क्या झूठ की कोई सीमा होती है ?

कहते हैं कि झूठ बोलना पाप है । फिर भी कुछ तो झूठ बेवजह बोलते है । जिस का कोई सिर - पैर नहीं होता है । ऐसे लोगों के झूठ बोलने की सीमा नहीं होती है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
संसार में कुछ असीम है तो वह है परमात्मा। इसके अतिरिक्त हर संज्ञा की सीमा होती है।इस सीमा से पार जाने को ही अति कहते हैं। जिसके लिए कबीर दास ने कहा है - अति का भला न बोलना,अति की भली न चूप/अति का भला न बरसना,अति की भली न धूप।तो भला झूठ इससे कैसे बच सकता है? उसकी भी सीमा होती है। फेंकू,पप्पू,गप्पू, गप्पी जैसी उपाधियां ऐसे ही लोगों के लिए प्रयोग की जाती है। वैसे झूठ के संबंध में एक बात और प्रचलित है, यदि एक ही झूठ बार बार बोला जाए तो सच लगने लगता है। राजनीति में यही होता है,झूठ को सच का रुप ले लिया जाता है।इसका परिणाम भी हमने अपने देखा है,की उदाहरण है जिनके झूठ की पताका राज करती थी,जब झूठ की सीमा पार हुई,गिर पड़े औंधे मुंह और फिर गुमनामी के अंधेरे में चले गये।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
झूठ बोलने की कोई सीमा नहीं होती है। एक सत्य को छुपाने के लिए इंसान को कई झूठ बोलने पड़ते हैं और बाद में वह झूठ पकड़ा भी जाता है। झूठ एक असत्य व्यंग के रूप में दिया गया एक प्रकार का धोखा है जो विशेष रूप से किसी को धोखा देने की मंशा से खोला जाता है और प्रायः जिसका उद्देश्य होता है कि किसी राज या प्रतिष्ठा को बरकरार रखना। किसी की भावनाओं की रक्षा करना या सजा या किसी के द्वारा दिए गए कार्य की प्रतिक्रिया से बचना झूठ बोलने का तात्पर्य कुछ ऐसे करने से होता है जो व्यक्ति जानता है कि यह गलत है या जिसका सत्यता पर व्यक्ति ईमानदारी से विश्वास नही करता और इस इरादे कहा जाता हैं कि व्यक्ति उसे सत्य मानेगा। एक झूठा व्यक्ति जो झूठ बोल रहा है। जरूरत नहीं होने पर भी वह झूठ बोल रहा है। झूठ बोलने को मौखिक या लिखित संचार में आमतौर पर धोखे को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।धोखाधड़ी के अन्य रूप जैसे जालसाजी को आमतौर पर झूठ नहीं माना जाता है कि इसमें अंतर्निहित आशय वही हो सकता है। हालांकि एक सच्चे बयान को भी धोखे देने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस स्थिति में झूठ माने जाने वाले किसी भी व्यक्तिगत बयान की सत्यता के बजाय इसमें एक समग्र रूप से बेईमान होने का इरादा होता है। गंभीर झूठ जैसे झूठी गवाही धोखा घड़ी मानहानि को कानून द्वारा सजा योग्य माना जाता है। कहते हैं कि झूठ के पांव नहीं होते और झूठ छुपता जरूर है मगर कुछ समय के लिए झूठ कितना ही इस बात पर उसके छुपाने के लिए निर्भरता होती है क्योंकि कुछ गलती छुपाने के लिए झूठ बोला जाना तो झूठ छुप सकता है लेकिन जब किसी इंसान को धोखा देने के लिए झूठ बोला जाता है तो वह ज्यादा समय तक नहीं छुप सकता। कहा जाता है कि झूठ की आयु ज्यादा नहीं होती है लेकिन लोग सच छुपाने के बहाने बनाकर झूठ पर झूठ बोलते हैं लेकिन असली आनंद तो तब आता है जब उस इंसान को पता चल जाता है जिसने झूठ बोला जा रहा है तथा वह इंसान बिना किसी बातचीत के दूसरे इंसान का झूठ जानने के बाद भी उसके झूठ बोलने की सीमा देखता है। बहाना बनाकर झूठ बोलने वाला व्यक्ति यह समझता है कि हम जिसे झूठ बोल रहा हैं। वह नादान है वह बेवकूफ है लेकिन जब दूसरे व्यक्ति को सच पता लगने लगता है और वह झूठ बोलने वाले व्यक्ति की क्षमता देखता है तो झूठ बोलने वाले व्यक्ति का मान सम्मान धीरे-धीरे नष्ट होने लगता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
झूठ की कोई सीमा नहीं होती। झूठ बोलने वाले असीमित झूठ बोलते हैं। और सबसे बड़ी बात ये है कि लोग उनकी बातों में आ भी जाते हैं। कुछ लोग झूठ बोलने में इतने माहिर होते हैं कि आपको लगेगा ही नहीं कि ये आदमी झूठ बोल रहा है। पर झूठ कभी नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि एक झूठ को छिपाने के लिए या उसे सत्य प्रमाणित करने के लिये झूठ पर झूठ बोलते रहना पड़ता है। यही झूठ उस व्यक्ति की आदत बन जाती है और कोई उस पर विश्वास नहीं करता है। झूठ बोलना मतलब अपने आप को ही धोखा देना होता है। एक जगह झूठ बोलने की छूट है। अगर किसी की जान जाती हो। अगर वहाँ आपके एक झूठ बोलने से किसी व्यक्ति की जान बच जाती हो। तो वहाँ आराम से झूठ बोल जा सकता है। यहाँ झूठ की कोई सीमा नहीं रहती है।
       इस दुनिया का सबसे फालतू काम है झूठ बोलना। इस लिए इस झूठ को एक सीमा में बांधकर कर बन्द कर देना चाहिए।
- दिनेश चन्द्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
लाग- लपेट से युक्त असत्य वचन झूठ है जो कि छल- कपट के आवरण से ढका होता है। इसकी लंबी उम्र नहीं होती। एक सीमा होती है; जब गंभीर झूठ का पता लगता है तो उसकी खोजबीन होती है और फिर वह कानून द्वारा सजा भी पाता है।
       शातिर, अनैतिक लोगों को एक सच को छिपाने के लिए कभी-कभी 100 झूठ बोलने पड़ते हैं; बहुत मशक्कत करनी पड़ती है पर सच उजागर होने पर अविश्वसनीयता का प्रतीक वह आदमी बदनामी और उपहास का पात्र ही  बनता है अतः झूठ के पैर लंबे नहीं होते। झूठ उजागरता की सीमारेखा में आबद्ध रहता है।
 - डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
     "झूठ बोले..... कांटे, काले  ..... से  मत दरियों" यह गाना आज भी मन मस्तिष्क के सरोवर में खुशियों से झूम रहा हैं। अधिकांश जनों को देखिये, देखते-देखते अपने झूठ के मायाजाल में फंसा कर वशीभूत कर देते हैं, सामने वाला समझ ही नहीं पाता, वर्तमान परिदृश्य में वे वर्चस्ववादी बन कर दिखाने का प्रयास करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं? यही नैतिकतावादी हैं। अगर माता सुशील संस्कारों की होगी तो नवजात शिशु को जन्म के पूर्व ही व्यवहारिक ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। जिस तरह से अभिमन्यु एक उदाहरण हैं।  परन्तु झूठ की भी एक सीमा होनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई दुष्परिणाम, दूसरों को सामने नहीं आयें और आत्म ग्लानि से प्रभावित नहीं हो सकें।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
जी झूठ की कोई सीमा नहीं होती। झूठ का दायरा विस्तृत होता है । सत्या  के लिए कम शब्दों की जरूरत पड़ती है, लेकिन झूठ की व्याख्या का दायरा बढ़ता ही जाता है ।
 कहा भी गया है एक झूठ छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं। झूठ एक ऐसा असत्य बयान है जो किसी को धोखा देने की मंशा से बोल जाता है या फिर जिसका उद्देश्य किसी रहस्य को या प्रतिष्ठा को बरकरार रखना इसके अलावा किसी की भावनाओं की रक्षा करना या किसी के द्वारा किए गए कार्य की प्रतिक्रिया स्वरूप सजा से बचना।
 वर्तमान में देखें तो झूठ का ही बोलबाला है झूठ की राजनीति, झूठा तंत्र, झूठे नेता, झूठे वादे। आज छूट घोटालों में परिवर्तित हो गया है। किसी सभ्य राष्ट्र में सभ्य आचरण सत्य भाषण की उम्मीद बहुत कम रह गई है। झूठ गली- गली, मोहल्ले- मोहल्ले बिकता है, चलता है, दौड़ता है, हर ठांव निवास करता है ,बसता है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति यद्यपि यह जानता है कि वह गलत है, लेकिन फिर भी अपनी बात को सत्य का झूठा आवरण ओढ़ाकर  प्रदर्शित करने में सफल हो जाता है । अतः झूठ की कोई सीमा नहीं होती है। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
कहते हैं कि झूठ के पाँव नहीं होते। जिसके पाँव ही नहीं, उसकी क्या सीमा? 
झूठा कभी एक बात पर स्थिर नहीं रहता इसीलिए आपने यह कहावत भी सुनी होगी कि "एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं"। 
"सत्य सदा जो बोलता, रखना पड़े न याद। 
एक झूठ करता सदा, सौ झूठी फरियाद।।"
.....(अज्ञात) 
परन्तु मैं तो कहता हूँ कि जब आपने एक झूठ बोला फिर सौ क्या असीमित झूठ बोलने पड़ सकते हैं। 
निष्कर्षत : झूठ बोलने की प्रवृत्ति का दिन-प्रतिदिन विकास होता रहता है और यदि मनुष्य इस पर नियन्त्रण नहीं करता तो झूठ के भंवर में जीवन भर घूमता रहता है। 
इसीलिए कहता हूँ कि...... 
आदत है खराब बड़ी, बोलो न कभी झूठ। 
हानि करे सम्मान की, अपने जायें रूठ।। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
 झूठ की कोई सीमा नहीं होती है क्योंकि झूठ अस्थाई होता है झूठ वास्तविक नहीं होता है झूठ सच्चाई नहीं होती है झूठ की जड़े हिलती रहती है सच्चाई की एक झटके से टूट जाती है अतः झूठ की कितने भी पुलिंदा बांधा जाए सच्चाई के आगे टिक नहीं पाती है। झूठ की कोई सीमा नहीं होती क्योंकि झूठ कब बोला जाता है कब खत्म हो जाता है पता ही नहीं चलता है सिर्फ समस्या ही लाता है इसीलिए झूठ की कोई सीमा नहीं होती झूठ झूठ ही होता है वास्तविकता नहीं झूठ काल्पनिक है काल्पनिक वस्तु की कोई वास्तविकता नहीं होती इसीलिए झूठ की कोई सीमा नहीं होती।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
 बचपन में हमें सत्य बोलने की शिक्षा के साथ झूठ बोलना पाप है भी बताया जाता है! सत्य की एक राह होती है झूठ की कोई सीमा नहीं होती!  झूठ से प्राप्त सुख क्षणिक होता है! 
हां झूठ बोलने के आशय अलग हो सकते हैं! एक वकील अपने कलाइंट को बचाना अपना कर्तव्य  समझता है फिर चाहे झूठ की सीमा कर्तव्य  से बाहर हो! 
झूठ पकड़ा न जाये इसके लिए हम सचेत रहते हैं किंतु झूठ पकड़े जाने पर बात को सच साबित करने के लिए हम झूठ पर झूठ बोलते हैं !
किसी को बचाने के लिए बोला गया झूठ सीमा में ही होता है भगवान कृष्ण ने भी युद्ध में अर्जुन को द्रोणाचार्य  से बचाने के लिए अश्वस्थामा हता कहा था अर्धसत्य किंतु झूठ ही कहा था !
झूठ झूठ ही होता है चाहे सीमा से बाहर हो या अंदर! एक तरह से झूठ बेईमानी की परिभाषा है !
             - चंद्रिका व्यास
             मुंबई - महाराष्ट्र
झूठ की कोई सीमा नहीं होती और ना ही उसके पांव होते हैं । झूठ बोलने वाला चाहे जितना झूठ बोल सकता है । एक चोर को पकड़ा जा सकता है मगर एक जूठे को पकड़ना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है ।
       झूठ बोलने वाले एक सच को छुपाने के लिए 100 झूठ बोलते हैं । 
        झूठ बोलने के लिए बहुत कुछ याद रखने की आवश्यकता पड़ती है लेकिन सच बोलने के लिए कुछ भी याद रखने की जरुरत  नहीं होती ।
        कई बार झूठ बोलने वाला जब कुछ भूल जाता है तो स्वयं ही अपने झूठ के जाल में उलझ जाता है, स्वयं ही फंस जाता है ।
        झूठ बोलना वहां उचित है जहां सामने वाले में सत्य सुनने की सामर्थ्य ना हो अथवा किसी का नुकसान हो रहा हो........ रिश्ते बिगड़ रहे हों......लड़ाई-झगड़े की संभावना हो...... क्योंकि सत्य कड़वा होता है और हर किसी में उसे पचाने की क्षमता नहीं होती ।   
        झूठे लोग जहां तनाव में रहते हैं वहीं सच्चे शांत चित्त.....
           -  बसन्ती पंवार 
         जोधपुर - राजस्थान 
झूठ की कोई सीमा नहीं होती .......जिसने एक बार झूठ बोला वह बार बार बोलेगा
कहा जाता है की झूठ के पांव नहीं होते .....और एक झूठ को छुपाने की लिए अनेक झूठ बोलने पड़ते है
झूठे अथवा बेईमान व्यक्ति को चैन की नींद  भी  नहीं  आती  क्यूंकि  हर समय  पकड़े जाने का डर बना रहता है
जब झूठ हद और औकात पार करने लगे तो स्थिति हास्यास्पद बन जाती है
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
कभी कभी कमी और बुराई को छिपाने के लिए अक्सर लोग झूँठ का सहारा लेते हैं l बस, जब एक बार झूँठ बोल दिया, तो फिर उस एक झूँठ को छिपाने के लिए एक के बाद एक लगातार झूँठ की राह पर बढ़ते जाने के लिए विवश होते जाना पड़ता है, फिर किसी भी तरह झूंठों और झूठे व्यवहारों से पिण्ड छुड़ा पाना प्रायः असंभव हो जाया करता है l जीवन जीते जी नरक बन जाया करता है l झूँठ बोलने से आदमी सभी की घृणा का पात्र बन कर रह जाता है l जीवन एक तरह से बोझ लगने लगता है l अतः स्पष्ट है झूँठ की कोई सीमा नहीं होती l 
     चलते चलते ---
यदि झूँठ का सहारा लेकर बुराई को छिपाया जायेगा तो जीवन फिर असत्य व्यवहारों का पुलिंदा बनकर रह जायेगा l इसलिए जीवन को झूँठ का जीवंत नरक न बनाइये l हाँ, किसी की जान बचाने के लिए यदि झूँठ बोला जाये तो झूँठ, झूँठ नहीं कहलाताl 
   - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
       मर्यादा और सत्य की सीमा पार करने के उपरान्त ही झूठ की यात्रा आरंभ होती है। जिसकी कोई सीमा नहीं होती। चूंकि कहावत विख्यात है कि एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं और उन सौ झूठों को छुपाने के लिए असंख्य झूठों की यात्रा आरंभ होने पर कभी रुकती नहीं है।
       उल्लेखनीय है कि आरंभिक शिक्षा में शिक्षक अपने विद्यार्थियों को मुख्य रूप से "झूठ मत बोलो" पर बल देते हैं। जबकि वही शिक्षक अपने शिष्यों के समक्ष कोरा झूठ बोलने से बाज नहीं आते। जिसके कारण झूठ दिन दौगुनी और रात चौगुनी उन्नति करता है।
       उदाहरणार्थ जब वही शिष्य अपने घर आते हैं तो उनके माता-पिता यह कहते हुए झूठ बोलते हैं कि द्वार पर आए अतिथि को बोलो कि पापा घर में नहीं हैं। तब बच्चे अतिथि को बताते हैं कि पापा ने बोला है कि अतिथि को बोलो कि पापा घर में नहीं हैं। ऐसे ही झूठ का चहुंमुखी विकास होता है। 
       जिससे देश के लिखित संविधान के चारों स्तंभ अछूते नहीं हैं और सरकारी अधिकारी/कर्मचारी झूठ की खेती का भरपूर लाभ ले रहे हैं। हालांकि इसका ठेका राजनैतिकों ने ले रखा है। परंतु न्याय के नाम पर अन्याय करने का वेतन राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण से लेकर न्यायाधीश करते हैं और माननीय व विद्वान कहलाते हैं। जबकि बदनाम पुलिस को कर रखा है जिनका झूठ मौलिक अधिकार होते हुए भी  वह तौबा-तौबा करते देखे गए हैं।
       अतः असीम झूठ के पांव न होते हुए भी निरंतर विकास की राह पर अग्रसर है।
- इन्दु भूषण बाली
   जम्मू - जम्मू कश्मीर
कुशल व्यवहार और मधुर वाणी में एक जादू होता है वह निर्मल और पानी की तरह स्वच्छ साफ रहती है अच्छे महापुरुष का जीवन एक खुली किताब की तरह रहता है उसमें हमेशा सच्चाई रहती है ईमानदारी अपनी वाणी के निर्मल जादू से सब लोग उनकी ओर खींचे चले आते हैं हम अगर सच्चाई से रहे तो हमारे हृदय की सा आईने के भांति हो जाएगा। यदि हम कभी अपनी दिनचर्या को आईने में देखें या रात्रि में विचार करें कि आज दिन भर क्या किया तो स्वयं ही हमें अपनी अच्छाई और बुराई का ज्ञात हो जाएगा।
कहावत भी है कि दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता।
और सच्चाई को किसी की परवाह नहीं रहती झूठ के पैर कितने भी लंबे हो पर एक दिन सच्चाई सबके सामने ही आती है। परमात्मा ने सूर्य के माध्यम से भौतिक प्रकाश दिया है जिससे हमारे नेत्र पूरे संसार के क्रियाकलापों को देखते हैं आनंद ,उल्लास ,उत्साह आदि भावनाओं की अनुभूति और अभिव्यक्ति भी होती है भावनाएं ना रहे तो जीवन नीरस हो जाएगा यह मानव की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
हम अच्छाई बुराई को पहचान कर बुराई को छोड़कर अच्छाई को ग्रहण कर लें यदि परमात्मा सृष्टि के आरंभ में वेद ज्ञान ना होते हुए भी हम पशु पक्षियों की निष्ठा से सब कुछ सीखते थे यह प्रकृति हमें सब कुछ सिखाती है।पुरुष हमेशा अपने बुराई करने वालों को या आलोचना करने वाले को अपने पास रखते हैं उनको अपने पास रखने से हमारा हृदय और हम आईने की तरह साफ हो जाएंगे उसके लिए एक प्रसिद्ध दोहा भी है।
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्यप्रदेश
झूठ की कोई सीमा नहीं होती। झूठ बोलने वाला एक पर एक, एक पर एक, झूठ बोलता चला जाता है। एक झूठ को सच साबित करने के लिए उसे अनेकों को झूठ बोलना पढ़ते हैं। इस प्रयास में वह सीमा पार कर जाता है। एक न एक दिन झूठ का भांडा फूटता है और सत्य उजागर हो जाता है। इस बात को जानते हुए भी अपनी बात बनाए रखने के लिए झूठ बोलने वाला ,निरंतर झूठ बोलता चला जाता है। यह प्रवृत्ति झूठ पर लगाम लगाने की बजाय उसको बढ़ाते चली जाती है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
"गिरते हुए आंलूओं को कौन देखता है, 
झूठी मुस्कान के दिवाने हैं  सब यहां"। 
आजकल जिधर भी देखो झूठ का बोलबाला है, सच तो सभी को कड़बा लगता है  लेकिन झूठ एक असत्य बयान के रूप में दिया गया एक प्रकार का धोखा है, जो  विशेष रूप से किसी को धोखा देने की मंशा से बोला जाता है, झूठ के पांव नहीं होते पर फिर भी कुछ देर तक यह काफी फलता फूलता है, 
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा  करते  हैं कि क्या झूठ की कोई सीमा होती है? 
मेरा मानना है कि कोई भी चीज जब हद से ज्यादा हो जाती है तो उसका अन्त संभव होता है, इसी तरह सै झूठ के पैर नहीं होते आखिर कब तक झूठ चल सकता है 
एक न एक दिन पकड़ा ही जाता है, 
कहते हैं  सौ दिन चोर के एक दिन साध का भी होता है, कहने का भाव झूठ ज्यादा देर  नहीं टिक सकता इसकी भी कोई सीमा होती हैआखिर एक न एक दिन पकड़ा जाता है, 
यह कुछ  समय के लिए छुपता है, जब  किसी इंसान को धोखा  देने के लिए इसे बोला जाता है तो वह ज्यादा समय तक नहीं छुप पाता  लेकिन लोग सच को छुपाने के लिए झूठ पर झूठ बोलते हैं लेकिन इसकी आयु ज्यादा नहीं होती, 
मानव  स्वभाव को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि अपनी सुविधाओं के अनुसार  मनुष्य झूठ बोलने के बाज नहीं आता जिससे सहने वाले लोगों को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है, इसलिए इसे छल कपट की संज्ञा दी गई है, क्योकीं झूठ बोलना सबसे वड़ा सामाजिक दुर्गुण है, इसे बोलने वाला व्यक्ति समाज की नजरों में गिर जाता है क्योंकी  यह अन्त में पकड़ा ही जाता है इसकी कोई तय सीमा नहीं होती ब कभी भी पकड़ा जा सकता है, 
अन्त मे यही कहुंगा कि झूठ बोलने वाले किसी को धोखा देने में भले ही सफलता पा लेते हैं किऩतु अपनी अन्तरात्मा के सामने तो वो अपराधी ही होते हैं, 
देखा गया है झूठ से आगे बढ़ने की राह आसान होती है मगर पर उसका अंत कांटों भरा होता है। 
इसलिए सच्चाई को ही अपनाना चाहिए, 
सच्चाई और ईमानदारी का रास्ता कठिन जरूर होता है लेकिन यही रिस्तों पर भरोसा देता है, लेकिन झूठ से भरोसा टूटता है लोग  बिखरते हैं और टूट जाते हैं, 
लेकिन कलयुग में झूठ जोरों पर है, 
सच कहा है, 
"सीख रहा हुं मै़ भी झूठ बोलने का हुनर, 
कड़वे सच ने हमारे न जाने कितने अजीज छीन लिए"
झूठ एक मीठा जहर है जो इंसान को कहीं का नहीं छोड़ता, आखिर यह प्रकट हो ही जाता है इसकी कोई सीमा तय नहीं है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
एक कहावत है कि ,,झूठ की कोई इम्तिहां नही ,,।
जी यह सत्य है कि झूठ की कोई सीमा नहीं होती ।
झूठ जिसे वाकछल  या असत्यता  भी कहा जाता है।
 एक असत्य जो ज्ञात हो ,जिसे सत्य के रूप में बयान किया जाए झूठ कहलाता है ।
झूठ एक असत्य के रूप में दिया गया एक प्रकार का धोखा है जो विशेष रूप से किसी को धोखा देने की मंशा से बोला जाता है या जिसका उद्देश्य होता है किसी की प्रतिष्ठा को बरकरार रखना ,किसी की भावनाओं की रक्षा करना या सजा देना या किसी के द्वारा किए गए कार्य की प्रतिक्रिया से बचना।
 झूठा व्यक्ति जो अनावश्यके भी आदतन ही झूठ बोलता रहता है।
 शोध से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक जिस समय हम झूठ बोलने की सोच रहे होते हैं उस वक्त दिमाग के एक खास हिस्से में अमेगडाला में बदलाव आना शुरू हो जाता है ,शरीर में रक्त संचार तेज हो जाता है और धड़कनें बढ़ जाती हैं ,हम भयभीत होने लगते हैं ।
झूठ के नतीजे हमेशा बुरे होते हैं और एकाध विकल्प छोड़कर झूठ हमेशा घातक होता है ।
गंभीर झूठ जैसे झूठी गवाही देना, धोखाधड़ी, मानहानि आदि के लिए कानून द्वारा सजा निर्धारित की गई है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
झूठ की कोई सीमा नहीं होती।  एक झूठ को छुपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं।  सत्य चूंकि सत्य होता है अतः हमेशा स्मरण रहता है और जब भी कभी बोला जाता है तो वही बोला जाता है। जबकि झूठ क्या बोला था यह कुछ समय बाद स्मरण नहीं रहता और झेंप मिटाने के लिए नये-नये झूठों की रचना करनी पड़ती है।
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली

" मेरी दृष्टि में " झूठ का अस्तित्व अल्पकालीन होता है । जो कभी भी पकड़ा जा सकता है । फिर भी बात - बात पर झूठ बोलते हैं । यह लोगों की मानसिकता को प्रकट करता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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