दिसम्बर - 2019



- भारत पहली बार इस वर्ष के जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक में शीर्ष दस देशों में शामिल
- गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने लोकसभा को दी जानकारी के अनुसार तीन महा में बनेगा राम मंदिर ट्रस्ट
- हैदराबाद में महिला पशु चिकित्सक की सामुहिक दुष्कर्म व हत्या के चारों आरोपियों को पुलिस एनकाउंटर में मार गिराया
- राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि पोक्सो एक्ट के तहत दोषियों को दया याचिका का अधिकार नहीं होना चाहिए ।
- उन्नाव सामुहिक दुष्कर्म पीड़िता आखिर जिंदगी की जंग हार गई
- इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के घर सीबीआई का छापे 
- वोडा - आइडिया मोबाइल कम्पनी सरकारी राहत के बिना बन्द हो सकतें हैं
- अफगानिस्तान से 85 टक प्याज भारत पहुंचा
- सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से तलब किया दुष्कर्मियों की समय पूर्व रिहाई का ब्योरा
- राॅबर्ट वाड्रा को मिली विदेश जाने की अनुमति
- बंदूक , पिस्तौल व राइफल आदि की गोलियों पर लिखा होगा नंबर
- बिना फास्टैग लगें वाहनों का नहीं होगा इंश्योरेंस
- कुमारी सैलजा ने राज्य सभा में उठाया शिवालिक व अरावली पहाड़ियों के संरक्षण का मुद्दा 
- सेना से फरार हरप्रीत सिंह ने चालीस लाख का कर्ज चुकाने के लिए चुराएं सेना के हथियार 
- हरियाणा सरकार ने आउटसोर्सिंग के तहत काम कर रही महिला कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश देने की घोषणा
- 835 दिन बाद सुनारिया जेल में गुरमीत से मिली हनीप्रीत 
- अम्बाला सिटी में सिंगल यूज़ प्लास्टिक के बदले में चावल की स्कीम सफल होने लगी 
- जींद में बदमाशों ने लघु सचिवालय के सामने स्थित सर्व हरियाणा बैंक की शाखा से 4.44 लाख‌ लुटें
- जींद में गलत इंतकाल दर्ज करने पर नायब तहसीलदार , कानूनगो व पटवारी को तीन तीन साल की सज़ा सुनाई गई
- हाई कोर्ट ने ‌पूछा कि पंचकूला में तीन दिन तक क्यों जुटने दिए गए डेरा प्रेमी
- मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने तीसरी बार पुलिस अकादमी आकर तोड़ा मिथक भ्रमं 
कविता                                                                   
   परिवर्तन 

हवा-सोच बदल रही है,
क्योंकि- - -
बेटियाँ आज ताज बन,
सिर पर सज रही हैं।
ममता और-
अपनेपन की मूरत बन,
ध्यान सबका रख रही हैं।
धकेलते तो,
आज भी हैं लोग पीछे
पर बेटियाँ- - -
जबरदस्ती आगे बढ़ रही हैं।
ये परिवर्तन नहीं -
तो क्या है?
कि बेटियों के,
आगे निकलने से
दुनिया भी बदल रही है।
अपनी सोच में -
परिवर्तन कर,
देखो -
दुनिया वालों!
आज बेटियाँ,
आसमां पर चढ़ रही हैं।
और अब - - -
बेटा-बेटा पुकारने वाले,
उन्हीं बेटों पर -
बेटियाँ व्यंग्य कस रही हैं।।
                                   - मधुकृष्ण गोयल
                                  चंडीगढ़ आप्टीकल
                                      गोल मार्केट
                                                कैथल(हरियाणा)    
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 कविता                                                                     
  ”ख़ुशबू “

खिलाई एक कली मैंने 
अपने आँगन के 
मधुबन में 
महका दिया उसने घर आँगन मेरा  अपनी ख़ुशबू से
चाँदनी उतरी मेरे आँगन में
ले आई शीतल बयार 
साथ में 
सूरज की पहली किरण को भी 
दे आई न्योता 
चिड़िया चहक चहक कर फुदकी आँगन मेरे में 
 प्यासे होंठों ने मेरे मीठी सी 
लोरी गाई
देखा था एक सपना मेरी  
जागती आँखो ने 
बनाऊँगी जीवन अपना 
हो एक मधुबन जैसा
जो सिखाए सबको 
जीना उसका जीना है
जो औरों को जीवन 
देता है 
सपना हुआ आज पूरा मेरा 
लगाया जब मैंने 
एक मुरझाई कली को सीने से 
अपने 
                                                     - शारदा गुप्ता     
===================================== लघुकथा                                                                

साफ्ट कॉरनर 

" मैं जानती हूँ कि आपके दिल  में मेरे लिये एक खास किस्म का साफ्ट कॉरनर  है परन्तु मेरे लिये आप एक  अच्छे और शायद सच्चे दोस्त हैं ,इसके अलावा कुछ नहीं । इसे ही मान लिजिये प्लीज क्योंकि उसी नाते मैं आपको ,अपनी कोई भी बात बड़ी बेबाकी से  कह लेती हूँ । " शिखा ने अपनी चिर परिचित मासूमीयत एक बार फिर उसके सामने परोस दी ।
" गलत अनुमान है ,तुम्हारा । साफ्ट से कुछ ज्यादा की बात करो । " अजय भी आर - पार की मुद्रा में था ।
" क्या कहना चाहते हैं,  मैं समझी नहीं ! " शिखा जान कर भी अंजान बनने पर अड़ी थी ।
" नहीं जानती तो न सही । ठीक है  कोई और बात करो ।" अजय ने शिखा की बात को जानबूझ कर अनदेखा करने का मन बनाया ।
" जब तक बतायेंगें  नहीं तो पता कैसे लगेगा । बोलिए ये साफ्ट से ज्यादा क्या होता है ? " शिखा के  स्वर में पहले के मुकाबले कोमलता अधिक थी ।
" अगर मैं कहूँ कि तुम दुनिया के सबसे सुन्दर व्यक्तित्व की स्वामिनी  हो तो ?" अजय ने अपनी हिम्मत को बटोरने की कोशिश की ।
" ये आपकी द्रष्टि का भ्रम भी तो हो सकता है । दुनिया में एसा कुछ भी नहीं होता जो अन्तिम हो ।किसी भी छत से उंची एक नई छत कभी भी बन सकती है ।" शिखा की मुद्रा हार न मानने की थी ।
" तो फिर यही समझ लो कि मेरे लिये तुम्हारा मुकाम सबसे उँचा है । उससे उँचा कुछ नहीं ।" अजय मन की बात जिह्वा पर लाने को आतुर दिखा ।
शिखा चोट खाई हुई हिरनी थी । उसने ये बातें, अनिरुध से  पहले भी कभी  सुनी थीं ।अनिरुध जिस तेजी से उसकी जिन्दगी का हिस्सा बना था ,उससे भी ज्यादा तीव्रता से उससे अलग भी हुआ था । दोष किसका था ये तो शिखा भी तय नहीं कर पायी  परन्तु परिणाम जरुर कष्टदायी थे ।
" क्या सभी पुरुषों को एक ही तरह की बातें बनानी आती  हैं ? " 
" हो सकता है ,बातें एक ही तरह की हों पर उन्हें निभाने का अंदाज तो हरएक का अपना ही होता है ।" अजय अचानक कह गया ।
" आपकी इस बात में जरुर  दम है । लगता है ,आप पर विश्वास करना पड़ेगा ।" शिखा मुस्कुरा रही थी ।
"  तो इजाजत हो तो आज की यह सर्द शाम तुम्हारे नाम कर दूँ ।" अजय के चेहरे को  मुस्कुराहट ने ढक लिया ।
" इतनी भी क्या जल्दी है ।थोड़ा सोचना तो पड़ेगा ही न । वैसे चाहो तो काफ़ी साथ पी जा सकती है ।" 
" और अगर, एक प्लेट ही सही , पकोड़े भी हो जायँ तो ? " अजय ने कहा ।
" हाँ ,चल जायेंगें ।पर एक ही क्यों ,जी भरके भी तो चल सकते हैं ? " शिखा अचानक बोल गयी।
" यही तो है ,साफ्ट  कॉरनर से आगे की बात ।" कहकर अजय ने पलक झपकते ही ,शिखा के हाथों  को अपनी हथेलियों  में समेट लिया । शिखा ने कोई प्रतिरोध नहीं किया और  नजरें नीची करके उसे देखने लगी ।कपोल उसके पहले ही  लाल हो चुके थे ।
- सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा 
                        साहिबाबाद  - उत्तर प्रदेश                                            =====================================
लघुकथा
                          मेरे बच्चों को संभाल लेना

   अचानक शरीर  में कुछ तपन महसूस हुई।आंँखों में उजाला चुभने लगा।वह चौंक कर जाग उठा।
    देखा तो हाथ पैर कांँप उठे।चारों तरफ धू धू कर आग ही आग जल रही थी।धुँआ उठ रहा था।
     कुछ समझ नहीं आया,चारों तरफ अफरातफरी मची थी।कोई साथी खांस रहा था,तो कोई तडप रहा था।हर कोई अपने अपने ईष्ट को याद कर रहे थे।
   वह दरवाज़े की तरफ भागा।मुख्य दरवाजा बाहर से बंद था।उसे याद आया,देर रात तक वे अपना काम कर सोये थे।करीब 70/75 लोग थे।वे सब गांव से थे।प्लास्टिक बनाने वाली फैक्ट्री में कार्यरत थे।
   उसे मोबाईल फोन सूझा।घर पर फोन किया ।बंद आ रहा था।आग की लपटें फैल रही थी।मुँह और आँखों में धुँआ चुभ रहा था।तुरंत पडोस के एक मित्र का फोन लगाया।गनीमत थी,मित्र ने फोन उठा लिया।वह टूटे स्वर में बोल पाया,"-भाई,फैक्ट्री में भयंकर आग लग गई है...हम नहीं बच पायेंगे...घर पर ..फो..न.. नहीं.. लग रहा।भाई,मेरे बाद....बच्चों .का ध्यान...र..."
   मित्र कुछ कहता उससे पहले फोन हाथ से गिर गया।गले में शब्द अटक गये।चारों तरफ नजर दौडाई,हाल में लगभग चालीस, पचास साथियो की यही हालत थी।
   साँसे रूक रही थी।उसे याद आ रहा था,परसों ही घर पर बात हुयी थी।ठंड समाप्त होतेही,काम पूरा कर,कुछ रूपये लेकर आने का वादा किया था,छोटे बच्चे का सँस्कार होना था..पर...अब..।
    आंखोँ मेंबूढे मां बाप,पत्नी और दोनों बच्चों का मासूम चेहरा एक क्षण को उभरा।उसे अपनी दयनीयता पर खीझ आयी।सांसे रूक गयी।चेहरा एक तरफ लटक गया।
                                                - महेश राजा
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लघु कथा
                                        एक्सीडेंट
                                                        - अनिता रश्मि
दो बसों में जोरदार टक्कर! चीख-पुकार, चिल्ल-पों,
आहतों की आहें, परिजनों का आर्त्तनाद और खून के धब्बे!
थब्बे ही धब्बे!
पल में भीड़ जुट गई। आती-जाती गाड़ियाँभी रुक गईं।
सभी हतप्रभ... इतनी बड़ी संख्या में लोग हताहत। कु छ
लोग राहत कार्य में जुट गए। वे घायलों, मृतकों को
गाड़ियों से बाहर निकालकर बगल में रखते जा रहे
थे। येण-के ण-प्रकारेण सबको बाहर निकाला जा रहा
था। चपटी, पलटी हो गई गाड़ियों से निकालना काफी
मशक्कत का काम। खिड़कियों के शीशे तोड़ बाहर लाया
जा रहा था।
 कु छ लोग प्राथमिक उपचार में लग गए थे। कु छ लोग
घरों से चादर लाकर लाशों को ढँक रहे थे। जिन् जर हें ा भी
चोट नहीं आई थी, वे भी राहत कार्य में शामिल हो गए।
 पर कु छ लोग खड़े-खड़े हाँफ रहे थे। आघात की हालत।
 एक तरफ खड़े होकर हिदायत देनेवालों की भी कमी
नहीं थी। ना ही कमी थी, खुद तरह-तरह के अटकल
लगानेवालों की। तमाशबीन भी पीछे नहीं थे।
 भीड़ में कु छ और लोग अपने कर्त्तव्य के निर्वहन की
प्रतीक्षा में मौका नहीं लग पाने से खीजे हुए सबसे
महत्वपूर्ण लोग। उनकी निगाहें घायलों - मृतकों की
जेबों, घड़ियों, चेनों, कान की बोलियों, पर्स आदि पर थीं।
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लघुकथा

                             मेरे जाने के बाद

                                                             - मुकेश शर्मा

लगभग पच्चीस, तीस साल पहले किसी कस्बे में किसी कॉलेज-स्टुडेंट का अपनी सहपाठी लड़की के घर पर आम आना-जाना कोई छोटी बात नहीं थी।सरिता और मैं साथ कॉलेज में पढ़ते थे और शायद उसकी माँ,भाई के खुले विचारों के होने के कारण ही मैं उनके घर आता-जाता था।सरिता के पिता नहीं थे।सरिता बहुत अच्छा गाती थी और मैं एक बेहतरीन श्रोता होने का कुशल अभिनय करने में पारगंत था तो ज़ाहिर है हमारी सही बनती होगी।
धीरे-धीरे हमारी निकटता बढ़ती जा रही थी, लेकिन पूरी मर्यादा के साथ।इस दौरान अनेक बार ऐसा भी हुआ कि जब उनके घर पर मात्र हम दोनों ही थे।सरिता अपनी मधुर आवाज में गाना सुनाती और मैं संगीत, गायन के मामले में अनपढ़ होने के बावजूद उसे सुझाव देता कि वह अपने गायन को और ज्यादा प्रभावशाली कैसे बनाए।तो आप ही समझ ही गए होंगे कि सरिता मुझे कितना पसन्द करने लगी होगी।मामला हर प्रकार से ओके था।
लेकिन इसी दौरान एक अज़ीब घटना घटी।सरिता लगातार कॉलेज से छुट्टियों पर चल रही थी तो लिहाज़ा वजह जानने के लिए मैं उसके घर पहुंच गया।वहां अलग ही नज़ारा था।सरिता गम्भीर बीमार थी।जाँच से पता चला था कि उसे कैंसर है और अब उसके ईलाज के लिए उनके निरंतर दिल्ली चक्कर लग रहे थे।मेरे लिए यह बहुत शॉकिंग था।
मैं उनकी मदद के लिए और तिमारदारी के लिए अब उनके घर पर अधिक समय बिताने लगा था कि तभी मेरे जीवन की एक यादगार घटना घटी।एक दोपहर सरिता ने मुझे कहा कि अब मेरे जाने का समय आ गया है।मैंने उसे ढांढस बधाई।सरिता ने कहा-" मेरी तुमसे एक विनती है।मैं जब चली जाऊँ तो तुम मेरे जाने के बाद इस घर में मत आना।मेरे जाने के बाद तुम्हें यहां कोई नहीं पूछेगा।हो सकता है तुम्हारा तिरस्कार.... इसलिए तुम यहां मत आना...."
मैंने सरिता को बहुत समझाने की कोशिश की।लेकिन होनी बलवान थी।एक सप्ताह बाद सरिता के हमेशा के लिए चले जाने की खबर आ गई।मैं स्तब्ध, निराश।इस घटना से दुखी मैं भी कस्बा छोड़कर अपनी पढाई के लिए महानगर में शिफ्ट हो गया।
पूरी कहानी फ्लेशबैक की तरह मेरी आँखों के सामने से गुजरती जा रही है।आज तीस साल के बाद मैं उसी शहर की, उसी गली में उसके घर के सामने से गुजर रहा हूँ।पाँव ठिठकने लगे,लेकिन मैं रुका नहीं।उस पुराने मकान को देखता हुआ आगे बढ़ गया।सरिता,अब तो तुम खुश हो न?
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लघुकथा
                                  मस्त रहो !

"आपको पता भी है भाभी कि पड़ोसन रमा आपके पीछे आपकी कितनी बुराई करती है !"
आँगन में दाखिल होते हुए पम्मी हाथ नचाते हुए त्योरियां चढ़ा कर बोली!
दूसरी ओर केवल मधुर मुस्कान!
"अरे आप मुस्कुरा रही हैं!"
ऊन के गोले बनाती हुई भाभीजी ने सहज ही पूछा-
"तो क्या करना चाहिए!"
"आपको झट से पूछ्ना चाहिए कि उसने ऐसा क्या कहा आपके बारे में!
"अच्छा! फिर उससे क्या होगा !"
आँगन में छनछन आती हुई धूप का आनंद लेते हुए अपने काम में मगन भाभीजी ने अपनी निश्चल हँसी वातावरण में बिखेरते हुए पूछा तो पम्मी जलजले की तरह फटते हुए बोली-
"अरे मेरा तो खून खौल उठता है जब मुझे पता लगता है कि कोई पीठ पीछे मेरी बुराई कर रहा था!"
भाभीजी सिलाई पर ऊन के फंदे डालती हुई बोली-
"तभी तो मुस्कुरा रही हूँ पम्मी !
कहने वाला तो कहकर अपने मन की भड़ास निकाल कर निकल लिया फिर हम क्यूं बैठकर अपना जी जलाएं!
इसलिए मस्त रहो, व्यस्त रहो, स्वस्थ रहो !"
                                                          - अंजू खरबंदा
                                                                 दिल्ली
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- सासंद संजय भाटिया ने लोकसभा में उठाया पानीपत टोल का सच 
- जिला कष्ट निवारण समिति की अध्यक्षता करेंगे उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला 
- गोहाना रोड से असंध रोड तक बनेगा नया बाईपास
- भारतीय महिला समिति के तत्वावधान में 50 गरीब बच्चों को जर्सी वितरित की गई 
- सीट बेल्ट लगाने वालों को एसपी सुमित कुमार ने बांटे कार डस्टबिन 
- लघु सचिवालय में महापरिनिर्वाण दिवस पर डॉ भीमराव अम्बेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की गई ।
- रेलवे स्टेशन पर आल इंडिया एससी - एसटी रेलवे एंप्लाइज एसो. की तरफ से बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित की गई 
- बिंझौल नहर किनारे स्थित पानीपत संग्रहालय देखने के चुकाने होंगे 10 से 75 रुपए
- परमहंस कुटिया के नजदीक सदगुरु कबीर चौरा आश्रम में कबीर पंथाचार्य 1008 हजूर उदित नाम साहेब ‌की पुण्य तिथि पर सत्संग का आयोजन
- बरसत रोड़ नूरवाला में कृपाल आश्रम द्वारा 32 वान रक्तदान शिविर का आयोजन
- असंध रोड शोदापुर कोढ़ी आश्रम में जनक्राति वैलफेयर सोसाइटी द्वारा फल व कपड़ों का वितरण किया गया 
- पानीपत फिल्म के विरोध में उतरीं जाट सभा
- अमर भवन चौंक पर हेयर रबड़ बैंड़ के गोदाम में लगी आग
- सैक्टर - 28 में औद्योगिक प्लांट घोटाले में एचएसवीपी का पटवारी किया सस्पेंड 
- हाली अपना स्कूल में बच्चों को वितरित की गर्म जैकेट

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