हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

हरियाणा का लघुकथा साहित्य बहुत ही विस्तृत है । परन्तु विष्णु प्रभाकर को हरियाणा लघुकथा साहित्य का जनक कहां जाता है । फिर भी , सभी लघुकथाकार अपनी - अपनी भूमिका निभा रहे हैं । कोई पत्र - पत्रिका के माध्यम से कार्य कर रहा है । कोई प्रतियोगिता का आयोजन कर के , कोई समारोह का आयोजन कर के , कोई पुस्तक का सम्पादन कर के आदि - आदि ढंग से कार्य कर रहा है । परन्तु सब का उल्लेख , यहां पर करना सम्भव नहीं है । फिर भी प्रो. रूप देवगुण व डॉ. राजकुमार निजात ने सिरसा - हरियाणा मे लघुकथा का इतिहास रच रखा है । कभी कैथल को भी  लघुकथा का सिरमौर कहाँ जाता रहा है । बाकी दैनिक जागरण , दैनिक भास्कर बिना किसी वाद - विवाद के लघुकथा को आगे बढ़ा रहे हैं । लघुकथा साहित्य दिनों - दिन विशाल रूप स ले रहा है । हरिगंधा ( पंचकूला ), हरियाणा संवाद ( चण्डीगढ़ ) , जैमिनी अकादमी ( पानीपत ) , शुभ तारिका ( अम्बाला छावनी ) आदि ने लघुकथा विशेषांक निकाल कर विस्तृत कार्य किया है । करनाल के  डॉ. अशोक भाटिया का  लघुकथा साहित्य में योगदान आदरणीय है । कहानी लेखन महाविद्यालय ( अम्बाला छावनी ) का कार्य हरियाणा के साथ - साथ देश को बहुत से प्रसिद्ध लघुकथा लेखक दिये हैं । इसी प्रकार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में शोंध कार्य (पीएचडी / एमफिल ) बहुत हो रहें हैं । 
मेरा प्रथम " प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990 " में आया है इसके बाद "नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998 " व " इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001" प्रकशित हुए है । इसी प्रकार लघुकथा सम्पादन के क्षेत्र में प्रतिदिन संदेश ( पानीपत ) , आलराउंडर पत्रिका ( पानीपत ) लघुकथा विशेषांक , जैमिनी अकादमी ( पानीपत ) लघुकथा विशेषांक आदि पत्र - पत्रिकाओं का कार्य किया है । लघुकथा संकलन का कार्य " चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990 " से शुरू हुआ है । जो आज तक चल रहा है । रूप परिवर्तन अवश्य हुआ है । अब ई - लघुकथा संकलन का समय आ गया है । जिससे लघुकथा साहित्य को बहुत बड़ा पाठक वर्ग मिल रहा है । जीवन की प्रथम प्रकाशित लघुकथा (ई- लघुकथा संकलन ) 2019 में प्रसारित हुआ है । जो आज भी प्रतिदिन पढ़ा जा रहा है । यहीं ऑनलाइन की सफलता है । ई- लघुकथा संकलन की श्रृंखला में " मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार " की अपार सफलता के बाद " हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार " का सम्पादन किया है । जिसमें नियम अनुसार ग्यारह लघुकथाकारों को शामिल किया है । प्रत्येक लघुकथाकार की ग्यारह लघुकथाओं को स्थान दिया है । सभी लघुकथाएं एक से बढ कर एक है । आप सभी अपनी राय अवश्य दे । यह हमारे मार्गदर्शन के लिए बहुत आवश्यक है ।
जय हिन्द ! जय भारत ! 
क्रमांक - 01


पिता : पूरन सिंह
माता : धनपति देवी
जन्म तिथि : 15.07.1974
जन्मस्थान : हसनपुर

शिक्षा   : एम.ए (हिंदी) एमफिल. पीएच.डी (हिंदी लघुकथाओं के आलोक में राष्ट्रीय चेतना)

प्रकाशित पुस्तकें : अभी बुरा समय  नहीं आया है । (लघुकथा संग्रह) कीचड़ में कमल( लघुकथा संग्रह) समरीन का स्कूल (बाल कहानी संग्रह) संपादित : हरियाणा से लघुकथाएं : विशेष सहयोग

पुरस्कार:  साहित्य समर्था जयपुर की ओर से अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में कहानी 'फसल' को तीसरा स्थान । साहित्य सभा कैथल की ओर से 'स्वदेश दीपक स्मृति पुस्तक पुरस्कार' वीएचसीए फाउंडेशन घरौंडा द्वारा 'हिंदी रत्न' सम्मान

अनुवाद : लघुकथाएं पंजाबी अंग्रेजी और मराठी में अनुवादित।

प्रसारण : कुरुक्षेत्र , रोहतक आकाशवाणी एवं हिसार दूरदर्शन से लघुकथाएं प्रसारित।

पता:
नसीब विहार कॉलोनी घरौंडा - करनाल 132 114 - हरियाणा

   1. खुशी

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आज दीनानाथ जी मिश्रा जी से मिलने उनके घर आए थे ।

दोनों किसी विषय पर बात करते हैं उससे पहले ही मिश्रा जी ने अपनी पुत्रवधू को चाय के लिए आवाज लगाई ।

थोड़ी देर बाद ही चाय आ गई साथ में बिस्किट भी ।

"यार तुम बहुत सुखी हो तुम्हारी पुत्रवधू तुम्हारा कितना आदर करती है। और एक मैं हूं मेरे बच्चे मुझे खास तवज्जो नहीं देते ।वे तो चाहते हैं कि मैं कोल्हू के बैल की तरह घर के कामों में लगा रहूं। मैंने तो स्पष्ट कह दिया है मुझसे कोई काम नहीं होगा ।" दीनानाथ जी ने चाय का कप उठाते हुए कहा।

"अरे घर के काम तो मैं भी करता हूं। घर के काम करने में क्या परेशानी ?मैं सुबह सैर को निकलता हूं तो ताजा ताजा सब्जियां ले आता हूं। शाम को दूध लेने चला जाता हूं, दूध भी आ जाता है और बाहर मित्र प्रयासों से बात  हो जाती है। अरे हमारे बच्चे काम पर जाते हैं तो ऐसे में हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम अपने बच्चों की खुशियों का ध्यान रखें।

"तुम बात तो सही कह रहे हो मिश्रा।" दीनानाथ जी ने कुछ सोचते हुए कहा।

 घर आते ही दीनानाथ जी ने पुत्रवधू को आवाज लगाई ,"बहू दूध का बर्तन देना उधर दूध वाले की तरफ जा रहा हूं। आते हुए दूध ले आऊंगा।"

 अब दीनानाथ जी बर्तन को हिलाते हुए इस प्रकार चल रहे थे मानो शरीर में खुशी की कोई लहर दौड़ रही हो । ****



2. प्रवासी पंछी

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 हर रोज की भांति हम आज भी रेलवे प्लेटफार्म पर पहुंचे।

 शाम  5:00बजे वाली गाड़ी एक घंटा लेट पाई। मौसम की वजह से गाड़ियां दिसंबर जनवरी में अक्सर लेट हो जाती हैं।

हम बैठने के लिए बेंच तलाश ही रहे थे कि पक्षियों की चहचहाहट ने हमारा ध्यान अपनी ओर खींचा। पक्षियों का एक झुंड बिजली के खंभों पर कतार बना कर बैठा था ।थोड़ी देर बाद ही वे पंछी उड़कर उस दिशा में चले गए जिधर  बहुत से पेड़ खड़े थे। हमने देखा वे फिर दुगनी संख्या में होकर वापस आए ।

"देखो यार इन पंछियों का एक दूसरे के प्रति कितना प्रेम  है। कैसे एक साथ रहते हैं ।" साथी बलिंदर ने कहा।

 "अरे परिवार है इनका। अपने दुख सुख सांझे करते हैं और रूठे हुए को मनाते हैं । फिर चुपचाप  उन पेड़ों पर जाकर सो जाते हैं।" सुभाष शर्मा ने अपना अनुभव साझा किया। 

इसी बीच राजीव कहने लगा,"देखो इन्हीं अपनी जन्मभूमि से कितना प्रेम है। हर वर्ष इन्हीं दिनों यहां आते हैं। मैं हर वर्ष इन्हें देखता हूं।"

" अरे अपनी माटी से इतना प्रेम तो होना ही चाहिए ।जिस माटी में खेले कूदे बड़े हुए उसकी खुशबू तो लेते रहना चाहिए । कुछ भी हो यार इन पंछियों को देख कर मेरा मन खुशी से गदगद हो उठा। पर मेरे मन की खुशी ज्यादा देर टिकी न रह सकी । एक वृद्ध दंपत्ति जो  हमारे पास ही बैठा था अचानक यह कहते हुए अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ कि हमारे बच्चों से तो यह प्रवासी पंछी अच्छे हैं जो साल में एक बार तो अपने घर आ जाते हैं पर हमारे बच्चे.....! ****


  

3. कमी

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"अच्छा रमा की मां अब चलती हूं….. बच्चों के आने का वक्त हो गया है" राधा की मां ने सोफे से उठते  हुए कहा था ।

"बैठी रहना बहन। मेरा मन लगा रहेगा वैसे भी तुझे घर पर कौन सा काम करना है ।"रमा की मां की वाणी से अपनापन झलक रहा था।

 "काम तो नहीं करना। काम तो बहुएं ही कर लेती हैं ।वे तो दोनों बेटे काम से आकर मेरे पास बैठते हैं। वे दो बातें अपनी कह लेते हैं चार मैं सुना देती हूं। बस, मन शांत हो जाता है।रात में ठीक से नींद आ जाती है। सुबह तन मन बिल्कुल रुई के फाहे सा हल्का होकर हवा में उड़ता सा लगता है।"

 "तुम्हारे बच्चों का क्या हाल है आजकल?" राधा की मां ने चलते-चलते पूछ ही लिया था।

 "मेरे बेटों के फोन आते रहते हैं एक का फोन आया था... कह रहा था घरवाली के जन्मदिन पर नई गाड़ी खरीदी है । इस बार बच्चों को महंगे वाले स्कूल में डाल रहे हैं ।और दूसरा उसकी तो पूछो ही मत । उसके तो टूर ही खत्म नहीं होते। एक देश से दूसरे देश,बस ,उन देशों के बीच अपना ही घर नहीं होता ।"उसकी आवाज से मां होने का दर्द खुद बोल रहा था।

" रमा की मां तुझे तो खुश होना चाहिए तेरे बच्चों के पास सब कुछ है और एक हमारे बच्चे हैं सुबह काम पर जाते हैं शाम को लौटते हैं ।"

"हां सब कुछ है मेरे पास, बस एक चीज की कमी है ।"

"कमी और तेरे पास क्यों मजाक करती हो रामा की मां।"

" मजाक नहीं सच कहती हूं रात भर जल से अलग हुई मछली की तरह तड़पती रहती हूं। तेरे जैसी नींद नहीं है बहन मेरे भाग्य में ।"ऐसा कहते हुए उसकी आंखें न जाने क्यों नम हो गई। ****



4. मुआवजा 

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गांव में आंधी और ओलावृष्टि के कारण नष्ट हुई फसल के बदले मुआवजा राशि बांटने एक अधिकारी आया। बारी-बारी से किसान आ रहे थे और अपनी मुआवजा राशि लेते जा रहे थे जब सारी राशि बंट चुकी तो रामधन खड़ा हुआ और हाथ जोड़कर बोला," साहब जी, हमें भी कुछ मुआवजा दे दीजिए"

" क्या तुम्हारे भी फसल नष्ट हुई है?" अधिकारी ने सहज भाव से पूछा।

" नहीं साहब जी, हमारे पास तो जमीन ही नहीं है."

" तो तुम्हें मुआवजा किस बात का?"

" साहब जी, किसान की फसल होती थी ,हम गरीब उसे काटते थे और साल भर भूखे पेट का इलाज हो जाता था। अब फसल तबाह हो गई तो बताइए हम क्या काटेंगे और काटेंगे नहीं तो खाएंगे क्या?"

" तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा । जाइए  अपने घर।" इस बार अधिकारी जैसे आपे से बाहर हो रहा था।

 रामधन माथा पकड़े वहीं बैठ गया। ****

 


5. बड़ा हूं ना 

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पति-पत्नी किसी पर्यटक स्थल की सैर को रवाना हुए थे। अभी उन्हें घर से निकले 2 घंटे ही हुए होंगे कि बड़े भाई ने फोन कर हालचाल पूछा । साथ में यह भी कहा कि फोन करते रहना। "ठीक है भाई!" इतना कह छोटे ने फोन काट दिया ।

सफर में वह पत्नी से बातें करने में इतना मशगुल हुआ कि फोन करना ही भूल गया ।

बड़े भाई का ही फोन आया," कहां तक पहुंच गए ?कोई परेशानी तो नहीं अपना ख्याल रखना।"

" ठीक है भाई । हम अपना ख्याल रखेंगे। "छोटे ने जवाब दिया। 

उसकी पत्नी ने कहा ,"भाई साहब तो आपको बच्चा समझते हैं ।बार-बार नसीहत देते हैं। सफर का सारा मजा किरकिरा कर दिया । लाओ ,मुझे फोन दो , मैं स्विच ऑफ करती हूं ।"और उसने वैसा ही किया 

घर पर बड़ा भाई बार-बार फोन मिला रहा था, पर फोन न मिल पाने के कारण बेचैन हुए जा रहा था।

 उसकी बेचैनी देख पत्नी ने कहा,"क्यों पागल हुए जा रहे हो ?चिंता छोड़ो और आराम से सो जाओ।"

 "कैसे सो जाऊं पता नहीं वह किस हालात में होंगे? फोन भी मिल नहीं रहा। "भाई ने बार-बार फोन मिलाते हुए कहा ।

"सो जाओ ना और भी है इस घर में" पत्नी ने खींझ भरे शब्दों में कहा।

" बड़ा हूं ना !"उसने एक ठंडी आह भरते हुए कहा। ****



6. सुख

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पति पत्नी बेड पर लेटे थे ।

एक बात कहूं ,"पत्नी ने अनमने भाव से पति से पूछा ?"

पति की नजरें छत की ओर लगी थी ।

वे उसी मुद्रा में बोले,"कहो ?"

"आप दूसरी शादी....." पत्नी सिर्फ इतना ही कह पाई ।

थोड़ी देर के लिए उन दोनों के बीच सन्नाटा पसर गया ।

फिर पति के मुख से निकला," क्यों?" "संतान सुख जरूरी है जीवन में।"

 फिर चुप्पी ।

इस बार पति ने अपनी नजरें वहां से हटाकर पत्नी के चेहरे पर टिका दी।

 "क्या?"

 "हां समझा करो।"

 "कैसी बातें कर रही हो ।"

"पता है दूसरी शादी ....सौतन आएगी तेरी।"

 "यही कहना चाहते हो ना कि मैं कहीं की नहीं रहूंगी.... मैं सब सह लूंगी... सब।"

 "मेरे लिए सब सह लेगी और मैं ....सोच कैसे लिया तूने ....मैं तुम्हें नरक में डालकर स्वर्ग पाऊंगा! नहीं नहीं पाऊंगा नहीं।" इतना कह उसने पत्नी को अपनी बाहों में भर लिया।

 अचानक पत्नी के भीतर सुख की एक नदी उमड पड़ी और उसने बाहों से पति को दुगने जोश के साथ वैसा ही उत्तर दिया। ****

 


7. सजा

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आज अदालत में उस मुजरिम को सजा सुनाई जानी थी,जिसने कभी एकतरफा प्यार में दीवाना होकर एक बेकसूर लड़की पर तेजाब फेंका था। लड़की बुरी तरह जल गई थी।

 अदालत के कटघरे में मुजरिम  रो-रोकर चिल्लाने लगा," जज साहब, मुझे इतनी बड़ी सजा मत दीजिए ....मैं ताउम्र जेल में नहीं सड़ सकता ।मैं मर जाऊंगा ।"

"यह तो तुम्हें लड़की पर तेजाब फेंकने से पहले सोचना चाहिए था।"

 "साहब गलती हो गई.... माफ कर दीजिए ...आगे से ऐसी गलती नहीं होगी ।"

"अच्छा ! यह बताओ तुम्हें सजा क्यों न दी जाए ?"

मुजरिम चुप ।

 "बोलो? अब जवान क्यों नहीं खुलती तुम्हें सजा जरूर मिलेगी।"

 "साहब कम कर दीजिए ।"

जज साहब ने कुछ देर सोचा. फिर बोले," ठीक है तुम्हारे सामने दो विकल्प है एक, तुम्हारे चेहरे पर वही तेजाब डाला जाए। दूसरा, उम्र भर कैद ।"

मुजरिम ने दूसरा विकल्प चुना ****



8. मेरा घर

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पति-पत्नी शाम को ऑफिस से आए तो घर की साफ सफाई... चकाचक बर्तन और धुले कपड़े देख दोनों हैरान रह गए ।

कामवाली बाई तो ऐसे काम करने से रही । अवश्य ही यह सब मां ने ही किया होगा । उन्होंने मन ही मन सोचा मां कल ही गांव से शहर आई थी। 

 "पुत्र क्या देख रहे हो ? यह सब मैंने किया है ....इन बूढ़ी हड्डियों में इतनी तो जान है कि घर के छोटे-मोटे काम तो निपटा ही सकती हूं।  मुझे तो यहां आकर पता चला कि तुम्हारी जिंदगी तो रेल  बनी हुई है ..मेरी बहू की तो और भी परेशानी ....खुद तैयार होना.... बच्चों को तैयार करना..... खाना बनाना..... खाना पैक करना ...अरे कितने काम। मैंने सोच लिया है जब तक मैं यहां रहूंगी... ज्यादातर काम निपटा दिया करूंगी. मैंने तो कामवाली बाई से भी कह दिया है कि वह अपना काम कहीं और देख ले ।"

"ठीक है मां जैसा तू चाहती है, वैसा ही कर ।"

रात को खाना खाने के बाद पति पत्नी टहलने छत पर चले गए ।

वहां पत्नी कहने लगी," मैं कहती हूं मां जी ने कामवाली को भी मना कर दिया.... कहीं !"

"ठीक ही तो किया.... दो पैसे बचेंगे ...मां के रहते हम निश्चित भी तो रहेंगे ।बच्चों को दादी का प्यार भी मिल जाएगा । "पति ने पत्नी की बात बीच में काटते हुए कहा।

" वह सब तो ठीक है।  पर...!"

" पर क्या ?"

"कहीं मां यहीं रहने की तो नहीं सोच रही?"

" तुम ऐसा क्यों सोचती हो । खुश रहना सीखो ।रहने दो उसका घर है।"

" और मेरा.... मेरा कुछ नहीं....?" इतना कह पत्नी पैर पटकती हुई पति से दूर चली गई ****



9. समाधान

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 सपना खाना खाने के बाद बर्तन धो मौज कर जब बेड पर आई तो साहिल ने बातों ही बातों में कहा ,"सपना कोर्ट ने औरतों को कितना सम्मान बढ़ा दिया।  वह भी पुरुषों की भांति पैतृक संपत्ति में बराबर की हिस्सेदार बनेंगी। क्या इससे औरतें खुद को गौरवान्वित महसूस नहीं करेंगी।"

"आज यह कोर्ट कचहरी कैसे याद आ गई ।"सपना ने मजाक के लिहाजे में पूछा।

" सपना ,मैं सोचता हूं ....अपनी दुकान के पास एक खाली दुकान बिक रही है क्यों ना उसे खरीद लिया जाए।"

" नेकी और पूछ पूछ .....एक से दो हो जाएंगी।" ऐसा कहते हुए उसका एक-एक शब्द प्रसन्नता से भर उठा था। पर उसकी प्रशंसा उस समय मायूसी में बदल गई जब साहिल ने कहा ,"सपना, तुम्हारा अपने पिता की संपत्ति में जो हक बनता है यदि वह संपत्ति तुम्हें मिल जाए तो वारे न्यारे हो जाए।"

"क्या !" अभी तक खुशी के मारे सांसो का जो विस्तृत फैला हुआ था वह तुरंत सिमट कर रह गया।

 "हां सपना !एक बार सोच कर देखो।" कैसी बातें कर रहे हैंआप । पांच पांच बच्चों को पढ़ाना ...उनको अपने पांव पर खड़ा करना.....उनके विवाह करना। ऐसे में आदमी के पास बचा ही क्या है ? आप खुद ही सोचो ।"

"सोचने का वक्त नहीं है मेरे पास। मैं जुबान दे चुका हूं ,यदि हमने वह दुकान नहीं खरीदी तो मार्केट में क्या वैल्यू रह जाएगी हमारी ? इसके लिए अब तुम्हें ही कुछ करना होगा तुम कल अपने पिता के पास जाओगी और रूपयों का प्रबंध करके ही आओगी।समझी! आगे तू खुद समझदार है ।"

"आप पढ़े लिखे हो कर भी?"

" मैं कुछ नहीं जानता। बस, वह दुकान हमारी और केवल हमारी होनी चाहिए। नहीं तो ।"अबकी बार उसने चेतावनी दे डाली ।

उसने साहिल के इस रूप की कल्पना भी नहीं की थी। पहले तो वह एक अनजाने डर से कांप उठी । बाद में गहन चिंतन में डूब गई । वह सुबह उठी भगवान से प्रार्थना की -"हे भगवान ! मैं जो कदम उठाने जा रही हूं उसमें मेरी सहायता करना।" फिर एक दृढ़ निश्चय से इस समस्या का समाधान खोजने हेतु अपने पिता के पास जाने की वजह वह सीधी साहिल की बहन की ससुराल जा पहुंची। ****



10.बाढ़ राहत

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बाढ़ ग्रस्त लोगों की ही सहायतार्थ एक सरकारी आदेश गांव के मुखिया के नाम आया।

 "आप दो सूचियां तैयार करें -पहली सूची, उन लोगों की जिनका नुकसान ज्यादा हुआ है उन्हें सहायता राशि पहले दी जाएगी. दूसरी सूची उनकी जिनका नुकसान कम हुआ है, उन्हें सहायता राशि बाद में बांटी जाएगी।

दो दिन बाद एक अधिकारी राहत राशि बांटने आया।

 मुखिया द्वारा जो सूची अधिकारी को दी गई उसके अनुसार पहली सूची में वे नाम थे जिन्होंने पंचायत चुनाव में मुखिया का साथ दिया था और दूसरी मे वे नाम जिन्होंने मुखिया के प्रतिद्वंदी का साथ दिया। ****

11.इतिहास

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आज फिर से भेडों का आपस में झगड़ा हो गया।

झगड़ा भेड़ों का और चेहरे पर रौनक छाई भेड़िए के । छानी ही थी क्योंकि हर बार भेड़िया ही तो करवाता आया है भेड़ों का समझौता । भेड़िया इसकी एवज में खाता आया है दोनों पक्षों से खूब मलाई।

 आज वह अपने ठिकाने से एक पल को कहीं नहीं गया क्योंकि न जाने कब कौन सा पक्ष आ जाए।

 सुबह से शाम हो गई। पर, भेड़ें न आईं। वह यह सोच कर कि कहीं भेड़ें भूल गई हो । वह  उनके घर की ओर चल दिया। 

 वहां पहुंचते ही उसके होश उड़ गए। उसे अपने पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई और उसने देखा कि भेड़ें आपस में बतिया रही हैं और उनकी पढ़ी-लिखी एवं समझदार संताने पास खड़ी खिलखिला  रही हैं।ऐसा देख भेडिये को अपना सिंहासन डोलता नजर आया **** =================================

क्रमांक - 02

नाम   नीलम त्रिखा

पति का नाम   श्री रजनीश चंद्र त्रिखा


शिक्षा   एम. ए.(हिंदी,साहित्य,दर्शन शास्त्र, लोक प्रशासन,राजनीति शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र) पत्रकारिता , प्रभाकर ओ. टी, एल एल. बी. अध्ययनरत।


लेखन की विधा : -

 कविता ,गीत ,लघुकथा, नाटक, संवाद, दोहे ,लेख हाइकु और भजन।


संप्रति  :-

 पूर्व कार्यक्रम उद्घोषक- आकाशवाणी दूरदर्शन सह -स्थापिका - उमंग अभिव्यक्ति मंच पंचकूला, स्वतंत्र लेखन, साहित्य सृजन ,गायन मंच संचालिका ,अध्यक्ष प्रगति स्वयंसेवी संस्था, कुरुक्षेत्र हरियाणा। राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंटेलिजेंट मीडिया एसोसिएशन(IMA)



प्रकाशन : -

दो काव्य  संकलन "महकते एहसास," व "मेरी बेटी मेरा अभिमान" प्रकाशित ,22 संयुक्त संकलन में रचनाएं  प्रकाशित तथा लघुकथाओं का व एक कविता संग्रह प्रकाशाधीन ,पाँच संयुक्त का संपादन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताओं का नियमित प्रकाशन तथा रेडियो वे दूरदर्शन में कविताओं का नियमित  प्रसारण 

नॉर्थ जोन जोन कल्चर सेंटर भारत संस्कृति मंत्रालय द्वारा हर महीने हरियाणा वरिष्ठ साहित्यकारों की कार्यक्रम संचालिका।


सम्मान : -

लंदन (यू.के.) वॉल्वरहैंपटन (यू.के.) में साहित्य सृजन हेतु सम्मान प्राप्त कविताओं  की नेशनल  प्रतियोगिता में रामेश्वर दयाल दुबे साहित्य सम्मान से सम्मानित महिला सशक्तिकरण तथा समाज सेवा हेतु राष्ट्रीय स्तर का इंडिया आइडल अवार्ड प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर कई बार साल चंडीगढ़, पटियाला व कुरुक्षेत्र से सम्मानित अनेक प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं से साहित्य सृजन , गायन एवं मंच संचालन हेतु अनेकों बार सम्मान प्राप्त।

पता :- 

297/7 पंचकूला - हरियाणा

1. पांचवी बेटी 
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रात के सन्नाटे को चीरती एक बहुत ही मार्मिक आवाज ने मुझे बेचैन कर दिया और मैं बिना कुछ सोचे दरवाजा खोल कर  पास ही झोपड़ी से आती हुई उस आवाज की तरफ चल दी थोडी सी रोशनी में मैंने वहां रोते हुए एक ओरत को देखा और फिर उससे पूछा क्या हुआ क्यों रो रही हो देखो मैं सामने की ही कोठी में रहती हूं  मुझे बताओ मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूं वह एकदम चुप हो जाती है और मुझे बताती है कि उसे दर्द है क्योंकि उसे पांचवा बच्चा होने वाला है मैंने कहा चलो मैं तुम्हें डॉक्टर के पास ले जाती हूं वह बोली मेरा पति दाई को बुलाने गया है आता ही होगा  मैंने कहा तुम दर्द में इतना रो रही हो उसका इंतजार क्यों करना उसके बाद उसने  जो कहा वह सुनकर मेरे मुंह से भी चीख निकल गई उसने मुझे बताया कि अगर पांचवी लड़की हो गई तो वह जिंदा नहीं बचेगी और मैं एक मां हूं इसलिए जोर जोर से रो रही हूं क्योंकि अपने पति के सामने मैं रो नहीं पाऊंगी मैंने कहा चिंता मत करो मैं हूं यह बेटी मुझे दे देना इतने में ही उसका पति अचानक आ गया और मुझे देख कर अपनी पत्नी पर जोर से चिल्लाया पर मैंने उसे शांत करते हुए मैने कहा चुप हो जाओ मुझे पता चला था मुझे बच्चा चाहिए मैं वह पूछने आई हूं और बदले में तुम्हें बहुत सारा पैसा भी दूंगी पर पहले तो उसने थोड़ी सी झूठी नाराजगी दिखायी ओर बोल नहीं नहीं यह कोई ऐसे देने की चीज नहीं है पर उसकी लालची आंखों में चमक आ गई थी और उसने मुझे कहा आप मुझे सुबह तक का समय दें मैं आपको सुबह बता दूंगा मैंने शुक्र किया कि चलो कम से कम वह पैसों के लालच में अगर बेटी हो गई उसे तो नहीं मारेगा अगली सुबह जब मैं वहां गई तो देखा वहां से ढोल की आवाज आ रही थी और वहां जाने पर मुझे पता चला कि उनके घर बेटा हुआ उसकी पत्नी मुझे देखकर खुश होते हुए बोली भगवान ने हमारी सुन ली और मैं वहां से चुपचाप आ गई और अब तक इसी सोच में हूं कि इस तरह से मैं कितनी  बेटियों को बचा पाऊंगी। ****

 
2.माँ
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आज सुजाता ने तय कर लिया था कि आज वह अपने बेटे रोहित से बात करके ही रहेगी क्या फायदा इतना पढ़ा लिखा होने का पढ़ी लिखी रिटायर्ड प्रिंसिपल है पर जब देखो बेटा और बहू के घर, बच्चों को संभालने में लगी रहती हूं मुझे भी आजादी चाहिए मेरी भी अपनी जिंदगी है आज सुजाता का अंदर का स्वाभिमान जाग गया था।
40 वर्ष की उम्र में ही पति की मृत्यु के बाद कितनी मुश्किल से उसने अपने दोनों बच्चों को पढ़ाया और इस काबिल बनाया कि आज वह दोनों बहुत अच्छे से सेट हैं लेकिन बुढ़ापे मैं घर की सारी जिम्मेवारी उसी पर थी बेटा बहुत दोनों नौकरी पर जाते थे और घर व बच्चों की पूरी जिम्मेवारी उसी पर ही उसकी अपनी कोई जिंदगी नहीं रही थी चाहे खाने को लेकर हो चाहे घर के काम को हर वक्त बस उसी को ही सब करना पड़ता था बहु ऑफिस से आते ही थके होने का नाटक करके आराम करने चली जाती थे या अपने बच्चों को लेकर बैठ जाती थी और बेटा बस उसे मनाने में ही लगा रहता माँ के लिए ना ही उसके पास वक्त था और ना ही यह चिंता की उसकी भी कोई अपनी जिंदगी है सारी उम्र कितनी मेहनत से उसने अपने बच्चों को इस काबिल बनाया और एक समाज में इज्जत दार जिंदगी दी थी और अपनी हर छोटी-बड़ी खुशियों को खत्म कर दिया था लेकिन अब क्या अब फिर उसी की बारी थी कहीं भी जाना होता तो उसके ऊपर बच्चों की जिम्मेवारी डाल दी जाती रोहित के दो बच्चे थे हालांकि सुजाता अपने पोता पोती से बहुत प्यार करती थी और घर में मदद करने के लिए एक नौकरानी भी रखी हुई थी पर फिर भी उसकी खुद की भी तो कोई जिंदगी थी।
इसी उधेड़बुन में पूरा दिन गुजर गया और जैसे ही दरवाजे की घंटी बजी सुजाता एकदम से  दरवाजा खोलते ही बोली रोहित!  मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है तभी रोहित हंसते हुए बोला हां माँ मुझे भी तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है पहले मेरी बारी है और हाथों में एक सुंदर सा गिफ्ट उसने अपनी माँ को पकड़ा दिया सुजाता ने पूछा क्या है यह अरे माँ आज भूल गई आपका जन्मदिन है और इतने भी बहू भी हाथ मे केक पकड़े हुए गाना गाती हुई सीधा अंदर घर में दाखिल हुई  और बड़ी हंसी खुशी से उसका जन्मदिन मनाया रोहित बार-बार पूछ रहा था हां माँ बताओ क्या कहना चाह रही थी पर सुजाता ने सोचा यह ठीक वक्त नहीं है बात करने का फिर सही और फिर से घर के कामों में लग गई रोहित ने कहा माँ अपना गिफ्ट खोल कर तो देखो अच्छा बताओ क्या है इसमें हंसते हुए सुजाता ने कहा देखो माँ यह लंदन में बसे मामा के पास जाने की टिकट है आप तैयारियां शुरु कर दो उनके बेटी की शादी  है आप सभी बहन भाई वहां खूब मजे करना रोहित एक ही सांस में सब कह गया और गले में बाहें डालते हुए कहा माँ सारी उम्र बहुत काम कर लिया आपने अब आपकी उम्र तो खूब मजे करने की है घूमने फिरने की है और तुम हो कि अब भी इस घर के लिए ही जिए जा रही हो सुजाता की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए और सोचने लगी कि मैं कितनी गलत थी और प्रभु को धन्यवाद करने लगी कि शुक्र है उसके मन की बात मन में ही रह गई वरना वह अपने रोहित को कितना दुख पहुंचाती जो वह उस पर व उसके प्यार पर शक कर रही थी। ***


3.अमीर कौन
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कोरोना काल में दिनेश अपनी सुविधा पूर्वक शहर की जिंदगी छोड़ कर शहर के एकाकीपन से दूर अपने परिवार को साथ लेकर अपने गांव लौटा शहर से आए बच्चे गांव में इतना खुश हुए कि वापस जाने का नाम ही नहीं ले रहे दिनेश हैरान था की जो बच्चे बिना बिजली या थोड़ी सी असुविधा होने पर इतना शोर मचा देते थे यहां पर कितना मन लगा कर रह रहे हैं तब दिनेश ने अपने बच्चों से पूछा बच्चों अपनी जिंदगी को देखो शहर में तुम कितनी सुविधाओं में रहते हो। तुम्हारा कितना बड़ा घर है वहां सारी सुविधाएं हैं ऐ. सी. है, फ्रिज है बड़ा सारा स्विमिंग पूल है और यहां तुम्हारे चाचा जी कैसा जीवन बिता रहे हैं उनके बच्चों में और तुम में कितना फर्क है पर रवि ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया पापा चाचा हमसे बहुत अमीर है देखो ना उसके पास तो कितने सारे स्विमिंग पूल है एक खेत में है जहां हम नहा कर आए ताजा पानी वहां चल रहा था और घर में भी है गांव के साथ कितना बड़ा स्विमिंग पूल है मेरे पास एक कुत्ता है और उसके लिए भी घर में कोई जगह नहीं अलग से और इनके यहां कितनी गाय,भैंसे हैं उनका अलग से घर हैं और तो और उनकी गाय और भैंसों के लिए अलग से स्विमिंग पूल है सारा दिन उसमें खूब मजे करती हैं ठंडी ठंडी हवा, ताजा खाना और वहां कभी कोई पड़ोसी ना ही मेरे साथ खेलने आता है ना ही एक दूसरे के घर कभी भी आते जाते थे जब लॉकडाउन नहीं था तब भी हम कहीं किसी के घर इस तरह से नहीं रहते थे परंतु यहां सारे मिलकर खेलते हैं यह घर हमारे घर से कितना बड़ा है यहां कोई डर नहीं सब मिलजुल कर एक परिवार की तरह रहते हैं परंतु शहर में आपका व मेरा एक भी ऐसा दोस्त नहीं जो इस तरह से हमारे घर कोई मिलने आता है वहां सिक्योरिटी गार्ड और कैमरे रखने पड़ते हैं पर यहां ऐसा कुछ भी नहीं यहां तो पूरा गांव ही आपसे मिलने रोज आता है बच्चे की मासूम बातें सुनकर दिनेश ने लंबी आह भरते हुए कहा हां बेटा तूने मेरी आंखें खोल दी सच में तुम्हारा चाचा हमसे ज्यादा अमीर है। और इस कोरोना के संकट के समय में यह बात मैं बहुत अच्छी तरह आप जान चुका हूं कि जीवन अपनों के बिना अधूरा है पैसा फिर भी कमाया जा सकता है परंतु रिश्ता नहीं। *****


4.सेठ श्यामलाल
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गांव में सबसे ऊंची हवेली बनाकर श्यामलाल ने अपनी सारी जमा पूंजी खत्म कर दी थी केवल झूठी शान के लिए उसने अपने जीवन भर की सारी कमाई इतना बड़ा घर बनाने में लगा दी जबकि वह गांव में दोनों पति पत्नी ही रहते थे उनका बेटा बाहर शहर में नौकरी करता था और कभी-कभी ही यहां आता था और उसने भी अपने पिताजी को साफ कह दिया था कि वह गांव में नहीं रह सकता क्योंकि उसका पूरा परिवार शहर का आदी हो चुका है फिर भी ना जाने अपनी झूठी शान के लिए श्यामलाल ने यह हवेली बनवा दी अब उसके पास उसके साफ-सफाई या रखरखाव के लिए भी पैसे नहीं बचे थे श्याम लाल की पत्नी इस बात को लेकर कई बार शिकायत कर चुकी थी कि सारी उम्र हम सादा जीवन बिताकर गांव के बीच में बने अपने पुश्तैनी घर में अपने भाइयों के साथ रहे यह सब किसके लिए कर रहे हो और क्यों कर रहे हो इतने बड़े हवेली नुमा महल में अब कई बार तो एक हिस्से में कई कई दिनों तक जाना भी नहीं होता था। देखते ही देखते 2020 में वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरे संसार में अपने पैर फैला दिए थे और उनका पूरा गांव भी इसकी चपेट में आ गया था सब कुछ जैसे थम गया था श्यामलाल के पास जो जमा पूंजी थी सब तो हवेली में लग चुकी थी और एक दिन यह भी आया कि उसके पास खाने तक के लाले पड़ गए अपनी झूठी शान की वजह से किसी को यह बात बता भी नहीं सकता था उसकी पत्नी बार बार फिर भी प्रभु का शुक्रिया कर रही थी कि चलो हम इस बीमारी से बचे हुए हैं हमारे लिए यह भी काफी है क्योंकि अब उनके पास इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे गांव के लोग चंदा मांगने उनसे आते कि इस संकट के समय कुछ मदद करें परंतु वह टाल देता सब उसे बहुत कंजूस समझते थे परंतु उसके अंदर के हालात क्या थे यह किसी को नहीं पता था। आखिर हारकर उसने यह बात अपने बेटे विजय को बताई वह पहले से ही बहुत नाराज था कि पिताजी ने सारा पैसा गांव की हवेली पर लगा दिया पर उसने अपने पिताजी को धीरज दिया कि कोई बात नहीं पिताजी मैं पैसे भेज रहा हूं आप चिंता ना करें श्यामलाल को यह बात अच्छी तरह समझ में आ चुकी थी कि अपनी झूठी शान दिखाने के लिए उसने यह इतनी बड़ी हवेली बनवा कर गलती कर दी है काश उसके पास पैसे होते और वह इस संकट के समय में अच्छे कार्य किए होते तो उनका नाम होता उनकी शान बढ़ती वह उदास रहने लगा था और उसका उस हवेली में अब बिल्कुल मन नहीं लगता था।
एक दिन उसकी पत्नी ने बड़े प्यार से समझाया देखो हमारे गांव में कोई स्कूल नहीं है, कोई अस्पताल नहीं है क्यों ना हम इस हवेली का कुछ हिस्सा इन नेक कार्य के लिए दे दे। श्यामलाल की एकदम यह बात समझ में आ गई और उसने तुरंत सरपंच को बुलाकर यह बात कही सरपंच ने उसका बहुत-बहुत धन्यवाद किया क्योंकि गांव में ना ही कोई ऐसी जगह थी और ना ही कोई बनी हुई ऐसी इमारत जो कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए दी जा सकती थी। सरपंच ने जल्दी ही प्रशासन को सूचित किया और जल्दी ही वहां पर कोरोना के लिए इलाज के लिए एक अस्पताल तैयार हो गया था उसके इस दान को देखकर लोग उसके घर पर खाने पीने का सामान भिजवाने लगे देखते ही देखते ढेर लग गए उसने ऊपर के हिस्से में कुछ लोगों के साथ भोजन पानी की व्यवस्था करना भी शुरू कर दिया था आस-पास के इलाके में श्याम लाल का नाम गूंजने लगा और श्यामलाल बार-बार अपनी पत्नी का धन्यवाद कर रहा था जो उसे अपनी पत्नी के रूप में साक्षात देवी मिली थी जिसने सही समय पर उसे हमेशा ही उसे सही रास्ता दिखाया था। ****

5. जिम्मी
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रीमा घर में पालतू कुत्ता रखने की वजह से सारा दिन अपने पति रोहित से झगड़ती रहती थी कि बेवजह की मुसीबत मेरे सिर पर डाल दी सारा दिन मुझे इस कुत्ते का सुसु,पॉटी साफ करना पड़ता है और इसे कोई बाहर घुमाने वाला भी नहीं है वैसे भी यह सारा दिन बाहर जाने के लिए रट लगाए रखता था। रीमा बेचारी भी क्या करें उसके पास भी इतना समय नहीं होता था घर का सारा काम करके खुद ही इतना थक जाती थी और वह बेचारा बेजुबान जानवर अपनी छोटी छोटी नन्ही आंखों से उन दोनों के इस झगड़े से डरकर सोफे के नीचे छुप जाता। 
नन्हे जिम्मी को क्या पता उसकी वजह से कितनी लड़ाई घर में हो रही है परंतु वह समझता जरूर था। वह बेचारा भी क्या करें बाहर ना जाने की वजह से जहां देखो सुसु,पॉटी कर देता था रीमा का गुस्सा होना जायज था क्योंकि उसके पास कोई नौकर नहीं था और उसे सारा दिन घर का काम खुद करना पड़ता था ऊपर से पूरे घर में कुत्ते की वजह से बदबू भी फैल जाती थी परंतु रोहित ने उसे तर्क देते हुए समझाया कि इस नए घर में जो शहर से थोड़ा दूरी पर है मैं तुम्हारी सिक्योरिटी के लिए ही इसे रखा है परंतु वह यह बात मानने को तैयार ही नहीं थी और अचानक एक दिन जब घर में कोई नहीं था रीमा पंखा साफ करते हुए स्टूल से नीचे गिर गए और बेहोश हो गई नन्ना जिम्मी बार-बार कु-कु करने लगा उसे उठाने के लिए जब नहीं उठी तो बाहर काम कर रहे एक माली को खींच कर अंदर लाने लगा पहले माली कुछ समझा नहीं उसने सोचा देखो यह क्या कह रहा है वैसे तो मुझे देखकर भोंकता रहता है परंतु जब वह अंदर गया उसने रीमा को वहां पर बेहोश पाया उसने तुरंत रोहित को फोन किया क्योंकि वह उनके यहां माली का काम करता और बाहर से ही चला जाता था अंदर आने की कभी जरूरत ही नहीं थी परंतु आज नन्हे जिम्मी ने इतनी समझदारी दिखाई 
रीमा ठीक हो कर घर आ गई और जीनी को अपनी गोद में लेकर खूब प्यार किया तब से रीमा जिम्मी को बहुत प्यार करने लगी और करे भी क्यों ना आखिर उसी ने उसकी जान जो बचाई थी। ****


6. फरियाद
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सीमा का इकलौता बेटा वीर लाड प्यार की वजह से इतना बिगड़ गया की छोटी-छोटी बातों पर झूठ बोलना, रोब जमाना जैसे उसकी आदत हो गई थी सीमा बहुत ही दयालु और सभ्य महिला थी वह अपने बेटे को अच्छे संस्कार और सच्चाई की राह पर चलाना चाहती थी वह केवल 12 साल का था और धीरे-धीरे वह पक्का होता जा रहा था उसे लग रहा था अगर इसको नहीं बदला गया फिर यह कभी नहीं बदल पाएगा हर वक्त बस वह इसी प्रयास में लगी रहती थी और कोशिश करती थी कि वह ज्यादा से ज्यादा अच्छी आदतें उसे सिखाएं परंतु मोबाइल ,टीवी के चक्कर में सब कुछ बदल रहा था।
वीर को मौका मिलते ही वह मनमानी चीजें देखने लग जाता वह बहुत जिद्दी भी हो गया था सीमा भगवान के आगे फरियाद करती हुई एक दिन रो ही पड़ी की हे प्रभु! एक ही बेटा है कम से कम इसमें ऐसे संस्कार मैं कैसे डालूंगी जो यह नेकी का रास्ता चुने सीमा के पति भी एक दबंग स्वभाव के व्यक्ति थे इसलिए उसे अपने पति से भी कुछ खास उम्मीद नहीं थी कि वह अपने बेटे को समझाएंगे। अपने घर के बने मंदिर में भगवान के आगे बैठे बैठे सीमा रोने लग गई बेटा कमरे से बाहर आते वक्त जब मां को मंदिर में रोते देखा तो पूछा आप क्यों रो रही हैं यह तो केवल तस्वीर है आप इन से बातें कर रही हैं सीमा ने उसे अपने पास बैठकर समझाया नहीं बेटा देखो यह भगवान जी सब सुन रहे हैं सब देख रहे हैं तुरंत वीर ने कहा हां तो ठीक है आप तो मंदिर का पर्दा लगा देती है फिर कहां देख पाते हैं भगवान मेरा कमरा तो वैसे भी बहुत दूर है सीमा को तभी एक आईडिया दिमाग में आया वह अगले दिन बाजार जा कर भगवान की बहुत ही मोहिनी सूरत वाली जो हर तरफ से देखने पर लगता था कि वह आपको ही देख रही है ऐसी 5,6 फोटो ले आई  जिसके नीचे लिखा था
 "मैं हर जगह हूं" और उसने हर कमरे में ड्राइंग रूम में लॉबी में यहां तक की किचन में भी वह फोटो लगा दी।अब वीर की मुश्किलें जैसे बढ़ गई थी वह बात बात पर झूठ बोलता तभी उसे सामने से वह फोटो नजर आ जाती वह मम्मी से आकर पूछता मां भगवान ने मुझे देखा तो नहीं क्योंकि मैंने यह गलत काम किया है उसने कहा बेटा माफी मांगो और कोई बात नहीं आगे से ना करने के लिए बोलो इस बात का इतना असर हुआ कि उनके पापा भी जो बहुत गुस्सैल स्वभाव के थे बदलने लगे घर में नौकरों के साथ भी बहुत अच्छा बर्ताव होने लगा घर में नॉनवेज बनना बंद हो गया कोई भी खाने की वस्तु जो घर में आती तो पहले भगवान का भोग लगने लगा इस तरह से पूरा घर एक मंदिर बन गया था और एक दिन बेटे ने फिर से पूछा क्या भगवान बाहर भी हैं तक सीमा ने हंसते हुए कहा बेटा ऐसी कोई भी जगह नहीं जहां से भगवान हमें देख नहीं सकते वह हर जगह है एक पत्ता भी उनके बगैर नहीं हिल सकता है वीर एकदम सही रास्ते पर चल रहा था और सीमा को यकीन हो गया कि प्रभु ने उसके बहते आंसुओं की फरियाद सुन ली थी। यकीनन ईश्वर हर जगह है।****


7. नौकर राजू 
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राजू कहने को तो घर का नौकर था लेकिन पूरा घर उसी ने संभाला हुआ था और घर के मालिक देवदत्त जी उस पर बहुत यकीन करते थे अपने बेटे से भी ज्यादा और इस बात से अक्सर बाप बेटे में कई बार कहासुनी भी हो जाती थी और बेटा गुस्से में कई बार कह भी चुका था कि यही आपका बेटा मैं तो कुछ हूं ही नहीं आपके लिए देवदत्त जी उसकी यह बात हंसकर टाल देते थे और एक दिन वह समय भी आ गया जब देवदत्त जी को पता चला कि उसके अपने बेटे राम की दोनों किडनी खराब है माता-पिता व अन्य कई रिश्तेदारों में से किसी की भी किडनी उसको मैच नहीं कर रही थी पूरे घर में मातम का माहौल था ऐसे में राजू देव जी के सामने हाथ जोड़कर खड़ा होकर कहने लगा बाबूजी मेरी किडनी ले लो पर राम भाई को बचा लो देवदत्त जी उसकी यह बात सुनकर उसे गले लगा दिया और डॉक्टर ने भी कहा इसमें क्या बुराई है जैसे ही चेक हुई सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ आई किडनी मैच हो गई थी और राजू ने हंसते हुए अपनी एक किडनी राम को दे दी ठीक होने पर राम की आंखों में आंसू थे राम ने  राजू को गले लगा लिया और कहा कि बाबूजी सच में कहते थे अब बाबू के एक नहीं दो बेटे हैं राजू ने भी एक बेटे का ही फर्ज निभाया था। *****


8. बहादुर दीया
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नन्ही दीया जो आठ साल की बच्ची है उसने अपनी सूझबूझ से ना केवल खुद को बल्कि अपने परिवार को बचा लिया दीया के पापा दूसरे शहर में नौकरी करते थे और दीया अपनी मम्मी व छोटे भाई ध्रुव के साथ रहती थी घर के कुछ भी काम करने के लिए मम्मी को बाजार जाना पड़ता था एक दिन दीया कि मम्मी बाजार में छोटे पाँच साल के भाई को दीया के पास छोड़कर सामान लेने चली गई कि जल्दी ही एक घंटे तक आ जाऊंगी लेकिन पीछे से घर में एक चोर घुस गया दीया ने उसके हाथ में एक चाकू भी देख लिया था दीया अपने साथ सोते हुए भाई के साथ सोने का नाटक करने लगी जैसे ही चोर कमरे में गया वह चुपके से उठकर उसने बाहर से कमरे की कुंडी लगा दी और अपने भाई को साथ लेकर पडोसी वाले घर में चली गई तुरंत पडोसी आ गए और पुलिस को बुला लिया  दीया की मम्मी को भी फोन करके बुला लिया जल्दी ही दीया कि मम्मी भी पहुंच गई इस तरह से दीया ने सूझबूझ से इस बहादुरी भरे काम को अंजाम दिया सच में दीया बहुत ही समझदार और बहादुर बच्ची है उसकी सभी जगह तारीफ हुई और उसे कई जगह से सम्मान भी मिला और उसके इस कार्य से दूसरे बच्चों को भी खूब प्रेरणा मिली। ****

             
9. रीना 
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बार बार घंटी बजने पर मैने जल्दी से जैसे ही दरवाजा खोला सामने एक 30,35 साल की लड़की को खड़े देखा पूछा क्या चाहिए देखने से भिखारी भी नहीं लग रही थी, बोली मुझे काम चाहिए मैंने कहा किसने भेजा है नहीं किसी ने भी नहीं भेजा ऐसे ही सड़क पर जा रही थी पहले तो मुझे थोड़ा शक हुआ फिर मैंने उसको बाहर ही बैठने को कहा खाली समय था मैंने कहा अब मुझे बताओ कौन हो तुम यहां क्यों आई हो
उसने बताया कि मैं कोलकाता से आई हूं और  एक बार नहीं मेरे साथ कई बार हर जगह धोखा हुआ है बहुत से लोगों ने मुझे पैसे नहीं दिए या मुझे गलत काम में धकेलना चाहा मैं वहां अब काम नहीं करूंगी और ना ही मैं वापस जाना चाहूंगा क्योंकि वहां भी यही सब है मैं क्या करूं 12वीं पास हूं ना कहीं नौकरी है ना ही कहीं कोई काम है  मुझे याद आ गया एक गर्ल  हॉस्टल में खाना बनाने के लिए जरूरत थी मैंने जल्दी से उसे वहां का एड्रेस दिया और वार्डन मैडम को फोन लगाया कि एक काम वाली खाना बनाने के लिए भेज रही हूँ इसे रख ले साथ में हिदायत भी दी थोड़ा ध्यान रखें कहीं कुछ चोरी ना हो जाए हफ्ते बाद फोन आया कि उसमें सब अच्छे से सारा काम संभाल लिया है मुझे भी सुकून हुआ तीन महीने बाद मुझे वह मार्केट में मिली एकदम सजी-धजी खूबसूरत साड़ी पहने हुए  मैंने आवाज लगाई रीना  उसने हंसते हुए मेरी तरफ आई ! दीदी सोच रही थी आप से मिलने की पर इतना समय ही नहीं होता मार्केट में सब्जी, सब सामान लेने की ड्यूटी मेरी ही है मैंने कहा कोई बात नहीं बस अच्छे से रहो और अपना ध्यान रखो कोई जरूरत हो तो मुझे फोन कर लेना फिर मुझे एक दिन है वह शिमला हम घूमने गए वहां मिली खूबसूरत जींस टॉप में एक लड़के के साथ जा रही थी मैंने आवाज लगाई रीना उसने देखा और इधर-उधर अंजान बनती हुई निकल गई, मैंने भी अनदेखा कर दिया इसके बाद वह मुझे कई बार मिली लेकिन वह हर बार मुझे अनदेखा कर देती थी इस बात को साल हो गया एक दिन अचानक मेरे दरवाजे की फिर जो बार-बार घंटी बजी और सामने मैंने रीना को खड़ा पाया वह जोर जोर से रो रही थी दीदी मेरे साथ धोखा हो गया है मैं पेट से हूं और उसका कहीं कोई पता नहीं उसका नाम भी झूठा निकला और सब कुछ झूठ है अब मैं क्या करूं वह यह सब एक ही सांस में कह गई मुझे तो नौकरी से भी निकाल देंगे अब मैं कहां जाऊंगी तब मैंने याद दिलाया कि जब शिमला में मैंने तुम्हें आवाज लगाई थी तुम अनदेखा करके निकल गई थी तब उसने बताया कि उसी लड़के ने मुझे रोका था वह किसी से नहीं मिलना चाहता था दरअसल वह उसके साथ शुरू से ही धोखा कर रहा था पर मुझे बहुत गुस्सा भी आ रहा था कि जब जरूरत थी तभी तुम्हें मेरी याद आती है वैसे तो कभी पूछने भी नहीं आई मैंने जानकार डॉक्टर को फोन किया कुछ पैसे दिए और उसे भेज दिया लेकिन अब की बार मैंने उसको समझाया कि अब दुबारा मेरे पास नहीं आना अपने जीवन का निर्णय सोच-समझकर करो तुम अब छोटी नहीं हो पर मैं भूल गई थी कि इस तरह भटका हुआ आदमी हर किसी पर यकीन कर ही लेता है मैं नारी वेदना  बहुत अच्छे से समझती थी फिर मैंने उसे प्यार से समझाया अबकी बार कोई लड़का मिले तो मुझे बताना मैं तुम्हारी पहले शादी उससे करवाऊंगी वह भी अच्छी तरह से देखभाल करके रीना की आंखों में आंसू थे उसने अपने दोनों हाथों से मेरे हाथ पकड़ लिए बिना कहे ही मैं उसकी भाषा समझ गई थी आंसुओं के साथ-साथ उसके मन में पश्चाताप भी था और मेरे लिए बहुत कृतज्ञता। ****


10.कीमती चीज
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सुबह-सुबह किसी ने मेरे घर की घंटी बजा कर बताया लगता है आपका पप्पी बाहर कार के नीचे बैठा है मैं एकदम से बाहर निकलकर देखा एक छोटा सा प्यारा सा पालतू पप्पी घायल अवस्था में वहां बैठा हुआ था वह मेरा नहीं था हालांकि मेरे पास भी मेरा अपना पालतू पप्पी है लेकिन वह घर के अंदर ही था मैंने उसको बड़े प्यार से अपने पास बुलाया वह डर सर और पीछे की तरफ खिसक गया मैंने उसे थोड़ा सा बिस्किट और पानी दिया और थोड़ी दूरी पर जाकर खड़ी हो गई मैंने देखा गया धीरे-धीरे खाने लग गया वह बहुत डरा हुआ था मैंने फिर उसे प्यार से अपने पास बुलाया वह आ गया मैं उसे घर के अंदर उठा कर ले आई पर क्योंकि मेरे पास भी एक अपना खुद का था तो मैंने उससे दूर रखा क्योंकि मेरे वाला बहुत ही गुस्सेल स्वभाव का था उसे जरा भी पसंद नहीं था कि उसके सिवा किसी से प्यार करें।
मैंने सोचा अगर मैंने से बाहर छोड़ दिया तो इसे फिर से गली वाले कुत्ते काट खाएंगे मैंने उसे दवाई दी और आसपास पता किया पर कहीं से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला भी वह सो गया शाम को मैं उसके गले में चैन डालकर पीछे की गली में ले गई कि शायद किसी का हो ऐसे ही घूम कर हम वापिस आ गए मैं फिर से उससे भी अगली गली में लेकर गई अचानक वह एक साइड में भागने लगा मैं समझ गई उसे अपने घर का रास्ता पता चल गया है और एक घर के सामने आकर वह जोर जोर से भागने लगा और भौंकने लगा इतने में ही मकान मालिक उसकी आवाज़ सुनकर बाहर आ गये और उसको गोदी मे उठा लिया वह बोल रहे थे हम इस 2 दिन से ढुंढ रहे हैं पता नहीं कहां चला गया था बार-बार वह मेरा शुक्रिया अदा कर रहे थे जैसे मैंने उनकी कोई कीमती चीज उन्हें लोटा दी हो। और मैं भी अपने आप को बहुत ही हल्का महसूस कर रही थी किसी की कीमती चीज उन्हें लौटा कर।****


11. भोली सुनंदा
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किसी ने ठीक ही कहा है कि आप जैसे माहौल में रहते हैं आप की सोच उसी तरह की बन जाती है सारा दिन मंदिर के साथ बनी दुकान में रहने वाली सुनंदा हर वक्त भजन गाती रहती थी और जो भी मिलता उसे देखकर दूर से ही "जय श्री राम" का नारा लगाती और मैंने कितनी बार उसको मंदिर का आंगन भी साफ करते हुए देखा सुनंदा बहुत ही प्यारी 5 वर्ष की बच्ची रोजाना सुबह अपनी मां के साथ मंदिर के साथ वाली छोटी सी दुकान पर बैठे दिखाई देती ,मंदिर मैं जाने वाले भक्त उनसे कुछ प्रसाद फूल और चढ़ाने की वस्तुएं खरीद लेते थे आज सुनंदा अकेली दुकान पर बैठी हुई थी मैंने पूछा तुम्हारी मां कहां गई उसने कहा मां बाजार से सामान लेने गई है दुकान का नुकसान ना हो इसलिए मैं दुकान पर बैठ गई आपको जो लेना है ले लो और खुद ही जितने पैसे बनते हैं मुझे दे देना आज फूल नहीं है शायद मां ने नहीं आना था इसीलिए नहीं रखी नहीं नहीं!आंटी जी फूलों वाला तो रोज सुबह दे जाता है फूल सब लोग अपनी मर्जी से ही फूल ले जा रहे थे और मुझे पैसे दे रहे हैं उसने हाथ में पकड़े हुए कुछ सिक्के मुझे दिखाएं फूल लगभग सभी खत्म थे उसने एक ही सांस में मुझे यह बात कह दी इतने में एक दूसरा भक्त आया उसने यही बातें उसको भी कहीं वह सुबह से हर आने जाने वाले के आगे यही बात दोहरा रही थी मैंने उन्हीं बचे थोड़े से फूलों में से थोड़े से फूल लिए और 50 का नोट उसे पकड़ा दिया अरे यह तो बहुत ज्यादा है ना मैंने कहा नहीं नहीं बेटा मैंने इतने के ही लिए है सोचा एक दिन मंदिर में नही भी चढाये तो क्या मुझे तो उस बच्ची में ही भगवान नजर आ रहे हैं। मगर उन सबका क्या जो एक या दो रुपए के सिक्के में पूरी थाली भरकर ले गए भगवान को खुश करने के लिए।****
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क्रमांक - 03

                                                     
पिता  :    श्री सी.एस. शिशौदिया 

जन्म  :   ५ मई, १९७१ उत्तर प्रदेश 

शिक्षा  :   एम. ए., बी.एड. पी एच. डी. (हिंदी साहित्य)

शोधग्रंथ  : हरियाणवी एवं राजस्थानी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन 

कार्यक्षेत्र  : हिंदी अध्यापिका एवं लेखिका,सिनर्जी  व भाषा भारती पत्रिका का संपादन कार्य, इंद्रप्रस्थ लिट्रेचर फेस्टिवल की गुरुग्राम इकाई की अध्यक्ष, साहित्यिक सचिव एवं उप-संपादिका, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी/ कार्यसमिति सदस्य,प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन/ गुरुग्राम महामंत्री, राष्ट्रीय महिला काव्य मंच गुरुग्राम।

अभिरुचि  : -

हिंदी कविताएँ, लेख, कहानी, नाटक एवं नुक्कड़  नाटक,
पटकथा इत्यादि लिखने में रुचि। सामाजिक कार्यों तथा बागवानी करने में भी रूचि, नारायण सेवा संस्थान की आजीवन सदस्या, आध्यात्मिक प्रवृत्ति। 

लेखन :   काव्य के सप्तरंग-काव्य संग्रह, सात साझा संग्रह (लघुकथा व कविता),  हिंदी  साहित्य   एवं   व्याकरण लेखन  (कक्षा एक  से बारहवीं  तक पाठ्य  पुस्तकों  में   बाल साहित्य), शोध-पत्र, कहानियाँ, लघुकथाएं, विविध  कविताएँ  एवं  लेख  आदि  भाषा भारती, नवपल्लव, शब्द सुमन,साहित्य कलश, सिनर्जी, जगमगदीप ज्योति, मधु
संबोध तथा साँझी सोच, दृष्टि आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित।  बाल एकांकी संग्रह, लघुकथा संग्रह प्रकाशाधीन,
संपादन : शब्दगाथा-2(समीक्षा पुस्तक)प्रकाशक-हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, कृति एवं एक्सीड प्रकाशन में विविध हिंदी पाठ्य पुस्तकों का संपादन एवं लेखन कार्य।     पिछले १२ वर्षों से  पत्रिका आदि का संपादन कार्य।   
सम्मान : -

आदर्श राष्ट्रभाषा शिक्षक पुरस्कार, राष्ट्रीय भाषा-भूषण पुरस्कार, हिंदुस्तानी भाषा अकादमी, नई दिल्ली द्वारा समीक्षक और शब्द साधना काव्य प्रतिभा सम्मान, हिंदी की गूँज संस्था, नई दिल्ली द्वारा 2018 का हिंदी साहित्यकार सम्मान,शब्द सुमन साहित्यिक संस्था, बस्ती द्वारा हिंदी गौरव पुरस्कार, शब्द साहित्यिक संस्था, गुरुग्राम द्वारा लघुकथा स्वर्ण सम्मान एवं पुरस्कार आदि।

अनुवाद : भारतीय कला का इतिहास एवं सौंदर्य (अंग्रेजी से हिंदी में)

पता :     
आरडी सिटी, सैक्टर – 52
गुरुग्राम - हरियाणा 

1.दर्द का रिश्ता
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आसमान में उमड़-घुमड़कर काली घटाएँ घिर आईं थी। एकाएक अंधड़ का वेग तीव्र हो गया। मार्च का अंत होते-होते अचानक गर्मी बढ़ गई थी। प्रकृति में क्षोभ उत्पन्न हुआ, गर्म हवाएँ ऊपर उठने लगीं  तो रिक्त स्थान भरने के लिए शीतल हवाएँ भी चक्रवाती हो उठीं। उसकी निगाहें तुलसी के दो गमलों पर गईं जो आसपास ही दीवार पर सटाकर रखे हुए थे। शाखाएँ और पत्ते प्रबल वेग से कंपित हो रहे थे। दोनों पौधे संग पले- बढ़े थे। दोनों परस्पर एक-दूसरे की टहनियों, मंजरियों और पल्लवों को अपने में समेटे हुए....कुछ गुथे हुए से थे तभी तूफानी वेग आया और एक पौधा नीचे गिरने लगा। गुथी हुई शाखाएँ चरमरा उठीं, कुछ थामे भी रहीं मगर शाख से टूटे तो फिर कहाँ रुके! टूटी टहनियों से बूँद- सी छलक आईं...विलग होने का दर्द कहीं और भी अश्रु बन बह रहा था....
कपिला एकटक  वो मंजर निहारे जा रही थी।  उसे मंजरियों और शाखाओं से स्वयं का दर्द का रिश्ता लगा जो उसकी आँखों से भी बह रहा है मानो वह स्वयं उन गमलों में से एक में रोपी  तुलसी है.....उसने दौड़कर गमला संभाला। 
तपेन को व्यापार में बड़ी हानि हुई थी..उसने शराब में खुद को डुबो ही दिया था। बुरी संगत ने उसके घर में घर कर लिया। नतीजन तनाव बढ़ चला। कपिला गोद में नन्ही बेटी लिए मायके आ गई। तभी दो दिन बाद तपेन के एक्सीडेंट की खबर मिली और वह वापस अपने घरौंदे के तिनके समेटने चली आई... आखिर प्रेम में चाहतों का त्याग भी तो होता है....... जैसा भी है वो उसका प्रेम है.....। 
अंधड़ रुक चुका था। कपिला ने गमला पुनः संजोकर रख  दिया। ****


2. बरगद
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सड़क के आखिरी छोर पर घना और विस्तृत वृक्ष बरबस ही मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लेता है और मैं उस ओर ही चल देती हूँ। मैं उसके और निकट गई तो देखा उसके आगोश में लिपटे छुई-मुई से नन्हें पौधे बड़े विनम्र-सुशील-से मुझे देख यों बोले-" हम भी कितने खुशकिस्मत हैं जो खतरों का सामना नहीं करते। बिजली कड़के या आग बरसे, हमें कोई चिंता नहीं है। इस बड़े बरगद की छाया में दिन कट रहे हैं चैन से अपन के...।" 
"अच्छा, तो क्या तुम खुश हो? तुम्हारा स्वयं का आसमां भी नहीं है?"- मैंने कुतुहल से पूछा।" हम तो सुखपूर्वक समय बिता रहे हैं, संतुष्ट हैं।बस आज्ञा का पालन करते हैं, हमें कुछ न चाहिए।हमारे ऊपर है बड़े की छाया।" 
मैंने उन्हें कुरेदा,"और कुछ नहीं चाहिए तुम्हें?" " अरे नहीं और का चाहिए जीने के लिए!" क्यूँ सिर खपाएँ फालतू के झंझटों में..." यह सुनकर उन्हें सुखी-संतुष्ट देख और कुछ न कहते हुए मैं आगे बढ़ गई।
आगे मार्ग में एक और ऐसा ही घना छितराया, दूर-दूर तक अपने साम्राज्य के निशान छोड़ता बरगद का पेड़ मौन निमंत्रण-सा देता मिला। उसके नीचे भी लघुजीव-से पौधे मगर होने को दीर्घ व्याकुल, कुछ रुष्ट हो अपनी असंतुष्टि यों ज़ाहिर करने लगे-" देखो, हम कितने बदकिस्मत हैं जो नहीं करते खतरों का सामना! हम भला कैसे विस्तीर्ण हो सकते हैं इस बड़े की छाया में...., ऊपर निकल छू नहीं सकते आसमां....। बस हाथ-पर-हाथ धरे बैठे हैं...क्या हमारा जीवन यूँ ही व्यर्थ चला जाएगा?" "नहीं, जड़ों से जोर मारो और ऊपर निकलो, बाहर निकलो, फिर छू लो अपना आसमां।"- मेरे मुख से निकला।
एक ही बरगद, उसके नीचे कुछ पौधे संतुष्ट मगर कूप-मंडूक से जीवन जी रहे हैं...न भविष्य की चिंता न विरोध। दूसरे स्थान का बरगद जिसके आगोश के पौधे असंतुष्ट विरोध के स्वर में नियति से लड़ना हैं जिन्हें निज आसमान की चाह है और हाथ-पैर मार रहे हैं, खुद विशाल बरगद बनना चाहते हैं...उन्नत शाखाओं सहित। 
मैं मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गई। ****

3. बदलाव
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"सेठ जी, आप तो घणा बदल गए हो। अब तो रोज मंदिर जाओ हो। क्या कोई ख़जाना हाथ लगा सै जो रोज पंगत बैठाओ हो..।" 
धनीराम की सेठानी अपने सेठ से बोली।" 
"अरी भागवान! तेरे से तो तो कुछ छिपा है नहीं। बस ज़िंदगी भर लोगों को साहूकारी में लूटता रहा, मिलावट भी करता रहा। दुगने- चौगुने दाम में सामान बेचता रहा जिससे अमीर तो बन गया पन लोगों की नज़रों में गिर गया। बुढ़ापे में किरकिरी न सहन होवे, सो सोच रहा हूँ कुछ धर्म- कर्म कमा लूँ"- सेठ ने जवाब दिया।
" अच्छा तो अब नेक काम करोगे, डंडी मारनी और झूठ बोलना छोड़ दोगे!"- सेठानी मासूमियत से बोली।
 सेठ कहने लगा, "चल हट बावली! फिर तो हो लिया व्यापार! झूठ बोले बिना सौदा बिके है क्या? मेरा काम तो वैसे ही चलेगा बस अब अपने नए बनाए मंदिर में रोज जाऊँगा, भक्तों में बैठूँगा। उन्हें खाना खिलाऊँगा। मेरी वाही- वाही होगी, मेरी इमेज बदलेगी और जो चढ़ावा आएगा उसमें पुजारी संग आधा बाँट लूँगा। भगवान भी खुश मैं भी खुश।" 
"और मेरी खुशी!"-सेठानी चहकी।
"हाँ तेरी खुशी किसमें है, यो मने पता सै।देख ! ये रहा तेरा हार...अब तेरा सेठ कंजूस ना रहा सै...।"
सेठानी बोली- हाँ सच्ची थारे अंदर तो घणा ही बदलाव आग्या सै....। ****


4. मासूम सबक
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आज फिर सब खाने की मेज़ पर इकट्ठा थे। उनका छोटा सा परिवार था। पति-पत्नी के अलावा घर में दो लोग और थे- उनका बेटा राहुल तथा दादा जी। राहुल दस वर्ष का बालक था। वे यूँ तो खुशहाल परिवार में ही आते थे , किसी बात की कमी नहीं थी किंतु कहीं न कहीं दिल की संवेदनाएंँ कमजो़र पड़ रहीं थीं।
" ओहो पापा जी! आप कैसे खाना खाते हो? आज फिर गिरा दिया। समीर देखो न।"  सुरभि लगभग चिल्लाकर बोली। समीर ने उखड़ी निगाहों से दादाजी को देखा। दादाजी ने खुद को कंपकपाते हाथों से संभालने की बहुत कोशिश की मगर बुढ़ापे का शरीर... लाचारी का नाम है...बूढ़ा बाप जो किसी समय अच्छा खासा नौजवान हुआ करता था, आज बुढ़ापे से हार गया था। हाथ से खाना छूट जाता था, चलते समय लड़खड़ाते पैर लाठी का आसरा तकते..। एक ज़माने में कितनों की चाहतों का आस रहा आज वो ही चेहरा झुर्रियों से आच्छादित था।
"यह तो समीर रोज- रोज की बात हो गई है मैं कहाँ तक सफाई करूँ?" दादाजी के बूढ़े हाथों से सुरभि बहू की आवाज़ से आतंकित हो पूरी थाली छूट गई। वो जैसे सहम कर सिमट गए। वे उठकर जाने लगे। " पापाजी! कुछ तो ख्याल करो।"  समीर बहू के साथ घिनियाते हुए बोला।
"सुनो जी, क्यों न इन्हें अलग ही कमरे में खाने को दे दिया करें।"- सुरभि ने लगभग फैसला सुनाते हुए कहा। बेटे ने भी सिर इस तरह हिला दिया जैसे सहमति दे दी हो। राहुल बड़े ध्यान से यह देख रहा था। उसे दादाजी के साथ जो हो रहा था शायद अच्छा नहीं लग रहा था।
रात्रि को पिता का भोजन उनके कमरे के एक कोने में नीचे रख दिया गया। सब अपने खाने की मेज़ पर चले गए। ऑफिस से थका मांदा समीर खाने पर टूट पड़ा। बहू भी खाने में मगन हो गई थी मगर राहुल नहीं खा रहा था। वह उठकर दादाजी के पास चला गया। पीछे-पीछे सुरभि भी आ गई। "चलो तुम यहाँ क्या कर रहे हो? अपना खाना खाओ।" उसने राहुल से कहा। राहुल बड़ी ही मासूमियत से बोला, " मैं देख रहा हूँ कि बड़ों के साथ कैसा बर्ताब किया जाता है। जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तो आपके साथ भी ऐसे ही करूँगा। ठीक है मॉम- डैड! आप अकेले खाना खाना और खबरदार कुछ गिराया तो.."
बच्चे के मुख से ऐसे बोल सुनकर बेटा-बहू के हाथों के तोते उड़ गए। तुरंत उसे गले लगाकर बोले -"न मेरे राजा बाबू ये तो दादाजी की मर्जी थी, हम थोड़े ही न इन्हें कुछ कह रहें हैं।"  बेटे ने फटाफट अपने पिता को आदर देते हुए उठाया और प्यार से खाने की मेज पर ले गया। सुरभि पिता के लिए पानी लाने दौड़ गई। वह इस जुगत में तत्पर हो गई कि 
दादाजी को कहीं कोई तकलीफ़ न हों.....। ****


5. ब्रह्मराक्षस
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"दीपाली मैंने तुझे मना किया था न इन काव्य गोष्ठियों में जाने से..फिर भी गई!!" 
दिपेश ने अपनी पत्नी के बाल पकड़कर खींचते हुए कहा। शराब के नशे में उसके तेवर बड़े  भयंकर थे। फिर भी दीपाली ने हिम्मतकर कहा, "क्यों नहीं जा सकती? गलत काम थोड़े ही किया है..वो तो मैं कविता लिखती हूँ.. तो चली गई।" क्या मैं सिर्फ जॉब और घर संभालने के लिए हूँ.....मन का कुछ न करूँ?  और ये जो तुम्हारा ब्रह्मराक्षस जाग जाता है न ..शराब पीकर, मुझे न डराना अब इससे...खुद कमाती हूँ....तुम बता दो मुझे अब कि  बीबी चाहिए या बंधुआ मज़दूर!"
ब्रह्मराक्षस अब धीरे- धीरे शांत हो रहा था....। ****

6. तोबा-तोबा
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निरंजन बाबू जब से हाईकोर्ट में बाबू हुए हैं, उनके नाम की तूती बोलती है। मजाल है जो उनकी नाक के नीचे से कोई फाइल बिना चढ़ावा चढ़ाए इधर से उधर हो जाए पर दिखने वे सज्जन ही बने रहते है और रिश्वत के नाम पर कान पकड़ तोबा-तोबा करने लगते हैं...।
पर आज निरंजन बाबू बदहवास हुए जा रहे हैं कारण एक वकील महाशय केस की पैरवी रुकवाने के सिलसिले में जो मुट्ठी गर्म करके गए हैं वह दरअसल उनका भेजा गर्म कर गई है। जब उन्होंने काग़ज़ खोलकर पढ़े तो सन्न रह गए, वे उनकी अपनी बेटी के कागज़ात थे जो कुछ दिनों से घर आकर रह रही थी। पहले तो दहेज को लेकर घर भर के ताने सुने फिर पति शराब के नशे में मारपीट करता था तो छोड़ आई थी। वह उससे छुटकारा पाना चाहती थी, इसीलिए कोर्ट में केस डाला था।
आज निरंजन बाबू की आँखों के आगे वे सारे केस घूम गए जो बेबसी में न्याय की गुहार कर रहे थे मगर रिश्वत की दीवारों से टकराकर चूर- चूर हो गए थे। प्रायश्चित की अगन उनके मुख से यही कहलवा रही थी- 'तोबा- तोबा' ****

7.आरक्षित 
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चुनाव जीतकर मंत्री जी बेहद प्रसन्नचित थे। हों भी क्यों न! एक बार फिर से आरक्षण का मुद्दा काम कर गया था और दलित समुदाय के वोट झटक लिए , यह आश्वासन की घुट्टी पिलाकर कि उनका आरक्षित कोटा आगे भी बरकरार रहेगा। जश्न का दौर चल ही रहा था कि घर से पत्नी की घबराई हुई आवाज़ फोन पर सुनाई दी- "जल्दी घर आवो, बिटवा को कछु हो गया है जी।" मंत्री जी फौरन घर पहुँचे तो देखा इकलौता पुत्र तेज बुखार से बेहोश हो गया था। वे फौरन उसे  अस्पताल लेकर गए। सीनियर डॉक्टर जाँच करने लगा। मगर यह क्या! मंत्री महोदय ने उसे रोक दिया और फौरन किसी दूसरे डॉक्टर को बुलाने को कहा। दरअसल मंत्री महोदय डॉक्टर की नेमप्लेट से जान चुके थे कि आरक्षित कोटे से बना डॉक्टर है, अब उसके हाथों अपने जिगर के टुकड़े को कैसे ......
उसे भी तो बीमारी से आरक्षित करना था... ****


8. सम्मान
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कार्य समिति की बैठक चल रही थी। 'बाल सहायक मंडल' की यह वार्षिक बैठक थी। सभी सदस्य उपस्थित थे । महत्वपूर्ण विचारणीय मुद्दा था- आगामी बाल पुरस्कार योजना का। सुझाव माँगे जा रहे थे। सुश्री 'अ' ने कहा, "किसी मंत्री को इस बार बाल पुरस्कार देने हेतु आमंत्रित किया जाए...।" 
अध्यक्ष जी ने सहमति जताई, आखिर इससे सरकारी महकमे की कृपादृष्टि उनकी संस्था पर पड़ेगी तो पौ बारह हो जाएँगे। " पर मंचासीन लोगों की फेहरिस्त में पाँच लोग होंगे कम से कम" श्रीमान 'ब' ने सुझाव दिया। सुश्री 'स' ने गंभीर होते हुए कहा,"मेरा मत है कि जब बच्चों का कार्यक्रम है तो किसी बालसाहित्यकार को भी निमंत्रित कर लिया जाए। बच्चों की सम-सामयिक समस्याओं और समाधान पर उनकी पैनी नज़र रहती है।" अध्यक्ष जी ने तुरंत हस्तक्षेप किया-" हम उन लोगों को मंचासीन करेंगे जो संस्था को आर्थिक सहायता प्रदान करेंगे। बाकी नामचीन लोगों में से एक कैलाश सत्यार्थी जी को बुला लेंगे। चार धनिकों को देख लेंगे...आखिर संस्था भी तो चलानी है।" सुश्री 'स' उठ खड़ी हुईं, "तो सर! यहाँ हमारा क्या काम? आप धनकुबेरों का ही सम्मान करें, बाल प्रतिभाओं, उत्कृष्ट साहित्यिकारों या हमारे सुझावों से क्या लेना-देना? 
श्रीमान 'द' ने अपना विचार उगला-"अब लक्ष्मी का सम्मान होता है, सरस्वती का नहीं।" 
"और उनका क्या जो दम तो सरस्वती साधक होने का भरते हैं मगर पूजक माया के हैं...??" सुश्री 'स' के सवाल पर मौन व्याप्त हो गया मानो सम्मान के प्रश्न पर वह भी सम्मानित हो रहा था। ****


 9. तपस्या
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"अरे बहूरिया! क्यों इस गठरी को लिए- लिए घूमती है? मेरे बेटे पर खर्चे का भी बोझ बढ़ा दिया, भला यह भी कोई बात हुई...।"
प्रज्ञा को उसकी सास ने उलाहना भी शिकायत भरे लहज़े में दिया। 
हिमालय सदृश्य अडिग प्रज्ञा बोली-" माँजी, जब अनुष्का के कुआँ पूजन में मैंने कोई भेद-भाव नहीं किया तो अब उसकी शिक्षा- दीक्षा में कैसे कर दूँ। "
सास- " हाँ तू तो अड़ गयी थी, समाज की रीत के विपरीत जाकर अपनी छोरी का कुआँ पूजन किया कि बेटा- बेटी एक समान हैं तेरे लिए पर अब इसका धड़ काम नहीं कर करता। तू देख रही है न!  इसे व्हीलचेयर पर उठने- बैठने के लिए भी सहारा चाहिए। यह तो बोझ है बोझ... न जाने हमारे किन खोटे कर्मों का फल है यह! "
प्रज्ञा-" माँजी, आपसे विनती है कि अनुष्का के बारे में कुछ न ऐसा बोलें कि उसे बुरा लगे। वह पहले ही बहुत सोचती है। उसे और दुखी न करें। मैं संभाल लूँगी, आप चिंता न करें। " माँ ने फिर पूछा, " अरे तू इसके लिए क्यूँ मरी जावे है, तुझे क्या मिलेगा? " प्रज्ञा ने जवाब दिया, " माँ, भगवान हर किसी को चुनौतीपूर्ण कार्य नहीं देते, वह देखते हैं कि कौन इसके लायक है और कौन पूरा कर सकता है। मेरी बेटी मेरी जिम्मेदारी है। लोग ध्यान करते हैं, तप करते हैं, बड़े कारनामे नाम कमाने को करते हैं। मेरा तप तो यही है कि उसकी देखभाल ठीक से हो जाए और अपाहिज़ होकर भी वह 'अपाहिज़' न रहे। मैं उसे विद्यालय लेकर जा रही हूँ। पढ़ने में बहुत तेज है, देखना आज रिजल्ट में अव्वल आएगी। आप पीछे घर का ध्यान रखना प्लीज! "
सास कसैला -सा मुँह बनाकर- "जा रोज- रोज स्कूल लेकर इसे, हमें क्या!" और टी.वी. चलाकर सोफे में धँस गयी। थोड़ी देर में ख़बर दिखाई गयी तो वह चौंक कर खड़ी हो गयी और बेसब्री से बहू और पोती की प्रतीक्षा करने लगी। टी. वी. पर अनुष्का का साक्षात्कार आ रहा था। उसने सी.बी.एस.ई.की बारहवीं कक्षा में पूरे देश में टॉप किया था। प्रज्ञा से भी सवाल पूछे जा रहे थे। वह बता रही थी कि किस तरह तीन वर्ष की उम्र में बुखार ने उसके शरीर के निचले हिस्से को अपंग बना दिया था पर दिमाग से वह बहुत कुशाग्र है। मुझे अपनी बेटी पर नाज़ है। एक रिपोर्टर ने कहा, "सच में...ऐसे बेटी बचेगी, आगे बढ़ेगी।" ****


10.वक्त चिंघाड़ता है
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रात के दो बजे हैं। सन्नाटे की चादर में लिपटे आदम की नस्लें सोई पड़ी हैं। अँधेरा ही अँधेरा है पर नरभेड़ियों की आँखें चमक रही हैं। वे न जाग रहे हैं , न सो रहे हैं। उन्हें शिकार की तलाश है। उन्हें न राम का पता है, न अल्लाह का। उन्हें बस तन की भूख पता है। शायद उन्हें अक्षर और भैंस का अंतर भी नहीं पता। शायद वे भी ऐसे किसी अँधेरे की ही औलादें हों। वक्त चिंघाड़ता है। घड़ियाल ने दो बजने की सूचना दे दी है पर मेरी आँखों से नींद गायब है। अंतर्मन भी चिंघाड़ रहा है। तनीशी  के शब्द कानों में गूँज रहे हैं-" मैम!  आपने मुझे नाटक में सीता का रोल दिया है, वह मुझे डरा रहा है।  देखो न आज भी सीताओं का अपहरण हो रहा है। छल से- बल से। वे नृशंसतापूर्वक मार दी जाती हैं क्योंकि अब ज्ञानी रावण नहीं, नरपिशाच हैं जिनके पास कैद में रखने को अशोक वाटिका भी नहीं जहाँ प्रतीक्षा की जा सके। "
"मगर तुम आज की नारी हो, तुम संभलकर रहना। " मैंने कहा। 
"जी मैम! मैं पूरे कपड़े भी पहनूंँगी। अपने पैरों पर भी खड़ा होऊँगी मगर किसी वक्त मेरी स्कूटी भी बीच रास्ते खराब हो गयी तो...?? " इस 'तो' का जवाब ढूँढने के लिए ही मैं जाग रही हूँ। मैं खिड़की खोल देती हूँ पर अश्मभरी पवन का रुदन छू जाता है। मैं दरवाज़ा खोल आगे बढ़ जाती हूँ। मेरी आँखें नरभेड़िये की आँखों को तलाशती हैं। वे पास आती हैं। अँधेरे में ज़ॉम्बी का हाथ आगे बढ़ता है। मैं पूरे वेग से चिंघाड़ती हूँ, " ठहरो! तुम्हें तुम्हारी माँ का वास्ता जो आगे बढ़े तो। बस इतना बता दो कि तुमने अपनी बहन- बेटी को ऐसे किसी ज़ॉम्बी से बचाने के लिए किस गुहा में छिपा रखा है? " अँधेरे में चमकती आँखें पीछे हट रही हैं...! ****


11. कर्मकुंडली
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सुमित और सोनिया आम विवाहित जोड़े के जैसे ही जीवन साथी थे। आज पाँचवीं वैवाहिक वर्षगाँठ थी और सुमित हाथ में सुंदर स्तबक थामे घर पर सोनिया का इंतजार कर रहा था। वह बच्चे को विद्यालय छोड़ने गई हुई थी। इन पाँच वर्षों के खट्टे-मीठे पल  उसकी कआँखों के सामने चलचित्र की भाँति चलायमान थे। 
सुमित को याद आया जब रोज ही घर कलह का अड्डा बना रहता था...
"मेरे तो भाग्य ही फूट गए जो तुमसे ब्याही...काम-धाम कुछ आता नहीं और नखरे इतने कि पूछो मत! एक गिलास पानी भी खुद लेकर नहीं पी सकते..।" 
सोनिया अपनी भड़ास रोज की ही तरह निकाल रही थी अपने आलसी पति पर..। "जाने क्या सोचकर यहाँ ब्याह गए पापा....।."
वह भी उस दिन कह उठा- तो अपने बाप से कहकर जन्मकुंडली निकलवा लेती, क्यूँ की मुझसे शादी? रईस के घर ही जाती।" "जन्मकुंडली तो मिलवाई पर देर से... अब पंडित जी का कहना है कि मेरे -तुम्हारे गुण नहीं मिलते। ग्रहों के अनुसार तुम्हारा अग्नि और मेरा जल तत्व मुख्य है जिनमें कोई मेल नहीं। तभी मैं कहूँ हमारी आपस में बनती क्यों नहीं?  गुण ही जो विपरीत हैं।"
 "तो क्या करना पड़ेगा? " सुमित ने पूछा। यज्ञ कराना है और २१ ब्राह्मणों को भोज कराना है पर कहाँ से आए इतना पैसा, बिट्टू की पढ़ाई का तो पूरा पड़ता नहीं है और फिर मकान की किश्त भी भरनी पड़ती है, जैसे- तैसे सिलाई - कढ़ाई करके कुछ जुटा पाती हूँ पर तुम्हारे तो कान पर जूँ नहीं रेंगती कि जो थोड़ा ढंग से कमा लो..पड़े रहते हो सारा दिन बस।" पत्नी ने विवश हो कहा। बात सुमित के दिल को लग गई.. वह उठा एक नए विश्वास और संकल्प के साथ। पर क्या करे कुछ तो ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं. .रोजगार खड़ा करने को रोकड़ा जेब में नहीं... परिवार की साख छोटा काम करने नहीं देती...पर अब तो कुछ कर दिखाना है...उधेड़बुन में चला जा रहा है....जेब में हाथ डाला तो 50 रुपए मिले। सामने से आवाज़ें आ रही थीं- ताज़ा-ताज़ा ठंडी लस्सी पी लो। उसने एक फैसला किया। गाँव में से उन रुपयों से लस्सी खरीदी और शहर के एक नुक्कड़ पर बेचनी शुरू कर दी। धीरे- धीरे काफी पैसे जुड़ने लगे। द्वार घंटिका बजी तो वह ख्यालों के दरिया किनारे आ लगा। 
गुलाबी फूल हाथ में लिए आज उसने पत्नी से कहा, "तुम वो हवन यज्ञ कुछ कराना चाह रही थी, करा लो।"
सोनिया ने शांत मन से कहा - "भीतर का यज्ञ हो गया सुमित, अब जन्मकुंडली मिले या न मिले कर्मकुंडली तो मिल गई है न!" ****
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क्रमांक - 04

जन्म : 03 जून 1965
शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
             फिल्म पत्रकारिता कोर्स
            
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
               जैमिनी अकादमी , पानीपत
               ( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )

मौलिक :-

मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001

सम्पादन :-

चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003

ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018  (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019   ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन )  मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन )  जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन )  मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021

बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-

1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल

1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल

1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल

2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल

2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल

2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल

2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल

सम्मान / पुरस्कार

15 अक्टूबर 1995 को  विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।

13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।

14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित

14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित

14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित

14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।

18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित

अभिनन्दन प्रकाशित :-

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)

विशेष उल्लेख :-

1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन व सम्पादन किया है । जिस कीगिनती 25 है ।

2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।

3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित

4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
            शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
            " आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )

पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
          पानीपत - 132103 हरियाणा

                        

1. मन को शन्ति

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         मैं मन्दिर जा रहा हूँ। सामने से मेरा मित्र आहुजा मिल जाता है वह बोला- मन्दिर से आप को क्या मिला ?

         मैं सोच में पड़ गया और कुछ सोचने के बाद बोला- मुझे बहुत कुछ मिला है।

          - क्या मिला है साफ - साफ बताओ !

           - मुझे भगवान तो नहीं मिले है परन्तु मन को शन्ति अवश्य मिलती है जो मेरे मन के तनाव को दूर करती है। **

                      

  2. अमीरी – गरीबी का अन्तर

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          साहब के घर का नौकर अपनी ईमानदारी तथा महेनत के बल पर वह साहब बन जाता है । उस ने बड़ी सी बड़ी कोठी बनवाई है। आज उस कोठी का मुर्हत है मैं भी इसी मुर्हत पर आया हुआ हूँ –

        कोठी जितनी बड़ी है उतनी सुन्दर है कोठी का एक-एक कमरा देखने लायक है कोठी में लगा एक-एक समान बहुत कीमत का है। सीविगं पुल में गर्म -ठड़ा पानी का एक साथ आनन्द लिया जा सकता है जो एक बर्टन पर चालू होता है। पार्क तो इतना बड़ा और सुन्दर है। इस के आगे सरकारी पार्क भी फेल नंजर आते है। धुमते-धुमते कोठी के एक कोणें में पहुच जाता हूँ –

         कोणें में नौकर के लिए तीन कमरें बने है। उन में ना तो रसोई है ना ही स्नान घर है। दरवाजें भी नाम मात्र के है छत्तें के नाम पर सिमेन्ट की चदरें लगी है। मुझे ऐसा लगा-

      नौकर से तो साहब बन गया है फरन्तु इस के मन में भी नौकर के लिए कोई सम्मान नाम की कोई चीज नहीं है। ००

                        

3.  वारिस का हक

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       बैक का मैनेजर खाते चैक कर रहा था। अचानक उस की नंजर एक खाते पर पड़ी। जिस में पिछले तीन साल से कोई लेन देन नहीं हो रहा है। मैनेजर ने उस खाते का नम्बर नोट कर लिया।

          पूछताछ करने पर पता चला कि खातेदार मर चुका है। उस का कोई वारिस नहीं है।

         मैनेजर ने एक वारिस तथा दो गवाह बना कर उस के खाते से पैसा निकाल लिया और आपस में बांट लिया । ००  

                        

4. स्नेंह

    ****

                            

           पिता अपने चार-पाँच साल के बच्चे को पढ़ा रहे है - ओ से ओखली , परन्तु बच्चा ओ से नोकली कहता है । पिता बार-बार समझाता है परन्तु बच्चा ओ से नोकली ही कहता है। पिता को गुस्सा आ जाता है। जिस से बच्चे के मुंह पर चार- पाँच थप्पड़ जमा देता है । माँ अन्दर से चिल्लाती है

           - ये क्या कर रहे हो ?

           - मेरे समझने के बाद भी ओ से नोकली कह रहा है।

           - बच्चे को कोई पीटा जाता है बच्चे को स्नेंह से सिखाया जाता है

            और अब माँ बच्चे को पढाना शुरु करती है। स्नेंह से ही बच्चा एक दिन में ही ओ से ओखली कहना शुरु कर देता है। ००

                        

 5. पढाई

    *****

                         

         पार्क में बैठा सोच ही रहा था कि मुझे तीन साल हो गए है नोकरी की तलाश करते करते .....। तभी सामने से नरेश आ गया ।

        -  क्या सोच रहे हो ?

        - भाई ! मुझे एम. ए. किए तीन साल हो   गए। परन्तु अब तक नोकरी नहीं मिली, न मिलने की उम्मीद है। क्या मिला मुझे पढा़ई कर के.....?

          - कुछ नहीं मिला ? यह गलत है पढा़ई से कम से कम बोलना,उठाना-बैठना आदि तो सीख गए हो ।

            - नहीं ? बोलना, उठना - बैठना आदि वैसे भी सीखा जा सकता है। पढा़ई से बेरोजगारी  मिली है। ००

                        

 6. पढे़-लिखे की नौकरी

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               मैं एक दिन लिमिटेड कम्पनी में काम करने के लिए चला गया। वहाँ पर मैंने एक सफाई कर्मचारी को देखा, जो देखने से लगता था कि पढा़ लिखा है। मुझे से रहा नहीं गया और मैंनें उसे बुला कर पूछ लिया

            - आप पढे़-लिखे हो ?

            - हाँ बाबू जी, मैं हाई स्कूल व आई. टी. आई पास हूँ।

            - फिर आप सफाई कर्मचारी का काम क्यों कर रहे है ? यह नौकरी तो अनपढ़ को नगर पालिका भी दे सकती है जो सरकारी नौकरी है।

           -  बाबू जी ! आजकल नौकरी कहाँ मिलती है नगर पालिका में काम करने से सब को पता चल जाता है। सफाई कर्मचारी बन गया है परन्तु यहाँ कम्पनी में काम करने से किसी को कुछ पता नहीं चलता है।००

                          

7. दरोगा जी        

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         कोर्ट में मुकदमा जीतने के बाद जज साहब ने बुजर्ग को बधाई देते हुए कहा- बाबा !आप केस जीत गये ।

        बुजर्ग ने कहा- प्रभु जी ! आप को इतनी तरक्की दे, आप " दरोगा जी " बन जाए ।

        वकील बोला- बाबा! जज तो " दरोगा " से तो बहुत बड़ा होता है।

          बुजुर्ग बोला- ना ही साहब ! मेरी नजर में "दरोगा जी" ही बड़ा है।

           वकील बोला- वो कैसे ?

            बुजुर्ग – जज साहब ने मुकदमा खत्म करने में दस साल लगा दिये जब कि "दरोगा जी" शुरू में ही कहा था। पांच हजार रुपया दे , दो दिन में मामला रफा दफा कर दूगाँ । मैने तो पांच की जगह पंचास हजार से अधिक तो वकील को दे चुका हूँ और समय दस साल से ऊपर लग गये।

         जज साहब और वकील तो बुजुर्ग की तरफ देखते ही रह गये। ००

                           

 8.परिवार में बेटी

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                    ‎ "पापा ! दीदी की मृत्यु को  एक साल से भी अधिक हो गया है। परन्तु आप ने दीदी की कापीयां - क़िताबें अब तक क्यों संभाल कर रखीं हैं ? दीदी अब जिन्दा होकर आने वाली नहीं है जो आगे पढ़ने के लिए ......! " कहते हुए कालिया रों पड़ता है।

          अन्दर से मां आती है। कालिया को चुप करवातीं है और अपने साथ अन्दर ले जाती है।

          पापा , बेटी की कापियां-किताबें को देख कर ,अब भी गुम सुम से है। बेटी को स्कूल जाते कुछ लड़कों ने अपहरण कर के बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी। पापा अब भी सोच रहा है । अगर बेटी को स्कूल ना भेजता तो बेटी  भी जिन्दा होती .....! पापा ने ही बेटी को स्कूल भेजने के लिए परिवार पर दबाव बनाया था। पहले परिवार में बेटी स्कूल नहीं जाती थी ।  ‌ °°

                        

9. स्कूल की फीस

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      कालिया स्कूल के बाहर खड़ा रौ रहा है। तभी स्कूल का मास्टर राम केसर आ जाता है। कालिया से पूछते है -

" बेटा ! क्यों रौ रहे हो ? "

" पापा ने स्कूल की फीस नहीं दी ।"

" बेटा ! तेरा पापा एक नम्बर का शराबी है ।"

" नहीं मास्टर जी ! मेरे पापा शराब नहीं पीते है ।"

" बेटा ! तेरा पापा एक नम्बर का जुहारी है ।"

" नहीं मास्टर जी ! मेरे पापा जुआ नहीं खेलते है ।"

            तभी एक भिखारी आ जाता है और बच्चे से पूछता है - " बेटा ! क्यों रौ रहें हो ? "

    " पापा ने स्कूल की फीस नहीं दी है । "

    भिखारी पूछता है - " स्कूल की फीस कितनी है ? "

    कालिया - " तीस रुपये "

    तुरन्त भिखारी तीस रुपये कालिया को देकर चल देता है। कालिया खुशी - खुशी स्कूल के अन्दर चला जाता है। मास्टर राम केसर तो भिखारी को देखता ही रह जाता है। ००             

                     

10.  ईमानदारी

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         सुभाष की पत्नी बहुत बीमार थी। इस लिए सरकारी हस्पताल ले जाता है। डाक्टर साहब पैन हिलाते हुए बोलता है

            - कृपा कर के बाहर बैठ जाए।

             और बाहर पड़ी कुर्सि पर बैठ जाता है । तभी नज़र चपड़ासी पर पड़ती है तथा उसके पास चला जाता है और पूछ बैठता है

             - डाक्टर साहब ! रिश्वत तो नहीं लेते है?

             - बाबू जी ! राम का नाम लो। डा. साहब ईमानदार आदमी है।

              तभी घन्टी बजती है और चपड़ासी अन्दर चला जाता है। इतने में सुभाष की पत्नी बाहर आ जाती है। पीछे - पीछे चपड़ासी भी आता है

              - बाबू जी ! इस काम की फीस दो सौ रूपये है।

               सुभाष सोचता है कि यह ईमानदारी कैसी है

              - बाबू जी ! यह रिश्वत नहीं है यह डाक्टर साहब की फीस है।

               - हाँ भाई !मुझे मालूम है कि डाक्टर साहब ईमानदार आदमी है।००

                             

11. पति महोदय

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            रोजाना की तरह डाकं खोल खोल कर पढ़ रहा हूँ। एक डाकं खोली तो देखा, अपने ही शहर में जन्मी लेखिका का संक्षेप परिचय –

अच्छा लगा! अपने शहर की लेखिका का परिचय पढ़ते-पढ़ते बहुत आनन्द मिला,उस ने अपने माता – पिता का भी उल्लेख किया है परन्तु पति महोदय का नाम कहीं पर भी नंजर नहीं आया । लगा!शायद शादीं ही नहीं हुई होगी…। परन्तु फोटो श्रृंखला देखते- देखते पुरस्कार समारोह में पोते का जिक्र कर रखा है अच्छा लगा कि लेखिका शादींशुद्वा है। लगता है पति महोदय का जिक्र करना कहीं तक उचित नहीं समझा है ? ००

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क्रमांक - 05

2 मई  को कोटा (राजस्थान ) में जन्म
नारी अभिव्यक्ति मंच " पहचान " ' की संस्थापक / अध्यक्ष हैं।
■इनका सृजन ~~● 2 उपन्यास ● 11 कहानी-संग्रह ●3 लघुकथा-संग्रह ●1 बाल-गीत -संग्रह ● 7 कविता - संग्रह  ● 1 स्मृति -ग्रंथ एवं शताधिक संयुक्त संकलनों में सहभागिता है।

■  संपादन ~~● जगमग दीप ज्योति- नारी विशेषांक एवं बाल विशेषांक के अतिथि-संपादन ● अमर भारती की पुस्तकों का संपादन एवं ● " पहचान " पत्रिका का संपादन ।

  ■ पुरस्कार \ सम्मान ~~ 10 राज्यों से मिले अनेकानेक सम्मानों में उल्लेखनीय ~~● हरियाणा साहित्य अकादमी से-सर्वश्रेष्ठ महिला साहित्यकार सम्मान ● 3 कहानी-संग्रह को सर्वश्रेष्ठ कृति सम्मान ●2 कहानियों को अखिल हरियाणा प्रथम पुरस्कार ● 2 कहानियों को द्वितीय पुरस्कार ।
  ■ राजस्थान साहित्य अकादमी ~~प्रभा खेतान प्रवासी सम्मान ।
■ ' राष्ट्रधर्म ' , लखनऊ से ● 4 कहानियों को क्मश: प्रथभ द्वितीय पुरस्कार ● कहानी-संग्रह " नीम अब भी हरा है " को अ. भारतीय प्रधान पुरस्कार ।
  ■ राष्ट्र भाषा पीठ , इलाहाबाद से 2 बार पद्म सम्मान ।
  ■
यू • ऐस• संस्थान, गाज़ियाबाद - ● हिन्दी साहित्य शिखर सम्मान ● महादेवी वर्मा साहित्य -सम्मान ।
  ■ कथाबिम्ब , मुंबई से 2 कहानियों को ●कमलेश्वर स्मृति-सम्मान ।
  ■ प्रज्ञा साहित्य समिति , रोहयक से- श्रेष्ठ हरियाणा महिला साहित्यकार सम्मान ।
  ■ अनुराग संस्थान , लालसोट राजस्थानी से नीम अब भी हरा है को श्रेष्ठ कृति सम्मान ।
  ■ कोटा ( राजस्थान ) -● भारतेंदु समिति से श्रेष्ठ हिन्दी साहित्यकार सम्मान ● वीना दीप द्वारा-शिखरचंद स्मृति-सम्मान ● जे डी बी महा विद्यालय , कोटा द्वारा -भूतपूर्व श्रेष्ठ छात्रा सम्मान ।
  ■ अंतरराष्ट्रीय मंच " जागृति " , कैलेफोरनिया से-श्रेष्ठ हिन्दी साहित्यकार सम्मान।
  ■  शोभनाथ शुक्ला कथा-संस्थान, सुल्तानपुर द्वारा 2 कहानियों को" धनपति देवी स्मृति-कहानी प्रतियोगिता " के अंतर्गत  अखिल भारतीय स्तर पर द्वितीय पुरस्कार।
  ■फरीदाबाद - उर्दू दोस्त द्वारा- सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान ● मार्था काॅनवेंट ' श्रेष्ठ नगर-नारी सम्मान ● मदन मोहन मालवीय साहित्य-सम्मान।
  ■  हिन्दी साहित्य प्रचारिणी समिति , बिहार - काव्य- संग्रह " ज़िन्दगी के मोड़ " को यशपाल स्मृति-सम्मान ● कहानी-संग्रह " छाँव " को सुभद्रा कुमारी चौहान साहित्य-सम्मान।
 
  ■ शोध -कार्य ~~ P H.D.एवं M. FIL शोधकर्ता अनेक छात्रों द्वारा कृतियों / संपूर्ण साहित्य पर शोध 
 
  ■~~  विदेश-यात्रा -● अमेरिका●कनाडा ●मैक्सिको ●चीन ●ब्रिटेन।

पता : -
कमल कपूर
2144 /9सेक्टर
फरीदाबाद-121006 (हरियाणा )



1.आँसुओं की महक
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   आज बहुत दिनों के बाद वसुधा को फुर्सत के पल मिले थे, जो उसे बिल्कुल अच्छे नह् लग रहे थे। एक लंबी ठंडी साँस ले कर उसने पलंग की पीठ से सिर टिका दिया और आँखों मूंद लीं तो वह दिन सामने आ कर खड़ा हो गया, जब उसका इकलौता लाडला ध्रुव बिना खबर किये तीन बरस बाद न्यूजर्सी से लौटा था और नये पत्ते -सी नाज़ुक और फूल -सी सुंदर एक लड़की का हाथ थामे देहरी पर  खड़ा था।खुशी से बौराई -सी वह आगे बढ़ी उसे गले लगाने के लिए कि उससे पहले उन  दोनों ने ही आगे बढ़ कर उसके पाँव छू लिए और ध्रुव ने मुस्कराते हुए कहा," मम्मा ! यह आलिया है•••आपकी बहू ।"
    " मेरी बहू?" सिर पर जैसे आसमान टूट पड़ा और पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई।कुछ पल पाषाण-प्रतिमा -सी मौन  खड़ी रही वह कि पति ने उसके कंधे पर हाथ धरते हुए धीमे स्वर में कहा," वसु ! आगे बढ़ो और बच्चों का स्वागत करो ।" पर वह बजाय आगे बढ़ने के पीछे मुड़ी और लगभग भागते हुए अपने कमरे में चली गयी।
      कुछ देर बाद पति  उढका हुआ द्वार खोल कर भीतर आये और उसका हाथ थाम कर मुलायम स्वर में बोले ," जो होना था हो चुका वसु ! तुम्हारा दर्द मैं समझता हूँ पर यह वक्त नहीं है गुस्सा दिखाने का। तुम्हारा यही रवैया रहा तो अपनी इकलौती संतान से हाथ धो बैठोगी इसलिए चलो और बेटे-बहू को आशीर्वाद दे कर आदर के साथ गृह-प्रवेश कराओ।"
     रूखे-सूखे मन से उसने सब रस्में निभाईं पर उसने एक कदम  बढ़ाया तो आलिया ने चार कदम बढ़ाये। धीरे-धीरे दूरियाँ सिमटती गईं और दोनों प्याज़ की पर्तों -सी एक-दूसरे के साथ खुलती गईं और घर हंसी-खुशी की फुलवारी बन गया। किसी जादूगर के सुंदर खेल-तमाशे से वे सात सप्ताह कैसे गुज़र गये , पता ही नहीं चला और आज सुबह एयरपोर्ट पर बिदाई की बेला में जब उसके गले लग कर आलिया बच्चों की तरह बिलख रही थी तो उसे भी रोना आ गया।
     " ये घड़ियाँ रोने की नहीं खुश होने की हैं वसु ! आलिया बेटी के कीमती आँसू संभाल कर रख लो, " सामने मुस्कान बिखेरते हुए  पतिदेव खड़े थे। उसने भीगी हुई सवालिया नजरों से उन्हें देखा तो वह फिर मुस्कुराए " आलिया बहू बन कर हमारे घर आई थी पर अब बेटी बन कर बिदा हो रही है क्योंकि घर से बिदा होते हुए बेटी रोती है , बहू नहीं।"
    वसुधा  ने पलकों के बंद किवाड़ खोले और अपने आँचल  के उस कोर को दुलार से चूम लिया, जिसमें उसकी बेटी आलिया के खारे आँसुओं की मीठी महक बसी थी। ***


2. सूर्य ढला नहीं 
    ***********?


   " चलिये अब तो खाना खा लीजिए•••3 बजने को हैं," पत्नी का स्निग्ध स्वर सुन , यादों की गलियों में भटकते दिवाकर वर्तमान में लौट आये और थके -से स्वर में बोले ," आज मन नहीं है खाने का।तुम खा लो।"
     " काहे मन नहीं है जी? सुबह से हाथ में फोन थामे गुमसुम से बैठे हो।आखिर बात क्या है?"
   " जानती हो न गायत्री! आज शिक्षक-दिवस है?"
   " हाँजी जानती हूँ। तो फिर?"
   " तुम्हें याद है न कि पिछले बरस और उससे पहले के भी तमाम बरसों में शिक्षक-दिवस पर सुबह से ही हमारे छात्रों के फोन आने शुरू हो जाते थे और जब स्कूल से घर लौटते थे हम तो थैली भर कार्डस और ढेरों फूल साथ ले कर लेकिन  आज•••? किसी एक ने भी ' विश ' नहीं किया हमें।हम सेवा-निवृत क्या हुए , सब हमें भूल गये। पीड़ा तो होती है न?" गहरी ठंडी साँस ले कर कहा उन्होंने तो गायत्री उनका हाथ थाम कर बोली ," जग की यही रीत है  जी! ढलते सूरज को कौन प्रणाम करता है? मान क्यों नहीं लेते कि आपका सूर्य भी ढल गया है•••।"
    " नहीं पापा जी ! आपका सूर्य नहीं ढला , वो तो चम-चम चमक रहा है। तनिक मुड़ कर तो देखिए,"  पुत्र-वधू आरती की मधुर स्वर-लहरी उनके कर्ण-पटल से टकराई तो उन्होंने मुड़ कर देखा•••आहा! उनका मन-सुमन खिल उठा। उनकी सात वर्षीया जुड़वाँ पोतियाँ आस्था और अदिति हाथों में बड़ा सा सजीला  कार्ड और लाल गुलाबों का गुच्छा थामे खड़ी मुस्कुरा रही थीं 
    आगे बढ़ कर उसके गले में बांहो का हार पहनाते हुए दोनों ने समवेत स्वर में चहकते हुए कहा," हैप्पी टीचर्स डे दादू !"
     " पापा जी! आपने अपने दोनों बेटों और अनगिनत छात्र- छात्राओं को पढ़ा-लिखा कर योग्य बनाया है।अब बारी आपकी इन लाडलियों की है । इनका दायित्व संभालिये पापा जी! यू आर द बैस्ट टीचर ऑफ द वर्ड  हैप्पी-हैप्पी डे," उवके चरणों में झुकते हुए आरती ने शब्दों के महकते हुए  फूल बिखेरे। ***
     

3.पहियों पर झूमती ज़िन्दगी
    ********************


  रंगारंग रोशनियों से दमकते और बहुरंगी फूलों तथा इत्र की मिलीजुली सुगंधियों से महकते लाॅस एंजिल्स के विक्टोरिया गार्डन में जैसे आकाश से जन्नत ही उतर आई थी•••प्रेम-पर्व की उस सप्ताहंत वाली रात को।फरवरी की उस गुलाबी ठंडक में जैसे धीमी मीठी आँच भर रहे थे ,मादक मधुर गीत-संगीत की स्वर-लहरियों पर थिरकते हर उम्र, देश,जाति और मज़हब के सुंदर जोड़े।तभी सबकी नज़रों को बांध लिया सूट-बूट-टाई-हैट पहने सामने से आ रहे एक खुशमिजाज अमेरिकन वृद्ध सज्जन ने, जो मस्ती में झूमते हुए एक व्हील चेयर को  ठेलते हुए आगे बढ रहे थे , जिस पर विराजमान थीं•••सफेद जमीन पर लाल-पीले गुलाबों के प्रिंट वाला इवनिंग गाउन पहने  और होंठों पर सुर्ख समृद्ध मुस्कान सजाए दूध सी रंगत वाली वृद्धा। सहसा संगीत ने सुर बदले और स्वागत-गीत बजने लगा और वहाँ के रिवाज के अनुसार सबने बढ कर उस विशिष्ट वृद्धा का स्वागत किया और एक युवक ने व्हील चेयर का हत्था थाम लिया ।
     अब व्हील चेयर एक फूलों के मंडप के नीचे टिका दी गई और वृद्ध उसके चहुंओर घूम-घूम कर नृत्य कर रहा था और वृद्धा मुग्ध नयनों से उसे निहारते हुए नृत्य की मुद्रा में हाथ और गर्दन हिला रही थी कि सहसा संगीत खामोश हो गया•••थिरकते पाँव थम गये।क्यों•••? कोई कुछ समझ पाता, उससे पहले ही  वृद्ध सज्जन ने दोनों हाथ ऊपर उठा कर अंग्रेजी में कहा , " हेssss दोस्तों और बच्चों!  आज हमारी 50 वीं मैरिज एनिवर्सरी है। हमें विश करो।"फिर उसने अपने घुटनों पर बैठ कर पत्नी का हाथ थाम कर मुलायम स्वर में सिर्फ दो शब्द कहे," थैंक्स बेबी!"
  संगीत फिर बज उठा , दोगुने जोश के साथ, जिसमें सबकी मुबारकबाद की मिठास भी शामिल थी।अब वह खूबसूरत जोड़ा बीच में था और शेष प्यारे जोड़े उनके इर्दगिर्द नाच रहे थे और वह पल मेरी खुशी का अतिरेक ही तो था कि मैंने अपने पर्स से निकाल कर बड़ी सी कत्थई बिंदी वृद्धा के उजले माथे पर सजा दी और मेरे पति ने प्रेम के उस निर्मल पल को स्मार्ट फोन के कैमरे में कैद कर लिया। ****
  
4.रोशनी का सफर 
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भीगे नयनों से उस संदेश को दोबारा पढ़ा मैंने और मन के साथ-साथ अतीत की यात्रा पर निकल पड़ी•••दो बरस पहले, पति का तबादला लखनऊ हुआ तो घर व्यवस्थित कर किताबों की दुकान की तलाश में निकल पड़ी, जो मुझे जल्दी ही मिल गई अमीनाबाद में।कलात्मक सुंदर अक्षरो से लिखे " पुस्तक-मंदिर " में मैंने प्रफुल्लित मन से प्रवेश किया। 
    भूरे घुंघराले बालों वाली एक लड़की शैल्फ में किताबें जमाने में व्यस्त थी।उसने सफेद-गुलाबी फूलों वाला सलवार-सूट पहना हुआ था और उसका रेशमी दुपट्टा फर्श को बुहार -सा रहा था। मेरा मन खिल गया•••यकीनन वह बेहद खूबसूरत होगी। मैंने आहिस्ता से पुकारा " सुनिए।"
    उसने पलट कर देखा तो मेरा जी धक्क से रह गया, ' अरे यह तो•••क्या यह?•••'
 " हाँजी !कहिए कौन सी किताब चाहिए आपको?" 
   उसका खरखराता स्वर मेरे संदेह की पुष्टि कर गया पर उसके शालीन और मधुर व्यवहार ने मेरा दिल जीत लिया। आए दिन होने वाली मुलाकातों से मैंने जाना कि उसका जन्म उसके पिता की मृत्यु के बाद हुआ और वह अपनी माँ की पहली और इकलौती संतान है इसलिए समाज और परिवार का विरोध सह कर भी उन्होंने उसे किन्नरों के हवाले नहीं किया और घर पर ही उसे पढ़ाया-लिखाया और बड़े होने पर , उसकी रुचि को देखते हुए यह किताबों की दुकान उसके लिए खोल दी ।
" माँ हमेशा कहती हैं ' तुम्हारा नाम इसलिए रोशनी रखा है मैंने कि तुम सबको ज्ञान की रोशनी बांटो ' बस कोशिश जारी है।" एक दिन उसने कहा तो मैंने उसका हाथ थाम कर कहा " और तुम कामयाब हो गयी रोशनी !"
     " अभी कहाँ  सुमन जीजी! मुझे अपनी जात यानी किन्नर समाज को उसके हक दिलाने हैं।यौन विकलांगता के कारण हम क्यों और कैसे तिरस्कार के पात्र हो सकते हैं भला?" उसने अपनी योजना भी समझाई।फिर हम यहाँ दिल्ली चले आए पर संपर्क बराबर बना रहा और आज यह संदेश••• " मंजिल की ओर पहला कदम बढ़ा दिया है सुमन जीजी! 28 सदस्यों के साथ संस्थान की नींव रखने जा रही है आधकी यह बहन•••नाम है " रोशनी का सफर " और आपके बिना  स्थापना नहीं करूँगी।कहे देती हूँ।तारीख नोट कर लें।"
   तीसरी बार संदेश पढ़ कर मैं मीठा सा मुस्कुराई  और जवाब लिखने लगी," क्यों नहीं आऊँगी रोशनी! जरूर आऊँगी।" ****


5.बूढ़े पाखी 
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   स्मृति-पार्क के बड़े से ' वाॅकिंग-ट्रैक ' के चार चक्कर लगा कर शुचि कुछ पल सुस्ताने के लिए बैंच पर बैठी ही थी कि उसकी नज़रों को बांध लिया••• सामने से चले आ रहे एक सौम्य से वृद्ध दंपति ने।आकर्षक सा ट्रैक-सूट और स्निकर्स पहने रजत -सी धवल केश-राशि वाले उन  वृद्ध सज्जन के एक हाथ में ' वाॅकिंग-स्टिक ' थी और दूसरे हाथ से वह अपनी पत्नी को थामे थे। लाल पाड़ वाली सफेद साड़ी पहने , उज्ज्वल माथे पर कुमकुमी  बिंदिया लगाये और श्वेत-श्याम बालों के बीच की रेखा को चटक लाल सिंदूर से पूरित किये  वह वृद्धा इतनी खूबसूरत दिख रही थीं कि शुचि के मन में कामना जगी; ' हे ईश्वर! अगर मुझे बुढ़ापा दें तो ऐसे सौम्य सौंदर्य वाला देना, नहीं तो देना ही  मत।'
     वे मंथर गति से  चलते हुए उसके पास बिछी बैंच तक आ गये। वृद्ध ने जेब से रुमाल निकाल कर बैंच को  साफ किया और पत्नी को बैठा कर खुद भी साथ बैठे गये।शुचि की कनखियों के प्रहरी सतर्क हो कर देख रहे थे••• वृद्धा ने अपने ' कैरी-बैग ' से पानी की दो छोटी-छोटी बोतलें निकालीं और एक पति को थमा दी।  दोनों ने तृप्ति से पानी पिया और आस्था चैनल पर  प्रसारित किसी धारावाहिक पर चर्चा करने लगे। बातें घूमती-फिरती विदेश में बसे उनके बच्चों तक पहुँच चुकी थीं कि सहसा वृद्ध सज्जन को खांसी छिड़ गई। पत्नी ने तुरंत बैग से निकाल कर एक गोली उन्हें थमा दी, मीठी फटकार के साथ, " कितनी बार मना किया है कि चाट-पकौड़ी ना खाया करें पर आप भी न •••अपनी  उम्र का ख्याल करें साहब!"
     " अब उम्र का बहाना बना कर आप बच नहीं सकतीं साहेबा ! उठें और वाॅक पर चलें।पहले दिन ही नखरा नहीं चलेगा।"
     दोनों हंस दिये और उठ कर वहाँ से चले गये और शुचि मुग्ध भाव से मुस्कराते हुए सोच रही थी, ' जरूर ये वो बूढ़े पाखी हैं, जिनके चुरुगन पंखों में प्राण पड़ते ही कहीं सुदूर जा बसे हैं और ये दोनों प्यार और मजबूती से कस कर एक-दूसरे को थाम कर आनंदपूर्वक जी रहे हैं।' ****

6.वह देवता 
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  साहित्य-महा कुंभ के आख़िरी दिन का अंतिम सत्र था। " हिन्दी-साहित्य और महिला लेखन " विषय पर देश के भिन्न-भिन्न शहरों से आए चुनिंदा लेखकों के वक्तव्य का सत्र था वह। मंच-संचालक ने घोषणा की," इस सत्र की अध्यक्ष और मुख्य वक्ता हैं उदयपुर से पधारीं डॉक्टर प्रोफेसर कनुप्रिया जी।" 
'आहा! कितना सुंदर नाम है। वह देखने में भी बहुत सुन्दर होंगी ,' मन ने कहा और अगले ही पल हाथ जोड़े मुस्कान बिखेरतीं वह मंच पर खड़ी थीं•••पर यह क्या ? मेरी स्निग्ध कल्पना पर जैसे साइबेरिया की बर्फ गिर गई। सभागार में सुगबुगाहटें उछलने लगी•••' अरे यह तो छक्का है ' ,' ओफ गाॅड ! ट्राँस जेंडर ,' 'ये हीजड़ा क्या अध्यक्षता करेगा ' आदि-आदि।माहौल में वितृष्णा -सी घुल गई।सच कहूँ तो मेरा मन भी कसैला -सा हो गया पर जब उन्होंने हर वक्ता के वक्तव्य पर सटीक टिप्पणी दी और विषय पर धाराप्रवाह बोलीं•••वो भी बिन देखे तो सभागार में ऐसी मुग्ध खामोशी पसर गई कि साँस लेने का स्वर भी शोर का -सा आभास दे रहा था।वक्तव्य के समापन पर बजी जोरदार तालियाँ उनकी सफलता की गवाही दे रही थीं।
   तमाम पत्रकार सबको छोड़ कर उन्हें घेरे खड़े थे और अपनी तुच्छ मानसिकता को धिक्कारती मैं •••सुधा सहाय दूर खड़ी मुग्ध दृष्टि से उन्हें निहार रही थी कि एक पत्रकार का स्वर कर्ण-पटल से टकराया " आख़िरी सवाल , डॉक्टर साहिबा ! इस मुकाम तक पहुंचने की राह में अनेक चुनौतियाँ और मुश्किलें आई होंगी। अपनी सफलताओं का श्रेय आप किसे देती हैं?"
    " उसे •••उस देवता को, जिसे ईश्वर ने मुझसे बहुत पहले ही धरती पर भेज दिया था , मेरी परवरिश का दायित्व दे कर।" एक ठंडी लंबी साँस ले कर उसने कहा तो एक प्रश्न उभरा , " कौन है वह? आपके पिता ?"
    " नहीं जी!  वह देवता मौन तपस्वी सा खड़ा है•••उस गुलमोहर के नीचे•••देखिए तो।"
    अब हर नज़र उस और उठ गई थी। " अरे यह तो•••यह भी आप जैसा•••मेरा म••त••ल••ब•••" ये कटे-फटे स्वर मेरे कंठ से फूटे थे।
 " जी हाँ !मेरी बिरादरी के ही हैं यह •••बल्कि मैं इनकी बिरादरी की हूँ।मेरे जन्मदाताओं ने तो समाज में बदनामी के डर से निष्ठुर हो कर मुझे इनके हाथों सौंप दिया था पर इन्होंने मेरी प्रतिभा को पहचान कर, पूरे किन्नर समाज से बैर मोल ले कर मुझे पाल-पढ़ा कर इस मुकाम तक पहुँचाया। लाडली बिटिया हूँ मैं इनकी। वहाँ क्यों खड़े हैं बाबूजी ? यहाँ आइये न!"
   लेकिन वह वहीं खड़े मुस्कुराते रहे•••आशीर्वाद की मुद्रा में दोनों हाथ उठाए। ****


7.आधुनिका
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हर ओर शोर था कि अभय जी के  घर , अमीर घराने की खूब पढी-लिखी बहू आ रहीं है ।देख लेना , नाकों चने चबवाएगी घर भर को ।
   और आखिर वह घड़ी आ ही गई , जब नइ बहूरानी अपने दुल्हे के साथ ,  अभय जी के घर की देहरी पर खड़ी थी•••द्वाराचार के लिए  ।
  अभय जी की पत्नी ने स्नेहिल स्वर में कहा , " बेटी ! इस कलश को अपने पग की ठोकर से गिराकर , फिर इस सिंदूर मिले पानी में पाँव भिगोकर , फर्श पर अपने कदमों के निशान  छोड़ते हुए भीतर आओ , तभी  इस घर की मिट्टी अपनाएगी  तुम्हें।"
   परन्तु बहू ने इन्कार में गर्दन हिला दी और सर झुकाए खड़ी रही ।
  " तान्या ! मम्मी जो कह रही हैं वह करो , " दुल्हे ने उसका हाथ दबाकर नर्म स्वर में कहा लेकिन वह आगे नहीं बढ़ी । अब हवा में जुमले उछलने लगे , ' हमने तो पहले ही कहा था कि लड़की बहुत आधुनिक है , जो न करे थोड़ा ' , ' अभी से ये हाल है तो आगे तो भगवान ही मालिक ' आदि -आदि ।
  " बहू ! जो कहा जा रहा है वो करो , " सास श्री ने तनिक तल्ख स्वर में कहा पर अंगद के पाँव की तरह अडोल और अडिग खड़ी रही वह ।
  " तान्या••• " दुल्हे मियाँ का स्वर भी कठोर हो आया तो उसने खामोशी तोड़ी , " मम्मी जी ! इस कलश पर श्री गणेश जी की आकृति बनी है , जो हमारे आदिदेव हैं और इसमें धन सा धान भरा है , जो अन्न देवता हैं । इन्हें कैसे ठोकर मारूँ मैं ? और इस पानी में वह सिंदूर मिला है , जो मेरी मांग में सजा है । इसमें कैसे पाँव डालूँ ? आप ही बताएँ मम्मी जी । "
   अब स्तब्ध हवाओं में सकारात्मक सरगोशी थी , " लड़की आधुनिक तो है लेकिन विचारों से •••" ****



8.वीरांगना
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   " देवी ! आप करेंगी अपने पति के फूल विसर्जित ?  पुत्र - पौत्र नहीं हैं आपके ? " अपने सामने बैठी सुजाता से पंडे जी ने पूछा तो वह एक लंबी ठंडीसाँस लेकर भीगे कंठ से बोली , " सब हैं महाराज ! पर परदेस में बसे हैं ।आ ना सके ।"
  " दिवंगत के भाई - भतीजे ? कोई तो होगा ? "
  " दो बड़े भाई थे , जो ' उनसे ' पहले ही चले गए । भतीजे हैं पर... जाने दें न महाराज ! आप विधि कराइये , " सुजाता ने बात टाली ।
  " श्मशान की क्रियाएँ किसने कीं ? " पंडे महोदय सब कुछ जान लेना चाहते थे जैसे ।
  " मैंने ही कीं महाराज ! "
  " घोर कलयुग ! पहले कभी ना ऐसा देखा और ना सुना  "
  " क्या फर्क पड़ता है महाराज ? अगर पति अपनी पत्नी की अंतिम क्रियाएँ कर सकता है तो पत्नी क्यों नहीं ? " सुजाता ने अपना तर्क रखा  ।
  ' फूल-विसर्जन ' के बाद उसके आँसू छलक आये , " ओ मेरे तीन सपूतों के पापा ! आपकी मिट्टी तो मैंने ठिकाने लगा दी पर मेरी मिट्टी कौन समेटेगा जी ? "
  अपने पिता के अस्थि - फूल ले कर आया , इंतज़ार की कतार में सबसे आगे बैठा ' वह ' नौजवान उठकर आया और उसके कंधे पर हाथ धरकर बोला , " माँ जी ! यूँ तो ज़िन्दगी का पल भर भी भरोसा नहीं पर इस घड़ी आप ऐसी बात ना सोचें - कहें । माँ जी ! वीर सिर्फ वही नहीं कहलाता , जो रण में लड़कर मरता है , समाज की घिसी-पिटी परंपराओं के खिलाफ लड़ने वाला भी वीर है और आपने ऐसी ही जंग लड़ने की हिम्मत जुटाई है ।आप जैसी वीरांगना को प्रणाम है मेरा । "
  और उसने झुककर सुजाता के चरण छू लिए ।****
  

9.भागभरी
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   सुहाग-पर्व की पूर्व संध्या...छोटी-बड़ी उम्र की हम सब सखियाँ  , सुधा जीजी के घर के बड़े  से आँगन में बैठीं इंतज़ार कर रही थीं उसका , जो हर बरस इस दिन , रेहड़ी भरकर करवे , लाल-हरी-सुनहरी -रुपहरी काँच की चूड़ियाँ , मेहंदी , चटक लाल सिंदूर की डिब्बियाँ और सुहाग का अन्य सामान लेकर आती और घंटे भर में ही बेचकर ,  प्रसन्न वदन-मन से हम सबको असीसते हुए खाली रेहड़ी लेकर चली जाती ।वाह ! ठसक भी क्या खूब थी उसकी...चटकीले-चमकीले घाघरा-चोली पर छींटदार गोटे वाली ओढनी ओढ़े , भर-भर हाथ रंगबिरंगी चूड़ियाँ खनकाते , साँवले चौड़े माथे पर चवन्नी के आकार की बेंदी सजाए , लबालब मांग भरे  , पान से रंगे होठों पर मीठी मुस्कान धरे ... पायल छनकाती आती  वह  और उसे देखकर हम सब हरसिंगार सी खिल उठतीं। नाम भी तो कितना रसीला कि जुबां पर आते ही जैसे मिश्री  -सी घुल जाए ।  पर वह अभी तक आई क्यों नहीं ? हर होंठ पर यही सवाल था , जिसका जवाब मिला , गली में खेलते बच्चों के शोर से..." भागभरी आ गई...भागभरी आ गई ।" और अगले ही पल वह हमारे सामने थी...पर यह क्या ? मेरे पैरों के नीचे से तो जैसे जमीन ही खिसक गई।कांप रही थी मैं। मटमैली - सी काले पाड़ वाली साड़ी पहने, बिन टिकुली का  माथा और सूनी मांग लिए  , रीती कलाइयों वाली उजड़ी सी भागभरी सामने खड़ी थी । हाय ! कहां गई हमारी चमक-चांदनी  -सी भागभरी ? मैंने तड़पकर पूछा " यह कब और कैसे हुआ भागभरी ? "  
   फीका सा मुस्कुराई वह और पनियाए स्वर में बोली " शगुन की बेला में कुछ ना पूछो बाई सा ! आओ छोरियों चूड़ियाँ पहनो ।"
   परन्तु मेरे अलावा किसीने भी उससे कुछ न खरीदा और वह ' तुम सबका सुहाग - भाग बना रहे ' का आशीर्वाद सौंपकर भरी रेहड़ी और खाली मन लिए चली गई ।
उसके जाते ही सुधा जीजी मुझ पर बरस पड़ीं , " तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया जया ? चूड़ियाँ पहन लीं उसके हाथों से ?  अरे ! वह अपशकुनी ...
   " बस जीजी ! आगे एक शब्द भी ना कहना । पढ़े - लिखे होते हुए भी कितनी संकीर्ण सोच है आप सबकी ।ईश्वर से डरिए । खैर ! आप लोगों से बहस करना बेकार है , " उनकी बात पर कैंची चलाई मैंने  और दग्ध मन लिए  वहाँ से चली आई ।
  शाम को करवाचौथ की रौनक देखने और फल - फूल - मिठाई वगैरह खरीदने , पतिदेव के साथ पुरानी बड़ी बजरिया गई तो एक जगह स्त्रियों का जमावाड़ा देखकर , उत्सुकतावश वहाँ पहुँच गई और भीड़ चीरकर अगे बढ़ी तो...तो...एक सुखद आश्चर्य मेरे सामने था। जमीन पर बिछी एक चादर पर करवे और सिंगार की सामग्री सजी हुई थी और ... लाल पाड़ की पीली साड़ी पहने , माथे पर चवन्नी के आकार की लाल बेंदी टांके , पान चुभलाते हुए , हँस - हँस कर एक लड़की को चूड़ियाँ पहना रहीं थी भागभरी ।  ****

10.वासंती  सुबह 


   सुबह -सवेरे वह अपनी नन्हीं बगिया को सींच रही थी और सोच रही थी कि यह कैसी बसंत-पंचमी है कि उसे सारे फूल बेरंग नज़र आ  रहे हैं , तितलियाँ भी न जाने कहाँ जाकर छुप गई हैं और हवा भी जैसे ठंडक नहीं , घुटन बाँट रही है।कुछ भी तो अच्छा नहीं लग रहा था उसे 
   " अरे ! अरे ! ये क्या कर रहीं हो सुमन...तुम पौधे सींच रही हो या फर्श ? " पति अरुण ने पुकारा तो वह चौंकी। अरुण ने पास आ कर उसके कँधे पर हाथ धरते हुए स्निग्ध स्वर में कहा , " सुमन ! कल रात तुम बेला की पार्टी में गई तो खिले-खिले मन से थी लेकिन लौटी एकदम मुर्झाई हुई ...वो भी तुरंत ।क्यों ? क्या हुआ था वहाँ ? बता दो , जी हल्का हो जाएगा ।"
   " अपमान हुआ था वहाँ मेरा , मेरी इस बगिया के सुंदर फूलों के गुलदस्ते का , मेरे ' हैंड मेड ' हिन्दी में कविताएँ लिखे कार्ड का और मेरी किताबों का जो मैं बड़े चाव से बेला के पति रजत के लिए ले गई थी और अफसोस की बात तो यह है कि बेला सुन कर भी अनसुनी कर गई 
एक शब्द नहीं बोली मेरे पक्ष में, " कहते कहते उसके नैन - कटोरे छलछला आए ।
   " मैं तो पहले ही कहता रहा तुम्हें कि दोस्ती बराबर वालों में ही ठीक से निभती है।खैर ! जाने दो । तुम जा कर सरस्वती -पूजा की तैयारी करो ।फूलों को पानी मैं दिए देता हूँ , " उसके हाथ से पाइप थामते हुए सहृदय अरुण ने कहा तो वह भीतर चली गई ।
   वह माँ सरस्वती की प्रतिमा को दुग्ध - स्नान करा रही थी कि अरुण ने हुलसते स्वर में पुकारा , " अरे सुमन ! आओ देखो तो जरा कौन आया है ?"
   ' कौन आ गया इत्ती सुबह ?' तल्खी से बुदबुदाते हुए वह बाहर निकली तो...यह क्या ? वह जड़वत सी हो देखती ही रही कुछ पल ...किसी सुखद आश्चर्य की तरह सामने खड़े बेला और रजत को । बेला माधवी लता सी आ कर उससे लिपट गई और रूठे से अंदाज़ में बोली , " तू रात बिन खाना खाए और बिन बताए काहे चली गई ? कितना जी दुखा मेरा  ... जानती है , रजत को तेरे गिफ्ट इतने ज्यादा पसंद आये कि ...
 " ... कि थैंकयू बोलने सुबह- सुबह -ही चला आया मैं और फिर ' रिटर्न गिफ्ट ' भी तो देना था न आपको ! " अपने हाथ में थामे गिफ्ट का आवरण हटाते हुए रजत ने कहा तो वह मंत्रमुग्ध हो कर देखती ही रह गई  ...रुपहली थाली में धवल फूलों के मध्य सजी धरी माँ शारदा की शुभ्र संगमरमर की दिव्य मूर्ति को। उसे लगा कि जैसे  अचानक उसकी बगीची के सारे फूलों के रंग लौट आये हैं , छुपी हुईं रंगारंग तितलियाँ उनका रंग चुराने चली आई हैं और हवा भी मिश्री सी मीठी हो उठी है ।उसे लगा कि वासंती पवन का एक मनोहारी झोंका उसके कानों में गुनगुना रहा है " आज से पहले भला तुमने देखी है कभी ऐसी सुहानी वासंती सुबह ? " ****

11.बर्फ होती सम्वेदना
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  मकर-संक्रांति की वह ठिठुरती सुबह जैसे बर्फानी पानी में नहाकर आई थी ।शीत लहरों के तमाचे खाते हुए वह मंदिर जा रही थी कि दूर से आते किसी शिशु - रोदन स्वर ने उसके बढ़ते कदमों को रोक दिया , फिर उस स्वर - दिशा की ओर मोड़ दिया।
   अब वह एक निर्माणाधीन भवन के कच्चे प्राँगण में खड़ी थी और उसका जी धक्क सा रह गया देख कर कि सरकँडों से बनी एक टूटी -सी टोकरी में बेअसर से फटे कंबल में लिपटा एक दुधमुँहा बच्चा अपनी पूरी ताकत खर्च करके रो रहा था।
  " किसका बच्चा है ये और इस तरह रो क्यों रहा है ? " तड़प कर चीखी थी वह ।
   " हमार बालक है जी अऊर भूक ते रो रिया है जी , " निकट ही रोड़ी कूटती एक फटेहाल  मजदूरनी ने  जवाब दिया तो वह भड़क उठी , " भूखा है तो दूध पिलाओ न इसे ।कैसी माँ हो ? "
   " कहां ते पिलावें जी दूद  ? सुबा ते नाज का इक दाना तलक  तो हमरे हलक ते उतरा ना है जी , " अपनी ओढनी से हाथ पौंछते हुए उसने कहा और  उठकर पास आ गई । " ओह ! "  उसका मन भर आया । पूजा की थाली में धरे फल - मिष्ठान और दूध का पैकेट उसके हवाले करते हुए भीगे स्वर में बोली , " आराम से बैठकर खाओ , फिर बच्चे को दूध पिलाओ । मैं इसके लिए कुछ सामान लेकर अभी आती हूँ । "
    उसकी बहुत -सी दुआएँ लेकर वह घर आ गई ।अपने नन्हे आर्यन के कुछ छोटे गर्म कपड़े और कंबल एक झोले में भरे उसने और खिलौनों से भरे पालने को खाली कर , उसमें झोला धर बाहर निकलने लगी तो आर्यन की  दादी ने टोका , " मुन्ने का पालना मत दो नेहा ! कपड़े -कंबल ठीक हैं बस ।"
   "  आरू अब कहाँ पालने में सोता है ? उस गरीब बच्चे को इसकी ज्यादा जरूरत है माँ ।"
   " उन्हें इसकी कद्र न होगी बेटा ! मेरी बात मानो ।"
   लेकिन नेहा ने उनकी बात नहीं मानी और  सब उसे सौंपकर •••मकर - संक्रांति के दान का पुण्य तथा खूब सारा संतोष बटोरकर लौट आई ।
      लगभग दो घंटे बाद माँ ने आँगन से गुहार लगाई , " नेहाssss ! जरा बाहर तो आना बिटिया •••जल्दी । "
    वह दौड़ी - दौड़ी  -सी आँगन में आई और ••• यह क्या •••? खुले गेट से उसे गली में जो दृश्य नज़र आया , देख कर सन्न रह गई वह••• एक कबाड़ी के ठेले पर उसके दुलारे आरू का वह सुंदर पालना पड़ा  आँसू बहा रहा था । *****
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क्रमांक - 06

जन्म- 24 मार्च 1955
जन्म स्थान -भदौड़, जिला संगरूर (अब बरनाला)पंजाब
शिक्षा- मैट्रिक
कार्य क्षेत्र- सिरसा हरियाणा

सम्मान-
एक पुस्तक सम्मान हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी।
तीन कहानियों को ईनाम ,हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी।
एक लाख रुपए का संत तरन सिंह वहमी पुरस्कार घोषित,
हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी।
बहुत सी साहित्य सभाओं की ओर से सम्मानित ,
पंजाबी साहित्य सभा लुधियाना,कलाकार लेखक मंडल,(कलम) करनाल। पंजाबी साहित्य सभा सिरसा। , प्रगतिशील लेखक संघ। पंजाबी सत्कार सभा सिरसा।, लोक साहित्य सभा रानिया , वरच्यूज क्लब डबवाली, मित्र मंडली नर सिंह कॉलोनी डबवाली , नामधारी पंजाबी साहित्य सभा श्री जीवननगर,  समग्र सेवा संस्थान सिरसा, अंतरराष्ट्रीय पंजाबी साहित्य सभा श्री मुक्तसर साहिब, साहित्य सभा कालांवाली, आदि।

प्रकाशित पुस्तकें पंजाबी में -

1. दुनियां जीहदा पीठा खांदी,( गजल संग्रह )2007 , उडान पब्लिकेशन मानसा -
पृष्ठ संख्या 96
2. सुगंध लोचदी समीर (काव्य संग्रह )2009, "हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी दुआरा पुरस्कार " उडान पब्लिकेशन मानसा- पृष्ठ संखया- 112
3. दुर्गा, (कहानी संग्रह) 2009 उडान पब्लिकेशन मानसा- पृष्ठ संख्या  104
4. रुतां दा सिरनावां, काव्य संग्रह 2010 उडान पब्लिकेशन मानसा,पृष्ठ संख्या 111
5. कैसी कूंज उडारी, (महां काव्य )2010 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 154
6. सुहाने सफर (सफरनामा )2011 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 136
7. मरूए दी खुश्बू  (गीत संग्रह )2012 तस्वीर प्रकाशन सिरसा ,पृष्ठ संख्या 104
8. बिजड़े दा आहलणा  (कहानी संग्रह 2012 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 112
9. दरिया बनाम समुंदर  (काव्य संग्रह )छंद मुक्त कविता  2013 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 96
10. टप्पियां दे टापू  (टप्पा संग्रह )2014 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 104
11. साचा साहब  (प्रबंध काव्य )2014 विश्व नामधारी संगत श्री भैणी साहब । ,पृष्ठ संख्या 252
12. पीर बतंगड़  (हास्य व्यंग्य नाटिकाएं )2015 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 104
13. कैदो  (महा काव्य )2016 उडान पब्लिकेशन मानसा ,पृष्ठ संख्या 136
14. मुक्ति दाता  (महां काव्य , श्री सतगुरु राम सिंह जी पर ),2017 विश्व नामधारी संगत श्री भैणी साहब ।- ,पृष्ठ संख्या 504
15. निक्की गल्ल वडा अर्थ  (मिन्नी कहानी उडान पब्लिकेशन संग्रह )2018  मानसा ,पृष्ठ संख्या -112

प्रकाशित पुस्तकें हिन्दी में

16. दोहों के दीप  (दोहा संग्रह  )2018 तस्वीर प्रकाशन कालां वाली सिरसा ।

पता -
गांव -जगजीत नगर  (हरिपुरा )
सिरसा - 125075 हरियाणा

 


 1.लक्ष्मी 

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दीवाली की रात को बारह बजे जब सभी पटाखे चला कर अंदर सोने के लिए जाने लगे तो दस वर्ष का रोमी दरवाजा बंद करने लगा ।ये देख कर उसके पिता ने कहा, " अरे रोमी बेटे दरवाजा मत बंद करो।खुला रहने दो ।दिवाली की रात दरवाजा बंद नही रखते ।"

     "  क्यों डैडी ",रोमी ने उत्सुकता वश पूछा ।

बेटा दिवाली की रात घर में लक्ष्मी प्रवेश करती है ।

पर डैडी , मेरे सहपाठी रमेश के घर तो कई वर्षो से दरवाजा ही नही है , वे लक्ष्मी पूजन भी हर वर्ष करते हैं फिर उन के घर अभी तक लक्ष्मी क्यों नही आई ?

          उस के पिता के पास इसका कोई जवाब नही था । ***


                            

2.जरूरत

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        सरकार के खिलाफ किसानो का अंदोलन डेढ़ महीने से चल रहा था। धरना स्थल पर किसानो की तरफ से व समाजसेवी जथेबंदियों की ओर से लंगर चल रहे थे। वहा नजदीक रहने वाले झुग्गी झौपड़ी वाले बच्चे आते। वहां से पानी की खाली बोतलें वगैरा इकट्ठी करते। किसान उन को भी लंगर खिला देते । वे बहुत खुश थे।  इतना स्वादिष्ट खाना उन्होने कभी नही खाया था। जो भी वहां बनता उनको भी मिल जाता।

        एक दिन वे  सभी बच्चे लंगर से खाना खा कर, वहां सड़क के बीच डिवाइडर की दीवार पर जा बैठे।एक बालक बोला, "देखो ये कितने अच्छे लोग हैं। हमें मुफ्त में खाना खिला देते हैं। "

        दूसरा बोला, "हां बहुत अच्छे लोग हैं।मां बता रही थी , इन का सरकार के साथ कोई झगड़ा चल रहा है। ये अपनी मांगे मनवाने के लिए यहां आए हैं। मांगें मनवा कर चले जाएंगे। "

     "ये चले जाएंगे ?" दूसरा बोला। 

      " हां मां कह रही थी। " वे बोला। 

      "जब ये चले गए तो हमे खाना नही मिलेगा ,काश ये कभी नही जाएं।"एक बोला। 

"मां कह रही थी सरकार मान गई तो ये चले जाएंगे। " पहले वाला बोला। 

तो दूसरा बोला," काश सरकार कभी न माने और हमें खाना मिलता रहे।"

       एक किसान जो ये सब सुन रहा था, वे सोच रहा था,  कि ये बच्चे कितने भोले, कितने गरीब हैं। हमारी तरफ होते हुए भी हमारे खिलाफ दुआ कर रहे हैं ।अपनी अपनी जरूरत का सवाल है न।-----फिर वे मुस्कराता हुआ वहां से चल दिया। *****

             

 3.रावण युग 

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           नैट पर कुछ लोग खूब प्रचार कर रहे थे ।रावण नेक था ।राम में सब ऐब थे ।रावण मत जलाओ ।राम के आगमन पर खुशियां मत मनाओ ।पटाखे मत फोड़ो ।इश्क जायज है ।वासना कुदरत की देन है  ।इस को मत रोको ।व्यभिचार को प्यार कहो ।सैक्स दुकाने खोल दो ।नशे के लिए पोस्त की खेती पर से बंधन हटा लो आदि।

             भांति भांति की दलीलें, भांति भांति के तर्क वितर्क चल रहे थे ।ये वे लोग थे, जिन में कुछ को मैं निजी तौर पर जानता था ।वे रिशवतखोर थे ।नशा बेचते थे ।व्यभिचारी थे भोली जनता को लूटते थे । मैं अक्सर सुना करता था कि कभी पाप का पलड़ा भारी हो जाता है, कभी पुण्य का ।

                अब मैं उस दिन से यही सोच रहा हूं कि क्या सचमुच रावण युग आने वाला है । ****


 4. मन का बोझ 

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बेटी ने स्कूल से आते ही दर्शना से कहा, "मंमी मैं उस स्कूल में नही पढूंगी ।"

" क्यों क्या हुआ? "दर्शना ने बेटी की तरफ सवालिया नजर से देखते हुए पूछा ।

"वहां पापा माली है न ।"

"अरे फिर क्या हुआ ? तुझे तो फायदा है ।तुम्हारी आधी फीस भी तो माफ है ," मां ने कहा ।

"मम्मी मुझे सब माली की बेटी कहकर चिढ़ाते हैं।"

"बेटा हम गरीब हैं तो क्या हुआ , हम किसी से मांग कर थोड़ा खाते हैं ? "

" पर वे मेरा मजाक उड़ाती हैं । "

"अच्छा ये बता जो लड़कियां तुम्हें मजाक करती हैं उन के बाप क्या करते हैं ? "

" एक का बाप नेता है , वे चिढ़ाने लगी तो सभी उस के पीछे ----।"

"ठीक है, अब वे तुझे कहे तो तुम कहना कि हम मेहनत का खाते हैं ।तेरे बाप की तरह लूट कर नही।"

"ठीक है मम्मी, " कह कर वे खुशी से बाहर को भाग गई ।अपनी सखियों को बताने के लिए कि उस लडकी का बाप हमारे से कितना छोटा है ।वे अभी मन का बोझ हलका चाहती थी । ****


  5.पैसे के बल पर 

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आज सात साल बाद चौधरी राम लाल का लड़का सतीश अपने गांव के स्कूल में आया तो सभी अध्यापक उस को कौतुहल से देखने लगे ।

          सात साल पहिले यही लड़का अवारा व बदमाश होने के कारण स्कूल से निकाल दिया गया था ।सबसे शरारती , पढ़ाई में महा नालायक , किसी भी अध्यापक की बिल्कुल परवाह न करता।अध्यापक उस को मारने के लिए डंडा उठाते तो वे आगे से डंडा पकड़कर हंस देता ।

        उसके बाप को कई बार उलाहना आ चुका था ।परंतु वे भी उसी का पक्ष लेता ।मैट्रिक तक तो अध्यापक उसको पास करके पिंड छुड़ाते रहे पर अब वे जवान भी हो गया था इसलिए उसकी शरारतें भी बड़ गई थी ।इस लिए उसको स्कूल से निकाल दिया गया था।

      परंतु आज वही सतीश स्कूल के दफ्तर में खड़ा मुस्करा रहा था ।उस ने अपना नियुक्ति पत्र मुख्याध्यापक के सामने रखा तो सभी हैरानी से उसे देखने लगे । वह वही हेडमास्टर था जिसने उसे निकाला था।

      उस ने डिग्रियां व नौकरी पैसे के बल खरीद ली थी  ।अब उसको कोई स्कूल से नही निकाल सकता था । ****

                    

6. गुलामी 

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       रीना शादी के बाद पहली बार मायके आई थी ।मां ने हाल चाल पूछा तो उसके ससुराल की बात चल पड़ी ।ससुराल की बात चली तो सास की कैसे न चलती ।सास का नाम सुनते ही उसकी मां ने उपदेश शुरू कर दिया ।

          "सास को खूब दबा कर रखना , नही तो वे तेरा जीना हराम कर देगी ।अगर एक बार तू उस से दब गई तो उम्र भर गुलामी भोगने को तैयार रहना ।"

    " पर मां भाभी कहां है ?"रीना ने इधर उधर देखते हुए पूछा ।

"अरे क्या बताऊं वे मेरे से लड़ कर कल मायके चली गई है , " मां बोली ।

       "मैने भी कह दिया जाती हो तो जाओ मैं तो तेरी गुलामी करने से रही ।"

ये सुनकर रीना सहज से बोली, "पर मां तू बहू की गुलामी करना नही चाहती, तो मेरी सास क्यों करेगी ।तू अपना घर बर्बाद करके मेरा घर भी बर्बाद करने की राय दे रही है ।मैं भी लड़ाई करके यहां आ जाऊं ?क्या ये ठीक रहेगा ?"

      मां के पास इसका कोई जवाब नही था । ****                            

7.अगली दुनिया 

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       देव नहर की पटरी पर जा रहा था तो उसकी नजर नहर में गिरते गंदे पानी पर पड़ी ।उसे याद आया कि जब वे स्कूल में पढ़ता था तो इसी नहर से पानी पीया करता था ।आज तो शायद कुत्ते भी इस पानी को पीना पसंद न करें ।    

             उसको याद आया कि एक बार जब वे दस बरस का था तो इसी नहर की पटरी पर अपने पिता के साथ जाते वक्त उसने नहर की तरफ पेशाब कर दिया था ।यह देखकर उसके पिता ने कहा था कि, "बेटा नहर में पेशाब नही करते ।"

" क्यों " उस ने अज्ञानता वश पूछा था ।

 " पानी गंदा हो जाता है , सभी लोग व पशु पक्षी पीते हैं ।जल पवित्र होता है लोग इसे देवता मानते हैं ।शास्त्रों में भी लिखा है जो पानी की तरफ या पानी में पेशाब करता है वे अगले जन्म में कुत्ता बनता है , "उसके पिता ने कहा ।

पानी खराब होता है इसीलिए नही पर अगले जन्म में  कुत्ता न बन जाऊं इस लिए उसने फिर कभी पानी की तरफ पेशाब नही किया था। जब बड़ा हुआ तो ये बात वहम लगने लगी थी ।

           परंतु आज वे सोच रहा था कई बार अंधविश्वास भी कितना कारगर नुस्खा होते हैं ।

फिर वे सोचने लगा अगर शास्त्रों की बात सच्च हो जाए तो - - - -अगली दुनिया - - -या आने वाली दुनिया तो इस हिसाब से कुत्तों की ही होगी ।और वे दुखी मन से भी मुस्करा दिया क्योकि इस बात में उसे सचाई की झलक पड़ रही थी । ****

                   

8.बासमती की महक 

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        कर्म सिह गांव में पला बडा था ।उसका बाप खेती करता था ।वे दस वर्ष की आयु में बहुत बार खेत में अपने पिता की रोटी लेकर जाता था।उसका पिता धान के खेतों मे मजदूरों के साथ घास निकाल रहा होता ।वे अक्सर रोटी पकड़ा कर धान के खेतों में मेडों पर घूमता रहता ।

            उन के खेतों में उन दिनो बासमती बोई जाती थी ।असली बासमती जिस के खेतों में मनमोहक खुश्बू बसी हुई होती ।खेत में घूमते हुए बासमती की भिन्नी भिन्नी सुगंध उस को मंत्रमुग्ध सा कर देती ।इस लिए वे बेसबरी से रविवार का इंतजार करता ।या कभी-कभार स्कूल से आता ही खेतों की तरफ निकल जाता ।वहां बासमती की महक जैसे उस को बुला रही होती ।

        परंतु फिर वे ऊंची पढ़ाई कर शहर में ऊंचे पद पर आसीन हो गया और फिर वहीं बस गया।गांव से नाता टूट सा गया ।पर गांव की यादों के साथ उसको बसमती के खेतों के सपने अभी भी आते थे।  ।साल में दो बार वे अपनी जमीन का ठेका लेने जरूर जाता।पर वे देखता रिश्तों में पहले जैसा स्निग्ध भी न था।उसका सारा समय भी हिसाब किताब लेन देन के चक्कर में फंस कर तनाव से भरा होता। वही मित्र रिश्ते नाते वही थे परंतु पहले जैसा स्नेह गायब था ।उस समय फसल भी कट चुकी होती ।खेतों से हरियाली भी गायब होती ।ये देख कर उस के मन में बासमती के खेतों में घूमने की चाहत और भी तीव्र हो जाती ।

     एक दिन उसके गांव से उसका चचेरा भाई मिलने आया बातों बातों मे बासमती की बात चली तो भाई ने बताया कि हम खाने लायक देशी बासमती अब भी बोते हैं थोड़ी सी ।धान का मौसम था ।बरसात हो कर हटी थी ।उसका मन  बासमती के खेतों की सुगंध लेने को मचल उठा ।

 दो छुट्टियां थी इस लिए वे भाई के साथ ही गांव आ गया।

     शाम को वे भाई के साथ खेतों की तरफ़ चल दिया ।दोनो बासमती के खेत पर जा पहुंचे ।खेत खूब लहलहा रहा था।

      लेकिन उस को वे सुगंध नही मिली ।उसने बार बार सांस अंदर खींची पर निराशा ही हाथ लगी ।बल्कि एक भयानक सी बदबू उस के नाक में घुस गई ।

      उसके पूछने पर भाई ने बताया कि बासमती पर कीटों का प्रकोप बहुत होता है।इसीलिए चार दिन बाद ही कीटनाशक का छिड़काव करना पड़ता है ।ये बास उसी की आ रही है ।

          उस ने निराश मन से पूछा, "क्या अब भी इसके चावलों से खुशबू आती है" ।तो भाई ने कहा ,"नही वे पहले जैसी बात कहां ।बस दूसरी से कुछ ठीक होती है इसलिए बो लेते हैं ।"

         उसने धीरे से कहा," इतनी कीटनाशक डाल कर अब खुश्बू की उमीद भी कहां रखी जा सकती है । शायद रिश्ते भी इसी लिए फसलों जैसे हो गए हैं आज कल, बिना महक के।"और वे भारी मन से वापस लौट पडा। ****


 9.आज का सुदामा 

     ************

         एक नेक उच्च अफसर के पास एक चापलूस शख्स चावल भेंट ले गया ।अफसर उसे जानता था।

अफसर ने मुस्करा कर कहा ," ये क्या ? 

तो वे बोला, "आप हमारे कृष्ण हो इस लिए  "।

      तो अफसर ने सहज भाव से कहा," ना मैं कृष्ण हूं न तुम सुदामा हो " ।

  " क्यों ?" वे बोला 

क्योंकि आप मतलब के लिए रोज रोज कृष्ण बदल लेते हो ।

     चापलूस शर्म प्रूफ था बोला, "ही ही ही ही ही---- " ।अफसर ने कहा," भेंट उठाओ और चलते बनो ।"

चापलूस के पांव के नीचे जमीन खिसक गई । ****


10. सोच 

       ****

एक औरत कंडक्टर के साथ किराए को लेकर झगड़ा कर रही थी ।कंडक्टर कह रहा था किराया बड़ गया है परंतु वे मान ही नही रही थी ।बहुत मुश्किल से उसको समझाया ।टिकट देकर कंडक्टर ने उसे पहली सीट पर बैठने को कहा ।

        वे वहां बैठने लगी तो उसकी नजर गाए के आकार की गुलक पर पड़ी ।औरत ने जल्दी से दस रूपये निकले व गुलक में डाल दिए ।जिस औरत ने तीन रूपये के लिए घंटा भर झगड़ा किया था उसने ड्राईवर के पास गाय की तस्वीर वाली गुलक में दस रुपए चुपचाप डाल कर माथा टेक दिया था। । ***


 11.प्रबंध 

    *****


     दो दिन से उस को मजदूरी नही मिली थी ।घर में आटा नही था ।वे भूखा ही मजदूरी की आशा से घर से निकल पड़ा ।

      गेंहू के गोदाम में मज़दूरों की जरूरत है रास्ते में उसको एक दोस्त ने बताया ।वे वहां गया तो  एक कर्मचारी उसको गेंहू के सड़े हुए ढेर के पास ले गया ।वहां और मजदूर भी काम कर रहे थे ।

  सैकड़ों मन सड़ा हुआ अनाज देख कर वे धीरे से फुसफुसाया, "वाह रे किस्मत ,तू यहां पड़ा पड़ा सड़ गया और हम भूख से मरते रहे ।

तू सड़ना ही था तो किसी की भूख मिटा कर सड़ता ।कितने लोगों की भूख मिटा सकता था तू हाए रे प्रबंध ।

      क्या कहा, "कर्मचारी ने पूछा ।"

तो वे कुछ नही कह कर सड़े हुए अनाज को वहां से हटा रहे मजदूरों में जा मिला  । ****

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क्रमांक - 07

नाम : मनोज कर्ण

मुन्ना जी उपनाम से मैथिली  मे लेखन.

जन्म-27 जनवरी1971 ( पुर्णिया, बिहार) 

शिक्षा- स्नातक, मैथिली प्रतिष्ठा

विधा : -

हिन्दी लघुकथा की समकक्ष विधा

मैथिली बीहनि कथा विधा के सूत्रधार

प्रकाशित : -

मैथिली मे तीन बीहनि कथा संग्रह एवं एक गजल संग्रह! 

1993 से लघुकथा/ बीहनि कथा मे समान रूप से लेखन

सम्प्रति- भारतीय जीवन बीमा निगम, दिल्ली मे बतौर अभिकर्ता कार्यरत

पता : -

289/7 सुर्याविहार - ३

सेक्टर 91 फरीदाबाद - हरियाणा


1.जमीर

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चलो, अब कम से कम जनसंख्या नियंत्रण तो हो पायेगा.हा....हा...हा !

एक भाई जान ,दो- तीन वीवीयाँ, बच्चों की लाइने ....!

अब पाल पोसकर ही तो दम लेंगे.ऐसा तो नही कि चार - छह बच्चे, आठ- दस साल ऐश करने के बाद  वीवी हो गई डिस्पोजेवल वस्तु.बस ! एक ही शब्द तो दुहराने है तीन बार, तालाक !

--अरे ! बदरी भइया, इतनी खुशी काहे का ?

न्ययालय ने अपना निर्णय कर गेंद सरकार के गोद मे डाल दिया है. और सरकार है कि हर चुनाव पर ये गेंद उछालती रहेंगी. कभी क्रिकेट तो कभी फुटबॉलके तर्ज पर !

--ओफ्फ! ओ......

--अरे ! परविन्दर ,इस हालात मे अकेली ? रूक जा, तेरा पति कहाँ है ?

-- पति, ओ तो बस रस्म अदायगी के बहाने मनको तृप्त कर विदेश को लौट गया, पैसे बढाने के लिये. लौट कर एक और नया शिकार ढूंढेगा.

-- नही, नही तुझे न्याय मिलेगा, चिन्ता मत कर !

-- देख, न्यायालय ने तालाक पर भी सख्त गश्ती लगा दी.

-- अरे पाजी,बलात् पर तो पहले से कठोर कानून है देश मे, फिर भी वह बेखौफ विदेश की सैर कर रहा.और आप न्यायालय की बात कर रहे ! वहाँ भी तो नही मिला गर्भपात का आदेश ! एम्बुलेन्स...   पाजी !

-- कानून बनाने/ बदलने का काम न्यायपालिका कर लेगी .लेकिन इंसानो की जमीर ! कौन बदलेगा ? कहते अवैध प्रसव पीडा़ मे एम्बुलेन्स मे जा लेट गई ! ****

   


2.चयन

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बारिश के कारण  पक्की सड़क टूट चुकी थी.सड़क पर बने गड्ढे मे पानी भरा देख मै बगल वाली गली से गुजरने लगा.गली मे घुसते ही नजर पडी़- " नारी शक्ति स्टोर्स ". और वो दुकान एक बुजुर्ग चला रहे थे.मन ही मन हँस पड़ा, आज भी नारी की शक्ति पुरूष ने स्टोर कर रखा है.

दुसरे दिन फिर उस गली से ही गुजर रहा था कि वहाँ पहुँच कर कदम ठीठक से गए. दुकान पर एक दिव्यांग, सुन्दर सी युवती चुस्ती फुर्ती के साथ ग्राहकों को निबटाये जा रही थी.ग्राहकों की लाइन सी लगी थी.लेकिन नारी शक्ति देने के लिए केवल पुरूष ही सामने थे , नारी नदारद !

मैं भी उस भीड़ का हिस्सा बनकर एक पेस्ट खरीद कर चलता बना. फिर दुसरे दिन....तीसरे दिन....और अब हर दिन आते या जाते समय कुछ खरीदने रूक जाया करता कि इस बहाने उसकी शक्ति बढ़ा पाउँ.

क्रमश: मेरी नजरों से गुजरते हुए मेरे दिल की शक्ति बन गइ वह .मैं कायल होता गया उस के जज्बे का लेकिन मन कचोट जाता उसकी विकलांगता याद आते ही........!

अपने  यात्रा मे निश्चय किया- "वापस जाकर उसे बता ही दूँ अपने मन का उद्गार !"

२ दिन बाद  दुकान पर पहुँचते ही देखा दुकान का शटर गिरा हुआ था और उस पर लिखा था- " यह दुकान शिफ्ट हो गइ है, चिंकी की ससुराल मे " ****



3.गुदड़ी का लाल !

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-- झुग्गी और अपार्टमेन्ट, एक दुसरे के विपरीत. दोनो को अलग करती एक चौड़ी सी सड़क.और सडक किनारे लैम्प पोस्ट !

लैम्प पोस्ट के नीचे झुग्गी का एक बच्चा नवीन, अपनी पढाई  मे तल्लीन.जैसे ही उसने पढाई से ध्यान हटाया, उसकी नजर सड़क पर गिरी पर्स पर पड़ा.पर्स मे लगी फोटो को पहचानते हुए....!

अरे ! ये तो करिश्मा अपार्टमेन्ट का जौकी भइया है !

और वह  अपना स्कूल बैग पीठ पर और पर्स हाथ मे ले उधर की ओर चल पड़ा....

-- वह जौकी की मम्मी को पर्स देने के लिये हाथ बढाया ही था ,तब तक जौकी आ धमका.

वो, तो पर्स तूने निकाला था ?

-- नही भइया, ये मेरे घर के सामने वाले लैम्प पोस्ट के नीचे गिरा था. इस मे आप का फोटो देख कर आंटी को देने आया .

-- अच्छा बेटे ,इतनी रात को सड़क पर चोरी नही तो चौकीदारी कर रहा था क्या ?

-- आंटी चोरी नही, पढाई करता हूँ.

-- वाह ! एक तो पर्स निकाला उपर से ईमानदारी दिखाने आया.दिखा,कुछ निकाला तो नही ? जौकी ने पर्स झटकते हुए बोला.

-- ले ये ईनाम !   इसमे पडे़ सारे महत्वपुर्ण कागजात सुरक्षित लौटाने के लिये .जौकी ने ५० के नोट पकड़ाते हुए बोला.

-- नही भइया,मुझे कोइ पैसे नहीचाहिए.मै चलता हूँ.

--ऐ सुन, कभी दिया है माँ बाप ने ५० का नोट ?

--हम माँ-बाप से लेते नही, देते हैं भइया. उसने फटाफट अपने  पीट्ठू बैग से आज ही स्कूल से मिला स्कॉलरशिप का चेक दिखाते हुए .....ये है हमारे अच्छी पढाई का परिणाम !

--" चेक मे तो तेरा ही नाम है.........साठ हजार !" ****


4.छत्र छाया

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-- ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन !

-- नीमा, कौन आया है ?

-- नीमा.....अरे ! फिर बेहोश !

-- क्या हुआ बहू को ?

-- अरे !आप ? पाँव लागी पापा  ?

-- रात को रक्तचाप, मधुमेह बढा हुआ था.सुबह तो नियंत्रित था पता नही अचानक क्या देख ली की ....?

-- बेटे ! चलो, इन्हे किसी चिकित्सक के पास ले चलते हैं .

-- पापा, मुझे कार्यालय जाना है,इतना फालतू समय कहाँ हो पाता मेरे पास.

-- पापा अचानक ! सब ठीक तो है ? आप फोन कर देते,मै स्टेशन आ जाता लेने.

-- ट्रेन नही, बस से आया हूँ." देश बचाओ" रैली मे गाँव से सब को बस मे भरकर शहर लाया हूँ.

-- तो आप के साथ और भी लोग यहाँ आये हैं क्या ? कहाँ हैं वो लोग. ?

-- परेशान मत हो बेटा.सभी को रैली मे भेज, मैं  बेटे- बहू और बच्चों से मिलने यहाँ आ गया.बताओ बहू को कहाँ दिखानी है,मैं दिखा लाता हूँ.

--आप को दिक्कत होगी पापा.मै जाते समय दिखाते हुए चला जाउँगा. और वो टैक्सी लेकर घर आ जायेगी.

-- बेटे ! बडों से छोटे तक कई पीढीयों के लोगों को जीवन दान दिया हूँ मैं. अस्पताल का पता बताते जाना.

-- नीमा के साथ कौन है ?  कोइ नही है क्या ? चिकित्सक ने पुकारा

-- सर ! उसके पति भर्ती कर अपना कार्ड दे गये हैं,कॉल करना होगा - सिस्टर आ बता गई.

-- जी, डॉक्टर साहेब ! हमारी बहू तो ठीक है ?

-- नही ,आप जल्द से जल्द एक युनिट खून का इंतजाम कीजीए, आप के रोगी का जान खतरे मे है.

-- " मेरा खून चढा दीजिये ना !"

--  डॉक्टर साहेब ! मैं नीमा का पति.कौन सा ब्लड चाहिये ?

-- ब्लड ? वो तो हमने चढा दिया.सिस्टर बतायी नही क्या ?

-- नही सर !

-- वो , पेसेन्ट के साथ आये बाबा ने अपना खून दिया.

-- पापा किधर हैं ?

-- " वो रैली वाली बस मे गाँव चले गए ." ****



5.बढ़ती लकीरें

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वह मैसेज पढ़ते- पढ़ते काठ सा हो गया.जैसे काटो तो खुन नही.....! निढ़ाल  हो  कुछ देर अकेले बैठ कर सोचता रहा-

" उसे इतना लार प्यार दिया, अच्छी शिक्षा दी और उसने नाक कटबा दी."

एक बार भी तो बतायी होती. कैसे मुँह उठाउँगा रिश्ते और बिरादरी में.

अरे ! कुन्दन - " मुँह मीठा तो करबा दे , सुना हूँ वीणा ने खुद ब्याह रचा ली है."

दादा तुम भी ना !

अब चिन्ता की क्या बात. कल तक तो तु इसी चिन्ता मे दुबला होता जा रहा था.की बेटी की शादी कहाँ, कैसे होगी.ले कर दी ना तेरी सारी चिन्ता दूर.

जा चिन्ता छोड़ ! कर ले भोज- भात का इंतजाम .

वह बेचारा अन्दर ही अन्दर मरा जा रहा था. फिर भी ढ़ाढस बँधाते हुए - शिक्षित और काम काजी तो है ही, सोच समझ कर ही तो कोई फैसला की होगी.जब लौट कर इस चौखट पर आयेगी तब देखेंगे.तब तक क्युँ न' रह लूँ निश्चिन्त !

अजी सुनते हो- चाचा को साथ कर पता तो कर आओ " किस जात- धरम का लड़का है ,और हाँ खानदान जरूर पता कर लेना कहीं नीच....!

"उसके ललाट पर अब शिकन साफ साफ दिख रहा था ! " ****


6.नवोदय

    *****


मिकी, इकलौती बेटी के घर पहुँचते ही किशनपाल जी के घर के बाहर भीड़ उमड़ पड़ी़.बधाई देने वालों का ताँता लग गया.

-- अरे पापा ! इस से पहले इस गाँव की कोई लड़की १२वीं पास नही की थी क्या ?

--नही बेटे, इस गाँव की लड़कियाँ दूसरे गाँव स्थित माध्यमिक विद्यालय नही पहुँच पाती , वह दरिन्दों का शिकार हो जाती है. और सभी तेरी तरह हॉस्टल में रह पढ़ने मे सक्षम नही है न.

सुनो-  दरवाजा बन्द रखना, जब तक हम लोग मन्दिर से वापस न आ जाँय.और हाँ कोई पुरूष- गले में गमछा, ललाट पर काला तिलक और हाथ में काला डण्डा हो.....बाहर बिल्कुल नही आना.

-- ठीक है पापा !

-- खट्..खट्..!

मिकी अन्दर से ही उसे देख सहम गई.उस के हाथ में गुलदस्ता ! लेकिन गले में गमछा, माथे पर काला तिलक...पापा की कही बातें याद कर पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो गया.

-- आइये...उसने अपने आत्मविश्वास को पक्का कर दरवाजा खोल दी.

बैठिये, कहकर किचेन में जा घूसी.वापस कमर में चाकू और हाथ में पानी का गिलास लिए खड़ी हो गई.

-- बधाई हो !कहते हुए उसने मिकी को बाँहो में जकड लिया.

-- भइया जी, आप तो पुरूष हैं न , तो अपना पुरूषार्थ तो दिखाइये.

--भइया मत कहो मुझे...कहते हुए उसने अपनी पैण्ट उतार दी.

खचाक्.....! छह इंची पुरूषत्व शुन्य में बदल गया.

" गाँव की सारी महिलाएँ जीवन में पहली बार एक नया उत्सव के माहौल मे रंगीन हो गई ! " ****


7.योग्य

    ****


-- सोसायटी हमारी है तो पहली भागीदारी भी हमारी ही बनती है.क्या जरूरत बाहर वाले आकर वाह वाही लूटें और हम ताली बजाते रह जाँय ?

नही,इस बार कमिटी के सामने यह प्रस्ताव रखना पड़ेगा.

--ठीक है ,होली मिलन समारोह की कविगोष्ठी मे आप सब ही सिरकत करेंगे. इस बार बाहर से कवि आमन्त्रित नही होंगे.

"और जुरी ?"

-- मैडम, जुरी तो बाहर वाले भी रहें हमे कोइ आपत्ति नही .

-- निर्णय सुनते ही तीनो कवियों की बाँछे खिल गइ, आखिर हम तीन मे से ही तो पहला, दूसरा और तीसरे का चयन कर पुरस्कृत करेंगे.

-- कवि गोष्ठी चरम पर थी, श्रोता  उँघते,सोते हुए.जुरी हतप्रभ, सुस्त !

-- मंच संचालक कविगोष्ठी की समाप्ति की घोषणा करते हुए....जुरी से निवेदन, अपना निर्णय सुनाये

--जुरी के तीनो सदस्य निस्तब्ध !

"श्रोता, कवि प्रतिक्षारत......शोर गुल शुरू हुइ.

भीड़ से स्वर गुँजा.....जुरी महोदय श्रेष्ठ कवि की घोषणा तो करें....!

--" जुरी के तीनो सदस्य कलम तोड.उठ खड़े हो गए . " ****


8.चेतना

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बाल बिखरे पड़े, गाल लाल आँखों से जैसे चिंगारी निकलने वाली हो.एक लड़की चिग्धाड़ती हुई थाने के बरामदे पर आ खड़ी हुई.उसने सभी कक्ष के उपर लिखे शब्दों पर नजरें दौड़ाई और तेजी से थाना प्रभारी के कक्ष मे दाखिल हो चिल्लाने लगी -

-- "दरोगा साहब , मुझे बचा लिजीये....बचा लिजीये . उसे छोड़िये मत प्लीज !"

-- , बैठीये प्लीज ! आप बैठ जाइये.

सतीश पानी लाना - दरोगा साहब चपरासी को आदेश दिये.

-- लिजीये...पानी  !सतीश ने गिलास देते कहा.

-- अब बताइये क्या हुआ ?

--" बलात्कार !"

  दरोगा साहब ! रिपोर्ट दर्ज कर जल्दी उस पर कारवाई कीजिये.वो शहर छोड़ कर भाग न पाये .

सारे सिपाही/ कर्मचारी , दरोगा साहब के ईर्द गिर्द इकट्ठा हो गया था ..

--" कहाँ हुआ, कैसे हुआ ये सब ? - एक वरिष्ठ सिपाही ने सवाल किया .

-- हुआ है , बस हुआ है ये सब ! लड़की चिखते हुये बोली.

-- शान्त.....शान्त ! आप लोग अपने अपने कक्ष मे जाइये-- दरोगा साहेब  आदेश देते हुये बोले .

-- मैडम, उस लड़के को आप के सामने लाऊँ तो पहचान पायेंगे आप ? दरोगा साहब गम्भीर होते हुये बोले.

-- हाँ क्यों नही, पहली बार थोड़े ही देखी हुँ .

-- यानी की पहले भी आपके साथ उसने.....?

-- नही, पहले सहमति से हुआ करता था .हम दोनो पिछले तीन सालों से लिव इन रिलेशन मे हैं.

-- तो आप अपने माता पिता से इस बात का जिक्र कर समझौता कर ले ं तो भविष्य बेहतर होगा - दरोगा साहब कॉन्सिलिंग की मुद्रा मे थे.

--पापा तो शादी का सारा इंतजाम और तारीख भी सुनिश्चित कर लिये हैं .

-- तो फिर दिक्कत क्या है ? दरोगा साहब ने स्थिति स्पष्ट समझने का प्रयास किया .

-- " उसने आज शादी करने से मना कर दिया ."

--ओफ्फ ! तो आप मनाइये न जाकर .तीसरे पक्ष का क्या दरकार ?

--आप गोल मटोल बातें कर बिना रिपोर्ट दर्ज किये यहाँ से वापस भेजना चाहते हैं. इन्तजार कीजिये अभी बताती हुँ आप को.-- लड़की , थानेदार को धमकाते हुए थाने से बाहर हो गई.

-- अब वह थाने के बाहर ,आमंत्रित पत्रकारों के बीच पुलिस प्रशासन  और सरकार की धज्जियाँ उड़ा रही थी.

टी.वी प्रसारण होते ही देश भर के युवा/ युवती, बुद्धिजीवी , जो जहाँ थे ,जैसे थे देश के सच्चे सिपाही के तरह अपने अपने फेसबुक पर सक्रिय हो कर  पुरी तन्मयता के साथ थाना- पुलिस और सरकार को कोस रहे थे .

" गुमनाम , आँखो से ओझल हो च़ूकी वह लड़की कहाँ किस हालात मे थी.कोई सुध लेने वाला नही था.

" थाना और सरकार का जन सेवा जारी थी . ****


9.नही बनूंगी द्रौपदी

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-- सरपंच चाचा राम राम !

-- जी़ती रहो कान्ति बिटीया .

-- चाचा , आज हमारे द्वार पर आप लोग ?

-- हाँ बेटा ! तुम तो पढ़ी लिखी हो, हमारा कष्ट समझ सकती हो. सवर्णो के घर बेटी का अकाल सा मानो.जो दो चार हैं भी वो दूर शहर में पढ़ रहीं तो समय पर आ नही पाती .तुम तो  ठहरी सुसंस्कारी , राखी, भइया दुज पर आकर रस्म अदायगी कर जाती हो .

-- हाँ , तो ?

-- यही कि हमारे चौपाल पर चलती,और भाई- बहन का सामुहिक त्योहार मनाती.

-- नही चाचा ! अन्जानों के साथ पवित्र बंधन ?

-- " अरे बिटीया हमारे टोले जाने से डरती हो क्या ? हम हैं न साथ में." - सरपंच के मुँहलगुए ने व्यंग्यवाण छोड़ा.

-- हाँ चाचा डरती हुँ, अन्दर से डर गई हुँ मैं.

-- क्यों ?

-- " कल को आप लोग सामुहिक बहु बनने का आग्रह लेकर आ गए तो ?" ****


10.विकल्प

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-- ये तेरा घर ही तो है न राकेश ? - गाँव से बहुत दिनो बाद पहली बार आया दोस्त ने आश्चर्य से पूछा.

-- हाँ, मेरा ही घर है .क्यों ?

- अरे ! गाँव मे तो हम अछूतों की बस्ती गाँव से बाहर होता है न.और यहाँ पण्डितों के रहवास के बीच ?

-- भाई राजू, इन सब में  ज्यादातर हमारे रिश्तेदारी से ही हैं .

-- पण्डित और तेरे रिश्तेदार ? उल्लू बना रहा क्या ?

--दर असल हमारा खानदान पण्डितो के सताने से मुक्ति हेतु एक नया सामाजिक प्रयोगशाला ही बना डाली.

-- मतलब ! समझा नही.

--हम सभी भाईयों की शादी पण्डित घरानों मे ही हुई है.लव मैरेज के बाद कहा- सुनी के बीच.हुक्का- पानी चलने लगा.

-- और बहनों की ?

--" सारी बहनें भी भाईयों के तरह सामाजिक संतुलन में कामयाब रही है ! *****


11.जगह की तलाश में...!

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तृप्ति पूजा की थाल लिए जैसे ही घर से निकल मन्दिर की ओर बढी उसके कदम ठीठकने लगे.वह सुबह को चीरती हुइ सन्नाटे से डर कर वापस घर को आ गई.

-- अरे ! कुछ भूल गई क्या ?  माँ ने जिज्ञासा भरे लहजे मे पूछा .

-- नही मम्मी, सड़क की सन्नाटे से डर गई.

-- अरे ! अब तो सुबह हो चुके हैं , वो देख - दो भईया भी घूम रहे हैं.तुम जानती नही क्या उन्हे ?

मम्मी दरवाजा खोल सड़क पर आ खड़ी हो गई.

-- हाँ मम्मी मैं अच्छी तरह जानती हुँ उन्हें , वो केवल भइया नही दो युवा हैं, युवा !

-- कोई बात नही, जा मैं यहीं खड़ी हुँ.जल्दी आ जाना स्कूल भी तो जाना है.

तृप्ति फिर से घर से निकलते हुए - ओके, बॉय मॉम ! कहते हुए आगे बढ़ गई. सच ! बाहर का अँधेरा तो छँट चूका था., लेकिन मन का अँधेरा अभी भी कायम था.

वह घर  से निकल चौराहे तक पहुँची ही थी कि उसके कानो मे कुछ अप्रत्याशित शब्द गूँज उठे. लगा जैसे  लड़कों ने फब्तियाँ कसी हो.

-- उसने पीछे मुड़कर दुस्साहस दिखाते हुए पूछ डाला - भइया जी आपने मुझे कुछ कहा क्या ?

-- नही तो....! समवेत स्वर उभरा.

" दरअसल हम दोनो दो धर्म के हैं , तो निश्चय नही कर पा रहे थे कि तुम्हे उठाकर किस सुरक्षित जगह पर ले जाऊँ. मन्दिर मे या मस्जिद मे ! "

हा...हा...हा ! दोनो के ठहाके  से उसका सिर चकराने लगा था. ****

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क्रमांक - 08

नाम: हरीश कुमार 'अमित'

जन्म: 01 मार्च, 1958 को दिल्ली में

शिक्षा ,: बी कॉम; एम ए(हिंदी); व पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा

प्रकाशन : -

1,000 से अधिक रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

 विभिन्न विधाओं की 10 पुस्तकें प्रकाशित। 

28 संकलनों में भी रचनाएँ संकलित।

प्रसारण : -

लगभग 200 रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण 

पता : 

304, एम.एस.4 

केन्द्रीय विहार, सेक्टर 56

गुरुग्राम-122011 (हरियाणा) 

1.अपने-अपने संस्कार
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छुट्टी का दिन था और शाम को सात बजे भारत और ऑस्ट्रेलिया का ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट मैच होना था. उत्सुकता चरमसीमा पर थी क्योंकि इसी मैच की विजेता टीम को फाइनल में पहुँचना था.
अपनी उत्सुकता के वशीभूत मैच शुरू होने से कुछ मिनट पहले ही मैं टी.वी. लगाकर डबल बेड पर अधलेटा-सा बैठ गया था. गर्मी के दिन थे. मैंने अपनी छोटी बेटी, नित्या, को कहा कि फ्रिज में से मेरे लिए ठंडे पेय की एक बोतल ले आए. मैं पूरा लुत्फ़ उठाते हुए मैच देखना चाहता था.
मगर मेरी हर बात को तत्परता से माननेवाली नित्या उसी तरह खड़ी रही. मैं कुछ पल उसे देखता रहा कि वह बस जा ही रही होगी ठण्डा पेय लेने, पर वह उसी तरह सावधान की मुद्रा में खड़ी रही. इस पर मैंने थोड़ी तेज़ आवाज़ में अपनी बात दोहराई, लेकिन मुझे ऐसा लगा मानो उसने मेरी बात सुनी ही न हो. मैं आगबबूला होकर कुछ कहने की सोच ही रहा था कि वह कहने लगी, ‘‘पापा, ला रही हूँ कोल्ड ड्रिंक. मैच से पहले जन गण मन आ रहा था न.’’ *****
 
2.कोहरा
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बड़ा अफसर अपने कमरे में छोटे अफसरों की मीटिंग ले रहा था. बाकी सब तो ठीक चला, पर एक छोटे अफसर को बड़े अफसर की खूब लताड़ पड़ी. यह नहीं कि उस छोटे अफसर का काम खराब था. उसका काम दूसरे अफसरों से कहीं ज़्यादा बढ़िया था, पर उस अफसर की सबसे बड़ी कमी यह थी कि वह बहुत ईमानदार और सच्चा था. न वह बड़े अफसर के सामने दुम हिलाता था और न अपने साथी अफसरों के खिलाफ़ चुगली किया करता था. बस अपने काम से मतलब रखता था.
छोटे अफसर के पास बड़े अफसर की डाँट सुनने के अलावा और कोई चारा नहीं था. मीटिंग खत्म हुई, तो वह अपने साथियों से नज़रें चुराते हुए जल्दी से अपने कमरे की ओर चल पड़ा.
छोटा अफसर अपने कमरे के पास पहुँचा ही था कि सामने से उसे रमेश आता दीख गया. रमेश उसी दफ़्तर में क्लर्क था. रमेश के साथ कोई और भी था.
छोटे अफसर को देखते ही रमेश ने बड़ी नम्रता से उसे अभिभावदन किया और फिर कहने लगा, ‘‘सर, आपने मेरा जो कई सालों से अटका हुआ तनख़्वाह बढ़ने वाला केस क्लीयर किया था, उसका एरियर मुझे मिल गया है. पूरे अस्सी हज़ार मिले हैं. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया, सर.’’
‘‘अरे, इसमें शुक्रिया की क्या बात है. तुम्हारा जो हक बनता था, तुम्हें मिलना ही चाहिए वह.’’ छोटे अफसर ने मुलायम-सी आवाज़ में कहा और फिर अपने कमरे की ओर बढ़ चला.
चलते-चलते छोटे अफसर ने सुना. रमेश अपने साथी से कह रहा था, ‘‘ये सर बहुत ईमानदार हैं. इन जैसा ईमानदार मैंने कोई देखा नहीं अब तक.’’
छोटे अफसर के मन पर बड़े अफसर की लताड़ के कारण छाया सारा कोहरा एकदम से छँट गया. *****
 
3.अपना-अपना ईमान
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कुछ दिनों से मैं काफ़ी परेशान था. पाँच सौ रुपए का नकली नोट न जाने कहाँ से मुझे मिल गया था. नया-नकोर वह नोट दिखने में तो बिल्कुल असली जैसा लगता था, पर था नकली - यह बात मुझे तब पता चली थी जब मैं बैंक में कुछ रुपए जमा करवाने गया था.
उसके बाद मैंने दो-तीन बड़ी-बड़ी भीड़-भरी दुकानों पर वह नोट चलाने की कोशिश की, पर सफल न हो पाया. बहुत व्यस्त होने पर भी दुकानदारों की पारखी नज़रें नोट के नकली होने की बात जान लेती थीं.
मैं असमंजस में था कि नोट को कहाँ और कैसे चलाया जाए. फिर अचानक मुझे एक तरीक़ा सूझ ही गया.
रात के समय मैंने पटरी पर सब्ज़ी बेचने वाले से डेढ़ सौ रुपए की सब्ज़ी ख़रीदी और वही पाँच सौ का नकली नोट उसे पकड़ा दिया. मुझे उम्मीद थी कि लैम्पपोस्ट की मद्धम-सी रोशनी में वह सब्ज़ीवाला यह जान ही नहीं पाएगा कि नोट नकली है.
वह नोट लेने के बाद उस दुकानदार ने बाकी के नोट मुझे लौटाने के लिए रुपए गिनने शुरू किए, मगर रुपए गिनने में वह काफ़ी समय लगा रहा था. मुझे लगने लगा कि कहीं उसे नोट के नकली होने की भनक तो नहीं लग गई. 
मैंने उससे पूछ ही लिया, ‘‘भइया, साढ़े तीन सौ रुपए ही तो वापिस करने हैं न मुझे. इतने-से रुपए गिनने में इतना ज़्यादा वक़्त लगता है क्या?’’
इस पर वह दुकानदार बाकी के रुपए मेरी तरफ़ बढ़ाते हुए बोला, ‘‘बाबूजी, आपका नोट बिल्कुल नया था. अब ऐसे नए नोट के बदले आपको पुराने-पुराने नोट कैसे दे देता, इसलिए नए-नए नोट छाँट रहा था आपको देने के लिए.’’ ****
 
4.असलियत
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ऊपरवाले फ्लैट के फर्श पर जब-तब चलने की आवाज़ बहुत परेशान करती थी. कुछ दिन पहले ही उस फ्लैट में नए किराएदार आए थे. उस दिन छुट्टी के रोज़ नाश्ता करके मैंने सोने की सोची थी ताकि कई दिनों की बाकी नींद को पूरा कर पाऊँ, मगर सो पाना सम्भव लग नही रहा था. वजह वही ऊपरवाले फ्लैट से हमारी छत पर होती आवाज़ थी. परेशान होकर मैं गुस्से से भुनभुनाता हुआ दनादन सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर की मंज़िल पर जा पहुँचा. सोचा था जो भी घर में होगा, उसे खूब खरी-खोटी सुनाऊँगा. मगर दरवाज़े के पास पहुँचा तो अन्दर से किसी महिला की आवाज़ सुनाई दे रही थी, ‘‘देखो जी, अब तो आप काफी अच्छी तरह चलने लगे हो. भगवान ने चाहा तो कुछ दिनों बाद बिल्कुल ठीक-ठाक हो जाओगे और बिल्कुल सही तरह चल पाओगे.’’
तभी किसी पुरूष का स्वर सुनाई दिया, ‘‘एक्सीडेंट के बाद छह महीने बिस्तर पर पड़े-पड़े तो मुझे यही लगता था कि मैं अब कभी दोबारा चल ही नहीं पाऊँगा. मुझे तो लगता है जैसे फिर से चलना शुरू करने पर मुझे नई ज़िन्दगी मिली हो.’’
यह सब सुनकर मैं एकदम से वापिस मुड़ा और धीमे-धीमे कदमों से सीढ़ियाँ उतरते हुए अपने घर की ओर बढ़ने लगा. मेरा सारा गुस्सा न जाने कहाँ काफूर हो गया था. *****
 
5.यार की टॉफी
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दफ़्तर के एक सहकर्मी मुझे पितृवत स्नेह देते थे. उन्हें कार्यालय के काम का बहुत अनुभव होने के कारण मैं अपने काम की अनेक समस्याओं की चर्चा अक्सर उनसे किया करती थी, जिनके समाधान वे प्रायः सुझा दिया करते थे.
पिछले दिनों वे सहकर्मी दफ़्तर के टूर पर विदेश गए, तो वापिस आकर उन्होंने मुझे टॉफियों का एक ख़ूबसूरत डिब्बा दिया जो वे मेरे दो वर्षीय बेटे, चीनू, के लिए लाए थे.
टॉफियों का डिब्बा मैंने घर आकर अपने पति, प्रदीप, और चीनू को दिखाया. फिर हाथ-मुँह धोकर चाय-वाय बनाने के लिए मैं किचन मैं चली गई.
कुछ देर बाद मुझे चीनू के ज़ोर-ज़ोर से रोने की आवाज़ सुनाई दी. कुछ देर तो मैं किचन में काम करती रही, लेकिन जब चीनू का रोना बन्द नहीं हुआ, तो मैं घबराकर उस कमरे की ओर चली गई, जिसमें चीनू और प्रदीप थे. 
चीनू न जाने किस बात पर लगातार रोए जा रहा था. मैंने पास ही पड़ा टॉफियों का वही डिब्बा खोला और उसमे से एक टॉफी निकालकर चीनू को दे दी. टॉफी मिलते ही चीनू चुप हो गया और टॉफी चूसने में मग्न हो गया.
तभी प्रदीप बोल उठे, ‘‘देखा, यार की टॉफी का कमाल!’’ ***
 
6. अपना-अपना वादा
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बच्चा कई दिनों से एक विशेष खिलौने के लिए मचल रहा था. आज सुबह जब उसने खिलौने के लिए कुछ ज़्यादा ही ज़िद की, तो मैंने झूठ-मूठ उसे कह दिया कि शाम को दफ़्तर से आते हुए मैं वह खिलौना लेता आऊँगा. यह सुनते ही वह ख़ुशी के मारे झूमते हुए कहने लगा, ‘‘पापा, मैं शाम तक मैथ (गणित) के वे सारे सम्स (प्रश्न) करके रखूँगा जो आपने कल कहे थे.’’
शाम को दफ़्तर से वापिस आते ही बच्चा मेरा बैग टटोलने लगा. मैंने खिलौना न ला पाने का कोई बहाना बना दिया. कुछ देर बाद जब मैं चाय पी रहा था तो बच्चा मैथ की कॉपी ले आया और कहने लगा, ‘‘पापा, मैंने सारे सम्स कर लिए हैं. आप चैक कर लो.’’ ****
 
7. भलमनसाहत
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रात के सवा दस बजे थे, अम्बाला जाने के लिए करनाल के बस अड्डे पर खड़ा मैं बस का इन्तज़ार कर रहा था. दस चालीस पर रवाना होने वाली बस आने ही वाली थी. अगले दिन चूंकि दीवाली थी, इसलिए अड्डे से छूटनेवाली हर बस के लिए भीड़ काफ़ी ज़्यादा थी. दस चालीस वाली बस को पकड़ लेना बहुत ज़रूरी था, क्योंकि इसके बाद डेढ़ बजे बस मिलनी थी, जब तक कि अब वाली पकड़कर अपने घर भी पहुँच चुका होना था.
थोड़ी देर बाद अम्बाला जानेवाली बस प्लेटफॉर्म की तरफ आती दिखायी दी. इसके साथ ही भीड़ का एक रेला रेंगती हुई बस की ओर भागने लगा. मेरे पास एक भारी-सी अटैची थी, सो मैं पीछे रह गया, मुझे नहीं लग रहा था कि मैं बस में सीट पा सकूंगा. तभी मुझे एक विचार सूझा और मैंने बस में चढ़ने के लिए धक्कामुक्की कर रहे एक देहाती-से आदमी को जरा मिन्नत करते हुए कह दिया, ‘‘ए भइया, मेरे लिए भी एक सीट रोक लेना. मुझसे चढ़ा नहीं जा रहा. मेरे पास भारी सामान है.’’ कहने को तो मैंने कह दिया था, पर यक़ीन मुझे कम ही था कि वह आदमी मेरे लिए सीट रोक लेने की भलमनसाहत दिखाएगा.
बस में चढ़ने की मेरी कोशिशें जब तक कामयाब हुईं, बस खचाखच भर चुकी थी. खड़े तब होने की जगह नहीं मिल पा रही थी. बड़ी परेशानी-सी महसूस करने लगा था मैं. तभी मुझे सुनाई पड़ा, ‘‘ऐ बाबू साहेब! ऐ नीचे स्वेटरवाले बाबू साहेब!’’ मैंने एकदम से आवाज़वाली दिशा की ओर देखा. वही देहाती मुझे पुकार रहा था. खिड़की की तरफ़वाली उसके साथ की एक सीट ख़ाली थी.
किसी तरह अटैची संभाले भीड़ में से बड़ी मुश्किल से रास्ता बनाता हुआ मैं उसके पास पहुँचा, बजाय ख़ुद खिड़की की तरफ़ खिसकने के उस देहाती ने मुझे ही खिड़की की तरफ बैठने दिया. उसकी भलमनसाहब देखकर मैं गद्गद् हो उठा. सच्चे दिल से मैंने उसका शुक्रिया अदा किया.
तभी वह मुझसे कहने लगा, ‘‘बाबूजी, बस चलने में थोड़ी ही देर है. ज़रा मेरी सीट रोकना, पेशाब करके मैं अभी आया.’’ उसके चले जाने पर मैंने घड़ी देखी. बस चलने में दो-तीन मिनट ही बाकी थे. तभी मेरी नज़र बस में खड़ी हुई सवारियों में अलग-सी दिख रही एक ख़ूबसूरत-सी आधुनिका पर पड़ी, जो मुझसे ज़्यादा दूर नहीं खड़ी थी.
‘‘अगर यह लड़की मेरे साथ बैठी होती, तो कितना मज़ा आता.’’ उसे देखते ही यह ख़याल मेरे दिल में चक्कर काटने लगा था. इस ख़याल की तेजी धीरे-धीरे बढ़ती ही जा रही थी. फिर मुझे न जाने क्या सूझा कि मैंने उस लड़की को अपनेवाली सीट पर बैठने का निमन्त्रण दे दिया और खुद उस देहाती की सीट पर खिसक गया. लड़की रास्ता बनाकर ‘‘थैंक यू’’ कहती हुई मेरे साथवाली सीट पर बैठ गई. कंडक्टर की सीटी सुनायी दी और बस रेंगने लगी. मैंने खिड़की में से देखा वह देहाती हाथ हिलाकर ज़ोर-ज़ोर से कुछ चिल्लाता हुआ शौचालय की तरफ़ से बस की ओर दौड़ रहा था. मगर बस तब तक रफ़्तार पकड़ चुकी थी. मैं चाहता तो कंडक्टर से कहकर बस रूकवा सकता था, पर लड़की के गुदगुदे स्पर्श के ताले ने मेरी जुबान खुलने नहीं दी.****
 
8.सपनों के सच
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बिस्तर पर लेटे बच्चे की आँखों से भूख का एहसास साफ-साफ झलक रहा था. सिर्फ़ एक सूखी रोटी ही तो मिली थी उसे रात के खाने के तौर पर. घर में कुल मिलाकर महज़ दो रोटियों के लायक आटा ही बचा था. इस आटे से बनी रोटियों में से एक बच्चे को दे दी गई थी और आधी-आधी मैंने और दीपा ने खा ली थी. बच्चे के लिए आख़िर उसके माँ-बाप का ज़िन्दा रहना भी तो ज़रूरी था न.
बच्चे की आँखों से झाँक रहा भूख का एहसास मुझे बहुत बेचैन किए जा रहा था. मैं चाहता था कि बच्चा सो जाए. कल की कल देखी जाएगी, मगर बच्चे की आँखों में नींद के डोरों का दूर-दूर तक पता नहीं था.
पिछले चार महीनों से मैं बेरोज़गारी झेल रहा था. जिस कम्पनी में क्लर्क की नौकरी कर रहा था, किन्हीं वजहों से वह बन्द हो गई थी. कोई नई नौकरी पाने की ताबड़तोड़ कोशिशों के बावजूद अभी तक कोई सफलता मुझे मिल नहीं पाई थी. इस बीच छोटा-मोटा कोई काम करके मैं और दीपा किसी तरह घर चलाने की कोशिशें कर तो रहे थे, मगर घर चल कहाँ रहा था. बस किसी तरह रेंग रहा था जैसे. 
पूरे घर में खाने लायक और कोई चीज़ बची ही नहीं थी जो बच्चे को दी जा सके.
अचानक मेरे दिमाग़ में एक बात आई और मैं बच्चे को कहने लगा, ‘‘देखो बेटा, हम लोगों की हालत हमेशा ऐसी ही थोड़ा रहने वाली है! उम्मीद है मुझे जल्दी ही कोई नौकरी मिल जाएगी. तब पता है सबसे पहले मैं क्या लाऊँगा?’’
बच्चे ने प्रश्नवाचक नज़रों से मेरी ओर देखा. दीपा भी पास ही बैठी थी.
‘‘सबसे पहले मैं लाऊँगा आटे की थैली, जिससे तुम्हारी मम्मी बनाएगी गरम-गरम फूली-फूली रोटियाँ!’’ अपने हाथों से रोटी का आकार बनाते हुए मैंने, आगे कहना शुरू किया, ‘‘साथ में बनेगी तुम्हारी मनपसन्द आलू-पनीर की सब्जी! आटे का हलुआ भी बनाएँगे गरमागरम! पेट भरकर खाएँगे हम सब!’’
मेरी बात सुनते-सुनते बच्चे की आँखों के भाव बदल गए. उन आँखों में अब भूख का एहसास नहीं था बल्कि किसी अच्छे दिन के सुनहरे सपने थे. बच्चे की आँखों में नींद भरने लगी और मेरी व दीपा की आँखों में नमी. ****
 
9. अपनेपन की महक
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मेरे मोबाइल फोन की स्क्रीन पर ख़ूबसूरत गुलाबों की एक फोटो चमक रही थी और उसके नीचे बड़े भैया का संदेश लिखा हुआ था – ‘जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक हो छोटू! आज तुम्हारे ही शहर में आने का कार्यक्रम है, मगर राजनैतिक कामों में ही व्यस्त रहूँगा. तुमसे मुलाक़ात हो नहीं पाएगी.’
मुझे याद आ रहा था कि बड़े भैया मेरे बचपन से मुझे जन्मदिन पर गुलाब का एक फूल भेंट किया करते थे. कई सालों तक बेरोजगारी झेलने के बाद क़रीब एक साल पहले से भैया एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ता बन गए थे और अब उन्हीं कामों में बहुत व्यस्त रहने लगे थे.
मोबाइल स्क्रीन पर चमक रहे गुलाबों और भैया के बधाई संदेश में कोई आत्मीयता मुझे महसूस हो ही नहीं रही थी. मुझे तो बड़े भैया का गुलाब का फूल देते समय अपने कंधे पर उनके हाथों का स्नेह भरा स्पर्श ही जन्मदिन की असली बधाई लगता था.
मैं कुछ देर तक मोबाइल स्क्रीन पर चमक रहे गुलाबों को देखता रहा और फिर फोन को एक तरफ रखकर अपने संदूक की ओर बढ़ने लगा जिसमें मैंने भैया द्वारा जन्मदिन पर दिए हुए गुलाबों को अलग-अलग लिफ़ाफ़ों में वर्षवार सँभालकर रखा हुआ था.****
 
10.सुख
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टाइपिंग की दुकान पर टाइप करनेवाला लड़का चारों तरफ़ ग्राहकों से घिरा बैठा था. सब ग्राहकों को जल्दी थी. किसी को एक पृष्ठ टाइप करवाना था तो किसी को दो. दोपहर के सवा तीन बज चुके थे, मगर उस लड़के को खाना खाने का मौका अभी तक मिल ही नहीं पाया था. आख़िर किसी तरह उसने काम रोका और पास पड़े बैग से खाना निकाल पिछली तरफ़ पड़ी एक मेज़ के पास खड़ा होकर खाने लगा. 
उसे इस तरह खड़े होकर खाना खाते देख कुर्सी पर बैठा एक ग्राहक कहने लगा, ‘‘आराम से बैठकर खाना खा लो भाई! इस तरह खड़े-खड़े खाना खाना ठीक नहीं.’’
‘‘पूरे तीन घंटे बाद ये पाँच-सात मिनट ही तो मिले हैं खड़े होने के लिए. सारा-सारा दिन बैठकर टाइप करने के बाद इस तरह कुछ देर खड़ा रहने में बड़ा सुख है, सर!’’ खाना खाते-खाते उस लड़के ने जवाब दिया. *****
 
11. अपना-अपना उपहार
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‘‘इनकी नई कमीज़ तो पहली बार धोने पर ही सिकुड़ गई. अब पूरी भी नहीं आएगी इन्हें. इनके पिछले जन्मदिन पर ही तो दी थी मैंने.’’ बर्तन माँज रही कामवाली बाई को मैंने बातों ही बातों में बताया.
मेरी बात सुनते ही उसके चेहरे पर चमक आ गई. हल्का-सा मेरी ओर घूमकर वह कहने लगी, ‘‘बीबी जी, मेरे मरद को आ जाएगी पूरी. आप मुझे दे देना. मैं उसके जन्मदिन पर उसे दे दूँगी.’’ यह सब कहते हुए उसकी आवाज़ से ख़ुशी टपकने लगी थी.
बाई की बात सुनते-सुनते मेरी नज़र उसके माथे पर लगी चोट की तरफ़ चली गई. यही चोट तो मिली थी उसे उसके पिछले जन्मदिन पर अपने मरद की ओर से.***
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क्रमांक - 09
नाम :  नीलम नारंग 
जन्म :  फतेहाबाद में 21 जून 1968 में मध्यमवर्गीय परिवार मे हुआ 

कार्यक्षेत्र : विवाह के बाद हिसार में ही रही और यहीं शिक्षिका के व्यवसाय को चुना । 

शिक्षा : एम. बीएड . एल एल बी. 

विधा : कविता , गजल ,गीत , मुक्तक व लघुकथाएं

पहली लघुकथा : ' मेरा समाज अलग कैसे ' नाम से जुलाई 2017 में अमर उजाला अखबार में छपी थी । उसके बाद विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लघुकथाएं और कविताएं छपती रही हैं । इसके अलावा बहुत सी पुस्तक संकलन में लघुकथाएं सम्मलित की गई  है । 

सम्मान : -

10 नवम्बर 2019 में शब्द शक्ति संस्था द्वारा पिता पर लिखी गई कविता पर प्रशस्तिपत्र  , जैमिनी अकादमी व भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा सम्मानित  किया गया।
कोरोना काल में अलग-अलग संस्थाओ से जुड़ने का सौभाग्य मिला । आनलाइन लघुकथा पाठ किया ।
पता : 
147/ 7, गली नम्बर -7 
            जवाहर नगर हिसार - हरियाणा
1. दो बहनें
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राज और प्रेमा कहने को सगी बहनें  थी पर बचपन से ही दोनों में प्यार कम लड़ाई ज्यादा होती थी । वैसे तो चार बहनें थी । पर इन दोनों की लड़ाई जगजाहिर थी । संयोग  भी ऐसा बैठा कि शादी के बाद  दोनों देवरानी जेठानी  बन गई।अब तो लड़ाई को वजह भी मिल गई और आग भी । रिश्तेदारी में कहीं मिल जाती या मायके के शादी ब्याह  में तो बस राम राम की औपचारिकता भर रह गई।  ना भाई बहन समझा पाए ना ससुराल वाले। बच्चे तो पले ही इसी वातावरण में कौन किसको समझाए ।वक्त के साथ  इतनी समझ बढ़ गई कि दोनों सामना होने पर अब लड़ती नहीं थी । बच्चों की शादियां हो गई  । पोते ,पत्तियाँ दोहते  दोहतियाँ परिवार बड़ा हुआ और बिखराव भी शुरू हुआ।  बच्चों ने अपने अपने नए घर बसा लिए दोनों बहने पुराने घर में रहती । जब छोटी बहन के पति की मौत हुई तो पहली बार दोनों बहनें गले मिलकर खूब रोई। अगले साल  बड़ी बहन के पति भी चल बसे  ।अब बच्चों के लिए परेशानी हो गई  कौन किसको संभाले । आखिर में बड़ी बहन ने कहा चाहे सब कुछ  खत्म हो गया अब मौत ही हमें एक-दूसरे से जुदा करेगी । जो बचपन में  गवाँ  दिया अब उस प्यार  को जिएंगी।  बच्चे कुछ खिसियाए  से अचंभित हो एक दूसरे को ताक रहे थे। ****
            
2. बंटवारा
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रामरती की रात को एकाएक नींद उचट गयी | पानी पीने उठी तो एक बार तो गर्व से सीना चौड़ा हो गया | छोटे से कच्चे आँगन में दोनों बेटे, दोनों बहुएं, पोती, पोता सब गहरी नींद में सो रहे थे | बड़ा बेटा परिवार सहित दिल्ली से जान बचाते-बचाते पांच-छह दिन पहले ही सकुशल घर लौटा था | उसको आया देखकर छोटे बेटे का परिवार भी खूब खुश हुआ | अबकी बार बड़का दो साल बाद आया था | बारह-तेरह साल हो गए थे बड़के को दिल्ली गए हुए | साल डेढ़ साल में जब घर आता था, तो सबके लिए बहुत सारा सामान लेकर आता| बीस-बाईस दिन घर में रहता तो घर में त्योहार का सा माहौल रहता | सारा परिवार मिल कर खूब हँसी ठठा करता | जब जाता तो छुटका बोरी भरकर सामान खेतों से लाता और बड़े भाई को देता| इस तरह वक़्त बड़े अच्छे से बीत रहा था | अब बड़का सबकुछ छोड़ छाड़ के आ गया था| छोटा सा जमीन का टुकड़ा, कितने दिन दोनों भाई एक साथ रहेंगे क्या खायेंगे , कैसे रहेंगे ? और कहीं बात बंटवारे की आ गयी तो दोनों दो जून की पूरी रोटी भी न खा सकेंगे |  घर में कलह कलेश रहा करेगा सो अलग | अब रामरती को समझ नहीं आ रहा था के बड़के को देखकर खुश होए या रोये ? अचानक उसे अपनी नींद उचटती सी लगी | *****

3.आत्मविश्वास
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काकी, ओ काकी कहाँ हो? हम बाज़ार जा रही हैं, ज़रा बच्चों को तो सम्भालें । ये रेवा और रीना का रोज़ का काम था, जैसे ही घर के काम से फ़ारिग़ हुई निकल पड़ी घुमने, चाट-पकौड़ी खाने। बेचारी काकी बच्चों को सम्भालते-सम्भालते हाँफने लगती और थक कर चूर हो जाती । इधर कुछ दिनों से काकी अपने अतीत और वर्तमान को लेकर बहुत सोचने लगी थी ।कभी कभी सोचती मै ही ग़लत चल रही हूँ । क़िस्मत को दोष देकर हाथ पर हाथ रख कर बैठने से क्या होगा ? सोलह साल की रही होगी जब उसकी शादी हुई । कामना, यही नाम था उसका । घर गृहस्थी का सुख जान पाती इससे पहले ही वैधवय जीवन शुरू हो गया । ससुराल वालों को बोझ लगी तो मायके मे छोड़ गए । यहाँ भी भतीजे-भतीजियों के पालन-पोषण मे ज़िन्दगी गुज़रने लगी । घर में बहुएँ आ गई । अब हर दम एक ही आवाज़ सुनने को मिलती, काकी क्या कर रही हो? ये काम रह गया वो काम रह गया । आज तक वो ज़िम्मेदारी समझ कर सब काम करती आई । अब वो थकने लगी थी, शरीर से कम और मन से ज़्यादा । लगता उसका सम्मान आत्मसम्मान सब खो गया है । पड़ोस में कामवालियों को देखती हँसते हुए काम करती हैं पगार पाती है और कम से कम मनपसंद खाती पीती तो है। यहाँ तो हर चीज़ के लिए दूसरों का मुँह ताकना पड़ता है । जब हम अपने वर्तमान से ख़ुश नही होते और भविष्य के लिए कुछ सपने देखते है तो कई बार रास्ते भी अपने आप बन जाते है । काकी जब बच्चों को स्कूल छोड़ने गई तो वहाँ एक मास्टरनी को अपनी बूढ़ी सास की देखभाल के लिए एक औरत की ज़रूरत थी जो रात को वहाँ रह सके । मन ही मन कुछ फ़ैसला लिया और पहुँच गई बात करने और काम करने के लिए हाँ कह आई । पचास साल ज़िन्दगी के दूसरों के फ़ैसलों पर गुज़ार दिए । आज लिए गए अपने फ़ैसले से जितनी वो ख़ुश थी उससे ज़्यादा डरी हुई । घर मे उठने वाले बवडर से अनजान नही थी लेकिन उसने मन ही मन सोच लिया था कि उसका निश्चय भी किसी चट्टान से कम नही है जिसे कोई नही डिगा सकेगा । आज कितने सालों बाद अपना नाम सुना था —- कामना कल से ठीक समय पर काम पर आ जाना और चेहरे पर मुसकान आ गई | *****

4.शरीक 
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सरदार हजारा सिंह अपने गाँव ढाणी इसरवास के जाने माने जमींदार थे | उनके पास लगभग 180 किले ज़मीन थी| गॉंव में उनका अच्छा रुतबा था और लोगों के साथ अच्छा उठना बैठना था | सब महत्वपूर्ण कार्यों में लोग उनकी सलाह लेते | दो बेटे थे, दोनों को दिल्ली के कॉलेज में पढाया | पढ़-लिखकर गॉंव वापिस आए दोनों की शादी भी अच्छे घर में हो गयी | साल बीतते दोनों भाई जमीन के पीछे लड़ पड़े | जमीन घर का बंटवारा हो गया | कल तक जो भाई थे अब शरीक बन गए | हजारा सिंह को लगता अब लोग उसपर हंस रहे है | बंटवारा होने के बाद भी बेटों को लड़ते देखकर उन्हें बहुत दुःख होता | कुछ सालों बाद एक पोता विदेश चला गया | अपनी सारी जमीन ठेके पर एक बिहारी को दे गया | दूसरा बेटा भी अपनी जमीन उसी बिहारी के भाई को ठेके पर देकर विदेश चला गया | बूढ़े हजारा सिंह रह गए अकेले घर के एक कोने में | बड़ी बड़ी हवेलियाँ जो किसी समय बड़े शौक से बच्चों, पोते-पोतियों के लिए बनवाई थी अब उसमें जो रह रहे थे वो दोनों भाई थे उनमे कोई शरीकत नहीं थी | जब वो हँसते खिलखिलाते हजारा सिंह के सीने पर सांप लोटते | ****

5.सवाल 
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नन्ही परी पहले ही बहुत चुलबुली थी और अब तो लॉक डाउन की वजह से उसका सारा ध्यान घर की और बड़ों की बातों में रहता | पहले उनकी बातें सुनती फिर सवाल पर सवाल | उसके सवाल सुनकर घर भर में ठहाके लगते लेकिन कई बार वो ऐसे सवाल कर देती कि किसी के पास भी उसके सवाल का जवाब नहीं होता था या कोई देना नहीं चाहता था | एक दिन जल्दी नींद खुल गयी परी की वैसे भी कई दिन से घर का माहौल ठीक नहीं चल रहा था | परी को कुछ बातें समझ आ रही थी कुछ नहीं | सब कुछ दिनों से बुआ को डांट रहे थे | जैसे ही दादी के कमरे में आई देखा दादी पूजा कर रही है | हाथ जोड़ कर वो भी बैठ गयी | थोड़ी देर में बेचैन हो गयी और बोलने लगी , “ दादी ,ये किसकी तस्वीर है जिसे आप इतने प्यार से देख रही हो “ ये राधा कृशन जी है  दादी ने जवाब दिया ये भगवान है इन की पूजा तो सब करते है | ये कृशन जी की पत्नी तो बहुत सुंदर है | बिटिया ये कृशन जी की पत्नी नहीं उनकी प्रेमिका है | परी ने कुछ सोचते हुए कहा बुआ को तो सब प्यार करने पर डांट रहे हो और इनकी पूजा कर रहे हो | दादी यह तो गलत बात है | प्यार तो सब कर सकते है ना | *****

6.समाज 
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कमला बाई को घर में क़दम रखते ही एहसास हो गया कि आज कुछ न कुछ गड़बड़ है। उसकी मालकिन तो रोज़ सवेरे बड़ी जल्दी ही उठ जाती है लेकिन आज घर में कुछ हलचल दिखाई नहीं दे रही थी । वैसे आज कमला भी कुछ अनमनी सी थी उसने अनमने ढंग से सिर को झटका और फुरती से अपने रोज़मर्रा के कामों में लग गई। थोड़ी देर बाद जब मालकिन बाहतो उनके चेहरे को देखते ही कमला बिना बताए ही दोनो एक दूसरे हालत को समझ गई । फ़र्क़ इतना था कि कमला ने अपने पति के अत्याचार की कहानी बिना किसी लाग लपेट के सुना दी थी और मालकिन को अपनी चोट के निशान बताने के लिए कई झूठे बहाने बनाने पड़े । कमलाबाई के जाने के बाद उज्जवला को एहसास हुआ कि कितनी आसानी से कमला अपने दिल की बात कह गई । वह तो अपनी हाई सोसायटी , समाज की इज़्ज़तदार और पढ़ी लिखी औरत होने के नाते अपने दुख का बयान भी नहीं कर सकती *****
                              
7.अन्न का अपमान 
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अभी कुछ रोज पहले की बात है जब नेहा  कुछ लोगो के साथ झज्जर जिले में बने जॉय गाँव पिकनिक स्पॉट में जाने का मौका मिला | वहां पर जाने की टिकट 1000 रूपये प्रति व्यक्ति थी | सुबह का नाश्ता , दोपहर का खाना इसके अलावा ग्रामीण रसोई में मक्के ,बाजरे की रोटी , चूरमा, सरसों का साग ,छाछ, शिकंजी ,जलेबी ,पकोड़े आदि | पूरा दिन यानि 10 बजे से शाम पांच बजे तक कितना भी खाइए | भरपूर मनोरंजन के साधन ,ग्रामीण परिवेश का माहौल | छोटे बच्चे गॉंव के माहौल  को हैरानी से देखते हुए और अधेड़ उम्र  जैसे उस परिवेश में एक बार फिर से अपना बचपन दोराहते हुए | कुल मिलाकर पूरा दिन हंसी ख़ुशी में व्यतीत हुआ | वहां पर काम कर रहे कर्मचारियों से बात करने के लिए जैसे ही उनकी रसोई में गयी वहां पर बचे हुए झूठे अन्न का ढेर लगा हुआ था | जिसे देखकर मन बहुत खिन्न हो गया | वहां पर काम कर रहे कर्मचारी बोले ,” मैडम  ये पढ़े-लिखे पैसे वाले लोग क्या जाने कि इसी अनाज के लिए किसान पोष की पूरी रात खेत में बिता देता है , जेठ की पूरी दुपहरी बिना झपकी लिए पक्षियों को खेत से उडाता है ताकि फसलें ख़राब न हो |” उनकी गहरी बात ने शर्मिंदगी से भर दिया | कितने लोग बिना खाए रात को सो जाते है | कितने ही लोग सारा दिन दौड़ धुप करते है तो उन्हें भरपेट भोजन करते है | समझ नहीं आया किसको अमीर और पढ़ा लिखा कहूँ | माना आपके पास पैसा है पर अन्न का अपमान करने का अधिकार तो नहीं है आपके पास | पता नहीं लोग इन बातों को कब समझेगें  | कब थाली में उतना ही लेंगे जो गंदगी के ढेर में न जाए | ****
             
8.दबे अरमान 
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 नीरज बिजली विभाग में क्लर्क था | उसे कविताएँ लिखने का बहुत शौक था |  कालेज के ज़माने से ही उसकी लिखी कविताएँ सब विधार्थियों द्वारा खूब पसंद की जाती थी | कालेज समाप्त होने के बाद उसके घरेलू हालात  ऐसे हुए की लिखने की आदत कम हो गयी या ये कहा जा सकता है कि घर की जिम्मेदारियों ने लिखने का समय ही नहीं दिया |  लेकिन जब भी समय मिलता कोई भी कागज हाथ में होता उस पर लिख देता अपनी पुस्तक छपवाने की उसकी दिली तमन्ना वक़्त के साथ बलवती होती जा रही थी | इन्हीं हालातों के अंदर ही एक पढ़ी लिखी नौकरीपेशा लड़की से उसकी शादी हो गयी | रीना को  ना कवि पसंद थे ना कविताएँ | उसे लगता कि नीरज अपना समय खराब कर रहा है | नीरज को लगता मैंने पढ़ी लिखी लड़की से शादी इसलिए की थी ताकि वो मुझे और मेरे जनून को समझ सके | एक दिन जब नीरज किताब छपवाने के लिए अलमारी में अपनी डायरी ढूंढने लगा नहीं मिलने पर रीना को आवाज लगाई तो रीना ने कहा कि वो बेकार और मुड़े तुड़े कागज वो तो मैंने सब रद्दी में डाल दिए और नीरज तो सुनते ही धम्म से जमीन पर बैठ गया बस इतना ही बोल पाया मेरे अरमान  जिन्हें मैं ना जाने कितने सालों से मूर्त रूप में बदलना चाहता था तुमने उनको मार कर मुझे भी जिन्दा जी मार दिया | उसे लगा कि यह उसके ऊपर हुए मानसिक अत्याचार की अति है जिसे वो खुलकर किसी को बता भी नहीं सकता | *****


 9. खुशनुमा अंतिम पड़ाव  
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सीमा आजकल कुछ ज़्यादा ही बेचैन और अनमनी सी रहती है। पति की मृत्यु होने के बाद अकेलापन उसे और भी खटकने लगा था । जाने से पहले सुनील उसके लिए अच्छा ख़ासा बड़ा बंगला व ढेर सारी दौलत छोड़ गए थे। अपने अकेलेपन के साथ साथ उसे सासु माँ का दिनभर का रोना बर्दाश्त नही होता था । बच्चे  पिताजी की  तेरहवीं की रस्म के बाद विदेश वापिस चले गए और अपनी अपनी ज़िन्दगी मे मशरूफ हो गए ।सीमा ने सोचा  समय काटने के लिए और दिल बहलाने के लिए ऊपर का घर किराए पर दे देते है या लड़कियों का पी . जी. खोल देती हूँ मन लगा रहेगा। उन्हीं के साथ हंस बोलकर ख़ुश हो जाया करूँगी । एक दिन सुबह सुबह ही डोरबेल की आवाज़ सुन वह बाहर निकली तो सामने सास की सहेली जो पुरे गरूप में दीक्षित द फ़नी जोड़ी के नाम से मशहुर थी खड़े थे । अंदर आने पर उन्होंने बताया कि वो किराए पर घर ढूँढ रहे है । बच्चों की रोज़ की किच किच से तंग शांती से रहना चाहते है। उन्होंने सीमा को सलाह दी सीमा क्यूँ नही तुम बुज़ुर्गों के लिये ही पी. जी. खोल दो ? सब लोग मिल बैठ कर हंस बोल लेंगे कुछ समय के लिए ही सही सब अपना  दुख दर्द बांट लेगें । हँसते हँसते यहीं से अंतिम विदाई भी ले लेंगे | अगले ही दिन घर के बाहर टंगे बोर्ड को लोग हैरानी से देख रहे थे जिसपर लिखा था ख़ुश नुमा अंतिम पड़ाव । ****

10. बुढ़ापा
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रीना अपने नए घर की खिड़की पर खड़े होकर इधर उधर देख रही थी |  उसने अभी ही इस मोहल्ले में नया घर लिया है | मानो आज ही सबसे जान पहचान कर लेगी | धीरे धीरे यह उसका रोज का नियम बन गया जब भी घर के काम से फुरसत मिलती वह खिड़की पर आकर बैठ जाती | उसके सामने वाले घर मे एक बुजुर्ग जो कभी कभी दिखाई देते हैं खासकर इतवार को | रीना यह देखकर बड़ी हैरान होती है की वह बुजुर्ग हर रविवार को कुछ कबाड़  बाहर     निकालते है और हर आने जाने वाले कबाड़ी को रोकते है और कुछ देर  मोल भाव करते है फिर अंदर चले जाते है | कभी कभी कुछ कबाड़ बेच भी देते हैं | रीना को आस पड़ोस से पता चला कि वो एक रिटायर्ड अधिकारी हैं जिनके बच्चे विदेश में सेटल्ड हैं | पत्नी का देहांत हुए कई बरस हो गए हैं |इतने बड़े घर में अकेले रह रहे हैं | कोई आने जाने वाला नहीं है | रीना सोचने लगी इतना पैसा होते हुए भी यह बुजुर्ग कितना लालची है | एक रविवार रीना को कबाड़ बेचना था उसने कबाड़ी को बुलाया बातों बातों में उसने  कबाड़ी से बुजुर्ग के लालच की बात बोली तो कबाड़ी ने बताया की वो लालची नहीं वो तो टाइम पास करता है और तो कोई है नहीं बोलने के लिए  इसलिए वह हम जैसों से ही दिल बहला लेता है | कबाड़ी की बात रीना को अंदर तक झकझोर गयी वह बुजुर्गों की दशा के बारे में सोचने पर मजबूर हो गयी ****
                     
11.  रिमोट जिंदगी का
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सुशीला अपने पति हरीश के साथ ख़ुशी से रह रही थी | बेटा और बहु दोनों दिल्ली मे एक कंपनी मे जॉब कर रहे हैं | काफी सालों से बेटा बाहर है इसलिए अकेले रहने की आदत पड़ी हुई है | हमेशा से अपने तरीके से जिंदगी जीने वाली सुशीला पर दुखों का पहाड़ टूट गया जब रात को ठीक से सोए हरीश सुबह उठे ही नहीं | उनके जाने के बाद जिंदगी वीरान हो गई | एक दो महीने तो सब रिश्तेदार बारी बारी से उसके पास रुकते रहे | लेकिन हमेशा के लिए कौन रुक सकता है आखिर तो अकेले ही रहना पड़ेगा | अब तो सुशीला को लगता जिंदगी ठहर गई है | समय जैसे रुक गया हो | बेटा बहु अपने पास बुला रहे थे लेकिन दुसरे लोगो की सख्त हिदायत याद आ जाती बड़े शहर में बिलकुल अकेली पड़ जाओगी | बहु बेटा भी किसी के पूछते हैं क्या ? दो महीने और बीत गए बेटा बहु आये तो माँ की हालत देखकर दुखी हो गए | ऐसे समय में बहु ने बड़े प्यार से बोला , “ माँ जी , जैसी जिंदगी हमें भगवान देता है उसे वैसी ही जीनी पड़ती है लेकिन उसका रिमोट हमारे ही हाथ में होता है | “ आप हमारे साथ चलिए , खुशियों को अपने तरीके से ढूँढना , ये आपकी जिंदगी है इसका रिमोट भी आपके हाथ है | उसे लगा बात तो ठीक है वहां भी मंदिर है , बच्चे है ,पास पड़ोस भी होगा ही जान पहचान में टाइम ही कितना लगता है दूसरों का साथ सभी को अच्छा लगता है  बहु की बातों से होंसला ले सुशीला साथ जाने की तैयारी में लग गई |  ****
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क्रमांक - 10
जन्म :-
15 अप्रैल 1966 को हरियाणा के जिला महेंद्रगढ़ के कनीना कस्बा में जन्म

शिक्षा :- 
पीएचडी(जारी),एम. एससी(बायो एवं आईटी), एम.ए.(हिंदी,राजनीति शास्त्र, अंग्रेजी, मास क्म्यूनिकेशन), एमसीए,एम. एड., पीजी डिप्लोमा इन कंप्यूटर, पी जी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एवं मास कम्यूनिकेशन, पी जी डिप्लोमा इन गांधियन स्टडिज, गोल्ड मेडलिस्ट पंजाब वि.वि.।

रचनाएं: -
 अब तक विभिन्न विषयों पर 30 पुस्तकें प्रकाशित। विभिन्न पत्र एवं पत्रिकाओं में कहानी, लेख, मुक्तक, क्षणिकाएं, प्रेरक प्रसंग, कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं। 
चर्चित पुस्तकों में संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ, अनोखा परिवार,आस्था, प्रेरणा, काव्यलता, मानव शरीर पर आधारित कविताएं, प्रेरणा, सहजोबाई, गुरू-शिष्य, शहीद, कष्टों की देवी, उपयोगी पेड़ पौधे, बुद्धिमता, जयनारायण,मोलडऩाथ, ज्ञानदीप, प्रेरणा, सहजोबाई, गुरू-शिष्य, शहीद स्मारिका, कष्टों की देवी, कांवड़ मेला, बाबा मोलडऩाथ कलेंडर,खाटू श्याम, प्रेरक प्रसंग एवं लघु कथाएं, शिक्षा एक गहना, आवाज,बाबा चालीसा, अनोखा धाम , बाबा सीडी चालीसा प्रमुख हैं। चार पुस्तकें हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा अनुमोदित।

व्यवसाय :- 
श्रेष्ठ शिक्षण,लेखन एवं स्वतंत्र पत्रकारिता। 
विधाएं-कविता,लघुकथा, कहानी, बाल कविताएं, लेख आदि। देश एवं विदेश की पत्र पत्रिकाओं में कविता, लेख, कहानी, लघुकथा आदि समय समय पर प्रकाशित।

सम्मान: -
हरियाणा के राज्यपाल द्वारा नारद सम्मान, हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी द्वारा कहानी लेखन में प्रथम पुरस्कार सहित चार दर्जन सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित। महेंद्रगढ़ न्यायाधीश द्वारा रजत पदक से सम्मानित। राह ग्रुप, निर्मला स्मृति पुरस्कार से सम्मानित। पंजाब विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक प्राप्त। दो दर्जन साहित्यिक सम्मान। अरुंधती वशिष्ठ अनुंसधान पीठ द्वारा देशभर से आयोजित निबंध लेखन में एक्सीलेंस अवार्ड

शोध :-
शोध प्रकाशित-अब तक तीन शोध प्रकाशित हो चुके

पता : -
मोहल्ला-मोदीका, वार्ड नंबर-01 ,कस्बा-कनीना-12302 जिला-महेंद्रगढ़ - हरियाणा

   
1. चुनाव 
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नेता गली-गली हाथ जोड़ता घूम रहा था। बस चुनाव सिर पर थे। ऐसे गिड़गिड़ा रहा था जैसे उसका सब कुछ तबाह हो गया हो, बस आखिरी अवसर बचा हो। वोटर उसको देखकर अचंभित थे। तभी एक वोटर ने जोर से कहा- नेताजी ,आज तुम गिड़गिड़ा रहे हो परंतु हम वोट दे देंगे और माना तुम जीत जाओगे तो तुम्हारे दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे और हम अपने अपने काम के लिए तुम्हारे पास ऐसे ही गिड़गिड़ाएंगे जैसे  तुम हमारे पास वोट के लिए गिड़गिड़ा रहे ह।ो परंतु दुर्भाग्य तुम जीत जाने के बाद हमें मौका नहीं देते, अब हमारा सही मौका है। चुनाव में तुम्हें हार दिलवा आएंगे। नेता की आंखों में आंसू स्पष्ट नजर आ रहे थे जो हार को इंगित कर रहे थे। नेता बार-बार गिड़गिड़ाता जा रहा था, मुझे वोट देना, मैं तुम्हारे काम आऊंगा ****


2.   संघर्षशील सफर 
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अभी रामू लंबी बीमारी से उठा था। विभिन्न अस्पतालों में जाकर के उसका इलाज करवाया गया। एक समय तो ऐसा भी आया जब रामू की बीमारी दूर नहीं हो रही थी हजारों लोगों ने मन्नते मांगी और प्रभु से विनती की कि रामू की बीमारी ठीक हो जाए। प्रभु ने उनकी सुनी। लंबा समय बीता और राम ठीक होकर आखिरकार घर आ गए। अभी चलने फिरने में कठिनाई थी। किंतु डाक्टरों ने कहा कि जरूर प्रतिदिन थोड़ी दूरी घूमते रहना ताकि जल्दी ठीक हो जाओगे। एक दिन जब 
रामू एक लाठी के सहारे धरती पर टिकाते हुये सड़क के किनारे चल रहा था तो एक तेज रफ्तार की बाइक ने उन्हें टक्कर मार दी।  सड़क पर गिर गए तुरंत अस्पताल ले गए। परंतु यह क्या पैर की हड्डी टूट गई। प्लास्टर किया गया फिर से घर आराम के लिए चारपाई पर लेटा दिया। एक तो पहले ही समस्या थी अभी दूसरी समस्या भी आ पड़ी। लंबे समय से सेवा करते करते कुछ दिनों बाद उनकी पत्नी कमली भी बीमार पड़ गई। अब तो रामू की सेवा करने वाला कोई नहीं था। कमली को भी 
बीमार देखकर रामू अधिक परेशान रहने लगा लेकिन कर भी क्या सकता था? एक दिन जब अस्पताल पहुंचा तो उनका प्लास्टर डाक्टरों ने काट दिया। धीरे-धीरे घर आया तो पत्नी को देखकर परेशान होने लगा। क्या करें पत्नी के लिए खाना बनाना, कभी पानी गर्म करके देना पड़ता था। यह क्या पानी गर्म करते-करते गर्म पानी उनके हाथ पर गिर गया और जल गया। फिर से एक समस्या उनके सामने और आ खड़ी हुई। जो भी देखता बस यही कहता कि जीवन संघर्ष ही होता है। संघर्षशील जीवन का सफर ही इंसान को ऊंचाइयों तक पहुंचाता है।
अब रामू ठीक हुआ तो उनकी पत्नी बीमार रही। संघर्ष जारी रहा। एक दिन कमली भी ठीक हो गई परंतु कभी कोई समस्या तो कभी कोई समस्या सामने आ रही थी और सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी की थी राम खूब पढ़ा लिखा लेकिन नौकरी नहीं मिलने की थी। खूब पढऩे के बाद भी रामू को नौकरी नहीं मिली। एक दिन दरवाजे पर दस्तक हुई। रामू दौड़कर गया, दरवाजा खोला पोस्टमैन खड़ा हुआ था। पोस्टमैन ने एक पत्र रामू को थमाया। पत्र को पढ़कर रामू फूला नहीं समाया। उन्हें सरकारी नौकरी मिल गई थी। आज उनके संघर्षशील जीवन में कामयाबी दस्तक दे चुकी थी। कमली और रामू एक दूसरे से लिपट रहे थे, खुशियां मना रहे थे और संघर्षशील जीवन के गुण गा रहे थे। ****

          
3. उपकार
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भयंकर आग लगी हुई थी। झोपड़ी धू धूकर जल गई। पशु बाड़े से पशुओं को किसी प्रकार निकाल दिया गया किंतु यह क्या? एक बच्चा आग में फंस गया और रोने की आवाज आ रही थी। तभी एक शेर सिंह नामक व्यक्ति आया और पानी लेकर आग में कूद गया। देखते ही देखते बच्चे को उठाकर बाहर तक दौड़ कर ले आया किंतु आग ने उसे पूरी तरह से लपेट लिया था। कपड़े जल गए परंतु वह बच्चे को
अपने हाथों में इस प्रकार उठाकर ले जा रहा था जैसे उसका अपना कोई बच्चा हो। कपड़ों में लगी आग को बुझा दिया परंतु यह क्या वो तो अधिकांश झुलस चुका था। तुरंत दोनों को बच्चे और शेर सिंह को अस्पताल पहुंचाया। डाक्टरों ने बड़ा दुख जाहिर करते हुए कहा कि इसका 80 प्रतिशत शरीर जल चुका है। अब इसका बचना नामुमकिन है किंतु सुरक्षित बच्चे की मां राक्षसों आंसुओं का सैलाब बहा रही थी और शेर सिंह के उपकार पर शत-शत नमन कर रही थी। परंतु वह बार-बार चिल्ला रही थी कि कोई शेर सिंह को बचा दे मैं अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दूंगी परंतु शेर सिंह ने एक बार आंखें खोली, बच्चे को आशीर्वाद दिया और अनंत राह पर चल दिया। आज भी उसके उपकार की कथाएं माई जा जा रही है। ****

            
 4. होली
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रीना अपने पति के आने का बड़ा इंतजार कर रही थी। उनके पति राम विदेश में नौकरी कर रहे थे। लंबे समय से मिलन नहीं हो पाया था। रीना बेसब्री से बार-बार पत्र लिखकर अपने पति को याद दिला रही थी। आखिरकार पति ने होली के पर्व पर वादा कर रखा था कि घर आएंगे। होली का पर्व आ पहुंचा रीना बेसब्री से इंतजार कर रही थी उधर से रामू जो विदेश से घर लौट रहे थे। तभी उनकी कार का दुर्घटना हो गई और उन्हें अस्पताल पहुंचा दिया गया। तभी पुलिसकर्मी दरवाजे पर पहुंचे और खटखटाहट की। रीना ने समझा कि जिसका इंतजार था वह पूरा हो गया लेकिन काश दरवाजा खोला तो दंग रह गई, पुलिस कर्मियों ने पूछा आप रीना हो? उन्होंने हां कर दिया। घबराते हुए रीना ने पूछा क्या बात है? तभी उन्होंने कहा कि तुम्हारे पति की दुर्घटना हो गई, तुरंत अस्पताल पहुंचे। रीना झटपट रोते हुए अस्पताल पहुंची देखकर पति से लिपट गई। उनके पति को काफी चोट आई किंतु कोई ज्यादा बड़ी दुर्घटना नहीं थी। होली के पर्व पर खून से सने हुए अपने पति को देखकर यह रीना ने कहा मुझे इस होली की जरूरत नहीं थी और सुबक सुबक कर रोने लगी। *****

  
5. ग्रामीण जीवन
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रमन बड़े शहर में रहता था। वह बहुत परेशान तथा दुखी रहता था। एक बार रमन के पिता रामू ने रमन को ग्रामीण क्षेत्र में भेजा। गांव में उसकी बुआ रहती थी। जहां पहुंचने पर गांव में जहां बच्चों के संग खेला, घी दूध जमकर खाया, हंसी खुशी से दिनभर बिताना, बहुत प्रसन्न हुआ, लंबे समय तक गांव से शहर नहीं आया। अखिल रमन
उनके पिता उन्हें लेने के लिए आए। सारी जानकारी हासिल की और वापस अपने घर ले गए। लेकिन यह क्या रमन की फिर से वही हालात। रमन फिर बीमार पड़ गया। समय बीतता चला गया, दवाओं से ठीक नहीं हुआ तो रामू ने रमन को फिर से ग्रामीण क्षेत्र में भेजा। फिर से वापस स्वस्थ हो गया। आखिर रमन ने पता लगा लिया कि गांव में ही असली जीवन है। ग्रामीण जीवन सबसे बेहतर है। फिर तो रमन भी
शहर को छोड़कर गांव में आ गया। आधा जीवन शहर में बिताया और आधा अब गांव में बिताया। उन्होंने बस मरते दम तक यही कहा कि ग्रामीण जीवन सर्वोत्तम जीवन होता है।***

   
6. फागुन का खुमार
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कमली रानी को कोड़े पर कोड़े मार रही थी। बेचारी रानी कुछ नहीं बोल पा रही थी। कमली की सहेलियां हंसी ठठ्ठा कर रही थी क्योंकि फागुन का खुमार चढ़ा था। यही कारण है कि लोग इसे फागुन का पर्व समझ कर कुछ नहीं कह रहे थे लेकिन कोड़ों के कारण रानी को इतनी लगी कि बेचारी खड़ी नहीं हो सकी, कुछ देर बाद पता चला कि रानी की हालत गंभीर है। तब भगदड़ मच गई तुरंत उसे अस्पताल ले जाया गया जहां डाक्टरों ने बताया कि इस को अधिक चोट लगने के कारण अस्थि पिंजर की हड्डी टूट गई है। खुशियों का पर्व गम में बदल गया।
कोड़े मारकर खुशी जताई जा रही थी लेकिन उन्हें क्या पता था किसका परिणाम इतना बुरा आएगा। इसी के कारण रानी को एक माह चारपाई पर रहना पड़ा तत्पश्चात तो यह पर्व आता तो बस एक बात मुंह से निकलती कि त्यौहार मनाएंगे लेकिन कोड़े नहीं मारेंगे, फागुन का वह खुमार आज भी रह रहकर सता रहा था।****

          
7. विद्यार्थी जीवन 
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रमन ने अपने पुत्र से कहा- बहुत कठिन समय होता है जब इंसान अपने जीवन में कष्टों को सहन कर आगे बढ़ता है। वो सुबह शाम का खाना तक भूल जाता है। उसे आराम और खाने की चिंता नहीं अपितु काम ही काम नजर आता है।
रमलू ने पूछा -ऐसा कौन सा जीवन होता है जिसमें इंसान को कोई फुर्सत नहीं होती। तपाक से रमन ने उत्तर दिया वह विद्यार्थी जीवन है।
विद्यार्थी जीवन कठिन तपस्या है। लोहे की तपती कढ़ाई में उबलते तेल में बैठने जैसी स्थिति स्थिति होती है। कभी चैन नहीं मिलता। यदि वह खरा उतरता है तो जीवन सफल और यदि खरा नहीं उतरता तो उसका जीवन बर्बाद हो जाता है। इसलिए विद्यार्थी जीवन सबसे कठिन है।  रमलू ने अपने पिता के पैर छूते हुए कहा कि मैं विद्यार्थी जीवन पर खरा उतरूंगा। रमन ने विदेश में जा रहे पुत्र को विदा किया। ****


8.भागती रेल जिंदगी
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नेता रमन अभी सभा से लौट कर आए थे कि उसे फोन पर फोन आने लगे। एक के बाद एक उसे निमंत्रण याद आ रहे थे। उन्होंने अपनी गाड़ी उठाई और विवाह शादियों में कन्यादान करने पहुंच गए। जैसे तैसे भागदौड़ कर वापस आए तभी उन्हें सूचना मिली कि उन्हें रात्रि का भोज पर जाना है। नेता ने घर आकर तुरंत कपड़े बदले और तुरंत रात्रि भोज में पहुंच गए। तभी उन्हें याद आया कि उनकी पत्नी कमली के लिए घरेलू सामान पहुंचाना था। उसने भोज को बीच में छोड़ दिया और भागदौड़ कर दुकानों पर पहुंचा। अधिकांश दुकानें बंद हो चुकी थी। कुछ सामान मिला इसको लेकर वह घर पहुंचा घर पर फिर से उसकी पत्नी ने डांट फटकार दी। नेता को फिर से फोन आया कि उनका साथी अस्पताल में भर्ती है। भागदौड़ कर नेता अस्पताल पहुंचा। जब अपने दोस्त का अस्पताल में हालचाल पूछा तभी उनकी पत्नी ने कहा कि उनको बुखार हो गया है। फिर से वह घर दौड़कर आया और कुछ ही देर में उसे भागदौड़ के चलते सिर दर्द हो गया। तभी उनका साथी राम उनसे मिलने आ गया था। नेता हालात देखकर पूछा- क्या बात है, जिंदगी का सफर तो सही चल रहा है। रमन ने तुरंत जवाब दिया कि यह कोई जिंदगी थोड़े हैं, भागती रेल जैसी मेरी जिंदगी बन गई है। इससे बेहतर है कि मैं इस दुनिया से रुखसत हो जाऊं। रमन ने कहा-ऐसा न कहो। अपने कामों पर अंकुश लगाओ। कामों को दूसरों पर बांट देंगे तभी जिंदगी सही चल पाएगी। अगले दिन से रमन ने वैसा ही किया। अलग-अलग काम अपने दोस्तों साथियों सहयोगियों को बांटना शुरू कर दिया। फिर तो उनकी जिंदगी की रेल धीमी गति से चलने लगी और वह प्रसन्न था।
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9.कटी पतंग 
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कमली की आज हालात आज कटी पतंग के समान थी। उनके पति रामू विदेशों में बड़े पद पर कार्यरत थे। गत वर्ष उसका देहांत हो गया। तत्पश्चात कमली अपना सारा होश हवास खोये बैठी थी। उसको कोई सुध ही नहीं थी। और वो अपना ख्याल भी नहीं रख पा रही थी।
समय बदलता रहा। मौसम ने अंगड़ाई ली, फागुन महीना आया। होली के रंगों में सारा शहर डूबा था। तभी इसकी सहेलियां आशा एवं शकुंत उन्हें घर से उठा लाई और उसके साथ जमकर रंग खेला। तभी दीनू आ पहुंचा, जिसकी नजरे कमली के यौवन पर थी। उसने भी रंग डाल दिया। कमली ने एक रमलू को देखा पर उसके मुख से बस इतना ही निकला कि मैं कटी पतंग के सामान हूं ,मुझे पकडऩा उचित नहीं। बस इतना सुनकर सभी लोग शांत हो गये। फिर से कमली की आंखों में आंसू आ गए। वह समझ गई कि बेचारी के साथ क्या बीत रही है? ****


10. पिता
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 पिता ने एक दिन पास बुलाकर कहा-तुम जीवन में जरूर पढऩा, एक दिन काम आएगी। परंतु हम अपनी मस्ती में खोए रहते थे, फिर भी पढ़ाई में ध्यान दिया। उस वक्त सोचते थे कि पिता है कुछ कह रहा है तो ठीक कहते होंगे। परंतु जब पढ़ लिखकर रोजगार की लाइन में लगे, तब पढ़ाई काम आई, एहसास हुआ। 
एक दिन जब नौकरी की लंबी लाइन में खड़े थे तो सभी अभ्यर्थियों के अंक चैक किये गये। मेरे ही अंक अधिक होने से मेरा चयन हो गया। फिर क्या था मारे खुशी के मैं फुला नहीं समा रहा था। अब तो बुजुर्गों की याद आने लगी। आज वो पिता स्वर्ग सिधार गये किंतु उनकी बातें रह रहकर याद आ रहा है। आज जब सफलता के मुकाम तक पहुंचे एहसास होता है कि पूर्वजों की बातें सत्य निकलती हैं। पिता को आज नहीं भुला पाते हैं। *****

11. खेत
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ताऊ ने ताई से कहा-कल मुझे जल्दी खेत में जाना है, थोड़ा खाना जल्दी बना देना। दिनरात मुझे खेत में काम करके बहुत बेहतर पैदावार लेनी है ताकि तुम्हारे लिए साड़ी, टीना के लिए स्कूल ड्रेस, मोनू की फीस भरने के बाद अपने लिए एक धोती कुर्ता लेना है। ताई ने कहा-सब प्रभु के हाथ होता है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो यह कुछ नहीं कहा जा सकता। ताऊ ने उत्तर दिया-क्यों नहीं? मुझे पूरा विश्वास है, मैं अच्छी पैदावार लेकर रहूंगा। 
ताऊ दिन रात खेत की तैयारी में जुट गया क्योंकि उसके दिल में एक जुनून था। सर्दी में नहर के पानी से सिंचाई करने में लगा रहता, बढिय़ा बीज लाकर बोये, खाद दिया और बेहतर फसल लहलहाई। 
जब ताई खेत में ताऊ का खाना लाई तो ताऊ ने कहा-देख मेरी फसल और बता, इस बार बेहतर पैदावार होगी ना?
ताई ने उत्तर दिया-सब प्रभु के हाथ है। 
....ताऊ ने बीच में ही ताई की बात काटकर कहा-क्यों नहीं? मेरा दृढ़ विश्वास अटल है। देखना मैं अपने विश्वास पर खरा उतर पाऊंगा।
ताऊ ने तो फसल की देखभाल बढ़ा दी। अब तो वह खाना पीना भूल गया और अपनी धुन में सवार रहता। 
एक दिन ताई खाना लेकर खेत में आई कि आसमान में काले काले बादल छा गये, तड़-तड़ बारिश होने लगी, देखते ही देखते ओलावृष्टि होने लगी। ताऊ रोनी सूरत से फसल निहार रहा था। ताई ने कहा-अब क्या होगा? ताऊ ने जवाब दिया-सब ठीक होगा, बेहतर पैदावार होगी।
समय बीता और ओलावृष्टि से टूटी सरसों फिर से फूटने लगी और देखते ही देखते पले से भी बेहतर फसल बन गई। फसल पकी, ताऊ खुश नजर आ रहा था। पैदावार ली, आश्चर्य हर वर्ष की बजाय इस बार अच्छी पैदावार हुई। ताऊ पैसे लेकर घर आया और ताई से का-देखो, मेरा विश्वास रंग लाया। सारा परिवार बहुत प्रसन्न हुआ। ****
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क्रमांक - 11

नाम:- राजश्री गौड़
साहित्यिक नाम:- राजश्री
पिता - श्री भीमसेन पराशर

जन्मतिथि:- 24-11-56

शिक्षा:-BA Bed.,( M A prev Hindi)

व्यवसाय:- लेखन, समाज सेवा

विधा:- कविता, गज़ल, लेख,लघुकथा लेखन,बाल-गीत व बाल-कविता

प्रकाशित पुस्तके :-

काव्य-संग्रह 'धनक', ग़ज़ल-संग्रह ' तुमको भुलाया कहाँ है '                                             सांझा काव्य-संग्रह।(10)
कविता-कोश, साहित्य-पीडिया, कागज-दिल. कॉम पर रचनाएँ

सम्मान:-
हिन्दी प्रचार प्रसार समिति द्वारा सम्मानित,1.नारी गौरव सम्मान, 2.श्रेष्ठ हिन्दी रचनाकार सम्मान, 3.प्रेम-काव्य सम्मान, 4.भारत के प्रतिभाशाली रचनाकार सम्मान, 5.साहित्य-शिरोमणि सम्मान (साहित्य की 7मुख्य श्रेणी की  24 उप-श्रेणियों में उत्कृष्ट सृजन)
सिद्धी साहित्य सम्मान
अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण मंच द्वारा सम्मानित,
जैमिनी अकादमी हिन्दी भवन पानीपत' द्वारा गणतंत्र दिवस पर 'भारत गौरव' सम्मान।
अंतरराष्ट्रीय क्राईम रिफोर्म समिति द्वारा सम्मानित।
द ग्रेट वूमैन ऑफ द ईयर - 2020.

अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण सभा की (भूतपूर्व) जिला-अध्यक्ष (सोनीपत),
अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण मंच की प्रदेशाध्यक्ष (हरियाणा प्रदेश)

पता : - मकान नं. 1131 , सैक्टर - 15 , सोनीपत - 131001 हरियाणा

1.आग का साम्राज्य

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डोर बैल बजने पर नाश्ता करती तृप्ति ने काम वाली बाई को गेट पर जा कर देखने को कहा, फिर न जाने क्यों स्वयं ही उठ खड़ी हुई। गेट पर बीस बाइस वर्षीय सुदर्शन नव युवक कांधे पर झोला लटकाये खड़ा था। तृप्ति ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा तो बोला " आंटी मैं काश्मीरी ब्राह्मण हूँ। दिल्ली शरणार्थी शिविर में रहते हैं। मैं स्टुडैंट हूँ। यदि आप कुछ मदद कर सकें तो......।" उसकी गहरी ,निरीह ,उदास आँखों में विवशता स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी। तृप्ति का कुछ क्षण पहले का सशंकित मन ममता से भर गया। उसे अपना बेटा जो लगभग इसी वय का है याद आ गया जो कुछ माह पूर्व ही पुणे जाब पर गया हुआ है।

         "आओ बेटा! बैठो।" बरामदे में कुर्सी की तरफ इशारा कर दूसरी पर स्वयं बैठ गई। काम वाली बाई को आवाज लगा लगा चाय-नाश्ता वहीं मंगा लिया, अपने व नव युवक के लिए भी। युवक के द्वारा सुन कर कि किस तरह चरमपंथियों के द्वारा फैलाई गई साम्प्रदायिक आग में काश्मीर झुलस रहा है ,तृप्ति का हृदय दृवित हो गया। अपने घर, ज़मीन व सम्पत्तियों से महरूम हो, पलायन कर, स्वयं के देश में ही शरणार्थी हो कर दयनीय जीवन बिताने के लिए विवश हैं। दहशत के माहौल में कब तक जीवन बिताते।

          तृप्ति ने समाचार-पत्रों व तकनीकी मीडिया द्वारा बहुत कुछ सुना व देखा था। पहले एक राजनीतिक पार्टी के नेता, दूरदर्शन केंद्र के निदेशक व  दहशत-गर्द को सज़ा सुनाने वाले न्यायाधीश..... एक के बाद एक को मौत के घाट उतार दिया गया।उसके बाद तो कश्मीर में साम्प्रदायिकता की आग फैलती चली गई।

         तृप्ति ने युवक को बेटे की अलमारी से कुछ कपड़े, कालेज-बैग, खाने पीने व जरूरत का कुछ सामान व यथा संभव मदद कर भेज तो दिया किन्तु एक प्रश्न जो उसके मन-मस्तिष्क पर टंगा रह गया था कि " कब तक...... आखिर कब तक देश व समाज के कथित ठेकेदार इन्सान व इन्सानियत को अपने स्वार्थ के लिए आग के बवंडर में झौंकते रहेंगे। आखिर कब तक???? ****

   


 2.काल के कोमल हाथ

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अपने प्रिय नेता को देखने जन सैलाव उमड़ पड़ा था। जनता को सिर्फ आधा घंटा ही इंतजार करना पड़ा। नेता जी सपरिवार अपने छुटभैयों  के साथ स्टेज पर उपस्थित थे। नेता जी ने अपने सद्विचारों का पिटारा खोलना आरंभ किया " आजकल हर राजनीतिक दल जातिगत राजनीति करता है। भाईयों! मुझे नफरत है ऐसी राजनीति से, मेरे लिए हिंदु-मुस्लिम, ऊंच-नीच जाति का होने से पहले वह एक इंसान है.......। जनता के बीच खड़े एक चमचे ने ताली बजा विचारों का स्वागत किया तो पूरे पंडाल में तालियों के साथ जिंदाबाद के नारे गूँज उठे।

       नेता जी स्टेज़ से उतर जनता के बीच आ गये, एक नवयुवक के कांधे पर हाथ रख  कुछ बात की , कांधे पर हाथ रखे ही मन्दिर तक गये, हाथ जोड़ प्रार्थना की।धर्म निरपेक्ष नेता जी की जय जयकार होने लगी।

 लोग प्रशंसा करते न अघाते थे---" बड़े ही नेक दिल हैं,देश और दलितों का ये ही उद्धार कर सकते हैं।" 

       चुनाव में नेता जी भारी बहुमत से जीत कर संसद में आ गए।एक दिन अपनी इकलौती पुत्री को एक नवयुवक के साथ देखा। आने पर बेटी को अपने  कक्ष में बुलाया, पास बिठा प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए युवक के बारे में पूछा। " पापा ये सुमित है।" बेटी बोली 

" कौन सुमित? " " वही जिस के साथ आप दलितों की बस्ती में मन्दिर गये थे, बड़ा इंटैलीजैंट है पापा, इसका एक बड़ी कंपनी में सलैक्शन भी हो गया है, हमें बहुत पसंद है।" ओहहहहह.....वो... ठीक है बेटा! अब जाओ अपने रूम में जाकर सो जाओ, सुबह बात करते हैं।

          अगले दिन नेता जी के बंगले पर भीड़ जमा थी। लोग चर्चा कर रहे थे। " कुछ बीमार थी के ?" " अरे कड़ै बमार थी, काल ताईं तै  ठीक ठाक थी, रात मैंये पेट में दरद उठा बतावैं अर्... जिब लग ड़ागदर आवै वा चाल बसी, ।"शोक सभा में नेता जी गर्दन झुकाए बेटी के ग़म में नम आँखों से शोक विव्हल बैठे थे।" ओहहहहह... या राम नै बी नेक इंसान के गेलां घना बुरा करा।" ****

            


3. वो शराबी 

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गाड़ी में तीन सीट वाली जगह पर चारों लड़कियाँ बैठ गई थीं। मैं ड्राईवर के साथ वाली सीट पर आगे बैठ गया था। विवाह समारोह से लौटते वक्त रात के ग्यारह बज चुके थे। हर तरफ अँधकार का साम्राज्य। ड्राईवर रास्ता भटक गया और एक अंजान वीरान सड़क का रास्ता....। थोड़ी ही देर में ड्राईवर सहित सबकी समझ में आ गया कि रास्ता अनजाना है। किन्तु अब रास्ता पूछे भी तो किससे? आगे बढ़ते जाने के सिवाय कोई चारा नहीं था।गाड़ी रोककर खड़ा होना ऐसे नितांत जंगल में ख़तरों को दावत देने जैसा था। सड़क के साथ वाले खेत से एक व्यक्ति जो वेशभूषा से किसान लग रहा था,आता दिखाई दिया। 

सभी के कहने पर गाड़ी रोक पूछा- "भैया! ये कौन सी जगह है?" 

बदले में उसने भी सवाल किया -"आप लोगों को कहां जाना है?"

"सोनीपत।" लगभग सभी एक साथ बोले। 

"ये तो तुम बहुत ही गलत रास्ते पर आ गये हो, आगे रास्ता बहुत ही ख़तरनाक है" गाड़ी के अंदर की तरफ झांकते हुए बोला- " लड़कियां भी साथ हैं।" कह कर उस भले आदमी के चेहरे पर कुछ चिंता झलक आई। किसान से रास्ता पूछ व समझ कर ड्राईवर ने गाड़ी का रुख़ मोड़ दिया। वह अंदर ही अंदर बहुत डरा हुआ ,घबराया हुआ था। लड़कियों सहित सभी को वक्त पर व सुरक्षित पहुंचाना उसकी जिम्मेदारी थी। 

            घबराहट में उसने गाड़ी की रफ्तार बहुत तेज कर दी।पहले से ही डरे-सहमे बच्चे रफ्तार कम करने के लिये चिल्लाने लगे तो ड्राईवर ने रफ्तार कुछ कम की।रात बहुत हो चुकी थी।गाड़ी सही गंतव्य पथ पर बढ़ रही थी। पीछे बैठी नेहा दी बोली " मुझे तो डर लग रहा है।" " तू ड़र मत कोई भी मुसीबत पहले मेरे पास ही आएगी मैं हूं न इधर विंड़ो के साथ।"दी की फ्रैंड विप्रा बोली। अपना डर कम करने के लिए सभी मस्ती करने लगे- "हँसते हँसते कट जाएँ रस्ते, जिंदगी यूं ही.. जिंदगी एक सफ़र है सुहाना यहां कल क्या हो..... मन्नु भाई मोटर चली पम्म पम्म पम्म....आधी रात के बाद गलियों में जब अँधेरा होता है एक आवाज आती है...चोर-चोर... चोर-चोर....कभी 

अलविदा न कहना कभी अलविदा न कहना".....मोड़ पर जैसे ही गाड़ी मोड़ी...भड़ाक्.......एक जबर्दस्त धमाके की आवाज के साथ ही सबकी चीख़ एक साथ निकली और फिर निस्तब्धता छा गई।आने जाने वाले वाहन दूर से देख कर आगे खिसक जाते।मुझे  सुध सी आई गाड़ी में कुछ सरसराहट सी महसूस हुई फिर कांपती थरथराई सी नेहा दी की मद्धिम सी आवाज  " भाई!भाई! तू ठीक तो है न?" "हां बहन मैं ठीक हूं और तू...?" मैंने कँधे के दर्द को सहन करते हुए बोला। अपने साथियों को देखा जो कुछ होश में आने लगे थे सिमरन पूरी तरह टूटे काँच की किरचियों में नहाई थी और पूजाओफ्फ..मुंह से खून बह रहा था जबड़ा हाथ में आ गया और वह हाथ मुंह पर सटाये जबड़े को जबरन चिपकाये थी। विप्रा को हमने बाहर निकालने के लिये बहुत प्रयत्न किया पर वो हिल भी नहीं रही थी। टूटी विंड़ो मे फँस गई थी। कनपटी से बेतहाशा खून बह रहा था। मेरी रूलाई फूट पड़ने को थी पर रोने का वक्त कहां था। इन सबसे छोटा होते हुए भी बडे का फ़र्ज निभाना था।

         एक आदमी ज्यों ही हमारे पास आकर  खड़ा हुआ बदबूदार भभका मेरे नथुनों में 

भर गया व मन शंका से। आस पास खेतों में काम कर रहे किसान जो दिन में अत्यधिक गर्मी के कारण रात को ही धान के खेतों में ट्यूबैल चला कर पानी दे रहे थे, आ गए। सब दूर खड़े थे। एक युवक हमारी तरफ आया तो मैंने भर्राई हुई आवाज मेंही मदद के लिए रिक्वैस्ट की।ग्रामीण आने-जाने वाले वाहनों को रोकने की कोशिश में लगे थे। बड़ी मशक्कत के बाद विंड़ो तोड़ कर विप्रा को निकाला।कनपटी से बहता लहु रुक नहीं रहा था वहअब भी बेहोश थी सिर के दाहिने हिस्से मेंबहुत चोटें आई थीं। उसका व पूजा का तुरंत हॉस्पिटल पहुंचाना  बहुत ही जरूरी था। कोई वाहन घायलों को ले जाने को तैयार नहीं था। एक गाड़ी आकर रूकीतो लोगों ने उनसे मदद के लिये कहा पर इंकार कर आगे बढ़ने लगे- "या तै इन घायलां ने अस्पताल पुंच्या दो न तै खैर नहीं सै थारी।हाथ में लाठी दीखै सै न।" वो शराबी गरज कर बोला और हाथ में लाठी लिये सड़क के बीच में खड़ा हो गया।

      मजबूरन उन्हें ले जाना पड़ा उनके साथ सिमरन को बिठा दिया। ड्राईवर न जाने कहां गायब हो गया। भीड़ में से एक बोला " तू भी उनके साथगाड़ी में बैठ जा" मैंनेकहा-" मैं अपनी बहन को छोड़ कर नहीं जाता। "ये हमारी भी बहन जैसी है ,हम पहुंचा देंगे।" वे बोले। "नहीं ये सिर्फ मेरी बहन है।" नेहा दी अभी तक डरी सहमी कांप रहीथी हम दोनों बहन भाई लिपट कर रो पड़े।कुछ संभले तो घर फोन कर डैड़ी को सब बताया व विप्रा के घर फोन कर उसके मम्मी पापा को सिविल हॉस्पिटल पहुंचने को बोला। उस शराबी ने लाठी के बल पर एक और गाड़ी रुकवाईऔर हम बहन भाई को संकेत कर बैठने को कहा गाड़ी में महिला व बच्ची को देख हमने बैठना उचित समझा।सब सिविल हॉस्पिटल पहुंच चुके थे। पूजा के पापा वहीं पर डैंटिस्ट थे तो उसका इलाजशुरू हो चुका था, विप्रा को फस्ट ऐड़ देकर दिल्ली जयपुर गोल्ड़न अस्पताल के लिये रैफ़र कर दिया गया।वह दो-तीन महीनों में ठीक होकर घर आगई। आज सब अपनी अपनी जिंदगी में खुश हैं मगर वो शराबी जो उस काली रात में, हमारी जिंदगी में संकट-मोचक बन कर आया था...कभी नहीं भूल पाता। ****

      

 4.जमीर जिन्दा है

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शर्मा जी जब भी दफ्तर में जाते डिप्टी डायरेक्टर से लेकर हैड़ क्लर्क, क्लर्क तक छोटे बड़े सब एक कतार में बैठे नजर आते। क्लर्क से बात करते तो वह हैड़ क्लर्क पर और हैड़ क्लर्क से करते तो वह डिप्टी डायरेक्टर पर टाल देता और डिप्टी डायरेक्टर के पास जाते तो साहेब बोल देते " भाई शर्मा जी मेरे पास तो अभी तुम्हारी पैंशन के कागज़ नहीं आये हैं, आयेंगे तो मैं साइन कर दुंगा। मेरी तरफ से तो कोई ढ़ील नहीं है।" वो रुआंसे हो लौट जाते।

          शर्मा जी को रिटायर हुए कई माह हो गये थे, और उतने ही विभाग के दफ्तर में चक्कर लगाते हुए, थक चुके थे। सरकारी विभाग या प्राइवेट की ही बात नहीं बल्कि पूरे समाज की है। छोटी से लेकर बड़ी इकाई तक खाल नोचने को कतार लगाये बैठे हैं। हालात से परेशान असहाय इंसान अपनी खुदी को, अपने ज़मीर को मार अपने काम निकलवाने के लिए जमीन पर ढ़ह जाता है और कुर्सी पर बैठे गिद्ध मांस नोचने को टूट पड़ते हैं ऐसे मुर्दों पर।

            जिंदगी भर कभी रिश्र्वत न लेने-देने वाले शर्मा जी ने भी आज निश्चय कर लिया था कि आज वो काम करवा कर ही रहेंगे। सीधे डिप्टी डायरेक्टर के पास ही गये " मिड्ढा साहेब! आज मुझे अपना काम पूरा चाहिए, उसके बिना आज मैं वापिस नहीं जाऊंगा।" 

मिड्ढा साहेब क्लर्क व हैडकलर्क की तरफ एक आँख दबा कर बोले " अरे चोपड़ा, अरे श्रीभगवान! आज शर्मा जी का काम पूरा करो भाई।कह रहे हैं मैं काम पूरा करवा कर ही जाऊंगा।" शर्मा जी ने आँख दबाते हुए देख लिया था फिर भी स्वयं को संयत कर कलर्क की तरफ बढ़ गये।वह बोला " शर्मा जी! क्यों दुखी हो रहे हो? कुछ जेब ढीली करो, मुफ्त में ही माल चाहते हो।" शर्मा जी का संयम जवाब दे चुका था। भृकुटी टेढ़ी हो गई। " क्यों? मुफ्त का माल कैसे हैं? सा‌ठ साल तक ईमानदारी से विभाग की सेवा की है। तुम्हें तनख़ाह  मिलती है, कोई फ्री में काम नहीं करते हो।पेट नहीं भरता है तो हाथ में कटोरा ले लो और चौराहे पर खड़े होकर भीख़ मांगो। दफ्तर वालों को शान्त, हंसमुख प्रकृति वाले शर्मा जी से ऐसी आशा नहीं थी। सब सहम से गये। विभाग व समाज में शर्मा जी का सम्मान था सो दफ्तर वाले चुप रह बगलें झांकने लगे। वो क्रोध में बोले जा रहे थे " मैं रिटायर हो चुका हूं, कुछ काम तो है नहीं, मैं भी यहीं बैठा हूं, जो भी आयेगा सब से कहुंगा कि यहां भिखमंगे बैठे हैं, लोगों! इन्हें भीख देते जाओ।" दफ्तर के दरवाज़े पर कुर्सी लेकर बैठ गये

             अंदर कुछ कानाफूसी हुई, चोपड़ा शर्मा जी के सामने करबद्ध आकर खड़ा हो गया। " शर्मा जी आपका काम पूरा हो गया है।" काम तो पहले ही पूरा था परन्तु रोक रखा था लालच में।शर्मा जी का ज़मीर जिंदा रहा वो जान और माल बचा कर चले गए। विभाग के टहने पर के गिद्ध मुंह लटकाते बैठे थे शायद कोई और ही मुर्दा फंस जाये। ****

         

5. अतिथि देवता

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मई का आखरी सप्ताह था,ज्येष्ठ मास का आग उगलता सूरज अपनी प्रख़र किरणें समेट कर जा चुका था। सुरता किसान घर के दरवाजे के बाहर चारपाई बिछा गली मैं बैठ पसीने सुखा रहा था। दरवाजे पर आगन्तुक को देख उसे भी वहीं चारपाई पर बिठा लिया। सुरता के रिश्तेदार जिस गाँव में रहते थे आगन्तुक वहीं का था। वह अंदर जा पत्नी से बोला-" भोजन बना दो , बाहर एक मेहमान आया है। एक लोटा पानी भी देदो, गर्मी का कोई ठिकाना नहीं है।" पत्नी किसनी घोर चिंता में मग्न थी बोली घर में अनाज का एक दाना भी नहीं भोजन क्या बनाऊँ जो था वो झाड़ पोंछ कर दिन में बना दिया।" " मेहमान आया है तो उसे भूखा थोड़े ही भेजेंगे भाग्यवान ! कुछ तो उपाय करो। रात के वक्त आया मेहमान बिना भोजन किये कैसे भेजूं,वो भी क्या सोचेगा।" किसनी बोली- " यहाँ तो दोपहर में ही अँधेरा हो गया था। किससे आटा उधार लाऊँ पहले लिया उधार अब तक चुकता नही हुआ।"

       ऐसा नहीं है कि इस बार फसल कम पैदा हुई किंतु खलिहान में ही तगादगीर आ पहुंचे, घर तक अनाज पहुंच ही नहीं पाया। जो बचा उसमें महीना भर ही निकल पाया, आगे क्या होगा ये तो ईश्वर ही जाने। " बच्चों को तो दाल पिला कर ही सुला दिया, थोड़ी और बची है। पर मेहमान को क्या खिलायें।" किसनी असमंजस में सिर पकड़ कर बैठ गई। सुरता बोला वो देवता के नाम पर उठावा भी तो रखा था वही......।" किसनी झिझकती सी बोली नहीं नही ये ठीक नहीं होगा,देवता नाराज हो जायेंगे ।" " किन्तु इस अतिथि देवता का क्या होगा,देवता कौन सा मुंह से माँगते हैं जब होगा उनका फिर उठा रखना।" कह कर सुरता पानी का लोटा उठा बाहर चला गया। किसनी मन ही मन देवता से क्षमा माँगती हुई छोटी सी हंडिया में रखा आटा उठा लाई अतिथि देवता का भोजन बनाने लगी। देवता से फिर से उठावा रखने का वादा करती हुई। ****


6. सुहानी साँझ

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खाँसी के कारण नींद नहीं आ रही थी, तो बिस्तर से उठ कर लीविंग रूम में चहल-कदमी करने 

लगे। महानगर में वो खुले खुले दालान, सेहन कहाँ मिलते है। फ्लैट में तो बरांड़ा, हाल -रूम, 

 ड्राईंग-रूम सबका काम ये लीविंग-रूम ही देता है। दीनानाथ जी को कुछ सुकून था तो बस यही

कि वो अपने बेटा बहु के साथ थे। आज खांसीं कुछ ज्यादा ही परेशान कर रही थी। चहल-कदमी करते करते उन्हें बेटा नितिन व बहु नीरा के कमरे से दोनों की बात करने की आवाज सुनाई दी। अपना नाम सुन कर बरबस ही उनका ध्यान उधर चला गया। नितिन नीरा को कह रहा

था ---" बाऊ जी को सुबह वृद्ध आश्रम ले के जाना है। अब सो जाओ, सुबह जल्दी उठ कर तैयार हो जाना। मैं वहीं से आफिस चला जाऊँगा।" दीनानाथ जी के मन में जैसे कुछ दरक सा गया था। सोचा बेटा-बहु के कहने पर वो अपना छोटा शहर छोड़ कर यहां क्यों चले आये ?

उन्हें अपना यहां आना ठीक नहीं लग रहा था।

         क्या इसी दिन के लिये इंसान सारी उम्र मेहनत करता है। सन्तान की इच्छानुसार े उन्हें कामयाब करने को धनोपार्जन के लिये जी तोड़ मेहनत करते करते कब जीवन की साँझ  आ घेरती है पता भी नहीं चलता। बच्चे मनचाही मंजिल वजीवन साथी पा दूर बसेरा कर लेते हैं। अकेलापन, उदासी व वृद्धावस्था की बीमारियां आ घेरती है। रिटायर्मैंट के कुछ बर्ष बाद ही पत्नी का देहावसान होने से दीनानाथ जी नितांत अकेले हो गये थे। अकेलापन दुस्सह हो गया था।

इन्हीं विचारों में खोये हुये रात बीत गई। थक कर वो बिस्तर पर लेट गये।

             नितिन बाऊ जी के लिए चाय रख कर जल्दी तैयार होने को कह खुद भी तैयार होने चला गया। बाऊ जी तैयार होकर आए तो बहु नीरा नेपाली नौकर से गाड़ी में सामान रखवा रही थी। दीनानाथ जी ने सोच लिया था कि वो उनका कुछ सामान नहीं लेंगे उनके अपने दो-चार जोड़े पुराने कपड़े ही बहुत हैं।सभी गाड़ी में बैठ चुके थे। रास्ते में पड़ने वाले मंदिर के बाहर सभी उतरने लगे तो वो भी अनमने मन से उतर गए।मन ही मन बुदबुदाय -- हुंह्ह्....मंदिर....।

एक फीकी सी मुस्कराहट उनके चेहरे पर फैल गई। थोड़ी देर में सभी फिर गाड़ी में आ बैठे।

           वृद्ध-आश्रम आ गया था। सभी उतरे, नीरा सामान उतरवाने लगी, नितिन मैनेजर के रूम की तरफ बढ़ गया। उदास मन बाऊ जी नितिन के पीछे पीछे चल पड़े। हृदय के दर्द ने बुढापे की चाल को और मंदा कर दिया था। उनके पंहुचते ही मैंनेजर ने खड़े होकर उनका स्वागत कर नमस्कार किया " जन्म दिन मुबारक हो दीनानाथ जी।" वो जब तक कुछ समझ पाते बहु व बेटे नितिन ने एक साथ आकर बाऊ जी के चरण स्पर्श किये-" जन्म दिन मुबारक हो बाऊ जी, आपकी छत्रछाया सदैव हम पर बनी रहे।" बूढ़ी आखों में जल भर आया। इस अप्रत्याशित खुशी से लड़खड़ा से गए वो गिर ही जाते यदि नितिन व नीरा स्फुर्ति से उन्हें सहारा देकर कुर्सी पर न बिठाते। 

        मैंनेजर ने पानी का गिलास थमाया। पानी पीकर कुछ राहत सी मिली। कुछ देर पहले का दुखी मन फूल सा खिल गया था। उन्हें अब सुहानी  सांझ का अहसास होने लगा था।

थोड़ी देर बाद वो अपने बेटा-बहु के साथ  मिलकर साथ लाया सामान कपड़े, शॉल, फल व बुजुर्गों की जरूरत की दवाईयां बाँट रहे थे। ****

             

7. चौकड़ी

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      घुप्प अँधेरा चहुँ ओर अपने पंख फैलाए था। समूचे गाँव को अपने स्याह पँखों से ढके,आसमान पर घिरे काले बादलों ने पौष मास की रात्री को भयानक बना दिया था। गाँव की गलियों की नीरवता को चीरती हुई ज्ञानो देवी हाथ में लालटेन लिए चल रही थी।पीछे पीछे आ रही दाई ने भी लपक कर घर में प्रवेश किया ही था कि गरज के साथ बादलों बरसना आरम्भ कर दिया।

मूसलाधार बारिश ने जनवरी की ठंड़ को अत्यधिक तीक्ष्ण बना दिया था। भीतर वाली कोठरी में तीन बेटियों की माँ कमला बेटे की आस में, प्रसव-पीड़ा से छटपटा रही थी। सास उसे ढांढ़स बंधा रही थी-- " बस बेटी इबकै और हिम्मत कर ले, एक छोरा सा हो ज्या तै फेर छुट्टी करिये बालक बनाण की।" तभी पीड़ातिरेक से कमला की चीख और आसमानी बिजली की तेज गर्जना ने गांव की अँधेरी सुनसान गलियों के माहौल को भयानक बना दिया

          बाहर दालान में कमला की जेठानी अपनी दोनों बेटियों को अगल-बगल बाहों में समेटे सोने का उपक्रम कर रही थी। अचानक बादलों को फाड़ कर तड़तड़ाती योगमाया(बिजली) जैसे पृथ्वी पर गिरी हो, उसके साथ ही कमला की लम्बी चीख के बाद माहौल जैसे शांत सा हो गया।रजनी अब भी भय से कांप रही थी। उसने अपनी दोनों बेटियों को सीने में समेट लिया।

          कमरे से दाई की फुसफुसाहट के साथ ही सास ग्यानो के रोने-चीखने की आवाजें आने लगी बूढ़ी ग्यानो अपनी छाती पीट-पीट कर रो रही थी। "हाय रे!मर ग्ये हम तै या चौत्थी और होगी, चौकड़ी बणगी।" सहसा बूढ़ी का स्वर कठोर होने लगा। रजनी ने जैसे किसी अनजाने भय से बचाने के लिये रजाई को कस कर अपनी लाड़लियों को छुपा लिया। ****

        

 8. दृश्य बदल गया

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गोधूलि का समय होने वाला था, रानो पशुओं को पानी पिलाने के लिये दरवाजे पर खड़ी सासु मां का इंतजार कर रही थी।हमेशा की तरह वो बाड़े से पशुओं को लेने गईं थी। हरिहर चाचा जिन्हें गाँव में सब हरिया कहते थे व लक्ष्मी चाची यानि गाँव भर की लिछमी चाची रानो के घर के सामने से जा रहे थे। हल्का सा घूँघट खींच उसने दोनों के पाँव छू लिये और चाचा की तरफ थोड़ी ओट कर थोड़ी उत्सुकता से पूछ लिया कि" आज साथ-साथ दोनों कहां चले।" उत्साह से भरी चाची चलती-चलती बोली- "चेतन आ रह्या सै, रोहतक तै। बस अड्डे पै उन्नै लेण खातर जावैं सैं। आण कै बात करुँगी बहु।" रानो मुस्कराती उन्हें जाते हुये देखती रही।

                थोड़ी ही देर में दोनों सामान से  लदे-फंदे  आ रहे थे, आगे-आगे चेतन गर्वीली चाल से चला आ रहा था। रानो को " भाभी नमस्ते" कह वह मुस्कराता आगे बढ़ गया। कुछ वर्ष पहले जब चेतन 

एम.बी.बी.एस करने गया था वो दृश्य उसकी आँखों के सामने घूम गया। कितना अंतर आ गया था। सीधा-सादा, शर्मीला सा किशोर वय चेतन आज एक शिक्षित गर्वीला युवक हो गया था।

                  दसवीं की परीक्षा में हरियाणा बोर्ड़ में अव्वल आने पर चेतन की चाहत पूूरी करने के लिये माता-पिता ने उसे अपनी ज़मीन बेच कर डाक्टर बनाने का निश्चय किया था। औलाद की खुशी व उन्नति ही माता पिता के लिए सर्वोपरि होती है। औलाद के लिए हो या न हो। बस अड्डे पर हरिया चाचा उसे बस में बिठाने जा रहे थे। चेतन का सारा सामान चाचा उठाने लगे तो उसने पिता के हाथ से ले सारा सामान खुद उठा लिया था। पिता गर्व से आगे आगे चल रहे थे।

                   किन्तु आज..........दृश्य बदल गया था। लगा जैसे कुछ खो गया हो। हां सचमुच खो ही तो गया था। माता पिता ने अपनी जमीन-जायदाद, पैसा व संस्कार-वान बेटा और चेतन ने शिक्षित होकर भी अपने संस्कार खो दिये थे। ****

      

 

 9. हिम्मत सिंह का दर्द 

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जब से सर्जिकल-स्ट्राईक-2 हुआ है तमाम देशवासियों की तरह मेरे मुहल्ले के लोग भी बदले व जीत की खुशी से फूले नहीं समा रहे। गली नुक्कड़ पर सभी नव-उत्साह से भरे प्रधान मंत्री जी के साहसिक कदम व सीमा के प्रहरी जाँबाजों की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रहे है। मेरे पडोस में ही रहने वाले हिम्मत सिंह हवलदार ड्युटी पर जाने को निकले तो पड़ोसियों का जमावड़ा देख दुआ-सलाम के साथ ही लगे देश की सुरक्षा सम्बंधी घटनाओं पर अपनी व्यथा उड़ेलने। 

"आर्मी और एयरफोर्स तो पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राईक कर चुकी है, हमें भी तो मौका मिलना चाहिए। हम सिर्फ बापुओं व बाबाओं को पकड़ने के लिए ही हैं।"

" साहब "ये बाबा-बापु भी पकड़ने बहुत जरूरी हैं, जो देश की आधी आबादी व संस्कृति को शहीद करने में लगे हैं।" हवलदार हिम्मत सिंह का सीना गर्व से फूल गया। ****

         

10. एक और शिकार

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 कोरोना-वायरस के चलते लॉक-डाउन हुए चार पांच दिन हो गए। सरकार को देश हित में, देश वासियों की सुरक्षा हेतु ये कदम उठाना पड़ा। बच्चे,बूढ़े, युवक युवतियां सभी न चाहते हुए भी महामारी के डर से मजबूरन घरों में कैद हो गये। सोसायटी का गार्डन, प्ले-एरिया, क्लब- हाउस, मंदिर, स्वीमिंग पूल सभी सुनसान। घरों में रह कर खाना-पीना, सोना और फिर पति-पत्नी का झगड़ना बस यही काम रह गया। लॉक-डाउन से पहले हर रोज अपने अपने ऑफिस जाना थके हुए आकर डिनर के बाद सो जाना।अगले दिन फिर वही दिनचर्या। लड़ाई झगड़े का वक्त ही कहाँ था? 

              इन्हीं विचारों में उलझे रात के ढाई बज गए किन्तु आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था।दिन में जो सो ली थी। वह बिस्तर पर उठ कर बैठ गई। उसने खिड़की से बाहर रोड पर झांका तो सोलहवीं मंजिल के अपने इस फ्लैट से देखा हाईवे पर दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था।घबरा कर उसने नज़रें सोसायटी की साइड वाली विंडो पर घुमा लीं। दांये-बांये वाली बिल्डिंगों की बत्तियां गुल थीं। लेकिन ये क्या?? सामने वाली बिल्डिंग पर नज़र पड़ते ही वो उत्सुकता से दम- साधे देखने लगी। ठीक उसके सामने वाले फ्लैट की विंडो पर कुछ हलचल सी लगी दो सिर उभरे और अगले ही पल लगा जैसे कोई भारी भरकम चीज़ नीचे के घास वाले एरिया में गिरी है या गिराई गई है। अंधेरे में उसे कुछ दिखाई नहीं दिया।

      मोबाइल में देखा तीन बज चुके थे।ओहह लगता है आज तो सारी रात जागते ही निकल जाएगी। वह लेट गई और फिर से सोने का प्रयास करने लगी। किन्तु ग्राउंड से आती आवाज सुन वह फिर से उठ गई नीचे देखने लगी। गार्डन के खम्बे पर लगी लाइट में दो आदमी खडे दिखे। " सर आप कह रहे थे कि आपकी पत्नी गिर गई है उसे उठवाना है।पर ये तो मर गई लगता है।" अरे!ये तो सोसायटी के वॉचमैन की आवाज है। वह हैरानी से सब देख रही थी, दूसरे ने क्या कहा साफ नहीं सुन सकी। " सर मैं इसको हाथ नहीं लगाऊंगा।" वॉचमैन ने दृढ़ता से कहा और वह अपने स्थान पर ही खड़ा रहा। दूसरे ने कुछ धीरे से कहा और वह स्वयं ही दोनों हाथों से खींचते हुए लिफ्ट की तरफ बढ़ने लगा। वह शंकाओं से घिरी सब देख रही थी। वह साथ वाली टेबल से पानी की बोतल उठा गटागट आधी बोतल पी गई।सोचा पति को उठा कर ये सब बताऊं। किन्तु पति की भी नींद खराब होने के डर से नहीं उठाया। अवश्य ही सुबह कोई बुरा समाचार मिलने वाला है यही सोचते सोचते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला।

      लॉक-डाउन के कारण सुबह किसी को भी बिस्तर से उठने की जल्दी नहीं थी।

" मम्मा सोसायटी में पुलिस आई है, सामने वाली बिल्डिंग में,मम्मा उठो न।" बच्चों की आवाज सुन वह उठी। उठते ही उसे रात वाली घटना याद आ गई। पर मोबाइल पर मैसेज की आवाज सुन वह मैसेज देखने लगी। सोसायटी की लेडीज़ के वट्सैप-ग्रुप पर मैसेज था " श्रुति ने खिड़की से कूद कर जान दे दी।" वह सकते में आ गई, ओह! तो वह श्रुति थी। पर 6 और 2 साल के बेटों को छोड़ कर वो जान क्यों देगी? हमेशा चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए शांत रहने वाली श्रुति जब भी प्ले एरिया में दोनों बेटों को खेलने के लिए लाती। थोड़ी देर होते ही बच्चों को बुला चल देती।बच्चे कुछ देर और खेलने की जिद करते तो वह असमंजस की स्थिति में कहती "नहीं बेटा डिनर बनाने में देर हो जायेगी तो आपकी दादी गुस्सा करेगी।" और बेचारी रुआंसी हो जबर्दस्ती बच्चों को ले जाती।

       रात के दृश्य उसके मन को उद्वेलित कर रहे थे....तो खिड़की पर वो दो सिर किसके थे, कई हाथों का कुछ भारी फैंकने जैसा आभास, न चीख़ की आवाज।कहीं पहले से बेजान देह  ही....। अगले दिन पुलिस फिर आई और चली भी गई। अधिकतर खिड़कियों से निस्पंद नजरें निहार रही थीं। टी वी पर, समाचार पत्रों में ताज़ा समाचार था---

 "मुम्बई, महाराष्ट्र में चालीस वर्षीय युवती की कोरोनावायरस से एक और मौत।" *****

        

11. टीस 

      ****


          शकीला अभी सेहन में बैठी सांझ के लिए भाजी साफ कर काट रही थी, नौ साल की महरूनिसा दौड़ती हुई आई।-"अम्मी ! क्या ये चच्ची का घर नहीं?” ज्यादा गौर न करते हुए शकीला ने कहा " हां चच्ची का ही है, क्या हुआ मेहरु बेटी ?" मेहरू हंसने लगी, "अम्मी! चच्ची अभी गांव से आई है।मैंने पूछा कि कहाँ गयी थी तो कहने लगी- "अपने घर।" बच्ची और हंस कर बताने लगी. "  मैं ने पूछा कि "ये किसका घर है?" तो चच्ची बोली तुम्हारे चच्चा का।" भोली मेहरू हंसते हुए बोली " चच्ची भी कैसी बातें करती है न।" शकीला का मन कसैला सा हो गया। दर्द का एक हल्का सा वर्क चेहरे पर फैल गया। जिसे मासूम बचपन न समझ सका। वह मन ही मन कहने लगी "जब किसी औरत को उम्र के किसी भी पड़ाव पर, किसी भी बात पर, सिर्फ़ तीन बार 'तलाक' कह देने भर से जिस घर से उसे बेदख़ल कर दिया जाये, तो वह घर उसका कैसे हो सकता है।" शकीला की टीस से बेख़बर नन्ही मेहरू मुस्कराये जा रही थी। ****

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Comments

  1. लघुकथा के लिए आपके प्रयास बहुत सराहनीय हैं, साधुवाद! शुभकामनाएँ
    सभी श्रेष्ठ रचनाएँ हैं, सभी को हार्दिक बधाई🎉🎊

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  2. जी,बहुत-बहुत शुभकामनाएं आदरणीय, सभी साहित्यकारों को भी शुभकामनाएं💐💐
    किसी कारणवश मैं ई लघुकथा संकलन में शामिल न हो सका।पर आपने पढ़ने के लिए प्रेषित की🙏🏼🙏🏼आपका आभार🙏🏼
    मैं इन सबको अवश्य पढूँगा🙏🏼

    जी स्वस्थ रहे🙏🏼
    - राकेशकुमार जैनबन्धु
    सिरसा - हरियाणा
    (WhatsApp से साभार)

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  3. बहुत ही सुंदर संकलन के लिए बधाई। मेरी रचनाएं शामिल करने के लिए आभार। आप लघुकथा विधा की समृद्ध परम्परा को बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहते हैं। पुनः बधाई एवं शुक्रिया।
    बुरा न माने तो एक बात कहना चाहूंगा कि आपको सबसे पहले कमल कपूर जी को लेना चाहिए था। वे वरिष्ठ हैं।
    - राधेश्याम भारतीय
    घरौंडा - करनाल ( हरियाणा )
    (WhatsApp से साभार )

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  4. संकलन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, सादर आभार आदरणीय बिजेंद्र जैमिनी जी का💐🙏 लघुकथा-साहित्य जगत में " जैमिनी एकादमी" व बिजेंद्र जैमिनी का अकथ व अथक प्रयास हमेशा स्मरणीय रहेगा। दुआ करते हैं कि एकादमी साहित्य जगत का ध्रुव-तारा बनकर सदैव प्रकाशवान रहे 💐🙏🙏

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  5. हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ई- लघुकथा संकलन के लिए बहुत बहुत बधाई बीजेन्द्र जैमिनी जी।रचनाकारों एवं लघुकथाओं का चुनाव बहुत सुंदर है।
    - सुदर्शन रत्नाकर
    फरीदाबाद - हरियाणा
    (WhatsApp से साभार )

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  6. अच्छा संकलन। सभी शामिल लघुकथाकारों को बधाई। आपको साधुवाद।

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