क्या विचार और भाव में अन्तर हो सकता है ?

विचार और भाव में कोई अन्तर हो सकता है ? शब्द में तो  अन्तर  है ।अर्थ का अन्तर भी समझना चाहिए । विचार और भाव अपने आप में परिपूर्ण शब्द है ।यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय हैं ।इसी विषय को समझने की आवश्यकता है । अब आये विचारों को समझते हैं :-
मनुष्य के मन-मस्तिष्क में भाव-प्रवाह निरन्तर जारी रहता है। विभिन्न वस्तुओं, व्यक्तियों, स्थितियों एवं समय की गति अनुसार भाव उत्पन्न होते हैं। यह भाव-स्पन्दन एक सतत् प्रक्रिया है और इन भावों के अनुसार मनुष्य विचार धारण भी करता है। 
भाव हमारी भावनाओं को एक दिशा देते हैं और उस दिशा रूपी भावाभियक्ति को विचार कहते है। 
यह आवश्यक नहीं कि किसी के प्रति हमारे मन-मस्तिष्क में जो भाव उपजें वही हमारे विचार बन जायें। विचार हमारे भावों के अनुकूल हो सकते हैं परन्तु प्रतिकूल होने की भी पूर्ण संभावना है। 
इसके साथ ही यह भी आवश्यक नहीं कि हम अपने भावों को विचारों का रूप दे सकें, चाहे वह अनुकूल हों या प्रतिकूल। कभी-कभी किसी व्यक्ति अथवा परिस्थिति के प्रति अपने भावों को विचारों के माध्यम से व्यक्त करने में हम स्वयं को असमर्थ पाते हैं। 
इसलिए मैं कहता हूं कि.... 
भाव और विचार में अन्तर होता है क्योंकि भाव संवेदना है जबकि विचार अभिव्यक्ति है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
विचार हमारे मन और मस्तिष्क के संयोजन का परिणाम है । मानव जीवन विचारों के साथ आरंभ होता है और विचारों के साथ खत्म होता है  ।मानव जीवन में विचारों का यह सिलसिला चलता रहता है ।
 विचार हमारे समाज व हमारे ज्ञान के परिचायक हैं । विचार मनुष्य के जीवन में परिवर्तन लाते हैं । विचार भाव में परिवर्तित होकर स्थिरता ग्रहण करते हैं । भाव एक संपूर्ण अंगिक  घटना है जो हमारे पूरे अस्तित्व में अपना प्रभाव दिखाती है । विचार घटना, परिस्थिति, समय के अनुरूप बदल जाते हैं लेकिन भाव तटस्थ बने रहते हैं भाव भावना में बदल जाते हैं।  किसी के प्रति कल्याणकारी भावना दिखाना, किसी के सुख दुख में काम आना ,दुख के समय किसी की सहायता करना ये हमारे परोपकारी भाव है । भगवान के मंदिर में खड़ा हुआ व्यक्ति पूजा अर्चना में व्यस्त , भक्ति भावना से ओतप्रोत हो जाता है , यह भावना  ईश्वरीय  भाव है। थोड़ी देर के लिए हम विचार करते हैं कि यह संसार नश्वर है हम भगवान के प्रति आस्था दिखाते हुए आस्तिक भाव को अपनाते हैं । इन भावों में निरंतरता हमारी भावना बन जाती है ।  विचार ही भावों को जन्म देते हैं । विचार अप्रत्यक्ष भी हो सकते हैं लेकिन भाव हमारे व्यवहार से प्रदर्शित हो जाते हैं  किसी को दुख में देखकर दुखी होना प्रसन्नता के समय खुशियां व्यक्त करना ही भाव है। अतः विचार एक आंशिक घटना है , जो हमारे मस्तिष्क में चलती हैं और भाव एक सर्वांग घटना है , जो हमारे पूरे अस्तित्व से मैं गूंज जाती है ।
- शीला सिंह,
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
पहला उदाहरण :-
भाव होता है आप किस तरीके से रहते हैं, आप का रहन सहन से ही पता चलता है।
भाव और विचार होता है जब आप किसी व्यक्ति के विषय के बारे में कुछ सोचते हो,  समझते हो जो वह विचार करते हैं बस इतना सा अंतर है।
"दूसरा उदाहरण:-जैसे करोड़ों का हास्य भाव ,दया भाव ,या प्रदूर्भाव इस तरह से हमारे मन में अलग-अलग तरह के भावनाएं उत्पन्न होती है और विचार  मस्तिष्क में उत्पन्न होते हैं जैसे किसी को करोड़ों भाव को देखकर उसकी मदद करने का विचार हमारे मस्तिष्क में आता है यही भाव और विचार में अंतर है।
लेखक का विचार:- विचार एक आंशिक घटना है , जो हमारे मस्तिष्क में चलती है। भाव एक सर्वाग घटना है, जो हमारे पूरे अस्तित्व में गूंज जाती है। यही फर्क है।
विचार तो खोपड़ी में चलता है कागज के नाव की तरह। विचार एक आंशिक घटना है भाव को अगर हम ठीक से समझ ले तो विचार से उल्टा है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
भाव और विचार दोनों एक दूसरे के लिए विरोधाभास हैं
या हम यह भी कह सकते हैं कि एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
विचार एक सर्वाधिक मूल्यवान रत्न होता है ,जो मनुष्य हस्तांतरण करता है।
और भाव एक सुखद अनुभूति होती है जिससे उसे आनंद प्राप्त होता है यह उसके अंदर ही विद्यमान रहता है।
विचार तो हम किसी अच्छे साहित्य को पढ़ सकते हैं या किसी महापुरुष या संत के विचारधारा से प्रभावित हो सकते हैं। विचार तो समय के अनुसार बदलते रहते हैं। वह अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिए समय-समय पर इस को बदल भी सकता है।
लेकिन भाव के लिए वह ऐसा नहीं कर सकता है भाव तो आत्म संतुष्टि के बाद दिल से ही किसी चीज की तारीफ निकलती है हमें एक अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती है जैसे कि हम कोई भी गाना सुन रहे हैं या कोई गीत गुनगुना रहे हैं या भगवान की पूजा ही कर रहे हैं तो जो हमारे अंदर से भाव श्रद्धा के उत्पन्न होते हैं , आनंद की अनुभूति होती है। वह हमें कोई भी पैसे से खरीद कर नहीं दे सकता है ,और वह उसे कोई भी प्रभावित नहीं कर सकता है।
यह तो मनुष्य की अपनी-अपनी सोच है कि वह भाव और विचार को कहां रखता है एक अच्छा विचार आने से आशा की एक किरण प्रस्फुटित कर देता है वह विचार निराश व्यक्ति और अंधकार में भी घिरा हो तो विचार एक मनुष्य को आश्चर्यप्रद ऊंचाई तक पहुंचाने तथा गौरवपूर्ण लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिए प्रेरित करता है। भाव तो स्वयं उसके अंदर ही निहित है।
भाव और विचार दोनों को ही स्वच्छ रखना चाहिए। एक सकारात्मक सोच के साथ ही आगे बढ़ना चाहिए तभी आप जीवन में आगे बढ़ सकेंगे और लक्ष्य की प्राप्ति कर सकेंगे।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
                हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है। होगा भी तो थोड़ी देर के लिए। क्योंकि कई बार देखा गया हैं कि विचार कुछ अलग तरह के हैं और भाव कुछ अलग तरह हैं।
          जैसे कई बार हम अपने बच्चे को डांटते हैं तब हमारे ऊपर का भाव दूसरा और अंदर विचार कुछ दूसरा। अंदर तो उसके प्रति अपनापन का, प्यार का , दुलार का विचार रहता है लेकिन बाहर गुस्से का भाव रहता है।
         कभी-कभी हमारे मन में जैसे-जैसे विचार आते हैं बाहर चेहरे पर वैसे-वैसे भाव बनते बिगड़ते हैं।
अक्सर देखा जाता है कि लोग किसी को अंदर से प्यार करते हैं लेकिन बाहर प्रगट नहीं करते हैं। मन में विचार कुछ दूसरे ही रहते हैं बाहर कुछ दूसरा ही प्रगट होता है। कहीं कोई खाने को कहता है तो मन रहते हुए भी हम हम हा नहीं कहते ऐसे भाव बनाते हैं जैसे भर पेट खाया हो। इस तरह हम कह सकते हैं कि विचार और भाव में अंतर हो सकता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
भाव और विचार में अंतर हो सकता है। विचार हमारे दिमाग की उपज है और भाव हमारे दिल की उपज होती है। यही दोनों के बीच अंतर है। भाव वह है जो देखने का है। दूसरे के सुख दुख को आत्मसात करना और उसके अनुसार प्रभावित हो जाना। भाव पर कभी अपना वस्तु नहीं चलता है तो किसी को रोते हुए देख कर के आप रोने लगे और किसी को खुश देखकर हंसने लगे यही भाव है। भाव में अब बच्चों के साथ खेलते हैं तो कभी भूल जाते हैं। भाव होता है कि आपकी तरीके से रहते हो। अपना रहन सहन करते हो। यही भाव होता है। और विचार होता है कि जब आप किसी व्यक्ति के विषय के बारे में कुछ सोचते हो समझते हो तो अभी विचार कहलाता है बस इतना ही अंतर है भाव और विचार में भाव इमोशनल ही होता है जो भी हमारे से सुख_दुख, ईर्ष्या यह सब भाव आते हैं। और जो विचार होता है उसमें बुद्धि और विवेक काम करती है। विचार हमारे हजारों होते उसी तरह भाव भी हमारे बहुत से होते हैं। कोई भी व्यक्ति किसी काम को करने के लिए सोचता है, विचार करता है फिर उसकी योजना बनाकर उस पर अमल करता है। मनुष्य को जीवन में प्रगति पथ पर जाने के लिए विचार करना अति महत्वपूर्ण होता है। तभी वह अपने जीवन में सफल होता है। बिना विचार किए हुए जो व्यक्ति काम करता है जरूरी नहीं उसको उसमें सफलता मिले। पर जो व्यक्ति सोच समाज और विचार कर कोई भी काम करता है तो उसे सफलता मिलने तय है। वहीं दूसरी तरफ भाव व्यक्ति की भावना से जुड़ी होती है। भाव आपके अच्छे भी हो सकते हैं और खराब भी हो सकते हैं। यदि आप किसी की प्रगति और विकास को देखकर आप खुश होते हैं तो यह अच्छे भाव के संकेत हैं। और वही आप किसी के आगे बढ़ने से ईर्ष्या करने लगते हैं तो आप के भाव सही नहीं होते। यह सही बात है की विचार दिमाग और भाव दिल की उपज होती है। यही अंतर विचार और भाव के बीच में होता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
     विचार एक बार मन मस्तिष्क में आ जायें तो उसका अंत नहीं होता। रात में सोते हुए विचार हुए, तो प्रातः कैसे हो गया पता ही नहीं चल पाता, जिसके कारण नींद नहीं होने से दिनचर्या परिवर्तित हो जाती हैं।
     भाव एक आत्म रुपी हैं, जिसके कारण अनेकानेक भाव उत्पन्न हो जाते हैं, जिसमें रहन-सहन,   इच्छानुसार जीवन यापन करना पड़ता हैं, जो अनन्त समय तक चलता रहता हैं।
     किसी का अंत करना एक विचार और स्वादिष्ट भोजन करना एक भाव
यही जीवन का सारांश हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
          विचार और भाव दोनों एक ही तराजू के 2 पलड़े हैं। मन में जैसा भाव उत्पन्न होगा उसी के अनुसार विचार भी आएगा। जैसे हम देखते हैं सुनते हैं उसी के अनुसार हमारे मन में भाव पैदा होते हैं और फिर उसी के जैसे अर्थात उसी से संबंधित विचार भी बनने लगते हैं। अभी कुछ दिनों पहले सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु जिसे आत्महत्या बताया गया था उस पर किसी को यकीन नहीं हुआ और सभी ने उसका विरोध किया। अभी भी ड्रग्स मामले को लेकर पूरे देश में विद्रोह की भावना पैदा हो रही है और उसी के अनुसार लोगों की प्रतिक्रियाएं विचार के रूप में व्यक्त भी हो रही हैं।
 वैसे भी दैनिक जीवन में जो कुछ हम देखते हैं उसके अनुसार हमारे अंदर भाव पैदा होते हैं और विचार के रूप में व्यक्त हो जाते हैं। विचार किसी भी तरह के हो सकते हैं समीक्षात्मक आलोचनात्मक या सुझावात्मक या सहानुभूतिपूर्ण, दुख या सुख की अभिव्यक्ति दर्शाने वाले। यथा स्थिति तथा भाव एवं तदानुकूल विचार।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
विचार और भाव में अंतर होता ही है।  भाव तो हमारे मन में, हृदय में समाए रहते हैं, मानो जन्मजात हों।  विचार परिस्थितिजन्य हैं।  उदाहरण के लिए हम किसी के लिए कह सकते हैं ‘उसके मन में इन्सानियत के भाव हैं’ परन्तु यह नहीं कह सकते कि ‘उसके मन में इन्सानियत के विचार हैं।’ कभी-कभी ऐसी स्थिति आती है कि हम किसी से पूछ बैठते हैं ‘आपके क्या विचार हैं?’ - हम यह नहीं पूछेंगे ‘आपके क्या भाव हैं?’  हम मन्दिर जाते हैं और अपने आराध्य को पूजते हैं यह हमारे मन के भाव हैं, विचार नहीं हैं।  हम रास्ता चलते किसी गरीब को देखते हैं तो उस समय मन में विचार आता है ‘इसकी मदद करें या नहीं’, किन्तु यदि हमारे मन में इन्सानियत का भाव होगा तो हम बिना विचार किए ही उसकी मदद कर देंगे। यह है विचार और भाव में अंतर। 
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
     विचार उम्र के साथ, शिक्षा के साथ,जीवन के खट्टे मीठ्ठे  अनुभवों  से बदलते और  परिपक्व होते हैं । हम अपने विचार व्यक्ति ,समय, परिस्थिति के अनुसार और कभी कभी ऐसा माहौल होता है कि हम चाहते हुए भी दूसरों के विचारों के अनुसार ही अपनी बात रखते हैं।
  भाव ..वह अनुभूति जो आंतरिक आनंद या दुख से स्वतः पैदा हो जाती है। मानवीय संवेदनाएं भावों द्वारा ही प्रकट होती हैं । किसी भी अवसर पर सब के विचार तो एक हो सकते हैं  पर  भाव अलग ही होंगे।.
     ..विचार और भाव दोनो अलग हैं। यदि हम किसी से नाराज हैं तो शब्दों में चाहें हम झूठा दिखावा करके प्यार दिखाए पर हमारे हाव भाव, हमारी  आँखें, हमारा चेहरा ,हमारी भाषा हमारे भाव प्रकट कर देती है ।
  ..भाव सूर्य की उन किरणों के समान है जो प्रकट होकर ही रहेंगी।  साफ, उर्जा से पूर्ण,चमकदार। विचार चेहरे पर लगे मेकअप की तरह व्यक्ति को बदल सकता है ।
   - ड़ा.नीना छिब्बर
    जोधपुर - राजस्थान
जी हां विचार और भाव में अतंर हो सकता वाली बात क्या,होता ही है। भाव मन का विषय है और विचार मन और बुद़्धि दोनों का विषय है।मन तो चंचल होता है और बुद्धि स्वार्थ तत्त्व प्रधान होती है तो इसलिए भाव और विचार में अंतर होता ही है। उदाहरण, किसी की हालत पर हमारे मन में भाव आया कि सहायता करनी चाहिए।तभी बुद्धि ने विचार दिया कितनी सहायता,कब, कैसे आदि आदि।जब ये मांगे तब सहायता करना,अमुक मात्रा में सहायता करना।तो भाव और विचार में अंतर आ गया। इसके कारण हमारा भाव पीछे हो गया और विचार प्रभाव में आ जाता है। सामान्य व्यवहार में ये ही दिखाई देता है।भाव और विचार की यह जंग, नजदीकी रिश्तों और संबंधियों के बीच अधिक देखी जाती है।दूरस्थ और काल्पनिक जगत में तो यह भाव ही अधिक प्रभावशाली लगता है।तभी तो नशेड़ी, नाटकबाजों के कृत्यों से हम अधिक प्रभावित होते हैं,यह जानते हुए भी कि सब नाटक और झूठ है,हम भावुक हो जाते हैं। नजदीकी के दुख दर्द हालचाल जानने में भी सोच विचार करते हैं और अनदेखे दूरस्थ  काल्पनिक के प्रति संवेदनाएं व्यक्त करते हैं।अजीब दुनिया है,भाव और विचार की।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
भाव व विचार एक सिक्के के दो पहलू हैं
परन्तु अलग अलग रंग रूप लिए विचार हर पल हर क्षण या परिस्थिति में परिवर्तित होते रहते हैं व्यक्ति के विचारों में सम‌ हो सकता है परन्तु भाव में नहीं भाव व्यक्ति के हृदय में स्थापित होते हैं और संवेदना से जुड़े रहते हैं परन्तु विचार दिमाग में रहते हैं और बुद्धि से जुड़े हैं कई बार हम देखते हैं घर से निकलते वक्त किसी को लेकर हमारे विचार अलग होते हैं परन्तु वहां पहुंच कर परिस्थिति को देखते हुए संवेदनाएं हमें कुछ और कहलवा देती है अतः विचार व भाव एक होकर भी एक दूसरे से जुदा हैं।।
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है कि क्या व्यक्ति के विचार और भाव में अंतर हो सकता है तो इस पर मैं कहना चाहूंँगा हांँ विचार और भाव में अंतर हो सकता है वास्तव में हम जिस दौर में जी रहे हैं आदमी के स्वभाव और उसकी वास्तविकता में बहुत अंतर देखने को मिल सकता है आंतरिक रुप से हम किसी के बारे में कुछ नहीं कह सकते व्यक्ति का व्यवहार उसके मनोभाव से काफी अलग भी हो सकता है और कभी-कभी वह इतना अधिक अपने आप को परिवर्तित करके व्यवहार करता है जिससे पहचानना बहुत ही मुश्किल है यानी आईना भी धोखा खा सकता है व्यक्ति के चेहरे और उसके मनोभाव की वास्तविकता को पहचानने में उसे देख कर हम अंदाजा नहीं लगा सकते कि यह वास्तव में अान्तरिक रूप से किसके प्रति कैसी भावना रखता है यह एक बहुत ही मुश्किल कार्य होता जा रहा है और इसीलिए परस्पर विश्वास घात और रिश्तो में दरार की जो घटनाएं देखने को मिलती है वह इसी का दुष्परिणाम है बहुत सावधान रहकर के खुद को बचाते हुए जीवन यापन करने की आवश्यकता है यह है अविश्वास का दौर है आप जिस पर विश्वास करते हैं पता नहीं वह कब आपको किस मोड़ पर धोखा दे दे और आप उसे पहचान तक न पाए और वह कोई ऐसा काम कर गुजर जाता है जिसकी संभावना आपको दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ती अब तो कभी-कभी यहां तक भी देखने को मिलता है ऐसे किस्से भी पढ़ने को मिलते हैं कि कत्ल करने वाला व्यक्ति ही उसके जनाजे में शामिल हो जाता है और इस तरह का व्यवहार करता है जैसे वह बिल्कुल अनजान है और उसने कुछ किया ही नहीं और बाद में जब पता लगता है तो हैरत से आंखें फैल जाती हैं ताजा घटनाक्रम में भी यही देखने आ रहा है जो सुशांत केस की हिस्ट्री जिस तरह से खुलती जा रही है और लोगों के नाम सामने आ रहे हैं तो उनके दोहरे चरित्र का अंदाजा हो रहा है आदमी दोहरी जिंदगी जी रहा है जो कुछ दिख रहा है वास्तव में वैसा है ही नहीं इस प्रकार मैं कहना चाहूंगा कि हां व्यक्ति के मनोभाव और उसके विचारों में अंतर हो सकता है 
 - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
विचार समयकाल,परिस्थिति जनमानस,सामाजिक सरोकारों के अनुसार बदल सकते है और विचारों का संचालन बुद्धि से होता है हम विचारों मे समयानुसार बदलाव ला सकते है परन्तु भाव आंतरिक अनुभूति होती हैं जिसका पूरा श्रेय हमारे मन हमारी मनोदशा पर निर्भर करता है जैसा मन होगा जैसा आंतरिक भाव होगा वैसा भाव होगा भाव सुख में सुखमय दुख में दुखी ही होता है इसलिए भाव में एक स्थिरता एक लंबे समय तक बनी रहती हैं ये कहा जा सकता है।
विचार को हम सार्वजनिक रूप से   प्रचारित कर सकते हैं, जबकि भाव हम किसी आंतरिक अवस्था में ही व्यक्त करते है।
अतः यह कहा जा सकता है कि विचार को हम उत्तम और निकृष्ट की श्रेणी में बांट सकते हैं पर भाव को आनंद, दुख और मनोभावों से ही परख सकते है या महसूस कर सकते है।
-मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
विचार और भाव में अत्यधिक अन्तर है। हालांकि दोनों सूक्ष्म और असंख्य हैं। परंतु दोनों में अन्तर किया जा सकता है। चूंकि भाव मन से उत्पन्न होते हैं और विचार मस्तिष्क की उपज हैं।
        उल्लेखनीय है कि भाव तर्क, विवेक एवं बुद्धि से परे होते हैं। जबकि विचार तर्क, विवेक एवं बुद्धि से परिपूर्ण होते हैं। अनियंत्रित भाव अधिक लाभ/हानि नहींं पहुंचाते। परंतु अनियंत्रित विचार भयंकर लाभ/हानि के साथ-साथ पागलखाने या जेल भी भेज सकते हैं।
        सर्वविदित है कि भाव भावों तक ही सीमित रहते हैं। परंतु विचार यदि अच्छे हैं तो समाज विचारक को धरा से आकाश पर और विचार बुरे होने पर उसे आकाश से पाताल तक पहुंचाते/पटकते देर नहीं लगाता।
        जैसे कि मैंने माननीय जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय जम्मू के माननीय रजिस्ट्रार ज्यूडिशियल को पुनर्विचार याचिका को सूचिबद्ध या डिफेक्ट/अब्जेक्शन लगाकर सूचित करने हेतु प्रार्थना-पत्र भेजा। जिसमें मेरे मन में न जाने कितने नकारात्मक भाव उत्पन्न हुए होंगे। जिन्हें मस्तिष्क ने विचार कर सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर करते हुए दोषमुक्त कर दिया। जिससे मैंने अपनी 58 वर्षीय आयु, 27 वर्षों की पीड़ा से लेकर भ्रष्ट अधिवक्ताओं, न्यायधीशों एवं डाक्टरों के विरुद्ध विचार व्यक्त कर दिए हैं। जिनमें अपनी पीड़ा के साथ-साथ आक्रोश भी दिखाया है। जिसमें  सम्मान सहित माननीय न्यायपालिका एवं उसके न्यायधीशों को कोसना भी शामिल है।
       चूंकि कोई भी विचारक विचार करके देख ले कि न्याय की पढ़ाई एलएलबी में डाक्टर की पढ़ाई एमबीबीएस नहीं पढ़ाई जाती। ऐसे में एक जज आंतड़ियो की तपेदिक वाले रोगी को मानसिक उपचार कराने का आदेश कैसे दे सकता है? कैसे डाक्टरों के बोर्ड की अवहेलना कर सकता है? कैसे स्वस्थ कर्मचारी को पागल की संज्ञा देकर पागल की पेंशन दे सकता है के मन भावों को विचार के रूप देकर व्यक्त किया है।
        अतः स्पष्ट शब्दों में मेरा मानना है कि विचार और भाव में अन्तर हो सकता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्म कश्मीर
विचार और भाव में बहुत अन्तर होता है। विचार मानस पटल पर तरंगों की भांति हैं जो ऊपर की सतह पर आती हैं और चली जाती हैं। गहराई तक वो नहीं पहुँच पातीं। नीचे सतह को पता ही नही चलता कि ऊपर तरंगों की हलचल है। बिल्कुल उसी तरह विचार भी मस्तिष्क की ऊपरी सतह पर आते हैं और चले जाते हैं ।जैसे कई बार हमारे मन में कोई विचार आया और हम सोचते हैं कि इस विचार को शब्दों का रूप देंगे। कुछ समय बाद ही वो विचार कहीं गुम हो 
जाता है। हम चाहते हुए भी उस पहले विचार की सतह तक नहीं पहुँच पाते।इस लिए विद्वान/लेखक कोई अच्छा विचार आते ही,उसी समय लिख लेते हैं। 
        दूसरी तरफ भाव वो हैं जिन्हें हम देख नहीं सकते, पकड़ नहीं सकते सिर्फ महसूस कर सकते हैं उन्हें  भाव कहते हैं जैसे बुढ़ापा,मिठास यौवन, अकेलापन, आदि अर्थात मन में जो भावनाएँ उतपन्न्न  होती हैं उन्हें भाव कहते हैं जैसे दया भाव, हास्य भाव आदि।भाव हमें अंदर तक प्रभावित करते हैं और प्रभाव छोड़ते हैं।  विचारों का समबन्ध
 मस्तिष्क से होता है। यही दोनों में अन्तर है। 
 - कैलाश ठाकुर
 नंगल टाउनशिप - पंजाब
अगर हम विचार और भाव की बात करें तो इन दोनों में बहुत अन्तर है। जवकि विचार एक आंशिक  घटना है, जो मस्तिक में चलती है लेकिन भाव एक स्र्वांग घटना है जो सारे शरीर में गूंज जाती है, 
यही नहीं भाव और विचार मैं बहुत फर्क है, भाव इमोशनल होते हैं जो सुख दुख में हमारे दिल में छा जाते हैं
लेकिन विचारों में बुद्धि काम करती है, जवकि विचार हजारें होते हैं मगर भाव बहुत कम होते हैं। 
विचार हमारे दिमाग की उपज हैं और भाव हमारे दिल की उपज होते हैं कहने का मतलब किसी को रोते देखकर रोना और हंसते देखकर खुश होना यह भाव है। 
  यही नहीं भाव के बाद ही विचार आता है, जिसे भावना कहते हैं  कहने का मतलब काम क्रोध लोभ अंहकार यह सब विचारों पर भारी पड़ते हैं, 
जवकि भाव ताकतवर होते हैं। 
कुछ भाव सुख समृदी लाते हैं और कुछ दुख दरिद्रता, अत: भावों को परिबर्तन करने से इऩसान कहीं भी पहुंच सकता है। 
जब आप किसी इन्सान के प्रति कुछ सोचते हो  समझते हो वो विचार बन जाता है, 
यहां तक की भाव इमोशनल ही होते हैं और हमारे दिल से आते हैं और विचार दिमाग से, 
यही नहीं विचारों को समझकर और जीवन मे अमल करके बता सकते हैं इनका क्या प्रभाव पड़ता है, 
हमारे दिमाग में उपजी कोई भी सोच या बात एक प्रकार का विचार ही होता है, विचार सुक्ष्म होते हैं, हमारे सामने जो इतने परिवर्तन हो रहे  हैं हर दिशा में तरक्की हो रही है यह सब  विचारों का ही परिणाम है। 
जो कुछ हम सोचते हैं वोही विचार का रूप ले लेता है, 
विचार अच्छे अथवा बुरे भी हो सकते हैं, जबकि अच्छे विचार प्रसन्नता से भर देते हैंऔर हमें उत्साहित करते हैं इसलिए हमेशा अच्छे विचार ऱखने चाहिए  इन्ही विचारों से अच्छे भाव मिलते हैं, 
जवकि बुरे विचार हमारे अन्दर क्रोध अशांति व असंतुष्टी की भावना जगाते हैं इसलिए इनको अपने पास पनपने नहीं देना चाहिए। 
कहते हैं, कि 
"शब्द का वजन तो बोलने के भाव से पता चलता है"। 
यही नहीं मन के भाव अच्छे हों तो अच्छी ही भावनाएं जन्म लेती हैं, कहा भी है, 
" कभी शोर भी संगीत लगे, 
कभी संगीत भी शोर, 
मन के भावों से वंधी हुई ये 
सासों की डोर"। 
कहने का मतलब अच्छे विचार ही अच्छी भावना को जन्म देते हैं हमें सदैव अच्छे विचार सुनने  चाहिए और अच्छे विचारों को अपनाना चाहिए ताकि हमारी भावनाओं को ठेस न पहुंचे  । 
 अत:हमें अपनी भाषा व विचारों का सोच समझ कर इस्तेमाल करना चाहिए जिस से किसी के भाव में कमी न आए और वो अपने आप को  ठगा हुआ महसूस न करे, 
कहा गया है, 
"बड़ा आदमी वह है जो अपने  पास वैठे आदमी को छोटा महसूस न होने दे"।  
- सुदर्शन कुमार शर्मा 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी हां ।विचार और भाव मे अंतर होता है ।विचार हमारी बुद्धि की उपज हैं और भाव हृदय की ।
हमारी बुद्धि का विकास ऐसे ही नहीं हो जाता  ।क्योंकि हमारी बुद्धि को विकसित करने में न जाने कितने लोग सहयोगी होते हैं ।सबसे पहले माता पिता फिर उसके बाद  की श्रृंखला अंत हीन है ।हमारे अध्यापकों का  हमारे मित्रों व हमारे पूरे समाज और उसकी व्यवस्था का पूरा योगदान है ।इसलिए सबके विचार भिन्न होते हैं क्योंकि सबकी बुद्धि भी विभिन्न होती है ।इसलिए हर बात पर सबकी प्रतिक्रिया भी भिन्न होती है ।लेकिन भाव हृदय से जुड़े हैं ।और सबके हृदय के भावों के तार भी सबसे जुड़े हैं । विचार भले ही कुटिल हों पर हृदय कुटिलता नहीं कर सकता क्योंकि भावों का झरना कहीं बहुत भीतर इस अस्तित्व से जुड़ा है।अतः निश्चित ही विचार भाव से भिन्न हैं ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
भाव और विचार एक व्यक्ति के दो रूप कहे जा सकते हैं। एक पाखंडी साधु या कुत्सित प्रकृति के लोगों के विचार और भाव में कोई समानता नहीं होती। उसी सन्दर्भ में एक चरित्रवान व्यक्ति के विचार और भाव एक समान होते हैं।
 यह व्यक्ति के चरित्र पर निर्भर करता है। अन्य लोग किसी के विचारों से ही प्रभावित होते हैं और अपनी राय बना लेते हैं। भाव तो उनसे नजदीकियाँ बढ़ने पर या उनसे पारिवारिक नाता रखने वाले ही बता सकते हैं । 
अच्छे विचार सभी प्रकट कर सकते हैं किंतु भाव का मुल्यांकन करना मुश्किल है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
विचार एक आंशिक घटना है जो हमारे मस्तिष्क में आती है और चली जाती है, जबकि भाव सर्वांग घटना है जो हमारे अस्तित्त्व में गूँज उठते हैं l भावों की अभिव्यक्ति हमारे कर्म में परिलक्षित होती है l 
       विचार कागज़ की नाव है जो खोपड़ी की सतह पर डोलते रहते है lवही आते हैं और वहीं से तिरोहित हो जाते हैं, कब आये कब चले गये इसका भी पता नहीं चलता l विचार मन में चलते रहते हैं लेकिन ह्रदय की धड़कनों में नहीं गूंजते l लेकिन भाव आपके समग्र व्यक्तित्त्व को प्रभावित करेगा l जब हमारे भाव भक्ति में रूपांतरित हो जाते हैं,  उसी समय हम उपासना के पात्र हो जाते हैं l उप +आसना अर्थात हमारे ह्रदय और मन के सबसे नजदीक है, उसके साथ समाविष्ट कर देते हैं भाव l अतः निश्चित रूप से भाव और विचार में काफी अंतर है l 
        भाव जब हमारे ह्रदय में धड़कने लगते हैं तो हमारा रोम रोम पुलकित हो उठता है l ख़ुशी के आँसू प्रेम भावों की अभिव्यक्ति कर ही देते हैं l भाव हमें समर्पण तक ले जाते हैं अर्थात अटूट श्रद्धा और बिना शर्त के आस्था l जबकि विचार ऐसा नहीं कर पाते l 
           भोजन का विचार वही करता है जो भूखा होगा l प्रेम का विचार वही करेगा जिसने प्रेम का भाव नहीं जाना l विचारों से भाव ज्यादा भारी होते हैं l मनुष्य विचार करता है सच बोलना है लेकिन झूँठ के भाव भारी होते हैं तो वह झूँठ बोलता ही रहता है l 
      विचार हमारे भावों को परिष्कृत करते हैं और वैसा ही हमारा व्यक्तित्व बनता है l मनुष्य अपने जीवन में तीन प्रकार के जगत में व्यवहार करता है --
1. विचारों और वस्तुओं का जगत-उनके प्रति आपके विचार कैसे हैं? वैसा ही आपका भाव होगा l 
2.कर्मों का जगत -प्रतिदिन हम कार्य करते हैं, कर्म के प्रति आपके कैसे भाव है? अगर इस भाव को शुद्ध करलें तो हमारे जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आएगा l कहा भी गया है -कर्म ही पूजा है l 
3.सुख और दुःख की संवेदना का जगत -दोनों में से एक संवेदना में व्यक्ति के स्थित होने पर विचार और भाव दोनों परिस्थितियों के अनुसार अलग अलग होंगे l कहा गया है भाव बिना भक्ति नहीं, प्रेम बिना शक्ति नहीं l 
हमारे विचार किसी भी स्थिति के बारे में कभी भी बदल सकते हैं और अलग अलग भावना पैदा कर सकते हैं l भावना, स्वभाव, जज्बात और प्रेरणा से संबंधित हैl जैसे- सत्यमेव जयते l 
             चलते चलते ----
1. विचारों ने भावों को कैसे परिवर्तित किया है ---
मेरे लहजे की छैनी से गढ़े थे 
       जो देवता कल 
मेरे लफ्जों पर मरते थे जो कल 
  आज कहते हैं मत बोलो l 
2.यूँ जमीन पर बैठकर क्यों विचारों में खोता है 
पांवों को खोल, जमाना सिर्फ उड़ान देखता है l 
        - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
विचार और भावों में बहुत अधिक अंतर है । जहाँ  विचार मस्तिष्क में  चलने वाली एक आंशिक घटना है वहीं  भाव का संबंध संपूर्ण शरीर से होता है। 
क्रोध, बैर ,ईर्ष्या, प्रेम,लोभ ,दया आदि भाव व्यक्ति के संपूर्ण अस्तित्व को प्रभावित करते । 
ईर्ष्या, बैर, क्रोध, लोभ आदि से दूर रहने का विचार तो व्यक्ति करता है किन्तु मनुष्य के शरीर में भावों का संचार इतना हावी हो जाता है कि विचार कहाँ छूट जाते हैं पता ही नहीं चलता। 
यदि विचार शरीर हैं तो भाव अनुभूति हैं जो स्वयं के साथ दूसरे को भी प्रभावित करते हैं ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्यप्रदेश
विचार और भाव आपस में एक दूसरे के संगी साथी हैं ! यदि हमारे विचार उच्चकोटि के और सकारात्मक हैं तो हमारे भाव भी सुंदर होते हैं किंतु यदि विचार तुच्छ ,संकीर्ण और निम्न कोटि के होते हैं तो भावनो मे बदलाव आना स्वभाविक है !महात्मा गांधी एवं विवेकानंद जी के विचार सरल ,सादगी लिए उच्चकोटि के थे !उनकी भावना केवल देशप्रेम और लोगों की सेवा करना था ! 
यह सच है कि विचारों का भावना से संबंध तो है ! वैसे उच्चकोटि के विचार रखने वालों की भावना नेक ही रहती है !
 - चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
 अवश्य विचार और भाव में अंतर होता है। विचार से ही भाव का व्यक्त किया जाता है कोई भी भाव पहले विचारों में आता है कोई भी विचार समाधान के लिए होता है ना की समस्या के लिए जो समस्या के लिए विचार आता है उसे विचार नहीं पाया जाता है क्योंकि वास्तविक विचार समाधान के लिए होता है व्यवस्था के लिए होता है जो व्यक्ति इन्हीं शब्दों को ध्यान में रखते हुए अपने विचारों में समाधानी भावों को व्यक्त करता है तो उसका परिणाम सुखद होता है विचार के माध्यम से ही भाव को प्रकट किया जाता है जिस तरह घड़ा और जन होता है घड़ा जल को संग्रहण करके रखता है और जल को  व्यवहार में व्यक्त करता है इसी तरह विचार में भाव रहता है इसे विचार भाव के रूप में दूसरों को व्यवहार रूप में व्यक्त करता है अतः भाव और विचार एक सिक्के के दो पहलू की तरह है दोनों का अर्थ अलग है लेकिन दोनों व्यवस्था के अर्थ में या समाधान के लिए व्यवहार में लाया जाता है।
  - उर्मिला  सिदार  
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
विचार वक्त -वक्त पर बदलते रहते हैं विचार परिस्थिती पर निर्भर करते हैं एक जरुरत  मन्द व्यक्ति को देख कर  विचार मदद करने के लिए होगा  वही संपन्न को देखकर ये  विचार बदल जायेगें ।भाव अंतः करण से संबन्ध रखता है ,वो पल -पल बदलता नहीं है ।कहा भी है ....जाकी रही भावना जैसी ,प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
विचार और भाव में अन्योन्याश्रित संबंधित है।
हमारे हृदय में जैसे विचार आते हैं उसी के अनुसार भाव उत्पन्न होते हैं। बिना विचार के भाव नहीं उत्पन्न हो सकता। भाव का संपूर्ण क्षेत्र विचार का क्षेत्र है।
विचार एक आंशिक घटना है जो हमारे मस्तिष्क में चलती है। भाव एक सर्वांग घटना है जो पूरे अस्तित्व में गूंजी जाती है।
 विचार हमारे समग्र व्यक्तित्व को ओतप्रोत नहीं करता सिर्फ दिमाग में घूमता है, विचार कागज की नाव की तरह मस्तिक सतह पर डोलता रहता है जबकि भाव सर्वांग अवस्था है। जैसे ही प्रभु के संबंध में भाव उत्पन्न होते हैं तब रोम-रोम तन-प्राण सब भाव से भर जाता है। 
 भाव यानी समग्रता,भाव यानी सर्वांगीणता।
                  - सुनीता रानी राठौर
                    ग्रेटर नोएडा -उत्तर प्रदेश
विचार मस्तिष्क की उपज है भाव दिल की उपज है लेकिन एक बात स्पष्ट है की भावना से ही विचार मजबूत होते हैं ।भाव इमोशन है कभी सुख कभी दुख कभी क्रोध कभी चिंता कभी इच्छा की भावनाएं उठते रहती हैं लेकिन विचार अनुभव के पश्चात किसी विषय पर बनते हैं कहां गया है विचार ही मनुष्य को ऊपर उठाते हैं और गिराते हैं विचार में एक संतुलन होता है एक सिद्धांत बनता है व्यक्ति की एक छवि आती है भावनाओं में भी इस प्रकार के गुण पाए जाते हैं भावना के काबिल है और विचार एक संतुलन है जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है विचारों में परिपक्वता आती जाती है भावनाएं भी संतुलित होने लगती है इंसान भावनाओं पर काबू करने लगता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जी बिल्कुल,काफी अंतर होता है   विचारों और भावों में । विचार एक ऐसी घटना है इंसान के मस्तिष्क में चलती है भाव एक सर्वांग घटना है जो व्यक्ति के पूरे अस्तित्व में गूंजती है ।यही फर्क है भाव और विचार में । विचार तो मस्तिष्क में चलते हैं जो कि कागज की नाव जैसे होते हैं । भाव वह हैं जो दूसरे के दुख सुख को आत्मसात कर उसके अनुसार प्रभावित हो जाते हैं।
 भाव पर कभी अपना बस नहीं चलता, जबकि विचारों को कंट्रोल किया जा सकता है ।
यह फर्क है भावों और विचारों मे 
-  सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में "  विचार और भाव में अन्तर विरोध की स्थिति पैदा कर देता है । इसलिए विचार और भाव में अन्तर कभी नहीं होना चाहिए ।
 - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान

Comments

  1. भाव मनुष्य के अंदर समाहित होते हैं और समय परिस्थिति के अनुसार प्रकट होकर विचार के माध्यम से अभिव्यक्त होते हैं। यदि हम किसी करुणा जनक स्थिति को देखते हैं तो हमारे अंदर का दया भाव दुख भरे विचार मन में पैदा करके शब्दों के माध्यम से व्यक्त करेगा। खुशी के माहौल में खुशहाल विचारों की अभिव्यक्ति होगी। देव कार्य करते समय भक्तिमय माहौल होने से भक्ति रस वाले विचार मन में आएंगे और उन्हीं का उद्गार होगा। बस इतना ही अंतर है भाव शरीर में समाहित रहते हैं जबकि विचार पैदा होते हैं समय एवं परिस्थिति अनुसार।

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