आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री की स्मृति में लघुकथा उत्सव

भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा इस बार  " लघुकथा उत्सव "  में  " खेत " विषय को फेसबुक पर रखा गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के लघुकथाकारों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल  अच्छी व सार्थक लघुकथाओं के लघुकथाकारों को सम्मानित करने का फैसला लिया गया है । सम्मान प्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री के नाम पर रखा गया है । 
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री हिंदी व संस्कृत के कवि, लेखक एवं आलोचक है। जिसका जन्म 5 फ़रवरी 1916 को मैगरा, औरंगाबाद, गया, बिहार में हुआ है ।उन्होने 2010 में पद्मश्री सम्मान लेने से मना कर दिया था। इसके पूर्व 1994 में भी उन्होने पद्मश्री नहीं स्वीकार की थी ।उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया था। कविता के क्षेत्र में उन्होंने कुछ सीमित प्रयोग भी किए और सन् ४० के दशक में कई छंदबद्ध काव्य-कथाएँ लिखीं, जो 'गाथा` नामक उनके संग्रह में संकलित हैं। इसके अलावा उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की और 'राधा` जैसा सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य रचा। परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है। उन्होंने नए-नए प्रयोग किए जिससे हिंदी गीत का दायरा काफी व्यापक हुआ। वैसे, वे न तो नवगीत जैसे किसी आंदोलन से जुड़े, न ही प्रयोग के नाम पर ताल, तुक आदि से खिलवाड़ किया। छंदों पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में आती हैं कि इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊंचाई को छू पाते हैं। 1935 से 1955 के बीच 70 - 80 लघुकथाएं लिखने का जिक्र आता है । छायावाद के अंतिम स्तम्भ माने जाने वाले आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री का गुरुवार रात सात अप्रैल 2011 को मुजफ्फरपुर के निराला निकेतन में अंतिम सांस ली।
सम्मान के साथ लघुकथा :-
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खेत
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ये साल फिर फसल बर्बाद हो गयीं थी ।खेत के खेत उजड़ गये थे ।नेताजी ने मदद के नाम से छोटी सी धनराशि का चेक किसान के हाथ मे पकड़ा दिया था ।दुसरे दिन अखबार मे किसान की मदद करते नेताजी का बड़ा सा फोटो छपा था । वहीं नीचे छोटे से अक्षरो मे किसान के आत्महत्या की खबर छपी थी ।

- विवेक असरानी
नागपुर - महाराष्ट्र
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खेतों की पीड़ा   
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बहुत दिनों बाद मेरा गाँव जाना हुआ तो खेतों से मिलने का मन कर आया। एक सुबह निकल पड़ा खेतों से मिलने।
जब खेतों के पास गया तो माहौल में उदासी नजर हुई। मुझसे रहा नहीं गया और एक खेत से पूछ बैठा, "इतने उदास क्यों हो भाई?"
खेत ने रूंधे स्वर में कहा, "कभी पारिवारिक विवाद में टुकड़े हमारे होते हों।" 
"कभी विकास के नाम पर हमारा आस्तित्व समाप्त किया जाता हो, तो हम कैसे खुश रह सकते हैं भाई!"
खेत की बात सुनकर मैंने जो नजर घुमाई तो खेतों के छोटे-छोटे टुकड़े देखकर और कुछ दूर, जहाँ खेतों में फसल लहलहाती थी, वहाँ एक निर्माणाधीन फैक्ट्री देखकर मुझे खेतों की पीड़ा समझ आ गयी और मन द्रवित हो गया। 
परन्तु मैं कर ही क्या सकता था, या कुछ करने की इच्छा शक्ति ही कहाँ थी मुझमें।

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग '
देहरादून - उत्तराखण्ड
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अंकुर
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रामू अपने खेत में अनाज की बुवाई कर रहा था। उसके साथ उसका सात साल का बेटा भी था। वह बड़े ही ध्यान से सब कुछ देख रहा था। रामू ने जब देखा कि सोमू बड़े ध्यान से बुवाई का काम देख रहा है तो उसे बहुत ही हर्ष हुआ । उसने अपने बेटे से पूछा,- "सोमू क्या तुम मेरे खेत में काम करोगे?"
"पर मुझे तो कुछ आता ही नहीं है " सोमू ने बड़े ही भोलेपन से कहा। रामू ने प्यार से उसके सिर पर हाथ रख कर कहा ,- "आओ मैं तुम्हें सिखलाता हूँ।"
रामू , सोमू को खेत के दूसरी ओर ले गया। वहाँ पर उसने एक छोटे से हिस्से में मिट्टी खोदने के लिए कहा। थोड़ा सा खुद जाने पर उसे टमाटर के कुछ बीज देते हुए कहा-, "इन बीजों को थोड़े - थोड़े अंतर में इस मिट्टी में डाल दो और फिर उसे मिट्टी से ढक दो। इस बोतल का थोड़ा सा पानी भी इसमें डाल दो।" सोमू ने उनके कहे अनुसार वैसा ही किया।
सोमू ने रामू से कहा,- "पिता जी यह तो बहुत ही सरल है।" रामू ने हाँ में सिर हिला कर कहा ,- "बेटा यह तो सरल है  पर इसकी देखभाल अंकुर आने पर वैसे ही करना जैसे मैं तुम्हारी करता हूँ।"
सोमू अब अंकुर आने के बारे में सोचने लगा । उसके अंदर पितृभाव ने जन्म ले लिया था।

- आभा दवे
मुंबई - महाराष्ट्र
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 दाना -पानी
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चिड़ियों का जोड़ा पेड़ पर अपने घोंसले में दुबका बैठा  मूसलाधार बारिश थमने का इंतजार कर रहा था।
आज दाना लाने  बाहर कैसे जाएं चिड़िया चिन्तित दोनों छोटे बच्चों  हेतु विचलित हो रही थी।
चीं- चीं की शोर  माँ बेचैनी से सुन रही थी। 
हे ईश्वर ! कल बारिश ना हो,  का मन ही मन व्याकुल माँ मानों जाप कर रही थी,  ताकि अपने बच्चों के लिए दाना ला सके।
सुबह की सुहानी धूप से दिन सुहावना था।
तभी चिड़े और चिड़िया खुशी से चहचहाने लगे क्योंकि पूरी खेत में किसान का झुंड मिलकर अन्न चहुंओर छींट रहे थे ताकि गीले खेत में जल्दी से गेंहू, चना, दलहन,  सब का बीजारोपण आसानी से हो जाए। 
फिर क्या बात थी।
अब तो दाना - पानी के लिए दूर भी नहीं जाना होगा हमें।
खेत के किनारे हीं जो घना पेड़ था, जिसपर उनका घोंसला था।
हे ईश्वर! तुने हम पर बड़ी कृपा की जो घर बैठे हमें दाना- पानी दोनों मिल गया ।

- डाॅ पूनम देवा
पटना -  बिहार
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खेत
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रतन लाल बड़े शहर में गार्ड की नौकरी करता था l कोरोना काल में नौकरी छूट गई l जैसे तैसे अपने गाँव पहुंचा l जमा पूंजी उसकी खर्च होती गई l इसी उधेड़ बुन में वह अपने खेत पर पहुंचा l
उसकी नज़र एक गिलहरी पर गई l वह खेत में से एक एक दाना अपने बच्चों को खिला रही थी l जिसे देख उसके मन में विचार
कोंधा, क्यों न मैं भी इस खाली खेत का उपयोग अपने बच्चों के लिए करूँ l बस, फिर क्या था, वह बाज़ार में बीज की दुकान पर गया और नकद की फ़सल के बीज ले आया l खेत में छोटी छोटी क्यारी बना कर, उसमें उसने गोबर की खाद के साथ बीज डाल दिये l आठ से दस दिन में बीज अंकुरित हो गये l धीरे धीरे वह बढ़ने लगे l
इन्हें देख उसके मुख पर संतोष का भाव छाने लगा l टमाटर, मिर्ची, भिंडी, बेंगन लोकी, काशीफल, पालक, धनिया, आदि 
 को शहर की ओर  जाने वाली सड़क पर बेचने लगा l धीरे धीरे उसके घर में समृद्धि आने लगी l
    जिस खेत से मुँह मोड़ वह चला गया था आज वही उसका सबसे बड़ा सहारा था l
   - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
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जीवनदायिनी खेत
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      राहुल अपनी पैतृक संपत्ति को औने-पौने भाव में बेचकर मुंबई में फ्लैट खरीदकर शेखी बघारता। गांव वालों के समक्ष अपनी बड़प्पन दिखाता। कंपनी में प्राइवेट नौकरी की तनख्वाह पर इतराते हुए दोस्तों के बीच डींगें मारा करता।
कोरोना महामारी ने महानगरों में ऐसी पैर फैलाई कि लोगों के ज़मीन तले पैर खिसकने लगे। सभी को पैतृक संपत्ति खेत और गांव की याद सताने लगी थी। बड़ी-बड़ी कंपनियां और फैक्ट्रियां लॉकडाउन के वजह से बंद हो गई।
     राहुल की नौकरी भी छूट गयी। गांव की खेत जो आमदनी का जरिया था उसे महानगरीय जीवन के चकाचौंध में राहुल ने खुद बेचकर खत्म कर दिया था।
  आज उसका जीवन *धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का* बन गया था।
     खेती हमारे जीवन के लिए वरदान है--महंगे फ्लैट में रहने से पेट नहीं भरता---- विकट घड़ी में खेतों द्वारा मिला हुआ फसल ही हमारी रोजी-रोटी और जीवन यापन के लिए उपयुक्त होता है--- यह बात आज राहुल को समझ में आ रही थी पर *अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत ****
         - सुनीता रानी राठौर
          ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
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पुरखों की निशानी
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खेत का भी बंटवारा तो होना ही था।
उसमें खड़े चार पेड़ किसी एक के ही हिस्से में आ सकते थे,अब पीछे की तरफ एक ही दिशा में खड़े पेड़ों को कटवाकर मिले धन को बांटने का फ़ैसला पंचों ने सुना दिया।
"नहीं पंचों,खेत बटे तो बटे परंतु पेड़ नहीं कटेंगे। पिताजी और दादाजी के लगाए यह पेड़ कटवाना मुझे मंजूर नहीं। कितने प्यार से पाला था उन्होंने इनको।"हरीश ने स्पष्ट कह दिया।
"ठीक है फिर तुम दोनों भाई जैसा ठीक समझो करो।" कहकर पंच चल दिए।
हरीश ने, गिरीश के कंधे पर हाथ रखकर कहा, "भाई ये खेत तू ही रख,पर पुरखों की निशानी यह पेड़ मत कटवाना। इनको देखकर मुझे अपने सिर पर बुजुर्गों का हाथ महसूस होता है।" ****

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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सोने के खेत
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रामकिशोर ने अपनी पत्नी आशा से कहा-  इस बार हमारे खेत में गेहूं की फसल बहुत अच्छी हुई है।  भाग्यवान हमारे खेतों में सोना उगले है। 
 हम सभी की सारी इच्छाएं पूरी हो जाएगी तुम सब के लिए मैं बाजार से अच्छे-अच्छे कपड़े लेकर आऊंगा।     बेटे की  कॉलेज की फीस अच्छे से भर सकेंगें। किसी से कर्ज भी नहीं लेना पड़ेगा।
  जो भी तुम सामान खरीदना चाहोगी,मुझे बता दो मैं शहर से लेता आऊंगा। हरि शंकर के साथ ट्रैक्टर में अपनी सारी फसलें लादकर जा रहा हूं, शाम को तो मेरा इंतजार करना।
तुम्हारे लिए मैं शाम को चांदी की पायल लेकर आऊंगा और तुम छम छम कर कर मेरे लिए खेतों में रोटी लेकर आना। 
पत्नी ने कहा मजाक मत करो।
  तुम बस शहर से मेरे लिए एक सुंदर सी साड़ी ले आना।
रामकिशोर और हरिशंकर दोनों फसल बेचने के लिए मंडी में पहुंचते हैं। 
    फसल खरीदने के लिए कोई भी व्यापारी नहीं दिख रहे हैं।
  फसल बेचने के लिए मंडी में कम से कम 100 लोगों की कतार लगी है।
उसने एक आदमी से पूछा की भैया इतनी भीड़ क्यों है और फसल खरीदने के लिए कोई व्यापारी नहीं दिख रहा है।
उस अनजान व्यक्ति ने कहा कि भैया मैं भी किसान हूं और अपनी फसल को अब लेकर घर की ओर जा रहा हूं और तुम भी चले जाओ यहां पर यह लोग कह रहे हैं ,कि अभी सरकार हमारा गेहूं नहीं खरीदेगी। अनाज की कीमतें तय होने के बाद ही व्यापारी और सरकारी आदमी अनाज खरीदेंगे।
इतना सुनते ही रामकिशोर हाथ पैर सुन्न पड़ गए और उसने  हरिशंकर से कहा-अब क्या होगा तुम्हारी ट्रैक्टर का में किराया कैसे दूंगा ?
  ये 50 बोरे गेहूं लेकर कहां जाऊं।  इसी से मेरे घर का खर्च चलता .....।
सारी उम्मीदें थी ........।
उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया और वह सोचने लगा कि मैं अपने खेत को सोना बोलता हूं पर क्या करूं जाने कब हरि की कृपा दृष्टि होगी लेकिन अब लगता है कि सरकार की कृपा दृष्टि का इंतजार मेरे खेतों को भी करना पड़ेगा और मुझे भी....।
यह सोचते सोचते उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा जाता है और वह मूर्छित गिर पड़ता है। 

- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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गोपाल की मां विमला
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गोपाल की मां विमला आज सुबह से ही कुछ जल्दी में थी बैंक जो जाना था बेटे (गोपाल ) को रुपये भेजने हैं । आखिर आज 5 तारीख हो गया, सन्नी (पोता ) के स्कूल की फीस जमा करने की अंतिम तारीख में दो दिन ही शेष है। तैयार होकर सोची कि कौन रिक्सा करे बहुत पैसा मांगता है। पैदल ही खेत के रास्ते से चलती हूँ दस मिनट में बैंक पहुंच जाऊंगी । रास्ते में खेतों की बंजर जमीन को देखते हुए सोच रही थी कि "कितना हरा-भरा खेत रहता था। फसल से लहलहाता रहता था। मगर अब सूखी धरती!!.....।"
तभी घिसी हुई हवाई चप्पल के बीच से उसके पैर में काँटा चुभ गया और अनायास दर्द भरी आवाज उसके मुंह से "ओहss...!!"
फिर बुदबुदाती हुई विमला --"गोपाल को कितनी बार समझाया है कि जिस स्कूल में  इतना अधिक फीस लगता है वहां मत पढाओ।
माना कि मुम्बई में सब कुछ महंगा है। लेकिन  
'चादर देख के पांव फैलाना चाहिए', पर वो समझता कहाँ है। अब मैं कार्यरत नहीं रिटायर्ड हूँ । पेंशन से मैं भी क्या-क्या करूँ ?  पेंशन का आधा पैसा तो उसे ही भेज देती हूँ। बाकी जो बचता है वो तो राशन और बिजली में ही खर्च हो जाता है। मैं कुछ खरीदूं भी तो कैसे ? पता नहीं कब समझ आएगा उसे ?"
         विमला को लगा धरती माँ ने जैसे  कहा कि --"उसे कभी समझ नहीं आएगी। तुम देती रहो वो लेता रहेगा। हाँ तुम्हें जरूर समझ आएगी, जब तुम चल फिर नहीं पाओगी। और ....।"
          विमला बहुत ध्यान से उस बंजर जमीन की दरारें को देखने लगी मानो वो कराह रही है और अपनी दशा से उसका भी आगे होने वाले परिणाम दिखा रही है ।
          विमला पैर से कांटा निकाल कर वापस घर की तरफ मुड़ गई । ***
          
- पूनम झा 
कोटा - राजस्थान
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अब कहाँ  जाएं  
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"क्यों भीखू,आज मालिक के खेत में ट्रैक्टर की जगह बैल...!!?", 
  "हाँ भइया,अब हम सबको वापस अपने पीछे के दिनों में जाना पड़ेगा।" 
  "खेत जोत तो लें लेकिन पानी कहाँ से लाएं...?,
नदियां तो खुद ही जल माँग रही हैँ।पेड़-पौधे अब आक्सीजन माँगते हैं और तो और अब खेत भी उर्वरा मिट्टी माँगती है।"
"हाँ भाई, बात तो तू एकदम सही कह रहा है।गोबर का खाद तो अब गायब ही हो गया है।चारों तरफ अब इमारतें ही इमारतें हो गयी हैं और इन इमारतों में रहने वाले लोगों के कारण ही आज महँगाई आसमान छू रही है।जिस कारण न तो अब खेती-बाड़ी बचेंगे और नही खेतीहर।"
 "हाँ यार,लगता है,अब यह खेती-किसानी सिर्फ़ किताबों के पन्नों तक ही सीमित रह जाएंगे।"

     - डाॅ.क्षमा सिसोदिया
उज्जैन - मध्यप्रदेश
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पंच परमेश्वर
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"यह क्या है बबलू.. यहाँ पर मंदिर बन रहा है..?" विक्की ने पूछा।
"हाँ! वक्त का न्याय है।" बबलू ने कहा।
"अगर आप घर में से अपना हिस्सा छोड़ दें तो हम खेत में से अपना हिस्सा छोड़ देंगे।" बबलू ने विक्की से कहा था।
     लगभग अस्सी-इक्यासी साल पुराना मिट्टी का घर मिट्टी में मिल रहा था। दो भाइयों के सम्मिलात घर के आँगन में दीवाल उठे भी लगभग सत्तर-बहत्तर साल हो गए होंगे। तभी ज़मीन-ज़ायदाद भी बँटा होगा। ना जाने उस ज़माने में किस हिसाब से बँटवारा हुआ था कि बड़े भाई के हिस्से में दो बड़े-बड़े खेतों के बीचोबीच दस फीट की डगर सी भूमि छोटे भाई के हिस्से में आयी थी। जो अब चौथी पीढ़ी के युवाओं को चिढ़ाती सी लगने लगी थी। बबलू छोटे भाई का परपोता और विक्की बड़े भाई का परपोता थे..। बबलू गाँव में ही रहता था और विक्की महानगर में नौकरी करता था।
'ठीक है तुम्हें जैसा उचित लगे।' विक्की ने कहा था।
घर से मिली भूमि के बराबर खेत के पिछले हिस्से की भूमि बबलू ने विक्की को दिया। आगे से भूमि नहीं मिलने के कारण एक कसक थी विक्की के दिल में , जो आज दूर हो गयी।

- विभा रानी श्रीवास्तव
   पटना - बिहार
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खेत
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घर में सब परेशान थे।बाबू जी की तबियत जो खराब थी।दिन प्रतिदिन उनका स्वास्थ गिरता ही जा रहा था।सारे जतन कर लिए।अस्पताल में डॉक्टर्स को दिखा लिया पर बाबू जी के स्वास्थ पर कोई फर्क ही नहीं पड़ा।
         एक दिन यों ही दोपहर को माता जी के साथ बैठकर कुछ बातें हो रही थी।इतने में उन्होंने कहा "अब ना तेरे बाबू जी को घर लेके जाते हैं और गांव में ही उनकी सेवा करेंगे।" मैंने कहा अचानक ऐसा कैसे।तब उन्होंने बताया कि गांव में एक "खेत" है जिसका विवाद काफी लंबे समय से चल रहा है और मुझे लगता है उसी की कुछ पूजा करवानी पड़ेगी।यहां शहर में तो सब करके देख लिया।पहले मुझे लगा कैसी बातें कर रही हैं।लेकिन बाबू जी की हालत देखकर लगा क्या पता उसी से अच्छे हो जाएं।
      आखिर उस खेत ने बाबू जी व माता जी को शहर से गांव बुला ही लिया।

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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खेत
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“इंडिया का टिकट हो गया”प्रमेन्द्र ने खुश होते हुए कहा।
“अच्छा!कब की कराई?”प्रिती, प्रमेन्द्र की पत्नी ने पूछा।
“अगले महीने की करा लिया,गरमियों से पहले हो आएँगे नहीं तो बच्चों को वहाँ परेशानी हो जाएगी।वैसे इस बार अपने कमरें में ए सी लगवा दूँगा।”
“क्या हुआ रिया,जग्गी?कोई रिएक्शन नहीं?वाट हैप्पन?”प्रमेन्द्र ने बच्चों से पूछा।
“मुझे नहीं जाना।वहाँ अब मज़ा नहीं आता।यहाँ जैसा ही फ़ील आता है।पिछले साल एकदम मज़ा नहीं आया था।बोर हो गई थी।”
“पहले कितना अच्छा लगता था चारों तरफ़ हरे -हरे खेत,बोरिंग का ठंडा पानी और छत पर हम सब मिलकर रात में सोते थे।सुबह उठते तो उगते सूरज को देखना कितना अच्छा लगता था।क्या ज़रूरत थी खेतों को बेचकर बड़ी कोठी बनाने की?”प्रिती ने कहा।
हाँ !डैडी खेत में  दादी के साथ घुमना कितना रिफ्रैशिंग(सुकून)लगता था।दादी  को भी खेत बेचने पर सदमा लगा था इसलिए वो इतनी जल्दी हमें छोड़ कर चली गई।”जग्गी ने भी बहन के बातों का समर्थन किया।

- सविता गुप्ता
राँची - झारखंड 
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खेत में आम का महत्व 
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     यह घटना सत्यता पर आधारित हैं, जो मेरे समक्ष लघुकथा बनकर सामने आई हैं।
     एक गांव में दो भाई रहते थे, एक का नाम गोपाल दूसरे का मनोहर। पिता के आकस्मिक निधन के पश्चात दोनों पर खेती-बारी अन्य पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ सहसा आ पड़ा। 
     दोनों भाई आपस में प्रेम से रहते थे,  किन्तु दोनों की पत्नियों में कुछ समय से अनबन सी रहने लगी। अतः स्त्रियों के आपसी  झगड़े के कारण दोनों भाई अलग-अलग रहने लगे,  जमीन जायदाद आदि का समुचित बंटवारा देखते-देखते हो ही गया, लेकिन खेत की सीमांकन में आम का पेड़ आ गया, जिसमें प्रतिवर्ष मीठे-मीठे फल लगते थे। गोपाल कहता था कि यह पेड़ मेरा हैं और मनोहर मेरा इसी बात पर दोनों लड़ पड़े, घर का मामला कोर्ट कचहरी के चक्कर में हो गया, दोनों परिवारजनों में आना-जाना बन्द हो गया, यहाँ तक कि दोनों अपने-अपने पास हथियार रख एक-दूसरे को मारने की ताक में रहते। समय व्यतीत हो रहा था।
     उस गांव के मुखिया ने अपने भाई से सलाह की, उनमें से एक गोपाल से, दूसरा मनोहर से मिला, पेड़ ना छोड़ने की सलाह दी।
     एक दिन मुखिया के दोनों पुलिया पर बैठे गोपाल-मनोहर की बातें कर रहे थे- एक ने कहा कि ये कैसे भाई हैं, जो एक आम पेड़ के लिये लड़ रहे हैं। हमने कैसे दोनों भाईयों को आपस में भिड़ा दिया हैं। फिर कुटिल हंसी हंसने लगे। मनोहर शौच क्रिया से निवृत्त होकर उसी तरफ लौट रहा था, उसने इन दिनों की सारी बातें सूनी। उस समय तो वह चुपचाप घर चला गया, किन्तु उस रात न उसने कुछ खाया पिया और सोया?
     सुबह होते ही वह बड़े भाई के घर चल पड़ा। बड़ा भाई एक-दो आदमियों के साथ बाहर ही घर के आंगन में बैठा हुआ था, एक ने कहा- मनोहर भाई आ रहा हैं,  इस पर गोपाल ने तुनक कर कहा, लाओं मेरी बंदूक, परन्तु मनोहर तो खाली हाथ आ रहा हैं। गोपाल ने कहा- ऐसा नहीं हो सकता, किन्तु वास्तविकता यही थी, मनोहर आया, भाई के पैर पड़े, वही बैठ गया और कहा-भैया आम पेड़ का क्या करना हैं, गोपाल ने टोका, क्या करना, क्या मतलब। मनोहर ने कहा- पहले मेरी
बातें सुनलो, फिर जो करना हो करों, मैं आपके बच्चों का चाचा लगता हूँ ना, इसलिए यह पेड़ मैं उपहार में दे रहा हूँ, फिर वास्तविक घटनाओं से परिपूर्ण परिचित कराया। फिर क्या था, गोपाल मारे शर्म से सिर झुका लिया और दोनों फूट-फूट कर रोने लगे। जितने भी वहां बैठे थे, सब उन दोनों भाई को देखकर आश्चर्यचकित रह गये।

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर" 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
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बेरोजगारों का सहारा 
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“ हमारी शादी के बाद ससुरालवालों ने कैसी बंजर जमीन हमें बँटवारे में  दे दी . इस बाँझ जमीन में  कुछ भी पैदा नहीं होता है . 
कैसे पेट भरें ? ”  चिंतित मालती ने पति मनोज से कहा
 " हाँ – हाँ , रात – दिन मुझे भी यही चिंता खाए जा रही है कि कैसे बंजर को उपजाऊ बनाया जाए ? दूसरों के खेतों में मजदूरी करके कब तक हम गृहस्थी की गाड़ी चलाएँगे? “
  " सुनो जी !   रामदुलारी ने अपने खेत की  फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए  ‘ मृदा स्वास्थ  कार्ड ‘ के द्वारा पौषक तत्वों की कमी का पता लगाके संतुलित मात्रा में फर्टिलाइजर डाल के उर्वरक क्षमता को बढ़ाया था । अब  उनकी फसल कैसी सुंदर लहलहा रही है  ? चलो जी !  हम भी ‘  मृदा स्वास्थ कार्ड योजना ‘ का लाभ लें .”
 “ हाँ जरूर , हम भी इस तकनीकी जाँच  से बाँझ को उर्वरक में तब्दील कर दें . “
 “ अरे वाह मनोज  ! बंजर  में कैसे सुंदर  गुलाब , सूरजमुखी , गेंदा चमेली आदि के फूल खिला दिए है . देखो बेला कैसा महक रहा है ? ”
 “ हाँ , ' हरियाली है तो कल है ' की मिसाल प्रकृति की महत्ता  तरह –तरह के खुशबूदार फूलों के संग  बेला के फूलों की  उपयोगिता  भी अथाह है । “
    “ चढ़ती रात के शुरुर में सदाबहार , पल्ल्वित - पुष्पित  भीनी - भीनी खुशबू से सराबोर बेला के फूलों की खेती की बासंती बहार प्राकृतिक सौंदर्य , प्रेम ,  समर्पण के शिलालेख के गीत झूम - झूम के दीवानी बयार दुनियावालों को मालती - मनोज के प्रयासों को दीवाना बना रही थी ।हमने न जाने कितने कितने रोगियों के दर्दीले  घावों - जीभ के छालों का उपचार बेला के पत्तों के  सत्त से बड़े जतन प्यार के साथ किया था  और   मेरे  हाथों से बनी फूलों की  आयुर्वैदिक चाय    ने तो सर दर्द , मानसिक तनावों को दूर करने में  संजीवनी का काम किया था ।  “
 “ हाँ ,  तुम्हारी सोच की वजह से ही शुद्ध, पवित्र ,औषधीय  गुणों से युक्त इन   श्वेत  बेला के फूलों  का व्यापार देश - विदेशों में दिन दूना रात चौगुना  हो गया है .  “
 " हाँ जी । " चेहरे पर मुस्कान लिए  मालती 
 “ मालती तुम तो  कारीगरों के संग कैसे  फुर्ती के साथ धागों पर फूलों ,कलियों को लपटे थिरकती उंगलियाँ गजरे , ईश श्रृंगार के हार , मालाएँ , शादी , जन्मदिनों के लिए गुलदस्ते पर आकर्षक कारीगिरी करके  सबके दिलों को मोह लेती हो ।परिसर और पर्यावरण को महका के  कितने बेरोजगारों का सहारा बन बेरोजगारी और ग्लोबलवार्मिंग को अँगूठा दिखा रही हो । " 
तभी  मालती को '  गीता संग शिव ' की शादी का बेला के महकते फूलों का नामांकन पट्टी का आर्डर मुस्कुराते हुए गीता ने दिया ।

 - डॉ मंजु गुप्ता 
मुंबई - महाराष्ट्र
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बापा का खेत
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   क ई बरसों बाद आज रीमा अपने मायके जा रही थी।मन में उमंगे उछल रही थी।
    ससुराल आकर घर गृहस्थी में वे फँस कर रह गयी।उपर से शिक्षाजगत से जुड़ी थी।जीवन व्यस्तता से भरा था।
   कार शहरी इलाके से हट कर अब गांव की पगड़ंड़ी की तरफ दौड़ पड़ी।जैसे ही पैतृक गाँव पहुँची।वहाँ की हवाओं की खुशबू बदल गयी।रीमा ने कार की खिड़की खोल कर खुली हवाओं में भरपूर साँसें ली।मन आनंदित हो गया।जीवन में नया संचार आ गया।
     अब उसे बापा के साथ बीताये दिन याद आ गये तो आँखों में आँसू भर आये।बापा की सीखायी सारी बातें याद आ गयी।
    बापा का खेत आ गया था।उसने डा्ईव्हर से कार रुकवाई।बाहर निकल कर खेत की माटी को नमन किया मिट्टी को सर पर लगाया।उसे बापा का स्पर्श महसूस हुयी।चलती हवा और मिट्टी की खुशबू से उसका तन मन तरंगित हो उठा।
   उसे लगा बापा आसमान से उसे देख रहे है,आशीर्वाद दे रहे है।उसके हाथ आप ही आप आपस में जुड़ गये।

- महेश राजा
महासमुंद - छत्तीसगढ़
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जगत कल्याण
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परदादा जगत जी -हाथ में लालटेन दिखा कह रहे थे ? लालटेन के युग में बचपन बिता ।खेत बेच ,बेच मालगुज़ारी चली गई । 
अब कोई बहाना नही चलेगा ।माल बेच गुज़ारा करना पड़ रहा हैं ।गुरुजी बन जाओं ।बेटे बेटियों की बारी आई ।लालटेन की रोशनी बिजली की चकाचौंध में बदल गई ।लालटेन चुनाव चिन्ह बन रह गया ।बेटे नेता ,बेटियाँ मास्टरनी बन शहर ब्याह दी गई । जब आती पीहर तो भौजाई फबतियाँ कसतीं शहर में तो लाइट आती जाती हैं ।भौजाई कहती -लालटेन से तो हमेशा चेहरा चमकता है ।ननदरानी ,ले जाओं अपने भतीजों को शहर पढ़ाई कराने ।तीसरी पीढ़ी चली शहर की रंगीन वादियों में सरकारी अफ़सर बन शहर की ओर ।लालटेन रह गई । चुनाव चिन्हबन घर के मुंडर पर राह बताने एक लट्टू से काम चलने लगा ।चुनाव में लट्टू की जीत हुई ।चौथी पीढ़ी के नव आगंतुक गाँव आये ।देश परदेश से अपने अपने विचार व्यक्त किये अरे आजी ,बाबा ,दादा ,दादी ,मम्मी ,पापा आप को क्या लगता है ? हमारे बच्चे यहाँ रहेंगे ।सबने अपनी मंज़िल तय कर ली है !अब इस लालटेन को हाथ पकड़ा स्टेचु बनारहने दो । “जगत कल्याण “का बोर्ड लगा जन सेवा केन्द्र बना दो ।और बेटे ने कहा - ये बच्चे तो विदेश चले जायेंगे ।हम चारों शहर में आराम से रहेंगे ।जगत अपने बेटे बहु के साथ महानगर जाने को तैयार हो गया ।शहर आ देखा -प्लास्टिक प्रदूषण बचाने मुंबई में लोग नये पुराने कपड़ों की थैली ,संस्था द्वारा में भेंट स्वरूप सामान ले कर जाने आते देते कहते हैं ।यह आपके काम आयेगी ।यह कह गुलाब बुके की जगह भेंट फल देते । फुलों को एकत्रित कर खाद बनाने रखना काम बढ़ाना ही होता ।और तो और पुस्तकों के विमोचन मौली धागा बाँध फ़ुल माला से नही पुस्तक भेंट कर स्वागत करते।पीतल ताम्बे काँच के बाटल का उपयोग सावधानी से करने लगे ।ठाणे स्टेशन पर लड़की उसकी माँ खीरा खिला रही थी। बिटिया ग्राहकों हाथ धुलातीं और माँ खीरा चाकु से फ़ुल बना नमक मीर्च लना हाथ में रख देती कह्ती -हाथ से खाओ ।तभी आजी की कही बातें याद आने लगी ।हाथसे बड़ा कोई चम्चच नही हैं ।सभी अपने अपने हाथ से लें क़र खाया । और जैसे छोटी बहु ने अपने बच्चे के बाटल दूध को बच्चे के पेट भरने के बाद फेंकना चाहा फ़ौरन कहा - ये फेंको मत धरती माँ की नज़र लग जायेगी गटक लो इसे ये माँ के लिए सेहत मंद है । बहू को बच्चे ध्यान आते ही गटक लिया ।माँ ऐसी होती है । वक़्त बदलता हैं । मान्यतायें नही बदलती है ।समय चक्र हैं ।बदलाव है ,नही तो लोगों में ये बदलाव कैसे आता ? लोग पहले की तरह सुराही कुल्लड़ पेड़ों के पत्तों का उपयोग करने लगे अन्न की बर्बादी रोकने दोने में प्रसाद भोजन वितरित होने लगा । बड़े मन्दिर देवालयों कार्यकर्म स्थल पर वितरण के लोग रखना शूरु किया । भोजन आहार निरीक्षण के लिये भी नियुक्त किया जाने लगा । जो बड़े प्यार से अन्न का महत्व बता अन्न फेकने नहीं देता । ये बदलाव हर घर में हो तो बदलाव अवश्य आयेगा । बड़े बूज़र्गो को अपना वरद हस्त बनाये रखना चाहिये ।अनुरोध है कन्नी नही काटना चाहिये । आपका परिवार ही आपका समाज हैं ! आपका साथ सबका विकास सामाजिक आर्थिक राजनैतिक सभी क्षेत्रों में मिलेगा।****

- अनिता शरद झा 
मुंबई - महाराष्ट्र
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समाधान 
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               इस बार कौशल पंद्रह दिनों का अवकाश लेकर गाँव में आया था। माता-पिताजी के साथ साथ तो समय बिताएगा ही साथ ही गाँव में भी सबसे मिलेगा, यह सोच कर वह बहुत प्रसन्न था।
               नहा कर जब वह पिता के साथ भोजन करने बैठा तो उसे पिता कुछ चिंतित दिखाई दिए। पूछने पर बोले....” क्या बताऊँ बेटा? कर्ज की मार से दबे गाँव के किसान विवश होकर आत्महत्या करने में लगे हैं। फसल हो नहीं पा रही।सबके खेत सूखे जैसे बंजर हो चले हैं।सरकार का कर्ज ज्यों का त्यों है, उस पर ब्याज बढ़ता जाता है। समझ नहीं आता इनके लिए क्या करें, कैसे करें?”
            “ मैं कुछ सोचता हूँ पिताजी”... कह कर कौशल ने अपने जैसी गाँव के प्रति कुछ करने की सोच रखने वाले मित्रों से चलभाष पर बात की। सबके सहयोग दो लाख रुपए एकत्रित हुए। एक स्वयं सेवी संगठन “समाधान”की स्थापना कौशल ने अपने पंद्रह मित्रों के सहयोग से की। 
              एक सप्ताह के बाद पिता की सहायता से जरूरतमंद किसानों की सूची बनवा कर उन्हें बुलाया और खेती के लिए बीज, खाद और निश्चित राशि दी। और दो वर्ष के बाद हर किसान से संगठन के लिए हर माह सौ रुपए लौटाने का संकल्प लिया। ****

- डा.भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
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अन्तर
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कभी जाड़े की ठिठुरन के बावजूद अल्कू का झबरू कुत्ता खेत की निगरानी से पीछे न हटता था ।नींद आने पर दोनों आपस में लिपट कर सो जाते थे ।
फसल भी पककर उसका एक एक दाना सुरक्षित घर पहुंच जाता था ।
आज जब हम अपने आस पास नजर डालते हैं तो सायौ होते ही खेतों की ओर कजम बढाते नजर आते हैं ।जिनको झबरू कुत्ता के साथ उसका मालिक भी खेत से भगाने में असफल हो जा रहा है ।
यह अन्तर केवल इन जानवरों के पालतू जंगली हो जाने से ही नहीं अपितु मशीनीकरण व सरकारी मशीनरी के द्वारा इनका कागजों और गौशालाओं में  चारा खा जाने से भी आया है ।
परिणाम शत प्रतिशत दाने के स्थान पर साठ-सत्तर प्रतिशत ही घर पहुंच पा रहा ।खेत वही का वहीं । ****

 - शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश 
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खेत
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ताऊ ने ताई से कहा-कल मुझे जल्दी खेत में जाना है, थोड़ा खाना जल्दी बना देना। दिनरात मुझे खेत में काम करके बहुत बेहतर पैदावार लेनी है ताकि तुम्हारे लिए साड़ी, टीना के लिए स्कूल ड्रेस, मोनू की फीस भरने के बाद अपने लिए एक धोती कुर्ता लेना है। ताई ने कहा-सब प्रभु के हाथ होता है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो यह कुछ नहीं कहा जा सकता। ताऊ ने उत्तर दिया-क्यों नहीं? मुझे पूरा विश्वास है, मैं अच्छी पैदावार लेकर रहूंगा। 
ताऊ दिन रात खेत की तैयारी में जुट गया क्योंकि उसके दिल में एक जुनून था। सर्दी में नहर के पानी से सिंचाई करने में लगा रहता, बढिय़ा बीज लाकर बोये, खाद दिया और बेहतर फसल लहलहाई। 
जब ताई खेत में ताऊ का खाना लाई तो ताऊ ने कहा-देख मेरी फसल और बता, इस बार बेहतर पैदावार होगी ना?
ताई ने उत्तर दिया-सब प्रभु के हाथ है। 
....ताऊ ने बीच में ही ताई की बात काटकर कहा-क्यों नहीं? मेरा दृढ़ विश्वास अटल है। देखना मैं अपने विश्वास पर खरा उतर पाऊंगा।
ताऊ ने तो फसल की देखभाल बढ़ा दी। अब तो वह खाना पीना भूल गया और अपनी धुन में सवार रहता। 
एक दिन ताई खाना लेकर खेत में आई कि आसमान में काले काले बादल छा गये, तड़-तड़ बारिश होने लगी, देखते ही देखते ओलावृष्टि होने लगी। ताऊ रोनी सूरत से फसल निहार रहा था। ताई ने कहा-अब क्या होगा? ताऊ ने जवाब दिया-सब ठीक होगा, बेहतर पैदावार होगी।
समय बीता और ओलावृष्टि से टूटी सरसों फिर से फूटने लगी और देखते ही देखते पले से भी बेहतर फसल बन गई। फसल पकी, ताऊ खुश नजर आ रहा था। पैदावार ली, आश्चर्य हर वर्ष की बजाय इस बार अच्छी पैदावार हुई। ताऊ पैसे लेकर घर आया और ताई से का-देखो, मेरा विश्वास रंग लाया। सारा परिवार बहुत प्रसन्न हुआ। ****

- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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कीचड़ में कमल 
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साड़ी का खूँट पकड़कर बेटा मुझसे हठ करने लगा, “अम्मा, बताओ ना... कीचड़ में क्या खिलता है ?”
“ हट, तंग मत कर | देख ऊपर, कितने घने बादल हैं, जोर से बारिश आने वाली है । जल्दी-जल्दी इन बिचड़ों को बो कर घर जाना है मुझे | कल से घर में चूल्हा नहीं जला है ! क्या पता ! इंद्र देव आज फिर से कुपित होकर ओले बन कहर बरपायेंगे तो खाना-पीना, रहना, सब दूभर हो जाएगा ! ?जलावन सूखी बची रहेगी ... या कल की ही तरह हमें सत्तू खाकर ही दिन काटना पड़ेगा !और इधर बेचारे इन बिचड़ों को जो हाल होगा वो भगवान मालिक !”
“अम्मा, मुझे ये सब नहीं सुनना । पहले बताओ ...?”
“ तू भी सच में बड़ा जिद्दी है| बिना बताये कभी मानता कहाँ ! सुन, कीचड़ में बिचड़ों का मुस्कुराना मेरे मन को बहुत सुकून देता है | लेकिन तू क्या समझेगा ! अभी इसी तरह अबोध जो है ! ” धान के बिचड़ों को कीचड़ सने हाथों से सहलाते हुए, मैं खेत में खड़ी काले मंडराते बादल को एकटक देखने लगी |
“परंतु , अम्मा ! किताबों में तो यही लिखा है कि कीचड़ में कमल खिलता है|”
“ लिखा होगा ! लेकिन जिस किताब की बात तू कर रहा है ना, वो भाषा मुझे नहीं सुहाती ! भूखे पेट...कीचड़ में कमल नहीं, मुझे धान की बालियाँ लुभाती है |”

 - मिन्नी मिश्रा
 पटना - बिहार
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जब जागे तभी सवेरा 
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       राम दयाल अपनी पत्नी सीता को हमेशा यही कहता कि अब किसानी लाभदायक धंधा नहीं रहा। सारा दिन मिट्टी में मिट्टी होते रहो ,घर के खर्चे भी पूरे नहीं होते। साहूकार का कर्जा बढ़ता ही चला जाता है। मैं तो अपने बेटे को खूब पढ़ा लिखा कर किसी नौकरी के योग्य बनाऊंगा ।
        राजेश पढ़ने में बहुत होशियार था। वह अपने माता-पिता की माली हालत जानता था। उस ने खूब मेहनत करके बी.टैक.की डिग्री नामी कालेज से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। लेकिन----अब तो डिग्री मिले भी दो साल होने वाले हैं। भाग दौड़ करने पर भी, कहीं भी बात नहीं बन रही थी। राम दयाल बेटे की परेशानी समझते हुए मुंह से कुछ न कहते। राजेश माता-पिता की आंखों में बेबसी देख कर परेशान रहने लगा ।
        काफी सोचने के बाद राजेश ने रात को अपने दोस्त समीर से टेलीफोन पर बात की जो डिग्री लेते ही कैनेडा चला गया था। समीर ने राजेश की सारी बातें सुनी और बड़े धैर्य से समझाया कि यार,विदेश की चमक दमक के पीछे मत भाग। यहां की जिंदगी बहुत कठिन है।यहां  मनुष्य मशीन की भांति है। कब दिन, कब रात कुछ पता नहीं चलता। दूसरा माता-पिता, बहन, भाइयों को छोड़ कर अकेलेपन का दंश। मेरी मान तो जो आप की जमीन हाइवे पर है, उस पर"आर्गेनिक फूड कार्नर "खोल ले।लागत कम और आमदनी ज्यादा। पत्थरों के शहरों में रहने वाले तेरे बने आर्गेनिक फूड को खाकर अंगुलियां चाटते रह जाएँ गे।
        मैं तुम्हें एक राज़ की बात बताता हूँ। मैं जब से कैनेडा आया हूँ, एक बड़े होटल में ही काम कर रहा हूं ।फिर अपने देश में अपना काम धंधा करने में कैसी शर्म। पश्चिम की यही बढ़िया बातें है कि यहां काम को अच्छे- बुरे की कैटिगरी में नहीं बांटते ।मेरे  दोस्त मेरी बातों पर गौर करना ।
     आज बहुत दिनों बाद राजेश निश्चिंत होकर और भविष्य के सपनों में खोया  नींद के आगोश में चला गया। 
     
- कैलाश ठाकुर 
रोपड़  - पंजाब
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गिरवी मुक्त खेत
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मंगल किसान था। खेती उसके पूर्वजों से ही चली आ रही थी। उसका समय अच्छे से व्यतीत हो रहा था। तभी एक दिन पता लगा कि उसकी पत्नी राधा को गर्भाशय का कैंसर हो गया है। बड़े शहर के चक्कर लगने लगे। जमा पूंजी खत्म होने लगी। नौबत यहां तक आ गई कि उसको उसका खेत गिरवी रखना पड़ा था। लगातार अच्छा इलाज  मिलने के बाद उसकी पत्नी का कैंसर ठीक हो गया था। अब उसके सामने समस्या आयी कि गांव जाकर भी क्या करे? क्योंकि खेत तो गिरवी रखा हुआ था। उसने सोचा क्यों ना शहर में ही वह कोई काम ढूंढ ले? जिस हॉस्पिटल में वह पत्नी का इलाज करा था वह सिटी से बहुत दूर था, खाने पीने के लिए कैंटीन वगैरह कुछ भी नहीं थी। मंगल और राधा ने मिलकर पूरी आलू की सब्जी और चाय बेचना शुरू कर दिया था। दुकान बहुत अच्छे से चलने लगी थी क्योंकि उसके आसपास  और भी हॉस्पिटल थे तो उसे अच्छे ग्राहक मिलने लगे थे। उन्होंने बैंक में खाता खुलवा लिया था और पैसे बचाने शुरू कर दिए थे।एक दिन मंगल राधा से बोला-राधा हमारे पास पर्याप्त पैसा जमा हो गया है। हमें हमारा खेत बुला रहा है। वे गांव के लिये निकल पड़े थे। मंगल ने खेत को गिरवी मुक्त करा लिया था।

- प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा - राजस्थान
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खेत और संघर्ष
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राहुल अपने दादा के पास गांव आया था ! दादा जी गांव कितना सुंदर है ....!  कोई भीड़ -भाड़ , शोर- शराबा कुछ भी नहीं है ...कितनी शांति है ! अब से मैं गांव में ही आपके साथ रहूंगा !
दादाजी ने हंसकर कहा जरूर !अभी अपने खेत तो चल कर देख लो .... !
 राहुल दादा जी को पसीने से तरबतर देख कहता है ...दादा जी आपको हल चलाने की क्या जरूरत है ?  इतने थक गए हैं पसीना पोंछ लीजिए ..... मैं अभी आपके लिए पानी लाया ....
पानी पीते हुए दादाजी ने राहुल के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ..... बेटा यह खेत मेरे दादा परदादा के समय से अपने पास है! 
तुम अपने दादा से कितना प्यार करते हो.... है ना! 
इसी तरह मैं भी इन खेतों से प्यार करता हूं! इनके आंचल में ही पला बढ़ा हूं! ये खेत ही मेरे माता-पिता हैं.....  ठंडी छाँव दे मुझे हर सुख देते हैं!  तो -- राहुल ने भोलेपन से कहा! 
दादाजी ने हसते हुए कहा तो मुझे भी तो अपने माता- पिता की सेवा करनी चाहिए  !
मेरे माता-पिता ने सदा संघर्ष  का पाठ पढा़या है!  संघर्षों से जूझना मैने इन्हीं खेतों से सीखा है !
किसान के श्रम से आए पसीने से गीली होती मट्टी पर बोये हुए बीज जब अंकुरित हो बाहर आते हैं तो ऐसा लगता है मानो अंगूठा उठा हमें कह रहे हो तुम्हारा संघर्ष सफल रहा अब मेरी बारी है ! 
 धूप , बारिश,  ठंड , आंधी तूफान से लड़ते हुए खूबसूरत बालियों का रूप ले अपनी कोमल डालियों को लचकाती हुई आंधी तूफान से संघर्ष कर दृढ़ता और पूर्ण विश्वास के साथ खड़ी रहती है। 
तुम कहते हो न कि धरती हमारी माता है... 
हां दादाजी! 
तो, बच्चों के लिए मां की ममता जीवन में आये हर संघर्षो का सामना करती है और यही संघर्ष हमें सिखाती है !
मैं समझ गया दादा जी
क्या? 
जीवन ही संघर्ष है और संघर्ष ही जीवन है....! 

               - चंद्रिका व्यास
              मुंबई - महाराष्ट्र
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Comments

  1. भारतीय लघु कथा विकास मंच में अपनी लघु कथा कैसे भेजी जा सकती है,,, कृपया🙏 बताएं,,,, महेश प्रसाद शर्मा प्राथमिक शिक्षक पी एस दहलवाड़ा वि खं बाड़ी जिला रायसेन म. प्र.व्हाट्सएप नंबर 8965843292

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    1. आपके WhatsApp पर लिकं भेजा गया है ।

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