चरित्रवान शिक्षक कैसे तैयार होगें ?

शिक्षक का स्थान माता- पिता से भी बड़ा होता है। इसलिए शिक्षक की जिम्मेदारी और भी अधिक होती है । परन्तु आज चरित्रवान शिक्षक की आवश्यकता है। जो भारतीय संस्कृति की पहचान बन सके । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
किसी भी व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का आईना चरित्र है यानी चरित्र व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व का उद्बोधन है। कर्तव्यों के प्रति जागरूक एवं क्रियान्वयन के लिए तत्पर होना सत्यनिष्ठ, शिष्ट एवम स्वार्थरहित त्यागमय आदर्श अपनाने वाला सही अर्थों में चरित्रवान माना जाता है। इन गुणों से युक्त व्यक्ति ही देश, समाज ,राष्ट्र तथा भावी पीढ़ी के उत्थान व चरित्र निर्माण का निर्माता हो सकता है। इससे जुड़े भाव, संवेदनाएं, विचार, ज्ञान, संस्कृति से संस्कारित पहले तो परिवारों में विद्यमान रहते ही हैं। बस केवल  बाह्य परिवेश में व्यक्ति के आने पर उसे केवल जागृत ही किया जाता है।
        आज समाज के सामने चरित्रवानता का अर्थ ही बदल गया है। जीवन- मूल्य बदल गए हैं। पैसे की चकाचौंध, झूठी शोहरत से आम व्यक्ति ही क्या समाज के राष्ट्र के निर्माता शिक्षक भी इससे अछूते नहीं हैं। काम चोरी, चापलूसी ,भ्रष्टाचारी, स्वार्थपरता व अहंकारता के अपवित्र आचरण से ही जगत चल रहा है। शिक्षा के व्यवसायीकरण ने छात्र- शिक्षकों में चारित्रिक दौर्बल्य  को बढ़ा दिया है। इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिए संपूर्ण समाज, परिवार, सबका ही सहयोग अपेक्षित है। जिसके लिए चरित्र निर्माण के सफल केंद्र गुरुकुल पद्धति को बढ़ावा, मातृभाषा की अनिवार्यता, ट्यूशन- कोचिंग सेंट्रो पर विराम, शिक्षकों को मात्र शिक्षण कार्य हेतु नियुक्त कर उनके लिए आकर्षक वेतन का विधान भी जरूरी है।
       वैसे घर या परिवार नागरिकता की प्रथम पाठशाला है। इसके लिए सबसे पहले घर- परिवार से ही संस्कारित व्यक्ति में श्रद्धा सम्मान का भाव ह्रदय में आप् लावित करना होगा। शिक्षा एवं संस्कारों में पाश्चात्य जीवन-- मूल्य, वेशभूषा और परिवेशगत नीतियों पर लगाम लगानी होगी; क्योंकि इन सब का चरित्र -निर्माण पर बहुत गहरा असर दीखता है। उदाहरण के लिए डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन, स्वामी विवेकानंद जैसे लोगों की चरित्रवानता भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों की ही देन है।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
चरित्रवान शिक्षक बनने के लिए शिक्षक को अपने सच्चे स्वरूप का ज्ञान होना चाहिए ।
शिक्षक को चाहिए कि वह स्वयं के स्वरूप को पहचानते हुए जिम्मेदारी निभाएं ,अर्थात स्वयं ही सदाचरण धारण करें ।
क्योंकि वह ही राष्ट्र निर्माता है ,,,,देश के नौनिहालों को धरोहर के रूप में राष्ट्र ने शिक्षक की गोद में डाला हुआ है ।अतः शिक्षक का यह नैतिक दायित्व बन जाता है कि वह अपने जीवन को उत्कृष्ट एवं उच्च कोटि का बनावे ,तभी तो वह दूसरों को अच्छाइयां दे सकेगा जब खुद में  मौजूद होंगी।
शिक्षक बहुआयामी व्यक्तित्व का होना चाहिए ,शिक्षक का जीवन मूल्योंन्मुखी तथा संप्रेषण कला से युक्त होना चाहिए ।
उसे राष्ट्र के सांस्कृतिक मूल्यों तथा विचारों में आस्था रखने वाला होना चाहिए। शिक्षक को बाल मनोविज्ञान तथा किशोर मनोविज्ञान का ज्ञाता होना   चाहिए। शिक्षक अपने छात्रों से आत्मिक संबंध रखने वाला हो। लेकिन आजकल शिक्षक  मजबूरी वश प्रबंधनतंत्र व राजनीतिक दबाव के कारण अपने उत्तरदायित्व को ठीक से नहीं निभा पाते हैं ।
शिक्षकों को उत्साहवर्धक, सहयोगी तथा मानवीय बनना चाहिए ,जिससे विद्यार्थी अपनी  संभावनाओं का पूर्ण विकास कर जिम्मेदार नागरिक बन सकें ।तभी  शिक्षक अपना उत्तरदायित्व सफलतापूर्वक निभा सकेंगे।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
आज की चर्चा में यह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया गया है कि चरित्रवान शिक्षक कैसे तैयार होंगे वास्तव मे शिक्षक ही किसी भी देश की उन्नति विकास और प्रत्येक दृष्टि से उसके उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता और शिक्षकों का कर्तव्यनिष्ठ एवं चरित्रवान होना बहुत आवश्यक है जहां तक यह  प्रश्न है कि चरित्रवान शिक्षक कैसे तैयार होंगे तो यह बात निर्विवाद रूप से सही है कि अभी भी बहुत से शिक्षक नही  अधिकांश शिक्षक इन दोनों को कसौटियों कृतव्य निष्ठा व चरित्र की कसौटी  पर पूरी तरह खरे उतरते हैं परंतु हां यदा-कदा ऐसे मामले भी देखने में आते हैं जिससे इस समाज की छवि को धक्का पहुंचता है और कलंकित होती है इससे बचने के लिए शिक्षकों की नियुक्ति के समय ही उनके पारिवारिक इतिहास पर भी गौर किया जाए और ऐसी पृष्ठभूमि के लोगों को इस पुनीत शिक्षण कार्य में आने से रोका जाए जिन की पारिवारिक पृष्ठभूमि अच्छी नहीं रही हो और कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ ऐसा रहा हो जिससे यह प्रतीत होता हो कि अमुक व्यक्ति इस व्यवसाय के लिए अच्छा नहीं रहेगा हालांकि यह भी पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता कि भविष्य में कौन कितना अच्छा निकलेगा और कौन कितना बुरा परंतु बच्चे की पहली पाठशाला उसका परिवार ही है उसके पारिवारिक संस्कार ही उसके चरित्र निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है दूसरा नंबर उसके गुरु और उसके विद्यालय का आता है कि उसकी शिक्षा-दीक्षा किस माहौल में हुई है और किस तरह के व्यक्तियों से शिक्षा ग्रहण करने का मौका मिला है तो शिक्षकों की नियुक्ति के समय इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि वह चारित्रिक रूप से बहुत अच्छी पृष्ठभूमि से रहा हो तो काफी हद तक इस बुराई से बचा जा सके साथ ही साथ अच्छा कार्य करने वाले शिक्षकों को समय-समय पर सार्वजनिक रूप से भी सम्मानित किया जाना चाहिए और उनके अच्छे कार्यों का पारितोषिक समय-समय पर दिया जाना चाहिए इससे समाज में एक अच्छी सोच विकसित होगी और शिक्षकों का मान सम्मान भी बढ़ेगा एवं नए लोग हुई इस पुनीत कार्य से जुड़ेंगे और अच्छे लोगों का इसमें समावेश होगा .
- प्रमोद शर्मा प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
शिक्षक की समाज और राष्ट्र के वर्तमान और भविष्य के लिए अहम भूमिका होती है। वह राष्ट्र का निर्माता होता है। शिक्षक के द्वारा विद्यार्थियों को जो ज्ञान और संस्कार दिए जाते हैं, नैतिक, व्यवहारिक और व्यवसायिक शिक्षा देकर उन्हें सशक्त और सामर्थ्यवान बनाकर योग्य बनाया जाता है, विद्यार्थियों की वही योग्यता, राष्ट्र और समाज का भविष्य तय करते हैं। अतः यह भी बहुत आवश्यक और महत्वपूर्ण है कि जो राष्ट्र और समाज के निर्माता हैं, वह भी इस भूमिका और दायित्व के निर्वहन में हर दृष्टि में सक्षम हों। वे बौद्धिक रूप से तो परिपूर्ण और परिपक्व तो हों ही, चारित्रिक और व्यवहारिक रूप में भी पूर्ण रूपेण प्रखर और निपुण हों। इसके लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि शिक्षकों की नियुक्ति करने के पहले उनकी इस योग्यता का आकलन और चयन सजगतापूर्वक, ईमानदारी, निष्पक्षता और सूक्ष्मदर्शिता से किया जावे। 
इसे यूँ भी समझा जा सकता है कि चरित्रवान शिक्षक के लिए,  चरित्रवान विद्यार्थी होना  जरूरी है। विद्यार्थी जीवन की योग्यता ही , योग्य शिक्षक बनने का रास्ता प्रशस्त करती है। 
शिक्षक के लिए चरित्रवान और बुद्धिमान दोनों होना अति आवश्यक है। दोनों में से कोई एक कमी होने पर परिणाम प्रभावित करने की संभावना रखती है। 
संक्षेप में क हा जावे तो चरित्रवान शिक्षक नैतिक शिक्षा के पूर्ण ज्ञान  और आचरण को  ईमानदारी से आत्मसात करने से तैयार हो सकते हैं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
शिक्षक वह पथप्रदर्शक होते हैं जो हमें किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। शिक्षक को ईश्वर तुल्य माना जाता है।
    आज भी बहुत से शिक्षक शिक्षकीय आदर्शों पर चलकर एक आदर्श मानव समाज की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
शिक्षक समाज में उच्च आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। शिक्षक विद्यार्थी का जीवन गढ़ते हैं। मार्गदर्शक बनकर समाज को भी राह दिखाते हैं। इसलिए शिक्षक को 'समाज का शिल्पकार' भी कहा जाता है।
   वर्तमान समय में कुछ शिक्षक ऐसे हैं जो शिक्षा को व्यवसाय बनाकर शिक्षक के नाम पर धब्बा लगा रहे हैं। चरित्रवान शिक्षक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका हमारी शिक्षा नीति की भी होती है अगर उच्च मूल्य स्थापित करने वाली शिक्षा नीति हो तो शिक्षक भी चरित्रवान बनेंगे। 
      आर्थिक, सामाजिक,सांस्कृतिक विकास के साथ ही साथ शिक्षक का चरित्र निर्माण भी देश की शिक्षा नीति पर निर्भर होता है। शिक्षक प्रशिक्षण काल में उन मानवीय गुणों पर आधारित पाठ्यक्रम हो जिसमें उनके अंतर्मन में ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थ, लालच ,अहंकार पक्षपातपूर्ण रवैया आदि दुर्गुणों का निराकरण और समभाव, सद्भावना, परोपकार, दया, सहानुभूति आदि मानवीय गुणों का समावेश हो। इस तरह के प्रशिक्षण के द्वारा ही उनके हृदय में नैतिक भाव का समावेश होगा और वे अनैतिक कार्यों से दूर रहेंगे। वह अपने धर्म को ईमानदारी पूर्ण तरीके से निभा सकेंगे। चरित्रवान शिक्षक के रूप में आदर्श बनकर विद्यार्थियों के पथ प्रदर्शक बनेंगे।
                     सुनीता रानी राठौर 
                     ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
         गुरु से ही सब ज्ञान है, 
            गुरु विणु सब गुणहीन,
            जैसे पानी के बिना,
            तैर सके कब मीन।
शिक्षक ही समाज का शिल्पकार और मार्गदर्शक है । शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूजनीय रहा है।...... हाथ थामने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। जो सभी का ज्ञान देने वाले होते हैं। इनका योगदान किसी भी राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना होता है। शिक्षा की समाज के आधारशिला है भारतीय संस्कृति में माता-पिता के बराबर दर्जा दिया गया है ।सफल जीवन के लिए शिक्षा बहुत उपयोगी है। शिक्षक समाज के आईना होते हैं।
शिक्षकों का आचरण समाज और विद्यालय में एक अच्छे व्यक्तित्व की होनी चाहिए ।गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा होता है। इसलिए शिक्षक के छवि साफ-सुथरी रहनी चाहिए ।एक अच्छे शिक्षक व कर्तव्यवान,  कर्मठता, सत्यता, आदर्शवादी, सहनशीलता, आदि गुण होने चाहिए ।चुँकि बच्चे उन्हीं के अनुसरण करते हैं।
लेखक का विचार:- सच्चा शिक्षक छात्रों के प्रति गहरा अपनापन पैदा कर दे ।साथ में ऐसा विश्वास पैदा करें कि छात्र विद्यालय का इंतजार करें ।शिक्षक वही है जो वाणी के साथ-साथ आचरण से शिक्षा दे। शिक्षक अपने कार्य के प्रति आस्था का भाव अति आवश्यक रखे।
  " नर से लेकर नारायण तक,
    कोई नहीं गुरु से श्रेष्ठ,
    भारी है पूरे ब्रह्मांड से,
     गुरू की गुरूता।"
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
शिक्षकों का आचरण समाज में अनुकरणीय होता है l गुरु का स्थान ब्रह्मा, विष्णु और महेश से भी ऊपर आता है अतः हमारा समाज भी यह अपेक्षा रखता है कि गुरु कर्त्वयमान, सत्यवादी, आदर्शवादी, सहनशील व्यक्तित्त्व के धनी हों l शिक्षक को समाज निर्माण के प्रति नैतिक गुणों से परिपूर्ण होना होगा l प्रत्येक अच्छाई के आंचल में बुराई के शूल चुभे रहते हैं l मानवीय संवेदनाओं के चलते ऐसा संगम संभव है लेकिन गुरुजनों से समाज अच्छाईयों की अपेक्षा रखता है अतः उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना शिक्षक का बोधि उत्तरदायित्त्व है l 
आज हमारे सामने है सबसे बड़ी चुनौती कि समाज की आशानुरूप कैसे बने चरित्रवान शिक्षक l 
1. अध्यापक की योग्यता केवल पाठ्यक्रम पूरा करा सकने तक सीमित न रहे उसका मूल दायित्त्व यह भी हो कि उनसे पढ़कर निकले छात्र शालीनता की दृष्टि से उच्च स्तर के सिद्ध हो अतः उन्हें निज जीवन भी उसी अनुरूप ढालना होगा l 
2. चिंतन की उत्कृष्टता, चरित्र की प्रमाणिकता और परस्पर न्यायोचित सहकार जैसी प्रवृतियों का समावेश प्रशिक्षण काल में ही किया जावे l 
3. गाँव का चिंतन, चरित्र और व्यवहार परिष्कृत करने में शिक्षक ही सक्षम है ऐसा समाज को मानना होगा न कि नाग पंचमी की भाँति शिक्षक पंचमी को अपनी औपचारिकता पूरी करने से यहाँ मेरा आशय शिक्षक के प्रति समाज में भावना की उत्कृष्टता में कमी से है l 
4. शिक्षक को अपने स्वाभिमान और आत्मसम्मान की रक्षा करनी है तो अपने दायित्त्वों को आत्मसात कर निर्वहन करना होगा l 
5. आप और हम सरस्वती के साधक हैं, गणेश हैं, शिक्षक के बारे में कुछ लिखना सूर्य को दीपक दिखाने की दृष्टता होगी l आज समाज, राष्ट्र शिक्षकों की तरफ टकटकी लगाये आशा भरी नजरों से देख रहा है l 
        चलते चलते ----
शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली हैं l वे संस्कार की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से सींचकर पल्ल्वित और सुरभित करता है l 
           --महर्षि अरविन्द 
- डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
शिक्षक ही समाज का शिल्पकार और मार्गदर्शक होता है, इसका दर्जा समाज में पुजनीय रहा है और रहना वी चाहिए। 
शिक्षक को अलग अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे, गूरू, अध्यापक, आचार्य यह स़भी शब्द एक जैसे व्यक्ति को चित्रत करते हैं जो सभी को ज्ञान देता है  और बहुत ही आदरणीय होता है। 
एक अच्छे  शिक्षक के लिए, सरल स्वाभाव, उच्च विचार, आदर्शवादी, कर्तव्यवान  व चरित्रवान होना बहुत जरूरी है, क्योंकी  शिक्षक ही समाज का शिल्पकार और मार्गदर्शक होता है, 
जिसका योगदान किसी भी देश या राष्टृ के भविष्य का निर्माण करता है। 
इसलिए शिक्षक को तन, मन, धन से अपनी सेवा अर्पन करनी चाहिए ताकी बच्चे उम्र भर अपने उस्ताद को याद रखें , क्योंकी शिक्षक वो कुम्महार है जो मिट्टी को कोई भी शक्ल दे सकता है  यानी बच्चों को कहीं  भी पहुंचा सकता है। 
सच कहा है, 
"जिनके किरदार से आती हो 
सदाकत की तरह महक, 
उनकी तपदीस से पत्थर भी पिघल  सकते हैं"। 
कहने का मतलब, शिक्षक चाहे तो क्य कुछ नहीं कर सकता, जवकि वो हुनरों का मालिक है, वशर्ते वो हुनर लगाए, 
यह भी सच कहा गया है, 
" मैं चाहता हूं मेरा भी कोई उस्ताद हो, मगर मैं नहीं चाहता की हर कोई मुझपर उस्ताद हो"।  
कहने का मतलब उस्ताद को बच्चे को समझ कर ही समझाने का प्रयास करना चाहिए और विना किसी लोभ लालच के उसको योग्य बनाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए वोही एक चरित्रवान शिक्षक कहलाएगा। 
कई वार बच्चे शिक्षक से कुछ पूछने से डरते हैं या शिक्षक  बच्चों को विस्तार से नहीं समझाते और वो सारी उम्र जिन्दगी में सीखते ही रहते हैं, 
जैसे कहा है, 
"ऐ जिन्दगी मुबारक हो तुझे 
आज के दिन, यकीनन तुझसा गुरू सारे जमाने में नहीं"  
कहने का भाव यह की कई   वार  शिक्षक बच्चे को समझ नहीं पाता या बच्चा ध्यान नहीं देता तो सारी उम्र पश्तावा वना रहता है, इसके लिए बच्चों को भी अपने गूरू की बातों पर अमल करना पढ़ता है तभी वो अच्छी मंजिल पा सकते हैं, 
सच कहा है, 
"तजुर्बा लेना है गर किसी बात का, तो उस्ताद के पैरों में गिरना सीख लो, " 
कहने का मतलब शिक्षक ओर वच्चों को   अपना अपना योगदान सही देना होगा तभी जाकर कामयावी मिलेगी।  नहीं तो  यह भी सच है, 
"शब्दों के उस्ताद थे वो कर रहे थे लफ्जों की हेराफेरी, 
हम भी आंखों के उस्ताद थे, इसलिए दूर होना था जरूरी"।  
कहने का मतलब दोनों का ईमानदार होना ही कामयावी के लिए जरूरी है। 
 शिक्षक अपने जीवन में अन्त तक मार्ग दर्शक की भुमीका निभाता है इसलिए उसे अपने कार्य में पूरी मेहनत व लगन के साथ योगदान देना जरूरी है ताकि कोई उस पर  लांसन न लगा सके उसे निशुल्क हर बच्चे को एक जैसी शिक्षा प्रधान करनी चाहिए तथा कभी किसी से कुछ छुपाए नहीं रखना चाहिए ताकी अमीर गरीब एक जैसी शिक्षा प्राप्त कर सकें अत:सरकार को भी चाहिए की शिक्षक  को भी हर सुभिधा मिलनी चाहिए जिससे उसका मान सम्मान वना रहे और वो  किसी भी चिन्ता के विना अपने कार्य को  पूरी लगन से करता रहे,  ऐसा होने से शिक्षक दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करेगा  जिससे सारे समाज का, देश व राष्टृ का  भला होगा,   
क्योंकी शिक्षक वह पथ  प्रदर्शक होता है जो हमें किताबी ज्ञान ही नहीं अपितु जीने की कला भी सिखाता है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा 
जम्मू -जम्मू कश्मीर
यह विषय ही बेमानी है,शिक्षक चरित्रहीन नहीं होता है कभी भी। किसी अपवित्र मन में शिक्षक बनने का पवित्र विचार आ ही नहीं सकता है।यदि आ भी गया तो वह उस राह पर चल ही नहीं सकता। चरित्रवान बनाने वाला स्वयं चरित्रहीन हो ऐसी कल्पना व्यर्थ लगती है। मेरी बात बेमानी लग सकती है, लेकिन है सत्य।  अब बात आज के मूल विषय की, चरित्रवान शिक्षक तैयार करने के लिए किसी अतिरिक्त श्रम की आवश्यकता ही नहीं बस उसे सम्मानजनक तरीके से काम करने का अवसर तो दो। प्राइवेट सेक्टर की बात तो छोड़ ही दो, सरकारी स्तर पर 
सामूहिक विवाह सम्मेलन में खाना परोसने (वेटर) की ड्यूटी कराने या नशेड़ी लोगों की सूची बनाने का काम कराकर कितना सम्मान
शिक्षक को दिया जा रहा है? बस एक दिन गुणगान और बाकी दिन बंधुवा मजदूर सा व्यवहार।इतना सब होने पर भी शिक्षक स्वयं का ही देश के भविष्य का चारित्रिक निर्माण करता है। शिक्षक कुछ भी हो सकता है लेकिन चरित्रहीन व्यक्ति हो नहीं सकता। चरित्रहीन व्यक्ति में हिम्मत ही नहीं होती कि वह समाज में तो क्या,चार व्यक्तियों या किसी परिवार के बीच जा सके। कुछ अपवाद हो सकते हैं, लेकिन उनको शिक्षक मानना ही सबसे बड़ी गलती होगी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -उत्तर प्रदेश
          जब चरित्रवान विद्यार्थी तैयार होंगे, तभी चरित्रवान शिक्षक भी तैयार होंगे। आज का विद्यार्थी ही भविष्य का शिक्षक बनता है। यदि विद्यार्थी ने विद्याध्ययन करते समय सही ढंग से शिक्षा ग्रहण की है और उसके गुरु ने भी उसे उचित ढंग से ज्ञानार्जन  कराया है तो निश्चित रूप से चरित्रवान शिक्षक तैयार होंगे। प्राचीन काल का इतिहास इसका साक्षी है और आज के समय में भी कुछ समय पहले के विद्यार्थियों और आज के विद्यार्थियों में अंतर हम सब प्रत्यक्ष रूप से देख रहे हैं। चरित्रवान होना दोनों के लिए आवश्यक है। विद्यार्थी और शिक्षक दोनों एक ही कड़ी से जुड़े हैं।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
         शिक्षक को तो चरित्रवान होना ही चाहिए और होते भी हैं।अपवाद में कुछ लोग हैं जो इस आदर्श पेशे को भी आदर्श नहीं रहने देते।मसलन अपने ही छात्रों या छात्राओं के साथ प्रेम संबंध बनाकर गलत व्यवहार करना। पैसे लेकर नंबर बढ़ाना या उनसे ट्युशन पढ़ने वाले बच्चों को ज्यादा नंबर देना। इस तरह के शिक्षक चरित्रवान कैसे कहे जा सकते हैं।
         चरित्रवान शिक्षक तैयार करने के लिए पहले तो चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता लानी होगी। उन्हें सही वेतनमान देना होगा। समय पर वेतन मिलना चाहिए। योग्यता का सम्मान होना चाहिए। और सरकारी कर्मचारियों को जैसे तरह-तरह के भत्ते मिलते हैं उन्हें भी मिलना चाहिए।तब ही जाकर एक शिक्षक चरित्रवान बन सकता है। 
          आज देश के कई राज्यों में  शिक्षकों की हालत बहुत नाजुक स्थिति में है।उन्हें समय पर वेतन नहीं मिलता ऐसे शिक्षक चरित्रवान शिक्षक कैसे बन सकते हैं। सारे सरकारी कार्य उनसे ही करवाये जाते हैं।चुनावी कार्य शिक्षक लगा दो।समाजिक कार्य शिक्षक लगा दो।बाढ़ आया शिक्षक से राहत बटवाओ।एक पैसा भी कम उसपर से इतना सारा काम। शिक्षक पढ़ायेगा कब।
          जिस तरह से सरकारी डॉ को नॉन प्रैक्टिस भत्ता मिलता है उस तरह से यदि उन्हें नॉन ट्यूशन भत्ता मिले तो उनका ध्यान स्कूल में अच्छी तरह पढ़ाई पर लगे।बच्चों को अलग से ट्यूशन न पढ़ना पड़े।
       एक शिक्षक ही देश को चरित्रवान नागरिक देता है।उसे भी तो चरित्रवान होना ही चाहिए। इसके लिए उनकी प्रशिक्षण पद्धति में भी कुछ बदलाव होना चाहिए।कुछ अलग तरह का प्रशिक्षण होना चाहिए।
        इस तरह हम चरित्रवान शिक्षक तैयार कर सकते हैं।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
माता -पिता के बाद बच्चे अपना सबसे ज्यादा समय शिक्षक के साथ बिताते हैं ।वह जिन विचारें को सुनते हैं जिन क्रियाओं को देखते हैं उसीसे प्रभावित बीज का अंकुरण उनके बुद्धि में होता है ।शिक्षक कुम्हार है तो बच्चे माटी ।अतः भावी पीढ़ी के निर्माण के लिए चिरत्रवान शिक्षक आज की सबसे बड़ी जरुरत है । शिक्षक को भी पीढ़ी तैयार करने के लिए एक अच्छे वातावरण वाले विद्यालय की आवश्यकता होती है जहाँ वह सकारात्मक ऊर्जा पा सके ।उसे वक्त के अनुसार सुविधा मिलनी चाहिए ।बैठने की उचित व्यवस्था ,कमरे हवादार हों तथा प्रबंधन समिती के साथ अच्छा ताल मेल हो ।साथ ही प्रबंधनसमिती शिक्षक के पहनावे पर भी ख्याल रखे ।शिक्षक का व्यवहार मधुर तथा बोली मीठी हो ,स्कूल कीतरफ से भी शिक्षकके आर्थिक स्थिती का ख्याल रखा जाना चाहिए ।शिक्षक का हर समय सीखने कागुण उसके व्यक्तित्व का विकास करता है । यदि स्वामी रामकृष्णजी का चरित्र न होता तो विवेकानन्द को सही दिशा नहीं  मिलती ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
       चरित्र जीवन का वह महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान आभूषण है। जिसे धन से खरीदा नहीं जा सकता और चोर उसे चुरा नहीं सकता। 
      चरित्र का निर्माण मां-बाप के साथ शिक्षक अपनी लगन एवं त्याग की सिंचाई से करते हैं। जिसके फलस्वरूप शिष्य और शिक्षक चरित्रवान बनते हैं।
        उल्लेखनीय है कि वर्षों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रीय चरित्र निर्माण में अपनी सशक्त भूमिका निभा रहा है। जिनकी प्ररेणा से आज चीन भी थरथरा रहा है। चूंकि भारत के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी एवं माननीय महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पूर्णतः प्रशिक्षित हैं और उनके नेतृत्व में चीन की क्या औकात कि वह भारत को आंखें दिखाए?
       त्याग, बलिदान, समर्थन एवं समर्पण की भावना से शिक्षक चरित्रवान बन कर अपने दायित्वों को चरितार्थ करने में सक्षम हो सकता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
" गुरु  कुम्हार  शिष  कुंभ  है,
    गढ़ि-गढ़ि  काढ़े  खोट ।
    भीतर  हाथ  संभारि  दे, 
       बाहर  बाहे  चोट ।।"
गुरु  और  शिष्य  का  पावन  रिश्ता  वर्तमान  समय  में  अपनी  मर्यादाओं  को  ताक  पर  रख  कर  शर्मसार  हो  रहा  है ।  शिक्षा, शिक्षा  न  होकर  एक  व्यापार  हो  गई  है ।
      छात्र  अपने  अध्यापक  की   गतिविधियों  का  बहुत  बारीकी  से  अवलोकन  करते  हैं । शिक्षक  छात्रों  के  आदर्श  होते  हैं,  शिक्षकों  को  यह  बात  भलीभांति  समझ  लेनी  चाहिए  ।  उनके  संरक्षण  में  छात्राएं  सुरक्षित  हों ।
        गुरु  और  शिष्य  प्रकृति  से  जुड़ें, यौगिक  क्रियाओं  द्वारा   मन: संयम,  आत्मविश्वास, दृढ़  संकल्प, स्व-अनुशासन  द्वारा  अपनी-अपनी  मर्यादा  और  सीमा  में  रहते  हुए  अध्ययन-अध्यापन  को  ईमानदारी  से  अपना  लक्ष्य  बना  कर  चलें  । 
       शिक्षक  को  यह  भलीभांति  स्मरण  रखना  चाहिए  कि  उसका  स्वयं  का  चरित्रवान  होना  पहली  आवश्यकता  है  तभी  वह  विद्यार्थियों  को  चरित्रवान  बना  सकता  है  । 
        - बसन्ती  पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
     प्राचीन काल में गुरुकुल की शिक्षा- दीक्षा पद्धतियों की एक पहचान हुआ करती थी, जहाँ से समस्त प्रकार के आचरण प्राप्त कर ही निकलते थे।शनैः-शनैः वर्तमान तक अनेकों बार शिक्षा प्रणालियों में सुधार होता गया और पुस्तकीय ज्ञानों के आधार पर ही शिक्षक, विद्यार्थियों को वृहद स्तर पर विभिन्न श्रेणियों में उपदेश तत्परता के साथ दिखाई दे रहे, जिन्हें आदर्श  शिक्षक कहा जाता हैं। सफल शिक्षक वही हैं, जो पूर्ण रूपेण मन के विचार मंथन को प्रस्तुत कर, विद्यार्थियों को विवेकाधीन अधिकारों का बोध कराते हुए निष्पक्ष चरित्रवान शिक्षक बनकर दिखाये, जितना स्वयं का ज्ञान होगा, उसी के आधार पर विधार्थियों की विशेष पृष्ठभूमि चरित्रार्थ होगी।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
शिक्षक का अर्थ है शिक्षा देने वाला। शिक्षा देने वाले को पहले खुद शिक्षा को समझना होगा। शिक्षक माता के बाद दूसरा पायदान है जो आगे का मार्ग प्रशस्त करता है। माँ परिवार के संस्कार डालती है तो गुरु ब्रह्मांड की नीति सिखाता है। शिष्य के लिए नए रास्ते खोलता है।
जो व्यक्ति खुद ज्ञान की परिभाषा नहीं जानता उसे इस क्षेत्र में आने का कोई अधिकार नहीं है। शिक्षक राष्ट्र का निर्माता होता है। नागरिक की कार्य क्षमता या देश का विकास तभी सम्भव है जब सोच को सही दिशा प्राप्त हो। इस दिशा को निर्धारित करनेवाला शिक्षक ही है।
  शिक्षक की उपाधि के लिए खुद के आचरण को नियमित करना, बच्चों को सीखाने से पहले खुद के चरित्र का निर्माण करना आवश्यक है। तभी शिक्षक के पद के सही उम्मीदवार बनेंगे।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आधुनिक युग में  चरित्रवान शिक्षकों को तैयार करना  विचारणीय है क्योंकि  हर विषय को पढ़ाने के लिए अलग - अलग गुरु होते है ।कोचिंग क्लास में पढ़ाने वाले अलग शिक्षक होते हैं ।  आधुनिक छात्र किस शिक्षक को मान दे  किसे वह अपना गुरु माने ।
वर्तमान स्वार्थी  समाज में गुरु , शिष्य सब अपने  स्वार्थ से एक दूसरे से  जुड़े हैं । स्कूल के प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक यही हाल है ।
 अब वास्तव में गुरु की क्या परिभाषा है जाने -
शिक्षक , गुरु , अध्यापक , आचार्य आदि गुरु के पर्यायवाची शब्द  हैं। अगर  हम गुरु का शाब्दिक अर्थ करें गु का अर्थ है अंधकार  और रु का अर्थ है प्रकाश यानी जो इंसान हमें अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की और ले जाए वहीं हमारा गुरु हुआ।  जो   शिक्षण के द्वारा हमारे जीवन का सच्चा हितेषी बन के मार्ग दर्शन करता है। गुरु जो लघु नहीं है और लघु को  गुरु बनाता है।   भारतीय संस्कृति  पर दृष्टिपात करें तो शिक्षण दो प्रकार का होता है। 
1  ) अंतःशिक्षण  २ )  बाह्य शिक्षण  
 अंतःशिक्षण  द्वारा  बुद्धि , स्मृति , मेघा एवं प्रज्ञा के ज्ञान चक्षु खुलते हैं।  बच्चा माँ के गर्भ से संस्कार सीखने लगता है और जन्म लेते ही माँ - पिता के गतिविधियों , क्रियाकलापों के संस्कार उसमें पड़ने लगते हैं।  बचपन में पड़े संस्कार जिंदगी भर साथ चलते हैं।जो हमारी आत्मोन्नति मूलक होते हैं।  हमारा चारित्रिक विकास करता है।  इसलिए बच्चे की पहली पाठशाला और गुरु माँ होती है।  माँ अहं से दूर रहकर  अपनी संतान  के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देती है।  
 बाह्य शिक्षण - संत , महापुरुषों की जीवनी  पढ़कर , उनके प्रवचनों को सुनकर , विद्यालयों में जाकर शिक्षा ग्रहण करना आदि।  शिक्षा का उद्देश्य हमारा  संस्कार करना है।  विद्यार्थियों  के पूर्ण विकास में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। बचपन ही जीवन की  आधारशिला होती है।उन्हें   सीखने का अवसर स्कूल , घर , परिवेश  से ही मिलता है।  छात्रों की  विविध प्रतिभाओं को निखारने , प्रोत्साहन देना काम गुरु ही करता है।  
अतः अध्यापक बच्चों का भविष्य निर्माण कर राष्ट्र निर्माता बन जाता है , क्योंकि राष्ट्र निर्माण में गुरु की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।    जिंदगी भर जो भी हमें सिखाए वे सब  ही हमारे गुरु  ही होते हैं।  अध्यापक को यूँ भी परिभाषित कर सकते हैं ।
 समाज में समय के साथ शिक्षा पद्धति में परिवर्तन आया । संस्कारों में गिरावट आई । इंटरनेट युग के कारण गूगल तो सबसे बड़ा गुरु है और बिना मेहनत किये कोई भी विषय की  जानकारी  , मिल जाती है 
आज के युग में बच्चा गर्भ में आते ही टॉप के स्कूलों में नाम का पंजीकरण कराना पड़ता है । यह कैसी शिक्षा की आधुनिकता है। 
   प्राइमरी से ही बच्चों को ईमेल से होमवर्क शिक्षक देता है । ये क्या माता - पिता की पढ़ाई है  उन्हें  पूरी फस्र्ट करनी पड़ती है ।
 इसी संदर्भ में मैं अपनी दो बेटियों की मिसाल देती हूँ ।
मैंने अपनी दोनों बेटियों को नर्सरी से सीनियर केजी तक खुद पढ़ाया था । जबकि इनके साथ के बच्चे बड़े - बड़े कान्वेंट में इस स्तर की पढ़ाई की । माता - पिता का पैसा
तो लगा और उतने समय अभिभावक को बच्चों से छूट मिली ।
मैंने अपने दोनों बेटियों का दाखिला वाशी, नवी मुंबई  के 
टॉप स्कूल में कराया । जिसके लिए उन्हें टेस्ट देने थे ।बेटियाँ 100 नमंबर में से  100 नमंबर ले के आयी ।
आज दोनों बेटियाँ डॉक्टर हैं । 
 आज स्कूल और शिक्षक व्यवसाय कर रहे हैं । शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है । 
कोरोना काल में आँन लाइन छात्रों को प्राथमिक स्तर से लेकर यूनिवर्सिटी स्तर पर शिक्षक पढ़ा रहे हैं । क्या ये पढ़ाई हर बच्चा पढ़ पा रहा है ?उत्तर नहीं में है । एनसीईआरटी के सर्वे के अनुसार 
सिर्फ 30 % बच्चे ही ऑन लाइन पढ़ पा रहे हैं ।
कितने ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट सुविधा नहीं है । कितने वंचित , गरीब लोग हैं जिनके पास मोबाइल , कम्प्यूटर आदि गजट नहीं है ।  कितने मध्यम वर्ग भी मोबाइल जैसे साधनों से विहीन हैं ।
हाल की बिहार के परिवार की  घटना है घर में पिता के पास ही स्मार्ट फोन था । वह अपने बच्चों को फोन नहीं देते थे ।यह बच्चा 8 वीं कक्षा में पढ़ता है जब पढ़ाई ऑन लाइन होने लगी तो मजबूर हो के पिता  ने अपना फोनके बेटे को दे दिया । आज का स्मार्ट बच्चा पढ़ने के बजाए    बच्चा वीडियो खेलने लगा । इस खेल में बच्चा खेल में ऐसा फंसा की वापस निकलना मुश्किल हो गया । फोन की महत्त्वपूर्ण जानकारी जो व्यक्ति उससे पूछता और उसे वह  बताता कि यह बात फोन पर इधर लिखी है । वह बच्चा उसके इशारे पर जानकारी दे देता था और उससे पिता का बैंक एकाउंट नमंबर ले के उस व्यक्ति ने सारा पैसा भी निकाल लिया ।
 पिता हैरान बच्चे ने क्या कर दिया ? पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई । नतीजा ठनठन  गोपाल ।मेरे मतानुसार  आधुनिक युग में शिक्षकों भूमिका संतोषजनक नहीं है ।
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
आज के समय में चरित्रवान शिक्षक तैयार करना बहुत ही बड़ी चुनौती है। इसका प्रमुख कारण है कि शिक्षा जगत में भ्रष्टाचार का बोलबाला चरम पर है। कोई विद्यार्थी यदि अच्छे स्कूल में नामांकन लेना चाहता है तो भ्रष्टाचार की शुरूआत वहीं से हो जाती है। इसके बाद जैसे-जैसे उच्च शिक्षा ग्रहण करता है उसे कई तरह की कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। आज के समय में शिक्षा का व्यवसायीकरण और बाजारीकरण हो गया है जो देश के समक्ष बहुत बड़ी चुनौती है। पुराने समय में शिक्षक अभी व्यवसाय या धंधा नहीं था। गुरु एवं शिक्षक वह है जो एक विद्यार्थी में उचित आदर्शों की स्थापना कर सकते हैं और सही मार्ग दिखाते है। लेकिन आज के समय में कुछ ऐसे शिक्षक भी है जिन्होंने शिक्षा को व्यवसाय बना दिया है जिसके कारण एक गरीब विद्यार्थी पैसे के अभाव में बेहतर शिक्षा से वंचित रह जाता है। आज के आधुनिक युग में शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिक्षक वह पथ प्रदर्शक है जो हमें किताबी ज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन जीने की कला भी सिखलाता है। शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा है पूज्यनीय रहा है। कोई उसे गुरु कहता है कोई आचार्य तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है, जो सभी को ज्ञान देता है जिस का योगदान राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायने में कहा जाए तो शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढ़ता है। शिक्षक ही समाज का आधारशिला है इसीलिए उन्हें समाज में उच्च दर्जा दिया जाता है। माता पिता जन्म देते हैं। उनका स्थान दुनिया में कोई नहीं ले सकता, लेकिन शिक्षक ही है जिन्हें हमारी भारतीय संस्कृति में हमारे माता पिता के सामान दर्जा दिया जाता है। शिक्षक ही है जो समाज में रहने योग्य बनाता है, इसलिए ही शिक्षक को समाज में का शिल्पकार कहा जाता है। किसी भी राष्ट्र आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक, विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। यदि देश की शिक्षा नीति अच्छी हो तो उस देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन आज शिक्षा जगत में चरित्रवान शिक्षक का निर्माण करना हमारे समाज और सरकार के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती है। इस पर हमें हर सरकार को हर स्तर से ध्यान देने की जरूरत है। वैसे सरकार की ओर से चरित्रवान और बेहतर शिक्षक तैयार करने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही है, जिसका लाभ शिक्षकों के साथ साथ विद्यार्थियों को भी मिलता है। ऐसी बात नहीं है कि हमारे समाज में चरित्रवान शिक्षकों की कमी है पर इसका व्यवसायीकरण होने के कारण कुछ ऐसे शिक्षक भी है जो शिक्षा जगत को बदनाम कर के रखे हुए हैं।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
 जमशेदपुर - झारखंड
राष्ट्र -निर्माण का मूलभूत कार्य शिक्षा -संस्थाओं में ही होता है ।गुरु अथवा शिक्षक पूरे शिक्षा तंत्र की धुरी है। हमारे शास्त्रों में अध्यापकों को तपस्वी माना गया है क्योंकि स्वाध्याय को सबसे बड़ा तप स्वीकार किया गया है। अध्यापकों के लिए निरंतर अध्ययन करते रहना आवश्यक है। स्वाध्याय  श्रेष्ठतम है क्योंकि इसकी समाप्ति कभी नहीं होती। आजीवन चलने वाला यह तप शिक्षक को पूज्य एवं सम्माननीय और श्रेष्ठ बनाता है ।सभी धर्मों में शिक्षक का स्थान अति महत्वपूर्ण माना गया है। यदि अध्यापक अपने कार्य को अपना रुचिकर शौक भी बना ले तो अध्यापन से मिलने वाला आनंद जीवन को असीम सुख से भर देता है ।आज अध्यापन को व्यवसाय मानकर केवल आजीविका का साधन बनाने वाले अध्यापक प्राय असंतुष्ट दिखाई पड़ते हैं शिष्यों का अज्ञान न हर कर उनका धन हरने की चेष्टा में लगे ट्यूशन व्यसनी अध्यापक शिक्षकों के सम्मान को कैसे नष्ट कर रहे हैं इसका अनुमान शायद उन्हें नहीं है। भौतिकवादी जीवन मूल्यों के चकाचौंध में भ्रमित तथाकथित अध्यापक जब ज्ञानार्जन की अपेक्षा धन अर्जन में अपने जीवन की सार्थकता खोजने लगते हैं तो उन्हें निराशा मिलती है। ऐसा शिक्षक अपने लक्ष्य को भूल जाता है। आज देश को किसी भी अन्य से अधिक चरित्रवान और योग्य शिक्षकों की आवश्यकता है विशेष रूप से विशेष शिक्षकों की, जिनकी वैश्विक स्तर पर भागीदारी की कमी है। चरित्रवान शिक्षक में पर्याप्त गुणों का होना अति आवश्यक है।
1.  आकाश - धर्मी अध्यापक--  इस  श्रेणी में वह अध्यापक आते हैं जो आकाश की तरह अपने नीचे हर तरह के वनस्पति को अपनी योग्यता और आकांक्षा के अनुरूप विकसित होने का अवसर देता है ।जिस अध्यापक का अध्ययन जितना गहन होगा ,वह उतना ही  उद्धार होगा अच्छा अध्यापक बनने के लिए आवश्यक है कि वह अपने छात्रों से प्रेम करें तथा उनके कल्याण की कामना  करें ,उनकाे प्रगति की दिशा की तरफ ले जाने का प्रयास करें।
2. राष्ट्रप्रेम के संस्कार--    एक योग्य शिक्षक छात्रों में राष्ट्र के प्रति प्रेम ,समर्पण, त्याग की भावना का संचार करता है,राष्ट्रहित के मूल्यों से अवगत कराता है।
3.  नैतिक आचरण--  चरित्रवान व अच्छे संस्कारों से युक्त शिक्षक नैतिक आचरण को अपना स्वभाव बनाकर वैसी ही शिक्षा प्रदान करते हैं ।उनमें अच्छी नागरिकता के गुण होते हैं।
4. आर्थिक उदारीकरण--  योग्य शिक्षक , शिक्षा का व्यापारी करण और बाजारीकरण को रोकने का प्रयास करता है समाज के मेधावी,निर्धन छात्र शिक्षा से वंचित ना रहे इसका भी ध्यान रखता है।
 अतः  शिक्षक उच्च विचारों से युक्त ,सदाचारी, सादा जीवन अपनाने वाला, उच्च चरित्र वाला, ऊर्जावान, दयालु ,आकाश- धर्मी तथा भविष्य दृष्टा, नियामक, प्रतिभावान होना चाहिए, जो छात्रों में योग्यता, अच्छे संस्कार ,गुण का संचार कर सके और समाज को एक नई दिशा दे सके ।राष्ट्र निर्माण और स्वस्थ समाज के निर्माण में उसकी अहम भूमिका होनी चाहिए।
 शीला सिंह 
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
 प्रथम तो शिक्षक स्वयं को शिक्षाकर्मी या सरकारी कर्मचारी के रूप में न समझे चूंकि ऐसा समझने से वह केवल वेतनभोगी रह जाता है ! शिक्षक का दायित्व महान है ! शिक्षक व्यक्तित्व निर्माण का सांचा है अतः छात्र शिक्षक से शिक्षा ले उसका प्रतिरूप ही बनते हैं !
जितनी आसानी से शिक्षक विद्यार्थी का चरित्र निर्माण कर सकते हैं उतनी आसानी से अभिभावक एवं सामाजिक रीतियां भी नहीं कर सकती चूंकि विद्यार्थी को शिक्षक पर पूर्ण विश्वास होता है ! 
आज समस्त राष्ट्र का रुप ही बदल गया है भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता, व्यभिचार, अशिष्टता ,दुर्व्यवहार के चलते शिक्षक भी प्रभावित हुए हैं !
एक चरित्रवान शिक्षक बनने के पहले पहले अपना चरित्र उज्जवल होना चाहिए !
 शिक्षक की शिक्षा और परीक्षा में महत्वपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता है ! जो विषय विद्यार्थियों को पढ़ाए जाते हैं उनका अनुभव होना चाहिए !
नैतिक शिक्षा का ज्ञान होना चाहिए !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
भारतीय परिवेश में शिक्षक का स्थान और सम्मान आज भी सर्वोपरि है।  एक बालक व्यस्क होकर चरित्रवान शिक्षक तभी बन सकता है जब उसे बाल्यावस्था से ही चरित्रवान शिक्षक के द्वारा संस्कार और आशीर्वाद मिले। 
चरित्र की पुष्टता के लिए मनुष्य का भावनात्मक पक्ष मजबूत होना चाहिए। चारित्रिक गुणों में नैतिकता का स्थान सर्वोच्च है। एक चरित्रवान शिक्षक बनने के लिए नैतिकता का होना एक अनिवार्य शर्त है। 
इसमें कोई दो मत नहीं कि आजकल सभी की मानसिकता यह हो गयी है कि ऐसी शिक्षा ली जाये जिससे रोजगार मिल सके। न तो माता-पिता, न विद्यार्थी और न ही शिक्षा के नीति-नियंता विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण के विषय में सोच रहे हैं। 
व्यवहारिक रूप से देखा जाए तो आजकल शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है। व्यवसायिककरण ने तो स्वयं वर्तमान शिक्षा के चरित्र पर ही प्रश्नचिह्न खड़े कर दिये हैं। दूसरी बात प्रशासनिक व्यवस्था की है। इस व्यवस्था ने आज शिक्षकों को उस जगह पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां पर शिक्षा के अतिरिक्त मतगणना कार्य एवं विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण कार्यों आदि में उनकी सेवायें ली जाती हैं। ऐसे में शिक्षकगण अपने प्रथम दायित्व 'शिक्षण' को पूर्ण चारित्रिक भाव से कैसे निभायें? 
एक समाज की सुदृढ़ता और उज्जवल भविष्य के लिए यह अति आवश्यक है कि उसके पास चरित्रवान एवं निष्ठावान शिक्षक हों। 
इसलिए एक विद्यार्थी की प्राथमिक शिक्षा से ही चरित्र निर्माण पर विशेष जोर दिया जाये और रोजगारपरक शिक्षा के साथ-साथ चारित्रिक निर्माण पर विशेष बल दिया जाए। 
मेरे विचार से प्रथमत: तो शिक्षक को स्वयं ही अपनी मर्यादाओं का पालन पूरी निष्ठा से करना चाहिए तथा व्यवस्था को भी शिक्षकों की व्यवहारिक समस्याओं का समुचित निराकरण करना चाहिए, तभी चरित्रवान शिक्षक तैयार हो सकेंगे। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
शास्त्रों में गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है क्योंकि एक सच्चा शिक्षक ही अपने शिष्यों को व्यावहारिक जीवन से रूबरू करता है। एक शिक्षक और छात्र का रिश्ता उन रिश्तों में से है जिसे हम जिंदगी भर नहीं भूल सकते हैं। शिक्षक की अपने छात्रों पर गहरी छाप होती है। इस लिए शिक्षक का चरित्रवान होना बहुत जरूरी है। 
          चरित्रवान शिक्षक कोई एक दिन में तैयार नहीं हो सकते।चरित्रवान  शिक्षक तैयार करने के लिए हमें छात्रों को प्राथमिक शिक्षा से ही नैतिक मूल्यों की शिक्षा पर जोर देना चाहिए। जो आज हमारे शिष्य हैं, कल को वो शिक्षक भी बन सकते हैं। चरित्र एक दिन में नहीं बनता ।इस की नींव घर से ही रखी जाती है। शिष्य का पहला गुरु  माँ होती है। बचपन से ही अच्छे गुणों का विकास घर से शुरू करना चाहिए। विद्यालय में इन नैतिक मूल्यों को विकसित करना चाहिए। धीरे-धीरे विद्यार्थी उस नैतिक मूल्यों के सांचे में ढल जाता है। ऐसा शिष्य किसी भी क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। जब ऐसा छात्र शिक्षक बनता है तो निःसंदेह चरित्रवान ही होगा और समाज को सही दिशा दिखाने में भी समक्ष होगा। ऐसे शिक्षक छात्रों के रोल मॉडल होते हैं और सम्मानित भी ।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
वर्तमान में सरकारी और निजी स्कूलों में जिस तरह की शिक्षा बच्चों को परोसी जा रही है उससे देश में दो तरह की नौकर शाही पनप रही है  एक अफसरों और दूसरी चतुर्थ श्रेणी की।
ये दोनो वर्ग हर पद पर विराजमान हो चुके हैं । दोनों ही वर्ग अपने दायित्वों के प्रति गम्भीर नहीं । आज का शिक्षक ऐसे युवा तैयार कर रहा है जिसे शिक्षा पूरी होते ही बढिया वेतन वाली जॉब लग जाये ।चारित्र,नैतिकता,इमानदारी,दया और कर्मठता का आज की शिक्षा में कोई स्थान ही नहीं रह गया है ।किताबी ज्ञान मात्र से ही युवाओं में संस्कार नहीं आ सकते ।
आज का शिक्षक खुद विद्यार्थियों का शारीरिक,मानसिक, आर्थिक शोषण करता है तो उस से हम चरित्रवान शिक्षक  की पौध की आशा नहीं कर सकते ।
यदि चरित्रवान शिक्षक पैदा करने हैं तो उन्हे शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक अत्यधिक चरित्रवान होने चहिये ।इस कार्य को अंजाम तक ले जाने के लिये वर्तमान के शिक्षकों में चारित्र विकसित करना होगा ।
     - सुरेन्द्र मिन्हास
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
शिक्षक का दर्जा समाज में हमेशा से ही पूजनीय रहा है। कोई उसे गुरु कहता है, कोई शिक्षक कहता है, कोई आचार्य कहता है, तो कोई अध्यापक या टीचर कहता है ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को चित्रित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है और जिसका योगदान किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य का निर्माण करना है। सही मायनो में कहा जाये तो एक शिक्षक ही अपने विद्यार्थी का जीवन गढ़ता है। शिक्षक ही समाज की आधारशिला है। एक शिक्षक अपने जीवन के अन्त तक मार्गदर्शक की भूमिका अदा करता है और समाज को राह दिखाता रहता है, तभी शिक्षक को समाज में उच्च दर्जा दिया जाता है।
 सबसे पहली बात तो यह कि जो भी व्यक्ति शिक्षक बनने की राह पर चलेगा उसका लक्ष्य साफ होना चाहिए कि मैं एक चरित्रवान शिक्षक बनु और जितने भी मेरे छात्र-छात्राएं हैं वह भी मुझसे कुछ सीखे और उन्हें भी मैं अपने जैसा एक अच्छा सफल व्यक्ति जीवन में बनाऊं क्योंकि विद्यार्थी भी वही सीखता है जो शिक्षक उसको सिखाता है, एक कहावत है जैसा "गुरु वैसा ही चेला" | B.ed और D.El.Ed जैसे कोर्सेज हमें एक सफल शिक्षक बनाते हैं और उसमें हमें सिर्फ यही सिखाया जाता है और यह गुण सिखाए जाते हैं कि कैसे हम एक चरित्रवान शिक्षक बने यह पूर्णता आप पर ही निर्भर करता है अगर आप एक सफल और अच्छे शिक्षक बनना चाहते हैं तो आपको हर बात का ध्यान रखकर अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ना चाहिए | 
- रजत चौहान
  बिजनौर - उत्तर प्रदेश
चरित्रवान शिक्षक प्यार करने के लिए दो तीन बातों पर ध्यान देनी होगी पहली बात यह है कि शिक्षा पद्धति में सुधार लाना होगा दूसरा पहलू है नियुक्ति पद्धति में सुधार लाना होगा तीसरी पद्धति है एजुकेशन माफिया को सुधारना होगा
वर्तमान शिक्षा पद्धति दो प्रकार की है पहली सरकारी स्कूल महाविद्यालय की शिक्षा पद्धति दूसरा गैर सरकारी स्कूल महाविद्यालय की शिक्षा पद्धति
इन दोनों पद्धतियों में यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो गैर सरकारी जितने भी स्कूल हैं महाविद्यालय हैं वहां की शिक्षण पद्धति सरकारी स्कूल से बेहतर है एक समय था जब हर अभिभावक की यही इच्छा होती थी कि मेरे बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़े उस समय की बात है जब सरकारी स्कूल की शिक्षा पद्धति बहुत ऊंचे स्तर की हुआ करती थी पर कहीं ना कहीं माफिया के कारण प्रबंधन समिति की गड़बड़ी के कारण उच्च शिक्षा पद्धति और स्कूली शिक्षा पद्धति में गड़बड़ी पैदा होने लगी अब तो सरकारी स्कूल में जो नियुक्तियां होती हैं वह जैसे लगता है कि बाजार से मोलभाव करके खरीदारी की जाती है शिक्षकों को जिसने पैसा फेंका उसकी नियुक्ति हो गई जो नहीं भेज सका उसूलों वाला हुआ जिनके पास पैसा नहीं रहा उनकी नियुक्तियां नहीं नतीजा यह हुआ कि पहले 12 केसेस ऐसे हुआ करते थे अब एक-दो ही इमानदारी पर आते हैं बाकी वैसे ही केस रहते हैं जिसके कारण शिक्षा जो है उसका स्तर गिरने लगा और वह गिरे हुए स्तर के लोग अगर फिर शिक्षक बनेंगे तो क्या होगा अंजाम बुरा ही होगा सुख सिर्फ योग्यता एवं सर्टिफिकेट पर जो नियुक्तियां हो जाती हैं वह तो खरीदारी वाली सर्टिफिकेट होती है ऐसे बहुत सारे माफिया पूरे देश हर राज्य में समाज में घूम रहे हैं और जिसके कारण आज की शिक्षा पद्धति बिल्कुल ही गिर चुकी है अब महाविद्यालय पर अगर हम गौर करते हैं तो महाविद्यालय में दो स्तर के शिक्षा पर देती है एक शिक्षकों को सरकारी वेतन मिलता है और दूसरे ऐसे महाविद्यालय जिसमें वेतन भी नहीं मिलता है अब बताइए खुदा क्या भूखे पेट भजन होगा कितना हद तक लोग समय योगदान करेगा श्रम योगदान करेगा तो ऐसी शिक्षा पद्धति जो है वह कुछ माफिया के शिकंजे में जिसके कारण शिक्षा का स्तर गिर गया है इसलिए अगर सरकार नियंत्रण कर देती है तो निश्चित है कि चरित्रवान शिक्षक अगले 10 से 20 वर्षों में निश्चित ही तैयार होंगे
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
*शिक्षक स्वयं ही ज्ञानदीप है*
गुरु की महिमा संसार में अपरंपार है
शिक्षक अपने शिष्यों को अक्षर ज्ञान के साथ-साथ संस्कारवान भी बनाता है
ऐसे में शिक्षक का स्वयं चरित्रवान होना अति आवश्यक है पहले गुरु
ऐसे होते थे उनकी तुलना संसार में देवताओं से भी सर्वोपरि है
आज इस कलयुग में कुछ अपवाद स्वरूप शिक्षक हैं जो नैतिक मूल्यों का 
नीतियों का पालन नहीं करते हुए
शिक्षा को व्यापार बनाया है चरित्र से भी गिरे हुए हैं बेशक उनकी संख्या अल्प है लेकिन कहा जाता है कि एक गंदी मछली सारे तालाब के पानी को गंदा करती है
ऐसे लोग शिक्षक गुरु की महिमा का
जो निस्वार्थ निर्मल पावन है जग में
उसका अपमान करते हैं गुरु शिष्य परंपरा जो सदियों से चली आई है
उस पर सवाल खड़े कर देते हैं
एक प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं ?
ऐसे में चरित्रवान शिक्षक बनने के लिए
स्वयं शिक्षक का चरित्रवान होना अति आवश्यक है संस्कार का बीज उसे अपने आप में रोपित करना होगा
लालच लोलुपता कुटिलता छिछली गंदी राजनीति के दलदल से ऊपर उठकर पहले स्वयं को नैतिक मूल्यों के पैमाने में अपने आप को  तौलना होगा
अपना स्वयं का आत्मनिरीक्षण कर
अपनी कमियों को दूर करने के लिए
ऐसी कार्यशाला में जहां उनसे बड़े गुरु शिक्षा ज्ञान को किसी संगोष्ठी आदि के माध्यम से अच्छे विचारों का आदान प्रदान करते करवाते हैं इससे उनकी कमियां दूर होकर नया सीखने करने की आगे बढ़ने की और अच्छाइयों को आत्म ग्रहण करने की उत्कंठा होगी।
*शिक्षक समाज का दर्पण है*
*शिक्षक से शिक्षित होता है समाज*शिक्षा से ‌ही राष्ट्र का विकास संभव है*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
अपनी मेहनत और ईमानदारी के परिश्रम से जो शिक्षक बनता है वह चरित्रवान ही होता है।  उसके चरित्र को डिगाने का प्रयास नहीं करना चाहिए।  शिक्षक देश की भावी पीढ़ी तैयार करता है अतः उसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।  उसे ईमानदारी से कार्य करने देना चाहिए और उसकी भूमिका को देखते हुए उसका वेतनमान न्यायपूर्ण स्तर का होना चाहिए।  यदि उसे वेतन न्यायपूर्ण मिलेगा तो वह धनार्जन के लिए अन्य स्रोत खोजने में अपना समय व्यतीत नहीं करेगा।  यदि उसे ऐसा करना पड़ता है तो यह उसके विद्यार्थियों के लिए भी अन्याय होगा।  शिक्षक को पूरा मान-सम्मान मिलना चाहिए।  चाहे वह विद्यार्थी की तरफ से हो, उसके माता-पिता की तरफ से हो, शिक्षा विभाग की तरफ से हो या उसके उच्च अधिकारियों की तरफ से हो।  इन सब बातों को सुनिश्चित करने से चरित्रवान शिक्षक तैयार हो सकते हैं।
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली

" मेरी दृष्टि में "  शिक्षक का चरित्र प्राथमिक गुण होना चाहिए । कलयुग में इस गुण का पतन हो गया है । जिससे शिक्षक का निरादर हो रहा है । इसलिए शिक्षक को चरित्रवान बनाया जाना चाहिए ।
                                           - बीजेन्द्र जैमिनी
आज शिक्षक दिवस पर सभी सम्मानित































Comments

  1. मां के गर्भ से बच्चे को शिक्षा मिलना प्रारंभ हो जाती है। उसकी प्रारंभिक गुरु भी मां ही होती है। आचरण की बुनियाद भी वहीं से प्रारंभ होती है जोकि विद्यालय में जाकर प्रस्फुटित होती है। बालक मन जिज्ञासु होता है जैसा वह अपने शिक्षक को देखता है उसी का अनुकरण करने का सोचता है। इन्हीं बालकों बालिकाओं में से शिक्षण व्यवसाय में प्रवेश करते हैं। शिक्षक के ऊपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी रहती है क्योंकि अन्य व्यवसाय तो अपने क्षेत्र से संबंधित रहते हैं किंतु शिक्षक भविष्य के राष्ट्र निर्माताओं को तैयार करता है। अतः शिक्षक , शिक्षिका को नैतिक रूप से चरित्रवान एवं एक कर्तव्यनिष्ठ आदर्श शिक्षक के रूप में प्रस्तुत होना बहुत जरूरी है। राष्ट्र निर्माता के रूप में उनका दायित्व बनता है कि वे सही ढंग से प्रस्तुति देकर छात्रों छात्राओं को ज्ञानार्जन के साथ नैतिक मूल्योंं का भी ज्ञान दें तभी चरित्रवान शिक्षक तैयार हो पाएंगे।

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  2. वाहहहहहह धन्यवाद आदरणीय बीजेंद्र जी 🙏सभी रचनाकार साथियों को बहुत बहुत बधाई हार्दिक शुभकामनाएं 👏👏👏👏👏👏👏🙏🇮🇳🙏😊

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  3. वाहहहहहह धन्यवाद आदरणीय बीजेंद्र जी 🙏सभी रचनाकार साथियों को बहुत बहुत बधाई हार्दिक शुभकामनाएं 👏👏👏👏👏👏👏🙏🇮🇳🙏😊

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  5. आदरणीय आपने हमें "शिक्षक उत्थान रत्न सम्मान* से सम्मानित कर गौरवान्वित किया।
    आदरणीय आप और आपकी पूरी टीम को हृदय तल से आभार और बहुत-बहुत धन्यवाद। 🙏🙏
    आप सभी के सहयोग से हम साहित्यिक सृजन में सहयोग करते रहें और साहित्य के उत्थान में निरंतर कार्यशील रहे। यही हमारा उद्देश्य है। 🙏🌹🙏

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