क्या मानसिक शान्ति से बड़ा कोई सुख हो सकता है ?

मानसिक शान्ति शरीर के लिए बहुत आवश्यक है । जिससे शारीर के कई रोगों में राहत अवश्य मिलती है । यहीं सब से बड़ा सुख कहा जा सकता है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
मानसिक शांति को जीवन का सबसे बड़ा सुख माना जा सकता है।यह वह क्षण होता है,जब मानसिक तनाव को हम भूल जाते हैं। ऐसा समय बहुत ही कम होता है।वरना मानव जीवन तनाव रहिए होना संभव नहीं। सोते वक्त भी कुछ ही समय होता है जब मानसिक शांति मिले,वरना स्वप्नलोक में विचरण शांति का अनुभव ही नहीं होने देता। मानसिक शांति का वह क्षण अलौकिक आनंद की अनुभूति कराता है जब हमें‌ स्वयं के होने की अनुभूति नहीं होती। इसके बाद तन मन नवीन ऊर्जा का अनुभव करने लगता है। मानसिक शांति के लिए सर्वाधिक प्रचलित उपाय मेडिटेशन, किसी एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित करना,जाप आदि  हैं, लेकिन व्यवहारिक रुप में
कितनी मानसिक शांति इनसे मिलती है,कहा नहीं जा सकता। मन मस्तिष्क जब तक शांत न हो तब तक मानसिक शांति मिलना संभव नहीं और वर्तमान दौर में जबकि मानसिक शांति का व्यवसाय करने वाले भी डिप्रेशन,टेंशन का इलाज कराने निकलते हैं तो फिर जिसको भी मानसिक शांति का अनुभव हो वह तो सौभाग्यशाली है ही, इसीलिए मानसिक शांति को सबसे बड़ा सुख माना सकते हैं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
"मानसिक शांति" से बड़ा सुख कोई हो ही नहीं सकता। वास्तव में  "मानसिक शांति" संतोष का वह भाव है जो  हमारे चित्त को तृष्णा से विमुख करता है । 
मगर विडंबना यह है कि  मनुष्य जीवन की सफलता तृष्णा को आधार बनाकर ही मानता है । यह अंतहीन लालसा संतोषी भाव की परम शत्रु रही है।
 गाड़ी, बंगला, अकूत धन संपत्ति  होते हुए भी  आज व्यक्ति का मन इतना अशांत क्यों रहता है ? सब कुछ होते हुए भी मानसिक शांति कोसों कोसों दूर है। इसका सीधा सरल उत्तर यही है कि  मनुष्य सदैव  इच्छाओं से घिरा हुआ, लोभी, लालची और संग्रही प्रवृत्ति का रहा है । अत्याधिक भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त होकर भी वह अच्छा स्वास्थ्य नहीं खरीद पाया। महंगी दवाइयां और महंगे इलाज उसके जीवन की बैसाखियां बनी हुई है । केवल धन और सुख सुविधाओं को जुटाने वाला व्यक्ति मानसिक शांति क्यों नहीं जुटा पाया? क्योंकि  तृष्णा से उसका माेह कभी खत्म नहीं हुआ । यही उसकी बेचैनी ,उसकी अशांति का सबसे बड़ा कारण है । जीवन में  मानसिक शांति और संतोष पाने के लिए  स्वार्थों का भी परित्याग आवश्यक है । महर्षि गौतम ने कहा भी है :- 
असंतोषं परं दुखं संतोष: परमं सुखम्।
 सुखार्थी पुरुषस्तस्मात् संतुष्ट: सततं भवेत्।।
  अतः इस संसार में असंतोष ही सबसे बड़ा दुख है और संतोष ही सबसे बड़ा सुख है  जिसे "मानसिक शांति" का आधार माना गया है । भले ही मनुष्य ने  आज ज्ञान विज्ञान और शक्तियों का उपयोग करके अनेकाें सुखों के साधन प्राप्त कर लिए हैं लेकिन फिर भी सुख की कल्पना सदैव अधूरी ही रहती है ,क्योंकि इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती हैं, ये अनंत है और यही इच्छाएं मनुष्य के दुख का कारण बनती है । अत:  इच्छाओं ,तृष्णाओं, कामनाओं का अंत केवल संतोषी भाव ही कर सकता है , तभी मानसिक शांति मिलती है ।
- शीला सिंह 
बिलासपुर  -हिमाचल प्रदेश
वर्तमान समय की भाग-दौड़ में मनुष्य शारीरिक सुखों का गुलाम हो गया है। भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु वह स्वयं तो मानसिक शांति के सुख को भूल ही गया है, साथ ही अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु किसी अन्य व्यक्ति की मानसिक शांति छीनने से भी परहेज नहीं करता।
मंदिर में बैठकर भी मन ध्यान में ना लगे, उत्तम भोजन होने पर भी शारीरिक व्याधियों के कारण, उस भोजन को ग्रहण ना कर सके, शानदार बिस्तर होने पर भी नींद ना आ सके, यह मानसिक अशांति नहीं है तो और क्या है? इस प्रकार समस्त सुख सुविधाओं के बावजूद मानसिक शांति के अभाव में कोई व्यक्ति सुखी कैसे रह सकता है? इस प्रकार की मानसिक अशांति का हल तो संभवतः निकल सकता है। बशर्ते मन-वचन-कर्म से स्वयं की दिनचर्या पर कार्य किया जाये। 
परन्तु अक्सर यह भी देखने को मिलता है कि हमारी मानसिक अशांति का कारण हमारा ही कोई रिश्तेदार अथवा पड़ोसी हो सकता है, जो अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु हमारी मानसिक शांति छीन लेता है। दूसरों के द्वारा जब मानसिक शांति छीनी जाती है तब मनुष्य समझ नहीं पाता कि वह क्या करे? 
व्यक्तिगत अनुभव है कि ऐसे रिश्तेदारों से तो दूरी बनाई भी जा सकती है परन्तु जब कोई पड़ोसी ही (जिससे दूर हो पाना आसान नहीं होता) मानसिक अशांति का कारण बने तो हमें उसको समझाने के लिए नियमों और मर्यादा की सीमाओं में रहते हुए विधिक कार्यवाही करनी चाहिए वरना हम सदैव अशांत और परेशान रहेंगे और मानसिक शांति के अनमोल सुख से वंचित रहेंगे। 
मेरा मानना है कि भक्त को भक्ति से, कर्मशील को कर्म करने से, साहित्यकार को सृजन करने से, चिन्तक को चिन्तन करने से और इसी प्रकार गृहस्थ को अपने दायित्वों के समुचित निर्वहन से ही मानसिक शांति प्राप्त होती है।
इसलिए मनुष्य को मानसिक शांति के लिए सतत् प्रयत्नशील रहना चाहिए क्योंकि यह सत्य है कि मानसिक शांति से बड़ा कोई सुख नहीं है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
इस आपाधापी के जीवन में हम इतने व्यस्त हैं मन की शांति किसमें है भूल जाते हैं। हम भौतिक सुख को मन की शांति समझते हैं जबकि भौतिक सामग्रियों से हमारे जीवन में तृष्णा विकार उत्पन्न होते हैं। इसलिए सत्कर्म ईश्वर आराधना परहित करो जिसे मानसिक शांति और सुख मिलता है।
- पदमा तिवारी 
दमोह - मध्यप्रदेश
     हमारी रचना शारीरिक और मानसिक सरुपों में हुई हैं। जिसके कारण दोनों का स्थिर होना अति आवश्यक हो ही जाता हैं। अगर शरीर दुर्घटनाग्रस्त हुआ तो, मानसिक संतुलन खो बैठता? अगर मानसिक स्थिति खराब हुई तो शरीर टूट जाता हैं।  इसीलिए दोनों सुख शांति का प्रतीक हैं, किन्तु ऐसा कुछ नहीं हो सकता हैं। जरुरी नहीं हैं दोनों सुख सुविधा मिलें, काफी अंतर होता हैं, जिसने अपनी इंद्रियों को बस में कर लिया, उसे मानसिक शांति से बढ़ा कोई सुख हो ही नहीं सकता हैं। इसीलिए बड़े बुजुर्ग हमेशा कहा करते हैं, कि शांति से रहों, मोह माया, क्रोध, लोभ का परित्याग करों, परन्तु कोई भी शांति से रहना पसंद नहीं करते और विरोधाभासी जीवन जीना पसंद करते हैं, जिसका प्रतिफल अंतिम समय में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देता हैं। मानवता मानवीय जीवन का सच भौतिक वस्तुओं के संग्रह में एक परिवर्तन परिणाम की व्यवस्थाएं हैं। जो आधुनिक युग में सफल हो गया, वह अजर अमर हो गया?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
मानसिक शांति व्यक्ति केअपने ही हाथ में रहा करती है l बाहरी दुनियाँ का व्यवहार उसके प्रति अनुकूल, प्रतिकूल होता है l लेकिन विधाता की इच्छा के विपरीत कुछ भी संभव नहीं, यदि इस प्रकार के विचार उसके जेहन में आते हैं तो वह दुःखी नहीं हो सकता l जीवन -मृत्यु, हानि -लाभ विधाता के हाथ हैं l
"जाहि विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये "विचार स्वतः मन कोसमझाबुझा कर  शांत कर देते हैं l यदि कोई दुर्घटना हो जाये तो अपार सम्पत्ति भी हमें मानसिक शांति प्रदान नहीं कर सकती l हमारे विचार ही हमें मानसिक शांति और सुख प्रदान कर सकते हैं l परमात्मा की इच्छा -अनिच्छा और लीला का परिणाम यह दृश्य जगत है l कर्मों के आधार पर कठपुतली की तरह  वह हमें नचाता है l श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा था -अपना बुरा -भला सब कुछ मुझे अर्पित कर
दो l इन्हीं भावों से हमें मानसिक शांति मिलती है l सुख प्राप्त करते हैं l
      ----- चलते चलते 
1.मानव के जीवन का सबसे बडा सवाल है -आनंद l आनंद के लिए चाहिए' संतोष 'l
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह l
जिनको कछु न चाहिए, सो साहन के साह ll 
2. यहाँ सतत संघर्ष विफलता कोलाहल का यहाँ राज है l
अंधकार में दौड़ लग रही मतवाला यह सब समाज है ll
            --प्रसाद
आज चुनौती मन को साधने की हैl
    - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
यूँ तो सुख शब्द ही प्रसन्नता का द्योतक होता है और अगर इस आपाधापी भरे जीवन में, जहाँ सभी भाग-दौड़ में व्यस्त हैं। किसी को मानसिक शांति मिल जाये तो, उससे बड़ा सुख कौन सा हो सकता है?
    मानसिक शांति प्राप्त करने लोग क्या-क्या जतन नहीं करते हैं। इसके लिए धन,समय भी न्यौछावर कर दिया जाता है।
     किसी का कोई कार्य सिद्ध हो गया हो या उसकी कोई चाहत पूरी हो गई हो तो उस व्यक्ति द्वारा किया गया श्रम फलीभूत होता है।तब उसे शारीरिक उर्जा को पुनः संचित करने के लिए मानसिक शांति की आवश्यकता होती है।
   मित्रों शारीरिक सुख तो क्षणिक होता है किन्तु मानसिक शांति या सुख का महत्व बहुत अधिक होता है।क्योंकि मानसिक शांति के बाद जीवन पुनः गतिशील होकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने तैयार हो जाता है।
   - डाॅ•मधुकर राव लारोकर 
   नागपुर - महाराष्ट्र
यह सच है कि हमारा मन अशांत हो ,किसी भी बात को लेकर और चिंता में हमारा दिमाग स्थिर नहीं है !अनेक समस्याएं हमारे दिमाग को घेरे हुए है ,दिमाग में अनेक बातें एक साथ हलचल कर रही है तो हमारे दिमाग को कहां शांति मिलती है ! सोते समय भी समस्याएं दिमाग को घेरे रहती है जिससे नींद नहीं आती जो हमारे थके दिमाग को आराम देती है ! 
ऐसा कहा जाता है जिसे आराम से कहीं भी नींद आ जाती है उससे बड़ा सुखी कोई नहीं ! इसमें कोई दो राय नहीं है कि पूर्ण नींद मिल जाने से मानसिक तनाव कम हो जाता है, मन हल्का हो जाता है! व्यक्ति सकारात्मक सोच लिए उठता है !तनाव मुक्त होने से वह खुश रहता है !
आज अधिकतर व्यक्ति भौतिक लौलुपता के सुख में स्वयं तनाव को आमंत्रण देते हैं और आराम के अभाव में ,काम की चिंता में मानसिक रुप से तनावग्रस्त हो जाते हैं ! इस तनाव से हमें स्वयं को निकलने की कोशिश करनी होगी ! मन को शांत रखें!इसके लिए योग ,व्यायाम , और अच्छी नींद लें ! काम करने का तरीका बदले ,समय प्रबंधन का ध्यान करें , अनुशासन में रहना होगा ताकि कार्य सुचारु रुप से समय पर पर होगा जिससे कोई मानसिक तनाव नहीं होगा !
अपनी आवश्यकताओं को हैसियत और मर्यादा की सीमा रेखा में रखे (व्यसन से दूर रहें )
मानसिक शांति का होना हमारे लिए अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण है ! तनावरहित होने से नये विचार आते हैं ,नयी उमंगे जागती हैं एवं जब उमंगों का जन्म होता है तब मन का मोर आनंद की बगिया में हिलकोरे लिए अपनी खुशीयों को बटोरता है और सुख का यही पल उसके हर तनाव को दूर करता है ! तनावमुक्त रहकर वह परिवार को भी  सुख देता है !
             - चंद्रिका व्यास
            मुंबई - महाराष्ट्र
ऐसे महत्वपूर्ण व्यक्तिगत विषय पर कुछ चर्चा करने से पहले हमें ये समझना नितांत आवश्यक है कि  सुख  आखिर है क्या ? विश्व की ९५ प्रतिशत आबादी मृगमरीचिका / मृगतृष्णा में जीती है और उसी में आधी अधूरी जिंदगी के साथ समाप्त हो जाती है उनके अनुसार सुख रोटी कपड़ा मकान सन्तानोपत्ति उनका लालन पालन और स्थापन तक ही सीमित है।
हाँ तो आखिर सुख है क्या या जिस सुख की हम चर्चा कर  रहे।  वो ही सुख है  उससे इतर कुछ अन्य।  
मेरे ज्ञान अनुसार ५ अति विशिष्ट श्रेणियाँ है सुख को समझने या स्थापन हेतु।  यहाँ सुख और आनंद को अलग रखियेगा।  दोनों में मूल रूपेण गहरा अंतर है जब कभी ये विषय आएगा मैं उसका भी विवरण तदनुसार पटल पर रखूंगा। 
 तो मेरे ज्ञान अनुसार ५ अति विशिष्ट श्रेणियाँ है सुख को समझने या स्थापन हेतु। 
१.  शारीरिक सुख २ मानसिक सुख ३ आत्मिक सुख ४ आर्थिक सुख ५ शैक्षणिक सुख / चूंकि आ ० बिजेंद्र जी द्वारा प्रदत्त विषय  के अनुसार - *** क्या मानसिक शांति से बड़ा कोई सुख हो सकता है ? *** आज का मूल केंद्र है इसलिए उपरोक्त भूमिका के आधार पर मैं उसी  चर्चा पटल पर रखूंगा।  
पहली बात हमारा मस्तिष्क जब संन्तुलन अवस्था में होता है तो उसकी तरंगें हमारे सारे शरीर में प्रवाहित होती है / **लेकिन मस्तिष्क कब संतुलित अवस्था में होगा** उसका आधार -  तो मेरे ज्ञान अनुसार ५ अति विशिष्ट श्रेणियाँ है सुख को समझने या स्थापन हेतु। 
१.  शारीरिक सुख २ मानसिक सुख ३ आत्मिक सुख ४ आर्थिक सुख ५ शैक्षणिक सुख
यदि इनमें से कोई एक भी असंतुलित है तो आप कुछ भी कीजिये उलटे लटकिये न शांति आएगी न सुख आएगा। 
ये मैं दावे  साथ ठोक के कह रहा हूँ। गीता में महाभारत में , रामायण में , संसार के अनन्य धर्म ग्रंथों में अनेको प्रकार से सामान्य जन को २ बात ही निर्देशित हैं।  १ निरोगी काया २ मानसिक शन्ति अब आप उलटे लटकिये।  २ अवस्था को प्राप्त नहीं होंगे जब तक पहली अवस्था प्राप्त नहीं करेंगे , ये एक प्रकार की *चेन प्रक्रिया है* जैसे पहली सीढ़ी पार किये / चढ़े बिना दूसरी सीढ़ी नक्को [ हा हा हा हा - नहीं प्राप्त होने वाली ]
तो वास्तविक / सबसे बड़ा सुख पाने के लिए , पहले तो मेरे ज्ञान अनुसार ५ अति विशिष्ट सुखों को स्थापन कीजिये उनके प्राथमिक कर्मानुसार  जैसे ये लिखे हैं 
१.  शारीरिक सुख २ मानसिक सुख ३ आत्मिक सुख ४ आर्थिक सुख ५ शैक्षणिक सुख   
- डॉ.अरुण कुमार शस्त्री
दिल्ली
मानसिक सुख से बड़ा कोई सुख हो ही नहीं सकता है। मेरे एक रिश्तेदार के पास इतना रुपया था कि वो तकिया तोशक में रखते थे और उनकी पत्नी पहरा देती रहती थीं.. ना दिन को चैन ना रात को नींद।
हम चाहते हैं कि गंजे को कंघी बेच लें।
हम चाहते हैं एस्किमो को आइस बेच लें।
 और अपने लिए सुख प्राप्ति का साधन का ढ़ेर लगा लें।
 साथ में दुनिया बदल डालने की मृगतृष्णा में जीते हैं।
मन बैचैन है तो सुख की अनुभूति हो ही नहीं सकती।
जब तक जीवन सर्वकल्याण नहीं करने लगेगा तब तक स्थायी सुख की प्राप्ति ही नहीं हो सकती।
जब स्थायी सुख की प्राप्ति होने लगती है तो वो असली सुख मानसिक होता है । मन का सुख तो बैचेन रखे हुए रहता है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
      मानसिक शांति से बड़ा दुनिया में कोई सुख नहीं। मनुष्य जो चाहता है वो धन,दौलत, शोहरत आदि सब कुछ होते हुए भी बेचैन रहता है। उसके मन में और पाने की चाहत उसे टिकने नहीं देती।इसी चाहत में वह दिन रात दौड़ता-भागता रहता है और ज्यादा की ललक में गलत-मलत रास्ते भी चुन लेता है। छल कपट में फंसा रहता है। सब कुछ होने के बावजूद भी कुछ नहीं का रोना रोते रहता है। इस तरह वह मानसिक शांति खो बैठता है। उस का स्वभाव भी झगड़ालू हो जाता है और हर समय बेचैन रहने लगता है और कई तरह की बीमारियाँ लगवा लेता है। रोटी से ज्यादा दवाई खाता है ।इन सब का कारण होता है ईर्ष्या और होड़। 
        मनुष्य को इन बातों से समझ लेना चाहिए कि जीवन में सब से बड़ा सुख मानसिक शांति है। यह मानसिक  शांति धन दौलत से नहीं खरीदी जा सकती। मनुष्य को सकारात्मक दृष्टिकोण, सब्र, संयम और सदकर्म को अपनाना चाहिए। अपने पास धन दौलत के अंबार लगा कर शांति नहीं मिलेगी।उस धन में से किसी भूखे की भूख मिटाने पर जो सकूँ मिलेगा वो धन इकट्ठा करने से नहीं। मनुष्य को किसी होड़ में नहीं पड़ना चाहिए जो मेहनत से कमाया हुआ है, उसी से संतुष्ट होना चाहिए। मनुष्य को इस भ्रमजाल से बाहर निकलना चाहिए कि मानसिक शांति धन दौलत से मिलती है। धन दौलत वाले को मखमली गद्दे  पर भी नींद नहीं आती लेकिन एक ठेले वाला कड़ी धूप और गर्मी में थोड़ी सी छाया में ही जमीन पर लेट कर खर्राटे भर रहा होता है। असली सुखी तो वो हुआ। इस लिए मानसिक शांति से बड़ा कोई सुख नहीं है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
जीवन में सबसे बहुमूल्य कुछ है तो वह है,मानसिक शांति।दुनिया में अगर सब कुछ मिल भी जाए,आप कितने भी ऊँचे पद पर आसीन हो,आप कितने भी ताक़तवर या धनाढ़्य हो परंतु मानसिक शांति नहीं हो तो वह व्यक्ति कभी तन से स्वस्थ नहीं हो सकता और यदि तन ही स्वस्थ नहीं हो तो सब व्यर्थ ।हम किसी भी क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएँगे ।मन में विकार हो ,मन  विचलित हो ,भटक रहा हो तो ,मनुष्य कभी ख़ुश नहीं रह सकता ।
वह कभी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता।मानसिक अवसाद से ग्रसित व्यक्ति के सोचने ,समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है ,चाहे वह कितना भी बुद्धिमान हो ;वह नशाखोरी,बेरोज़गारी यहाँ तक की वह आत्महत्या तक कर लेता है।मानसिक सुख पाने के लिए लोग योग,अध्यात्म का सहारा लेते हैं।ताकि वह  एक तनावरहित सुखमय जीवन यापन कर सकें।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
इस दुनिया में मानसिक शान्ति से बड़ा कोई भी सुख नहीं हो सकता। भले किसी के पास करोड़ों की संपत्ति हो लेकिन उसे मानसिक शान्ति नहीं है तो सारा बेकार है। पैसे से मानसिक शान्ति नहीं खरीदा जा सकता है। किसी को भले दस बेटे हों गाड़ी बंगला नौकर चाकर सब कुछ हो। पर उसके घर में कलह हो तो उसे मानसिक शान्ति नहीं मिल सकती। उसके लिए सब धन दौलत बेटा बेटी सब बेकार हैं। मानसिक शान्ति से बढ़कर दुनिया में कोई भी सुख नहीं है। आप निरोगी है आपका मन शान्त है तो आप दुनिया के सबसे सुखी आदमी हैं। राजा महाराजा से भी बढ़कर हैं। किसी रोग से परेशान हैं।आपके बच्चे आपकी बीवी आपके कहे अनुसार नहीं चलते हैं तो आपको मानसिक शांति नहीं मिल सकती। दो रोटी ही खाने को मिले पर शरीर स्वस्थ हो मन में शांति हो तो आप सर्व सुखी आदमी है। कोई मधुमेह का रोगी हो और उसके सामने मिठाइयों का ढेर लगा हो। उसका मन बीमारी से अशांत है तो वो मिठाई खा नहीं सकता। इसलिए मानसिक सुख ही सबसे बड़ा सुख है। मन अशांत तो सब बेकार है। मानसिक शान्ति ही 
सबसे बड़ी अनमोल दौलत है। इस सुख से बड़ा कोई सुख नहीं हो सकता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
दुनिया में सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन मानसिक शांति के लिए बहुत ही कठिन परिश्रम करना पड़ता है। यह सच है कि मानसिक शांति से बड़ा सुख इस दुनिया समाज मैं कुछ भी नहीं है।अंदरूनी शांति से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।शरीर तभी मजबूत होगा जब हमारे भीतर शांति होगी। आज वर्तमान समय में जब दुनिया में करो ना वायरस से इतनी अशांति फैली हुई है ऐसे में मानसिक शांति किसी चुनौती से कम नहीं रहा है,लेकिन फिर भी हमें कुछ बातों को ध्यान रखकर मानसिक शांति के लिए कोशिश की और इसमें सफलता भी मिली। आसान कामों के साथ अपने दिन की शुरुआत करना सभी को पसंद होता है। लेकिन ऐसा कुछ करने से बचें सुबह ऊर्जा का स्तर ज्यादा रहता है।ऐसे में जो भी काम आपको सबसे मुश्किल लगता है उसे सुबह ही नहीं निपटा दें।इसे आप पूरे दिन शांत महसूस कर सकते हैं। आप संसार के हर चीज पर नियंत्रण नहीं कर सकते हैं यह दुनिया की सच्चाई है ऐसे में आप बस कोशिश कर सकते हैं। जो चीज है आप से पूरी तरह जुड़ी हुई नहीं है इसे रोक पाने पर आप निराशा का अनुभव करते हैं। लेकिन आपके हाथ में सब कुछ नहीं है। ऐसी परिस्थिति में यह बात खुद को समझाने से आप मानसिक रूप से शांति का अनुभव करेंगे। यह भी सच है कि प्रतिदिन की भाग दौड़ भरी दिनचर्या में काम और घर परिवार से जुड़ी कई बातें आपको मानसिक रूप से थका देती है और तनाव का कारण बनते हैं। अगर आप मानसिक तनाव के शिकार हैं और इससे छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको एकांत में शांत होकर विचरण करना पड़ेगा। सुख दुख की अनुमति मन में होती है आज तो मन की स्थिति पर सुख-दुख आना जाना स्वभाविक है। पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य सांसारिक प्राणी है, उसका संसार के विषयों की और झुकाव होना स्वभाविक है। संसार में जहां इच्छा, अभिलाषा तथा कामनाओं का बाहुल्य है, वहां  संघर्षों की भी कमी नहीं है। संसार में निवास करने वाला मनुष्य इन अवस्था में प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। आपके जीवन बहुत सारी कामनाएं होंगे पर अभाव खटके गा, फलस्वरूप मन को अशांति होगी। कहते हैं कि जीवन में सुख और सफलता के लिए पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ इन उपायों का पालन करने से जीवन में सुख स्वास्थ्य समृद्धि की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है। घर का हर व्यक्ति सूर्योदय से पहले उठे और उगते हुए सूर्य का दर्शन करें।इसी समय जोर से गायत्री मंत्र का उच्चारण करें तो घर के वास्तु दोष भी नष्ट हो जाते हैं। सूर्य दर्शन के बाद सूर्य को जल पुष्प और रोली अक्षत का अर्धय दे। सूर्य के साथ त्राटक करें। घर में तुलसी का पौधा लगाएं और उनकी नियमित सेवा करें। पक्षियों का दाना डालें। शास्त्रोंके अनुसार श्री गणेश को परिवार का देवता माना गया है। गणेश जी की पूजा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। इसलिए हर व्यक्ति को अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिए मानसिक शांति बहुत ही जरूरी है और मानसिक शांति से बड़ा सुख और कोई भी नहीं है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
मेरे विचार में मानसिक शान्ति से बड़ा कोई सुख नहीं होता।  उद्विग्नता, भय, घृणा, जलन, झूठ बोलना, क्रोध करना, बड़ों का अपमान करना, लालच, मोह, ये सब हमें मानसिक शान्ति से दूर रखते हैं जिसके कारण हमारा मन हमेशा ही अशान्त रहता है। मानसिक शान्ति की खोज में इंसान न जाने क्या-क्या उपाय करता है पर वह छोटी-छोटी बातों को भूल जाता है जिससे मन अशान्त रहता है और मानसिक शान्ति नहीं मिल पाती।
- सुदर्शन खन्ना 
  दिल्ली
मानसिक  शांति, जिसकी  खोज  में  सदियों  से  ऋषि-मुनि  लगे हुए  हैं  लेकिन  आजतक  किन्हीं  बिरले लोगों  को  ही यह प्राप्त  हुई  है  । 
      यह न त्याग, न तप, न ग्रहस्थ, न धन-दौलत  से, किसी को  कहीं  नहीं  मिलती, इसे प्राप्त  करना  इतना  आसान  भी नहीं  है  । 
      वैसे तो यह सभी के भीतर  होती है  मगर  भीतर  भरे हैं- स्वार्थ, ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार  । अनाप-सनाप विचारों  की भीड़  अटी पड़ी  है  फिर किसी  को कैसे  मानसिक  शांति  मिल सकती  है  ?
      शौर्य तलवार  में  नहीं, उसे चलाने  वाले  के भीतर  होता  है  । भीतर  शौर्य  और  शांति  तभी  संभव  है  जब शरीर  मजबूत  और  भीतर  से निर्मल हो  । 
         जीवन में  संतोष और धैर्य  रखना चाहिए  क्योंकि मानसिक  शांति  से बड़ा  कोई  सुख नहीं  है  । 
      - बसन्ती  पंवार 
        जोधपुर - राजस्थान 
गौधन, गजधन, वाजिधन और रत्नधन खान, जव आवत संतोष धन, सब धन धूरी समान। 
यह दोहा साफ प्रकट करता है कि संतोष धन के आगे  वाकि के सभी धन धूल के समान होते हैं, 
तो आईये आज की चर्चा  इसी बात से करते हैं  कि क्या मानसिक शान्ति यानी संतोष से बड़ा  कोई सुख हो सकता है, 
मेरा मानना है कि जीवन में खुशियों का संबध आर्थिक  स्थिति से ज्यादा मानसिक स्थिति से है, 
यदि हमारी मानसिक स्थिति ठीक है तो हम किसी भी परिस्थति में प्रसन्न रह सकते हैं, कहने का मतलब आर्थिक स्थिति चाहे कितनी भी अच्छी हो लेकिन जीवन  सही आनंद लेने के लिए मानसिक स्थिति का अच्छा होना जरूरी है। 
 हर कोई चाहता है वो ऐसा जीवन जिए जो कष्ट कलेश से मुक्त होकर धन धान्य से भरपूर हो, इसके लिए व्यक्ति को सदाचार जीवन का पालन करना  जरूरी है क्योकी  मानव को सबसे अधिक दुखी उसमें तृष्णा बनाती है जिसके लिए  उसको सारा दिन रात दौड़ धूप करनी पड़ती है लेकिन उसकी तृष्णा तभी भी पूरी नहीं होती जिससे  मन में अशान्ति  ही फैली रहती है, 
 मनुष्य की कामनायें बड़ी विशाल होती है जो कभी पूर्ण तो हो ही नहीं सकतीं किन्तु तृष्णाओं को जन्म देती हैं,  
बढ़ती हुई तृष्णा ही मनुष्य के दुख का कारण है, उसकी इच्छाएं वर्तमान की जरूरतों तक ही कायम नहीं रहती, 
लेकिन आने बाले  रिश्तों के लिए कुछ छोड़ जाने की प्यास ही उनके दुख का कारण बनती हैं, 
स्वार्ध के परिणाम से जो सन्तोष शेष बचता है वही मनुष्य का सच्चा सुख है, 
सोचा जाए मनुष्य को सुखी रहने के लिए सन्तोष एक सर्वोतम पदार्थ है। 
अन्त में यही कहुंगा अगर मनुष्य को अपने भीतर छिपे हुए आनंद को प्राप्त करना है ते उसे अपने मन की राह को बदलना होगा, क्योंकी मन और आनंद का सीधा और गहरा संबध है, यदि आनंद चाहिए तो हमें मानसिक संतुलन बनाए रखना चाहिए, 
यदि हम सामन्य रहें तो  निश्चित ही जीवन मेंआनंद रहेगा, 
संतोष ही सबसे बड़ा सुख है क्योकी मन में संतोष आने पर जिस सुख शान्ति की उपलब्धि होती है उससे बढ़कर संसार में कुछ नहीं है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सुख वाद के सिद्धांत के अनुसार सुख दो प्रकार के होते हैं एक भौतिक सुख दूसरा आध्यात्मिक सुख जीवन के प्रारंभिक समय में भौतिक सुख को ही प्रधानता दी जाती है देखने से ऐसा महसूस होता है जिस घर में परिवार में इंसान के पास सारी सुख सुविधाएं मौजूद है वह बहुत ही सुखी इंसान है पर जैसे-जैसे उम्र गुजरती जाती है प्रौढ़ावस्था आता है तो समझ में आने लगता है कि सुख का सही परिभाषा क्या है मानसिक सुख वास्तविक सुख कहलाता है मन अशांत है संतुष्ट है मन में कोलाहल नहीं है चिंता नहीं है ऐसा नहीं है इससे बड़ा सुख और कुछ हो ही नहीं सकता सुख की तलाश में कितने इंसान भटकते रहते हैं खोजते रहते हैं सुख कहां मिलेगा और यह नहीं पता होता है सुख तो उनके मन में है दिल में है दिमाग में है उनकी सोच में है जिस दिन अपनी सोच को बदल देंगे उस दिन उन्हें मानसिक शांति मिल जाएगी शांति संतुष्टि की सुख है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
  वास्तव में मानसिक शांति से बड़ा कोई सुख हो ही नहीं सकता और सत्य यह है कि मैं पिछले कई दशकों से मानसिक पीड़ा झेल रहा हूं। इसलिए स्पष्ट शब्दों में कह सकता हूं कि दाम्पत्य सुख भी मानसिक शांति से बड़ा सुख नहीं है। अर्थात समस्त सुख तभी संभव होते हैं जब मानसिक शांति का सुख प्राप्त होता है।
       गृह कलह भी मानसिक अशांति का कारण बनता है। पति-पत्नी से लेकर राष्ट्रीय स्तर की तू-तू मैं-मैं भी मानसिक तनाव का ही प्रतिबिंब होता है। मानसिक तनाव ही आत्महत्या और उग्रवाद की आधारशिला है।
       आधुनिक काल की राजनीति और अर्थव्यवस्था का संतुलन भी मानसिक अशांति से प्रभावित है। यहां तक कि पत्रकारिता भी मानसिक अशांति से अछूती नहीं रही और निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक के पत्रकार मानसिक तनाव से ग्रस्त हैं। जबकि लेखकों और शोधकर्ताओं को तो पहले ही विशेष श्रेणी में रखा जाता है। 
       अतः वर्तमान समय की मानसिकताओं को ध्यान में रखते हुए सरकार को चाहिए कि वह राष्ट्रहित में राष्ट्रीय स्वास्थ्य विकास एवं सदृढ़ अर्थव्यवस्था हेतु  प्रथामिक चिकित्सालयों में विशेष डाक्टरों की श्रेणी में मनोचिकित्सकों को भी तैनात करे।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
सांसारिक जीवन में अनेकों  आकर्षण बिखरे पड़े हैं जिनके पीछे मनुष्य भाग रहा है और नहीं मिलने से बहुत दुखी होता है  । यह  बहुत बड़ी सच्चाई है । ऐसे में यदि  किसी के पास शान्ती धन है तो वह बहुत सुखी है । यहाँ तोआपसी 
प्रतिस्पर्धा इतनी ज्यादा है कि हर क्षेत्र में हर  कोई आगे निकलने की होड़ में लगा है ऐसे में शान्ती कैसे मिले ।जिसके पास सन्तोष है 
वह चैन की नींद सो रहा है ।सन्तोष से ही मन की शान्ती प्राप्त होती है ।अशान्तमन सफलता भी नहीं प्राप्त कर सकता है ,वह सही निर्णय भी नहीं  ले पायेगा ।इसलिए मानसिक शान्ती से बड़ा केई सुख नहीं है सारी उपलब्धियाँ  मानसिक शान्ती से ही प्राप्त की जा सकती हैं
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
 मानसिक शांति से बड़ा कोई सुख नहीं हो सकता। सच्ची सुख शांति मन की मनमानी करने से नहीं मिलती। लालसाओं की ज्यों-ज्यों पूर्ति की जाती है, तृष्णा बढ़ती जाती है--जिसका परिणाम असंतोष एवं अशांति के सिवा और कुछ नहीं मिलता। यह चंचल मन अनंत, असीम अभिलाषाओं का अभियुक्त होता है। ऐसी दशा में उसे कभी संतुष्टि नहीं मिलती। निर्बल मन की वितृष्णा पर विवेक शीलता का परिचय देकर सात्विकता पूर्ण तरीके से शांत करने की जरूरत होती है। कामनाओं का दमन कर आत्मसंयम से आत्मसंतुष्टि द्वारा मानसिक शांति को बरकरार रखना अनिवार्य है क्योंकि मानसिक शांति से बड़ा कोई सुख नहीं होता। चंचल मन कभी मायाजाल में फंस कर, कभी बाह्य आडंबर को पूर्ण करने में, कभी भौतिक सुख-साधनों को प्राप्त करने हेतु सदा लालायित ही रहता है। कितने भी सुख-साधन हो पर मानसिक शांति न हो तो इंसान का मन अशांत ही रहता है। इसलिए कहा गया है कि मानसिक शांति से बड़ा कोई सुख नहीं होता।
             -  सुनीता रानी राठौर 
              ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश


 " मेरी दृष्टि में " मानसिक शान्ति के कई साधन है । जिसमें प्रमुख है कि कार्य के सम्पन्न होने से है । मानसिक शान्ति से प्राप्त सुख की सर्वश्रेष्ठ सुख कहलाते हैं ।
 - बीजेन्द्र जैमिनी

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