शान्ति के अतिरिक्त किसी भी आनन्द का कोई महत्व है ?

शान्ति के बिना जीवन हिंसक होता है । जीवन में आनन्द के लिए शान्ति आवश्यक होती है । तभी शान्ति का महत्व सब से अधिक है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
आनंद तो आनंद है और हर आनंद का अपना महत्व होता है। किसी को बोलने में आनंद आता है तो किसी को सुनने में।किसी को पढ़ने में आनंद मिलता है तो किसी को लिखने में।किसी को शोर में आनंद मिलता है तो किसी को शांति में।
अपना अपना आनंद का बिंदु है,लेकिन हर आनंद का लक्ष्य है शांति।आनंद की अनुभूति के साथ शांति मिलती है,शांति मानसिक और आंतरिक।
भारतीय दर्शन में शांति को परम आनंद माना गया है। हम तो शांति प्रार्थना भी करते हैं -
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति:पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:सर्वं शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व कारकों से शांति बनाये रखने की प्रार्थना है। इसमें यह गया है कि द्युलोक में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, शांति हो, शांति हो, शांति हो।
यही है वास्तविक और परम आनंद, जिसके सामने सब आनंद महत्वहीन हो जाते हैं।तभी तो कवि ने कहा है
गोधन,गजधन,बाजिधन,और रतन धन खान।
जब आवे संतोष धन,सब धन धूरि समान।।
- डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
शांति से बढ़कर आनंद तो मेरे ख्याल से किसी चीज से उपलब्ध नहीं हो सकता। दैनिक जीवन में मानव कई प्रकार से आनंद प्राप्त करने की कोशिश करता है और करता भी है किंतु जो आनंद शांति में उपलब्ध होता है उसका महत्त्व ही अलग होता है। शांति से प्राप्त आनंद में मन का सुकून शामिल रहता है। किसी प्रकार का विचार द्वंद या घटनाक्रम का उसमें समावेश नहीं होता। सभी बातों से पृथक होकर शांत वातावरण में प्राप्त आनंद अद्भुत एवं अतुलनीय होता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम"
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
जिस आनन्द में शान्ति ही नहीं है, वह आनन्द हो ही कैसे सकता है। शान्ति स्वयं सम्पूर्ण आनन्द है। तन-मन की शान्ति मनुष्य को आनन्द के उस शिखर पर खड़ा करती है जहाँ किसी और आनन्द की चाह ही नहीं होती।
भौतिकता मनुष्य को आनन्द तो प्रदान करती है परन्तु वह क्षणिक आनन्द मनुष्य के आवेगों को शान्त नहीं होने देता बल्कि उसकी व्यग्रता में वृद्धि करता है। 
अब प्रश्न यह उठता है कि शान्ति प्राप्ति के लिए क्या करना चाहिए। 
इसके उत्तर में, उपदेश तो बहुत हो सकते हैं और संभवत: व्यवहारिक रूप से मनुष्य उनका अनुपालन कर भी न सके। परन्तु मैं, एक पंक्ति में यही कहूंगा कि मनुष्य मन-वचन-कर्म से यथासंभव मानव बनने का प्रयास करे तो भौतिक सुखों का उपयोग करते हुए भी निश्चित रूप से शान्ति रूपी सर्वोच्च आनन्द की प्राप्ति कर सकता है।
इसीलिए कहता हूँ कि....... 
ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, दंभ से जीवन शान्ति छिन जाती है। 
भ्रष्टाचार, छल-प्रपंच झूठे कोलाहल की पाती है।। 
सरल व्यवहार, परोपकारी संस्कार मन में भर लाओ,
दूजे पग की बिवाई देखो शान्ति तब मन समाती है।। 
- सतेन्द शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड 
शांति कोई बाजार से क्रय करने की वस्तु नही है ,ये आत्मिक होती है और शांति के लिए व्यक्ति का बड़ा छोटा अमीर गरीब या कोई वर्ग इसमें शामिल नही होता,ये सीधे मन से जुड़ा होता है,शांति का प्रथम मूल है संतोष संतुष्टि, ख़या भी गया है संतोषी सदा सुखी और सुख भौतिक सुख संसाधन से नही आपके अंतरात्मा की शांति है, यदि आपका मन दिमाग स्थिर है यदि आपमे स्थिरता का भाव है, मन बुद्धि मे एकाग्रता है तो आप अपने आपको शांत और आनन्दित कर सकते है और जो व्यक्ति समग्रता में आनंद ढूंढता है उसके मन मे ईर्ष्या, द्वेष,लोभ,लोलुपता आदि का भाव नही रहता है और वह सदैव शांति और आनंद को महसूस करता है।
*सारे सुख धरे रह जाते*
*जीवन में जब कलह अपनाते*
*संतोष संतुष्टि से मिलता सुख*
*मौन शांति से भागे सब दुख।*
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
     जीवन के परिदृश्य को बदलने दो पहलुओं से गुजरना पड़ता हैं, शांति और अशांति जिसने अपनी इंद्रियों को बस में कर लिया, उसे सभी नदियों के पानी के समान बराबर ही लगता हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं ।  वास्तविक जीवन में नकारात्मक की जगह सकारात्मकता सोच दिल से ढूंढ लेता हैं खुशी ही दिखाई देती हैं, जरुरी नहीं हैं, कि क्षणिक ही शांति आनंद की अनुभूति होएगी, उसे भविष्य में किस तरह से क्रियान्वित करना, अपने-अपनों की सोच में किस तरह से आनन्दित किया जायें और समानांतर में महत्वपूर्ण  सार्वभौमिकता को पथ-प्रदर्शित करने में सफलता अर्जित हो, एक तरह से उत्साहित होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफलता अर्जित कर गौरवान्वित महसूस कर सकें।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
       शांति के अतिरिक्त किसी भी आन्नद का कोई महत्व नहीं है। यदि मन व्यथित, अशांत है तो मखमली फूलों की शैया नुकीले कांटों जैसी लगती है। जब मन शांत और स्वस्थ है तो चारों ओर खुशी नजर आएगी।शांति का संबंध चित और मन से है। आनन्द बाहरी सुख सुविधा में नहीं, व्यक्ति के भीतर है।मानव का आपने अंदर छिपी शक्ति से परिचित होना जरूरी है। 
      शांति की प्राप्ति के लिए सबसे बड़ी जरूरत है मानवीय मूल्यों का विकास। हम नैतिक मूल्य जैसे सच,अहिंसा, दया ,करूणा, संयम और ईमानदारी आदि को अपना कर हम शांति  और आनन्द प्राप्त कर सकते ।
         कुछ लोग भौतिक वस्तुओं में शांति  और खुशियाँ ढूंढते हैं और कुछ शोहरत में। जबकि खुशी और आनन्द हमारे भीतर है। उस को ढूंढने की कोशिश ही नहीं करते जैसे कस्तूरी मृग के अंदर होती है और वह वन वन ढूंढता फिरता है। उसी प्रकार आनन्द हमारे भीतर है। जरूरत है मन की शांत अवस्था की है।जितनी देर मन भटकता रहे गा ,हम खुश नहीं रह सकते  ।शांति के अतिरिक्त किसी भी आन्नद का कोई महत्व नहीं है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
        शान्ति का दूसरा नाम मृत्यु है और मृत्यु से पूर्व शान्ति सम्भव नहीं है। क्योंकि जीवन कर्मों के अनुसार चलता है और कर्म विभिन्न प्रकार के होते हैं। जिनके महत्व और आनन्द भी विभिन्न ही होते हैं।
        सर्वविदित है कि मानव जीवन का आधार "शरीर" पंचतत्वों अर्थात जल, वायु, अग्नि, पृथ्वी और आकाश से मिलकर बना है जिसमें आत्मा वास करती है। जबकि इसके शत्रु भी पांच ही हैं। जिन्हें काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के नाम से जाना जाता है। 
        जो आत्मा अर्थात मन की शान्ति को प्रायः भंग करने में सक्षम हैं। हालांकि इन शत्रुओं के नाम के अनुसार इनके विभिन्न महत्व हैं। जिनके आनन्द भी विभिन्न ही हैं। जो शान्ति को छोड़कर हर किसी को अपने आलिंगन में समा लेने में भी सक्षम हैं।
        परंतु इन सबके परे पांच शत्रु हमें हमारी औकात का महत्व भी बताते हैं। जिनका आनन्द भी प्रत्येक आनन्द से भिन्न है और यही वह महत्वपूर्ण आनन्द है जिसका स्वाद चखने के उपरांत मानव को "शान्ति रूपी पगड़ी" प्राप्त होना आरम्भ होती है और औकात अनुसार धीरे-धीरे आत्मा सम्पूर्ण शान्त हो जाती है।     
        अतः ध्यान रखें कि सांसारिक रिश्ते एवं सुख सब झूठे और नाशवान हैं। जबकि  ॐ शान्ति ॐ का उच्चारण ही शान्तिमय, आनन्दमय एवं परम सत्य है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
यदि हमारा मन स्थिर है तो शांति ही शांति है और जहां शांति है वहां आनंद तो होना ही है! चूंकि मन बड़ा चंचल होता है! कभी ऐश्वर्य की तरफ दौड़ता है दूसरे का देख कभी ईष्या ,द्वेष , क्रोध करता है, झगड़ा करता है तो मन उद्वेलित होता है और मन अशांत  रहता है जिसकी वजह से हम कुछ सोच ही नहीं पाते दूसरा कार्य ही नहीं कर पाते एवं हम नकारात्मकता की ओर बढ़ते जाते हैं ! सदा खिन्न रहते हैं! 
वहीं मन शांत है तो हम दुख में भी सुख ढूंढ लेते हैं अर्थात हमें संतोष का आनंद मिलता है! मन भटकता नहीं, हमारे मन में सकारात्मक विचारों की उत्पत्ति होती है जो हममे आत्मविश्वास जगाती है और सफलता दिलाती है! अपने कार्य में सफल होने से मन को शांति होती है..... और यदि मन शांत है तो आनंद ही आनंद है! 
परम परमेश्वर को भी हम स्थिर मन ले शांति से भजते हैं तो हमें असीम आनंद आता है किंतु प्रभु की आराधना के वक्त मन कहीं और भटक रहा है तो हमें सच्चा आनंद प्राप्त नहीं होता ! शांति से ही हम जीवन का सुख पा सकते हैं! यदि जीवन सुखी है तो आनंद ही आनंद है! 
              - चंद्रिका व्यास
            मुंबई - महाराष्ट्र
सुख और शांति का बहुत ही गहरा संबंध है। जहां शांति है सुख भी वही है। यदि हमारे पास दुनिया का पूरा वैभव और सुख साधन उपलब्ध है पर शांति नहीं है तो हम भी आम लोगों की तरह ही है। पाश्चात्य विद्वान टेनिमैन  ने लिखा है कि शांति के अतिरिक्त दूसरा कोई आनंद नहीं है। इसके साथ ही आध्यात्मिक गुरु चिदानंद के अनुसार शांति का सीधा संबंध हमारे हृदय से है। सहृदय होकर ही शांति की खोज संभव है। यह बिल्कुल ही सत्य है कि शांति के अतीत किसी भी आनंद का हमारे जीवन में कोई महत्व नहीं है। आचार्य चाणक्य ने अपने शिष्यों से कहा था कि धन कमाओ या ना कमाओ लेकिन अपने घर में सुख शांति और प्रसन्नता जरूर लाओ। जो व्यक्ति अपने घर में सुख शांति कायम नहीं रख सकता तो प्रसंता से जीवन जी नहीं सकता, जिसके बच्चे हंसते मुस्कुराते ना हो जिन भाइयों में प्रेम ना हो, जिस घर की दीवारों में एशिया और देश की बू आती हो तो समझना कि वह घर स्वर्ग नहीं बल्कि नर्क से भी बदतर है। घर वही है जहां आनंद का माहौल है। घर को ठीक से रखना हर व्यक्ति का अपना कर्तव्य होता है। आज हर व्यक्ति अपने बच्चे को सिर्फ पैसा कमाने की शिक्षा देता है। व्यक्ति बच्चे में यह स्थिति विद्या सहित अन्य गुणों के संबंध संवर्धन और संरक्षण की बात ही नहीं करता है। धन कमाने की है कई बार पिछड़ जाता है। इस होड़ में धन कमाया या ना कमाया लेकिन तनाव दुख और अनावश्यक चिंता का जरूर कमा लेता है। आज हर व्यक्ति अपने घर में सुख शांति चाहता है। हर राज्य अपने लोगों को शांतिपूर्वक जीवन यापन करने का प्रयास करता है। हर देश विश्व शांति की कामना करता है। हम घर में सत्यनारायण भगवान का पूजा भी करते हैं तो विश्व शांति की कामना जरूर करते हैं, इसलिए जीवन में खुश रहना है तो शांति सर्वोपरि है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
आज की चर्चा का विषय समय अनुकूल परिस्थिति को देखते हुए लगता है कि  कोरोना काल में वैश्विक समस्या कोविड-19 की बीमारी की संक्रमण से हर कोई तीसरा इंसान  मन  की शांति खो चुका है ,न तो किसी के पास पैसा काम आ रहा है और ना ही किसी की सोर्स काम आ रही है ।
     इसके संक्रमण से अमीर और गरीब कोई भी अछूता नहीं है ,चारों ओर लाशों का ढेर ऑक्सीजन की कमी, संक्रमित होने का डर, हर गांव में कोई ना कोई संक्रमित, हर गली मोहल्ले में कोई ना कोई संक्रमित चारों ओर डर का माहौल है न तो कोई किसी शादी में जा रहा और न ही किसी सगाई या सांस्कृतिक कार्यक्रम में।
 औपचारिकता के लिए अगर कोई जा भी रहा है तो खाने का स्वाद और न ही शादी में सभी रश्मो का आनंद नहीं ले रहा है क्यों कि मन में कोरोणा के संक्रमण की अशांति है । अब कोरों ना काल में कितनी ही महंगी ड्रेस पहनकर और कितनी की महंगी गाड़ी में बैठ कर चले जाओ आनंद बिल्कुल भी नहीं आएगा।
इसीलिए ज्ञानी जन  हर परी स्थिति में मन को शांत रखने की शिक्षा देते है क्योंकि शांत मन से हम हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं ।
और उसी में ही हमें आनंद मिलता है। शांत मन को न तो कुछ खोने का डर ओर न ही कुछ पाने की चिंता रहती है । 
शांतिमय मन हमेशा सकारात्मक विचारों के साथ आनंद की अनुभूति ही कराता है
शांत मन हमेशा आनंद मय रहता है।
अत: हमारे जीवन में शांति के अतिरिक्त किसी भी आनंद का कोई महत्व नहीं है।
- रंजना हरित 
बिजनौर -  उत्तर प्रदेश
जब तक मन मेें शान्ति  नहीं है ,हमें जीवन का आनंद नहीं मिलेगा ।शान्ति मन की स्थिरता से आती है । हमारी इच्छायें अनेक हैं जिसकी पूर्ति के लिए हम स्वयं से युद्ध करते रहते हैं । जब विवेक 
जागृत होता है तब मन में शान्ति आती है । शान्ति सद्भाव से आती है जब हमारे साथ हमारे रिश्तेदार पड़ोसी सब खुश और सम्पन्न रहते हैं तब हमें आनंद की प्रप्ति होती है ।अकेले सुखी रहने में शान्ति नहीं महसूस हो सकती है ।
शान्ति  के बिना जीवन अव्यवस्थित होगा ,कैसे सुख मिलेगा ? हमारा इतिहास गवाह है ।वर्चस्व की भावना ने अनेक युद्ध को जन्म दिया ,जब धरती खून से लाल हो गयी तब शान्ति की भावना जागी । हम सभी भारतवासी शान्ति में ही  आनंद की अनुभूति करते हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
नहीं जी शांति न हो तो हर सुख बेकार है शांति है तो हर जगह स्वर्ग है ।
हमें अपने घर में सुख-शांति और प्रसन्नता का माहौल रखना चाहिऐ । जो व्यक्ति अपने घर में सुख-शांति कायम नहीं रख सकता, प्रसन्नता से जीवन नहीं जी सकता, जिसके बच्चे हंसते-मुस्कुराते न हों, जिन भाइयों में प्रेम न हो, जिस घर की दीवारों में ईष्र्या और द्वेष की बू आती हो तो यह समझना कि वह घर स्वर्ग नहीं नरक है। घर वही है, जहां आनंद का माहौल हो। घर को व्यवस्थित करना अपना कर्तव्य है।घर में हर समय शांति रहेगी तो हर सुख हर वैभव का आप आनंद उठा पायेंगे । 
अपने घर को हम स्वर्ग बनाते नहीं और काल्पनिक रूप से स्वर्ग की कामना करते हैं, जो बिल्कुल उचित नहीं है। घर-गृहस्थी में कई बार सही तालमेल और सामंजस्य के अभाव में हममें से बहुत से लोगों को अंतत: दु:ख और तनाव ही मिलता है। इससे बचने का प्रयास करें। छोटी छोटी बातों को ध्यान न दें हर दम प्यार से पेश आये प्यार से शांति का वातावरण निर्माण करे शांति है तभी हर एक बात का आनंद मिलेगा नही तो स्वर्ग भी नरक बन जायेगा 
शांति ही हर सुख का मूल मंत्र है । 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
सम्पूर्ण जाति ने मोक्ष माँगा,
     मैंने बस मन की शांति l
निःसंदेह जीवन में शांति के अलावा कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं है l हर मनुष्य के भीतर एक दुनियाँ होती है जिसमें उसकी वास्तविक शक्ति और ज्ञान समाहित होता है l
मन की दुनियाँ में पहुंचकर मनुष्य को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनाई देने लगती है जो कि अत्यंत धीमी और सूक्ष्म होती है l जिसे सुनने के लिए गहरी शांति के साथ मौन की भी आवश्यकता होती है लेकिन ये कैसी विडंबना है कि भौतिक चकचौन्ध में हमारी आत्मा की आवाज़ दब जाती है और अशांति का साम्राज्य हमारे जीवन में छा जाता है l जीवन में शांति को अंगीकार करने के लिए इतना ही सोचना पर्याप्त है कि -
    उड़ जायेंगे तस्वीरों से
     रंगों की तरह हम l
     वक़्त की ठहनी पर है
      हम परिंदों की तरह ll
अपनी आत्मा को खोकर संसार मत पाओ l आपकी बुद्धि सोने और चांदी से कहीं अनमोल है l धन दौलत से संसाधन खरीदे जा सकते हैं लेकिन मन की शांति नहीं l कहा गया है -"अशांतस्य कुतः सुखम l "अतः शांति की प्राप्ति के लिए हमें मन को नियंत्रित करना ही होगा l शांति का सुख से गहरा घनिष्ठ नाता है या यूँ कहूँ कि शांति का सागर परमात्मा है l हम आत्मा में परमात्मा की संतान हैं, जब हमारे अंदर शांति आयेगी तो हमारा विकास होगा l वर्तमान समय (कोरोना काल )अशांति और दुःख के दौर से गुजर रहा है l हम धर्म और शाश्वत सत्य को स्वीकार करते हुए शांति के सागर परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार करें l
            ----चलते चलते
आज दुनियाँ में अशांति का मुख्य कारण है कि हम अपने किये का तुरंत प्रतिदान चाहते हैं l हमारे प्रियजन जिंदगी भर शाश्वत सत्य को हमसे छिपाते हैं लेकिन जब श्मशान में ले जाते हैं तब बताते हैं कि -"राम नाम सत्य है l "
दुनियाँ रंग रंगीली बाबा,
दुनियाँ रंग रंगीली l
          - डॉ. छाया शर्मा
             अजमेर - राजस्थान
जी बेशक शांति से बड़ा न कोई आनंद है ना सुख  है ना धन है।  समय के साथ आगे बढ़ने की चाह में और पैसे कमाने के चक्कर में हम आजकल इतने बिजी हैं कि मैं अपने आसपास की चीजों का पता भी नहीं चलता। पूरा समय घर की चिंता, काम की चिंता ,स्वास्थ्य की चिंता के कारण मन की शांति भंग हो जाती है ।
जीवन में सुख हमेशा पैसे से नहीं मिलता उसे और भी कई रास्ते हैं जैसे कि काम के बीच में ब्रेक लेना, काम के दौरान अपने साथियों से बातचीत, काम के बाद अपने घर वालों के साथ कुछ समय व्यतीत करना ,दोस्तों से बातचीत ,यह सब ऐसे तरीके हैं जो करके देखिए जिससे आपको खुशी मिलेगी और शांति भी मिलेगी ।
इसके अलावा मन की शांति के लिए रोज सुबह उठकर कुछ समय ध्यान लगाएं ,सुबह-सुबह कुछ प्राणायाम करें ।कुछ देर प्रकृति की सुंदरता को निहारें ,जो बातें आपको तंग कर रही हो उनसे भागने के बजाय उनका उत्तर स्वयं तलाशें या किसी की मदद से तलाशें ।
सुबह उठकर अच्छी बातों को याद करें ,जिनसे आपको खुशी मिलती है। इसके अलावा कुछ समय निकालकर दान करना चाहिए ।दूसरों की सहायता करें ऐसे कुछ कलात्मक एवम रचनात्मक कार्य करें जिनसे आपको खुशी मिलेगी ।
तो जाहिर है आपके मन को शांति भी  मिलेगी ।हम कह सकते हैं शांति से बढ़कर कोई दूसरा आनंद नही।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
"जिंदगी में हर इंसान शांति की इच्छा रखता है
परन्तु अपनी इच्छाओं को शान्त नहीं करता "। 
यह सच है यहां शांति है बहां सुख है क्योंकी शांति और सुख का गहरा नाता है, 
यदि हमारे पास दूनिया का पूरा वैभव है और सुख साधन उपलब्ध है परन्तु शांति नहीं है  तो समझ लेना हमारे पास कुछ भी नहीं है क्योंकी शांति से वड़ा कोई अनमोल धन नहीं है, 
आईये बात करते हैं कि शांति के अतिरिक्त किसी भी आनंद का कोई महत्व है? 
मेरा तर्क है कि शांति के विना सभी आनंद अधुरे हैं
देखा जाए शांति और आनंद केवल संयम और संतोष मे़ हैं
यदि जीवन में संतोष नहीं तो शांति कदापि प्राप्त नहीं हो सकती, 
सच तो यह है जिसने इंद्रियों और इच्छाओं पर नियंत्रण कर लिया वही शांति का आनंद ले सकता है, 
आजकल आपाधापी के इस दौर में बहुत कुछ हासिल करने की चाह मैं इंसान मानसिक अशातिं को आमंत्रण दे रहा है हम अपनी जिंदगी के इतने दूर निकल गए हैं कि हरेक इंसान परेशान होकर चाह कर भी शांति नहीं  हासिल कर पा रहा है, 
देखा गया है शरीर का  सवंध सुख से है और मन का सवंध शांति से है और आत्मा का सवंध आनंद से है और  यह आनंद समस्त शांति का स्रोत हैं, जब हम आनंद की अवस्था को प्राप्त कर लेंगे तो सुख और शांति स्वंय ही मिल जाएंगे लेकिन हमें आनंद की विधि को जानना होगा, 
अन्त में यही कहुंगा कि आनंद की प्राप्ति एक पूर्ण सतगुरू के ज्ञान द्वारा ही मिल सकती है, जैसे कबीर दास जी, रविदास जी, परमहंस इत्यादी के पास धन तो नहीं था किन्तु आनंद से रहते थे क्योंकी उनके पास स्ंतोष धन था, इसलिए अगर हम शांति चाहते हैं तो हमें पूर्ण सतगुरू जी का ज्ञान हासिल  करना होगा आत्मा व परमात्मा के जानना होगा तब जा कर हम शांति के पुजारी बन सकते हैं
क्योंकी संसार में जितने भी कार्य किए जाते हैं उन सब का एक ही उदेश्य है शांति, लड़ाई, दुख , लालच को भंग करने  के लिए शांति सशक्त त्यौहार है, धन धौलत संपदा से संसाधन खरीदे जा सकते हैं किन्तु शांति नहीं, यहां शांति है वहां विकास है यहा् विकास है वहां सुख है और शांति का सागर परमात्मा है
इसलिए जब हमारे अंदर शांति आऐगी  तब ही हमारा विकास होगा इसलिए शांति का आनंद ही परम आनंद है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर

" मेरी दृष्टि में " शान्ति जीवन का प्रमुख अंग है । जो जीवन को स्थाईत्व प्रदान करता है । जिस के बिना जीवन यात्रा सम्भव नहीं है । बाकी तो कर्म पर निर्भर करता है । यहीं जीवन लीला दुनियां का इतिहास है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )