आज के समय में कोई सच्चाई का साथ देता है ?

सच्चाई से लड़ते हूए आपके चारों दिखाई देगें । परन्तु उन का साथ कोई नहीं देता है ।बल्कि चुपचाप देखते रहते हैं या वहां से निकल लेते हैं । खासकर गरीब के साथ अक्सर ऐसा ही होता है। यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं :- 
आज का जो समय है वह ऐसा समय है जहां हर व्यक्ति अपनी ही जिन्दगी की दौड़ धूप में लगा हुआ है वहां मात्र अपनी जरूरतों को पूरा करने का माध्यम जीवन को सुखद बनाने के सार्थक प्रयास पर ही काम हो रहा है ऐसे में बात आती है सच्चाई का साथ देना तो सुशांत सिंह की मृत्यु इसका सबसे बड़ा उदाहरण है सच की खोज में उनकी मृत्यु कभी आत्महत्या बनती है तो कभी हत्या जो सच के राम माने जाते थे "राजा हरिश्चंद्र" उस तरह के लोग हैं परन्तु गौण और कुछ साहस करते हैं तोे उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है कि या तो वह गुम हो जाते हैं और या गुम कर दिए जाते हैं और यदि कोई सच के साथ देने का कभी भरपूर साहस करता भी है तो सच सामने लाने में उम्र ही निकल जाती है अंतः आज सच है कहां जिसका साथ दिया जाए सच स्वयं धुंधला चुका है जो सच दिखाई देता है वह कभी सच तो कभी झूठ दिखाई देने लगता है।।।
- ज्योति वधवा "रंजना"
  बीकानेर - राजस्थान
इंसानों के पास सच्चाई का साथ देने की विशेष क्षमता है। लेकिन हमारे पास नुकसान पहुंचाने की भी अत्याधिक सकती है। इसलिए स्वार्थी भावना के बदले करुणा की भावना को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
निसंदेह हम आज के दौर में बहुत मुश्किलों का सामना कर रहे  है। हां यह मुश्किल  निजी हो सकता है। लेकिन हमारा खुद का मन ही सबसे अच्छा दोस्त है या सबसे बड़ा दुश्मन।
 खुशहाली अमीरों के बीच। गरीबी और असमानता का लड़ाई और अन्याय जिनकी हमें बिल्कुल भी उम्मीद नहीं होती है।
अब अपनी सांसो को रोक कर रखे ज्यादा देर तक नहीं है ।सोचने के लिए कि आगे क्या होगा हम सीमा से आगे निकल चुके हैं।
 पहले हम खड़ी चट्टान की कगार के सामान्य थे,और आज हम एक बड़ा कदम आगे बढ़ाए हैं, सीमाओं के अंदर रहकर उन्नति कर रहे हैं ।परंतु यह स्वैच्छिक सादगी गुण संबंध बढ़त का परिणाम है।
लेखक का विचार:-हमारे देश में औद्योगिकीकरण और प्रौद्योगिकी मैं आमूल परिवर्तन होने के बाद स्थिति पहले जैसी नहीं रही। अब सच्चाई के साथ देने की विशेष क्षमता हो गई है।हम बहुत जल्दी विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
*सच्चाई के मार्गदर्शन पर चलने के लिए हम बाध्य हैं**।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
हर मनुष्य के अंदर सच्चाई की कामना रहती है। लेकिन उसे व्यक्त नहीं कर पाते । क्योंकि वर्तमान समाज मे इसान के मन मे सच्चाई रहते हुए भी, सच्चाई  को प्रमाणित नहीं कर पाता है क्योंकि समाज के लोगों में आस्था, भय, प्रलोभन एवं काम ,क्रोध, लोभ ,मोह , मद मास्त्सर्य  प्रवृत्ति  में डूबा हुआ है। यही प्रवृतियां सच्चाई का बाधक है। इन प्रवृत्तियों से जब तक मनुष्य निवृत्त नहीं होगा सच्चाई की राह नहीं खुलेगा अतः यही कहते बनता है कि आज के समय में कोई सच्चाई का साथ देने के लिए तैयार नहीं होता है। जब तक मनुष्य सच्चाई में नहीं जिएगा। कुठाराघात जिंदगी कीजिएगा।
 भ्रमित होकर के जीना सबके लिए दुःखद होता है ।अतः हर इंसान को सच्चाई का साथ साहस के साथ देना चाहिए।
वर्तमान समय में ऐसा नहीं हो पा रहा है ।यही मनुष्य का दुर्भाग्य है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
      समय कोई भी हो परन्तु एक बात पक्की है कि सच्चाई का मूल नाश कभी नहीं होगा। कटु सत्य यह है कि 'झूठ की इस नगरी में' आज भी कोई न कोई सच्चाई के साथ खड़ा है। उसके लिए लड़ रहा है। भले ही समाज के झूठ द्वारा उसे पागल की संज्ञा दे दी गई हो। किंतु उसके बावजूद विजयी होने की आशा में सच्चाई की जंग जारी थी, जारी है और जारी ही रहेगी।
      उल्लेखनीय है कि सच्चाई को कितना भी दबाया जाए, वह किसी न किसी रूप में पुनः अंकुरित हो ही जाती है। क्योंकि सच्चाई को अत्यंत शक्तिशाली माना गया है। 
      कहते हैं कि एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलकर भी उस एक झूठ को छुपाया नहीं जा सकता। क्योंकि झूठ का आधार नहीं होता। जबकि सत्य हिमालय पर्वत की तरह अटल सीना ताने खड़ा रहता है। इसलिए न्यायपालिका की प्रत्येक न्यायालय में स्वर्णिम अक्षरों में "सत्य मेव ज्यते' लिखा होता है।
      अतः वर्तमान समय में भी सच्चाई का साथ देने के लिए भारत के संविधान का तीसरा सशक्त स्तम्भ 'न्यायपालिका' वचनबद्ध है। जिसकी माननीय न्यायालय व उसका माननीय न्यायाधीश आज भी सच्चाई का साथ देता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मानव जीवन में सच्चाई का विशेष महत्व है , शास्त्रों में भी कहा गया है कि सच्चाई का मार्ग धर्म का मार्ग होता है । ईमानदार और न्याय वादी, न्याय प्रिय लोग ही सत्य का पालन करते हैं  ।झूठे बेईमान और मक्कार लोग झूठ का फायदा लेकर अपना काम बनाते हैं  
।सत्य के मार्ग पर चलने से हमें आत्म संतोष व संतुष्टि मिलती हैं ।
 हमारा इतिहास सत्यवादी लोगों से भरा पड़ा है उदाहरण के लिए राजा हरिश्चंद्र जो अपने सत्य निष्ठा के लिए जाने जाते थे ।  लेकिन आज वह सत्य निष्ठा देखने को कहां मिलती है सत्या का साथ देने वालों को इतिहास स्वर्णिम पन्नों पर दर्ज करता है ।
राजा हरिश्चंद्र की कहानियां आज भी बड़े सम्मान के साथ सुनाई जाती है  ।आज का व्यक्ति सच्चाई का साथ कहां देता है ?  आज सत्य को पहचानना आसान नहीं है । एक कहावत भी बहुत प्रसिद्ध है कि 'सच हमेशा कड़वा होता है ' लोग सच का सामना कर ही नहीं पाते केवल अंधेरे में जीना चाहते हैं । सत्य को अपने जीवन में अपनाना मानव जीवन की सबसे शुभ और कल्याणकारी नीति है ।
सत्य का अवलंबन लेकर चलने वाले जीवन में कभी असफल नहीं होते भले ही कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़े लेकिन अंततः आशातीत लाभ होता है ।सत्य हमारे पुण्य का फल होता है  ।मानव जीवन की अनमोल विभूति है सत्य जो अपने प्रति ,अपनी आत्मा के प्रति ,अपने कर्तव्य के प्रति, परिवार , समाज और राष्ट्र के प्रति मन वचन कर्म से सच्चा रहता है ,वह इसी जीवन और इसी संसार में स्वर्गीय आनंद भी प्राप्त करता है । 
सच्चाई को अपनाने वाला व्यक्ति हमेशा सुख शांति और संतोष से भरा जीवन जीता है ।
 सत्य का आचरण करने वाला व्यक्ति समाज का विश्वास प्राप्त कर लेता है । 
गलत कार्य में लिप्त व्यक्ति सच्चाई का साथ नहीं देता है और न ही सच्चाई से सामना कर पाता है क्योंकि उसके पीछे उसका अपना स्वार्थ, लालच और लोभ छिपा होता है । वह झूठा आचरण करता है लेकिन ऐसा आचरण दीर्घकालिक नहीं होता। अंत में सत्य की ही जीत होती है । 
- शीला सिह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
          हाँ, आज के समय में सच्चाई का साथ देने वाले बहुत से लोग हैं। और बुराई का साथ देने वाले भी बहुत से लीग हैं। जैसे भूर्ण हत्या एक सच्चाई है जिसका सभी लोग साथ दे रहें हैं।लोग बलात्कार के पक्ष में बोलने वाले का भी साथ दे रहे हैं। 
         लेकिन हमारे देश में लोग अपना स्वार्थ अपना लाभ देखकर ही सच्चाई का साथ देते हैं। आज यहाँ हर चीज में राजनीति होती है। जितने लोग सच्चाई के पक्ष में खड़े होते हैं उतने लोग बुराई के भी पक्ष में खड़े हो जाते हैं। वर्तमान में बॉलीवुड की कई घटनाओं से ये साफ पता चलता है कि जितने सच्चाई का साथ देने वाले हैं उतने भी बुराई का भी साथ देने वाले हैं।
         कुछ लोग सच्चाई का साथ इसलिए भी नहीं देते हैं कि जिसके तरफ सच्चाई है वो गरीब है या कमजोर है।जिसके तरफ झूठ है वो मजबूत हैं।वो हमारे किसी काम आ सकता है लेकिन कमजोर नहीं आ सकता है। इसलिये लोग सच्चाई का साथ नहीं देते हैं।
              आज भी शहर हो ग्राम हर जगह दबंग और दुष्ट प्रवृत्ति के लोग हैं  जिनके भय से लोग सच्चाई का साथ देने से डरते हैं। सब देखते हैं कि अमुक व्यक्ति सरासर अन्याय किया है  फिर भी कोई नहीं बोलता है। या तो उससे डरता है या झमेला में नहीं पड़ना चाहता है। सच्चाई जल्द लोग मानने को तैयार ही नहीं होते हैं।बहुत कष्ट से लोग उसके साथ रहने को तैयार होते हैं। फिर भी सच्चाई तो सच्चाई है उसकी जीत तो होनी ही है।
         और ये बात दावे के साथ कही जा सकती है कि आज के समय में भी सच्चाई का साथ देने वाले लोग हैं।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
वर्तमान युग कलयुग है जिसमें झूठ का ही बोलबाला है जो व्यक्ति झूठ मसखरी आदि गुणों में निपुण होता है 
उसके लिए लोग अधिक विद्वान और गुणी समझते हैं। वैज्ञानिक युग में लोग जो सामने देखते हैं वही सच समझते हैं। आंतरिक शक्ति को नहीं पहचान पाते।
- पदमा ओजेंद्र तिवारी 
दमोह - मध्य प्रदेश
वर्तमान समय में झूठों का बोलबाला है और सच्चे एवं  सच्चाई का साथ देने वाले मनुष्य बहुत कठिनता से मिलते हैं। कभी स्वार्थ तो कभी भय और अक्सर निर्लिप्तता मनुष्य को सच्चाई का साथ देने से रोक देती है। 
अपवाद हर विषय में होते हैं परन्तु आज के समय में सच्चाई का साथ देने वाले अपवादस्वरूप भी मिल जायें तो एक आश्चर्यजनक बात है। 
आज के समय में सच्चाई पर चलना और सच्चाई का साथ देना एक दुष्कर कार्य हो गया है क्योंकि हमारा सामाजिक, राजनीतिक ढांचा भ्रष्टाचार में आकंठ डूब गया है और यह भ्रष्टाचार झूठों को अपने आंचल में समेटे रखकर सुरक्षा प्रदान करता है जबकि सच्चाई का साथ देने वाले को विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। संसार में एक नहीं अनेक उदाहरण हैं जब सच्चाई का साथ देने वाले मनुष्य को शारीरिक - मानसिक रूप से प्रताड़ित होना पड़ा है। 
आज के भौतिकतावादी समय में सच्चाई का साथ न देने का एक मुख्य कारण यह भी है कि जब बात स्वयं के हितों अथवा स्वार्थपूर्ति पर कुठाराघात की आ जाये तो कौन सच्चाई का साथ देकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगा। 
परन्तु इसका सबसे बड़ा कारण है आज के मनुष्य में अन्तर्मुखी होकर स्वयं के खोल में सिमटे रहने की प्रवृत्ति निरन्तर बढ़ती जा रही है इसीलिए वह तटस्थ भाव अपनाकर सच्चाई से मुख मोड़ लेता है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
ये दुनियां भी बड़ी अजीब है ......सच्चाई का साथ कभी नहीं देती अपितु उसका साथ देती है जो अमीर हो ....मशहूर हो ......चाहे वो झूठा ....मक्कार ....कपटी क्यों न हो !!
ये तो सर्वविदित है की सच को सदा संघर्ष की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है ....सच्चाई की यात्रा मैं हमेशा अकेले ही सफर करना पड़ता है और जब परिणाम की सुखद घडी आती है तो उसेबांटने सब आ जाते हैं
सच की चमक खरे सोने की तरह होती है झूठ के तम को हरती है और चारों ओर उजियारा फैला देती है
केवल इंसान मैसब्र की कमी होती है व अंततः सच्चाई की जीत होती है सच्चाई का बोलबाला .....झूठ का मुंह काला !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
     समय मूल्यवान हैं किन्तु सत्य उससे अधिक मूल्यवान हैं। जीवन में तीन चीजें कभी नहीं छिपाई जा सकती हैं- सत्य,  ईश्वर और ज्ञान। ईश्वर ने मानव रुपी जन्म दिया, जहाँ सच्चाईयों के रास्ते पर चलना हैं परन्तु सच्चाई का रास्ता भूल जाते हैं। जिसके कारण अनेकानेक यौवनियों में भटकना पड़ता हैं, फिर कर्म पूर्ण होने पश्चात ही मानव शरीर मिलता। 25 प्रतिशत ही सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं और 75 प्रतिशत झूठ, खसौत, अराजकता, भ्रष्टाचार और बलात्कार आदि में लिप्त हैं। असच्चाई के सहारे पर न्यायालय की नींव खड़ी हैं, उसी के पग चिन्हों पर डाक्टर अग्रसर हैं, मरे हुए का बिजनेस। उससे ज्यादा राजनीतिक दल और दलबदलू जो पूर्ण रूपेण संरक्षित हो चुके। मंदिरों में उसी भक्त की इज्जत हैं, जो सर्वगुण संपन्न हैं। हम सच्चाई के रास्ते चलते-चलते चप्पल धिस गई, परंतु सच्चाई क्या होती हैं, समझ में नहीं  आया, आस्था और विश्वास खोते हुए जा रहे हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
ऐसी बात नहीं है कि आज के समय में कोई सच्चाई का साथ नहीं देता है। आज भी लोग हैं जो सच्चाई के साथ खड़े रहते हैं, सच्चाई का साथ देते हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत ही कम है। देश में 90 प्रतिशत से भी अधिक लोग ऐसे हैं जो सच्चाई का साथ देना तो दूर उसके बारे में सोचने का भी समय नहीं निकालते हैं। देश में ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे जिसमें कुछ लोग ऐसे हैं जो सच्चाई का साथ देते हैं। सच्चाई का साथ देने वाले परिणाम से नहीं डरते हैं चाहे उनकी कोई हत्या ही ना करा दे। सच्चाई का साथ देने का जीता जागता उदाहरण वर्तमान समय में फिल्म जगत की कलाकार दबंग हीरोइन कंगना रनौत है। बिहार के रहने वाले कलाकार फिल्म जगत के हीरो सुशांत सिंह राजपूत हत्याकांड में कंगना रनौत ही है जिसने खुलकर हत्यारों के खिलाफ हमला बोला सरकार से सीबीआई जांच की मांग की। फिल्म जगत में ड्रग्स के मामले को उठाया। यह सब करते हुए कंगना को काफी परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। मुंबई में बीएमसी ने कंगना के कार्यालय पर बुलडोजर चलवा दिया। सारा सामान नष्ट कर दिया, फिर भी कंगना रनौत ने सच का साथ देने से पीछे नहीं मुड़ी, बल्कि उसने महाराष्ट्र सरकार और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ही चुनौती दे डाली। कंगना ने खुले तौर पर कहा कि हमें मौत से कोई डरा नहीं सकता। सच का साथ हर हाल में दूंगी चाहे मेरी हत्या ही क्यों ना हो जाए। इस घटना के बाद कंगना के समर्थन में देश की कई महिलाएं और संगठन आ खड़े हुए। कंगना रनौत के कारण ही आज फिल्म जगत में सुशांत सिंह राजपूत की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती, उसका भाई शोभित चक्रवर्ती सहित एक दर्जन लोग ड्रग्स के कारोबार और उसके सेवन में दोषी पाया गए जो जेल में हैं। सुशांत सिंह राजपूत का साथ देने वालों में भाजपा सांसद वह सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रमण्यम स्वामी, सांसद सह कलाकार मनोज तिवारी, रवि किशन, पवन सिंह, कंगना रनौत सहित दर्जनों लोग शामिल है। कंगना राणावत के कारण ही नारकोटिक्स ड्रग्स ब्यूरो एनसीबी ने फिल्म हीरोइन दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर, सारा अली खान, रकुल प्रीत कौर ड्रग्स मामले में एनसीबी की गिरफ्त में है। इस मामले में फिल्म जगत के दबंग माने जाने वाले प्रोड्यूसर डायरेक्टर करण जौहर की कंपनी भी दक्ष मामले में एनसीबी की गिरफ्त में आ चुकी है। 
जहां तक सच्चाई का साथ देने का मामला है तो केंद्र की मोदी सरकार ने इन 6 वर्षों में कई बड़े बड़े फैसले लिए जिसका साथ संसद में मिला। हालांकि विपक्षी दलों ने विरोध भी किया फिर भी यह बिल पास हो गया। सच कही बात है कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाकर राज्य का दर्जा दे दिया गया। सच की बात ही है की तीन तलाक को सरकार ने खत्म कर दिया। अयोध्या में राम मंदिर विवाद वर्षों पुराना था वह खत्म हो गया और आज राम मंदिर का निर्माण कार्य बहुत ही तेजी से चल रहा है। नागरिकता संशोधन बिल के पास हो जाने पर वर्षों से शरणार्थी के रूप में दूसरे देशों से आए सीख ईसाई हिंदू को भारत की नागरिकता मिल गई। सच का साथ देने वालो को बहुत ही कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है लेकिन जीत हमेशा उन्हीं की होती है जो सच का साथ देते हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
चर्चा का विषय है - आज के युग में कोई सच्चाई का साथ देता है।  यहां यह समझना होगा कि ‘कोई’ सच बोलकर ‘सच्चाई’ का साथ दे रहा है या ‘कोई’ सच्चाई पर अडिग व्यक्ति का साथ दे रहा है। दोनों ही स्थितियों में मेरा मानना है कि आज के युग में सच्चाई का साथ दिया जाता है, ज्यादा नहीं तो कम। यह हो सकता है कि सच्चाई के साथ देने वालों को सच्चाई का साथ न देने वालों से तकलीफ हो सकती है, यह भी लग सकता है कि सच्चाई का साथ नहीं देने वाले सच्चाई का साथ देने वालों से कहीं आगे बढ़ गए हैं। पर जिस सन्तुष्टि का भाव सच्चाई का साथ देने वालों में होगा वह सच्चाई का साथ नहीं देने वालों में नहीं हो सकता क्योंकि अपने अन्दर वे भी सत्य को तो जानते ही हैं। उनकी आत्मा उन्हें कभी न कभी कचोटती ही है। उन्हें पछतावा होता है। इसी जन्म में होता है। मरण पूर्व होता है। इन्हीं बातों को सोचकर भी अनेक लोग सच्चाई का साथ देते हैं। 
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली
सच्चाई का साथ देने के लिए किसी युग विषेष की आवश्यकता नहीं है. आज भी लोग सच्चाई का साथ देते देखे जा सकते हैं. सच्चाई का साथ देने के लिए मन का सच्चा होना अत्यंत आवश्यक है. खुद पर और खुदा पर विश्वास होना भी अत्यंत आवश्यक है. अभी कुछ दिन पहले की बात है. मुझे तीन केलों की आवश्यकता थी, जिसके 15 रुपये बनते थे. मैंने 1-2 रुपये के सिक्कों में भुगतान किया और गलती से 16 रुपये दे दिये. सब्जी वाले ने आवाज देकर 1 रुपया वापिस दिया. ऐसे व्यक्ति पहले भी मिलते थे, आज भी मिल जाते हैं. भले ही वे रातों-रात धन्ना सेठ न बन पाएं, पर मन में बस जाते हैं.
- लीला तिवानी
द्वारका - दिल्ली
न सच्चाई का साथ,न झूठ की बात। केवल अपने हित का ध्यान,उसी का संज्ञान। हित की ही बात,और उसी का साथ। अपना हित ही है सच्चाई, और उसी का साथ देता है हर कोई। जानते बूझते हुए भी अमुक व्यक्ति अपराधी है,उसे बचाने को भीड़ खड़ी होती है।नाम यह कि प्रोफेशन है हमारा यह।प्रोफेशन शब्द की आड़ में अपना हित ही होता है।देश और समाज के लिए अमुक अपराधी कितना ही घातक हो,हमारा हित तो इसी से सध रहा है। हर व्यक्ति
उसे ही सच्चाई कह रहा है, जिसमें उसका हित सधता है। इसके लिए शब्दों के अर्थ तक बेमानी कर दिए जाते हैं। इसमें सबसे अधिक प्रभावित किया है राजनीति ने। आदमी की मानसिकता ही बदल गयी,कभी जिस विरोध को राष्ट्र प्रेम कहा जाता था, जनहित कहा जाता था।अब उसकी बात करना भी जन विरोधी, राष्ट्रविरोधी कहा जाने लगा। कहां रही सच्चाई, कहां गया झूठ।सब गडमड हो गया,भले ही रात को दिन बताना,बोलना पड़े। तो शब्दों के बदलते मनमाने मायनों के इस दौर में सब ही सच्चाई के साथ है,जो अपना हित वहीं सच।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
आज के समय में जिंदगी की परिभाषा ही बदल गई है कभी इस युग को कलयुग कहते हैं और कलयुग का कर इस वेदना को आसानी से सह लेते हैं कि यहां सच का सामना नहीं कर सकने की ताकत है कभी-कभी तो यह वास्तविक लगने लगता है सच मौन हो गया है अपने गला को उसने खुद ही बंद कर लिया है क्योंकि सच बोलने वाले की जिंदगी हमेशा दांव पर लग जाती है और सच बोलने के कारण उसे जिंदगी से हाथ भी धो देना पड़ता है यही कारण है कि आंखों से देखी हुई कानों से सुनी हुई महसूस की हुई घटना को जानने के बावजूद भी सच्चाई का सामना करने की ताकत मानव की कमजोर पड़ गई है पर खत्म नहीं हुई है वह दिन आएगा जब सच का सामना हर कीमत पर हर इंसान करेगा
बहुत-बहुत सिद्धांत बने हुए हैं कहावतें कही जाती है सांच को आंच नहीं सच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप लेकिन व्यवहारिकता में सब गौणहो गया है
रोटी कपड़ा मकान पढ़ाई चिकित्सा के अतिरिक्त इंसान दूसरी ओर अपना दिमाग लगाना ही नहीं चाहता है इस जिंदगी को जीने में इतना भागदौड़ है जिसके कारण उसकी निगाहें दूसरी ओर टिक नहीं पाती है लेकिन सच्चाई छुप नहीं सकती
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज के परिवेश में यह कड़वा सच है कि सच्चाई का साथ देने वाले बहुत ही कम हैं। अब तो ये हाल है कि जिसकी पहुँच बड़ी होती है, सब उसका साथ ही देते हैं या सच्चाई वाला निकट का हुआ तो तटस्थ हो जाते हैं। कैसी भी घटना या काम हो, सबसे पहले यही मालूम किया जाता है कि किससे संबंधित है? मानलो दोनों पक्ष  राजनीतिक हुए तो लोगों का झुकाव सत्ता पक्ष की ओर ज्यादा रहेगा। किसी को सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं। सभी सामर्थ्यवान का साथ देकर अपने संबंध मजबूत बनाना चाहते हैं।  इससे अब हालात यह कि सच्चाई व्यथित और परेशान है और झूठ मुस्कुरा रहा है। किसी भी प्रकरण में न्याय नहीं, निर्णय हो रहे हैं। यह स्थिति  सामाजिक सुरक्षित जीवन के लिए चिंतनीय है। जब तक लोग सच्चाई का साथ नहीं देंगे, न्याय नहीं मिलेगा और जब न्याय नहीं मिलेगा तो सामंजस्य बिगड़ेगा, अव्यवस्था फैलेगी और अपराध बढ़ेंगे। इसीलिए समाज में जागरूकता लाना बहुत जरूरी है। हम सभी को व्यवहारिक और नैतिक रूप से परिपक्व और सामर्थ्यवान बनना होगा। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार मनुष्य के जीवन के दो पहलू होते हैं सच और  झूठ ।सच की राह अत्यंत ही कठिन है।इस राह में त्याग ,बलिदान ,क़ुर्बानी तक देनी पड़ती है।
आज यह अब ग्रंथों ,उपदेशों ,क़िस्से कहानियों तक तक ही सीमित रह गए हैं ।प्रत्येक व्यक्ति चाहता तो है कि सच का साथ दें परंतु आज जब उसके पीछे की सच्चाई देखता है ,उसका परिणाम सोचता है तो कदम पीछे हटा लेता है।कई ऐसे वाक़या हुए हैं जिससे लोगों ने सबक़ लिया है कि सच्चाई का साथ देकर क्यों बेकार के झमेले मे पड़े?वक्त ,सुरक्षा,परेशानी इन चीजों का ख़्याल कर ज़्यादातर लोग चाह कर भी सच्चाई का साथ नहीं देते ।
बुद्ध,बापू राजा हरिश्चंद्र जैसे महान व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चल कर पूरा जीवन समर्पित कर अमर हो गए।लेकिन आज सच्चाई के राह में सच्चाई का साथ देने वाले कम मिलेंगे ।कई बार सच्चाई को हारते और झूठ को जीतते देखा है।माता सीता को भी सच्चाई साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देनी पड़ी थी।
हाँ,सच कड़वा होता है पर सुंदर होता है।
हमें सच्चाई का साथ सावधानी से देना चाहिए ।
- सविता गुप्ता 
राँची - झारखंड
आज की चर्चा में जहाँ तक यह प्रश्न है कि क्या कोई सच्चाई का साथ देता है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा अभी दुनिया में ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं जो सच्चाई के पक्षधर हैं और उसका साथ देना चाहते हैं यह अलग बात है की बहुत सी परेशानियों के चलते वह सब कुछ बहुत खुलकर नहीं कर पाते परंतु ऐसा नहीं है कि लोग सच्चाई का साथ देना नहीं चाहते वास्तव में जब तक यह विचारधारा है कि सच्चाई का साथ देना चाहिए तब तक बहुत कुछ ठीक है जिस दिन यह विचारधारा नहीं रही सब कुछ अनर्थ हो जाएगा और दुनिया का यह ताना-बाना बुरी तरह से प्रभावित होगा तब केवल इस दुनिया में शक्तिशाली का ही राज्य होगा और सत्य और असत्य की बात लोग बिल्कुल भूल जाएंगे यह जरूर कहा जा सकता है इस सच्चाई का साथ देने वाले लोग कम हैं परंतु ऐसा बिल्कुल नहीं है की सच्चाई का साथ देने वाले बिल्कुल ना हो और इन सब का होना जरूरी भी है इस विचारधारा का होना भी जरूरी है तभी एक अच्छे समाज की कल्पना की जा सकती है समय हमेशा परिवर्तित होता रहा है और एक जैसा समय कभी रहता नहीं है कभी अच्छाई अधिक रहती है दुनिया में तो कभी बुराई का भी बोलबाला रहता है
 - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
यदि आज के युग की बात है तो सभी पहले अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं चाहे फिर उसे स्वार्थी क्यों न बनना पड़े और इसी चक्कर में वह झूठ ,फरेब के चक्कर में आ जाता है ! गल्तियों पे गल्ती करते जाता है आखिर सच्चाई सामने आ ही जाती है और आत्मग्लानि का जहर पीते हुए हम खुद की नजर में गिर जाते हैं! 
हां! जीवन में सच का साथ होना तो जरुरी है ! कबीर जी ने कहा है साँच बराबर तप नहीं ,झूठ बराबर पाप !  कहीं न कहीं तो इंसान झूठ बोलकर डरता तो है ! सत्य हमेशा अकाट्य होता है और सत्य बोलने  सुनने अथवा सच्चाई का साथ देने की ताकत सभी में नहीं होती ! जो सच्चाई की राह पर चलता है वह अपने लिए अनेक शत्रु पाल लेता है तो क्या सांच को आंच नहीं आती ! यह सत्य है कि सत्य संघर्ष मांगता है !अपनी गल्ती को स्वीकारने में अहं को त्यागना पड़ता है ! महात्मा गांधी ने भी तो सच्चाई के मार्ग पर चलकर हमे गुलामी से आजाद कराया था !
कुछ भी हो हमे सच्चाई का साथ देना चाहिए और ऐसी सच्चाई जिसमे किसी का अहित ना हो !
वैसे भी ..."सत्यम शिवम सुंदरम"
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
अरे भाई  ये कलियुग का दौर है  और ऐसे वक्त में कोई सच्चाई का साथ देगा । ये किसी ने सोच भी कैसे लिया? आज के समय में सच्चाई घुट घुट कर जी रही है और विश्व में झूठ,फरेब, धोखाधडी और भ्रश्टाचार का बोलबाला है । सच्ची बात अधिकांश लोगों को कड़वी लगती है और सच्च बोलने वाला विरला ही शख्श है और वो शख्श  समाज में उपेक्षा का शिकार हो कर अलग थलग पड़ जाता है ।
सच्चाई का साथ अदालतों और राजनीति में भी कोई नहीं देता ।  लोगों के सामने कोई दुर्घटना या अन्य वरदात होने पर भी वे खुल कर बोलने से अच्छा चुप रहना बेहतर समझते हैं।
अता3ये सर्व सत्य है कि आज के समय में कोई  भी सच्चाई का साथ देता है और ना ही ये आज के सन्दर्भ में उसके हित में ही ।।
    -  सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
इस दुनिया में अगर प्रत्येक व्यक्ति सच बोलने लगे  और अपने मन की बात कहने लगे  तो दुनिया में शायद दो   मित्र भी न बचे |  जब -जब जिसने सच बोला उसे सूली मिली |  कबीर गांव-गांव भटके | नानक के साथ भी कितने लोग थे  ?वह भी यहां वहां जाकर गाकर  सत्य की प्रतिष्ठा करते थे | फिर भी अपने समय में उन्हें वह सम्मान नहीं मिला  जो बाद में मिला | महावीर के कानों में कीलें ठोके गए  | सुकरात को जहर पिलाया गया | और मीरा  को भी |मंसूर को मारा गया  अनल हक  बोलने के कारण |  मुझे तो ऐसा लगता है   कि अगर कोई सच्चाई का साथ देता भी है   तो  भी दूसरे को कष्ट पहुंचाने के लिए || घट रही घटनाओं दुर्घटनाओं के आधार  पर  सभी को यह बात समझ में आती है कि  कोई सत्य का  साथ देना नहीं चाहता | यह मनुष्य जाति किसी तरह  बस सुरक्षित रहना जानती है  फिर चाहे यह सुरक्षा थोड़ी देर के लिए ही क्यों न हो |
हमारे देश में ही कितने वर्ग और जातियां हैं ? कितने धर्म हैं? सभी की अपनी-अपनी मान्यताएं और धारणाएं हैं |
फिर किसको कहेंगे सच ? कौन सच्चा और कौन झूठा? यह तय करना बहुत ही कठिन है| फिर भी अगर कोई सत्य बोलने  का साहस करता है  तो भीड़ उसे सहन नहीं करती | लोग तो गीता पर हाथ रखकर भी झूठ बोलते हैं | फिर दैनिक क्रियाकलापों में सत्य की आकांक्षा करना व्यर्थ है | सत्य का साथ वही  दे सकता है  जो  किसी तरह का भी   अपना बलिदान देने के लिए तत्पर हो| छोटे-मोटे सत्य तो हर कोई बोल देता है  उसमें कोई कठिनाई नहीं|  लेकिन लीक से हटकर सत्य बोलने वाले को कोई भी  क्षमा  नहीं करता |
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
आइयै सच्चाई की बात करते हैं, क्योंकी काफी देर हो चुकी है, सच्चाई को सुने हुए, आज के समय में सच्चाई का साथ बहुत कम  लोग देते हैं, इसलिए की यह कहने में व सहने में बहुत कड़बी होती है, 
साथ में यह फल  बहुत देर के वाद देती है, इतना समय आजकल किसके पास है जो इसका साथ देगा, इसलिए बहुत ही कम लोग होते हैं जो आज के समय मे सच्चाई का साथ देते हैं। 
सच है जब तक सच जूते पहन रहा होता है तब तक
एक झूठ आधी दूनिया का सफर तय कर चुका होता है, 
इतना ही नहीं, सच को बात करने की तामीज भी नहीं होती मगर झूठ देखो कितना मीठा  बोलता है, झूठी तारिफें सुनने से लोगों की इजजत वढ़ती है  यही कारण है आजकल सच्चाई का साथ बहुत ही कम लोग देते हैं। 
सच है, 
"मेरे साथ भी कभी दोस्तों का काफिला चला करता था, 
फिर एक गन्दी लत लगी
कड़वा सच बेलने की, 
हो गए कब काफिले से
अलग पता भी न चला"। 

लेकिन याद रहे झूठ की चाल भले तेज हो लेकिन सच आगे निकल जाता है, 
मगर सच बोलना सच के साथ खड़े रहना आज के समय में साहस का काम है
ऐसे बहुत कम लोग हैं जो सच से मोहब्बत करते हैं, 
वेशक सच्चाई और ईमानदारी का  रास्ता क़ठिन होता है लेकिन रिस्तों में भरौसा पैदा करता है। 
इसलिए सच्चाई का साथ देना व सच्चाई  बोलना ही इन्सानियत  समझा जाता है, किन्तु इस दौर में इन्सानियत का  पलड़ा कम होता जा रहा है झूठे के साथी वढ़ते जा रहे हैं,   सच है, 
"सीख रहा हुं मैं भी अब मीठा झूठ बोलने का हुनर,   कड़वे सच ने हमसे न जाने कितने अजीज छीन लिए"। 
लेकिन  याद रखना झूठ से भरोसा टूटता है और लोग परेशान रहते हैं, बिखरते हैं टूट जाते हैं, इसलिए हम सब को चाहिए की हमेशा सच्चाई का साथ दें लेकिन आजकल हर इन्सान जल्दवाजी में यह नहीं सोच पाता की दुसरा इन्सान झूठे पुल बाधं रहा है 
वो अपनी झूठी शान में ही खुश रहता है और आखिर कार  कुछ  हासिल,नहीं होता 
क्योंकी, 
"झूठ के आगे  पीछे दरिया चलते हैं, 
सच बोला ते प्यासा मर जाऊंगा"। 
इसलिए कुछ लोगों की आदत ऐसी बन चुकी है की झूठ में ही सब कुछ है, यही आदत वढ़ती चली जा रही है जिससे आज के समय में सच्चाई का साथ बहुत कम लोग दे रहे हैं। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
        आज के समय में सच्चाई का बहुत ही कम लोग साथ देते हैं और उनकी आवाज भी "नगाड़े में तूती की आवाज"की तरह दब जाती है। आज के समय में तो झूठ का ही बोलबाला है।सच बोलने वाले तो उंगलियों पर गिनने लायक हैं। उनको भी बोलने पर अर्थात सच्चाई बयां करने पर  दबाने का प्रयास किया जाता है। इसका ताजातरीन उदाहरण सुशांत सिंह राजपूत का केस है। किस तरह से एक उभरते कलाकार को हमेशा हमेशा के लिए खत्म कर दिया गया और अभी भी सच्चाई सामने लाने में नाकों चना बीनने पड़ रहे हैं। समाज में ,राजनीति में ,बॉलीवुड में ,हर जगह यही चल रहा है। झूठ का प्रचार किया जाता है और सच्चाई का गला दबाया जाता है। झूठ के हाथ इतने लंबे हो जाते हैं कि सत्य को खोजना बड़ा मुश्किल हो जाता है। उसमें भी सहायता करने इने गिने लोग ही आते हैं ।सामने और उनको भी हर समय परेशान होने का मृत्यु का परिवार का कई प्रकार का डर समाया रहता है। अनेकों प्रकार की धमकियां दी जाती हैं, झगड़े फसादों में फसाया जाता है। परिवार के सदस्यों को परेशान किया जाता है, कई प्रकार की परेशानियां आड़े आती हैं ताकि सच बोलने वाला उन्हीं के कहे अनुसार चले। कई बार परेशान होकर सच बोलने वाला व्यक्ति भी मजबूरीवश उनका साथ देने लगता है जबकि उसकी अंतरात्मा उस काम को करने से मना करती है। अंत में यही कह सकती हूं कि आज के समय में सच्चाई का साथ देने में अधिकांशतः लोग बचते हैं। सोच  उनकी यही रहती है कि कौन बवाल में फंसे। फस गए तो उनको और परिवार को कौन देखेगा ?संभालेगा।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
इस कलियुग में तो छोड़ दीजिए, पौराणिक काल में भी सच्चाई का साथ देने का साहस नहीं जुटा पाते थे, चाहें महाभारत काल हो या रामराज्य काल हो l झूँठ का जो रास्ता होता है, शुरू में बहुत सुन्दर और आसान दिखाई देता है, लेकिन उसका अंत बुरा ही होता है l सच्चाई का मार्ग कंटकाकीर्ण होता है लेकिन आत्मिक अनुतोष और सुख शांति प्रदाता होता है l 
     आज कलियुग में मानव स्वार्थ पूर्ति का लक्ष्य लेकर चलता है l येन केन प्रकारेण अपने किये का प्रतिदान चाहता है l ऐसे में हम किस प्रकार सच्चाई का साथ दे सकेंगे? लेकिन अंतरात्मा की आवाज़ पर अपना कार्य करेंगे तो अवश्य ही हम सच्चाई का साथ देंगें l कहा गया है --
साँच बरोबर तप नहीं, झूँठ बरोबर पाप l 
जाके ह्रदय साँच है, ताके ह्रदय आप ll 
       मानवता इंसानियत आज भी जिन्दा है l मेरी दृष्टि में झूँठ एक ज्ञात असत्य है जिसे सत्य के रूप में व्यक्त किया जाता है l सफ़ेद झूँठ का प्रचलन वर्तमान में बढ़ गया है अर्थात सुनने वाले के लिए जो जाहिरतौर पर झूँठ है लेकिन उसे आनंद आता है l यह अति प्रशंसा का माध्यम बन गया है l आज मोटे तौर पर झूँठ और बेईमान का साथ दिया जा रहा है l 
 चरागों को उछाला जा रहा है 
हवा पर रौब डाला जा रहा है l 
 न हार अपनी न जीत होगी 
मगर सिक्का जरूर उछाला जा रहा है l 
              चलते चलते ----
लहूलुहान नजरों का जिक्र आया तो 
रशिफ़ लोग उठे और दूर जाकर बैठ गये l 
  -डॉ. छाया शर्मा       
अजमेर - राजस्थान
आज का प्रश्न विचारणीय प्रश्न है और वर्तमान का ज्वलंत प्रश्न। यह कड़वी सच्चाई है कि लोग सच्चाई का साथ देने में कतराने लगे हैं। सच्चाई का साथ देने वाले को बहुत ही जोखिम उठानी पड़ती है। खुद भी और अपने परिवार को भी जोखिम में डालना पड़ता है। 
 यहां तक कि कभी-कभी उच्च पद पर बैठे हुए न्यायाधीश भी डांवाडोल हो जाते हैं। विवशतावश सच्चाई का साथ नहीं दे पाते। 
    पर ऐसा नहीं कह सकते कि सच्चाई का साथ कोई नहीं देता। अवश्य देते हैं-- सच्चाई का साथ देने की वजह से ही आज दुनिया चल रही है नहीं तो सारे झूठे- मक्कारों का राज हो जाये।
उच्च पद पर बैठे आसीन लोगों को गलतफहमी हो जाती है कि पैसे, धन-दौलत के बदौलत हम लोगों को खरीद कर या दबाव बनाकर अपनी मनमानी करवा सकते हैं। किसी को भी डरा धमका सकते हैं। पर यह गलतफहमी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाती। कहावत भी है झूठ के पैर नहीं होते। सच्चाई की जीत होती है।
  कानून कमजोर होने की वजह से भी लोग सच्चाई का साथ देने में कतराने लगे हैं क्योंकि जो आगे आता है उसे कानून का भी साथ नहीं मिल पाता।उसका जीवन संघर्षमय हो जाता है, अस्त-व्यस्त हो जाता है। फिर भी बहुत से उदाहरण ऐसे हैं जहां सच्चाई का साथ देते हुए लोग अपराधियों, गुनाहगारो को सजा दिलवाने का प्रयास किए हैं और कर रहे हैं। इसलिए ऐसा कहना उचित नहीं होगा कि आज लोग सच्चाई का साथ नहीं देते ।
                  -  सुनीता रानी राठौर
                    ग्रेटर नोएडा-  उत्तर प्रदेश
सत्यम शिवम सुंदरम इन शब्दों का सामंजस्य कभी कम न था न कम  है ना होगा । जी बिल्कुल अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं दुनिया में जो झूठ के आगे घुटने नहीं टेकते ।अर्थात सच्चाई का साथ देने वाले अभी हैं।
 दुनिया में सत्य हमेशा अमर रहेगा ,और जब तक यह दुनिया रहेगी सत्य निष्ठा कम ना होंगे, चाहे जितने भी विघ्न व विपरीत परिस्थितियां क्यों ना आयें ।लेकिन ये भी सत्य है की असत्य का भी  अस्तित्व बहुतायत मे है ,दोहरे चरित्र के लोग समाज मे ज्यादा हो गये हैं ,ये एक सामाजिक विकृति है जो  घातक है ।
परन्तु अनुपात अभी भी सच्चे लोगों का ही ज्यादा है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
यह एक बहुत कड़वी सच्चाई है जिसे लोग सहर्ष स्वीकार नहीं करते हैं। लेकिन यह बात अक्षरशः सत्य है कि लोग सच्चाई का साथ देने में सौ बार सोचते हैं। पुराने काल में राजा हरिश्चंद्र जैसे लोग विरले हीं होते थे , फिर आज इस युग में ऐसी  परिकल्पना करना हीं बेकार है ।आज व्यक्ति सिर्फ़ अपना फ़ायदा और अपने कायदे पर हीं नजर रखता है । इस के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। सच्चाई का साथ देना बहुत हिम्मत वाली बात होती है जो सब के पास नहीं होती है। सच्चाई का  साथ अगर दिया जाए तो दोस्ती, रिश्ते सब में दरार पड़ जाती है । इसलिए बहुत बार सच्चाई जानते हुए भी हम अंजान बन जाते हैं ताकि हमारे रिश्ते और दोस्ती , समाज सब में समांज्सता बनी रहे। इसलिए आज झूठ और चापलूसी का बोलबाला ज्यादा है अपितु सच्चाई की तुलना में। फिर भी हमें कोशिश जरूर करनी चाहिए कि हम सच्चाई का साथ दें क्योंकि सत्य की विजय सदैव हीं होती थी , है ,और होती रहेगी ऐसा मेरा मानना है। " सत्यमेव जयते" 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
समय के साथ सब कुछ परिवर्तन हो जाता है समाज में भी आमूल परिवर्तन होते हैं सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग सामाजिक मूल्य भी अलग अलग हुए
आज समाज में अराजकता  बाहुबली
लोगों का बोलबाला अधिक है राजनीतिक दलों का दबदबा और भौतिकवादी युग होने से सभी केवल अपने लिए मतलब रखते हैं कोई किसी के लिए नहीं सोचता नहीं चाहता कि वह किसी भी बात के बीच में आए
इसका एक कारण जीवन की सुरक्षा भी है इसके बाद भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो किसी की परवाह किए बिना सच्चाई का साथ देने के लिए हमेशा
तत्पर रहते हैं जिन्हें सत्य बोलना है किसी भी बात की परवाह नहीं करते
ऐसे में उनके साथ धीरे-धीरे बहुत से लोग खड़े हो जाते हैं और एक दिन सत्य सबके सामने प्रकट हो जाता है।
इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता कि आज लोग सच कहने से डरते भी हैं इसके पीछे तुच्छ स्वार्थ,
घर परिवार की सुरक्षा राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि कई ऐसे कारण है जिनके कारण सच का साथ देने के लिए बहुत कम लोग सामने आते हैं  फिर भी जिनको सच बोलना है वह‌ बोलते  हैं उन लोगों के ही कारण आज भी समाज राज्य देश का यह सुंदर घटक बना हुआ है सत्य का वर्चस्व कभी खत्म नहीं होगा।
*सच को कुछ समय के दबाया जा सकता है*परंतु एक दिन सत्य सबके सामने प्रकट हो जाता है*
यह प्रकृति का नियम है नियम के विरुद्ध कुछ पल के लिए आप चलकर खुश हो लेते हैं लेकिन सत्य का सामना तो करना ही पड़ेगा तब जमीन की तलाश होगी ।
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली

" मेरी दृष्टि में " सच्चाई का साथ बहुत कम लोग  देते हैं । अपने सम्पर्क या पैसे वालें का साथ देते अधिक ऩजर आते हैं । परन्तु सच्चाई का कोई महत्व नहीं होता है । यही आजकल अपने चारों देख सकते हैं ।
 - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान

Comments

  1. आज के समय में सच्चाई का साथ देने में लोग कतराते हैं। कुछ स्वार्थवश और कुछ दबाववश। कुछ के राजनीतिक संबंध रहते हैं कुछ के परिवारिक या नजदीकी। और यदि कोई सच बोलना चाहता है तो उस पर इतना दबाव बना दिया जाता है कि वह सच को दबा दें और गूंगा बन कर बैठ जाए। यह बात सोलह आने सच ही है कि सत्य कभी छुपता नहीं है कभी ना कभी उजागर होता ही है। हांं उसमें देर सवेर अवश्य हो जाती है। पर अंततः वह प्रकट हो ही जाता है। झूठ के हाथ लंबे अवश्य होते हैं किंतु सत्य को दफन नहीं कर सकते। तात्कालिक परिस्थितियां झूठ का साथ देती है किंतु अंत सत्यम शिवम सुंदरम से ही होता है।

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