विक्रम सोनी की स्मृति में लघुकथा उत्सव

भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा इस बार  " लघुकथा उत्सव "  में  " उदाहरण " विषय को फेसबुक पर रखा गया है । जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के लघुकथाकारों ने भाग लिया है । विषय अनुकूल  अच्छी व सार्थक लघुकथाओं के लघुकथाकारों को सम्मानित करने का फैसला लिया गया है । सम्मान प्रसिद्ध लघुकथाकार विक्रम सोनी  जी के नाम पर रखा गया है । 
लघुुुकथाकार  विक्रम सोनी का जन्म 25 मई 1943 को भूतपूर्व कोरिया स्टेट ( बैकुण्ठपुर ) मध्यप्रदेश में हुआ है । इन की शिक्षा स्नातकोत्तर हिन्दी तथा यात्रन्त्रिकी की उपाधि प्राप्त की है । इन का एंकल लघुकथा संग्रह " उदाहरण " है । इन के सम्पादन में छोटे-छोटे सबूत , पत्थर से पत्थर तक , मानचित्र आदि हैं । लघुकथा की पत्रिका आघात , बाद में लघु आघात का सम्पादन / प्रकाशन में सहयोग दिया है । अकाशवाणी पटना से इनका साहित्य प्रसारित हुआ है । इन का देहावसान 04 जनवरी 2016 को हुआ ।
सम्मान के साथ लघुकथा : -
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शव यात्रा का उदाहरण
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रामरतन जी का अचानक हृदयाघात से देहावसान हो गया। सुनकर आसपास के लोग उनके घर की तरफ चल पड़े।
उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि वे सबसे जुड़े रहते थे। 
उनकी शवयात्रा में शामिल बहुत हुए।
  एक ने कहा "रामरतन जी ने मेरे लड़के को ट्यूशन पढ़ाया बिना फीस लिए।"
  दूसरे ने कहा "क्या बात करते हो। मेरे लड़के को अपनी स्कूल में एडमिशन दिया तो मुझसे पैसे लिए थे।"
  उसी के लड़के ने सामने आकर कहा"क्या म
पिताजी सर को मरने के बाद क्यों बदनाम करते हैं। उन्होंने एक रूपया भी नहीं लिया था।"
  शवयात्रा में चलते हुए रामरतन जी पर अपने हिसाब से टिप्पणी कर रहे थे।कोई उन्हें देवता बताने में जुटा था तो कोई राक्षस।मानो उनका चरित्र प्रमाणपत्र बनाने मीटिंग चल रही हो,उनके मरने के बाद। 
   अन्ततः एक बुजुर्ग ने कहा "आप लोगो को शर्म आनी चाहिए। एक भले आदमी को हम उन्हें शमशान घाट तक पहुचाने साथ चल रहे हैं और आप अशोभनीय बातें कर रहे हैं। कुछ ना कर सको तो एक इंसान होने का उदाहरण तो दो?"
     
- डाॅ•मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
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उदाहरण 
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बात है 15 साल पहले की जब प्रीती स्कूल नहीं जाना चाहती थी क्योंकि उसे घर पर अपने भाई बहन के साथ खेलना पसंद था । 
फिर क्या था उसे रोज़ सुनना पड़ता मार खाती, रोती हुई स्कूल जाती और वहां भी पढ़ाई में पीछे रहने के कारण खूब पिटाई खाती और घर आ जाती। घर आने पर सब बातें भूल कर फिर से खेलने में व्यस्त हो जाती।
सब कहते थे कि इसका कुछ नहीं होगा, ये जिंदगी में कुछ नहीं बन पाएगी, सब इसकी संगत से दूर रहो।
आज उसी लड़की ने अपनी मेहनत से तकनीकी क्षेत्र में एक नाम हासिल कर लिया है, उसने कई नवयुवाओ को रोजगार दिए हैं, एक सफल व्यापारी के रूप में सामने आई है ।
अब तो उसके स्कूल में सब अध्यापक उसका उदाहरण देते हैं, पड़ोसी अपने बच्चों को उसके साथ दोस्ती के लिए कहते हैं और अपने बच्चों को उसके जैसा बनने के लिए कहते हैं।
अपनी मेहनत और अनोखी सोच के कारण प्रीती एक उदाहरण के रूप में उभर कर आई।

- मोनिका सिंह 
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
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 कोरोना वैक्सीन
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कोरोना के कहर के बीच एक अच्छी खबर आयी कि भारत ने वैक्सीन का निर्माण कर लिया। परन्तु साथ ही इस वैक्सीन के लाभ-हानि के विषय पर राजनीतिक दलों की राजनीति शुरू होने के बाद जनता में भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी। अधिकांश लोग वैक्सीन लगाने के लिए एक-दूसरे का मुंह देख रहे थे।
सत्तर वर्षीय विजयप्रकाश भी बड़े पशोपेश में पड़ गये। परन्तु उन्होंने मन-मंथन किया तो उनके मन से आवाज आयी कि जो वैक्सीन वैज्ञानिकों की अथक मेहनत से लगभग एक वर्ष की रिसर्च के बाद बनी है, वह कैसे हानिकारक हो सकती है। दूसरी बात, यदि उसको कोई लगायेगा ही नहीं तो उदाहरण कौन बनेगा।
बस! अन्तर्मन की इसी आवाज को सुनकर विजयप्रकाश टीकाकरण केन्द्र पर पहुंच गये और उनके टीका लगाने को जब मीडिया में प्रसार मिला तो विजयप्रकाश कोरोना वैक्सीन के टीकाकरण अभियान में एक प्रेरक उदाहरण बन गये।

- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
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पश्चाताप
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 "माता-पिता के सामने जाकर केवल खड़ा हो जाने से, रिश्तों पर इतने समय से जम रही धूल साफ हो जाएगी..!" मीता ने अपने पति अमित से कहा।
"सामने जाकर खड़ा होने का ही तो हिम्मत जुटा रहा हूँ, जैसे उनसे दूर जाने की तुम्हारे हठ ठानने पर हिम्मत जुटाया था।"
"मेरे हठ का फल निकला कि हमारी बेटी हमें छोड़ गयी और बेटा को हम मरघट में छोड़ कर आ रहे ड्रग्स की वजह से..। संयुक्त परिवार के चौके से आजादी लेकर किट्टी पार्टी और कुत्तों को पालने का शौक पूरा करना था।"
"उसी संयुक्त चौके से बाकी और आठ बच्चों का सुनहला संसार बस गया..।"
"हाँ! अब मेरे भी समझ में आ गया है, शरीर से शरीर टकराने वाली भीड़ वाले घर में एच डी सी सी टी वी कैमरा दादा-दादी, चाचा-चाची, बुआ की आँखें होती हैं..,"
"अब पछतात होत क्या...,"
"आगे कोई बागी ना हो... उदाहरण अनुभव के सामने रहना चाहिए...!"
- विभा रानी श्रीवास्तव
 पटना - बिहार
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उदाहरण
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जब सुरेश आठवीं कक्षा में आया तो उसके पिता की नौकरी चली गई और घर में आय बंद हो जाने से गहरा आर्थिक संकट छा गया। घर में खाने वाले दस जने थे और पिता की नौकरी जाने के बाद अब कमाने वाला कोई नहीं बचा था। जब अन्न के निवालों का ही अकाल पड़ा हो तब भला पढ़ाई करने की तो सूझे ही कैसे? इसपर फिर सुरेश तो परिवार में सबसे बड़ी संतान थी। लाख संकट सही परंतु सुरेश ने यह दृढ़ संकल्प कर लिया था कि वह कोई भी काम कर पैसे कमाएगा, अपने परिवार की  आर्थिक मदद करेगा और साथ ही अपनी पढ़ाई जारी रखेगा। जब उसके मित्र, साथी, सगे - संबंधी उसे संघर्ष करते देखते तो वे मन ही मन बहुत दुःखी होते और उनमें से कई तो उसकी सफलता की कामना करते। और आखिर एक दिन ऐसा आया कि सुरेश की मेहनत रंग लाई और उसकी पढ़ाई के आधार पर उसे एक सरकारी नौकरी मिल गई। उसकी कठोर तपस्या के बल पर वह आज एक राजपत्रित अधिकारी बन चुका था और इस प्रकार वह अपने सगे - संबंधियों और मित्रों के लिए एक उदाहरण बन चुका था। उसका नाम लोग बड़ी इज़्जत से लेते थे।

- प्रो डॉ दिवाकर दिनेश गौड़
गोधरा - गुजरात
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उदाहरण
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राकेश के पापा की आदत थी कि जो काम उन्हें दूसरों से करवाना होता था तो स्वयं उस कार्य को प्रारम्भ करने लगते l तब परिवार के सदस्य उनके हाथ से कार्य लेकर खुद करने लगते l
एक बार की बात है कि रसोई के सिंक में चार पानी के गिलास झूँठे पड़े थे l वे रसोई में पानी पीने गये, सिंक में झूँठे गिलास देखते ही स्वयं साफ करने लगते l
इसी प्रकार घर से थोड़ी दूर पर सड़क पर एक बड़ा पत्थर पड़ा था जो काफी समय से राह में बाधा उत्पन्न कर रहा था, किसी ने भी उसे हटाने का प्रयास नहीं किया l
    एक दिन उनके पोते ने देखा बाबा गेंतीं लेकर उसको ढलकाने की कोशिश कर रहें हैं फिर क्या था पोता और बाल वानर सेना के साथ नौजवान राहगीर साथ में जुट गये और कुछ ही मिनटों में वह पत्थर जो राह की बाधा था सड़क से हट चुका था l सबके चेहरे पर मुस्कराहट खिल उठी l
उनकी यह आदत  परिवार में परम्परा या संस्कार के रूप में( काम तुरंत करने का )उदाहरण आज भी नज़र आता है l

  -  डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
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एक उदाहरण
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सीमा का ब्याह एक प्रतिष्ठित घराने में हुआ था ! घर क्या था राजनीति का अखाड़ा था और क्यों ना हो !ससुर जी की संसद में अपनी सीट थी ,जेठ विधान भवन में कार्यरत थे , और पति धर्मेश का अपना अलग ही महत्व था .... चुनाव के समय भागदौड़ का काम उन्हीं का तो था ! राजनीति का खेल खेलने में सभी ने महारथी हासिल की थी !
नयी नयी शादी .... बड़ों बड़ों के साथ उठना- बैठना , मान-सम्मान सभी तो था... पति का प्यार मैं बहुत खुश थी !
धीरे धीरे घर की बारीकियाँ बंद खिड़कियों के पर्दे खुलने से स्पष्ट होने लगे ! सास बातों बातों में कहती सीमा कमान को कस कर रखना तुम्हें अपना तीर चलाना होगा कहीं ढील ना देना ....! मां मैं कुछ समझी नहीं ! बेटा समझने में कहीं देर ना हो जाए ...!
एक दिन.... रात.. मां आप लीविंग रुम में क्यों सो रही हैं ?  बस यूंही  बेटा नींद नहीं आ रही थी.... तभी शराब के नशे में ससुर जी ललना को लिए रुम से बाहर आते देखे....  
जेठ,  पति सभी के अपने शौक और आजादी थी !
आज पुत्र रौशन पूरे दस वर्ष का हो गया ! जन्मदिन की पार्टी में बड़े बड़े नेता , अभिनेता उपस्थित थे!  पार्टी जोरों पर थी.... तभी किसी ने कहा यार धर्मेश तुम्हारा पुत्र तो हूबहू तुम्हारा ही अक्स है! यह सुनते ही खुश होते ही रौशन ने कहा हां मैं बड़ा होकर एकदम अपने पिता और दादाजी के जैसे बनूंगा! 
पास खड़ी दादी चींखी नहीं...... फिर "एक उदाहरण" ! 
वातावरण में सन्नाटा छा गया.... केवल दादी के शब्द "फिर एक उदाहरण" की गूंज दीवारों को चीरती हुई सबके कानों में गूंज रही थी... .

                   - चंद्रिका व्यास
                   मुंबई - महाराष्ट्र
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पंखों की ताकत
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आज मनोज को मोटरसाइकिल पर सवार देख मन प्रसन्न हो उठा, बल्कि उस पर गर्व हुआ। मनोज शराबी बाप के चार बच्चों में सबसे बड़ा है। ये नहीं कि बाप में हुनर न था। वह सधा हुआ रफ्फूकार था।लेकिन शराब ने उसके हुनर को उसके शरीर की तरह गला दिया। इसी शराब ने लेकिन मनोज को जिम्मेदार बना दिया। सड़क पर बेहोश पड़े बाप को उठा कर लाने से लेकर घर चलाने तक का भार उसके छोटे से कंधे ने उठाया था। माँ घर-घर बर्तन मांजती। 14 साल के मनोज ने अपनी पढ़ाई के शौक की तिलांजलि देकर कपड़े आयरन करने का एक ठेला लगा लिया। कुछ पैसे आने लगे तो वह भाई- बहनों की पढ़ाई को पूरी कराने में लग गया।  कहने पर कहता, 
"मैडम, ये सब पढ़ लें , तो मैं समझूंगा मैंने पढ़ लिया।"
काम आगे बढ़ने पर उसने पैसे जोड़ने शुरू कर दिए। उन्हीं पैसों से उसने ड्राइवरी करना सिख लिया। लेकिन किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। इसके बाद वह मेरे सम्पर्क में ज्यादा रहने लगा। एक बार मेरे हालचाल पूछने पर उसने मुझसे कहा था,
"मैडम, अब वक्त तो सुधर गया है। माँ भी आराम से घर पर रहती है। बहन की शादी तो आप लोगों के आशीर्वाद से हो ही गई है। अब हम भाइयों ने अपने धंधे को आगे बढ़ाने की सोची है।"
" ठीक है। तुम को तो इस वक्त सरकारी दफ्तर में बहाली मिल रही है। तो क्यों छोड़ रहे हो?" मैंने आश्चर्य से पूछा।
"मैडम, नौकरी में इधर-उधर जाना पड़ता है। ड्राई क्लीनिंग का काम खानदानी काम है। हम सभी मिलकर मेहनत करेंगे तो अच्छा रहन-सहन भी होगा।"
आज उसकी उड़ान सपनों से आगे बढ़ रही है जो कम पढ़े-लिखों के लिए एक उदाहरण बन सकता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
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उत्तरदायित्व का बोघ 
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     जब जीवन के परिदृश्य में चंद्रकुमार और द्रौपदी आर्थिक परिस्थितियों के बीच वर्चस्व स्थापित कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। बच्चों की चाह में प्रथम पुत्री का जन्म हुआ, फिर शनैः-शनैः एक के बाद एक कन्याओं का जन्म होता गया,  उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, पुत्र तो होगा, ऐसा होते-होते आठ कन्याओं और एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। 
धीरे-धीरे बच्चे बड़े होते गये। नौ संतानों का प्राथमिकता के आधार पर लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा पूर्ण करवायी। बच्चे भी व्यवहारिक निकले और देखते-देखते नौ संतानों का विवाह सम्पन्न हो गया। नाती-नतरो, पौतों-पौतियों से घर संसार में आनंद ही आनंद था। कोई नाती हवाई जहाज का सफर करवाता, तो दूसरा आलीशान कारों में।  अपने उत्तरदायित्व का बोघ से निवृत्त होकर जीवन यापन कर रहे थे। उन्होंने समाज और भावी पीढ़ियों को प्रत्यक्ष रूप से एक उदाहरण प्रस्तुत कर मिशाल कायम की। लेकिन ईश्वर को कुछ ही मंजूर था, उनकी आंखों के सामने लगातार एक पुत्री और तीन  दामादों का जब निधन होता गया। फिर धीरे-धीरे उनकी आत्म शक्ति विलोपित होते गई और चंद्रकुमार स्वर्गलोक चले  गये, इस असहाय पीड़ा को द्रौपदी सहन नहीं कर पायी और ठीक एक माह में स्वर्ग सिधार गयी।

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार " वीर " 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
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उदाहरण 
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घायल पड़ा चिल्लाया था, कोई उसकी सहायता नहीं कर रहा था। उसके पास खड़ा उसका छोटा पुत्र लोगों से झोली पसार कर सहायता मांग रहा था। कितने ही वाहन आये गये किंतु चालक एक पल देख कर आगे बढ़ जाते। तभी राजू अपनी गाड़ी लेकर आ रहा था। ज्यों ही उसकी नजर घायल पर पड़ी उसने तुरंत गाड़ी को रोका  और उसका हाल-चाल जान कर तुरंत उसे अपनी अपनी मारुति में डाल कर चल दिया। तुरंत अस्पताल ले गया बुजुर्ग पुत्र के पास पैसे नहीं थे उसने अपनी जेब से पैसे लगा दिए। यद्यपि राजू की पुत्री की शादी होनी थी जिस पर ये पैसे खर्च करने थे परंतु जैसे-तैसे घायल की जान बचाई और राजू खुश होकर चल दिया कि उसने अपनी पुत्री की शादी की राशि एक गरीब पर खर्च कर दी। समाज के सामने आज वो उदाहरण बनकर उभरा था। वह सोचते हुये अपने घर की ओर बढ़ गया।

- होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ - हरियाणा
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उदाहरण
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बहू को समझाते हुए दीपिका कह रही थी-" देख बहू,समझ लें। घर में सबसे मेलजोल के साथ रहना है। छोटे बड़े की लिहाज रहनी चाहिए और...."
"और मम्मी,पापा का बिस्तर बाहर बरामदे में लगा देना भाभी। जैसा मम्मी ने दादी और दादाजी का लगा रखा है।" दीपिका की बात पूरी होने से पहले ही छोटी बेटी पिंकी बोली पड़ी थी।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
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उदाहरण
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           चारों और कोरोना का तांडव......सभी और हाहाकार...... मरीज इतने की पांव रखने की भी जगह नहीं ।
         श्याम जी की किस्मत अच्छी थी कि उन्हें 3 दिन पूर्व बेड मिल गया था । वे लेटे-लेटे इस विनाश को रोकने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि अचानक उन्हें एक दर्द भरी गिड़गिड़ाहट सुनाई दी, ऐसा करुण दर्द कि पत्थर भी पिघल जाए । सुनकर श्याम जी अपने को रोक नहीं पाए और बाहर आ गए उन्होंने देखा कि एक नवविवाहिता अपने पति के लिए बेड की गुहार लगा रही है और डॉक्टर कह रहे थे कि हम मजबूर हैं, एक भी बेड खाली नहीं है, सभी पर बुजुर्ग हैं  । 
       श्याम जी ने तुरंत कुछ निर्णय लिया और बोले- 
"मैं अपनी स्वेच्छा से अपना बैड, इस बिटिया के पति के लिए छोड़ रहा हूं, डॉक्टर साहब आप इन्हें संभालिए ।"
" मगर अंकल आप.....?" लड़की ने कहा  ।
" बेटी, मैं तो वृक्ष का पका हुआ पत्ता हूं कभी भी गिर सकता हूं मगर तुम्हें तो अभी पल्लवित-पुष्पित होना है, फिर मैं तो अपना जीवन भी जी ही चुका हूं ।" 
        यह कह कर उन्होंने जाने की परमिशन ली और चल दिए । लड़की ने उनके पांव छूने चाहे तो उन्होंने दूर से ही आशीर्वाद दिया । 
        वे तो चले गए मगर पीछे कईयों के लिए एक उदाहरण छोड़ गए ।
                   - बसन्ती पंवार 
               जोधपुर -  राजस्थान 
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 बेमिसाल सूर्या परमाल
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चित्तौड़गढ़ के राजा दाहिर सेन अत्यंत पराक्रमी एवं प्रजा पालक थे ।वह दो वीरांगना अति सुन्दरी पुत्रियों सूर्या और परमाल व एक 12 वर्षीय पुत्र रघु के पिता थे । वह अपनी धर्मपत्नी के साथ महल में रहते थे ।।
राजा पूरी तन्मयता से पूरे समर्पण से अपनी प्रजा की परवरिश अपने बच्चों की भांति ही करते थे दूसरे राज्य के लोग भी उनकी प्रजापलन को उदाहरण के तौर पर देखते थे ।
उनके यही  सुसंस्कार उनके बच्चों में भी विरासत में मिले थे ।उनकी दोनो बेटियां सूर्या व परमाल बेहद सुंदर ,बुद्धिमती ,युद्धकौशल में निपुण थीं साथ मे ही नृत्य गायन आदि सभी कलाओं में पारंगत  थीं ।देश विदेश के लोग उनकी सुंदरता व प्रतिभा का उदाहरण दिया करते थे ।
उन्हीं दिनों अफगानिस्तान का क्रूर, दुष्ट ,चालाक और धोखेबाज सुल्तान मोहम्मद बिन कासिम भारत में आक्रमण करने की नियत से चुपके से घुस आया  जो की अपने आप मे एक कायरता का घटिया उदाहरण था । 
उसने कुछ अपने जासूसों की मदद से रात्रि के समय  में दाहर सेन के किले पर  भारी भरकम फौज के साथ आक्रमण कर दिया ।
  एवं  सोते में ही राजा व उनकी पत्नी व छोटे बेटे समेत तमाम सैनिकों को की हत्या निर्मम हत्या कर दी ।उसकी बुरी नजर  जब राजा की सुंदर सुकुमार सोती हुई राजकुमारियों सूर्या ,परमाल पर पड़ी तो उसने मारने की बजाय उनको अपने साथ गिरफ्तार कर अपने अफगानिस्तान ले गया। वहां पर उसने उनके साथ विवाह का प्रस्ताव रखा और कहा कि या तो गुलाम बनना स्वीकार करो या मेरे साथ निकाह करो ,मैंने तुम्हारे पूरे परिवार सहित प्रजा को मौत के घाट उतार दिया है और तुम्हारी खूबसूरती पर फिदा होकर जान बख्स दी है ,,,।
वे दोनों बहने मन ही मन  नफरत व प्रतिशोध की आग में जल रही थीं ,और अपनी मातृभूमि व परिवार का बदला लेने की युक्ति सोच रही थी। लेकिन वह बिचारी वन्दिनी थीं उनको  कोई रास्ता नजर  नहीं  आ रहा था।
 उन्होंने अपनी बुद्धिमानी का प्रयोग करते हुए ,निकाह के लिए हामी भर दी ,और मेहर में एक एक खंजर आत्मरक्षा के लिए मांगा और  खुद  को खुश दिखाने का अभिनय किया साथ ही एक शर्त यह भी रखी कि उन दोनों बहनों का कक्ष एक दूसरे से सटा होना चाहिए ताकि वह दोनों एक दूसरे से मिल बोल लिया करेंगी । मोहम्मद बिन कासिम तैयार हो गया और उसका निकाह उनके साथ पढ़ा दिया गया।
 जब से रात्रि में शयनकक्ष में मोहम्मद बिन कासिम सूर्या के कमरे में पहुंचा तो सूर्या पहले से तैयार  एक वीर सिपाही की भांति शेरनी की फुर्ती से मोहम्मद बिन कासिम पर झपट पड़ी और उसके साथ ही उसकी बहन परमाल  भी आ गई और दोनों ही बहनों ने अपने अपने खंजर से बिन कासिम के टुकड़े टुकड़े कर डाले । इस तरहउन महान बुद्धिमती व वीरांगनाओं ने अपनी मातृभूमि का अपने माता पिता एवं भाई  का बदला लेकर अपने देश का कर्ज चुकाया ।
एवं  साथ ही अपनी आबरू की हिफाजत  भी  कर सकीं ।
 इसके बाद  मृत्यु को  गले लगाने के सिवा उनके पास कोई  दूसरा रास्ता  नहीं था , वह जानती थी कि गिरफ्तार करने के बाद वे लोग  उन दोनों की बहुत बुरी दशा करेंगे।
 अतः  सूर्या परमाल  ने एक दूसरे को खंजर भोंक कर वीरगति को चुना ,और अपने परिवार, मातृभूमि का बदला लेते हुए अमरत्व को प्राप्त हुई ।
इससे बड़ी शौर्य ,साहस बुद्धिमानी की मिसाल और कहां होगी ,,।
 इससे बड़ी देशभक्ति का उदाहरण  कहाँ मिलेगा ।  

- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
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उदाहरण
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   अचानक फोन की घंटी बज उठी।अजय-अनिल चौंक पडे।अभी रात के ग्यारह बजे थे।अभी ही वे एक मरीज को हास्पिटल पहुँचा कर आये थे।
    अजय ने फोन उठाया।कोविड अस्पताल से फोन आया था,एक मरीज को तुरंत प्लाज्मा की जरूरत थी।
  अनिल ने तुरंत गाड़ी निकाली।
   दरअसल अजय-अनिल दो मित्र थे।अजय की माँ समय पर इलाज न मिल पाने के कारण इस सँसार में नहीं रही थी,और अनिल के एक रिश्तेदार को अस्पताल में बेड न मिल पाने की वजह से मौत हो गयी थी।
   तब से दोनों ने प्रण लिया था कि हर पल वे इस कठिन समय में जरूरत मंदों की मदद करेंगे।
   तब से वे दोनों सुबह से देर रात तक मरीज को अस्पताल पहुंचाने ,उनके लिये दवाई,आक्सीजन, भोजन और हर जरूरत को पूरा करने में जी जान से लग गये।
   शहर में दोनों मानवता की जीती जागती मिसाल बन गये।लोग उनका उदाहरण सामने रख कर मानव सेवा में जुट रहे है।

- महेश राजा
महासमुंद- छतीसगढ
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अदृश्य शक्ति 
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धार्मिक विचारों से ओतप्रोत भोर भये की पूजा,उपासना के बाद सुमन सुबह से रसोईघर के काम में लगी थी वह बेहद थक गई थी |
 चूल्हे पर पके चावलों की तपेली उतारते समय उसके मन में आया कि यह तपेली हाथ से छूटकर तेरे ऊपर गिर जायेगी आज तू जल जायेगी | 
मन में ऐसा विचार आते ही उसने तपेली को कसकर पकडा और चावल का मांड निकालकर काँपते पैरों को वह थोड़ा आराम देने की खातिर पास में बिछी कुर्सी पर बैठ गयी | 
उसने देखा कि सच में ही थकान के कारण आज गर्म चावलों से भरी तपेली सुमन के ऊपर ही गिर जाती | 
सुमन थोड़ा अचम्भित थी कि मन में उठने वाली यह आवाज किसकी थी ?
दोपहर को बेटी के कॉलिज से लौटने पर उसने बताया कि~  " माँ! मैं आपको एक उदाहरण सुनाती हूँ ।
मैने मनोविज्ञान विषय में पढा है कि हमारी पाँच इन्द्रियों के अलावा एक छटी इन्द्री भी होती है |
इन्द्रियों के नियम संयम को साधकर हम इस इन्द्री की क्रियाशक्ति को बढ़ा सकते हैं यह जब अधिक क्रियाशील होती है , तभी व्यक्ति के मार्गदर्शक का काम करती है | जिसे हम अपने मन की अदृश्य शक्ति कह सकते हैं | हमारे मन की यह अदृश्य शक्ति ही हमारे प्रत्येक काम में अच्छाई और बुराई की ओर हमें इंगित करती है | 
अतः हमें अपने मन की आवाज को अवश्य ही सुनना चाहिये |

-  सीमा गर्ग मंजरी 
मेरठ - उत्तर प्रदेश
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पीर पराई
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ऑफिस जाने के लिए तैयार होते हुए अमर ने कहा "स्वाति तुम मेरे लिए पूरी सब्जी बना देना और नाश्ता क्या बना रही?"
उसने जवाब दिया" पूरी सब्जी का नाश्ता कर लेना और वही टिफिन में लेते जाना क्योंकि आज मेरे दांत में बहुत दर्द है।"
"स्वाति तुम्हारे रोज-रोज के नाटक से मैं थक गया हूँ।"
स्वाति की आंखों से आंसू निकलते रहे और उसने नाश्ते में पोहा बना दिया।
पति के ऑफिस चले जाते ही वह उदास होकर टीवी देखने लग गई कि शायद थोड़ा मन बहल जाए। अचानक 1:00 बजे के करीब किसी ने दरवाजा खटखटया। वह दरवाजा खोलती है और बोलती है "अरे अमर आप इतनी जल्दी घर आ गए।"
अमर ने कहा कि "घर आने के लिए भी तुम्हारी इजाजत लेनी होगी।"
स्वाति ने कहा "नहीं क्या हुआ?"
"मेरे पेट में बहुत जोर से दर्द हो रहा है, इंजेक्शन लगवा लिया दवा ले लिया है थोड़ी देर आराम करूंगा तो ठीक हो जाएगा।"
लगभग  4:00 बजे  तबीयत ठीक लगी तो  अमर ने कहा "मुझे कुछ खाने को दे दो।"
उसने कहा "मैंने अपने लिए खिचड़ी बनाई है आपको दूं क्या?"
"हाँ दे दो, तुम बहुत अच्छी हो धन्यवाद। अब तुम्हारे दांत का दर्द कैसा है चलो मैं डॉक्टर को दिखा देता हूँ।"
नम आंखों से वह अमर को देखती हुई सोचती है। मां बचपन में सच ही उदाहरण दिया करती थी,जाके पैर न फटी ....!

- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
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मदद
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साठ वर्षीय सविता काफी सालों से अकेली रह रही थी । दो लड़कियाँ थी शादी के बाद अपने अपने घर चली गई थी अपने घर परिवार में मस्त खुश थी । पति की मृत्यु के बाद बहुत अकेली हो गई थी लेकिन जैसे तैसे दिन बिता रही थी । अब जो कोरोना अपना तांडव दिखाने लगा तब अकेलापन ओर भी खलने लग गया ।सब अपने लोगों की सहायता करने में असमर्थ नजर आ रहे थे । सविता सोचती काश मै किसी का दुख बाँट सकूँ । यही बात उसने पड़ोस में रहने वाली नर्स सीमा से कही । एक दो दिन बाद हास्पिटल से सीमा का फोन आया ,आंटी क्या आप थोड़ी देर मेरी एक मरीज से फोन पर बात करेंगी वो बुजुर्ग है और उसके घर में सब  कोरोना पॉजिटिव है इसीलिए वह परेशान है शायद आपकी बातों से उसका मन बहल जाए और वह जल्दी ठीक हो जाए । सविता  की मजेदार बातें सुनकर वह मरीज जल्दी ही ठीक हो गई। सविता को भी लगा उसके समय का अच्छा सदुपयोग हो रहा है।  अब वह रोज अलग अलग मरीजों से फोन पर खूब  बात करती । उसने साबित कर दिया दूसरों की इस तरह भी  मदद की जा सकती है । उसने सबके सामने एक उदाहरण पेश किया कि तनाव और बीमारी से निजात पाने के लिए  किसी दोस्त और हमदर्द का होना कितना जरूरी है ।
               - नीलम नारंग 
               हिसार - हरियाणा
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उदाहरण
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वैसे तो पुलिस में मेरी कार्यशैली से विभागीय लोग व जहां-जहां मेरी पोस्टिंग रही वहां के लोग परिचित थे । सोलन थाना में अतिरिक्त थाना प्रभारी की मेरी नई-नई नियुक्ति हुई थी । तीसरा-चौथा दिन होगा , एक व्यक्ति तीन-चार लोगों के साथ मेरे कार्यालय में प्रवेश किया । बिल्डर के रूप में  , अपना परिचय देते हुए एक उच्चाधिकारियों से अग्रेषित किया हुआ शिकायत पत्र मेरी ओर बढ़ाते हुए , बोलने लगा । सर् कई महीनों से मामला लंबित है । बरसात सिर पर है मेरी भारी हानि हो । जायेगी । शिकायत-पत्र पढ़ने पर मामला भूमि विवाद का था । पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण बारिश , भूमि कटाव के कारण दूसरी पार्टी जिसकी जमीन गिरी थी व मकान को खतरा हो गया था । बिल्डर का काम रोके हुए थी कि उनकी इच्छानुसार सुरक्षा दीवार बनाई जाए । बरसात व जानमाल की हानि की आशंका को देखते हुए , मैं उसी समय मौका पर चलने के लिए अपने ड्राइवर व कर्मचारियों को आदेश देकर उन्हें मौके पर मिलने को कहा । मौके पर पहुंच कर दूसरी पार्टी को बुलाकर उनका पक्ष सुना । दोनों को समझा बुझाकर बीच का रास्ता निकाला ,  जिसकी शर्तों के लिए दोनों पक्ष तैयार हो गए । मामला मौके पर निपटाने से मैं भी खुश होकर स्टाफ़ के साथ थाने लौट आया । अभी मैं कुर्सी पर बैठा ही था कि बिल्डर अपने लोगों के साथ चमके हुए अंदाज में धन्यवाद करते हुए , एक पांच - पांच सौ रुपये की पुड़ी मेरी ओर बढ़ाते हुए बोला , " सर् ये स्टाफ के लिए थोड़ा सा चाय पानी के लिए " मैंने तुरन्त उसकी कलाई पकड़ी और अपने कर्मचारियों को बोला इसका फ़ोटो लो । देखो ये रिश्वत दे रहा है । मुंशी हवालात का दरवाजा खोलो । मेरी ऐसी प्रतिक्रिया देखकर उसके चेहरे का रंग उड़ गया व कांपते हुए मेरे पैरों पर गिर गया । साथ वाले हाथ जोड़कर माफी मांगने लगे । थाने का स्टाफ भी यह अप्रत्याशित नजारा देख कर हतप्रभ था । इसी बीच बिल्डर की तबीयत बिगड़ गई , साथ वालों ने कहा दिल की बीमारी है । मैंने तुरन्त उन्हें अस्पताल ले जाने को कहा । भविष्य में पुलिस की कीमत नोटों से लगाने वाला मुझसे आंखे नहीं मिला पाया । यह घटना कइयों के लिए उदाहरण बन गई ।

     -  डॉ. रवीन्द्र कुमार ठाकुर
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
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उड़ान
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शकील के आँखों में सपने ही सपने थे वह खुली और बंद आँखों से सिर्फ सपनों की दुनिया में ही उड़ना चाहता था। कई बार अम्मी नें उसें झकझोरा भी और इन सपनों का सही आईना दिखाने का भी प्रयास किया। लेकिन उसे तो जैसे ऊँची ऊँची डीगें मारने की आदत हो गयी थी अंततः माँ ने उसे नदी के ऊपर उड़ते हुए उन पक्षियों मे से उस पक्षी की ओर इशारा करते हुऐ समझाने का प्रयास किया जो आसमान में उड़ते उड़ते पानी की तलाश में प्यास बुझाने धरती पर ही आया हुआ था।पानी पीते वक्त उसका प्रतिबिंब उसकी आसमान की ऊँचाईयों का भी प्रतिबिंब दर्शा रहा था और पानी की प्यास का भी। माँ के द्वारा दिये गये इस उदाहरण ने उसके जीवन को ही बदल दिया वह समझ गया था कि आसमान में सिर्फ उड़ना और उसकी शून्यता में अपने आप को स्थापित करना तभी संभव है जब हम धरती पर भी पाँव गड़ाकर प्रयासरत रहें क्योकि बिना पानी के तो आसमान में उड़ने वाले पक्षी का भी जीवन असंभव है।  

- रचना सक्सेना 
प्रयागराज - उत्तर प्रदेश
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उदाहरण
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राम बोकारो स्टील प्लांट के मध्यम वर्ग के कर्मचारी थे बाद में पदोन्नति होकर अधिकारी हुए। राम अपने बच्चों को कंपनी के स्कूल में दाखिला दिलाया। लेकिन राम केआवास के सामने अधिकारियों का  भी आवास  था। उनके बच्चे और राम के बच्चे मित्र थे लेकिन उनके बच्चे अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में पढ़ते थे । राम ने देखा की, बच्चे  हीन भावना से ग्रसित हो रहे है। एक वर्ष बाद  राम भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में दाखिला दिला दिए। राम के बच्चे यह बात समझ गये की, मां पापा बहुत मेहनत करके किफायत जिंदगी गुजार कर हम लोग को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ा रहे हैं बच्चे भी अपनी लगन से पढ़ाई में कोई कमी नहीं की और हर वर्ष अपने वर्ग में प्रथम आते रहे। राम बराबर  स्वामी विवेकानंद जी का  जीवनी का वर्णन करता था उन्हीं के विचार को मार्गदर्शक मान कर बच्चे आगे बढ़ते गए।
आज  दोनों बच्चे अपने क्षेत्र में कामयाब है। लेकिन सामने वाले अधिकारी के बच्चे किसी कारणवश कामयाब नहीं हो पाए। आज उस कॉलोनी में उदाहरण पेश किया जाता है। मैं समझता हूं महापुरुषों की जीवनी सै शिक्षा मिलती है।

- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
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उदाहरण
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नैतिक शिक्षा की टीचर त्रिपाठी मैडम किताबी पाठ पढ़ाने के साथ सत्य, साहस, सेवा आदि गुणों का महत्व समझाने के लिये उदाहरण स्वरूप राजा हरिश्चन्द्र, भगतसिंह, श्रवण कुमार जैसे महापुरुषों की कहानियाँ सुनाया करती थी। 
        वे जब पढ़ाती तो कुछ बच्चे बोर होते हुए कक्षा में उबासी लेते, कुछ नींद निकाल रहे होते। त्रिपाठी मैडम ने एक दिन पढ़ाने से पहले बच्चों से पूछा," क्या आप में से कोई बता सकता है कि हम महापुरुषों को आज भी क्यों याद करते हैं, उनके उदाहरण क्यों दिये जाते हैं, उनकी कहानियाँ क्यों सुनाई जाती हैं?" एक बच्चे ने कहा," क्योंकि उन्होंने कुछ ऐसा अच्छा किया था जो दूसरे सिर्फ करने का सोचते रह गये।" टीचर ने कहा," बिलकुल सही, और मैं यही चाहती हूँ कि तुम भी कुछ ऐसा करो जो याद रखा जाने जैसा उदाहरण बन जाये।"

- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
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उदाहरण
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भिखारिन हेमा अपनी दो बेटियों  के साथ ऋषिकेश  में   गंगा घाट पर बैठकर भीख में हर दिन लगभग  1हजार , दो हजार रुपये मिल जाते थे। इस तरह   लाखों रुपये जमा  कर बैंक में  फिक्स डिपॉजिटिव ले ली थी ।  
कोरोना में लोग ऑक्सीजन की कमी से  मर रहे थे। यह देख के उसका दिल पिघला । उसने अपनी बेटियों की सहायता से ऑक्सीजन भरे सिलिंडर दुकान से  खरीद के 
 ट्रक में रखावाकर अस्पतालों  में सप्लाई करने दानदाताओं का उदाहरण बन मानवता की रक्षा करने चल दी।
  मुसीबत के वक्त  धर्मार्थ  का पैसा धर्मार्थ के काम में लगा के उसकी  दैवीय मुस्कान मानवता की सेवा में मदद , सहयोग ,मिलजुलकर रहने की संस्कृति दशा रही थी।
  
 - डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
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उदाहरण 
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   बकरियों को खेतों से चराकर घर पहुँचाया और नहा धो कर किरण ने अलगनी पर टंगे स्कूल ड्रेस उतार कर पहन लिया।जल्दी जल्दी कदम बढ़ाने लगी।आज फिर देर हो गई।तीन किलोमीटर पैदल फिर नदी पार कर स्कूल पहुँचने में क़रीब एक घंटा लग जाता है।लेकिन किरण कभी अनुपस्थित नहीं होती।
आँगन में बाबा आज फिर नशे में धुत उसकी किताबें छिनने की कोशिश की लेकिन किरण के ताक़त के आगे बाबा की एक न चली और वह वहीं ज़मीन पर धूल में गिर कर भद्दी भद्दी गालियाँ देने लगा।
सात भाई बहनों में किरण तीसरी संतान थी।उससे बड़ी दोनों बहनों की शादी मात्र दस और बारह साल के उम्र में ही कर दी गई थी।चार दिन पहले उसे भी लड़के वाले देखने आए थे...किरण ने माँ -बाबा को बहुत समझाया था कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है।मैं अपना सपना पूरा करूँगी।कोच सर ने बोला है कि मुझमें क़ाबिलियत है।मुझे देश के लिए कुश्ती में पदक जीतना है।
लड़के वाले के सामने जब किरण ने कहा था कि अभी मैं पढ़ना चाहती हूँ और कुश्ती में देश को पदक दिलाना चाहती हूँ।तो बाबा मारने के लिए हाथ उठा दिए। तभी लड़के ने बीच बचाव किया और कहा -किरण ,”बिलकुल सही कह रही है।उसे अपने सपने पूरे करने का पूरा मौक़ा मिलना चाहिए।मैं भी अभी विवाह नहीं करना चाहता।मुझे भी अपने सपने पूरे करने है।”यह सुनकर सभी के होश उड़ गए।
किरण के बुलाने पर उपस्थित कोच सर ने कहा “लो,तुमने तो मेरा काम आसान कर दिया और ऐसे समाज के लिए एक अच्छा उदाहरण पेश किया है,बेटा।”

- सविता गुप्ता 
राँची - झारखंड
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राम -श्याम 
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नर्सिंग होम में दिव्या पति देव के साथ दाखिल हुई । डा. ने कहा - आपके सामने दोनो उदाहरण नार्मल सिजेरियन प्रस्तुत है । हम कोई जोर ज़बर्दस्ती नही करते है । शुभ मुहूर्त दिन देख आपको सीजेरियन करवाना है ना , 
श्याम अवतरित हो गया । 
समय और ख़ुशियों ,पंख लगा उड़ने लगे। श्याम की शिक्षा दीक्षा अपने मम्मी पापा के अनुकूल रही ।
विदेश एम .बी .ए करने चला गया। विदेश में ही आत्मनिर्भर बन श्याम अमेरिकन लड़की से प्रेम विवाह किया । अपनी नौकरी बचाने सिटीजन शिप ले ली । श्याम मम्मी पापा को बुलाया । हरेराम हरे कृष्णा मंदिर में विवाह किया ।कैली को जानकारी थी ही ।
क़ैली का मानना था- इण्डियन बहुत रिस्पांसिबल होते है । भारतीय सभ्यता संस्कृति बेमिसाल हैं ।श्याम कहता - हमने जो भी अपने कैरियर में सफलता पाई हैं ।अपने मम्मी पापा के सानिग्ध रह कर !
बेटे श्याम बहु कैली नाती राम की खुशी के लिये मम्मी पापा रिटायर होते अमेरिका आ गये। मम्मी पापा ने मिलकर विदेश में रह मिलजुल कर इण्डियन एसोशियन ग्रूप तैयार किया ।भारतीय सभ्यता सभ्यता संस्कृति की मिशाल खड़ी बुलंद इमारत खड़ी कर दी । 
श्याम के बेटे राम को विदेशी संस्कृति से बड़ा लगाव था । 
श्याम और कैली सोचते  -विवाह तो राम का भारतीय संस्कृति रिवाजों के अनुसार होगा । 
राम अमेरिकन संस्कृति के अनुसार अनुकूल बिंदास रहता था , जो आम बातें थी । 
पर जब घर बसाने की बात आई तो 
श्याम कैली से राम परिपक्व हो , जब घर बसाने विवाह की बात आई तो सीता के ग़ुणो की चाहत पाना चाहता हैं । 
सीता इंडिया से अमरीकी मूल के मानव अनुसंधान पर रिसर्च करने अमेरिका आई थी । 
उसका सामना राम कैली श्याम के माता पिता से हुई । राम ने अपने दादी दादा से अपने दिल की बात सीता से परिणय बन्धन में बँधने की इच्छा जताई । सीता के माता पिता से राम के विवाह की बात कर कहा - मेरा बेटा विदेश की मिट्टी को घर बनाया है। सीता को बहु बना भारतीय सभ्यता संस्कृति की मिशाल गढ़ना चाहता है ।यदि आप अनुमति दे तो हम बारात ले ,काशी आ जाये । बेटे श्याम बहु कैली ने मुस्कुराते कहा - पापा मम्मी ने यहाँ परदेश आ क़र अपने बेटे का साथ दिया । तों हमें भी अपने बेटे का साथ देना ही होगा । सीता को अपनी बहु बनाना है । 
सीता और उसके माता पिता ने अपनी सहमति जताई समाज के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया 
बच्चों की ख़ुशहाली में जीवन है ।
- अनिता शरद झा 
रायपुर - छतीसगड़
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अनोखा संत
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बुज़ुर्ग   वर्मा जी बहुत भले आदमी हैं।सारे मुहल्ले में सबकी मदद हेतु तत्पर रहते हैं।
वैसे भी जिंदादिल और कुशाग्रबुद्धि के समझदार बुजुर्ग  हैं।
कोरोना के कठिन दौर में पत्नी,बेटे,बहू और चार वर्षीय सुपौत्र को भी रात-दिन सुरक्षित रखने में संलग्न  हैं।
पिछले साल बीमारी से जूझते हुए पिता का हार्ट अटैक  होने से वे काफी अकेले पड़ गए  थे।पिता का
ऑक्सीजन सिलेंडर एहतियात से रखकर पड़ोसियों को बताते रहते थे,कि कभी जरूरत पड़ने  पर कोई भी ले सकता है।
अचानक ही सामने वाले घर में  रामू चौकीदार की सांसें उखड़ने  सी लगी थीं।
मुहल्ले के लोगों की सेवा में निरत ऐसे इंसान को सबने हाथों हाथ लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर लगाकर बचा ही लिया ।
आज चौकीदार का परिवार वर्मा जी के प्रति आभार  महसूस कर रहा था।
सिलेंडर वापसी के लिये आभार व्यक्त करने गया, तो सीढ़ियों पर सन्नाटा पसरा हुआ था।
पता चला,कि देर रात पेट के बल लेटकर भी उनके फेफड़ों में प्राणवायु चुक गई  थी।
सब निरूत्तर से हो उस अनोखे संत को निहार रहे थे।

- डा.अंजु लता सिंह
 दिल्ली
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 उदाहरण
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बड़े मजे से हम सब भाई बहन अपने ग्रीष्मकालीन अवकाश के दिनों में घर अपने गांव आया करते थे।खूब खेला करते थे और पूरे घर में रौनक रहा करती थी।मैं गांव के विद्यालय में ही पढ़ता था और मेरे बुआ जी का लड़का यानी मेरे भैया शहर के बड़े स्कूल में पढ़ते थे। हमें तब अक्सर दादा जी उदाहरण दिया करते थे कि 'तुम भी इसकी तरह कुछ करो।पढ़ाई लिखाई कर लो।'
         उस समय हमें शायद यह समझ में नहीं आता था पर जैसे जैसे हम बड़ते गए तो अकल भी आती गई।अब हमारी समझ में अच्छी तरह आ गया कि तब का उदाहरण कितना सटीक था और कितना यथार्थ था।सचमुच कई बार जीवन में हम पलों को याद करके ही रह जाते हैं।

- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
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