क्या कोरोना वायरस ने लॉकडाउन में लेखन को दिया नया आयाम ?

कोरोना वायरस के  लॉकडाउन  में विभिन्न तरह का लेखन हुआ है । सभी ने अपनी - अपनी सोच के मुताबिक़ लेखन किया है ।  कविता से लेकर परिचर्चा तक पर कार्य हुआ है । यह कोरोना काल का लेखन  विभिन्न आयाम लेकर आया है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
कहते है समय अच्छा हो या बुरा कुछ देकर ही जाता है कोरोना संक्रमणकाल लॉक डाउन ने लेखन को नया आयाम दिया है ये सत्य हैै लॉक डाउन घरों में रहकर सभी को काफी समय मिल रहा है साहित्यकारों को सोच विचार का देश की आर्थिक स्थिति खराब है कलम जो देखती है वही लिखती है समयानुसार समसामायिक हमारे कोरोना योद्वाओ पर अनेक रचनाए लेख संस्मरण कहानी कोरोना ग्रंथ लिखे गये अनेक गीत लोकगीत भी लिखे गये है। और लिखे भी जा रहे है विषय लिखने के लिए सोशल डिस्टेशिग मास्क हाथ धोना कोरनटाइन मजबूर मजदूर गरीबी आर्थिक व्यवस्था अनेक विषय लिखने को मिले लेखन को वास्तव में एक नया आयाम मिला सभी ऑन लाइन संस्मरण के द्वारा पत्रिका निकाल रहे है जिन्दगी से हटकर अलग लेखन लॉक डाउन है घरो मे बंद जिन्दगी साहित्यकारो को समय मिल २हा है देश समाज के स्थिति के बारे मे सोचने का लेखन करने का मै यदि अपने बारे मे लिखुं तो वाकई में इस कोरोना काल ने मेरे जीवन को नया आयाम दिया गीत गज़ल नज़्म कोरोना लोकगीत लिखे लॉक डाउन का समय घर मे रहकर साहित्य को समर्पित किया मेरे लेखन को नया आयाम नई पहचान मिल रही है।
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
इस बात में कोई संदेह नही है कि आज लॉक डाउन में हमे लेखन के नए आयाम देखने को मिल रहे हैं। लोगों की अभिव्यक्ति को भी नया आयाम मिल रहा है। एक रचनात्मकता का संचार हो रहा है और में समझता हूं कि यह एक बहुत अच्छा पक्ष उभर कर आया है। लोगों को अभिव्यक्त होने का मौका मिल रहा है।नए मंचो पर अभिव्यक्ति स्थान ले रही है। में ऐसे लोगों को भी धन्यवाद देना चाहूंगा जो लोगों को प्रोत्साहित करते हैं अभिव्यक्त होने के लिए।
इस से समाज मे एक सृजनात्मकता का भी निर्माण होता है।ज्यादा संख्या में लोग आते हैं अभिव्यक्त होते हैं लोग उनको देखते हैं सुनते हैं और समझते हैं।विचार बयार बहती है।दृष्टिकोण एकपक्षीय नही रहता है। बहुआयामी दृष्टि और पक्ष सामने आते हैं
- रोहन जैन
देहरादून - उत्तराखंड
कोरोना वायरस के चलते लगभग संपूर्ण देश में लॉक डाउन की स्थिति बनी हुई है। इस स्थिति में सामाजिक दूरी बना कर रखना आवश्यक है। सभी रचनाकार इस समय उन जगहों से दूरी बनाए हुए हैं जहां पर काव्य गोष्ठी या कवि सम्मेलन होते है। और जो रचनाकार सर्विस या व्यक्तिगत कार्य करते हैं आजकल वहां भी कार्य कर पाना उनके लिए संभव नहीं है, अतः इस स्थिति में अधिकांश समय घर पर ही व्यतीत हो रहा है। एक रचनाकार को अब बहुत समय मिल रहा है कि वह मन लगाकर अपने लेखन कार्य को कर सके। एक कलमकार अपने मन से निकले उदगारों को अधिक दिनों तक रोक नहीं सकता, अतः उसे व्यक्त करने के लिए लॉक डाउन की स्थिति में सोशल मीडिया एक बहुत अच्छा साधन साबित हो रहा है। सभी रचनाकार अपने लेख, गीत, गजल, कविता आदि के माध्यम से अधिक से अधिक सोशल मीडिया से जुड़कर लेखन कार्य में लगे हुए हैं। अतः निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस ने लॉक डॉन की स्थिति में लेखन को एक नया आयाम दिया है।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
चुनौती भरी परिस्थितियां नये-नये राह भी दिखाती है। यही वास्तविकता लॉकडाउन में लेखन क्षेत्र में भी देखने को मिला है। इतनी लंबी अवधि में घर बैठे बहुत से लोगों ने अपने समय का सदुपयोग करते हुए अपनी लेखन-कला को उभारा है। 
   लेखकों की बहुत बड़ी तादाद नेट राजपथ पर अपना शौक पूर्ण करने में लगा है। तालाबंदी के उबाऊ समय में तमाम बड़े-बड़े प्रकाशक भी नेट की मदद से नए रचनाकारों को उभरने का अवसर  प्रदान कर रहे हैं। समालोचक नामवर जी की तरह दूसरे की रचनाओं को पढ़कर लोग समीक्षात्मक टिप्पणी भी लिखित रूप में देने लगे हैं।
   आज छोटे-बड़े हर तरह का रचनाकार नेट पर अपना ब्लॉग बनाकर या साहित्यिक पत्रिकाओं के ई-संस्करणों से जुड़ता जा रहा है। आज इंटरनेट सारी दुनिया में अभिव्यक्ति की आजादी का व्यापक मंच बनकर लेखन को नया आयाम प्रदान कर रहा है।
   लेखक कल्पना और यथार्थ दोनों में जीता है।  विचारों को शब्दों में पिरोता है। अपने विचारों को प्रस्तुत करने का इससे बेहतर समय नहीं मिल सकता। लेखन के लिए डिजिटल गैजेट्स का भी सहारा मिल रहा है। 
  लेखन कला द्वारा लेखक का सामाजिक और बौद्धिक ज्ञान का भी विस्तार हो रहा है। लॉकडाउन में प्रेरणादायक रचना पढ़ कर लिखने के लिए भी वे प्रेरित हो रहे हैं।
   इस तरह नि:संदेह कह सकते हैं कि लॉकडाउन में लेखन को नया आयाम मिला है। सकारात्मक ऊर्जा से अभिभूत हो कर लोग रचनात्मक कार्य में लगे हुए हैं। कुछ कविताएं लिख रहे हैं , कुछ कहानियां, कुछ समयानुसार अपने आलेख द्वारा अपना विचार प्रस्तुत कर रहे हैं।
                          -  सुनीता रानी राठौर 
                         ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
कोरोना संक्रमण कालखण्ड में लाॅकडाउन से स्कूल, आफिस, दुकान, परिवहन, फैक्टरियाँ, उद्योग आदि बंद करने पड़े । उत्पादन बंद हो गया  । अर्थव्यवस्था चरमरा गई । किसानों - बागवानों,  मजदूरों को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है । हर क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है । ऐसे कालखण्ड में जब हम अपने अपने घरों में कैद हो , समय व्यतीत करना जब कठिन प्रतीत हो रहा हो तो सृजन प्रेमियों - लेखकों  , कलाकारों  , हस्तशिल्पियों व अन्य हुनरमंदों को समय ही समय उपलब्ध हुआ है । पठन - पाठन के लिए पर्याप्त समय है  । वो अपने हुनर को तराश कर सोशल मीडिया में प्रचार प्रसार कर सकते हैं और कर भी रहे हैं  । पैंडिंग कार्यों को भी अन्तिम स्वरूप दे सकते हैं  । जिला स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर संस्थाएं बनी हैं  । सबने सोशल मीडिया में अपने अपने  ग्रुप बनाए हुए हैं  । कुछ फेसबुक पर तो कुछ व्हटस ऐप पर और कुछ ब्लाॅग बना कर सृजनशील हैं । जैमिनी अकादमी , अंकुर साहित्य परिवार  , हिमालय साहित्य संस्कृति मंच  , हिन्दी लेखक परिवार  , साहित्य संवाद , इरावती साहित्य एवं कला मंच , नवोदित साहित्यकार मंच , पैन एंड राइटर , सुकेत साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिषद  , साहित्य सागर  , शब्द श्रृंगार  , दिल की कलम से  , मंथन साहित्य मंच  , बिलासपुर लेखक संघ  जैसी संस्थाएं सृजन कार्य में लगी हुई हैं  । कुछ साहित्यिक संस्थाएं लाॅकडाउन लगने पर ही सक्रिय हो गई  । वो प्रतिदिन विषय देकर आन लाइन प्रतियोगिता आयोजित करवा रही है । इन प्रतियोगिताओं में  कविता , गजल  , व्यंग्य  , हाइकु  , कहानी  , लघुकथा  , संस्मरण  , आलेख आदि लिखकर पोस्ट करनी होती है  व औड़ियो - वीडियो लाइव भी  । प्रतिभा का सोशल मीडिया में खूबसूरत प्रदर्शन हो रहा है । श्रेष्ठ रचनाकारों को आन लाइन ही प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जा रहा है  । इससे ज्यादा  साहित्य सृजन प्रेमियों को और क्या चाहिए  । कुछ साहित्य प्रेमी व्यक्तिगत तौर पर ही दिन - रात साहित्य सृजन में डटे हुए हैं  । निःसंदेह इस कोरोना लाॅकडाउन में साहित्य सृजन बखूबी हो रहा है और साहित्य सृजन क्षेत्र में नई उपलब्धियों का एक नया आयाम स्थापित हुआ है  ।
- अनिल शर्मा नील 
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
लाॅकडाउन में एक ओर जहां यह सुनने को मिल रहा था कि आखिर घर में बन्द रहकर करें तो क्या करें? वहीं दूसरी ओर लेखकों के लिए यह लाॅकडाउन उनके सृजन के लिए वरदान साबित हुआ है। एक लेखक भी साधारण मनुष्यों की भांति जिन्दगी की भागदौड़ में लगा रहता है और समयाभाव उसके लेखक मन को व्यथित करता रहता है। कोरोना वायरस की वजह से लागू लाॅकडाउन में सभी की जिन्दगी जैसे ठहर सी गयी है और इस ठहराव में पर्याप्त समय मिलने के कारण लेखक की सृजनात्मकता को तीव्र गति प्राप्त हुई और उसके लेखन को एक नया आयाम मिला। 
यूं तो एक लेखक के मन में एकांत-महफिल, सन्नाटे-शोर जैसी सभी परिस्थितियों में सृजन हेतु विचारों की श्रृंखला चलती रहती है परन्तु लाॅकडाउन में शारीरिक और मानसिक शांति ने चिंतन-मनन जैसी सम-परिस्थितियाँ लेखकों के लिए उपलब्ध कराई हैं और उन्हें पढ़ने-लिखने, चिंतन-मनन करने, लेखन के लिए पर्याप्त समय प्रदान करने, तकनीक के माध्यम से अपनी रचनाओं को विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करवाने और साथ ही सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर अपने सृजन को प्रस्तुत करने का महति अवसर प्रदान किया है।
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस ने लाॅकडाउन में लेखन को नया आयाम दिया है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना वायरस से उपजे संकट के कारण लेखन को नया आयाम  मिला किसी हद तक इस मायने मे सही है कि इस दौर में काम काज की भाग दौड न रहने के कारण समय बहुत मिला और लेखन के यह बहुत अच्छा रहा इस दौर मे यदि लोगो का जीवन परेशानियो से घिरा दिखा तो समाजिक संस्थाओ द्वार मानवता के दृष्टकोण से सहायता करने का भी भरसक प्रयास रहा लेखन में भी मानवता वादी रचनाओं व सामाजिक सरोकार से परिपूर्ण रचनाऐ बहुत लिखी गई और कोरोना पर भी सावधानी रखने का महत्व बताती रचनाऐ काफी लिखी गई वास्तव में यह समय लेखन के लिए बहुत अच्छा रहा और नये  गीत गजल कहानी मुक्तक कविता दोहे   बहुत पढने वअॉन लाइन कवि सम्मेलनो के माध्यम से सुनने को मिले इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि कोरोना वायरस ने लॉक डाउन में लेखन को नया आयाम दिया है.     -  प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
चीन के बुहान शहर से कोरोना वायरस फैला। देखते ही देखते इसने भयावह रूप धारण कर लिया। हालात इतने खराब हुए की संसार के लगभग सभी देशों में लॉक डाउन लगाना पड़ा। लॉ क डाउन विश्व में एक त्रासदी के नाम से जाना जाएगा। यह हमारा दुर्भाग्य रहा कि हम सबको लॉक डाउन में जीना पड़ा। कोरोना काल में मानव जाति को बहुत आघात पहुंचा। जान माल की बहुत हानि हुई। ऐसे में संवेदनशील लेखक अथवा कवि तटस्थ कैसे रह सकता था।
साहित्यकार एक युग दृष्टा की तरह होता है। यह समाज में जो देखता है वही लिखता है। तभी कहा गया है कि समाज और साहित्य एक सिक्के के दो पहलू हैं।
निसंदेह लॉक डाउन में साहित्यकारों की कलम चली और खूब चली। लॉकडाउन में जब सब काम धंधे बंद हो गए तो लेखन कला को अधिक समय मिला। जिसके चलते लेखकों ने कोरोना संक्रमण विषय पर लंबे-लंबे लेख, कविताएं, कहानी, गीत, गजल, लघु कथा, संस्मरण और रिपोर्ट्स आदि की खूब रचना की।
साहित्यकारों ने कोरोना की विभीषिका को अपने-अपने ढंग से चित्रित किया। इस संकटकाल में भिन्न-भिन्न विधाओं में सृजन किया गया। सैकड़ों पत्र पत्रिकाएं इसकी साक्षी है। कई साहित्यिक ई सम्मेलन हुए। कोरोना काल विषय पर कई साझे काव्य संस्करणों आदि का लेखन संपादन हुआ।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि लॉक डाउन में लोगों को बहुत मुसीबतें झेलनी पड़ी परंतु लेखन के लिए यही मुसीबतें लेखन का आधार बन गई। परिणाम स्वरूप लॉक डाउन के समय प्रचुर मात्रा में साहित्य लिखा गया और संपादित किया गया।
- केवल सिंह भारती
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
       परिवर्तन ,परिवर्धन, परिमार्जन  तो प्रकृति का नियम है ।
पर जब कोरोना वायरस के कारण अचानक ही  अति गतिशील सदी भी थम गई।  एक अदृश्य वायरस विश्व की रफ्तार को ग्रहण लगा गया ,वो भी ऐसा कि जीवन रक्षा के लिए अपने ही घरों में 
बंद रहना। बाहरी दुनिया में भी सड़के सूनी, उधोग बंद, आफिस खाली, बाजार में मौन, शिक्षा केंद्र वीरान,  सामाजिक ,राष्ट्रीय  समारोह,उत्सव  समाप्त प्राय वो भी अनिश्चितत समय के लिए ।
समय ,तारीख ,वार  सब गड़मड होने लगे। 
      नये शब्द  सामने आए। सोशल डिस्टेंस,  क्वेरनटाईन,
  स्वैच्छिक कैद,स्वच्छता ,सुपाच्य और पौष्टिक भोजन, हाथ धोना, मास्क पहनना ,   आदि। इस लाकडाउन ने सभी के मन में अनगिनत प्रश्न खड़े किए । तकनीक ,विज्ञान चाँद , मंगल ग्रह पर विजय, पहियों पर दौड़ती ज़िंदगी और फिर जान बचाने के लिए अपने ही घरों में बंद। जिस जीवन के लिए भाग रहे थे उसी के लिए रूको ।कब तक ?पता नहीं।  पूरा विश्व इसकी दवाई के लिए प्रयासरत् है पर अभी सफलता दूर है ।।ऐसे में आम जीवन में भी  छोटे बड़े अनेक परिवर्तन आए हैं । हर व्यक्ति की सहनशक्ति अलग -अलग होती है ।कोई कष्टों में और मजबूत हो जाता है और कोई इतना कमजोर कि राई भी पहाड़ लगती है ।
       बस ठीक ऐसे समय ही साहित्यकारों की जिम्मेदारियाँ चौगु हो जाती है । लेखन कार्य के लिए यूँ तो लेखक अपने ही भीतर क्वेरनटाईन होता है ।विषयानुसार, भावानुसार, अपने लेखन  को आत्म सात कर के नव सृजन करता है । पर यह सच है कि  
कोरोना काल ने नये विषय  दिए और पुराने विषयों को भी नये आयाम दिए । लेखन अति काल्पनिक से यथार्थ परक हुआ। 
सकरात्मक विषयों पर अधिक लिखा जा रहा है ।
       प्रेम, पुष्प , चाँद ,तारे ,नदियाँ , आकाश विषय पीछे रह गए और  पलायन प्रवासी,  मजदूर रोटी ,भूख, मेहनत, पक्षी ,दाना पानी, आशा ,विश्वास , दान -धर्म, पर सेवा , मानवता पर अधिक लिखा जा रहा है । हर विधा में कोरोना वायरस का आधिपत्य है ।
कोशिश यही की जाती है कि मनोबल बढ़े, जीवन की सार्थकता पर  कथा कहानियाँ हों । लेखक भी इस समय का सद्पयोग  अधिक पढ़ने और पुरातन ग्रंथों में जो सत्य है उन्हे जानेऔर आम जन तक सरल सहज भाषा में पहुँचाएं । धर्म ग्रंथों, संतों ,मुनियों की वाणी को इस काल के कुप्रभाव को कम करने के लिए पुनर्लेखन भी हुआ है ।
      यह समय जब बीत जाएगा तो कोरोन पूर्व साहित्य और.कोरोना काल साहित्य का अध्धयन भी बहुत कुछ नया और विस्मयकारी लायेगा।   मानव आशावादी है और समय परिवर्तनशील । जब जो ना सोचा वो हो गया तो सोच कर ,मनोबल से इस महामारी से अवश्य जीत जाऐंगे ।
 -  ड़ा.नीना छिब्बर 
जोधपुर - राजस्थान
लेखक रचनाकार तो पहले से ही एकाकी और अलग-थलग रहना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें प्रकृति से लगाव रहता है और वह किसी भी चीज को लेकर बहुत गहराई से सोचते हैं तो उनके लिए लॉक डाउन तो बहुत ही अच्छा अवसर है कि उन्हें लोग डिस्टर्ब नहीं करेंगे वह पहले से ही लोग डाउन ही रहते हैं और उनके विचारों को भी जल्दी कोई समझ नहीं सकता इसीलिए उन्हें लो और समाज अलग-थलग कर देते हैं उनकी सोच बहुत अलग रहती है वह परोपकारी भाव रखते हैं और सबके सुख की सोचते हैं सच्चे लेखक और सदा प्रकृति में ही खोए रहते हैं और अपने शांत मन से शांत कुटी में बैठकर रचना करते रहते हैं उनके लिए यह बहुत अच्छा अवसर है उन्होंने जरूर बहुत अच्छी अच्छी रचनाएं लिखी होंगी बहुत अच्छे-अच्छे कविता कहानियां हमें बहुत सारे अच्छे लेखक साहित्यकार यूट्यूब और मोबाइल के माध्यम से सुनने को मिल रही है कभी-कभी न्यूज़ चैनल में भी दिखाया जाता है मैंने एक अशोक चक्रधर जी की की कविता *तम अंधकार *पर भी सुनी थी यह समय बहुत अच्छा है हमें उनकी ज्ञान से बहुत फायदा और नई राह भी मिलेगी इस समय जब हमें अपने देश का आर्थिक विकास और अपने खुद के विकास और सोच को बदलने के लिए उनकी सोच का सहारा और उनके ज्ञान से बहुत मदद मिलेगी हमें उनके ज्ञान से लाभ लेना चाहिए।
उन्होंने ही हमें यह सिखाया है कि सूरज हमेशा देता ही है।
और यह कहावत तो है ही है जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि वह तो सब जगह पहुंच जाते हैं सर्वत्र व्याप्त हैं।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
सही कहाँ आपने लाकडाऊन ने लेखनों का एक उत्तम व भरपूर समय दिया , खान , सोना व लिंखना यही दिनचर्या हो गई है 
मेरे कुछ मित्र जो लिख नहीं सकते वो भी कोशीश कर रहे है या रसोई में ....
इस कोरोना समय में जिनके लिए रचनाकर्म संभव नहीं है, वे अपना समय रसोईघर में नई-नई रेसिपी तैयार करने में लगा रहे हैं। ऐसा करते हुए जनवादी उम्रदराज रचनाकारों के चेहरे पर भी नवसृजन का भाव तैर रहा है। वे लाइव कबाब बनाते हुए अपनी वॉल पर दिखाई दे रहे हैं। अगले दिन वहां छोले-भटूरे की तस्वीर चस्पा होती हैं और फिर इतराते हुए ‘चखना’ की भरी-पूरी प्लेटों के बाद अपने हाथों से पहली बार बनाया ‘चिकन विद कर्ड’ नजर आने लगता है। यही सचमुच का रचनाकर्म है।
मुझे बड़ा आनंद आ रहा है 
मैं ऑनलाइन अंताक्षरी करता हूँ 
उसमें भी लोगों को मज़ा आता है । मित्र पूछते हैं, 'भई, कुछ रच नहीं रहे?' 'कुछ धाँसू लिखो यार पढकर मज़ा आ जाऐ ...इस कठिन समय में क्या रचा जा सकता है, जबकि पूरी दुनिया पर अस्तित्व संकट है? गरीब कोरोना और भूख, दोनों से मर रहा है,' मैं धीरे-से कहता हूं। 'कठिन दौर रचनात्मकता के लिए बहुत मौजूं भी होता है। आप लॉकडाउन का जमकर उपयोग करिए। कुछ लिखिए। यह नहीं करेंगे, तो समय आपको माफ नहीं करेगा', मित्र प्रवचन के मूड में आ जाते हैं। उनके सुझाव पर मैं कागज-कलम उठाता हूं।और लिख जाती है एक स्क्रीपट, सोचता हूँ । 
आज की कमाई हो गई । 
रात को कई बार सो नहीं पाता हूँ 
तभी हायवे पर भागते अपने शहर आते हुए मजदूरों के झुंड मेरा पीछा करने लगते हैं। उनके सिर पर बोझा है। औरतों की गोद में दुधमुंहे बच्चे हैं। कोई एक पैर से अशक्त आदमी मेरी ओर देखता है और मैं विचलित हो जाता हूं। मन में आई कविता का सिरा भी हाथ से छूट जाता है। भीतर उपजी संवेदना ज्यादा देर ठहर नहीं पाती। वह तोड़ती पत्थर के कवि से मैं माफी मांग लेता हूं। अब अंदर कहीं गजल का एक शेर कुलबुलाता है, तभी उस बच्ची का मुरझाया चेहरा आंखों के सामने क्रंदन करने लगता है, जो सौ मील पैदल चलते हुए थकान और भूख से दम तोड़ देती है। मेरी शायरी बेदम हो जाती है। एक गीत फूटने को होता है की माँ के दूध का फ़र्ज़  वाली कविता के शब्द मेरे सामने आकर आंसू बहाते हैं और मैं विचलित हो आंखे बंद कर बैठ जाता हूँ । 
इतने दर्द नाक दृश्य रास्ते में नवजात शिशु को जन्म देती मा की हालत पैरों के छाले लहूलुहान तन सर पर बोझा हाथो में मासूम बच्चे जर्जर शरीर से रास्ता नापते मज़दूर ....
इतना दर्दनाक दृश्य , 
१६ मज़दूरों को रेल पटरी पर कुचलते निकल जाना रोज़ मौत की खबरे , कैसे लिखूँ मेरी कलम कई बार चित्कार कर उठती है मैं नहीं लिख पाता ? 
बस अब और नहीं कर लेट जाता हूँ कलम को सिने से लगा , तभी किसी मासूम बच्चे की किलकारी सुनाई देती हैं और मैं लिखने लग जाता हूँ । 
और फिर लिखता रहता हूँ 
- अश्विनी पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना वायरस ने लॉक डाउन में लेखन का नया आयाम दिया है। हर कवि या लेखक वर्तमान हालात के बारे में लिख और बोल रहा है। घर मे कैद कवि आजकल कोरोना और परिवार के बारे में लिखने में व्यस्त है। दुःख, दर्द, मुसीबत, जीने के तरीके और तमाम तरह के लेख लिखने में कवि मगरूर है। कविताओं और लेखन के माध्यम से  कोरोना से बचने के लिए लगातार लेखक  प्रयासरत है।
- राम नारायण साहू " राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
जब से लोकडाउन हुआ है तब से हर काम , रोजगार ठप है । जिसने लोगो को खाली बैठने पर मजबूर कर दिया है । ऐसे में हर क्षेत्र के लोगो मे चिंता व्याप्त होना लाजमी है । वही लेखनी जगत से जुड़े पत्रकारों , कवियों , लेखकों आदि लोगो के लिए यह समय वरदान भी साबित हुआ है । जिसने लेखनी जगत के लोगो को नया मुद्दा , भरपूर समय दिया है । लेखनी जगत के योद्धाओ की कलम देश के नागरिकों के लिए समय समय पर वरदान साबित हुई है तथा ऐसे महामारी के समय मे जब न लोगो के पास कोई व्यवसाय है और किसी तरह का काम बस केवल और केवल लोगो की किताबे व समाचार पढ़ने और टीवी पर खबरे देखकर हर खबर से अपडेट रहने में रुचि बढ़ गई है , तब यह समय कलम के योद्धाओं के लिए स्वर्णिम समय बन गया है । जिसने वाकई लेखनी जगत को नया आयाम देते हुए कलम के योद्धाओं को भी अलग पहचान दी है । 
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
वास्तव में लेखन को नया आयाम मिला है, इस लाकडाउन में। कोरोना संक्रमणकाल,साहित्य में आने वाले समय में विशेष रूप से उल्लेखित किया जाना सुनिश्चित है। कोरोना साहित्य के नाम से विभिन्न पुस्तकें प्रकाशित होंगी।इस दौरान लेखन को जहां एक और नयी गति मिली, वहीं दूसरी ओर अनेक नए लेखक और कवि भी इस को शरोना काल में हमारे सामने आए। नए-नए मंच सोशल मीडिया ने उपलब्ध कराएं, और इस साहित्य को समाज में प्रचारित प्रसारित किया। समाचार पत्रों ने विशेष पेज निकाले, जन जागरण करने में साहित्यिक समाज कहीं पीछे नहीं रहा।ऐसी अनेक रचनाएं पाठकों के सामने आई, जिन्होंने जन जागरण करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। अब तक जो साहित्यकार काल्पनिक कथाओं और कविताओं   के सृजन में लगा था, उसने वास्तविकता से रूबरू होकर इस वैश्विक महामारी के समय में यथार्थ परक साहित्य की रचना की। जैमिनी अकादमी पानीपत का कोरोना काव्य संकलन स्वयं में एक मील का पत्थर है, जो आने वाले समय में साहित्य के शोधार्थियों को कोरोना काल के काव्य जानकारी देगा। ऐसे अनेक संकलन, विशेषांक इस काल में आये,और आगे भी आएंगें।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना वायरस में लॉकडाउन में काम काज के तरीके को ही बदल दिया है। सबसे पहले तो शिक्षा के तरीके बदल गए है। स्कूलों द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है। चाहे सरकारी काम हो या फिर प्राइवेट कॉरपोरेट घराना दफ्तरों के काम को अब पदाधिकारी घरों से ही निपटा रहे हैं। इतना ही नहीं बल्कि योगा के क्लासेस भी ऑनलाइन चल रहे हैं। इसी तरह कोरोना वायरस ने लॉकडाउन में लेखन को नया आयाम दिया है। साहित्यकार हो, कवि कवयित्री हो या साहित्यिक जगत से जुड़े लोग हो। अब फेसबुक, पेज या फिर पोटल, सोशल मीडिया के माध्यम से ऑनलाइन कार्यक्रम हो रहे हैं। खासकर कवि सम्मेलन ऑनलाइन फेसबुक व पेज के माध्यम से अधिक हो रहे हैं। ऑनलाइन विजेता भी घोषित कर सम्मान पत्र को व्हाट्सएप पर भेज दिया जा रहा है। इसी तरह लेखन प्रक्रिया भी अब ऑनलाइन शुरू हो गया है। इसका मुख्य कारण कोरोना महामारी से बचाव करना है। अभी 31 मई तक लॉकडाउन है। इस बीच सरकार ने बहुत सारे। व्यापार, काम काज, कृषि, निर्णय कार्य, दफ्तर व दुकानदारों को छूट दिया है। सम्भ8 है कि 31 मई के बाद से सरकार लॉकडाउन को पूरी तरह से हटा देगी। पर अब हम सभी को आने वाले समय मे कोरोना के साथ ही जीवन व्यतीत करने की आदत डालनी होगी। निस तरह से कोरोना के मामले पूरी दुनियां में बढ़ रहे हैं। उसमें भारत भी शामिल है। देश मे कोरोना से अब तक 1 लाख 25 हजार 101 मामले हुए हैं, जिसमे 3 हजार 720 मोते हुई है। पिछले 24 घंटे में देशभर में 6 हजार 654 कोरोना संक्रमित हुए है और 137 लोगों ने दम तोड़ा है। देशभर में अभी 69 हजार 597 कोरोना मरीजो का इलाज चल रहा है। इसके साथ ही राहत की बात है कि देश मे 51 हजार 783 लोग सवस्थ होकर घर आ गए है। अभी प्रवासी मजदूरों व आम नागरिकों की घर वापसी के कारण भी कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। आने वाले जून जुलाई महीने में कोरोना के मामले चरम पर देश मे होंगे। इसके बाद से इसकी रफ्तार धीरे धीरे कम होती जाएगी। फिलहाल सरकार धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक आयोजनों की अनुमति नही देगी। इससे साहित्य जगत भी जुड़ा हुआ है। इन्ही कारणों से कोरोना वायरस में लॉकडाउन में लेखन को नया आयाम दिया गया है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
यै करी आपने लेखकों के मन की बात हां! यह सच हैं! अधिकांश लेखक समय अभाव के कारण लेखन नहीं कर पा रहें थे उनहें समय न होने की हमेसा शिकायत रहती थी जीसे लाॅकडाउन ने पुरी कर दी यह समय लेखक के तौर पर "सोने पे सुहागा हो गया हैं" दुनियाँ के इतिहास में पहली बार लगे इस लाॅकडाउन (एक तरह का करफू) में अराम से शान्ती से एकाग्रता से लेखन वहि कर पा रहा हैं आज के दौर में व्हाट्रएप के गुरूप या फेसबुक पर लेखकों ने धुम मचा रखी हैं कई गुरूप एव फेसभुक पर नई नई प्रतियोगीतायें हो रही हैं लेखक भी उनमें बढ चढ कर हिस्सा ले रहा हैं सम्मान पत्र प्रश॔सा पत्रो की बाड़ आई हुई हैं लाॅकडाउन रूपी लेखन एव इससे सम्बंधीत कार्यो की मिनो गंगा बह रही हैं ओर सभी गोता लगा लगा कर प्रवित्र हो रहें हैं।सही मायनो मे लेखकों एव इनसे सम्बन्धीत जनो ने ही लाॅकडाउन का पुरा पुरा लाभ उठाया हैं।
- कुन्दन पाटिल
 देवास - मध्यप्रदेश
कोरोना  के  कारण लॉक डाउन में अधिकांश सभी को घर पर रहकर समय ही समय मिला है। इस समय के सदुपयोग में सभी ने अपनी अपनी रूचि के अनुसार काम किया है  । किसी को पा क कला में ,किसी को बागवानी में, किसी को सिलाई कला में किसी को डांस में  किसी का अधिकांश का समय लिखने की रुचि में व्यतीत हुआ है  ।क्योंकि काफी व्यस्त जीवन में हम अपने लेखन के शौक को कहीं भूल से गए थे।
 परंतु लॉ क डाउन में अधिकांश हम जैसे व्यक्तियों ने अपनी अपनी अभिव्यक्ति को कागज पर उकेरा है ।
लॉ कडाउन में  अधिकांश त: कविता , लेख ,लघु कथा, क्षणिकाएं,आदि।
 लॉ कडाउन में व्यतीत जीवन की घटनाए स्वरचित रचनाएं  आदि भी प्रकाशित हुयी हैं ।
क्योंकि  लोकडाउ न में सभी कार्य बंद थे सभी फैक्ट्रियां बंद थी  । परंतु न्यूज़पेपर बंद नहीं हुआ न्यूज़पेपर में समाचार पत्र में होने वाली घटनाएं ,लोगों की अभिव्यक्ति चाहे वह कोई लेख हो चाहे कविता  सब लॉ क डाउन में ही लिखी गई है ना ! 
   समाचार पत्र में कुछ लेख व कविता छपने के लिए भी लाइन में नंबर आता था 
लॉ कडाउन  में इतने लेख में कविताएं छपने के लिए आए कि उनको  क्रम से न्यूज़पेपर में स्थान देना पड़ा ।
 हमारे संपादक महोदय जी भी बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने भी रोज  कोरो ना वायरस  या लॉ क डाउन से संबंधित  ही नए- नए विषय पर चर्चा देकर परिचर्चा के माध्यम से हमारी लेखनी, लेखन कला को नया आयाम ही नहीं दिया अपितु हमें   दूसरे  व्यक्तियों के  विचारों से भी अवगत कराया।   साथियों के  ज्ञान को सराहने  व  समझने की कला का विकास  किया  है ।
       जी हां यह सच है कि करो ना वायरस ने लॉ क डाउ में लेखन को प्रतिस्पर्धा के साथ नया आयाम दिया है। 
- रंजना हरित     
         बिजनौर - उत्तर प्रदेश
     भारतीय संस्कृति में लेखन ने  काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हैं।
महान रचनाकारों ने अपनी लेखनी के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार के विचारों से अवगत कराते हुए लेखन की पृष्ठभूमि में अमरत्व कर दिया हैं। जिनके लेखन पर शोधकर्ताओं ने नये-नये रुपों में शोध कर रोजगार प्राप्त किया हैं। वर्तमान में भी साहित्य विदो द्वारा विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कर रहे हैं लेखनीय को नई राह सिखा रहे हैं, किन्तु आज देखिये लेखनीय का व्यवसायिककरण हो चुका हैं। जहाँ तहाँ अनेकों संगठनों का जन्म हो गया  हैं। गोष्ठियों में नवोदितों की रचनाओं का विशलेषण कर परिपक्व बनाया जाता था, अब वह बात रचनाओं में नहीं रहीं, कुछ भी लिखों मंचों पर पहुँचों और वाह-वाही लुटों। अंत में हासिल का शून्य?  कई रचनाकारों ने महत्वपूर्ण संकलन, पुस्तकों का प्रकाशन स्वयं के व्यय पर प्रकाशन करवाया हैं, किन्तु जिन्हें पढ़ने वाला कोई नहीं, कई-कई पुस्तकें भेंट स्वरूप हो जाती हैं। जिसके कारण मुनाफा तो दूर, अलमारी में कैद, धूल खाती-खाती, दिमाग की बलि चढ़ जाती हैं। वर्तमान परिदृश्य में नये-नये संसाधन हो चुके तथा साहित्य उसी में सिमटकर रह गया। भगवान भला करें,  कोरोना महामारी का, जिसके कारण  लाँकडाऊन का जन्म हुआ। विभिन्न लेखकों को आशा की किरण जागी और व्यस्ततम जीवन शैली से राहत मिल।  नया सृजन करने की इच्छा जागृत हुई, जहाँ प्रति नये रचनाओं का जन्म हुआ हैं। लेकिन व्यवसायिकताओं,  कवि सम्मेलन एवं मुशायरा में काफी नुकसान हुआ हैं। जिसे पूर्ववत स्थिति में आने समय लगेगा। नवोदित रचनाकार समय, का फायदा उठाकर नया आयाम प्रस्तुत कर रहे हैं और साहित्य ने रचा इतिहास?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
               यह निःसंदेह  सत्य है कि लॉक डाउन के कारण हर व्यक्ति को अपने लिए ,परिवार के लिए  तथा अपने कार्यों के लिए जो घर पर किए जा सकते थे अधिक समय मिला। साहित्यकारों  को इस दौरान अत्यधिक समय अपनी साहित्यिक अभिरुचियों व चिन्तन-मनन  के लिए मिला। साहित्यकार  के पास अधिक समय रहा कि वह अपना लेखन कार्य अच्छी तरह सम्पन्न  कर सके।  इसके अलावा पूरे देश भर में ऑनलाइन ऑडियो- वीडियो कार्यक्रमों की बाढ़ सी आ गई जिसमें साहित्यकारों की सहभागिता रही। ई -पत्रिकाओं व पुस्तकों   का प्रकाशन का कार्य बड़ी तेजी से आगे बढ़ा और जितना कार्य 6 महीने या साल भर में किया जा सकता था वह कार्य लाॅक डाउन के दौरान  एक डेढ़ माह में ही पूर्ण हो गया। मेरे दृष्टिकोण में इस दौरान लेखन को एक नया आयाम प्राप्त हुआ ।रचनाकार को अधिक से अधिक चिंतन- मनन और संघर्ष की स्थिति के कारण एक नई ऊर्जा के साथ काम करने का मौका मिला।यथार्थ में  कोरोना बायरश ने  लेखन को नया आयाम दिया।
 - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया - मध्य प्रदेश
 कहा जाता है कि यह संसार सुख और दुःख  का सागर है।
 मनुष्य इस सुख और दुख को भोंकते हुए, अपने कर्मों के अनुसार मुख्य पाना है। कोरोना वायरस जबसे संसार में अपना पर पसारा है तो लोगों का भय चमका आक्रोश और ना जाने कितने पीडित जिंदगी जीना हो रहा है। करो ना क्या-क्या घटनाएं पैदा कर रही है इन्हीं घटनाओं को साहित्यकार अपने अंदर उठे भावों को लेखन के माध्यम से समाज के लोगों तक पहुंचाने की चेष्टा करता है। अगर घटना प्रेरणादाई है तो लोग प्रेरित होकर अपना अमानवीय व्यवहार को मानवीय व्यवहार में परिवर्तन कर एक सुखद जीवन की राह बना सकता है अगर रचना नकारात्मक सोच विचार वाला होता है तो लोग उसे स्वीकार  नहीं कर पाते इस तरह हर लेखक या रचनाकार अपनी कविता गद्य या अन्य विधा के द्वारा भूत भविष्य वर्तमान में जो घटनाएं संसार में समाज और प्रकृति में घट रही है और उसका क्या परिणाम आ रहा है उसे कैसे ठीक किया जा सकता है इन तमाम मुद्दों पर अपने भाव को उपेर पर समाज के लोगों को लेख के माध्यम से पहुंचाने का प्रयास करता है। वर्तमान में लोगों को दुख का साया छाया हुआ जीवन जीने के लिए मजबूरी का सामना करना पड़ रहा है इसी संदर्भ को लेकर अनेक विधाओं के माध्यम से लेखक कवि करुणा से आपदा के बारे में लेखन कर रहे हैं। लाख डाउन के चलते सभी के पास समय सोचने समझने के लिए समय और अच्छा लेखन का शुभ अवसर प्राप्त है कोई संवेदना लेख कोई सामाजिक विसंगति का लेख कोई सांस्कृतिक काले कोई प्राकृतिक काले कोई दुख काले कोई भविष्य के लिए सुखद का लेख कोई मनोरंजन का लेख आदि अन्य सभी साहित्य विधाओं में लेखन का कार्य कर रहे हैं लगता है कलयुग की समाप्ति और कल की युग की स्वागत के बारे में लिख रहे हैं तीनों कालों में परिवार समाज प्रकृति करो ना और अन्य के बारे में लेखन कार्य हो रहा है। लेखन की शैली बदल गई है जहां भी देखो करुणा का ही चर्चा और लेख हर पल हर क्षण पढ़ने सुनने देखने को मिल रहा है इसलिए कहा जा सकता है प्रकृति प्रेमी प्रकृति के बारे में संवेदनशील लेखक गरीब अमीर किसान मजबूर उद्योगपति के बारे में कोई सरकारी के सुखद दुखद घटना के बारे में और कोई अन्य विभिन्न क्षेत्रों में लेखन का कार्य कर रहे हैं लेखन में समस्या और समाधान दोनों का उल्लेख किया जाता है एवं समस्या से मानव पर क्या प्रभाव और समाधान से क्या प्रभाव पड़ता है इन दोनों के संदर्भ में लेख लिखा जाता है करुणा महामारी से विभिन्न क्षेत्रों में प्रभाव पड़ा है इसका निष्कर्ष के रूप में मानव समाज में देखने को मिल रहा है उपरोक्त लिखी सभी बातों का अवलोकन करने से यही कहते बनता है कि करो ना वायरस ने लाभ डाउन में लेखन को नया आयाम दिया है इन लेखकों से प्रेरित होकर हम मानव जाति जागृति की ओर बढ़े चलें और करो ना को हराकर एक नई समाज की रचना कर सांस सांस सभी मनुष्य एक दूसरे का सम्मान करते हुए प्रेमभाव थे सुख पूर्वक जीने के लिए प्रयास करें और करुणा से निजात पाएं इसी के लिए लेखन कार्य करें यही एक नया आया है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जी बिल्कुल ऐसा कह सकते हैं। इससे पहले भी कई बिमारियों ने दस्तक दिया था लेकिन उन पर इस तरह हजारों की तादाद में साहित्यिक रचनाएं नहीं लिखी गई जैसे कोरोना पर लिखी जा रही है। अन्य बिमारियों में चाहे वह हैजा, प्लेग, मलेरिया, चिकनगुनिया, चेचक और एड्स ही क्यों न हो कुछ विशेष नहीं लिखी गई। हालांकि एड्स जैसी बिमारी पर कुछ रचनाएं यत्र तत्र पढ़ने के लिए मिल जाएगी यह भी आशंका ही व्यक्त किया जा सकता है। चुकी अभी तक ऐसी कोई रचना पढ़ी नहीं जो करोरोना से इतर बिमारियों पर लिखी गई हो। वैसे ही हमारे देश में कोरोनावायरस जैसी बिमारी को भी अवसर में बदल दिया गया है। वह भी इसलिए कि एक साथ पूरे देश के आम नागरिकों को अपने ही घर में कैद रहते हुए घर पर बैठे रहने का सुअवसर जो मिल गया है। ऐसे अवसर बड़े नसीब वाले को ही मिलता है। और हमारे जैसे अनगिनत भारतीय जनमानस भाग्यशाली हैं। अनगिनत ऐसे लोग भी थे जो इस महामारी में भी देश की सेवा में जुटे हुए थे। जैसे डाक्टर, कम्पाउन्डर, सफाई कर्मी, सुरक्षा प्रहरी, सेना के जवान इत्यादि। कोरोनावायरस बिमारी ने लेखकों को इतने अवसर उपलब्ध कराए कि वर्णन करना असम्भव है। असंख्य कविताएं, लघुकथा, कहानियां और अन्य विधाओं में भी अभी तक लिखी जा रही है। और मेरे हिसाब से यह बिमारी जबतक रहेगी उम्मीद है करोड़ों रचनाएं लिखी जा चुकी होगी।
"तथास्तु"
- भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"
गुड़गांव - हरियाणा
लेखक और लॉकडाउन का पुराना संबंध है। यह न हो, तो रचना की उत्पत्ति संभवनहीं। श्रेष्ठ साहित्य का जन्म हमेशा लॉकडाउन की स्थिति में ही होता है। जेल के भीतर रहकर दुनिया भर के रचनाकारों ने उत्कृष्ट और कालजयी रचनाओं को कागज पर उतारने में सफलता प्राप्त की है। कोरोना समय लेखकों और कवियों के लिए वरदान सरीखा है। हर रोज नई-नई कविताओं, दोहे, गीतों और गजलों का जन्म हो रहा है। कहानियां और उपन्यास लिखे जा रहे हैं। रचनाकार खुश हैं। फेसबुक पर हलचलें हैं। मौसम त्योहार सरीखा हो गया है। सुखानुभूति की गंगा बहने लगी है।
अवश्य ! लाकडाऊन के समय हर लेखक ने कवि ने  कोरोना और लाकडाऊन पर मज़दूरों पर बहुत लिखा है । 
बहुतो ने बेचारे पति की इतनी दुर्दशा कराई है की पत्नियाँ सोच में पढ गई है काश यह सच हो जाऐ हमें भी आराम हो जाऐ । 
जितने भी देश मे  क़लमकार है इस विषय से अँछूते नहीं रहें .. 
कितनों ने अपनी अँधूरी पढी किताबों को पुरा किया 
लॉकडाउन अगर कुछ दिन और रहा, तो हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धि में जल्दी ही चार चांद लग जाएंगे। यह हिंदी भाषा के इतिहास का स्वर्णिम कोरोना काल है। प्रकाशक चाहें, तो सिर्फ कोरोना के इस दौर की रचनाओं पर अनेक तरह के आयोजन-समारोह किए जा सकते हैं। रचनावलियां छप सकती हैं। विमोचन-अभिनंदन संपन्न हो सकते हैं। लग रहा है कि कोरोना समय में रचनात्मकता का भयंकर विस्फोट हुआ है।कविताएं उछालें मार रही हैं। व्यंग्य बरस रहा है। दोहे और गजलें फूट पड़ रही हैं। रंगकर्म की दुनिया में ‘क्वारंटीन थियेटर फेस्टिवल’ का आगाज हो चुका है। कविता फेसबुक पर ऑनलाइन है। 'सदी की कविता’ का पाठ होने लग गया है, जिसमें जीवित कवि अपना नाम और मुकाम तलाश कर रहे हैं।
मैं ऐसेकितने लेखकों को जानती हूँ जिन्होंने अपनी पुस्तकें पुरी की 
लॉकडाउन का लाभ हमारे लेखकों और कवियों ने खूब उठाया है। राजधानी समेत बिहार के कई लेखक खाली समय में अपनी रचनाओं को पूरा करने में लगे हैं। उम्मीद है कि लॉकडाउन समाप्त होने के बाद कई नई रचनाएं पाठकों तक पहुंच पाएंगी। शहर के जाने-माने लेखक रत्‍‌नेश्वर इन दिनों देश की पहली सभ्यता और संस्कृति जो 35 हजार पुरानी है, उस पर रिसर्च कर उपन्यास की शक्ल देने में जुटे हैं। रत्‍‌नेश्वर की मानें तो पुस्तक 400 पेज की होगी। पुस्तक में सबसे पहले मानव प्रजाति कैसे अफ्रीका से ईरान होते हुए भारत आयी, उनका रहन-सहन कैसा था, संसार का पहला वाद्ययंत्र कैसा था, खान-पान और संस्कृति कैसी थी, इन तमाम बिंदुओं पर जानकारी रहेगी। 
लेखिका भावना शेखर इन दिनों देश के एक पर्वतारोही के जीवन के बारे में लिखने में लगी हैं। कोरोना काल में अपने अधूरे काम को निपटा रही हैं। कुछ वर्ष पहले एवरेस्ट पर विजय पाने वाले एक पर्वतारोही के जीवन पर लिख रही हैं। भावना के मुताबिक यह काफी पेचीदा और शोधपरक है। आरंभिक रूपरेखा बनाने के बाद कुछ हिस्सा लिखी थीं, बीच में तीन वर्ष का अंतराल आ गया। लॉकडाउन में अपने अधूरे काम को पूरा करने में जुटी हैं।
पवन तिवारी अपने उपन्यास शुक्राचार्य को पुरा करने में रात दिन एक कर रहे है । 
जाने कितनी प्रतियोगिताओं का दौर चला इन दिनों , 
ऑनलाइन कविसम्मलनो की तो बाढ़ सी आई है 
मैंने स्वयम लाकडाऊन शुरु होते ही ऑनलाइन कवि सम्मेलन शुरु किया और लगातार “४२ “दिन काव्य पाठ हर विधा में फिर विषय देकर करवाया आज भी चालू है पर अब हर रविवार को , इसमें नये विषय देकर लोगों को लेखन करवाने का उद्देश्य मुख्य था । 
4000, से ज़्यादा कवियो  ने ४२ 
में काव्य पाठ किया , 
यह सब लाकडाऊन के चलते ही हो पाया एक सार्थक व साकारात्मक सोच के साथ ले सबने मेरा बहुत साथ दिया देश विदेश से कई सौ कवि जुड़े और जुड़ते ही जा रहे है । 
ज़ेमनी अकादमी ने तो कोरोना और लाकडाऊन के हर पहलू पर रोज़ नया विषय देकर हम सबको लेखन के लिऐ प्रोत्साहन देती आ रही , 
हमने हर पहलू पर लिखा है , मैं जेमनी अकादमी  का धन्यवाद करती हूँ हमें लिखने व हमारी सोच को दूर दर तक दौड़ाने का मौक़ा दिया । 
एक पुस्तक बन जाऐ इतना मैं लिख चुकी हूँ 
ईबुक की भर भार हो रही है 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बिलकुल, इसमें कोई दोराय नहीं की कोरोना महामारी के दौरान लॉक डाऊन का लम्बा समय लेखकों को लेखन की दृष्टि से किसी स्वर्ण युग से कम नहीं ।
लेखक प्रकृति से गहराई तक जुदा प्राणी है । ज्यादा शोर शराबे,चिल पों,या व्यवधान में लेखन कार्य नहीं हो सकता ।ये लॉक डाऊन तो तो लेखकों के अनुरुप है ही ऊपर से विषय भी कुदरत ने खुद ही दे दिया------कोरोना--------
       लॉक डाऊन के दौरान बहुत अधिक साहित्य लेखन हो रहा है इसमें भी अस्सी प्रतिशत लेखन कोरोना पर ही है । हिमाचल की अग्रणी लेखन संस्था बिलासपुर लेखक संघ( रजि) लॉक डाऊन के शुरु होते ही अब तक प्रतिदिन हिन्दी काव्य गोष्ठी ऑनलाइन जारी किये हुए है जिसमें ऐडमिन सुरेन्द्र सिंह प्रतिदिन अलग अलग विषय दे कर शाम 7बजे तक कविताएं आमंत्रित करते हैं और शाम 7बजे वरिष्ठ लेखक सभी कविताओं की समिक्षा करते हैं ।सुरेन्द्र कहते हैं कि लेखक संघ कोरोना काल के काव्य की एक सामुहिक पुस्तक प्रकाशित करेगा ।ऐसे ही वर्तमान अंकुर द्वारा भी ऑनलाइन काव्य प्रतियोगिता करवाई जा रही है । पानीपत के सम्माननीय बीजेन्द्र जैमिनी की जैमिनी अकादमी द्वारा भी " "आज की चर्चा "में कोरोना पर निबंध प्रतियोगिता जारी है ।ऐसे अनेकों ऐकल और सामूहिक लेखन कार्य हो रहे है ।
अताह ये समय लेखन के लिये लेखकों के वास्ते स्वर्ण युग से कम नहीं ।।
  -  सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कोरोनावायरस ने लॉक  डाउन  में  लेखन को एक नया आयाम दिया है ,यह बात सत्य है ।
कोविड-19 के चलते लोग घरों में रहकर पॉजिटिव बने रहने के लिए अपने स्तर से हरसंभव  प्रयास कर रहे हैं ,ऐसे में वक्त की नजाकत को देखते हुए लेखन में नया आयाम पनपा है ।हर दिन एक नया लेखक, लॉक डाउन की कहानी लिख रहा है ।वरिष्ठ लेखकों के साथ नई पीढ़ी के लेखक भी जुड़े हुए हैं ।हम कह सकते हैं कि लॉक डाउन ने साहित्य की दुनिया ही बदल दी है।
 नेट पर साहित्यिक बहस भाषाई साहित्य के लिए नई राह खोल सकती है।अन्य क्षेत्रों की तरह लिखने पढ़ने वालों की दुनिया भी को भी प्रिंटिंग युग से डिजिटल युग में जाने वाली है ,क्योंकि इंटरनेट ,पाठकों व श्रोताओं का इंटरएक्टिव मंच बन गया है। कोविड-19 के बाद भी लेखको व पाठकों की बड़ी तादाद में प्राप्ति होने वाली  है ।
इंटरनेट राजपथ पर बनने वाली दिन रात की सूचनाये ,मनोरंजन, पठन-पाठन की दुनिया की तरफ मुड़ने जा रही है। एक बात यह भी तय है कि लिखित से वाचिक परंपरा से दोबारा जोड़ रहा साहित्य भी इसका एक हिस्सा होगा ।वजह यह है कि तालाबंदी से  ऊब भरे समय में लोग नेट की तरफ बढ़ रहे लेखकों एवं  मर्मज्ञ साहित्यकारों  को पढ़ व सुन रहे हैं। जो किसी भी साहित्यकार के लिए हौसला अफजाई  एवं किसी पुरस्कार के तुल्य ही होता है ।यह एक अच्छी प्रगति है एवं नए साहित्यकारों के लिए पहल भी। नए लेखकों के लिए शायद भाषाई साहित्य के लिए निरंतर आवाजाही का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है ।वैसे तो हर साहित्यकार में एक विकट आत्म सम्मान और तीखा न्याय बोध होता है ।
नये लेखको मे कोई आत्मकथा लिख रहा है, तो कोई संस्मरण, कोई शेर तो कोई कविता या फिर अलग-अलग  पटल पर लोग कोरोना को  लेकर अपने विचार एवं अनुभव साझा कर रहे हैं ।लोग अपने जीवन अनुभव को जो जीवन के अंतरंग क्षणों से जुड़े हैं को भी सृजन का रूप दे रहे हैं। आजकल हर रचनाकार अपनी तरह से नेट पर खबरों में या ब्लॉक्स पर या साहित्यिक पत्रिकाओं के संस्करणों से जुड़ रहे हैं ।फेसबुक पर रोज रोज लाइव आने की होड़ सी लगी हुई है ,यह भी नए रचनाकारों के लिए प्रेरणा का कार्य कर रही है ।घर बैठे ऑनलाइन सम्मेलन एवं गोष्ठियों को भी लेखन की तरफ आकर्षित करती है ।लेखन के साथ-साथ प्रकाशन में तस्वीरों के पोर्टल पर प्रदर्शित होने से लोग अपने को प्रसिद्धि की तरफ खींचने की होड़ में लगे हैं, यह भी एक आकर्षण का बिंदु ही है जो लोगों को लेखन की तरफ आकृष्ट कर रहा है। जल्दी ही नई पीढ़ी समझ जायेगी  कि भारतीय भाषा साहित्य से अंतरंग होना कितना जरूरी है ।बिना अपनी मातृभाषा पर गहरी पकड़ के कोई भी साहित्य बहुत आगे तक नहीं जा सकता यह भी सत्य है।
 लॉक डाउन में लेखन को नया आयाम देने का संपूर्ण श्रेय इंटरनेट को जाता है ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
लॉक डाउन का इतना लंबा समय, हर कोई घर में बंद। न कहीं आना न जाना। सारा दिन घर की चारदीवारी के साथ रहते रहते और वही चेहरे देखते देखते बहुत से नए तजुर्बे भी हुए। और इन तजुर्बों को किसी ने कविता के रूप में, तो किसी ने लेख के रूप में, संस्मरण लिखने शुरू किए। सुर जो पहले से ही थोड़ा बहुत लिखते थे उन्होंने भी खूब लिखना शुरू किया।और लिखते लिखते उनकी लिखना क्षमता बहुत अच्छी होने लगी है। जो भी उनका खुद का, या समाचार द्वारा मिली सूचना दिल को छू गई और बस वह कागज़ पर उतरती चली गई। और आज इस समय नए नए और बहुत अच्छे लेखक उभर कर सामने आ रहे हैं। समय ने उनकी लेखनी में धार दे दी है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
आज कोरोना वायरस  जैसा एक अदृष्य दानव पूरे विश्व को अपनी अंगुली पर नचा रहा है! 
कहां मानव चंद्र, मंगल में रहने की सोच रहा था आज पृथ्वी पर अपने आप को बचाने का प्रयत्न कर रहा है  !अपने ही घर मे कैद होकर रह गया है!  
 प्रकृति में समय के साथ परिवतर्न होते रहते है फिर लेखक जैसा भावुक संवेदनशील मानव की लेखनी कैसे अछूती रह सकती 
है ! 
प्रकृति के सौंदर्य का रसपान करा सकता है तो उसके बदले हुए अंदाज भी कहता है!
लेखक हमेशा एकांत प्रिय होता है! उनकी रचना का सृजन लॉकडाउन में  ही होता है इसमे कोई संदेह नहीं है!  समाज और साहित्य दोनों पूरक हैं  यह भी गलत नहीं  है! लेखक, कवि अथवा साहित्यकार बहुत ही भावुक होते हैं !वे सौन्दर्य बोध का अनुपान लेते हैं  तो दुख के मंजर को भी आत्मसात कर लेते हैं  !
कोरोना  काल के इस लॉकडाउन ने जो पीड़ा पशु पक्षी, जानवर और इंसानो को दी है उसे देख भावुक कवि लेखक की लेखनी भी विचलित हो सबके सामने वर्तमान स्थिति के सत्य को लिखने लगी! करोना वायरस पर कविता दुखी मजदूरो की व्यथा ,प्रेरणा देती हुई कविता, जाने ऐसे कितने दर्द है जो इस वायरस  ने दिए हैं सभी पर लिखी! लाकडाउन में  कवि  अपना संदेश व्हाटसेप  फेसबुक,अॉन लाइन कवि सम्मेलन द्वारा पहुंचाते हैं! कवि लेखक की लेखनी मे बहुत ताकत होती है! 
इस वायरस के लॉक डाउन मे लेखक को लिखने का नया आयाम मिला है!  लेखक कवि की लेखनी समाज मे होने वाले घटना के ब्यूरो का संग्रह है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
एक लेखक कल्पना की दुनियाँ में  जीता है l उसके जेहन में हमेशा कल्पना उमड़ती रहती है जिसे वह शब्दों में पिरोता है l लॉक डाउन ने अपने विचारों के प्रकटीकरण के लिए पर्याप्त समय देकर नया आयाम दिया है l अपने विचारों को प्रस्तुत करने का इससे बेहतर समय और नहीं मिल सकता l "साहित्यस्य भावेः सः साहित्यम "अर्थात जिसमें सहती का भाव हो उसे साहित्य कहते हैं l कोरोना संक्रमण काल में साहित्य जगत अपने ढंग से पाठकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभा रहें हैं l क्योंकि साहित्यकार यह जानते है कि इस भयावह दौड़ में इस महामारी के लिए जितना शारीरिक इलाज़ महत्वपूर्ण है उतना ही इसके प्रभाव से जूझ रहें लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा भी आवश्यक है l लोग नकारात्मकता में न चले जाएँ, अवसाद के शिकार न हो जावे इसलिए साहित्य जगत पूरी पूरी कोशिश कर रहा है l 
    कोरोना संक्रमण के चलते लॉक डाउन ने बहुत कुछ बदल दिया है और बदलाव की एक धार साहित्य में भी देखने को मिल रही है l किताबों को लेकर लोगों में रूचि बढ़ी है क्योंकि भागती दौड़ती जिंदगी में आये ठहराव के मध्य किताबें सच्ची साथी बनकर उभरी हैं, ऐसा ही आभास ऑन लाइन डिजिटल दुनियाँ में देखने को मिल रहा है l डिजिटल वास्तव में आने वाला कल है, जिसकी धाक केवल सूचना व संचार में ही नहीं वरन शब्दों की दुनियाँ में भी है l इसने दूर रहकर लोगों को पास कर दिया है l पूरी फिजिकल है लेकिन अहसास और प्यार बिलकुल दूर नहीं है l फेस बुक हो या यू ट्यूब लाइव, इसके जरिये लेखक और पाठक आपस me सीधे जुड़े हुए हैं, उनसे बातें कर रहें हैं,सवालों के जवाब दे रहें हैं l उन्हें अपनी रचनाएँ पढ़ कर सुना रहें हैं l 
       किसी के लिए अपने चेहते चेहरे को लेप टॉप या फोन स्क्रीन पर देखना मन को रोमांच से भर रहा है l इण्डिया टुडे और आज तक समूह ने साहित्य के लिए समर्पित डिजिटल चैनल "साहित्य तक ""कोरोना और किताबों "की एक नई श्रंखला प्रारम्भ की है l जिसके तहत नामचीन लेखक अपनी किताबें या अंश, कविता आदि का पाठ कर रहें हैं l 
      कोरोना काल में लॉक डाउन का समय न केवल लोगों को साहित्य से जोड़ रहा है अपितु दुनियाँ से जुड़े रहने का एहसास भी करा रहा है l यह सकारात्मक ऊर्जा के संचार में सहायक है, जिसकी मानव को आज सबसे ज्यादा आवश्यकता है l यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि "साहित्यकारों के पास शब्द हैं और शब्दों से जुडा व्यापक संसार" अतः ये उसी का सहारा लेकर मानवता और जीवन के पक्ष में लॉक डाउन की भयावह स्थिति में आमजन को मनोवैज्ञानिक उपचार प्रदान कर मानवता को प्रेरणा दे रहें हैं l 
     चलते चलते -
बलवाणप्य शकतो असो धनवानापि निर्धनः l 
श्रुत्वानापि मूर्खस्यो यो धर्म विमुखो जन:ll 
जो व्यक्ति कर्मठ नहीं है, अपना धर्म नहीं निभाता l वो शक्तिशाली होते हुए भी निर्बल है, धनी होते हुए भी गरीब है और पढ़े लिखें होते हुए भी अज्ञानी है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कोरोना वायरस ने क्या नहीं दिया ? संपूर्ण मानव- समाज, बालक, वृद्ध, युवा, नर- नारी को सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक अभिरुचि के अनुसार जीने की नई- नई दिशाएं प्रदान की हैं। जिसके फलस्वरूप देखा--- कहीं मनुष्य के अहंकार की अतिवादिता, तो कहीं मानवतावादी संवेदनाओं- भावनाओं का शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्तिकरण । कहीं श्रम हारा वर्ग की वेदना विवशता का चित्रण तो कहीं मूक पशु- पक्षियों  के अन्न, दाना- पानी की चिंता का स्वर, तो कहीं सब प्रकार से बेबस हुए मात्र ईश्वर को नियंता मानकर उसकी छवि का अवलोकन कर शरणागत से सबके मंगल की कामना का भाव व्यक्त करते सुरों से सजी अध्यात्मिक लेख कविता का जन्म हुआ साथ ही पुराने आख्यान रामायण महाभारत सीरियल को देख ज्ञान गंगा की धारा में अवगाहन किया।
        साहित्य  समाज का दर्पण है ।अक्षरत: सत्य ही है। कोरोना वायरस ने लॉक डाउन में संपूर्ण देश ही क्या विश्व को भी प्रभावित किया ऐसे में हर व्यक्ति हिल गया। कुछ तो अपने पारिवारिक सहयोग में दिनचर्या से जुड़े तो कहीं अत्यधिक संवेदनशील भावों से भरा कवि या लेखक का दर्द ही वायरस की उत्पत्ति का कारण- प्रभाव को आलेख, कहानी, एकांकी में स्थितियों को निरूपित करने लगा। तो कहीं  कवि समाज भी भावनाओं के उद्वेलन को शब्दों से सजाकर सुरों में बांधने लगा ।
       विभिन्न मंचों से जुड़े कभी साहित्यकारों ने ऑडियो वीडियो बनाकर मंचों में उच्च कोटि की भावाभि व्यक्ति की। समय का सदुपयोग भी किया।। कभी समय से लंबित अपूर्ण लेखन को इन दिनों में भरपूर समय देकर गति भी प्रदान की।  किसी का कहानी संकलन तो किसी का काव्य संग्रह तो कहीं सीरियल की स्क्रिप्ट तैयार हो गई हैं।
         एक उदाहरण के अनुसार जैमिनी जी के निर्देशन में भी "आज की चर्चा" में  और कोरोना वायरस का  लॉक डाउन( लघु कथा संकलन )में विचारकों, लेखकों के विचारों को ब्लॉग पर समाहित, प्रचारित व प्रसारित कार्य ने उनके लेखन की सुरुचि को सार्थक, उद्देश्य पूर्ण एवं प्रशंसनीय बनाया है।
- डाॅ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जी हाँ , कोरोना वायरस ने लाकडाउन में लेखन जैसी रचनात्मकता को विषम परिस्थिति में  लेखन को आयाम दिया है ।  ऑनलाइन कविसम्मेलन , श्लोक गान , कविता , कहानी , हिंदी साहित्य की सभी विधाओं  से रचनात्मकता को आयाम देने के लिए ऑनलाइन प्रतियोगिता , लेखन  आदि  सार्थक मंच  मिल रहा है । हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर बेबनार , वर्कशॉप , लेक्चर आदि का लाभ समाज , देश , विश्व के लोग उठा रहे हैं । घर बैठकर हम  नामी , गिरामी साहित्यकारों को प्रकाशक के द्वारा हर दिन ऑनलाइन कहानी , नाटक आदि विधाओं के साहित्यकारों के  विचारों को जीवंत सुन  देख सकते हैं , वे हमारे प्रश्नों के जवाब भी देते हैं ।  यह साहित्यिक क्रियाशीलता  हमारे मस्तिष्क को साकारकात्मक ऊर्जा जे साथ रचनात्मक मांसिक्तावको बढ़ावा देता है ।
मुझे अपना बचपन , यौवन याद आ गया जब हमारे माता - पिता ऋषिकेश उत्तराखण्ड में रामलीला , रासलीला , साधुसंतों   के प्रवचनों सुनने , साहित्यकारों की गोष्ठी आदि में सपरिवार ले जाते थे । जिससे हम मानसिक 
रचनात्मकता का विकास कर सकें । 
 आज यही मंच लाकडाउन काल में समाज को मिल रहा है। लोग कितनी विषम परिस्थिति में रह रहे हैं । ऐसे में साहित्यिक कार्यक्रम तकनीकी सुविधाओँ  इंटरनेट से संसार के ये कार्यक्रम हम अपने ड्राइंग रूम में बैठ के सुन के लाभवान्वित  हो रहे हैं ।
हमें सीखने को भी मिल रहा है । जो मेरे मानसिक बूस्टर का काम करता है ।  मैं तो इनसे प्रेरित हो के मेरे विचारों को ऊर्जा के साथ  लेखन की सर्जनात्मकता को आयाम मिलता है । जिसका परिणाम यही है कि  मैं बृजेन्द्र जैमिनी जी के ब्लॉग से जुड़ी हूँ । नित्य नए - नए शीर्षकों के साथ मैं अपने विचारों को देश , दुनिया में पहुँचाती हूँ ।
यह ब्लॉग फेसबुक से भी जुड़े होने के कारण  प्रबुद्धवर्ग , पाठकों , लोगों की प्रतिक्रिया भी मिलती है ।
  हर कलमकार अपनी गतिशीलता , क्रियाशीलता को कलम से गतिवान बना सकता है । कलम ही लेखक का हथियार होता है । विश्व , समाज , देश में जो घटनाएँ  आदि हो रही हैं , वह लिख कर  दुनिया में आवाज पहुँचाता है । 
 मेरे लिए कोरोना काल साकारकात्मक ,सृजनात्मकता को ले कर आया है ।  जहाँ हिंदी साहित्य के शख्शियतों , प्रकाशकों  से मुलाकात हुयी , जिन्होंने हमारा नजरिया में चार चाँद लगाए ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
कोरोना वायरस ने लॉक डाउन में व्यक्ति को खुद के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है । हर कोई अपनी दिलचस्पी के अनुसार कार्य करने में लगे हैं । कुछ लोगों ने तो नए-नए इजात किये हैं। नई तकनीकियों के सहारे कुछ न कुछ क्रिएटिव किया है । तो फिर लेखक तो खुद को लॉक डाउन में हमेशा रखते हैं।
 उनके लिए समयानुसार कई प्लाट तैयार हैं। इस महाकाल में दुःख-सुख दोनों का सामंजस्य सामने आया है । लेखकों की निगाह सूक्ष्म-से -सूक्ष्म भावनाओं को आत्मसात करती हैं।  इस समय को आने वाली पीढ़ी के लिए इतिहास बनाना उनकी जिम्मेदारी है । जिससे इस त्रासदी का सही खाका खींच जा सके ।
लेखक के कंधों पर इस परिवेश की व्याख्या की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। पाठक बड़ी उत्सुकता से हर नए लेख या कहानी का इंतजार कर रहे हैं । क्योंकि इतनी कहानी मीडिया के मार्फ़त सुनाई गई है कि हर छोटी-बड़ी घटना आँखों के आगे चलचित्र की भांति घूमती है । उनसे इतर अब इंतजार है बड़े-लेखकों की कृति का।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
लेखकों  को  अपने  आस-पास  घटित  होने  वाली  घटनाएं,  जीवन  के  उतार-चढ़ाव, पर्यावरण  आदि  सभी  प्रभावित  करते  हैं  ।  उसके  दिमाग  में  विचारों  की  उथल-पुथल  चलती  रहती  है । जिन्हें  वह समय-समय  पर  कल्पना  शक्ति  के  संयोजन  से  शब्दों  के  द्वारा  रचना  का  रुप  देता  है  ।  ये  रचनाएँ  गद्य  एवं  पद्य  की  विभिन्न  विधाओं में  के  रुप  में  सृजित  होती  है  । 
        कोरोना  काल  का  समय  और  लंबे  समय  तक  घर  में  समय  गुजारने  का  सबसे  अधिक  लाभ  लेखकों  को  मिला  है  ।  इस  काल  में  लेखन  का  मुख्य  विषय  भी  कोरोना  ही  रहा  है  ।  कवियों  ने  जमकर  कोरोना  को  अपनी  कविताओं  में  स्थान  दिया  है  । 
        इसी  प्रकार  कहानियां, लघुकथाएं, आलेख,  व्यंग्य  आदि  सभी  विधाओ  में  कोरोना  को  लेकर  लिखा  जा  रहा  है  ।  ये  समसामयिक  लेखन  आने  वाली  पीढ़ियों  के  लिए  कोरोना  का  दस्तावेज  होगा  । 
       इस  समय  का  सदुपयोग  करते  हुए  लेखकों  ने  अपनी  अधूरी  पुस्तकें  भी  पूरी  अपने  भावों  को  संग्रहीत  किया  है  । 
       - बसन्ती पंवार 
             जोधपुर - राजस्थान 
रचनाकार के लिए सृजन, संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है। आसपास की अनुभूतियाँ जब संवेदनशील मन से होकर गुजरती हैं तो उद्वेलित मन अभिव्यक्ति के लिए छटपटा उठता है। 
 कोरोनावायरस ने लॉकडाउन में नई- नई  अनुभूतियाँ दीं हैं,नये और चौंकाने वाले अनुभव दिए हैं। यही कारण रहा कि सभी रचनाकार अपने-अपने अनुभव  और अनुभूतियों को लेखन के माध्यम से अभिव्यक्त करने में जुट गया। इस माहौल में उसे जो देखने मिल रहा है, उसमें नवीनता तो है ही, प्रसांगिकता भी है। यही वजह है कि लेखन को मिले इस नये आयाम से हर रचनाकार की रचना में विविधता है ,सार है,सद्भाव है, यूँ कहें कि जीवन दर्शन है। 
इस अवधि में लेखन की गति भी तीव्र हुई है। ऐसा कोई रचनाकार नहीं होगा, जिसने कोरोना और लॉकडाउन पर अपनी कलम न चलाई हो। सभी लिख रहे हैं, लगातार लिख रहे हैं, हर विधा में लिख रहे हैं  ... और अच्छा एवं सार्थक लिख रहे हैं। यही नहीं मार्मिकता के अलावा स्वस्थ हास्य -व्यंग्य का भी उम्दा सृजन हो रहा है।
 साहित्य जगत के लिए यह सकारात्मक पक्ष है जो लेखन और सृजन को सामाजिक मूल्यों की समृद्धि और सही दिशा के लिए सशक्तिकरण भरा साबित होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कोरोना वायरस  लॉक डाउन  के कारण लेखन में लोग ज्यादा समय दे पा रहे है। लेखन के लिए इसे स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा जा सकता हैं। लॉक डाउन में भरपूर समय मिलने के कारण कविता, कहानी, उपन्यास, लेख, गजल, दोहे, संस्मरण, लघुकथा का रचना ज्यादा हो पा रहा है।
लॉक डाउन में कोरोना और मजदूरों के हालात पर बहुत लेखन हुआ है।
समय के अभाव में जो पुस्तकें नहीं पढ़ पाए थे उस पुस्तक को पढ़ने का सुनहरा मौका मिला। लॉक डाउन में ऑनलाइन कविता, लघुकथा, गजल का पाठ का आयोजन  किया जा रहा है।
लेखकगण अपने अधूरे रचना को पूरा करने में लगे हुए है। 
        - प्रेमलता सिंह
पटना- बिहार
लाकडाउन की अवधि मे सामान्य जन जीवन लगभग ठप सा हो जाने से लेखकों की क्रियाशीलता बढ़ी है।घर मे रहने का शांति चित्त विचार करने का ज्यादा अवसर मिला। जिंदगी के आपाधापी से निजात भी मिला है। लेखकों की क्रियाशीलता ने उनकी आयाम को विस्तृत दिया है। उनकी लेखनी को बल मिला है। कोरोना के कारण विश्व को नये रुप मे देखने के लिए और परिभाषित करने के लिए लेखकों की लेखनी चल पड़ी है।निबंध, कविताया लघुकथा मे कोरोना की अभिब्यक्ति को अच्छा खासा जगह मिला है। साहित्य अभिब्यक्ति ने कोरोना काल मे अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।
   - रंजना सिंह
   पटना - बिहार
        इसमें कोई संदेह नहीं है कि कोरोना वायरस ने लाॅकडाउन में लेखन को नया आयाम दिया है। क्योंकि पूरा दिन और रात खाली बैठने से लोग तरह-तरह के व्यंजन, हस्तकला, झाड़ू-पोछा इत्यादि लगाने से पीछे नहीं हटे। फिल्में भी इतनी देखना संभव नहीं था। फिर करें तो क्या करें? प्रश्र गंभीर है।
      अब जब उपरोक्त कर्म करने से पुरुष पीछे नहीं हटे तो लेखनकला की तो बात ही कुछ और है। आमों के आम और गुठलियों के दाम वाली कहावत पूर्णतः चरितार्थ हो रही है। चूंकि एक तो लेखन से समय कट जाएगा दूसरा लेखक होने पर गौरवान्वित महसूस होगा।चार लोग जानने भी लगेंगे। इसके अलावा लेखनकला से अपने मन की बात दूसरों तक पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी है। जिससे प्रशासन की नींद उड़ाई जा सकती है और राष्ट्रभक्ति अलग हो जाती है। इससे भी अधिक बल उस समय मिलता है, जब मातृभाषा में लिखने पर मातृभाषा सेवक और राष्ट्रीय भाषा लिखने पर राष्ट्र स्तर पर ख्याति प्राप्त होती है। जिसकी लालसा प्रत्येक मानव में होती है। यूं भी मन की बात करने के लिए हम प्रधानमंत्री तो बनने से रहे।
      उल्लेखनीय यह भी है कि हमें माता सरस्वती की सेवा का अवसर भी मिलेगा और कृपा भी प्राप्त होगी।
     अतः कोरोना वायरस ने लाॅकडाउन में लेखन को अत्याधिक नया आयाम दिया है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
पहले लोगों के पास समय की बहुत कमी थी । जिंदगी में रोजी-रोटी कमाने के चक्कर में लोग भागम_ भाग की जिंदगी में उलझे हुए थे ।आज लाॅक डाउन के इस समय में लोगों के पास समय हीं समय है ।आज इसलिए लोग अपनी छिपी प्रतिभा को उभारने में लगे हैं ।जिसके भी जो भी शौक़ रहें हों आज वो व्यक्ति उन सब को बखूबी पूरी कर रहा है ।लेखन कार्य भी इस समय की सबसे बड़ी उपलब्धि है क्योंकि लोगों के पास असीमित समय है जिसका वो भरपूर सदुपयोग कर रहे हैं ।लिखना_ पढ़ने का जिसे भी शौक़ है ,आज यह उसके लिए सुनहरा अवसर है ।आज अन्य कोई विकल्प नहीं है मनोरंजन के जैसे, पार्क, पार्टी,घूमना, सिनेमा,माॅल , लोगों से मिलना-जुलना सभी पर पाबंदी है कोरोना वायरस के लाॅक डाउन के कारण ।फलत: व्यक्ति को  लेखन कार्य का भरपूर समय मिल रहा है ।आजकल आनलाइन सुविधाएं भी है लोगों को सुनने और बोलने की अपनी लिखी रचनाओं के लिए जिसके किरण इसका सुंदर प्रचार और प्रसार भी हो रहा है । एफ ०बी० पर हम लगातार लोगों को लाइव सिरकत  करते देख रहें हैं जिससे हम लगातार कुछ सीख रहे हैं , प्रेरित भी हो रहें हैं और अपना लेखन का शौक़ सुंदर तरीके से पूरा कर रहे हैं ।इस कार्य हेतु आज अनेक साहित्यिक मंच का सु अवसर भी हमें मिल रहा है ।इसके लिए हम आभारी हैं ऐसे मंचों का ।हर समय हमें कुछ नया लिखने को प्रेरित किया जा रहा है जिसका परिणाम अच्छा होगा हीं । इसलिए हमें इस समय का भरपूर इस्तेमाल करने की आवश्यकता है तभी हम अपने लेखन के नये आयाम में अग्रसर होंगे ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " कोरोना वायरस काल भी अपने आप में भविष्य में अपनी पहचान अलग रखने में सक्षम साबित होगा । इस पर बहस भी चल पड़ीं है । फिर भी भविष्य के गर्भ में क्या साबित होगा । फिलहाल कुछ कहना जल्दबाजी होगा । भविष्य का इतजार करना चाहिए ।
                                                       - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र 

आज फिर मिला कोलकत्ता से
कोरोना की जंग पर सम्मान - पत्र




Comments

  1. सभी बुद्धिजीवियों का विचार अपने आप में काफी महत्वपूर्ण है पर मेरे समझ से उर्मिला सेदार जी का विचार ज्यादा सटीक है।

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