोग परेशान है .क्या क्या कटौती करे गा  , समझ नहीं आ रहा है कुछ बेसिक जरुरते तो रोज़ है है न उनको पुरा करने की समस्या तो है ही .... 
आम आदमी की तो कमर टूट गई है हर तरफ़ उसे निराशा ही नजर आ रही है , पर वह हिम्मत से कोरोना , और लाकडाऊन की वजह से आर्थिक परेशानी से सभी लोग परेशान है सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है जीने के तरीक़ा उसी को बदल दिया है ..
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
आय की कमी से बहुत कुछ प्रभावित होगा सबसे पहले तो फिजूलखर्ची रुक जाएगी।
लोग पैसे का महत्व समझेगे।2 महीने के लॉक डाउन ने हमे हमारी औकात बता दी है।2 महीने में ही हम में से कईयों की आंखे निकल आईं हैं।जबकि हालात ये है कि सरकार की तरफ से खाने पीने के इंतेज़ाम राशन की दुकानों के माध्यम से किया गया है। नाना प्रकार की आर्थिक सहायता डायरेक्ट खातों में डाली जा रही है।
सही मायनों में अगर बोलू तो आय की कमी से इंसान उत्तने परेशान नही है जितना स्वतंत्रता खत्म होने से।मौज मस्ती बन्द होने से है।अगर आय कम हो गयी है तो व्यय भी बहुत कम हो गए हैं।सरकार ने कई तरह की राहत लोगों को दी है। लेकिन अब हमें ये समझना होगा कि आत्म अनुशासन का पालन करना कितना जरूरी है। 4 पैसे कमा रहे हैं तो कम से कम 1 पैसा तो बचाना सीखिए।वरना अगर अब भी नही समझ पा रहे तो ये दुनिया और कुदरत माहिर है बहुत अच्छे से समझाने के लिए।
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
यदि महज विषय पर जाएँ तो 'लॉकडाउन' वजह से सभी की आय में कमी आई है और इसका भविष्य में भी काफी असर पड़ने वाला है।जो काफी लंबे समय तक भी रहेगा।इसे अगर थोड़ा सा समझने का प्रयास करें या देखने का प्रयास करें तो इसे दो पक्षों में देखा जा सकता है।प्रथम  वो जो गैरसरकारी या प्राइवेट नौकरी में हैं और दूसरा वे लोग जो सरकारी मुलाज़िम हैं या सरकारी नौकरियों में हैं।
         अब जो प्राइवेट नौकरियों में थे उनकी आय को सबसे ज्यादा असर पड़ा है।फिर खबरें चाहे कुछ भी हों कि उनका बेतन नहीं कटेगा वगैरह-वगैरह।अगर किसी को मिला भी है तो कटौती करके मिला है।क्योंकि ज्यादातर कारोबार बंद पड़े थे।हाँ आई टी कंपनीज़ में कार्य करने वालों की स्थिति फिर भी बेहतर है क्योंकि इन लॉकडाउन के दिनों में उन्होंने अच्छा कार्य किया है।इसका प्रमाण या पुष्टि इससे हो जाती है कि पूरी दुनिया इंटरनेट और ऍप्लिकेशन्स पर ही निर्भर हो चुकी थी।ऐसे में उनकी बाज़ार से वस्तुएं ख़रीदने या इन्वेस्टमेंट की सोच भी बदलेगी।अब वो रोजमर्रा के जीवन को पहले पटरी पर लाने का प्रयास करेगा।बच्चों की पढ़ाई,घरेलू अतिआवश्यक चीजें,स्वास्थ से सम्बंधित चीजें आदि।फिर उसे दिमागी तौर पर भी जरा प्रेशर रहेगा कि पीछे की भरपाई करके  आगे का लक्ष्य भी पूरा करना है।
         अब अगर दूसरी तरफ देखें तो सरकारी नौकरी वालों को कम ही सही पर असर तो पड़ा है।फिर चाहे वो थोड़ा बहुत दान की पूंजी हो या कुछ अन्य।ऐसे में सोच तो उसकी भी बदलेगी क्योंकि तनख्वाह उतनी ही रहेगी और बाजार में दामों में ऊचांई होगी।अर्थात वो भी बड़े इन्वेस्टमेंट करने से ज्यादा खुद को आर्थिक रूप से तैयार करने और आज के जीवन को जीने पर ज्यादा विस्वास करेगा।
     अर्थात चाहे कोई भी हो लॉकडाउन की वजह स्व आय में आई कमी से सभी का भविष्य या भविष्य में सभी प्रभावित होने वाले हैं।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
कोरोना काल मे लॉकडाउन में करोड़ो लोगों की रोजी-रोजगार
छीन गया है। बड़े शहरों में काम करने वाले लगभग 60 लाख प्रवासी मजदुरों को रेलवे द्वारा उनके गृह राज्य पहुंचाया जा चुका है, क्योंकि काम नहीं रहने के कारण इन मजदूरों के समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इसके साथ ही जो लोग अपने राज्यों में निवास कर काम करते हैं, उनका भी कमाई का जरिया पिछले 25 मार्च से लॉकडाउन के कारण बंद है। मजदूरों के साथ व्यापार चलाने वालों की भी स्थिति खराब है।लॉकडाउन की वजह से अपनी आय की कमी से भविष्य में बहुत कुछ प्रभावित हो जाएगा। सबसे पहले तो परिवार चलाने के लिए राशन सामग्री हर हाल में जरूरी है। इसके साथ ही गैस सिलेंडर, दूध, सब्जी, अंडा राशन का साथ जरूरी है। साथ ही मांसाहारी में मुर्गा, मटन, मछली। जब आय की कमी होगी तब इन सामग्रियों में कटौती करनी होगी। घर मे बच्चों की पढ़ाई में भी परेशानी उठानी पड़ेगी। पर इसमे तो किसी भी तरह की कटौती नही की जा सकती है। बच्चों का स्कूल, टयूशन फीस, बस किराया, स्कूल ड्रेस, कॉपी-किताब का खर्च किसी भी तरह से उठाना होगा। इसके साथ ही परिवार के लिए खाने-पीने को छोड़कर जरूरत के समान है। जो व्यक्ति मकान, फ्लैट, डुप्लेक्स, वाहन, इलेक्ट्रॉनिक समान या अन्य सामान जिसे बैंकों से लोन के माध्यम से लिया है उसका हर माह किस्तों के भुगतान में परेशानी उठानी पड़ेगी। आय की कमी के कारण सबसे प्रभावित मध्यम वर्ग के लोग होंगे, क्योंकि इनको तो सरकार के तरफ से भी किसी तरह का सहयोग नही मिलनेवाला है। जबकि गरीब और हरिजन-आदिवासी वर्ग के लिए सरकार की ओर से बहुत कुछ सहयोग मिल रहा है, जिसमे अब तक 3 माह का राशन, गैस सिलेंडर मिल चुका है। इनके बच्चों की शिक्षा के लिए फीस तो माफ है ही। उनको स्कूल में मिड डे मिल योजना के तहत खाना भी मुफ्त में मिलता है। सरकार इन बच्चों को कॉपी किताब भी मुफ्त में देती है। दूसरी तरह देखा जाय तो कोरोना संक्रमण के केश बहुत ही तेजी के साथ बढ़ते ही जा रहे हैं, जिसका प्रमुख कारण मजदूरों व आम लोगों का बड़े शहरों से अपने राज्य, शहर व गांव में आना बताया जा रहा है। पिछले 24 घंटे में कोरोना के नए  केश 8,406 मिले हैं, जबकि 279 मरीजों की मौत हुई है। देशभर में कोरोना संक्रमितों की संख्या  1 लाख 76 हजार 792 तक पहुँच गई है। इस परिस्थिति में लोगों को रोजी रोजगार के साथ साथ अपने को सुरक्षित रखनी की भी चुनोती होगी। लोग अपनी आय की कमी से भविष्य में महीनों तक प्रभावित रहेंगे।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
आज का विषय है लॉक डाउनलोड के समय आय में कमी होने से भविष्य क्या प्रभावित होगा 
लॉक डाउन के समय आय में भारी कटौती की गई है जो वेतन भोगी हैं सरकारी मुलाजिम हैं उनके लिए तो सारा समय एक जैसा रहेगा लेकिन जो फ्रीलांसर है या जो प्राइवेट कंपनियों में काम कर रहे हैं या जो दैनिक आय पर निर्भर हैं उन्हें तो भविष्य की रूपरेखा अलग बनानी होगी
आधुनिक समय में रहन सहन या जीवन शैली में एक ऐसा उछाल आ गया था कि शरीर छोड़कर हर चीज ईएमआई पर है चाहे व्यापारी हो व्यवसाई हो या वेतन भोगी हो सभी जिंदगी की शुरुआत में ही अपनी सारी जरूरतों को साल 2 साल में ही पूरा कर लेते हैं उस उसे पूरा करने का एक नया तरीका वर्तमान समय में बैंकों द्वारा दिया गया है क्रेडिट कार्ड जिसमें आपको यह अधिकार दिया जाता है कि एक निश्चित राशि तक आप अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए खर्च कर सकते हैं और खर्च किए हुए अमाउंट को बैंक आपके बीटन से हर महीने काटती रहती है इंसान किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता है बल्कि बैंक में यह सुविधा प्रदान कर दी है आवश्यकता पड़ने पर या बिना आवश्यकता पर ही इच्छा होने पर लोग बड़े आसानी से चीजों को खरीद लेते हैं और घर की शोभा बढ़ा लेते हैं एक और से या गुणकारी भी है और दूसरी ओर से हानिकारक भी है जब पैसे कटने लगते हैं तो उस समय महसूस होने लगता है क्यों ऐसा किए पश्चाताप होता है लेकिन तब तक तो इतनी देर हो चुकी रहती है कि इंसान एक जाल में उलझ गया रहता है फिर पूरा करते-करते उसका आत्मविश्वास इतना मजबूत हो जाता है कि पैसा अगले सामान के लिए भी उपलब्ध कर लेता है तो जहां खूबी है वहां कमियां भी होंगी
वर्तमान परिस्थिति में लॉक डाउन के कारण बहुत सारे कंपनियों में फिलहाल कुछ समय के लिए ताले बंद हैं और आमदनी का स्रोत ठप हो गया है साथ ही साथ मार्केटिंग विभाग में भी गिरावट आ गई है जिसके कारण प्राइवेट कंपनियों के कर्मचारी ऑफिसर अन्य लोगों को पगार के तौर पर जीवन जीने के अनुसार की वेतन मुहैया
कराया जा रहा है इसके अतिरिक्त कितनी की तो नौकरी ही खत्म हो गई है अभी सब कुछ अकल्पनीय है इसलिए भविष्य का भी कोई योजना बनाना यथेष्ट नहीं लग रहा है।
वर्तमान समय में दो चीज की प्रधानता दी गई है जीवन जीने की और बचत करने की इन दोनों के माध्यम से भविष्य की रूपरेखा में बदलाव आ सकता है
घूमना फिरना, शौक का सामान खरीदना, फैशन के अनुसार कपड़े की खरीदारी एक खास वर्ग के लिए टेढ़ी खीर हो गई है
जो पूंजीपति हैं उनके जीवन में शायद इतना उतार-चढ़ाव नहीं आ रहा है क्योंकि उनके पास पूर्व से ही बचत के पैसे रखे हैं
मध्यम वर्गीय परिवार के लिए वर्तमान को सुरक्षित करना ही मुश्किल हो रहा है क्योंकि पूर्व में वह अपनी आवश्यकताओं को इतना अधिक बढ़ा चुके हैं कि उन्हें फिर वापस आना थोड़ी मुश्किल की बात बन गई है लेकिन समझदार ओं के लिए इशारा ही काफी है और मध्यम वर्गीय परिवार काफी हद तक स्वयं को संभालने में एकजुट हो गए हैं
निम्न आय वाले के लिए तो रोटी जुटाना ही मुश्किल हो रहा है उनके हर दिन के बाद एक समस्या बनी रहती है कल क्या होगा तो मुश्किल है सभी के साथ हैं सभी अपने अपने तरीके से उसे सुलझाने की कोशिश में है समय निकल जाएगा और एक अच्छा समय आने वाला है इस उम्मीद में वर्तमान वर्तमान संघर्ष को झेलने में कामयाब हो रहे हैं
भविष्य पर प्रभाव अवश्य पढ़ रहा है पर हम इसे नकारात्मक रूप में नहीं स्वीकारें कुछ समय बाद फिर अच्छे दिन वापस आएंगे और भविष्य उज्जवल होगा
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
लेखक ने आय के स्रोत वाले समाज को 4 भाग में बांट रहे हैं।
1) अमीर समाज यानि(पूंजीपति)
2) शुद्ध वेतन भोगी समाज
3) बाजार आधारित समाज
4) दैनिक रोजगार( कमाने) वाले समाज
1) आमिर समाज यानी उद्योग चलाने वाले:- इनके बाजार में पूंजी रुक जाएगा जिसके कारण उद्योग सुचारू रूप से चलाने में कठिनाई होगा। इन्हें सरकार से सहायता रूप में ऋण कीआवश्यकता हो गयी।
साथ ही साथ बाजार में मांग नहीं रहने पर मूल्य में गिरावट करना होगा जिससे फायदा का प्रतिशत कम होगा भविष्य में लग्जरी गुड्स का मूल्य कम होगा।
पूंजीपति लोग इस महामारी से प्रभावित होंगे।
2) शुद्ध वेतन भोगी समाज:- प्रत्येक परिवार मैं दो तरह का खर्च होता है:- घरेलू खर्च, शौक की खर्च। घरेलू खर्च में कोई कटौती नहीं करेंगे। शौक के खर्च:- भ्रमण( सैर सपाटा) होटल, रेस्टोरेंट,फास्टफूड लग्जरी वस्तुएं डिजाइनर ड्रेस कॉस्टली गिफ्ट इत्यादि पर रोक लगा देंगे। इस पैसे को भविष्य के लिए सुरक्षित रखेंगे। जो वेतन भोगी प्राइवेट जॉब में है वे लोग ज्यादा सतर्क रहेंगे उनका भविष्य गर्भ में है।
3) बाजार आधारित समाज:- समाज को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ेगा। क्योंकि बाजार वेतन भोगी के सहारे चलता है और वेतन भोगी के आय में परिवर्तन, धन के वितरण में परिवर्तन, रुचि,फैशन में परिवर्तन तथा ऋतु परिवर्तन को ध्यान में रखेंगे। इसको समझ में उनके पास है भविष्य में वस्तु की पूर्ति कमी होने पर मूल्य की गिरावट होना निश्चित है। अभी मांग कम है लेकिन भविष्य में लग्जरी बस में फैशन के कपड़े मे लागत और फायदा के बीच का प्रतिशत कम करके आएगा तो बाजार धीरे धीरे आगे की ओर अग्रसर होगा। अतः बाजार आधारित समाज को वेट एंड वॉच करना होगा।
4) दैनिक रोजगार के समाज:- समाज में वकील डॉक्टर एवं असंगठित कामगार इत्यादि हेलो पर ज्यादा असर पड़ेगा दैनिक खर्च करने के बाद भविष्य के लिए बचत करना आवश्यक होगा।
अंत में इस लॉक डॉन से समाज को एक फायदा मिला कि भविष्य  के लिए सचेत रहें।
- विजेंयद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
 कोरोना में लॉकडाउन समस्या का समाधान है तो समस्या भी बनी है ! लॉकडाउन में सभी उद्योग धंधे बंद हो जाने की वजह से सभी के आय पर तो गहरी मार पड़ी है! नौकरी का खतरा मानसिक तनाव  दे रहा है आगे क्या होगा! प्राइवेट कंपनी वाले भी पगार काटकर दे रहे हैं !  मध्यम वर्ग अपने खर्चों में  कटौती कर भी घर चला नहीं  पा रहा! गरीब और गरीब हो गए! भूखे मरने के दिन आ गए  !कर्ज में डूब रहा है!  वर्तमान ही नहीं संभाल पा रहा है तो भविष्य की क्या? ऐसा ही रहा तो आगे चोरी,  लूटमार बढ़ सकते हैं 
फिर भी हम सकारात्मक सोच के साथ  इससे निकलने का नये पहलू पर गौर करें तो
लोगों को अपनी इनकम बढा़ने का नया श्रौत ढूंढना होगा! 
कोरोना ने हमें बहुत कुछ सिखाया है वर्तमान को देखते हुए हमें अपने भविष्य की तैयारी में  कुछ परिवर्तन लाने होंगे! हमे अर्थव्यवस्था के जरिये हम अपने संसाधनों का उन चीजों को बनाने में इस्तेमाल करते हैं जिनकी जरुरत हमें जिंदा रहने के लिए  है!इस तरह की सोच हमें  एक अलग तरह से जीवन जीने का मौका देती है ! 
फिजूल के खर्चो में  कटौती करना! 
अंतरराष्ट्रिय और राष्ट्रीय बैठक न होकर वीडियो कान्फ्रेंसिंग करने से खर्चे कम होंगे जो बचत हो रही है हम अन्य जगह कर सकते हैं! 
इससे हाइस्पीड नेटवर्क को बढावा मिलेगा! प्रदुषण को दूर करने के तरीके अपनाये बेवजह बाहर ना निकालें! 
वैसे कोरोना  ने प्रदुषण तो दूर कर दिया है! सभी देशों में हवा बेहद साफ हो गई  है! 
हम वर्तमान की समस्या से जूझते हुए रोते नहीं रहना है समस्या से निकल भविष्य अच्छा कैसे हो यह सोचना है! हां लेकिन ये सभी इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार और समाज कोरोना वायरस को कैसे संभालते हैं और इस महामारी का अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
 लाक डाऊन की वजह से सभी क्षेत्रों में प्रभावित हो रहे हैं चाहे वह रोजमर्रा का दिनचर्या हो या व्यापार क्षेत्र ,शिक्षा क्षेत्र, उत्पादन क्षेत्र ,उद्योग क्षेत्र ,मानव स्वयं प्रभावित, परिवारिक क्षेत्र , सामाजिक क्षेत्र  प्राकृतिक क्षेत्र, आर्थिक क्षेत्र ,राजनीति क्षेत्र , धार्मिक क्षेत्र और अन्य क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं। मनुष्य का जीवन बहुआयामी जीवन है। मनुष्य का जहां-जहां अंतर्संबंध बना हुआ है वह क्षेत्र से प्रभावित हैं कोई भी क्षेत्र प्रकृति को छोड़कर परिस्थितियां ठीक नहीं है चलाऊ और चिंता ग्रस्त जिंदगी जी रहे हैं ।अनियंत्रित जिंदगी से करोना का मार, नियंत्रित जिंदगी थे आर्थिक की मार विचित्र समस्या आन पड़ी है। मनुष्य को बड़ी सुझ बुझ से समस्या का निदान ढुढना है। फिर भी मानव  आशावादी है जीने की आशा से ही धैर्य बंधा हुआ स्थिर सी जिंदगी झेलते हुए आहिस्ता से आगे बढ़ रहे हैं। रही बात अपनी  आय की कमी से भविष्य में क्या क्या प्रभाव पड़ेगा वर्तमान जीवन शैली सकारात्मक की ओर बदलाव होगा ।अनावश्यक फिजुल खर्च पर नियंत्रण आवश्यक वस्तु पर ही खर्च करना होगा घरेलू उत्पादन और उत्पाद बनाने की दिशा अपनाना होगा। बच्चों की पढ़ाई घर पर, देखना होगा  संगम खानपान, वस्तुओं का सदुपयोग, गली मोहल्ले में एक दूसरे को जागृत करते हुए कुशल व्यवहार करना होगा ।अपनी आय  के अनुसार खर्च करने की कोशिश करते हुए जिंदगी की कामना करते हुए जीना । भविष्य की चिंता नहीं  चिन्तन करने की आवश्यकता है। चिंतन से ही समाधान निकलती है। अतः सभी मानव को समाधान की अपेक्षा की कामना करते हुए जीना हो रहा है ।कब  समस्या से निजात मिले इसी उम्मीद के साथ जी रहे हैं लोग।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़


" मेरी दृष्टि में " सबसे पहले लोगों की आय में सुधार होना चाहिए । तभी भविष्य के बारें में सोचा जा सकता है । फिलहाल लोग अपने रोजगार को पटरी पर लानें में लगें हैं ।
भविष्य हमेशा वर्तमान पर निर्भय करता है ।
                                                     - बीजेन्द्र जैमिनी




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