क्या मौन शब्दों से भी अधिक शाक्तिशाली साबित होता है ?

कहते हैं कि मौन रहना भी एक कला है । जो संधर्ष के समय बहुत अच्छा साबित हो सकता है । ऐसी स्थिति में मौन रहना बहुत अधिक शक्तिशाली या प्रभावशाली साबित होता है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
मौन अर्थात - अक्रिया - किसी भी अवस्था में किसी भी परीपेक्ष्य में मौन अर्थात कोई प्रतिक्रिया नही - 
दुसरे शब्दो में मौन अर्थात आक्रोश,  तीसरे  भाव में मौन अर्थात अपमान 4 थे भाव में मौन अर्थात तिरस्कार 5 वे अर्थ भाव से मौन अर्थात जिस भाव के लिये मौन का प्रयोग हुआ उसका कोई मुल्य ही न आंक्ना - सीधे शब्दो में तुझ से बात करणा मेरी तौहीन है /   **ऐस ही बहुत से भाव निकाल सकते है या मौन के परीपेक्ष्य में लिखे जा सकते है 
एक भाव जो आपके सवाल में छुपा है लेकिन यहां भिन्न  भिन्न परीपेक्ष्य में ये मौन जान लेवा / गंभीर दैहिक कष्ट मानसिक उत्पीडण का कारण होस्क्ता है ***
हर जगेह हर भाव में कदापि नही 
- डॉ अरुण कुमार शस्त्री
दिल्ली
...एक चुप्पा सौ वक्ता को हरा सकता है..
–यूँ तो यह कहावत बहुत पुरानी है। लेकिन अपने अनुभव में बहुत बार अपनायी हुई हूँ। सौ फी सदी खरी उतरती है।
–मौन साध लेना एक कला है। अगर उसमें निपुणता है तो उद्देश्य सफल हो जाता है , किसी को यह बताने हेतु कि उससे नाराजगी है।
–जब महसूस करती हूँ कि अब कुछ नियंत्रित नहीं कर सकती तो चुप रहना बेहतर समझती हूँ।
–लेखन कर लेना सरल उपाय लगता है चुप्पी साधने हेतु।
–अगर सामने कोई मूर्ख बोल रहा है तो मौन रहना उचित है, परन्तु यदि कहीं छल हो रहा है, अपराध हो रहा हो तो हमें साहस कर विरोध करना चाहिए, क्योंकि आने वाली पीढ़ी के लिए तब का मौन घातक सिद्ध हो सकता है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
     मान सम्मान और प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखा जाता हैं, जहाँ स्वार्थों के बिना कोई भी किसी भी तरह की कई विफलताओं का सामना करना पड़ता हैं। जिसके कारण जनजीवन के साथ ही साथ जीवन यापन प्रभावित होता हैं। हम अपने वाक्र शक्ति के आधार पर शब्दावली के माध्यम से अहसास जनों को मर्यादा विहिन होकर अत्यधिक शब्दों का प्रयोग कर अंशांति मय बना देते हैं, हम यह सोच ही नहीं पाते कि आगे वाले पर क्या बित रही हैं और उसे इस तरीके से नीचा दिखाने में सफल हो भी जातें हैं। अगर हम उसका जवाब मौन रह कर दे देते हैं, तो सामने वाला सोचने पर मजबूर हो जायेगा और आत्मविश्वास में जागरूकता आयेगी, कि किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़ा। इसीलिए कह सकते हैं, कि ज्ञानी अपना जवाब मौन रह कर दे देते जो अधिक शक्तिशाली हो जाता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
मेरे विचार से मौन हृदय की भाषा है,  जो जीवन की समस्याओं, उलझनों को सुलझाने में  मदद करती है।  मौन रहने का अभिप्राय अन्याय सहन करने से नहीं होना चाहिए। मौन अपने पीछे कोई ना कोई कारण अवश्य छोड़ता है, और निर्णय को स्वीकार भी करना पड़ता है। यह सही है कि हम चुप रह कर अपनी इंद्रियों को अपने वश में कर लेते हैं संयम को अपनाते हैं यह कोई आसान काम नहीं है। लेकिन जहां घर परिवार, रिश्तो का  हित निहित हो वहां मौन रहना बेहतर हो जाता है। दैनिक व्यवहारिक जीवन में भी मौन का विशेष महत्व है" एक चुप सौ सुख" कहावत भी है। जो  चुप रहने का या मौन रहने का महत्व दर्शाती है। व्यक्ति निशब्द रहकर भी बहुत कुछ समझा जाता है। आध्यात्मिक चिंतन, साधना में मौन का विशेष महत्व है, ईश्वरीय भक्ति में लीन रहने वाले साधक के लिए मौन रहना किसी आभूषण से कम नहीं।  अतः समय ,स्थिति  स्थान और परिस्थिति के अनुरूप मौन की विशेषता आंकी जाती है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
रहीम कहते हैं कि.... 
"रहिमन चुप हो बैठिए, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।।"
अच्छे और बुरे समय के सन्दर्भ में मौन को स्वीकार करना लाभदायक होता है। 
इसी प्रकार एक कहावत है...."एक चुप सौ को हराये" 
इस कहावत के अनुसार मौन शब्दों से अधिक शक्तिशाली साबित हो सकता है। 
परन्तु व्यवहारिक जीवन में व्यक्ति को इस बात का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए कि कब मौन रहना है और कब अपने शब्दों को स्वर देना है।
जहाँ मनुष्य को बोलना चाहिए वहां पर मौन रहना हानिकारक होता है। कर्तव्यों के निर्वहन में यदि बोलना आवश्यक है तो मौन रहना कर्त्तव्यहीनता होगी। 
इसी प्रकार स्वयं के साथ हो रहे अनर्थ अथवा अन्याय का प्रतिकार मौन रहकर नहीं किया जा सकता। ऐसी अवस्था में मौन शक्ति नहीं वरन् कमजोरी को दर्शायेगा।
एक सच्चाई यह भी है कि मौन की भाषा सज्जन पुरुष ही समझ पाते हैं, दुष्ट प्रवृत्ति के मनुष्यों को उन्हीं की भाषा में प्रत्युत्तर देना पड़ता है नहीं तो वह हमारे मौन को हमारी कायरता समझते है।
निष्कर्षत: परिस्थितियों और स्थान को देखते हुए ही मौन अपनाना चाहिए तभी मौन शब्दों से अधिक शक्तिशाली हो सकता है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
अमूमन बातों को शब्दों का सहारा चाहिए होता है पर कभी कभी कुछ बातों को शब्दों के जरिए कहना या किसी को समझाना संभव नहीं लगता, तब मौन ही एकमात्र सहारा होता है बशर्ते सामने मौन की भाषा समझने वाला हो। हालांकि उस मौन का अर्थ कई बार गलत निकाल लिया जाता है क्योंकि मौन को सुनना बहुत ही कठिन कार्य है। 
हर जगह मौन शक्तिशाली साबित हो नहीं सकता, कुछ बातों को असरदार शब्दों के माध्यम से, पुरजोर तरीके से कहना जरूरी होता है ताकि हमारी बात वहाँ पहुँचे जहाँ पहुँचना चाहिए।
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
मौनं स्वीकृति लक्षणं।
एक चुप सौ को हराता है।
मौन से उर्जा संचय में सहयोग मिलता है।
इन उक्तियों के आलोक में देखें तो शब्दों के मुकाबले,मौन शक्तिशाली तो होता ही है। 
मौन हमें हमारे भीतर की यात्रा का अवसर देता है। इस यात्रा से हम वास्तविकता से परिचित हो जाते हैं, आत्मशक्ति का बोध हो जाता है।
दूसरी बात मौन रहने से विपरीत समय भी सहजता से गुजर जाता है।रहीमदास का दोहा याद आता है- रहिमन चुप ह्वै बैठिए,देख दिनों को फेर।जब नीकै दिन आएंगे,बनत न लगिहै देर। यह है मौन की शक्ति का प्रभाव। लेकिन मौन कहां रहना है,यह विवेक होना चाहिए। जब आप घर में मौन रहते हैं,एक बार तो प्रभाव बढ़ता है,फिर घटने लगता है कि यह तो कुछ कहता ही नहीं सही हो या ग़लत। इसलिए गलत समय का मौन हानिकारक भी हो जाता है। मौन वह शक्ति है,जिसका अनुचित प्रयोग घातक भी हो सकता है। सांप से गुरु ने कहा किसी को नुकसान न पहुंचाना।वह शांत,मौन रहने लगा,लोग उसे पत्थर मारते। उसने गुरु से अपनी दशा कहीं,तो गुरु ने कहा कि मैंने नुकसान पहुंचाने को मना किया था, फुंफकारने को नहीं। यानि अनावश्यक मौन रहना ठीक नहीं। मौन,शब्दों से अधिक प्रभावशाली होता है, इससे तो इंकार नहीं किया जा सकता।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
मौन की शक्ति अवर्णनीय है। शब्दों के तीखे प्रहार को वह आसानी से झेल लेती है। अपनी संपूर्ण ऊर्जा को समेटे केवल शांत चित्त भाव भंगिमा से शब्दों के द्वारा तीक्ष्ण प्रहार करने वाले को वह आसानी से परास्त कर देती है। उसके कटु  वाक्यों और बड़बोलेपन का उस पर कोई असर नहीं पड़ता। गौतम बुद्ध महावीर स्वामी गुरु नानक जैसे  संत पुरुषों के उदाहरण हमारे सामने है जिन्होंने बड़ी हस्तियों को अपने सम्मुख केवल मौन के प्रभाव से झुका लिया। मौनी व्यक्ति उन शब्दों को पुष्प की तरह समझता है जो उस पर गिरते हैं और झड़ जाते हैं। उनका कोई मूल्य नहीं होता। मौन रहकर वह अपनी उर्जा का संरक्षण करता है जो उसके मस्तिष्क को प्रखर बनाती है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर -  मध्य प्रदेश
मौन का अर्थ अंदर और बाहर से चुप रहना होता है। आमतौर पर हम *मौन*का अर्थ होठों का ना चलना मानते हैं। यह बड़ा सीमित अर्थ है।
कबीर ने कहा है:---*कबीरा यह गत अटपटी,चटपट लखि न जाए। जब मन
की खटपट मिटे अधर भया ठहराया*। 
अधर यानि होंठ वास्तव में तभी रुकेंगे तभी शांत होंगे, जब मन की खटपट मिट जाएगी। हमारे होठ भी ज्यादा इसलिए चलते हैं क्योंकि मन अशांत है। मौन से संकल्प साक्षी की वृद्धि तथा वाणी के आवेगो पर नियंत्रण होता है।
लेखक का विचार:---मौन आंतरिक तप है इसलिए आंतरिक गहराइयों तक ले जाता है। वाणी को अपव्यय  रोककर मानसिक संकल्प के द्वारा आंतरिक शक्तियों के क्षय को रोकना परम मौन को उपलब्ध होना है। मौन से सत्य की सुरक्षा एवं वाणी पर नियंत्रण होता है।इस क्षण प्रकृति से नवीन रहस्य के साथ परमात्मा से प्रेरणा मिल सकती है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
जी बिल्कुल मौन तो शब्दों से भी अधिक शक्तिशाली होते हैं ।मौन की अपनी आवाज होती है,,,।
सच तो यह है कि खामोशियां भी बोलती हैं ,,,,बस उनकी आवाज सुनने वाले कान होने चाहिए। खामोशियों की आवाज कानों के बजाय आत्मा एवं विवेक से सुनी जा सकती है।
 मेरी एक नज़्म इसी विषय मे है  ,, 
खामोशियों से कह दो वह अब तो मान जाएं ।
दीवानगी से कह दो ना छोड़ तू वफाएं ।
खामोशियां भी कई प्रकार की होती हैं ।
प्रेम सम्बन्धो में अक्सर ऐसा ही होता है  कि जब  प्रेमी युगल में एक खामोश रहकर दूसरे का प्रणय निवेदन स्वीकार करता है परंतु उस खामोशी में  या तो उसकी मौन स्वीकृति छुपी होती है उसकी आवाज बनकर या अस्वीकृति भी ,,,,,जो दूसरा पक्ष उसके मन की भाषा को सहजता से ही पढ़ लेता है और उसकी भावना को समझ सकता है ।
परिवार में माता-पिता, भाई-बहन एवं संतान के एक दूसरे से प्रति प्रेम  या दो दोस्तों के मध्य आपसी प्रेम भी हमेशा खामोशी की भाषा में ही छुपे होते हैं ,,,।यह लोग आपस में कभी नहीं बयान करते कि वह एक दूसरे से बेहद प्यार करते हैं ,,,मगर उनके खामोश प्रेम को सहजता से पढ़ा जा सकता है।
 ठीक उसी प्रकार, मृत्यु ,भी खामोशी की  परम एवं चरण अवस्था है ,,,मगर आवाज तो उसमें भी होती है ।
दिवंगत की मृत्यु की खामोशी भी उसके परिजनों को ,स्वजनों को स्मृतियों के रूप में सुनाई देती रहती है ।वह  खामोशी की आवाज ही परिवार को धीरे धीरे हिम्मत देती  है कि ,मैं साथ ही हूं कहीं नहीं गया ,वह मौन ,,,,एक सब्र का सबब बनता है ,सब्र की आवाज बनता है ।
अक्सर ऐसा भी देखा गया है कि अपने परिवार का या आस पास का  कोई व्यक्ति अचानक खामोश गुमसुम सा रहने लगता है तो हो सकता है कि वह किसी परेशानी की वजह से डिप्रेशन मे चला गया हो ,ऐसे मे उसकी खामोशी और असहजता को पढ़कर उसकी मदद करने  चाहिए क्योंकि वह ऐसे हालात मे अपनी भावनाये व्यक्त नही कर पाता  और अंदर ही अंदर घुटता रहता है जिसके बड़े ही भयानक परिणाम हो सकते हैं वह आत्महत्या तक कर सकता है अतः अचानक आयी हुई किसी की खामोशी की भाषा को पढ़ना  चाहिए ,,शायद  ये सतर्कता किसी की मदद बन जाये किसी के जीवन के काम आ जाय ।
कभी-कभी किसी के प्रति अपराध करने पर पीड़ित व प्रताड़ित व्यक्ति की खामोशी भी अपने दोषी को डर बन कर व अपराध बोध बनकर सुनाई देती रहती है ।
अगर हमें किसी के बचाव में कोई खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं तो वह मौन ही स्वयं की अंतरात्मा को ग्लानि बनकर सुनाई देता रहता है ।
अगर कोई व्यक्ति कष्ट सहकर अंदर ही अंदर घुट घुट कर खामोशी की चादर ओढ़ कर जुल्मों को सहता रहता है मगर फिर भी उसकी ख़ामोशी में भी एक आवाज छुपी होती है एक दर्द की आवाज ,,,,जो अपराधी को अपराध बोध  के रूप मे सुनाई देती है । जो उसके दोषी के कर्मों का नतीजा होती है।
 या जब किसी की गलती पर उसके बचाव में  कोई खामोश हो गया हो  तो कभी-कभी व्यक्ति खामोशी तोड़ना चाहता है और दूसरे के दबाव में यह प्रभाव में खामोश रहना पड़ता है।मगर उनके जेहन मे भी स्वयं की खामोशी की आवाज सालती रहती है घुटन बनकर ।
 जब किसी को कई कारणों से खामोशियों का चोला ओढ़ लेना पड़ता है  तो वह भी अंदर ही अंदर घुटता रहता है और जलता रहता है।
 सच तो यह है कि खामोशियां बोलती हैं बस उनको सुनने की जरूरत है ।कुछ लोग तो जानबूझकर अनसुना कर देते हैं, अंजान बने रहते हैं ।दूसरे की खामोशी की आवाज नहीं सुनते।
 परंतु ऐसा नहीं है कि खामोशी में आवाज नहीं है ,,,ख़ामोशी में कोई न कोई आवाज होती है जरूर होती है ,,,,,जरूरत है तो उसको सुनने की समझने की।
-  सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
कभी-कभी मौन  शब्दों से भी शक्तिशाली होता है। और इतना शक्तिशाली होता है कि अपनी आवाज ईश्वर तक पहुंचा देता है। इस लिए लोग मौन धारण करते हैं। मौन की भाषा जो समझता है वह अंदर का सुख पाता है। जब हम कभी किसी को कुछ बोलते हैं और वह जवाब नहीं देता है। तो उसका मौन तीर की तरह असर करता है कि वह मुझे कुछ महत्व ही नहीं दिया। या कोई किसी को अपशब्द बोलता है और वो व्यक्ति कोई जवाब नहीं देता है तो वो आदमी अपने आप चुप हो जाता है और बाद में पश्चाताप करता है कि मैंने उसे अपशब्द क्यों कहा। जबकि वो व्यक्ति लड़ाई झगड़ा करता तो पश्चाताप की बात ही नहीं आती। तो मौन किसी हथियार से भी शक्तिशाली निकला जो एक दुष्ट व्यक्ति को पश्चाताप के लिए बाध्य कर दिया।
लेकिन कहीं-कहीं मौन विध्वंसकारी भी हो जाता है। या लोग कहते हैं कि वो डर गया इसलिए कुछ नहीं बोला।
फिर भी मौन एक ऐसी शक्तिशाली प्रक्रिया है जो अपना असर  जोरदार तरीके से ही दिखता है। भले असर दिखाने में कुछ देर लगे।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
मौन शब्दों से शक्तिशाली होता है यदि उचित समय पर इसका प्रयोग किया जाए
यदि हम मौन धारण कर घर बैठे रहें तो इससे किसी समस्या का समाधान नहीं होगा अपितु किसी विवादास्पद स्थिति मैं समस्या को समझते हुए कभी कभी मौन धारण करना समस्या का समाधान बन सकता है
मौन व्यक्ति को आत्मचिंतन व आत्मविश्लेषण का सुअवसर प्रदान करता है
पुरानी कहावत है ......एक चुप ...सौ सुख
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
अनेक अवसर ऐसे होते हैं जब मौन शब्दों से भी अधिक शक्तिशाली सिद्ध होता है। अपने ही बचपन की यादें ताज़ा करते हुए बताता हूं कि अक्सर पिताजी शैतानी करने पर हमें डांटा करते तो हम सहम तो जाते पर पीठ होते ही खिलखिलाते और वही शैतानियां शुरू कर देते। पर पिताजी की नज़रों से यह सब छिपा नहीं रहता। वे घोषणा कर देते कि जब तक हम नहीं सुधरेंगे तब तक वे हमसे बात नहीं करेंगे, मौन रहेंगे और इस पर बहुत कठोरता से अमल करते। पिताजी जो हमसे अत्यधिक स्नेह करते और उनका हमसे बात न करना हमें बहुत पीड़ा देता। मैं इसी प्रसंग से कहना चाहता हूं कि अक्सर मौन शब्दों से अधिक शक्तिशाली साबित होता है। पर यदि कोई जुल्म कर रहा हो तो मौन न रहें।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
मौन धारण कर के अपनी सहनशीलता को और भंयकर आक्रमण आक्रोश व्यक्त किया जा सकता है मौन खूद मे एक अद्भुत क्षमता और कला का परिचायक होती है वह शब्दों से भी अधिक शक्तिशाली होती है पीर के बंधन मे बंधकर मौन और भी कलात्मकता को प्रदान करती है हृदय की मौनव्रत को शब्दों से अधिक शक्तिशाली साबित होती है जीवन की गतिविधियों मे मौन एक अहम भुमिका निभाती है और शब्दों से अधिक शक्तिशाली साबित होती है पंरतु कभी कभार हमे मौन एहसास की बातों को समझ नही पाते है और रिश्तों क मजबूत डोर को समाप्त कर देते हैं ।जीवन की जीवनशैली को निंरतर खुशियों सजाये रखने के लिए हमेशा संयम और सहनशीलता एंव मौन को धारण करके आगे बढ़ते रहना चाहिए।शब्दों की सार्थकता मौन के आगे सत्य की परिपक्वता को बंया कर देती हैं।बिनकही अलफाज जीने की राह आसान कर देती है और मतभेदों को विचारों मे बडे आसानी से खत्म करने की कोशिश करती हैं।शब्दों से भी अधिक शक्तिशाली मौन खामोशी होती है।जब दिल के प्रांगण मे झुठ का बोल बाला हो चारों दिशाओं मे असत्य ही असत्य हो तब मौनव्रत और निगाहों की खामोशियों कुछ बंया कर जाती है।या तो हम मौन से खूद को सही साबित करने मे सक्षमता हासिल करते हैं या अक्षमता से हम गलत साबित होते है पंरतु आपसी मतभिन्नता को कम जरूर कर सकते है।मौन अधिक शक्तिशाली होती है जब अलफाज के रूप भिन्नता को प्रकटीकरण करते हैं।शब्दों की सीमा से बेहतर मौन की सीमा होती है जीवन को शांतिपूर्ण तरीके से जीने की राह मौन ही बताते हैं।शब्दों की अहमियत मौन केंद्र से शक्तिशाली नही होती है।शब्दावली जज्बात को पन्नो मे उकरने मे कभी कभी असर्मथता दिखाती है।पर बिना कुछ कहे मौन इशारों मे अपनी जज्बात और एहसास को व्यक्त करती हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
"जिन्दगी खूबसूरत है, जब मौन तक एक खामोश सूरत है, 
सुननी हो गर दिल की बात तो मौन की जरूरत है"
मौन हमारे जीवन मे  एक महान भूमिका निभाता है, कभी कभी यह हमारे मन की  सभी निराशाओं को दूर कर सकता है इसकी एक निश्चित उर्जा होती है, 
तो आईये आज  चर्चा करते हैं कि क्या मौन शब्दों से अधिक शक्तिशाली होता है, 
मेरा मानना है कि मौन एक शक्तिशाली चीख है, चुप्पी ही शक्तिशाली मानी गई है जो लोग चुप्पी के साथ संघर्ष करते हैं वो अक्सर डर को अकेला छोड़ देते हैं और डर से अन्जान होते हैं, मौन का एक कारण इतना डरावना होता है कि यह प्रत्यासा की भावना पैदा करता है, 
यह सच है किसी स्वस्थ रिश्ते के पीछे बहुत सारे आरामदायक मौन होते हैं, मौन एक  शक्तिशाली हथियार है, चुप्पी बहुत कुछ कर सकती है जो बात नहीं कर सकती ताकी पता लगायै जा सके दुसरे व्यक्ति की तलाश क्या है, 
कई बार मौन ऐसे संस्करणों को बौलता है जो शब्द व्यक्त नहीं कर सकते यही नहीं कई  स्थित्यों में मौन वास्तव में चमत्कार कर सकता है वशर्ते की हम उचित तरीके से इससे निपटने में सक्ष्म हों, 
अन्त मे यही कहुंगा मौन से मन की शान्ति व उर्जा बनी रहती है, इससे विचार साकारत्मक होते हैं, और मौन धारक की बात को ध्यान से परखा जाता है  और सुगम व सुन्दर ढंग से हल भी किया जाता है इसलिए मौन शब्दों से अधिक शक्तिशाली होता है, 
सच कहा है, 
"यहां नदी गहरी होती है, 
वहां जलप्रवाह अत्यंत शांत 
           व गंभीर  होता है "। 
-  सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मौन का अर्थ है वाणी की पूर्ण शांति।मौन में वह शक्ति है जिसे धारण कर मनुष्य कठिन से कठिन समस्याओं का हल निकाल लेता है।वाणी से हम कई बार अपने मनोविकारों को अनर्गल बोल कर प्रतिकूल परिस्थिति उत्पन्न कर देते हैं ,जिससे परिवेश तो दूषित होता ही है ।एक ऐसा घाव दे जाते हैं जो कभी भर नहीं सकता।जिव्हा से निकली वाणी कभी वापस नहीं आ सकती ,ठीक उसी तरह जैसे तीर कमान से निकल कर फिर कभी वापस नहीं आता ।महावीर स्वामी ने बारह वर्ष  और गौतम बुद्ध ने छ:वर्ष तक मौन रख कर दिव्य ज्ञान को प्राप्त किया था।
कई बार मौन धारण किसी समस्या को सुलझाने में औषधी का काम करता है ।इसलिए विवादों से बचने के लिए चुप रहना ही श्रेयस्कर होता है।परंतु कई बार देखा गया है कि जो मुखर होकर मधुर वाणी से अपनी बातों को रखता है,वो हर क्षेत्र में कामयाब होता है।बनिस्बत कि मौन रहकर कुढ़ते रहने से।ऐसे में व्यक्ति ख़ुद को हानि ही पहुँचाता है।इसलिए ‘मौन ‘शब्दों से शक्तिशाली हर परिस्थिति में साबित नहीं होता ।
- सविता गुप्ता 
राँची -झारखंड
             निस्संदेह मौन शब्दों से भी अधिक शक्ति शाली साबित होता है। मौन जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मौन एक ऐसी शक्तिशाली तलवार है जिस का घाव सीधा दिलो- दिमाग पर प्रभाव डालता है। कई बार जो काम शब्दों द्वारा (जीभ) बोल कर नहीं होते वो मौन रह कर आसानी से हो जाते हैं। इसी लिए तो यह कहावत मशहूर है "एक चुप,सौ सुख"।क्योंकि शब्द तीर के समान होते हैं जो जा कर सीधा घाव करता है और  एक बार कमान से निकला तीर वापिस कमान में नहीं आता।उसी तरह जीभ से निकले शब्द वापिस नहीं आते।इस तरह कई बार बनते बनते काम भी बिगड़ जाते हैं। जीभ द्वारा दिया गया घाव कभी नहीं भरता।दूसरी तरफ मौन का सीधा असर होता है। महात्मा गाँधी जी ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ़ कई बार मौन व्रत रखा था।अहिंसा मौन का ही औजार है। आज कल भी कई लीडर अपनी मांगों को मनवाने के लिए मौन व्रत रख लेते हैं। घर परिवार में भी कई बार बढ़े -बूढ़े नाराज़ हो कर मौन व्रत रख लेते हैं। फिर सारा परिवार उनके आस पास घूमते है। 
      मौन में वह शक्ति है जो शरीर की  उर्जा के अपव्यय को रोकती है। मौन रहने से सहनशीलता बढ़ती है और बौद्धिक विकास होता है। लेकिन मौन रहना हरेक के वश की बात नहीं। यह एक तरह की साधना है जो निरन्तर अभ्यास से आती है। एक बार खुद को साध लिया तो सब कुछ अपने आप  वश में होने लगता है। इस लिए मौन शब्दों से भी अधिक शक्तिशाली साबित होता है। हम सब को भी कभी-कभार मौन व्रत रखना चाहिए। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
मौन को शक्तिशाली बनाने के लिए सही जगह पर उसका उपयोग करना है। यह ऐसा तीर है जो इधर-उधर चला गया तो बेकार हो जाता है, बल्कि नुकसान ही देता है। मौन सोच-विचार का समय देता है। किसी भी उच्च पद पर आसीन या परिवार के वरिष्ठ सदस्य को अन्य सदस्यों की समस्या सुलझाने के लिए मौन का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है। विचार कर निर्णय करना सदस्यों के हित में होता है। 
परन्तु कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जहाँ मुखर होना आवश्यक होता है। इसलिए मौनरूपी हथियार का उपयोग सावधानीपूर्वक करने से ही वह शक्तिशाली साबित होगी।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
शब्दों में शक्ति है ।शब्द मरहम भी लगाते हैं और घाव भी देते हैं लेकिन हर शब्द की प्रतिक्रिया होती है । मौन भी एक शब्द है ,यह आत्मसंयम देता है अर्थात हम अपने मन पर अंकुश लगाते हैं  ।मौन हमारे अन्दर विचारों की शक्ति जगाती है ,हमरा स्वयं से साक्षातकार होता है । हमारे मन में ऊर्जा का संचार होता है ।यह मौन की ही शक्ति थी कि दानीदधिची की हड्डियों से बज्र बना और राक्षसों का संहार हुआ । सृष्टि के आदि में प्रकृति मौन थी ,सृष्टि के अंत में भी सब मौन होगा ।मौन तिलस्म है , परिभाषित करना मुश्किल है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
वर्तमान में बुजुर्ग मौन रहना ही पसंद करते हैं ताकि मान सम्मान बना रहे चूंकि आजकल के बच्चे सब्र किये बिना  शब्दों के बाण चलाना जानते है ! उनमे संयम और धैर्य नाम की चीज नहीं होती ! शब्दों के बाण उनके हर्दय पर घव देते हैं जबकि मौन शीतल लेप ! उनके मौन रहने से बात भी नहीं बढ़ती और उनके मान सम्मान को ठेस नहीं पहूंचती !
मौन से वाणी के आवेग में नियंत्रण रहता है ! मौन का बहुत महत्व है कहते हैं न एक चुप तो सौ सुख ! मौन रहना साधारण बात नहीं है बहुत कठिन है ! मौन का मतलब केवल चुप रहना नहीं है हमे अपनी इंद्रियों को भी बस में करना होता है ! 
कई बार मौन रहना किसी तनावपूर्ण स्थिति का समाधान बन जाता है चूंकि शब्दों के तीर जब कमान से निकलते हैं तो पुनः लौटकर नहीं जाते अतः शब्दों पर यदि नियंत्रण नहीं है तो चुप रहने में ही भलाई है ! मौन में संयम और धैर्य होता है !
मौन विवादास्पद स्थिति का शांतिपूर्ण हल है ! 
         - चंद्रिका व्यास
        मुंबई - महाराष्ट्र
       हां शब्दों से कहीं अधिक शक्तिशाली 'मौन' की शक्ति होती है। दूसरे शब्दों में यह एक वैराग्य है जिसे असाधारण प्रतिभाशाली व्यक्ति ही धारण कर सकते हैं। चूंकि यह एक विशेष कौशल है जो प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं है।
      मुझे याद है जब मैं अपने पैतृक विभागीय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों के षड्यंत्रों का शिकार हो रहा था और माननीय न्यायालय के उस आदेश का पालन भी कर रहा था। जिस आदेश में न्यायालय के न्यायमूर्ति और उसके द्वारा दिया न्यायमित्र भी पूरी तरह लिप्त थे। अन्यथा यह कैसे संभव हो सकता है कि मात्र एलएलबी पढ़ा एकल पीठ का न्यायमूर्ति 4 विद्वान मनोविशेषज्ञों के मेडिकल बोर्ड द्वारा एक माह के 24×7 की देख-रेख (ऑब्जर्वेशन) के बाद जारी प्रमाणपत्र को तिलांजलि देते हुए उनके विरुद्ध आदेश पारित करता और मांगे गए तपेदिक के उपचार के स्थान पर अपराधी अधिकारियों का मनभावन मानसिक उपचार कराने का निर्देश देता? जो खुल्लमखुल्ला अपराध है।
       तब मैंने बोलने के स्थान पर मौन धारण कर लिया था। जिसे मेरे कनिष्ठ अधिकारी ने 'गुंगे' की शब्दावली का प्रयोग करते हुए उच्च अधिकारियों को पूछे गए सवालों का जवाब दिया था।
       चूंकि खुली न्यायालय में मेरे अभियोग पर न्यायमित्र की चुप्पी साधने के बाद जब मैंने न्यायमूर्ति को अपनी व्यथा की चीख-पुकार की तो मेरे भ्रष्ट अधिकारियों के हाथों बिके हुए न्यायमूर्ति ने मुझे चुपचाप बैठने का आदेश सुना दिया था। इसलिए उस समय 'बिना वेतन' के उन भयंकर असहनीय पीड़ाओं को 'मौन' रह कर सहन करने के अलावा मेरे पास अन्य कोई विकल्प नहीं था। 
       अतः उल्लेखनीय यह है कि उसी 'मौन' धारण की शक्ति से परिपूर्ण मेरा अभियोग आज माननीय न्यायालय में सशक्त खड़ा है। जो दृढ़ता से प्रमाणित करता है कि 'मौन' शब्दों से भी कहीं अधिक शक्तिशाली होता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
मौन हो जाना शब्दों से निश्चित ही ज्यादा शक्तिशाली होते हैं क्योंकि शब्द कभी नकारात्मक होते हैं कभी सकारात्मक होते हैं लेकिन वह नकारात्मक सकारात्मक के बावजूद वह सिर्फ मौन होता है जिसको समझने के लिए अंतर मन की शक्ति चाहिए मौन होने से वस्तु स्थिति को स्वीकार भी लेते हैं और अस्वीकार भी लेते हैं दोनों परिस्थितियों में मौन होना ज्यादा शक्तिशाली है क्रोध की अवस्था में अगर एक व्यक्ति क्रोधित हो रहा है दूसरा व्यक्ति मौन है तो क्रोध में ठहराव आ जाता है बहस की स्थिति में अगर बहस चल रही है और मौन है तो बस वही खत्म हो जाती है मन की स्थिति निश्चित ही शब्दों से ज्यादा शक्तिशाली होती है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
मौन शब्दों से अधिक प्रभावी होता है । अधिक बोलने से ऊर्जा नष्ट होती है । मौन में ऊर्जा संचित होती  है । विवादित बयान देकर वाद-विवाद में फसने से बचने का सर्वोत्तम उपाय  मौन है इससे  लड़ाई को टाला जा सकता है । 
मौन में वो शक्ति है  । जो दुनियाभर में लोग अनुभव कर चुके हैं । शब्दों के बाण घाव देते हैं लेकिन मौन वैमनस्य पैदा ही नहीं होने देता । मौन व्यक्ति को संयमी भी बनाता है। 
- अर्विना गहलोत
ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
शब्द मिथ्या लाभ नहीं करना चाहते
भाव भावना मंद पद रही है
सुख सुख लग रहा है
और दुःख आनंद
प्रेम प्रगाढ़ होता जा रहा है
शायद....................
मन मौन को ही पचा रहा है l
मौन शब्दों से अधिक शक्तिशाली होते हैं क्योंकि हम अंदर और बाहर से चुप होते हैं l लेकिन हमें शब्दहीनता और ध्वनिहीनता को मौन नहीं समझना चाहिए क्योंकि आंतरिक मौन में शब्द लगातार मौजूद रहते हैं l
शब्दों की अपेक्षा मौन से संकल्प शक्ति की वृद्धि तथा वाणी के आवेगों  पर नियंत्रण होता है l कहा गया है कि शब्द जब तक आपके  नियंत्रण में है लेकिन मुख से बाहर आने के बाद हम शब्दों के अधीन हैं l चंद शब्दों से महाभारत हो गया था l
कबीर ने कहा -
कबीरा यह गति अटपटी, चटपट लखि न जाये l
जब मन की खटपट मिटे, अधर भया ठहराय ll
   अर्थात मन के अशांत होने पर हमारे होंठ चले या नहीं कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि शब्दों से माप करने में कोई समय नहीं लगता l लेकिन मन से माफ करने में सदियों बीत जाती हैं, शायद ताउम्र हम अपने मन से माफ नहीं कर पाये l
मौन एक तरह की साधना है, तप है, अन्तःकरण की शुद्धिकरण का एक माध्यम है l
   लेकिन मौन रहकर अन्याय को सहना आत्मकुठाराघात है क्योंकि मौन की अवस्था में हम आत्मा से वार्तालाप करते हैं l कहा है -
छीनता हो स्वत्व तेरा और कोई
 तू मौन रहकर धैर्य से काम ले
पाप नहीं पुण्य है, विच्छिन्न
कर देना उस हाथ को 
बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है l
बनर्ड्सा ने भी कहा -मौन की भाषा शब्दो की अपेक्षा प्रभावी भाषा है l व्यक्ति इसका इस्तेमाल बहुत कम करता है l
      ----चलते चलते
जो तुम्हारे मौन का अर्थ नहीं समझता सम्भवतया वह तुम्हारे शब्दों का अर्थ भी नहीं समझेगा l
     - डा. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
मौन वहीं शक्तिशाली होता है, जहाँ मौन का सही अर्थ समझने वाला हो । वैसे ऐसे लोग कम होते हैं । मौन वहाँ भी शक्तिशाली होता है, जहाँ उस विषय में ज्ञान न हो ।
वैसे अधिकतर शब्द ही शक्तिशाली होता है ।
      - पूनम झा
        कोटा - राजस्थान

" मेरी दृष्टि में " मौन रहना सभी स्थिति में ठीक नही होता है । जहाँ  पर अपराध हो रहा है ।उसे देखकर मौन नहीं रहना चाहिए । यह सबसे बड़ा पाप होता है । 
- बीजेन्द्र जैमिनी

सम्मान पत्र 


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