क्या व्यस्त वहीं है जो अस्त - व्यस्त है ?

जो अस्त - व्यस्त रहता है । वहीं हमेशा व्यस्त रहता है । कारण भी स्पष्ट है । काम का वर्गीकरण नहीं होना है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
अस्त-व्यस्त यानि अव्यवस्थित, व्यक्ति का व्यस्त होना स्वाभाविक है। काम कोई पूरा नहीं होगा और न व्यवस्थित होगा, सबकुछ अस्त व्यस्त तो फिर कैसी फुर्सत‌। ऐसे आदमी अक्सर कहते भी सुने जाते हैं,हमें तो सांस लेने की भी फुर्सत नहीं है। इस कथित व्यस्तता की आड़ में वो अपनी न खामी को छुपाने की ही कोशिश करते हैं। घर में पड़े रहेंगे,अस्त व्यस्त होंगे सब काम, लेकिन कोई पूछे तो बस ऐसी बात बनाएंगे कि सामने वाले को लगे इनसे अधिक काम करने वालि कोई नहीं।ये न अपना कोई काम पूर्ण करते हैं,न दूसरे को करने देते हैं। इसीलिए हमेशा उन कार्यों को पूरा करने में लगे रहते हैं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जीवन व्यस्त भले ही हो, लेकिन अस्त-व्यस्त नहीं. अस्त-व्यस्तता लापरवाही का सूचक है और यही लापरवाही जीवन को बेचैन  कर देती है. अस्त-व्यस्त व्यक्ति हर समय कुछ-न-कुछ सोचने और ढूंढने के कारण व्यस्त दिखाई देता है. ढंग से सो भी नहीं पाता. इसलिए आवश्यक है, कि छोटे-से-छोटा काम भी धैर्य और सुनियोजित रूप से किया जाए, ताकि जीवन व्यस्त भले ही हो, लेकिन अस्त-व्यस्त नहीं. 
- लीला तिवानी 
दिल्ली
कोरोना महामारी से लोगों की जिंदगी व्यस्त न रहकर अस्त व्यस्त हो गई है जैसे रहन-सहन, खान-पान, दैनिक क्रियाकलाप परअभूतपूर्व प्रभावित असर डाला है।
वाहन नहीं चलने के कारण लोगों की जरूरी काम प्रभावित हुआ है ।बाजार बंदी से पड़ा है उसका प्रतिकूल असर हुआ है। वहीं दिहाड़ी मजदूर को मुश्किलें बड़ी है।
हमारा आज का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है क्योंकि आज हम एक भागती हुई दुनिया में रह रहे हैं। जहां पर ना तो किसी के पास किसी के लिए समय है और ना ही किसी से मिलने की चिंता है। सबको सिर्फ एक ही बात का डर है कि कहीं हम किसी से पीछे न रह जाएं। इसलिए हमेशा की तरह जल्दबाजी में गलतियां भी कर बैठते हैं।
इसलिए जीवन व्यस्त होते हुए भी अस्त व्यस्त हो गया है। किसी को कोई भी काम करने का निश्चित समय नहीं रह गया है। जिसके कारण  कम उम्र में ही युवा तरह तरह के रोग से ग्रस्त होते जा रहे हैं।
जीवन मिला है तो परेशानी होना ही है। इसके बाद भी युवा लोग अनुशासित होकर समय अनुसार अपना जीवन व्यस्त रखें न की अस्त व्यस्त रखें।
जीवन मिला है तो परेशानी होना आम बात है।
लेखक का विचार:--व्यस्तता व्यक्ति के लिए बुरी नहीं हैं। अन्यथा व्यस्तता के अभाव में *खाली दिमाग शैतान वाली* कहावत चरितार्थ हो सकती है। लेकिन आज के युग में उतावलापन व अधीरता मानसिक रूप से अस्त-व्यस्त कर देता है। जिसके कारण बनते हुए काम बिगड़ते हैं।
अतः जो कुछ मिले उसका पूरा आनंद लें।
जीवन को व्यस्त रखें अस्त-व्यस्त ना करें।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
उम्मीद है सभी को, इकीसवीं सदी के बीसवें साल का प्रयास बहुत सी बातों के संग व्यस्त रहने का और अस्त-व्यस्त रहने का भी सही-सही अर्थ समझाने में सफल रहा।
व्यस्तता उतनी ही अच्छी होती है जितनी से खुद को तनाव ना हो और झूठे बहाने ना बनाने पड़े। जग से प्रशंसा पाने के लिये तन-मन से प्रसन्न होना आवश्यक हो जाता है। तन-मन से प्रसन्न रहने हेतु घर से मदद लेना आवश्यक हो जाता है और इससे घर के सदस्यों में समीपता व प्रगाढ़ रिश्ता बढ़ता ही है। गृह धुरी पर जो नाच रहा हो उसका कुढ़न कम हो जाता है।
उन्हें भी चौबीस घण्टा ही मिलता है जो अपने सपने को साकार कर पाते हैं और उनके कंधों पर जिम्मेदारी कम नहीं होती हैं।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
अस्त-व्यस्त वाला व्यस्त कैसे हो सकता है। अस्त-व्यस्त वाले को आलसी कहा जा सकता है। जो हमेशा किसी न किसी काम में लगा रहता है व्यस्त कहते हैं। जिसके पास बहुत सारा काम हो उसे व्यस्त कहते हैं। अस्त-व्यस्त रहने का दूसरा कारण भी हो सकता है। एक तरह से कहा जा सकता है कि अस्त-व्यस्त वाला ही व्यस्त है। काम ज्यादा हो और समय कम हो उसे व्यस्त कहा जा सकता है। व्यस्तता कई तरह की हो सकती है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि जो अस्त-व्यस्त है वही व्यस्त है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद ''दीनेश"
 कलकत्ता - पं.बंगाल
व्यस्त वह व्यक्ति नहीं है जो अस्त-व्यस्त हो जाए। वर्तमान समय में व्यक्ति के जीवन का हाल है कि यहां चीजें तेज गति से भाग रहे हैं। लोग हर पल जल्दीबाजी में रहते हैं। उन्हें इस बात का डर बने रहता है कि कहीं भी में पड़ गए तो आगे बढ़ने के लिए समय पीछे न छूट जाए। इस तरह की आपाधापी में हर तरह की गड़बड़ियों में शामिल है। इसी तरह के जीवन में व्यक्ति को लापरवाह और अस्त व्यस्त बना दिया है। ना उसके पास सोने का सही समय है और ना ही जागने का। न काम की कोई जवाबदेही है और ना ही दिनचर्या का अता पता। हमें अस्त-व्यस्त हमारी सोच बनाती है कोई दूसरा और नहीं।असल में हर व्यक्ति के जीवन में छोटी-छोटी समस्याएं आते रहते हैं लेकिन प्रगति का मार्ग छोटी-छोटी आदतों के तीन के उन पर ही तैयार होता है। इसलिए अपने जीवन में हर पल को सार्थक बनाने के लिए व्यक्ति पहले ही व्यस्त रहे लेकिन अस्त-व्यस्त नहीं। संतुलित जीवन का आधार है जो समय बीत गया वह दोबारा लौटकर नहीं आता। इसलिए समय को पहचानो और आगे बढ़ते रहो। अभी पिछले लगभग सात आठ महीनों से करो ना के कारण हर व्यक्ति का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। उसी पटरी पर लाने के लिए बहुत ही मुश्किलों का सामना करते हुए आगे बढ़ना है। कोरोनाकाल में व्यक्ति व्यस्त नहीं रहते हुए भी अस्त व्यस्त हो गया। हर व्यक्ति को अपने काम को करने के लिए समय निकालना पड़ता है। काम के बोझ के कारण व्यक्ति व्यस्त हो जाता है, लेकिन उसको आगे बढ़ने के लिए अस्त व्यस्त नहीं होने की जरूरत है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
यह भी खूब कही कि व्यस्त वही है जो अस्त-व्यस्त है और सही भी है कि जो समय का सही प्रबंधन नहीं कर पाता वही सबसे व्यस्त प्रतीत होता है।  दरअसल व्यस्त वही है जो समय के साथ चलते हुए समाज में रहते हुए उपयोगी कार्य करता है और जिसके पास नष्ट करने के लिए समय नहीं है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
व्यस्तता के अपने कारण होते हैं, परिस्थितियां होती हैं। उसके लिए अस्त व्यस्त होना जरूरी नहीं है, कभी कभार हो जाना एक अलग बात है। पर मूलतः परिस्थिति पर ही निर्भर करता है। चाह कर भी इंसान कई बार करने वाले कार्य को नहीं कर पाता। समय अनुकूल परिस्थिति पर सब संभव हो जाता है किंतु विपरीत परिस्थिति पर संभव नहीं हो पाता। हर एक के अपने कारण होते हैं जो हर किसी को नहीं बताये जा सकते। अस्त व्यस्त का व्यस्तता से कोई संबंध नहीं।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
जी, कदापि नहीं । वह व्यस्त नहीं है, जो अस्त-व्यस्त है। वास्तव में, बिना योजना के काम करते हुए वह स्वयं भी परेशान होगा और दूसरों लोगों को भी उससे परेशानी होती होगी । इस संबंध में बहुत ही प्रसिद्ध निबंधकार श्रीमन्नारायण जी ने अपने निबंध 'समय नहीं मिला' में लिखा है ,"मेरा तो यह अनुभव है कि जो लोग सचमुच बड़े हैं और बहुत व्यस्त रहते हैं उनका पत्र व्यवहार भी बहुत व्यवस्थित रहता है। उनका जीवन नियमित रहता है और वे रोज़ का काम उसी दिन समय पर निपटा देते हैं। "
 अत: जीवन में हर काम योजनाबद्ध तरीके से करना चाहिए और छोटे-छोटे कामों को साथ-साथ  निपटाते रहना चाहिए। यहां भी नितांत आवश्यक है कि वही काम हाथ में लें जो आप कर सकते हैं ।अन्यथा न लें ।अपने समय, क्षमता व योग्यता के आधार पर ही काम को लिया जाए और समय पर निपटा दिया जाए। जीवन को अस्त-व्यस्त करके अर्थात समय को बर्बाद करके न तो कोई महान बन सका है न बन सकेगा।
- डॉ.सुनील बहल 
चंडीगढ़
जीवन व्यस्त हो किंतु अस्त-व्यस्त नहीं होना चाहिए ! हमारा जीवन असंतुलित होना ही अस्त-व्यस्तता का कारण है ! आज हमारी जीवनशैली ही बदल गई है ...रात देर से सोना ,सुबह देर से उठना, रहन -सहन, खानपान में भी काफी बदलाव देखने में आते हैं ! एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ ,अधिक धनोपार्जन के लोभ में अपना ध्यान रखने के लिए हमारे पास समय ही नहीं रहता ! हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है ! वर्तमान में रहकर हम भविष्य की सोचते हैं यह अच्छी बात है किंतु इतनी व्यस्तता कि हम अपने स्वास्थ्य और अन्य मुख्य कार्यों की ओर समय की कमी के चलते ध्यान न दे पायें और हमारा जीवन ही अस्त-व्यस्त हो जाये ! भविष्य के सुख की लालसा में हम अपना वर्तमान ही बर्बाद कर देते हैं !
व्यस्त रहना अच्छा है ! भौतिक सुख की चाहना एवं भविष्य की चिंता करना चाहिए किंतु साथ ही समय प्रबंधन का ध्यान रखना चाहिए ! बेकार में हम इधर उधर भागते हैं और फिर समय की मी बताते हैं ! हमारा जीवन अस्त-व्यस्त ना हो इसके लिये हमारी जीवन शैली पर गौर करना चाहिए , आदत , समय , और अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए ! तभी हम तो व्यस्त रहेंगे साथ ही हमारा जीवन भी अस्त-व्यस्त नहीं होगा ! हमारा परिवार भी मजबूत और खुश रहेगा
         -  चंद्रिका व्यास
         मुंबई - महाराष्ट्र
मनुष्य को कार्य की अधिकता व्यस्त करती है और अनियमितता अस्त-व्यस्त करती है। देखा जाए तो अस्त-व्यस्त होने का मतलब है, अनुशासन का अभाव। अस्त-व्यस्त व्यक्ति कार्य को सुचारू रूप से करने में असमर्थ होता है। कार्य की अपूर्णता उसको उलझाए रखती है। इस उलझन को वह अपनी व्यस्तता कहता है।
व्यस्त मनुष्य कभी भी अस्त-व्यस्त नहीं होता। व्यस्तता में संपूर्णता का प्रभाव होता है। इसलिए मेरे विचार में व्यस्त व्यक्ति कभी भी अस्त-व्यस्त नहीं होता। 
जबकि अस्त-व्यस्त मनुष्य, व्यस्त होता नहीं है, उसे व्यस्त होने का मात्र भ्रम रहता है। 
इसलिए यह कहना सही नहीं है कि व्यस्त वही है जो अस्त-व्यस्त है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
जीवन व्यस्त हो लेकिन अस्त-व्यस्त नहीं हो l अस्त -व्यस्त व्यक्ति आपधापी में लापरवाह होकर लक्ष्य से भटक जाता है l अतः जीवन को सार्थक बनाने के लिए व्यस्त जरूर बनें लेकिन अस्त -व्यस्त नहीं l
यदि हम इस क्षण असंतुष्ट हैं तो अगले क्षण भी असंतुष्ट ही रहेंगे l जीवन में व्यस्तता ऐसी हो, इसमें समय, साधन, समझ और योजनाबद्ध ढंग से परिश्रम करने के तत्व शामिल हों l
  योग शास्त्र सिखाता है सजगता अर्थात जागकर, होश में रहकर लक्ष्य की प्राप्ति करें l
 वर्तमान की वृति प्रधान जीवन शैली के कारण आज मानव अस्त -व्यस्त होकर अंधी दौड़,दौड़ रहा है या यूँ कहूँ कि अस्त -व्यस्त जीवन स्वयं के लिए ही नहीं अपितु परिवार, समाज व  राष्ट्र में भी अव्यवस्थाओं को जन्म देता
 है l
       --------चलते चलते
व्यस्त रहो, मस्त रहो लेकिन अस्त -व्यस्त मत रहो l
      - डॉo छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
       भले ही प्रश्न को उटपटांग प्रश्न की श्रेणी में रखा जा सकता है। परन्तु वर्तमान परिस्थितियों में यह अत्यंत महत्वपूर्ण भी है। चूंकि देखा गया है कि व्यस्तता का शोर वही अधिक मचाते हैं जो खाली बैठे मखियां मारते हैं और अपनी इस बुराई को छुपाने का निरर्थक प्रयास करते हैं। 
       उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान के चार सशक्त स्तम्भ हैं। जिनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्तम्भ न्यायपालिका है और वही व्यस्तता का सर्वाधिक ढोंग भी करता है। जबकि सत्य यह है कि आज भी उसके असंख्य गंभीर मामले अस्त-व्यस्त पड़े हुए हैं और न्याय के नाम पर निर्णय सुनाए जाते हैं। जिनमें कुछेक निर्णय तो इतने असंवैधानिक होते हैं कि न्यायमूर्तियों के साथ-साथ माननीय न्यायालय भी कलंकित व शर्मसार हो जाती है। जैसे सुशीला बाली वर्सेस सरकार का निर्णय प्रकाश में आया हुआ है। जिसमें लेखक को तपेदिक रोग के उपचार के स्थान पर "मानसिक उपचार" कराने का आदेश दिया हुआ है।
       ऐसे ही एक भुगतभोगी महाराष्ट्र के गोपाल शेटे हैं जिन्हें बिना बलात्कार किये "बलात्कार के आरोप" में सात वर्ष का कठोर कारावास काटना पड़ा। जिसके कारण उनका पूरा परिवार ही नष्ट हो गया।
       इनके अलावा कुछेक पानी व स्टेशनरी की मांग के मारे हुए हैं और कुछ फाइलों के झूठे आरोपों के चक्कर में सिंह गर्जना करते हुए अन्याय के विरुद्ध कार्रवाई कर रहे हैं।
       जबकि सर्वविदित है कि न्यायपालिका को "न्याय का मंदिर" कहा गया है और माननीय न्यायमूर्तियों को "ईश्वर स्वरूप" माना गया है। जिन्हें मृत्युदंड देने का संवैधानिक अधिकार भी प्राप्त है।
       समय की आवश्यकता यह भी है कि जैसे स्वतंत्र भारत में "दादागिरी" सहन नहीं की जाती उसी प्रकार भ्रष्ट न्यायधीशों की प्रचलित "दादागिरी" समाप्त करने के लिए उनपर अंकुश लगाने की व्यवस्था का निर्माण किया जाए। ताकि हर भारतीय संस्कृति और संविधान का सम्पूर्ण आनंद उठा सके।
       अंततः ऐसे में कैसे कहें कि व्यस्त वही है जो अस्त-व्यस्त है?
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
किसी ने खूब कहा है "थोड़ी सी अस्त-व्यस्त है जिंदगी फिर भी जबरदस्त है तू जिंदगी"
जिंदगी को जबरदस्ती न जी कर जबरदस्त तरीके से जिया जाना चाहिए।  सर्वप्रथम  हमें यह अवश्य स्वीकार करना होगा कि जीवन व्यस्तता के बिना कुछ भी नहीं इसलिए व्यस्त जीवन का विशेष महत्व है ।  अत्यधिक व्यस्तता (अस्त-व्यस्त)अव्यवस्था पैदा करती है।  जिस से बचने का प्रयास होना चाहिए।  यदि जिंदगी को जीना है तो अपने कर्मों को भी सिद्ध करना पड़ता है।  व्यस्तता अपनाकर अव्यवस्था को सुरुचिपूर्ण करना पड़ता है। समय के अनुकूल कर्म /फर्ज निभाकर ही सफलता प्राप्त होती है। कर्म हीन व्यक्ति निठल्ला हो सकता है परंतु व्यस्त नहीं। व्यस्तता कई तरह की हो सकती है परंतु उसका आधार कर्म ही माना गया है। 
 आधुनिक जीवन शैली पर गौर किया जाए तो ऐसा लगता है कि हम जीवन तो जी ही नहीं रहे हैं बल्कि एक भागती हुई दुनिया में रह रहे हैं जहां न तो किसी के पास किसी के लिए समय है और न ही किसी की फिकर, चिंता। आधुनिक परिवेश बहुत बनावटी हो चुका है, एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़, ज्यादा से ज्यादा अमीर बनने की कोशिश ,ज्यादा से ज्यादा संग्रह करने का प्रयास मानव जीवन  अस्त व्यस्त हो चुका है । यह आधुनिक चकाचौंध का प्रभाव है ,पहले लोग एक दूसरे का सुख दुख बांटते थे ,पास बैठकर बातें करते, प्रेम /सौहार्द बांटते लेकिन आज किसी के पास समय ही नहीं इस भागम भाग में मानव जीवन अव्यवस्थित हो चुका है। अतः हर वह जो व्यस्त है व्यवस्थित रूप भी ग्रहण करना चाहिए। सुरूचिपूरण जीवन जीना ही श्रेयकर रहता है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
व्यस्त व्यक्ति कभी अस्त व्यस्त नहीं होता ,क्योंकि उसकी जीवन शैली सुचारु होती है ,समय प्रबंधन निश्चित होता है साथ ही लक्ष्य भी  निर्धारित होता है ।उसमें समय पर काम को पूरा कर लेने की क्षमता होती है ।व्यस्तता काल करे सो आज कर पर विश्वास करती है ।कर्मशील हैं लेकिन थोड़ा आलस्य भी है तो जीवन अस्त -व्यस्त होगा ही ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
     आज मनुष्य की जिंदगी आपाधापी की है। इसी जीवन शैली ने मनुष्य को अस्त व्यस्त बनाया है। जिंदगी में मनुष्य हर समय सरपट दौड़ रहा है। न खाने का ,न सोने का, न जागने का समय।हम व्यस्त न होते हुए भी अस्त व्यस्त हैं। हमें अस्त व्यस्त हमारी सोच करती है। आगे निकलने की होड़ ने मनुष्य को पगला दिया है। 
       जीवन में समय प्रबन्धन बहुत जरूरी है ।समय प्रबन्धन के बिना हम यूँ ही अस्त व्यस्त बने रहते हैं। जीवन  व्यस्त होना अच्छी बात है लेकिन अस्त व्यस्त होना अच्छी बात नहीं। समय को पहचान कर, समय पर हरिक कार्य करना ही समय प्रबन्धन है।समय प्रबन्धन के बिना मनुष्य अस्त व्यस्त रहने के कारण मानसिक रोगी हो जाता है। कई प्रकार की भयंकर बीमारियों का शिकार हो जाता है क्योंकि  अतिव्यस्तता के कारण उतावलापन और अधीरता आती है। यह एक महामारी की तरह है।ऐसी प्रवृति मनुष्य की सफलता को असफलता में बदल देती है। मनुष्य को अपनी जीवन शैली व्यवस्थित करनी चाहिए। हमें जिंदगी में संतुलित जीवन शैली बना कर चलना चाहिए। हर पल सार्थक बनाने के लिए व्यस्त भले ही बनें, लेकिन अस्त व्यस्त नहीं।  समय का सदुपयोग करना चाहिए। जीवन में संतुष्टि का होना बहुत जरूरी है।
-  कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप -  पंजाब
व्यस्तता प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी-अपनी परिस्थित, अलग-अलग कार्यक्षेत्र और कार्यक्षमता पर निर्भर करता है । किन्तु लोग आकलन सभी का एक समान करते हैं । इसलिए किसी की व्यस्तता को अस्त-व्यस्त का नाम दे देते हैं । मेरे विचार से इसप्रकार किसी दूसरे की व्यस्तता को अस्त-व्यस्त का नाम देना बिल्कुल गलत है ।
- पूनम झा
  कोटा - राजस्थान
मारवाड़ी में एक कहावत  है--
" काम नहीं  टकै रौ अर बगत नहीं  पल रौ "
    अर्थात काम कुछ करते नहीं  फिर भी समय नहीं है ।
     बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो अपना अमूल्य समय ऐसे कार्यों में ज़ाया कर देते हैं, जिन कार्यों को यदि न किया जाए तो भी चल सकता है । ऐसे लोगों की व्यस्तता का कोई औचित्य नहीं है  । जैसे दिनभर टीवी/ मोबाइल में व्यस्त रहना.....फालतू इधर की उधर करना.....बिना काम कहीं आना-जाना आदि व्यस्तता की श्रेणी में नहीं आते, ये समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है ।
     सार्थक कार्यों में व्यस्त रहते हुए, सभी महत्वपूर्ण कार्यों को प्राथमिकता देते हुए, स्वयं के लिए भी जो समय निकाल कर सामंजस्य पूर्ण जीवन शैली का निर्वहन करते हुए व्यस्त रहते हैं, उन्हें ही व्यस्त कहा जा सकता हैं ।
         - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर  -  राजस्थान 
किसी ने सच ही कहा है कि ,,थोड़ी सी अस्त-व्यस्त है फिर भी जिंदगी तू जबरदस्त है,,,।
 जी हां यह पंक्तियां बिल्कुल आज के सवाल का सटीक प्रत्युत्तर हैं । जो जीवन मिला इसे जीते जाना है ,अपने कर्मों को सिद्ध करना है, सभी फर्ज भी चुकाने हैं ,सब के उपदेश सुनने  हैं ,मगर आदेश अपनी आत्मा का ही मानना है। यही है जीवन प्रवाह ,,,,,,।
जिसका जीवन जितना व्यस्त होगा तो जाहिर है कि थोड़ा अस्त-व्यस्त तो हो ही जाएगा, क्योंकि जिसका जीवन जितना व्यस्त होगा तो जाहिर है कि थोड़ा अस्त-व्यस्त तो हो जाएगा। जिम्मेदारियों को पूरा करने ,कर्म करने में थोड़ा समायोजन लाने की दिक्कतें रहती ही हैं ।मगर फिर भी इंसान अपने तरीके से, अपनी सुविधानुसार खुद के कार्यों में स्वयं को समायोजित करता ही है ।मगर व्यस्तता वश थोड़ा सा अस्तव्यस्त जरूर हो जाता है जीवन ।यही जीवन है ,,,,।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
विषय ही बड़ा  विरोधाभासी लग रहा है.
-"क्या व्यस्त वही है,जो अस्त व्यस्त है"?
जी क्या फरमाया? अस्त व्यस्त है...लीजिये समझिये जरा. "व्यस्त" शब्द की अपनी ही महिमा है."आई एम बिजी यार","मरने की फुर्सत नहीं है जी", "थक गये भई", "नाक में  दम हो गया खटते खटते" .
ये सभी वाक्य व्यस्त शख्सियत की ओर संकेत करते हैं.इस देश में कोरोना के कहर में शहर के कितने ही नौकरीपेशा लोग बेबात ही व्यस्त बताते रहे खुद को. न ऑफिस को जाना,न ही आना,मजे से वर्क फ्राॅम होम करते हुए मनमर्जी से उठना,बैठना,चलना,खाना आदि.
सच पूछिये तो मेहनत की कमी नखरीली होकर सिर चढ़कर बोलने लगी थी.
अस्त व्यस्त दिनचर्या में  व्यस्तता का ठप्पा.
सोलह आने सही लगती है बात तो भैया! सच्ची... अस्त व्यस्त ही ज्यादा व्यस्त लगते हैं.
सारे दिन लेटे बैठे टी.वी,टैबलेट,फोन पर आंखें सेंकना और अस्त व्यस्त  दिनचर्या को व्यस्त  जिंदगी बताना कैसा हास्यास्पद सा है?
है न जनाब!
- डा.अंजु लता सिंह 'प्रियम'
नई दिल्ली
"व्यस्त रहें, मस्त रहें, प्रशस्त होगी जिन्दगी। 
अस्त व्यस्त रहें तो फिर, परस्त होगी जिन्दगी"। 
आज का व्यक्ति, व्यस्तता का जीवन जी रहा है, लगता है उसकी जीवन शैली कोरी है और कोरी जीवन शैली होने के कारण व्यक्ति का जीवन व्यस्त नहीं बल्कि अस्त व्यस्त हो गया है, 
तो आईये बात करते हैं कि क्या व्यस्त वही है जो अस्त व्यस्त है? 
मेरा तर्क है कि  अस्त व्यस्त और व्यस्त में जमीन आशमान का अंतर है  हर  अस्त व्यस्त आदमी कभी व्यस्त नहीं बन सकता क्योंकी   जीवन में यहां जल्दबाजी होती है, हड़बड़ी होती है वहां व्यक्ति निश्चत रूप से मानसिक तौर पर अस्त व्यस्त हो जाता है जिससे बनते हुए काम भी विगड़ जाते हैं और लाभ होना नमुमकिन हो जाता है, 
यहां तक की व्यस्त व्यक्ति  हर कार्य को सहजता से लेता है  और हर कार्य को याोजना के तहत सही टायम में पूर्ण करनें में सक्ष्म होते हैं और तब तक लगे रहते हैं जब तक वो  पूरी सूझबूझ के साथ पूरा नहीं कर लेते, 
देखा जाए दूनिया में असफल लोगें की दो श्रेणियां हैं, एक वो जो विना योजना के कार्य पर उतर आते हैं, एक वो जो विचार तो खूब बनाते हैं लेकिन उन को आगे नहीं बढ़ाते कार्य को सही  रूप नहीं देते
लेकिन सोचा जाए तो  हर कार्य योजना के तहत ही होता है इसलिए जो लोग अपने समय, सा़धन और समझ के अनुरूप चलते हैं वोही सफल होते हैं और वो लोग  व्यस्त की श्रेणी नें आते हैं,  
कहने का मतलब आप जो करना चाहते हैं व जो आपकी योजना है उसका आपको बोध होना जरूरी है अगर ऐसा नहीं होगा तो उसका परिणाम शुन्य होगा, 
इसलिए जीवन व्यस्त भले ही हो  मगर अस्त व्यस्त नहीं होना चाहिए, 
आगे बढ़ने की  रेस ने  व आपाधापी ने व्यक्ति को लापरवाह एंव अस्त व्यस्त बना दिया है  न उसके पास सोने का टायम न जागने व खाने का जिससे न जवाब देही और न दिनचर्या का अता पता जिस से व्यक्ति की सोच अस्त व्यस्त हो जाती है, 
लेकिन जब तक हम किसी कार्य में व्यस्त नहीं होंगे  हमारा कोई भी कार्य सही मायने में पूर्ण नहीं होगा क्योंकी प्रगति का  घोंसला छोटी छोटी  आदतों के तिनकों से बुनकर ही तैयार होता है  इसलिए अपने जीवन के हर पल को साथर्क बनाने के लिए व्यस्त भले ही बनें लेकिन अस्त व्यस्त नहीं, 
अन्त में यही कहुंगा व्यस्त होना ठीक है अस्त व्यस्त होना ठीक नहीं क्योंकी जो समय को नष्ट करता है खुद नष्ट हो जाता है और जो समय का सही ढंग से उपयोग करता है उसका जीवन सबके लिए उपयोगी बन जाता है, 
विचार किए  बिना हड़बड़ी में बिना सोचे समझे कार्य को  कर डालने की आदत को उतावलापन कहते हैं यह आदत व्यक्ति को अस्त व्यस्त कर देती है जो व्यक्ति को चिड़चडा व क्रोधी बना देती है, 
इसलिए जीवन व्यस्त भले ही हो लेकिन अस्त व्यस्त नहीं होना चाहिए 
सच कहा है, 
"कुछ इस कदर तेज रफ्तार है जिन्दगी  की ऐ गालिब, 
         सुबह का दर्द भी शाम को पुराना लगता है, "। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
व्यस्त रहना एक सकारात्मक कार्य शैली है और अस्त व्यस्त होना नकारात्मक असंतुलित बिना योजना के कार्य को करना अस्त-व्यस्त कहलाता है
अस्त-व्यस्त जीवन का पहला घटक देर से सोना देर से जागना दूसरा घटक पूर्व नियोजन का नहीं होना काम करने के तरीके को प्राथमिकता के आधार पर तैयार नहीं करना मन चंचल होना वर्तमान में नहीं जीना या तो भूत में जीना या तो भविष्य में रहना यह अस्त-व्यस्त जीवन की पहचान है
लेकिन व्यस्त रहना जीवन की सकारात्मकता को दर्शाता है योजनाबद्ध कार्य को बताता है मन में एक संतोष होता है इंसान चिंता से दूर रहता है और लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है इसलिए जो व्यस्त है वाह सुखी इंसान है जो अस्त-व्यस्त है उसकी मानसिक स्थिति हमेशा बेचैन और चंचल की ओर रहती है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " समय का प्रबंधन करके कार्य करने वाले अस्त - वस्त कभी नहीं रहते हैं ।  जो इस कार्य में निपुण हो जाता है । वह जीवन में सफलता अवश्य पाते हैं ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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