क्या जीवन में परिवर्तन ही एक मात्र स्थिर है ?


जीवन में परिवर्तन होते रहते हैं । कहते हैं यह प्राकृतिक का नियम है। यही परिवर्तन जीवन को नईं दिशा देते हैं । जो स्थिर होते हैं । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -

जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है। परिवर्तन में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता। परिवर्तन स्थिर रहता है अर्थात् परिवर्तन का चरित्र स्थिर है कभी परिवर्तित नहीं होता। प्रकृति में पल-पल परिवर्तन होते रहते हैं।  मानव की जिंदगी और ऋतुएं निरन्तर परिवर्तित होती रहती हैं। ज़माने में परिवर्तन होता रहता है।  कुछ भी स्थिर नहीं है परन्तु वह क्रिया जिसे स्थिर का नाम दिया गया है वह एकमात्र स्थिर क्रिया है परिवर्तन। जब से मानव इतिहास शुरू हुआ है तभी से परिवर्तन होता रहा है, परिवर्तन की प्रक्रिया निरन्तर हो रही है। समाज ने तरक्की की है, शिक्षा ने तरक्की की है, चिकित्सा जगत ने तरक्की की है, विज्ञान ने तरक्की की है।  यह संसार खुद परिवर्तित होता रहता है।  परन्तु जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है। 
- सुदर्शन खन्ना 
      दिल्ली 
परिवर्तन संसार का नियम है। जीवन हमेशा एक सा नहीं रहता परिवर्तन तो जीवन काल में स्वीकारना ही है।  अपने जीवन के हताशा -निराशा से उबर सकते हैं। समय के साथ अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं। 
एक उदाहरण पेश कर रहे हैं:-एक व्यवसायिक व्यक्ति को अपने व्यवसाय में नुकसान उठाना पड़ा ।उसने अपनी जिंदगी को समाप्त करने के लिए आत्महत्या का विचार करने लगा। इसी बीच मे एक महात्मा उसके द्वार पर आए और देख कर बोले, तुम कुछ चिंतित हो ।उसने अपना व्यापार के घाटा होने के बात बताया और बोला की हम आत्महत्या के विचार कर रहे है। 
महात्मा ने समझाया:- दिन के बाद रात होता है। रात के बाद दिन होता है। जब तुम खुशहाल थे,तुम्हारी जिंदगी में उजाला ही उजाला था ।अब अंधेरे के सिवा कुछ नहीं है, ऐसा नहीं होता है,  अंधेरे के बाद फिर तुम्हारा  उजाला आएगा ।आत्महत्या कायर लोग ही करते हैं। महात्मा जी बोले इंसान के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं कभी इंसान इसी उतार-चढ़ाव के दौरान अपने जीवन में गलतियां कर देता है ,जिससे वह जीवन में गलत रास्ता अपनाकर जीवन बर्बाद कर देता है। इंसान जन्म से संत असंत नहीं होता है उसके द्वारा किए गए कर्म ही भविष्य का निर्माण करता है। महात्मा के बात सुनकर अपना निर्णय बदल लिया और आज फिर खुशहाल है।
लेखक का विचार:-परिवर्तन प्रकृति का नियम है। हम इस प्रकृति के इस नियम को जब भी मानने से इंकार करने लगते हैं तब हम दुखी होते हैं, अवसाद से घिर जाते हैं। हमें स्वीकारना होगा कि जब अच्छे दिन अस्थाई नहीं रहते हैं तो पूरे दिन भी नहीं रहेंगे जो व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है वह कभी निराश -हताश नहीं होता उसका कर्मशील जीवन मजबूत होकर सामने आता है।
गतिशीलता से होगा विकास
-विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
मानव जीवन उतार-चढ़ाव से भरा होता है। जीवन की गति सदा एकसमान नहीं रहती। मनुष्य को अपने जीवन में विभिन्न परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है। ये परिवर्तन मनुष्य के धैर्य और स्थिरता की परख करते हैं।
यह तो नहीं कहा जा सकता कि जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है। परन्तु परिवर्तन जीवन के लिए आवश्यक हैं क्योंकि मनुष्य के जीवन में यदि एकरसता रहेगी तो जीवन नीरस हो जायेगा।इसलिए मनुष्य को परिवर्तनों को सकारात्मक भाव से ग्रहण करना चाहिए।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड

अटूट सत्य है ! जीवन की स्थितियों में परिवर्तन अवश्य होता है ! कुछ परिवर्तन ऐसे होते हैं जिसे हम बदल नहीं सकते हटा नहीं सकते ,भगा नही सकते जैसे हमारी जन्म के बाद विभिन्न अवस्थाओं में उम्र दराज परिवर्तन होना ! समय को हम रोक नहीं सकते बदलते रहता है !प्रकृति के नियमों को कैसे रोक सकते हैं वह स्थिर है !मनुष्य  स्वयं अपनी जीवन शैली में जरुरत के अनुसार परिवर्तन लाता है ! ताजा उदाहरण है कोरोना काल में सबकी जीवन शैली ही बदल गई है ! आज हमारी शिक्षा ऑन लाइन हो गई है , हमारी सोच बदल गई है  आज औरतें जो कभी घर की शोभा थी इस प्रगति के युग में पुरुष से कंधे से कंधा मिला काम कर रही है ! समय  बदल गया है आज इस विज्ञान के युग में मानव ही दानव बन प्रकृति में परिवर्तन ला खुद को भगवान समझने लगा है !भौतिक सुख के पीछे भागते हुए मानव का दिमाग आकाश, जल ,थल सभी में परिवर्तन ला प्रकृति को अपने वश में कर रहा है !प्रकृति के स्वभाव में भी परिवर्तन आ रहा है ! कहीं बाढ, कहीं भूकंप और अब हमारे सम्मुख कोरोना ला अपने को भगवान समझने वाले मानव की जीवनशैली में ही परिवर्तन ला हिला दिया !
अंत में कहूंगी परिवर्तन ही जिंदगी है जिसे हम नहीं रोक सकते !
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
हां ,यह  हम स्वीकार कर सकते हैं क्योंकि यह बिल्कुल सही है। लगातार पल -पल समय ,काल, स्थिति हमारी धरती सब परिवर्तनशील है। कुछ भी स्थिर नहीं है। खगोलिकी परिवर्तन अनवरत होती रहती है। मौसम बदलते रहते हैं। व्यक्ति का स्वभाव परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित होते रहता है। परिवर्तन एक प्राकृतिक नियम है जिसके अधीन हम सब हैं। हर चीज ,हर वस्तु लगभग क्षणभंगुर है। इसलिए यह अक्षरशः सत्य है कि हमारे जीवन में परिवर्तन ही एक मात्र स्थिर है अन्य सभी के अलावा ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

 जिस जगह पर हमारा जीवन रहता है उस जगह से परिवर्तन की ओर गति करता है ।परिवर्तन होना अर्थात गुणात्मक परिवर्तन होना ।गुणात्मक परिवर्तन के माध्यम से ही मनुष्य स्थिरता की ओर गति करता है ।मनुष्य की स्थिरता उसकी मानवीय आचरण अर्थात आचरण पूर्णता ही मनुष्य की स्थिरता है ।स्थिरता ही मनुष्य की लक्ष्य है किसी लक्ष्य को पाने के लिए मनुष्य अपने जिंदगी में गुणात्मक परिवर्तन चाहता है। गुणात्मक परिवर्तन से ही अपने  स्थिरता को पाता है।  गुणात्मक परिवर्तन के बिना स्थिरता तक पहुंचना नामुमकिन है अतः मनुष्य को सकारात्मक विचार करते हुए गुणात्मक परिवर्तन की ओर गति कर अपने लक्ष्य को पाने के लिए हमेशा प्रयासरत होना चाहिए तभी स्थिरता को प्राप्त कर सकते हैं।
- उर्मिला सिदार 
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जीवन परिवर्तनशील है।यह स्थिरता के अनुकूल करता है।सैदव जीवन की नियमित व्यायाम परिवर्तन ही है।अस्थिरता की सिमाओं मे परिवर्तन का समावेश हो सकता है।परंतु जीवन की स्थितियों मे परिवर्तन हमेशा होता रहा है यह जीवन की वास्तविक स्वरूप है।जो कि परिवर्तनशील है।सैदव जीवन की विषम परिस्थितियों मे माना जाता है की वक्त बदलेगा फिर समन्वित समयानुसार से अनुकूल वातावरण आयेगा।परिवर्तन ही जीवन का नियम है।मानवीय संवेदनाओं केन्द्र मे भावनाओं का मुलमंत्र परिवर्तन होता है तो जीवन की कसौटियों मे भी परिवर्तन स्थिर होता है।मौसम परिवर्तन होते है और जीवन मे भी परिवर्तन होते ही है ।एकमात्र विकल्प स्थिरता का हो जाता है।कुछ हो या ना हो जीवन का चक्रव्यूह परिवर्तन पर लागू हो जाता है।ऐसे मे संसार की प्राकृतिक आपदा प्रबंधन की भी उदाहरण ले तो यह परिवर्तन स्थिर होता है।गतिविधियों की अवधि तय हो जाये।पर जीवन की परिवर्तन रूकती नही ना ही बदलाव आती वह स्थिर होकर गति को अपने अवस्था तक पहूचाने का कार्य करती है।परेशानियों की डोर कितनी भी मजबूत हो।परिवर्तन की रेखा से बदलाव आते ही है।जीवन की अटल सत्य परिवर्तन का नियम नही बदलता।वह अडिग और स्थिर होता है और जीवन चक्र चलता है।पद्धति और पदचापों का मौनव्रत हो पंरतु जीवन में परिवर्तन एकमात्र स्थिरता को थामें रखता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड

परिवर्तन कुदरत का नियम है। यहां स्थिर कुछ भी नहीं। समय के साथ किसी भी विषय,वस्तु और विचार में परिवर्तन आता रहता है। इस परिवर्तन से कभी हम खुश हो जाते हैं और कभी दुखी हो जाते हैं। लेकिन इन्सानी फितरत है कि हम सुखद परिवर्तन की स्वीकार करते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि अगर सुख ज्यादा समय नहीं टिका,यह दुख भी कुछ समय बाद दूर हो जाएगा। जैसे कहा जाता है कि एक जगह टिके पानी का सड़ना निश्चित है और कुछ समय बाद वो बदबू मारने लगता है। बहता पानी ही अच्छा होता है जो रवानगी भरता है।  उसे तरह हमारे जीवन में परिवर्तन भी हमें तरोताजा करता है और हमें नई ऊर्जा देता है। पूरे ब्राह्ममंड में कुछ भी स्थिर नहीं। अगर ऋतु परिवर्तन न हो तो भी हमारा जीवन नीरस हो जाएगा। परिवर्तन ही प्रकृति को नया रंग,नया रूप प्रदान करता है। पतझड़ के बाद बसंत का आना बहुत उत्साह वर्धन होता है। परिवर्तन हमारे जीवन को रंगीन बनाता है। 
         कुछ परिवर्तन हम खुद करते हैं क्योंकि जीवन में स्थिरता हमें पसंद नहीं। जैसे अपना व्यवसाय बदलना,दोस्त बदलना,वाहन बदलना,पुराने घर से नये में प्रवेश आदि।जब हमें असंतोष होता है तो हम अपनी संतुष्टि के लिए परिवर्तन करते हैं। परिवर्तन जीवन को रंगीन बनाता है। यह जीवन में स्थिर नहीं। यह क्रिया निरन्तर चलती रहती है। बदलाव जीवन की कुंजी है। यह जीवन में नए उत्साह, नए साहस की लहर है।
 - कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
जीवन में परिवर्तन तो निश्चित है। यही गतिशीलता को भी बनाये रखता है। परिवर्तन ही जीवन को नयापन देता है। 
आदिकाल से आजतक मानव के वातावरण, रहन-सहन, सोच व अन्य सारी गतिविधियों में परिवर्तन आया है। यही विकास की परिभाषा है। उसी प्रकार जीवन भी अनेक उबड़-खाबड़ सड़कों पर से गुजरता है। यह भी एक यात्रा है। जब हम यात्रा शुरू करते हैं, तो मंजिल तक पहुंचना तय होता है। परन्तु बाधाएँ आकस्मिक आतीं हैं। अतः जन्म और मृत्यु स्थिर है । समय पर प्रक्रिया होगी ही । यात्रा की स्थिति परिवर्तनशील है। उसे स्वीकार करते हुए अपने अंतिम अंजाम पर पहुँचना होगा ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

      बिल्कुल जीवन में परिवर्तन ही एक मात्र स्थिर है। जैसे प्रत्येक काले धंधे में सच्चाई, भरोसा और विश्वास जीवत है। अन्यथा जीवन तो छलिया है। सर्वविदित है कि बाल्यावस्था को यौवन ने छला और क्षणिक यौवन बुढ़ापे द्वारा छला गया। जिसका ज्ञान ही नहीं हुआ और जब ज्ञात हुआ तो अनेक बीमारियों ने घेरा हुआ था। अपने 'पराए' हो चुके थे और सुख 'दुखों' को स्थिर कर चुके थे।प्रश्न स्वाभाविक था कि परिवर्तन और स्थिरता का यह संतुलन कैसा है? जिसका उत्तर भी उसी प्रकार सदृढ़ और अटल है। जिसे मृत्यु कहते हैं। वही एक मात्र जीवनचक्र का सत्य है। क्योंकि 'राम नाम' सत्य है और सत्य ही 'शिव' है।
      - इन्दु भूषण बाली
      जम्मू - जम्मू कश्मीर

     सृष्टि की रचना जब हुई, उसके बाद मानवीय जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने विभिन्न श्रेणियों में विभक्त किया गया। जन्म से लेकर मृत्यु तक 4 सोपानों में रखा गया।   ॠतुओं का भी 3 भागों में समावेश। अनेकों जीव-जन्तु, पेड़-पौधों आदि?
जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन में अनेकों घटनाओं का जन्म होता हैं, जिससे संघर्ष करते समय व्यतीत हो ही जाता हैं। देखा वही जाता हैं, कि हमसे कोई भूल तो नहीं हो गई, किसी का कोई बुरा तो नहीं हो गया याने जैसा कर्म करोगें, वैसा फल मिलेगा  यह चरित्रार्थ हैं। जैसा हम अपने संस्कारों को परिवर्तित करेंगे, वैसा ही सब स्थिर होगा? जीवन में यश, कीर्ति, बल, बुद्धि पर्याप्त मिलते जायेगा और आत्मविश्वास में जागरूकता आयेगी।
हमें दूसरा क्या कर रहा हैं, यह नहीं देखना, हम क्या कर रहे हैं, वह देखना हैं, तभी परिवारजनों के बीच एकता, अखण्डता एवं स्थिरता होगी। जिस दिन मानव समझ जायेगा, क्या लेकर जाऊंगा, सब कर्म तो पृथ्वी पर भोगने हैं, उस दिन से अत्याचार, भष्ट्राचार और बलात्कार से जीवन परिवर्तक हो जायेगा, आवश्यकता प्रतीत होती हैं, जीवन स्थिर हो?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
जी -यह सही है कि जीवन में परिवर्तन ही स्थिर है परिवर्तन शाश्वत है। जीवन हमेशा एक जैसा नहीं रहता । प्राकृतिक और सांसारिक परिवर्तन को स्वीकार करना ही पड़ता है । समय के साथ चल कर अपने जीवन को सुखमय बनाने का प्रयास करना चाहिए । प्रकृति  का भी यही नियम है 
। प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु ने कहा है-परिवर्तन प्रकृति का नियम है ,हम प्रकृति के इस नियम को जब भी मानने से इनकार करने लगते हैं, तब हम दुखी होते हैं ,अवसाद से घिर जाते हैं । हमें स्वीकारना होगा कि जब अच्छे दिन स्थाई नहीं रहते तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे  ,जो व्यक्ति इस सत्य को जान लेता है वह कभी निराश हताश नहीं होता उसका कर्मशील जीवन मजबूत होकर सामने आता है ।
 जीवन में गतिशीलता बनाए रखने के लिए परिवर्तन को स्वीकार करना ही होगा । प्रकृति में बदलती ऋतुयें  परिवर्तन का एहसास दिलाती है । हम उसी के अनुरूप अपने जीवन को ढालते हैं ।
 समय परिवर्तनशील है यह सीख हमें सूर्य ,चंद्रमा तथा रात और दिन देते हैं । व्यक्ति इन नियमों  को मानकर जीवन में विकास करता है , उन्नति ,प्रगति करके अपना जीवन सुखमय बनाता है । मानव जीवन तथा अन्य किसी जीव का इन्हीं नियमों में बंध कर परिवर्तन की दिशा को अपनाता हुआ जीवन में पूर्णता  प्राप्त करता है । पूर्ण जीवन काल वह अनेकों परिवर्तन देखता है । शिशु अवस्था से बाल्यावस्था, किशोरावस्था से युवावस्था, युवावस्था से वृद्धावस्था ,परिवर्तन का ही नाम है । यह परिवर्तन शाश्वत है ,स्थित है जो होकर ही रहता है ।
 समय के साथ किसी भी वस्तु , विषय और विचार में भिन्नता आती है ,समय के साथ-साथ मनुष्य की स्थितियां बदलती है ,विचार बदलते हैं ,जीवन शैली बदलतीे हैं ,समय के साथ-साथ उत्तरोत्तर बदलने को ही विकास कहा जाता है ।यदि हम बदलाव से समझौता नहीं करेंगे तो हम विकास भी नहीं कर पाएंगे। समय परिवर्तन के साथ साथ पुरानी रूड़ियाें , मान्यताओं ,धारणाओं परंपराओं में बदलाव भी आया है । ऐसे रिती रिवाज जो मनुष्य के व समाज के विकास में बाधक बने हैं , उनको त्याज्य माना गया है । आज का परिवर्तनशील समाज अंधविश्वासों से स्वतंत्र है । कई महापुरुषों, सिद्ध पुरुष ने भी परिवर्तन को सही माना है , चाहे वह समाज का हो या व्यक्ति का ।
 समाजशास्त्री मैकाइवर का कहना है कि "समाज परिवर्तनशील है ", यदि हम समाज में निरंतरता को बनाए रखना चाहते हैं तो हमें यथास्थिति को छोड़ अपने आचार -व्यवहार को परिवर्तनाेन्मुख बनाना होगा ,तभी हमारी प्रगति संभव है ।ठहरा हुआ जल सड़न पैदा करता है । इसलिए परिवर्तनशील समाज मनुष्य को जीवन जीने के नए रास्ते प्रदान करता है मनुष्य भी परिवर्तन को स्वीकारते हुए अपने जीवन को सुखी व प्रगतिशील बनाता है । अतः जीवन में परिवर्तन ही स्थिर है ।
 - शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
परिवर्तन का पर्याय ही परिवर्तन है अर्थात बदलाव तो वह  स्थिर कैसे हो जाएगा? प्रकृति में स्थिर कुछ भी नहीं है। समय-समय पर हर चीज में परिवर्तन होते रहते हैं, चेतन अचेतन सभी में। जो चीजें जो पदार्थ या वस्तुएं सामने रहते हैंदिखाई देते हैं, उनका परिवर्तन हम आसानी से देख लेते हैं समझ जाते हैं। कई तरह के परिवर्तनों के संबंध में हमें जानकारी होती है किंतु हम देख नहीं पाते। जैसे भूकंप ज्वालामुखी वगैरा। जब वह क्रियात्मक हो जाते हैंतब पता लगता है। देखने में तो चांद तारे भी चलते हुए नजर नहीं आते किंतु वे गतिशील रहते हैं। मानवीय जीवन में होने वाले उतार-चढ़ाव व शारीरिक परिवर्तन तो हम लोग प्रत्यक्ष रूप से देखते हैं। परिवर्तन प्रकृति का नियम है इसलिए वह कभी स्थिर नहीं हो सकता।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
 
विषय में विरोधाभास वाले दो मूल तत्व हैं" परिवर्तन" और    " स्थिर "।. पर यदि गहराई से देखे तो यही चिर सत्य प्रतीत होता है। जीवन मे परिवर्तन ही स्थिर है अर्थात परिवर्तन ही जीवन को गति देता है। यह परिवर्तन   प्रकृति से लेकर सभी जीव जन्तुओं  को  सभी परिस्थितियों से लड़ना सिखाता है। परिवर्तन ही हमे अपनी भीतरी शक्तियों का मूल्यांकन और बाहरी चुनौतियों को स्वीकारने की प्रेरणा देता है। यहाँ परिवर्तन की स्थिरता का अर्थ है बदलाव। बहता पानी, रमता जोगी,चलती हवा, आती जाती साँसे , शिशु से व्यसक और फिर वृद्धावस्था, बीज से पेड़, पंगड़डी से सड़क सभी परिवर्तन  ही दर्शाते हैं ।
   - ड़ा.नीना छिब्बर
  जोधपुर - राजस्थान
परिर्वतन संसार का नियम है। इंसान के जीवन में कई उतार चढ़ाव आते है कभी कभी इंसान इसी उतार चढ़ाव के दौरान अपने जीवन में कुछ गलतियां कर देता है। जिससे वह जीवन में गलत रास्ता अपना कर अपना जीवन बर्बाद कर लेता है। ये प्रवचन मॉडल जेल में दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के सहयोग से आयोजित आध्यात्मिक कार्यक्रम में कैदियों के माग दर्शन करते हुए स्वामी गुरुदयानंद ने सुनाए।
स्वामी ने बताया कि कोई भी इंसान जन्म से संत या असंत नहीं होता है। उसके द्वारा किए गये कर्म ही उसके भविष्य का निर्माण करते है। जिस प्रकार एक ऋषि की संतान प्रहलाद भक्त हुआ तो उसका कारण उसके द्वारा किए गये सही दिशा में प्रयास व सार्थक संग ही है। दूसरी तरफ एक ऋषि की संतान अपने कर्मों व संगत के कारण रावण के रूप में राक्षस कहलाया। यानि कि अगर हमनें वास्तव में अपना कल्याण करना है। तो हमें भी अपने जीवन के रहते रहते उस विधि को जानना होगा जिसको जानकर अपने मन का नियंत्रण कर हम परम शां‍ति व कल्याण की और अग्रसर हो जीवन को सार्थक कर सकते है। ये विधि इंसान संत की शरण में जाकर ही प्राप्त कर सकता है।परिवर्तन जीवन का एक आवश्यक हिस्सा है। बदलाव के बिना जीवन नहीं होता। हमारे जीवन में वास्तव में परिवर्तन होता है, हालांकि हम में से अधिकांश एक निश्चित मात्रा में स्थिरता चाहते हैं।
यदि आप किसी चीज़ से बचने के बजाय एक सहायक दोस्त के रूप में परिवर्तन को स्वीकार करना सीख सकते हैं, तो आप कम तनाव का अनुभव कर सकते हैं।
हम बिना बदले यहां नहीं जा सकते इस दुनिया के बारे में सब कुछ हर पल बदल रहा है। ऐसा लग सकता है कि कुछ चीजें अपेक्षाकृत स्थिर हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि हम इस दुनिया में हो रहे बदलाव को ज्यादा नहीं देख पाएंगे। सूक्ष्म स्तर पर, सब कुछ लगातार बदल रहा है। हम निश्चित रूप से, हमारे जीवन को नेत्रहीन रूप से देख सकते हैं, लेकिन वहां भी हम सभी परिवर्तन के बारे में नहीं जानते होंगे। हमारे रिश्ते बदल जाते हैं, यदि पूरी तरह से नहीं, तो परिस्थितियाँ बदल जाती हैं, हमारी भावनाएँ बदल जाती हैं, दूसरे लोगों की भावनाएँ बदल जाती हैं, कोई भी कभी भी हर पल एक जैसा नहीं होता है।
- रजत चौहान 
बिजनौर -उत्तर प्रदेश
परिवर्तन ही एक एेसी  वस्तु है जो स्थिर है, हर मनुष्य की जिन्दगी हर पल  ब्दलती रहती है, बच्चे बड़े़ होते हैं, बडे़ बूढ़े हो जाते हैं, ऐसे ही क्रम चलता रहता हैऔर अपने में परिवर्तन लाने वाला मनुष्य ही सफल होता है क्योंकी परिवर्तन लाने  से ही जीवन आगे वढ़ता है, चाहे परिवर्तन शुभ व अशुभ हो मगर यह सच है परिवर्तन ही जीवन मेंसफलता और उल्लास लाता है। 
यही नहीं, वेहतर समाज, शिक्षा, साकार तंत्र व्यवस्था, स्वास्थय सुविधाओं के लिए 
हमें कई स्तरों पर परिवर्तन लाना जरूरी है, नहीं तो मनुष्य  जीवन यहीं पर रुक जाएगा। 
परिवर्तन संसार का नियम है, इसलिए परिवर्तन को स्वीकार करना चाहिए, 
सच कहा है, 
"परिवर्तन से डरना और संघर्ष से कतरना, मनुष्य की सबसे वड़ी कायरता है"। 
 संसार में कोई भी पदार्थ नहीं जो स्थिर रहता है उसमें कुछ न कुछ परिवर्तन जरूर होता है, यदि हम परिवर्तन को स्वीकार नहीं करें तो हम रूढ़वादी हो जाते हैं, इसलिए परिवर्तन ही एक मात्र  स्थिर है, जीवन में आए परिवर्तनों को स्वीकारें और जीवन के स्वाद का पूरा आनंद लें। 
इसलिए तो सच है, 
"उठो चलो बदलो अपनी जिंदगी को, 
कोई शक है तो देख लो, 
एक चाय  बेचने वाला  पी एम है"। 
सही है परिवर्तन बारिश की बूंद को मोती बनाता है। 
   परिवर्तन एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है ब्रहम्डं में स्थिर है। 
इसलिए कहा है, 
" पसंद उसे करो जो तुम में परिवर्तन लाये, 
वरना प्रभावित तो मदारी भी कर लेते हैं"।  
चूकिं परिवर्तन जीवन का संकेत है, यदि आप परिवर्तन करने मे सक्षम हैं तो केवल आप जीवन मे होने वाली घटनाओंका जबाब देने की क्षमता रखते हैं, 
सच कहा है, 
"न थके कभी पैर, 
न कभी हिम्मत हारी है, 
जज्बा है परिवर्तन का, जिन्दगी से, इसलिए सफर जारी है"। 
कहने का मतलब, परिवर्तन तो होते रहते हैं, होने भी चाहिए नियम है, बस हम को प्रयास करना चाहिए  वो अच्छी दिशा में हों और हम उनमें त्रुटि के वजाय साकार पहलु ढूंढें क्योंकी जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जीवन में परिवर्तन स्थिर नहीं होते हैं क्योंकि जीवन हमेशा एक सा नहीं रहता l परिवर्तन को स्वीकार करके ही हम हताशा -निराशा से उबर पाते हैं तथा परिवर्तनों के साथ चलकर ही हम अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं l 
         दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता ही है, पतझड़ के बाद बसंत आना ही है l महान दार्शनिक अरस्तु ने कहा -परिवर्तन प्रकृति का नियम है l इस नियम की जब अवहेलना होती है, बुरे परिवर्तन आते हैं l ऐसे समय में हमारा कर्म शील जीवन मजबूत होकर निखरता है क्योंकि परिवर्तन को स्वीकार करना हमें गतिशील बनाता है l संसार में कोई भी पदार्थ रहता है, 
परिवर्तन तो कदापि स्थिर तो हो ही नहीं सकता l 
      लोक डाउन से पहले हमारा जीवन गति से परिभाषित था l गति से जीवन जीना आदर्श था l काम की जिम्मेदारियां, सामाजिक दायित्वों और नवीन टेक्नीक को ध्यान में रखते जीवन में शानदार उपलब्धि थी l माइक्रोग्राम का एक छोटा सा वायरस आता है,  दुनियाँ की अर्थव्यवस्था को परेशान कर सकता है और  हमें सबक सिखाना शुरू कर दिया l 
जीवन में ऐसा परिवर्तन आया जिसे हमें न चाहकर भी स्वीकार करना पड़ा l लेकिन परिणाम बहुत सकारात्मक आ रहे हैं l क्रोध और घृणा से आंतरिक शांति और प्रेम पुजारी बना दिया l सत्यम, शिवम, सुंदरम के रास्ते का हमें पथिक बना दिया l 
          जीवन में आने वाले परिवर्तनों को आध्यात्मिक प्रथाओं और सकारात्मक कार्यवाही के साथ जोड़ना 
चाहिए l 
            चलते चलते ----
बट्रेंड सर के अनुसार "भय और घृणा "ये दोनों भाई- बहिन लाख बुरे हों परन्तु अपनी माँ "बर्बरता "के प्रति बहुत भक्ति भाव रखते
 हैं l जो कोई इनका सहारा लेना चाहता है उसे ये सबसे पहले माँ के चरणों में डाल देते हैं l ऐसे विचारों को, परिवर्तनों को अपने जीवन में तनिक भी स्थान मत दीजिये l 
  - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान

 परिवर्तन प्रकृति का नियम है, वही एकमात्र स्थिर और शाश्वत है। जीवन परिवर्तनशील है--इस कारण गहरे दुःख को भी सुख की उम्मीद में भूल जाते हैं, इस विश्वास के साथ की जीवन सदा एक सा नहीं रहता।
  समय के साथ कर्मशील जीवन हमें सुखमय बना सकता है। परिवर्तन को स्वीकार कर हम गतिशील बन सकते हैं।
  जीवन का वास्तविक आनंद भी तभी उठा सकते हैं जब हम समय के साथ चलते हुए जड़ रीति-रिवाजों और पुरानी अवधारणा को छोड़कर समय के अनुकूल नवीनता को अपनाते हुए आगे बढ़ें।
   समय के साथ विषय वस्तु और विचार में स्थितियों के अनुसार बदलाव को ही विकास कहा जाता है। 
   ठहरे हुए जल की भांति अपरिवर्तनशील रहे तो सड़न व बदबू निश्चित है यानी रूढ़िवादिता के कारण हमारी प्रगति अवरुद्ध हो जाएगी।
    जीवन में आगे बढ़ने व सुखमय जीवन के खातिर आचार -व्यवहार को परिवर्तनोंन्मुख बनाना होगा। दुनिया के साथ कदम-ताल मिलाकर चलना होगा क्योंकि परिवर्तन शाश्वत है।
                   - सुनीता रानी राठौर
                   ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
समय के साथ विकास भी निरंतर होता है। विकास होने के क्रम में जीवन की जरूरतें भी बदलती हैं। जीवन में व्यक्तिगत  समस्याओं का निदान संबंधित व्यक्ति स्वयं की सामर्थ्य से और सामाजिक समस्याओं का निदान शासन/प्रशासन के सहयोग से किए जाने का प्रयास किया जाता है और इस प्रक्रिया में असल में जो होता है, उसका मूल भाव परिवर्तन ही है अर्थात जरूरतें ही असल में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से परिवर्तन करतीं हैं। यह क्रम अनवरत है और शाश्वत भी। इसे यूँ भी समझ और कह  सकते हैं कि यह परिवर्तन तय है और यह प्रक्रिया सच्चाई है याने स्थिर। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है कि क्या जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है तो मैं कहना चाहूंगा दुनिया में कोई भी समय ऐसा नहीं हुआ है जब परिवर्तन न हुए हों या सुधारों की आवश्यकता नहीं हुई हो आज के सुधार ही कल ऐसे हो जाते हैं जिनमें और परिवर्तन या सुधार की आवश्यकता होती है और इस तरह का समय जीवन में कभी होगा भी नहीं जब सुधार की आवश्यकता नहीं नहीं रहेगी क्योंकि समस्याओं का हल खोजना मानवीय स्वभाव है और उनका निराकरण करना ही सुधार है यह परिवर्तन इसलिए जीवन में हमेशा होते रहे और होते रहेंगे स्थायित्व का मतलब उन्नति में या विकास मे  रुकावट है और मानव उन्नति करना चाहता है तो उसे सुधार या परिवर्तन करने ही होंगे यह सदियों से हजारों लाखों करोड़ों वर्षों से निरंतर होता रहा है और होता रहेगा प्रकृति मे भी वही जीवित रहता है जो अनुकूलन को अपनाता है डायना सोर इसका सबसे बडा उदाहरण हैं जिनका एक छत्र आधिपत्य था पर स्वंय मे परिवर्तन व सुधार  न कर पाने के कारण पूरी तरह समाप्त हो गये ।
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
परिवर्तन और स्थिरता दोनों ही बिलकुल विरोधाभासी शब्द होते हुए भी ये कथन कदापि अनुचित नहीं है कि "जीवन में परिवर्तन ही एक मात्र स्थिर है"। प्रथम दृट्या तो ये कथन अत्यंत ही अटपटा लगता है क्योंकि परिवर्तन एक गतिशील शब्द है। परिवर्तन ही हमारे जीवन की गति को दर्शाता है। जैसा कि सभी जानते हैं 
     *गति ही जीवन है*
             और
   *जीवन सदैव गतिमान है*
और जीवन की इस गति का परिणाम परिवर्तन के रूप में दृष्टिगत होता है। मनुष्य के इस जीवनरूपी सफर में पड़ाव कितने भी क्यों न हो, मंजिलें कठिन या सरल कुछ भी हों, परिवर्तन तो शाश्वत सत्य है। इस *परिवर्तन* को कुछ भी प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है। अतः इस गतिमान सृष्टि में, मनुष्य के इस गतिशील जीवन में परिवर्तन ही एक अटल सत्य की तरह स्थिर शब्द है।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची -  झारखंड
चलना  जीवन  और  रुकना  / स्थिर  होना  मृत्यु  है । कुछ  भी  स्थाई  नहीं  होता  क्योंकि  परिवर्तन  प्रकृति  का  नियम  है  और  समय-समय  पर  इसमें  बदलाव  होते  रहते  हैं  । 
       मानव, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे  अर्थाथ  जो  भी  सजीव  हैं  उनमें  किसी  में  तीव्र  गति  तथा  किसी  में  धीरे-धीरे  शारीरिक, मानसिक  तथा   भौतिक  परिवर्तन  लगातार  होते  रहते  हैं । 
       जो  बुद्धि जीवी  हैं, उनमें  वैचारिक  एवं  अन्य  परिवर्तन  तेजी  से  होते  हैं  । 
       मन  के  लिए  कहा  जाता  है  कि  वह  बड़ा  चंचल  है, इसे  स्थिर  रखने  के  कई  उपाय  हमारे  ॠषि-मुनियों  ने  बताए  हैं  जिसमें  ध्यान  और  योग  महत्वपूर्ण  हैं  । 
       कुछ  परिवर्तित  वैज्ञानिक  विधि  से  कुछ  समय  के  लिए  स्थिर  किए  जा  सकते  हैं । 
        जीवन  में  परिवर्तन  ही  एकमात्र  स्थिर  है  क्योंकि  वो होता  रहता  है  ।
        - बसन्ती  पंवार 
         जोधपुर  - राजस्थान 
परिवर्तन खुद अस्थिर है तो उस में स्थिरता का कैसा विचार ? बहुत दिनों तक एक ही अवस्था एवं परिस्थिति में रहते व्यक्ति खुद को स्थिर एवं स्थापित महसूस करने लगता है  तभी एक झोंका या ऐसा तूफान आता है कि सब कुछ बदल जाता है ।यह परिवर्तन इस लोक में सदा से होता आया है, हो रहा है और आगे भी होगा ।यह पृथ्वी ,सूरज, चंद्रमा आदि को स्थिर  मान सकते हैं हालांकि ये भी गतिशील है तथा इनमें भी भौगोलिक परिवर्तन होते रहते हैं ।देखा जाए तो हर नश्वर चीज अस्थिर  है और उसमें परिवर्तन होता रहता है ।यह परिवर्तन संभावित है,और यह होता ही रहेगा। परिवर्तन को स्वीकार कर उसे ही स्थिर माना जा सकता है।
                   - रंजना वर्मा 'उन्मुक्त '
                   रांची - झारखंड
जीवन तो सदा ही परिवर्तनशील है । बहना ही जीवन है । सरिताएं बहती हैं  ,हवाएं बहती हैं और जीवन का चक्र भी मृत्यु के कारण ही चलता है ।बुद्ध ने कहा है ,,,,,चरैवेति चरैवेति ।
चलना ही जीवन है और इसी मंत्र में छिपी है स्थिरता ।जैसे जीवन के चारों ओर प्राण तत्व  है ।मृत्यु घटती है पर जीवन फिर भी हारता नहीं ,जैसे मनुष्य में विवेक है ,प्रज्ञा है ।यूं कहो जैसे परिधि में परिवर्तन और केंद्र में स्थिरता ।गाड़ी का चाक चलता है पर धुरी स्थिर है।ऐसे ही यह जगत है परिधि के समान सदा  चलायमान ।और इसके केंद्र में है स्थिरता ।और चलने में ही परिवर्तन है ।जैसे हमने नदी में पांव रखा ।वह पानी तो गया ।अब नदी वही नहीं है ।पर दिखने में वही है  ।ऐसे ही  जगत सदा परिवर्तन शील है ।लेकिन धुरी की तरह जगत का भी केंद्र है जो उसे चलायमान रखता है ।इसलिए परिवर्तन में भी स्थिरता है ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकुला - हरियाणा
परिवर्तन ही विकास की पहचान है अगर परिवर्तन नहीं तोे जीवन निरस बन जाएगा जी सही है परिवर्तन गतिशील भी है और स्थिर भी मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक निरन्तर परिवर्तन आता रहता है कुछ मूर्त व कुछ अमूर्त यह अमूर्त परिवर्तन ही स्थिर परिवर्तन है मूर्त परिवर्तन हमारा रहन-सहन,खान - पान में बदलाव लाता है जबकि अमूर्त परिवर्तन हमारी विचारधारा ही बदल देता है अतः आयु,स्थिति, पहचान,सब परिवर्तन शील हैं परन्तु परिवर्तन स्वयं स्थिर है।।।
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। शाश्वत भी है और यह अटल सत्य है। जीवन तो बदलता रहता है पर बदलाव ही सत्य है।
इसमें दो शब्द छिपे हुए हैं विरोधाभास।
परिवर्तन-एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु देना।
यहां भी कह सकते हैं कि एक स्थान के बदले दूसरे स्थान के भाव वाना जैसे की प्रकृति में ऋतु का आना जाना होता है मौसम भी बदलते हैं ठंडी गर्मी बरसात सब एक निश्चित समय पर ही आते हैं।
स्थिर -स्थिर का अर्थ स्थाई अचर। 
परिवर्तन प्रकृति का नियम है और यह एक तरीके से शाश्वत भी है कि जीवन में परिवर्तन होता है एक जब हम पौधा लगाते हैं तो वह थोड़ा बड़ा होता है फिर वृक्ष बनता है उसमें फूल आते हैं पत्ते आते हैं और वह बूढ़ा होता है।
मानव जीवन में भी बच्चा बड़ा होता है युवा होता है नौकरी चाहती करता है घर परिवार होता है शादी ब्याह होता है और उसके बाद वह बूढ़ा होता है फिर उसका ही घर परिवार दूसरे बच्चों के हाथ में वह सत्ता आती हैं। उसी तरह प्रकृति में भी बदलाव होता रहता है हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते हैं उसी के नतीजा हमें भुगतना पड़ता है प्रकृति ठंडी गर्मी बरसात मौसम में भी जहां पानी नहीं देता था वहां पानी गिरता है यह सब हमारे द्वारा किए गए परिवर्तन का ही नतीजा है।
मनुष्य को चाहिए कि वह अपने चित्त को स्थिर रखें और परिवर्तन में जो सही है उसी को अपनाकर जीवन में आगे बढ़े।
-प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
जी बिल्कुल जीवन में परिवर्तन ही स्थिर है, इसके सिवा इस सृष्टि में स्थिर कुछ भी नहीं है ।
परिवर्तन एवं गति संसार का अनिवार्य नियम है ।
इस सृष्टि का यही शाश्वत नियम  भी है।
 इसी में गति और जीवन है ।मनुष्य का परिवर्तन शीलता धारण किए रहने में कल्याण है।
 जो स्थिर जैसे दिखाई पड़ते हैं उन में स्थिरता नहीं है। यह सब कुछ गतिशील  है।
 जड़ पदार्थ के अणु परमाणु के भीतर के कण सदा बन्द वृत्तों मे गतिमान रहते हैं ।
शरीर के भीतर  भी स्थिरता नही है ।
 यहां तक चंद्रमा ,सूर्य ,पृथ्वी भी गतिमान रहते हैं।
 शरीर के भीतर भी स्थिरता नहीं है शरीर के भीतर संपूर्ण अवयव स्वसंचालित प्रक्रिया द्वारा अपने अपने कार्यों में निष्ठा पूर्वक जुटे रहते हैं ।
गति ही जीवन है ,,,और विराम मृत्यु,,,,।
 निश्चलता तो जड़ जैसे दिखने वाले पहाड़ और चट्टानों में भी नहीं होती। उनके भीतर भी परमाणु की हलचल जारी रहती है। यहां तक ग्रह ,नक्षत्र ,वृक्ष वनस्पति ,नदी ,नाले सब में गति  समान रूप से गति विद्यमान है।अतः हम कह सकते हैं ,कि संसार में परिवर्तन के सिवा कुछ भी स्थिर नहीं ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जी हां! परिवर्तन संसार का अटल नियम है। जीवन में यदि परिवर्तन न हो तो जिंदगी नीरस हो जाएगी। कभी दिन है तो कभी रात है, कभी सर्दी है तो कभी गर्मी है, कभी धूप है कभी छांव है, ऋतुओं में परिवर्तन है। व्यक्ति की उम्र में परिवर्तन है बचपन है, जवानी है, बुढ़ापा है, अंत है- अनंत है। 
संसार में सब कुछ परिवर्तित हो रहा है लेकिन ऐसा करने वाला परिवर्तन स्वयं में स्थिर है। उसमें कभी परिवर्तन नहीं होता यदि हम सोचें कि दुनिया में परिवर्तन न हो तो ऐसा कदापि सच नहीं हो सकता। जीवन में एकमात्र परिवर्तन ही स्थिर है, अटल है। प्रकृति का नियम है परिवर्तन होगा और पल पल होगा। गंगा जल की भाँति ..एक बार छुआ तुरंत दूसरे जल की लहरें ..।  परिवर्तन को कोई परिवर्तित नहीं कर सकता।
- संतोष गर्ग
 मोहाली - चंडीगढ़
परिवर्तन  तो  खुद अस्थिर है तो जीवन में परिवर्तन कैसे स्थिर हो सकता है ? कुछ न कुछ बदलते रहना ही तो परिवर्तन है। दुनिया रोज ब रोज कुछ न कुछ बदलती रहती है तो जीवन में परिवर्तन कैसे स्थिर हो सकती है। कुछ परिवर्तन स्थिर हो सकते हैं पर सब नहीं। आदमी दिनप्रतिदिन मौत के करीब जाता है तो ये जीवन का परिवर्तन ही हुआ न। तो ये परिवर्तन स्थिर कहाँ हुआ। शादी विवाह घर द्वार  रिश्ते नाते यही स्थायी हो सकते हैं बाकी सब तो परिवर्तन शील ही है। तो स्थिरता कहाँ से आई।
       इस तरह से मेरे विचार से जीवन में कुछ ही परिवर्तन स्थायी होता है बाकी सब अस्थायी ही होता है। 
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - प.बंगाल


" मेरी दृष्टि में " परिवर्तन के बिना जीवन में कुछ भी सम्भव नहीं होता है । परिवर्तन से ही जीवन मे तरक्की मिलती है । इसलिए जीवन में परिवर्तन स्थिर होते हैं ।
                                                    - बीजेन्द्र जैमिनी
                       डिजिटल सम्मान

Comments

  1. परिवर्तन की वजह से जीवन में परिस्थितियां बदलती है। कई तरह के उतार-चढ़ाव आते हैं। प्राकृतिक सामाजिक व अन्य तरह के भी परिवर्तन होते रहते हैं। शारीरिक परिवर्तन भी होते हैं किंतु परिवर्तन स्थिर कैसे होगा? एक स्थिति में कह सकते हैं कि परिवर्तन स्थिर है क्योंकि परिवर्तन को होना ही है अर्थात हमेशा होंगे वरना बदलाव तो उसकी प्रकृति ही है जो की अस्थिरता को दर्शाती है।

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