क्या न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता है ?

न्याय की इच्छा सभी में होनी चाहिए । तभी न्याय सम्भव होता है । न्याय के लिए संघर्ष जारी रहना चाहिए । तभी न्याय मिलता है । यही कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा "  का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं :-
वर्तमान सभ्य समाज की सबसे बड़ी विडम्बना यही है कि न्याय संघर्ष का पर्याय बनता जा रहा है। न्याय के लिए कभी-कभी मनुष्य का पूरा जीवन ही संघर्षों की भेंट चढ़ जाता है। 
साथ ही यह भी सही है कि यह संघर्ष का रास्ता सबके लिए एकसमान नहीं होता। तभी तो न्याय के लिए समर्थ को कम संघर्ष करना पड़ता है और कमजोर व्यक्ति को न्याय हेतु एड़िया रगड़नी पड़ती हैं। 
लोकतंत्र में न्याय के मंदिरों में झाँकिए तो आपका अनेक विसंगतियों से सामना होगा। सबल और निर्बल के संघर्षों के मार्ग और परिणाम में स्पष्ट अन्तर दिखाई देगा। परन्तु यह सत्य है कि ऐसा व्यवस्था के कारण नहीं होता बल्कि व्यवस्था संचालित करने वालों में से कुछ भ्रष्ट तत्वों की वजह से न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता बनता जाता है। 
परन्तु मेरा मत है कि संघर्ष के रास्ते पर निरन्तर चलते हुए अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाले को अंततोगत्वा न्याय अवश्य प्राप्त होता है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
न्याय पाने के लिए संघर्ष तो करना ही पड़ता है । आसानी से न्याय उपलब्ध नहीं होता ।आज के समय में न्याय पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। इसके बावजूद भी कई बार न्याय मिल जाता है और कई बार नहीं। न्याय करने वालों पर भी कई तरह के दबाव डाले जाते हैं। बहरहाल न्याय करना और न्याय पाना दोनों ही स्थितियों में संघर्ष करना पड़ता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
न्याय की चाहत,जरुरत ही तब पैदा होती है,जब कोई अन्याय हो रहा हो। न्याय मिलना सहज,सरल भी नहीं होता। न्यायालय की शरण में जाना संघर्ष की एक कड़ी ही है। वैसे संघर्ष तो तभी शुरू हो जाता है,जब हमारे साथ अन्याय हो रहा हो। अन्याय तभी से शुरू हो जाता है,जब अधिकारों को कुचला जा रहा हो।
मैथिली शरण गुप्त जी ने 'जयद्रथ वध' में लिखा है-
अधिकार खो कर बैठ रहना, यह महा दुष्कर्म है
न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है ।।
इस तत्व पर ही कौरवों से पाण्डवों का रण हुआ
जो भव्य भारतवर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ 
पांडवों के साथ अन्याय न होता तो महाभारत जैसा युद्ध नहीं होता। सामान्य रुप से वाद विवाद में भी जब न्यायालय की शरण ली जाती है तब जिस व्यवस्था,संघर्ष से गुजरना होता है, उसे कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है। 
एक गीत की पंक्तियां याद आ रही है, जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है। जीवन में पग पग पर संघर्ष होता है।कभी बाहरी,कभी भीतरी।
न्याय  की प्रक्रिया भी इससे अछूती नहीं। न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता है? ऐसा तो नहीं है। जीवन में इससे बड़े अन्य बहुत से संघर्ष भी हैं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
     न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता है, यह बात बिल्कुल सही है। यदि हम अपने इतिहास पर नजर डालें तो हमें पता लगता है कि न्याय के लिए हमें सैंकड़ों साल संघर्ष करना पड़ा। अंग्रेजी राज से मुक्ति भी न्याय के लिए संघर्ष था।कितना लंबा संघर्ष करना पड़ा। तब तो गांधीवादी नीति से  अर्थात अहिंसा की नीति पर चले।
      लेकिन आज समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक आदि किसी भी प्रकार का न्याय हो,लंबा समय संघर्ष के बाद भी न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती है। आजकल सब कुछ बिकाऊ है।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
हमारे देश में न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता है। दफ्तर, कोर्ट, कचहरी,न्यायालय सबके चक्कर लगाते-लगाते लोग थक जाते हैं तब जाकर कहीं न्याय मिलता है। वो भी किसी किसी को ही। जमीन जायदाद के मामले में तो ऐसा ही होता है। केश लड़ते-लड़ते पिता जी मर जाते हैं फिर बेटे को लड़ना पड़ता है। तब जाकर कहीं न्याय मिलता है। जितने का जमीन नहीं होता है उससे ज्यादा न्यायालय आने जाने और वकील के फीस वगैरह में खर्च हो जाता है।
         बलात्कार केश में बलात्कारियों को सजा देने में वर्षों लग जाते हैं। जबकि बलात्कारियों की पहचान हो गई रहती है। हत्या केश में भी सारे सबूत होने के बावजूद हत्यारे को फाँसी देने में बरसों लग जाते हैं। तलाक केश में भी जवानी में तलाक की अर्जी देने पर तलाक मिलते-मिलते बुढ़ापा आ जाता है। तब तलाक मिलता है। दोनों कहीं के भी नहीं रह जाते हैं। लोग न्याय के लिए संघर्ष करते रहे जाते हैं पर समय पर उन्हें न्याय नहीं मिलता है। और जब न्याय मिलता है तो उस न्याय के कोई मायने नहीं रह जाते हैं। 
       दफ्तर में किसी की प्रोन्नति किसी कारण बस रुकती है और वो न्याय के लिये न्यायालय जाता है। उसे न्याय तब मिलता है जब वो सेवा निवृत्त हो जाता है। इस तरह के न्याय से क्या फायदा।
          कोई अधिकारी या कर्मचारी, साधारण या पुलिस का जब बर्खास्त होता है तो वह न्याय के लिए गुहार लगता है फिर जब वह वापस ड्यूटी पर आता है तो उसे पूरा पैसा मिलता है। बिना काम किये ही। इस तरह तो जनता के पैसे का दुरूपयोग ही हुआ न। यदि न्याय का रास्ता संघर्ष पूर्ण न हो तो समय और पैसे की बचत होगी और याचक को जल्द न्याय भी मिलेगा। और भी बहुत सी परेशानियों से बचा जा सकता है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
यह तो इस कहावत से ही विदित है कि “भगवान न करे किसी को अस्पताल औेर कचहरी जाने की नौबत पड़े।”जिस किसी को भी इन दोनों जगहों से पाला पड़ जाता है समझिए वह आर्थिक और मानसिक दोनों तरह की पीड़ा से ग्रसित हो जाता है।
न्यायालय की प्रक्रिया से जो गुज़रता है वही जानता है कि न्याय पाने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है।जमा पूँजी,दाँव पर लग जाते हैं।कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते लगाते चप्पल घिस जाते हैं वकीलों के फ़ीस,दलील,गवाह,गवाही ,दाँव- पेंच के बीच व्यक्ति ज़िन्दगी भर जुझता रहता है,तब जाकर क़िस्मत वालों को न्याय मिलता है।वरना कई तो न्याय के इंतज़ार में स्वर्ग सिधार जाते हैं।
- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड
न्याय देना और न्याय मिलने की उम्मीद करना दोनों में ही भ्रष्टाचार की दीवार के आड़े आने से रास्ता संघर्षमय हो जाता है। भ्रष्टाचार न हो तो न्यायिक प्रक्रिया भी बिना संघर्ष के न्यायपूर्ण होगी तथा न्याय की प्रतीक्षा करने वाले को भी संघर्ष नहीं करना पड़ेगा।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली
वास्तव में न्याय पाना सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता है। संघर्ष करने के बावजूद न्याय नहीं मिल पाता। सामर्थ्यवान पूंजीपतियों के लिए सब कुछ संभव है परन्तु गरीब असहाय,आर्थिक रूप से कमजोर, पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए न्याय आज भी सपना बना हुआ है। वकील से लेकर जज तक बिक जाते हैं। सालों- साल न्यायिक प्रक्रिया के चक्कर में पीसते हुए वे दम तोड़ देते हैं पर उन्हें न्याय नहीं मिल पाता।
    आज भी पिछड़े व दलित वर्ग के लोग विशेषकर गांव में सामंतवादी व्यवस्था में दबे हुए दिखाई देते हैं। उन्हें शिक्षित कर उनकी जीवनदशा को सुधारने का प्रयास सरकार कर रही है हर तरह का नियम बना कर उन्हें सहयोग प्रदान करना चाहती है पर उच्च पदासिन अधिकारी अधिकांशतः उच्च वर्ग के होने के कारण उन्हेें न्यायिक प्रक्रिया में जल्द  मामला नहीं सुलझने देते।
   महिलाओं पर बलात्कार या तेजाब फेंकने की जितने भी मामले हुए उनमें से कुछ दुराचारियों को ही सजा मिल पाई है यही कारण है कि ऐसी जघन्य  घटनाएं हमारे समाज में आम होती चली जा रही है क्योंकि लड़कियों को न्याय नहीं मिल पाता। संघर्ष करते-करते वे आत्महत्या तक कर लेती हैं पर सरकार के कान में जूं नहीं रेंगती कि न्यायिक प्रक्रिया को दुरुस्त किया जाये।
                     - सुनीता रानी राठौर
                    ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
इस सच्चाई से न इंकार किया जा सकता है और न ही मुँह मोड़ा जा सकता है कि न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता है। सच में यदि पीड़ित के दिल से पूछा जाये तो उसे भी न्याय मिलने और वह भी जल्दी मिलने की उम्मीद बहुत ही कम होती है। मगर, न्याय की अभिलाषा और आरोपी को सजा दिलाने के लिए रास्ता भी तो यही एक है। जो उचित भी है। भले ही यह सर्वविदित है कि इस न्याय के रास्ते में कितनी मुश्किलें होती हैं। गवाहों को कैसे तोड़ा या रोका जाता है। झूठ के लबादे से सच को किस तरह ढका जाता है।  वकीलों की दलीलें , पेशियों के लिए तारीखों पर तारीखों का खेल पीड़ित के न्याय के संघर्ष को बढ़ाता भी है, कंपाता भी है,चौकाता भी है और रुलाता भी है।  इस सबके लिए सबसे बड़ी कमी और कारण है तो वह है नैतिक जिम्मेदारी निष्ठा से निभाने की कमी। जब तक सभी इसे इंसानियत का हिस्सा मानकर नहीं निभायेंगे तब तक न्याय का यह संघर्ष ऐसे ही अनवरत चलता रहेगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
किसी को भी याद दिलाना आसान नहीं होता है। इसके लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। जब कोई व्यक्ति किसी मामले में फसता है और उसे जेल जाना पड़ता है तो वह यही कहता है कि हमे न्यायालय के न्याय पर भरोसा है। आज की संगठित व्यवस्था का आधार कानून है और कानून का उद्देश्य न्याय की स्थापना करना है। न्याय के बिना कानून की कल्पना नहीं की जा सकती। लॉर्ड राइस के अनुसार यदि राज्य में न्याय का दीपक बुझ जाए तो अंधेरा कितना गाना होगा इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। न्याय शब्द का अंग्रेजी अनुवाद है जस्टिस शब्द लैटिन भाषा से जेयु एस से बना है। जिसका अर्थ है बांधना या जोड़ना है। इस प्रकार न्याय का व्यवस्था से स्वभाविक संबंध है।अतः हम कह सकते हैं कि ना उस व्यवस्था का नाम है जो व्यक्तियों समुदायों तथा समूह को एक सूत्र में बांधती है कि किसी  व्यवस्था को बनाए रखना ही न्याय है, क्योंकि कोई भी व्यवस्था की इन्हीं तत्वों को एक दूसरे के साथ जोड़ने के बाद ही बनती अथवा पनपती है। न्याय का अर्थ है हर व्यक्ति को समान अधिकार देना। न्याय की अवधारणा मुख्य रूप से नैतिक स्वरूप की है उचित न्याय की अवधारणा का सार है व्यक्ति के किसी भी कार्य उचित के आधार पर मूल्यांकन करके समय नैतिक मूल्यों का प्रयोग किया जाना है। जो कुछ प्रनीति नैतिक मूल्य के अनुकूल होता है उसको न्याय पूर्ण माना जाता है।इसके विपरीत जो मानवीय मूल्यों के अनुकूल नहीं है उसे अन्याय कहा जाता है
 उचित व्यवस्था की पूर्ति न्याय का महत्वपूर्ण आधार है तर्क क्षमता के आधार पर विरोधी विचारों का या सिद्धांतों में संतुलन स्थापित किया जाना भी न्याय का प्रतीक है। एक विचार के रूप में सामाजिक न्याय की बुनियाद सभी मनुष्य को समान मानने के आग्रह पर आधारित है इसके मुताबिक किसी के साथ सामाजिक धार्मिक और सांस्कृतिक पूर्वग्रहों के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। हर किसी के पास कितने न्यूनतम संसाधन होने चाहिए कि वे उत्तम जीवन की अपनी संकल्पना को धरती पर आसानी से उतार सकें।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता नहीं है बल्कि संघर्ष को समाप्त करने का रास्ता है व्यक्ति को न्याय की आवश्यकता तब होती है जब अन्याय हो रहा हो और संघर्ष के कारण जीना मुश्किल हो रहा हो तब ही व्यक्ति न्याय की शरण में जाता है संभव हो न्याय करने वाला व्यक्ति न्याय करने में देरी कर रहा हो जिससे न्याय चाहने वाले को संघर्ष का सामना कर पड़ रहा हो इससे न्याय प्रक्रिया को संघर्ष का रास्ता नही बताया जा सकता है बल्कि व्यक्ति विशेष को ज़रूर कह सकते हैं कि अमुक व्यक्ति ने न्याय की सहज सरल प्रक्रिया को कठोर बनाने का काम किया है जिससे न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता लगने लगा है । परिणामस्वरूप हम कह सकते हैं कि न्याय का रास्ता सहज है न कि संघर्ष का ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
सर्वप्रथम न्याय  का अर्थ एवं परिभाषा से अवगत होना बहुत जरूरी है । अंग्रेजी अनुवाद में न्याय का अर्थ justic है जो लैटिन भाषा के jus से बना है जिसका अर्थ है बांधना या जोड़ना। किसी व्यवस्था  को बनाए रखना ही न्याय है । अतः न्याय उस व्यवस्था का नाम है जो व्यक्तियों, समुदायों ,समूहों को एक सूत्र में बांधती है । न्याय उन मान्यताओं तथा प्रक्रियाओं का योग है जिनके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को वह सभी अधिकार व सुविधाएं प्राप्त होती हैं जिन्हें समाज उचित मानता है। न्याय व्यवस्था के द्वारा लोगों के व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा होती है और समाज की भी मर्यादा काइम रहती है । समाज में किसी प्रकार के भेदभाव के बिना सभी व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाना चाहिए। कोई भी न्याय व्यवस्था कानून के दायरे में रहती है। कानून उसकी रक्षा करता है । न्याय किसी भी क्षेत्र में हो ,हर प्रकार का न्याय संघर्ष का रास्ता झेलता है । उदाहरण के लिए जैसे राजनीतिक न्याय है ,जिसके अनुसार राज व्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से पड़ता ही है। इसलिए सभी व्यक्तियों को ऐसे अवसर प्राप्त होने चाहिए कि वे लगभग समान रूप से राज व्यवस्था को प्रभावित कर सके और राजनीतिक शक्तियों का प्रयोग इस ढंग से किया जाना चाहिए कि सभी व्यक्तियों को लाभ प्राप्त हो। राजनीतिक न्याय की प्राप्ति के कुछ साधन जैसे -वयस्क मताधिकार ,सभी व्यक्तियों के लिए विचार, भाषण ,सम्मेलन और संगठन आदि की नागरिक स्वतंत्रता ,प्रेस की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता ,बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्तियों को सार्वजनिक पद प्राप्त होना इत्यादि। 
न्याय पाने के लिए अथवा अन्याय से लड़ने के लिए संघर्ष का रास्ता अपनाना पड़ता है ,चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ,तब कहीं जाकर न्याय मिलता है। भारतीय अदालतों में सामाजिक न्याय से संबंधित या अन्य क्षेत्र से संबंधित अनेकों मुकदमे बरसों बरसोंसे लंबित पड़े हैं । धन पद और प्रयास समय अनुकूल न्याय की लड़ाई लड़ते हुए कुछ लोग सफल हो जाते हैं कुछ असफल । कई बार तो धन लगाकर भी न्याय नहीं मिलता संघर्ष बेकार जाता है। न्याय व्यवस्था लचीली होने के कारण भी  न्याय के क्षेत्र में कई लोगों को मायूसी ही मिलती है। अतः न्याय पाना- चाहे घर के भीतर हो, समाज में, समुदाय में, संगठन में,देश में ,उसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है और संघर्ष का रास्ता बहुत कठिन होता है। जिसे उच्च मनोबल और हिम्मत से सरल बनाने का गुण होना आवश्यक है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
     राजा-महाराजाओं के दरबार न्याय के लिए चर्चित हुआ करते थे, हर कोई चाहता था, न्याय मिले। समय बदला  व्यवस्थाएं बदली, न्याय पाने वर्षों से अधिक समय लगने लगा, जिसने वाद प्रस्तुत किया, उसका हौसला नष्ट होते-होते स्वर्गीय हो गया, धीरे-धीरे उसके परिवार न्याय पाने चक्कर लगा रहे हैं। धन-बल-संघर्ष-ध्येय समाप्त होते जा रहा हैं। न्यायता का सामना करना गरीबियों के लिए लक्ष्य की ओर अग्रसर होना अत्यंत कठिन रास्ता हैं। कोर्ट-कचहरी, रुपयों का मूल्यांकन समझ के परे नजर आ रहा हैं। न्याय वह होना चाहिए, जो सत्यता के आधार पर तत्काल प्रभाव से समयसीमा में फैसला मिले और जीवन यापन करने में सुविधाऐं मिलें।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
इस बात से तो सभी सहमत होंगे!  इसमें दो राय नहीं है.. यह कटु सत्य है! आज समय का बहुत महत्व है छोटी मोटी बात और नुकसान को लेकर न्याय के लिए कोई कोर्ट कचहरी जाना नहीं चाहेगा चूंकि न्याय मिलते मिलते चप्पल तो घिसेगी बहुमूल्य समय भी खो देगा! हां न्याय की आशा तो रखता है! हमारी न्याय प्रणाली  संविधान के नियमों से बंधी है! संविधान के नियमों का पालन करती है! सौ अपराधी छूट जाये पर एक निरपराध दंडित नहीं होना चाहिए  ! इसमें न्याय प्रणाली क्या कर सकती है उसके अपने हाथ बंधे हुए हैं! 
शुरु में न्याय मिलने का जोश होता है किंतु जैसे जैसे समय बढता है पैसे और समय की बर्बादी से न्याय की आस ठण्ड पड़ जाती है! हां यह कहना चाहूंगी अपराधी को कोई सुविधा नहीं मिलनी चाहिये! 
अपराध के अनुसार सजा मिले इसके लिए संविधान को अपने नियममें फेरफार करना चाहिए! यदि जधन्य अपराध है तो सजा इतनी कड़ी हो कि दूसरी बार फिर करने से डरे! न्याय निश्छल और जल्दी हो! 
          - चंद्रिका व्यास 
         मुंबई - महाराष्ट्र
हर व्यक्ति न्याय के लिए संघर्ष का रास्ता ही अपनाता है। अपने सपनों को प्राप्त करने के लिए परिस्थितियों से होता है संघर्ष ।मानव संबंधों में रहने वाली एक प्रक्रिया है। जो व्यक्ति व्यक्ति के बीच सहयोग नहीं होता अथवा जब वे एक दूसरे के प्रति तटस्थ नहीं होते तो संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। संघर्ष प्रत्येक काल समाज में कम या अधिक पाया गया है। अतः न्याय पाने के लिए जीवन में संघर्ष का रास्ता ही  अपनाना चाहिए। संघर्ष से ही आप ऊंचे से ऊंचे स्थान पर जा सकते हैं।
लेखक का विचार:-- धरा पर आने के बाद बचपन से लेकर जीवन के अंतिम समय तक संघर्ष करना पड़ता है। हर क्षेत्र में सफल होने का प्रत्येक मनुष्य प्रयास करते हैं।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता तब तक लगता है जब तक न्याय की समझ नहीं हो पाती वर्तमान में न्याय क्या है पता ही नहीं है निश्चित आचरण में जीना ही न्याय है अर्थात मूल्यों को पहचान कर जीना और उसका दायित्व और कर्तव्य के रूप में निर्वहन करना ही न्याय है। परस्पर ता में अभय तृप्ति के साथ जीना ही न्याय है न्याय की पहचान ना होने तक न्याय में जीना कठिन लगता है जब न्याय की पहचान हो जाती है और परस्परता मैं उन्हें तृप्ति मिलती है। तो यही न्याय है अतः यही कहा जा सकता है कि न्याय का पहचान ना होने तक न्याय में जीना संघर्ष लगता है अर्थात मूल्य का पहचान होने से ही मूल्य का निर्वहन करने में   तृप्ति और न्याय मिलता है। इसी इसी को वर्तमान में संघर्ष कहा जा रहा है।
 जबकि न्याय में जीना संघर्ष नहीं तृप्ति मिलती है इसी के लिए पूरा मानव समाज प्रयासरत है।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
संघर्ष समाधान का रास्ता तो है ही साथ ही न्याय दिलाने का मार्ग भी है ।
संघर्ष रहेगा तो मानव समाज की समस्याएं एक दिन न्याय अवश्य सफलता  प्राप्त करेंगीं ।
 एक विचार के रूप में सामाजिक न्याय की बुनियाद सभी मनुष्यों को समान रूप से मानने के आग्रह पर आधारित होती है। संघर्ष रहेगा तो मानव समाज की समस्या 1 दिन न्याय अवश्य हल हो पाएगी ।
न्याय पाने के लिए महाबली श्री राम ने रावण से पहले संधि प्रस्ताव भेजा फिर युद्ध का रास्ता अपनाया ।
इसी प्रकार महाभारत में पांडवों  और द्रौपदी को न्याय दिलाने के लिए महायोगी श्री कृष्ण ने युद्ध रूपी संघर्ष का रास्ता दिखाया। वहीं महात्मा गांधी ने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर भारतीयों को न्याय दिलाने के लिए सत्य ,अहिंसा को सत्याग्रह का आधार बनाकर संघर्ष किया।
 तब जाकर भारतीयों को आजादी के रूप में न्याय  मिल सका  ।
न्याय के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है बिना संघर्ष न्याय नही मिलता ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
       हमारे यहाँ न्याय का मूल सिद्धांत है कि किसी भी निरपराध को सजा नहीं मिलनी चाहिए भले ही सौ अपराधी छुट जायें । कहने का तात्पर्य यह है कि  गहन अन्वेषण एवं तथ्यों की विवेचना किये बिना जल्दबाजी में निर्णय न लिये जायें ।प्राकृतिक न्याय को दृष्टिगत रखते हुए आरोपी को पर्याप्त अवसर अपना पक्ष रखने को दिये जायें । साथ ही विभिन्न न्यायालयों के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट तक जाने का विकल्प सभी को उपलब्ध है ।
   यही कारण है कि सामान्य स्तर का व्यक्ति वकीलों के कानूनी दाँव पेंचों एवं गवाहों की कार्यशैली  से टूट  जाता है और उसे यह रास्ता सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता प्रतीत होता है ।
           -  निहाल चन्द्र शिवहरे
              झांसी - उत्तर प्रदेश
       न्याय का रास्ता वह संघर्षमय मार्ग है जिस पर चलते-चलते न्याय अभिलाषी बूढ़ा हो जाता है या इस दुनियां से ही चला जाता है। परंतु न्याय की लक्ष्यपूर्ति नहीं होती। हालांकि न्यायालयों को न्याय का मंदिर और न्यायमूर्तियों को ईश्वर का रूप माना गया है।
       जबकि कहने को यह भी कहा गया है कि न्याय सबके लिए समान है। परंतु सच्चाई यह है कि उपरोक्त कथन कोरा झूठ और भद्दा उपहास है। जिसका मैं स्वयं भी भुक्तभोगी हूं और न्याय पाने की लालसा में अपने साथ-साथ अपनी धर्मपत्नी और बच्चों का भी अनमोल जीवन नारकीय बना चुका हूं। जबकि मुझे पीड़ित-प्रताड़ित करने वाले भ्रष्ट एवं क्रूरतम से क्रूरतम विभागीय उच्च अधिकारियों से लेकर न्यायालय द्वारा दिए न्यायमित्र व फीस देकर किए अधिवक्ता सुखपूर्वक जीवनयापन कर रहे हैं। 
       चूंकि उन्हें माननीय न्यायालय के भ्रष्ट तथाकथित माननीय न्यायाधीशों ने प्राकृतिक न्याय से लेकर सामाजिक न्याय का एवं मेंटल हेल्थ एक्ट 1987 से लेकर डिसेबिलिटी एक्ट 1995 (वर्तमान 2016) व संविधान की धारा 21, 39ए और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 का सम्पूर्ण उल्लंघन करते हुए लाभ प्रदान किया गया था।
       परंतु सत्य यह भी है कि मैं देश के सर्वोच्च कलंकित आरोप "देशद्रोह" के कारण सामाजिक घृणा को सहन करते हुए एवं तपेदिक रोग से मृत्यु के घने काले साए को चीरकर पार करते हुए सूर्य के प्रकाश की भांति सत्य के 181 से अधिक साक्ष्य लेकर अपनी याचिका एलपीए अंक 139/2020 के रूप में माननीय जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्तियों के समक्ष स्वयं निडर व अटल खड़ा हूं। 
       ताकि कठिन से कठिन अर्थात अत्यंत संघर्षमय न्यायिक रास्ता होने के बावजूद माननीय न्यायपालिका की न्यायालयों के न्यायमूर्तियों पर विश्वास बना रहे और "न्याय" जिन्दा रहे।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हाँ, यह बिल्कुल सच है कि न्याय सबसे कठिन और संघर्ष का रास्ता होता  है। हमारी न्यायालय में अनगिनत  केस पेंडिंग पड़े रहते हैं। जिसकी सुनवाई और उचित कार्रवाई हेतु व्यक्ति न्यायालय के चक्कर काटता रहता है और तारीख पाने के लिए प्रयासरत रहता है। इसके लिए व्यक्ति की चप्पल तक घिस जाती है। निर्भया कांड में सब कुछ लगभग पता था लेकिन निर्भया की मां को  फिर भी लगभग बारह वर्षों तक लम्बा संघर्ष करना पड़ा , तब जा के न्यायिक प्रकिया पूर्ण हुई। हमारी न्यायिक व्यवस्था की प्रवृति काफी लचर और पुरानी  है। आजकल  सब हाई टेक्निक कांड हो रहे हैं तो यह भी एक कारण है अधिक समय का लगना। यह  बिल्कुल सही है कहा गया है कि कोर्ट- कचहरी से किसी का पाला ना पड़े वर्ना सेहत, रूपया सब बर्बाद हो जाता है।
इसलिए भगवान रक्षा करें कि व्यक्ति को इससे जिन्दगी में कभी जरूरत ना पड़े।  वर्ना अथक संघर्ष करना निश्चित है व्यक्ति को न्याय पाने के लिए। 
- डाॅ पूनम देवा
पटना - बिहार
इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले न्याय को परिभाषित करना आवश्यक है । न्याय दो प्रकार का होता है-एक मनुष्य द्वारा किया न्याय 
दुसरे भगवान द्वारा किया न्याय  ।दोनों प्रकारों के न्यायों में देरी हो जाना स्वाभविक है क्यूंकि न्यायाधीश को गवाह,अपील वा दलील चाहिये ।भगवान को भी और मनुष्य को भी ।
जहां तक गवाहों की बात है जहां न्यायाधीश,गवाह वा बकील सब मनुष्य होंगे वहां उन्हें मुकरा भी सकते हैं किन्तू जहां न्यायाधीश भगवान हैं वहां न्याय भी शीघ्र मिलता है और आगे अपील दलील भी नहीँ होती तथा न्याय भी बिल्कुल सही मिलता है ।
किन्तु जहां सबकुछ मनुष्य करेगा वहां देरी भी होगी और न्याय का रास्ता भी संघर्ष पूर्ण और लम्बा होगा ही ।।
  - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
न्याय दो प्रकार के होते हैं  ।1...सामाजिक न्याय 
2...कानूनी न्याय 
 समाजिक न्याय है कि एक ही बिमारी से ग्रसित दो लोग होते हैं ।एक अमीर  दूसरा गरीब ।
अमीर तो किसी अच्छे हस्पताल में इलाज करा ठीक हो जाता है लेकिन गरीब एेसी बिमारी से दम तोड़ देता है ।इस अवस्था में कई समाज सेवी संस्थायें आगे आती हैं ।सबको बराबरी का दर्जा है ऐसी आवज उठा कर कई व्यक्तियों को सामाजिक न्याय दिलाती हैं  कई गुमनामी के अंधेरे में खोजाती हैं । 
अब सरकारी न्यायलय की बारी आती है ।बहुत ही लचर व्यवस्था है  । किसी निर्दोष को सजा हो जाती है ।कोई छोटा सा जुर्म कर आधी जिन्दगी जेल में बिता द्ता है ।कोई रसूकदार अपराध करके भी निर्दोष साबित हो छूट जाता है । ऐसे में कुछ मजबूत न्याय प्रणाली की आवश्यकता है ।निर्दोष व्यक्ति की जेल में रखने की समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए ।
केसों का निपटारा समय पर हो तारीख पर तरीख न डाली जाय ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
"मिलती नहीं रोटी उसे, 
जिसका लिखा है नाम, 
न्याय की  तलाश में भटकते रहे श्री राम"। 
न्याय की बात करें  तो हर कोई न्याय चाहता है लेकिन बहुत से लोग आज भी न्याय सो वंचित हैं यानि आज भी आम आदमी को  न्याय नहीं मिल रहा है, जबकि न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी कोर्ट अथार्त अदालत पर है क्यो्की यह ही न्याय  का एक मात्र  एंव सर्वोपरि स्रोत है
लेकिन फिर भी बहुत से लोग  न्ययालय के मंदिर से असंतुष्ट हैं, 
तो आईये बात करते हैं कि क्या न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता है? 
मेरा मानना है कि यह अटूट सत्य है कि न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता है
क्यो्की इसकी जानकारी लम्बित मामलों की संख्या को देखते ही मिल जाती है, 
सुनने के मिलता है कि इंसाफ चाहने वाले पीड़ित  लोगों की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है जिसका मु़ख्य कारण न्याय में देरी, 
न्यायालय में कई वर्षों से जमा विचारदीन मामले इस बात का प्रमाण है़, 
वजह यह है कि आम आदमी न्यायालय में जा जा कर चकनाचूर हो जाता है लेकिन उसकी   सुनबाई   उसके मरने के बाद भी नहीं हो पाती लेकिन उसकी जीवन लीला ही कोर्ट कचैरियों के चक्कर में समाप्त हो जाती है, 
यही नहीं उसकी जवानी  से लेकर बुढापे तक का संघर्ष उसे न्याय नहीं दे पाता जबकि वे  अपना सारा घन धौलत भी कोर्ट कचैरियों के चक्कर में नष्ट कर देता है उसके पास रह जाता है सिर्फ पछतावा, इससे अधिक संघर्ष क्या हो सकता है, 
एक अनुमान के मुताबिक भारत के  उच्चन्ययालय मैं एक मुकदमे का निर्णय सुनाने मे दस बर्ष से उपर तक समय लगता है, 
इतनी देर में लोग न्याय की उम्मीद तक ही नहीं खो देते किन्तु कंगाल हो जाते हैं ब निक्कमे होकर घर बैठ जाते हैं
कहने का मतलब इतना लम्वा संघर्ष लडंने के वाद भी उनके हाथ निराशा ही लौटती है
यही वजह है कि लोगों  में न्याय के प्रति गहरे असंतोष के भाव हैं और वे कोर्ट जाने से कतराते हैं, 
उनको भरोसा नहीं रहा कि न्याय उनके प्रति मददगार होगा
उनके  मन में यही रहता है कि न्याय सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता है क्यो्की न्याय  के लिए एड़ियां रगड़ते रगड़ते कई बर्ष बीत जाने के बाद भी कुछ हासिल नहीं होता, 
अन्त में यही कहुंगा की न्याय की प्रक्रिया बडी जटिल है जिसकी वजह से गरीबों को  अक्सर न्याय नहीं मिलता अगर मिलता भी है तो बहुत देर के बाद जिससे लोगों का कोर्ट के प्रति काफी रोष है, 
इसलिए वे अदालत में जाने के रास्ते को सबसे अधिक संघर्ष का रास्ता कहकर अन्याय ही सहन कर रहे हैं, 
इसलिए सभी जजों, वकीलों  तथा हमारी सरकारों का दायित्व है कि वो न्याय व्यवस्था को दुरूस्त करें
अन्यथा लोगों के मन में न्याय सबसे अधिक      संघर्ष  का रास्ता बनकर रह गया है, 
सच है, 
"न्याय के लिए उफ्फ कितनी मारामारी है, 
खामौश वैठी जनता, 
अदालत जारी हैै"। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर



" मेरी दृष्टि में "  न्याय अपने आप में सम्पूर्ण व्यवस्था है । जो समाज से लेकर देश के लिए आवश्यक है । न्याय से ही भाईचारा से लेकर परिवार चलता है । वरन् व्यवस्था के सभी पहलु को जोड़ पाना संभव नहीं है।
- बीजेन्द्र जैमिनी

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )