क्या स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख जीवन में होता है ?

स्वास्थ्य के बिना कुछ भी कर पाना बहुत कठिन होता है । जीवन में स्वास्थ्य रीढ की हड्डी के सामान होता है ।  जीवन में स्वास्थ्य बहुमूल्य होता है । जो जीवन के लम्बे संघर्ष के लिए सार्थक सिद्ध होता है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं :- 
स्वास्थ्य हीं जीवन है ,ऐसा कहा जाता है। व्यक्ति सुखी तभी होता है,जब वह स्वस्थ होता है। यदि व्यक्ति के पास लाख ऐशों आराम के साधन हो लेकिन अगर वह स्वस्थ नहीं तो सब बेकार है। स्वस्थ व्यक्ति हर हाल में खुश रह सकता है , लेकिन अस्वस्थ व्यक्ति सुखी नहीं होता। स्वस्थ रहने के लिए आजकल लोग अनगिनत प्रकार के प्रयास और प्रयोग करते हैं। इस प्रयास में रूपये भी खर्च करने पड़े तो लोग पीछे नहीं हटते। सचमुच स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नहीं होता है यह बात अक्षरशः सत्य है। खाना -पीना, सजना - संवरना, घूमना , लोगों से मिलना ये तभी होता है जब आप निरोगी और स्वस्थ महसूस करते हैं स्वयं को अन्यथा ऐसा कुछ भी करने को आपका दिल नहीं करेगा । मामूली एक कांटा भी पांव में चुभ जाए तो हम विचलित और दुःखी हो जाते हैं जबकि यह बहुत साधारण और मामूली सी तकलीफ होती है फिर भी मन विचलित हो हीं जाता है। अतः स्वास्थ्य बहुत बड़ा सुख है जीवन का और जिसके पास स्वास्थ्य रुपी धन है वह व्यक्ति सबसे धनी और सुखी होता है ‌यह भी सच्चाई है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
      महाभारत काल से चली आ रही विदुर नीति के अनुसार जीवन के पांच सबसे बड़े सुख हैं। जो स्वास्थ्य सुख, ऋणमुक्त सुख, सुसंगति सुख, आत्मनिर्भरता सुख और निडरता सुख के नाम से विख्यात हैं।
      उल्लेखनीय है कि ऋणयुक्त मानव सर्वथा लेनदारों से भयभीत रहेगा। वह अपनी घरेलू आवश्यकताओं और परिवारिक इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाएगा। जिसके कारण तनाव में रहेगा और तनाव सुख का सबसे बड़ा शत्रु माना गया है। इसलिए जो किसी मानव का ऋणि नहीं है उसे ऋणमुक्त सुख प्राप्त होता है।
       सत्य यह भी है कि सुसंगति प्राय: लाभकारी होती है। लाभ शुभ सूचक होता है। जिससे सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है और सकारात्मकता हमेशा सुखद अनुभूति होती है। जिसे सुसंगति सुख कहा जाता है।
      प्रमाणिकता के आधार पर माना जाता है कि मानव हो या राष्ट्र सदृढ़ और सशक्त भूमिका चरितार्थ करने के लिए 'आत्मनिर्भरता' अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि जो आत्मनिर्भर है वही सुखी रहता है। इसलिए आत्मनिर्भरता सुखमय जीवन का प्रतीक माना गया है। जिसे आत्मनिर्भरता सुख का नाम दिया गया है।
      अब निडरता सुख की बात करें तो सर्वविदित है कि निडर मानव डर रहित होने के कारण प्रसन्नचित्त रहता है और प्रसन्नता के कारण मानव ग्रंथियां जो रस उगलती हैं उससे मानव का पाचनतंत्र स्वस्थ रहता है और जीवन चुस्त दुरुस्त एवं सुखद व्यतीत करता है। 
      उल्लेखनीय है कि उपरोक्त चारों सुखों में से सबसे बड़ा सुख स्वास्थ्य है। चूंकि स्वस्थ शरीर ही सुख को भोगने में सक्षम होता है। यदि कोई मानव शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थ नहीं हैं तो वह किसी भी प्रकार के सुख को भोग नहीं सकता। यहां तक कि नर-नारी स्वास्थ्य के अभाव में मां-बाप बनने का सुख भी प्राप्त नहीं कर सकते। जिसे वंश और भविष्य के साथ-साथ तीनों लोकों में परम सुख प्राप्ति की संज्ञा भी दी गई है। 
      अतः जीवन को सुखमय बनाने के लिए स्वास्थ्य पर ध्यान अवश्य देना चाहिए। क्योंकि स्वास्थ्य जीवन का सबसे बड़ा सुख होता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मन चंगा तो कठौती में गंगा 
शायद रैदास जी की कही यह बात है जो इस वाक्य पर खरी उतरती है कि स्वास्थ्य से बढ़कर कोई खुशी नहीं होती बल्कि मैं तो यह कहना चाहूंगी कि स्वास्थ्य से बढ़कर जीवन में कोई सुख, खुशी या उत्सव नहीं होता अगर मन अच्छा है तो हर ओर खुशी दिखाई भी देती है और महसूस भी की जा सकती है‌ यदि प्राणी अस्वस्थ है तो उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता 
स्वस्थ शरीर,स्वस्थ दिमाग,स्वस्थ विचार,स्वस्थ विकास अतः एक अच्छे स्वास्थ्य में ही उन्नति का सुत्र छिपा हुआ होता है ।
प्राणी का शरीर स्वस्थ है तोे वह कहीं भी जाएगा आवश्यकता पड़ने पर किसी के काम आएगा आवश्यकता पड़ने पर सृजनात्मक क्रिया करेगा एक अच्छे नागरिक की तरह संभव कर्त्तव्य निभाएगा जैसे स्वच्छता रखना आदि ।।
अगर समसामयिक परिस्थितियों की बात करें तो पूरा संसार महामारी केे चक्रव्यूह में फंसा हुआ है और इस चक्रव्यूह में वही सुरक्षित है जो स्वस्थ है अतः स्पष्ट है कि तंदुरुस्त शरीर ही जीवन में सुखी व खुश है।।।
- ज्योति वधवा"रंजना"
राजस्थान - बीकानेर
"पहला सुख निरोगी काया" इस काव्यात्मक पंक्ति में ही आज के विषय का सार छुपा है। मानव जीवन को अनेक सुखों की चाह होती है और ये अनेकानेक सुख उसे प्रसन्नचित रखते हुए आनन्द की अनुभूति कराते हैं। परन्तु स्वास्थ्य के बगैर संसार का एक भी सुख मन को शांति नहीं देता। यदि मनुष्य स्वस्थ है तभी अन्य सुखों की कामना करता है। 
इसके साथ ही उत्तम स्वास्थ्य वाला व्यक्ति स्वयं की, परिवार की, समाज की और देश की उन्नति में सकारात्मक योगदान दे सकता है। क्योंकि...... 
"स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है"
स्वस्थ मस्तिष्क ही मनुष्य की चेतन अवस्था का स्वामी है और यह चेतनता स्वस्थ हो, सकारात्मकता से परिपूर्ण हो और सभी के लिए हितकारी हो। इसके लिए मनुष्य के मन-मस्तिष्क को स्वस्थ रहना अनिवार्य है। यह अनिवार्यता स्वस्थ शरीर से ही प्राप्त होती है। इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख जीवन में नहीं होता।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध कहावत है* हेल्थ इज वेल्थ*
शरीर ही सच्चा धन है।
धन का मतलब सिर्फ पैसा कमाना या पूंजी अजीत करना ही नहीं रहता है यदि हम स्वस्थ नहीं रहेंगे ऐसे धन का क्या लाभ जिसका हम उपयोग ही नहीं कर सके।
*मन के हारे हार है मन के जीते जीत*
सब कुछ तो हमारे मन पर ही निर्धारित होता है।
यदि हमारा शरीर स्वस्थ ही नहीं रहेगा हम हमेशा बीमार रहेंगे अपने अजीत की हुए धन का उपयोग ना कर सकेंगे तो हमारे लिए सारे सुख-सुविधा के साधन निरर्थक है इसलिए मन में दृढ़ संकल्प लेना चाहिए और हमें रोज योग करना चाहिए और अपने शरीर को स्वस्थ बनाने बनाना चाहिए।
आज की परिस्थिति में मैया बहुत जरूरी है कि हमें अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है जब हम स्वस्थ रहते हैं तो हमें सारी दुनिया के सुख सुविधाएं सब कुछ अच्छा लगता है नहीं तो हमारे लिए सब निरर्थक हो जाएगा।
आप सभी अपने स्वास्थ्य का ध्यान दें।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
आम कहावत है "**स्वास्थ्य ही धन है**" का अर्थ बहुत ही साधारण और सरल है।इसका अर्थ है कि हमारा अच्छा स्वास्थ्य  हमारी वास्तविक दौलत है। अच्छे स्वास्थ्य से मन में उत्साह होता है और जीवन सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम रहते हैं। 
अच्छा स्वास्थ्य शारीरिक, मानसिक और सामाजिक में बढ़ावा देता है।
मैं इस कहावत से पूरी तरह सहमत हूं कि "स्वास्थ्य ही वास्तविक धन या दौलत है"।
क्योंकि ऐसे सभी पहलुओं पर हमारी मदद करता है ।अच्छा स्वास्थ्य घातक बीमारियों से बचाता है ।स्वास्थ को बनाने के लिए आवश्यक है अपनी सभी कार्यों को स्वय करें। 
अच्छे स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए हमें धन की आवश्यकता होती है और धन कमाने के लिए अच्छे स्वास्थ्य की।यह सत्य है कि हमारा अच्छा स्वास्थ्य हर समय मदद करता है धन कमाने के स्थान पर अपने जीवन काल में कुछ बेहतर
करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है।
लेकिन यह न भूलें स्वस्थ रहने के लिए नियमित रूप से अपना दिनचर्चा को बनाए रखें। अच्छा स्वास्थ भगवान का दिया हुआ वरदान है अच्छे कर्म का फल है।
लेखक का विचार:-इंसान का स्वास्थ्य उसका सबसे बड़ा सुख है। यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ रहेगा तभी वह कोई काम कर सकेगा और अपना एक लक्ष्य बना सकेगा। जो व्यक्ति स्वस्थ ही नहीं वह क्या कर पाएगा ।इसलिए हर व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य पर जरूर ध्यान देना चाहिए। स्वस्थ जीवन यापन के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहते वे लोग ही अपने संपूर्ण जीवन काल मे सुखी रहते हैं। सुखी और सफल स्वस्थ व्यक्ति निडर होकर जीते हैं ऐसे व्यक्ति का जीवन सबसे बड़ा सुकून से भरा रहता है।
*अच्छे स्वास्थ्य अच्छे कर्म का फल है, तथा भगवान का दिया हुआ वरदान है*।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
आज की चर्चा में दो शब्द प्रमुख हैं- सुख और स्वास्थ्य. सबसे पहले यह जिज्ञासा होती है, कि सुख कहते किसे हैं? 'सुख' शब्द सुनते ही मन एक मखमली आनंद से भर उठता है. इस जगत् में सभी सुख चाहते हैं. हममें से हर एक सुख का अभिलाषी है. सुख एक अनुभूति है. आनंद, अनुकूलता, प्रसन्नता, शांति इत्यादि की अनुभूति होने को सुख कहा जाता हैं. यों तो  सुख की अनुभूति मन से जुड़ी हुई हैं और बाह्य साधनों से भी सुख की अनुभूति हो सकती हैं और अन्दर के आत्मानुभव से बिना किसी बाह्य साधन एवं अनुकूल वातावरण के बिना भी सुख की अनुभूति हो सकती है, फिर भी सुख की पूर्ण अनुभूति के लिए शरीर का स्वस्थ होना अत्यंत आवश्यक है. आत्म संतुष्टि मिल जाने पर भी कोई व्यक्ति सुख-प्राप्ति कर लेता है.
दूसरा शब्द है- स्वास्थ्य. स्वास्थ्य यानी तन से तंदुरुस्त रहना. स्वस्थ रहना सबसे बड़ा सुख है. कहावत भी है- 'पहला सुख निरोगी काया'. कोई आदमी तभी अपने जीवन का पूरा आनन्द उठा सकता है, जब वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहे. स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है. इसलिए मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी शारीरिक स्वास्थ्य अनिवार्य है. कहावत है- 'एक तंदुरुस्ती हजार नियामत' यानी स्वस्थ शरीर से हजार प्रकार के लाभ हैं. ऋषियों ने भी कहा है 'शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्‌' अर्थात्‌ यह शरीर ही धर्म का श्रेष्ठ साधन है.' 
निष्कर्ष यही निकलता है, कि हमारा अच्छा स्वास्थ्य  हमारी वास्तविक पूंजी है. अच्छे स्वास्थ्य  से ही हम सच्चा सुख प्राप्त कर सकते हैं.  अच्छा स्वास्थ्य  ही जीवन का सबसे बड़ा सुख है..
- लीला तिवानी 
दिल्ली
           स्वास्थ्य से बड़ा सुख दुनिया में कुछ भी नहीं है। अगर किसी के पास करोड़ों अरबों की संपत्ति है और उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है यो सारी संपत्ति बेकार है। स्वास्थ्य के आगे स्वर्ग का सुख भी बेकार है। आप उसका उपभोग कैसे कर पा सकते हैं। मधुमेह के रोगी के सामने भिन्न -भिन्न प्रकार के मिष्ठान रख दिया जाय और उसे खाने को कहा जाय वो खा नहीं पायेगा खायेगा तो मर जायेगा या मरणासन्न हो जाएगा। कोई चलने में असमर्थ है तो वो किसी मनोरम जगह की सैर कैसे कर पायेगा। कोई दिल का मरीज है वो ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के आनंद कैसे ले पायेगा। किसी को दाँतों की बीमारी है वो कठोर चीज कैसे खा पायेगा। किसी का भारी भरकम शरीर है वो बाहरी दुनिया का आनंद कैसे ले पायेगा। जिसे पेट की बीमारी है वो अच्छे भोजन का आनंद कैसे ले पायेगा।
         आज कोरोना नामक महामारी सारे विश्व पर राज कर रहा है। बहुत लोगों के पास बहुत पैसा है लेकिन वो पैसे का उपभोग नहीं कर पा रहा है। न कहीं जा सकता है न कहीं घूमफिर सकता है न अच्छा चीज कहा ही सकता है। सब बेकार हो गया है। सबकुछ रहते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहा है। ठीक उसी तरह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी है।स्वस्थ्य ठीक है सब ठीक है। सबसे बड़ा सुख वही है।
           कहा भी गया है कि प्रथम सुख निरोगी काया। ये बात शतप्रतिशत सही है। हमारा स्वास्थ ठीक नहीं और हमें सोने के ढेर पर बिठा दिया जाय तो हम उसका उपभोग क्या कर पाएंगे। सब बेकार लगेगा।
    इस तरह हम देखते हैं कि स्वास्थ्य से बढ़कर जीवन में कोई  भी सुख नहीं है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
प्रथम सुख निरोगी काया
मानव जीवन में स्वास्थ्य से बड़ा सुख कुछ भी नहीं है। यदि हम स्वस्थ रहेंगे तो हमारा हर कार्य में मन लगेगा । प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना चाहिए स्वस्थ रहकर हम परिवार समाज का निर्माण व कल्याण कर सकते हैं व्यवस्थित दिनचर्या से ही हमारा स्वास्थ्य अच्छा रह सकता है। स्वस्थ तन जीवन की सबसे बड़ी सौगात है।  आचार विचार आहार  विहार सभी का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। जो स्वस्थ है दुनिया की सबसे बड़ी दौलत उसके पास है।
- पदमा ओजेंद्र तिवारी
 दमोह - मध्य प्रदेश
     मानव वही सुखी हैं, जिसका मानसिक और शारीरिक रुप से पूर्ण रूपेण सुखी हैं, जो दीर्घकालिक तौर पर विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पादित करने में सफल हो जाता हैं।  जिसका स्वास्थ्य ठीक नहीं, वह अनेकों प्रकार से ग्रसित होकर अस्पतालों के चक्कर तथा नाना प्रकार की परेशानियों से उलझा रहता हैं। जिसने अपनी इंद्रियों को बस में  कर लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं। जीवन सार्थक सार्वभौमिकता के लक्ष्य की ओर अग्रसर हो जाता हैं। इसलिए कहा जाता हैं, कि सत्य संग से बढ़कर कोई भी सुख नहीं। विभिन्न स्थानों पर ज्ञानवर्धक जानकारी दी जाती हैं। जीवन सुखी और दुखी दो पहलू होते हैं तो समस्त प्रकार के कर्मों को यही भोगना पड़ता हैं, जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल भोगेगा। अगर अपार सम्पदा का स्वामी रहने के उपरान्त भी मन साफ न हो, तो किसी काम का नहीं? फिर वह किस तरह से असिंचित होता हैं, पता ही नहीं चलता और यही से प्रारंभ होता हैं, विनाश की लीला? यही हैं, स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख जीवन नहीं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
हमने अपने बड़े-बुजुर्गों को अक्सर ये कहते सुना है कि "स्वस्थय जीवन सुखमय जीवन"
अथवा "स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है"। सही ही बात है। स्वस्थ इंसान खुश रहता है।और खुश इंसान अधिक सफल होता है। सिर्फ पैसा और धन का होना सफलता और सुख का मापदंड नहीं हो सकता। इसलिए धन कमाना ही जिंदगी का मक़सद नहीं होना चाहिए। आजकल के भागदौड़ भरी जिंदगी में  प्रतिस्पर्धा की भी अधिकता हो गई है । ऐसे में मशीनों के साथ काम काम करते-करते इन्सानों का भी मशीनीकरण हो गया लगता है । इंसान इतना अधिक व्यस्त हो गया है कि उसके सोने-जागने, खाने-पीने सबका तरीका बदल गया है।न तो उसके पास खाने,सोने,व्यायाम, खेल-कूद के लिए प्रर्याप्त समय है न ही परिवार के साथ समय बिताने का समय है।अपना खाली समय वो  सोशल मीडिया पर बिताना अधिक पसंद करता है। नतीजतन आजकल बूढ़े लोगों की तो बात ही छोड़िए क्या बच्चे-क्या नौजवान, अमीर-गरीब सबको समान रूप से कम उम्र में ही भयंकर बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं और फिर अपनी सारी कमाई अपने इलाज में लुटा देते हैं। यहां तक कि अपनी जमा-पूंजी  गंवा बैठने के बाद भी कई बार अमूल्य जीवन को बचाया नहीं जा सकता । इसलिए काम और स्वास्थ्य में सही तालमेल ज़रूरी है तभी जिंदगी में खुशहाली और सफलता आ सकती है। स्वस्थ रहकर ही  हम जीवन के सुख-सुविधाओं का संपूर्ण रूप से आनंद भी ले सकते हैं।
-  संगीता राय
पंचकुला -  हरियाणा
स्वास्थ्य को यूं तो जीवन में सबसे बड़ा सुख कहा गया है। पर इसे दो दृष्टिकोणों से देखना होगा।  एक अमीर के संदर्भ में और दूसरा गरीब के संदर्भ में।  अमीर व्यक्ति यदि स्वस्थ नहीं है तो वह बेहिसाब पैसा खर्च करके स्वस्थ रहने का प्रयत्न करता है और इसमें असफल रहने पर दुःखी हो जाता है।  वहीं गरीब व्यक्ति चाहे स्वस्थ भी हो पर वह पैसे न होने के कारण दुःखी रहता है। उसके लिए स्वास्थ्य से ऊपर पैसा होता है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
 स्वास्थ्य से बड़ा सुख मन में होता है।  शरीर से मन बड़ा होता है ।अगर मन स्वस्थ है अर्थात मन में समझदारी है ,तो मन अपने शरीर को स्वस्थ रख सकता है। लेकिन शरीर स्वस्थ है और मन ठीक नहीं है अर्थात मन में समझ नहीं है ,तो हर व्यवहार और कार्य गलत करेगा ।गलत कार्य व्यवहार होने से शरीर और मन दोनों को हानि होती है। मन की जिम्मेदारी है ,कि अपने शरीर को स्वस्थ रखना मन की जिम्मेदारी है। क्योंकि मन ही कोई भी कार्य व्यवहार करने का निर्णय लेता है। शरीर अपने आप स्वस्थ नहीं होता ।शरीर की स्वच्छता बनाए रखने की जिम्मेदारी समझदार मन को होता है ।अतः मध्यस्थ दर्शन में कहा गया है कि "स्वस्थ मन में स्वस्थ शरीर का निवास होता है।" और हम पहले यहां परंपरा से सुनने को मिला था कि "स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है।" दोनों शब्दों का अंतर आप समझ सकते हो ।मन बड़ा होता है ,मन ही शरीर को संभालता है। मन में समझ होना जरूरी है ।मन की समझ ही मन कि सुख है। अतः मनुष्य को सुखी होने के लिए मन और तन दोनों सुखी होना जरूरी है ।मन समझ से सुखी होता है और तन स्वस्थ रहने से सुखी होता है और मनुष्य को दोनों चाहिए जहां मन और तन स्वस्थ रहता है वहां वातावरण भी और संस्कार भी स्वास्थ होता है ।अतः मनुष्य को मन,तन और धन एवं वातावरण  पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अतः मनुष्य इन चारों की अभिव्यक्ति से ही सुखी रह सकता है ।किसी एक की कमी होने से सुखी नहीं रह सकता।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
पहला सुख निरोगी काया को ही माना गया है।अर्थात स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नहीं होता।स्वस्थ तन में ही,स्वस्थ मन निवास करता है।स्वास्थ्य के संबंध में  एक कथा प्रस्तुत है- एक बार एक शिष्य ने प्रसिद्ध वैद्य वाग्भट्ट जी से प्रश्न किया कोरुक:? कोरुक:? कोरुक:? अर्थात निरोगी कौन है? निरोगी कौन है? निरोगी कौन है ?
वाग्भट्ट जी ने बहुत ही सरलता से उत्तर दिया, 
मितभुक,हितभुक,ऋतभुक, शतपदगामी च,वामशायी च। अविजीत मूत्रपूरीष:,खगवर !सोऽरुक:,सोऽरुक:,सोऽरुक:।
 अर्थात,अल्प भोजन करने वाला, हितकारी पदार्थ सेवन करने वाला, पवित्र साधन से अर्जित अन्न खाने वाला, भोजन उपरांत 100 पग चलने वाला, वाम करवट सोने वाला तथा मूत्र एवं मल को न रोकने वाला व्यक्ति निरोगी है, निरोगी है, निरोगी है।
इस कथा के आलोक में स्वयं निर्णय लिया जा सकता है कि हम स्वस्थ है या नहीं ? जब पहला ही सुख नहीं होगा तो फिर अन्य सुखों आनंद प्राप्त करना कठिन तो होगा ही।
डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
स्वास्थ्य ही जीवन का सुख है।अगर हम स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है तब ही जीवन के सारे सुखद अनुभव किया जा सकता है।जीवन की अनमोल धरोहर हमारा स्वास्थ्य ही है।इसके बीना हम अधुरे है अगर स्वास्थ्य ठीक नही है तो हम कुछ नही कर सकते हैं।जीवन की हर मोड़ पर अब असफलता का सामना करना पडेगा।जीवन का सबसे बडा सुख अपना स्वास्थ्य ही है।जिंदगी की इस भीड़ मे गर स्वास्थ्य ठीक नही तो हम मृत के सामान है।जीवन की बागडोर अच्छे स्वास्थ्य से ही तय होता है।मानवता की आधार बनाकर हम स्वास्थ्य को निभा सकते हैं।और जीवन की सुखद अनुभव को जी सकते हैं।अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना और लोगों को जागृत करना चाहिए ताकि इंसान अपने कार्य को भलिभांति कर सके।सफलता प्राप्त तब ही होगी जब हम स्वास्थ्य को स्वस्थ रखें।स्वथ्य को तरोताज़ा रखने के लिए नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, योगा, अभ्यास सभी पर नियंत्रण रखना चाहिए।स्वास्थ्य ही जीवन का अनमोल उपहार धन है।एक व्यक्ति धनी हो और अस्वस्थता का शिकार हो तो जीवन व्यर्थ हो जाता है ।दुसरे या अपनो कर आश्रित हो जाता है।और जब उम्मीद पर लोग नही साथ देते और अपना स्वास्थ्य भी खराब हो तो बेहद तकलीफों का सामना करना पडता है।जीवन के रूप को स्वस्थ रह कर ही जीना सुखद होता है।अंतिम चरण में अपने भी बेरूख़ी से पेश आते है।अगर स्वास्थ्य ठीक ना हो तो अतः जीवनशैली का सुखद अनुभव स्वास्थ्य का स्वथ्य होना है यह जीवन का सबसे बडा सुख है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
' कहा गया है पहला सुख निरोगी काया। ' और  यह भी कहा गया है  कि ' स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है। '
 याने स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नहीं होता। यह सौफीसदी सच है।  इसे आप अनुभव से भी समझ सकते हैं , जब हम जरा भी अस्वस्थता महसूस करते हैं तो हमारा किसी भी कार्य को करने में मन नहीं लगता, यहां तक कि किसी से बात करने में भी। बस, अनेक चिंताएं और आशंकाएं मन को घेरे बैचेन करती रहती हैं।
 इसीलिए हमें स्वास्थ्य के प्रति सदैव जागरूक और सावधान रहना चाहिए। अपने खानपान सजग और रहनसहन में साफसफाई का ध्यान रखना चाहिए। अधिकाशं बीमारियां हमारे खानेपीने में बरती गई लापरवाही की वजह से भी होती हैं। साफसफाई को भी प्राथमिकता दी जाना चाहिए। कहा तो यह भी गया है कि यदि हमारे मन में गंदे या नकारात्मक विचार आते हैं तो वे भी हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। इसलिए सदैव सकारात्मक और अच्छी सोच रखने की हिदायत व समझाइश दी जाती है। 
  सार यही है कि जीवन में सुख महत्वपूर्ण है और सुख के लिए स्वास्थ्य। 
   जब हम सुखी रहेंगे तब ही तो औरों को भी सहयोग दे पायेंगे। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
सुख की बात करें तो सबने यह कभी न कभी पढा होगा ,,,,'पहला सुख निरोगी काया' ।और यह बिल्कुल सच है कि स्वास्थ्य के बिना कोई सुख नहीं।हम इस संसार के सुखों का बिल्कुल उपभोग नहीं कर सकते ।न ही  कोई भली प्रकार से पढ़ लिख सकता है ।और किसी भी तरह स्वावलंबी नहीं बन सकता ।अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह नहीं कर सकता । न ही समाज के किसी काम आ सकता है ।अस्वस्थ व्यक्ति को लोग भी पसंद नहीं करते ।अस्वस्थ व्यक्ति अगर किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त रहता है तो उसे अपना जीवन भी बोझ लगता है।
अगर स्वास्थ्य ठीक नहीं तो अध्यात्म की ओर जाना भी संभव नहीं इसलिये यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नहीं ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
आज की चर्चा में यह बहुत अच्छा प्रश्न उठाया गया है कि क्या स्वास्थ्य बड़ा कोई सुख जीवन में है तो इस पर मेरा विचार है कि वास्तव में अच्छे स्वास्थ्य अच्छा दुनिया में कुछ नहीं और इससे बड़ा सुख दुनिया में कोई नहीं है कहा भी गया है की तंदुरुस्ती हजार नियामत है सुकरात ने भी कहा था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है और मनुष्य के समस्त शरीर का नियंत्रण और विभिन्न क्रियाओं के निर्धारण के केंद्र मस्तिष्क में ही होते हैं यदि हमारा स्वास्थ्य अच्छा है तो मन और मस्तिष्क भी स्वस्थ रहते है एवं प्रसन्नता का भाव हमें ऊर्जावान बनाये रखता है और ऐसी स्थिति में हम अपने सभी कार्यों को बहुत ही ठीक ढंग से संपादित कर पाते हैं अपनी जिम्मेदारियों को बहुत अच्छी तरह से निभा पाते हैं जिसका सकारात्मक प्रभाव न केवल हमारे ऊपर बल्कि हमारे परिवार पर और समाज पर और देश पर भी पड़ता है क्योंकि नागरिक ही किसी देश की सबसे बड़ी पूंजी होते हैं और यदि उनकी विचारधाराएं अच्छी है और देश के प्रति कुछ कर गुजरने का जुनून है तो यह उस राष्ट्र के लिए अमूल्य निधि साबित होती है इसलिए अच्छे स्वास्थ्य का होना बहुत जरूरी है अच्छा स्वास्थ्य होने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक रहती है और वह बहुत सी संक्रामक बीमारियों से और अन्य रोगों से भी बचा रहता जिससे अनावश्यक रूप से आने वाली परेशानियां कम रहती है और हम अपने जिम्मेदारियों का निर्वहन ठीक ढंग से कर पाते हैं शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हम सभी को नियमित रूप से व्यायाम जरूर करना चाहिए और एक उम्र के बाद मैं समझता हूं 50 साल के बाद की उम्र के लोगों को अपने स्वास्थ्य के लिए खानपान संबंधी आदतों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे शरीर पर कोई को कुप्रभाव न पड़े हम अपने खानपान संबंधी आदतों में सुधार करके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को काफी हद तक बढ़ा सकते हैं और अपने आप को स्वस्थ रख कर के अपनी जिम्मेदारियों को ठीक ढंग से निभाते हुए परिवार समाज और देश की उन्नति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं इस प्रकार से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि अच्छे स्वास्थ्य से अच्छा व मूल्यवान जीवन में कुछ नहीं है और इससे बड़ा दुनिया में कोई भी सुख नहीं है ़
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
शरीर स्वस्थ होगा तभी सुख अनुभव कर पाएगा।
 आरोग्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो  सर्वं सुखं।
       आरोग्य हीन व्यक्ति कभी सुखी नहीं रह पाता। किसी न किसी तरह का विषाद ,  दुख या चिंता उसको बनी ही रहती है। किसी कार्य में उसका मन नहीं लगता और जीवन को बोझ समझने लगता है। स्वस्थ व्यक्ति का दिमाग चैतन्य रहता है। वह अपने जीवन की सारी क्रियाएं सामान्य रूप से करता रहता है और उनका आनंद भी उठाता है। वह हमेशा सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रहता है एवं उत्साह पूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन करता है जबकि अस्वस्थ व्यक्ति नकारात्मक सोच की   तरफ मुड़ जाता है। उसके अंदर नैराश्य की भावना समाहित हो जाती है और वह चिड़चिड़ा  हो जाता है। बहुत लोग उसकी वजह से डिप्रेशन में चले जाते हैं। इसलिए सभी को अपने स्वास्थ्य पर पूर्ण ध्यान देना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य से बड़ा जीवन में कोई भी सुख नहीं है ।स्वस्थ होंगे तभी जीवन का लुत्फ उठा पाएंगे वरना मायूसी में ही घिरे रहेंगे।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
जीवन का अर्थ है स्वस्थ्य काया। वरना वह उपस्थिति मात्र है। स्वास्थ्य सही रहता है , व्यक्ति अपने दायरे से बाहर निकल कर सोच को विस्तार दे सकता है। स्वास्थ्य सही नही रहने पर अपने शरीर को ही संभालने में लगा रह जाता है। दूसरे की परेशानी उसकी सोच में प्रवेश कर जाती है। जिसका परिणाम उसके गिरते स्वास्थ्य का कारण बनती है।
 अतः स्वस्थ्य मनुष्य देश के लिए संसाधन बनता है, जिस पर विकास की दर निर्भर होती है। सुखी रहने के लिए , वातावरण को जीने के लिए, किसी के लिए कुछ करने के लिए अपनेआप का स्वस्थ्य होना जरूरी है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
मानव जब से धरती पर आया है तब से सभी इस बात से सहमत है कि जिसका शरीर निरोगी नहीं वह कुछ भी नहीं कर सकता l चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए उत्तम स्वास्थ्य का होना आवश्यक है l 
आयुर्वेद के चरक ऋषि ने कहा है -"सर्वम अन्यत्र परित्यज शरीरम अनुपालयेत "अतः वरीयता में शरीर का रक्षक अनुरक्षण करना ही मनुष्य का धर्म है l समग्र विकास के लिए शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक शक्तियों के संयोजन हेतु शरीर स्वस्थ होना ही चाहिए l इसी संदर्भ में एल. एच. स्निडर ने अपने ग्रंथ बिहेविरियल साइक्लोजी में लिखा है -"विचारों और कार्यो का स्तर सुनिश्चित होना चाहिए तभी किसी पुरुषार्थ का उपलब्ध साधनों का पोषण मिलेगा और सफलता का द्वार खुलेगा l दूसरों का समर्थन  व सहयोग भी उन्हीं को मिलता है जो दृढ़ निश्चयी और प्रयासों में समग्र तत्परता वाले होते हैं l मैं तो कहना चाहूँगी कि स्वस्थ्य शरीर तो केवल जड़ है l शरीर से ऊपर हमको मन की तरफ, मन से ऊपर बुद्धि की तरफ और बुद्धि से ऊपर आत्मा की तरफ माना है lहमें तीनों विकास की ओर बढ़ना होगा l इसके लिए पुरानी बातों को युगानुकूल बनाने के लिए शरीर मन और आत्मा के विकास के लिए पूर्ण संयोजन हेतु विद्यालय, महाविद्यालय, स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाना होगा l 
     उत्तम स्वास्थ्य के लिए पैर गर्म अर्थात नियमित व्यायाम और पेट नरम अर्थात स्वादिष्ट पौष्टिक भोजन और उसका अच्छा पाचन, सिर ठंडा चित्त शांत और चिंतन मनन का सकारात्मक प्रवाह होगा तो परिवार, समाज और राष्ट्र स्वस्थ बनेगा l उत्तम स्वास्थ्य ही समृद्ध राष्ट्र बना सकता है अतः राष्ट्रीय समृद्धता के लिए ध्येय वाक्य "पहला सुख निरोगी काया "का अनुगामी बनना होगा l 
    स्वास्थ्य एक बहुत बडा और व्यापक शब्द है जो शरीर को ही नहीं मन और आत्मा को भी गले लगाता है l 
स्वास्थ्य हमारी प्रमुख सम्पत्ति है यही व्यक्ति को सबसे बडा अमीर बनाती है l बशर्ते उसका एहसास हमें हो l 
            चलते चलते ----
चलते विचारों और शब्दों के सुलगने से धुंआ नहीं होता 
दम घुटने लगता है दोनों के सुलगने से 
इनका सुलगना भी स्वास्थ्य के लिए जहर है l 
      - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
"पहला सुख निरोगी काया" या यूँ कहे कि स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नही है तो किसी में मायने में गलत नही है अर्थात यह उक्ति सोलह आने सत्य है।जीवन की खुशहाली का पहला मूलमंत्र भी उत्तम स्वास्थ्य ही है।  कहा भी गया है कि निरोगी शरीर में ही उत्तम मन मस्तिष्क का निवास होता है।बीमार व्यक्ति कितना भी ज्ञान सम्पन्न होने पर भी स्वास्थ्य समस्याओं के कारण उसका सदुपयोग नही कर पाता।साथ ही शरीर की रूग्णता मन को भी बीमार कर मानसिक अवसाद की ओर भी धकेलने में समर्थ होती है।
एक स्वस्थ व्यक्ति सदैव हँसमुख, प्रसन्न चित्त होने के साथ ही उसकी कार्य क्षमता में भी काफी बढ़ोतरी देखी जाती है।वह हमेशा सबके बीच अपने प्रभावी व्यक्तित्व व कृतित्व से सबका मन जीत लेता है वही बीमार व्यक्ति स्वयं तो परेशान रहते है साथ ही धीरे धीरे सम्पर्क वाले भी उनकी रोज की समस्याओं को सुनकर उनसे कन्नी काटने लगते है।
  इसीलिए पहला सुख स्वास्थ्य ही है,और इसी के बलबूते पर व्यक्ति जो चाहे पा सकता है अपने हौंसलों की उड़ान और अपने सपनों को साकार कर सकता है।
        - विमला नागला
अजमेर - राजस्थान
स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नहीं। शरीर स्वस्थ रहेगा तो हर चीज में आनंद आएगा ।
हमारे पूर्वजों से हम सुनते आए हैं कि-
पहला सुख नियोगी काया
दूजा सुख घर में हो माया
तीजा सुख कुलवंत नारी
चौथा पूत हो आज्ञाकारी 
पंचम सुख स्वदेश में वासा
छटवाँ सुख राज हो पासा
सातवाँ सुख संतोषी जीवन
संसार के सुखों को भोगने के लिए शरीर का स्वस्थ होना बहुत आवश्यक है । काया नियोगी होगी तो धन का व्यय और उससे होने वाले सुख अनुभूत होंगे। कुलवंत नारी के समक्ष व्यक्ति आत्म ग्लानि से भरा न होगा। अस्वस्थता में  चिड़चिड़ापन  पुत्र और परिवार को आज्ञा और मार्गदर्शन देने में अक्षम रहेगा।  
कुल मिलाकर स्वास्थ्य सभी सुखों का मूल है। 
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है । शांत मन से सही निर्णय ले पाने के कारण जीवन रसोल्लास से भर जाता है । 
अतः स्वस्थ रहें मस्त रहें और स्वस्थ रहने के लिए चिंता का विसर्जन कर संतुष्टि को अपनाएं। क्षमाशीलता और सकारात्मक सोच के अलावा , सात्विक भोजन और व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करें। 
- वंदना दुबे 
  धार - मध्यप्रदेश
आओ परखें जीवन में  कौन सबसे ज्यादा सुखी होता है, क्या    खूब पैसा कमा  लेना
व बहुत वड़ा वंगला वना लेना
अथवा दूनिया भर के ऐसो आराम खरीद लेना सबसे वड़ा सुख है, 
अगर विचार किया जाए यह सारे सुख फीके पड़ जाते हैं जब इन्सान की तवीयत ठीक न हो, कहने का मतलब सेहत ही सवसे वड़ा खजाना है, 
क्योंकी जो स्वस्थ नहीं है वह विमार है, उसकी हर चीज सिर्फ हार है, 
अच्छी सेहत ही  सबसे बडा़ खजाना है  सेहत नहीं तो जहान नहीं, इन्सान की जिन्दगी अनमोल है इसलिए रोगों से मुक्त रहना सबसे बड़ा सुख है। 
इन्सान को सबसे अधिक दुखी तृष्णा वनाती है, बढती हुई तृष्णा ही मनुष्य के दुश का कारण है। 
इंसान पहले पैसे कमाने के पीछे भागता है, उसके पीछे अपने स्वास्थ्य को गवांता है और फिर विमार होने पर सारी कमाई गवां देता है  मगर ठीक नहीं हो पाता और
सारी उम्र कुढ़ कुढ़ कर जीवन गवाता है। 
कहां गया उसके जीवन का सुख, मान लो अगर उसने सेहत पर ध्यान रखा होता तो सारी उम्र ऐसो आराम से गुजारता इसलिए सेहत ही जिन्दगी में परम सुख है। 
यह भी सच है कि स्वस्थ नागरिक ही एक स्वस्थ व विकसित देश के निर्माणकारी होते हैं इसलिए हर नागरिक को  अपनी व अपने मुहल्ले  की सेहत सफाई का खास ख्याल रखना चाहिए  और यह मुहिम चलानी चाहिए जान है तो जहान है  जिससे सारी जनता अपनी सेहत के लिए जागरूक हो सके व हमारा देश तरक्की कर सके। 
यह वात सही है  कि जी न का आनंद तभी आता है जब सेहत ठीक हो, 
सेहत ठीक रखने के लिए  सुबह शाम टहलना, संतनलित अहार, तनाब मुक्त जीवन इत्यादी जरूरी है। 
इसलिए इन सब बातो् को अपनाते हुए सभी को  समझाने की भी जरूरत है, इसके लिए मजबूत जनवल की जरूरत है, जनता को ऐसे प्रतिनिधि को चुनना चाहिए जो स्वास्थ्य सेवा जैसी सुविधाओं कोआमजन तक  पहुंचाने का वायदा करे, ताकी
   महमारी इत्यादी न फैल सकेंअत:  स्वास्थ्य से वड़ा  सुख जीवन में कोई नहीं, कहने का मतलब अरोग्यवान ही भाग्यनान व ज्ञानवान होता है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नहीं। कहावत भी है, पहला सुख निरोगी काया ।कोई भी आदमी तभी अपने जीवन का पूरा आनंद उठा सकता है जब वह शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ रहें। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है ।इसलिए मानसिक स्वास्थ्य के लिए शारीरिक स्वास्थ्य अनिवार्य है ।
ऋषि यों ने कहा है , शरीर मादयम खलु धर्म साधनम् , अर्थात शरीर ही धर्म का श्रेष्ठ साधन है ।
यदि हम धर्म में विश्वास करते हैं और स्वयं को धार्मिक कहते हैं तो अपने शरीर को स्वस्थ रखना होगा ,यही हमारा पहला कर्तव्य है।
 अतः यदि शरीर स्वस्थ नहीं तो जीवन दूभर शुरू हो जाता है।
वाकई पहला सुख निरोगी काया ही है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
वास्तविकता यही है की स्वास्थ्य से बड़ा सुख जीवन में नहीं है लेकिन हर उम्र के लिए स्वास्थ्य की परिभाषा और सुख की परिभाषा बदलती रहती है
बचपन में बच्चों को स्वास्थ्य की परिभाषा नहीं मालूम होती है उनके लिए खेल मौज मस्ती ही सुख है
जवानी भी मौज मस्ती हंसी ठिठोली सजना सवरना घूमना फिरना को ही सुख और स्वास्थ्य की परिभाषा की पहली कड़ी मानती है
लेकिन जैसे ही प्रौढ़ावस्था में आने लगते हैं जीवन के वास्तविक मूल्य को पहचानने लगते हैं और सेहत स्वास्थ्य खान पान रहन सहन योग इत्यादि पर ध्यान केंद्रित होने लगता है तब समझ में आता है कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा सुख है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
स्वास्थ्य हीं जीवन है ,ऐसा कहा जाता है। व्यक्ति सुखी तभी होता है,जब वह स्वस्थ होता है। यदि व्यक्ति के पास लाख ऐशों आराम के साधन हो लेकिन अगर वह स्वस्थ नहीं तो सब बेकार है। स्वस्थ व्यक्ति हर हाल में खुश रह सकता है , लेकिन अस्वस्थ व्यक्ति सुखी नहीं होता। स्वस्थ रहने के लिए आजकल लोग अनगिनत प्रकार के प्रयास और प्रयोग करते हैं। इस प्रयास में रूपये भी खर्च करने पड़े तो लोग पीछे नहीं हटते। सचमुच स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नहीं होता है यह बात अक्षरशः सत्य है। खाना -पीना, सजना - संवरना, घूमना , लोगों से मिलना ये तभी होता है जब आप निरोगी और स्वस्थ महसूस करते हैं स्वयं को अन्यथा ऐसा कुछ भी करने को आपका दिल नहीं करेगा । मामूली एक कांटा भी पांव में चुभ जाए तो हम विचलित और दुःखी हो जाते हैं जबकि यह बहुत साधारण और मामूली सी तकलीफ होती है फिर भी मन विचलित हो हीं जाता है। अतः स्वास्थ्य बहुत बड़ा सुख है जीवन का और जिसके पास स्वास्थ्य रुपी धन है वह व्यक्ति सबसे धनी और सुखी होता है ‌यह भी सच्चाई है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
स्वस्थ मन में स्वस्थ विचार उत्पन्न होते हैं
मानव के जीवन में अच्छे स्वास्थ्य का बहुत महत्व होता है स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन होगा स्वस्थ विचार उत्पन्न होंगे संसार में सब कुछ करने का माध्यम हमारा शरीर है विद्या संगीत कला अविष्कार हो बिजनेस व्यापार धर्म जो कुछ भी हम करते हैं साध्य तक
 पहुंचने का यह शरीर ही साधन मात्र है
शरीर स्वस्थ है तो आप  सांसारिक 
सब कार्य कर सकते हैं योग ध्यान अध्यात्म सब कुछ स्वास्थ्य का जीवन में अत्यधिक महत्व है निरोगी काया से कुछ भी संभव नहीं है।
*स्वस्थ जीवन ईश्वर की बहुत बड़ी नियामत है*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख जीवन में नहीं होता। कहावत भी है-- 'स्वास्थ्य ही धन है'। हमारा स्वास्थ्य अगर ठीक है तो हम अपने जीवन में किसी भी बुरी परिस्थिति का सामना कर सकते हैं और जीवन का भरपूर आनंद उठा सकते हैं।
 अच्छा स्वास्थ्य वास्तविक धन-दौलत है जो हमें सुखी जीवन प्रदान करता है। हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने हेतु सक्षम बनाता है।
  अच्छा स्वास्थ्य शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से सक्षम बनाता है। 
  वर्तमान समय में व्यस्त जीवन और प्रदूषित वातावरण में सभी के लिए अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखना बहुत ही कठिन है। आजकल अच्छा स्वास्थ्य भगवान के दिए एक वरदान की तरह है। 
   अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए नियमित शारीरिक व्यायाम, योग,संतुलित भोजन, स्वच्छ वातावरण की जरूरत है। अच्छा स्वास्थ्य हमें बीमारियों और रोगों से मुक्ति प्रदान करता है।
    यह जीवन का अमूल्य तोहफा है और उद्देश्य पूर्ण जीवन के लिए आवश्यक है। अगर स्वास्थ्य सही नहीं है तो आप के खान-पान पर प्रतिबंध लग जाता है। आप धन रहते हुए भी उसका सदुपयोग जीवन काल में नहीं कर सकते। 
        इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए निःसंदेह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख जीवन में नहीं होता। जीवन का भरपूर आनंद उठाना है तो स्वस्थ और तंदुरुस्त रहें।
                    - सुनीता रानी राठौर
                  ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में "  स्वास्थ्य जीवन की सब से बड़ी उपलब्धि है । स्वास्थ्य से ही जीवन में अनेक सफलता प्राप्त होती है । जो समाज में मान सम्मान दिलाती हैं । यही जीवन की पहचान है । स्वास्थ्य के बिना जीवन नरक के सामान है ।
 - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान

Comments

  1. स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। शारीरिक रूप से स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है। अस्वस्थ व्यक्ति का कहीं भी मन नहीं लगता और वह हमेशा चिंतित बना रहता है एक निराशा का भाव उसके अंदर भर जाता है जिस से उबरना मुश्किल हो जाता है। स्वस्थ शरीर हमेशा सकारात्मक सोच वाला एवं ऊर्जावान बना रहता है। लाख सुख सुविधाएं उपलब्ध हो भरपूर पैसा हो नौकर चाकर हो किंतु यदि स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो कोई चीज किसी काम की नहीं। वह ना तो सुख से सो सकता है और ना ही किसी चीज का आनंद उठा सकता है। कहा भी गया है "शरीर माध्यम खलु धर्मस्य साधनम्" अर्थात स्वस्थ शरीर ही धार्मिक कार्य कर सकता है। अतः जीवन का सच्चा सुख उपलब्ध करने के लिए निरोगी काया का होना अत्यंत आवश्यक है।

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  2. जब हम कहते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य यानी सुखमय अनुभूति के लिए भी शारीरिक स्वास्थ्य अनिवार्य है, तो यह भी सिद्ध हो जाता है, कि स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख जीवन में नहीं होता है. इसके बावजूद 55 साल तक मोटर निऊरोन डिज़ीज़ से पीड़ित ब्रिटिश वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग साहस और जुनून हम सबके लिए एक अद्भुत मिसाल हैं. इंग्लैंड में रहने वाले भारतीय मूल के शख्स गुरमेल भमरा भी 18 साल से मोटर निऊरोन डिज़ीज़ से पीड़ित हैं. उच्चकोटि के गायक-वादक-डबल डेकर बस-चालक गुरमेल भमरा अब चलने-बोलने से विवश हैं, फिर भी वे बिना किसी शिकवे-शिकायत के अपनी बीमारी को नियति मानकर पिछले छः साल से लेखन-कार्य में ही सुख-प्राप्ति की अनुभूति कर रहे हैं. तन से अस्वस्थ होने के बावजूद उन्होंने अपने मन को अस्वस्थ नहीं होने दिया है. ऐसे अनेक उदाहरणों के बावजूद यही कहना तर्कसंगत होगा, कि अच्छा स्वास्थ्य ही जीवन का सबसे बड़ा सुख है..

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