क्या व्यर्थ की आलोचना से अपना समय और ऊर्जा नष्ट करनी चाहिए ?

कुछ लोग व्यर्थ की आलोचना करते रहते हैं । जिस की कोई उपयोगिता नहीं होती है । ना ही कोई अर्थ होता है । फिर भी व्यर्थ की आलोचना का चलन जारी है । सिर्फ इससे जलनशीलत ही कहाँ जा सकता है । यही सब कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
कुछ व्यक्तियों को अपने सिवाय अन्य सभी से कुछ न कुछ शिकायत रहती है l ऐसे व्यक्ति व्यर्थ की आलोचना में लगे रहते है वे अपना समय और ऊर्जा नष्ट करते हैं, ऐसे व्यक्ति न तो अपने व्यक्तिगत जीवन में संतोषजनक उपलब्धि हासिल कर पाते हैं और न ही सामाजिक जीवन में अपने दायित्वों, कर्तव्यों को निभा सकते हैं या यूँ कहूँ कि उन्होंने अपनी आँखों पर दुराग्रह का चश्मा चढ़ा रखा होता है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l व्यर्थ की आलोचना से हम उसी अवस्था में बच सकते हैं जब हम मनुष्य के उज्ज्वल पक्ष को देखें l इससे समय और बर्बादी तो रुकेगी, हम स्वयं तो ऊपर उठेंगे, हमारी आत्मीयता का क्षेत्र बढ़ेगा l इसी संदर्भ में महाभारत का आख्यान है कि - गुरुवर द्रोण ने दुर्योधन को इस संसार में अच्छा और युधिष्ठिर को बुरा आदमी ढूंढ़ कर लाने को कहा, दोनों अकेले लौट आये गुरु के पास क्योंकि युधिष्ठिर को संसार में कोई बुरा आदमी नहीं दिखा क्योंकि उन्होंने सभी की अच्छाइयों की ओर ध्यान रखा और दुर्योधन को कोई भला आदमी नहीं मिला क्योंकि उसने मनुष्य की बुराईयों की तरफ ही दृष्टि सोच रखा, जबकि युधिष्ठिर के लिए दुर्योधन भी सुयोधन ही बना रहा l
मानस में लिखा है -
"मम दर्शन फल परम् अनूपा,
तब पावहीं सहज सरूपा l"
हम अपनी आत्मा का दर्शन करें तदानुसार ही आपको सृष्टी का स्वरूप नज़र आयेगा l
व्यर्थ आलोचक को संसार में कुरूपता के अलावा और कुछ नज़र ही नहीं आता, परिणाम यह होता है कि स्वयं की शांति छिन  जाती है, सौंदर्य संवेदना नष्ट हो जाती है और दोष दर्शन (व्यर्थ आलोचना )करने वाला व्यक्ति लांछन, कलंक, लोकनिंदा और तिरस्कार का पात्र बन जाता है l अतः व्यर्थ की आलोचना छोड़कर प्रगतिशील दृष्टिकोण का विकास करके जीवन में आनंद, उल्लास शांति और सहयोग उपलब्ध करें l
          ----चलते चलते
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोई l
जो दिल खोजा अपणा, मुझसे बुरा न कोई ll
ज्ञान की करुणा को जीवन में यदि हम उतार नहीं पाते हैं तो हम अज्ञानी ही है लेकिन वे जिन्होंने प्रेम ज्ञान को जान लिया, प्रेम की भाषा को पढ़ लिया वे बिना अक्षर ज्ञान के भी विद्वान् हो जाते हैं l
    - डॉo छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
आलोचना,शब्द ही नकारात्मक है तो भला आलोचना कैसे अच्छी आदत होगी। सही कहा आपने,किसी भी तरह से आलोचना करने में हम अपना समय और ऊर्जा व्यर्थ ही गंवाते हैं, जो कि नहीं गंवानी चाहिए।
आलोचना करना यानी बुराई करना,यह एक ऐसी आदत है जो कम या अधिक हर मानव में  होती है। जहां हमारे मन की न हुई, वहीं आलोचना शुरु और वो भी इस हद तक कि हर काम का दोष दूसरों के सिर मढ़ते मढ़ते हम भगवान को भी उससे जोड़ने में नहीं हिचकते।ऐसा करते हुए हम भूल जाते कि आलोचना के पात्र तो हम स्वयं भी हो रहे हैं।
अधिकतर लोगों को कहते सुना जाता है, भगवान ने हमारी किस्मत में ही नहीं लिखा ऐसा।वाह जी वाह,काम में हमारे कमी और दोष, किस्मत के बहाने भगवान पर। सुबह से रात तक घर,बाहर,स्कूल, कालेज,बस,बाजार,
अस्पताल, सिनेमा आदि विभिन्न स्थानों पर आलोचना का कोई अवसर हम नहीं चूकते।और कुछ न मिले तो सामने वाले से कहने लगते हैं,यार बढ़ी ठंड करा रखी है तुमने। यह बात मजाक में भले ही कहीं गयी, लेकिन है यह आलोचना ही,और वो भी व्यर्थ की। इनमें हम अपना समय और ऊर्जा व्यर्थ ही खर्च करते हैं
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
आलोचना गुणात्मक सुधार के लिए आवश्यक भी मानी गई है लेकिन उसमें निन्दा का भाव विरोध पैदा करता है , जब आलोचना बिना उद्देश्य, बिना कारण और बिना किसी आधार के की जाए तो वहाँ समय और ऊर्जा की बर्बादी ही होतीं है, जिससे सभी को बचना जरूरी है।
इसे समय का दुरूपयोग ही कहा जायेगा। समय और ऊर्जा का सदैव महत्व जानते हुए जीवनोपयोगी कार्यो को आत्मसात कर सफलता के मार्ग पर अग्रसर होने में ही बुद्धिमता मानी गई है। 
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
स्वस्थ आलोचना सकारात्मक परिणाम देती है और किसी के गुण दोषों का निरुपण या विवेचन करते हुए सुधार के पवित्र भाव मन में हों तो आलोचना व्यर्थ नहीं होती। परन्तु यह भी सही है कि जब स्वस्थ आलोचना को कोई मनुष्य विपरीत रूप में ग्रहण करता है तो सकारात्मक आलोचना भी व्यर्थ हो जाती है। 
मैं समझता हूं कि व्यर्थ की आलोचना को नकारात्मक आलोचना या निंदा के रूप में देखा जाना चाहिए। इसके साथ ही जब दुर्भावनायुक मन से की गयी आलोचना दूसरे मनुष्य के मनोबल को तोड़ती हो, तो इसे किसी प्रकार से भी उचित नहीं कहा जा सकता। 
प्राय: देखा जाता है कि मनुष्य को निंदात्मक आलोचना में अधिक रुचि होती है जिससे दूसरों को मानसिक तनाव एवं स्वयं का चरित्र भी धीरे-धीरे नकारात्मकता का शिकार होता जाता है और व्यर्थ में समय और उर्जा नष्ट करने का कारण बनता है। 
स्नेह, विनम्रता, विश्वास पूंजी हैं, 
मानवता को जिंदा रखने के लिए। 
निंदा, स्वार्थ, कुटिलता कारक हैं, 
मानव को शर्मिन्दा करने के लिए।।
निष्कर्षत: व्यर्थ की आलोचना में अपना समय और उर्जा नष्ट करना सही नहीं है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
व्यर्थ में कोई कार्य करना ही नहीं चाहिए । हमें हमेशा सार्थक उद्देश्यों की पूर्ति करने वाले कार्यों से जुड़ना चाहिए । आलोचना जब समालोचना के भाव से की जाती है तो सभी उसका स्वागत करते हैं किन्तु जब इसका रुझान केवल लोगों की कमियाँ  ढूंढ़ने की तरफ हो तो ये केवल समय को बर्बाद करना ही होता है ।
हमें अपने समय और ऊर्जा को नेक कार्यों में लगाना चाहिए क्योंकि -
बड़े भाग मानुष तन पावा...
जैसा सोचेंगे वही बनेंगे और करेंगे अतः अच्छे विचारों का पोषण करते हुए आगे बढ़ने की ओर प्रवत्त होना चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
किसी विषय वस्तु पर व्यर्थ की आलोचना से अपने आप को बचाना चाहिए। अगर कोई समाधान नहीं हो रहा है तो आपका समय और शक्ति नष्ट ही हो रहा है।जिससे अन्य कार्य भी आपका प्रभावित हो रहा है।
आलोचना कर रहे हैं तो मन में एक बात मान कर रखे हैं हर लड़ाई जीती जाए ।यह सोचे की हर हार से कुछ सीखा जाए। मनुष्य जीवन में भी आवश्यक है। मनुष्य के संरचना एक मुंह दो कान का अर्थ है कि हम अगर एक बात बोले है, तो कम से कम दो बात सुने भी।
इंसान को बोलने मे  तीन साल लग जाता है.......! लेकिन क्या बोलना है यह सीखने में पूरी जिंदगी लग जाती है।
आप अपने लक्ष्य पर लगे रहिए मगर पथ लचीला रखिए। जिससे व्यर्थ का समय और ऊर्जा नष्ट होने से बचेगी।
लेखक का विचार:---महान बनने की चाहत तो हर एक में है पर पहले इंसान बनना अक्सर लोग भूल जाते हैं। हम दमन से अपनी ऊर्जा व्यर्थ ना करें। प्रकृति अपने दिए हुए कष्ट सहने की शक्ति भी देती है...........! लेकिन मनुष्य गलत निर्णय लेने के लिए बाध्य तब होता है जब कष्ट अपने तैयार किए हुए हो। अतः व्यर्थ की आलोचना से बचें।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
आलोचना हम कब करते हैं जब हमें व्यक्ति से चिढ़ते हैं अथवा यदि वह व्यक्ति हर कार्य में हमसे ज्यादा उत्कृष्ट है तो हम जलन से उसके हर कार्य में खोंच ही निकालते हैं यूं कहें उसके हर कार्य की दूसरों के सम्मुख उसकी आलोचना करते हैं ! यही समय यदि हम अपने कार्य की त्रुटियों को ढूढ़ने में लगा उसे समझने की कोशिश करें तो कुछ काम आये ! उसकी सफलता की जलन में हम अपना दिमाग स्थिर नहीं कर पाते हमारी उर्जा नष्ट होती है ! हां यही आलोचना समलोचना की दृष्टि से की जाये तो कोई हरकत नहीं है ! 
समय हमारे लिए अत्यधिक महत्व रखता है ! समय का उपयोग धन से भी अधिक विशिष्ट है !  हमें समय के महत्व को समझना चाहिए ना की किसी की आलोचना में गंवाना चाहिए ! समय ही एक ऐसा स्थिर दोस्त है जो हमेशा हमारे साथ खडा रहता है एवं हमें गतिमान बनाता है ! हमें अपने जीवन में सार्थकता लानी है ,सफल होना है तो नकारात्मक विचारों को दूर कर अपनी ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में लगा उर्जावान बने ना कि किसी की आलोचना में समय गंवाना चाहिए !  मनुष्य का जीवन अनमोल है अतः नेक विचारों के साथ नेक कार्य करें !
          - चंद्रिका व्यास
        मुंबई - महाराष्ट्र
इसमे किसी भी रूप में कोई विभेद नही - व्यर्थ की आलोचना करने में समय , उर्जा , धन मान सम्मान गरिमा इंसानियत मानवता शिक्षा सबका अपव्यय होता है / कोई भी विवेक शील मनुष्य व्यर्थ आलोचना से बचता है अपने किमती समय का ऐसे प्रकरणो  में इस्तेमाल नही करता और जहा कही ऐसा हो रहा हो बहां से शांतीपूर्ण निष्कासन ले लेता है , भेद विभेद इस जीवन के अंग संग रेहते है दुख सुख मान अपमान भी उसी का हिस्सा है तो क्यूं कोई व्यर्थ ऐसे प्रकरण में उल्झे // युं तो जाने अनजाने में हम दैनिक कार्यो के सम्पादन में अनन्य विषयांम हेतू उलझ जाते है -हमे दुसरे के मनोभाव का एहसास नही हो पाता लेकिन जैसे ही आभास हो कि बातचीत , विषय , चर्चा , दुसरे मोड पे जा रही है शान्ति से हमें अपनी दिशा बदल लेनी चाहिये ।
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
-"यदि किसी भूल के कारण कल का दिन दु:ख में बीता है तो उसे याद कर आज का दिन व्यर्थ में न बर्बाद करो।" - स्वामी विवेकानंद
अगर हम किसी कथा कहानी उपन्यास कविता ग़ज़ल के समीक्षक नहीं हैं यानी लेखन की समालोचना नहीं कर रहे हैं तो इंसान के व्यक्तित्व की पहनावे की आलोचना कर रहे हैं जो कि व्यर्थ में अपना समय और ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं। 
–"ना तो हम ईश हैं और ना न्यायाधीश।"
–"स्वंय की उन्नति में अधिक समय देने से तो दूसरों की निन्दा करने का समय ही नहीं मिल पाता है।"
–"हमारी मनोवृत्ति ही हमारे व्यक्तित्व का निर्धारण करती है।" 
–"यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जिस समय हम किसी का अपमान कर रहे होते हैं, ठीक उसी समय हम अपना सम्मान खो रहे होते है...।"
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
     जीवन में जब-तक आलोचना न हो तब-तक मजा नहीं आता हैं लेकिन क्या मिलता हैं, यह विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होता हैं। वर्तमान में जो भी घटित हो रहा हैं, वह किसी न किसी रूप में व्यर्थ तो जरूर से ज्यादा कर, अपना, अपनों का समय, व्यतीत करने में ऊर्जा व्यतीत कर रहे हैं। यह समस्या समसामयिक, पारिवारिक,  राजनीतिक रुप में दिखाई देता हैं और दिलचस्प भी पंसग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हो जाता हैं, जिसके उपरान्त यह संवाद घातक सिद्द भी होता हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं और अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं, कोई जानबूझकर यह करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं और अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो रहे हैं।  कुछ को समझाया जा सकता हैं, लेकिन जो आदतों से बाज नहीं आते, उन्हें समझाया नहीं जा सकता हैं। नकारात्मक सोच का परित्याग कोई न करते हुए ऊर्जा को व्यर्थ करने का साहस कर रहे हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
वास्तव में आलोचना के दो पक्ष हैं। आलोचना मे व्यक्ति के गुण और दोष दोनों बताए जाते हैं। अधिकतर लोगों की मानसिकता ऐसी रहती है कि वे दूसरों में दोष निकालना ही पसंद करते हैं और उनके गुणों को नज़रअंदाज कर देते हैं। आलोचना करने से बेहतर है कि अपने अंदर झांक कर अपने अवगुणों को दूर करने का प्रयास किया जाये। स्वयं की आलोचना करने से समय भी व्यर्थ नहीं होगा और हम एक बेहतर इंसान के रूप में अपनी छवि स्थापित कर पायेंगे।
- अंजु बहल
चण्डीगढ़
नहीं! व्यर्थ की आलोचना से अपना और ऊर्जा  कभी भी नष्ट नहीं करना चाहिए। यदि वो समय और ऊर्जा अपने किसी काम में लगाया जाएगा तो कितना अच्छा होगा। या किसी अच्छे काम के लिए सार्थक आलोचना की जाय तो कितने लोगों का भला होगा।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं. बंगाल
व्यर्थ की आलोचना से अपना समय और ऊर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए।समयानुसार हमें जीवन मे आगे निंरतर बढने के लिए तैयार होना चाहिए।आलोचक हमें अपने पथ मे मंजिल पाने के लिए बेहद सहायक होते है।आलोचनाओं से अपने समय और ऊर्जा को नष्ट करना हमारी बेबकूफी होती है।मानव जब मंजिल के चौखटों पर पहूँच जाता है तब आलोचना करने वालों की भीड़ जमा होती है पंरतु मानव को अपनी ऊर्जा को समाप्त नहीं होने देना चाहिए हमेशा तत्पर रहते हुए समय का सदैव उपयोग किया जाना ही समय का सही उपयोग है।आलोचना से हमें घबराहट होती है और हम अपने मंजिल पथ से भटक जाते है, और अंधेरे मे अपनी जीवन को समाप्त करने की कोशिश करते हैं जो बेहद ही हमारे लिए घातक साबित होता हैं आलोचना से सबक लेकर हमें अपने समय और ऊर्जा को सही कर्मो मे लगाने ही बुद्धिमान होने का परिचायक हैं।समय को बर्बाद करना और बेकार की बातों से खूद को दुखी करना हमारे लिए हानिकारक प्रभाव पड़ता हैं।आलोचना शिखर वालों की होती है लोगो का कार्य ही आलोचना करना होता है पर सकारात्मकता को अपना कर सैद्धांतिक रूप से आगे बढ़ने की कला जीवनशैली को उत्कृष्ट खुशियों से भरता है।जीवन मे व्यर्थ आलोचनाओं मे अपना भविष्य और समय ऊर्जा खतरे मे होती है।आलोचनाओं का अभिनंदन कर के चूनौतियों को स्वीकार करना ही जीवन के प्रति सही विचारधारा है।प्रेरणादायक बनकर आलोचक और खूद को दिखाना है की हिम्मत हौसलों से जग जीता जा सकता है।
जब जब जीवन में मंजिल चौखट चूमती हैं
आलोचनाओं के शब्द तानें बन उभरते हैं।
इसलिए हमें व्यर्थ की आलोचना मे अपनी समय और ऊर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
मेरे विचार से व्यर्थ की आलोचना से अपना समय और ऊर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए। व्यर्थ की आलोचना से न केवल मानसिक शांति भंग होती है अपितु बौद्धिक क्षमता भी प्रभावित होती है। व्यर्थ की आलोचना करने से समाज में अन्य लोगों के मन में हमारे प्रति एक अलग ही प्रकार का दृष्टिकोण उत्पन्न होता है और हम अपना सम्मान खो बैठते हैं।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
समय बहुत कीमती है। व्यर्थ में इसे गँवाना नहीं चाहिए। आलोचना में तो कदापि नहीं। दूसरों की आलोचना से पहले अपने आप में मनन जरूरी है। उस समय को अगर सार्थक कार्यों में लगाएंगे तो आप अपनी ऊंचाइयों को पा सकेंगे। अपनी मंजिल को पाने की ऊर्जा दूसरों की बुराइयों में नष्ट करना मूर्खता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
सच पूछा जाये तो आलोचना हमें हमारी कमियों और खामियों को जताकर हमें उन्हें दूर करने के प्रति सजग करती हैं परंतु इन आलोचना में व्यर्थ जुड़ा हो तब तो इन्हें हल्के-फुल्के में ही लेना समझदारी होगी। इसके लिए गंभीर होकर असंयत होने की आवश्यकता नहीं और न ही अपना समय एवं ऊर्जा नष्ट करने की जरूरत। अक्सर ऐसी व्यर्थ की आलोचनाएं ईर्ष्यालु व्यक्तियों द्वारा हमारा ध्यान भटकाकर, हमें कमजोर और असफल करने के लिए की जाती हैं। अतः हमारे लिए उनकी आलोचना को सुनना और गुनना तो महत्वपूर्ण है परंतु सिर नहीं धुनना है। सच पूछा जाये तो हमारे दुश्मन, हमसे ईर्ष्या करने वाले ही हमें सफलता दिलाने में सहायक होते है क्योंकि वे ही हमारी गलतियों, कमियों और खामियों को इंगित करते हैं जिन्हें हमें दूर करना है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
     लोगों के साथ आमतौर पर समस्या यही होती है कि वो झूठी प्रशंसा के द्वारा बर्बाद हो जाना तो पसंद करते हैं  परन्तु वास्तविक आलोचना द्वारा संभल जाना नहीं। ज्यादातर लोग आलोचना सुनना पसंद नहीं करते। इस लिए समझदारी इसी में है कि व्यर्थ की आलोचना में अपना समय और उर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए। आलोचना में दोनों पक्षों पर प्रभाव पड़ता है। अगर कोई इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से ले तो इस से अपनी कमियों का चिंतन-मनन करके सफलता पा सकता है। अगर दृष्टिकोण नकारात्मक है तो भी दोनों पक्ष प्रभावित होते हैं। 
         लेकिन आज समय बदल गया है। हमारी नैतिक मूल्यों में गिरावट के कारण मनुष्य में सहनशीलता और संयम की कमी हो गई है। घर में ही बच्चे, युवक,बहू और बेटियां आलोचना के कारण बढ़े बूढ़ों से कन्नी कतराते हैं। इस लिए जरूरत पड़ने पर उतनी ही आलोचना करनी चाहिए जितनी उचित हो ।यूँ ही हर बात पर आलोचना करने से आलोचक के सम्मान में भी कमी आती है। इस लिए व्यर्थ की आलोचना में समय नष्ट करने की बजाय उस समय और ऊर्जा को समाज कल्याण के हित के लिए लगाना हितकर है। 
    - कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
आलोचना  सदियों  से चली  आ रही  एक परिपाटी  है, इसका  साम्राज्य  प्रत्येक  क्षेत्र  में  फैला  हुआ है  । 
     साहित्य  के  क्षेत्र  में  आलोचना  लेखन में  गुणवत्ता  लाने हेतु  की जाती  है  जिसे लेखक पसंद  नहीं  करता  । 
      वैसे  निंदा/आलोचना  के बिना  लोगों  का काम भी नहीं  चलता  । जिनके  पास  कोई  काम - धाम नहीं  होता, वे इस कार्य  में  अधिक  संलग्न  रहते हैं । दो-तीन  लोग  ( महिला  अथवा  पुरुष ) इकट्ठे  हुए  नहीं  कि  शुरु हो जाते  हैं, अपने-परायों  की आलोचना  करने ..... ।
     ये आलोचना  पीठ पीछे  खूब  जोर - शोर से की जाती है  जिसमें  सार्थकता  तो नाममात्र  ही होती  है  ।
       व्यर्थ  की आलोचना  न तो करनी  चाहिए  और  न ही सुननी, इससे  तनाव, रिश्तों  में  दरारें  आदि तो होती ही है  साथ ही अपना  अमूल्य  समय और  ऊर्जा  भी नष्ट  होती है ।
    ' कुछ  तो लोग  कहेंगे, लोगों  का काम  है कहना........।'
         - बसन्ती  पंवार 
         जोधपुर  -  राजस्थान 
यदि पागल की उपाधि लेनी हो तो "व्यर्थ की आलोचना से अपना समय और ऊर्जा नष्ट अवश्य करनी चाहिए" अन्यथा अपने समय और ऊर्जा का सदुपयोग करते हुए जीवन को सफल बनाने के प्रयास करने चाहिए।
      उल्लेखनीय है कि बाजार में आपको व्यर्थ में ही चर्चा करते ऐसे बुद्धिजीवी मिल जाएंगे जो आपको गोभी, आलू और प्याज के भावों की जोर-शोर से व्याख्या करते हुए उलझाएंगे। हालांकि न आपने उन्हें खरीदना है और ना ही उन्होंने खरीदना है। बस ही-ही करते दांत दिखाने का व्यर्थ बेमतलब उनका प्रयास मात्र होता है। जबकि उन्हें यदि आप यह पूछ लेंगे कि किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए क्या-क्या उपाए करने चाहिए? तब तो उनकी नानी को चोर ले जाएंगे और दुम दबाकर भागेंगे।
        अतः ऐसे तथाकथित लोगों से व्यर्थ की आलोचना से बचना चाहिए और अपना समय और ऊर्जा नष्ट कभी नहीं करनी चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
व्यर्थ की आलोचना व्यर्थ ही होता है । वक्त की बर्बादी है । इतना ही नहीं व्यर्थ की आलोचना आलोचक की संकीर्ण मानसिकता को भी दर्शाता करता है । वैसे कहीं-कहीं आलोचना भी जरूरी है बशर्ते कि किसी को चोट पहुँचाने के लिए नहीं बल्कि सुधारने के लिए किया गया हो !
        - पूनम झा
           कोटा -  राजस्थान 
आलोचना क्यूं  की जाए किसी की भी ? यह बिल्कुल गलत और बेकार की बात है। आज के इस व्यस्ततम समय में इस तरह की बेकार बातों के लिए किसके पास  समय है। किसमें खामिया नहीं होती है फिर हम क्यूं बेकार  में एक दूसरे की आलोचना करते हैं। इससे कोई  फायदा नहीं सिर्फ अपना समय व्यर्थ करना है।
- डाॅ पूनम  देवा
पटना - बिहार
विषय की शुरुआत व्यर्थ से ही हुई है जो चीज व्यर्थ है वह कभी गुणकारी लाभकारी हो नहीं सकता इसलिए यह विषय पर हम लोग भी कभी अपनी उच्च खर्च करें वही ठीक है आलोचना होनी चाहिए चुकी या दोहा है निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय बिन साबुन पानी निर्मल करे सुहाय
कबीर का यह दोहा है और इस दोहे से बड़ी अच्छी शिक्षा मिलती है की आलोचक होने चाहिए आलोचक ही गुण अवगुण की विवेचना करते हैं लेकिन व्यर्थ की आलोचना में समय और ऊर्जा दोनों को नष्ट नहीं करना है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
ये सही है जब हम व्यर्थ की आलोचना करते है तो हमारे मन में दुसरे के प्रति कटु विचार उत्पन होते है और हमारी उर्जा नकारत्मक हो जाती है ।यदि हम आलोचना कि बजाय उस विषय में सकारात्मकताधुंढ  कर उस पर विचार करें तो दूसरा व्यक्ति गलत को दूसरी बार सुधार कर लेता है और उसकी नजरों में हमारा कद भी बढ्ता है ।।
   - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
नहीं ,बिल्कुल नहीं व्यर्थ की आलोचना से अपना समय और ऊर्जा  दोनों ही नष्ट होते हैं। फालतू किसी चीज में मीन मेख निकालना आरोप प्रत्यारोप करना अपना दिमाग और अपना समय खराब करना व्यर्थ है। यदि कोई बात असंगत प्रतीत होती हो और जो परिहार्य हो उसके संबंध में बोलना तो ठीक है पर जहां आवश्यकता नहीं है उस जगह बोलकर अपने मस्तिष्क मानसिक शक्ति और ऊर्जा को नष्ट करने में कोई बुद्धिमानी नहीं है। इस तरह का मौका आने पर नजरअंदाज कर देना ही ठीक रहता है। हमेशा सकारात्मक भाव से सार्थकता पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है न कि व्यर्थ की आलोचना पर। हमारा समय और हमारी ऊर्जा दोनों ही हमारे लिए बेशकीमती है जिन को बचाए रखना आवश्यक है।
 - गायत्री ठाकुर "सक्षम"
  जबलपुर -  मध्य प्रदेश
"प्रशंसा से पिघलना मत, 
आलोचना से उबलना मत, 
निस्वार्थ भाव से कर्म कर, 
क्योंकी इस धरा का इस धरा पर, 
सब धरा रह जायेगा, "। 
 चाहे हम कोई भी काम करते है या किसी भी क्षेत्र में सक्रिय हों हमें  प्रशंसा और आलोचना दोनों मिलती हैं जबकि प्रशंसा हमें अच्छी लगती है और आलोचना  हमारे उत्साह को कम कर देती है, 
अब देखना यह है कि क्या हमें व्यर्थ की आलोचना में अपना समय और उर्जा नष्ट करनी चाहिए, 
 मेरे ख्याल में हमें व्यर्थ की आलोचना  में नहीं उलझना चाहिए इससे एक तो समय नष्ट होगा दुसरा हम व्यर्थ ही वहस में अपनी उर्जा नष्ट करेंगे तीसरा हम अपने लक्ष्य से पीछे रह जायेंगे, 
क्योंकी हम जो भी कार्य करेंगे कोई न कोई होगा जो हमारे कार्य में बाधा डालने की कोशीश करेगा या हमारी समस्याओं को बढ़ाने की कोशीश करेगा, 
ऐसा में अगर हमें लगता है कि जो हम कर रहे हैं वह महत्वपूर्ण है तो उस कार्य को विना समय नष्ट किए जरूर  किजिए, आलोचना से मत डरिए क्योंकी आलोचना तो हर हालत होनी है, 
समाज में रहते हुए आप आलोचना से  भाग नहीं सकते इसलिए इसके प्रति अ संवेदनशील नहीं होना चाहिए ़ऐसा करने से आप अपने लक्ष्य से दूर हो जाओगे, 
अगर आप जीवन  को गहनता से समझना चाहते हो तो आप को किसी की भी राय लेने की जरूरत नहीं, 
अगर आप भीतर से अच्छी तरह से मजबूत हैं तो आप को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा की लोग आपकी  प्रशंसा करेंगे या आलोचना जो कहेंगे सुन लिजिए बस अपने काम को मजबूत रखिये इससे अाप अपने समय व  उर्जा का सही इस्तेमाल कर सकेंगे, 
इसलिए जो आपके लिए मुल्यवान है उसके लिए अपना जीवन लगा दें क्योंकी अगर आप किसी कार्य को स्थितियों से प्रभावित हुए विना  निपट लेते हो तो आप एक कामयाब इंसान हैं, 
आप जिस चीज के लिए सचमुच  परवाह करते हैं उसके लिए जी तोड़ मेहनत करनी चाहिए, आपके लिए प्रशंसा मायने नहीं रखती न ही आलोचना, 
अगर लोग आपकी आलोचना करते हैं तो बुरा मत मानना क्योंकी इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है की लोग आपकी आलोचना तक का समय निकाल रहे हैं। 
समय बहुत बड़ा धन है जो इसे भली प्रकार से उपयोग में लाता है वह सभी तरह के लाभ प्राप्त करता है, इसे व्यर्थ बातों मे नष्च नहीं करना चाहिए, समय की बरबादी का पहला शत्रु है किसी काम को आगे के लिए टाल देना, इसलिए हर कार्य को सही समय पर ही करना चाहिए, 
सच कहा है, 
कल करि  सो अाज करि, 
आज करि सो अब, 
पल मे परलै होयेगी बहरि करेगा कब, 
इसलिए व्यर्थ आलोचना में समय व उर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए, 
अन्त में यही कहुंगा आलोचना किसी भी रिश्ते मे  दीमक की तरह होती है जब भी आलोचना की इच्छा जागे तो इसके आखिरी शब्द का ध्यान केंद्रित करिए और मन में न  कहीए, 
क्योंकी दुसरों की प्रशंसा और, अपनी आलोचना सुनने की शक्ति और धैर्य जिस व्यक्ति में हो उसे किसी भी परिस्थति मै हराना असम्भव है, यदि आलोचना तुम्हारे अन्दर बदलाव लाने के लिए आ रही है तो तो तुम आलोचक का धन्यवाद करो  क्योंकी तुम उससे अपना सुधार ला सकते हो, आलोचना को स्वीकार करने की क्षमता तुम्हारे आत्मिक बल का मापदंड है, 
जीवन एक थियटर कि तरह है गाओ, नृत्य करो हंसो और अपने जीवन का हर पल खुशी से गुजारो इस से पहले की समय समाप्त हो जाए अपने जीवन को  अपने सपनों की ओर चलाने में समय का सही खर्च करो, विफलता व आलोचना के डर से मत भागो, जो लोग कुछ नहीं करते वो हमेशा हर चीज की आलोचना करने वाले पहले व्यक्ति होते हैं और अक्सर अपना समय व उर्जा  व्यर्थ आलोचना में नष्ट कर देते हैं। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में " व्यर्थ की आलोचना से सिर्फ अपना कीमत समय व ऊर्जा नष्ट करते हैं । इसके अतिरिक्त कोई उपयोगिता नहीं होती है । यह आप अपने चारों ओर सभी क्षेत्रों में आसानी से देख सकते हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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