क्या ईमानदारी से कर्म किया जा सकता है ?

कर्म जीवन का आधार है । जो जीवन को दिशा प्रदान करता है । इसलिए कर्म में ईमानदारी आवश्यक है ।बिना ईमानदारी के कर्म से तो अपराध की दुनिया का जन्म होता है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
    निस्संदेह,  ईमानदारी से कार्य करने के लिए हर व्यक्ति स्वतंत्र है। हर व्यक्ति की  अपनी विचारधारा, अपनी सोच व संस्कार होते हैं और इन्ही पर निर्भर करता है कि वह काम किस तरह से करता है। यदि व्यक्ति  किसी तरह के दबाव में नहीं है,  किसी लोभ- लालच में नहीं है, किसी बहकावे में नहीं है तो उसे ईमानदारी से ही कार्य करना चाहिए। बडी विडम्बना है कि  दैनिक जीवन में हर मनुष्य दूसरों से अपेक्षा रखता है कि वह ईमानदार हो। उसे ईमानदारी भरा माहौल हर जगह मिल सके लेकिन यथार्थ में वह स्वयं ईमानदार  बनने का प्रयास नहीं करता है ।यह एक बुरी सोच है। हर व्यक्ति को दूसरे की सोच से बचना चाहिए। हर व्यक्ति चाहता है कि दूसरे का बालक  भगत सिंह या चंद्रशेखर आजाद बने और देश के लिए काम करे लेकिन अपने बच्चे के लिए वह ऐसा  नहीं चाहता हैं। हर व्यक्ति अपेक्षा रखता है कि  दूसरा व्यक्ति उसके साथ ईमानदारी से काम करे , उसकै साथ ईमानदारी का व्यवहार हो। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो ईमानदार  बनने का प्रयास करते है, ईमानदारी से सभी का कार्य  करते हैं,  वे जीवन में सुख व आत्मसंतोष  प्राप्त करते हैं।
                 हर इंसान को  ईमानदारी से कार्य करना चाहिए क्योंकि ईमानदारी ही सबसे अच्छी नीति है और कोई नीति इससे अच्छी  नहीं हो सकती है ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम ' 
दतिया - मध्य प्रदेश
जब कोई व्यक्ति बेईमानी या धोखे   जैसा कोई अपराध करता है तब लोग गुस्से से यही कहते हैं "जैसा बोओगे वैसा पाओगे" अथवा जैसी करनी वैसी भरनी " वगैरह वगैरह कई बातें मुंह पर चिपका देते हैं ! यह भी निश्चित है कि बेईमानी से किये कर्म का फल बुरा और भले कर्म का फल भला होता है..... हां! कर्म का फल मिलने में समय भले ही लगे पर मिलता अवश्य है किंतु ....
आज की परिस्थिति को देख लोगों को कहते सुनते हैं इस जमाने में सच्चाई और ईमानदारी से नहीं जिया जा सकता! यदि हमें जमाने के साथ चलना है तो थोड़ी बेईमानी का सहारा तो लेना होगा!  भ्रष्टाचार  से परहेज न कर बहती गंगा में हाथ धो मौके का फायदा तो उठाना ही होगा !आज की यही सच्चाई है किंतु... क्या यह सही है ? कदापि नहीं! 
यदि विद्यार्थी कक्षा में प्रथम श्रेणी मे पास होना चाहता है तो उसे परिश्रम करना होगा ना कि नकल कर! कठोर श्रम की आदत डालनी होगी! विषम परिस्थिति में भी दृढ़ता के साथ अपने अच्छाई को लेकर ही चलना चाहिए ! बेईमानी करके हम परिस्थिति को दोषी नहीं ठहरा सकते! 
बेईमानी से मिला सुख क्षणभंगुर है किंतु इमानदारी से मिले फल का स्वाद युगों युगों तक लोगों की जुबान पर रहता है !
और.... यही सच है! 
           - चंद्रिका व्यास
         मुंबई - महाराष्ट्र
      ईमानदारी से किया कर्म ही मानव को सम्पूर्ण सुरक्षा एवं सुकून देता है। जबकि यह भी सर्वविदित है कि सुकून न तो खरीदा जा सकता है और ना ही बेईमानी से प्राप्त किया जा सकता है। चूंकि बेईमानी से बद्दुआएं मिलती हैं और बद्दुआएं सम्पूर्ण सत्यानाश करने में सक्षम होती हैं।
       जबकि दूसरी ओर ईमानदारी भले ही ऊपरी कष्टों से परिपूर्ण दिखाई देती। परंतु भीतर ही भीतर मुक्ति के द्वार खोलने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी होती है। जिससे निश्चित ही मुक्ति प्राप्त होती है।
       मेरा निजी अनुभव ही नहीं कहता बल्कि मैंने ईमानदारों को पागल कहने वाले अनेक बेईमानों का प्राकृतिक कष्टों से बुरा हाल होते अपनी खुली आंखों से देखा भी है। इसके अलावा तहसीलदार, इंजिनियर, डाक्टर, न्यायाधीश, न्यायमित्र/अधिवक्ता, मंत्री जैसे असंख्य भ्रष्टाचारियों के जीवनचक्र को उनकी सेवानिवृत्ति के पश्चात एक-एक क्षण असहनीय भयंकर कष्टों को झेलते भी देखा है।
      जिसे देखकर भ्रष्ट से भ्रष्ट मानव भी भ्रष्टाचार से तौबा कर अपने कर्मों को ईमानदारी से करने का प्रण लेंगे। ऐसा मेरा विश्वास है और विश्वास ही भवसागर को पार करने में सहायक होता है। जिसकी शिक्षा परमपूजनीय धार्मिक ग्रंथ "भागवत गीता" से प्राप्त होती है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
शेक्सपीयर ने कहा कि "कोई भी प्रसिद्धि ईमानदारी जितनी समृद्ध नहीं होती l "उक्त पंक्तियाँ आज व्यावहारिक जगत में निरर्थक और अव्यवहारिक दिखाई देती हैं परन्तु इनकी प्रासंगिकता आज भी भौतिक समृद्धि और विकास की अंधी दौड़ में अपना अस्तित्व बनाये हुए है l
ईमानदारी एक नैतिक अवधारणा है, जिसमें मन, वचन, कर्म, प्रेम, अहिंसा और विश्वास जैसे गुणों के पालन पर जोर दिया जाता है जो हमारे संस्कारों पर अवलम्बित है l ईमानदारी हमें सिखाती है कि -
1. विभिन्न परिस्थितियों में कार्य का निष्पादन किस प्रकार करना है?
2. ज्ञान के बिना ईमानदारी सूचनाओं एवं तर्क के अभाव में चाहकर भी ईमानदारी से कार्य नहीं कर सकते l
3. आजकल देख रहें हैं, अनेकों आई ए एस, आरएस, न्यायाधीश (रेवेन्यू बोर्ड मेंबर )भ्र्ष्टाचार, रिश्वत के मामलों में क्रेप हो रहे हैं या यूँ कहूँ कि ईमानदारी के अभाव में ज्ञान खतरनाक हो जाता है l इन्होंने ईमानदारी से रहित होकर अपने ज्ञान का प्रयोग समाज में व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए किया है l
4. सामाजिक न्याय की प्राप्ति भ्र्ष्टाचार मुक्त प्रशासन के लिए शासन में ईमानदारी नितांत आवश्यक है l अतः पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व के साथ संस्कार आपके जीवन का गहना है तो निश्चित आप आज भी ईमानदारी से कार्य कर सकते हैं l
उक्त बिंदू रेखांकित करते हैं कि हम आज भी अपनी आत्मा की आवाज़ पर अपना कर्म करेंगे तो ईमानदारी ही नज़र आयेगी l
            चलते चलते ----
यदि हमारा हृदय ईमान से भरा है तो एक शत्रु क्या अनेक शत्रु हमारे समक्ष सिर झुकायेंगें l दुनियाँ हमारे कदमों में होगी l
    - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कर्म करने में जहां ईमानदारी से चूक हुई, वहीं पर वह कर्म, कुकर्म हो जाता है। कर्म तो वह तब तक ही है,जब तक ईमानदारी से किया जा रहा है। मर्यादित और सीमा में किया जा रहा है।
यहां ईमानदारी से आशय केवल आर्थिक पक्ष से नहीं है,बल्कि पारिवारिक, सामाजिक दायित्व और कर्त्तव्यों के पालन से भी है। इसमें समय पालन, पक्षपात, अनदेखी जैसे तत्व भी आ जाते हैं।
बस जरा सी ईमानदारी प्रभावित हुई तो कर्म भी प्रभावित हो जाता है। यह सत्य है कि विभिन्न परिस्थितियों में कर्म प्रभावित होता है और तब ईमानदारी का ध्यान नहीं रह जाता।
हां इतना कुछ होने पर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ईमानदारी से भी कर्म के किया जा सकता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
   मानव के भाग्य का आधार कर्म है।कर्म वही करना चाहिए जिस में ईमानदारी हो।जो मनुष्य विकट परिस्थिति में भी ईमानदारी बनाए रखता है,भगवान सदा उसी के साथ रहता है। कई बार ईमानदारी से काम करने वाले को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई बार वो हताश भी हो जाता है और खुद को कोसने लगता है कि उस के मुकाबले बेईमान उन्नति कर रहा है और वह नुकसान ही उठा रहा है। यह भी एक तरह की परीक्षा होती है। जो इस परीक्षा में खरा उतरता है वो जिंदगी सदैव सुख पाता है। इस लिए मनुष्य को ईमानदारी से कर्म करना चाहिए। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
कर्म वो कार्य हैं जिन्हे हम जीवन में करते हैं ।
कार्य कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे दैनिक कार्य
साप्ताहिक कार्य 
मासिक कार्य 
वार्षिक कार्य 
       या कभी कभार किये जाने वाले कार्य ।
कोई भी कर्म कई प्रकार से किया जा सकता है 
जैसे मन से 
बे मन से 
         और 
   बई मानी  से  या 
इमानदारी से ।
छल कपट  चोरी ठगी से किया कर्म भले ही फलीभूत जल्दी होता है किन्तु उसका ह्रास निश्चित है ।
दुसरे हम इमानदारी से भी किसी कर्म को कर सकते हैं ।
इस राह पर अनेक कठिनयियां  आती है किन्तु ऐसा कर्म और कर्ता युगों युगों तक याद किया जाता है ।।
  - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
ईमानदारी से कर्म करना मनुष्य के महानतम गुणों को दर्शाता है। ईमानदारी एक नैतिक अवधारणा है ,सामान्यता इसका तात्पर्य सत्या से होता है, किंतु विस्तृत रूप में ईमानदारी मन, वचन और कर्म से तथा प्रेम ,अहिंसा, अखंडता ,विश्वास जैसे गुणों के पालन पर बल देती है। ईमानदार व्यक्ति  आत्मविश्वास से भरा होता है तथा निष्पक्ष दृष्टिकोण रखने वाला होता है । भारतीय संस्कृति में हर परिवार मैं माता पिता अपनी संतानों को ईमानदार रहने की शिक्षा देते हैं। विद्यालयों में भी इमानदारी को ही सर्वश्रेष्ठ नीति बताने पर बल दिया जाता है। लेकिन वर्तमान में ईमानदारी के स्थान पर बेईमानी  फल फूल रही है।
इमानदारी से कर्म किया जा सकता है ,ज्ञानवान  व्यक्ति इमानदारी को अपने जीवन का परम गुण मानते हैं ॥ 
ईमानदार व्यक्ति समाज ,राष्ट्र के विकास का पक्षक्षर होता है।  मुश्किल वहां आती है जहां ईमानदारी के मार्ग में बेईमानी रोड़ा बनती है । बेईमानी इमानदारी को  कभी पनपने नहीं देती । हमारे इतिहास में अनेकों ऐसे उदाहरण है, ईमानदार लोगों की लंबी सूची से अवगत हो सकते हैं लेकिन दूसरा पक्ष बेईमानी का भी रहा है । इमानदारी सत्य ,अमरता का प्रतीक है ,जबकि बेईमानी कुछ देर फलर्ती है फिर खत्म हो जाती है । इमानदारी से काम करने वाला व्यक्ति समाज में इज्जत, सम्मान, शोहरत, नाम पाता है। ईमानदार व्यक्ति औरों के लिए प्रेरणा बन जाता है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कोरोना के कहर के बीच आज के समाचार-पत्र में एक खबर पढ़ी कि "नकली दवाई बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गयी"! खाद्य सामग्री में मिलावट के समाचार आये दिन सुनने को मिलते हैं! रिश्वतखोर भी यदा-कदा पकड़े जाते हैं! 
इस दुनिया में ऐसे गिरे हुए इन्सान भी होते हैं जो कोरोना जैसी महामारी में भी हवस पूर्ति के साधन खोज लेते हैं। मुझे तो आश्चर्य होता है कि कोरोना की वजह से जीवन की क्षणभंगुरता देखकर भी मनुष्य सत्मार्ग पर चलने का कोई प्रयास नहीं कर रहा। 
क्या ऐसे बेईमानों का जीवन ईमानदारी के कर्म करके नहीं चल सकता? 
चल तो सकता है परन्तु इन्सान की हवस उसे हिंसक जानवर से भी बदतर बना देती है। 
लेकिन जग में यदि बुरे और बुराई हैं, तो अच्छाई और ईमानदारी के भी अनेक उदाहरण मिलते हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि ईमानदारी से भी कर्म किए जा सकते हैं। 
इस देश में अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने जीवनपर्यंत ईमानदारी से कर्म किये हैं, ये मानव जाति के लिए प्रेरणास्रोत हैं। 
मेरा मानना है कि मनुष्य चाहे तो ईमानदारी से कर्म करते हुए अपने जीवन को सुचारू रूप से चला सकता हैं परन्तु मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वर्तमान में अधिकांश "वही ईमानदार हैं, जिन्हें बेईमानी करने का अवसर नहीं मिलता"। 
हाँ! अपवाद सदैव होते हैं और यही अपवाद आशा की ज्योति जलाये रखते हैं। 
मानव जाति में ईमानदारी/निष्ठा से कर्म करने की प्रवृत्ति जागृत हो, इसी आशा और प्रार्थना के साथ कहता हूँ कि......
रहता  इमानदार  जो, जग  में  पाता  नाम । 
पूंजी उसकी है  यही, पाता  यश  के  दाम।। 
पाता  यश   के  दाम, धनी वह  कहलाता है। 
आऐं   कष्ट    हजार, नहीं फिर  घबराता  है।। 
निश्छल जिसके कर्म, सत्य यह 'तरंग' कहता। 
पाकर   सबसे   मान, सुखी मानव वह रहता।।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
यदि  आपके मन में दृढ़ निश्चय हो कि हमे जीवन मे ईमानदारी से कर्म करना है तो आपको बाधाए तो आएंगी पर आप उन सबका सामना अवश्य कर लेंगे क्योंकि मन मे आपके ईमानदारी से कार्य करने की इच्छा शक्ति है।
बाधाए आएंगी जरूर
तुम उससे टकरा जाओगे
पल भर भी मन न बिखरा
तो अपने मन का कर जाओगे।
मन की राह में चलना साथी
न होना कभी मजबूर
मन की शक्ति यदि यही है
तो ईमानदारी से कार्य करना बन जायेगा दस्तूर।।
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
हाँ ! ईमानदारी से कर्म किया जा सकता है। ईमानदारी ही एक ऐसी चीज है जो लोगों का व्यक्तित्व बनाए रखता है। लेकिन आजकल जो हालात हो गए हैं ईमानदारी से काम करना मुश्किल हो गया है। कुछ गिने चुने ही लोग हैं जो ईमानदारी से काम करते हैं। कुछ लोग ईमानदारी से कर्म करना चाहते हैं लेकिन उन्हें करने नहीं दिया जाता है। दफ्तरों में काम करनेवालों को अपने बॉस के हिसाब से चलना पड़ता है। नहीं तो आपको परेशान किया जाएगा। तरह तरह का इल्जाम लगेगा। इस महंगाई के जमाने में अगर किसी की नौकरी चली जाती है तो उसे कितनी परेशानी होगी ये सोचने वाली बात है। मान लीजिए आप ईमानदारी से काम करते हैं लेकिन जब आप को किसी बेईमान से काम करवाना हो तो आपको ईमानदारी छोड़नी पड़ेगी। उस बेईमान के अनुसार चलना पड़ेगा तभी आपका काम होगा अन्यथा नहीं। फिर भी ईमानदारी तो ईमानदारी होती है। इसलिए ईमानदारी से कर्म किया जा सकता है क्योंकि जीत सदा ईमानदारी की ही होती है।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
ईमानदारी के मार्ग में परेशानी जरूर आती है फिर भी ईमानदारी से कर्म करना चाहिए। उसका परिणाम सकारात्मक ही निकलता है। बेईमानी कभी फलती नहीं जिनके साथ गलत कार्य किया जाता है बेईमानी की जाती है उनकी बद्दुआ है बेईमानी करने वाले को लगती है और वह कभी नहीं पनप सकता। देर सबेर उसको परिणाम भुगतना ही पड़ता है। ईमानदारी एक सकारात्मक गुण है। वह परिपक्व मानसिकता की निशानी है जो हमेशा ऊर्जावान एवं सत्य निष्ठ बनाए रखती है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
     हम सत्यता के आधार पर कर्म करोगे तो उसे वैसा ही फल भोगेगा यह चरित्रार्थ हैं और अनन्त समय तक खुशनुमा माहौल बना रहता हैं। आज के परिवेश में बहुत कम लोग रहते हैं, जो ईमानदारी से कर्म कर रहे हैं, अगर  अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना हैं, तो ईमानदारी से कर्म किया जा सकता हैं। एक-एक काम और एक-एक गलती ही कर्त्तव्य परायंता का बोध कराती हैं। कर्म कैसा भी हो उस परिवार के ऊपर निर्भर करता हैं, किस परिस्थितियों से गुजरना हैं, ज्ञानइंद्रियों  में विभक्त हैं, फिर प्रारंभ होती हैं कर्म इंद्रियां? कौन से रास्ते से गुजरना हैं, सूर्योदय के बाद ही पता चलता हैं और रात्रि में स्थिति स्पष्ट हो जाती हैं। कौन-कौन सा कर्म किया हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
हां इमानदारी से कर्म किया जा सकता है अगर इमानदारी से हम अपने कर्म को करते हैं तो जीवन में सफलता की ओर अग्रसर होते हैं। जिंदगी में मानवता को और संवेदनशील को बचाए रखने के लिए ईमानदारी का होना बेहद जरूरी है ।ईमानदारी ही इंसान को बेहद सफलता के पथ पर ले जाता है। बिना ईमानदारी के जीवन असफल हो जाता है विनम्रता और संवेदनशील की पहचान ईमानदारी होती है ईमानदारी से ही प्रगति पथ पर हम निरंतर प्रयासरत होते हैं जिंदगी की विपरीत परिस्थितियों में ईमानदारी ही हमारे साथ संयम से धैर्य कार्य करती है। अगर ईमानदारी से कार्य किया जाए तो धीरे-धीरे ही सफलता हमारे किस्मत में हो जाती है जिंदगी बहुत ही अनमोल है और ईमानदारी का होना हमारे कर्तव्य निष्ठा को परिपाटी होती है ।ईमानदारी से ही कर्म किया जाना चाहिए और ईमानदारी से ही आगे बढ़ने की ललक होनी चाहिए। अगर जिस व्यक्ति में ईमानदारी नहीं होती है वह इंसान आगे की ओर नहीं बढ़ सकता है तथा समाज में एक असंवेदनशील व्यक्तित्व के रूप में विकसित होता है विपरीत परिस्थितियों में ईमानदारी का होना बेहद जरूरी होता है संयम से इमानदार इंसान धीरे-धीरे हर एक बाधाओं को पार करके आगे बढ़ता है।
अतः ईमानदारी से ही कर्म किया जाना चाहिए।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है, यह सूत्र तो सार्वभौम सत्य है जिसे नकारना न कभी  संभव हो सका है न हो सकेगा। 
जब घी सीधी अंगुली से न निकले तो अंगुली टेढ़ी करना पड़ता है, इस तर्ज पर लोग काम न होने पर बेइमानी का सहारा ले लेते हैं, लेकिन खुदा गवाह है कि ऐसे लोगों के न तो मन में शांति व निश्चिंतता होती है, न उनकी सफलता के स्थायी होने की गारंटी होती है। ईमानदारी से कर्म करने वाले के मन में संतोष का भाव होना जरूरी है अन्यथा वह ईमानदारी के सुख को नहीं भोग पायेगा, तथा बेइमानी से आगे बढ़ते लोगों को देख कुंठित भी होगा। 
- सरोज जैन 
खंडवा - मध्यप्रदेश
ईमानदारी एक ऐसा गुण है जिसे हमारे जीवन में उतारने का प्रयास बचपन से ही किया जाता था । हमें सिखाया जाता है और था भी कि-
         सांच बराबर तप नहीं 
         झूठ बराबर पाप
         जाके हिरदे सांच है
         वांके हृदय आप ।
    अर्थात  सत्य और इमानदारी को तपस्या के बराबर बताया गया है तथा जो इमानदारी से अपने कर्म करते हैं उनके ह्रदय में साक्षात ईश्वर का वास होता है ।
       वर्तमान समय में इमानदारी से कर्म करने वाले बहुत कम मिलते हैं जो इमानदारी पूर्वक कार्य करना चाहते हैं उन्हें करने नहीं दिया जाता, झूठ के दलदल में फंसाया जाता है क्योंकि ऐसे लोगों की सोच ही ऐसी बन गई है कि  ईमानदारी से कुछ होना जाना नहीं है ।
        देखा जाए तो इमानदारी की उम्र बहुत लंबी होती है, इंसान चला जाता है मगर उसकी ईमानदारी यादों और उदाहरणों के रूप में सदैव जिंदा रहती है ।
        वर्तमान समय में पूर्ण इमानदारी से कर्म करने की अपेक्षा तो नहीं की जा सकती मगर लोगों को चाहिए कि "आटे में नमक मिलाएं, नमक में आटा नहीं " जहां तक संभव हो सके इमानदारी से अपना कर्म करते रहें, हो सकता है ऐसे कर्म के रास्ते में कठिनाइयां अधिक हों मगर जीत सदैव इमानदारी की ही होती है फिर "अंत भला तो सब भला ।"
             - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर  - राजस्थान 
बेशक ईमानदारी से कर्म किया जा सकता है और करना भी चाहिए ।
 गीता में भी लिखा गया है कि कर्म ही प्रधान होता है ,कर्म से हम समय को बदल सकते हैं ।
रामायण की चौपाई है ,
 कर्म प्रधान विश्व करि राखा ।
जो जस करहिं सो तस फल चाखा।
कर्म  या कर्तव्य के रास्ते मे विघ्न भी आना स्वाभाविक होता है लेकिन ईमानदारी से किये गए कार्य का परिणाम अच्छा और सम्मान योग्य होता है ।जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है और आत्मसम्मान की भावना भी विकसित होती है ।
मक्कारी या हेराफेरी से किये गए कार्य  सदैव निंदनीय होते हैं और खुद की नज़र में ही गिर जाता है बेईमानी से कार्य करने वाला व्यक्ति ।
 समय और कर्म के अलावा भाग्य भी बहुत निर्णायक होता है ।सब का समय एक बराबर नहीं रहता। जब समय खराब चल रहा हो तब भी कभी रुकना नहीं चाहिए ,कर्म करते रहना चाहिए।
 विपरीत परिस्थितियों में कर्म करने से समय भी सुधर जाता है। समय बलवान भी है ,,,एवं कर्म महान  भी है ,,,।
कर्म और समय में अंतर संबंध है, आप अच्छा कर्म करोगे भविष्य में अच्छा समय मिलेगा अच्छा नतीजा भी मिलेगा।
यह भी सत्य है कि सभी के जीवन में समय का बड़ा महत्व  है। जिसने जीवन में समय के महत्व को जान लिया उसका जीवन सफल हो गया ।
मनुष्य को समय के साथ चलना पड़ता है ।
जो समय के साथ नहीं चलते, पीछे रह जाते हैं ।
लेकिन समय के साथ चलने का मतलब कार्य करते रहने से है, रुकने से नहीं ।
हाथ पर हाथ धरकर बैठने से  कुछ नहीं  होने वाला ।
 ईमानदारी से  कर्म किया जा सकता है  इसमें कोई दो राय नही।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
"यहां किसे कहें बेइमान और किसे कहें ईमानदार, 
अवसर पाते ही  लोगों के बदल जाते हैं किरदार"
 देखा जाए आजकल हर कोई ईमानदारी की बातें करता है परन्तु ईमानदारी की राह पर कोई नहीं चलता है, 
क्योंकी हरेक का  मकसद किसी न किसी तरीके से पैसा कमाना है, लालच इंसान के अंदर कूट कूट  कर भरा है और वोही लालच हम अपने बच्चों को विरासत में दे रहे हैं
तो आईये बात करते हैं कि क्या ईमानदारी से कर्म किया जा सकता है? 
मेरा मानना है, बिना कर्म किए कुछ भी पाना संभव नही़ है लेकिन कर्म  वोही करना चाहिए जिसमें ईमानदारी हो, निष्काम  कर्म फलदायी होता है  सच कहा है, 
कर्म किए जा फल की इच्छा मत करना इंसान जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान
 देखा गया है ईमानदार व्यक्ति का भाग्य उसकेअनुसार चलता है, ईमानदारी  हमें अपने जीवन मैं बहुत आगे ले जाती है, यह एक ऐसा सिदान्त है जो हमारे जीवन को नियंत्रण करता है इससे आदमी निडर बनता है, और ईमानदारी से किया गया कर्म फलदायी होने के साथ साथ दीर्घ समय तक लाभदायक होता है, यह एक अच्छे चरित्र की निशानी है
याद रहे ईमानदारी से कर्म करने वालों को शौक चाहे पूरे न हों लेकिन नींद जरूर पूरी होती है और अन्त में वो प्रभु की शरण में चला जाता है उसे निश्चित ही मुक्ति मिलती है, 
अन्त में यही कहुंगा हालात चाहे कैसे भी हों मनुष्य को कभी भी गलत रास्ता नहीं अपनाना चाहिए, व्यक्ति को हमेशा अपने व दुसरे के प्रति ईमानदार होना चाहिए क्यो्की अपने विश्वास को पैदा करने के लिए ईमानदारी एक अच्छी नीति है, 
यही नहीं चरित्र निर्माण के मूल तत्वों में ईमानदारी को  भी   गिना जाता है, 
आजकल भारत में ही नहीं  समूची दूनिया में  भ्रष्टाचार ही फैला हुआ है इसका कारण है ईमानदारी का अभाव ही  है, 
हमें सभी को चाहिए कि हर कार्य ईमानदारी से करें, शूरू शूरू में इसे अपनाना  मुश्किल लगता है तथा कई बार नुक्सान भी झेलने पडते हैं लेकिन अन्त मे इसी की विजय होती है, 
भगवान श्री कृष्ण जी ने श्रीमदभागवत गीता में स्पष्ट कहा है कि कर्म के अनुसार ही फल मिलता है फिर क्यूं न हम ईमानदारी से कर्म करें जिससे हमारा घर परिवार मौहल्ला व देश तरक्की के रास्ते पार कर ले क्योंकी फल का चुनाव हम कभी नहीं कर सकते किन्तु कर्म का चुनाव  अवश्य हमारे हाथ में है, 
सच कहा है, 
संस्कारों से बड़ी वसीयत नहीं होती,  
ईमानदारी से वड़ी विरासत  नहीं होती। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कर्म ईमानदारी से ही किया जाता है। वर्तमान भौतिक दुनिया में शोषण कर संग्रह मानसिकता और भोग की दुनियां ईमानदारी से कर्म करने नहीं देती। इसका मूल कारण यह है कि वास्तविकता का पहचान ना होना। संग्रह सुविधा मानसिकता में लोग ईमानदारी से कर्म करने के लिए मन बनाने के लिए बाध्य तो हैं लेकिन प्रमाणित स्वरूप में देखने को समाज में नहीं मिलता। ईमानदारी से किया गया कर्म सद्गति की ओर और बेईमानी से किया गया कर्म दुर्गति की ओर ले जाता है। ईमानदारी से कर्म समझदारी के बाद किया जा सकता है बिना समझदारी से ईमानदारी से कर्म नहीं किया जा रहा है। अतः वर्तमान दुनिया में समाज के लोगों को समझकर ईमानदारी से कर्म करने की प्रकृति बनाने की समीचीन आवश्यकता है।
                        -  उर्मिला सिदार 
                     रायगढ़ - छत्तीसगढ़
कोई भी कर्म हो वह सुकर्म तब ही साबित होगा जब उसमें ईमानदारी होगी 
और कर्म की सफलता भी ईमानदारी पर टिकी है मुझे आज भी याद है  मेरे पिता जी कहा करते थे कि:- " ईमानदारी एक ऐसा मन्त्र है जिससे तुम सब सफल कर सकते हो  ईमानदार मोची भी अपनी मेहनत से ऊँचाइयाँ छू सकता है परन्तु बईमान ऑफिसर 
अपने नाम के साथ अपने परिवार का नाम भी ले डूबता है"
आज जब मैने विषय पढ़ा तो अनायास ही पिता जी याद आ गए। 
अत: ईमानदार व्यक्ति कभी हारता नहीं है।
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान


" मेरी दृष्टि में " कर्म में ईमानदारी आवश्यक है । जिससे जीवन बिना किसी हिचकी के जिया जा सकता है ।वरन् जीवन नरकं बनते देर नहीं लगती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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