क्या सदाचार से ही सम्मान मिलता है ?

सदाचार जीवन का आधार है । जो प्रभु भक्ति से लेकर जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण करता है । जिससे जीवन में सदाचार कायम हो जाऐं । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
सत्य और दया भाव आचरण करने वाले व्यक्ति को ही स्म्मान मिलता है।जो मनुष्य मूल्य चरित्र और नैतिकता के साथ जीता है।वह ब्यक्ति अपने आप मे सम्मानित रहता है।ऐसे मानव को सामान से नही सम्मान की जरूरत होती है। सामान की नही।
अतः सदा चारी ब्यक्ति को ही स्म्मान मिलता है।
-उर्मिला सिदार 
रायगढ -छत्तीसगढ़
सदाचारी का सम्मान होता ही है,बल्कि हार्दिक सम्मान होता है। इसका कारण कि उसमें आत्मसम्मान भी होता है।सम्मान मिलने में सदाचार महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।सम्मान कोई ऐसी वस्तु नहीं,जिसे ऐसे ही हासिल कर लिया जाएं,खरीद लिया जाए। कितना ही त्याग और बलिदान इसके पीछे होता है।ऐसा भी होता है कि कभी कभी इस सबके बावजूद भी सम्मान न मिले लेकिन इतना जरूर है कि अपमान भी नहीं होगा। वैसे सदाचारी होने से मन में जो आत्मसम्मान का भाव जागता है,यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। यूं तो जनता, समाज दुराचारी के प्रति भी सम्मान भाव दर्शाते मिलते हैं, लेकिन केवल उसके सामने ही और वह भी उसके भयवश।ऐसा सम्मान बस सामने ही सामने दिखावटी होता है। सदाचारी का सम्मान मन से और वास्तविक होता है। सदाचार की महक दूर तक जाती है,और जो भी उसके संपर्क में आता है, आनंदित हो जाता है। ऐसे कितने ही उदाहरण है, जिनके सदाचार के कारण सदियों बाद भी लोग मन से उनके प्रति सम्मान का भाव रखते हैं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
भ्र्ष्टाचार की डिग्रियां लिए घूम रहें हैं लोग
जो सदाचार की जमात में अकसर गैर हाजिर रहा करते हैंl दुराचार का सदाचार पर विजय पर्व हमारी दैनिक साधना, पूजा, उपासना का आवश्यक अंग होना चाहिए क्योंकि आत्मनियंत्रण विजय की सबसे बड़ी कुंजी है l संयम और सदाचार हमें मान सम्मान प्रदान करता है l
    शौर्य का आभूषण वाणी संयम है l ज्ञान का आभूषण शांति, शस्त्र का आभूषण विनय है l
     धर्म की शोभा क्षमादान से, कर्म की शोभा निष्कपटता है और सदाचार सभी आभूषणों का आभूषण है l यूँ कहूँ कि सदाचार वो आभूषण है जो संसार में आपको महान से महानतम बनाने की क्षमता रखता है l
सदाचार हमारे दृष्टिकोण को परिष्कृत करके ऊंचाइयाँ प्रदान करता है जिससे मान सम्मान दिन  प्रतिदिन आपके समीप आते जाते हैं l
जीवन एक परीक्षा है l उसे समाज उत्कृष्टता की कसौटी पर ही कसता है l जीवन में खरा सोना बनने के लिए सदाचार का आभूषण हमें धारण करना चाहिए l सभी सांसारिक सफलताएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि हम अपना सुधार, निर्माण और विकास सदाचार से करते हैं या भ्र्ष्टाचार से l
        ----चलते चलते
 परिहास न करें उनका
जो सदाचार अपनाते हैं l
त्यागो उनको जो हरपल
 भर्ष्टाचार  सिखाते हैं l
     - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
अवलोकन में पाती हूँ कि दुराचारी व्यभिचारी, या अनाचारी को सम्मानित होते देखने का अवसर नहीं मिल पाया, लेकिन राजनीति अपवाद है।
संस्कार-परवरिश और सत्संगति के अभ्यास से विद्या, विनम्रता, धैर्यता, संतोष, सहिष्णुता, अहिंसा, संयमी, क्षमाशील, मन और वचन से एकता तथा अक्रोधी होना आदि अनेक सदाचार के गुण विद्यमान होते हैं । 
परिवार, समाज तथा देश के उन्नति के लिए प्रत्येक मनुष्य में सदाचार के गुण अनिवार्य रूप से होने आवश्यक हैं ।
सदाचार अपनाना सरल-सहज कार्य नहीं है । बाल्यावस्था से प्राप्त संस्कार परवरिश व सत्संगति से सदाचार के बीज रोपण होता है जो कालान्तर में उसका फल समाज को वापस मिलता है। सदाचारी होना तपी होना है। तपस्यारत को सम्मान मिलना स्वाभाविक है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
   . आचार -विचार, व्यवहार ,भाषा, सदभावनाएं ,सुकर्म किसी भी व्यक्ति के जीवन में चार चाँद लगा देते हैं। सदाचार का अर्थ है चोरी ना करना, सत्य बोलना, प्रेम पूर्वक व्यवहार करना, स्त्रियों का सम्मान करना, सब से समानता का व्यवहार करना। यह सब जीवन में उतारना कठिन है । यदि इसमें से कुछ गुणों को भी अपना लें तो अपना ही नहीं हमरे संपर्क में आए सभी का भला हो जाए।घृणा, क्रोध, हिंसा जैसे अवगुणों को प्राणी मात्र के लिए नहीं अपनाना है।  पेड़ -पौधे ,नदी ,पहाड़ को भी सदाचार की जरूरत है। जो सदाचारी है वो चाहे धनहीन हो पर सब उसका सम्मान करते हैं  क्योंकि यह खरा सोना है जो तपने पर और निखरता है ।सदाचार अपने आप में सम्मान है। मनुष्य के मरने के बाद भी उसका गुणगान होता है ।
    - डॉ.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
     सदभावना, सदाचार, परोपकार, मानवता का संदेश देने का प्रयास रहता हैं और जिसके माध्यम से अहसास जनों को मर्यादा में रहने हेतु अनुशंसित किया जाता हैं, जहाँ से प्रारंभिक शिक्षा का महत्व समझने की कोशिश और अपनी सार्थकता को सम्पादित करने में सक्षम रहते हैं। अनेक जन सम्मानों का तिरस्कार करते हैं,  फिर अनावश्यक रूप से अनेतिक मायाजालों में फँसकर रह जाते हैं। आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः अपराधित्व प्रवृत्तियों के रुपों में सिद्धहस्त करने सबसे बड़ी ताकतों को प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जिसका प्रतिफल कुछ भी हो सकता हैं, जिसका प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष उदाहरण विगत दिनों देखने को मिला और जहाँ समस्त सम्मान मिलना चाहिए था, अब अपमानित का सामना करना पड़ रहा हैं। जिसके शासन और प्रशासन दोषी नहीं, अपितु हम नैतिकतावादी बन कर दिखाने का प्रयास करते हुए, स्वयं अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं हो सकें। क्या भविष्य में कोई दुष्परिणाम सामने नहीं आये? जितना हम अपने  क्रोधों का आचमन पीते हुए दिखाई देखेंगे, उतना ही भरोसा मजबूत होगा,  मिलन होगा, सदाचार से ही ज्ञानोदय का प्रकाश जगमगाता दिखाई देगा।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
सदाचार ऐसा आचरण जिसमें असताना हो सत्यता ही हो जिस व्यक्ति में सत्य होता है उसे समाज मैं परिवार में हर जगह सम्मान मिलता है। सदाचार अनमोल सत्य इसकेआगे दुनिया की हर चीज फीकी  है।
सदाचारी बनना कोई सरल कार्य नहीं सदाचारी बनाने के लिए बचपन से ही संस्कारवान बनाना पड़ता है। सत्संग अगर वृक्ष है तो सदाचार फल। यदि मनुष्य सत्संग न कर पाए तो कुसंग भी नहीं करना चाहिए।
- पदमा तिवारी 
दमोह - मध्य प्रदेश
सदाचार के सार यह  है कि व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता का अतिक्रमण किए बिना अपना गौरव बनाए रखें।
सदाचार का अर्थ है उत्तम आचरण।
सत +आचार। सदाचार शब्द में सत्य आचरण की ओर संकेत किया गया है ऐसा आचरण जिसमें सब सत्य हो और तनिक भी असत्य ना हो। जिस व्यक्ति में सदाचार है उसे संसार में सम्मान मिलता है।
लेखक का विचार:--सदाचारी व्यक्ति में सहिष्णुता,क्षमा, संयम, अहिंसा और धर्म आदि गुण होते हैं,जिनके कारण वह कभी भी तनावग्रस्त नहीं रहता और सदैव आनंद में रहता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
यह प्रकृति का नियम है सदाचारी को ही सम्मान मिलता है।
*संत का अर्थ-पवित्र आत्मा,
परोपकारी, सदाचारी*
साधु त्यागी महात्मा ईश्वर भक्त धार्मिक पुरुष आदि ।
संत एक बहुत विशाल शब्द है इसका अर्थ समझ पाना और कह पाना बहुत मुश्किल है यह एक सागर है।
साधु और संत
शांति से निकला हुआ जिसका अर्थ निवृत्ति मार्ग या वैरागी होता है। संत  व्यृत्पति शांति शांति सत्य आदि से।कुछ विद्वानों ने इसे अंग्रेजी शब्द का हिंदी रूपांतरण माना है।
पवित्रता पवित्र करने वाला तीर्थों को भी संत भाव से पवित्र करता है और कुछ तो निष्काम ईश्वर से प्रेम करते हैं कुछ सगुण होते हैं और कुछ निर्गुण होते हैं।
साधु का अर्थ साधक होता है सात्विक गुणों को धारण करने वाला सत्य के मार्ग पर चलने वाला ।
संत शांत प्रवृत्ति-का स्वामी ऐसा व्यक्ति जो जिस क्षेत्र में हो निश्चल मानवता के भाव से कार्यरत होता है जिसमें वह सब सिद्धांतों का आदर करता है जो स्वयं को बाह्य के दिखावे या दबावों से मुक्त होता है जो सामाजिक सुधार एवं हित के कार्य या उपदेश या आदर्श प्रस्तुत करता हो जो समाज के लिए प्राण भी दांव पर लगा देता है ऐसे अनेक संत हुए हैं जैसे कबीर दास जी स्वामी विवेकानंद , दयानंद सरस्वती चैतन्य महाप्रभु परशुराम बाल्मीकि दुर्वासा आदि बहुत सारे संत और साधु हुए हैं रामायण में  भी महाराजा जनक को बहुत बड़ा संत माना गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो रामायण में लिखा है कि कलयुग में खड़ा चंदन और न मृदुल वाणी वाले भी संत मिलेंगे।
उदाहरण के लिए दुनिया के महान वैज्ञानिक भी अपनी खोज से समाज का भला करते हैं वह भी एक संत के समान ही होते हैं जैसे अपने दिमाग की कोशिकाओं को दिन रात खोज के लिए जुटा देते हैं ।
वैज्ञानिक एडिशन अपनी उन परिकल्पना को वास्तविक रूप देने के लिए साकार के लिए उत्सुक थे उन्होंने पोलियो के टीके की खोज करके दूसरों को इस खतरनाक बीमारी से ग्रसित होने से बचाया ।महान नोबेल विजेता वैज्ञानिक मैडम क्यूरी ने भी मानव जाति की सेवा अपने  रेडियम की खोज से की थी।
फ्लेमिंग ने पेनिसिलिन की खोज की।
महात्मा गांधी के जीवन में भी महान विचारक लियो टॉलस्टॉय
की लिखी हुई किताब पढ़ी थी तभी उनके जीवन में परिवर्तन आया।और उनकी किताब पढ़ कर बहुत ज्यादा उनके विचारों से प्रभावित हुए थे।
इस जगत में  बहुत कुछ करने के लिए है आप जो भी पुस्तकें पड़े उसका आपको सही चुनाव होना चाहिए वह आप महान विचारक की भी पढ़ सकते हैं। स्वामी विवेकानंद विवेकानंद बनने से पहले नरेंद्र नाथ थे जब वे रामकृष्ण परमहंस की शरण में आए तब वे स्वामी विवेकानंद बने एक अच्छे गुरु का होना बहुत आवश्यक है। और एक अच्छे गुरु को एक अच्छे शिष्य की बहुत आवश्यकता होती है इसका उदाहरण हमको इतिहास में  सुकरात महान दार्शनिक और वैज्ञानिक थे और उनका शिष्य प्लूटो जिसको सारा विश्व जानता है।
आजकल संत बहुत तरीके के हैं संते के वेश में बहुत सारे लोग अपना अपना व्यापार चला रहे हैं। आप सभी को यह चुनना है कि आपको कैसा बनना है सारी दुनिया में ज्ञान भरा पड़ा है यह तो आपके ऊपर है कि आप कौन सा ज्ञान लेते हैं और कौन से संत को चुनते हैं यह धरा बुरे व्यक्ति हैं, तो अच्छे व्यक्ति भी हैं तभी यह संसार टिका हुआ है अंत में जीत सच्चाई की ही होती है ये ज्ञान हमें संस्कृति और महान महाकाव्य देते हैं । 
काम क्रोध मद लोभ  सब,
नाथ नरक के पंथ।
सब परि हरि रघुवीरहि,
भजहु भजसि जेहि संत।।
जय हिंद जय हिंदी
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
हाँ ? सदाचार से ही सम्मान मिलता है। जीवन में अगर सदाचार न हो तो सम्मान मिलना मुश्किल हो जाता है।
सदाचार से ही मनुष्य की गिनती सम्मानित व्यक्तियों में कई जाती है। हर जगह वह प्रशंसा का पात्र बनता है। आदमी के विचार उसके व्यवहार उसका चाल-चलन व्यवहार सबकुछ अच्छा रहता है तो उसे लोग सदाचारी
व्यक्ति कहते हैं। और उसे हर जगह सम्मान मिलता है। चाहे वो उसका घर हो या दफ्तर पास-पड़ोस हो या गाँव-नगर सब जगह उसे सम्मान मिलता है। अच्छे विचार और अच्छे व्यवहार से ही लोग सम्मान के अधिकारी बनते हैं। क्योंकि सदाचार और सदाचारी सभी को पसंद आते हैं।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
सदाचार शब्द की उत्पत्ति सत्+आचऻर दो शब्दों के मेल से हुई है।अर्थात सदा सत्य का आचरण करना,सच बोलना, गुरुजनों व बड़ों का सदा आदर करना, सदा अच्छा व्यवहार करना सदाचार कहलाता है । सदाचारी व्यक्ति में इन श्रेष्ठ गुणों का होना अति अनिवार्य है  ।अतः सदाचार मानवीय व्यवहार में एक अमूल्य आभूषण है ,जिसकी चमक अनवरत बढ़ती ही जाती है।जिस प्रकार आभूषण मानव शरीर को अलंकृत करता है उसी प्रकार सदाचार मनुष्य की समाज में मान, प्रतिष्ठा बढ़ाता है। सदाचारी व्यक्ति समाज में सदैव श्रेष्ठ सज्जन कहलाता है। जीवन में सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाने वाला व्यक्ति सदा सुख और शांति का जीवन व्यतीत करता है।  परहित सेवा भावना मनुष्य को समाज में सम्मानीय दर्जा प्रदान करती है।  धैर्य, संयम,परोपकार, सहनशीलता, ज्ञान ,योग्यता सदाचारी मनुष्य के परम मित्र माने गए हैं ।
प्रायः यह देखा गया है कि धन दौलत से भी इतना सम्मान नहीं मिलता जितना सदाचारी  गुण युक्त आचरण से मनुष्य को मिलता है।  सदाचार सदैव कार्य करण होना चाहिए ,समाज में उसका उदाहरण अवश्य होना चाहिए।  
विश्व में ऐसे अनेकों अनमोल हीरे पैदा हुए हैं जिनकी कीमत कभी आंकी नहीं जा सकती। "महात्मा गांधी जी "के पास कोई धन दौलत नहीं थी मगर अपने सदाचार, सद् व्यवहार के गुण के कारण वे संसार में अमृत्व पा गए।  अतः सदाचार ही मनुष्य को समाज में मान ,सम्मान, इज्जत, शोहरत दिलाता है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
भारत की सभ्यता का इतिहास विश्व में सर्वविदित है। सदाचार के अनगिनत उदाहरण लिये भारत का प्राचीन इतिहास यह बताता है कि यह देश सदैव ही सदाचारियों का देश होने के कारण विश्व में सम्मान प्राप्त है। सदाचार की परिभाषा आज भी वही है और सदाचार से ही सम्मान मिलता है। परन्तु दुःख इस बात का है कि हम अपनी सदाचारी संस्कृति और सभ्यता को भूलते जा रहे हैं। हमें स्वयं में और आने वाली पीढ़ियों को सदाचार की सौगात देकर जाना होगा तभी हम यह संस्कृति कायम रख सकेंगे।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
सदाचार जीवन की परिपाटी का कलात्मक गुण होते हैं ।जिनके कारण लोगों के सम्मान की दिशाएं मिलती है लोगों की गतिविधियों में सदाचार का होना अति आवश्यक होता है। सदाचार मानव का एक कलात्मक गुण होने के साथ-साथ जीवन का आधार स्तंभ होता है।  हम सदाचार के साथ अपने सारे कृतज्ञ को सारे  गतिविधियों को प्रेम पूर्वक अंजाम दे सकते हैं सदाचार से मानवता पलती है मानव में प्रेम रस संचार होता है सदाचार शिष्टाचार से ही इंसान इंसानियत की तुलना में आते हैं जिस व्यक्ति में सदाचार की कमी पाया जाता वह व्यक्ति मानवता के पथ पर निरंतर अग्रसर नही होते हैं ।सदाचार जीवन को एक मूल आधार देता है सदाचार जीवन की धरोहर है हमारी सभ्यता संस्कृति को बनाए रखने में सदाचार की भूमिका अहम होती है व्यक्ति के अस्तित्व मे सदाचार शिष्टाचार दर्शाने में सामर्थ्य दिखाती है जो व्यक्ति सदाचार की ओर नहीं जाते, वह सफलताओं के सिढि़यों का चुंबन नहीं करते हैं सदाचार का होना जीवन में बेहद सम्मानजनक होता है व्यक्तियों के गुण में सदाचार का गुण शिष्टाचार सरलता संवेदनाएं दर्शाती है सदाचार से सम्मान मिलता है जहां पर अभिनंदन वंदन की प्रक्रिया उड़ाई जाती है वहां पर व्यक्तियों के सदाचार होने का एक साक्ष्य प्राप्त होता है। सदाचार ही इंसान को इंसान बनाती है अज्ञानता  के कारण सदाचार को लोग उसकी कमजोरी समझते हैं परंतु सदाचार  जीवन के मूल तत्व के एक स्तंभ है। जीवन में खुशियां आती है सदाचार से ही जीवन में परिवार की एकता बनी रहती है। सदाचारी जीवन में सम्मान की प्रक्रिया को बार-बार सामने लाकर खड़ा करता है अतः सदाचार से जीवन में सम्मान सफलताएं मिलती है ।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
सदाचार से ही सम्मान मिलता है इसे यदि यूँ कहा जावे तो सदा उपयुक्त होगा कि सदाचार से भी सम्मान मिलता है। यदि सम्मान की बात करें तो इसे पाने या मिलने के अनेक क्षेत्र और कारण हो सकते हैं। पद ,उम्र , प्रतिभा, बल आदि अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जो सम्मान देने या पाने में सहायक होते हैं, भले ही इसका कारण औपचारिकता या विवशता हो। हाँ, लेकिन सदाचारी के लिए तो सम्मान मिलना ही मिलना है।  सदाचार जीवन की वह चारित्रिक विशेषता है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को सजाती- सँवारती है और व्यवहारिक रूप से सरल,सहज व सुदृढ़ कर  पारिवारिक एवं सामाजिक रूप से संबंधों को प्रगाढ़ बनाती है। इस प्रकार ये संबंधों की प्रगाढ़ता ही सम्मान का पथ सुनिश्चित करती है। यही सम्मान देना और पाना सुख-शांति, सद्भावना की सुगंध से वातावरण को महकाकर सरस और सुंदर बनाती है। ललक और लालसा जगाकर सहज व सरल जीवन जीने का उत्साह जगाती है।
अतः सार यही कि सदाचार न केवल सम्मान के लिए बल्कि  जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण है। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
उत्तम आचरण और सद आचरण
जो व्यक्ति सत्य ,अहिंसा, प्रेम ,उदारता को अपने में चरितार्थ करता है वह सदाचारी कहलाता है ! जिस व्यक्ति में यह गुण होते हैं वे तनाव-मुक्त होते हैं !वे किसी भी बात को लेकर जल्दी  क्रोधित नहीं होते ! मर्यादा की सीमा में रह सहिष्णुता दिखाते हुए बिना किसी हिंसा के सत्य को साथ लेते हुए समस्या का समाधान करते हैं !ऐसे व्यक्ति का सभी सम्मान करते हैं ! 
किंतु सदाचारी बन सम्मानित होना सहज नहीं है 
हमारे चरित्र का निर्माण में परिवार और समाज की महत्वपूर्ण भूमिका है ! सदाचार के बीज बचपन से ही बो दिये जाते हैं ! सदाचार से प्रतिष्ठित सम्मान तो मिलता है साथ ही सदाचारी प्रेरणास्रोत भी बन जाते हैं !
विवेकानंद ,रविंद्रनाथ टैगौर ,महात्मा गांधी आदि ने सत्य ,अहिंसा , न्याय , क्षमा सरलता ,बुद्धि  आदि गुणों से ही तो समाज का हित किया और सदाचारी कहलाये ! आज हमारी नजरों में उनकी कितनी प्रतिष्ठा और सम्मान है !
सदाचार व्यक्ति को सम्मानित तो करता है साथ ही उच्च और वंदनीय बनाता है !
               - चंद्रिका व्यास
              मुंबई - महाराष्ट्र
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि क्या सदाचार से ही सम्मान मिलता है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा हां यह बात बिल्कुल सही है कि सदाचरण चारित्रिक गुणों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण कार्य करता है सदाचारी व्यक्ति अपने जीवन में दूसरों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता रहता है जिसे देखकर युवा तथा अन्य दूसरे लोग भी उसका अनुसरण करते हैं और इससे उस सदाचारी व्यक्ति को सम्मान प्राप्त होता है तो समाज देश का भी भला होता है और इस प्रकार सदाचरण न केवल स्वयं सदाचारी व्यक्ति के लिए बल्कि किसी भी देश और किसी भी समाज के लिए बहुत आवश्यक है इसी से उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त होता है ।
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
सदाचार दो शब्दों को जोड़ कर बना है सत+अचार। सत का अर्थ  सत्य, सही और आचार अर्थात आचरण। सम्मान का तात्पर्य सद्व्य़वहार से होना चाहिए न कि किसी वस्तु या तमगा से।
       सदाचार से हमें सम्मान मिलता है या नहीं इसे समझने के लिए हमें दो बातों पर विचार करनी होगी। पहले इसके विपरीत अर्थ दुराचार पर विचार करें अर्थात दुराचार से सम्मान की प्राप्ति सम्भव है क्या ..? जवाब है कदापि नहीं।  
तो अब सम्मान हमें सदाचार से मिलेगा या नहीं मिलेगा। यदि हमारा आचरण अर्थात विचार, व्यवहार सही है, सभी के हित में है तो निश्चित हमें सम्मान मिलेगा। मगर यहॉं एक बात और साफ होनी चाहिए कि सम्मान से हमारा तात्पर्य क्या है । सम्मान में यदि हम कोई तमगा या कोई वस्तु की कल्पना करते हैं तो हमें निराशा होगी। क्योंकि वो कोई खास पुरस्कार होगा जो पूर्व घोषित कार्य के परिणामस्वरुप दिया जाता है।  हर नेक काम पर हर पल कोई वस्तु पुरस्कार में मिले ये सम्भव नहीं। 
तो मन में ये प्रश्न अवश्य उठेगा कि जब हर नेक काम पर पुरस्कार नहीं मिलेगा तो फिर सदा नेक काम करने की जरुरत क्या है? 
जब कोई दूसरा व्यक्ति हमारे साथ भद्र व्यहार करता हैं तो वो  भी एक तरह का पुरस्कार ही है। हमारे अच्छे आचरण पर भी कभी-कभी कोई हमारे साथ गलत  व्यहार करता है या कर  सकता है। ऐसी स्थति में हमें आत्मसंतुष्टी होती है कि ये मेरे गलत व्यवहार का फल नहीं है। यहाँ यही हमारा पुरस्कार है। जब सामने वाला कोई भी अन्य व्यक्ति हमारे व्यवहार से प्रसन्न है, उसे आराम मिलता है या हमारा व्यवहार उसे अच्छा लगता है और वो बदले में हमसे दो मीठे बोल बोलता है तो यही हमारा सम्मान और पुरस्कार है।
   अतः हम कह सकते हैं कि सदाचार से ही सम्मान मिलता है। 
       -  प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'
पटना - बिहार
"हे प्रभो! आनन्द दाता, ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिए।। 
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बनें। 
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक, वीर व्रत धारी बनें।।"
हम नित-नित ईश्वर से यह प्रार्थना करते हुए मन-वचन-कर्म से सदाचारी बनने का प्रयास करें, यही मानव-धर्म है। 
सदाचार मनुष्य का वह गहना है जिसकी तेजस्विता में व्यक्ति दिन-प्रतिदिन निखरता है। शनैः-शनैः उसके आचरण का निखार उसको सम्मान का पात्र बनाता है। 
सदाचार का मार्ग सहज-सरल नहीं होता। सदाचारी को मानवीय दुर्गुणों, यथा-स्वार्थ, लोभ-लालच, घृणा-द्वेष, वैमनस्यता, क्रोध, अंहकार, दुर्गुण आदि-आदि को त्यागकर मानवहित के उपयोगी व्यवहारों और विचारों को अपनाकर सदैव परोपकार, परहित और सदाशयता के भावों से स्वयं को सज्जित करना होता है। सज्जनता और विनम्रता जैसे सद्गुण सदाचार में वृद्धि करते हैं। 
निष्कर्षत: सदाचार मनुष्य को सदैव सद्कर्म करने के लिए प्रेरित करता है और इसीलिए उसको सदैव सम्मान प्राप्त होता है। 
"मानव वही समझे जो, मानवता का मर्म, 
सदाशयता हो मन में, स्वभाव मधुर नर्म। 
सदाचार की राह पर, बढ़ते जायें कदम, 
सदाचार ही धर्म हो, सदाचार ही कर्म।।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड।
यदि ये कहा जाये कि क्या सदाचार से *भी*  मिलता है तो मैं कहूँगा हाँ।   क्युँकी आज कल सम्मान के मायने बहुत बदल गए हैं।  सम्मान देने / पाने  के लिए नित नए ऑनलाइन समूह खोले जा रहे है जहां सम्मान सिर्फ नाम लिखवाने से ही बिन मौसम बरसात की तरह बरसने लगता है।  व्यंग नहीं माननीय सम्पादक जी यथार्थ है।  अब रही दूसरी बात सदाचार को आपकी मानसिक दैहिक व् आत्मिक कायरता भी मान लिया जाता है।  इसका उद्धरण  सामने है।  आज का किसान आंदोलन मैं इसकी गहराई में नहीं जाऊंगा क्यूंकि मामला अतिसंवेदन शील हो गया है किसानो के  नाम में , आजकल न जाने कैसे कैसे आंदोलन करता इसमें जुड़ गए हैं अपने अपने व्यक्तिगत लाभ के  लिए / हां तो मैं  सम्मान की बात कर रहा था जैसे २६ जनवरी को  देश का व् देश के राष्ट्रिय ध्वज सम्मान खंडित हुआ अपने व्यक्तिगत सम्मान को   न जाने  कौन सा सदाचार पेश किया गया आंदोलन व्ही था किसान लेकिन किसान तो नहीं था वहाँ . खैर जो भी  था एक  के सम्मान को अपमानित कर अपना जबरदस्ती का हिंसात्मक तरीके से  सम्मान वाह  जी  वाह लेकिन उनके लिए शायद सदाचार का व्ही उत्कृष्ट उदाहरण खैर.  अब चलिए संसद  में   जहाँ चुन चुन के सदाचारी भेजतेहैं लेकिन यही सब लोग उनमे से  चुनिंदा लोग उस स्थान के सम्मान को दूषित करना बहुत बड़ा सम्मान समझते हैं अब मन कितना  आहत
होता है - मेरे हिसाब से निष्कर्ष ये  हुआ कि सम्मान की सदाचार से जुड़ाव तो है लेकिन शाश्वत नहीं //  हाँ एक सभ्य इंसान के लिए यही आज की चर्चा एकदम माकूल प्राबधान हो सकता है.  
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
सदाचार व्यक्तित्व का अद्वितीय गुण है जिसमें सम्मान आदर मधुर वाणी त्याग समर्पण सहनशीलता विवेक जैसे अच्छे विचार समाहित रहते हैं इन गुणों के कारण व्यक्ति परिवार समाज देश में सम्मानीय बन जाता है सदाचार के गुण हर व्यक्तित्व में मौजूद है सिर्फ जरूरत है उन्हें विकसित करने की और यह विकसित करने की प्रथम तरीका परवरिश है परवरिश एक प्रकार का प्रशिक्षण है जिसके माध्यम से बच्चों में बचपन से ही इन गुणों को विकसित किया जाता है
आज हमारे सामने ऐसे अनेक व्यक्तित्व हैं जिनके आचार विचार प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं रविंद्र नाथ टैगोर बापू स्वामी विवेकानंद इत्यादि का चरित्र और विचार व्यक्तित्व प्रेरणा स्रोत है
सदाचार ही व्यक्ति को मान सम्मान दिलवाड़ा है व्यक्तित्व का रंग रूप सदाचार के आगे फीका हो जाता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
       यह कहना मेरे लिए अत्यंत कठिन है कि सदाचार से ही सम्मान मिलता है। क्योंकि मैंने सदाचारियों का अपमान होते अपनी आंखों से देखा है और भ्रष्ट, बेईमानों को जीवन का आनंद उठाते भी देखा है।
       विडम्बना यह है कि मुझे सदाचार का फल अत्याधिक कड़वा मिला हुआ है और मेरी पुस्तक "कड़वे सच" इस बात की पुष्टि भी करती है कि मेरा सदाचार "पागलपन" समझा गया। 
       यही नहीं मुझे सदाचार के बदले तिरस्कार प्राप्त हुआ। मेरी देशभक्ति को "देशद्रोह" की संज्ञा दी गई और मुझे मेरे मौलिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया गया। बल्कि यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि मेरे साथ-साथ इसका फल मेरे बीवी-बच्चों ने भी भोगा है और हम सब भोग भी रहे हैं।
       उल्लेखनीय यह भी है कि जब मैंने सदाचार का पालन छोड़ कर कड़ा रुख अपनाया तो मुझे रेडियो व दूरदर्शन के कार्यक्रम मिलने आरम्भ हुए। एक नई पहचान मिली और जैमिनी अकादमी का सहयोग मिला। जिन्होंने मुझे सिखाया कि "कानों" को सीधे न पकड़ते हुए थोड़े टेढ़े पकड़ो। 
       मैंने उनकी शिक्षा को शिरोधार्य किया और दूसरों की गर्दन को उनकी औकात के अनुसार मरोड़ना आरम्भ कर दिया। विचित्र प्रतिक्रियाओं का शुभारंभ हुआ और धीरे-धीरे सफलता मेरे कदम चूमने लगी।
       अतः कैसे मान जाएं कि सदाचार से ही सम्मान मिलता है? सत्य तो यह प्रमाणित हो रहा है कि "न्याय" भी मिलता नहीं है बल्कि उसे छीनना पड़ता है। 
       जबकि शिक्षा यही मिली थी कि मानव को गुरुजनों का आदर करना चाहिए, सदा सत्य बोलना चाहिए, बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए, किसी प्राणि को कष्ट नहीं पहुचाना चाहिए, मधुर वचन बोलने चाहिए, विनम्र रहना चाहिए और देश के लिए मर-मिटने के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए। शिक्षा तो यह भी मिली हुई है कि मुहल्ले को बचाने के लिए यदि घर उजड़ जाये तो मुहल्ले को बचाना चाहिए। चूंकि उसे ही सदाचारी माना जाता था। परंतु अब नहीं माना जाता। जिसे निंदनीय कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
      मनुष्य के चेहरे पर सदाचार का लेबल नहीं लगा होता।मनुष्य अपने आचार ,व्यवहार अर्थात ईमानदारी, सच्चाई और बुद्धिमता को कर्म द्वारा प्रस्तुत करे, तब हमें उस के सदाचार का पता चलेगा ।सदाचार के आगे दुनिया के धन दौलत की चमक फीकी होती है। सदाचार ऐसा अनमोल हीरा है जिसकी कोई कीमत नहीं आंकी जा सकती।दुनिया में ऐसे लोग भी हुए हैं जिनके पास धन दौलत नहीं थी लेकिन अपने सदाचार से दुनिया भर का मान सम्मान प्राप्त किया। मान सम्मान धन दौलत से नहीं खरीदा जा सकता। यह तो अपने सदाचार से कमाया जाता है। 
        सदाचारी बनने के लिए ईमानदारी और सच्चाई का होना आवश्यक है। ईमानदार व्यक्ति गरीब होते हुए भी धनी होता है क्योंकि ईमानदार के कामों से सम्मान और आनन्द मिलता है। जो धनवान है लेकिन बेईमान है, उसे कभी भी सम्मान और आनन्द नहीं मिल सकता।सदाचार से युक्त  मनुष्य हर जगह पूजा जाता है। सदाचार सफलता का मार्ग है जो हमें मंजिल तक पहुँचाता है। अच्छे व्यवहार से कठिन काम भी सहजता से हो जाते हैं। 
   - कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
 सदाचार यानी उत्तम आचरण।जिस व्यक्ति का आचरण उत्तम हो उसे संसार में सम्मान अवश्य मिलता है। सदाचार शब्द सत्य और उत्तम आचरण की ओर संकेत करता है।
  सदाचार की चमक के आगे संसार के हर धन दौलत की चमक फीकी होती है। सदाचार एक ऐसा अनमोल हीरा है जिसकी कीमत नहीं आंकी जा सकती। ईसा मसीह, गुरु नानक, रविंद्र नाथ टैगोर, महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों के पास कोई धन दौलत नहीं थी उनके पास सदाचार रूपी अनमोल हीरा था जिसके कारण उन्हें विश्व में सम्मान मिला।
   दुराचार के कारण मनुष्य को घृणा मिलती है जबकि सदाचारी व्यक्ति को हर जगह सम्मान मिलता है। सदाचारी व्यक्ति स्वस्थ व प्रसन्न रहता है। सदाचारी में सहिष्णुता, क्षमा संयम,अहिंसा जैसे गुण होते हैं जिसके कारण वह तनावग्रस्त नहीं रहता --सदैव प्रसन्न चित्त रहते हुए समाज हित में कार्य करता है। धैर्य और सदाचार एक- दूसरे के पूरक हैं। सदाचार अच्छे आचरण पर जोर देता है।
    अच्छे के साथ अच्छा बने पर बुरे के साथ बुरा नहीं क्योंकि हीरे से हीरे को तराशा जा सकता है पर कीचड़ से कीचड़ साफ नहीं हो सकता। सदाचार आत्मिक गुण है जो हमारे हृदय में नैतिकता और सात्विक प्रवृत्ति को भरता है। आज के युग में इंसान में सदाचार की कमी होती जा रही है जिसके कारण वे तनावग्रस्त भी रहते हैं और हिंसात्मक प्रवृत्ति ज्यादा देखने को मिलती है। सदाचार ही ऐसा गुण है जो हमें संसार में इज्जत, प्रतिष्ठा और सम्मान दिलाता है।
           -  सुनीता रानी राठौर
             गेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
सदाचार मनुष्य का लक्षण है, सदाचरण को धारण करना मानवता को धारण करना है। सदाचार दो शब्दों से मिलकर बना है सत्य और आचरण ।सदाचार शब्द से सत्याचरण की ओर संकेत किया गया है ।ऐसा आचरण जिसमें सब सत्य हो तनिक भी असत्य ना हो। जिस व्यक्ति में सदाचार होता है उसे संसार में सम्मान अवश्य मिलता है ।कोई  आपकी सच्चाई व बुद्धिमत्ता के बारे में नहीं जान सकता जब तक आप अपने कार्यों से उदाहरण प्रस्तुत ना करें। प्रत्येक परिवार तथा उसके सदस्य समाज का एक अंग है ।इस समाज में  कुछ नियम और मर्यादा में भी हैं ।इन मर्यादाओं को पालन करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए किसी ने किसी सीमा तक आवश्यक होता है ।
सत्य बोलना ,चोरी ना करना, दूसरों का भला सोचना और करना ,सबके साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करना ,स्त्रियों का सम्मान करना  जैसे कुछ गुण हैं जो सदाचार के अंतर्गत आते हैं। सदाचार का अर्थ यह है कि व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता का अतिक्रमण किए बिना अपना गौरव बनाए रखें। सदाचार का अर्थ है उत्तम आचरण ।सदाचार की चमक के आगे संसार की समस्त फीकी पड़ जाती है।यह वो अनमोल हीरा है जिसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती।ईसा मसीह ,गुरु नानक ,रविंद्र नाथ टैगोर ईश्वर ,चंद्र विद्यासागर, महात्मा गांधी के पास कोई दौलत नहीं थी फिर भी बादशाह थे।
 उनके पास सदाचार रूपी अनमोल हीरा था ।जब तक  वे जीवित थे उन्हें पूरे विश्व का सम्मान प्राप्त था ।सदाचार के कारण ही वह मरकर भी अमर हो गए ।
जहां सदाचार मनुष्य में समाज में सम्मान दिलाता है , वहीं दुराचारी घृणा का पात्र बन जाता है ।श्री राम जैसे सदाचारी का उदाहरण संसार में कोई दूसरा नहीं है ।जबकि रावण कुख्यात दुराचारी था ।आज भी संसार उससे घृणा करता है और अपनी घृणा को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतिवर्ष उसका पुतला फूंका जाता है।
 सदाचारी में दया ,धैर्य और अहिंसा जैसे गुण विद्यमान होते हैं। संसार में सदाचारी को सदैव सम्मान मिलता रहा है। सदाचरण ही मानवता है।
 - सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
सदाचार का जीवन में अत्यधिक महत्व है उसी से अनुशासन बनता है। सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन भी उसी की वजह से सुसंस्कृत  होता है। सदाचार तो परिष्कृत समाज की रीढ़ की हड्डी की तरह होता है जिस पर सभ्य नागरिक जीवन निर्भर करता है। जिस देश के या समाज के नागरिक सदाचारी होंगे वह कभी भी पतन के मार्ग पर नहीं जा सकता। उसकी तरक्की और उत्थान को कोई नहीं रोक सकता। सदाचारी व्यक्ति हमेशा हर जगह सम्मानित होता है इसमें कोई दो मत नहीं।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
"दुर्गुण को न छुपाइये, सदगुण का करो प्रचार, 
अवगुण जो रह जाएगा, 
ले डूवेगा सदाचार"। 
बात सदाचार की हो रही है, 
सदाचार वह स्रोत है यहां से सम्मान का जन्म होता है, देखा जाए तो सदाचार दो शब्दों से मिलकर बना है,
सत्य+आचार, इसका  संकेत सत्य आचरण की तरफ किया गया है, ऐसा आचरण जिसमें सब सत्य हो, 
तो आईये आज की चर्चा इसी बात पर करते हैं कि क्या सदाचार से ही सम्मान मिलता है? 
मेरा मानना है कि जिस व्यक्ति में सदाचार होता है उसे ही संसार में सम्मान मिलता है, देखा जाए  सदाचार की चमक के आगे सारे संसार की चमक फीकी है, सदाचार एक ऐसा अनमोल हीरा है जिसकी कीमत नहीं आंकी जा सकती, यह सच है कि स्वामी दयान्द, रबीन्द्रनाथ टैगोर, ईसा मसीह जैसे महान हस्तियों के पास धन दौलत नहीं धी मगर  बादशाह थे क्योंकी इन लोगों के पास सदाचार रूपी अनमोल हीरा था जब तक जीवत रहे उन्हें पूरे विश्व का सम्मान प्राप्त था  और अपने सदाचार व सहव्यवहार के कारण सदा के लिए  अमरत्तव हो गए। 
यह सच है कि सदाचार मनुष्य को सम्मान दिलाता है और दुराचार घृणा, 
भारत में ही नहीं पूरे संसार में श्री राम जी की पूजा उनके सदाचारी गुण के कारण ही की जाती है, जबकि रावण को दुराचारी कहा जाता है यही नहीं सदाचारी सदैव रोगमुक्त रहता है व प्रसन्नचित भी और दुराचारी हमेशा व्याकुल और रोगग्रस्त, 
सदाचारी बनना इतना आसान नहीं इसके लिए मनुष्य में संयम, क्षमता, अहिंसा, धैर्य इत्यादी गुण होमा जरूरी है जिसके लिए मानव को घोर प्रयत्न करने पड़ते हैं। 
सत्संगति अगर वृक्ष है तो सदाचारी उसका फल है, 
सच कहा है, 
"दान से दरिद्रता का, सदाचार से दुर्गति का, सदभावन से भय का नाश होता है"। 
इसलिए अन्त में यही कहुंगा कि, 
परिवार, समाज तथा राष्टृ की उन्नति के लिए प्रत्येक मनुय्य में सदाचार के गुण अनिवार्य हैं, क्योंकी  सत्य वोलना, चोरी न करना, दुसरों का भला करना, सबसे  प्रेमपूर्वक व्यवहार करना इत्यादी सदाचार में ही आता है, 
इसलिए बच्चों को जन्म से ही सदाचार की शिक्षा देना जरूरी है ताकि वातावरण शुद्द रहे, हम मनुष्य एक समाजिक प्राणी हैं इसलिए समाज के नियमों का पालन करना हमारा  मौलिक कर्तव्य बनता है और सदाचार हमारे संस्कार का अभिन्न अंग है जिसे देवगुण भी कहा गया है और यह सफलता की सर्वोतम कुन्जी है  इसलिए इसे बच्चों में अवश्य जन्म से ही प्रसाद्द रूपी बांटना चाहिए जिससे सारा संसार खुशहाल  व शान्ति प्रिय बना रहे, 
सच कहा है, 
"अनाचार से सभी राज करते हैं, 
सदाचार से करें तो क्या बात हो, 
रावण तो बहुत हैं दूनिया में, 
कोई श्री राम सा बने तो क्या बात हो, "। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी! हम जिसका आचार व्यवहार आचरण अच्छा है वह व्यक्ति सभी जगह पर प्रत्येक के साथ तालमेल बिठा के रखता है। सभी के बीच में रह सकता है, किसी को दुख नहीं पहुंचाता, सभी के सुख का कारण बनता है, जिसकी जुबां पर हमेशा अच्छे शब्द रहते हैं, सकारात्मक सोच रखते हैं, जो सबके हित की बात करते हैं। जो व्यक्ति किसी की उन्नति पर ईर्ष्या द्वेष नहीं रखता वह सदाचारी व्यक्ति सभी को अच्छा लगता है और ऐसा व्यक्ति सभी का सम्मान भी पाता है। वह कभी किसी को अपमानित नहीं करता। जो व्यक्ति की भाषा शब्द सभी को प्रिय लगते हैं जिसके देखने मात्र से सुकून मिलता है ऐसा सदाचारी व्यक्ति सभी जगह सम्मान पाता है। 
- संतोष गर्ग
मोहाली --चंडीगढ़


" मेरी दृष्टि में " सदाचार जीवन की सर्वोत्तम स्थिति है । जो जीवन को सम्मान प्रदान करती है । ऐसी स्थिति हर कोई पाना चाहता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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