मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी


मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश 1 नवंबर, 2000 तक क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य था।  मध्यप्रदेश राज्य से 16 जिले अलग कर छत्तीसगढ़ राज्य  की स्थापना हुई है। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पाँच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। यह तो मध्यप्रदेश की स्थिति है । लघुकथा के क्षेत्र में भी सबसे अधिक लघुकथाकार मेरे सम्पर्क में मध्यप्रदेश से हैं । यह बात 1990 से अनुभव करता आ रहा हूँ । उस समय " चांद की चांदनी " लघुकथा संकलन का सम्पादन किया गया था । मध्यप्रदेश में बड़ें - बड़ें लघुकथाकार हुये हैं । उन सब का नाम लेना , यहां पर सम्भव नहीं है ।अभी हाल में जनवरी - 2021 में आनन्द बिल्थरे की मृत्यु हुईं है । जिस की सूचना आचार्य  डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' ( बालाघाट - मध्यप्रदेश) के एक WhatsApp से , मुझे.प्राप्त हुई है । बिल्थरे जी किसी समय में लघुकथा के साथ - साथ छोटी - छोटी कविताएं , हर पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशित होतीं रही हैं । परन्तु किसी लघुकथा कोश में उन का परिचय प्रकाशित नहीं हुआ है । उस का मुख्य कारण , उन का कोई संग्रह या संकलन प्रकाशित नहीं हुआ है । उन के लड़के से भी सम्पर्क किया । परन्तु कोई सफलता नहीं मिली है । मैने अपने व्यक्तिगत फेसबुक पर सूचना देकर अवगत करवाने का प्रयास अवश्य किया है । इन की स्मृति में जैमिनी अकादमी द्वारा ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन भी किया है । बहुत से कवियों को इन के सम्मान में डिजिटल सम्मान प्रदान किये गये हैं । ऐसे बहुत से लघुकथाकार की मृत्यु हो चुकी है । जो गुमनाम हो गये हैं । ऐसे बहुत से लघुकथाकार की स्मृति में भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा लघुकथा उत्सव मनाया जा चुका है । वर्तमान में मध्यप्रदेश का लघुकथा साहित्य बहुत विशाल है । देखकर - सुनकर बहुत अच्छा लगता है । ऐसे में सिर्फ ग्यारह लघुकथाकारों की ग्यारह - ग्यारह लघुकथाओं को शामिल किया गया है । यहां पर सभी तरह की लघुकथाओं को पेश करना का प्रयास किया है । बाकी तो आप सब पढ कर अपनी राय दे सकते हैं ।
 जय हिन्दी ! जय भारत !
                                      - बीजेन्द्र जैमिनी
                                           सम्पादक

1. सतीश राठी    

2. ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"       
                          
3.   डॉ. क्षमा सिसोदिया 

4.   डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'      

5.   डॉ विनीता राहुरीकर                                                          
6.वंदना पुणतांबेकर                                             

7. मीरा जैन                                                       

8. अविनाश अग्निहोत्री                                        

9. दर्शना जैन                                                     

10. मनोज रत्नाकर सेवलकर       

11. गोकुल सोनी                                                                                    
क्रमांक - 01
                         
नाम : सतीश राठी                   
जन्म :23 फरवरी 1956 को इंदौर में जन्म।                

शिक्षा: एम काम, एल.एल.बी ।

लेखन: लघुकथा ,कविता ,हाइकु ,तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन । देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन।

सम्पादन:क्षितिज संस्था इंदौर के लिए लघुकथा वार्षिकी 'क्षितिज' का वर्ष 1983 से निरंतर संपादन । इसके अतिरिक्त बैंक कर्मियों के साहित्यिक संगठन प्राची के लिए 'सरोकार' एवं 'लकीर' पत्रिका का संपादन।

प्रकाशन:
पुस्तकें  शब्द साक्षी हैं (निजी लघुकथा संग्रह),
पिघलती आंखों का सच (निजी कविता संग्रह )
कोहरे में गांव (गजल संग्रह) शीघ्र प्रकाश्य।

संपादितपुस्तकें -
तीसरा क्षितिज(लघुकथा संकलन),
मनोबल(लघुकथा संकलन),
जरिए नजरिए (मध्य प्रदेश के व्यंग्य लेखन का प्रतिनिधि संकलन),
साथ चलते हुए(लघुकथा संकलन उज्जैन से प्रकाशित),
सार्थक लघुकथाएँ( लघुकथा की सार्थकता का समालोचनात्मक विवेचन),
शिखर पर बैठकर  (इंदौर के 10 लघुकथाकारों की 110 लघुकथाएं संकलित)
कोरोना काल की लघुकथाओं पर एक संपादित पुस्तक का प्रकाशन।

साझा संकलन-
समक्ष (मध्य प्रदेश के पांच लघुकथाकारों की 100 लघुकथाओं का साझा संकलन)
कृति आकृति(लघुकथाओं का साझा संकलन, रेखांकनों सहित),
क्षिप्रा से गंगा तक(बांग्ला भाषा में अनुदित साझा संकलन),
शिखर पर बैठ कर (दस लघुकथाकारों का साझा संकलन)

अनुवाद:
निबंधों का अंग्रेजी, मराठी एवं बंगला भाषा में अनुवाद ।
लघुकथाएं मराठी, कन्नड़ ,पंजाबी,नेपाली, गुजराती,बांग्ला भाषा में अनुवादित । बांग्ला भाषा का साझा लघुकथा संकलन 'शिप्रा से गंगा तक वर्ष 2018 में प्रकाशित।

विशेष:
लघुकथाएं दो पुस्तकों में,( छोटी बड़ी कथाएं एवं लघुकथा लहरी ) मेंगलुर विश्वविद्यालय  कर्नाटक के  बी ए प्रथम वर्ष और बी बी ए के पाठ्यक्रम में शामिल।

लघुकथाएं विश्व लघुकथा कोश, हिंदी लघुकथा कोश, मानक लघुकथा कोश, एवं पड़ाव और पड़ताल के विशिष्ट खंड(11) में शामिल।

शोध:
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में एम फिल में मेरे लघुकथा लेखन पर शोध प्रबंध प्रस्तुत । कुछ पी एच डी के शोध प्रबंध  में  विशेष रूप  से शामिल ।

पुरस्कार सम्मान:
साहित्य कलश, इंदौर के द्वारा लघुकथा संग्रह' शब्द साक्षी हैं' पर राज्यस्तरीय ईश्वर पार्वती स्मृति सम्मान वर्ष 2006 में प्राप्त।
लघुकथा साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए मां शरबती देवी स्मृति सम्मान 2012 मिन्नी पत्रिका एवं पंजाबी साहित्य अकादमी से बनीखेत में वर्ष 2012 में प्राप्त ।

सरल काव्यांजलि साहित्य संस्था,उज्जैन से वर्ष 2020 में सारस्वत सम्मान से सम्मानित।

सम्प्रति : भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इंदौर शहर में निवास, और लघुकथा विधा के लिए सतत कार्यरत।

 पता : -
 सतीश राठी
 त्रिपुर ,आर- 451, महालक्ष्मी नगर,
 इंदौर 452010 मध्यप्रदेश

                  1.रैली

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 'सरकार कितना ही प्रयास कर ले हमारा एजेंडा तो पूर्व निर्धारित है। हमें इस आंदोलन को लंबा और लंबा खींचना है।" आंदोलन के नेताजी बोले।

"पर ऐसा क्यों कर रहे हो  आप ?सरकार ने आपकी अधिकतर मांगें मान ली हैं । सरकार अब तो कुछ अवधि के लिए कानून स्थगित भी करने को तैयार  है । "-पत्रकार ने नेता जी से पूछा।

नेता जी पत्रकार को हाथ पकड़ कर एक किनारे पर ले गए और बोले ,"हम समझौते के लिए आए ही कब थे। हमें तो आगे बढ़ाना है इसे।  अब टैक्टर की रैली भी निकालना है।"

 "पर आपको सरकार ने रैली निकालने की अनुमति कहां दी? अभी तो पुलिस ने ही मना कर दिया है ।"

"अब किसी के बाप में हाथ लगाने की हिम्मत है क्या? ट्रैक्टर की रैली तो निकलेगी। सारा फंड ही उसके लिए आया हुआ है।"- नेताजी कड़क कर बोले ।

फिर पत्रकार का हाथ दबा कर बोले," इसके  आगे पीछे का मत सोच। हम हमारा काम कर रहे हैं, जिसके लिए हम बैठे हैं। देखते हैं सरकार का संयम और कितना है। हम तो इंतजार कर रहे हैं सरकार का संयम टूटने का। तभी तो इतने भड़काने वाले बयान जारी कर रहे हैं।" ****


                 2.स्यापा

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उनके स्यापा करने के दिन तो नहीं थे लेकिन वे प्रधानमंत्री का नाम ले लेकर स्यापा कर रही थी।

 किसी ने उनसे पूछ ही लिया ,'पैर तो तुम्हारे कब्र में लटके हैं, फिर यह स्यापा क्यों?'

 उन्होंने कहा,' सच बताएं! हमें तो इसके पैसे मिल रहे हैं। और हां! इससे उसकी तो उम्र बढ़ रही है।' ****


              3.काला कानून

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'तुम यह धरना क्यों दे रहे हो ?'

'किसान को उसकी फसल की सही कीमत मिले, यही तो हमारी मांग है ।'

'तो यह बात तो कानून में लिखी है।'

' हां !लिखी होगी ।हमें नहीं पता। हमें तो बस इतना पता है कि यह कानून काले हैं। तो फिर इन्हें बनाने वालों के दिल भी काले होंगे।'

' लेकिन वह तो तुम्हारे हित का ही सोच कर इन कानूनों को बनाए हैं ।तुम एक बार इनके हिसाब से चल कर तो देखो ना भाई ।'

'ना! हमारे नेता जी ने जब बोल दिया कि यह काले कानून हैं, तो है ।और फिर ...सही बात तो यह है कि, जितने दिन यहां हैं पेट भर कर तर माल मिल रहा है ।' 

फिर एक आंख मार कर बोला,' दारू की व्यवस्था भी है ।इतनी सारी बात के लिए तो सारे जमाने को काला कह सकते हैं।' ****


              4.अनाथों का नाथ

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गणेश जी की मूर्ति के सामने उसकी आंखों से धार- धार आंसू बह रहे थे। मंदिर के बाहर उसे किसी ने कह दिया था कि, यह खड़े गणेश का जो मंदिर है, वह बहुत  चमत्कारी है बेटा ! जो मांग लेगा वह मिल जाएगा ।  दुखी मन बेचारा क्या करे । विश्वास कर वह बुद्धि देने वाले गणपति से विद्या की भिक्षा मांग रहा था।

 गांव में मां और बापू के मरने के बाद निहाल को गांव के जमींदार ने बुलाया और कह दिया कि, कल से यहां पर आना । दिन भर यहीं पर झाड़ू बुहारा और दूसरे काम करना। तुझे दोनों टाइम का खाना यहीं मिल जाएगा।

 उसे समझ में आ गया था कि, बापू की तरह उसका भी अब बंधुआ मजदूर बनने का मौका आ गया है । पर अनाथ का कौन? गांव में सबने कह दिया, जमींदार से बैर मत लेना ,चले जाना ।

निहाल के मन में तो पढ़ने की लगन लगी थी, इसीलिए वह गांव छोड़कर शहर में भाग आया था।  मन में विचार आया कि, अनाथों का नाथ कौन ?अनाथों का नाथ तो भगवान ही होता है। और बस मंदिर में चला आया था ।

शायद उसका भाग्य प्रबल था। एक व्यक्ति जो उसे बहुत देर से गणपति के समक्ष रोते,  गिड़गिड़ाते हुए देख रहा था ,उसके पास आकर बोला ,'वह जो हाथी जैसी चाल से आ रहे हैं ना !वह यहां के बड़े रावले के जमीदार हैं । बहुत दयालु आदमी हैं । उनसे हाथ जोड़कर विनती कर लेना ,तो फिर तेरे रहने, खाने, पढ़ने की व्यवस्था हो जाएगी ।'

 निहाल को तो लगा जैसे भगवान ने  ही उसके लिए मददगार भेज दिया है। वह रोता रोता जाकर जमीदार के पैरों में गिर गया। जमीदार साहब एकदम चौक  गए, पर फिर उससे पूछा ,'क्या बात है? रो क्यों रहा है?'

 निहाल ने कहा ,'गांव से भाग कर आया हूं। मां और बापू दोनों नहीं रहे ।अनाथ हूं ।आगे पढ़ना चाहता हूं। बड़ा आदमी बनना चाहता हूं .....आप सबके जैसा । '

कुछ भगवान की प्रेरणा और कुछ जमीदार साहब का दयालु दिल । वे उसे अपने साथ अपने बड़े रावले के महल में ले गए ,जहां नीचे उन्होंने गरीब छात्रों के रहने और खाने की व्यवस्था कर रखी थी । निहाल को भी वहां रहने ,खाने की व्यवस्था हो गई।

 उसे लगा ,वह मंदिर में खड़ा गणपति अनाथों का नाथ है या यह जमीदार साहब । गांव में होता तो उस जमीदार के यहां झाड़ू लगा रहा होता। यहां  के जमीदार के हाथों अब पढ़ने का मौका मिल गया है। अनायास ही उसके दोनों हाथ भगवान को ध्यान कर जमींदार जी के समक्ष कृतज्ञता से जुड़ गए।****


              5.रोटी की कीमत

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आटा चक्की पर भीड़ लगी हुई थी। सभी लोग गेहूं पिसवाने के लिए आए हुए थे  उसी समय एक महंगी कार में से एक सूटेड बूटेड व्यक्ति ने उतर कर आटा चक्की वाले से पूछा ,'भाई! गेहूं  पीस दोगे।

 आटा चक्की वाले ने कहा,' इसीलिए तो बैठे हैं। थोड़ा समय लगेगा। भीड़ काफी है। बैठिये आप।'- इतना कहकर एक कुर्सी उस व्यक्ति की ओर बढ़ा दी।

 कसमसाता  हुआ व्यक्ति उस कुर्सी पर बैठ गया और अपना मोबाइल देखने लगा। उसकी बेचैनी बार-बार उसके चेहरे पर परिलक्षित हो रही थी।  चक्की वाला लगातार लोगों के डिब्बे के गेहूं चक्की में डालकर उन्हें पीसता जा रहा था।  तकरीबन बीस मिनट इंतजार के बाद उसने पूछा,' हो जाएगा ना!'

 चक्की वाले ने कहा,' अब आपका ही नंबर है और उसका गेहूं चक्की में पीसने के लिए डाल दिया। वह व्यक्ति बड़ा असहज महसूस कर रहा था।

 उसने आटा चक्की वाले को लगभग सफाई देने की भाषा में बोलते हुए कहा,'अपने जीवन के इतने बरसों में आज पहली बार गेहूं पिसाने के लिए आया हूं। कभी मुझे तो आने की जरूरत ही नहीं पड़ी।

 आटा चक्की वाले ने उससे कहा,' चलिए अच्छा है भाई साहब !आज आपको रोटी की कीमत तो समझ में आई।'

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             6.जिस्मों का तिलिस्म 

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वे सारे लोग सिर झुकाकर खड़े थे। उनके कांधे इस कदर झुके हुए थे कि, पीठ पर कूबड़-सी निकली लग रही थी। दूर से उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे सिरकटे जिस्म पंक्तिबद्ध खड़े हैं। 

  मैं उनके नजदीक गया। मैं चकित था कि ,ये इतनी लम्बी लाईन लगा कर क्यों खड़े हैं?

"क्या मैं इस लम्बी कतार की वजह जान सकता हूं?" नजदीक खड़े एक जिस्म से मैंने प्रश्न किया।

  उसने अपना सिर उठाने की एक असफल कोशिश की। लेकिन मैं यह देखकर और चौंक गया कि उसकी नाक के नीचे बोलने के लिए कोई स्थान  नहीं है।

तभी उसकी पीठ से तकरीबन चिपके हुए पेट से एक धीमी सी आवाज आई, "हमें पेट भरना है और यह राशन की दुकान है।"

"लेकिन यह दुकान तो बन्द है। कब खुलेगी यह दुकान?" मैंने प्रश्न किया।

"पिछले कई वर्षों से हम ऐसे ही खड़े हैं। इसका मालिक हमें कई बार आश्वासन दे गया कि, दुकान शीघ्र खुलेगी और सबको भरपेट राशन मिलेगा।" आसपास खड़े जिस्मों से खोखली सी आवाजें आईं।

"तो तुम लोग... अपने हाथों से क्यों नहीं खोल लेते हो, यह दुकान?" पूछते हुए मेरा ध्यान उनके हाथों की ओर गया, तो आंखें आश्चर्य से विस्फरित हो गई।

मैंने देखा कि सारे जिस्मों के दोनों हाथ गायब थे। ****


             7.घर में नहीं दाने

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विमला देवी ने सुरेंद्र कुमार से कहा," घर चलाने के लिए पैसे अब  समाप्त हो गए हैं।"

 सुरेंद्र कुमार ने कहा," पिताजी के जमाने के पीतल के घड़े पड़े हैं घर में .....उन्हें बेच दो।"

 विमला ने कहा," वह तो पिछले माह ही बेच दिए थे।"

" अरे!!! तो पुराने समय के जो जेवरात पड़े हैं, उन्हें बेच दो।" सुरेन्द्र बोला।

" वह भी तो  बेच दिए थे बीमारी में ।"  विमला ने दुखी मन से जवाब दिया।

" तो फिर, हमारे इस हवेली जैसे प्राचीन  घर में जितनी भी पुरानी एंटीक चीजें  रखी हैं, अब उन्हें बेचने की बारी आ गई है। ऐसा करो,  अब धीरे धीरे उन्हें बेचने का काम शुरू कर दो। आखिरकार ! किसी तरह घर तो चलाना है ना।" सुरेन्द्र बोला।

 विमला मौन हो गई। उसे तो सुरेंद्र का कहना मानना ही था।

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               8.शिष्टाचार

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-और क्या हाल-चाल है मित्र?

- दुआ है यार।

 -बड़े दिनों बाद मिले हो।

- क्या SS करें यार... समय ही नहीं मिलता ।

-पहले तो घर भी आ जाते थे ।

-व्यस्तता बहुत है यार।

 -अरे कभी दोस्ती भी निभाया करो ।भाभी को लेकर आओ ना।

- देखेंगे यार आऊंगा कभी।

 -इस संडे को आ जाओ।

 -अच्छा समय निकालकर संडे को ही आता हूं।

 चलो फिर! ओके बायSS ...मिलते हैं। 

और वह एकाएक सोचने लगा कि, कहीं यह वाकई रविवार को घर ना आ जाए। मैं तो इसे सिर्फ शिष्टाचार में कह रहा था। ****


           9. आजादी के अंधेरे

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वह बार-बार पलट कर अपने उस घर को देख रहे थे, जिसकी एक एक  ईट में उनकी मेहनत का पैसा लगा हुआ था, उनके परिवार का प्रेम लगा हुआ था। जीवन में कभी नहीं सोचा था इस तरह से अपना घर और अपना देश छोड़कर जाना पड़ेगा। क्या आजादी की कीमत इतनी अधिक होती है? जिन मुस्लिम परिवारों के साथ मिलकर उन्होंने साथ में ईद और दीवाली मनाई थी उन्हीं में से कुछ भले मानस उनके पास आकर कह गए थे,' अब आप हिंदुस्तान चले जाइए ।हम यहां बढ़ते हुए आतंक को नहीं रोक पाएंगे। आपकी रक्षा नहीं कर पाएंगे ।'

उन्होंने भी यह सोचा जब हिंदू होने के नाते अपने देश में ही जाकर रहना हैं तो चल दिया जाए, पर जिसे छोड़ कर जा रहे हैं उसमें तो ह्रदय बसा हुआ है।  साथ में सब कुछ लेकर भी तो नहीं जा सकते ।कुछ जेवरात कुछ नगद और कुछ यादें । यही  सब कुछ ले पाए थे वह अपने हाथ में ।

नम आंखों से घर को छोड़ बिलखते हुए चल दिये।

 एक के बाद एक ट्रेन हिंदुस्तान की ओर जा रही थी। पीठ पर सामान को लादे, हाथ में पत्नी और दोनों बच्चों का हाथ पकड़े, अंततः श्यामलाल जी किसी तरह स्टेशन तो पहुंच ही गए। भगदड़ मची थी। लोग ट्रेनों में भेड़ बकरियों से भी बदतर स्थिति में घुस रहे थे ।उन्हें भी घुसना ही पड़ा । ट्रेन चल तो दी लेकिन  रास्ते में कई जगहों पर ट्रेन को रोककर कट्टर मुस्लिमों के द्वारा मारपीट की गई, हत्याएं की गई, सामान लूटे गए।

 यह उनकी खुशकिस्मती थी कि वह लाशों से लदी हुई उस ट्रेन में जीवित रहकर किसी  तरह हिंदुस्तान पहुंच गए। पर यहां क्या ?, ना घर अपना ना शहर। सब कुछ उजड़ा उजड़ा पराया सा लग रहा था ।कुछ अस्थाई सरकारी व्यवस्था टेंट बांधकर की गई थी। वह भी एक छोटे से टेंट में रुक गए।

 अपने सारे सपनों को खोकर इस तरह चले आना उनके दिल में दर्द पैदा कर रहा था। क्या इसी आजादी के लिए हम लड़े? क्या यही आजादी है जो मनुष्य को मनुष्य से दूर करती है?क्या जहां मानवता की हत्या होती है वह आजादी है?

ढेर सारे प्रश्न उनके दिमाग में मचल रहे थे।  पत्नी और बच्चों के साथ उस छोटे से टेंट में उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली । जीवन जो जी लिया, चलचित्र की तरह आंखों में घूम रहा था । जो आने वाला जीवन था  वह कैसा होगा, इसकी आशंका उनके शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी। आजादी एक अंधेरे की तरह उनके जीवन में प्रवेश कर गई थी। ****


           10.गणित

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दीपावली का समय था । यह तय हुआ कि निहाल को बुलाकर उससे बिजली की सारी बंद लाइट बदलवा दी जाए तथा और भी बिजली के जो छोटे-मोटे काम बचे हैं, वह करवा कर घर के बाहर की झालर लाइट भी लगवा ली जाए।

 वैसे तो बिजली मैकेनिक को बुलाना ही बड़ा टेढ़ी खीर होता है ,लेकिन हमारी धर्मपत्नी की आदत है कि, जब भी कोई कारीगर आता है तो, वह उसकी खातिरदारी अच्छे से कर देती है और वह बड़ा खुश होकर जाता है । इसलिए जब निहाल को फोन लगाया तो निहाल ने तुरंत दोपहर में आने की हामी भर दी।

 निहाल ने सारा काम तकरीबन एक घंटे में पूरा कर दिया । जब मैंने उससे पूछा कि ,भाई कितने हुए तो, निहाल ने तुरंत जोड़कर बताया सर पंद्रह सौ रुपए दे दीजिए ।

तभी धर्मपत्नी चाय और उसके साथ नाश्ते की एक प्लेट निहाल के लिए लेकर आ गई । निहाल ने मना किया ,लेकिन मेरी पत्नी ने बड़े आग्रह के साथ उसे नाश्ता भी करवाया और चाय भी पिलाई । 

निहाल जब जाने के लिए तैयार हो गया तो मैंने उससे पूछा,' हां निहाल भाई ! कितने दे दूं।'

' अब सर, आपका तो घर का मामला है । आप तो सिर्फ बारह सौ रुपए दे दीजिए ।मैंने उसे तुरंत 12 सो रुपए निकाल कर दे दिए।

 उसके जाने के बाद पत्नी ने कहा 'देखा मेरी चाय और नाश्ते की प्लेट का कमाल!  आपके ₹300 बच गए  । मेरी  चाय और नाश्ते की लागत  सिर्फ ₹25  ही थी।'

 मैं मौन रह गया ।पत्नी का गणित मेरी समझ से बाहर का था। ****


            11.पेट का सवाल

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 "क्यों बे! बाप का माल समझ कर मिला रहा है क्या?" गिट्टी में डामर मिलाने वाले लड़के के गाल पर थप्पड़ मारते हुए ठेकेदार चीखा।

" कम डामर से बैठक नहीं बन रही थी ठेकेदार जी। सड़क अच्छी बने यही सोचकर डामर की मात्रा ठीक रखी थी।"  मिमियाते हुए लड़का बोला।

 "मेरे काम में बेटा तू नया आया है। इतना डामर डाल कर तूने तो मेरी ठेकेदारी बंद करवा देनी है।" फिर समझाते हुए बोला," यह जो डामर है इसमें से बाबू ,इंजीनियर, अधिकारी, मंत्री सबके हिस्से निकलते हैं बेटा। खराब सड़क के दचके तो मेरे को भी लगते हैं । चल! इसमें गिट्टी का चूरा और डाल।"  मन ही मन लागत का समीकरण बिठाते हुए ठेकेदार बोला।

लड़का बुझे मन से ठेकेदार का कहा करने लगा। उसका उतरा हुआ चेहरा  देखकर ठेकेदार बोला," बेटा ,सबके पेट लगे हैं। अच्छी सड़क बना दी और छह माह में गड्ढे नहीं हुए तो, इंजीनियर साहब अगला ठेका किसी दूसरे ठेकेदार को दे देंगे ।इन गड्ढों से ही तो सबके पेट भरते हैं बेटा।" ****

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क्रमांक - 02

नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

जन्म दिनांक-  26 जनवरी 1965
शिक्षा-  5 विषय में एम ए, पत्रकारिता, कहानी-कला, लेख-रचना, फ़ीचर एजेंसी का संचालन में पत्रोपाधि
व्यवसाय- सहायक शिक्षक

लेखन- बालकहानी, लघुकथा व कविता

संपादन- लघुकथा मंथन, बालकथा मंथन, चुनिंदा लघुकथाएं, मनोभावों की अभिव्यक्ति, मप्र की बाल कहानियाँ

प्रकाशित पुस्तकें-
1- कुँए को बुखार
2- आसमानी आफत
3- काँव-काँव का भूत
4- कौनसा रंग अच्छा है?
5- लेखकोंपयोगी सूत्र और 100 पत्रपत्रिकाएं
6- चाबी वाला भूत
7 - संयम की जीत उपन्यास
8 - हाइकु संयुक्ता
9 - घमंडी सियार और अन्य कहानियां
10- कसक लघुकथा संग्रह
11- चुनिंदा लघुकथाएं संपादन
12- रोचक विज्ञान बालकहानियाँ
13- पहाड़ की सैर
14- चूँचूँ की कहानियाँ
15- मनोभावों की अभिव्यक्ति
16- संयम की जीत
17- हाइबन: चित्र-विचित्र
18- पहाड़ी की सैर
19- आजरी विहीर (मराठी अनुवाद)
20- काव काव चे भूत (मराठी अनुवाद)
21- आसमानी संकट (मराठी अनुवाद)
22- कोणता रँग चाँगला आहे? (मराठी अनुवाद)
23- लघुकथाकारों की मेरी चुनिंदा लघुकथाएं
24- देश-विदेश की लोककथाएं
संकलन में सहभागिता--
1- बून्द-बून्द सागर
2- अपने अपने क्षितिज
3- नई सदी की धमक
4- शत शताब्दी हाइकू संग्रह
5- हमारे समय की श्रेष्ठ बालकथाएं
6- सांझ के दीप
7- चुनिंदा लघुकथाएं
8- हाइकु मंथन
9-  चले नीड की ओर
10- अपने-अपने क्षितिज
11- बूंद बूंद सागर
12- कहानी प्रसंग
13- विविध प्रसंग
14- आस पास से गुजरते हुए
15- सफर संवेदनाओं का
16- नई सदी की लघुकथाएं
17- विश्व हिंदी लघुकथाकार कोश
18- चमकते सितारे भाग 1
19- नया आकाश आदि ।

उपलब्धि- 141 बालकहानियों का 8 भाषा में प्रकाशन व अनेक कहानियां विभिन्न पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित

इ-बुक-- 121 ई- बुक प्रकाशित

पुरुस्कार-

●इंद्रदेवसिंह इंद्र बालसाहित्य सम्मान-2017,
●स्वतंत्रता सैनानी ओंकारलाल शास्त्री सम्मान-2017 ,
●बालशौरि रेड्डी बालसाहित्य सम्मान- 2015 ,
●विकास खंड स्तरीय कहानी प्रतियोगिता में द्वितीय 2017 ,
●लघुकथा में जयविजय सम्मान-2015 प्राप्त,
●काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान- 2017 प्राप्त,
●26 जनवरी 2018 को नगर पंचायत रतनगढ़ द्वारा _वरिष्ठ साहित्यकार_ सम्मान 2018 ,
●सोमवंशीय क्षत्रिय समाज इंदौर द्वारा _क्षत्रिय गौरव_ सम्मान 2018 ,
● नेपाल में _वरिष्ठ साहित्य साधक_ सम्मान 2018 ,
●मेघालय के राज्यपाल के हाथों _महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान_-2018 प्राप्त,
●बालसाहित्य संस्थान उत्तराखंड द्वारा अखिल भारतीय राजेंद्रसिंह विष्ट स्मृति सम्मान बालकहानी प्रतियोगिता 2018 में तृतीय स्थान का सम्मान प्राप्त,
●नेपाल-भारत साहित्य सेतु सम्मान- २०१८,
●नेपाल-भारत अंतरराष्ट्रीय रत्न सम्मान- २०१८ (बीरगंज नेपाल )में प्राप्त .
●मप्र तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी संघ द्वारा *रजत-पदक* से सम्मानित ।
● क्रान्तिधरा अंतरराष्ट्रीय साहित्य साधक सम्मान-2019 से सम्मानित।
● आचार्य रतनलाल विद्यानुग स्मृति अखिल भारतीय बालसाहित्य प्रतियोगिता में शब्द निष्ठा सम्मान 2019
●  साहित्य मंडल श्री नाथद्वारा द्वारा राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह 2020 में श्रीभगवतीप्रसाद देवपुरा बालसाहित्य भूषण सम्मान से सम्मानीत।

पता- पोस्ट ऑफिस के पास , रतनगढ़ जिला-नीमच -458226 (मध्यप्रदेश)

                          1.पीढ़ी का अंतर

                             ************


" भाई ! तुझ में क्या है?  भावों के वर्णन के साथ अंतिम पंक्तियों में चिंतन की उद्वेलना ही तो है, " लघुकथा की नई पुस्तक ने कहा।

" और तेरे पास क्या है?" पुरानी पुस्तक अपने जर्जर पन्नों को संभालते हुए बोली, " केवल संवाद के साथ अंत में कसा हुआ तंज ही तो है।"

" हूं! यह तो अपनी-अपनी सोच है।"

तभी, कभी से चुप बैठे लघुकथा के पन्ने ने उन्हें रोकते हुए कहा, " भाई!  आपस में क्यों झगड़ते हो? यह तो समय, चिंतन और भावों का फेर है। यह हमेशा रहा है और रहेगा।

" बस, अपना नजरिया बदल लो। आखिर हो तो लघुकथा ही ना।"

सुनकर दोनों पुस्तकें विचारमग्न हो गई। ****


                      2. सेवा 

                          ****


दो घंटे आराम करने के बाद डॉक्टर साहिबा को याद आया, '' चलो ! उस प्रसूता को देख लेते हैं जिसे आपरेशन द्वारा बच्चा पैदा होगा,हम ने उसे कहा था,'' कहते हुए नर्स के साथ प्रसव वार्ड की ओर चल दी. वहां जा कर देखा तो प्रसूता के पास में बच्चा किलकारी मार कर रो रहा था तथा दुखी परिवार हर्ष से उल्लासित दिखाई दे रहा था.

'' अरे ! यह क्या हुआ ? इस का बच्चा तो पेट में उलझा हुआ था ?''

इस पर प्रसूता की सास ने हाथ जोड़ कर कहा, '' भला हो उस मैडमजी का जो दर्द से तड़फती बहु से बोली— यदि तू हिम्मत कर के मेरा साथ दे तो मैं यह प्रसव करा सकती हूं.''

'' फिर ?''

'' मेरी बहु बहुत हिम्मत वाली थी. इस ने हांमी भर दी. और घंटे भर की मेहनत के बाद में प्रसव हो गया. भगवान ! उस का भला करें.''

'' क्या ?'' डॉक्टर साहिबा का यकिन नहीं हुआ, '' उस ने इतनी उलझी हुई प्रसव करा दूं. मगर, वह नर्स कौन थी ?''

सास को उस का नामपता मालुम नहीं था. बहु से पूछा,'' बहुरिया ! वह कौन थी ? जिसे तू 1000 रूपए दे रही थी. मगर, उस ने लेने से इनकार कर दिया था.''

'' हां मांजी ! कह रही थी सरकार तनख्वाह देती है इस सरला को मुफ्त का पैसा नहीं चाहिए.''

यह सुनते ही डॉक्टर साहिबा का दिमाग चक्करा गया था. सरला की ड्यूटी दो घंटे पहले ही समाप्त हो गई थी. फिर वह यहां मुफ्त में यह प्रसव करने के लिए अतिरिक्त दो घंटे रुकी थी. 

'' इस की समाजसेवा ने मेरी रात की डयूटी का मजा ही किरकिरा कर दिया. बेवकूफ कहीं की,'' धीरे से साथ आई नर्स को कहते हुए डॉक्टर साहिबा झुंझलाते हुए अगले वार्ड में चल दी. ****

                              3. फुर्सत

                                  *****


पत्नी बोले जा रही थी। कभी विद्यालय की बातें और कभी पड़ोसन की बातें। पति 'हां- हां' कह रहा था। तभी पत्नी ने कहा, " बेसन की मिर्ची बना लूं?" पति ने 'हां' में गर्दन हिला दी।

" मैं क्या कह रही हूं? सुन रहे हो?" पत्नी मोबाइल में देखते हुए कह रही थी।

पति उसी की ओर एकटक देखे जा रहे थे । 

तभी पत्नी ने कहा, " तुम्हें मेरे लिए फुर्सत कहां है ? बस, मोबाइल में ही घुसे रहते हो।"

पति ने फिर गर्दन 'हां' में हिला दी । तभी पत्नी ने चिल्ला कर कहा, " मेरी बात सुनने की फुर्सत है आपको ?"  कहते हुए पति की ओर देखा।

पति अभी भी एकटक उसे ही देखे जा रहा था।****


                             4.कारण

                                ******


" लाइए मैडम ! और क्या करना है ?" सीमा ने ऑनलाइन पढ़ाई का शिक्षा रजिस्टर पूरा करते हुए पूछा तो अनीता ने कहा, " अब घर चलते हैं । आज का काम हो गया है।" 

 इस पर सीमा मुँह बना कर बोली, " घर !  वहाँ  चल कर क्या करेंगे? यही स्कूल में बैठते हैं दो-तीन घंटे।"

" मगर, कोरोना की वजह से स्कूल बंद  है !" अनीता ने कहा, "  यहां बैठ कर भी क्या करेंगे ?"

" दुखसुख की बातें करेंगे । और क्या ?"  सीमा बोली, " बच्चों को कुछ सिखाना होगा तो वह सिखाएंगे । मोबाइल पर कुछ देखेंगे ।" 

" मगर मुझे तो घर पर बहुत काम है, "  अनीता ने कहा, "  वैसे भी 'हमारा घर हमारा विद्यालय' का आज का सारा काम हो चुका है।  मगर सीमा तैयार नहीं हुई, " नहीं यार। मैं पांच बजे तक ही यही रुकुँगी।"

अनीता को गाड़ी चलाना नहीं आता था। मजबूरी में उसे गांव के स्कूल में रुकना पड़ा। तब उसने कुरेदकुरेद कर सीमा से पूछा, " तुम्हें घर जाने की इच्छा क्यों नहीं होती ?  जब कि  तुम बहुत अच्छा काम करती हो ?" अनीता ने कहा।

उस की प्यार भरी बातें सुनकर सीमा की आंख से आंसू निकल गए, " घर जा कर सास की जलीकटी बातें सुनने से अच्छा है यहां शकुन  के दोचार घंटे बिता लिए जाए," कह कर सीमा ने प्रसन्नता की लम्बी साँस खिंची और मोबाइल देखने लगी। ****


                                5.दो के बीच

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पति ने कमरे के अंदर पर रखा था कि पत्नी की आवाज सुनाई दी । जिसे सुनकर पति ठिठक गया। पत्नी पड़ोसन से कह रही थी, " अरे दरी! सबके पति ऐसे ही होते हैं । वे पत्नी की बातें कहां सुनते हैं? कितना भी कहो, सामान लाकर घर पर रखते ही नहीं है।"

 यह सुनते ही पति का पारा गरम हो गया। और वह पैर पटकते हुए तेजी से कमरे में गया। ड्रम से साबुन-सर्फ  और दूसरा सामान निकालकर लाया । फिर पत्नी के सामने पटकते हुए बोला, " यह सामान कौन लाया है?" फिर मन ही मन गुदगुदाया, " तेरा बाप!"

यह देख-सुनकर पड़ोसन और पत्नी आवाज बंद गई। दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगी।

" अब बोलो!" पति ने तुनककर कहा, " दिनभर पति की बुराई करती रहती हो," पति ने हाथ नचाया तो पड़ोसन चुपचाप उठ कर चली गई।

उसके जाते ही पत्नी जोर-जोर से रोने लगी।

पति ने उसे खूब खरी-खोटी सुनाई। पत्नी की गलती बता कर उसे चुप कराने की कोशिश की। मगर वह चुप नहीं हुई । हार कर पति ने पूछा, " भाग्यवान! आखिर मुझसे ऐसी क्या खता हुई कि तुम रोए जा रही हो?"

तब काफी कहासुनी के बाद, बड़ी मुश्किल से पत्नी बोली, " आप पूरी बात नहीं जानते थे। फिर हमारे बीच में बोलने की क्या जरूरत थी? आपको इस तरह मेरा अपमान नहीं करना चाहिए था।"

" अपमान ?"

" हां, अपमान!" पत्नी ने तुनक कर कहा, " एक बार में उसके घर थोड़ी सी दाल मांगने गई थी । उसने पति का बहाना बनाकर मुझे मना कर दिया था।"

" क्या ?"

"हां," पत्नी बोली, " और वह आज मुझ से कपड़े धोने का साबुन मांगने आई थी। इसलिए मैंने भी आप का बहाना बनाकर मना कर दिया था।" कहते हुए पत्नी ने गर्दन को एक और झटका दिया, ' मानो कह रही हो, आप में भी कुछ दुनियादारी के लखण (अक्ल या समझदारी) नहीं है।" ****


                           6.अपेक्षा

                               *****


उसने धीरे से कहा, " आप सभी को कुछ ना कुछ उपहार देती रहती हैं|"

"हाँ," दीदी ने जवाब दिया, " कहते हैं कि देने से प्यार बढ़ता है|"

"तब तो आपकी बहू को भी आपको कुछ देना चाहिए| वह आपको क्यों नहीं देती है?" उसने धीरे से अगला सवाल छोड़ दिया|

"क्योंकि वह जानती है," कहते हुए दीदी रुकी तो उसने पूछा," क्या?"

"यही कि वह जो भी प्यार से देगी, वह प्यारी चीज मेरे पास तो रहेगी नहीं| मैं उसे दूसरे को दे दूंगी| इसलिए वह अपनी पसंद की कोई चीज मुझे नहीं देती है|"

"तभी आपकी बहु आपसे खुश है," कहते हुए उसे अपनी बहु की घूरती हुई आंखें नजर आ गई |जिसमें घृणा की जगह प्रसन्नता के भाव फैलते जा रहे थे |****


                             7.रुख

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कोरोना अस्पताल से वापस लौटते अनीता सीधी अपने सास के कमरे में गई, " मां जी! आप इस कमरे में नहीं रहेगी।"

"क्या !" असहाय वृद्ध सास ने अनीता से अपना हाथ छुड़ाते कहा हुए विनती की, " मैं इस छोटी-सी कोठरी में ही ठीक हूं । मुझे यहां से मत निकालो बहू ,"  उसने हाथ जोड़ने की असफल कोशिश की। मगर अनीता ने हाथ नहीं छोड़ा। वह सास को कमरे से बाहर ले जाने में सफल हो गई।

" ऐसा ना करो बहू, " सास कहे जा रही थी, " मैं यही ठीक हूं,"  असहाय सास अपनी बहू से विनती कर रही थी। बहू ने स्पष्ट कह दिया, " आप इस कमरे में नहीं रहेंगी। अब तो यहां पर नया नौकर ही रहेगा।"

"मैं कहां जाऊंगी बहू?"

"मां जी!," अनीता ने दृढ़ता के साथ सास को संभालते हुए कहा, " आप मेरे साथ, मेरे कमरे में रहेंगी।"

" क्या!" सास के स्वर में थोड़ी प्रसन्नता घुल गई, " यह तो मेरा कमरा नहीं है," उसने विस्मय से अपनी बहू की ओर देखा।

" हां माँ जी," अनीता ने कहा, " कोरोनावायरस के पॉजिटिव ने मेरे दिमाग की नेगेटिव रिपोर्ट को बाहर का रास्ता दिखा दिया है," यह कहते हुए अनीता के आंसू सास के कंधे पर  लूढक गए। ****



                           8. संक्रमण

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आदेश आया ।पालन करना था। इसलिए चालान बनाए गए। मगर एक चालान कम पड़ रहा था।

" भाई ! तेरा नाम लिख देते हैं, " अ ने ब से कहा।

" नहीं भाई! मुझे कोई शौक नहीं है,"  ब बोला।

" अखबार में तेरा नाम छपेगा।"  अ  ने समझाया तो ब बोला, " हां । जानता हूं। मगर ऊपर क्या लिखा होगा ?"

" सड़क पर थूकने वालों पर जुर्माना, " अ ने कहा, "  इसमें कई लोगों के नाम हैं जिन्होंने कभी सड़क पर थूका नहीं है।"

" होगा ।" ब ने स्पष्ट किया, " गंदा कार्य करके नाम छपवाना मेरी फितरत में नहीं है,"  यह कहते हुए अ ने ₹1000 उसके सामने रख दिए, "  मेरी जगह अपना नाम लिख देना। आदेश की खानापूर्ति हो जाएगी, "  और वह मुंह बना कर चल दिया। ****


                            9.आधा सच

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माल गोदाम के अंधेरे कमरे में पहुंचते ही हीरोइन से गांजे ने कहा," आओ बहन! तुम्हारा स्वागत है।"

 "मेरा! यहां अंधेरे में पड़े रहने के लिए,"  हीरोइन ने कहा," कहां मैं हीरो-हीरोइन के मुख की शोभा बन रही थी, कहां यहाँ पड़ी-पड़ी सड़ जाऊंगी।"

" ऐसा नहीं होगा बहन," गांजा बोला," तू चिंता ना कर। तुझे यहां अंधेरे में ज्यादा दिन नहीं रहना पड़ेगा," गांजे के यह कहते ही हीरोइन चौक कर बोली," तुझे कैसे मालूम?"

इस पर गांजे ने एक ओर इशारा किया," यहां पहले मेरे साथ बरामद हुआ गांजा पड़ा रहता था । अब कोई अनजान हरी पत्तियों का चूरा भरा हुआ पड़ा है।"

"वाकई! यह सच है!"

"हां," गांजा बोला,"तुम जहां से आई हो, वही पहुंच जाओगी।"

"सच!" हीरोइन चकित होते हुए बोली, " फिर यह सुशांत और हीरोइन के साथ ड्रग्स लेने का मामला क्या है भला ?"

"बहन! यह तो कूटनीति है,"  गांजे ने कहा," राजनीति, फिल्म और ड्रग माफियाओं की समानांतर व्यवस्था को अपनी औकात दिखाने के लिए उन्हीं के द्वारा चलाए गए अभियान है ताकि…..," कहते हुए गांजा अचानक किसी की आहट पाकर चुप हो गया और हीरोइन चुपचाप मुस्कुरा दी।

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                          10. असली वनवास

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सीता हरण, लक्ष्मण के नागपोश और चौदह वर्ष के वनवास के कष्ट झेल कर आते हुए राम की अगवानी के लिए माता पूजा की थाली लिए पलकपावड़े बिछाए बैठी थी. रामसीता के आते ही माता आगे बढ़ी, '' आओ राम ! चौदह वर्ष आप ने वनवास के अथाह दुखदर्द सहे हैं. मैं आप की मर्यादा को नमन करती हूं.'' कहते हुए माता ने राम के मस्तिष्क पर टीका लगाते हुए माथा चुम लिया.

मगर, राम प्रसन्न नहीं थे. वे बड़ी अधीरता से किसी को खोज रहे थे, '' माते ! उर्मिला कहीं दिखाई नहीं दे रही है ?''

''क्यों पुत्र ! पहले मैं आप लोगों की आरती कर लूं. बाद में उस से मिल लेना.''

यह सुनते ही राम बोले, '' माता ! असली वनवास तो उर्मिला और लक्ष्मण ने भोगा है इसलिए सब से पहले इन दोनों की आरती की जाना चाहिए.'' यह कहते हुए राम ने सीता को आरती की थाल पकड़ा दी.

यह सुनते ही लक्ष्मण का गर्विला सीना राम के चरण में झूक गया, '' भैया ! मैं तो सेवक ही हूं और रहूंगा. '' ****

                             11. कुंठा  

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रात की एक बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम का सफल का सञ्चालन करा कर वापस लौट कर घर आए पति ने दरवाज़ा खटखटाना चाहा. तभी पत्नी की चेतावनी याद आ गई. ‘ आप भरी ठण्ड में कार्यक्रम का सञ्चालन करने जा रहे है. मगर १० बजे तक घर आ जाना. अन्यथा दरवाज़ा नहीं खोलुंगी तब ठण्ड में बाहर ठुठुरते रहना.’

‘ भाग्यवान नाराज़ क्यों होती हो.’ पति ने कुछ कहना चाहा.

‘ २६ जनवरी के दिन भी सुबह के गए शाम ४ बजे आए थे. हर जगह आप का ही ठेका है. और दूसरा कोई सञ्चालन नहीं कर सकता है ?’

‘ तुम्हे तो खुश होना चाहिए,’ पति की बात पूरी नहीं हुई थी कि पत्नी बोली, ‘ सभी कामचोरों का ठेका आप ने ही ले रखा है.’

पति भी तुनक पडा, “ तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारा पति ...”

‘ खाक खुश होना चाहिए. आप को पता नहीं है. मुझे बचपन में अवसर नहीं मिला, अन्यथा मैं आज सब सा प्रसिद्ध गायिका होती.”

यह पंक्ति याद आते ही पति ने अपने हाथ वापस खीच लिए. दरवाज़ा खटखटाऊं या नहीं. कहीं प्रसिध्द गायिका फिर गाना सुनाने न लग जाए.  ****

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क्रमांक - 03

नाम : डॉ. क्षमा सिसोदिया
      अंतराष्ट्रीय,कवियत्री,लघुकथाकार,हास्य व्यंग्य, हाइकु,   
      मुकरी विधा की स्वतंत्र लेखिका।

शिक्षा - इलाहाबाद वि.वि. से स्नातक।
          लखनऊ वि. वि से स्नातकोत्तर।
           विक्रम वि.वि से पीएचडी ।
           इंटिरियर डिप्लोमा कोर्स।
            इंडस्ट्रियल डिप्लोमा कोर्स।
             पर्सनालिटी डिप्लोमा कोर्स।

शैक्षणिक योग्यता -

सांदीपनी कालेज,उज्जैन में तीन वर्ष शिक्षण योगदान।

विक्रम वि.वि में काॅमर्स,एम.ए,एमफिल तक।

उपलब्धियाँ -
--------------
1-देवी अहिल्या वि. वि. में  गवर्नर
नामिनी कार्यपरिषद की सदस्या।2005

2-"रेकी थैरेपी" (प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति) में उत्कृष्ट कार्य हेतु राज्यपाल से गोल्ड मेडल प्राप्त - 2006

3- लखनऊ वि. वि. से उत्कृष्ट छात्रा के रूप में
"मिस हिन्दी" अवार्ड प्राप्त -1996

4-छात्र-जीवन से ही लेखन में रूझान,समाचार पत्रों में लेखन।

5-आकाशवाणी पर कई बार कविता पाठ।

6- महाकवि कालिदास-स्मृति समारोह समिती उज्जयिनी द्वारा साहित्यिक सम्मान 2014

7-नीरजा सारस्वत सम्मान, उज्जैन। 2009

सामाजिक क्षेत्र :-
-------------------
1-वर्धमान क्रिएटिव एंड वेलफेयर सोसाइटी महिला विंग उज्जैन द्वारा - मातृत्व दिवस पर मातृत्व सम्मान - 2011

2- दिगम्बर जैन महिला परिषद अवंति उज्जैन द्वारा सम्मान -2009
3-पंजाबी महिला विंग द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सम्मान
4-अखिल भारतीय क्षत्राणी पद्मिनी समिति महाराष्ट्र द्वारा "Achieve ment Award"-2019

5-8मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मान - 2003 to 2005

6-नई दुनिया समाचार पत्र द्वारा सामाजिक गतिविधियों हेतु नायिका अवार्ड 2010
7-राजपूत महिला ग्रुप उज्जैन द्वारा - समाजिक गतिविधियों हेतु सम्मान।
8-पंजाबी महिला ग्रुप उज्जैन द्वारा सामाजिक गतिविधियों हेतु सम्मान।
9-राॅयल पद्मिनी राजपूतानी समिति-मंदसौर द्वारा 'क्षत्राणी' सम्मान। 2018
10- महिला सोशल विंग द्वारा सम्मान। 2019

साहित्यक क्षेत्र:-
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1-अभिव्यक्ति विचार मंच (नागदा) द्वारा सम्मान - 2008
हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग संस्था द्वारा साहित्यिक सम्मान,2011 उज्जैन।

2-अग्नि पथ समाचार पत्र द्वारा साहित्यिक सम्मान - 2013

3-दैनिक भास्कर, समाचार पत्र द्वारा सम्मान- 2015

4-पत्रिका समाचार द्वारा-प्रशस्ति-पत्र (सामाजिक क्षेत्र में योगदान हेतु-  "Creator...,celebrate the Success of woman Award-2016

5-नई दुनिया समाचार पत्र द्वारा-वुमन अचीवर्स अवार्ड- 2018

  6-हिन्दी शब्द साधिका सम्मान

7-अवध ज्योति रजत जयंती द्वारा -साहित्यक सम्मान 2019

8-अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रान्त द्वारा -"शब्द साधिका सम्मान।"

9--स्वर्णिम भारत मंच युवा संगम उज्जैन द्वारा साहित्यिक सम्मान 2021।

10-:स्टोरी मिरर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा में लघुकथा विजेता।
11- अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में कविताएं विजेता।
13- मध्यांतर मंच- से लघुकथा प्रतियोगिता में  लघुकथा (मय राशि) विजेता।
14-नया लेखन-नया दस्तखत मंच पर कई लघुकथाएं विजेता।

15- इंदुमति श्री स्मृति लघुकथा योजना में लघुकथा सम्मिलित हो राशि प्राप्त।

16- लोकरंग संस्कृति मंच और लोकगीत कजरी गायन पर सम्मान।
17-साहित्य संगम संस्थान दिल्ली से
स्थानीय भाषा भोजपुरी में कव्य प्रसारण।

  
18-यूट्यूब पर रचनाओं का प्रसारण।

प्रकाशित संग्रह -
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1-केवल तुम्हारे लिए" - काव्य संग्रह।
2-'कथा सीपिका '-     लघुकथा संग्रह ।
 3- 'भीतर कोई बंद है।' लघुकथा संग्रह।
4- तीन अन्य पुस्तकें प्रकाशनार्थ हैं।
5- कई साझा संग्रह में रचनाओं का प्रकाशन।
6-कलश,अविराम साहित्यिकी लघुकथा स्वर्ण जयंती विशेषांक में लघुकथाओं का चयन।
एवं अन्य कई पत्रिकाओं में लघुकथा,कविता, आलेख प्रकाशित।

अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियाँ -
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1-नेपाल साहित्य धरा से प्रकाशित साहित्य 'भोजपुरी दर्शन' में प्रांतीय भाषा (भोजपुरी में) भी लघुकथा, कविता का प्रकाशन।

2- पुस्तक-भारती (कनाडा) में रचनाएं प्रकाशित।

3-विश्व हिन्दी ज्योति (कैलिफोर्निया से प्रकाशित ') में रचना प्रकाशित।

4-12वाँ अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव 2020
परिकल्पना उत्सव सम्मान (शारजाह,दुबई, ,मालदीव)

अन्य गतिविधियाँ :-
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1-साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था त्रृचा विचार मंच की कार्यकारिणी सदस्य।

2-मध्य प्रदेश लेखक संघ समिति की कार्यकारिणी सदस्य।

3- स्वर्णिम भारत  मंच उज्जैन (सामाजिक सेवा संस्थान) की कार्यकारिणी सदस्य।
                                 

विशेष :-
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लेखन के साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता ।
सेवा के रूप में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर

1-"भैरोगढ जेल (उज्जैन)में कैदी महिलाओं के चर्चा कर साथ समय व्यतीत किया।   

2-14 फरवरी वेलेंटाइन डे पर (स्व खर्च से) स्टूडेंट के साथ गंभीर नदी की सफाई में कर सेवा कार्य।

3- नारी-निकेतन की कन्याओं के विवाह में योगदान।
       
पता :-                
आशीर्वाद
डाॅ.क्षमा सिसोदिया
10/10 सेक्टर बी
महाकाल वाणिज्य केन्द्र
उज्जैन-456010 मध्यप्रदेश

                  1.तस्वीर 

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"अरे, तू यह क्या कर रहा है...?"

"कुछ नही,अपनी ही तस्वीर बना और बिगाड़ रहा हूँ।" 

"क्यों...!"

"बस देखने की कोशिश रहा हूँ,कि हम सबको बनाने में ईश्वर को कितनी मेहनत लगी होगी।"

"अच्छा,तो तू अब ईश्वर बनने की कोशिश कर रहा है...?" 

"अरे नही यार, मैं देख रहा हूँ,कि हमें बनाने में उसे कितनी मेहनत करनी पड़ती है,फिर भी हम लोग हमेशा रोते ही रहते हैं।"

       "कभी पलट कर हम लोग यह नही सोचते हैं,कि-हमारे इस जीवन रूपी तस्वीर बनाने में हमारे माता-पिता को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी।"

   "एक साधारण सी तस्वीर बनाने में मुझे छः घंटे लगे और इस बीच में मुझे न जाने कितनी बार मायूस होना पड़ा,तब जाकर ऐसी तस्वीर बना पाया।"

    "बस इसी बात को आज खुद समझ रहा और अपने बच्चों को भी समझाने की कोशिश कर रहा हूँ,कि जिन्दगी के कैनवास पर अपनी साफ-सुथरी तस्वीर बनाना इतना आसान नही होता है।" ****


                  2. अकेली औरत   

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वर्षों से शगुन अपना हर काम अकेली ही करती आ रही थी,बीच-बीच में कुछ लोगों को अपने उपर ज्यादा ही मेहरबान होते हुए भी देखा था,लेकिन मजबूत शगुन नितान्त अकेली होने के बाद भी खुद को सम्भाले हुए थी। 

                आफिस में शर्मा,वर्मा,गुप्ता,मिश्रा जी के स्वभाव के वजह से कुछ परेशान जरूर रहने लगी थी,आज उससे भी निपटने का उसने रास्ता निकाल ही लिया। 

                   जन्म दिन के बहाने उसने सभी सह- कर्मियों को अलग-अलग तरीके से वही सामग्री लेकर आने के लिए घर पर निमंत्रित किया,जिसे देने के बहाने से उसके नजदीक आने की कोशिश करते,सभी बहुत खुश हुए,लेकिन किसी को यह पता नही लगने दिया कि उनसे पहले भी वहाँ कोई और पहुँचेगा।वहाँ  सब एक-दूसरे को देखकर हतप्रभ थे,ओले पड़ते देख कोई सिर खुजला रहा था,तो कोई गले में अटकी आवाज़ को बाहर निकालने के लिए टाई ढीली कर रहा था। 

           शगुन ने कुछ गरीब बच्चों को भी बुलाया था। 

केक कटने के बाद,सह कर्मियों द्वारा लाए हुए सामानों को उनके ही हाथों से गरीब बच्चों में बँटवा दिया। 

              और घर में रखे खाद्य सामग्री से सभी का आवभगत कर,रिटर्न गिफ्ट के साथ विदा कर दिया। रिटर्न गिफ्ट को खोलने की आतुरता से सभी बेहाल हो रहे थे। 

           बंद लिफाफा,लिफाफे में चिठ्ठी देख कर तो सबकी आँखों में बिना पीए ही मदिरा उमड़ने लगी,लेकिन जैसे ही शब्दों को मापा,तो होश उड़ गये।

        "आप लोगों को क्या लगता है,कि समाज में अकेली रहने वाली औरत,सार्वजनिक सम्पति है ?, 

जिस पर हर कोई अतिक्रमण करने की जुगाड़ में लगा रहता है ?, 

           यह लावारिस पड़ी हुई जमीन नही है,जीती-जागती जिन्दगी है,और जिसकी रजिस्ट्री माँ-बाप द्वारा दिए संस्कारों से होती है।आप लोग अकेली औरत की सहायता करने के लिए चिकनी-चुपड़ी बातों के वजाए,कभी यह बोलते हैं,कि लाओ नगरपालिका,न्यायपालिका या बिजली विभाग का कोई काम हो तो बताओ,मैं कर देता हूँ,भला वहाँ कौन जाए। 

        'लेकिन सबको बाबू मोशाए जरूर बनना हैं।यह खाने-पीने की चीजें मुझे नही,इन गरीब बच्चों को दिया करें।, 

                 "और हाँ,अकेली औरत जब अपनी घर-गृहस्थी  सम्भाल सकती है,तो क्या अपनी काया को नही सम्भाल सकती है ?,मुझे उन औरतों की तरह मत समझना,जो पति के रहते दूसरे मर्दो को पसंद करती हैं।मैं आदर्शों पर चलने वाली भारतीय नारी हूँ। 

         "मुझ जैसी औरतों को कभी कमजोर मत समझना,औरत अकेली होकर और मजबूत हो जाती है,पुरूषों की तरह कमजोर नही होती है।इसलिए मुझे नही खुद को सम्भालने की जरूरत है।मेरी बात समझ में आ जाए तो ठीक है,नही तो अब अगली मीटिंग आपके घरवाली के साथ होगी।"

           बर्थडे के दूसरे दिन शगुन जब आफिस पहुँचती है,तो उसे वहाँ सभ्यता और सौहार्द सा वातावरण महसूस होता है,इतने दिनों से जो आँखें उसके सिंदूर और मंगलसूत्र पर अटकी थीं,वो आज फाइल के पन्नों में उलझी हुई थीं। 

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                  3. खुल जा सिम-सिम  

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हे प्रभु, 

  "क्या यह भारत भूमि ही है...?"

    "नही,ऐसा कैसे हो सकता है...!!" 

"यहाँ की संस्कृति तो कुछ और ही थी,क्या अब यहाँ से वह विलुप्त हो गयी है...?"

"महात्मा विदूर जैसे मंत्री, कृपाचार्य जैसे राजगुरू, द्रोणाचार्य जैसे महारथी और भीष्म जैसे मार्गदर्शक' के रहते हुए भी हस्तिनापुर का सर्वनाश कैसे हो जाता है... ?"

"कैसे प्रभु, कैसे।" 

"स्त्री हो या राष्ट्र की शान तिरंगा हो,इसकी बेइज्जती होने पर जो घाव होते हैं, उसके दाग सदियों तक मिटाए नही मिटते हैं।"

"प्रभु, आज तो  न्यायालय भी पराए जैसा निर्णय सुनाता है, कि-"लड़की के विशेष अंग को वस्त्र के ऊपर से छूना,दुष्कर्म में नही आता है उसके लिए चमड़ी से चमड़ी का स्पर्श होना आवश्यक है।" 

"हम औरतें अब कहाँ और किधर जाएं...? " 

स्टेज पर कलाकार आकर अपनी-अपनी भूमिका निभाते जा रहे थे। 

"वत्स, 

अपने ज्ञान चक्षु खोल कर जीना सीखो, क्योंकि समय दुर्योधन के अहंकार की तरह ही आता है और उसके आगे जब स्वार्थी मन मौन रहते हैं,तब उस मौन की कीमतें ऐसे ही चुकानी पड़ती है।"

" जी प्रभु, 

हमें भी इसकी कीमत आज इज्जत को नीलाम करके चुकानी पड़ रही है,ऐसा कहते ही जीवंत स्त्री का चेहरा यंत्रवत मशीन की तरह नीचे झुक जाता है और उसके मौन होंठ बोल उठते हैं-

'खुल जा सिमसिम"

ऐसा बोलते ही स्वचलित परदा हट जाता है और पर्दे के पीछे खड़ी जनता अपने हाथों में तख्तियां लिए नेता जी के साथ अधिकार जताने बाहर आकर खड़ी हो जाती है।' ****


                  4. केसरिया मिलन

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                   गगन के  अपरिमित विस्तार में साँझ ढले का सिंदूरी रंग दूर-दूर तक छितरा कर निशा की आकुलता से प्रतीक्षा कर रहा था। 

         "नभ का प्रचंड यात्री 'सूरज' अपने ढलते रंग और शैथिल्यता के साथ अब निशा के स्यामल आगोश में समा जाना चाहता था।" 

         निशा का कायिक व्यक्तित्व निर्बल और कालिमा युक्त अवश्य है, लेकिन थकित श्रमित सूरज के लिए इस पल उसके आगोश का महत्व स्वयं की सुदीप्ति से कम नही है,इसलिए ही यह थका-हारा नभ यात्री हर साँझ अपने व्याकुल,बोझिल थके मन से निशा की आतुरता से प्रतीक्षा करता है और निशा के  प्रेमोत्तप्त आलिंगन की नवल ऊर्जा से ऊर्जस्वित हो, यह पथिक पुन: भोर होते ही आगामी यात्रा पर निकल  पड़ता है।

       प्रभात और निशा  के सामान्य सम्बन्ध नितान्त अन्तर्विरोधी होते हुए भी कुछ क्षणों के लिए मिश्रित हो एकसार हो जाते हैं और स्वयं को स्वयंभू समझने वाला सूरज का दर्प और अभिमान उसके पहलू में विलुप्त हो जाता है,शेष बचता है तो केवल पारस्परिक अकल्पनीय प्रेम।

       "स्वर्गिक प्रीत की यह अद्भुत प्राकृतिक छटा,आत्मीय  'केसरिया मिलन' के उषाकाल में परिणत होकर सनातन सृष्टि का मंगल मुहूर्त बन जाता है और सृष्टि झोली में एक नये सृजन का वरदान दे जाती है।" ****

                    5. यादों की चादर 

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    आज वर्षों बाद भी ऐसा क्यों नही लगता है,कि यह बहुत पुरानी बात है,बल्कि कभी-कभी तो ऐसा क्षण आता है,जैसे वो कही आस-पास ही है।

                क्या,रूह भी सब बातें याद रखती है,या फिर वह अपनों के आस पास ही घूमती रहती है,या फिर अपना मन ही उसके आस-पास घूमता रहता है ? 

                       "नही,ऐसे कैसे हो सकता है,मैं तो अपने काम में दिन भर व्यस्त रहती हूँ और फिर थक कर सो जाती हूँ,तो फिर उन यादों को याद कब करती हूँ,मैं नही याद करती हूँ,मैं तो बहुत मजबूत औरत हूँ।" 

       इन बातों से मिष्ठी लगातार अपने अंदर बैठी उस औरत को समझाती जा रही थी,जो आज का दिन आते ही कमजोर होने लगती है और खुद को अकेले यादों के साथ रखने में ही अधिक खुश रहती है। 

               लेकिन फिर ऐसा क्या होता है,जब आज के दिन मिष्ठी नाम की यह महिला,किसी से भी मिलना नही चाहती है,जबकि आज के लिए तो लोग कितना धूम-धाम और खुशी मनाते हैं और मिष्ठी ठीक इसका उल्टा करती है।उसको आज लोगों की भीड़ सुकून देने की जगह,दुःखी करता है,शायद इसीलिए...! ?, 

          नही,वो तो अक्सर ही इस तरह के नकली लोगों के भीड़ से गुजरती रहती है,यह कोई नयी बात थोड़ी न है                  

                   नही,नही,यह सब कहाँ ?,उसे तो मुकेश की यादें ही तसल्ली देती हैं,सच में वो उसे कितना प्यार करता था,पहला जन्मदिन उसने लगातार तीन दिन तक मनाया था,उसका पक्ष लेने की वजह से वह परिवार में खुद बुरा बन जाता था।

             मिष्ठी को खुश रखने लिए वह खुद को कितना बदल डाला था। 

       शायद इसलिए ही वो अपने जन्मदिन के अवसर पर ऐसा करती है और उसके यादों का सुनहरी चादर बना उसे ओढ़ अकेली ही खुश हो लेती है,क्योंकि उसको अपने अंदर के भादों से किसी और को रूबरू होने ही नही देना होता है। 

     अब सो भी जा मिष्ठी,बहुत रात हो गयी है,देख यह गाना भी तुझे यही समझा रहा है। 

     "जिंदगी के सफर में गुज़र जाते हैं,जो मकां वो फिर नही आते,अब तो तारीख भी बदल गयी है।" ****


                    6. जीने की राह

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दो प्यार भरे दिल रोशन हुए,लेकिन उनकी रातें बहुत अँधियारी थी।मिले और फिर मिलकर बिछड़ गये।

      दिल की उस जगमगाती रोशनी को महुआ ने अपने काज़ल की कोर में छुपा लिया था,कि कहीं वक्त की नज़र न लग जाए,लेकिन लाख छुपने-छुपाने के बाद भी वक्त की नज़र तो लगनी ही थी। 

                आज कितना खुशनुमा मौसम है,ऐसा लगता है,जैसे सावन का यह सुहावना मौसम दिल पर डकैती ड़ालकर ही दम लेगा।          

            लेकिन महुआ भी कहाँ इतनी कमज़ोर थी।उसने झट नम्बर डायल कर कागज़ और कलम को अपने गिरफ्त में बुला लिया और भरी बरसात में झाँक-झाँक कर ढूँढ़ने लगी,कि इस सौतन बरसात की रिपोर्ट में क्या-क्या और शिकायतें लिखूँ....... ?,कि इस सावन के मौसम ने तो जीना ही मुश्किल कर दिया है।

      "सन्न,सन्न,सन्न,सन्न,सन्न करती पवन ऐसे चल रही है,जैसे  आगोश से चम्पई ऑचल को अपने साथ उड़ा ले जाएगी और उस पर से यह बारिश की बेशर्म बूँदें तो आज पूरी तरह से ही बेईमानी पर उतर आई हैं,टिप-टिप कर ऐसे  छापें मार रहीं हैं,कि साँस तक लेना मुश्किल कर दिया है।"

       'अभी आगे कुछ सोच ही रही थी,कि घुमड़ते हुए बादलों ने जैसे चुपके से आकर उसके कान में धीरे से कहा- 

"ए सखी सुन,आज़ तू मेरे साथ चल,मुझे अपने संग ले ले,और चल हम दोनों पवन संग झूम-झूमकर गाएंगे-नाचेंगे।"

        तभी बसंती हवाओं ने जैसे सूखे पत्तों पर ताल दी हो,और वह भी वीराने में खड़-खड़-खड़-खड़ाते बज उठे,उनके साथ झिंगूर के बोल ऐसे लगने लगे,जैसे झांझ,ढोल,करताल बजा जुगलबन्दी कर रहे हों।

  बर्फ सी ठंडी हवाएं झूम-झूमकर लहराने लगी और बल-खाकर  इठलाती हुई कहने लगी-

       "देख सखी रंग-बिरंगे जो पुष्प तेरे बगिया में खिले हैं न,वह तुमको अपने सुगंधों से भरने को आतुर हो रहे हैं। 

   देख कितनी नर्म-नर्म मखमली हरी घास बिछी हुई हैं,जो तेरे चरणों को चूम रही हैं।

सखी तू उदास क्यों होती है ....... !!?, 

              हम सब तेरे ही संग-सखा हैं,हम सब भी तो सिर्फ़ इस दुनिया को कुछ रंग और संग देने ही आए हैं न।"

      "देख,मौसम कितना सुहावन हो गया है,बाग-बगीचों के आँचल में खुशियां नही समा रही है,ऐसा लग रहा है,जैसे चारों तरह धरती हरी चुनर ओढ़ ली है। सावन की बदली के इस प्राकृतिक सौन्दर्य से प्रेम कर सखी और आज 

इनसे ही अपना सोलह-श्रृंगार कर और बन जा तू भी दुल्हन। झूठा ही सही दो घड़ी तो तू भी जी ले,हम सब के संग-संग।" ****      

                            

                       7.  तरंगित संवाद 

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अगहन की ठंड में , सूरज की गर्मी से मन ही मन बातें करते हुए सेवानिवृत्त सेठ जी, अभी रिश्तों को लेकर कुछ यादें ताजा कर ही रहे थे कि अचानक फोन की घंटी  घनघना उठी... . 

     "यह किसका नंबर है.. !!?,"

स्मृतियों पर जोर देते हुए हैलो किया, तो उधर से आने वाली आवाज़ ने ठंड से ठिठुरते हुए उनके कर्ण को अपनी स्वर की गर्मी से तृप्त कर दिया।

       "हैलो, मामाजी, मैं रितेश बोल रहा हूँ। आज माँ की पुण्यतिथि है। मैं हवन करने के लिए बैठा हूँ, लेकिन कौन सा मंत्र पढूँ,यह मेरे समझ से बाहर है, प्लीज़ आप मुझे बताने की कृपा करें।"

         "यह सुनते ही सेठ जी के शरीर का तापमान बढ़ गया और फूर्ती से उठकर बोले, बेटा तू ऐसा कर, मुझे वीडियो काल कर, मैं यहाँ से मंत्रोच्चारण करता हूँ, तू वहाँ हवन करता जा।"

              " हवन समाप्त होते ही रितेश सबसे पहले अपने मामा का वही से चरण स्पर्श करता है और माफी माँगते हुए बोला- "मामा जी, मैं विदेश आकर अपने काम-काज में इतना मशगूल हो गया था, कि, पीछे पलटकर रिश्तों की तरफ देखा भी नही। 

                आज इतनी देर से परेशान होता रहा, तब जाकर आपका नंबर मिला और आपसे बात करके पूजन कार्य सम्पन्न हुआ,तब समझ आया कि विदेश में रिश्तों की कीमत पैसों से कहीं अधिक है।" ****

                     8. फैसला 

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"स्साला........।

आखिर तू अपनेआप को समझता क्या है,

औरत पैर की जूती है,जो पुरानी हो जाए तो उठाकर एक कोने में फेंक दिया,हम जैसी औरतों को तेरे जैसे दिल-दिमाग से बीमार मर्द भला क्या समझेंगे ? "

                      "तू औरतों को खिलौना समझता है न !,तो जा,जाकर खेल वैसी औरतों के साथ,मैं तुझे आजाद करती हूँ।जीवन भर धक्के खाकर,तिनका-तिनका जोड़ कर यह घर बनाई हूँ। लेकिन तूने इसे कभी घर समझा ही नही।अब मुझे भी ऐसा घर नही चाहिए,जिसकी ईंटें मुझे रोज नोचती हों।" 

         "इस रिश्ते को बचाए रखने के लिए,तेरे न जाने कितने ही सितम सहें हैं।इसलिए आज तेरी नज़रों में मैं बेचारी बनी हुई हूँ,क्योंकि तुझे खुश रखने के चक्कर में अपने मन में झांक कर नही देखा,कि हमारा मन भी मुझसे कुछ माँगता है।अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए अपने अंदर उठते हुए बवंडर को पूरी ताकत से रोकती रही,लेकिन अब उथल-पुथल मचाते हुए अपने मन को कस कर बाँध लिया है।"

                     " ला दे,कहाँ और किस कागज पर हस्ताक्षर करना हे ?,तुझे मेरी ज़ुबान से अधिक इस काग़ज़ पर भरोसा है,तो ला दे,आज तुझे यह भी करके दिखाती हूँ।मत भूल की यह एक पतिव्रता औरत की ज़ुबान है,लेकिन इसके साथ ही कान में तेल डालकर तू मेरी भी शर्त सुन ले,कि वहाँ से मन भरने के बाद फिर पलट कर भी मेरे पास मत अइओ और दिमाग से यह बात भी निकाल दे,कि अब मैं फिर पलट तेरे दरवाजे पर कभी आऊंगी।"

                 'अरे हाँ, जा-जा,नहीं आऊंगा,बहुत देखी है तेरी जैसी औरते।' 

                "औरतों को तू पानी के ऊपर तैरता हुआ कचरा समझता है न !?,तो जिन्दगी में कभी उस पवित्र जल के अन्दर स्नान करके भी देखना,जीवन सार्थक हो जाएगा।बाजारू जल से जब तू सड़ेगा,तब तुझे घर का यह पवित्र जल याद आएगा।" 

                    श्यामली बाहर बरामदे में पड़ी खाट पर लेटे-लेटे ही जागती आँखों से कोयले की तरह आज की स्याह रात काट दी और सुबह होते बिना पीछे देखे ही चुपचाप उठ कर अपने रास्ते पर चल दी। ****

                                                         

                    9. दर्द भरी दरारें 

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हे राम,तूने उसे मार दिया.......!!? 

लडखडाती ज़ुबान के साथ ही सुगना ने अपने पति के हाथ से गड़ासा छीन अपने हाथ में ले लिया। 

हाँ मार दिये,हाथ छोड़ और गड़ासा मुझे दे,नही तो तू अपराधी मानी जाएगी। 

     "हम साहुकार थे और साहुकार के तरह ही जीएंगे।चोरों की तरह मैं नही जी सकता,सो किस्सा ही खत्म कर दिया। 

            दोनों जार-जार रोते हुए बेसुध से अपने उस दिल के टुकड़े की तरफ टुकुर-टुकुर देखे जा रहे थे,जिसे बहुत अरमानों के साथ पाल-पोस कर बड़ा किए थे।वही आज कहीं मुँह दिखाने लायक नही छोड़ेगी,ऐसा तो कभी सपने में भी नही सोचे थे,तभी ठक-ठक-ठक बूटों की आवाज़ ने बाहर की तरफ देखने के लिए मजबूर कर दिया,नज़र उठाते ही खाकी वर्दी सामने खड़ी थी। 

" साहब आप यहाँ बैठो,मै सब बताती हूँ।

    हमार मर्द गलत नही है, 

    इसने तो अपने और मेरे पेट को काट-काट कर उसके हर सपने को पूरा किया था।जात-बिरादरी के मना करने पर भी इसे गाँव से निकाल कर शहर पढ़ने के लिए भेज दिया,ताकि हमें जो नही मिला,वो हमारी बेटी को मिले।कम से कम हमारी बेटी पढ़-लिख कर कुछ बन जाए।"

      तो क्या तुम कानून को हाथ में ले लोगे ?,चलो उठो कहानी मत सुनाओ।

  " साहब क्या करता ?, इसके सिवाय मेरे पास कोई रास्ता ही नही था।इसे जिन्दा रख कर भी तो मरना ही था।जात-बिरादरी वाले ताने मार-मार कर जीना मुश्किल कर देते।"

     साहब माँ-बाप मेहनत मजदूरी करके अपनी संतानों को पालते-पोसते और उनके हर सपने को पूरा करते हैं,क्या इसलिए कि  संतानें माँ-बाप के आँखों में धूल झोक कर इस हद तक गुलछर्रे उड़ानें,कि बिन ब्याही माँ बन जाएं ?, 

"मैंने ,उसको सपने पूरे करने के लिए शहर भेजा था,न कि मेरे सपनों को तोड़ने के लिए।"

" साहब,

       कोठियों में खिड़कियाँ होती हैं,उन पर रेशमी पर्दे पड़े होते हैं,लेकिन झोपड़ियों में तो सिर्फ दरारें ही होती हैं,उन दरारों की घुटन से तो यह हथकड़ी भली।" ****


                    10.क्या कहेंगे लोग 

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"आज अच्छी बातें और आदर्श तो सिर्फ़ किताबों तक ही सीमित रह गयीं हैं,जिसे देखो वही समय के साथ भागे जा रहा है।

रूकना, सोचना और पीछे मुड़कर तो कोई देखना ही नही चाहता है।" 

"पूरा जीवन यूँ ही गुजर जाता है, कि क्या कहेंगे लोग।" 

"वो लोग रहते कहाँ हैं, कौन होते हैं वो लोग...?"

"कहाँ से आते हैं वो लोग, जब पूछो तो सब मौन हो जाते हैं।"

" क्या ए लोग बंद दरवाजों के अन्दर सि-सकती आवाज़ों पर भी कभी बोलते हैं...?"

" कभी नही न,हाँ दूसरों के झरोखों में झांकने के लिए अपनी कैंची की धार जरूर तेज करते रहते हैं।"

"वो चुपचाप बैठी है,इसका मतलब यह तो नही, कि वह गलत ही है,रास्ते की गर्द से उसकी ओढ़नी जरूर मैली हो गयी है,लेकिन उसके आँचल में दाग का एक छोटा निशान भी नही है।" 

" तो फिर इन अप्रत्यक्ष लोगों की चिन्ता क्यों...?" 

"कटाक्ष है, तुम्हारे उन लोगों पर जो आधुनिकता की खोल में आज भी वही अटके हैं।" 

"कभी धर्म, कभी सम्प्रदाय तो कभी रीति-रिवाजों के नाम पर 'लोगों' के बहाने खुद के बुद्धि-विवेक को ही बाँधे रखते हैं।" 

"हाँ भाई हाँ, सही है।"

"जिस दिन हम सब स्वयं के अंदर से 'लोगों' के कहने का भय निकाल देंगे,उस दिन से ही जिन्दगी की अंधेरी रात में भी एक स्वस्थ भोर उदय हो जाएगी।

      अब कैंची हमें खुद के दिग्भ्रमित सोच पर चलानी होगी। 

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                   11. प्यार का वायरस 

                         *************


  मेहमानों को विदा कर,भूमि और आकाश भी अपने हनीमून के लिए निकल गये।चाँद-सितारे,झील-समुंद्र से रूबरू होते हुए कब समय निकल गया,पता ही नही चला।

     आज वेलेंटाइन डे के मौके पर इन वादियों से रूख़सत होने का दिन भी आ गया,दोनों बहुत खुश थे,कि अपने सपनों के महल में आज का दिन बिताएंगे।अच्छा हुआ जो हम लोग  शिपिंग मोह खत्म कर,इधर का प्लान बना लिए थे। 

    "देखो न,संक्रामित रोग के भय से कोई भी देश,उस जहाज को अपने तट पर रूकने ही नही दे रहा है,और वही का रखा भोजन खाना पड़ता।" 

   "यह वायरस भी कितना भयंकर होता है न,

इतना सूक्ष्म होते हुए भी बड़े-बड़े प्राणियों को लील लेता है।शहर का शहर चट कर खत्म कर देता है।अब उन मांसाहारियों को पता चलेगा,जो दूसरे जीव को जीव नही समझते हैं।"

"हाँ भूमि,कोई सा भी वायरस हो,ऐसा ही होता है।

चाहे वह प्रेम का हो,घृणा का हो या संक्रमण का हो।"

'चाँदनी रात में अपने चाँद को निहारते और  उसकी जुल्फों से खेलते हुए, देखो न मेरे प्यार के वायरस को,जो तुम पर अटैक करके,तुम्हारे दिल-दिमाग पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया,और आज तुम उससे घायल हो मेरी बाहों में हो,गिफ्ट के रैपर को फूल की तरह आहिस्ता-आहिस्ता खोलते हुए आकाश ने बहुत ही मधुर स्वर में कहा।, 

      'सही कह रहे हो। 

उसी प्यार के संक्रमण से तुम्हारी दंभ से भरी टेढ़ी-मेढ़ी सोच वाली नाक और भोंपू जैसी रूखी आवाज़ अब एकदम सही हो गयी।जिसकी वजह से तुम भी आज इतनी मधुर स्वर में बोलना सीख गये हो,नीली आँखों वाली शरारती भूमि ने अपने बालों में बचे हुए जल की शीतल बूँदों को आकाश के ऊपर छिड़कते हुए बोली।, 

     "दोनों एक-दूसरे की तरफ इस मधुर अंदाज से देख रहे थे,जैसे एक-दूसरे के बीमारी को जड़ से पकड़ लिए हों,जिसका इलाज सिर्फ़ प्रेम था।" ****

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क्रमांक -04


नाम : अरविंद श्रीवास्तव
साहित्यिक उपनाम : -डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
साहित्य सेवा-

हिंदी व अंग्रेजी में लिखित व संपादित पुस्तकें, गाईड्स व सीरीज 106 से अधिक ,बच्चों के लिए विद्यालय हेतु कई नाटकों का लेखन

सम्पादन : पत्रिकाओं का संपादन-4 मासिक, अर्धवार्षिक,वार्षिक पत्रिकाएं

अभिनय: डाॅक्यूमेंट्री फिल्म 'बिटिया रानी ' में महत्वपूर्ण भूमिका  ,कई नाटकों में विद्यालय स्तर पर  अभिनय
आकाशवाणी के तीन केंद्रों से संबद्धता-कहानी वाचन,आलेख वाचन,काव्य पाठ
वीडियो एल्बम-आज का वातावरण, प्रेम के रंग (काव्य पाठ)-इंदौर व मुंबई से निर्गत

सम्मान :

विदेश में : (मास्को रूस, काठमांडू तथा म्यान्मार बर्मा  में) 7 सम्मान
देश में : लोकसभा अध्यक्ष श्री* *ओमकृष्ण बिरला जी द्वारा 'साहित्य श्री ' सम्मान सहित 140 से अधिक* सम्मान ।

महत्वपूर्ण दायित्व-
  अध्यक्ष-एकल अभियान परिषद जिला-दतिया,  संरक्षक-संस्कार भारती जिला-दतिया, संयोजक-मगसम दतिया जिला,*
एवं लगभग 7 अन्य साहित्यिक व समाज सेवा से संबंधित संस्थाओं में राज्य व जिला स्तरीय शीर्ष पदभार ।

विशेष-जून 2018 में मास्को में 2पुस्तकों का विमोचन ,जनवरी 2020 में 3 पुस्तकों का विमोचन रंगून (बर्मा)में सम्पन्न  ।

पता : 150 छोटा बाजार दतिया - मध्यप्रदेश 475661


         1.संतोष का भाव 
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तलवार ने जमीन पर पड़ी हुई  सुई को उसकी तुच्छता  का आभास कराते हुए कहा-"मेरे सामने बड़े-बड़े सिर झुकाते हैं।"
 सुई ने विनम्रता से उत्तर दिया -"सही है लेकिन तुम्हें सदैव हिंसा के लिए जाना जाता है ।असंख्य लोगों के खून का दाग तुम्हारे सिर पर हैं "
तलवार यह सुनकर सोच में पड़ गई तभी काम वाली बाई ने जमीन पर पड़ी हुई सुई को उठाया और अपने फटे आंचल को सिलने  बैठ गई। 
सुई के चेहरे पर आत्मसंतोष का भाव उभर आया ।  **** 

         2. सड़क छाप बच्चे 
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आधुनिक मां ने कार से उतरते हुए बेटे को समझाया-" उन सड़क छाप गरीब बच्चों के साथ मत खेला कर ।उन्हें मत छुआ कर ।"
बेटे ने बाल सुलभ  भाव से पूछ लिया,      
  माॅम,बे बड़े प्यारे हैं ••••••मुझे  अच्छे
लगते  हैं। 
"तू चुप कर",घमंडी माँ ने कहा।
"फिर मैं किसके साथ खेलूँ?"बेटे ने दुखी मन से पूछा ।
        आधुनिका  ने गोद में लिए पपी को सहलाते हुए कहा-"तू इसके साथ खेला कर।" हैरान बालक मासूम पड़ोसी बच्चों की बजाय जानवर के साथ खेलने का  कारण समझ पाने में असमर्थ था। ****

           3.भगवान के एजेंट 
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'माया महाठगिनी हम जानी' की सुंदर व्याख्या करने वाले शास्त्री जी इस बात पर भड़क रहे थे कि यजमान ने पूजा-पाठ करवाने के पश्चात  उनकी अपेक्षा से कम दक्षिणा चढाई थी। यजमान को ईश्वर, नर्क और श्राप  का भय दिखाया तो गरीब व धर्मभीरू यजमान सोच में पड़ गया । उसने बेटी की शादी के लिए मुश्किल से जोड़े गए रुपए महाराज के चरणो में अर्पित कर दिए। 
           यह सब देखकर, कोने में खड़ी बेटी शून्य  में घूर रही थी कि उसके  बापू को ईश्वर के ऐसे तथाकथित एजेंटों से मुक्ति कैसे और कब मिलेगी ? ****
           
             4. मुहल्लावासी 
                 *********

 मुहल्ला के दोनों दवंगों  में अपने आप को बड़ा , प्रभावशाली व मुहल्ले का शुभचिंतक  सिद्ध करने की होड़ लगी रहती थी ।एक ने झंडा फहराया तो दूसरा उससे भी बड़ा डंडा और झंडा लेकर आ गया। दोनों  के गुट के लोग एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका कभी हाथ से जाने नहीं देते थे। उनकी नजरें  बार्ड मेम्बर के चुनाव में जीत  पर लगी हुई थी।शोर-शराबा और प्रचार सुबह-शाम,  दिन-रात ।
                मुहल्लावासी सोचते थे कि रात में कैसे  चैन की नींद सो सकें।
 एक सांपनाथ तो दूसरा नागनाथ ।उनके लिए 'कोऊ नृप होय  हमें का हानि ' बाली स्थिति थी। *****
 
              5.शिखर
                 ******
              
 अच्छी पढ़ाई -लिखाई के बावजूद जब समर्थ  को कोई रोजगार नहीं मिल सका तो उसने अपनी योग्यता को दूसरी दिशा में मोड़ने की बात सूची ।लोमड़ी से चालाकी,  मगरमच्छ से झूठे आंसू बहाना, गिरगिट से रंग बदलना , गेंडे से मोटी चमड़ी,कुत्ते से विरोधियों पर भोंकना और कोयल से मीठी बोली लेकर वह राजनीति में प्रवेश कर गया। अवसरवादिता के गुण ने उसे अपने दल में कम समय में ही राजनीति के शिखर तक पहुंचा दिया।अच्छे पढे-लिखे लोग हाथ जोड़े खड़े दिखाई देते है । ****
 
           6.श्रेष्ठता 
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  पत्र-पत्रिकाओं तथा भारी -भरकम            ग्रंथों के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद था ।तभी एक दुबली- पतली लेकिन चिकनी पत्रिका अकड़कर सामने आई और कहने लगी - अरे, बहस और विवाद   किस बात का?आज के युग में हर  कोई मुझे ही छूना,देखना व पढना  चाहता है ।
               अर्धनग्न सौन्दर्य व मसालेदार सामग्री सभी को आकर्षित करते हैं और यह मेरे उर में समाये है। क्या छोटे और क्या  बड़े सभी मुझ पर फिदा है । ज्ञान, रीति-नीति,नैतिकता  से ओत-प्रोत  भारी भरकम ग्रन्थ  आज के दौर में अपनी कोई जगह न पाकर  दुख महसूस कर रहे थे।ज्ञान को अनदेखा करना युग का शगल बन गया है ।****
               
                    7. खुशियां 
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गली के सूअरों  को गंदगी में भी खुश होते देख,  राम भरोसे के मन में यह प्रश्न बार-बार कोंधने लगा कि  जीवन की खुशियां उससे दूर क्यों है। घूमने- फिरने , बढ़िया खाने-पीने से लेकर मनोरंजन तक अन्य सभी उपाय दोस्तों की सलाह पर उसने आनंद पाने के लिए  अपनाए ताकि उसे  खुशियां हासिल हो सकें ।मगर सब व्यर्थ रहा ।
        थक- हारकर और निराश होकर उसने  सारे प्रयास छोड़ दिये।फिर वह एक दिन मौन  होकर बैठ गया। कुछ न करने की इस स्थिति में,मौन की अवस्था  में शांत बैठ जाने पर  मन के ठहराव ने उसे खुशियों से भर दिया ।
        निःसंदेह, आज के दौर में भाग-दौड़ के जीवन में  कुछ क्षण ठहराव की स्थिति ही  आनंद की अनुभूति देने वाली होती है। ****
        
              8. पढ़ाई 
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गांव के स्कूल में आठवीं कक्षा के एक अध्यापक ने एक छात्र को बेंत मारते हुए पूछा- रामू , तू कल स्कूल क्यों नहीं आया था ?रामू ने सिसकते हुए उत्तर दिया- माट्साब, हमाए पास एकई नेकर है बौ बड़ौ भइया कऊं पैन गऔ तो।
  अध्यापक ने जोर से एक बैंत पीठ पर जमाते हुए उसे बैठने को कहा। छात्र एक हाथ अभी भी पिछवाड़े रखे हुए था जब वह बैठने के लिए मुड़ा तो पीछे से फटी हुई निकर देख कर अध्यापक को उस गरीब छात्र की  असलियत समझ आई। उसकी आंखें भर आई और अपनी कठोरता पर ग्लानि महसूस हुई । उसने भारी मन से पढ़ाना शुरू कर दिया । ****
  
               9. हुनर
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बारह -तेरह वर्ष  के बालक ने रेल के  डिब्बे में  शरीर के नटों की तरह ऐसे-ऐसे करतब दिखाए कि सीटों पर बैठी हुई यात्री 'वाह-वाह' करने लगे। उसने मदद के लिए सबकी ओर हाथ बढ़ाया। किसी ने एक तो किसी ने दो रूपये का सिक्का  उसकी और बढ़ाया जो बिल्कुल ही नाकाफी थे। मैंने एक दस रूपये का नोट उसको देते हुए कहा- "बेटा, पढ़ाई की उम्र में यह सब क्यों?" उसकी आंखें छलछला आई ।उसने कहा-"पिताजी अब जीवित  नहीं है ।चिंता में माँ लकवा ग्रस्त हो गई है ।तीन छोटे भाई- बहनों की परवरिश तथा माँ की दवाई  के लिए पैसे कहां से लाऊं?
मुझे अपनी सलाह पर शर्मिंदगी हुई ।मुझे लगा कि शिक्षा का महत्व पेट की आग से बढकर नहीं है । ****

             10. ताकतवर 
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वैद्य जी  अपनी औषधियों की गुणवत्ता व प्रभावशीलता बता रहे थे।      
 बातचीत के क्रम में यह भी कह डाला कि आज का इंसान पचास- साठ साल पहले के इंसान से कहीं ज्यादा ताकतवर हो गया है। वहाँ  उपस्थित एक व्यक्ति को यह बात हजम नहीं हुई और पूछ बैठा-" वैद्य जी,  सो कैसे ?"
           वैद्य जी ने मुस्कुराते हुए         उत्तर दिया- "पचास-साठ साल पहले जितने रुपए का सामान एक आदमी बड़ी मुश्किल से उठाकर बाजार से घर  ला पाता था, उससे चार गुनी कीमत का सामान आज का बच्चा जेब में भरकर घर ले आता है।****
           
          11. नंगापन
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एक पुरानी कहावत है कि 'हमाम में सब नंगे '।सच्चाई तो यह है कि नंगे तो सब बाहर दिख रहे हैं ।झूठ-मूठ ही नंगों को हमाम के अंदर बताने की साजिश की गई है।
              अब तो लोग बिरोध प्रदर्शन के लिए कपड़े उतार देते हैं,नंगे हो जाते हैं  ।क्लबों में नंगे नाचते हैं।टी .वी. डिवेट व राजनीतिक मंचों पर विरोधियों को नंगा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं ।नंगेपन का महत्व इतना बढ गया है कि लोग स्वयं को नंगा कहलाने में गर्व महसूस करते हैं ।
      यह देखा जाता है कि जो जितना बड़ा नंगा, उतना सफल।मर्यादा चुपचाप किसी कोने में सिसकती दिखती है ।****
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क्रमांक - 05
नाम : डॉ विनीता राहुरीकर
शिक्षा : M.Sc. botany, M.A. drawing painting, हिंदी , D.C.H., 

अब तक विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में 200 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन। जिसमे से 70 कहानियां। 

 पराई ज़मीन पर उगे पेड़- कहानी संग्रह,
ऊँचे दरख्तों की छाँव में- कविता संग्रह
घर-आँगन, पुस्तक मित्र  बाल कथा संग्रह
Two loves of my life- अंग्रेजी उपन्यास

कविता संग्रह "रौशनी का पेड़" बोधि प्रकाशन से प्रकाशित।

उपन्यास "कर्म चक्र" विदेशी प्रकाशक द्वारा प्रकाशित।

सम्मान / पुरस्कार : 
 राष्ट्र भाषा गौरव, साहित्य श्री, साहित्य शिरोमणि, साहित्य वाचस्पति, मध्य प्रदेश भूषण, ब्रह्मदत्त तिवारी स्मृति पुरस्कार, डॉ उमा गौतम तथाश्रीमती लक्ष्मी देवी स्मृति बाल साहित्यकार पुरस्कार, शब्द निष्ठा लघुकथा सम्मान, सतीश मेहता महिला लेखन पुरस्कार, पंडित हरप्रसाद पाठक स्मृति पुरस्कार।

 यूके, यू एस ए स्थित रिकॉर्ड होल्डर रिपब्लिक संस्था द्वारा हिंदी लेखन के क्षेत्र में किये गए उल्लेखनीय योगदान हेतु एक्सीलेंस सर्टिफिकेट

भारतीय सेना पर लिखे गए उपन्यास हेतु भी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था द्वारा एक्सीलेंस सर्टिफिकेट।

कन्हैयालाल नंदन स्मृति बाल साहित्यकार सम्मान
कहानी 'पाप' तथा "फौजी की पत्नी "को पायोनियर बुक कम्पनी का सर्वश्रेष्ठ कहानी पुरस्कार।
कहानी 'पराई जमीन पर ऊगे पेड़' तथा 'तुम्हारी मंजूषा' भी पुरुस्कृत।

विशेष : 
राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय मंच का संचालन। आकाशवाणी, दूरदर्शन से रचनाओं का प्रसारण।
अंग्रेजी सहित 10-12 भारतीय भाषाओं में अनुवाद। 

पता- श्री गोल्डन सिटी
28, फेस-2 , होशंगाबाद रोड , जाटखेड़ी , भोपाल - मध्यप्रदेश
                   1. रेखाओं के भीतर
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ट्रेन अपनी पूरी गति के साथ आगे बढ़ रही थी। बहुत लंबा सफर था। कम्पार्टमेंट में बैठे चार- पाँच व्यक्ति आपस में विविध मुद्दों पर बात कर रहे थे। बात अलग-अलग विषयों से होती हुई अपने-अपने क्षेत्र की श्रेष्ठता पर आ गई और बहस में तब्दील हो गई। छठवां व्यक्ति चुपचाप बैठा सबको सुन रहा था।
जल्द ही बहस ने तीखा रूप ले लिया। पाँचों व्यक्ति अपने-अपने क्षेत्र की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए इतिहास और वर्तमान के जाने कितने ही उदाहरण प्रस्तुत कर रहे थे। कोई किसी से कम नही, कोई झुकने को तैयार नहीं। छँटवा अब भी चुप था। कुछ देर बाद बहस लड़ाई में बदलने की कगार पर खड़ी हो गई तभी एक व्यक्ति ने अपनी बाजू मजबूत करने के लिए अब तक चुप बैठे छँटवे व्यक्ति से कहा-
"आप किस राज्य के है भाई साहब। अब आप ही बताओ हम में से कौन सही है।"
चुप बैठे व्यक्ति ने एक नजर सब पर डाली और कहा "किसी भी राज्य का नहीं हूँ।"
"है? ऐसा कैसे हो सकता है। भाई बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब कहीं से तो होंगे?" पाँचों में से एक ने पूछा।
"मैं सैनिक हूँ और सैनिक पूरे देश का होता है। हम भारत माता की सीमा की सुरक्षा के लिए दुश्मन से लड़ते हैं। किसी एक राज्य के लिए नहीं। सैनिक सिर्फ भारतीय होता है, बंगाली, मराठी, तमिल या पंजाबी नहीं।" छँटवां शांति से बोला।
पाँचों के मुँह पर शर्मिंदगी सी छा गई।
"दुश्मन देश के जिस भी हिस्से पर बुरी नजर डालता है हम सब उसकी सुरक्षा के लिए चल पड़ते हैं। हम देश को लकीरों में नहीं बाँटते। याद रखिए जिस दिन कोई सैनिक बंगाली, मद्रासी, पंजाबी हो जाएगा उस दिन देश नहीं बचेगा। हम सिर्फ और सिर्फ भारतीय है तभी बाहरी दुश्मन से देश सुरक्षित है। अच्छा है आप लोग भी सिर्फ भारतीय बन जाओ तो देश भीतर से भी मजबूत बना रहेगा। वरना..."
सैनिक का गंतव्य आ चुका था। ट्रेन के रुकते ही वह नीचे उतर गया। कम्पार्टमेंट में अब एक थरथराती खामोशी थी।****

                      2.ठंड का सौदा
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"दीदी एक स्वेटर मेरी बच्ची को भी दिला दो, ठंड से कांप रही है बेचारी। भगवान तुम्हारा भला करे"
अपने पीछे एक पहचानी हुई आवाज और संवाद सुनकर मीता ने चौंक कर पीछे देखा।
"तुम, तुम्हारी बच्ची के लिए तो कल ही मैंने स्वेटर खरीद दिया था तो तुमने उसे पहनाया क्यों नहीं। ठंड में खुला क्यों रखा है। वो स्वेटर कहाँ गया?" मीता ने उस मांगने वाली पर नजर पड़ते ही पूछा। कल  भी बच्ची ठंड से ठिठुर कर रो रही थी आज भी बहती नाक के साथ आँसू बहाती हुई रो रही थी।
मीता को देख वह सकपका गयी। कुछ जवाब नहीं देते बना। 
"अरे मैडम ये तो इसका धंधा ही है। पैसे मांगे तो लोग दया करके दो-पाँच रुपये दे देते हैं इसलिए बच्ची को बिना कपड़ों के रखकर लोगों से स्वेटर माँगती है और फिर उन्ही स्वेटरों को दुबारा दुकान पर बेच देती है तो इसको इकठ्ठे ही सौ-डेढ़ सौ मिल  जाते हैं।" पास के एक दुकानदार ने बताया।
"तुम्हे शर्म नहीं आती पैसों के लिए बेचारी बच्ची को ठंड में ठिठुरा रही हो। उसे कुछ हो गया तो।" बच्ची की दशा देखकर मीता का हृदय रो पड़ा। अब उसे दुबारा स्वेटर खरीद भी दे तो उसे पहनाया तो जाएगा नहीं।
"कुछ हो भी जाए तो इसे क्या अगले साल दूसरा आ जाएगा इन लोगों की भूख का इंतज़ाम करने।" पास खड़ी एक भुक्तभोगी बोली।
"नहीं देना तो जाओ न अपने काम से।" वह उपेक्षा से बोलकर बिलखती हुई बच्ची को लेकर आगे दूसरी औरतों के पास चली गयी।
"क्या कहें ऐसे लोगों से जिनके लिए संतान बस लोगों की संवेदनाओं को ठगने का सौदा करके अपनी भूख मिटाने का जरिया भर होती है।" 
मीता का मन अभी भी उस बच्ची की ठंड से ठिठुर रहा था।*****

              3. सजा तो अब शुरू हुई है
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बच्ची के माँ-बाप न्याय के लिए गिड़गिड़ाते रह गए। लेकिन जब अपराधी की न्याय के रक्षक से गहरी दोस्ती थी तो भला मजबूर माँ-बाप न्याय तक कैसी पहुँच पाते।
लिहाजा मासूम, अबोध बच्ची से और फिर न्याय तो था ही अँधा। रक्षक हाथ पकड़कर उसे जिस ओर ले गया, न्याय उस ओर ही चल दिया।बलात्कार करने वाला बाइज़्ज़त बरी हो गया।
अपराधी और न्याय के रक्षक दोस्त ने जश्न मनाया सजा से मुक्ति का। अपराधी फिर घर की ओर चल दिया। घरवाले एक बार भी उससे मिलने नहीं आये थे। लेकिन उसे परवाह नहीं थी। जब उसने कानून की आँखों में धूल झौंक दी तो उन लोगों को भी किसी तरह मना ही लेगा।
घर का हुलिया लेकिन बदला हुआ था। बीवी बच्चे सामान बाँधकर जाने की तैयारी में थे। 
"तुम्हे सजा हो जाती तो हमारे पाप कुछ तो कट जाते। लेकिन तुम जैसे घिनोने, गिरे हुए इंसान के साथ रहना नामुमकिन है। हम कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहे। अड़ोस-पडौस सबने रिश्ते तोड़ लिए। मैं अपने बच्चों को लेकर दूर जा रही हूँ।" पत्नी उसकी सूरत तक नहीं देख रही थी। बेटे ने उसे देखते ही नफरत से थूक दिया।
बारह साल की बेटी उसकी शक्ल देखते ही भय से सहम गयी। वह बेटी को पुचकारने आगे बढ़ा तो बीवी ने गरजकर उसे वहीं रोक दिया-
"खबरदार जो मेरी बेटी को हाथ भी लगाया।" 
"मैं बाप हूँ उसका" उसने प्रतिकार किया।
"तुम बाप नहीं बलात्कारी हो। अगर बाप होते तो किसी भी बेटी का बलात्कार कर ही नहीं सकते थे। बाप कभी किसी भी बेटी का बलात्कार नहीं कर सकता। और जो बलात्कारी है वो कभी भी किसी का बाप हो ही नहीं सकता।" 
उसके हाथ ठिठक गए। जेल से बच जाने की ख़ुशी काफूर हो चुकी थी। कानून की सजा से तो वह बच गया लेकिन बेटे, पत्नी के चेहरे की नफरत और बेटी के चेहरे के डर से कोई न्याय का रक्षक उसे बचा नहीं पायेगा।
सजा तो अब शुरू हुई थी....! ****

                      4. कांपते पत्ते
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"सुनो शैली ये शर्ट काम वाली बाई को दे देना।" ऋषित ने अलमारी में से तह किया हुआ शर्ट निकालकर शैली को पकड़ा दिया।
"लेकिन क्यों? यह तो बिलकुल नया का नया है" शैली ने आश्चर्य से पूछा।
"अरे पहन लिया बहुत बस अब नहीं पहनूंगा। इसे आज ही बाई को दे देना।" ऋषित अलमारी में से दूसरा शर्ट निकालकर पहनते हुए बोला।
"अभी छः महीने भी नहीं हुए हैं तुमने कितने चाव से ख़रीदा था इसे। कितना पसन्द आया था ये शर्ट तुम्हे। तुम्हारे नाप का नहीं था तो तुमने पूरा स्टोर और गोदाम ढुंढ़वा लिया था लेकिन इसे खरीदकर ही माने थे और अब चार- छह बार पहनकर ही इसे दे देने की बात कर रहे हो।" शैली ऋषित की बात जैसे समझ ही नहीं पा रही थी। कोई कैसे इतने जतन और चाव से खरीदी अपनी पसन्द की चीज़ किसी को दे सकता है वो भी बिलकुल नयी की नयी। 
"अरे तो इसमें इतना आश्चर्य क्यों हो रहा है तुम्हे। तब पसन्द आयी थी तो ले ली। मैं तो ऐसा ही हूँ डियर" ऋषित शैली के कन्धों पर अपने हाथ रखकर बोला"जब कोई चीज़ मुझे पसन्द आ जाती है तो उसे हासिल करने का एक जूनून सवार हो जाता है मुझ पर और मैं उसे किसी भी कीमत पर हासिल करके ही दम लेता हूँ। लेकिन बहुत जल्दी मैं अपनी ही पसन्द से चिढ़ कर ऊब भी जाता हूँ और फिर उस चीज़ को अपने से दूर कर देता हूँ।" 
और ऋषित शैली के गाल थपथपाता हुआ अपना लंच बॉक्स उठाकर ऑफिस चला गया।
शर्ट हाथ में पकड़े शैली कांपते पत्ते सी थरथराती खड़ी रह गयी। कहीं ऐसा तो नहीं वह भी ऋषित का बस जूनून ही है, प्यार नहीं। वह ऋषित के अंधे मोह में बंधी अपना घर-परिवार, पति, सब कुछ छोड़ने की गलती तो कर बैठी और उसके साथ लिव इन रिलेशन में रह रही है। कल को क्या ऋषित उसे भी इस शर्ट की तरह..... ! ****

                    5.रंगविहीन
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पति की मृत्यु के महिने भर बाद शकुन ने सासु माँ और अपने दोनों बच्चों के भविष्य को देखते हुए जैसे -तैसे खुद को संभाला और पुनः ऑफिस जाने के लिए खुद को तैयार किया।
बाल गूँथने के लिए ज्यों ही आईने के सामने खड़ी हुई, बिंदी विहीन माथा, सूना गला और सफेद साड़ी में खुद को देख आँसू फिर बह निकले। कितना शौक था शशांक को उसे सजा सँवरा देखने का। चुन-चुन कर कपड़ों के खिले-खिले रँग और प्रिंट लाता था और उन्ही की मैचिंग के कड़े, चूड़ियाँ, बिंदियाँ। पिछले अठारह वर्षों के रँग एकाएक धुल गए। रंगहीन हो गया था जीवन अनायास।
तभी किसी काम से सासु माँ अंदर आयीं तो शकुन को देखकर उनकी भी आँखे भर आयी। उन्होंने तुरंत शकुन की अलमारी खोली और एक सुंदर सी, शशांक की पसन्द की साड़ी निकाली और शकुन को देते हुए बोली--- 
"मेरा बेटा तो चला गया। पर जब जब मैं तुम्हारा रंगहीन रूप देखती हूँ तो मुझे अपने बेटे के न रहने का अहसास ज्यादा होता है। इसलिये तू जैसे सजकर इस घर मे आयी थी, हमेशा वैसे ही सजी रह। तुझे पहले की तरह सजा सँवरा हँसता खेलता देखूंगी तो मुझे लगेगा मेरा बेटा अब भी तेरे साथ ही है। और तुझे भी उसकी नजदीकी का अहसास बना रहेगा।" 
ड्रेसिंग टेबल से एक बिंदी लेकर उन्होंने उसके माथे पर लगा दी। 
साड़ी को अपने सीने में भींचे आँखों मे आँसू होने के बाद भी दिल मे एक तसल्ली का भाव तैर गया, शशांक के साथ होने का अहसास भर गया। रँगविहीन नहीं है उसका जीवन , शशांक की यादों का रंग हमेशा उसके अस्तित्व में खिला रहेगा। 
वह सासु माँ के गले लग गयी। बहुत कम उम्र से ही सफेद रंग में कैद सासु माँ ने लेकिन शकुन के जीवन को रँगहीन नहीं होने दिया।****

               6. इतिहास दोहरा रहा है
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"इतना सब देने की क्या जरूरत है। बेकार फिजूलखर्ची क्यों करना। और आ रही है तो कहो कि टैक्सी करके आ जाये स्टेशन से।" बहन के आने की बात सुनकर अश्विन भुनभुनाया।
"जब घर में दो-दो गाड़ियाँ हैं तो टैक्सी करके क्यों आएगी मेरी बेटी। और दामाद जी का कोई मान सम्मान है कि नहीं। ससुराल में उसे कुछ सुनना न पड़े। मैं खुद चला जाऊंगा उसे लेने, तुम्हे तकलीफ है तो रहने दो।" पिता गुस्से से बोले।
"और ये इतना सारा सामान का खर्चा क्यों? शादी में दे दिया न। अब और पैसा फूँकने से क्या मतलब।" अश्विन ने बहन बहनोई के लिए आये कीमती उपहारों की ओर देखकर ताना कसा।
"तुमसे तो नहीं माँग रहे हैं। मेरा पैसा है, मैं अपनी बेटी को चाहे जो  दूँ। तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या जो ऐसी बातें कर रहे हो।" पिता गुस्से में बोले।
"चाहे जब चली आती है मुँह उठाये।" 
"क्यों न आएगी। इस घर की बेटी है वो। ये उसका भी घर है। जब चाहे जितने दिन के लिए चाहे वह रह सकती हैं। बराबरी का हक है उसका। तुम्हे हो क्या गया है जो ऐसा अनाप-शनाप बोल रहे हो।" 
"मुझे कुछ नही हुआ है पिताजी। आज मैं बस वही बोल रहा हूँ जो आप हमेशा बुआ के लिए बोलते थे। अपनी बेटी के लिए आज आपको बड़ा दर्द हो रहा है लेकिन कभी दादाजी के दर्द के बारे में नहीं सोचा। कभी बुआ की ससुराल और फूफाजी के मान-सम्मान की बात नहीं सोची। "
पिता आवाक रह गए।
"दादाजी ने कभी आपसे एक ढेला नहीं मांगा वो खुद आपसे ज्यादा सक्षम थे फिर भी आपको बुआ का आना, दादाजी का उन्हें कुछ देना नहीं सुहाया। बराबरी का हक तो आपकी बेटी से भी पहले बुआ का है इस घर पर।" अश्विन अफसोस भरे स्वर में बोला।
पिता की गर्दन नीची हो गयी।
"आपके खुदगर्ज स्वभाव के कारण बुआ ने यहाँ आना ही छोड़ दिया। दादाजी इसी गम में घुलकर मर गए। जा रहा हूँ स्टेशन। मुझे खुशी है कि मैं आपके जैसा खुदगर्ज भाई नहीं हूँ।" कहते हुए अश्विन कार की चाबी उठाकर स्टेशन जाने के लिए निकल गया।
पिता आसूँ पौंछते हुए अपनी बहन को फोन लगाने लगे।
दीवार पर लगी दादाजी की तसवीर जैसे मुस्कुरा रही थी।
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                   7. बर्फी की मिठास
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"ये तिल लाया हूँ। बर्फी बना लेना।" अरविंद ने तिल का पैकेट रखते हुए कहा।
"मुझे कहाँ आती है बर्फी बनाना। प्रसाद के लिए बाजार से बनी बनाई ले आते, झंझट खत्म।" मीरा खीज कर बोली।
"क्या करूँ दुकानदार ने जबरन पकड़ा दिए। इंटरनेट पर देख लेना बहुत सी विधियाँ मिल जाएँगी बर्फी बनाने की। इंटरनेट सबका गुरु है।" अरविंद बोला और ऑफिस के लिए निकल गया।
मीरा ने तीन-चार विधियाँ देख लीं लेकिन कुछ समझ नहीं आया। ठीक नहीं बनी या बिगड़ गई तो तिल बेकार हो जाएंगे। तभी पड़ोस की काकी का ध्यान आया। काकी से पूछकर बनाउंगी तो बिगड़ने पर पूछ तो पाऊँगी कि अब क्या करूँ। पर आज तक तो कभी उनके पास जाकर बैठी नहीं अब अपने काम के लिए जाना क्या अच्छा लगेगा। लेकिन कोई चारा नहीं था तो पहुँच गयी।
"अरी बिटिया आओ-आओ।" काकी उसे देखते ही खिल उठी।
"वो काकी मुझे तिल की बर्फी बनानी थी। क्या आपके पास समय होगा जरा सा" मीरा ने संकोच से पूछा।
"हाँ क्यों नहीं बिटिया अभई चलकर बनवा देत हैं। उ मा कौन बड़ी बात है।" 
काकी सर पर पल्लू देती हुई तुरंत चली आयी मीरा के साथ। तिल की बर्फी बनाते हुए तिल के और भी न जाने कितने व्यंजन और यादें सुना दी काकी ने। मीरा देख रही थी कि काकी अनुभव और ज्ञान का जैसे खजाना है और वो अब तक पड़ोस में रहते हुए भी इस खजाने से वंचित रही। काकी से बात करते हुए कितना कुछ सीख सकती थी वो अब तक। 
 जरा सा अपनापन और मान देते ही स्नेह का झरना फूट पड़ा उनके हृदय से। आभासी गुरु में यह स्नेह, यह आत्मीयता कहाँ मिलती है भला। 
"ये लो बिटिया। बन गई तोहार तिल की बर्फी।" उनके पोपले मुँह पर प्रसन्नता और संतुष्टि थी। 
मीरा चकित थी दूसरे की मदद करके इतनी खुशी भी हो सकती है किसी को। 
"अब आप आराम से बैठिए काकी। मैं चाय बनाती हूँ। कितना कुछ सीखना है आपसे अभी।" 
काकी के पोपले मुख पर छाए स्नेह के भावों की मिठास ने मीरा को तृप्त कर दिया। ****

                       8. दो मीठे बोल
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ज्योति रसोईघर में गयी तो देखा छोटी ने मेथी काटकर रखी थी। और दिन होता तो वो उपेक्षा से मुँह फेर लेती। छोटी का कोई काम उसे पसन्द नहीं आता। देवरानी नहीं वो प्रतिद्वंद्वी लगती थी ज्योति को। लेकिन आज अम्मा की थोड़ी देर पहले कही बात याद आ गई
"मीठे बोल बोलने में कानी कौड़ी खर्च नहीं होती लेकिन बदले में स्नेह, सम्मान की अनमोल दौलत मिल जाती है। क्या जाता है अगर छोटी की कभी तारीफ कर दो काम की।" 
ज्योति ने व्यंग्य से मुँह तिरछा किया "समुंदर में कितनी भी चीनी घोल दो तब भी वो रहेगा खारा ही। छोटी क्या कम है ताने मारने में" लेकिन क्या फर्क पड़ता है आज देखती हूँ, अम्मा को भी तसल्ली हो जाएगी कि छोटी खारा सागर है, मीठी नदी नहीं।
"अरे वाह, कितनी बारीक और एक जैसी मेथी काटी है तुमने छोटी। मैं तो इतनी बारीकी से काट ही नहीं पाती।" ज्योति स्वर में ऊपरी मिठास भर कर बोली।
क्षण भर छोटी सोचती रही कि आज उल्टी गंगा कैसे बह रही है लेकिन प्रत्युत्तर तो देना ही था "काटने में कौन खूबी है जीजी, सब्जी में स्वाद तो आपके ही हाथ से आता है। मैं तो इतनी स्वादिष्ट सब्जी बना ही नहीं पाती।" 
छोटी से अपनी तारीफ सुनकर ज्योति का मन जरा नरम हुआ "अरे नहीं, बेसन गट्टे की सब्जी में तो तुम्हारे जैसा स्वाद और कहीं नहीं मिलता।"
छोटी भी भला कहाँ पीछे रहने वाली थी "वो तो आपके हाथों की बनी मिस्सी रोटी का कमाल होता है जीजी।" 
और दो मीठे बोल हंडिया भर खीर की मिठास भर गए दोनों के मन में।
अंदर के कमरे में बैठी अम्मा दोनों की बातें सुनकर मुस्कुरा दी "चम्मच भर शक्कर से सागर भले ही मीठा न हो पाए, लेकिन मन जरूर मीठा हो जाता है।" ****

                         9. रंगमंच
                             ******

हाथ-पैर जोड़ती दीपा रोते हुए गिड़गिड़ाते जा रही थी लेकिन रमेश का हाथ नहीं रुक रहा था। धुंआधार गालियाँ देता हुआ वह उस पर लगातार डंडे बरसाए जा रहा था।बस्ती के सभी लोग अपने अपने काम में व्यस्त थे। वहाँ के रंगमंच पर यह तो आये दिन का दृश्य था। दो-एक लोगों ने दबी जबान से एखाद बार रमेश को -
'अरे अब बस भी कर'
'जाने दे अब...' जैसे जुमले कहे और इधर-उधर हो लिए।
औरतें क्या कहती, वे भी पिटती रहती हैं अपने पतियों से। पुरुष क्या कहते कल को वो भी शराब पीकर, शराब के लिए और पैसों की मांग करके अपनी औरतों को पीटेंगे।
कि तभी रमेश का डंडा गलती से पास में सोए कुत्ते भूरे पर पड़ गया। नींद में पहले तो दर्द के मारे भूरा बिलबिलाकर जोर से किंकियाया, फिर रमेश के हाथ मे डंडा देख, सारा माजरा समझ कर दाँत निपोरकर गुर्राया और रमेश के पैर में जोर से काट खाया।
दर्द से कराहते रमेश के हाथ से डंडा छूट गया। दीपा कभी रमेश को देखती कभी भूरे को।दीपा भले ही भूरे को कितना ही डांट ले मार ले लेकिन आज तक भूरे ने उसपर कभी पलटवार तो क्या गुर्राया तक नहीं। वह उसकी खिलाई रोटियों का मान रखते हुए पूँछ दबाए चुपचाप खड़ा रहता। जानवर भी अपना पेट भरने वाले से स्वाभाविक प्रेम रखता है। लेकिन रमेश जैसे मनुष्य.....
दीपा ने डंडा हाथ में उठाया और तड़ातड़ रमेश पर बरसाने लगी- 
"तेरे से तो एक जानवर ज्यादा वफादार है। कान खोलकर सुन ले मैं अपना कमाती हूँ तेरा दिया नहीं खाती कि मार सहूँ। आज के बाद हाथ उठाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। चुपचाप पड़ा रह नहीं तो अपना रास्ता नाप। मुझे तेरी गरज नहीं है।" 
बस्ती के लोग अपना काम छोड़कर आसपास जमा हो गए। उस रंगमंच पर यह एक नया औऱ अप्रत्याशित दृश्य विधान था। 
पुरुषों के माथे पर पसीना छलछला आया, वहीं स्त्रियों के कसे हुए जबड़े और तनी मुठ्ठियाँ उनमें एक नए आत्मविश्वास का संचार कर रही थीं।****

                   10.शौक और पेट
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आज गाड़ी जैसे ही चौराहे तक पहुँची सिग्नल लाल हो गया। अब पूरे पचहत्तर सेकंड रुके रहो। तुरन्त ही आसपास छोटा-मोटा सामान बेचने वाले इकठ्ठा हो गए। कोई अखबार, कोई गुब्बारे, कोई की रिंग, पेन बेच रहा था। दुनिया भर का बाजार सिग्नल पर खड़ी गाड़ियों के आसपास सज हो गया। विभा की कार की खिड़की पर एक वेणी बेचने वाली ने दस्तक दी। ताजे मोगरे की सुवास से गाड़ी महमहा गयी। 
"एक वेणी ले लो दीदी, बस बीस रुपये की है। एकदम ताजे फूल हैं दो दिन तक खराब नहीं होंगे।" एक वेणी आगे करके वह बोली।
विभा ने अक्सर देखा था उसे चौराहे पर वेणी बेचते हुए। लम्बे, घने, काले बाल थे उसके जो बेतरतीब चोटी में बंधे रहते। विभा को ईर्ष्या होती उसके बाल देखकर। यहॉँ तो इतना तेल, शैम्पू, स्पा करवाकर भी बाल कँधे से आगे बढ़ ही नहीं रहे। वेणी लगाने को तो ऐसे बाल होने चाहिए।
बीस रुपये देकर वेणी लेते हुए विभा से रहा नहीं गया पूछ बैठी- 
"तुम्हे कभी वेणी लगाए नहीं देखा। इतने सुंदर बाल हैं तुम्हारे। तुम्हे शौक नहीं है वेणी लगाने का?" 
"शौक तो पैसे वालों के होते हैं दीदी, हमारे पास तो बस पेट होता है।" कहते हुए वह तेजी से दूसरी कार की ओर बढ़ गई। ****

                    11. माई का नेटवर्क
                          *************

अपनी कोठरी में लेटी माई करवटें बदल रही थी लेकिन आँखों में नींद आ ही नहीं रही थी। आए भी तो कैसे। बबुआ कब से रोए जा रहा था। यूँ तो घर और जगह बदल जाने पर बच्चों को नींद नहीं आती। लेकिन दिन भर तो अच्छा रहा बबुआ। जरा नहीं रोया। 
इधर रीमा और राकेश परेशान थे। डेढ़ साल के आदी को रोज सोते समय यू ट्यूब पर गाने सुनने की आदत थी। गाने सुनते, वीडियो देखते हुए ही सोता था वो रोज। अब गाँव मे अभी नेटवर्क ही नहीं है तो इंटरनेट बंद है। राकेश घर के कोने-कोने में घूमकर देख रहा था कि कहीं तो नेटवर्क मिल जाए। लेकिन न नेटवर्क मिल रहा था न आदी का रोना बंद हो रहा था। रीमा और राकेश उसे सम्हालने में पसीना-पसीना हो गए थे।
माई से अब रहा नहीं गया। उठकर बाहर आ गईं।
"का हुआ बचुआ, बबुआ काहे इतना रोवत है? नई जगह पर नींद नहीं आ रही का?"
"नहीं माई। बबुआ को गाने सुनते हुए सोने की आदत है। अब इहाँ नेटवर्क ही नहीं तो..." राकेश ने बताया।
"अरे तो सुना दो गाना, सो जाएगा।" माई बोली।
"माई इसे मोबाइल पर ही सुनने की आदत है। आप सो जाइये, परेशान मत होइए। कुछ देर में आ जाएगा नेटवर्क।" रीमा बोली।
"मुझे दे, अभी लोरी गाकर सुला देती हूँ।" माई ने हाथ बढ़ाया। पहली बार तो पोता गाँव आया है उस पर भी नींद न आने से इतना रो रहा। माई का मन भावुक हो गया।
रीमा, राकेश ने बहुतेरा समझाया कि आदी नहीं मानेगा पर माई नहीं मानी और उसे लेकर अपनी कोठरी में चली गयी।
कुछ ही देर में आदी के रोने की तेज आवाज शांत हो गई। रीमा-राकेश ने उत्सुकतावश कोठरी में झांककर देखा। माई लोरी गुनगुनाते हुए आदी को थपक रही थी और वह माई के झुर्रीदार हाथों की लटकी त्वचा से खेलते हुए उनींदा हो रहा था। थोड़ी ही देर में वह सो गया।
"भले ही सारे नेटवर्क चलें जाए लेकिन माई की ममत्व भरी लोरी कभी ऑउट ऑफ नेटवर्क नहीं हो सकती" राकेश ने धीमे से रीमा से कहा। 
"मैं भी माई से यह लोरी सीख लूँगी ताकि आगे कभी भी आदी की नींद को नेटवर्क के भरोसे न रहना पड़े" रीमा ने मुस्कुराते हुए कहा।****
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क्रमांक -06
नाम: वंदना पुणतांबेकर लेखिका,समाजसेवी

जन्म:5 सितम्बर ग्वालियर मध्यप्रदेश

शिक्षा: स्नाकोत्तर फ़ैशन डिजाइनिंग डिप्लोमा कोर्स, आई म्यूज सितार

साहित्यिक अभिरुचि:
हिंदी भाषा मे लेखन
लघुकथाएं, कहानियां,कविताएं, बाल साहित्य ,लेख, हायकू।

विभिन्न पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पेपर में रचनाओ का प्रकाशन

इंदौर समाचार ,अक्षर विश्व ,हरियाणा प्रदीप जनवाणी,हिंदी भाषा.कॉम,ईकल्पना, रचनाकार,साहित्य समीर दस्तक,हिन्दी प्रतिलिपि, स्टोरी मिरर,प्रदेश वार्ता,पवनपुत्र आदि में प्रकाशित कहानियां,लघुकथाएं, एवं  कविताएं।

इंदौर लेखिका संघ की सदस्य,
स्तंभ लेखक मालवा प्रान्त की सदस्य
सम्मान:
2018 में भाषा सहोदरी दिल्ली द्वारा,2018 में सम्मान
जून 2019 में अंतरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन  शुभ संकल्प द्वारा सम्मान
2019 में अग्निशिखा गौरव सम्मान
2019 में विश्व हिन्दी लेखिका संघ द्वारा सम्मान तथा
भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा सम्मान

पता-वंदना पुणतांबेकर
63 , जल एनक्लेव सिल्वर स्प्रिंग बाय पास रोड , इंदौर - मध्यप्रदेश

                            1. व्यथा
                                *****

हर तरफ़ बाजारों में सूनापन बिखरा पड़ा था. ना जाने यह कोरोना महामारी कब तक जाएगी.65 वर्षीय रघुनाथ जी खिड़की से आती शांत बयार को महसूस कर रहे थे.सभी साजो सामान होते हुए भी आंखों  नमी लिए थी वह खिड़की के बाहर शून्य नजरों से झांक रहे थे.
रसोई से आती दाल की खुशबू अचानक उनके मस्तिष्क को तरोताजा कर गई.
वरुण अकेला विदेश में बैठा लॉकडाउन में फंसा हुआ था.वहां पर वरुण भारतीय खाने का स्वाद और माँ के हाथों का खाना खाने के लिए तरस रहा था.
तभी वीणा के भराई हुई.आवाज उन्हें सुनाई दी.." चलो खाना खालो..., रघुनाथ जी खाने की थाली देख सोचने लगे. काश.... आज वरुण यहां होता... वरुण के पैसों से सजा घर देखकर उनकी आंखें भर आई. आज विदेश भेजने का दर्द उनकी आंखों में साफ नजर आ रहा था । ****          

                        2. अनाथ

                             *****

सुरेश बाबू सुबह का अखबार लिए बैठे थे।जैसे ही एक समाचार पर उनकी नजर पड़ी।वह स्तब्ध रह गए।
तभी उनके कानों में घर के सदस्यों की आवाजें सुनाई  देने लगी। सुबह की कवायद शुरू हो चुकी थी।अदरक से बनी चाय की महक पूरे घर में महक रही थी।अपने कमरे में बैठे वह चाय का इंतजार कर रहे थे।उनका प्याला हमेशा ही  आखिर में आता।घर की बहुओं ने घर की परंपराओं और रिवाजों को अपने सुविधानुसार  बदल दिया था। वह हमेशा यहीं सोचते रहते। जीते जी अपनी इतने वर्षो की संजोई हुई संस्कारो की पूंजी को बिखरता देख उन्हें बहुत दुख होता।
अपने  बनाये हुए महल में अपने ही कमरे में पड़े रहते। कभी किसी काम के विषय में बोलने से पहले ही बहूएं उन्हें टोक देती कहती-"बाबूजी आप तो रहने ही दो,हम हमारा देख लेंगे।सुरेश बाबू अपने मन की व्यथा किसी से कह नहीं पाते।अखबार की खबर पढ़ते ही उनकी आँखें सजल हो गई।आज अखबार में उसी आश्रम की खबर छपी थी।अनाथों को सहारा देने वाला कन्धा आज छूट गया था।आज सारे रिश्तो के होते हुए भी वे पहले की तरह अनाथ ही थे। ****

                         3. महल
                              ****

अनिल बाबू का सामाजिक रुतबा बहुत था।सभी सोसाइटी के लोग उनके वैभव और शाम को देख कर दंग रह सलाम ठोकते। घर तो मानो जैसे किसी फाइव स्टार होटल से कम नहीं था। वह अपनी बुद्धिमत्ता पर सदैव गर्वित रहते। कल अचानक एक के बाद एक फोन आता देख। विभा पूछ बैठी- "क्या बात है, तुम कुछ परेशान दिख रहे हो..., कुछ समस्या हो गई क्या...? अनमने ढंग से... "नहीं! अचानक अलमारी से कुछ कपड़े निकाल तत्काल प्लेन का टिकट ऊंचे दामों में खरीद रातों-रात अनिल बाबू निकल गए। विभा मौन  मूरत बनी ठगी सी उन्हें जाते देख रही थी। सुबह अलसाए मन से अखबार उठाकर अंदर आई तो देखा। बड़े-बड़े अक्षरों में अनिल बाबू का नाम और फोटो देख पांव के नीचे की जमीन खिसक गई।"जमीनों के सौदागर पर सरकार की नकेल" अब तक सारी कॉलोनी के लोगों उन्हें सलाम ठोकते थे।अब वही नजरें उन्हें घूर रही थी। गरीबों के हक छीनकर बनाया गया महल विभा को सीलन भरी कोठरी का एहसास करवा रहा था। और मानो जैसे कानों में गरीबों की बद्दुआओं के स्वर चीख-चीख कर उन्हें शापित कर रहे थे। ****

                     4. स्वाभिमान

                          ********


6 वर्षीय राहुल सुबह से पिचकारी की रट लगाए था।पिता के पैरों पर चढ़ा प्लास्टर देख वह बोल पड़ा- पापा मुझे आज ही और अभी ही पिचकारी चाहिए, नहीं तो मैं आपसे बात नहीं करूंगा।पिता की शारीरिक और आर्थिक मजबूरी देख कर भी राहुल जिद पर अड़ा रहा।
मां बार-बार समझाकर हार चुकी थी।आखिर मां पांव में चप्पल डाल बाहर की ओर निकल पड़ी। वह चलते-चलते मंदिर के पास रुक गई।मां को बाहर जाता देख राहुल भी चिंतित हो उसके पीछे भागा। मोहल्ले में रंगों का खेल जोरों पर था। सभी और ढोल-ताशे बज रहे थे। बच्चों की टोलियां झूम-झूम कर रंग उडाती हुई अपनी खिलखिलाती हंसी बिखेर रही थी। राहुल मां का हाथ पकड़कर बोला-मां तुम यह क्या कर रही हो मंदिर में भीख मांगने आई हो..? मां आंखों में आंसू लेके बोली- तू सब जानता है, फिर भी समझता नहीं.., इसीलिए तेरी जिद पूरी करने के लिए यहां आई हू।
नहीं-नहीं, मां.., मैं तो बिना पिचकारी के रंग खेल लूंगा,आप तो घर चलो। आज वह अपनी जिद छोड़ मां का हाथ पकड़ घर ले आया।
आज स्वाभिमान का रंग राहुल पर चढ़ चुका था। हालातों से समझौता करते हुए आटे का हलवा खाकर राहुल खुश हो गया। और रंगों से सराबोर हो रही बच्चों की टोली में शामिल हो गया। उसकी चेहरे पर एक अजब सी खुशी  देखकर पिता पलँग पर लेटे-लेटे उसे देख रहे थे।राहुल मुस्कुराते हुए पिता की और देख रहा था। स्वाभिमान का गुलाल राहुल के गालों को गुलाबी कर रहा था।***

                       5. रिश्तों का मोह
                           ***********


केदारनाथ ने जमनी को आवाज लगाते हुए कहां-जमली आज सुबोध मुझे लेंगे आ रहा हैं, कमरे का सारा सामान तू ले जाना।अब मुझे इसकी कोई जरूरत नहीं...।जमली चहक कर.. अच्छा!बाबूजी आपके पुण्य काम आए,नहीं तो आज के बच्चें माँ बाप की सुध कहां लेते हैं। कहकर जमनी फटाफट काम निपटाकर कमरें के समान का निरीक्षण लगी।
सुबोध के आने पर केदारनाथ का उत्साह दोगुना हो गया।लेकिन सुबोध के चहरे पर समय के उतार-चढ़ाव को देख केदारनाथ पूछ बैठे-"क्या बात है..बेटा? कुछ ज्यादा ही परेशान नजर आ रहे हो.?वो...वो...कुछ नहीं बाबूजी बस...यूहीं..।
"बोल दे बेटा,बचपन से तुझे जानता हूं।मुद्दे की बात पर हमेशा तेरी जुबान लड़खड़ाती हैं। वो बाबूजी मैं आपको नहीं ले जा सकता!थोड़ी फाइनेंशियल प्रॉब्लम आ गई हैं।लेकिन बेटा मेरा तो कोई  विशेष खर्चा भी नहीं हैं,अब तो तुम्हारें कहने पर सारी संपत्ति तुम्हारें नाम कर दी हैं,तुम तो हमेशा कहते थे कि मझे पैसा नहीं आपका आशीर्वाद चाहिए।फिर भी तुम्हारी पत्नी के कहने पर तुम्हें समय रहते सब कुछ दे दिया तो फिर ऐसा क्यों? बाबूजी वो नलिनी की माँ कुछ दिनों के लिए आई हैं....।
जमनी और केदारनाथ कमरें के सामान को निहार रहे थे।जमनी की उम्मीदों पर पानी फिर चुका था।और केदारनाथ के रिश्तों का मोह आँखों से गिरते आंसुओ के साथ गलने लगा।****
 

                      6.  जिद
                           ****

गर्मी की छुट्टियां लग चुकी थी।वैभव के मम्मी पापा जॉब करते थे। तो वैभव अपनी बड़ी दीदी के साथ घर में अकेला रहता।उसे बचपन से ही क्रिकेट खेलना पसंद था।लेकिन अभी इन दो तीन सालों में वह सारा दिन मोबाइल पर गेम खेलने की जिद्द करता। तंग आकर एक दिन वैभव की दीदी ने मां से उसकी शिकायत कर दी। वैभव अभी12 साल का था। टी.वी पर सावधान इंडिया जैसे शो देखना उसे बहुत पसंद थे। मम्मी से मोबाइल,गेम खेलने के उद्देश्य मांगता और यूट्यूब पर मनपसंद फिल्मी गाने देखता। इस तरह 12 साल की उम्र में 22 साल के लड़के जैसे उसके तेवर हो गए थे।उसका बचपन कही खो सा गया था।ऊँची आवाज में बोलना अपनी हर जिद मनवाना उसकी मां हमेशा उसकी बातों का समर्थन करती।
एक दिन गुस्से में उसकी दीदी ने टीवी बंद कर दिया और मोबाइल भी उसके हाथ से छीन लिया।तो गुस्से में वैभव ने अपना इतना सिर पटक लिया।मजबूरन उसे मोबाइल देना पड़ा। वैभव का गुस्सा अब उसकी जीत बन चुका था। वह अपनी हर जिद्द पूरी कराना चाहता था।उसके मम्मी- पापा को समझ नहीं आ रहा था। कि वह ऐसा क्यों कर रहा है।उसकी दीदी जानती थी।यह सब टी.वी और मोबाइल की वजह से उसका स्वभाव जिद्दी हो गया है। एक दिन उसके दीदी ने उसे प्यार से समझा कर उसे अपने साथ क्रिकेट खेलने को मना लिया। वह उसका सारा ध्यान टीवी मोबाइल से  हटा कर दूसरी ओर लगाना चाह रही थी। आखिरकार उसकी जीत हुई, धीरे धीरे वह क्रिकेट खेलने लगा। और टीवी मोबाइल से दूर होता चला गया। इससे उसका शारीरिक और मानसिक दोनों का विकास हुआ। थोड़ा बड़ा होने पर उसे बात यह अच्छी तरह समझ आ गई। कि टीवी मोबाइल हानिकारक वस्तुएं हैं। इसे एक लिमिट ही इस्तेमाल करना चाहिए।अन्यथा इसकी आदत हानिकारक भी हो सकती है।वैभव में बदलाव देखते हुए उसकी मां ने दीदी की सराहना की और उसे कहा,"इसी सोच कि हमारे समाज में आज बहुत आवश्यकता है। वैभव की दीदी अपने सही निर्णय ओर जीत पर मुस्कुरा उठी।आज के समय में हर घर में वैभव की दीदी जैसे भाई,-बहन होना चाहिए।****
        

                           7. थीम
                                ***

आज सरला ने किटी थीम वेस्टर्न गाउन रखी थी।सभी अधेड़ उम्र की हाई प्रोफाइल महिलाओं की किटी उनके गमों को भुला कर कुछ पल जीने का जरिया सोने के पिंजरे में कैद बुलबुल की तरह झटपटाती बेताबी से किटी का इंतजार करती।
सरला के यहां सभी का आना चालू था। सरला अपनी सहेलियों को गाउन में देख मन ही मन मुस्कुरा उठी।किटी मेंबर के फोटो ले उन्हें चने के झाड़ पर चढ़ाने लगी। सभी एक दूसरे की प्रतिद्वंदी बनकर आई थी।किटी की थीम तो एक बहाना था।अपनी बेटी दिशा के बुटीक से सामान बिकने का उसका धेय था। दिशा मां की कुशाग्र बुद्धि को देख अगले महीने की थीम क्या रखनी है।वह आज ही डिसाइड हो जाए। इसी उहापोह में लगी थी। मां ने धीरे से आँख दबाते हुए धीरज रखने को कहा। ****

      

                        8. जहर

                            *****

आज सुबह का अखबार सुर्खियां लिए हुए था। देसी जहरीली शराब पीने से सात लोगों की मौत...! चंद्रबाबू ने  खबर पढ़ आँखें  चौड़ी कर दी और जोर से बोल पड़े- "क्या घोर कलयुग आ गया है, जिधर देखो उधर अपराध और लूटमारी फैली हुई है। अब लोग इतने गिरे स्तर पर भी काम कर सकते हैं। कि बिचारे कामगार मजदूर सुबह शाम की थकान मिटाने के लिए शराब पिये तो उसमें भी ज़हर...?  तभी  बाहर से भूरी संदेश लाई बोली- "मालकिन आज लल्ली नहीं आ सकेगी उसका घरवाला चल बसा...। "कैसे...! कल तक तो भला चंगा था। क्या हुआ उसे अचानक सुधा  ने विस्मय नेत्रों से पूछा..।वो रात कुछ ज्यादा दारू ज्यादा पी गया था।उसी वजह से तबीयत बिगड़ गई। तभी फोन की घंटी घनघना उठी।  दूसरी तरफ से आवाज आई कल ज्यादा बारिश होने के कारण सारा माल इसी शहर में आपके इलाके में ही उतार दिया था। चंद्रबाबू जोर से चिल्लाए रास्ते में तो नहीं बेचा..., पूरा पैसा लूंगा चाहे कहीं भी उतार। सुधा के कानों पर पड़े चंद्रबाबू के स्वर उसके अंतर्मन को छलनी कर गए।****
          

                          9. पुनरावृत्ति
                               *********

अभय और अजय का लगातार संवाद चालू था। मां की नम आंखें बार-बार कभी बच्चों को तो कभी अपने पति की ओर देख रही थी। संवाद जोर पकड़ रहे थे। बच्चे अपने पिता से संपत्ति के बंटवारे को लेकर ऊंची आवाज में संवाद कर रहे थे। विमला ने पति को देखकर कहा- "कहां इस उम्र में टेंशन ले रहे हो, स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा, दे दुआ के अलग करो, वे भी जिए और हम भी।आज इस पुनरावृत्ति को देख वह खामोश थे। ****

                           10. अनाथ
                                  *****

सुरेश बाबू सुबह का अखबार लिए बैठे थे।जैसे ही एक समाचार पर उनकी नजर पड़ी।वह स्तब्ध रह गए।
तभी उनके कानों में घर के सदस्यों की आवाजें सुनाई  देने लगी। सुबह की कवायद शुरू हो चुकी थी।अदरक से बनी चाय की महक पूरे घर में महक रही थी।अपने कमरे में बैठे वह चाय का इंतजार कर रहे थे।उनका प्याला हमेशा ही  आखिर में आता। घर की बहूओं ने घर की परम्पराओं ओर रिवाजों को अपने सुविधानुसार बदल दिया था।वह हमेशा यहीं सोचते रहते। जीते जी अपनी इतने वर्षो की संजोई हुई संस्कारो की पूंजी को बिखरता देख उन्हें बहुत दुख होता।
अपने  बनाये हुए महल में अपने ही कमरे में पड़े रहते। कभी किसी काम के विषय में बोलने से पहले ही बहूएं उन्हें टोक देती कहती-"बाबूजी आप तो रहने ही दो,हम हमारा देख लेंगे।सुरेश बाबू अपने मन की व्यथा किसी से कह नहीं पाते।अखबार की खबर पढ़ते ही उनकी आँखें सजल हो गई।आज अखबार में उसी आश्रम की खबर छपी थी।अनाथों को सहारा देने वाला कन्धा आज छूट गया था।आज सारे रिश्तो के होते हुए भी वे पहले की तरह अनाथ ही थे। ****
         

                        11. आग
                               ****

किसान आंदोलन में सब तरफ़ अपने अधिकारों को लेकर राजमार्ग रोके जा रहे थे। आगजनी, तोड़फोड़ आए दिन आंदोलन का हिस्सा बना हसिया भी सुबह के लिए बोरे में कुछ जलावन का सामान इकट्ठा कर लाया था। शायद दूसरे दिन के आंदोलन की तैयारी थी।घर के सारे अनाज खाली हो चुके थे। जमुना अपनी 10 साल की बेटी को भूखा देख हसिया से बोली-"पहले घर के सदस्यों की पेट की आग तो बुझाओ, फिर आंदोलन में जाकर आगजनी करना। उसकी बात सुन हसिया बोला-"बस उसी की जुगाड़ में हूं, थोड़ा इंतजार और कर ले 10 वर्षीय मुनिया सूनी आंखों से मां-बाप को देख रही थी। वह आग समझ सकी। आंदोलन नहीं...? ****
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क्रमांक -07

नाम- मीरा जैन. 
जन्मस्थल- जगदलपुर. छ.ग.
जन्म तारीख- 2. नवंबर
शिक्षा- स्नातक

पिछले पच्चीस वर्षों मे राष्ट्र स्तरीय की पत्र पत्रिकाओं मे लगभग एक हजार रचनाओं  का प्रकाशन - 
कादंबिनी . हंस. नया ज्ञानोदय. गृह शोभा. सरिता. मेरी सहेली. वागर्थ, सरस सलिल. नवनीत.  गृहलक्ष्मी. अहा जिंदगी. हरिगंधा, मनोरमा.नव भारत. वनिता . माधुरी. चाणक्य वार्ता, वीणा, द्वीप लहरी. साहित्य अमृत. कथादेश. हरिगंधा मिन्नी. साहित्य गुंजन. साहित्य कलश ,भारत दर्शन ( न्यूजीलैंड ) . संगिनी, प्रेरणा, सेतु ( कैलिफोर्निया ) ई कल्पना (कनाडा)नई दुनिया. दैनिक भास्कर. लोकमत. पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका. अमर उजाला. हरिभूमि. प्रभात खबर. जनवाणी, बाल भारती. विश्व गाथा. समाज्ञा . अपना बचपन. शाश्वत सृजन. मंगलयात्रा. वेद अमृत. मानस वंदन. सांझी सोच. देवपुत्र. बाल किलकारी. साहित्यसमीर दस्तक .नंदन .  साक्षात्कार, अक्षरा. शब्द प्रवाह. कंचनकेसरी. ज्ञान सबेरा. दैनिक अग्नि पथ. अक्षर विश्व, विजय दर्पण टाइम्स, अरुणोदय, साक्षात्कार.  दैनिक अवंतिका, शांति मोर्चा, आदि

संप्रति- पूर्व सदस्य बाल कल्याण समिति, पद- प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट. वर्ष 2019 मे भारत सरकार ने विद्वानों की सूची मे शामिल किया.


प्रसारण -
आकाशवाणी इंदौर . जगदलपुर , बोल हरियाणा बोल  रेडियो तथा म. प्र. दूरदर्शन से प्रसारण. 
लघुकथाओं का कई भाषाओं मे अनुवाद
विशेष-
वर्ष 2011 में मीरा जैन की 16 कथाएं पर विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा लघु शोध कार्य.
. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय व छत्तीसगढ़ शासन द्वारा किताबों का क्रय.

अनेक स्थानीय. राज्य. राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय पुरस्कार तथा सम्मान.
2014 मे नई दुनिया तथा टाटा शक्ति प्राइड स्टोरी सम्मान से सम्मानित व पुरस्कृत

पुस्तक 101लघुकथाएं राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत.

 पुस्तक सम्यक लघुकथाएं राष्ट्रीय स्तर पर शब्द गुंजन,  सम्मान से अलंकृत .अनेक लघुकथाएं राज्य व राष्ट्र स्तर पर पुरस्कृत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्था जैज़ जीआईएफ के अंतर्गत
 चेयर पर्सन गर्ल्स सेव चाइल्ड कमेटी सन 2016 से सन 2018 
 
प्रकाशित किताबें-

मीरा जैन की सौ लघुकथाएं,
 101 लघुकथाएं,
 सम्यक लघुकथाएं, 
 मानवमीत लघुकथाएं, 
 कविताएं मीरा जैन की,
दीन बनाता है दिखावा, श्रेष्ठ जीवन की संजीवनी. हेल्थ हदसा , जीवन बन जाए आनंद का पर्याय

पता : -
मीरा जैन
516,साँईनाथ कालोनी . सेठी नगर
 उज्जैन - मध्यप्रदेश
                       1. सैर - सपाटा   
                             **********

' यह क्या मां ! आज भी आप घर पर ही हो , विनी के साथ क्यों नहीं गई उसने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर कितना भव्य कार्यक्रम आयोजित किया है आपको भी जाना चाहिए था '
' बेटा ! विनी ने कहा तो था किन्तु मेरा मन ही नहीं हुआ जाने को '
 रवींद्र ने महसूस किया कि बाबूजी के देहांत के बाद मां ने लगभग बाहर आना-जाना ही बंद कर दिया है -
' चलो मां ! आज मैं आपके साथ बाहर चलाता हूं '
' तूने कारोबार इतना फैला रखा है कि तुझे नाश्ते-खाने तक की फुर्सत बड़ी मुश्किल से मिलती है ऊपर से घूमने चलने की बात कर रहा है '
' आज चलते हैं ना मां'
       कुछ ही देर में रविंद्र अपनी मां के साथ शहर के आसपास के उन पर्यटन स्थलों की सैर करा रहा था जहां  मां , बाबूजी के साथ जाया करती थी। शाम को घर लौटे तो सावित्री बेहद खुश थी मां के चेहरे पर असीम आनंद देख रविंद्र को आत्मिक संतोष हुआ साथ हर्ष मिश्रित स्वर प्रस्फुटित हुए-
' मां ! अब आप हर सप्ताह ड्राइवर को लेकर अपने पसंदीदा स्थानों की सैर कर आया करो आपको बहुत दिनों बाद इतना खुश  देखा  है '
       सावित्री ने अपने अंतरमन की ज़ुबां पर आ गई -
' बेटा ! घूमना-फिरना तो मुझे अच्छा लगा ही किंतु मेरी खुशी का मुख्य कारण तो बरसो बाद मिला आज दिन भर का तेरा साथ था '   ****
           
           
                       2. देश विदेश 
                           ********

' पापा! जब भी आप से फोन पर बात करता हूं हर बार बस रटी-रटाई ही बात सुनने को मिलती है कि- 
'बेटा ! बहुत हो गया अब घर लौट आओ'  कितनी बार कह चुका हूं कि मैं नहीं आऊंगा आपके भारत में है ही क्या ? चारों तरफ गंदगी , प्रदूषण , गरीबी, मांगने वालों की जमात, सड़कों  पर  पशुओं का सामराज्य --- ' 
कट'-- फोन कट गया , बेटे की बात सुन  हमेशा की तरह गोपीचंद जी निढाल हो वहीं सोफे  पर पसर गये, पत्नी की आंसू भरी आंखें अब भी उन्हें घूर रही थी ।
             कुछ महीने पश्चात प्रणेश अचानक भारत आ गया जिसे देख माता पिता की आश्चर्य मिश्रित खुशी का ठिकाना नहीं रहा क्योंकि वह हमेशा के लिए आ गया था । गोपीचंद जी ने आने का कारण जानना चहा पहले तो वह हिचकिचाया , फिर अपनी विवशता बताते हुए प्रणय हुए रुंधे गले से वह इतना ही कह पाया-
 ' मां ! डॉक्टर ने कहा है कि- मैं एक ऐसी बीमारी से ग्रस्ति हो गया हूं जिसमें दवा से ज्यादा स्नेह,  अपनत्व और दुआ की जरुरत है ' ****
                  
                   3. स्वच्छता की नींव
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  एक ओर नववर्ष के शुभागमन की बेला तो दूसरी तरफ अपनी कुछ मांगो को लेकर सरकारी तथा गैर सरकारी समस्त सफाई कर्मियों की हड़ताल , स्वच्छता का अभाव चहुं ओर पसरा था, नववर्ष के अवसर पर शहर के समस्त स्कूलों के मध्य पर पूर्व घोषित प्रतिस्पर्धा यथावत थी-
 " स्वच्छता का श्रेष्ठ नजारा " सभी स्कूल वाले सफाई कर्मियों की हड़ताल के चलते बेहद परेशान थे-
  ' क्या करें , क्या ना करें ' 
फिर भी सभी ने अपने अपने स्तर पर प्रयास किए , परिणामों की सूची में नामी-गिरामी स्कूल काफी पिछड़ गये , प्रथम स्थान प्राप्त करने वाला एक सामान्य  स्कूल जो बहुत ही साफ सुथरा  और एकदम व्यवस्थित था नजरें टिकी तो बस टिकी ही रह जाए , निर्णायक भी अचम्भित, कचरे का एक कण भी नहीं ? 
ऐसी सफाई की तह मे कारण बस इतना था उस सामान्य से स्कूल में अति सामान्य बच्चे पढ़ते थे । ****
              
     
                      4. उपहार की हार 
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हर वर्ष की तरह पीटर इस वर्ष भी क्रिसमस डे के अवसर पर सांता क्लॉज़ का रूप धर विभिन्न मोहल्लों में बच्चों की  आवश्यकतानुरूप खूबसूरत और कीमती उपहार बांटता चला जा रहा था सांता क्लॉज़ को देख बच्चों के साथ बड़े भी खुश हो जाते एक सुखद और खुशनुमा माहौल निर्मित हो गया , इसी तारतम्य 12- 13 वर्षीय हिना को खूबसूरत ड्रेस देते हुए पीटर ने कुछ हर्ष पूरित शब्द हवा में उछाले -
' बिटिया !  तुम्हारे लिए बहुत ही शानदार ड्रेस लाया हूं इसे पहन कर बहुत सुंदर लगोगी'
 ड्रेस पा हिना खुशी से सराबोर हो गई किंतु करीब ही खड़ी हिना की मां रवीना के चेहरे पर उदासी देख सांता क्लॉज़ से रहा नहीं गया-  ' 'क्या बात है बहन ! लगता है तुम इस उपहार से खुश नहीं हो बताओ बिटिया के लिए तुम्हें और  क्या  चाहिए ? तुम जो मांगोगी मैं दूंगा मेरे हर चीज की जादुई छड़ी है '
इस पर रवीना ने जो कुछ मांगा उसे सुन सांता क्लॉस का हाथ वहीं का वहीं ठहर गया और बेबस नजरें झुक गई, हिना की मां ने सिर्फ इतना ही कहा -
'मुझे बेटी की सुंदरता नहीं सुरक्षा चाहिए यदि दे सकते हो तो दे दो।' ****

              
                      5. जादुई चिराग 
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पिछले कई वर्षो से रत्ना और राजेश की तू-तू, मै-मै पर अचानक विराम लग गया आये दिन विवाद, राजेश को रत्ना से कुछ न कुछ शिकायत रहती ही थी  जिनकी परस्परआंख -आंख नही बनती   वे अब हाथो मे हाथ डाले घूमते नजर आ रहे थे वाणी मे भी मधुरता और एक दूसरे के प्रति आदर के भाव , यह देख अडोसी-पड़ोसी मोहल्ले वाले आश्चर्च चकित थे कथित दम्पत्ति मे आये इस अभूतपूर्व परिवर्तन को जानने की  जिज्ञासा हर किसी को थी अंततः रत्ना की सहेली लक्ष्मी ने पूछ ही लिया-
'क्या बात है रत्ना ! जब से तू मायके से आई है तब से राजेश जीजाजी बिल्कुल बदल गये है एकदम सीधे ही  नही चलते बल्कि तेरी पूछ परख भी बहुत कर रहे हैं तू मायके से ऐसा कौन सा जादुई चिराग लेकर आई है मुझे भी बता , मै भी दिन भर इनकी खीच-तान और टोका-टाकी से बहुत परेशान हूँ ।'
 रत्ना ने हंसते हुए कहा-
' वो जादुई चिराग तुझे मिलने मे अभी समय लगेगा '
आश्चर्य मिश्रित मुद्रा मे लक्ष्मी के नयन पसर गये मुंहसे बरबस ही निकल पड़ा-
 ' क्यो ?'
' क्योकि ! अकेले घर मे क्या करते , आनन फानन में वे भी चले गये अपने चिराग के घर रहने और चिराग तले अंधेरा,  तेरा चिराग अभी कुवांरा है ' ****
      
         
                       6.सस्ता महंगा
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"मैडम एक बात पूछूं बुरा मत मानियेगा ?"
"हां... हां..पूछो।"
"पिछले सलाह आप मेरी दुकान पर आई थी तब आपने पांच सौ रुपये वाला एयर बैग भी काफी सोच विचार के बाद खरीदा था। लेकिन आज ये दो दो हजार के मूल्य वाले बैग बिना किसी असमंजस के तुरंत ही खरीद लिये ऐसा क्यों ?"
"भाई साहब बात दरअसल ये है उस दिन मैं अपने लिये खरीद रही थी और आज..."
बीच में ही बात काटते हुए दुकानदार बोला- 
"समझ गया मैडम ! ठीक ही तो है दूसरों के लिये ज्यादा क्या सोचना कौन अपने जेब से पैसे जा रहे हैं।" 
"भाई साहब! आप गलत समझ रहे हैं। यह महंगा और सुविधाजनक बैग इस बार भी मैं ही खरीद रही हूं, लेकिन अपने लिये नहीं अपने बच्चों के लिये ताकि सफर मे उन्हें किसी प्रकार की परेशानी ना हो। दुकानदार मन ही मन बुदबुदाया-
 "ओ हो...काशा बच्चे भी माता पिता केलिये ऐसा ही सोचते" ****
                     
             
          
                    7. सैंटा क्लॉज का सफर 
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प्रति वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष सैंटा क्लॉज़ ने एक से बढ़कर एक उपहार बांटे, खुशी तो बहुत थी किंतु चाह कर भी स्वंय को इतना गौरान्वित महसूस नहीं कर पा रहे थे जो पिछले कई वर्षों से करते आये थे जब भी किसी बच्चे को उपहार देते तो  आंखों के सामने कुछ दिन पूर्व की घटना चलचित्र की तरह घूमने लग जाती-
लम्बी यात्रा कर लौटते वक्त अचानक कार का खराब हो जाना और ऊपर से भूख - प्यास ,
 करीब ही खेत मे कार्य कर रहे उस किसान का ठंड मे भी पसीने से तर बतर चेहरा बावजूद इसके उसने खेत मे लग रहे हर चने व मटर की फलियां तोड़-तोड़ कर बड़े प्रेम से खिलाना ट्यूब बेल का ताजा पानी पिलाना और बच्चो के लिये भी ले जाने का आग्रह,  मै मन ही मन सोच रहा था आज ये जरूर डबल पैसे वसूलेगा , मैं मरता क्या न करता खैर ! जब जेब से रुपये निकाल कर देने लगा तब उसने हाथ जोड़ पूर्ण आदर भाव से इतना ही कहा- 
'साहब जी! ये मेरा सौभाग्य है कि किसी अजनबी अतिथि की सेवा करने का मौका मिला कभी समय मिले तो बच्चो के लेकर भी पधारना साहब, आपस मे प्रेम बड़ी चीज है हम किसान कभी  खेत पर आये मेहमान से रूपये नही लेते हैं ---'
मै उस अजनबी किसान का निश्छल प्रेम व समर्पण देख भाव विभोर हो गया महसूस हुआ कि वास्तव मे असली सैंटा क्लॉज़ तो यही है। ****

             
                         8.यक्ष प्रश्न 
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 बैलों का झुंड आज आंदोलन करते हुए धरने पर बैठ गया उनका धरना समाप्त करवाने हेतु भरसक प्रयास किए गए किंतु एक भी बैल टस का मस नहीं हुआ , बैलों के धरने की खबर लगते ही मीडिया कर्मी अपना अपना कैमरा लेकर वहां पहुंच गये और उनसे इस धरने का कारण जानना चाहा-
' क्या वजह है जो आप सभी धरने पर बैठने के लिए मजबूर हो गए?'
 इस पर बैलों के मुखिया ने अपनी व्यथा जाहिर की-
' हमें एक बात समझ में नहीं आ रही है की जब सारे किसान पिछले कई दिनों से आंदोलन कर रहे हैं फिर भी हमारा काम जस का तस चल रहा है जरा सा भी कम नहीं हुआ , हम इस बात की बारीकी से जांच करवाना चाहते हैं कि जब किसान धरने पर बैठे हैं तो हमसे आखिर काम कौन करवा रहा है ?' ****

             
                         9.पैमाना 
                            ******

' ओ हो आदित्य ! एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है तुम डॉक्टर होने के साथ ही हैंडसम, स्मार्ट और घर- घराने वाले संस्कारित लड़के हो , जीवनसाथी चुनने के लिए तुम्हारे पास लड़कियों की कतार हैं फिर भी तुम ऐसी लड़की से मिलने जा रहे हो जिसने तुम्हारी बात की अवहेलना कर अपनी मर्जी तुम पर थोपी है अभी से ये हाल है तो शादी के बाद क्या होगा ? मैं होता तो पलट कर भी नहीं देखता , क्यों अपना वैलेंटाइन डे खराब कर रहे हो मेरी सलाह मानो तो जिन दूसरी लड़कियों का बायोडाटा तुमने पसंद किया है उनसे मिल लो '
आर्यन की सलाह सुन आदित्य के चेहरे पर चिंता की लकीरें पसरने के बजाय मुस्कुराहट फैल गई और उसने अपनी सफाई पेश की-
' आर्यन ! जीवनसाथी चयन करने का मेरा अपना एक पैमाना था जो वैलेंटाइन डे के दिन ही संभव था '
 'ऐसा कौन सा पैमाना था तुम्हारा ?'
' आर्यन ! मैंने एक जैसे प्रपोजल तीन-चार लड़कियों को दिए किंतु यह विभा ही एक ऐसी थी जिसने अस्वीकार करते हुए कहा-
' आदित्य ! माना कि आप मेरे भावी जीवनसाथी हो सकते हो किंतु अभी हो तो नहीं इसलिए मैं तुमसे निर्जन स्थान पर नहीं मिल सकती हूं, आप अगर अकेले मिलना ही चाहते हो तो किसी सार्वजनिक पार्क या रेस्त्रां में मिल सकते हैं और हां गुलाब लेकर कतई नहीं आना  ' ****

         
                      10.जमीन आसमान
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 15 अगस्त के अवसर पर एक विदेशी सामाजिक संस्था के प्रमुख भारत के एक बाल आश्रम में झंडा वंदन के कार्यक्रम में सम्मिलित हुए कार्यक्रम समाप्ति के पश्चात उन्होंने उपस्थित बाल समुदाय से पूछा-
' प्यारे प्यारे बच्चों ! मैं आप सबके बीच आज इसलिए उपस्थित हुआ हूं ताकि आपकी जरूरतों को पूरी करने में आप सभी की कुछ मदद कर सकूं क्योंकि हमारी संस्था का मुख्य उद्देश्य आप जैसे अनाथ और बेसहारा बच्चों को सहारा देना है बताओ बच्चों आप लोगों को किन-किन चीजों की सबसे ज्यादा आवश्यकता महसूस होती है हम उसे पूरा करेंगे ?'
किंतु किसी भी बालक ने किसी भी प्रकार की मांग नहीं रखी ज्यादा जोर देने पर बच्चों के मॉनिटर ने अपनी मंशा कुछ यूं व्यक्त की-
' प्रणाम अंकल !आप हमारे शुभचिंतक हैं बहुत-बहुत धन्यवाद ,अंकल बस एक छोटी सी बात आपसे कहना चाहता हूं '
' हां हां बोलो बेटा ! क्या बात है?'
 पूर्ण आत्मविश्वास के साथ उसने तिरंगे झंडे की ओर इशारा करते हुए कहा -
' अंकल ! जिसके सिर पर तिरंगा लहरा रहा हो वे भला अनाथ और बेसहारा कैसे हो सकते हैं '
 एक बच्चे के मुख से देशभक्ति की इतनी सटीक परिभाषा सुन उनकी आंखों से श्रद्धा के आंसू टपक पड़े उन्होंने भारत के बारे में क्या सोचा था और क्या पाया उनके मुख से बरबस ही निकल पड़ा -
' वास्तव में भारत महान है '****


                  11.बचपन बचपन 
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दिव्यांम के जन्मदिन पर गिफ्ट में आए ढेर से  नई तकनीक के इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों में कुछ को  दिव्यम चला नहीं पा रहा था घर के अन्य सदस्यों ने भी हाथ आजमाइश की लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली तभी कामवाली बाई सन्नो का 11 वर्षीय लड़का किसी काम से घर आया सभी को खिलौनों में बेवजह मेहनत करता देख वह बड़े ही धीमे में व संकोची लहजे में बोला -
'आंटी जी ! आप कहें तो मैं इन  खिलौनों को चला कर बता दूं' पहले तो मालती  उसका चेहरा देखती रही फिर मन ही मन सोच रही थी कि इसे दिया तो निश्चित ही तोड़ देगा फिर भी सन्नो का लिहाज कर बेमन से हां कर दी और देखते ही देखते मुश्किल खिलौनों को उसने एक बार में ही स्टार्ट कर दिया सभी आश्चर्यचकित थे , मालती ने सन्नो को हंसते हुए ताना मारा -
' वाह री सन्नो ! तू तो हमेशा कहती है पगार कम पड़ती है और इतने महंगे खिलौने छोरे को दिलाती है जो मैंने आज तक नहीं खरीदे '
 इतना ही सुनते ही सन्नों की आंखें नम हो गई उसने भरे गले से कहा- ' मैडम जी ! यह खिलौनों से खेलता नहीं बल्कि खिलौनों की दुकान पर काम करता है' ****
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क्रमांक - 08
नाम : अविनाश अग्निहोत्री

पिता -  स्व . श्री सुरेशचंद्र अग्निहोत्री

जन्मतिथि* -30/01/1986

शिक्षा -एम. कॉम.

पेशा - सहायक शिक्षक

रचना प्रकाशन  -  राष्ट्रीय स्तर पर  पत्र पत्रिकाओं में 200 से अधिक लघुकथाओं  का  प्रकाशन।

साझा प्रकाशन - 
लघुकथा संग्रह "प्रवाह" में रचनाओं को स्थान।

स्थायी पता -  
89 , लोकनायक नगर , इंदौर - मध्यप्रदेश
                       1. संतान सुख
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मित्र के यहां पुत्र होने की बधाई देने पहुंचा, तो उसके परिवारजन ढोल की थाप पर झूम रहे थे।मैने भी अपने मित्र को बधाई दे उसे गले लगा लिया।
और वहां उपस्थित लोगों के बीच जा खड़ा हुआ।वहां मेरी नजर अचानक एक वृद्ध महिला पर गई। जो एक कोने में खड़ी हो कुछ बड़बड़ा कर, मुस्कुरा रही थी।मैने जब अपने बगल में खड़े व्यक्ति से उसके बारे में पूछा ।तो वह बोला,ये अम्मा करीब 8-10 सालों से हमारे मोहल्ले में ही है।
घर मे अपनी बहुओं से इसकी ना पटने के कारण ,इसे इसके बहु बेटो ने घर से निकाल दिया।यहीं मोहल्ले में जो कोई कुछ दे देता है खा लेती है।जहाँ जगह मिलती है सो जाती है।बस यूं समझिए अब यह मोहल्ला ही इस अनाथ का घर है।
और यहां के रहवासी ही इसका परिवार।उसकी कहानी सुन अम्मा में मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई।मैं धीरे से उनके पास जा उनसे बोला,अम्मा अभी अभी आप क्या कह मुस्कुरा रही थी।
तब वह कुछ गम्भीर हो बोली ,बेटा मैं यह सोच कर मुस्कुरा रही थी। कि कभी मेरे भी बेटा होने पर, मैं भी इन्ही की तरह बावली हुई सड़को पर खूब नाची थी।
और आज,इतना कहते हुए उसके अंतर का दर्द जैसे उसकी आँखों से बह निकला। ****


                        2. पसीना
                            ******

बापू देखो ये सामने वाली इमारत में,इतने सारे लोग एक साथ ये क्या कर रहे है।गांव से पहली बार मजदूरी पर आए कलुआ से उसके मासूम बच्चे ने आश्चर्य से पूछा।
इसपर कलुआ उसे समझाते हुए बोला बेटा यह जिम है।शहर के लोग यहां वर्ज़िश कर पसीना बहाने आते है।
पर उससे क्या होता है बापू,बच्चे की जिज्ञासा अब बढ़ती ही जा रही थी।इसपर कलुआ बोला,बेटा डॉक्टरों का कहना है कि शरीर का पसीना निकलने से वह जल्दी बीमार नही होता।
तब तो हमे भी वहां जाना चाहिए न बापू,बच्चे ने फिर एक प्रश्न दागा।
इसपर अपने हाँथ की कुदाली किनारे रख,अंगोछे से अपने चेहरे का पसीना पोछता हुआ कलुआ बोला।नही बेटा, हम मजदूर है और हमारा पसीना कभी इतना सस्ता नही होता। ****


                         3. तितली
                             ******

आज बड़े दिनों बाद गरिमा अपनी बच्ची के साथ एक बगीचे में बैठी है। वहां का प्राकृतिक सौंदर्य अब उन्हें  मोहित कर उनके मन के आंतरिक कोलाहल को शांत कर रहा था।
 कि तभी गरिमा की मासूम बेटी नवेली ने उसे फूल पर बैठी एक नन्ही तितली की ओर इशारा करते हुए कहा
देखो मम्मा कितनी सुंदर तितली है। जब ये बड़ी होगी और अपने सुंदर पंख फैला बगीचे में इधर उधर उड़ेगी तब कितनी प्यारी लगेगी ना।
नवेली की बात सुन अब गरिमा को याद आया कि बचपन मे उसकी माँ भी उसे तितली ही कहती थी।पर उस समय उनके पिता की नजरों के अंकुश और फिजूल की रोक टोक। फिर कुछ बड़ी होने पर भैय्या और अब पति के भी ऐसे ही व्यवहार ने तो जैसे उसके पर ही सिल दिये।
जिससे ऊँचाई के वो प्रतिमान जो कभी उसने बचपन मे अपनी कल्पना में सोचे थे। उन पर आज तक पहुँच ही नही पाई। फिर अचानक नव्या के कोमल स्पर्श से गरिमा की वो तन्द्रा टूटी,और उसी नन्ही तितली को देख। नवेली के सर पर हाँथ फेरते हुए गरिमा बोली, नही बेटा ये तितली नन्ही ही ठीक है। भगवान करे ये कभी बड़ी ही न हो।
उसकी बात सुन अब नवेली अपने बाल मन से उसकी बात के गहरे अर्थों को समझने की नाकाम कोशिश करने लगी।****


                           4. उपहार
                               *****

परिवार में उल्लास का माहौल था,अशोकबाबू की होनहार बिटिया कोमल ने मेट्रिक में पूरे जिले में टॉप किया था।
आज पूरा परिवार उसे शुभकामनाएं देने एक साथ बैठा था।तभी कोमल ने घर पहुँचते ही ईश्वर को हाँथ जोड़ धन्यवाद दिया।
फिर वो बारी बारी से सभी के चरण छू आशीष ले रही थी।ऐसा करते जब वो अपनी बुआ के पास पहुँची।तब बुआ अपने चहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान लिये।
 उससे बोली,"बोल मेरी बिटिया तुझे इस खुशी के अवसर पर क्या उपहार दूँ"। तब बुआ की बात सुन कोमल उनके हाँथ जोड़ती हुई बोली,
 "बुआ मुझे अब और तो कुछ नही चाहिये।हाँ अगर आप समेत यह पूरा परिवार,मेरी माँ को लड़का न होने का जो उल्हना देता है"।
बस वही देना बंद कर दे,तो यही मेरा सबसे बड़ा उपहार है।कोमल की बात सुन सभी के सर शर्म से नीचे झुक गए।और उसकी माँ की आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी।****


                         5. मानवता
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सौम्य भी आज पहली बार,अपनी पत्नी के साथ  मॉर्निंग वॉक पर आया है। मॉर्निंग वॉक करते हुए रागिनी एक नियत स्थान पर रुक गई।
जहाँ आवारा कुत्तों का एक समूह शायद पहले से खड़ा उसकी ही प्रतीक्षा कर रहा था। रागिनी को देखते ही उन कुत्तों ने अपनी पूँछ हिलाकर जैसे उसका अभिवादन किया।
वह भी अपने बैग से कुछ ब्रेड के पैकेट्स निकालकर,ब्रेड कुत्तों को खिलाने लगी।
बड़े चाव से उन्हें ब्रेड खाते देख अब सौम्य और रागिनी भी बहुत खुश थे।
कि तभी सौम्य की नजर अचानक सामने फुटपाथ पर फटेहाल बैठे, एक भूखे व्यक्ति पर गई। जो बड़ी ललचायी नजरो से ब्रेड के उन टुकड़ों को देख रहा था।
यह देख सौम्य ने ब्रेड का एक पैकेट उसे भी दे दिया।जिसे लेते हुए उस व्यक्ति के हाँथ स्वतः ही सौम्य के आगे जुड़ गए।
यह देख रागिनी बिदकते हुए उससे बोली ये क्या सौम्य तुमने इनके हिस्से की ब्रेड उस भिखारी को क्यो दी।
क्या तुम जानते नही कि ये इंसान कितने स्वार्थी और कपटी होते है,उनसे कहीं अच्छे तो ये मूक पशु है।
रागिनी की यह बात सुन फिर सौम्य उसे समझाते हुए बोला, हो सकता है तुम्हारी बात कुछ सही भी हो।पर सोचो रागिनी ये जानवर है ,ये तो कुछ भी खाकर अपना पेट भर सकते है।
पर यदि एक इंसान भी अगर भूख के मारे कुछ भी खाने को मजबूर हुआ, तब तो सारी मानवता शर्मशार हो जाएगी। ****


                        6. अहसास
                             *******

क्या राजीव ,सुनते नही मुन्ना कब से पानी मांग रहा है।
मोबाइल में सर घुसाए अपने पति की ओर देखते हुए शालिनी उससे बोली।
उसकी बात सुन अब राजीव बोला,हाँ यह तो सही है कि मुन्ना कुछ कह रहा था।पर उसकी तुतलाती जुबान के कारण शायद मैं उसकी बात समझ ही नही पाया।
पर शालिनी तुम औरतों को तो शायद इसमें महारत हासिल है।
शायद तभी तुम मुन्ने की हर जरूरत पलभर में समझ जाती हो।
उसकी बात सुन अब शालिनी बोली,हम औरते तो बच्चो की जरूरतों को तब से समझती है।जब उन्हें बोलना भी नही आता।
क्योकि अपनी हर भावना को समझाने के लिए शब्दों के सहारे की आवश्यकता नही होती।कुछ बस दिल से महसूस की जा सकती है।
सच राजीव जिस दिन तुम पुरुषों को हमारे दिल के अनकहे अहसास महसूस करने की कला आ गई,उस दिन हम औरतों की जिंदगी कितनी खुशनुमा हो जाएगी।
इतना कहते शालिनी के स्वर अब गंभीर हो चुके थे,और राजीव उसके पल पल बदलते चेहरे को एकटक देख रहा था। ****


                          7. बचपन
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आज बड़े दिनों बाद अपने पापा के साथ बाजार घूमने आयी नन्ही अक्षिता की खुशी का ठिकाना नही है।बाजार में त्यौहार के चलते लगी आकर्षक लाईट उसे मोहित व विस्मित कर रही है।
की तभी उसकी नजरे सड़क किनारे फुटपाथ पर एक खिलौने बेचने वाली पर अटक जाती है।उसके पापा भी उसकी मंशा जान उसे उस खिलौने वाली के समीप ले जाकर।उसे गुड़िया को कोई सुंदर खिलौना देने का इशारा करते है।
उनका इशारा पाते ही खिलौनेवाली उसे एक एक कर कई खिलौने दिखाती है।पर अक्षिता को तो उसी के बच्चे की गोद मे रखा, वो नन्हा हांथी ही पसंद आता है।
और वह अपने पापा से उसे ही खरीदने की जिद करने लगती है।पर उसकी मंशा जान अब वह खिलोनेवाली और स्वयं उसके पापा भी पेशोपेश में पड़ जाते है।की तभी वो अक्षिता के हमउम्र बच्चा ,जो अब तक खामोश था।चुपचाप अपना खिलौना अक्षिता की ओर बड़ा देता है।
जिसे पाकर अक्षिता तो खुशी से झूम उठती है,पर उसके पापा आश्चर्यभरी निगाहों से उस बच्चे की ओर देखते है।
यह देख वो खिलौनेवाली अपने बच्चे के सर पर, अपना दुलारभरा हाँथ फेरते हुए कहती है। " क्या देखते हो साहब,गरीब का बच्चा है ना। शायद इसलिए जल्दी सयाना हो गया है। " ****


                         8. अदृश्य रंग
                              ********

अपने इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ने वाले बेटे अभीर को वह, छुट्टी वाले दिन अपने साथ मंदिर ले जाना कभी नही भूलती। ताकि वह आधुनिक शिक्षा के साथ अपने धर्म से भी गहराई से जुड़ सके।
फिर आज मंदिर में स्वेत वस्त्रधारी वहां के सेवको को भगवान की सेवा करते देख। अभीर ने जिज्ञासावश अपनी माँ से पूछा।"माँ यहां ये सब सफेद कपड़े ही क्यो पहने है"।
तब माँ उसे समझाने के उद्देश्य से बोली,"बेटा ये स्वेतरंग निर्विकारी होता है।" और विकाररहित व्यक्ति ही ईश्वर के सबसे करीब होते है।
माँ की बात सुन कुछ पल अपनी माँ की ओर निहारते हुए वह बोला," माँ तब तो हम ईश्वर से बहुत दूर होंगे,क्योकि हम तो हमेशा रंगीन कपड़े ही पहनते है। "
उसकी बात सुन एक पल तो माँ मुस्काई,पर अगले ही पल यह विचार उसके मन मे कौंध गया। कि हम माने या ना माने,पर वाकई भिन्न भिन्न अदृश्य रंगों में हम सभी अंतर तक डूबे हुए तो है।****


                         9. सावन 
                             *****

एक ओर सौम्या के छोटे छोटे बच्चे जहां सावन की इस पहली बारिश को देख खुशी से चहक उठे थे।तो वहीं बीते सावन में अपने पति के साथ बिताए उन खुशनुमा पलो को याद कर खुद सौम्या भी अपनी आंखे भीगो चुकी थी।क्योकि उसके पति की अभी कुछ ही महीनों पहले एक सड़क हादसे में मौत हो गई थी।यही सब सोचते हुए अब सौम्या की नजर घर के गार्डन में लगे एक गुलाब के पौधे पर पड़ी।जिसमे अब फूल आ चुके थे।उन फूलों को देखकर आज उसे अनायास याद आया, कि पिछले साल कितनी खुशी से उसके पति ने इसे घर के गार्डन में लगाया था।और लगाते हुए यह बताया भी था। कि फूलों में सबसे प्रिय उन्हें गुलाब ही लगता है,सौम्या के कारण पूछने पर उसने कहा था।कि गुलाब का फूल कांटो के बीच खिलकर मानो हमे ये संदेश देता है। कि जीवन मे परिस्थितियां चाहे कितनी ही विपरीत क्यो न हो हमे सदैव मुस्कुराते ही रहना चाहिये।फिर पति की कही बात को याद कर अब सौम्या ने अपनी हथेलियों से अपने आंसू पोंछ लिये। ****


                         10. जीवन के रंग
                                **********

"शुभांगी घर पर सब ठीक तो है न बेटा"।अपनी बेटी का फीका चेहरा देख उसकी माँ ने, चाय का कप उसके हांथो में थमाते हुए पूछा।
तब वह झुंझलाकर बोली, "नही मां कुछ भी ठीक नही है"। हमारी शादी को पूरा साल होने को आया।पर आरव व मेरी पसंद में अब भी जमीन आसमान का अंतर है।
"आप यूँ समझिए कि अगर मैं पूरब हूं तो वह पश्चिम,क्या पता पंडित जी ने हमारी कुंडलियों के तीस गुण कैसे मिला दिए"।
जबकि प्रत्यक्ष में तो....।  अब आप ही बताओ मां "इस तरह ही रहा। तो मैं अपने जीवन में, सुखों के वो खुशनुमा रंग कैसे भर सकूंगी"।"जिनकी मैने सदा से ख्वाहिश की थी"।
इतना कहते हुए, एक पल को उसने अपनी मां के चेहरे की ओर देखा।वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी। यह देख शुभांगी का चेहरा और तमतमा गया।
फिर उसे शांत करने की नीयत से मां ने उससे कहा,"अरे वाह तेरे हांथो की मेहंदी का रंग तो बड़ा गहरा खिला है"। यह सुन फिर शुभांगी बोली," अब ये ना पूछो मां आप नही जानती इसके लिए मैंने कितने पापड़ बैले है"। "चाय की पत्ती ,नींबू का रस मेहंदी का तेल और ना जाने क्या क्या लगाना पड़ा है"।
मुझे,रंग गहरा करने के लिये,तब कहीं जाकर ये रंग आया है। फिर मां बोली,"कि जब तुझे कोरे हांथ रंगने में ही इतना जतन करना पड़ा,तब आरव तो फिर...."।,अब मुस्कुराने की बारी शुभांगी की थी। ****


                           11. फर्क
                                 ****

आज कान्वेंट स्कूल में पढ़ने वाली चीनू अपनी मम्मा को एक हैंडबेग में बुक्स व अपना सारा सामान रखते बड़ी गौर से देख रही थी।जो खुद भी एक हिंदी माध्यम स्कूल में टीचर थी।
जब माँ ने अपना सारा सामान एक एक कर बेग में भर लिया तब चीनू बड़ी मासूमियत से अपनी माँ से बोली मम्मा हमारे स्कूल के सारे टीचर्स तो केवल सब्जेक्ट्स की बुक्स और पानी की एक बॉटल ही अपने साथ घर से लेकर आते है।
और हाँ सिर्फ आर्ट एंड क्राफ्ट टीचर ही अपने साथ ये सलाई व क्रोशिया आदि लिए होती है। ****
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क्रमांक - 09
नाम- सुश्री दर्शना जैन

जन्म तिथि : 2 जून 1977

माता का नाम : श्रीमती सरोज जैन
पिता का नाम - श्री प्रवीण जैन

शिक्षण- बी. काम, कम्प्यूटर डिप्लोमा 

विधा- मुख्य लघुकथा, कविता, लेख आदि

विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे मधुरिमा, नायिका, परिवार, अक्षरा, विभोम स्वर,में लेख कथाएँ आदि का प्रकाशन, 
साहित्य संवाद खंडवा की नियमित सदस्य जिसमें प्रति सप्ताह एक कहानी भेजने के साथ समय-समय पर लघुकथाओं का वाचन व पुस्तकों की समीक्षा। अब तक करीब दो सौ लघुकथाएं लिख चुकी है व सब लोगों के आग्रह से पुस्तक प्रकाशन के प्रयास जारी हैं। 

विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान - 
इनरव्हील क्लब खंडवा, इनरव्हील मंडल मप्र, भारतीय लघुकथा विकास मंच  पानीपत - हरियाणा , जे.सी.आई. क्लब, लघुकथा शोध केंद्र भोपाल, जैमिनी अकादमी पानीपत , जैन सोशल ग्रुप खंडवा, जैन संघटना आदि द्वारा समय-समय पर सम्मानित होती रही है। आकाशवाणी खंडवा पर भी वार्ता व लघुकथाओं का वाचन कर चुकीं है व शहर की एकमात्र दिव्यांग लघुकथाकार है। 

जीवन - 
चौदह वर्ष की उम्र में एक अॉपरेशन के बाद व्हीलचेयर पर आ गयी लेकिन उसने इसे अपनी नियति मानकर समतापूर्वक स्वीकार कर लिया। उसके हौसले बुलंद है, वह इसे अपने मम्मी पापा विशेषत: अपनी मम्मी से मिली प्रेरणा मानती है। घर पर कई सालों से बच्चों को पढ़ा रही है।

पता : -
खण्डवा - मध्यप्रदेश
                          1.सही हल      
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     गीता अखबार उठाते ही गुस्से में बोली," अखबार पढ़ने का मन ही नहीं होता, क्या पढें, पढ़ने जैसा कुछ खास दिखे तो।" पति दीपेश बोला," क्यों सुबह सुबह अखबार पर गुस्सा निकाल रही हो, उसमें पढ़ने के लिए बहुत कुछ आता तो है।" गीता जोर से बोली," क्या आता है, एक दिन भी ऐसा नहीं जाता जब अखबार में लड़कियों के साथ छेड़छाड़, अभद्रता या अश्लील व्यवहार की खबर मुख् पृष्ठ पर न छपी मिले।" पति ने कहा," बात तो तुम्हारी एकदम सही है, मेरे विचार से हमारे समाज को और हमें बेटियों को सशक्त बनाना होगा जिससे कि वे हिम्मत से, बिना डरे इस बुराई का डटकर सामना कर सकें।" गीता पति से बोली," यह तो करना ही चाहिये पर इससे ज्यादा जरूरी है कि हम लड़कों को भी संस्कारित करें, उन्हें बहन, माँ और हर महिला की इज्ज़त करना सिखायें, लड़कों को ज्यादा महत्व देकर उन्हें सिर पर चढ़ाने के बजाय उन्हें समानता का महत्व समझाया जाये, उनको यह कड़ा संदेश देना भी जरूरी है कि उनकी किसी भी गलत हरकत पर उन्हें न केवल समाज से बल्कि घर से भी बहिष्कृत किया जा सकता है।" पत्नी के इस कठोर रूप को देख दीपेश विस्मित था पर अंदर ही अंदर वह यह भी जानता था कि यह कठोरता ही समस्या का सही हल है।
     पास के कमरे में बैठा उनका बेटा, जो सब सुन रहा था, आकर माँ के पैर छूते हुए बोला," मम्मी, मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि मैं ऐसा कोई गलत कदम कभी नहीं उठाऊँगा।"   
माँ ने वात्सल्यपूर्ण हाथ बेटे के सिर पर रखते हुए मन को आनंदित कर रहे निश्चिंतता के भाव से उसे गले लगा लिया। ****

2.चाँदनी का नूर        
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   सरकारी वकील मि. कैलाश के घर पुलिस आयी और उनके बेटे हरीश के बारे में पूछताछ करने लगी कि वह कहाँ है? उन्होंने पुलिस से पूछा,"आप मेरे बेटे को क्यों तलाश रहे हैं?  किया क्या है मेरे बेटे ने?" पुलिस ने कहा," सॉरी सर, पर शहर के मशहूर बिल्डर मि. रोशन की बेटी ने आरोप लगाया है कि आपके बेटे ने उसके साथ बलात्कार किया है, जाँच तो हमें करना ही पड़ेगी।" हरीश उस समय घर पर नहीं था इसलिये पुलिस यह कहकर वहाँ से चली गयी कि जैसे ही हरीश आये, हमें खबर करियेगा।
     रात नौ बजे हरीश आया तो माँ ने पुलिस के आने की बात बताते हुए पूछा," क्या तुमने ऐसा कुछ किया है?" हरीश चुप था, मौन में ही स्वीकृति होती है, माँ समझ गयी कि पुलिस सही कह रही है, वह बेटे से बोली," इतनी ओछी हरकत करते तुम्हे शर्म नहीं आयी, तुम्हे ऐसे संस्कार दिये हैं मैंने।" हरीश पछताये स्वर में बोला," माँ, मानता हूँ कि मुझसे गलती हो गयी, मुझे भी अपने इस कृत्य पर अफसोस है।" माँ ने कहा," तुमने यह जो हरकत की है उससे किसी लड़की को जीवन भर का घाव मिल जाता है और तुम्हारा कोई अफसोस उस घाव को नहीं भर सकता।" अब वकील मि. कैलाश बोले," देखो मैं एक वकील हूँ, बलात्कार के कई मुकदमे लड़ चुका हूँ, जानता हूँ कि युवाओं से बहकावे में आकर कभीकभार ऐसी गलती हो जाती है। हरीश ऐसा नहीं है, फिर उसे गलती का अहसास भी तो है।" बेटे को बचाने के लिए अपने वकील पति द्वारा दिया गया तर्क मि. कैलाश की पत्नी के गले नहीं उतरा। खैर, मामला कोर्ट में पहुँचा, लड़की के वकील ने दमदार सबूत पेश किये पर मि. कैलाश के पास भी हर सबूत का तोड़ मौजूद था, मुकदमे का फैसला उनके हक में आया, हरीश बरी हो गया। पत्नी ने मि. कैलाश से कहा," बधाई हो, आपका पुरूषत्व तो जीत गया पर अफसोस कि पौरुष हार गया।" यह कहकर उन्होंने तीखी नजरों से पिता व पुत्र को देखा। दोनों की नजरें झुक गयी।
     कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन था, हरीश की बहन साधना जो हर साल रक्षाबंधन से चार पाँच दिन पहले ही आ जाती थी इस बार नहीं आयी, दो दिन बाद रक्षाबंधन था तो हरीश खुद बहन को लेने पहुँच गया, राखी पर बहन न आये तो भाई का मन कहाँ लगता है। हरीश ने साधना से पूछा," इस बार तुम आयी क्यों नहीं, तबीयत तो ठीक है ना, कोई और समस्या हो तो बताओ।" साधना बोली," कोई समस्या या बात नहीं है, पर जिस भाई को रक्षाबंधन का महत्व ही न पता हो उसे राखी बांधने से क्या मतलब।" हरीश बोला," क्या बात करती हो, मुझे रक्षाबंधन का महत्व बराबर पता है। साधना, यह सिर्फ एक पर्व ही नहीं बल्कि एक वचन है जो भाई अपनी बहन को देता है।" साधना गुस्से में बोली," सिर्फ अपनी बहन की रक्षा, दूसरों की बहन व बेटियों का क्या, उनकी रक्षा का क्या? जिन हाथों ने गंदे इरादे से एक बहन को छुआ वे हाथ दूसरी बहन से राखी बंधवाने का हक नहीं रखते।" 
     हरीश समझ गया कि उसके किये की खबर बहन को लग गयी है, फिर ऐसी बात को कोई कैद करके रख भी तो नहीं सकता, उसे अपनी कलाई पर इतने सालों तक बंधवाई राखियाँ दिखाई देने लगी और उन राखियों में उस लड़की का चेहरा भी दिख रहा था जिसकी जिंदगी वह बर्बाद कर चुका था, वह बहन के पैरों में गिर पड़ा। साधना ने भाई से कहा," उठो और चले जाओ, अगले साल का तो पता नहीं, पर इस साल मैं तुम्हे राखी नहीं बांध सकती, तुम्हारी कलाई सूनी रहे यही तुम्हारी सजा है।" बहन की आँखों में जो क्रोध था, उससे भाई नजर नहीं मिला पाया। कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई और वह अपना सा मुँह लेकर लौट आया। बहन के यहाँ से शर्मिंदा हो हरीश सीधे माँ के पास गया, सब बताया तो माँ बोली," तुम्हारी बहन ने एकदम सही किया।" पिता ने जब सुना तो बोले," हमें बेटी को समझाना चाहिये।" पत्नी को गुस्सा आया, उसने कहा," वकील साहब, अब तो वकील के चोले से बाहर आइये, और अपने पौरुष को जगाते हुए बेटे को पुलिस के हवाले करके आइये, मैं एक माँ होकर इतने कठोर शब्द अपने बेटे के लिए कह रही हूँ क्योंकि एक माँ होने से पहले मैं एक औरत हूँ और आप भी एक बेटी के पिता हैं, भगवान न करे कभी ऐसा कुछ हमारी बेटी के साथ हुआ होता तो आप क्या करते? किसे बचाते?" माँ की बात ने बेटे को झकझोर दिया और उसने पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूल कर सजा की मांग की। अखबार में यह खबर पढ़ बिल्डर मि. रोशन की बेटी चाँदनी पुलिस स्टेशन आयी, हरीश से मिलकर बोली," मैंने अखबार में पढ़ा कि अपनी माँ व बहन की बातों से आहत हो गहन पश्चाताप से तुमने खुद को पुलिस को सौंप दिया। मैं प्रणाम करती हूँ उस माँ और बहन को जिन्होंने यह हिम्मत दिखाई। आज रक्षाबंधन है, मैं राखी लायी हूँ, तुम्हे बांधकर इसकी पवित्रता को कम करने के लिए नहीं बल्कि तुम्हे देने के लिए, इस राखी को सदा अपनी नजरों के पास रखना, चाँदनी का नूर तो तुम लूट ही चुके हो पर राखी के पावन नूर को अपनी व दूसरों की बुरी नजर से बचाये रखना।" हरीश कभी उस राखी को तो कभी चाँदनी को देख रहा था, वह कुछ कहे उससे पहले चाँदनी धीरे धीरे उसकी आँखों से ओझल हो गयी।****

3.मदर्स डे       
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    दोस्त ने बेटे के पास होने की खुशी में काजू कतली का पैकेट भेजा। करन ने एक कतली खायी और अपनी पत्नी सरला से बोला," तुम्हारे हाथ की कतली का स्वाद ही अलग होता है। मुझे तो वहीं पसंद आती है।" अगले दिन घर में जो थोड़े बहुत काजू थे उनकी कतली बनाकर करन के सामने रखी तो वह खाते ही बोला," अब मजा आया, जादू है तुम्हारे हाथों में, तुम्हे तो कुकिंग क्लास खोल लेना चाहिये।" 
     एक दिन काकी ने दाल फ्राई बनाकर भिजवायी। मीता खाना खाते समय बोली," मम्मी, आप जो दाल फ्राई बनाती है वैसा स्वाद नहीं है इसमें।" दूसरे दिन मम्मी ने बेटी के लिये दाल फ्राई बना दी। ऐसी ही थी सरला, उसे घर का कोई सदस्य खाने की अपनी पसंद बताता तो वह चीज जल्द से जल्द बनकर हाजिर हो जाती थी।
      बेटी ने ऐसे ही उस दिन मम्मी से कहा," आपको सबकी पसंद पता है पर कभी हमें भी तो बताओ कि आपको क्या पसंद है?" मम्मी टालते  हुए बोली," ऐसा कुछ भी नहीं है, मुझे तो सब पसंद आ जाता है। मैं बचपन से ही दो चार चीजों को छोड़कर सब खा लेती हूँ।" बेटी बोली," यह तो मैं भी जानती हूँ पर कुछ तो होगा जो आपको खास पसंद हो।" मम्मी ने बताया कि मुझे कभी आलू मैथी की सब्जी बहुत पसंद थी, मैं बहुत अच्छी बनाती भी थी। बेटी ने उत्सुकता से कहा," पहली बार इसके बारे में सुना, सुनकर कुछ अलग लग रहा है। वैसे बनती कैसे है आलू मैथी की सब्जी, कभी बनायी क्यों नहीं।" बेटी जब मम्मी से कुछ नया सीखना चाहे तो मम्मी इतने व्यवस्थित तरीके से बताती है कि रेसिपी दिमाग में छप जाती है।
     रविवार को सरला जरूरी सामान खरीदने बाजार जाया करती थी। एक दो घंटे लग जाते थे उसे खरीददारी में। जब सरला लौटी थक चुकी थी, भूख भी लग रही थी। उसने झटपट खाना बनाया, सरला और करन खाने बैठे, मीता को बुलाया, वह बोली," दो मिनिट रूकिये, आती हूँ।" फिर मीता ने ढक्कन से ढँका एक बाउल डाइनिंग टेबल पर लाकर रखा। मम्मी ने पूछा कि इसमें क्या है? मीता बोली कि खुद देख लीजिये। सरला ने ढक्कन उठाया, बाउल में जो था उसकी खुशबू ने नाक से होते हुए जाकर दिल को छू लिया। उससे पसंद पूछने, फिर रेसिपी पूछने का राज इस तरह से खुलेगा सरला ने सोचा न था। उसने एक निवाला मुँह में रखा, स्वाद वही था जो उसे पसंद था। बस अलग थे तो बनाने वाले हाथ, पहले वह बनाती थी, आज उसकी बेटी ने बनायी है।
     सरला की नजर डाइनिंग टेबल पर रखे अखबार पर गयी, लिखा देखा कि आज मदर्स डे है। मीता ने पूछा," मम्मी, कैसा लगा मदर्स डे स्पेशल, अपनी पसंद की सब्जी पसंद आयी या नहीं। हमेशा अपनों की पसंद का ख्याल रहता है आपको पर कभी- कभी अपनी पसंद का भी ख्याल रख लेना चाहिये।" सरला के मन ने विचारा कि मेरी पसंद का ध्यान तो माँ रखती आयी है पर आज तो मेरी बेटी ही मेरी माँ बन गयी। वाकई में यह बहुत स्पेशल गिफ्ट था सरला के लिए जिसे पाकर उसकी आँखें खुशी से भर आयी।****

4.आइसोलेशन
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खाँसी व साँस लेने में दिक्कत होने के कारण टीनू के काका किशोर अस्पताल गये, डाक्टर ने जाँच की और कोरोना की आशंका के चलते कुछ दिन आइसोलेशन वार्ड में रखा। 
     ठीक होने पर जब किशोर घर आया तो संतोष से बोला," भैया, ऐसी बीमारी पहले न कभी देखी न सुनी जिसमें मरीज को आइसोलेट रखा जाता है।" टीनू ने पूछा कि काका, यह आइसोलेट रखना क्या होता है? काका ने कहा," बेटा, आइसोलेट रखने का मतलब है अलग रखना।" टीनू ने पूछा," क्या वैसे ही जैसे दादाजी हमसे अलग वृद्धाश्रम में रहते हैं? क्या इसे ही आइसोलेट रखना कहते हैं? क्या उन्हें भी कोई बीमारी थी? क्या वे अभी तक ठीक नहीं हुए?"
      अनायास ही पूछे गये टीनू के ये मासूम सवाल दोनों भाइयों को कुछ वर्ष पूर्व ले गये जब वे अपने पिता को वृद्धाश्रम छोड़ आये थे। वे टीनू से बोले कि बेटा, बीमार दादाजी नहीं बल्कि हमारी मानसिकता थी। फिर किशोर ने वृद्धाश्रम फोन लगाकर पिता से बात कर कहा," पिताजी, हमें क्षमा कर दीजिये। हम बेहद शर्मिंदा हैं।" फिर रूंधे गले से कहा," आपका आइसोलेशन खत्म हुआ, जैसे ही शहर के हालात सामान्य होंगे हम आपको लेने आयेंगे।" ****


5.संवाद लेखक      
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तलाक का मुकदमा चल रहा था। अगली तारीख के दो दिन पहले रणवीर और माया की बेटी तानिया लापता हो गयी। तानिया के स्कूल में, उसकी सहेलियों को, शहर में रहने वाले रिश्तेदारों को, दोस्तों को फोन कर डाला पर कहीं से बेटी की खबर नही मिली। फिर दोनों गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने पुलिस स्टेशन गये। पुलिस ने आश्वासन दिया और वे लौट आये। घर पहुंँचे तो माया की नजर फोन के नीचे रखे एक कागज पर गयी। पढ़ा तो होश उड़ गये, लिखा था," मम्मी पापा दो दिन बाद आप दोनों अलग हो जायेंगे, फिर मुझे कौन अपने पास रखेगा इस पर लड़ेंगे। आप दोनों को बहुत लड़ता देख चुकी, अब और लड़ाई न हो इसलिये मैं जा रही हूँ।"
     बेटी का यह कदम माता पिता के लिये अकल्पनीय था। दोनों सोफे पर धड़ाम से बैठ गये। तभी अचानक तानिया सामने दिखी। उन्होंने सोचा कि शायद यह हमारा खुली आँखों का सपना है पर जब तानिया ने दोनों से पूछा," मम्मी पापा, आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं, साथ मिलकर मुझे ढूंढने के लिये इतनी भागदौड़ कर सकते हैं तो क्या मेरे ही लिये साथ रह नहीं सकते?"  तब उन्हें अपने स्वप्न की यथार्थता का आभास हुआ। बेटी का यह सवाल उस एटम बम जैसा था जिसने रणवीर और माया के बीच खड़ी दीवार को तहस-नहस कर दिया। 
    दीवार तो ढह गयी पर एक सवाल अब भी खड़ा था कि वह चिट्ठी, यह सवाल एक छोटी बच्ची की दिमाग की उपज तो हो नहीं सकता, तो फिर... तभी पर्दे के पीछे माया को अपनी माँ दिखी और वह समझ गयी कि इस नाटक का संवाद लेखक कौन है। ****


6.मिस कॉल       
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किसी काम से शंकर अस्पताल गया। वहाँ उसे अपने गाँव का दोस्त कान्हा मिला। उसने शंकर को देखते ही कुछ शिकायती लहजे में पूछा," कब से फोन लगा रहा था पर तुमने उठाया क्यों नहीं? देखो, कितने मिस कॉल होंगे मोबाइल में?" शंकर को ख्याल आया कि उसका फोन तो साइलेंट पर है। उसने मोबाइल पर एक नंबर दिखाते हुए कान्हा से पूछा कि क्या यह तुम्हारा नंबर है? कान्हा ने कहा कि हाँ, यही है। शंकर ने कहा," सॉरी यार, वो कुछ दिनों से किसी अनजान नंबर से बार-बार फोन आ रहे थे तो मुझे लगा कि इस बार भी कोई ऐसे ही.. खैर, बताओ क्या बात है?" कान्हा ने कहा," मैं पिताजी के साथ गाँव से आया था, एक्सिडेंट में वे बुरी तरह घायल हो गये, डाक्टर ने कहा कि आपके पिता को खून चढ़ाना होगा पर ब्लड बैंक में उनके ग्रुप का ब्लड नहीं है। आपका कोई पहचान वाला हो तो उसे बुला लें। तब मुझे तुम्हारा नंबर याद आया और मैं तुम्हे फोन पर फोन लगाने लगा।" शंकर ने फिर से मांफी मांगी और कहा," अब मैं आ गया हूँ, चिंता मत करो, कहाँ है अंकल?" कान्हा फफककर रोते हुए बोला कि अब वे नहीं रहे। 
    शंकर की निगाह अपने मोबाइल पर गयी और उसे लगा मानो वह कह रहा हो कि तुमने मुझे उठाया क्यों नहीं? तुमने महज कॉल ही नहीं बल्कि दोस्ती के अपने फर्ज को भी मिस कर दिया। ****

7.नशा
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शहर में अपने-अपने कार्यक्षेत्र के कुछ जानेमाने लोगों की महफिल जमी थी। बातों का रूख कुछ ऐसा चला कि वे सब अपना गुणगान करने लगे। डॉक्टर ने कहा," मेरे क्लिनिक में बहुत साफ सफाई रहती हैं। मरीजों का पूरा ध्यान रखा जाता है। ठीक होने पर मरीज जाते हुए बोलता है कि अस्पताल हो तो ऐसा।" वकील ने भी अपनी पीठ ठोंकी और कहा," मैंने चालीस केस लड़े हैं अभी तक, और एक भी नही हारा। मेरी दलीलों से विपक्षी वकील चारों खाने चित हो जाता है। मुझसे सलाह लेने वालों की कतार लगी रहती है।" अब साहित्यकार भी पीछे न रहते हुए बोला," मेरी चार किताबें छप चुकी हैं। लोगों ने बहुत पसंद की। पाँचवी किताब भी छपने को तैयार है। सब कहते हैं कि आप बहुत कमाल का लिखते हैं।" शिक्षक को भी जोश आ गया, वह बोला," मेरा पढ़ाने का तरीका बच्चों को इतना जमता है कि वे और कहीं जाना ही नहीं चाहते। वे कहते हैं कि आपका समझाया हुआ दिमाग में बैठ जाता है।"
      पास में बैठे मि. अशोक से चारों ने कहा कि आप भी कुछ बताइये न अपने विषय में। मि. अशोक उठकर चल दिये। उनकी पत्नी कोमल भी उनके साथ थी। वह उनसे बोली," क्षमा कीजियेगा, पर मेरे पति नशे से दूर रहते हैं।" चारों बोले कि ये क्या कह रही हैं आप, हम कहाँ मदिरापान कर रहे है? कोमल ने कहा," किसने कहा कि नशा केवल मदिरा का ही होता है? सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए दूसरों से मिल रही प्रशंसा से जो चढ़ता है उसे भी नशा ही कहते हैं।" ****


8.भाई दूज       
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     कभी कोई कपड़ा फट जाये तो किसी अच्छे रफूगर से कपड़े को ऐसे रफू करवाना कि वह पहले जैसा ही दिखे, कुर्सी का पाया टूट जाये तो बढ़ई से नया पाया इस तरह लगवाना कि कुर्सी पहले जैसी लगने लग जाये, चीजें जब तक पहले जैसी नजर न आये केतन को चैन नहीं आता था, यह उसकी आदत थी, उसे ऐसे काम करने को कोई न कोई मिल भी जाता था, छोटा-मोटा जुड़ाई का काम तो वह खुद भी कर लिया करता, इस तरफ उसका दिमाग खूब चलता था।
     दीपावली की सफाई करते हुए काँच के लैंप का थोड़ा सा हिस्सा टूट गया, आदतन केतन क्विक फिक्स से लैप के टूटे हिस्से को जोड़ने लग गया। पत्नी ने कहा," क्विक फिक्स से यह कोई जुड़ेगा क्या? कुछ दिन चिपका रहेगा और फिर गिर जायेगा।" केतन ने कहा," ऐसे कैसे गिरेगा? तुम देखना मैं ऐसे  चिपकाऊँगा कि गिरना तो दूर कोई यह तक बता नहीं सकेगा कहाँ से टूटा था।" जोड़ने के बाद लैप दिखाकर केतन ने पत्नी से कहा," यह देखो, हो गया ना पहले जैसा, देखा मेरा कमाल।"
    पत्नी ने केतन से कहा," आप जो जतन करते हैं चीजों को पहले जैसा रूप देने या दिलवाने के लिए उस आदत की जितनी तारीफ की जाये कम है। अपनी इसी आदत को बरकरार रखते हुए बहन से दरक चुके अपने रिश्ते को भी पहले जैसा बना लीजिये, ठीक वैसे ही जैसे यह काँच।" पत्नी ने केतन को यादों के उन गलियारों में पहुँचा दिया था जहाँ वह गाहे-बगाहे चले जाया करता था, हुआ यह था कि अपनी बहन से उसकी कुछ ऐसी अनबन हो गयी थी कि ना वह बहन के यहाँ जाता और न उसकी बहन मधु आती, नौबत यहाँ तक पहुँच गयी कि केतन ने अपनी शादी में भी बहन को बुलाने से माता-पिता को मना कर दिया, दोनों ने समझाया पर सब बेकार। यादों के तार छिड़ चुके थे, गिले-शिकवों के कितनी भी घाव क्यों न लगे हों पर कहते हैं ना कि समय से बड़ा चिकित्सक नहीं होता, और फिर भाई को बहन की याद नहीं आये क्या ऐसा कभी हो सकता है? 
     भाईदूज आयी, केतन ने कार निकाली और पत्नी को लेकर बहन के घर चल दिया, भाईदूज पर सरप्राइज देना चाहता था इसलिये बहन को आने की सूचना नहीं दी। मधु भी यादों में भैया से बातें किया करती थी, व्यक्ति चाहे रिश्ता छोड़ दे पर यादें उसे नहीं छोड़ती, जब केतन ने दरवाजा खटखटाया तब भी वह याद ही कर रही थी भैया को, भैया भाभी को देखा तो कुछ समय तक तो उन्हें टकटकी लगाए देखती रही, भाभी ने कहा कि अंदर नहीं बुलायेंगी? मधु बोली," भाभी, आप तो पहली बार मेरे घर आयी हैं, रूकिये मैं आरती की थाली लाती हूँ।" आरती करके बड़े प्यार से दोनों को अंदर लायी, लंबे अरसे बाद सब मनमुटाव भुलाकर भाई बहन ने दिल खोलकर बाते की, दोनों के मन का मैल आँखों के रास्ते बहकर साफ हो गया था। बहन ने भाई को भाईदूज का तिलक लगाया, भाई ने बहन को एक सुंदर साड़ी उपहार में दी और कहा," जब घर आओ तो यह साड़ी ही पहनकर आना।" मधु ने कहा," बहुत अच्छी है साड़ी, थैंक्स भैया।" केतन बोला," थैंक्स मुझे नहीं, अपनी भाभी को कहो, साड़ी वही लायी है और मुझे यहाँ लाने का श्रेय भी उसे ही जाता है। मन तो बहुत बार हुआ पर पहल कैसे करूँ इसी कशमकश में रहा हमेशा, गलती मेरी जो थी।" मधु ने केतन से कहा," कुछ यही मुश्किल मेरी भी थी भैया पर भाभी ने तो हम दोनों की सारी मुश्किल एक ही झटके में हल कर दी।" फिर भाभी से कहा," थैंक्स भाभी, मुझे पता होता तो मैं भी आपके और भैया के लिये कुछ उपहार ले आती।" भाभी बोली कि तुम्हारा घर आना ही हमारे लिये सबसे बढ़िया उपहार होगा।****

9. ब्यूटीफुल गिफ्ट    
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अखबार में कुछ पढ़कर योगेश कहीं चला गया। वापस आया तो पत्नी सुनीता ने पूछा कि आप कहाँ गये थे? योगेश ने बताया कि अपने दोस्त से मिलने गया था। सुनीता के सवालों से बचने के लिये योगेश फिर बाहर निकल गया। 
      पंद्रह दिन बाद योगेश ने पत्नी से कहा," मैं कहीं जा रहा हूँ, हो सकता है कि कल आ जाऊँ या कुछ दिन भी लग सकते हैं। सुनीता ने पूछा कि कहाँ जा रहे हैं तो योगेश ने कहा कि आकर बताऊँगा। 
      योगेश कभी ऐसा नहीं करता था इसलिये सुनीता सोचने लगी कि कहीं कोई चिंता की बात तो नहीं है। दो दिन इसी चिंता में निकले। दरवाजे पर दस्तक हुई, सुनीता ने दरवाजा खोला तो सामने योगेश खड़ा था। वह हैरान थी, योगेश को देखकर नहीं बल्कि उसके कृत्रिम हाथों को देखकर। योगेश ने माफी मांगते हुए पत्नी से कहा," सॉरी सुनीता, उस दिन जब तुम्हें विशु के रिपोर्ट कार्ड पर दस्तखत करते देखा तब मुझे पिछले साल मेरे साथ हुई वह दुर्घटना याद हो आयी जिसने मेरे दोनों हाथ मुझसे छीन लिये थे। यह मत समझना कि तुम्हारे दस्तखत करने से मैं दुखी हूँ, वास्तव में हाथों की कमी मुझे खल रही थी। मैंने अखबार में कृत्रिम हाथ लगाने के शिविर के बारे में पढ़ा तो आशा जगी। डॉक्टर से बात की, उन्होंने हाथ लगने का आश्वासन दिया। तुम्हें और विशु को सरप्राइज देना चाहता था इसलिये कुछ नहीं बताया।" पति की माफी का जवाब पत्नी ने भावविभोर हो गले लगाते हुए यह कहकर दिया," थैंक्स फॉर सच ए ब्यूटीफुल गिफ्ट।" 
       विशु की अर्धवार्षिक परीक्षा का रिपोर्ट कार्ड आया। उसने पापा को दिखाया। उन्हें उनका पेन देकर कहा कि इस पर अपने दस्तखत कर दीजिये। योगेश ने आँखों में खुशी के आँसू की चमक लिये रिपोर्ट कार्ड पर दस्तखत किये। वही चमक सुनीता और विशु की आँखों में भी थी। ****


10.सम्मान पत्र       
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तीन संस्थाओं की अध्यक्ष शालिनी जी, विमला जी, और नंदिनी ने आपस में बात की। उन्होंने इस बार साथ मिलकर महिला दिवस पर सम्मान कार्यक्रम करने का तय किया। 
        सात मार्च को शालिनी जी का नंदिनी को फोन आया। उन्होंने कहा," क्षमा करना, मैं कल के अपने कार्यक्रम में नहीं आ पाऊँगी। वृद्धाश्रम से खबर आयी कि मेरी सास बीमार है, अभी मैं वृद्धाश्रम ही आयी हुई हूँ। उनको भी आज ही का दिन मिला बीमार पड़ने को। वे अस्पताल ले चलने की जिद कर रहीं है, ले ही जाना पड़ेगा वरना कल को उनको कुछ हो गया तो लोग नाम रखेंगे।"  
      नंदिनी ने शालिनी जी का फोन रखा ही था कि विमला जी का फोन आया। उन्होंने कहा," सॉरी, मेरी सास को बुखार है तो कल मेरा आना संभव नहीं है। मैं उनको छोड़कर नहीं आ सकती।" नंदिनी ने कहा," आपने कार्यक्रम के लिये कितनी मेहनत की है, अब आप नहीं होंगी तो हमें अच्छा नहीं लगेगा।" विमला जी ने कहा कि वैसे तो मेरे पति हैं सास के पास परंतु मेरी जिम्मेदारी तो आखिर मेरी ही है। घर के बड़े बुजुर्गों के प्रति इस जिम्मेदारी का निर्वहन करना भी एक तरह से उनका सम्मान करना ही तो है और मेरे विचार से सम्मान करने की शुरुआत अपने घर से ही होनी चाहिये।
      आयोजन सफल रहा। अंत में नंदिनी ने विमला जी शालिनी जी और अपनी पहचान की कुछ महिलाओं को वीडियो कांफ्रेंसिंग पर जोड़ा, सभी को विमला जी के विचारों से अवगत कराकर निवेदन किया मेरी इच्छा है कि यह विचार घर घर पहुँचे। फिर एक सम्मान पत्र दिखाते हुए विमला जी से कहा," यह सम्मान पत्र आपके उच्च विचारों के नाम। असल में सम्मान तो ऐसे विचारों का होना चाहिये।" सभी ने विमला जी की तारीफ में अपना दिल खोल दिया और उधर विमला जी की आँखें आँसुओं को रोकने में असफल हुए जा रही थी। ****

11. ममता का आँचल
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     दुष्कर्म का आरोपी जयंत पिता के रूतबे के कारण कुछ ही दिनों में जमानत पर छूटकर खुला घूमने लगा और पीड़ित चंदा, जो बदहाल अवस्था में सड़क पर पड़ी थी, को बालिका संरक्षण केंद्र वाले अपने साथ ले आये, उसकी शारीरिक व मानसिक हालत बहुत खराब थी, उसके अच्छे से अच्छे इलाज का बंदोबस्त किया गया, चंदा को सदमे से बाहर लाने की हरसंभव कोशिश की जा रही थी लेकिन कोई इलाज, कोई कोशिश असर नहीं कर रही थी, करती भी कैसे क्योंकि चंदा न तो भोजन करती, न दवाई लेती, उसकी बस एक ही जिद थी कि मुझे अपने घर जाना है, सभी उसे समझाते कि तुम ठीक हो जाओ फिर चली जाना पर चंदा ने जैसे कुछ न सुनने की कसम खा ली थी।
     समाज सेवी अनीता जो अक्सर संरक्षण केंद्र सहायता हेतु आया करती थी एक दिन आयी, चंदा को देखा, वहाँ की संरक्षिका से पूछा," यह बच्ची कौन है, पहले तो इसे यहाँ नहीं देखा, क्या हुआ है इसे।" संरक्षिका ने बताया कि क्या हुआ यह तो मैं नहीं जानती, इसकी अवस्था देख अंदाजा लगा कि कुछ बहुत बुरा हुआ है इसके साथ। अनीता ने पूछा," पुलिस में किसी ने इस बच्ची की कोई गुमशुदगी रपट नहीं लिखवायी?" उसने अनीता को बताया," नहीं अनीता जी, हमने पता लगाया कि इसके घर में इसकी भाभी है जिसे अपनी ननंद के लापता होने से कोई मतलब नहीं है।" 
     बच्चियों के खाने का समय हुआ, अनीता खाने की थाली लेकर चंदा के पास पहुँची, अपना परिचय दिया और बोली," चलो, मेरे साथ भोजन कर लो।" चंदा बोली," मुझे नहीं खाना, मुझे घर जाना है।" अनीता समझाकर बोली," ऐसी कमजोर स्थिति में घर जाओगी तो खुद को कैसे संभालोगी, खाना खा लो, ताकत आयेगी, ठीक हो जाओगी फिर तुम्हे कोई जाने से नहीं रोकेगा।" चंदा जिद करके बोली,"मुझे जाने दो, मैं घर जाऊँगी तो मुझमें अपने आप ताकत आ जायेगी।" अब अनीता बोली," क्यों जाना चाहती हो, किसके लिए जाना है, तुम्हारी भाभी को तो तुम्हारी फिक्र नहीं है, जाकर क्या करोगी।" चंदा सिसकते हुए बोली," भाभी को मेरी फिक्र हो न हो पर मुझे अपने छोटे भाई की फिक्र है, उसे कौन संभालेगा, कौन ध्यान रखेगा उसका, भाभी के बुरे व्यवहार से उसे कौन बचायेगा, मुझे प्लीज जाने दीजिये, मैं हाथ जोड़ती हूँ।" यह बोलते बोलते चंदा का चेहरा आँसुओं से भीग गया।
     अनीता की आँखें भी भर आयी और वह यह सोचकर दंग थी कि आज ज्यादातर लोग अपनी तकलीफ का रोना रोते हैं और यह चंदा अपनी शारीरिक वेदना, मानसिक तनाव को किनारे रख अपने भाई की चिंता में व्यथित है। अनीता सोच रही थी कि मातृत्व सुख से वंचित एक बहन इतनी छोटी सी उम्र में अपने भाई को मातृत्व सुख देकर उसे दुखों से दूर रखने को कितनी बेताब है। अनीता मातृत्व के इस नये रूप के आगे नतमस्तक हो गयी। ****
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क्रमांक - 10
नाम :- मनोज रत्नाकर सेवलकर
जन्म :-  15 अगस्त 1962 जबलपुर - मध्यप्रदेश
शिक्षा :- एम. ए. हिन्दी साहित्य

प्रकाशित कृति :- "मकड़जाल" लघुकथा संग्रह (2011)

लेखन :- बाल कहानियां, व्यंग्य लेख, कविताएं व     
            लघुकथाएं विगत चौदह-पन्द्रह वर्षों से ।
            
प्रकाशन :- अखिल भारतीय स्तर की विभिन्न   
               पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित ।
               
कृति संपादन :- "पाठक-मंचों के समीक्षा-पटल पर
               कृति"समकालीन सौ लघुकथाएं" " (2015)
               
संकलनों में :- 
"काली माटी" व "बुजुर्ग जीवन की लघुकथाएं" 
(संपादक श्री सुरेश शर्मा)
                
 "निमाड़ी मा नानी वार्ताना"
  ( संपादक श्री जगदीश जोशीला) 
                 
  "लघुकथा संसार : मां के आसपास" 
    (संपादक श्री प्रताप सिंह सोढ़ी) 
                 
    संवाद सृजन 
    (संपादक श्री बी. एल.आच्छा) 
    
  "स्वर्ग में लाल झण्डा" 
  (संपादक श्री सूर्यकांत नागर) 
  
 "लघुकथा वर्तिका" 
 ( संपादक श्रीमती उषा अग्रवाल "पारस") 
 
  संरचना-6 
  (संपादक श्री कमल चोपड़ा) 
  
अनुवाद :-    
पंजाबी में बचपन लघुकथा का अनुवाद।

सम्मान :-    
भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा आयोजित आनलाईन  कार्यक्रम में विभिन्न  सम्मान प्राप्त किये ।
                
सम्प्रति :-   
शिक्षक के पद पर कार्यरत एव निरंतर लेखन।

सम्पर्क :-  2892/ई सेक्टर सुदामा नगर, इन्दौर - मध्यप्रदेश
1. संवेदना विहीन 
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सर्दी, खांसी और बुखार के मामुली लक्षण से परेशान हो वह मोहल्ले के क्लिनिक में पहुंचा । उसका चेक-अप करने के बाद डॉक्टर ने उसे तत्काल कोरोना वाइरस की जांच के लिए शासन द्वारा निर्धारित फीवर  क्लिनिक की ओर भेज दिया । वहां उसकी जांच-पड़ताल कर रिपोर्ट आने तक कुछ दवाईयां तीन दिन लेने को कहा साथ ही उसका नाम, पता, मोबाइल नंबर सब जानकारी लेकर आराम करने व काढ़ा लेते रहने की सलाह दे घर की ओर भेज दिया । 
वह घर लौट आया । 
तीन दिन बाद  उसकी रिपोर्ट पाॅजिटिव आने से    उसके घर एम्बुलेंस घन-घनाते हुए आ गई । पूरे घर को सील करते हुए । परिवार के सदस्यों को एम्बुलेंस में बैठने का निर्देश दिया । 
घर पर ताला लगाते हुए उसने देखा आस-पड़ोस के लोग जो कभी सुख-दुख में साझीदार थे आज   घर के झरोखों से कातर निगाहों से झांक रहे थे ।
कुछ दिनों में वे सब कोरोना महामारी को मात देकर परिवार सहित स्वस्थ हो घर तो आ गये लेकिन अब भी मानवीय संवेदनाओं से परे पड़ोसी  उनके घर-परिवार  से दूरी बनाए हुए हैं। ****

2. दर्द
    ***

"दादाजी, आज हम अपने पाॅश कालोनी के बगीचे को छोड़ इतने दूर भीड़ वाले बागीचे में क्यों आ गए ?"
"बेटा,  यहां की कुछ पुरानी यादें हैं,  जिन्हें ताजा करने आ गए ।"
"कैसी यादें दादाजी !"
"बेटा, वो सामने का बड़ा-सा घर देख रहे हो । वो कभी अपने परिवार का हुआ करता था ।" दादाजी ने उंगुली के इशारे से पोते को बताया ।
"दादाजी, इतनी बड़ी और अच्छी जगह हमें क्यों छोड़ना पड़ी ?" 
एक ठंडी सी सांस भरते हुए दादाजी बोले -"बेटा, इसका जवाब तो तुम अपने पिताजी और ताऊजी से पूछना ।" 
यह कहते हुए दादाजी की नम आंखों के सामने सम्पति बंटवारे को लेकर हुए विवाद के परिदृश्य उभर आए । ****


3.दशहरा
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शहरी बसाहट से दूर बन रही मल्टी का चौकीदार रघु अपनी  पत्नी जानकी के साथ दशहरा उत्सव मनाने के लिए बडे उत्साह से  निकला ही था कि क्षेत्र में दहशत का पर्याय बल्लू अपने साथियों के साथ नशे में धुत्त उन्हें घेरते हुए बोला -
 "कहां जा रहा है रे !  इस छुईमुई को लेकर ।"
 "बल्लू भाई, दशहरा उत्सव में जा रहे हैं ।"  घबराते हुए रघु ने जवाब दिया ।
 "अबे सुन तुझ जैसे को इत्ती खुबसूरत बीबी रखने का कोई हक नहीं।  भाग यहां से ।" उसकी पत्नी  का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए बल्लू ने रघु को जोर से धक्का दिया । 
रघु अपने आपको सम्भाल न पाया और वह सामने दिवार से टकरा कर बेहोश हो गया । 
रघु को असहाय देखकर उसकी पत्नी बदहवास हो  बल्लू पर ऐसी टूट पड़ी मानो मां दुर्गा साक्षात उसके शरीर में प्रवेश कर गई हो ।  
जानकी का यह अप्रत्याशित रूप देख बल्लू रूपी रावण अपने गुर्गों संग वहां से भाग खड़ा हुआ । ****

                                  
4. बेटा 
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ठेलेवाला अपनी क्षमता से अधिक माल को लादकर भीड़भरे मुख्य मार्ग की चढ़ाई पर पूरा जोर लगा ठेला धकेल रहा था । परंतु टूटी चप्पल और तेज धूप उसके प्रयास को विफल कर रहे थे । परिणाम स्वरूप मार्ग अवरूद्ध हो गया ।
मार्ग के अवरूद्ध होते ही वाहनों की लम्बी कतार लग गई । सभी वाहन चालक परेशान हो ठेलेवाले को कोसते रहे । 
बहुत देर से सब कुछ देख सुन रहे एक नवयुवक से यह सब देखते नहीं बना । उसने अपना वाहन एक किनारे लगा, ठेलेवाले के हाथ चार कर ठेला चढ़वा दिया । थका-हारा मजदूर कुछ कह पाता उसके पूर्व वह युवक अपना वाहन लेकर रवाना हो गया । अवरोध दूर होते ही अन्य वाहन भी धुआं उड़ाते आगे बढ़ गये ।
इस भीड़ में भी किसी की मदद मिलना बड़ा सौभाग्य होता है । मजदूर धन्यवाद देने का अवसर दिए बिना चले जाने वाले युवक के बारे में  बहुत देर तक सोचता रहा, अन्त में वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि " हो न हो वह मददगार निश्चित ही किसी मजदूर का बेटा होगा ।" ****


5. कचरा
     *****

प्रतिदिन गली में आने वाली स्वीपर प्रत्येक घर के सामने झाड़ू लगाते हुए अपना निर्धारित वाक्य दोहराती- " आंटीजी, कचरा" तथा प्रत्येक घर उसका आशय जान उसकी हाथ-ट्राली में कचरा डाल देते, परन्तु मेरे पड़ोस में जब भी वह आती तब उसके वाक्य में परिवर्तन हो जाता-" दादाजी, कचरा" क्योंकि दादाजी प्रतिदिन उसी समय अपने घर के आंगन तथा आसपास की सफाई कर कचरा डस्टबिन में डालते, फिर उस स्वीपर की हाथ-ट्राली में ।
      आज भी दादाजी व्यस्त थे तथा उनकी बहू दरोगा की माफिक बरामदे में खड़ी अपने ससुरजी की गतिविधियों को देख रही थी । जैसे ही स्वीपर ने "दादाजी कचरा" कहा वैसे ही उन्होंने उससे प्रश्न  किया -" तुम मुझे इस ट्राली में कहां डालोगी ?"
      स्वीपर ने कहा- " क्यों मजाक करते हैं दादाजी....।"
      "तुम ही तो रोज कहती हो दादाजी कचरा ।"
      "वो तो दादाजी .... मैं कचरा मांगती हूं ।"
      "नहीं बेटा, मैं तो अब रोज कचरा होता जा रहा हूं...।"
      दादाजी की बात को वह तो हंसी-ठिठोली समझ आगे बढ़ गई ।  और बहू उनके आशय को समझ नाराजगी प्रकट करती, घर के अन्दर । ****                         

6. बकरे की मां
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नन्हें इकबाल के यहां बकरी ने जब दो मेमनों को जन्म दिया तब परिवार के सभी सदस्य खुशी से झूम उठे। अम्मी-अब्बा, रूखसाना, चाचा-चाची सभी । इकबाल को इन सबकी ख़ुशी का कारण समझ में नहीं आ रहा था । उसे तो बस मेमनों के रूप में दोस्त दिखाई दे रहे थे, जो उसे प्यार से मिट्टी मारेंगे, गुदगुदाएंगे । वह उनके साथ खेलेगा और बहुत मजा आएगा । प्यारे-प्यारे सफेद रंग के मेमने और एक मेमने के माथे पर काले रंग के टीके के साथ अल्ला का फजल मिला था । वह लगातार बकरी और मेमनों की गतिविधियां देख रहा था अचानक उसका ध्यान बकरी की आंखों की ओर गया । उसे लगा बकरी की आंखें भिगी हुई है । उसने बकरी के और पास जाकर देखा- "अरे, बकरी तो रो रही है ।" उससे रहा नहीं गया वह दौड़ा-दौड़ा दादाजान के पास पहुंचा और अपनी बात उनके सामने रखी -" दादाजान, मेमनों को दुलारते हुए बकरी क्यों रो रही है ।" दादाजान अपने पोते के प्रश्न से अचंभित हुए पर वास्तविक स्थिति छुपाते हुए उन्होंने कहा-"शायद बकरी के आंख में कुछ लग गया होगा ।" 
"नहीं दादाजान, मैं तो वहीं था ।  उसे लगता तो मुझे भी दिखाई देता ।" इकबाल अपनी बात पर अड़ा हुआ था । " एक बात और बताईए दादाजान, मेमनों के पैदा होने पर सभी लोग खुश क्यों हो रहे थे ?"
दादाजान ने एक ठंडी आह लेकर अपने पोते को समझाया -"बेटा, ये सभी मेमनों के आ जाने से बकरा ईद पर बकरे खरीदने की समस्या से निजात पा गए और हां बेटा, जहां तक बकरी के रोने की बात है तो यह कहावत मशहूर है कि बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी । इसलिए वह उनकी सलामती की दुआ में आंसू बहा रही है ।"
"दादाजान, मैंने जबसे इन मेमनों को देखा है मैं तो उन्हें अपना दोस्त मान चुका हूं । मैं उन्हें इन सबसे दूर रखूंगा और कोई इन्हें मारने ले जाएगा तो बोलूंगा " पहले मेरी गर्दन उतारो, फिर मेरे दोस्तों की उतारना ।" यह कहते हुए मासूम इकबाल फफक-फफक कर रोने लगा । उसका रोना सुन परिवार के सभी सदस्य उसे चुप कराने लगे । दादाजान ने जब उसके रोने का कारण सबको बताया तो सभी ने एक स्वर में कहा- " हम सभी इकबाल के दोस्त मेमनों को बकरा ईद का बकरा नहीं बनाएंगे ।" ****

                             
7. बुलबुले पर सवारी
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"आकाश, तू .... कल बिना बताए कहां ... चला गया था? मैं .. मैं .. कितना परे... परेशान हो रहा था । तू .. कुछ समझता ही नहीं है ।  तुझे समय पर नहीं आना है तो ... कल से मत आना ।"  पिताजी लगातार बोलते-बोलते हांफने लगे थे । 
गम्भीर बीमारी से ग्रसित पिताजी की देखभाल के लिए आकाश को रखा था ।  अक्सर उसे समय पर आने के लिए  फोन लगाना पड़ता लेकिन वह अपनी आदतों से बाज नहीं आता  ।  पिताजी की सेवा के अतिरिक्त उसके पास कोई ओर काम भी न था । फिर भी उसे जब भी देरी से आने का कारण पूछो तो कोई भी बहाने बना देता ।  उसकी इन्ही आदतों को देखते हुए मैंने भी उसे सख्ती से कल से नहीं आने की नसीहत दे डाली ।
वह चुपचाप सुनता रहा कुछ नहीं बोला । लेकिन
थोड़ी देर बाद उबलते हुए बोला- " भैय्या, जब बाबा को ज्यादा  तकलीफ थी तब मैंने आपको कितना साथ दिया । लाॅकडाउन में पुलिस वालों के डंडे खा कर भी मैं आया था ।  अब इस कोरोना काल में मेरे पास कोई काम नहीं है तब मुझे निकाल रहे हो ।"   वह रूआंसा हो पिताजी के काम में जुट गया । 
मैंने उसे सांत्वना देते हुए कहा-"आकाश, हम सब जीवन की इस तरंगिणी में बह रहे हैं और ये बुजुर्ग अनुभव के बुल-बुले हैं।  इन पर सवारी कर अपनी जिंदगी की नैया पार नहीं की जा सकती । जब तक ये हैं अनुभव और ज्ञान ले ले । समय की कीमत करना सीख ।"
पिताजी की  हालत और मुसीबत में उसके द्वारा दिए गए साथ को देखते हुए उसकी इस नाराजगी को भी मैंने स्वीकृति प्रदान कर दी। लेकिन मन-ही-मन सोचा पिताजी के  जैसी जिन्दगियों से कमाने वाले नौकरी नहीं अपितु  बुलबुलों पर सवारी करते हैं ।****
                             -

8. इंतजार
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पढ़ाई में साधारण लेकिन कद-काठी में मजबूत सुदीप के बारे में उसके पिता अक्सर इस चिंता में रहते थे कि आज के इस प्रतिस्पर्धा के समय में उनका बेटा हमेशा पढ़ाई में औसत ही क्यों रहता है ?  फिर जब वे अपने कार्यालय में कार्यरत सहकर्मियों के अव्वल आ रहे बच्चों से उसकी तुलना करते तो रोज घर में तनाव बढ़ जाता । सुदीप यूं तो कामकाज में हमेशा एक सैनिक की तरह चुस्त-दुरुस्त रहता व मजबूत शारीरिक बनावट से दोस्तों में रूआब जमाये रखता । लेकिन उसकी इन गतिविधियों को पिताजी ने आवारागर्दी करार दे दिया था ।
एक दिन जब पिताजी ने उसे सभी दोस्तों के सामने डांटते हुए यह कहा था-"तुझे पाल-पोस कर क्या इसलिए बड़ा कर रहा हूं कि तू आवारा बनकर इन लुच्चे-लफंगो के साथ मटरगश्ती करे । अब उम्र हो गई है बच्चे नहीं हो । तुम यदि अभी अच्छा पढ़-लिख गये तो कोई अच्छी नौकरी मिल जाएगी। और यदि अपनी ताकत पर ज्यादा ही भरोसा है तो जाओ मिलेट्री में भर्ती हो जाओ ।"
पिताजी द्वारा दोस्तों के सामने हुई बेइज्जती से सुदीप निराश हो गया था। तब उसने मां और बहन को घर छोड़कर जाने की बात कही थी। एक रात वह अचानक गायब हो गया। सभी जगह तलाशा व दोस्तों से पूछा लेकिन किसी को कुछ नहीं मालूम कि आखिर सुदीप गया कहां ?  निराश हो पिता पुत्र को कपूत समझ भूलने का प्रयास कर रहे थे और मां पुत्र के वापस लौटने के इंतजार में दरवाजे पर टकटकी लगाए बैठी रहती थी ।
कईं दिनों बाद डाक से आज एक पत्र आया जिसमें लिखा था- "पापा, आपके आदेश का पालन करते हुए मैंने मिलेट्री ज्वाईन कर ली ।  हाल फिलहाल मेरी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में है । अब आपका बेटा आवारा नहीं देश का रखवाला बन गया है । मैं इतने दिनों तक कहां रहा ? कैसे रहा? आदि अनेक प्रश्नों के उत्तर देने और बहुत-सी बातें करने के लिए मैं छुट्टियां स्वीकृत होते ही आ रहा हूं । मां और दीदी तुम चिंता न करना मैं यहां खुश हूं । आपका बेटा - सुदीप ।"
इस पत्र को मां और बहन कई बार पढ़ चुके लेकिन पिता अपने बेटे के इंतजार में नम आंखों से मुख्य द्वार की ओर लगातार देख रहे थे कि कब उनका बेटा आकर उनके गले लगेगा और कब वे कह पाएंगे- " बेटा, मुझे माफ करना मैंने तुझे समझाने के लिए डांटा था दूर चले जाने के लिए नहीं ।"
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9. रिश्ता 
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किशोरावस्था से युवावस्था की दहलीज पर आते आते  मन नित नये विचारों की कौंध से जगमगाता रहता है । विपरीत  लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ता जाता है ।  
ऐसा ही एक पात्र है वरूण ।
वह   जिस घर में रहता  था उससे जुड़ा घर किसी के न रहने से उजाड़ रहता था ।
एक दिन उस घर में एक परिवार आकर बस गया । अब उजाड़ घर में बहार थी । बहार में एक बुलबुल भी थी । चुंकि वरूण का घर सटा होने से उसकी पहली हाय हैलो उससे हुई ।  वरूण ने अपना परिचय दिया उसने अपना ।  यदा-कदा बातें होने लगी । 
उसके अनछुए मन पर धीरे-धीरे उसके प्रति आकर्षण  होने लगा । लेकिन वह अपने मन की बात न कह पा रहा था । 
वह जहां जहां जाती, वह भी उससे कुछ दूरी पर अपनी साइकिल से चल पड़ता । 
आज जब वह  एक बदनाम चौराहा पार करते समय कुछ मनचलों के  छेड़छाड़ से परेशान हो रोने लगी तब  वरूण के शरीर में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी ।  उसने आव देखा न ताव उन बदमाशों से वह जा भीड़ा  ।
इस तमाशे के बीच उसने  वरूण के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा  -"भैय्या, इन गुंडों का तो ये रोज़ का शगल है, आप कब तक बचाने के लिए मेरे पीछे आते रहोगे ।"  
  इस नये रिश्ते को सुन वरूण का चेहरा आश्चर्य मिश्रित भाव से उसकी ओर देख रहा था साथ ही उस पर चढ़ा आशिकी का भूत न जाने कहां रफ़ूचक्कर हो गया ।  ****
                                         

10. राजतंत्र
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एक जंगल में दो शेर रहते थे। एक जवान और एक बूढ़ा। बूढ़ा कईं दिनों से राजा था ।  दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी। लेकिन एक दिन दोनों में वर्चस्व को लेकर कुछ ऐसी गलत फहमी हो गयी कि  दोनों एक-दूसरे के दुश्मन हो गए। 
एक दिन बूढ़े शेर को कुछ जंगली जानवरों के समूह ने सत्ता से पदच्युत कर  दिया ।  वह असहाय हो घिघियाने लगा ।  तभी वहां  जवान शेर आया और ऐसा दहाड़ा की सारे जंगली जानवर उसके साथ हो गये । 
ये सब देख  बूढ़े शेर ने जवान शेर से पूछा की "तुम कईं दिनों तक मेरे अच्छे दोस्त रहे फिर ऐसा क्या हुआ कि तुम अपने स्वार्थवश मुझसे दुश्मनों की तरह व्यवहार करने लगे  ?"
तब जवान शेर ने बुढ़े शेर के कान में फुसफुसाते हुए कहा - "आपस में हम भले ही दोस्त रहे हों लेकिन राजनीति की दृष्टि से देखा जाए तो समाज में मैं अपनी ऐसी कमजोरी नहीं दिखाना चाहता जिसका  फायदा कोई ओर उठा ले।" 
बूढ़े शेर ने महसूस किया कि युवा शेर में राजनैतिक पिपासा बहुत अधिक बलवती हो गई है ।  ऐसे में इस परिवर्तन को जनता-जनार्दन का आदेश मान जंगल से तत्काल पलायन करना ही उचित होगा  । ****

                             
11. तरक्की
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गांव को शहर तक जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री सड़क निर्माण योजना का उद्घाटन हुआ । उसी गांव के बंसी को मजदूरों को लाने का ठेका दिया गया । 
जब सड़क का काम शुरू किया गया तब बंसी की माली हालत  कोई खास अच्छी न थी । 
उसने गांव के कुछ मजदूरों को लेकर काम शुरू किया तब उसके कपड़े मैले-कुचैले थे ।  सड़क थोड़ी आगे बढ़ी अब वह सफेद कुर्ते पजामे में आने लगा । सड़क थोड़ी ओर आगे बढ़ी, अब वह पैदल नहीं मोटरसाइकिल पर आने लगा । जैसे जैसे सड़क का विस्तार होता रहा वैसे-वैसे उसका भी विकास होना लाजिमी था । 
सड़क पूरी होते-होते बंसी कब बंसीलाल ठेकेदार बन बस्ती-बसाहट का प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित व्यक्ति हो गया किसीको भी पता नहीं चला  । ****                           
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क्रमांक - 11
                                                                     
नाम : गोकुल प्रसाद सोनी  
साहित्यिक नाम :  गोकुल सोनी
माता का नाम-- स्मृति शेष- श्रीमति लक्ष्मी  
                      देवी सोनी 
पिता का नाम-- स्मृति शेष- श्री हीरा लाल   
                      सोनी 
पत्नि का नाम-- श्रीमति राधेश्री सोनी 
जन्मतिथि--      १६ मई १९५५ 
जन्म स्थान--     खिमलासा (जिला सागर)    
                       मध्य प्रदेश 
शिक्षा--            बी.एस सी, एल एल बी,  
                      सी.ए.आई.आई.बी. (बैंकिंग)
लेखकीय विधा: -
 कविता-छंद युक्त, छंद-  मुक्त, व्यंग्य-गद्य एवं पद्य,      मुक्तक, गीत, बुंदेली कवितायेँ, लघुकथा, कहानी, समीक्षा आदि                       
विशेष--          मंचीय कवि-सम्मलेन, मंच-संचालन आदि.
प्रकाशन--       नवभारत अखवार के    
                     साप्ताहिक व्यंग्य कालम    
   “ख़बरों पर निशाना” के पूर्व स्तंभकार,    
    संपादन-“स्वर्ण शिखा” (पत्रिका), 
    उप-संपादन–इन्द्रधनुष-१ (पत्रिका)                         

प्रबंध संपादक- सत्य की मशाल (मासिक पत्रिका) भोपाल   
संपादकीय सदस्य- पत्रिका देवभारती
उप संपादक- मासिक पत्र "लघुकथा वृत्त"

प्रकाशित कृतियाँ:-   
१. फोल्डर- छींटे और बौछार.  
२. सारे बगुले संत हो गये (व्यंग्य-कविता-संग्रह)
 ३. कठघरे में हम सब (कहानी संग्रह)
 ४. अपने अपने समीकरण (लघुकथा संग्रह)

शीघ्र प्रकाश्य   
५. गीत को गीता बना लो (गीत संग्रह)
६. आह कोरोना वाह कोरोना (कहानी संग्रह)

सम्मान एवं अलंकरण-
(१) गिरधर गोपाल गट्टानी स्मृति सम्मान.  (म.प्र. लेखक संघ वर्ष अगस्त २०१०) 
(२) अलंकरण-“मनु श्री” (इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था-बैरसिया वर्ष नवम्बर १९९५)                                            (३) अलंकरण-“सत्य श्री” (सार्वदेशिक सत्य समाज बोरगांव, वर्धा वर्ष अक्टूबर २००१) 
(४) अलंकरण-“भावना भूषण” (सार्वदेशिक सत्य स. बोरगांव वर्धा महाराष्ट्र
(५) राजभाषा शिखर अलंकरण वर्ष-२०१९ (मध्य प्रदेश नवलेखक संघ भोपाल) 
(६)   शांति-गया स्मृति सम्मान (व्यंग्य हेतु)  
(७) व्यंग्यश्री सम्मान वर्ष-२०१८ (शिव संकल्प साहित्य परिषद् होशंगाबाद)
 (८) अमित रमेश शर्मा मंचीय कवि सम्मान- २०१८ (म.प्र लेखक संघ, भोपाल)
  (9) तुलसी सम्मान वर्ष-2020  
(तुलसी साहित्य अकादमी, भोपाल)    
(10) साहित्य श्री सम्मान वर्ष-2020
(तूलिका बहुविधा मंच, एटा, उ.प्र.)
(11) पर्यावरण प्रहरी सम्मान वर्ष-2020
(तूलिका बहुविधा मंच, एटा, उ.प्र.)
(12) अतुकांत काव्य गौरव सम्मान
(तूलिका बहुविधा मंच, एटा, उ.प्र.)   
(13)  श्री जितेंद्र लालवानी स्मृति प्रथम राष्ट्रीय पुरस्कार वर्ष 2020      
(14)   "प्रखर प्रज्ञा" राष्ट्रीय सम्मान द्वारा- साहित्य संगम उत्तर प्रदेश  2021                            
और भी कई साहित्यक, सामाजिक, बैंक एवं  रक्षा सेवा, संस्थाओ द्वारा सम्मान एवं पुरस्कार. 

रचनाएँ कई अख़बारों, पत्र-पत्रिकाओं, में प्रचारित, प्रसारित. 'आकाशवाणी' तथा  'दूरदर्शन' पर कविताओं एवं गीतों का सतत प्रसारण   
     
अन्य उप्लब्धियाँ      
पू. अध्यक्ष ‘इन्द्रधनुष’ साहित्यिक संस्था, बैरसिया.
पू. अध्यक्ष मध्य प्रदेश लेखक संघ,जिला इकाई, विदिशा.
पू. अध्यक्ष सार्वदेशिक सत्य समाज, जिला भोपाल.  
पू. संरक्षक स्वर्णकार समाज, विदिशा.
पू. सचिव नगर राष्ट्रभाषा कार्यान्वयन समिति, जिला विदिशा. (गृह-मंत्रालय दिल्ली से नियुक्त)

वर्तमान-- सचिव-  “कला मंदिर” साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भोपाल 
कार्यकारिणी सदस्य- मध्य प्रदेश लेखक संघ, प्रांतीय कार्यालय भोपाल.

वर्तमान पता--    
82/1, सी-सेक्टर, साईंनाथ नगर
कोलार रोड, भोपाल - मध्यप्रदेश
1. कैरियर 
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     आज मिसेज भल्ला के घर पार्टी थी, मोंटू को वे डांट भी रही थी, और समझा भी रही थी. देखो मोंटू, आज की किटी पार्टी विशेष है. आज की थीम है, "बच्चे और उनका कैरियर" तुमको तो पता ही है. आज सभी आंटियां आपने-अपने बच्चों को लेकर अपने घर आयेंगी. सभी बच्चों का स्केटिंग, डांसिंग, पेंटिंग, सिंगिंग, म्यूजिक, और पोएट्री काम्पिटीशन रखा गया है. उस में जो बच्चा ओवर आल विनर होगा, उस बच्चे और उसकी मम्मी को बड़ा सा प्राइज मिलेगा. तुम अपने कमरे में खिलौनों से खेलने में मस्त रहते हो, आज कोई खेल नहीं. दिन भर तैयारी करो. फिर हाथ पकड़कर, जोर से  भम्भोड़कर बोली- याद रखना, शाम को मुझे प्राइज चाहिए, समझे. देखो मेरी नाक मत कटवा देना. चिंटू डरा-डरा सा बोला जी मम्मी, पर मुझे नींद आ रही है. मम्मी बोली- कोई नींद नहीं जाओ, कमरे में और तैयारी करो.
     थोड़ी देर बाद जब मिसेज भल्ला चुपचाप चिंटू को देखने गईं तो चिंटू एक बन्दर के खिलौने के गले में रस्सी बाँध कर उसे खूब उछाल रहा था, उसको गुलाटी खिला रहा था और पटक रहा था पर उसके चेहरे पर सहज आनंद न होकर गुस्सा और तनाव था और कुछ बडबडा रहा था. उसने ध्यान से सुनने की कोशिश की तो वह बन्दर को रस्सी से उछाल कर गुलाटी खिलाते हुए डांट रहा था. ए बंदर...जल्दी नाच.. तुझे फर्स्ट आना है. देखो सो मत जाना. तुझे आर्टिस्ट बनना है, सिंगर बनना है, म्यूजीशियन बनना है, डांसर बनना है, और हाँ खिलाड़ी और पोएट भी बनना है. अभी.. इसी वक्त... सब कुछ बनना है और याद रखना, तुझे गणित, इंग्लिश, जी.के., ड्राइंग हिंदी, साइंस, सभी में 'ए प्लस' भी लाना है. नाच बन्दर नाच, नहीं तो बहुत मारूंगा.. बहुत मारूंगा और बन्दर को बार बार जमीन पर पटक कर सुबक-सुबक कर रोने लगा. मिसेज भल्ला किंकर्तव्य विमूढ़ सी खडी उसे देख रही थी. उनको कुछ भी  समझ में नहीं आ रहा था. वे चिंटू को गले से लगाकर खुद सुबक-सुबक कर रोने लगीं ***

                     
2. अंधविश्वास 
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     उनका एन.जी.ओ. गाँव-गाँव में जाकर लोगों को शिक्षित करता और डायन प्रथा, काला जादू तथा अंधविश्वास को दूर करने का कार्य करता है. सरकार से भी उनको इस कार्य के लिए काफी आर्थिक अनुदान मिलता है. वे “अंधविश्वास मिटाओ समिति” के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने आज शाम को इसी विषय पर कार्य-योजना बनाने हेतु अपने घर पर एक बैठक रखी है, ताकि गाँव-गाँव जाकर अंधविश्वास पर गहरी चोट की जा सके. मुझे उनका घर खोजने में असुविधा हो रही थी. एक पान की गुमटी वाले से मैंने उनके घर का पता पूछा तो उसने बताया- आप ये सामने वाले  रोड पर चले जाइए, आगे जाकर दायें मुड जाइयेगा. वहाँ ग्रीन कलर के नये, दो सुंदर आलीशान मकान बने हैं. उनमे से जिस मकान के उपर ‘काली हाँडी’ टंगी है और सामने की तरफ एक “फटा हुआ काला जूता” टंगा है वही मकान उनका है. सुनकर मैंने कुछ सोचा और वापस घर लौट आया.****

                  
3.  अवांछित  
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     सत्यांश का मन आज बेहद दुखी था. आज फिर बड़े साहब ने उसको डाँटा. वो भी पूरे स्टाफ के सामने. उसके समझ में नहीं आ रहा था, कि यहाँ इस आफिस मैं उसको  स्थानांतरित हुए छ्ह महीने भी नहीं हुए थे. फिर भी पूरा स्टाफ दुश्मन क्यों बन गया? जबकि वह पूरी लगन, निष्ठा और ईमानदारी से अपना काम करता है.
     आफिस के सब लोग जा चुके थे. चपरासी ने डाक लाकर दी. उसने बड़े दुखी मन से सुखीराम से पूछा- अच्छा सुखीराम, तुम ही बताओ, मेरे काम मे क्या कमी है, जो आफिस का हर आदमी मुझसे नाराज है. बड़े साहब तो सदैव ही नाराज रह्ते हैं.
     सुखीराम बोला- बड़े बाबू, आप बहुत भोले हैं. जमाने का चलन नहीं समझ पाते. पिछ्ले बड़े बाबू सब को कमाई का परसेंटेज देते थे. सभी को पार्टियाँ भी दिया करते थे. इस आफिस में आये दिन पार्टियाँ हुआ करती थी, जो आपके आने के बाद बंद हो गई. आप  भी बिलों की हेराफेरी मे जब तक पारंगत नहीं बनेंगे,  तब तक कष्ट भोगते रहेंगे. वास्तव मे कोई नहीं चाह्ता कि आप इस आफिस में रहें.
     डाक को रजिस्टर में चढ़ाते समय जब उसने एक लिफाफा खोला तो अपना स्थानांतर आदेश देखकर दंग रह गया. उस में लिखा था, आपका आवेदन-पत्र स्वीकार करते हुए आपका स्थानांतर झाबुआ जिले में किया जाता है. उसे बहुत आश्चर्य हुआ. उसने तो आवेदन दिया ही नहीं था! आदेश के साथ आवेदन की फोटोकापी से पता चला. किसी  ने जाली हस्ताक्षर बनाकर उसकी ओर से स्थानांतर हेतु आवेदन भेज दिया था. ****

                      
4. अर्थ का अनर्थ 
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     सुबोध का व्यक्तित्व अर्थात सोने पर सुहागा. सुंदर, उच्च पद पर आसीन होने के साथ ही, व्यवहार कुशल. आदर्श विचारों से युक्त. और सम्वेदनशील भी. आज वह परिवार के साथ विवाह के लिये लडकी देख्नेने आया है. लड़की थोड़ी साँवली होने के कारण एकदम पसंद तो नहीं आई, पर वह सोच रहा था कि, लड़की कोई दिखाऊ वस्तु तो नहीं है, फिर रूप से गुण अधिक महत्वपूर्ण होते हैं. यदि वह न कर देगा, तो लडकी को कितना दुख होगा. दोनो परिवार भी कितने उत्साहित हैं. यह सब सोचते हुए उसने अपनी स्वीकृति दे दी.
     वापस लौटने से पूर्व वह वाशरूम गया तो पीछे के कमरे से आती आवाजों पर उसका ध्यान गया. लडकी के पिता कह रहे थे- बात कुछ समझ में नहीं आई, लड़का सुंदर है, पैकेज भी अच्छा खासा है, पर अपनी साँवली 'बिट्टो' को भी कैसे जल्दी हाँ कर दी, वो भी बगैर दहेज के. मुझे तो कुछ “दाल मे काला” नजर आ रहा है. लडकी की माँ बोली- सही कह्ते हो आप, जरूर लड़के में कोई खोट होगा, वरना आज के जमाने में ऐसा होता है क्या? सर्वगुण संपन्न लड़का, दहेज़ भी ना मांगे, और साँवली लड़की को हाँ भी कर दे. मुझे तो कोई बड़ा एब लगता है.  देखो जी, आप तो कोई बहाना बना कर उन लोगों को ना कर दो.
   सुबोध माँ का हाथ पकड़कर बोला- चलो माँ, हमें किसी को धर्मसंकट में नहीं डालना चाहिए.****


                              
5. इलाज  
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     बहुत तनावग्रस्त, दुखी, गर्वित को उदास देखकर नम्रता ने पूछा- क्या बात है? तबीयत तो ठीक है ना?
     गर्वित की उदास आंखों में नमी उतर आई. बोला- नम्रता, इस नए बॉस ने तो परेशान कर दिया. इसका कोई इलाज समझ में नहीं आ रहा. सोचता हूं इस्तीफा दे दूं.
     नम्रता बोली- आखिर ऐसी क्या बात हो गई?
     बात क्या, तुम को तो पता है, मैं अपना हर काम, पूरी मेहनत और दक्षता से करता हूँ. पुराने बॉस तो मेरे काम की खूब तारीफ़ करते थे, पर यह उल्लू का पट्ठा जब से आया है, जरा-जरा सी गलती पर डांटता तो खूब है, पर कितना भी अच्छा काम करूँ, इसके मुँह से कभी प्रशंसा के दो शब्द भी नहीं निकलते. आखिर कौन नहीं चाहता कि उसके अच्छे काम को, महत्त्व मिले,  प्रोत्साहन के दो शब्द मिलें.  
     नम्रता बोली- इसका इलाज है मेरे पास. आप उनसे प्रसंशा की बिल्कुल अपेक्षा रखना छोड़ दीजिये, अपनी भावनाओं को दरकिनार कर मशीनी ढंग से अपना काम करते जाइये. मैंने भी ऐसे ही किया.
     जब मायके में थी तो मैंने "कुकिंग-कोर्स" किया था. बड़ी मेहनत से कोई 'स्पेशल डिश' बनाती, तो पापा-मम्मी बहुत तारीफ करते. उनके चेहरे पर खुशी देकर मुझे भी बड़ी  संतुष्टि मिलती, पर शादी के बाद मैंने पूरी मेहनत, पूरी लगन और प्यार से तरह-तरह की डिशेस बनाई पर मेरे कान आपके मुंह से प्रशंसा के दो शब्द सुनने को तरस गये. पूछने पर आपका उत्तर "हाँ, ठीक ही है" मन को चीर जाता था. अब शादी के पाँच साल गुजरने के बाद, मैंने तो अपेक्षा रखना ही छोड़ दिया. जो कुछ बनाती हूँ , अपना फ़र्ज़ समझ कर यांत्रिक ढंग से बना देती हूँ. कभी तारीफ़ कि अपेक्षा नहीं रखती. आप भी ऐसा ही कीजियेगा.
     गर्वित बड़े ग्लानिभाव से लगातार उसकी और देखे जा रहा था. उसके मुँह से एक ही शब्द निकला-सॉरी.****

                       
6.एरिया
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     सुन्दर, पीली-पीली, स्वादिष्ट दूध से भरी 'खिरनी' का ठेला उसने लगाया ही था, कि एक आदमी रसीद कट्टा लेकर सामने खड़ा हो गया.  उसने पचास रूपये की रसीद काटते हुए कहा- "बैठकी फीस" हम नगर पालिका से हैं उसने कहा- भाई साहब अभी तो बोहनी भी नहीं हुई.  वो बोला- यह तो देना ही पड़ेगी. इस नगर-पालिका के 'एरिये' में जो भी दूकान लगाता है, उसे देना ही पड़ती है और रूपये लेकर, रसीद देकर चलता बना. तब तक काफी ग्राहक आ गए. सभी लोग जल्दी-जल्दी की रट लगा  रहे थे. अचानक एक पुलिस वाला ठेले पर डंडा मारकर बोला- क्यों रे कहाँ का रहने वाला है. उसने एक मुट्ठी खिरनी उठाई और खाते हुए बोला- निकाल सौ रूपये. वह कुछ न-नुकुर करता इसके पहले ही वह ठेले पर डंडा मारते हुए बोला- यह मेरे थाने का 'एरिया' है, निकाल जल्दी. घबराकर उसने सौ का नोट उसके हाथ पर रख दिया और ग्राहकों को खिरनी तौलने लगा. अंत में भीड़ छटने पर उसका ध्यान उस ग्राहक पर गया, जो बिलकुल शांत भाव से पीछे खडा था, गंभीरता से और धैर्य-पूर्वक. उसने भी मन ही मन उसकी प्रशंसा की, कि कितना शांत और अच्छा है यह आदमी. अपने से बाद में भी आये दूसरे ग्राहकों को फल लेने दे रहा है और कोई जल्दी नहीं कर रहा. जब सभी ग्राहक चले गये तो उसने बड़ी विनम्रता से पूछा आपको कितनी चाहिए? वह गुस्से से बोला ”खिरनी नहीं चाहिए मूर्ख, हफ्ता चाहिए हफ्ता, ला निकाल बिक्री का दस परसेंट, नहीं तो इतने जूते मारूंगा कि गिन भी नहीं पायेगा. मैं इस एरिये का गुंडा हूँ. ये “एरिया हमारा है”. बगैर मुझे हफ्ता दिए कोई यहाँ धंधा नहीं कर सकता, हफ्ता बसूली पर निकला हूँ. लगता है इस एरिये में तू नया है. फल वाला एक दम डर  गया और उसने मिमियाते हुए कमजोर सा प्रतिवाद किया- भाई साहब अभी थोड़ी देर पहले भी दो लोग यही कह रहे थे, कि “एरिया हमारा है” और रूपये भी ले गये थे? फिर घबराते हुए कुछ रूपये निकालकर उसके हाथ पर रख दिए और सोचने लगा- आखिर यह एरिया है किसका?****

                    
7. एकलव्य  
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    गुरु द्रोणाचार्य और एकलव्य, दोनों ने अपनी-अपनी 'निष्ठाओं' का पालन किया था, अत: उनको पुनर्जन्म मिला.
     कालेज के अंतिम दिन, “डिग्री वितरण समारोह” में, एकलव्य मन में आशंकित और अत्यंत डरा हुआ था, कि आज फिर गुरूजी अंगूठा ना मांग लें. एकाएक उसकी आशंका, उसका डर, आनंद में परिवर्तित हो गया. गुरूजी अत्यंत 'कातर' वाणी में एकलव्य से ‘गुरुदाक्षिणा’ मांग रहे थे. बेटा एकलव्य- इस बार मैंने तुम को भरसक अच्छी शिक्षा दी है. तुम जिस कोटे से आते हो. निश्चित है, कि एक-दो वर्ष में तुम कलेक्टर या अन्य कोई ऊंचे पद पर पहुँच जाओगे. हे वत्स- मेरे बेटे का ध्यान रखना. प्रथम श्रेणी से पास होने के बाद भी, कई दिनों से नौकरी के लिए भटक रहा है. हो सके तो कहीं उसकी कोई छोटी-मोटी  नौकरी लगवा देना. एकलव्य ने हाथ उठाकर ‘तथास्तु’ कहा और प्रशन्नता पूर्वक आगे बढ़ गया. ****

                   
8. कड़वा इलाज 
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     लड़कियों को सदा झिड़कने और डांट-डपट करने वाली दादी, रीना को बड़े प्यार से पुचकारकर कर बुला रही थी, आजा बेटा आजा, मैं तुझे 'जलेबी' लाई हूं. बच्ची पास आने से डर रही थी. आवाज से परिवार वाले भी इकट्ठे होकर आश्चर्य से देखने लगे, क्योंकि जब से दादी जी की, लड़के की बहुत चाह के बावजूद, जुड़वा लड़कियों का जन्म हुआ था, दादी अपनी बहू को दिन-रात  कोसती रहती थी. लड़कियों से तो उनको जन्मजात बैर था. इतनी चिढ़ थी, कि पास भी नहीं फटकने देती. अब अबोध बच्चियां भी इस बात को समझने लगी थी और डर के मारे दादी से दूर भागती थी.
     आखिर पड़ोसन चाची ने पूछ ही लिया, क्या बात है? आज तो सूरज पश्चिम से निकल रहा है, वो भी जलेबी लेकर. दादी मुश्किल से इतना ही कह पाई- अरे वह सामने वाला गुंडा, सोनू. लड़का घबराकर बोला वह तो पक्का गुंडा है. उसने आपको कुछ कहा तो नहीं? दादी सिर नीचा करके बोली- उसी ने तो कहा. मैं मंदिर से आ रही थी, कि गली में मिल गया और गर्दन पकड़ कर बोला- क्योंकि री बुढ़िया, तू दिन रात बच्चियों को डांटती रहती है, तुझे इतनी प्यारी बच्चियाँ दुश्मन नजर आती हैं क्या? जब तू पैदा हुई थी, तू भी तो एक बेटी थी. कोई तेरी गर्दन मरोड़ देता तो कैसा रहता? पहले तो मैं बहुत घबरा गई, पर अब मैं सोच रही हूं, कि लड़का गुंडा जरूर है, पर बात तो सही कह रहा था. सभी के चेहरों पर मुस्कुराहट फैल गई. ****

                   
9. चीटर 
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     सुमेधा हनुमान जी को चना-चिरोंजी का प्रसाद चढ़ा कर लौटी तो दालान की एक मात्र टूटी बेंच पर एक सूट-बूट पहने भद्र पुरुष को बैठे पाया. नमस्ते करके जैसे ही वह घर के अंदर जाने लगी, तो उन्होंने रोका, बेटी- ‘सुमेधा’ तुम्हारा ही नाम है? बोली- जी अंकल. वे तपाक से बोले- बेटा, बहुत बहुत बधाई, तुमने रिक्शा वाले की बेटी होकर भी हायर सेकेंडरी बोर्ड में राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, यह तुमको ही नहीं हम सब को गौरव की बात है.
     बेटी, मैं “प्रतिभा कोचिंग इंस्टिट्यूट” से आया हूँ, तुम्हारी भलाई करने. सुमेधा को अचानक याद आया कि उसके पापा कितने गिडगिडाये थे कि मेरी बेटी को कोचिंग में एडमिशन दे दीजिये, वह अपने सपने पूरे करना चाहती है. जैसे तैसे बड़ी मेहनत से मैं आधी फीस ही जोड़ पाया हूँ, तब डायरेक्टर साहब ने कितने बुरे तरीके से डांटकर भगाया था, चलो भागो यहाँ से, हम लोग यहाँ कोई चैरिटी करने नहीं बैठे हैं. जब पूरी फीस हो तभी आना. पिताजी की बेइज्जती, आज भी वह भूली नहीं है. पिताजी की आँखों में आंसू भर आये थे, तब उसने पिताजी से वायदा किया था, कि आप दुखी ना हों, मैं आपको अच्छे नंबर लाकर दिखाउंगी. आज ये अचानक मेरी कौन सी भलाई करने आ गये?
     उसका ध्यान भंग करते हुए वे बोले- बेटी, मैं एक प्रस्ताव लेकर आया हूँ. हम तुम्हारी फोटो अखबार में देंगे और लिखेंगे कि तुमने अपनी परीक्षा की पूरी तैयारी हमारी "“प्रतिभा कोचिंग इंस्टिट्यूट”" की मदद से की है, तुम भी प्रेस वालों को यही बयान देना. इसके बदले में हम तुमको एक लाख रूपये देंगे. सुनकर अनपढ़ माँ खुश, पिता उदासीन पर किंकर्त्तव्य विमूढ़ थे, पर उसने दृढ़ता से कहा- नहीं अंकल, हम लोग गरीब जरूर हैं, पर झूठे और चीटर नहीं हैं.****

                  
10.जीत का दुःख  
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     छोटी ‘त्वरा’ दादी माँ की बहुत लाडली थी. मात्र चौदह वर्ष की उम्र में ही वह एक सफल धाविका बन चुकी थी. कई मैडल उसने अपने नाम कर लिए थे. अब उसकी राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा की तैयारी चल रही थी. बस इसी बात की चिंता उसे खाए जा रही थी, कि अभी कुछ दिनों पूर्व से हमेशा द्वितीय स्थान पाने वाली रंजना उस से बेहतर परफार्मेंस में आ गई थी और प्रेक्टिस में वह आगे निकल जाती थी. उसको ख़तरा था, कि अखिल भारतीय प्रतियोगिता में रंजना प्रथम ना आ जाए. त्वरा की दादी भी बहुत बड़ी धाविका रह चुकी थी और एशियाई खेलों में उन्होंने खूब नाम कमाया था. त्वरा उन्ही के मार्गदर्शन में आगे बढ़ रही थी.
     रात में अपनी दादी के साथ सोते समय उसने दादी के गले में बाहें डालकर दादी से कहा- दादी-  यह प्रतिस्पर्द्धा मैं हर हाल में जीतना चाहती हूँ. मैं बिलकुल सहन नहीं कर पाउंगी, कि रंजना या अन्य कोई मुझसे आगे निकल जाए. दादी आप तो स्वयं खिलाड़ी रही हैं. जीत के मायने क्या होते हैं, ये तो आप अच्छी तरह से समझती हैं. जीत इंसान को कितनी ख़ुशी देती है.
     दादी ठंडी सांस लेते हुए बोली– बेटी जरूरी नहीं है, कि जीत हमेशा ख़ुशी ही दे. कभी-कभी जीत दुःख भी दे जाती है. ऐसा दुःख जिसकी काली  परछाईं जीवन भर पीछा नहीं छोडती. त्वरा आश्चर्य से दादी का मुंह देखते हुए बोली- ऐसा कैसे हो सकता है? फिर जिद करते हुए बोली- दादी आप मुझे जरूर बताएं, कि जीत दुःख कैसे देती है. दादी कुछ मिनट मौन रहने के बाद बोली- बेटी, मुझे गलत मत समझना, पर बचपन की उम्र ही ऐसी होती है कि इंसान कभी-कभी ऐसी भूल कर बैठता है जिसका पछतावा उसे उम्र भर रहता है. बेटी, तुम जो मेरा गोल्ड मैडल देखती हो वह ऐसा ही है. मैं जब-जब उसे देखती हूँ, आत्मग्लानि से भर जाती हूँ.
     मैं भी तुम्हारी तरह हर हाल में जीतना चाहती थी. परन्तु दूसरी धाविका मुझसे बहुत आगे रहती थी. हमारी टीम को एक बड़े हाल में ठहराया गया था. मैंने पहले से ही योजना बना ली थी. जब सब सो गए तो मैंने रात में चुपके से उठ कर उसकी पानी की बाटल में ‘स्टेराइड’ मिला दिया. सुबह सभी खिलाड़ियों के “डोप-टेस्ट” हुए जिसमे वह दोषी पाई गई और दौड़ में उसे भाग लेने से रोक दिया गया. जाहिर था, कि मैं प्रथम आ गई, पर आज भी उस लड़की का दहाड़ें मार-मार कर रोना और उसके माता-पिता तक के बहते आंसू, उस लड़की का डिप्रेशन में चले जाना, मुझे जब-जब याद आते हैं, मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाती. बेटी- ऐसी जीत से तो हार भली. त्वरा अवाक होकर दादी की स्वीकारोक्ति सुन रही थी.
     थोड़ी देर बाद जब दादी को नींद आ गई तब त्वरा चुपचाप उठी और अपने स्टडी-रूम में जाकर कम्पास में से दो पैनी लोहे की कीलें निकाली, जो वह मौक़ा पाते ही रंजना के जूतों में लगाने वाली थी. उन कीलों को हिकारत से देखा और नाली में फेंक दिया. अब उसके मष्तिष्क का सारा बोझ उतर चुका था और वह बहुत हल्का अनुभव कर रही थी. ****

               
11. जिज्ञासा  
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     बेटा- अब्बू, बाजार में झगड़ा क्यों होता रहता है. आज तो तलवारें निकल आई थी. आप न समझाते तो मारकाट हो जाती.

     अब्बू- होता है बेटा. वो लोग हिन्दू हैं, हम लोग मुसलमान. धर्म में अंतर है न, इसीलिये.
     बेटा- धर्म में अंतर से क्या होता है? 
     अब्बू- बेटा, हम लोग अल्लाह की बताई राह पर चलते हैं, पर काफ़िर हिन्दू लोग बुतपरस्त होते हैं. वे राम को मानते हैं.
     बेटा- तो क्या अल्लाह और राम की भी लड़ाई होती है? 
     अब्बू- नहीं बेटा, ऐसी कोई लड़ाई नहीं होती.
     बेटा- फिर हम लोगों की क्यों होती है?
     अब्बू- होती है बेटा, हम लोगों के धर्म, रस्मो-रिवाज़ और खून में अंतर होता है. खून का भी गुण होता है. उसी से स्वभाव व आदतें बनती हैं.
     बेटा- अच्छा! अब समझ में आया। तभी अपनी आदत 'अल्ला-अल्ला' कहने की है और पड़ौस के पंडित चाचा 'राम-राम' कहते हैं.
     अब्बू- हाँ बेटा, यही बात है.
     बेटा- अम्मी राम-राम कब बोलेंगी?
     अब्बू- पागल तो नहीं हो गया? अम्मी राम राम क्यों बोलेंगी.
     बेटा- वाह अब्बू! भूल गए क्या? एक दिन अम्मी जब बीमार थी, तो अस्पताल में पंडित चाची ने उनको खून दिया था. पंडित चाची का खून भी है उनके अंदर. कितना मजा आएगा, जब वो कभी अल्ला अल्ला बोलेंगी, कभी राम राम बोलेंगी. 
     अब्बू- बेटा ऐसा दिन कभी नहीं आयेगा. 
     बेटा- (कुछ मायूस होकर) ऐसा होता तो कितना अच्छा होता? कम से कम झगड़े तो न होते और मैं भी बंटी के साथ अच्छी तरह खेल पाता.   ****
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                      जन्म : 03 जून 1965

शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
             फिल्म पत्रकारिता कोर्स
            
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
               जैमिनी अकादमी , पानीपत
               ( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रकाशित )

मौलिक :-

मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001

सम्पादन :-

चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003

ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018  (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019   ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन )  मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन )  जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन )  मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021

बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-

1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल

1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल

1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल

2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल

2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल

2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल

2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल

सम्मान / पुरस्कार

15 अक्टूबर 1995 को  विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।

13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।

14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित

14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित

14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित

14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।

18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित

अभिनन्दन प्रकाशित :-

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)

विशेष उल्लेख :-

1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन

2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।

3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित

4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
            शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
            " आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )

पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
          पानीपत - 132103 हरियाणा
          ईमेल : bijender1965@gmail.com
          WhatsApp Mobile No. 9355003609

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Comments

  1. मध्यप्रदेश के लघुकथाकारों को एक स्थान पर लाकर आपने बहुत ही बढ़िया कार्य किया है । हम एक साथ मध्यप्रदेश के लघुकथाकारों की लघुकथाएं एक स्थान पर पढ़ सकते हैं। आपके इस प्रयास को हार्दिक अभिनंदन।

    ReplyDelete
  2. आदरणीय जैमिनी जी,
    सादर अभिवादन

    ई. लघुकथा संकलन हेतु मध्यप्रदेश के 11 लघुकथाकारों में दर्शना को शामिल करने हेतु उसके मम्मी पापा एवं स्वयं दर्शना की ओर से दिल की गहराइयों से हार्दिक हार्दिक धन्यवाद।
    यह हमारे लिए तो अत्यंत खुशी व गर्व की बात है ही, दर्शना के उत्साहवर्धन में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
    आगे भी उसपर इसी तरह आपका वरदहस्त बना रहेगा ,इन्हीं शुभ भावों के साथ।

    आभार सहित

    सरोज जैन
    प्रवीण जैन
    ( WhatsApp से साभार )

    ReplyDelete
  3. मध्य प्रदेश का लघुकथा जगत बहुत समृद्ध। ऐसे में उस पर केंद्रित यह विशेषांक बेहद महत्वपूर्ण है।
    आनंद बिल्थरे जी के साथ शुरूआत से छपती रही, तो लग रहा, उनका सम्मान होना जरूरी। अचानक वे चले गए।
    सबकी ग्यारह-ग्यारह लघुकथाओं में समय का सच बोल रहा, प्रासंगिक, उल्लेखनीय रचनाओं से सजा है यह विशेषांक। एक बड़ा कार्य हुआ है।
    साधुवाद! बीजेन्द्र जी का सराहनीय कार्य
    - अनिता रश्मि
    रांची - झारखंड
    ( WhatsApp से साभार )

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