पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 01                                                              
यक्ष प्रश्न
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प्यार से मुर्गे की पीठ सहलाते हुए उसके मालिक ने कहा, अभी-अभी खत्म हुए युद्ध में जीत का सेहरा तुम्हारे सिर पर बंधा, फिर भी तुम इतने उदास क्यों? जीत का भाव तो दामन को खुशियों से भर दिया करता है? 
मुर्गे ने दृढ़ता पूर्वक घोषणा की- आज से मैं वैरागी हुआ! तुम जिसे जीत कहते हो, वह मेरे लिए कोई मोल नहीं रखती! आदमी की खुशी के लिए मैं और मेरा जाति भाई एक दूसरे पर वार करते हुए लहूलुहान होते रहे, बिलबिलाते रहे! खूनखराबे के लालची दर्शक वाहवाह करते हुए नोट उड़ाते रहे! हमें घावों की सौगात मिलती रही! यह सिलसिला जारी रहा जब तक कि हम में से एक धरती नहीं चाट गया! मुकाबले के बाद मेरे प्रतिद्वंद्वी का मालिक, खा जाने वाली नज़रों से मुझे घूर रहा था! आप बताएं, हमें क्या मिला? आदमी ने दिल बहलाया, जेब  भी उसी की भरी, शोहरत भी उसी के हिस्से आई! हम जानवर लड़ें, मरें, क्यों? किसलिए? 
- कृष्णलता यादव
गुरुग्राम - हरियाणा
=====================================लघुकथा - 02                                                        

             पशु पक्षी हमारे संगी-साथी
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मेरे बड़े पापा यानी ताऊ जी का गांव में सुंदर सा प्यारा तीन मंजिला मकान। चारों तरफ फल-फूल के पेड़-पौधे। मकान के एक भाग में दो जर्सी गाय।बड़े पापा की दो शादीशुदा बेटियां।
  पेड़-पौधे उस पर पक्षियों की चहचहाहट, गाय का रंभाना घर का वातावरण खुशहाल  बनाए रखते । ऐसा लगता मानो प्रकृति की गोद में परिवार आनंदित हो। आंगन और बरामदे में छोटी-छोटी फुदकती गोरैया ऐसी लगती मानो अपने बच्चे उछल कूद रहे हों। दरवाजे के बाहर दाना चूंगते कबूतर, पेड़ों पर कौवे का कांव-कांव और सुंदर हरे रंग का तोता मनमोहक वातावरण का दृश्य उपस्थित करता।
  आसपास के खेतों में हल-बैलों की जोड़ी खेत जोतते हुए, गन्ने के खेतों में नीलगाय का दौड़ना प्रकृति के सुंदरता में चार चांद लगाते।
     समय का कालचक्र दोनों दीदी बेसमय काल के मुंह में समा गयी। उस सदमे में बड़ी मां फिर बड़े पापा भी दुनिया छोड़ गए। हरा भरा घर वीरान हो गया।
    पेड़-पौधे अभी भी चारों तरफ हैं पर गौरैया चिड़िया पेड़ों पर छत पर आंगन में नहीं दिखती।जर्सी गाय भी अब नहीं रंभाती। गायों के खूंटे और नाद सूने पड़े हैं। पिंजरे में और पेड़ों पर हरा तोता भी नहीं दिखता, न हीं दिखते झुंड में दाना चुगतें कबूतर। जैसे सभी मालिक के वियोग में कहीं दूर चले गए।
      पास के खेतों में हल-बैलों की जोड़ी उनके गले में लटकी घंटी का मधुर स्वर ट्रैक्टर आते ही गायब हो गये। गन्ने के खेतों में नीलगाय का दौड़ना भी अब नहीं दिखता। कम समय में ज्यादा फसल पाने के लालच में गन्ने की खेती बंद हो गई।
     बच्चों के साथ जब भी मायके जाती हूं तब उस मनभावन दृश्य की चर्चा बच्चों के समक्ष प्रस्तुत करती हूॅं पर उन्हें विश्वास नहीं होता क्योंकि पन्द्रह साल पहले का पशु-पक्षियों संग इंसान से भरा घर वीरान  सा दिखता है।
      पशु-ुपक्षी भी खुशहाल वातावरण के प्रतीक हैं। पेड़ पौधे हैं अभी भी, पर गोरैया तोता-कौवा कबूतर सब नदारद हैं। नीरसता सी छा गई है।
       प्रकृति के रंग-बिरंगे पक्षियों और पशुओं को देखने के लिए बच्चों को चिड़ियाघर में जाना पड़ता है जो हमारे आस-पास संगी-साथी की तरह रहते थे आज चिड़ियाघर में शो-पीस बनकर रह गए हैं।
           -  सुनीता रानी राठौर
              ग्रेटर नोएडा -उत्तर प्रदेश
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लघुकथा - 03                                                              

एक था भोला
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आज तीन दिन बीत चुके थे मगर भोला ना आया। नानी रोज़ उसका इंतजार करती।
यह नाम भी तो नानी ने ही दिया था उसे। वह रोज़ाना दोपहर के समय उसके दरवाज़े पर आवाज़ करने लगता और नानी उसे रोज़ रोटी देती। तीन दिन पहले जिस वक्त वह आया था नानी न जाने क्यों परेशान थी और प्यार से भोला बुलाने की बजाय ज़ोर से चीख पड़ी थी,"चला आता है रोज मुंँह उठाए जैसे और कोई काम ही नहीं है, सेवा करो बस महाराज की!" दरअसल उसी को लेकर तो नाना से नानी की खट-पट हो गई थी।
नानी बड़बड़ाती हुई जैसे ही बाहर आई भोला को वहां ना पाकर परेशान हो गयी। उसने उसे इधर उधर बहुत ढूंँढा मगर वह कहीं भी ना मिला। फिर उस दिन तो नानी के गले से निवाला भी ना उतरा।
"अजी सुनती हो" कहते हुए नाना जी घर में घुसे और व्यंग से मुस्कुराते हुए बोले,"अरे तुम्हारा लाड़ला आज मंदिर के बगल में बैठा दिखा।"
"क्या..." कहते हुए नानी तेज़ क़दमों से घर के बाहर निकल गई।
मंदिर के पास जैसे ही भोला ने उसे देखा अपना मुँह दूसरी और फेर लिया। नानी ने उसके कान उमेठते हुए कहा,"मैं बेकार में ही तुझे बैल बुद्धि कहती थी, तुझे भी इंसानों वाला रोग लग गया है जो अब तुझे मान-मनौव्वल चाहिए!"
भोला ने धीरे से अपने कान हिलाए मगर मुँह दूसरी तरफ़ ही घुमाए बैठा रहा। 
इस बार नानी रो पड़ी,"जा मैं ही तुझसे मोह लगा बैठी थी, तू तो बैल का बैल ही रहेगा!" जैसे ही नानी के आंँसू उसके चेहरे पर पड़े वह सींग लहराता फ़ोरन उठ खड़ा हुआ और सिर झुकाए पूंँछ हिलाता नानी के पीछे-पीछे घर की तरफ़ चल दिया।
- सीमा वर्मा
लुधियाना -  पंजाब
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लघुकथा - 04                                                           

उनका आना खुशियां लाना 
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रोज आंगन की शोभा बड़ाने और मोहन जी से मिलने कई सदस्य आ ही जाते थे।वो रोज उन्हें पानी और दाना देते ।उसके बाद ही अपने ऑफिस के लिए निकलते थे।इसके बिना उनका दिन अधूरा ही रहता था।ऑफिस से लौटते तो पक्षी पेढों और घर की छत पर अपना ठिकाना ढूंढकर ची ची करने लगते तथा जानवर उनके मुख्य द्वार के बाहर आवाज़ करते रहते।ये रोज की क्रिया थी तो मोहन जी की भी जैसे सारी थकान दूर हो जाया करती थी।
           अचानक ही मोहन जी की तबीयत खराब हुई और उन्हें शहर के अस्पताल में के जाना पड़ा।घरवाले उनके साथियों के लिए दाना पानी तो रख दिया करते थे पर वो कभी खाली होता तो कभी वैसे ही पड़ा रहता।आवाज़ भी नहीं होती थी।उधर अस्पताल में मोहन जी ठीक हो रहे थे तो अपने घरवालों से रोज पूछते रहते कि " वो सब कैसे हैं "।उनको सच नहीं बताया जाता वरना वो चिंता करते।इधर सारे ऐसे उदास हो सारे पशु पक्षी जैसे उनका कोई सगा गायब हो गया हो।
    आज पूरे पंद्रह दिनों बाद मोहन ही स्वस्थ होकर घर लौट रहे थे।सुबह का दाना पानी रखने के उनके बेटे बहू के हाव भाव से शायद इन्हें आभास हो गया था।थोड़ी सी चहल पहल हुई।शाम के चार बज रहे होंगे मोहन ही का परिवार उनको लेकर घर आ रहा था।आज जैसे जस्न का सा माहौल था। कम से कम पांच सौ मीटर से ही पशु पक्षी साथ होने लगे ।खूब चहकने और शोर मचाने लगे।मानो उनका अपना कोई घर लौट आया हो।बेटे ने गाड़ी धीरे कर दी और पिता दोनों तरफ दाना डालते हुए घर की तरफ बड़ने लगे।आज पशु पक्षियों की खुशियां फिर से घर लौट आई थी।
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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लघुकथा - 05                                                         
    
      गिरगिट       
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      ब्रह्मा जी के दरबार में आज अजब नजारा था। आज तक मानव जाति ही अपनी समस्याओं को लेकर यहाँ आती थी और ब्रह्मा जी का अधिक समय तो मानवों की समस्याओं में ही बीत जाता था।पर आज पहली बार सम्पूर्ण गिरगिट समाज एकजुट होकर आया था। सारा देवलोक अचम्भित था। ब्रह्मा जी ने पूछा ,हे प्राणी ! आप को क्या कष्ट है?जो आप सब इतनी कष्टप्रद यात्रा करके यहाँ पधारे?
     सब से वृद्ध गिरगिट ने हाथ जोड़कर कहा, प्रभु !आपने जो हमारे प्राणरक्षा के लिए रंग परिवर्तन की नैसर्गिक शक्ति हमे प्रदान की थी ,हम चाहते हैं यह शक्ति आप हम से वापस ले लें।ब्रह्मा जी को घोर आश्चर्य हुआ,बोले " हे प्राणी ,वह तो प्राकृतिक विपदा एवं  प्राणरक्षा के लिए मात्र आपको मिली हैं"।वृद्ध गिरगिट ने विनम्रता से कहा,प्रभू आप सही कह रहे हैं और हमने उन शक्तियों का कभी दुरूपयोग भी नहीं किया। पर अब मानव जाति हमे बदनाम कर रही है।वह अपने निजी छोटे -छोटे स्वार्थों के लिए प्रतिक्षण रंग बदलती है और हमारी जाति को बदनाम करती है। इसीलिए आप हम से यह शक्ति वापस ले लीजिए ।
       - ड़ा.नीना छिब्बर
          जोधपुर - राजस्थान
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लघुकथा - 06                                                        

अपशगुन 
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"बहू कुत्तों का रोना अच्छा नही होता .....आज भी देखो कितने कुत्ते रो रहें है "।
जब से ये कोरोना का शोर मचा है ,कोई घर से बाहर नही निकलता,कुत्तों  का रोना अपशगुन माना जाता है ।  भगवान खैर  करे सब ठीक  रहे, बस अपनें घरों मे ! कितना खराब समय है चारों तरफ बस हर व्यक्ति डरा हुआ है ।  कोरोना के चलते .....।
ना कही जा सकतें है । कामवाली बाई को बुला नही सकते। बच्चें पहलें ही घर से बाहर खेलनें नही जाते थे ।अब तो स्कूल भी जाना बन्द हो गया ।सारा दिन बस परेशान तुम भी आराम नही कर पाती "। 
"जी, मांजी !
बहू जब से कोरोना के चलते लोगों ने अपनें को घर मे कैद कर लिया है ,पिछले दस दिन से  सांस की यही बातें सुनती आ रही  है।
आज उस ने अपनी सभी पडौंसन सखियों को मैसेज किया ।
सभी ने आज से रोज दो रोटी   अपनें भोजन मे ज्यादा बनानें मे सहमति दी । 
 सभी काम से निबट ,नियत समय पर अपनी घर की देहरी पर खड़े होकर कर कुत्तों को रोटी खिला रही थी ।
आज के बाद  कुतों का रोना खत्म हो गया ।
- बबिता कंसल 
दिल्ली 
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लघुकथा - 07                                                        
ग्रेसी
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पिछले आठ दिनों से मेजर एक मिनट के लिए भी सोये नहीं थे। बस ग्रेसी के पलँग के पास या उसके रूम के बाहर गलियारे में कुर्सी पर बैठे रहते। आज ग्रेसी की हालत बहुत नाजुक थी। डॉक्टर सुबह से ही उसके इलाज में जुटे हुए थे।
बारिश में भीगते हुए लगातार आठ दिन तक रात दिन ग्रेसी मेजर के साथ जंगलों में आतंकवादियों द्वारा छुपाई हुई विस्फोटक सामग्री ढूंढती रही थी। डॉग्स तो दूसरे भी थे लेकिन ग्रेसी की सूंघने और भांपने की शक्ति बहुत तेज थी। कुल बारह किलो सामग्री उसने पकड़वाई वरना जानमाल का न जाने कितना बड़ा नुकसान होता। विस्फोटों की बहुत बड़ी साजिश को ग्रेसी ने नाकामयाब करके देश को बड़े संकट से बचा लिया। आखरी विस्फोटक की सूचना देने के साथ ही उसे पक्षाघात हुआ और वो बेहोश हो गई, तबसे वह 109 डिग्री बुखार में जीवन-मृत्यु के बीच झूल रही है।
"बेहोश होने से पहले भी उसने आखरी एक्सप्लोसिव पकड़वा ही दिया, मैं तो पाँव रखने ही वाला था वहाँ पर लेकिन ग्रेसी ने मेरी यूनिफार्म खींचकर मुझे आगाह कर दिया। वरना आज मैं जिंदा न होता। उसने देश के प्रति अपनी जिंदगी समर्पित कर दी।" मेजर अपने साथी कमांडो अर्जुन से बोला।
"अद्भुत थी उसकी समझ। दुःख बस यही है कि इंसान तो जमीन, धन या सत्ता की लालच में खून खराबा और लड़ाईयां करता है लेकिन ये मूक पशु बेचारे....
ये निर्दोष बेवजह इंसानों की खूनी महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ते है।"  अर्जुन दुखी स्वर में बोला।
"इन बेचारों को पता भी नहीं होगा कि क्यों इन्हें बारिशों में भीगना पड़ता है, जानलेवा विस्फोटकों को ढूंढने में अपनी जान खतरे में डालनी पड़ती है या कभी चली भी जाती है। न उन्हें नाम का लालच न धन का, न पद का।" मेजर ने  टूटते स्वर में कहा।
तभी ग्रेसी के कमरे से निकलते हुए डॉक्टर ने उसका कन्धा थपथपाते हुए बताया कि ग्रेसी नहीं रही।
"मनुष्य के स्वार्थ पर न जाने कब तक मूक पशु बलि चढ़ते रहेंगे।"
और ग्रेसी की मौत पर मेजर और अर्जुन की आँखों से आंसू बह निकले।
- डॉ विनीता राहुरिकर
भोपाल - मध्यप्रदेश
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लघुकथा -08                                                        

बेज़ुबान
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सुबह का समय था , ठंडी ठंडी हवाऐ चल रही थी पर यह हनुमान मंदिर का मैदान आज सुनसान पड़ा था ! हमेशा यहाँ चहल पहल रहती थी । भक्त लोग आते दर्शन करते और चिड़ियों को कबूतर को दाने डालते और हज़ारों कबूतर आकर दाने फटाफट चुक जाते एक “काकी “आती थी जो रोज़ कुत्तों को बिस्किट डालती । पर आज कल यह मैदान एक दम सूना पड़ा रहता ...
बहुत सारे कबूतर बगीचे के पेड़ पर बैठ कर बातें कर रहे थे , क्या हुआ है इंसानों को घर से बहार ही नहीं आते मंदिर में ताला डाल दिया है । कितने मज़े थे हमारे रोज़ भर पेट भोजन मिलता था अब तो बहुत मेहनत करते हैं फिर भी भूखे रह जाते है , दूसरा कबूतर बोला 
“हाँ भाई सही कह रहे हो आजकल हमारे दोस्त “डागी “( कुत्ते) भी नहीं दिखाई देते है शायद उन्होंने भी जगह बदल ली है , एक उम्रदराज़ कबूतर बोला . तुम लोगों को नहीं मालुम कोई महामारी फैली है इंसानों में जिसके कारण सरकारी फ़रमान जारी हुआ है ,जिस की वजह से सब को घर में लाकडाऊन कर रखा है , यह एक इंसान से दूसरे इंसान में पहुँचती है , कोई इलाज नहीं है सब मर रहें है । तभी कोई दिखाई नहीं दे रहा है , अब हमारा क्या होगा...? 
अब हमें कुछ दूसरी जगह तलाशनी पड़ेंगी ? “ कोई फ़ायदा नहीं हर जगह लाकडाऊन  है बस यही रहो शायद किसी को हमारी  चिंता होगी , “ आप ठीक कह रहे जैसे हम याद कर रहे वो सब भी याद कर रहे होंगे ! 
तभी छत पर खेल रहे चिंटू की नज़र कबूतरों पर पडी , वो बहुत खुश हुआ और अपने पापा को खिंच कर मैदान में दाने की टोकरी के साथ आया और ख़ुश हो कर कबूतरों को आवाज़ देकर दाने डालने लगा , कबूतर सारे ख़ुश और पता नहीं किस दुनियाँ से सैकड़ोंकबूतर उड उड कर आने लगे तो चिंटू पापा को और दाने लाने की ज़िद्द करने लगा तभी डांगी भी आकर उनके पैरों के इर्द  गिर्द मंडराने लगा चिंटू के पापा समझ गये ये भी भूखा है , और वो घर गये कबूतरों को दाने व डागी के लिये रोटी तथा एक बाल्टी पानी लेकर आये डर भी लग रहा था कहीं पुलिस न आ जाए , दाने चिंटू को पकड़ाये व डांगी को रोटी डाली ही थी की ये क्या ?  कई कुत्ते और आये व रोटी पर झपट्टा मार भाग गये , डागी को और रोटी दे कर पहले से बने पक्षीओ के पानी पीने के सकोरे में पानी डाला ताकी कोई गर्मी में प्यासे न रहे ...
आज चिंटू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था , वह पापा को बोला हम रोज़ सुबह सुबह आकर कबूतरों को खाना देंगे , पापा ने कहा जल्दी सो कर उठना हम जल्दी उठकर डाल जायेगे ।
कबूतर चिंटू की सेवा भावना से बहुत खुश थे आज कई दिनों बाद सबने भर पेट खाना खाया 
छोटा कबूतर चिंटू के कंधे पर जा बैठा व उसे प्यार व आशिष देने लगा, चिंटू नेउसको सहलाते हुये कहाँ दोस्त चिंता नहीं मैं रोज दाने डालूँगा लाकडाऊन है तो क्या पेट को भूख तो लगती है 
फिर आप लोगों का क्या दोष मैं जरुर आंऊगा ....
जैसे चिंटू व उसके पापा को बहार से आते देखा चिंटू की मम्मी भड़क गई सेनेटाइज करो नहाने जाओ सीधे , यहाँ लोग जान बचाने की सोच रहे हैं इन्हें कबूतरों को दाना डालना है , कल से कोई नही जाएगा जो जाएगा उसकी मैं टाँगे तोड़ दूंगी जाओ सीधे बाथरूम में नहाकर  आओ चिंटू बोला माँ ग्राउंड में कोई नहीं था और हमने किसी को छुआ नहीं है हमने सेनेटाईजर लगा लिया है हाथ  पैर साफ़ कर लिए हैंनहाने  की ज़रूरत नहीं है और मैं रोज़ जाऊँगा कबूतरों को दाना दूँगा,  उनसे मैंने वादा किया है माँ बोली यहाँइंसानों  को खाना नहीं मिल रहा है , इन्सान भूख से मर रहे हैं और तुम्हें कबूतरों कुत्तों की पड़ी  है । चिंटू ने कहा माँ बेज़ुबान पक्षी व जानवर है भूख लगेगी तो किससे कहेंगे पहले तो बहार कुछ न कुछ मिल जाता था , अब कोई कचरा भी नहीं फेंकता ।  मैं और कुछ करूँ या न करूं ,  इनको दाने रोज़ ज़रूर दूँगा , माँ ये ही मेरा इस समय धर्म व कर्म है । मैं अधिक कुछ नहीं कर पा रहा हूँ तो इन लोगों को कुछ राहत दे दूँ आप मुझे इसके लिए रोकना नही । 
चिंटू के माता पिता बहूत ख़ुश थे क्योंकि उन्होंने अपने बच्चे के मन में पशु पक्षी के प्रति दर्द देखा उन्हें  अच्छा लगा मेरे बेटे में मानवीय संवेदना तो है। 
- अलका पाडेंय
 मुम्बाई - महाराष्ट्र
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लघुकथा - 09                                            

       घर छिनने की पीड़ा     
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     सेठ अनुभवीलाल की अनुभवी दृष्टि ने भांप लिया था कि यदि छ: लेन सड़क उनके बाग के बीच से निकले तो उनके वारे-न्यारे हो जायेंगे। उन्होंने अपने पैसों की ताकत से बाग के बीच से सड़क के गुजरने की मंजूरी सरकारी महकमों से ले ली। पेड़ काटने की अनुमति जैसे दुष्कर कार्य को भी वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों ने रिश्वत लेकर सरल बना दिया।
     निश्चित दिन को पेड़ों को काटने का कार्य करने वाली टीम आ गयी। बाग में चहल-पहल देखकर पेड़ों पर रहने वाले पक्षियों में व्याकुलता उत्पन्न हो गयी। ईश्वर ने जो बौद्धिक क्षमता उन्हें दी थी, उससे पक्षी समझ गये कि उनका बसेरा छिनने वाला है।  बाग की वह धरती, जो इन पक्षियों के कलरव से चहचहाती थी, कराहने लगी और पक्षियों का रुदन न्याय की भीख मांग रहा था। पर इन सबसे निष्ठुर लालची सेठ और भ्रष्ट अधिकारियों को कुछ सरोकार नहीं था। 
     परन्तु वन्यजीव प्रेमियों तक पक्षियों की कराहट और रुदन पहुंच गया। तत्काल ही न्यायालय में उचित तर्कों के साथ गुहार लगाई गयी। न्यायालय से भेजी गयी समिति ने पाया कि इस सड़क को बाग के पास की शुष्क जमीन से होकर बनाने में कोई बाधा नहीं है। 
     माननीय न्यायालय ने तत्काल आदेश जारी कर सड़क के कार्य को प्रारम्भ होने से पहले ही रोक दिया। इस प्रकार वन्यजीव प्रेमियों की सक्रियता से बाग में रहने वाले पक्षियों को समय रहते 'घर छिनने की पीड़ा' से छुटकारा मिल गया। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
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लघुकथा - 10                                                     

       स्पेस 
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चिड़िया  ने बॉलकोनी में रखी आलमारी के ऊपर   घोंसलें में दिए तीन अंडों की   सेने की प्रक्रिया के बाद नवजातों की  चीं - चीं की आवाज सुन के छत ने  खुशी से  जच्चा रानी चिड़िया को कहने लगी  - " तुम इंसानों से कितनी अच्छी हो . तुमने मादा और नर का बिना लिंग जांच करे और बिना लैंगिक भेदभाव के ही वंश को बढ़ाया है  . आज तो इंसान नारी के  गर्भ में कन्या के  होने से कन्या भ्रूण  हत्या जैसा पाप कर रहा  है . सचमुच  चिड़िया रानी ! तुम तो समाज और संसार में कुदरत के जीने के अधिकार का मानवीय अहसास जगा रही हो . " 
तभी मुस्कुराती हुईं   हवा ने  अलमारी  को कहा , 
 " बहन   ! तुमने   चिड़िया को संरक्षण देकर अच्छा ही किया । जिससे चिड़िया की प्रजाति  विलुप्त  होने से बच  गयी । "
चिड़िया ने अपने बच्चों को गले लगाते हुए हवा , अलमारी और छत से कहा - 
" प्यारी सखियों ! इंसानों ने अ स्वार्थ के लिए पेड़ काट के कंक्रीट के जंगल बना दिए हैं . जिससे हम विलुप्त होने के कगार पर हैं . इंसानों के दिल भी कंक्रीट के मकानों की तरह निष्प्राण  हो गए है.  उनकी संवेदना तो मर गयी है . अब हमारे रहने के लिए स्थान ही नहीं बचा है . सखी अलमारी तुमने   मुझे रहने के लिए  स्पेस दी , मैं सदा आपकी आभारी रहूँगी । मेरे बच्चों को तुम दोनों  मौसी भी मिल गयी ।
यह सुन के छत , अलमारी और हवा ने  आत्मीयता से चिड़िया को कहा - 
" बहना चिड़िया  ! यहाँ पर निश्चिन्त होकर जब तक  तुम चाहो रह सकती हो  । यह तुम्हारे बच्चों के लिए सुरक्षित स्थान है और महत्त्वकांक्षी इंसानों ने जंगल काट के  सीमेंट की गगनचुंबी इमारतें बनाकर तुम्हारा  अस्तित्व को  खत्म करने में लगे  हैं ।
 चिड़िया रानी  ! पेड़ों के न रहने से चारों ओर कैसी ग्लोबल वार्मिंग हो रही है . पर्यावरण भी खतरे की घंटी बजा रहा है . ऐसा लगता है  कि इंसान का प्रकृति से कोई  संबंध ही न हो ।"  
वहाँ रह रहे कुत्ते ने उनके आत्मीय संवाद सुन के उसे अपने वे पल याद  आ गए जब मेरी  मालिकन  राधा   ने मुझ  नवजात पिल्ले को बारिश में  सड़क से उठाकर  अपने घर और मन में स्पेश दी थी । आज मालकिन की वजह से मुझे पुनर्जीवन  मिला है ।
तभी बॉलकोनी में   गर्म हवा का झोंका आया ,  जो तपते सूरज की ओर इशारा कर रहा था ।
हवा ने नवजात की   गोद उठाने  , चिड़िया को हरीरा खिलाने  की रस्म को  निभाते हुए  चिड़िया के नवजात शिशुओं को  गोद में ले के सोहर गाने में मस्त हो गयी । अलमारी ,  छत और  कुत्ता भी  हवा के साथ मिल के उनके स्वस्थ जीवन की कामना कर  ताली बजाकर गाने  लगे 
- डॉ मंजु गुप्ता
मुम्बई - महाराष्ट्र
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लघुकथा - 11                                                     

        वायरस       
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जंगल में सब जानवर हाथी , चीता , शेर  लोमड़ी , गीदड़ , बंदर बड़े मज़े से आराम फ़रमा रहे थे ।  सब बड़े ख़ुश नज़र आ रहे थे क्योंकि उन्होंने सुना है कि मनुष्यों में एक ऐसी बीमारी फैली है कि एक मानव दूसरे मानव को छूने से भी डर रहा है । आपस में कोई किसी से बात नही कर रहा    है । सब किसी अनजान वायरस से डर रहे है और इसी वजह से सब घरों मे दुबके हुए है ।भालू की आवाज आई “ इसका मतलब हम कुछ दिन मज़े से जंगल में बेख़ौफ़ घूम सकते है “ गीदड़ ने कहा कितना अच्छा हो हम सब हमेशा यूँ ही  विचरण करें । हाथी बोला मानव ने इतने भंयकर हथियार ले रखें है कि हम जैसे भारी भरकम जानवर भी उनकी पकड़ में आ जातें है । काश ये बीमारी यूँ ही चलती रहे और हम बेख़ौफ़ घूमते रहे । 
        - नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
=====================================लघुकथा - 12                                                            

रौलेट एक्ट का शताब्दी वर्ष
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"परमात्मा तुमलोगों की आत्मा को शांति दे... तुम्हारी हत्या करने वालों का हिसाब कैसे होगा ? इस देश का न्याय तो अंधा-गूंगा-बहरा है..।" कटकर गिरे तड़पते आरे के वृक्षों से बया पक्षियों के झुंडों का समवेत स्वर गूंज रहा था।
"जलियांवाला बाग के बदला से क्या बदल गया बहना!तुमलोगों के आश्रय छिनने का क्या बदला होगा?" हवस के शिकार हुए वृक्षों के अंतिम शब्द थे
"तुमलोगों को इस देश का विकास पसंद नहीं, विकास के रास्ते में आने वाले बाधाओं को दूर किया ही जाता है। तुम पल भर में धरा से गगन नाप लेती हो.. मनुष्यों के पास पँख नहीं तो वे जड़ हो जायें क्या ? तुम्हारे आश्रय यहाँ नहीं तो और कहीं..।" भूमिगत रेल आवाज चिंघाड़ पड़ी।
दूर कहीं कोई माइक गला फाड़ कर चिल्ला रहा था,- "सच्चा जन करे यही पुकार
सादा जीवन उच्च विचार, पेड़ लगाओ एक हजार
प्यासी धरती करे पुकार, पेड़ लगाकर करो उद्धार।"□●
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना -बिहार
=====================================लघुकथा - 13                                                         

कोम्प्रोमाईज़
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“ क्या बात है आज बड़े खुश दिख रहे हो ? “ 
“ हां ! आज मुझे बहुत ख़ुशी मिल रही है । “ गुर्राते हुए पग ने अपने दोस्त डॉबरमैन को बोला । 
“ आज मैडम की माँ अपने घर वापस लौट गयीं । बड़ी आयीं थी मुझे मैडम से दूर रखने के लिए । मुझे दुत्कारते हुए भगाया था कि नई बेबी के पास मत आना । “
“ अब देखो , मैडम की बेबी को तो उनकी आया देखती हैं और मैं मैडम के साथ रहता हूँ । "
दोनों कुत्ते एक दूसरे को देखकर ज़ोर से ठहाका लगाते हैं ।
 " अरे भाई मैडम को भी तो अपना फिगर ठीक करने के लिए सुबह - शाम पार्क में जॉगिंग करने तो जाना ही है इसलिए घर और बाहर मैं ही उनके साथ रहता हूँ । " 
ठंढी सांस लेकर डॉबरमैन अपनी मालकिन को देखते ही बोलता है “ यार ! ये पैसे वाले भी बड़े अजीब होते हैं । मेरी मालकिन का तो मैं इकलौता वारिस हूँ । मुझे अपने घर में कभी कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना पड़ता ।“
- सारिका भूषण
राँची - झारखंड
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लघुकथा - 14                                                       
तीन बंदर
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विधान भवन स्थित गाँधी जी की मूर्त्ति के सामने तीनों बंदर अपनी चिर परिचित मुद्रा में बैठे हुए थे।मगर वे आज कुछ परेशान-से लग रहे थे और लगातार अपना सिर हिला रहे थे।
देखते-ही-देखते वहाँ नेताओं की भीड़ लग गयी।सभी उन्हें सिर हिलाते देख अपने-अपने अर्थ और निष्कर्ष निकालने लगे।
एक युवा नेता ने कहा - " ये गाँधी जी से माफी माँग रहे हैं। "
दूसरे वरिष्ठ नेता ने कहा - " नहीं।ये गाँधी जी से कह रहे हैं कि अब आपकी नैतिक शिक्षाओं की कोई जरूरत और महत्ता नहीं रह गयी है।
तीसरे वयोवृद्ध नेता ने कहा - " नहीं।नहीं।तुमलोग नहीं समझ पा रहे हो।एक बंदर अपने मुँह पर हाथ रखकर कह रहा है कि कहीं भी कुछ गलत होते देखो, तो चुप रहो।दूसरा बंदर अपने कान बंद करके कह रहा है कि किसी की बात मत सुनो।तुम्हें जो जी में आए करो।और तीसरा बंदर अपनी आँखें बंद करके कह रहा है कि जब कहीं सत्य से सामना हो, तो आँखें मूँद लो। "
- विजयानंद विजय
बक्सर - बिहार
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लघुकथा - 15                                                          
 नया मेहमान
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मां --- अब हम सब को वापस जाना पड़ेगा।
 बेटे की -ये बातें तीर  के समान मां के दिल को  बेंध  सी गयी।
थोड़े दिन और रूक जाते !
अभी तो मुन्ना पांच महीने का हीं हुआ है --- मां ने बोल कर आशा भरी नजरों से बेटे- बहू की ओर देखा।
नहीं - नहीं,  मां - नौकरी है अब हम दोनों को जाना हीं होगा बेटे ने कहा,अब और अधिक छुटियां नहीं मिल सकती हमें।
अच्छा कह --- मां बेचैन हो उठीं। कैसे पांच महीने गुजर गए नये मेहमान को आए हुए।  बीते सुखद दिनों की यादों में मां खो- सी गईं।
 छः महीने पहले  बहू को यहां छोड़ गया था। जब से अब तक नये मेहमान के आगमन की खुशी में समय मानों पंख लगा कर फुर्ररर हो गये।
किसी तरह अपने को सम्हालते हुए अंततः मां आज सबको टाटा-बाय कर व्यथित, बोझिल कदमों से घर में दाखिल हुई। 
पति रामशरण जी भी पत्नी के व्यथित  मनोदशा को बखूबी समझ रहे थे,पर उनका जाना भी जरूरी था। यह भी जानते थे।
सुबह - सुबह सूर्य को जल अर्पित करने श्यामा बालकाॅनी में ज्योंहि निकलीं खुशी से झूम उठीं।
पतिदेव को खींचती हुई बालकाॅनी में ले आईं। दोनों ने देखा बुलबुल का एक जोड़ा तिनकों से उनके कोने में रखें बड़े वाले गमले में की छांव में घोंसला निर्मित कर रहा था। पत्नी का मन पुनः एक बार दोनों पक्षियों को देखकर खिल उठा। पक्षियों के इस जोड़े की चहचहाहट से पुनः एक बार वह  सूना घर  गुंजायमान हो उठा,जो काफ़ी सुकून दे रहा था श्यामा के दिल को। एक मुट्ठी अनाज का दाना लाकर श्यामा ने बड़े प्यार से बिखेर दिया। श्यामा फिर से एक बार नये मेहमान के आगमन की प्रतीक्षा में मन- ही- मन खुश हो रही थीं।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
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लघुकथा - 16                                                               
कृतज्ञ  आंखें
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कुछ दिनो से टफी (कुतिया) बहुत बीमार थी।आज तबीयत बहुत बिगड़ गई । सुबह से अपने बच्चों (पिल्लों)को दूध भी नहीं पिलाया । उसके देने पर बच्चों ने मुंह तक नहीं लगाया उसे फौरन अस्पताल ले जाना पड़ेगा । जैसे ही वह तैयार हुई बहू भड़क कर लड़ने लगी साथ में बेटा भी लड़ने लगा । मां तुम्हे रिटायर हुए दो महीने हो गए ।घर खर्च में पैसे कम देती हो और सारा पैसा अपने पाले कुत्ते कबूतरों पर खर्च करती हो अब ऐसा नहीं चलेगा ।मां ने गुहार लगाई पर वे न माने कहने लगे इनका क्या है ये तो जानवर है क्या फर्क पड़ता है मरे या जिए।हम घर छोड़कर चले जाएंगे मां फैसला सुन रोते हुए बाहर आई।टफी की हालत बहुत खराब थी । उसने नज़र उठाकर मालकिन को देखा ।वह सह न पाई भीतर से गाड़ी की चाबी लाई उसे उठा गाड़ी में बैठाया और मन ही मन सोचा पति के मरने के बाद इन्हें पाल-पोस कर बड़ा किया जिम्मेदारियां पूरी की ।ये मुझे आंख दिखा रहे हैं।इतनी जायदाद है लालची कहां छोड़कर जाएंगे और जाते हैं तो जाए मेरे दु:ख सुख में सदा टफी मेरे साथ थी मेरी रक्षा की ।आज इसे मेरी जरूरत है । इसके बच्चों के लिए परेशान होगी । मैं भी एक मां हूं और यह भी।अस्पताल आ गया । डॉक्टर ने दवाई दी । कुछ दिन में ठीक हो गई और बच्चों को दूध पिलाते हुए इस तरह से मालकिन को देखा मानो कृतज्ञ आंखें धन्यवाद कह रही हो और सीमा उसके सिर पर हाथ फेरते हुए, भाव विह्वल हो आंखों से आंसू बहने लगे।उसी समय मुंडेर पर कबूतरों नें गुटूर गूं की मानो कह रहे हो मानवता अभी जिंदा है।
- संगीता शर्मा
हैदराबाद - तैलंगाना
=====================================लघुकथा - 17                                                         

           संघर्ष की जीत 
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            मकड़ी के जाले में मच्छर फँस चुका था। मकड़ी बहुत खुश थी। सोच रही थी, "आज तो मेरी दावत हो गयी। इस मच्छर के खून में विभिन्न रसों का आस्वादन होगा, क्योंकि इस मच्छर ने नेताओं से लेकर सैनिकों, भ्रष्टाचार के इंसानी पुतलों के साथ-साथ कोमलांगी औरतों और मासूम बच्चों सभी का खून चूसा है। इन सभी प्रकार के खून का मिश्रण किसी उम्दा काॅकटेल से कम न होगा।"
        उधर मच्छर मकड़ी के जाल से छूटने के लिए जी तोड़ संघर्ष कर रहा था। उसने सोचा... "अब तो मरना निश्चित ही है, तो क्यों न प्रयास कर लूँ। वैसे भी खून चूसते वक्त मनुष्यों से सुना था कि निरंतर प्रयास करते रहने से सफलता अवश्य मिलती है।" अंततः मच्छर के संघर्ष की जीत हुई।
           - गीता चौबे "गूँज"
             राँची - झारखंड
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लघुकथा - 18                                                          
              दंड              
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   एक टपरेनुमा चाय की दुकान के एक कोने में एक कुत्ता लेटा हुआ था। 
     एक व्यक्ति वहाँ आया और वहीं पास की एक टेबिल पर अपना बैग रखकर कुर्सी पर बैठते   हुए दुकानदार से एक कप चाय भिजवाने का इशारा किया।
     तभी उसकी नजर उस कुत्ते पर गई। उसे जाने क्या सूझा, वह उठा और वहीं पास में पड़े एक पत्थर को उठाकर उस कुत्ते पर मारा। कुत्ता गहरी नींद में था। एकाएक हुए हमले से घबरा गया। पत्थर उसके पैर में बहुत तेजी से लगा। वह तिलमिला गया और चीखते हुए वहाँ से दूर जाकर बैठ गया।
   उस व्यक्ति ने चाय पी और बिल चुकाने दुकानदार के पास गया। वह रुपए दे ही रहा था कि उसकी नजर अपने बैग पर पड़ी। एक चोर उसे उठाकर भाग रहा था। वह पकड़ो-पकड़ो कहकर चोर के पीछे भागा। शोर-शराबा सुनकर वह कुत्ता भी भोंकता हुआ उस चोर के पीछे दौड़ा, किंतु  वह उसी व्यक्ति के द्वारा मारे गए पत्थर से  पैर में लगी  चोट से लंगड़ाने की वजह से आगे नहीं दौड़ पाया और चोर भाग गया।
उस व्यक्ति को अब समझ में आया कि बेवजह कुत्ते को पत्थर मारने का उसे कितना बड़ा दंड मिला है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
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लघुकथा - 19                                                        

एक नई सोच
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ठंड की रात थी। बारिश भी हो रही थी। बाहर बिल्ली रो रही थी। मेरा सात वर्षीय बेटा मेरे पास ही लेटा हुआ था। अक्सर जब कभी भी बिल्ली या कुत्ता रात के समय रोते हैं, तो लोग डर जाते हैं कि कुछ अपशगुन होगा, और उन्हें डंडा या पत्थर मारकर भगा देते हैं। 
बेटा बोला, “पापा बाहर बिल्ली रो रही है, उसे भगाइए।” 
मैंने कहा, “रो रही है तो क्या हुआ बेटा?” 
वह बोला, “पापा सब कहते हैं कि बिल्ली का रोना ठीक नहीं होता। मुझे डर लग रहा है। बस आप उसे भगाइए।” 
मैंने कहा, “बेटा, यह जरूरी नहीं होता कि बिल्ली रोए तो कुछ बुरा ही होता है। बाहर बारिश हो रही है और ठंड भी बहुत है। हो सकता है कि बिल्ली बारिश में भीग रही हो और उसे ठंड भी लग रही हो। पता नहीं उसने कुछ खाया भी है या नहीं?” 
बेटा बोला, “हां पापा, यह बात तो मैंने सोची ही नहीं।” 
मैंने देखा कि वह अब डर नहीं रहा था। कुछ देर बाद वह उठा और बोला, “पापा, हम बिल्ली को अपने बरामदे में बुलाकर उसे कुछ खाने को नहीं दे सकते क्या?” 
“पता नहीं बिल्ली आए या ना आए, पर चलो रख देते हैं कुछ खाने को।” मैं यह कहता हुआ उठ खड़ा हुआ। बेटा भी पीछे पीछे चल दिया। 
...उसका डर दूर हो चुका था और एक नई सोच जन्म ले चुकी थी...।
- विजय कुमार
अम्बाला छावनी- हरियाणा
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लघुकथा -20                                                         

      बकरे की मां    
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नन्हें इकबाल के यहां बकरी ने जब दो मेमनों को जन्म दिया तब परिवार के सभी सदस्य खुशी से झूम उठे। अम्मी-अब्बा, रूखसाना, चाचा-चाची सभी । इकबाल को इन सबकी ख़ुशी का कारण समझ में नहीं आ रहा था । उसे तो बस मेमनों के रूप में दोस्त दिखाई दे रहे थे, जो उसे प्यार से मिट्टी मारेंगे, गुदगुदाएंगे । वह उनके साथ खेलेगा और बहुत मजा आएगा । प्यारे-प्यारे सफेद रंग के मेमने और एक मेमने के माथे पर काले रंग के टीके के साथ अल्ला का फजल मिला था । वह लगातार बकरी और मेमनों की गतिविधियां देख रहा था अचानक उसका ध्यान बकरी की आंखों की ओर गया । उसे लगा बकरी की आंखें भिगी हुई है । उसने बकरी के और पास जाकर देखा- "अरे, बकरी तो रो रही है ।" उससे रहा नहीं गया वह दौड़ा-दौड़ा दादाजान के पास पहुंचा और अपनी बात उनके सामने रखी -" दादाजान, मेमनों को दुलारते हुए बकरी क्यों रो रही है ।" दादाजान अपने पोते के प्रश्न से अचंभित हुए पर वास्तविक स्थिति छुपाते हुए उन्होंने कहा-"शायद बकरी के आंख में कुछ लग गया होगा ।" 
"नहीं दादाजान, मैं तो वहीं था ।  उसे लगता तो मुझे भी दिखाई देता ।" इकबाल अपनी बात पर अड़ा हुआ था । " एक बात और बताईए दादाजान, मेमनों के पैदा होने पर सभी लोग खुश क्यों हो रहे थे ?"
दादाजान ने एक ठंडी आह लेकर अपने पोते को समझाया -"बेटा, ये सभी मेमनों के आ जाने से बकरा ईद पर बकरे खरीदने की समस्या से निजात पा गए और हां बेटा, जहां तक बकरी के रोने की बात है तो यह कहावत मशहूर है कि बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी । इसलिए वह उनकी सलामती की दुआ में आंसू बहा रही है ।"
"दादाजान, मैंने जबसे इन मेमनों को देखा है मैं तो उन्हें अपना दोस्त मान चुका हूं । मैं उन्हें इन सबसे दूर रखूंगा और कोई इन्हें मारने ले जाएगा तो बोलूंगा " पहले मेरी गर्दन उतारो, फिर मेरे दोस्तों की उतारना ।" यह कहते हुए मासूम इकबाल फफक-फफक कर रोने लगा । उसका रोना सुन परिवार के सभी सदस्य उसे चुप कराने लगे । दादाजान ने जब उसके रोने का कारण सबको बताया तो सभी ने एक स्वर में कहा- " हम सभी इकबाल के दोस्त मेमनों को बकरा ईद का बकरा नहीं बनाएंंगे।              
- मनोज सेवलकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
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लघुकथा - 21                                                          

अंतर के स्वर
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दरख्त बोला सुनो सुनो कुदरत मैं कुछ कहना चाहता हूँ ।
" ये जो कुल्हाड़ियाँ है किसी के सिर पर छांव नहीं कर सकतीहै।" 
" हे मानव बीज बोओ एक पेड़ उगाओ कुदरत ने कहा । " 
" ये  चेहरों से उदासियाँ पोंछ दो क्योंकि जिन्दगी के पास और भी रंग है । "
"  कुदरत ने रास्ते की मिट्टी से और धूप ने भी हवा और बारिश रास्तों से भी बहुत कुछ कहा है ।"
दरख्त बोला :- लेकिन कुदरत कहने से पहले मैं बस इतना कहना चाहती हूँ । 
"  हम सब जिस मानव के जीवन का अनमोल हिस्सा हैं उसे तो हमारी  फिक्र ही नहीं है ।"
 सुनो  !  मैं नदी प्रेम चाहती हूँ निर्मल होना चाहती हूँ गंदगी की सड़न से मेरा दम घुटता है जो मानव तुम ने रसायन धकेला है  मुँह में आवाज भी उठा नहीं सकती  ।
नदी बोली  : - सुनों शिखर तुम ऊँचाई पर हो  मेरे मुहाने पर खड़े हो तुम्हारी क्या  आस है ।
नदी तुम तो चलायमान हो । लेकिन मै तो अचल हूँ । हरित तृणों से विहीन हूँ । 
शिखर !  मैदानों में खड़े-खड़े सफलता का सफर तय नहीं होगा । जब तक कोई आकर तुम पर बीज ना बिखरा दे ।लेकिन उसके  लिए उसे चलना होगा। 
" आसमान में ऊँची उड़ान भरने के लिए परो में हवा भरनी होगी इसके बिना  उड़ान संभव नहीं है । "
पंछी बोला :-  सुनों मेरी आजादी में ही जीवन गीत सुहाने और आजाद परों की फड़फड़ाहट छिपी होती है।
 " मेरे परों में बीज सुरक्षित है , मैं मानव की कैद मै हूँ। "
"  सामने मैदान में घूमते चोपायों ने कुदरत से कहा हमारे तुम्हारे बीच इंसानियत का रिश्ता है।"
"  बस उसे कायम रहने दो ।"
"  हम और तुम कुछ न  कुछ इस मानव को देते है। वो सिर्फ मिटाने में माहिर हैं। "
" तभी मानव के कोनों में घंटी के स्वर गुंजने लगे अगर मोती  पाना है तो छलागं लगादो गहरे समुद्र की तलहटी में । नीद खुली तो मानव को अपनी गल्ती का ऐहसास हुआ। 
"  कुदरत  ठीक कहती है । "
मेरा मुझमें कुछ नहींजो कछु है सो तोह, 
 तेरा तुझको को सौंपता  क्या लागे मोह ...........
- अर्विना गहलोत
 ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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लघुकथा - 22                                                            

अबोध प्रेम
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आज नवनीत जी की तेरहवीं में ब्रह्म भोज में ब्राह्मणों के पश्चात जब पंगत बैठने लगी तो सभी आश्चर्य से देखने लगे कि पंगत से कुछ दूरी पर घर के आँगन में विशेष पंगत लगी थी जिसमें कुत्तों को भोजन परोसा जा रहा था|
"ये सब क्या है ?" गाँव से आये मामाजी ने नवनीत जी के बेटे से पूछा|
"मामाजी ये हमारे पास- पडोस के कुत्तें हैं और पापा के सच्चे साथी, जिन्होंने माँ के जाने के बाद उन्हें अवसाद में जाने से बचाया|"
"मतलब|"
"आपको पता है, इनके और पापा के बीच के रिश्ताl पापा इन्हें खिलाये बगैर नहीं खाते थे, इनसे बतियाते थे, इनमें से कोई बीमार हो जाता था तो डॉक्टर के पास  ले जाते थे और जब पापा बीमार पड़े तो हर समय उनके कमरे के बाहर दरवाजे पर इनमें से दो कुत्ते हमेशा बैठे रहते थे जैसे अपनी ड्यूटी स्वयं ही बाँध रखी हो|"
"तो क्या जीजाजी जब फोन पर मुझसे अपने दोस्तों के विषय में बात करते थे, तो इनके बारे में ही बात करते थे|"
"हाँ मामाजी, और पापा के जाने के बाद इन सबकी आँखों से दुःख के आँसू गिरते देख मेरा दुःख बँट गयाl उसी दिन ये मेरे सम्बन्धी बन गये|"
- सावित्री कुमार 
देहरादून - उत्तराखंड 
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लघुकथा - 23                                                            

पुनर्वास
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आज मार्ग चौडी़करण के लिए बहुत से पेड़ काट दिये गए थे पक्षियों द्वारा कोई प्रतिरोध भी नहीं!वैसे भी उन्हें बेदखल करने के नोटिस की भी जरूरत नहीं और वे अपने आशियानों की रखवाली के लिए  तैनात भी नहीं रहे, वह बरगद का पेड़ भी काट दिया गया, जिसपर असंख्य परिंदे अपना आशियाना बनाए हुए थे।साथ ही आसपास बस गई झोपड़ियों,कच्चे-पक्के मकानों और गुमटियों को भी बेदर्दी से बुल्डोजर, घन-हथोड़ी की सहायता से असंख्य पुलिस बल तैनात कर प्रतिरोध के बावजूद नेस्तानाबूद कर दिया गया।
संध्याकाल में जब परिंदे वापस लौटे और ठूंठ हो चुके पेड़, उजड़े आशियानों को देखकर असमंजस में थे तो दूर कहीं से आए पक्षियों के झुंड उन्हें अपने साथ लेकर चल दिए उनके पुनर्वास के लिए और अपने ठिकानों वाले पेड़ों पर पनाह दे दी।इधर झुग्गी -झोपड़ी,कच्चे-पक्के मकानों मे रहने वालों और गुमटियों में धंधा करने वालों के बीच कोहराम मचा हुआ था,दुख-दर्द, आँसू और बेबसी थी,लोग उनके साथ हुए अन्याय का मोबाइल पर वीडियो बनाने में व्यस्त थे तो कुछ लोग सोशल मीडिया पर उनका दुख दर्द बांटने में तल्लीन थे।कुछ विरोध पक्ष के लोग उनके पुनर्वास हेतु सत्ता पक्ष और प्रशासन के खिलाफ नारे भी लगा रहे थे।
- डॉ प्रदीप उपाध्याय
देवास - मध्यप्रदेश
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लघुकथा - 24                                                             

ततैया का घर
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    "सुनो जी,ये जो छत के कोने में जो ततैयों ने अपना घर बना लिया है,उसको हटा देना चाहिए न ?"
    "हां बिलकुल"
    "पर क्या पाप नहीं लगेगा ?"
  " कैसा पाप?अरे घर तो हमारा है।ततैयों ने तो ज़बरदस्ती अतिक्रमण कर रखा है ।"
     "तो,तो हम उनके घर को संडे को हटा देते हैं।"
     "ठीक है "
   और वर्मा जी ने संडे को एक लकड़ी के सिरे में केरोसीन से भीगा कपड़ा बांधकर,उसमें आग लगाकर ततैयों के छत्ते को जला दिया ।कुछ ततैयां जल गईं,और कुछ बचकर भाग निकली थीं ।इस बात को दो साल बीत गए हैं। परिदृश्य बदलता है ,और वर्मा जी से आकर एक सरकारी कर्मचारी मिलता है।
         "वर्माजी,आपका यह मकान सरकारी ज़मीन पर बना है,इसे एक सप्ताह में आप हटा दीजिए,नहीं तो इसे नगर निगम का बुल्डोजर आकर गिरा देगा ।यह लीजिए नोटिस ।"
"पर,मैंने तो इसे बिल्डर से ख़रीदा है ।"
"उसने आपको धोखा किया।उसने इसे ग़ैर कानूनी तरीके से बनाया था।यह तो सरकारी ज़मीन है ।
     वर्मा जी ने बहुत भागदौड़ की,अदालत गया,अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाया,पर कुछ न हुआ,और मियाद ख़त्म होते ही सरकारी बुल्डोजर ने आकरउसका मकान गिरा दिया ।वह रो-पीटकर चुप हो गया।
       सरकारी बुलडोजर तो अपना काम करके चला गया था,पर वर्माजी व उनकी पूरी फेमिली अपने टूटे फूटे मकान के अवशेष के पास आ-आकर कई दिनों तक रोते बिलखते रहे थे ।वर्मा जी,दो साल पुरानी यादों में पहुंच गए,जब उनके व्दारा ततैयों के घर को उजाड़ देने के बाद ततैयां किस तरह से बदहवास होकर उस उजड़े के चारों ओर चक्कर लगाती रही थीं ।
      वर्मा जी,आज ततैयों के दर्द को ,अपन दरद मानकर शिद्दत के साथ महसूस कर रहे थे,और अपने को अक्ष्म्य अपराधी मान रहे थे।
                 --प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे
                          मंडला - मध्यप्रदेश
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लघुकथा - 25                                                           

आत्मग्लानि
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घनघोर काले बादल छाए हैं बारिश भी अनवरत पिछले आठ दिनों से जोरों की आ रही है !चिड़िया उड़ नहीं पा रही है धीरे-धीरे उड़ती है फिर विश्राम लेने किसी टहनी पर या किसी छत पर बैठ जाती है ! पेट से जो है  !  पति कहता है जल्दी चलो घर जाकर देखना है अपना डेरा इस बारिश में है या ...... पति चिंता में है किंतु चिड़िया पूरे दिन से है अतः दर्द से कराह भी रही है ! पास खड़ी भैसी जो उसकी पीड़ा को समझ रही थी ,उसने भी तो यह दर्द झेला है तुरंत आकर कहती है तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ मैं तुम्हें सुरक्षित जगह पर ले जाती हूं  ! चिड़ा और चिड़िया दोनों उसकी पीठ पर बैठ जाते हैं किंतु दर्द असहनीय होने से भैसी उसे एक पुआल में ले जाती है जहां घास -फूस और सुखा  पैरा था! चिड़िया वहां भैंस की पीठ से उतरती है ! चिड़ा जल्दी-जल्दी तिनका चुनकर घोसले का आकार देने की कोशिश करता है ! चिड़िया तात्कालिक बने घोसले में बैठ शांति की श्वास लेती है और कुछ ही समय में 2 अंडे को जन्म देती है !  चिड़ा उस भैंसी का बहुत-बहुत आभार करता है ! भैसी अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली समझती है कि ईश्वर की कृपा से मैं यह नेक काम कर सकी किंतु चिड़िया जो सदा भैसी के रंग रूप को देख हंसती थी आज आत्मग्लानि से भरी उसकी आंखों से आए आंसू ने काले रंगों को धो दिया आज उसे भैसी सबसे सुंदर लग रही थी !
 - चंद्रिका व्यास 
 मुंबई - महाराष्ट्र
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लघुकथा - 26                                                           

पैंतरा
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            किसी जलाशय में कई मछलियाँ रहती थीं . आकार तो तकरीबन  एक पर रंग सबके अलग-अलग थे. बुद्धिजीवी, सरल, ईमानदार, चालाक. केवल एक ऐसी थी जो अपने धूर्तरंग के कारण "बड़ी" के नाम से जानी जाती थी. शेष सब छोटी कहलाती थीं.
          बड़ी मछली की केंद्र के सभी जलाशयों में अच्छी पकड़ थी और वहाँ के मछुवारों से अच्छी जान- पहचान,  तो उसकी चलती भी खूब थी. एकाध बार कई छोटी मछलियों ने रंग बदलना चाहा परंतु मुँह की खानी पड़ी. कभी-कभी रातों रात केंद्र के मछुवारों के हवाले भी कर दी जातीं . 'छोटी ' सभी परेशान.  'बड़ी'का भय व्याप्त था. कई बार छोटी मछलियों ने समझौता करना चाहा, पर बड़ी ने उन्हें अपने ग्रुप में शामिल नहीं किया. छोटी मछलियों ने , 'यूनियन' भी बनायी लेकिन बड़ी हर बार ऐसी चाल खेलती कि फूट पड़ जाती .
         इसी समय पेपर में ख़बर छपी. अन्तर्राष्ट्रीय जलाशय हेतु भारत से एक मछली प्रतिनिधि के रूप में विदेश भेजी जायेगी. बड़ी की सरगर्मी तेज हो गई. तालाब से मछलियाँ इन दिनों ज्यादा ही गायब होने लगी. अंत में केंद्र से बड़ी मछली का नाम प्रस्तावित हो गया.
        अख़बार में यह खबर पढ़कर बुद्धिजीवी बेचैन हो गई. दिमाग दौड़ाया. छोटी मछलियों के हित हेतु गोष्ठी का आयोजन किया. अंततः तय हुआ कि जितनी इस जलाशय में बची हैं उनका एक प्रतिनिधि चुना जाये, तभी बात केंद्र तक पहुँच सकती है. बुद्धिजीवी ने विपक्ष का कार्यभार संभाल लिया. सबूत इकट्ठे किये . बड़ी मछली के ख़िलाफ़ रोज छपने लगा . बड़ी बेहद परेशान . कहीं ऐसा ना हो "विदेश" जाने से पहले ही उसके व्यक्तित्व में कोई धब्बा लग जाये. छोटी की नेता बाजी मार ले जाये तब.........
        विषय गंभीर था. बड़ी ने केंद्र में बात की. पकड़ का फायदा उठाया. समझौता हो गया.
        लोगों ने पेपर में पढ़ा......     
" बड़ी मछली के साथ सहायक प्रतिनिधि का पद संभालने हेतु छोटी मछली विदेश रवाना."
         विमान में  दोनों मन ही मन खुश हो रही थीं. 
- अर्चना मिश्र
 भोपाल  - मध्य प्रदेश   
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लघुकथा - 27                                                         

 लक्की 
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मुझे  बचपन से ही जानवरों से बहुत प्यार था |और मेरी  इच्छा थी कि घर में किसी  पालतू जानवर को रखा जाए |शहरों में गाय इत्यादि रखने की अनुमति  नहीं होती  थी |इसलिए मैने सोचा कि मैं  कोई सुंदर सा, प्यारा सा पप्पी  लेकर आऊंगी| और कुछ दिन बाद मैं अपनी सहेली के घर से  चार  महीने का जैकी लेकर आई |लेकिन मैंने  उसका नाम लक्की रखा  |लक्की   बड़ा हुआ और सब को पहचानने लगा |जब भी समय मिलता मैं   उसके साथ जरूर खेलती  |वह पामेरियन था | चुस्ती  और स्फूर्ति में सबसे आगे था|गार्डन में आम के पेड़ होने की वजह से बहुत सी गिलहरियां वहां पर आकर उछल कूद मचाया  करती  थीं  |उन्हें देखकर वह भी खूब उछल कूद मचाता था |और उनके साथ खेलता था |घर में किसी को भी उदास नहीं होने देता था |जब भी कोई उदास होता उसके पास जाकर बैठ जाता और कूं -कूं  करने लगता | एक बार जब मैं   लॉन  में बैठी किसी बात को याद करके कुछ उदास थी  और आंखों में आंसू  थे| वह भागता हुआ आया और अपने दोनों पैर मेरे  घुटनों पर रखकर कूं -कूं  करके  सहलाने लगा| मेरी  उदासी न जाने कहां चली गई ?यह देखकर मेरा हृदय गदगद हो गया |अब मेरी  आंखों में खुशी के आंसू थे |मैं  न जाने किस अनजाने लोक से जुड़ गई थी | शायद जानवर जितना प्रेम को समझते हैं उतना मनुष्य आज तक नहीं समझ पाया | ऐसा कई बार हुआ , मैं जब भी कभी जरा सा  भी उदास होती |वह मेरे पास  कूं -कूं  करते हुए आता |मैं  उसके सिर पर हाथ फेर देती  तो वह   आश्वस्त हो जाता और आराम से मेरे   पास बैठ जाता |
एक बार शहर में एक ऐसा गिरोह आया था|  वे लोग अपने शरीर पर तेल लगाकर लोगों के घरों में चोरी करते  थे   |घर के पीछे ही एक  फुटपाथ था लेकिन  वहां कम ही लोग  उधर से निकलते  थे  |एक रात वहां पीछे ऐसे ही कुछ लोग आए |तब  लक्की  जोर -जोर से भौंकने लगा ,तो पता चला जरूर कोई पीछे फुटपाथ पर खड़ा है | छत पर चढ़कर देखा तो उनका शरीर लाइट में खूब चमक रहा था |लक्की ने  इतनी  ऊंची छलांग लगाई कि लगभग दीवार की ऊंचाई तक पहुंच ही गया था| उसे देखकर  चोर भाग गए |आज भी अगर उस घटना के विषय में सोचती हूं तो मन भयभीत हो जाता है|
| एक हैरानी की बात यह थी कि वह कभी बीमार नहीं पड़ा  बेशक  वह चौदह  वर्ष  का हो गया था  | बुढ़ापा  घेरने लगा था | फिर भी ठीक था | लेकिन एक दिन मुझे  लगा कि वह कुछ अस्वस्थ सा है |कुछ सुस्त  सा लग रहा था |मैंने  उसे बहुत बुलाया लेकिन वहअपनी निरीह दृष्टि से  बस मुझे  देखता रहा|मानो अपने हृदय की पीड़ा को कहना चाह रहा हो |वह  ऊपर देखता और फिर नीचे अपना सिर अपने बिस्तर पर रख देता |उस दिन उसने कुछ नहीं खाया | उसका पेट फ़ूला हुआ सा लग रहा था
उसे डॉक्टर के पास ले गए |उसने इंजेक्शन लगाया और वापिस भेज दिया लेकिन उसमें कोई सुधार दिखाई नहीं पड़ रहा था |तो फिर ले गए लेकिन किसी भी दवाई से उसे कोई फर्क नहीं पड़ा |उदास नजरों से हम सबको देख रहा था | उसने सदा हमारी पीड़ा को अपने प्रेम से दूर किया लेकिन हम उसके दुख को दूर नहीं कर पा रहे थे| अब उसकी निगाहों में मायूसी थी ,पीड़ा थी और कुछ भी न कर सकने का दुख |
उन दिनों  मेरा  बड़ा बेटा नीरज  दिल्ली में  था |वह भी लक्की  को बहुत प्यार करता था |मैंने  अपने बेटे को फोन किया और लक्की   के बारे में बताया | बेटे  ने  बस पकड़ी और चार  घंटे में घर पहुंच गया |
उसे देखते ही लक्की ने  सिर उठाया |उसकी आंखों में आंसू थे | उसे इस हालत में देखकर  हम सब की आँखों से आंसू   बह रहे थे  क्योंकि अब यह पता लग गया था कि वह जाने वाला है|जैसे ही बेटे नीरज ने उसे उठाया  |एक हल्की सी को कूं -कूं के  साथ उसने अपने प्राण त्याग दिए | सब  यह सोच कर रो रहे थे, कि उसके प्राण न जाने कहां अटके हुए थे |शायद उसे नीरज की प्रतीक्षा थी |
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
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लघुकथा - 28                                                         

ममता
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      माँ और अप्पा सुबह ही किसी आवश्यक कार्य से शहर से बाहर गये हुए थे। घर पर रचित और रचना थे।
       अच्छे-भले दोनों मिल कर लूडो खेल रहे थे। न जाने किस बात पर दोनों भाई-बहन ऐसे भिड़े कि मार-पीट भी कर बैठे।
        दोनों बाहर बरामदे में आकर बैठ गये। बातचीत करने का तो प्रश्न ही नहीं था।
         घर का डॉगी चुपचाप देख रहा था। उसे लग रहा था कोई बात अवश्य है, तभी तो वे न उसे पुचकार रहे हैं, न उसके साथ कोई सेल्फी ले रहे हैं।
         वह उठा और उसे दी गयी रोटी के दो टुकड़े मुँह में दबा कर लाया और दोनों की गोदी में एक-एक टुकड़ा रख, दोनों के बीच में उनसे लग कर बैठ गया।
         उसके इस माँ के ममता जैसे भाव को देख दोनों को हँसी आ गई। मोबाइल से वे उसके साथ सेल्फी लेने लगे। उसकी लगातार हिलती पूँछ उसके हर्ष को व्यक्त कर रही थी।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड 
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लघुकथा - 29                                                      

       वफादार मिट्ठू       
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बात पुरानी है,तब की जब हमलोग बोकारो थर्मल पावर स्टेशन में रहा करते थे।बच्चे बहुत छोटे थे।एक दिन एक बहेलिए ने छोटे से पिंजरे में बिल्कुल दुधमुँहे से तोते को लेकर बेचने आया।मुझे और मेरे बच्चों के मन भा गया और हमने फौरन उसे खरीद लिया।
फिर क्या था वह सबका खिलौना बन गया।हमने नाम दिया मिट्ठू।
देखते ही देखते वह घर का सदस्य हो गया।धीरे-धीरे वह बोलना भी सीख गया।हम जो कहते वो सब की नकल उतारता था।बच्चे माँ कहते तो वो भी माँ कहता।मेरी आदत है,जब कोई दरवाजे का बेल बजाता तो मैं पहले पूछती हूँ कि "कौन है"तो वह पीछे से जरूर दोहराता कि "कौन है"।हम इस बात को खूब मजे में लेते थे।
एक बार हमसब का राँची जाने का प्रोग्राम बना।ट्रेन सुबह साढ़े नौ बजे की थी।हम जब भी कहीं जाते तो मिट्ठू घर में ही रहता था और "संतोष", मेरे पति के ऑफिस का  चपरासी जो उन्हीं के गाँव का था वही उसकी देखभाल करता था।उस दिन भी हमने उसे ही घर 
की चाभी दी और मिट्ठू के लिए और घर की देखभाल की ताकीद कर निकल गए।
पर यह क्या दूसरे ही दिन उसका फोन आया कि "आपलोग आ जाइए,घर में चोरी हो गई"।सुनते ही हमारे तो होश ही उड़ गए।आनन-फानन जो सवारी मिली उससे ही निकल गए।फिर भी घर पहुचने में शाम हो गई।
घर पहुंचे तो देखा सन्तोष बाहर ही खड़ा था।हमें देखते ही दौड़ कर पास आया और घटना बताने लगा।मैं तो कुछ न सुन सकी।भागते हुए घर के अंदर गई।एक-एक कर सब कमरे देखने लगी।पर यह क्या सबकुछ बिल्कुल वैसा ही था जैसा मैं छोड़ गई थी।मेरी कल्पना में तो घर अस्त-व्यस्त था,अलमारियाँ खुली,चीज़ सामान इधर-उधर बिखरे पड़े थे।पर वास्तविकता में ऐसा कुछ नहीं हुआ था।मैं आवाक थी।चोर घर में आए और कुछ न चुराए ऐसा कैसे हो सकता है।मेरे आश्चर्य का ठिकाना न था।
पर संतोष ने जो बताया वह उससे भी बड़े आश्चर्य की बात थी।
उसने बताया कि--
वह मिठू को नहला-धुला, उसका पिंजरा साफ कर,और उसे खाना दे  निकल गया।लगभग तीन घँटे के बाद हमारे पड़ोसी वर्मा जी ने सन्तोष को फोन कर बुलाया।
घर आने पर वर्मा जी ने उसे बताया कि मिठू लगातार "कौन है","कौन है"की रट लगाए हुए था जिसे सुन वो घर आए तो देखा कि ताला टूटा हुआ है।वह घबरा कर घर के अंदर गए पर वहाँ कोई भी नहीं था।उन्होंने मिठू को शांत किया और संतोष को बुलाया। शायद मिठू के पुकारने से चोरों ने समझा होगा कि घर में कोई है,और वो उल्टे पैर भाग खड़े हुए होंगे।बात जो भी हो पर मैं तो यही मानती हूँ कि उसने हमारे घर की रक्षा की।
मन उद्विग्न हो गया।एक पक्षी में भी कितनी सम्वेदनाएँ होती हैं सोच मन भर आया और मैं रो पड़ी।दौड़ कर मिठू के पास गई और उसे पिंजरे से निकाल प्यार करने लगी।वह भी मुझे देख  "माँ"-"माँ"पुकारने लगा।शायद उसके भी आँखो से आँसू बह रहे थे,खुशी के।
- मधुलिका सिन्हा
रांची - झारखण्ड
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लघुकथा - 30                                                         
जँजीर की  विवशता
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पहले कुत्ते ने दूसरे कुते की तरफ देख कर कहा,-"यार,इस तरह दूसरों की जंजीर मे बंध कर अपना जीवन क्योँ बरबाद कर रहे हो?मेरी तरह आजाद रहो...कब तक अपनी वफादारी दूसरो के टुकड़ों पर बेचते रहोगे?"
दूसरा कुत्ता बोला-"पार्टनर, मैं तो अपने मालिक को छोडना चाह रहा हूं, पर मालिक ही मुझे नहीं छोडता।कल कह रहा था,अब तुम ट्रैंड हो गये हो...याद है न तुम्हें, मैंने जिन लोगो की लिस्ट तुम्हें दी है,उन पर तुम्हें मुझसे पूछे बिना ही भौंकना है।"
पहला कुत्ता फिर बोला,"यानि कि तुम आदमी के ईशारों पर जी रहे हो?भौंकना तो हमारा जातीय संस्कार है बास....लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि आदमी हमेँ सिखाये कि हमे किस पर भौंकना है।"
दूसरा कुत्ता संयत स्वर मे बोला,"सही कहते हो भाई....जंजीर की विवशता वही समझ सकता है,जिसके गले मे जंँजीर होती है।अपने मालिक की रोटी पर पलने पर भी मैं तुम पर भौंक नहीं रहा हूं, यही क्या कम है।"
- महेश राज 
महासमुंद - छत्तीसगढ़
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लघुकथा -31                                                           

साझेदार
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"हेलो, मेरे दोस्त बनोगे?"-एक छोटे बच्चे ने दूसरे छोटे बच्चे से पूछा।
"दोस्त???"-दुसरे ने प्रतिप्रश्न किया।
-"हाँ...मेरे दोस्त बन जाओ, फिर हम खुब खेलेंगे।"
-"नहीं, नहीं ! मुझे किसी से दोस्ती नहीं करनी...लोग पहले दोस्ती करते हैं,फिर धोखा दे देते हैं।"
-"पर तुम मुझ पर भरोसा कर सकते हो।"
"भरोसा?? नफ़रत है मुझे भरोसा शब्द से !!"- दुसरा छोटा बच्चा ऐसे चीखा जैसे कानों में किसी ने गरम सीसा उड़ेल दिया हो !
-"क्यों? ऐसा क्या हुआ तुम्हारे साथ??"
"लोग पहले दोस्ती करते हैं फिर धोखे से खाने में विस्फोटक सामग्री मिलाकर खिला देते हैं!
मेरी मम्मा के साथ ऐसा ही किया था किसी ने, उनका जबड़ा फट गया था पर भगवान का शुक्रिया जो वो बच गयी।
मैं मेरी मम्मा के पेट में ही था तब...मैंने सब देखा, उस जलन और दर्द को महसूस किया जो मेरी माँ ने सहन किया था।"- नफ़रत,आक्रोश और दर्द के मिले-जुले स्वर में बच्चे ने जवाब दिया।
"अच्छा ! फिर तो तुम और तुम्हारी मम्मी दोनों बहुत खुशकिस्मत हो जो बच गए।
हमारे साथ भी बिल्कुल ऐसी ही दुर्घटना हुई थी। मेरी माँ तीन दिन तक अपनी और मेरी जिन्दगी बचाने के लिए संघर्ष करती रही ।
मैंने भी तुम्हारी ही तरह सब देखा,  हमने भी उसी जलन और दर्द को भोगा जिसे तुमने और तुम्हारी मम्मी ने सहन किया था पर अफ़सोस ! हमारी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी...
नदी का शीतल जल भी उस भयंकर, भयावह दाह को मिटा नहीं पाया, मौत की गोद में पहुँच कर ही चैन मिला हमें !"
"तुम भूत हो !!"-घबराये स्वर में दूसरा बच्चा बोला।
"हाँ, पर तुम मुझसे डरो मत...मैं दो पैरों वाला जानवर नहीं तुम्हारी ही तरह चार पैरों वाला पशु हूँ जो शक्तिशाली होते हुए भी मात्र अपने मनोरंजन के लिए किसी बेजुबान की जान से नहीं खेलता !!"- दूर किसी गहरे कुएँ से आती हुई, खोई-खोई सी आवाज़ में पहले बच्चे ने जवाब दिया।
- सुषमा सिंह चुण्डावत
उदयपुर - राजस्थान
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लघुकथा -32                                                             

 देशभक्ति 
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पाकिस्तानी बॉर्डर के पास आतंकी हमले में एक जवान बुरी तरह जख्मी हो गया था। अर्धमूर्छित अवस्था में पड़ा हुआ जवान बीच-बीच में  कराह  भी रहा था। तभी एक विदेशी नस्ल का बाज वहां मंडराते हुआ आया और जवान पर टूट पड़ा, उसे अपनी चोंच एवं पंजों से नोंचने लगा। दृश्य इतना भयावह था कि बाज जैसे जवान की आंखें फोड़ उसका सारा मांस नोच लेगा। हमारे देश के पक्षियों ने इस दृश्य को देखा तो वे संकट की घड़ी से जवान को बचाने के लिए जोर-जोर से शोर करते हुए अन्य पक्षियों को बुलाने लगे। देखते-देखते वहां पक्षियों का समूह आ गया, उन्होंने  उस बाज को घेरकर अर्धमूर्छित कर दिया था।  सभी पक्षियों ने जवान के चारों ओर सुरक्षा घेरा बना लिया था। आर्मी के कुछ जवान वहां आ गए थे। जवानों ने देखा कि पक्षियों का समूह जवान की सुरक्षा में तैनात है एवं एक विदेशी नस्ल का  बाज  अर्धमूर्छित पड़ा हुआ है। उनके रोंगटे खड़े हो गए थे प्रकृति का अद्भुत नजारा देखकर। वे सारी स्थिति समझ गए थे। उन्होंने सभी पक्षियों को सलामी दी क्योंकि उन्होंने एक जवान को मरने से बचा लिया था।
- प्रज्ञा गुप्ता 
बाँसवाड़ा - राजस्थान
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लघुकथा -33                                                         

           माता        
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 स्कूल के कराटे ट्रेनर कुछ छोटे लड़के लड़कियों को साथ लेकर एक दूसरे स्कूल में टूर्नामेंट खेलने गए थे. जाते समय स्कूल बस बिल्कुल ठीक थी. लेकिन जब टूर्नामेंट खत्म हुई और सभी बच्चे व ट्रेनर बस तक पहुंचे तो ड्राइवर ने यह कह कर इतिश्री कर दी. कि बस खराब हो गई है, और अभी ठीक होने की संभावना भी नहीं है.अतः आप बच्चों को किसी दूसरे साधन से स्कूल तक ले जाएं. थके हारे बच्चे अपना मुंह लटकाए ट्रेनर सर की ओर देखने लगे. जीत का उत्साह उन्हें जल्दी घर पहुंच कर अपने परिवार के साथ बांटना था. सर उन बच्चों को लेकर पास के बस स्टॉप तक पैदल चलने का आग्रह कर बैठे. सभी  बच्चे के थके कदमों से गले में मेडल डालें बस की ओर चलने लगे.तभी अचानक तेज झमाझम बारिश चालू हो गई. बच्चों ने देखा कि बस स्टॉप के शेड में दो बड़ी गाय खड़ी थी. गाय ने उन बच्चों को अपनी ओर आते देखा तो एक गाय दूसरी गाय से बोली.., "बहन देखो छोटे-छोटे बच्चे आ रहे हैं. और बारिश में भीग चुके हैं. हमें यह शेड उनके लिए खाली कर देना चाहिए. इधर गाय को देख एक बच्चा बोला..., सर बस के शेड में तो गायें खड़ी है, मैं जाकर भगाता हूं, ताकि हमें जगह मिल सके.उसके कहने से पहले ही दोनों गौ माता सड़क पर खड़ी भीगने लगी. सर उन्हें देख सोचने लगे आखिर है तो गौ माता और हर मां अपने बच्चों का ख्याल तो रखती ही हैं।  
           - वंदना पुणतांबेकर 
                इंदौर - मध्यप्रदेश
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लघुकथा -34                                                          
रैनबसेरा  
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          घर के आंगन में फैले घने खारे नीम के पेड़ के नीचे कमली अकेले बैठी हुई थी।चिड़ियों के चहचहाने की आवाज उसे एक तरफ़ सुकून दे रही थी और दूसरी तरफ़ उसके हृदय को वेध रही थी।  
            वर्षों पहले की बात भी उसे कल की सी प्रतीत हो रही थी।ये तब की बात है जब कमली के चारों बच्चे स्कूल जाते थे।एक दिन कमली का बड़ा बेटा राजू और उसके पीछे उसके तीनों छोटे भाई-बहन खारे नीम की एक टहनी लेकर पूरे घर में इधर से उधर हुड़दंग मचाते रहे।कब खारे नीम का एक पत्ता दाल में जा गिरा,इसकी कमली को खबर नहीं हुई।नीम के खारेपन से पूरी की पूरी दाल खारी हो गई।सारी दाल फेंकनी पड़ गई।
              कमली गुस्से से तिलमिला उठी।उसका गुस्सा तब और बढ़ गया जब उसने अपनी सास को बचे हुए चावलों को खारे नीम के पेड़ के नीचे चिड़ियों के लिए रखते हुए देखा।वो जिद कर बैठी,"पहले पेड़ कटवाओ "। 
सास ने समझाया,,
" बहुरिया,यह पेड़ बहुत सारी चिड़ियों का रैनबसेरा है।चिड़ियों का घर मत उजाड़ो।जब मैं इस घर में दुल्हन बन कर आई थी उस वक्त से ये पेड़ यहां पर खड़ा है।इस पेड़ और इसमें निवास करने वाले पक्षियों के कारण घर में बहुत रौनक है "।
              कमली के मन ने जिद ठान ली थी,पेड़ तो कटवाना ही है।सास की बात उसके सर के ऊपर से गुजर गई।दूसरे दिन ही पेड़ कट गया। बस पेड़ की जड़ें बहुत गहरी थी,सो तने का कुछ भाग बचा रह गया।पेड़ कटवा कर कमली का मन शांत हो गया।
             कमली ने महसूस किया पेड़ कटने के बाद सारे दिन सास गुमशुम और उदास रही।जिस नाद में वो चिड़ियों को पानी दिया करती थी,उस नाद को हाथ में लेकर बार-बार सहलाती रहीं। दूसरे दिन खाते समय उन्होंने चावल को हाथ भी नहीं लगाया।दो दिनों बाद अचानक कमली की नजर घर की बाहरी दीवार से टिक कर बैठी हुई अपनी सास पर पड़ी।वो मर चुकी थीं।शायद मरते वक्त उनकी निगाहें पेड़ वाली खाली जगह पर थी। लग रहा था वो चिड़ियों को देखने की कोशिश कर रहीं हों। 
                कमली एकबारगी सहम गई,कहीं चिड़ियों का दर्द तो उन्हें दुनिया से नहीं ले गया।कमली अपने आप को समझाने की सफल कोशिश में जुट गई,"वो वृद्ध हो गई थीं, इसलिए मर गईं। चिड़ियों से उनकी मौत का क्या संबंध "।
                भला वक्त बीतते देर लगती है।चिड़ियों की तरह वक्त भी पंख फैला कर उड़ गया।दोनों बेटियां अपने-अपने ससुराल चली गईं।बेटों की भी शादी हो गई।काम के सिलसिले में दोनों बेटे शहर में रहने लग गये। 
              कमली सारे-सारे दिन अकेली घर पर बैठी रहती।अपने पोते-पोतियों,बच्चों को देखने के लिए उसकी आंखें तरसती रहती।कमली के पास भरा पूरा परिवार था।पर वो अकेली थी। 
               यक-ब-यक कमली की नजर पुराने खारे नीम के पेड़ पर चली गई।जड़ से नहीं कटवाने पर वही पुराना खारा नीम का पेड़ वापस अपने हाथ-पैर फैलाने लग गया था।इतने वषों में पेड़ वापस बड़ा हो चुका था।कमली रसोई से लाकर मुट्ठीभर चावल पेड़ के नीचे बिखेर दी और पास में उलट कर रखी हुई नाद को सीधी कर दी। ये वही नाद थी जिसमें कभी उसकी सास चिड़ियों को पानी दिया करती थी।अचानक ही चिड़ियों का झुंड वहां चीं-चीं करता हुआ आया और चावल खाने लगे।पेड़ के नीचे कमली बैठ कर चिड़ियों को देखती रही।आज वो चिड़ियों से बातें कर रहीं थीं, 
"अम्मा ठीक कहती थी।तुमलोगों से घर में रौनक है।वापस अपने बसेरे में लौट आओ।आज तुम सभों के आने से मेरा घर चहक उठा है "।
             एक तरफ कुछ चिड़ियां नाद से पानी पी रहीं थीं और कुछ पंख फैला कर पानी में किलोल कर रहीं थीं।दूसरी तरफ चिड़ियों के बीच बैठी हुई कमली को खारे नीम का पेड़ मीठे नीम का सा प्रतीत हो रहा था।आज उसका अकेलापन और बच्चों से दूरी दोनों का दर्द आंखों के रास्ते पानी की धार में बहकर बहुत दूर जा रहा था। 
- मीरा जगनानी 
अहमदाबाद - गुजरात
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लघुकथा - 35                                                         

चौमासा
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"माँ ....तुम चौमासे की इतनी तैयारी क्यो करती हो,वैसे भी सप्ताह में  चार दिन तो तुम्हारा व्रत ही रहता है"...(कहते हुए मेरा ग्यारहवर्षीय बेटा आँगन में बैठ गया)
अरे!...बेटा व्रत तो मैं अपनी श्रद्धा से करती हूं,इससे तुझे क्या!
तेरा को से काम नही करती मैं.... जो तुझे परेशानी जो रही है।
अरे ...तो आप ये छोटे छोटे घोसले क्यो बना रही हो?
इतना सारा सभी तरह का अनाज क्यो बुलाया है ?
क्या हम सब शाम को रोज अलग अलग प्रकार का भोजन करेंगे?
अरे अरे!! रुक तो जा ....इतने सारे प्रश्न एक साथ क्यो कर रहा है।
सुनो बेटा... मेरे इस चौमासे के व्रत में अधिकांश समय बारिश का होता है।जिसमे सूरज का दिखना बड़ा मुश्किल होता है।
इस समय हमारे सारे पक्षी असहाय हो जाते हैं, क्योकि इस समय सब तरफ पानी ही पानी होता है, उन्हें खाने के लिये कुछ नही मिलता .....
तब मैं अपने हिस्से के सारे अनाज उन्हें खिलाती हूँ, जिससे वे तृप्त हो जाए।
इन घास के तिनको से जाल बनाकर अलग अलग कोनो पर कई जगह रख देती हूं ,जिससे यदि किसी पक्षी के छोटे बच्चे हो तो वो उन्हें इन घोसलों में सुरक्षित कर सके।
"मां...अगर नही आये तो आपका व्रत पूरा नही होगा?
"नही नही बेटाऐसा नही है, मैं तो अपने हिस्से से उनके लिये खाना दूंगी ही"....
ओर वो आएंगे भी !ये बेजुबान जरूर है, लेकिन भावना इनमें हम मनुष्यो से ज्यादा है बेटा:...
"अब तू ही देखना... कितने सारे पक्षी आएंगे यहां "
"फिर खूब रंग बिरंगे पक्षियों के साथ सेल्फी लेना"...
रोहन सेल्फी का नाम सुनते ही खुशी-खुशी घास के घोसले बनवाने लगा....ओर फुदकता हुआ अपने दोस्तों को भी बताने चल दिया।
- सविता परमार 
 भोपाल - मध्यप्रदेश
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 लघुकथा - 36                                                           
परिन्दो का घर
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सूरज की पहली किरन मेरे आंगन पांव में धरती कि ये पंछी भी गाते गुनगुनाते मेरे आंगन में उतर आते । मै सुबह ही जौ ,चना ,बाजरा बिखरा देती और चाय का प्याला लेकर बाहर आ जाती और इन सबको निहारती रहती।कभी इन पन्छियो की तरह मेरा घर भी गुलज़ार रहता था ।
मेरे दो बेटे इसी आंगन मे ही तो खेल कूदकर बड़े हुए पर पढ़ लिखकर इन कबुतरो की तरह  ही उड़ गये परदेस आसमान जो छुना था उन्हे भी।
 फिर रह गये हम दोनो अकेले इतनी बड़ी हवेली में हम दोनो बोर होने लगे और एक दिन बाहर अनाथ आश्रम " परिन्दो का घर" का एक बोर्ड लगा दिया मेरे पतिदेव ने  और आज मेरे घर मे अन्दर आठ छोटे बड़े बच्चे रहते है और  आंगन  इन पन्छियो से गुलजार । चाय का कप खाली करके उठी कि तभी गेट पर बैल बजी  तो देखा गोद में एक नन्हा सा परिन्दा लिये चले आ रहे थे मेरे पतिदेव लो सम्भालो एक और नया मेहमान आया है ।
- अपर्णा गुप्ता
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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लघुकथा -37                                                             

आत्मीयता
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 पवन के घर में अमरूद के पेड़ पर चिड़िया का घोंसला बना हुआ था। उसी पेड़ के नीचे पवन की दो गाय बंधी रहती थी। चिड़ियों ने गाय के भूसे में से तिनका- तिनका  जोड़ जाड़ कर वहां घोंसला बनाया था और जो चारा, अनाज गाय खाती थी; उसी में से वह चिड़िया चुन- चुन कर दाने अपने घोसले में रख आती थी। 
एक दिन पवन का बेटा अपने साथियों के साथ डंडे से अमरूद तोड़ने लगा। डंडा घोंसले पर लगा और नीचे गिर पड़ा। चिड़िया चीं चीं करती उड़ती रही। गाय को भी यह सब बुरा लगा और वह खूंटा तोड़ने की कोशिश करती हुई जोर-जोर से रंभाने लगी ।
                    उधर फल प्राप्ति की स्वार्थ- सिद्धि में बेचारी चिड़ियों की किसे परवाह थी। कुछ देर चीं चीं करती घूमती फिरती परेशान दोनों चिड़ियां कभी गाय के सींग पर ,तो कभी पीठ पर फुदकती रहीं। गायें उसका दर्द समझ रही थीं। 
         उसने मालिक के द्वारा दिए गए चारे को मुंह नहीं लगाया और उदास अनमनी होकर अपनी गर्दन नीचे टिका कर अपनी पीठ पर बैठी चिड़ियों  के बारे में सोचने लगीं।
    शाम तक गाय के द्वारा कुछ भी ग्रहण न करना, बेटे से चिड़िया का घोंसला टूटना और दुखी चिड़िया को पूरे दिन गाय द्वारा अपनी पीठ पर बैठाए रखने के कारूणिक दृश्य को पवन और उसके परिवार ने महसूस किया।
-  डाॅ.रेखा सक्सेना 
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
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लघुकथा - 38                                                        

       कुत्तिया और मां       
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     घर के फोन की घंटी बजी तो रामू तुरंत भाग कर ड्राइंगरूम में गया ।
"रामू ध्यान से सुनो, अपने जॉनी को पैट- क्लीनिक में ले जाना ,शायद इसके पेट में दर्द है। क्लब जाते हुए रास्ते में भौंकता रहता है।"
    "जी मैम साहब ",हुकम सुन कर रामू फोन रख देता है ।
तभी बालकनी में उसे साहब की मां खांसती  नजर आई ।उसका माथा ठनक गया ।
  "मां सारा दिन खां-खां करती रहती है इसकी दवा- दारू की चिंता किसी को नहीं ,,,,,"।
  यकायक उसके मुंह से निकल गया,"  काश, साहब की मां ने कुत्तिया के रूप में जन्म लिया होता।" 
           - मधुकांत          
  रोहतक - हरियाणा
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लघुकथा - 39                                                          

                                         हुनर                                  
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शशि का मकान तालाब के पास था तथा मकान का एक कोना सरकारी भूमि का पर था। सब ठीक चल रहा। समस्या तब बनी जब उसके घर के पास से एक छोटी-सी सड़क मार्ग निकल रहा था। पैमाइश होने पर राजस्व विभाग के पटवारी ने शशि के मकान का एक कोना अबैध पाया। शशि बडा विद्वान था हर समस्या का तोड जानता था। परंतु इस समस्या का तोड ढुंढे से नहीं मिल रहा था साथ में कोर्ट कचहरी के चक्कर में जूते अलग से घिस रहे थे। 
एक दिन अचानक शशि के मकान की मुंडेर पर गौरैया बैठी। शशि ने गौरैया को देखा कि कितनी सुंदर है तत्काल उसके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न इस तालाब के जल भंडारण की रक्षा की जाए।
उसने पंचायत के नुमाइंदों को सुझाव दे दिया। इस तालाब और जल भंडारण की रक्षा की जाए ताकि गौरैया आदि पक्षी अपना जीवन बसर कर सके। इस बहाने शशि ने अपने मकान के अबैध कब्जे का तोड निकाल कर पर्यावरण प्रेमी भी बन गया। 
- हीरा सिंह कौशल 
 मंडी - हिमाचल प्रदेश
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लघुकथा - 40                                                      

आज का प्यासा कौआ
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एक छोटे से जंगल में बुद्धिनक कौआ बहुत देर से पानी की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था। प्यास के मारे उसकी जान जाने पर थी। प्रचंड गर्मी से उसका शरीर भी झुलस रहा था। इतने में उसे एक छोटी झोंपड़ी दिखाई दी। वह अप्रत्याशित खुशी लिए वहाँ को उतर पड़ा। पर यह क्या! झोंपड़ी के बाहर रखे घड़े में पानी बहुत नीचे है। पर उसकी चोंच कैसे पहुँचेगी। घड़े में प्रवेश तो कर जाएगा, पर उड़ेगा कैसे?
              सहसा उसे वह पुरानी घटना याद हो आई जिसमें उसके एक पूर्वज ने कैसे प्यास से अपनी जान बचाई थी। उसकी आँखें चमक जरूर गईं, पर दूसरे पल सोचा कि कंकड़ डालते-डालते तो उसके प्राण भले निकल जाएँगे, पर पानी ऊपर नहीं आ पाएगा। दूसरी बात कि ये एकदम से सूखे और तपे कंकड़ तो जो भी पानी होगा, उसे भी सोख जाएँगे। उस समय कैसे उन्होंने पानी पी लिया होगा।
           बुद्धिनक अब एकदम से नए प्रकार से सोचने लगा। और, बस तुरंत ही ताजा तरकीब सूझ गई। उसने एक बार घड़े के मुँह पर चढ़कर पानी की ऊपरी सतह का मुआयना किया और फट से नीचे उतरा। अंदाज से घड़े के उस स्थान पर चोंच मारने लगा और दस-बारह प्रहारों में ही घड़े में छेद हो गया। अतीव प्रसन्नता लिए बुद्धिनक ने उसमें चोंच घुसेड़ी और गटागट पानी पीने लगा। एक मिनट में पूरी बुझी प्यास और फुर्र से आकाश में उड़ चला।
                        - वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज 
                          सिपारा, पटना
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लघुकथा -41                                                           

प्यार के भूखे
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घर में आगमन होते ही वह कभी इस पायदान पर तो कभी उस पायदान पर डरा सहमा सा बैठ जाता। आज़ उसका नामकरण भी होना था तो पूज़ा के बाद नाम भी रखा गया ‘ब्रूनो’। घर में सब उसके आने से बहुत ख़ुश थे। कभी कोई उसे गोदी में लेता तो कभी कोई। बस सबसे छोटी बेटी जिज्ञासा जिसको बहुत डर लगता था, उसके इसी डर को ख़त्म करने के लिये यह निर्णय लेना पड़ा था। दूर से खड़ी सब तमाशा देख रही थी और मन ही मन प्रसन्न भी हो रही थी। पर पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। विनोद और नीरा यह सब देख रहे थे पर उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन परिवर्तन ज़रूर होगा। ख़ैर! ऐसे ही कई दिन बीत गये!
धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो जाती है और इतनी गहरी कि खाना भी जिज्ञासा के हाथ से ही खाते हैं महाशय! सब काम दीदी से ही करवाने हैं जैसे हम तो कुछ ठीक करते ही नहीं थे।
अब तो आलम यह है ज़नाब कि अगर कोई उसे भूल से भी ‘कुत्ता’ कह दे तो उसको पूरा भाषण मिल जाता है “ये भी तो प्यार के भूखे होते हैं अगर हम इन्हें नहीं अपनायेंगें तो ये कहाँ जायेंगें? सरकार को हर घर में एक जानवर होना अनिवार्य कर देना चाहिये! ताकि इन्हें भी घर में होने का अहसास हो सके। ये भी तो हमारी तरह चलते-फिरते हैं फिर इन्हें घर क्यों नहीं?”
कल की डरने वाली मासूम सी लड़की आज़ एक “एन०जी०ओ०” के माध्यम से सबको इन मासूमों की अपनी ज़िंदगी में अहमियत बताती हुई उनकी सेवा में दिन-रात लगी हुई है। यह सब देखकर नीरा और विनोद को अपने लिये हुए फ़ैसले पर गर्व का अनुभव हो रहा है।
- नूतन गर्ग 
दिल्ली
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लघुकथा - 42                                                     
नन्हा मेहमान
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वर्माजी के घर में आज खुशी का माहौल था क्योंकि  उनका बेटा एक छोटा सा पप्पी  लेकर आया था । घर के सभी सदस्य उसे घेर कर बैठे थे । बड़े प्यार से सभी सदस्य बारी बारी से उसे गोद में लेकर रोमांचित हो रहे थे । झटपट उसका नामकरण भी हो गया । नाम रियो रखा गया । बाजार से उसके लिए बरतन , पेडिग्री ,  दवा ,  खिलौना , शैंपू ,साबुन , कंघी , तौलिया आदि फौरन लाया गया, यहां तक कि  एक सोफा भी अॉनलाइन ऑडर कर दिया गया । रियो के साथ फोटो खिंचवा कर घर के कुछ सदस्यों ने वाट्सअप और फेसबुक पर डाल दिये । शुभकामना और बधाई का संदेश मिलना शुरू हो गया । पड़ोसी मेहता साहब को जब पता चला तो वह भी अपने बच्चों के साथ रियो को देखने आ गये । ऐसा लग रहा था मानों घर में एक नन्हें सदस्य का पदार्पण हुआ हो । पूरे घर में हो-हल्ला मचा था । चूहों से निजात दिलाने वाली बिल्ली रानी भी दोपहर होते होते आ गई । रोजाना लगभग दो से तीन बार घर का चक्कर काटकर जाया करती थी । कभी-कभार बची हुई रोटियां उसे दे दी जाती थी खाने के लिए। वर्माजी के बेटे की नजर बिल्ली पर जैसे ही पड़ी वह रियो को गोद में लेकर डंडे से बिल्ली को भगाने लगा । सब बिल्ली को भागता देख तालियां बजा रहे थे । 
   - प्रतिभा सिंह
    रांची - झारखंड
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लघुकथा - 43                                                                   

एकाकीपन 
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कल से घर में आस्ट्रेलियन तोते का जोर जोर  से बोलना और कुछ ना खाना  यह देखकर सभी का मन व्यथित था क्योंकि तोते के  जोड़े में से  एक नहीं रहा था ।
पिंजरे में तोते का एकाकीपन किसी से भी देखा नहीं जा रहा था। 
 शैली बिटिया भी परेशान होकर बार-बार कह रही थी, कि मम्मी इसे भी  कुछ हो गया तो  ?
उसे हम आसमान में भी छोड़ना ठीक नहीं होता ।
क्योंकि ये बहुत छोटे छोटे होते हैं और बड़े पक्षी इन का शिकार कर लेते हैं।
 शैली ने क हा कि मम्मी  मेरी सहेली के घर चार तोते  है , वहां पर इसका मन लग जाएगा ।
ओर शैली की मम्मी  उसका  
 जोडा लाने की जिद कर रही थी शैली के पापा भी  अनमने से 
बैठे । बेटी की बात माने  या पत्नी की ?  घर में अजीब सी शांति का माहौल था ।
दो दिन हो गए ,फिर उसके लिए जोड़ा लाने के लिए शैली की मम्मी  दुकान पर जाने लगी, तो शैली ने कहा !
 मम्मी प्लीज! मत लाना ।
मैं इसे अपनी सहेली के यहां दे आऊंगी उनके यहां बहुत सारे है। इसका मन वहां भी लग जाएगा मम्मी प्लीज ....
तो शैली की मम्मी गुस्से में बोली अच्छा !
 मुझे कुछ हो गया तो क्या तूअपने पापा को कहीछोड़ ...आएगी ? 
यह शब्द कहते...कहते.
. शैली की मम्मी  के कदम रुकते .. रुकते एक सेकंड को थम सी गई ।
शैली ने मम्मी से  कौतूहल बस फिर प्रश्न किया ? 
और फिर जबाब भी जैसे ? मूक भाषा में,
 मम्मी ने तिरछी नजर से पापा की ओर देखा ..….
और उसके लिए जोड़ा लेने के लिए चु पचाप  दुकान की ओर चली गई । 
 बस ..तिरछी नजर से शैली के पापा की ओर देखा ..
आखिर  बेजुबान तोते का ... एकाकीपन अच्छा ..नहीं.. लगा ना  ।
- रंजना हरित     
बिजनौर - उत्तर  प्रदेश
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लघुकथा - 44                                                           

          बंदे,परिन्दे        
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- वाॅव!मम्मा जरा देखो तो सही!इस खाली प्लाॅट में तो हरा-भरा खेत ही बन गया है.
काफी अरसे बाद मम्मी पापा के साथ हाॅस्टल से घर लौटी मेघा चहकी.
-ओह!वाह..ज्वार के सिक्के, मक्का के भुट्टे और गेहूँ की लहराती बालियां भी हैं बेटू.
-जी हाँ!भाईसाहब!सब मेरा ही कमाल है.अक्सर आनाज छान फटककर,सकेरकर मैं ही बिखेर देती थी यहाँ अक्सर .
-बालकनी से झांकती हुई झगड़ालु पड़ोसिन शशि बोली.
मीनू के पति ने मुस्कुराकर उन्हें देखा और पत्नी और बेटी से नजर बचाते हुए पड़ोसिन की ओर थम्सअप का संकेत करते हुए तेजी से सीढ़ियां चढ़ गए.
-कितनी प्यारी रंग-बिरंगी चिड़ियां, तितलियाँ और
तोते भी हैं ..दोनों हथेलियों से गालों को दबाते हुए
चिंकी अपने टैरेस गार्डन को देखकर पुनः उमंग से भर गई थी.
-शाम को आराम से बैठकर निहारना बेटा इन्हें..
बस तुझे घर से विदा करकेअब रिटायरमेंट के बाद बागवानी ही तो करनी है हम दोनों को.
-माॅम!क्या सचमुच शशि आंटी ने ही ये फार्म हाउस बनाया है? हंसकर मेघा ने पूछा.
-कूड़े वाला तो इसने कभी लगाया नहीं,न ही कभी कूड़ागाड़ी में कूड़ा डालते देखा इसे.
-सारी गंदगी पाॅलीथीन में भर-भरकर इस खाली प्लाॅट में फेंकती जरूर देखी थी.दो चार दफे तो हमारी बालकनी में भी गंदी थैलियां पड़ी मिली थीं, तब तो सिरे से नकार गई  थी.
-चलो छोड़ो...कम से कम भुट्टे तो खा ही सकते हैं  तोड़कर...
वहीं प्लाट के कोने में लगे नीम के विशाल पेड़ पर बैठे पाखी-वृंद मन ही मन सोच में  डूबे थे,कि लगभग सभी छतों की मुंडेर पर रखे दाना-पानी से लाभान्वित होने वाला हमारा पक्षी-समाज तो अपनी चोंचों और पंजों में लपेटे बीजों को जाने कहाँ-कहाँ बिखेरता है.हम किसे बताएं?
सबकी बातें  सुनती हुई पुरवाई मुस्कुराकर रह गई ठिठुरती सी माटी भी रवि-किरणों  की गरमाहट महसूस कर बीज-वपन हेतु करवट बदलने लगी थी।
- डा.अंजु लता सिंह 
दिल्ली
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लघुकथा - 45                                                        

जिगर के टुकड़े
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घर की बालकनी से अक्सर वो देखती कि पंछी उड़ान भरते हुए कितने खुश दिखते हैं । एक डाल से दूसरी डाल पर जाना वहाँ से दूर गगन तक जाते हुए संध्या के समय घोसले पर लौटना ,
तभी बिट्टू ने कहा माँ देखो " मैंने जो दाने रखे थे;  वो चिड़िया कितने मजे से खा रही है । 
माँ ने कहा "बिट्टू शोर मत करो , खिड़की पर जो घोसला बना है वहाँ ये चिड़िया रहती है ।" 
हाँ माँ  "मैंने देखा है , वो दाने चुन कर ले जाती है, और वहाँ नन्हें बच्चों को खिलाती है ।
माँ देखो "उसने धक्का दे दिया ।"
किसने "माँ ने चौकते हुए पूछा ?"
"चिड़िया ने अपने नन्हें बच्चों को, बिट्टू ने कातर स्वर से कहा ।"
"हाँ बेटा वो अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनने का पाठ पढ़ा रही है । उज्ज्वल भविष्य हेतु जिगर के टुकड़ों को समय आने पर अपने से दूर करना ही पड़ता है, भावुक होते हुए माँ बुदबुदाते हुए कह रही थी ।"
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
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लघुकथा - 46                                                    

बंद-मख्खन और लाजो
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सरिता अपने परिवार के साथ कसौली घुमने गई। उसके घर से करीब डेढ़ घंटे का रास्ता था।उनकी गाड़ी जब मैदानी इलाकों को छोड़कर  पहाड़ी इलाके के घुमावदार रास्तों से होकर गुजरती हुई आगे बढ़ने लगी प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य, घाटियां,हरियाली और रास्ता सब मिलकर एक अद्भुत रोमांच पैदा कर रहे थे। सरिता अपनी सारी परेशानियों को पूर्णतः भूलकर कभी खुली आंखों से तो कभी आंखों को मूंदकर उस खूबसूरती को महसूस  कर रही थी। बच्चे भी बहुत खुश थे। रास्ते में पहाड़ी बकरियों और बंदरों का झुंड कई बार देखने को मिला। पक्षियों का कलरव सफर को संगीतमय बना रहा था।  तभी गौरव की आवाज से वो चौकी। गौरव (उसके पति)ने कहा,"हमारा पड़ाव आ गया बच्चों,चलो "मंकी टाॅप" की यात्रा शुरू करते हैं।"
         पहाड़ी की सबसे ॐची चोटी पर पहुंच कर हम सबने बजरंग बली जी के दर्शन किए फिर नीचे उतरकर संग्रहालय और चर्च देखने गये। उसके कारीगरी और रख-रखाव से हम सब प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।अब सबको भूख लग आई थी सो सब खाने-पीने की जगह तलाशने में जुट गए । वहां के लोगों ने बताया कि "रामू बंद-मख्खन"की दुकान बहुत प्रसिद्ध है। गौरव ने कहा,"चलो बच्चों बंद-मख्खन का आनन्द लेते-लेते उसकी प्रसिद्धि पर हम भी मुहर लगाते हैं।" सरिता जब का रही थी तो उसे महसूस हुआ कि पीछे की दीवार पर कोई हलचल हुई। मुड़कर देखा तो एक नन्ही गिलहरी टुकुर-टुकुर वहां बैठे लोगों को अपनी चंचल आंखों से बारी-बारी देख रही थी।हम चारों को बड़ा आश्चर्य हुआ कि आमतौर पर इंसानी हस्तक्षेप से दूर भागने वाला जीव इतनी निडरता से वहां बैठ गया। बच्चे बहुत हतप्रभ थे ये सब देखकर।इतने में काउंटर पर से एक सज्जन हाथ में "बंद" का टुकड़ा लिए नीचे उतरकर के और उनके आते ही गिलहरी थोड़ी आगे की ओर सरकी और लगा मानो अपनी गर्दन को लटका दिया, उस सज्जन ने "बंद"के छोटे-छोटे टुकड़े कर उसके मुंह में डाल दिया और बोले,"कैसी हो लाजो?"हम-सब अचंभित हो यह देख रहे थे।ऐसा लगा जैसे लाजो ने आंखों में चमक लिए अपनी गर्दन और पूंछ लहराई जैसे कह रही हो,"मैं ठीक हूं,सब आपकी मेहरबानी है।" सरिता अपना कौतूहल रोक न सकी और पूछ बैठी,"भाई साहब ,ये चमत्कार क्या है, कृपया बताएं।"दुकानदार ने बताया,"बहन यही सामने आम के पेड़ पर गिलहरियों का एक जोड़ा रहता था,दो महीने पहले आते भयंकर तूफान में इसका साथी नीचे गिरकर मर गया था, ये भी मरणासन्न अवस्था में जमीन पर पड़ी थी,हम सबने इसको बड़ी मुश्किल से रूई के फाहे से दूध पिला कर बचाया था ,और लाजो नाम रख दिया था तब से ये हमारे परिवार और हमारे ग्राहकों की भी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन गई है।"रामू के आंखों से निश्छल वात्सल्य झलक रहा था। सरिता की नजरों में रामू की इज्जत बहुत बढ़ गई थी। बच्चों ने भी गिलहरी को अपने हाथों से खिलाने का आग्रह किया।रामू ने कहा, "हां-हां, बिल्कुल!"हम चारों ने बारी-बारी से उसे "बंद"के छोटे-छोटे टुकड़े खिलाएं। एक अजीब सा सुकून मिला । घर लौटते वक्त लाजो की मासूमियत बहुत याद आ रही थी। सरिता ने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वो जल्दी ही एक बार फिर से मिलने आएगी।
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
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लघुकथा - 47                                                    

परोपकार
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अवंतिका आंटी मेरे पड़ोस में एक बुजुर्ग दंपत्ति रहा करते हैं वह लोग सारा दिन पूजा-पाठ धर्म-कर्म पहली रोटी गाय को कुत्ते की रोटी आदि बातों का बहुत ध्यान रखते हैं मोहल्ले के सारे बच्चे उन्हें दादा-दादी कहते हैं और सबको बड़े प्यार से टॉफी बिस्किट देते हैं और उनके साथ खेलते हैं एक दिन अचानक अवंतिका आंटी के रोने की आवाज आ रही थी मुझे लगा क्या हो गया है मेरे पतिदेव अभिनवऑफिस चले गए घर पर बच्चे और मैं अकेली थे। बाहर महामारी ही चल रही है मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं बाहर निकलना ठीक है या नहीं परंतु मुझसे रहा नहीं गया अपने गेट से बाहर निकली और मुंह पर दुपट्टा बांधकर ।दिखी तो क्या गाय के मुंह पर कांच लगा था। मुंह से खून निकल रहा है ,और आंटी रो रही थी।थोड़ी थोड़ी दूर पर सभी पड़ोसी लोग भी खड़े थे । मेरे पड़ोसी राम भैया गाय के मुंह से कांच निकाले और उसके मुंह पर भाभी हल्दी लगा रही थी।सभी पूछ रहे थे ।यह कैसे हो गया ।
आंटी रो रही थी । अंकल बोले कचरे वाली गाड़ी की आवाज सुनकर ये भागी भागी कचरा और गाय की रोटी भी ली थी गाय को रोटी थी गाय ने कचरे की थैली पर सींग मारी तुम्हारी आंटी कचरा छोड़कर भागी।
आज सुबह-सुबह बर्तन धोते समय कांच का गिलास टूट गया था,कचरे में डाल दिया और गाय सब्जियों के छिलकों के साथ और उसके मुंह पर चुभ गया ,और घायल हो गई। अंकल ने कहा राम बेटा तुम भगवान बन के आए।
सभी लोग धन्यवाद दे रहे थे,
पर आंटी को पछतावा हो रहा था वह रो रही थी ।
कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं बस सब देखती रही और मैं सोच रही थीं 
कांच को कचरे से अलग थैली में रखना चाहिए। परोपकार करने से पहले उसके आगे पीछे की बातें सोच लेनी चाहिए।
- उमा मिश्रा *प्रीति*
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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लघुकथा - 48                                                     

             सखियाँ               
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“माँ .. माँ ... कहाँ हो .. तुम्हारी सखियाँ आ गयीं। तुम्हें पुकार रही हैं। जल्दी आओ।” 
     नित्य नियमानुसार आज भी सुबह ठीक  8 बजे गौरैया के झुण्ड को आँगन में ,कोलाहल करते देख ,निन्नी ने माँ को पुकारा ।
“ आई..आई.. ज़रा सा ठहरो, आज देर हो गयी मुझे, माफ़ करना, अभी आई।” 
  कहती हुई माँ ,दाना- पानी ले कर आँगन में पहुँच गयीं।  चिड़ियों ने दाना चुगा, पानी पिया और एक साथ फुर्र से उड़ गयीं। 
   माँ की आँखों में चमक आ गयी। दिन भर की ख़ुशी।निन्नी ने देखा माँ दुगने उत्साह से काम में लग गयीं ।
- डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘ 
फ़रीदाबाद - हरियाणा 
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लघुकथा - 49                                                      

ममता
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"अभी हाल ही की बात है।सुबह-सुबह उठ कर मैं जब टहलने के लिए निकली तो देखी  एक गाड़ी  गुजर रही थी और उसके पीछे-पीछे खूब जोर - जोर से एक कुतिया भौंकती हुई दौड़ रही थी। मैं खड़ी होकर गौर से देखने लगी 
तो पता चला कि उसके  बच्चे का गाड़ी से एक्सीडेंट हुआ था और वो वही पर बैठ,कभी चाट रही है कभी भौंक रही है। तब मुझे एहसास हुआ कि अरे! ये तो अपने बच्चे के वियोग में ममतामयी माँ शेरनी की तरह गाड़ी वालों पर झपट रही है!उसका यह दुख मुझे अंदर तक झिझोड़ दिया।मैं टहलना छोड़ उस माँ की एक बच्चे के लिए उसकी व्याकुलता को देखने लगी।
"आधे घंटे बाद नगर निगम द्वारा कचरा फेंकने वाला दो आदमी आया।एक व्यक्ति ने वेल्चा से शव को उठाने गया ,तब  कुतिया उस पर झपट पड़ी और वो डर कर भागा । कुछ देर बाद एक अन्य व्यक्ति लाठी से उस कुतिया को डराते हुये कुछ दुर तक ले गया।कुतिया एक कदम चल रही थी और फिर पीछे मुड़ कर भौंक रही थी।इसी दौरान  दूसरे व्यक्ति ने वेल्चा से उठा कर ठेला में पिल्ले के  शव को लेकर दौड़ कर भागने लगा।उसके जाने के बाद  कुतिया उस स्थान पर पहुँची जहाँ पर शव था,उसको सूंघ कर भौंकते हुये चलने लगी ,जिधर उसका बच्चा का शव लेकर वे लोग गये थे।
- राजकांता राज 
पटना - बिहार 
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लघुकथा - 50                                                        

गौरैया
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गौरैया के चीं चीं के बीच पता ही नहीं चला कि सौम्या की स्कूल बस आज फिर निकल गई।
       आज फिर सौम्या की मम्मी उसे डांटते हुए गौरैया पर खीझ निकालती है न जाने इन चिड़ियों ने क्या जादू कर डाला है ,सौम्या को किसी चीज की परवाह ही नहीं रहती है।
    सौम्या के पापा उसकी मम्मी को समझाते हैं कि बस छूट गई तो क्या हुआ मुझे एक घंटे बाद ऑफिस जाना है। मैं छोड़ कर आता हूं । सौम्या का तुमने गौरैया के साथ खेलते हुए चेहरा देखा है कितना खिला हुआ रहता है ।वह गौरैया सौम्या को खेल-खेल में कितना कुछ सिखा जाती है वह शायद मैं और तुम कभी नहीं सिखा पाते।
     क्या…. वह छोटी सी चिड़िया सौम्या को सिखाती है या उसका समय खराब करती है। सौम्या की मम्मी गुस्से से बोलती है। सौम्या के पापा उसके पास जाकर उसे बताते हैं कि, कुछ सीखने के लिए शांत और गंभीर होना ही जरूरी नहीं है ।खेल खेल में बच्चे बहुत कुछ सीख जाते हैं , ये उन्हें भी आभास नहीं होता है । जैसे सुबह उठते ही सौम्या चिड़ियों के लिए बरामदा साफ कर बाजरा डालती है उन के बर्तन में पुराने पानी को फेक कर नये  पानी भरती है ...जिससे साफ सफाई के साथ-साथ वह किसी की परवाह करना भी सीख रही है। यह उसके प्रति उसका निस्वार्थ प्रेम है जिससे सौम्या ना कभी थकती है और ना कभी रुकती है।
        बात को समझते ही सौम्या की मां मुस्कुरा पड़ती है। बात की गंभीरता से अनभिज्ञ सौम्या अभी भी गौरैया के साथ खेल रही है।
    - रेखा पांडे रीत
      पुणे
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