क्या अपने विचार बदलने से विचारधारा अपने आप बदल जाऐगी ?

विचार सबसे महत्वपूर्ण होते हैं । अगर आपके विचार में दम है तो विचारधारा अपने आप बदल जाती है । बड़े - बडे़ विद्वानों ने अपने विचारों से विचारधारा को ही बदल दिया है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
मनुष्य के मन- मस्तिष्क में विचार की उत्पत्ति होती है। हमारे सांसारिक जीवन की गतिविधियां हमारे विचारों का ही प्रतिफलन है। फिर आगे जब कोई विचार व्यक्ति विशेष के द्वारा समूह, समुदाय एवं समाज में मान्यता पाने लगता है तो वह विचारधारा का रूप ले लेता है। अच्छे विचार उन्नत बनाएंगे; वही नकारात्मक, स्वार्थी उग्र ईर्ष्यालु ,क्रोध से युक्त कुंठाग्रस्त विचार पतन की ओर ले जाएंगे। स्वामी रामतीर्थ मानते थे कि" मनुष्य के जैसे विचार होते हैं वैसा ही उसका जीवन बनता है" अतः उत्कृष्ट विचारों से हम अभावग्रस्त जीवन में भी सुख- शांति, प्रसन्नता ,महसूस करेंगे। इसीलिए हर व्यक्ति के विचारों की अपार शक्ति का महत्व है। 
         जब अपने विचार शक्तिशाली, सर्वहितकारी, स्वस्थ समाज के पोषक होंगे और दूसरे के मन में आस्था और विश्वास पैदा करके समूह व समाज के प्रति विश्वास का भाव जगा देंगे तो महत्वहीन, कुत्सित विचारधाराओं को बदल सकते हैं।
        अत: अपने अच्छे विचारों के परिवर्धन से विचारधारा बदल जाएगी पर उसके लिए उसी दिशा में सामूहिक क्रांति की आवश्यकता होती है ।एकाकी या व्यक्तिगत विचार किसी भी विचारधारा को बदलने में सहायक मात्र ही होगा। क्योंकि मनुष्य सामाजिक प्राणी है। विचारधाराएं समाज का दर्पण होती हैं और व्यक्ति उसकी कड़ी होता है ।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
मन मस्तिष्क में उठने वाले विचार हमारे जीवन को संचालित करते हैं। विचारों से ही मानव का अस्तित्व बनता है। विचार ही आपके जीवन की दिशा निर्धारित करते हैं। जैसी आपकी सोच होगी वैसे ही आपका आचरण होगा। और जैसा आपका आचरण होगा वैसा ही आप समाज को दे पाएंगे सकारात्मक सोच का प्रभाव हमारे समाज, हमारे आसपास के वातावरण पर पड़ता है जिससे वह भी प्रभावित होकर अपनी सोच सकारात्मक बनाता है। इसे समझने के लिए अगर हम यह कहें कि एक फूल के पास जाकर हम बिना मुस्कुराए नहीं रह सकते और हमारे भी चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है तो यह गलत नहीं होगा यानी फूल का प्रभाव हमारे व्यक्तित्व पर भी पड़ता है ।अगर ऐसे ही हर व्यक्ति अपनी विचारधारा को सही दिशा दें तो पूरे समाज में एक सकारात्मक विचारधारा पनपती है । जैसे स्वतंत्रता संग्राम के समय गांधी जी ने एक विचार के द्वारा ही पूरे देश को संगठित किया। एक से एक जुड़ते गए, बनते गए और वह विचार विचारधारा में परिवर्तित हो गए। इसका अर्थ यह है कि हमें अपने विचारों को एकदम सकारात्मक रुख देना होगा और विचारों से विचार चलते चलते यह विचारधारा समाज को एक नया रूप, नई दिशा देगी I और इस तरह से हमें सिर्फ खुद को बदलने की जरूरत है। अपने विचारों को बदलने की जरूरत है जिससे जैसे विचार हम समाज में रखेंगे चाहे वह सकारात्मक है या नकारात्मक वही दिशा वही विचारधारा समाज की बन जाती है। और अंत में इतना ही कहूंगी....* मनमस्तिष्क में उठने वाले  भंवर को तू थामना, जो दिया मिलता वही करना पड़ेगा सामना।।*               - सीमा मोंगा 
रोहिणी- दिल्ली
सफलता के लिए हमें जीवन में अपने विचारों में बहुत बदलाव लाने होते हैं l निश्चित रूप से विचार बदलने से विचार धारा अपनेआप बदल जाती है l 
      हमारे मन में उठे भाव मंतव्य कहलाते हैं और मंतव्य की परिणति वक्तव्य होती है जो कि विचारों की अभ्व्यक्ति है l विचारों से ही व्यक्ति व्यवहारिक गतिविधियाँ करते है, जो मन के अध्याधीन होती हैं और यह कर्तव्य कहलाता है l मंतव्य, वक्तव्य, गन्तव्य और कर्तव्य ही व्यक्ति विशेष के प्रति हमारे व्यवहार को नियंत्रित करते हैं l 
व्यक्ति विशेष के प्रति विचारों का केन्द्रीभूत समूह विचारधारा कहलाती है, जो विचारों के बदलने पर बदल जाती है l यह विचारधारा का ही प्रतिफल होता है कि दो मित्र विचारधारा बदलने पर आपस में दुश्मन बन जाते हैं क्योंकि उसके प्रति हमारे विचार बदल जाते हैं l 
              चलते चलते -----
हमारे विचार और विचारधारा ही व्यवहार की परिणति है l हमारी विचारधारा ऐसी होनी चाहिए कि "जीवन में उछलो तो ऐसे कि सारे आसमान को छू लो 
जीवन की गहराई में ऐसे डुबो कि उसके चमकते मोती खोज निकालो 
फैलो तो ऐसे कि पूरी कायनात में समा जाओ और 
निकलो तो ऐसे कि हर किसी के दिल में समा जाओ l 
ऐसे जीवन के लिए आपके विचार और आपकी विचारधारा का सकारात्मक होना नितांत आवश्यक है l 
      -  डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जी  नहीं बिलकुल नहीं, विचार बदलने से विचारधारा  नहीं बदलती। विचारधारा को बदलना इतना आसान नहीं होता है, इसके लिए पूरी सोच और बिलीफ यानी यकीन को बदलना पड़ता है। क्योंकी जब एक सोच बहुत मजवूत हो जाती है तो इसके पीछे मजबूत  फिलिंग्स होती हैं और वोही  फिलिंग्स विचारधारा में बदल जाती हैं, 
इसलिए विचारधारा को बदलना इतना आसान नहीं होता। इसके लिए हमें  अपनी सोच व पूरे विचारों को बदलना पड़ता है जो इतना आसान नहीं। 
क्योंकी जब आप सोच को बार बार दोहराते हैं तो वो मजबूत हो जाती है, जिससे इमोशन मजबूत होने लगते हैं और वो एक विचारधारा में तब्दील हो जाते हैं, जो हमारे मन मैं  वैठ जाते हैं जिनको भुलाना नमुमकिन हो जाता है। इसलिए विचारधारा को बदलना इतना आसान नहीं है। 
हां एक्सपीरींयस के साथ साथ सोच वदली जा सकती है लेकिन विचारधारा काफी देर तक ऐसी ही रहती है। 
विचारधारा इन्सान  या तो एक्सिडैंटली वनाता है या बहुत सोच समझ कर बनाता है, इसलिए इन्सान को अपनी विचारधारा सही लगती है क्योंकी  उसने उसे खुद वनाया होता है। 
जबकि सोच  टेंपरेरी होती है, 
उसको बदल सकते हैं या उसका फेरबदल हो सकता है। लेकिन जब हम इमोशनली किसी चीज के साथ जुड़ जाते हैं  तो वो विचारधारा बन जाती है, इसलिए विचार बदले जा सकते हैं मगर विचारधारा नहीं। 
यहां तक की सोच सिर्फ आईडीया है, जिसे सिर्फ हम सोचते हैं लेकिन जब हम इसे फील करने लगते हैं तो यह विचारधारा बन जाती है, 
यही नहीं सोच और विचारधारा हर इन्सान के लिए वहुत मुल्य है। 
सच कहा है, 
"हर सुबह हमारे  पास दो विकल्प होते हैं
या तो अपनी सोच व विचारधारा के पैरव पसार कर जीवन के नये आयाम को छुएं, 
         या 
 अपनी सोच व विचारधारा के पंख सिकुड़ कर अपने दायरों में सिमटे रहें। 
यही नहीं विचार अच्छे होंगे तो काम  अच़्छा होगा और काम अच्छे होंगे तो परिणाम अच्छा होगा। 
मगर जरूरी नहीं  विचार  बदलने से विचारधारा बदल जाए क्योंकी बिचार बदलते देर नहीं लगती, यहां तक विचारधारा की बात है, विचारधारा किसी टापिक पर बात करना, विचार स्पष्ट करना है, कहा भी है यदि आप एक विचारधारा से प्रभावित होकर दुसरी विचारधारा को सुन नहीं सकते तो आप  सही नहीं हैं, 
इसलिए अच्छे विचार रखो  , ताकी हमें अच्छी सोच मिल सके और वोही हमारी विचारधारा वन सके अत:विचार वदलने से विचारधारा नहीं बदलती। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
         अपने विचार बदलने से ही तो विचारधारा बदलती है। जिस तरह के विचार मन में जैसे-जैसे आयेंगे हमारी विचाधारा वैसे-वैसे बदलती जाएगी। जैसा हम सोचेंगे वैसे ही हमारे विचार बनते हैं और जैसे विचार बनते हैं वैसे ही विचारधारा अपने आप बदलती जाएगी।
       अगर हम किसी के प्रति अच्छे विचार रखते हैं तो उसके प्रति हमारी विचारधारा अच्छी ही रहती है। लेकिन  जब कभी उसके बारे में कुछ गलतियां या उसके कुछ गलत कारनामें मालूम होता है तो तुरंत हमारे विचार उनके प्रति बदल जाते हैं और हमारी विचारधारा अपने आप बदलने लगती है। ठीक उसी तरह किसी के प्रति गलत विचार गलत धारणा रहती है और जब उसके बारे या उसकी अच्छाइयाँ पता चलती है तो हमारे विचार बदल जाते हैं और विचारधारा अपने आप बदलने लगती है।
 इस तरह से हम कह सकते हैं कि विचार बदलने से विचारधारा अपने आप बदलने लगती है। कभी-कभी ये परिस्थितियों पर भी निर्भर करती है। विचार बदलने के बाद भी विचारधारा नहीं बदलती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
       विचार और विचारधारा में बहुत अंतर है। क्योंकि विचार निजी होते हैं और विचारधारा सामूहिक होती है। इसलिए किसी एक के विचार बदलने से विचारधारा नहीं बदलती।
       उल्लेखनीय है कि विचार बदलने से जीवन बदल जाता है। क्योंकि यदि हम विचार करते हैं कि भ्रष्टाचार समाप्त करना ही करना है। तो हम लोहे के चने चबाने का विचार कर रहे हैं। ऐसे में दांत तो टूटेंगे और यदि हम विचार बना लेते हैं कि हमें भ्रष्टाचार का सहयोग करना है। तो मलाई खाने को मिल जाएगी।
       परंतु उस मलाई का स्वाद क्या होगा? उस पर विचार करने से पहले रिया चक्रवर्ती के दुस्साहस का परिणाम देख लेना चाहिए और मंथन करना चाहिए कि हमारे विचार कैसे होने चाहिए? 
       परंतु ड्रग्स सप्लायरों की विचारधारा कभी नहीं बदलती। एक के बाद दूसरा खड़ा मिलता और युगों-युगों से बुरी विचारधारा अच्छे विचारों पर भारी पड़ी है। यह कड़वा सच है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
परेशानी के इस दौर पर भी हमने महामारी से डटकर मुकाबला किया। अपने बड़े बुजुर्गों के बताए हुए सिद्धांतों को अपनाया।
मनुष्य के पास अपना विवेक ज्ञान नहीं होता है वह जो उसके पास है अगर वह जीवन में विषम परिस्थितियों को देखकर परेशान हो जाता है। वह परेशानियों को सहन नहीं कर सकता है हमको यह समझ लेना चाहिए कि दर्द एक गुरु होता है ना कामयाबी सफलता की चौड़ी सड़क है।
परेशानियों को भी आशीर्वाद समझना चाहिए और अपनी हिम्मत को बनाए रखना चाहिए क्योंकि हर रात के बाद उजाला आता है परिस्थितियां कैसी भी हो एक दिन परेशानियों का अंत होता है।
हम जो भी महापुरुष के वचन या कोई भी अच्छी किताब पढ़ते हैं उसके विचारों से हम प्रभावित होकर अपने जीवन को उसी के अनुरूप बनाते हैं।
उदाहरण के लिए जैसे हम गीता या रामायण पढ़ते हैं तो हम भगवान के उसी चरित्र या उन्होंने मानव को कैसे जीवन जीना है की कला बताइए उसी के अनुरूप जीते हैं।
गीता के उपदेश से निराश व्यक्ति को भी आशा की एक किरण नजर आ जाती है और वह धैर्य से सोचे तो उसे उसकी परेशानियों का हल मिल जाता है।
घर में बड़े बुजुर्गों का होना बहुत आवश्यक है बड़े बुजुर्ग ही सही गलत का ज्ञान और संस्कार देते थे आजकल परिवार एकल होने के कारण यह सब परेशानियां उत्पन्न हो रही है।
हम जैसे महात्मा गांधी स्वामी विवेकानंद या मुंशी प्रेमचंद जी या किसी भी कवि महादेवी वर्मा निराला आदि की कविताएं पढ़कर भी हमको बहुत प्रेरणा प्राप्त होती है।
इसलिए आप जब उदास रहे तो अपने मनपसंद लेखक की किताबें पर हैं या मनपसंद को गाना सुने तो आपको जीवन जीने की एक नई प्रेरणा मिलेगी और आपके विचार भी बदलेंगे जो व्यक्ति विचार को बदलता है और समय के साथ चलता है वही आगे बढ़ता है और जीवन में सफलता प्राप्त करता है।
इसलिए पुराने रूढ़िवादी विचारों को छोड़िए नए विचार नई टेक्निक को अपना आइए।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
मन का झुकना अति आवश्यक है तन को झुकाने से कोई लाभ नहीं होगा उसी प्रकार विचार हमारी मात्र सोच है और सोच बदलने से विचारधारा परिवर्तित तभी होगी जब उस विचार को व्यवहार में परिवेश में शामिल करेंगे
जैसे कोई व्यक्ति दहेज प्रथा केे सख्त खिलाफ है परन्तु जब स्वंंय के पुत्र का विवाह हो तो भूलवश सब सामान मांग लेते हैं उसी प्रकार विचार हमारे पल पल वातावरण के अनुसार बदलते रहते हैं परन्तु विचारधारा उन बदले गए विचारों के आधार पर लिए गए सही-गलत निर्णय स्पष्ट होती है।।
- ज्योति वधवा"रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
जहांँ तक आज की चर्चा में यह प्रश्न है कि क्या अपने विचार बदलने से विचारधारा अपने आप बदल जाएगी तो मैं कहना चाहूंगा विचारधारा का बदलना दुनिया का सबसे मुश्किल कार्य है आप बहुत सारे परिवर्तन ला सकते हैं अपनी क्षमताओं के अनुरूप या बल प्रयोग करके परंतु यदि किसी समाज में कोई विचारधारा बन जाती है तो उसे परिवर्तित करना बहुत दुष्कर कार्य होता है क्योंकि आदमी के बाद भी यानी आदमी की मृत्यु के बाद भी विचारधारा जिंदा रहती है यदि कोई व्यक्ति किसी विचारधारा को समाज में बनाने में सफल हो जाता है और जिस कार्य को करने के लिए उसने उस विचारधारा को जन्म दिया है यदि वह उसके जीवन काल में नहीं भी हो पाता तो उसके न रहने पर भी संघर्ष जारी रहता है यह जरूर है की विचार जिस प्रकार के होंगे एक लंबे समय तक जिस तरह के वातावरण में जिस तरह की संगति में मनुष्य रहता है उसी तरह की विचारों का प्रभाव उसके मन और मस्तिष्क पर पड़ता है और यदि यह प्रभाव स्थाई रूप ले लेता है तो यही विचारधारा का रूप बन जाता मैं यह नहीं कह रहा हूंँ की विचारधारा को बिल्कुल नहीं बदला जा सकता परंतु यह कार्य इतना सरल नहीं है जिसे हम दो-चार 10 दिन या महीने भर में कर दें इसके लिए एक लंबा समय सतत और सम्यक प्रयास अनुशासित ढंग से लंबे समय तक करने की आवश्यकता होती है ़!
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
 यह बिल्कुल सही है कि अपने विचार बदलने से विचारधारा अपनेआप बदल जाऐगी। शिक्षा का आशय भी यह भी है, वह हमें बौद्धिक रूप से ज्ञानवान तो बनाती ही है, हमारे विचारों को भी सशक्त और समृद्ध करती है। ऋषि, मुनियों के उपदेश, संत,महात्माओं के प्रवचन, महापुरुषों के चरित्र, धर्म ग्रंथ, अच्छी-अच्छी पुस्तकें ये हमारे विचार बदलने और हमें सही दिशा देने का ही काम करते हैं। इन्हीं की प्रेरणा से हम संस्कार वान बनते हैं। यह सकारात्मक प्रक्रिया है।
इसी तथ्य पर आधारित राजनीतिक भाषण होते हैं। वे भी तरह-तरह से भाषणवाजी से हमारे विचारों को बदलकर,हमारी विचारधारा को अपने समर्थन में लाने का चिर प्रयास करते हैं।
विचारधारा बदलने के लिए विचारों का बदलना जरूरी है। हमारा मन- मस्तिष्क ईश्वर की दी हुई अनुपम संरचना है। हमारे मन में विचारों का सतत संचालन होता रहता है। हम अपनी रुचि के अनुसार समान वैचारिक तरंगों में अपने मन- मस्तिष्क में रमे रहते हैं, शनैः शनैः वही विचारों के अनुरूप हमारी विचारधारा तय हो जाती है और वैसा ही स्वभाव बन जाता है। यह एक स्वभाविक अदृश्य प्रक्रिया है। यही हमारे जीवन और जीवन शैली को प्रभावित करती है और हमारा भविष्य भी तय करती है। अतः हमें सदैव सजग रहने की जरूरत है और अपने मन- मस्तिष्क में चल रहे विचारों को गंभीरता से चिंतन,मनन करना है ताकि हम भटकाव से बचें और अपने भविष्य को समृद्धशाली बनाने में सही दिशा तय करके रखें।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
 हर इंसान अपने विचारों की दुनिया में जीता है। अपने विचार बदलने से विचारधारा अकस्मात नहीं बदलती पर धीरे-धीरे बदलाव जरूर आती है। खुद के बारे में और दूसरे को समझते हुए अपनी सोच बदल सकते हैं।
  सोच बदलते ही व्यवहार बदल जाता है और व्यवहार में बदलाव होते ही चीजें बदलने लगती हैं। सामने वाले की मानसिकता को भी थोड़ा बहुत प्रभावित कर बदल सकते हैं।
   अपने मानसिक अवरोधों को पहचानें, उस पर नियंत्रण करें। उन विचारों और विश्वासों पर प्रश्न उठाए जो आपको उचित नहीं लगता या दुख पहुंचाता है।
    सफलता पाने के लिए आपको उसकी उम्मीद करना भी आना चाहिए। खुद को ताकत देकर सकारात्मक सोच के साथ काम करना शुरू कर दें। जब आप निर्णय कर लेंगे तब उसके अनुसार लोगों को समझाते हुए कार्य करेंगे।
     एक कार्ययोजना के साथ आगे बढ़ने पर धीरे-धीरे सफलता मिलती है। उदाहरण स्वरूप- राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को खत्म करने की एक कार्य योजना बनाई और उस पर उन्होंने अमल करते हुए लोगों को साथ लेकर कार्य किया और अंततः उन्हें सफलता मिली।
      इस तरह हम कह सकते हैं कि अपने विचार बदलने से विचारधारा धीरे-धीरे बदल जाती है पर समाज के लोगों के विचारों को बदलने के लिए अथक प्रयास करते हुए संघर्षरत रहना पड़ता है, तदुपरांत लोगों की मानसिकता और विचारधारा को बदलना संभव होता है।
              - सुनीता रानी राठौर
             ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
विचार बदलने से निश्चित रूप से विचारधारा बदल जाती है और यह विचारधारा फिर जीवनधारा ही बदल देती है। कोई विचार,कब विचारधारा की दिशा परिवर्तन कर दे, निश्चित नहीं कहा जा सकता। बचपन में सच्चे शिव की तलाश का एक विचार ही तो मूलशंकर के मन में आया था, जिसने उसे महर्षि दयानंद बना दिया। महर्षि दयानंद के संपर्क में आकर, मुंशीराम जैसे बिगड़ैल युवक के विचार बदले,तो जीवनधारा ही बदल गई और वह स्वामी श्रद्धानंद के रुप में धार्मिक व शैक्षिक जगत की वह महान हस्ती हुए। यह विचार का ही प्रभाव था कि एक डाकू संत बन गया और वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अंगुलिमाल के जीवन में भारी परिवर्तन आया। यह विचार का ही प्रभाव था कि युद्ध के नाम पर भारी नरसंहार करने वाले सम्राट  अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया और वह अहिंसा के मार्ग पर चल पड़ा। कभी कभी अचानक कोई विचार कौंधता है और आविष्कार हो जाता है। जेम्सवाट ने भाप के कारण केतली के उठते गिरते ढक्कन को देखा और भाप का इंजन बनाने का विचार आ गया,वह आविष्कारक बन गया।न्यूटन ने गिरते सेव को देख विचार किया और गुरुत्वाकर्षण शक्ति के सिद्धांत का प्रतिपादक हो गया। विचार में बहुत शक्ति होती है। इसीलिए हमें हमेशा अपने विचार सकारात्मक रखने चाहिए।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
             नहीं, विचार बदलने से विचारधारा अपने आप नहीं बदल सकती। उसके लिए प्रयास करना होगा। विचारधारा मानसिक स्थिति का पर्याय है जो एक गहन सोच से संबंध रखती है किसी मुद्दे विशेष पर अनुभवों के आधार पर न कि पल भर में लिए हुए विचार पर।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
अपने विचार बदलने से विचारधारा तभी अपने आप बदल सकती है जब हमें जीवन में कोई ऐसा अनुभव हुआ हो जिससे हमें झटका लगा हो और फिर जिसने हमारे विचार बदल कर रख दिये हों।  एक संबंधी के व्यक्तिगत उदाहरण के माध्यम से बताता हूं। वे अत्यधिक मांसाहार का सेवन करते थे और शाकाहारियों की खिल्ली उड़ाया करते थे।  जब उनके यहां बेटी का जन्म हुआ तो उसके होंठ से लेकर नाक तक का हिस्सा गायब था।  यह देखकर उन्हें बहुत पीड़ा हुई और पति पत्नी दोनों ने यही सोचा कि जिस प्रकार से उन्होंने मांसाहार किया है यह उसी का परिणाम है।  तभी से उनकी विचारधारा बदली और वे पूर्ण रूप से शाकाहारी हो गये तथा सभी को शाकाहारी होने की सलाह देते हैं।  उदाहरण देने का यही अर्थ है कि जब किसी चोट से विचार बदलते हैं तो विचारधारा अपने आप बदल जाती है।  
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
     जीवन दो राहों में अग्रसर हैं, पल-पलों में विचारधाराऐं परिवर्तित होती जाती हैं, जिसके कारण सही-गलत के निर्णयों में विलम्ब करते जाता हैं, जिसके परिपेक्ष्य में परिणाम सार्थक नहीं हो पातें और नकारात्मता की परिधि में सब कुछ खो देता हैं।
भावनात्मक रूप से अधिकांशतः परिवार जनों तथा इष्ट-मित्रों के बीच प्रायः देखने में आता हैं। कितने तपस्वियों एवं ऋषि मुनियों के तपों से विचारधाराओं को बदलने का प्रयास किया जरूर लेकिन शत-प्रतिशत नहीं, बदलाव आ सका, बल्कि उनके उपदेश अलमारियों में कैद होकर रह गये। मनुष्य योनियों में जब जन्म लिया हैं, तो अपने विचारों का विकेन्द्रीकरण करते हुए, अपने स्तर पर विभिन्न प्रकार के विचारों को वृहद रुप में बदलने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं, तभी मानव जीवन सार्थक, सार्वभौमिकता हो सकती हैं तथा सकारात्मकता की पहल से विचारधारा अपने आप बदल जायेगी?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
वैचारिक परिवर्तन तभी सम्भव है जब व्यक्ति सत्य की प्रमाणिकता को स्वीकारता है। इसलिए विचारधारा को बदलने के लिए सत्य और असत्य को प्रमाणित करने की आवश्यकता है।
 जब अपने अंदर पल रहे झूठ की पहचान हो जाती है, तब विचारों में बदलाव निश्चित है। उसके आगे विचार प्रमाणिकता के साथ अपनी राह बना लेते हैं। यही राह विचारधारा बन जाती है।
जिस प्रकार युग परिवर्तन भी विचारधारा का बदलाव ही है। आज वैज्ञानिक युग है, हर तथ्य को विज्ञान की कसौटी पर कसा जाना जरूरी है। परिस्थिति के अनुसार विचारों में परिवर्तन ही नये दौर का आगाज है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार 
निश्श्चित रूप सेविचार बदलने से हमारी विचारधारा अपने आप बदल जाएगी |क्योंकि हमारे जीवन का सारा ढांचा ही हमारी विचारधारा पर निर्भर है|और विचारधारा हमारे विचारों पर|अगर हमारे विचार नकारात्मक हैं तो हमें उन्हें बदलना होगा अन्यथा हम जीवन में सफल नहीं हो सकते |इस तरह अगर  हम अपने विचारों को बदलें,तो विचारधारा अपने आप बदल जाएगी |विचारधारा के बदलते  ही हमें सही दिशा मिल सकती है |अतः यह कथन सटीक  है अपने विचार बदलने से विचारधारा अपने आप बदल जाएगी|
जीवन में बदलाव लाने के लिए सकारात्मक सोच का होना अति आवश्यक है| अगर हमारे विचार सकारात्मक हैं तो हमारा जीवन भी उसी प्रकार इन्हीं विचारों के अनुरूप ढल सकता है|प्रत्येक के जीवन में ऐसा समय आता है जब अधिकतर लोग अपने जीवन से संतुष्ट नहीं होते |ऐसे समय में अगर ऐसा लगता है और  व्यक्ति  ऐसा विचार करता है कि उसे अपने जीवन को बदलना है |तो  यही विचार उसकी विचारधारा को भी परिवर्तित कर सकता है|सबसे पहले तो एक सकारात्मक व्यक्ति के मन में यह विचार आएगा कि वह अपनी समस्या को समझें |फिर वह अपनी समस्या पर विचार करे  और उसका समाधान भी खोजे  | यह भी विचार पर ही निर्भर है|एक सफल व्यक्ति अपने जीवन में अपने मानसिक अवरोधों को भी अच्छी प्रकार से समझता है |खुद को बदलने का यह बहुतअच्छा तरीका है कि  हम  अपनी सोच में, अपने विचार में बदलाव लाएं| प्रमाद व्यक्ति को विचार भी नहीं करने देता इसलिए ऐसे व्यक्ति के जीवन में बदलाव भी नहीं हो सकता और ना ही किसी विचारधारा का निर्माण हो सकता है
 हमारा  विचार करना ही  हमारी   सोच को पूर्णतया बदल सकता है|  हमारे व्यवहार को बदल सकता है और जो जीवन में  बदलाव   हम  अपने विचार के कारण लाते हैं उससे  हमारे  साथ घटित होने वाली घटनाएँ  भी  बदल सकती  हैं | इस तरह से हम अपनी विचारधारा को निर्मित कर सकते हैं |विचार के द्वारा हम   उन विचारों का अवलोकन भी कर सकते हैं जो हमें   जीवन में आगे नहीं बढ़ने देते |इसलिए  किसी विचारधारा के निर्माण से पहले हम विचार पर भी विचार करें कि वह सही है या गलत | इस प्रकार विचारों में बदलाव के कारण हमारी विचारधारा अपने आप बदल जाते  है|और हम सही दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं |विचार करने के पश्चात ही हम यह जान सकते हैं कि हमें किस प्रकार खुद को उत्साहित करना है|यह विचार हमारी विचारधारा को पुष्ट करने में सहयोगी होगा|
 हम ऐसा करेंगे तभी तो अपनी कार्य योजनाओं को सफल बनाने में सक्षम होंगे |विचार के द्वारा ही यह संभव है कि हमअनावश्यक  विचारों  को  अपने से दूर करें |हम ऐसे विचारों का पोषण न करें जो हमारी सटीक विचारधारा को पुष्ट करने में सहयोगी नहीं होते | अपनी सही विचारधारा के निर्माण के लिए हमें ऐसे विचार अपने जीवन में लाने चाहिए जो बिल्कुल भी कृत्रिम न हो अर्थात हमारी कथनी और करनी में अंतर न हो |तभी विचारों से हमारे जीवन में बदलाव आ सकते   है |अपने ही विचारों द्वारा हमें खुद को सदा प्रेरित ही करते रहना चाहिए |इस प्रकार  विचारों में बदलाव आने के कारण विचारधारा अपने आप बदल जाती है |और फिर हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं |
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
जीवन में सफलता  बहुत ही जरूरी है। सफल होने के लिए हमें जीवन में अपने विचारों में बहुत बदलाव लाने होते हैं। यह भी सत्य है कि अपने विचार बदलने से विचारधारा अपने आप बदल जाती है। यदि हम अपने विचारों में अच्छे बदलाव लाए तो हमारे कार्य भी अच्छे होने लगेंगे और अच्छे कार्यों से हमारा जीवन सकारात्मक तरीके से बदलने लगेगा। जीवन में बड़े बदलाव लाने के लिए जीवन को बदलने वाले विचारों की जरूरत है। जीवन को बदलने के लिए अपने विचार में सकारात्मकता लाने की जरूरत पड़ती है। कभी हिम्मत मत हारो। अपने ऊपर विश्वास रखकर आगे बढ़ने का प्रयास करो। यदि आपका विश्वास अटल रहा तो मंजिल भी आपका इंतजार करते नजर आएगी। यदि कोई अच्छा कार्य है तो उसे जितना जल्दी हो सके शुरू के दो। लोगो के बारे में मत सोचो कि वह क्या कहेंगे। सही कार्य करने में विश्वास रखो और सही करने के लिए आपको सही सोचना भी होगा, इसलिए कम सोचो मगर अच्छा सोचो। मनुष्य के जीवन में पैसा सब कुछ नहीं होता लेकिन जीवन में पैसा बहुत खूब जरूर होता है और जो व्यक्ति बहुत कुछ समझ लेता है। अंत में उसके पास कुछ भी नहीं बचता। समय का उपयोग कर बहुत सा धन कमाया जा सकता है, लेकिन धन का उपयोग करके एक पल भी नहीं बढ़ाया जा सकता है, इसलिए समय का सही उपयोग करना जरूरी होता है। जीवन में कुछ लोग तो ऐसे की सारे आसमान को छू लो। अच्छा विचार रखोगे। अच्छा सोचोगे तो वापस अच्छा ही आएगा। मगर बुरा सोचोगे तो बुरा ही वापस आएगा। मीठा बोलोगे तो मीठे बोल ही दूसरों से सुनोगे। कड़वा बोलोगे तो खरी खोटी ही सुनने को मिलेंगे, क्योंकि हम जो देते हैं वही हमें वापस मिलता है। एक निश्चित लक्ष्य लक्ष्य को लेकर सही राह पर चलना जीवन यात्रा कहलाता है और बिना लक्ष्य को लिए हुए किसी भी रास्ते पर चलना जीवन का भटकाव कहलाता है। इसलिए एक लक्ष्य जीवन में आगे बढ़ने के लिए आपके पास हमेशा होना चाहिए। जीवन में सफलता पाना है तो किसी भी कार्य में जल्दीबाजी मत करो। जल्दीबाजी आपको भटकाव की ओर ले जाएगी। भटकने से अच्छा है कि थोड़ा रुको सोचो समझो और फिर आगे बढ़ो। आपका दिमाग एक भट्ठी कि तरह है जो हर समय अनंत विचारों की ऊर्जा से गर्म रहता है। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इस ऊर्जा का उपयोग किस तरह करते हो। लोग कहते हैं कि हमेशा व्यस्त रहो। अच्छी बात भी है। लेकिन व्यस्त रहना ही काफी नहीं है महत्वपूर्ण यह है कि आप कब और किस कार्य में व्यस्त रहते हो। यदि आप से पहले कोई सफल हो जाता है तो घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि आप भी जानते हैं होगी घर बनाने से ज्यादा समय बंगला बनाने में लगता है। जीवन में सफलता केवल कठिन परिश्रम ही जरूरी नहीं है, बल्कि यह भी जरूरी है कि कठिन परिश्रम किस दिशा में किया जा रहा है सही दिशा में कठिन परिश्रम बहुत जरूरी होता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
 जमशेदपुर - झारखंड
जी हां - विचार बदलने से विचारधारा अपने आप बदल जाती है  । विचार मन का भाव है तथा ऐसा चिंतन जो विशेष रूप से संगठित भूत द्रव्य- मस्तिष्क कीे उच्चतम उपज है।
 जीवन का आधार विचार है, विचार हमारे मन और मस्तिष्क के संयोजन का परिणाम है । मानव जीवन विचारों के साथ आरंभ होता है और विचारों के साथ खत्म होता है  ,जीवन का आरंभ और अंत दोनों ही विचारों पर निर्भर करता है । मानव जीवन में विचारों का यह सिलसिला चलता रहता है ।
  व्यक्ति विचारों से ही जिंदा है  ,विचार हमारी समझ व हमारे ज्ञान के परिचायक हैं विचार ही है जो व्यक्ति को महान बनाते हैं और महान कार्यों के प्रति रुझान बढ़ाते हैं ।
 अच्छे विचार घर परिवार कार्य ,व्यापार ,समाज में मनुष्य  को प्रगति की ओर ले जाते हैं  ।सफलता विचारों पर ही निर्भर करती है विचार परस्पर संबंधों को जोड़ने की कड़ी का काम करते हैं  ।विचार परिवर्तनशील होते हैं जो परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तित होते रहते हैं हर परिस्थिति में विचारों में भिन्नता पाई जाती है स्वीकार्य  परिस्थितियों में विचारों मेंप्रेम ,दया  ,ममता आदि गुणों का समावेश हो जाता है  ।
विचार संस्कार बन जाते हैं मनुष्य आदरणीय सम्माननीय बन जाता है ।  व्यक्ति की सफलता एवं असफलता उसके सकारात्मक  एवं नकारात्मक विचारों पर निर्भर करती है  ।--उच्च विचार जहां हमारी प्रगति उन्नति के आधार हैं वहीं पर --तुछ विचार व्यक्ति के जीवन पर बुरा प्रभाव डालते हैं  ।विचार व्यक्ति के अस्तित्व  की पहचान है । व्यक्ति के जीवन में घटित घटनाएं भी विचारों को जन्म देती है ।
 विचार जब किसी विशेष वैचारिक प्रवाह की धारा में बहते हैं तो विचारधारा कहलाते हैं- उदाहरण के लिए सत्संग में बैठा हुआ व्यक्ति  भक्तिमय  विचारों को आत्मसात करता है, उसे चारों ओर ईश्वरीय शक्ति के दर्शन होते हैं , मानव मात्र में प्रभु का निवास मानता है  ,आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है , वह सात्विक विचारधारा अपनाता है। सकारात्मक सोच इन विचारों का आधार बन जाती है। यही विचार व्यक्ति की आत्म- प्रगति में सहायक बनते हैं और जीवनशैली में परिवर्तन लाते हैं । ऐसे प्रगतिशील ,उत्साह पूर्ण विचार व्यक्ति को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करते हैं , सफलता के शिखर तक पहुंचाते हैं  ।ऐसे विचारों से युक्त जीवन शैली औरों के लिए प्रेरणादाई सिद्ध होती है । 
जीवन की गुणवत्ता इस बात पर निर्भर करती है कि मस्तिष्क में किस प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं भारतीय संस्कृति में ऋषि-मुनियों ,महात्माओं, सिद्ध पुरुषों के सुंदर प्रेरणादायक विचारों के दर्शन होते हैं जो मनुष्य के सफल जीवन जीने के लिए उपयोगी माने गए हैं । व्यक्ति ऐसे लोगों के जीवन चरित्र से प्रभावित होकर उनका आचरण और विचार आत्मसात करता है उसकी विचारधारा में अनोखा परिवर्तन आता है। 
विचार किसी पंथ,समूह,संगठन, समुदाय , पार्टी इत्यादि से जुड़े भी हो सकते हैं । नियमों और सिद्धांतों के अनुरूप जब हम अपने विचार बदलते हैं तो विचारधारा में विशेष परिवर्तन अवश्य आता है । यही सत्य है ।
 - शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
हम किसी भी कार्य को करने से पहले विचार करते हैं बिना विचार किए तो हम कोई काम नहीं करते हां विचार के साथ हमारे कार्य करने की नीति सोच महत्त्व रखती है कि हम किस विषय को लक्ष्य बना रहे हैं और हमारे विचार तथाकथित विषय के अनुसार बैठते हैं या नहीं तदुपरांत ही हम अपनी योजना बनाते हैं !
 हमारा मस्तिष्क बहुत कुछ विचार करता है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसे दौड़ने वाला हमारा मन होता है मन चंचल होता है अतः पहले तो हमें अपनी मन की विचारधारा को सही दिशा देनी होगी जब मनुष्य विवेक को विचार कर लेता है उसे क्या करना है तभी यह तय हो जाता है कि उसे यह कार्य करना है अथवा नहीं तदुपरांत ही वह अपना विचार बदलता है विचार उच्च कोटि के और सकारात्मक हो तो बड़े से बड़ा कार्य हो जाता है  और उसके मन में दूसरी विचार पनपते ही नहीं ! 
हां आज विज्ञान के युग में हम बहुत आगे बढ़ रहे हैं और हमारे विचार ही हैं जो हमें हमारी विचारधारा को बदल देती है जैसे -: सायकल है तो स्कूटर की चाहत, फिर कार ,हेलीकॉप्टर,प्लेन आगे की ही सोचता है !इसके साथ सादगी और उच्चकोटी के विचार भी हैं जिसमे समय के अनुसार हमारी  विचारधारा बदलती है जैसे -: समाज की अनेक कुरुतियां बाल विवाह, विधवा विवाह आदि बस सोच सकारात्मक होनी चाहिए !
यदि हमारे विचार किसी वजह से बदलने पड़े तो हमारी बदली हुई विचारधारा सकारात्मक और उच्चकोटि के साथदूसरे के हीत मे हो !
- चंद्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
मनुष्य के मन-मस्तिष्क में उत्पन्न विचारों के प्रवाह से ही विचारधारा की सरिता बहती है। हमारी विचारधारा किस दिशा में बहेगी, यह हमारे विचारों पर ही निर्भर करता है। किसी भी विषय पर हमारे विचार ही हमारी विचारधारा की सकारात्मकता अथवा नकारात्मकता की भूमिका तय करते हैं।
अक्सर चीजों को देखने का हमारा दृष्टिकोण ही हमारे अन्दर उनके प्रति विचारों का प्रवाह करता है। यदि किसी कारणवश किसी स्थिति या विषय पर हमारे विचार बदलते हैं तो निश्चित रूप से हमारी विचारधारा में परिवर्तन होना स्वाभाविक है।
स्वयं के विषय में हमारे विचार सदैव अपना पक्ष लिए होते हैं। हम स्वयं को कभी गलत मानने वाले विचार रखते ही नहीं। जबकि सम्पूर्ण कोई भी नहीं और कमियों का होना स्वाभाविक है। इसलिए स्वयं के प्रति भी अपने विचारों को गतिमान रखना अति आवश्यक है। तभी हमारी विचारधारा में बदलाव होगा। 
"अपने विचारों की सूक्ष्मता से ऊपर उठने की कोशिश तो कर, 
अपने मन की संकुचित जकड़नों को जीतने की कोशिश तो कर। 
पढ़ना है बस अपने दिल की तुच्छ मटमैली रेखाओं को तुझे, 
विचारधारा की दृष्टि पा जायेगा विचारों को बदलने की कोशिश तो कर।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
 हर मनुष्य  4 आयामों में जीता है। अनुभव ,विचार, व्यवहार, कार्य। मनुष्य जो अनुभव किया रहता है उसी के अनुसार विचार करता है। विचार होने से ही व्यवहार करता है ।व्यवहार से फिर कार्य करता है। आता है यही कहते बनता है कि मनुष्य के विचार बदलने से ही विचारधारा बदल जाती है क्योंकि कोई व्यवहार कार्य करने के पहले विचार किया जाता है विचार से ही इसकी विचारधारा बदलती है। विचारधारा बदलने के अनुसार व्यवहार और कार्य करता है और अपने लक्ष्य को पा लेता है और इस तरह विचार बदलने से ही विचारधारा बदलती है।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
           विचार बदलने से विचारधारा नहीं बदलती है। विचार तो समंदर की लहरों के भांति होते हैं। आते हैं, समय और परिस्थिति के अनुसार बदल जाते हैं। विचार पल पल बदलते रहते हैं। जब एक विचार काफी समय हमारे साथ चलता है वह सोच बन जाती है। लेकिन जब एक सोच बहुत देती रहती है, मजबूत होती रहती है वो विचारधारा बन जाती है। विचार धारा को बदलना इतना आसान नहीं होता है। 
       जैसे भगत सिंह की उदाहरण है। उनका परिवार देश भगत, आजादी के योद्धा थे। आजादी के लिए भगत सिंह के चाचा और पिता जी अक्सर अंग्रेजों की जेल में बंद रहते थे। बचपन में ही भगत सिंह के मन में अंग्रेजी राज के लिए नफरत और आजाद भारत के विचार आते रहे। धीरे-धीरे यह विचार सोच बन गए।यही सोच क्रान्तिकारी विचार धारा बन गई।उस समय के गर्म ख्याली देश भगतों के प्रभाव  ने उनकी क्रान्तिकारी सोच को मजबूती दी।इस विचार धारा के चलते उन्होंने अनेक कष्ट सहे लेकिन टस से मस नहीं हुए और अंत में फांसी के फंदे पर झूल गए लेकिन अपनी विचार धारा नहीं बदली।ऐसी अनेक उदाहरण हमारे पास हैं कि विचार बदलने से विचार धारा नहीं बदलती। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
सफलता के लिए हमें विचार (सोच) को और अधिक सकारात्मक में बदलना चाहिए। नकारात्मक को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। मानव को समृद्धि के लिए आध्यात्मिक की ओर भी ध्यान देना चाहिए। लोगों के विचारों इरादों और इच्छाओं में कार्यान्वयन के लिए शक्ति संसाधन है। अपनी सोच को बदलिए और आपका जीवन बदल जाएगा।
लेखक का विचार:-सकारात्मक सोच जीवन में सफलता है ।सकारात्मक सोच से हर चीज में लाभ  की तलाश करेंगे। अतिरिक्त अवसर के रूप में नई-नई जानकारी में रुचि होगी । जिससे जीवन को बेहतर बन सकता है ।योजनाओं और विचारों को बनाता है और कड़ी मेहनत कराता है ।भावनात्मक और भौतिक में उदारता पैदा करेगा ।यह आत्मनिर्भर जीवन प्रदान करेगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
विचारधारा को बदलने में एक्यू अवश्य लगता है लेकिन शुरुआत होती है किसी एक के विचारों को बदलने के पश्चात ही।
विचार ही मनुष्य को उठाते हैं और गिराते हैं इतिहास गवाह है कि आज जितने भी विचारों में परिवर्तन हुए हैं वह किसी एक व्यक्ति की आवाज के फलस्वरूप ही हुई है जैसे बाल विवाह सती प्रथा नारी शिक्षा आत्मनिर्भर होना इन सभी विषयों पर जो भी परिवर्तन हुए हैं प्रगति हुई है यह सब किसी एक की आवाज के फल स्वरुप एक संगठन तैयार हुआ और संगठन के माध्यम से सामाजिक जागरूकता आई और विचारों में परिवर्तन हुआ इसलिए कहा गया है विचार ही उठाते हैं विचार ही गिराते हैं अपने विचार को बदल देने से आज नहीं तो कल आपके विचार धारा में अवश्य परिवर्तन होगा लेकिन वह बदलाव जो है सकारात्मक होना चाहिए ना की नकारात्मक
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र

आदमी जैसा सोचता है वैसा वह बन जाता है
जब हम अपने विचारों पर स्वयं का आत्म निरीक्षण करते हैं किसी भी विषय पर  गहन चिंतन करके आत्ममंथन करते हैं कुछ सकारात्मक ,सृजनात्मक या समाज को कुछ देना चाहते हैं विचारों के माध्यम से कोई जागृति फैलाना चाहते हैं जो समाज के लिए हितकर वर्तमान और भविष्य में उसका सुखद परिणाम हो नव चेतना का संचार हो तो हम यह कह सकते हैं कि विचार बदलने से विचारधारा अपने आप शनै:शनै: बदल जाती है ।
*किसी भी कार्य को करने से पहले*
*मन में विचारों का आना सफलता की पहली सीढ़ी होती है*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली

" मेरी दृष्टि में " इतिहास गवाह है कि विचारों से ही आन्दोलन होता है । जो आगे चल कर विचारधारा बन जाती है ।जैसे :- महात्मा गांधी के विचारों के आन्दोलन , राममनोहर लोहिया के विचार के आन्दोलन को देखा जा सकता है ।
                                             - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान




Comments

  1. The thoughts in the article of Dr. Rekha Saxena is appreciable 👍

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  2. डॉक्टर रेखा सक्सेना जी के विचार उत्तम है।
    नूपुर नव्या

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  3. Dr. Rekha Saxena's thoughts are appreciable

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  4. Explanation the contents of Ideology & thoughts by Dr Rekha Saxena worth reading & listening Both !

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  5. यह सही है कि विचारों से विचारधारा बदलती है। लंबे समय तक चलने वाली प्रक्रिया है यह। मन में उठते हुए विचार को व्यक्त करके प्रयोग में लाना और फिर सबकी सहमति शामिल होना मुश्किल तथा समय लेने वाला काम है। जा धारा सकारात्मक हो सकती है और नकारात्मक भी। पर विचारधारा बनती विचारों से है

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  6. The thoughts of Dr Rekha saxena are fabulous

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