क्या हम सब एकमात्र परमात्मा के ही अंश हैं ?

हम सब कौन हैं कहाँ से आये हैं। क्या हम सब का वजूद एक ही है और अन्त भी एक है । ऐसे अनेक प्रश्न हैं । जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । आये विचारों को भी देखते हैं : -
    हम अक्सर कहते हैं कि परमात्मा तो कण कण में है। नि:संदेह फिर हम भी उस परमात्मा के ही अंश मात्र हैं। संत महात्मा हमेशा यही कहते हैं कि आंखें बंद करो तो भीतर परमात्मा है।आंखें खोलो तो बाहर देखो तो कण कण में भगवान हैं। बस हमने उस अहसास को महसूस करना है।परमात्मा को महसूस करने के लिए बुद्धि प्रबल, मन को सशक्त और अहंकार को दबा कर हम महसूस करें। जब हम यह मान लें कि हर जीव में  परमात्मा है तो हम ईर्ष्या, अहंकार को छोड़ आगे निकलेंगे और हमारे जीवन में पवित्रता देखने की ही इच्छा होगी। हमें सिर्फ भौतिकवादी ही नहीं बनना, अध्यात्म ज्ञान की ओर भी ध्यान देना चाहिए। जैसे कस्तूरी तो मृग के भीतर ही होती है लेकिन वह वन-वन कस्तूरी को ढूंढता फिरता है। हम सब एक मात्र परमात्मा के ही अंश हैं।हमें भीतर झांकना होगा।समय आने पर इस अंश रूपी जीव ने अपने स्वरूप उस परमात्मा में ही विलीन होना होता है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
जी बिल्कुल हम सब एक मात्र परमात्मा का ही अंश हैं, इसमें कोई दो राय नहीं । वह सत्य स्वरूप परमात्मा एक है, जिसे हम सभी अलग-अलग नामों से पुकारते हैं ।धरती ,जल, वायु ,आकाश हर जगह उसकी ही सत्ता है ।उसकी मर्जी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता ।वह कण-कण में विद्यमान है। हमारे भीतर भी हमारे बाहर भी ।हर पल हमारे साथ है वह ।आदि शंकराचार्य ने भी कहा है कि जब तक हम अपने आत्मस्वरूप में नहीं पहुंचते हैं, यह संसार दृष्टिगोचर होता है ।जैसे ही मैं अपने स्वरूप में पहुंचते हैं यह संसार रूपी स्वप्न खो जाता है ।यदि कुछ रह जाता है तो वह है सर्व व्यापक परम ब्रम्ह ,,,।धरती जल आकाश वायु हर जगह परमात्मा की सत्ता है ।सच तो यह है कि हम सभी परमात्मा के अंश हैं और परमात्मा से जुदा  कदापि नहीं रह सकते । यह अंश भी समाप्त हो जाता है,,, परमात्मा में विलीन हो जाता है,,,, और केवल रह जाता है  परमात्मा,,।
-  सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जीव तो ईश्वर का ही अंश है और वह परमात्मा के अधीन है !जीव अनेक है किंतु ईश्वर तो एक ही है ! पेड़ पौधे,पशु पक्षी क्या ,समस्त सृष्टि की रचना ही प्रभु की लीला है ! कृष्ण ने स्वयं कहा है मैं कण कण में हूं !पृथ्वी पर जिसने भी जन्म लिया है वह अपने सदकर्म से इस जीवन को संवार ,अपनी भक्ति को साकार रुप दे मोक्ष चाहता है!प्रभु में विलिन हो जाना चाहता है! रास्ता कुछ भी हो चाहे सेवाभाव हो,अथवा दान ,त्याग,तीर्थ धर्म, तप ,जप माता-पिता की सेवा गुरु सेवा ध्येय तो एक ही है परमात्मा को पाना ! वह अहंकार द्वेश ,पाप से दू रहना चाहता है वह समझ गया है कि कोई तीसरी आँख है जो हमें देख रहा है और वह है परमात्मा जो कण कण में बसे हैं ! परमात्मा की रचित लीला ने जो हमें मनुष्य का जन्म दिया है उसे हम अहंकार त्याग गरीबों की सेवा,माता पिता की सेवा कर उनकी आत्मा को तृप्त कर  आशीर्वाद ले तो हमारा जीवन साकार हो जायेगा चूंकि आत्मा ही परमात्मा है और हमारे सनातन धर्म के अनुसार हम सभी परमात्मा के अंश हैं !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
हम एक मात्र  परमात्मा के ही अंश हैं यह बिलकुल सत्य है क्योंकी आत्मा को ही परमात्मा का रूप माना गया है।
फर्क इतना है, कि भगवान अपने आत्मस्वरूप को जानते हैं कि में परमात्मा हुं लेकिन इन्सान यह नहीं जानता में आत्मा हुं और यही समझता है कि मैं एक शरीर हुं और मेरी यह यह उपाधि है। 
सच यह है कि आत्मा ही परमात्मा है मगर परमात्मा आत्मा का शुदतम रूप है, जवकि आत्मा का शुद रूप धीरे धीरे मलीन हो जाता है जब हम स्वार्थ के लिए आत्मा की आबाज सुनना वंद कर देते हैं और जैसे जैसे उम्र वढ़ती जाती है पूर्ण तरह स्वार्थ पर आधारित हो जाते हैं।  बाल्यबस्था में आत्मा काफी हद तक सुधार के रूप में हेती है और आयु बढ़ने का साथ साथ मालिन हो जाती है, लेकिन महात्मा लोग व धार्मिक गुरू आत्मा के शुद रूप में ले जाते हैंऔर परमात्मा का अंश बन जाते हैं
अन्यथा आत्मा एक इन्सान बन कर रह जाती है, जो लोभ मोह, अंहकार से भरा हुआ है, 
शुदता के रूप में हम एक मात्र परमात्मा के ही अंश हैं। 
आत्मा परमात्मा का अंश है ठीक जैसे किरणें सूर्य का अंश हैं, जिस प्रकार सुर्य की किरणें अलग अलग वस्तु पर पड़ती हैं तो हर वस्तु प्रकाशित हो जाती है, उसी तरह परमात्मा एक ही है, जिससे निकली हुई आत्मांए भिन्न भिन्न योनियों में प्रवेश करती हैं, और जव यह आत्मांए, जीव आत्मा को सत्ता मान लेती हैं ते तभी  समस्याएं उतपन्न करती हैं और जो आत्मांए ज्ञान में अवतरित होती हैं  उनमें ओर भगवान में कोई फर्क नहीं होता। 
इसलिए जितने भी महापुरूष जिन्होंने आत्मा और परमात्मा के सबंध को समझ लिया है उनकी दृष्टी में आत्मा और परमात्मा में कोई अन्तर नहीं रह जाता, अत: हम सब एक मात्र परमात्मा के ही अंश हैं। 
सच कहा है, 
"मानव शरीर ही वह रूप है जिस पर सवार होकर आत्मा परमात्मा तक पहुंचती है"। 
कहने का मतलब है कि आत्मा जिसे जीवात्मा कहते हैं परमात्मा का अंश है, आत्मा अमर, अजर, नर्विकार है, इसमें वोही गुण हैं जो परमात्मा में हैं, 
सच कहा है, " आत्मा भी अन्दर है परमात्मा भी अन्दर है, उस परमात्मा को मिलने का रास्ता भी अन्दर ही है"। 
इसलिए अपने आप को पहचानने की कोशिश करो हम सब एक मात्र उसी के अंश हैं, 
सच है, 
"क्यों खौफ है तुझे जिन्दगी की परेशानीयों से, अपने आप को पहचान, 
और जिन्दगी हंसकर जी परमात्मा की मेहरबानियों से"। 
यह भी सच है , " परमात्मा मदद न करे तो इन्सान नहीं बनता पर इन्सान मदद करे तो परमात्मा बन सकताहै"। 
 कहने का मतलब है कि, 
भगवान और इन्सान में असीम शक्तियां हैं, भगवान में खुली हुई हैं, इन्सान में छिपी हुई हैं हमें इन को खोलकर  सही ढंग से इस्तेमाल करना है ताकी  हम अपने अन्दर के भगवान को जगा सकें और हर प्राणी का भगवान रूपी सहारा बनें क्योंकी हम सब एक मात्र परमात्मा के ही अंश हैं। सच है जब हर कण पर  परमात्मा का अंश है तो हम स्वंय परमात्मा के अंश क्यों नहीं
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
निश्चित ही ।वेद ,पुराण व उपनिषद तो यही कहते है। ।'अहं ब्रह्मास्मि 'व 'तत्वमसि' इसी उक्ति को चरितार्थ  करते हैं ।किसी के दुख- सुख को देखकर कई बार ऐसी ही अनुभूति होती है ।
लेकिन जब तक हमें स्वयम इसका अनुभव न हो तो कहने का क्या लाभ? मिठाई खाने वाला कितना ही कहे कि मिठाई बहुत स्वादिष्ट है लेकिन दूसरा  जब तक चख न ले तो उसे पता कैसे चले ।इसलिए जानना आवश्यक है कि हम भी ईश्वर के अंश हैं। हम समभाव और सद्भावना के मार्ग पर चलकर इस सच्चाई से अवगत हो सकते हैं ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
हम सब एकमात्र परमात्मा के ही अंश हैं, यह कथन सत्य है।  क्योंकि यह शरीर पांच तत्वों से मिल कर बना है - पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि और इन्हीं पांच तत्वों में मिल जाना है। एकमात्र परमात्मा ही इस सृष्टि को चलाने वाला है परन्तु हम परमात्मा का अंश होने के बावजूद इस सृष्टि को नहीं चला सकते। हालांकि मनुष्य के अन्दर ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (पंचतत्व) है लेकिन हमें इसकी चेतना नहीं है।  हम परमात्मा के अंश तो हो सकते हैं किन्तु परम परमेश्वर परमात्मा नहीं हो सकते। यह एक गूढ़ ज्ञान है जिसे समझने के लिए गुरु ज्ञान की आवश्यकता है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
       शास्त्रों में बताए अनुसार और स्वयं श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण के कहे अनुसार हम सब एकमात्र परमात्मा के ही अंश है। गीता के 11 अध्याय में भगवान श्री कृष्ण ने उससे कहा था कि वह संपूर्ण सृष्टि में समाहित है और संपूर्ण सृष्टि उनमें समाहित है। तब अर्जुन उनसे कहा कि यदि ऐसा है तो आप मुझे अपना वह रूप दिखाइए। तब श्री कृष्ण अर्जुन को अपना विराट रूप दिखा कर  उससे बोले,
 पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोअथ  सहस्त्रशः।
 नाना विधानि  दिव्यानि नानावर्णकृतीनि च।।
 इसका भाव यह है, हे पार्थ मेरे सैकड़ों तथा हजारों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा आकृति वाले अलौकिक रूपों को देखो ।
    ऐसा कहकर उन्होंने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया जिसने संपूर्ण सृष्टि समाई हुई थी। अतः हम कह सकते हैं कि हम सब एकमात्र परमात्मा के ही अंश है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
जगत का नियंता प्रभु है जिसने यह पृथ्वी, आकाश गिरी, निर्झर, नदियाँ, असंख्य तारे, सूर्य, चंद्र, वायु, जल, अग्नि और सम्पूर्ण जीव जन्तुओं को बनाया है l हम सभी उस परमपिता का अंश है l वह सदा सबके अंतरात्मा रूप से अवस्थित है जो अद्वितीय है और सर्वथा स्वतंत्र है l वह सम्पूर्ण जगत में देव, मनुष्यादि सभी को अपने वश में रखते हैं l वे ही सर्वशक्तिमान सर्वभवनसमर्थ अपने एक ही रूप को अपनी लीला से बहुत प्रकार का बना लेते हैं l वे हमारी प्रत्येक इन्द्रियों में व्याप्त रहकर उसका संरक्षण और संचालन करते हैं l उनके अनुकूल रहने से हमारी इन्द्रियाँ सुगमतापूर्वक सन्मार्ग में लगी रह सकती हैं l उन परमात्मा को जो ज्ञानी महापुरुष निरंतर अपने अंदर स्थित देखते हैं, उन्हीं को सदा स्थिर रहने वाला सनातन परमानंद मिलता है, दूसरों को नहीं l 
यह समस्त जगत 
प्रभु की ऐसी अनादि अनंत लीला है जिसका पार पाना भगवत कृपा के बिना संभव नहीं है l  स्वयं प्रभु ने कहा है -मैं सभी प्राणियों का आत्मा हूँ "अहमात्मा गुडाकेश सर्वभुताशयस्थित: तथा मैं ही समस्त प्राणियों का आदि, मध्य और अंत हूँ l मुझसे उत्कृष्ट अन्य कुछ नहीं है l माला के सूत्र में पिरोये हुए मणियों के समान यह समस्त ब्रह्माण्ड मुझमें पिरोया हुआ है l 
वेदांत दर्शन के अनुसार 'ब्रह्म सत्यम जगन्मिथ्या '-जगत को मिथ्या और ब्रह्म को सत्य मानकर यह कहा गया है कि 'सर्व खल्विदं ब्रह्म 'अर्थात यह सब कुछ ब्रह्म हैl
 भगवान श्री कृष्ण ने अपना विश्व दर्शन कराकर अर्जुन को यह शिक्षा दी कि मैं ही सब कुछ हूँ l सब मेरा ही स्वरूप है l स्पष्ट है, हम सब उस प्रभु का अंश हैं, कठपुतली की डोर उसके हाथ है किन्तु अज्ञानता के वशीभूत मनुष्य खुद को ही नियंता मान बैठता है l 
     चलते चलते ----
न जाने किस भेष में बाबा मिल जाये भगवान रे.... 
ईश्वर तुझे हैं कहते.. हर शाख शाख तेरी, हरि राम नाम तेरा 
फूलों का है तू माली, तारों का तू है माली 
सारी जमीन तेरी, सब आसमां है तेरा l 
         - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
हम सब जानते हैं कि हम अपने माता-पिता की संतान हैं, उनके अंश हैं, उनके कारण ही हम इस संसार को देख पाए हैं लेकिन हमारे इस अंश को भी जिसने बनाया, जिसने पैदा किया वह कोई निराकार सत्ता तो है। जिसके हम सब अंश हैं। यदि वह सत्ता में होती तो यह संसार चलता कैसे.. उसी के अंश के कारण ही यह पूरा विश्व चल रहा है । उसी ने यह सारी सृष्टि बनाई है चल-अचल, स्थिर-अस्थिर, जीव-जंतु, पेड़-पौधे जितनी भी प्रकृति की सत्ता है वह सब उस परमात्मा की बनाई हुई है। प्रकृति और पुरुष दोनों के मेल का ही अंश हैं हम..। तो हम कह सकते हैं कि हम एक मात्र परमात्मा की संतान हैं इसी कारण से हम अहम् से बचे रहते हैं पूरे विश्व के लोग एक होकर रहते हैं। 
- संतोष गर्ग
 मोहाली - चंडीगढ़
निस्संदेह हम सब परमपिता परमात्मा के ही अंश हैं .हर व्यक्ति मैं प्रभु वास करते हैं .किसी ज़रूरतमंद की यदि हम मदद करते हैं भूखे को यदि खाना देते हैं व उसकी विपत्तीमैं उसके साथ खड़े होते हैं  हमउसकी सहायता नहीं अपितु परमात्मा की सेवा करते हैं .
ये सोच मात्रकी परमाता का अंश सबमें होता है  व्यक्ति मैसकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है
मेरा ये मानना है की परमात्मा को खोजने के लिए किसी मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे या चर्च जाने की ज़रूरत नहीं है यदि हम सच्चे मन से किसी पीड़ित दुखी या निस्सहाय की सहायता करते हैं तो हम परोक्ष रूप से परमात्मा की सेवा करते हैं !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
परमात्मा को सामान्य रूप से परब्रह्म या ईश्वर कहा गया है। सीधे-सादे दर्शन के अनुसार तो हम सब परमात्मा अर्थात ईश्वर के ही अंश हैं। 
साथ ही यदि परमात्मा को इस दृष्टिकोण से भी समझा जाये कि परमात्मा शब्द दो शब्दों - 'परम' अर्थात सर्वोच्च एवं 'आत्मा' अर्थात चेतना से मिलकर बना है। चूंकि सकल जगत के सभी सजीव प्राणियों में परम आत्मा अर्थात सर्वोच्च चेतना का वास है। उनमें एक सर्वश्रेष्ठ चेतन स्वरूप विराजमान है। यही परम चेतनता उन्हें प्राण शक्ति प्रदान करती है। प्राणशक्ति ही सजीवता को जन्म देती है और यह सजीवता जिस परम आत्मा से प्राप्त होती है, वह ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ और सबसे पवित्र अंश है। जब यह परम आत्मा ईश्वर का ही अंश है तो निश्चित रूप से हम सब एकमात्र परमात्मा के ही अंश हैं ।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
हम सभी परमात्मा की एक ही अंश है ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि परमात्मा ने स्वयं ही गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि मैं कण कण में व्याप्त हूं इसीलिए हम सब परमात्मा के ही अंश हुए हम लोग जीव पशु पक्षी पेड़ पौधे सभी को परमात्मा का ही रूप मानते हैं।सारी सृष्टि भी उसी परमात्मा के आदेश पर चलती है वही हमें जीवन देता है और वही हमारी मृत्यु निश्चित करता है ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा है।
बड़े-बड़े लोगों ने लेखकों साहित्यकारों ने कहा है कि यह दुनिया एक रंगमंच है इसकी डोर तो उस ऊपर वाले के हाथ में हैं।
इसलिए मानवता से इंसान इंसान की कीमत को समझें ।
यह जीवन अनमोल है जिससे हमें परमपिता परमात्मा ने दिया है उसे सदुपयोग में लगाएं अच्छे कार्य करें जिससे आपके देश प्रदेश परिवार सभी का विकास हो और आप दूसरे के लिए प्रेरणा स्रोत बने।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
हम सब  प्राणी,पशु -पक्षी,जीव -जंतु, वनस्पति  परमात्मा के ही अंश है। परमात्मा ने आत्मा दी है जिनके कारण हम सब यह जीवन में आए हैं । मनुष्य आत्मा के अंतिम पड़ाव है। इसलिए ज्ञान बुद्धि शक्ति भी इन्हें मिला है। इस के होने के बाद अंत में जीवन फिर से परमात्मा में  मिल जाती हैं, सृष्टि का यही चक्र  बना हुआ है।
यह जीवन परमात्मा का दिया हुआ गिफ्ट है एक ब्लेसिंग है हमे सदा परमात्मा के शुक्रगुजार रहना चाहिए ताकि हमारे अंदर सुख शांति और खुशी का अनुभव महसूस हो साथ ही साथ हमारे अंदर आत्मविश्वास जागता है जिससे हम अच्छे कार्य करते हैं,अच्छे कर्म करते हैं, एवंम सबको साथ नम्रता और मीठे  वाणी से बात करते हैं।
लेखक का विचार:-आत्मा का परमात्मा से संबंध ही एकमात्र सनातन तथा शाश्रत संबंध है। चुकी आत्मा परमात्मा की ही अंश है,इसलिए इनमें अंश -अंशी  संबंध माना जाता है। यह दोनों अलग होकर पुनः मिल जाने पर मुक्ति तृप्ति या संतुष्टि पाता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
 जी हां हम सब मात्र परमात्मा के ही अंश है।  अस्तित्व में जो भी इकाइयां हैं सब परमात्मा के ही अंश है। क्योंकि सभी की उत्पत्ति प्रकृति में ही होती है जागृति परमात्मा की प्रेरणा पाकर संचालित हो रही है अतः हम सब परमात्मा के ही अंश है परमात्मा हमारे अंदर ज्ञान स्वरूप में विद्यमान है जो परमात्मा का अनुभव करता है वही व्यक्ति परमात्मा की शक्ति को प्राप्त करता है शक्ति सभी को मिला है अभी उस शक्ति को पहचान ना बाकी है जिसने परमात्मा की शक्ति को पहचान लिया वह व्यक्ति उसी शक्ति का सदुपयोग कर अपने जीवन को सार्थक बना लेता है इस संसार में हर चीज परमात्मा की अंशसे बनी हुई है।  जिसके अंतर्गत हम मानव जाति भी आते हैं मानव भी परमात्मा का अंश है। अतः परमात्मा को पहचानना एवं स्वयं को पहचानना मनुष्य के लिए समय की आवश्यकता है हम परमात्मा के अंश है इसमें कोई दो मत की बात नहीं है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
अवश्य हम सब एकमात्र परमात्मा के ही अंश है। हम सब आत्मा एक परमात्मा के सन्तान हैं। समस्त मानव सृष्टि परमात्मा के अंश है जो मृत्यु के बाद परमात्मा के पास चली जाती है। लोग चौरासी लाख योनि के बारे में बात करते हैं कि मरने के बाद विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं में जन्म लेना पड़ेगा । ये बात एकदम गलत है।जिस प्रकार से आम के पेड़ पर आम ही फलेगा केला ,अंगूर धान या गेंहू नहीं फल सकता उसी प्रकार आत्मा जो परमात्मा का अंश है परमात्मा में ही मिलेगा और मनुष्य बन के ही जन्म लेगा जानवर या पशुपक्षी नहीं। कहा गया है ईश्वर जीव अविनाशी। यानी परमात्मा का अंश परमात्मा में मिल जाएगा उसका नाश नहीं होगा। हाँ कर्मों के अनुसार गरीब घर में, अमीर घर में ऐसा होता रहता है। कोई वातानुकूलित कमरे में बैठता है, तो कोई भरी गर्मी में भी बोझ ढोता है धूप,बारिस,ठंड सहता है।यानी जानवर का काम करता है।यही हो गया उसके लिए जानवर योनि में जन्म। सचमुच का जानवर नहीं  बनता। इससे साफ पता चलता है कि हम सब एकमात्र ईश्वर का ही अंश हैं।
             गीता में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहे हैं कि मैं जी सब हूँ। मैं ही अर्जुन हूँ, मैं ही दुर्योधन हूँ, मैं ही शकुनि हूँ , मैं ही द्रोण हूँ, मैं ही भीष्म हूँ यानी सब उन्हीं के अंश है। इससे ये बात एकदम स्पष्ट है कि हम सब एकमात्र परमात्मा के ही अंश हैं।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
हम सब एकमात्र परमात्मा के ही अंस है। आत्मा परमात्मा का अंश है। यह भी सही बात है। वैसे ही जैसे किरणें सूरी का अंश है। जिस तरह सूर्य की किरण पृथक पृथक वस्तु पर पड़ती है और उस वस्तु को सूर्य की किरणों से प्रकाशमान होती है। उसी तरह से परमात्मा एक ही है। जिससे निकली हुई आत्माएं भिन्न-भिन्न योनियों में देह में प्रवेश कर उन्हें चलायमान करते हैं और यह जीव आत्मा को अपने सत्ता मान लेते हैं। परमात्मा से अलग मान लेते हैं। तभी समस्या उत्पन्न होती है। जो यह मानते हैं कि आत्मा और परमात्मा एक ही है और उनका यह मानना है उनके ज्ञान में भी अनवरत है। और जो ज्ञान में भी अनवरत है।उनकी जीवन व्यवहार में भी परिलक्षित होता है। वह यह कह सकते हैं कि इंसान और भगवान में कोई अंतर नहीं है।ऐसे जितने भी मनीषी है। ऐसे जितने भी सिद्ध, पुरुष बुद्धि पुरुष हैै जिनके आत्मा और परमात्मा के संबंध को समझ लिया है उनकी दृष्टि में आत्मा और परमात्मा में कोई अंतर नहीं रह जाता है। युगो युगो से यह प्रचलन है और लोग मानते भी हैं कि हम सब एकमात्र परमात्मा यही अंश है। भगवान ने ही हमें जन्म देकर इस दुनिया में धरती पर भेजा है। इंसान ही नहीं बल्कि इस धरती पर सभी जीव जंतु पशु पंछी परमात्मा के ही अंश हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
मनुष्य परमात्मा का ही एक हिस्सा है अर्थात अंश है लेकिन हम सिर्फ अपने कर्मों के कारण विभिन्न नामों से भूमिका निभा रहे हैं । परमात्मा कण कण में व्याप्त है संपूर्ण प्रकृति परमात्मा का ही रूप है  । परमात्मा आत्मा में निवास करते हैं । हर जीव परमात्मा का ही रूप है । परमात्मा जल में थल में प्रकृति में ,सूर्य में चंद्रमा में, नक्षत्रों में अर्थात पूरे ब्रह्मांड में विद्यमान है  । मानव मात्र में परमात्मा का ही स्वरूप है इसीलिए हम सभी उस परमपिता परमेश्वर का ही अंश है । जन्म से पहले हम जिस लोक में विचरण करते हैं मरण के पश्चात भी उसी लोक में चले जाते हैं । सच कहा जाए तो यह लोक, यह संसार  ,यह सृष्टि, संपूर्ण ब्रह्मांड एक रहस्य ही है । भले ही हमने परमात्मा को नहीं देखा मगर उनकी रचना के नित रोज दर्शन होते हैं । उनकी रचाई सृष्टि अद्भुत है  ।भक्ति भाव से हम परमात्मा को पाने की इच्छा रखते हैं मगर अनभिज्ञ भी रहते हैं कि हम तो परमात्मा से अलग हो ही नहीं सकते ,हम परमात्मा का अंश है उसी में लीन है  परमात्मा से अलग होने का मतलब आस्तितवहीन  होना  । महात्मा कबीर भी इस बात को मानते थे कि परमात्मा हमेशा एक ही है और सब प्राणी उसी का अंश है-  महात्मा कबीर का दोहा--
 जल में कुंभ ,कुंभ में जल
 भीतर बाहर पानी ।
 फूटा कुंभ ,जल जलहिं समाना,
 ये कथ्य -कह गयाे गयानी ।।
 योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि इस चराचर जगत में भगवान हर जगह मौजूद है अतः वह आत्मा के रूप में हमारे अंदर ही है बस उसी को पहचानने की जरूरत है  ,जिस दिन यह समझ आ जाएगा उस दिन ईश्वर की खोज समाप्त हो जाएगी ।
 अतः परमात्मा सूक्ष्मतम से लेकर समूचे ब्रह्मांड तक व्याप्त है परमात्मा सर्वस्व है ,वह शब्द भी है भाव भी रूप भी है और अरूप भी । उसे किसी ने नहीं देखा परंतु हर एक उसे महसूस या अनुभव कर सकता है । हम परमात्मा से अलग नहीं हो सकते मनुष्य परमात्मा का ही अंश है ।
 - शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
     परमात्मा सर्वशक्तिमान हैं, जिनके विभिन्न रूपों को पूजा जाता हैं, जिनका संस्कार और संस्कृति में अत्यधिक महत्व हैं। जो घर संसार में तो पूजा जाता ही हैं, साथ ही सार्वजनिक रूप से अनेकानेक मंदिरों में पूजा अर्चना कर परमात्मा को याद किया जाता हैं। अतुल्य श्रद्धा-भक्ति में लीन होकर अपने मन के विचारों को प्रस्तुत कर, मन की इच्छा पूर्ति की जाती हैं। परमात्मा के विचारों को सर्वाधिक ग्रंथों, किताबों में लेखकों द्वारा प्रस्तुत कर रसावादन करवाया हैं, वही मंच पर विचारों से अवगत कराया जाता रहा हैं। जिसके परिपेक्ष्य में आस्था और विश्वास स्थापित हैं। जिसके परिवेश में हम सब एक मात्र परमात्मा के ही अंश हैं। जन्म और मृत्यु, एक चक्र हैं, जिस तरह से पुराने वस्त्र को त्याग कर, नये स्वरुप में वस्त्र ग्रहण किये जाते हैं। लेकिन हम सब परमात्मा के के गुण को प्राप्त नहीं करते हुए, अपने ही गुणों का  बखान करने में सफलता अर्जित कर रहे हैं, जिसके कारण जनजीवन के साथ ही साथ जीवन यापन प्रभावित होता जा रहा हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
जी हाँ हम सब एकमात्र परमात्मा के अंश हैं ।
 संसार में रहने वाले  सभी इंसान  ईश्वर की वंदना करते हैं । संस्कृत का श्लोक है -
कपूर गौरं करुणा अवतारम,
संसार सारम भुजगेन्द्र हारम।
सदा बसन्तम हृदयाविंदे,
भवं भवानी सहितं नमामि 
खुसरो ने कहा -खुसरो ओ पी एक है , देखन में दोय ।
मन से मन को तौलिए , दो मन कबहुँ न होय ।।
इससे स्पष्ट होता है कि हर प्राणी ईश का अंश है ।
यदि अद्वेतवाद के अनुसार   जीवात्मा-परमात्मा का अंश है, वह हर उर में रहते है। हर प्राणी में ईश की   ज्योति- प्रत्यक्ष रूप में चेतना को प्रकाशित करती है । प्रत्येक जीव एक ही प्रकाश ज्योति से प्रकाशित है,जो ईश्वरीय  है। हमारे अंदर ,  हर मानव के अंदर आत्मा हमें गलत काम करने को रोकती है क्योंकि आत्मा ईश का शुद्ध सात्विक अंश है । 
ईश्वर का तो घट - घट में वास करता है । 
संत कवि तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस में कहा है-'सीय राम मैं सब जग जानी, करहुं प्रनाम जोरि जुग पानी'। 
ईश्वर को सब प्राणियों के अंदर समभाव से देखते हुए हम सबसे प्रेम करें, किसी से द्वेष-भाव न रखें।  हम हृदय से स्वीकार करें कि हम सब जीवों में एक ही आत्मतत्व अर्थात् परमात्म-तत्व विद्यमान है। ऋग्वेद में लिखा है 'अंतर्येमे अंतरिक्षे पुराजा' अर्थात पुरातन जीव अंत:करण में संयम करता है।
हिन्दू धर्म , संस्कृति में हर प्राणी ईश का अंश माना है ।मूल्यों का वास हमारी आत्मा में होता होता है । समान भाव की जागृति एकात्मता का बोध कराती है। भगवान श्रीकृष्ण ने  कुरुक्षेत्र में यही उपदेश दिया था । कर्म करते जाओ फल की चिंता मत करो । प्रेम सन्देश  संसार को दिया  श्रीमद्भागवत  गीता में । प्रेम शाश्वत व्यापक होता है भेदभाव नहीं करता है । सारा संसार प्रेम से जुड़ जाता है।
अंत में दोहे में 
हम सब बंदे  ईश के  , ईश्वर इनमें पाय । 
करें दीन को   प्रेम जो  , उसको खुदा सुहाय । 
 - डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
       जी हां! निस्संदेह हम सब एकमात्र परमात्मा के ही अंश हैं और अपने कर्मों अनुसार परम पिता परमेश्वर से अलग हो चुके हैं। यह भी तय है कि अपने कर्म भोगने उपरांत हमारा पांच तत्वीय शरीर पुनः पांच तत्वों में विलीन हो जाएगा और आत्मा परमात्मा में समा जाएगी। यही जीवनचक्र का कड़वा सच है।
       इसलिए अपने स्वार्थ में "गधे को बाप" बनाने वालों को कभी मौक्ष प्राप्त नहीं होता। चूंकि वे स्वार्थी ईश्वर के आदेश का उचित पालन करने में सक्षम नहीं हो सके। इसलिए उन्हें लोक एवं परलोक में अपमान के अलावा कुछ नहीं मिलता। सच तो यह है कि प्रकृति भी उन्हें क्षमा नहीं करती और जो प्राकृतिक नहीं उसे उसकी मां कैसे झेल सकती है?
       सर्वविदित है कि धरा को कर्म भूमि एवं मृत्यु लोक कहा गया है। यहां जो जन्म लेता है एक न एक दिन वह मर भी जाता है। फिर प्रश्न स्वाभाविक है कि मानव अपने कर्मों की दिशा "गधे को बाप" बनाने पर निर्भर क्यों करे? 
      उल्लेखनीय है कि आत्मा अमर है और ज्ञान के प्रकाश के अलावा सब नाशवान है। सत्य यह भी है कि हम खाली हाथ आए थे और खाली ही जाएंगे? फिर अपना अनमोल जीवन झूठ, स्वार्थ और गधे को बाप बनाने की प्रक्रिया में व्यर्थ क्यों गंवाया जाए? 
      अतः हमारी शुद्ध आत्मा को परमात्मा सुगमता से स्वीकर कर लें, जिसके लिए हमें अपनी अनमोल सांसें घूस, चुगली, बेईमानी, अमानवीयता, नाशवान इत्यादि प्रक्रियाओं की भेंट चढ़ाने से कहीं अच्छा है कि उन्हें अपने कर्त्तव्यों व अधिकारों के प्रति जागरूकता एवं राष्ट्र निर्माण पर न्यौछावर करें।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जहाँ तक हमारी दृष्टी जाती है ,हऱका रचइता कोई न कोई है फिर इसकी शुरुआत कहाँ से हुई मनुष्य  ने तो अभी तक ऐसी मशीन नही बनाई 
 जो रात दिन कार्य करते रहे और खराब न हो लेकिन मानव शरीर एक ऐसी मशीन है जो जन्म से लेकर मृत्यु के क्षण तक काम करती रहती है जिस दिन हृदय ने चलना बन्द किया ,मनुष्य निष्क्रिय हो गया ।मन पूछता है इसकी शुरुआत कहाँ से हुई ,एक अनादि शक्ति के आगे सिर झुकजाता है जिसे हम ईश्वर कहते हैं या परमात्मा ।कण -कण में उसी की शक्ति विराज मान है ,वो जो चाहता है वही होता है ।हमसब परमात्मा के ही अंश हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
सृष्टि के कण-कण में परमात्मा का वास है
जीव का जन्म परमात्मा के हाथ में है
सभी का जन्म परमात्मा के द्वारा निश्चित विधि विधान के द्वारा ही संभव है बालक को परमात्मा का रूप मानते हैं तीन साल तक बच्चों की हर वाणी को भी ईश्वर की वाणी मानते हैं
ईश्वर के बिना इस संसार में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता है हम सबकी सांसें गिनती की मिली हुई है सांसों का समाप्त होना इस सृष्टि से मानव जीवन ‌का अंत है यह तो कोई नहीं जानता कि जीव प्राण त्याग कहां पर कहा जाता है  आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई ‌बस  
यह शाश्वत सत्य सृष्टि के आदि से अंत तक अनवरत प्रक्रिया चलती रहती है
निश्चित ही हम सब  एकमात्र परमात्मा के ही अंश मात्र है जीवन पूर्ण होने पर
फिर से आत्मा परमात्मा में मिल जाती है।
*जिसने जीवन दिया जिसने पैदा किया जिसने  दी आत्मा वह परमात्मा*
-आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
जी हां, नि:संदेह हम सब एक मात्र परमात्मा के अंश हैं पर अभिमान और अज्ञानतावश हम खुद को धर्म और जाति में बांटकर अपने अंदर अहम भाव को जन्म देते रहते हैं।
 हम ब्रह्मा के मुख से पैदा हुए वह पैर से पैदा हुआ हम उच्च जाति वो निम्न जाति का ---इस तरह की संकीर्ण मानसिकता द्वारा हम मानवता को कलंकित करते हैं।
 यह जानते हुए भी कि सभी परमात्मा के अंश हैं हम ऊंच-नीच का भेदभाव करते हुए एक-दूसरे के प्रति मन में हीन भाव रखते हैं जो हमारे अहंकार को प्रदर्शित करता है। 
 21वीं सदी में भी भले ही हम आधुनिक कहलाने का दावा करते हैं पर आज भी रूढ़िवादी विचारों से ग्रस्त हैं।
 यही कारण है कि समय के साथ हमें जितना विकास करते हुए विश्व में अग्रणी स्थान बनाना चाहिए था हम नहीं बना पा रहे हैं क्योंकि जाति के कारण इंसान को हर जगह तरजीह नहीं दिया जा रहा। जब तक शीर्षस्थ पद पर बैठे नेता वोट बैंक की राजनीति जाति के आधार पर करते रहेंगे तब तक दूसरे लोग से उम्मीद करना बेकार है।
 जाति के आधार पर किसी को बुद्धिमान मानना और कोई कितना भी पढ़ा लिखा हो बार-बार जाति का जिक्र करके जाति के नाम पर जलील करना--
 अशोभनीय और अमानवीय प्रस्तुत होता है।
 हम सभी परमात्मा के अंश हैं। हर प्राणी के प्रति हमारे हृदय में इंसानियत का भाव होनी चाहिए। अगर हम प्रभु के सच्चे भक्त हैं तो प्रेम और सद्भावना के साथ हमें सभी का आदर और सम्मान करना चाहिए।
                      - सुनीता रानी राठौर
                   ग्रेटर नोएडा -उत्तर प्रदेश
यह एक अनुमान है, परंतु इसे नकारा नहीं जा सकता। इस बात की पुष्टि चिकित्सक भलीभांति कर सकते हैं, वह इसीलिए क्योंकि उन्होंने शरीर के भीतर की संरचना को देखा,जाना और समझा है। शिशु- शरीर या यूँ कहें कि शरीर किसी का भी हो संरचना समान ही होती है। महिला व पुरूष के अंतर अलावा अन्य कोई भिन्नता सामान्यतः नहीं होती। दूसरे जन्म और मृत्यु का जो नियंत्रण है, जो शैली है,जो प्रक्रिया है वह अलौकिक है,  किसी चमत्कार से कम भी नहीं है याने जो चमत्कारी है, इस सबका कर्ता धर्ता है, उसे परमात्मा माना गया है। अतः आशय यही कि हम सब उसी परमात्मा की इच्छा के प्रतीक हैं, प्रतिफल हैं,जिसका सार यही निकलता है कि हम सब उसी परमात्मा के हैं, उन्हीं का अंश हैं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
आज की चर्चा में जहांँ तक यह सवाल है क्या हम सब एक ही परमात्मा के अंश हैं तो इस पर मैं कहना चाहूंगा कि यह एक बिल्कुल सत्य बात है जो हमारे शास्त्रों और पुराणों के आधार पर कही गई है की आत्मा परमात्मा का ही अंश है और एक निश्चित समय के उपरांत उसी में विलीन हो जाती हैं विभिन्न कर्मों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के पूरा होने के उपरांत अर्थात मृत्यु प्राप्ति के उपरांत परमात्मा की शरण में जाना पड़ता है और वहां उसके कर्मों का लेखा जोखा प्रस्तुत किया जाता है और फिर उसी के अनुसार निर्णय होता है ऐसे भी वृतांत सुने गए हैं की मोक्ष प्राप्ति होती है और जन्म और मरण के बंधन से आत्मा को छुटकारा मिल जाता है वास्तव में मोक्ष और कुछ नहीं है आत्मा का परमात्मा में विलीन होना ही मोक्ष यह एक बहुत ही गूढ़ विषय है और इस पर बहुत अधिक लंबी चर्चा हो सकती है संक्षेप में यही कहना चाहूंगा कि वास्तव में आत्मा परमात्मा का ही अंश है और हम सब इस प्रकार से परमात्मा के ही अंश है  परंतु भौतिक संसाधनों की प्राप्ति के मुंह और स्वार्थपरता के कारण हम सब यह भूल जाते हैं और हमारे कर्मों में भी परिवर्तन आ जाता है जबकि हमारे कर्म और हमारा आचरण हमारा व्यवहार परमात्मा के स्वभाव के अनुकूल ही होना चाहिए परंतु सांसारिक मोह माया विषय बंधन के कारण मोह के भ्रम जाल से यह स्थिति उत्पन्न होती है संत महात्मा और ज्ञानी लोग ही से पार पा पाते केक जनसाधारण की समझ से यह बहुत दूर की बात है परंतु इतना अवश्य ध्यान रखना चाहिए वह  कोई परम शक्ति जरूर है जो इस संपूर्ण सत्ता को ऊर्जान्वित कर रही है और इसे चला रही है वही सत्ता परमात्मा है हम जिस के अंश हैं
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
ईश्वर एक है हम सब उसी परमात्मा की संतान है ।
परमात्मा ने एक बीज लगाया समसस्त संसार विशाल वृक्ष है इसकी साखा के रूप मे धर्मो को विभाजित किया गया है हिन्द ,मुस्लिम ,सिख ,ईसाई  ,बौध ,जैन अन्य धर्मो का विभाजन  सभी ने अपने मतो के अनुसार किया । जितने भी महान आत्मा अवतरित हुए । सभी ने एक परमात्मा की और इशारा किया । परन्तु मनुष्य नादान है वह उसी माहत्मा को परमात्मा बनाकर धर्म की स्थापना की । मनुष्य जब पृथ्वी पर जन्म लेता है उसके कोई धर्म की निशानी नही होती परन्तु पृथ्वी पर जन्म होते ही उसे धर्मो मे बाँट दिया जाता है। हम सभी एक परमात्मा का अंश है । एक ओमकार , ईश्वर एक है अल्लाह एक है जब सब धर्म एक परमात्मा को मानते है तो सन्तान अलग कैसे हो सकती है । ये भेद सब इस संसार में है समस्त एक परमात्मा का अंश है वो हमारा पालन हार है । जो बीज परमात्मा ने लगाया था वह काम क्रोध लोभ मद के नशे मे नीचे दब गया है उसकी साखाओ ने विकराल रूप धारण कर लिया है और परमात्मा के अंश को विभाजित कर दिया है । परन्तु ये सम्भव नही  उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नही हिल सकता । परमात्मा एक है हम सभी उसी का संतान है । पंच तत्वो से हमारा शरीर बना है हवा पानी अग्नि आकाश धरती सभी के अंश मिलकर मनुष्य की रचना हुई है। व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् पंच तत्व मे विलीन हो जाता है। ये सभी परमात्मा की रचना है जो मनुष्य को इनकी देखभाल के लिए दुनिया मे पैदा किया ।माता पिता जन्म का आधार है माता की कोख से जन्म लेकर लालन पालन करना उनके द्वारा समस्त सामाजिक सांस्कृतिक कार्यो को सिखाया जाना मात पिता का अंश बनकर संसार के समस्त कार्यों को गति देने का कार्य करते है । लेकिन इस सृष्टि को परमात्मा द्वारा चलाया जाता है हम सभी परमात्मा के मोहरे है वो दिशा देता है हम चल पड़ते है परन्तु कर्म करना हमारा कर्त्वय है
- नीमा शर्मा ' हँसमुख ' 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
इस विश्व सहित पूरे ब्रम्हाण्ड में जितने भी जीव हैं वे सब सर्वव्यापक परमात्मा के ही अंश हैं । वही सर्व शक्तिमान परमात्मा सभी जीवों और निर्जीवों का संचालन कर रहा है ऐसी हमारे सनातन धर्म की मान्यता है ।
जगत में व्याप्त मनुष्य  पशु   पक्षी  अन्य छोटे बडे सभी जीव जन्तु   पेड   पौधे   पहाड   नदियां   चाँद    सूरज   तारे   सुगंध   दुर्गंध   वायु  अग्नि   सब कुछ उस परंसत्ता पर्मेश्वर या परमात्मा के निर्देश से अपना अपना प्रदत्त कार्य कर रहे हैं ।
   एक दिन उसी परमात्मा के निर्देश से इस जगत से अपने काया रुपी चोले को छोड जाते हैं और परमात्मा द्वारा निर्दिष्ट अलग चोला धारण कर लेते हैं ।
कहने का अर्थ ये है कि सभी जीव हम सब सहित उस परमात्मा के ही अंश हैं ।।
    - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
परमात्मा का अर्थ होता है ,परम यानि श्रेष्ठ आत्मा|हम अपने माता पिता के अंश हैं और इस संसार में उनसे श्रेष्ठ कोई नहीं |
आत्मा जिसे कभी किसी ने नहीं देखा ,सिर्फ़ वेदों ,पुराणों से जाना और माना गया है।जैसा कि गीता में कहा गया है की आत्मा परमात्मा का अंश है।शरीर नश्वर है और आत्मा अमर।
जीव ,जंतु,धरती,आकाश अर्थात् संपूर्ण सृष्टि के रचयिता अदृश्य शक्ति है।जिसे परम पिता परमेश्वर के रूप में हम जानते हैं और मानते हैं ।
- सविता गुप्ता 
राँची - झारखंड
विज्ञान इसी विषय पर असफल हो जाता है हम सभी परमात्मा के ही अंश है विज्ञान में बहुत सारी तथ्यों पर अन्वेषण कर डाला पर परमात्मा की यह सभी उपलब्धि को किसी भी तरह से विश्लेषक नहीं कर पाया एक समय ऐसा आता है विज्ञान मेडिकल साइंस सभी एक वाक्य दोहराते हैं हमने अपनी पूरी कोशिश कर ली है पर ईश्वर जाने तो कोई तो ऐसी एनर्जी है जिसके माध्यम से यह पूरा संसार नियंत्रित एवं संचालित हो रहा है जहां तक मेरा ज्ञान है गीता में भी इस प्रकार की चर्चा की गई है की एक ऐसी एनर्जी जिसे हम परमात्मा कहे ईश्वर करें जिसके कारण यह संसार संचालित होता है और हर प्राणी की बागडोर ईश्वर के हाथ में है यह यही ईश्वर परमात्मा है परम आत्मा जो आपकी आत्मा से ऊपर हो वह परमात्मा कहलाता है अब परमात्मा के रूप में इस धरती पर बहुत सारे अवतार हुए हैं जो ऐसे ऐसे अद्भुत कार्य कर डालें जो कहीं न कहीं ईश्वर की कृपा है इसलिए हम सभी परमात्मा के  अंश हैं
 - कुमकुम वेद सेन
    मुम्बई - महाराष्ट्र
जैसा कि सर्व विदित है कि हम सब परमात्मा के हीं अंश हैं। ईश्वर ने इस ब्रह्मांड में अनगिनत प्रकार की सृष्टि की है। एक पत्ता भी ऊपर वाले के इशारे के बिना नहीं हिलता है। परमात्मा और आत्मा के संगम से हीं इस जगत  सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। परमात्मा निराकार है ।किसी ने उसे देखा तो नहीं है , लेकिन सब ने महसूस जरूर किया है। परमात्मा सब में समाहित और विलीन है, अदृश्य है। उस परमपिता परमेश्वर की शक्ति से हम सब पूर्णतः वाकिफ हैं।हर कोई यह जानता है कि इतने सुन्दर संसार का रचयिता वह परमात्मा नीली छतरी वाला निरंतर इस कालगति के चक्र को चलाते रहता है।हम सब एक सूक्ष्म जीव हैं और परमात्मा के हाथ की कठपुतली है जिसे जब चाहे वैसे नचाता है। इसलिए कहा जाता है कि ईश्वर, अल्लाह तेरो नाम और वह भी एक हीं है और हम सब इस धरा पर उसके हीं अंश हैं।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " हम सब का आना और जाने का नियम एक ही है । एक ही परमात्मा का अंश है । फिर अन्तर कुछ भी नहीं है । अन्तर तो धरती पर आने के बाद होता है । जो जलनशीलत से शुरु होता है और मौत के साथ खत्म होता है । यही जन्म मरण का चक्र है ।
                                            - बीजेन्द्र जैमिनी
                           डिजिटल सम्मान

Comments

  1. हमारे वेद पुराण उपनिषद शास्त्रों में बताया गया है कि इस सृष्टि का रचनाकार परमपिता परमात्मा है हम सब उसी परम पिता की संतान है और उसी का अंश है। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को रणभूमि में कुरुक्षेत्र के मैदान में अपना विराट रूप दिखाते हुए कहा था यह देखो पार्थ मुझ में कितनी सृष्टि समाई है मैं ही ब्रह्म हूं। मुझसे ही सभी पैदा होते हैं और मुझ में ही सभी विलीन होते हैं ।यही सृष्टि का नियमहै। आत्मा अनश्वर है। जिस तरह से हम कपड़े बदलते हैं उसी तरह से एक जीवन खत्म करके हम दूसरा जीवन जीते हैं ।केवल शरीर बदलता है आत्मा नहीं। तो अंतिम सत्य ही है कि हम सब परमात्मा का ही अंश है और अंत में उसी में विलीन हो जाते हैं।

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  2. यदि हम परमात्मा के अंश हैं तो हम बेईमानी क्यों करते हैं? क्या परमात्मा हमसे बेईमानी करवाता है ? यदि हम बेईमानी करते हैं तो परमात्मा का अंश होकर हम बेईमानी क्यों करते हैं ?

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