क्या उपहार बांटने का नाम है खुशियां ?

नववर्ष , जन्मदिन , शादीं की सालगिरह आदि पर   उपहार बांटने का अलग महत्व हैं। जिसें हम खुशियां बांटने भी कहते हैं । उपहार छोटा हो,  बड़ा हो , सभी का महत्व है । गरीब हो , अमीर हो सब उपहार की खुशियां समझते हैं । कई बार उपहार तो यादगार बन जातें थे । जो जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं और वह उपहार अनमोल हो जाता है । ऐसे ही विचारों को यहां पेश करता हूँ :-
उपहार पा कर हर उम्र का व्यक्ति खुश होता है। विशेष कर जब उपहार आत्मीयता से भरा हो।  खुशियाँ उपहार का पर्याय नहीं हैं पर उहार लेने और देने में जो आनंद मिलता है वो अद्भुत है। खुश रहना मन की सकरात्मक स्थिति है जो प्रत्येक व्यक्ति की अपनी आंतरिक शक्ति से आती है ।  सच्चे मन से दिया गया छोटा सा उपहार भी खुशियाँ दूनी कर देता है। आवश्यकता है भावना को समझने की। कुछ उपहार तो जीवन में खूबसूरत यादें लौटा लाते हैं।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
खुशियाँ अभिव्यक्ति है जिसे हम किसी सूचक के रूप में ही अभिव्यक्त कर सकते हैं।जब हम किसी को उपहार देते है तो उस उपहार के रूप में अपनी खुशी उस व्यक्ति तक पहुंचते हैं। अतः मेरे अनुरूप उपहार का अदान - प्रदान खुशी का सूचक है।
- ईशानी सरकार
पटना - बिहार
जरूरी नहीं कि बड़े बड़े उपहार बांटने से ही खुशियाँ मिले।उपहार दिखावे का नहीं बल्कि प्यार, अपनेपन का प्रतीक है ।वर्तमान समय में उपहार खुशी के लिए नहीं बल्कि दिखावे और स्वयं को दुनिया के सामने उजागर करने के लिए करने लगे हैं ।संस्थाओं, विद्यालयों आदि में जाकर उपहार बाँटते हुए तस्वीरें खींच कर सोशल मीडिया में डालना, प्रचार-प्रसार करना तो मात्र दिखावा ही होता है इसमें उपहार देने की आत्मिक खुशी नहीं मिलती बल्कि स्वयं के विख्यात होने की खुशी अधिक मिलती है ।हाँ, यदि हमारा उपहार वास्तव में किसी की आवश्यकता पूरी करता है तो हमें अवश्य खुशी का अहसास होता है ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
ठीक है , उपहार बांटने में खुशियां अवश्य समाहित होती हैं। क्योंकि उपहार मनुष्य- जीवन में एक नई ताजगी, ऊर्जा और प्रोत्साहन के प्रतीक होते हैं। यदा-कदा तो जीवंतता की अभिवृद्धि में भी सहायक होते हैं। आपसी रिश्तो में  आशीर्वादात्मक वचन एवं प्रेम पूर्ण व्यवहार भी उपहार ही   है, जहां वस्तुगत उपहारों की अपेक्षा भावनाए प्रदान हो जाती हैं, जिसमें वास्तविक खुशियों का निदशॆन होता है। यथा- रक्त- संबंधों में। ऐसे ही बालमन के लिए उनकी आयु एवं रुचि के हिसाब से ज्ञानवर्धक एवं श्रेष्ठ साहित्य या खिलौने भेंट करने से उनकी संस्कारगत शिक्षा और बौद्धिक विकास होता है।ऐसे ही साहित्य जगत में रचनाकारों के लेखन के प्रोत्साहन हेतु प्रशस्ति पत्र, दुशाले, प्रतीक- चिन्ह की प्राप्ति भी उनकी मानसिक खुशियों में अभिवृद्धि करती है। अतः यह सत्य है कि हर वर्ग के लिए उपहार से खुशियां प्राप्त होती है।
-डाँ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
उपहार मन की ख़ुशी व्यक्त करने का उत्तम साधन है |उपहार प्रदान करने का उद्देश्य यदि सकारात्मक हो ,दिल से दिया गया हो जिसमें प्रेम हो कोई स्वार्थ निहित न हो वो भेंट लेने वाले को भी हर्षित करता है |दिखावे या  प्रलोभन के लिए दिए गए उपहार में बाध्यता नज़र आती है |उसमे प्यार या ख़ुशी नही होती |आजकल प्रेम में पड़कर युवा उपहार देने के लिए चोरी ,छीनतई या अन्य कुरीतियों का सहारा लेते हैं|उपहार देना और लेना दोनों एक पाक अभिव्यक्ति का साधन है जो एक फूल भेंट कर भी प्राप्त किया जा सकता है |स्नेह से दिया गया आशीर्वाद भी अनमोल रिश्तों को मज़बूती प्रदान करता है|
           - सविता गुप्ता 
          राँची - झारखंड
उपउपहार बांटने का नाम खुशियां है पर यह दिल से हो किसी दिखावा या किसी को छोटा बड़ा बनाने वाला न हो ।साथ उपहार पाने वाले को भी उपहार के आकार प्रकार मूल्य की अपेक्षा देने वाले की नियति व समय और स्थान के आधार पर मूल्यांकन करना चाहिए ।
- शशांक मिश्र भारती
 शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
उपहार  देने  लेने  की  परंपरा  नयी  नहीं  है  प्राचीन  समय  से  चली  आ  रही  है  जिसमें प्रेम  भाव   का  सर्वोपरि  स्थान  था  ।  देने  वाला  एवं  लेने  वाला  दोनों  ही  आनंद  का  अनुभव  करते  थे  ।  वर्तमान  समय  में  इसमें  बहुत विकृतियां  आ  गयी  हैं  ।  दिखावा...... मजबूरी......स्वार्थ ......रूतबा..हैसियत.. ...अहम्  की  भावना   आदि  को  इस  लेन-देन  के  समय  ध्यान  में  रखा  जाता  है  ।  कई  बार  अपना  काम  निकालने  के  लिए  मंहगे  उपहार  देने  पड़ते  हैं  ।  वैसे  प्यार  और  स्नेह  से  भरे  उपहार  अमूल्य  होते  हैं  जो  निस्वार्थ  भाव  दिये-लिए  जाते  हैं , वो  मन  को  असीम  खुशियाँ  प्रदान  करते  हैं  ।  देने   में .....बांटने  में  जो  खुशी  है  वो  लेने  में  नहीं  है  ।  किसी  रोते  हुए  को  हंसाना .... किसी  को  मुसीबत  के  समय  यह  कहना  कि  " मैं  हूं  ना " किसी  भी  उपहार  से  कम  नहीं  है  । मूल्य  महंगे  उपहार  का  नहीं मन  में  महसूस  की  जाने  वाली  भावनाओं  का  है ।  हम  किसी  की  राहों  में  फूल  तो  नहीं  बिखेर  सकते,  मुस्कान  तो  बिखेर  ही  सकते  हैं  । 
        - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर - राजस्थान 
प्रेम एक महंगा उपहार है,
इसकी उम्मीद सस्ते लोगों से न करें!
यदि कोई आप को स्नेह से कोई तोहफा देता है तो हमेशा उस की कद्र करें. फिर चाहे वह तोहफा कम कीमत का ही क्यों न हो. अनेक लोग अपने प्रियजनों को अपने हाथ से बनाए खिलौने,दीये, मिठाइयां आदि देना पसंद करते हैं. तोहफे अनमोल होते हैं. इन तोहफों में देने वालों का स्नेह व परिश्रम छिपा होता है. इन की हमेशा कद्र करनी चाहिए परंतु कुछ लोग दिल से दिए गए तोहफों कि कोई कद्र नहीं करते. समय के साथ साथ परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है. समय बदला है, नजरिया बदला है, परंतु स्नेह तो स्नेह ही है. जब आप अपने घर से दूर जाते हैं तब आप की मां कितने स्नेह से आप के लिए घर की बनाई हुई खानेपीने की चीजें देती हैं. ऐसा नहीं है कि वे चीजें आप के शहर में नहीं मिलतीं परंतु यह मां का स्नेह ही तो होता है. इन छोटीमोटी चीजों में जो स्नेह छिपा है वह शायद दिखावे के महंगे तोहफों से कई गुना बड़ा है.
- लक्ष्मण कुमार
सिवान - बिहार
सकारात्मक विचारों से भरा हुआ मनुष्य हमेशा खुश रहता है । जीवन की हर अच्छी- बुरी परिस्थितियों को ईश्वर द्वारा दिया हुआ उपहार मानता है । ये बात सही है कि उपहार लेने देने से परस्पर प्रेम व्यवहार बना रहता है परन्तु मानव जब उसमें छुपे स्नेह को न देखकर उसका मूल्यांकन मूल्य व उपयोगिता के आधार पर करने लगता है तो रिश्तों में खटास आ जाती है ।जब हम कहीं आते - जाते हैं तो कोई न कोई उपहार अवश्य ले जाते हैं ।  कहते हैं कि मंदिर भी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए,  यदि आपके पास कुछ नहीं है तो भगवान के सम्मुख भक्ति पूर्वक हाथ जोड़कर शीश झुकाना व  उनका नाम स्मरण भी एक प्रकार की भेंट ही है । इसी तरह त्योहारों में भी बड़ों द्वारा बच्चों को उपहार देने की  परम्परा भी हमारी संस्कृति का हिस्सा है ।
अंततः यही कहा जा सकता है कि  प्रेम भाव से जो भी उपहार मिले उसमें शामिल स्नेह को देखिए और प्रसन्न रहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
उपहार अपने मन के लगाव और भावनाओं को बताने-दिखाने का केवल एक उत्तम साधन है। देने वाले को भी खुशी मिलती है और लेने वाले को भी।मन से दिया गया उपहार ही खुशियाँ प्रदान करता है और उपहार छोटा है या बड़ा, कम दाम का है या ज्यादा दाम का.. यह कोई मायने नहीं रखता। पर दिखावे की भावना से दिया गया उपहार
खुशियाँ नहीं देता, हृदय पर केवल बोझ बढ़ाने का कार्य करता है।जिसे वास्तविक जरूरत है उसे उपहार देकर ही देने और लेने वाले को वास्तविक खुशियाँ मिलती है, मिल सकती हैं।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखण्ड
हमारे यहां बडे़ छोटों को उपहार देते हैं!हकीकत में वह उपहार नहीं उनका आशीर्वाद होता है और यही आशीर्वाद हमारी संस्कृति और परम्परा बन गई है !जीवन में प्रेम से बडा़ कोई उपहार नहीं है किंतु उसे जाहिर भी करना पड़ता है !जैसे यदि प्रियतम यदि मन ही मन अपनी प्रेयसी को प्रेम करता है किंतु उसके सौंदर्य और प्रेम का इज़हार नहीं करता वह खुश नहीं होती किंतु दो मीठे बोल बोलने से ही उसे सारे जंहा की खुशी मिल जाती है !वैसे उपहार देने लेने से आपसी संबंध गहरे होते हैं  किंतु वह किस भाव से लिया और दिया जाता है मायने रखता है !स्त्री के लिए मां कहलाना ही ईश्वर द्वारा दिया सबसे बडा़ उपहार है! ईश्वर प्रदत्त उपहारों को तो हम सहर्ष प्रेम से स्वीकार कर लेते हैं किंतु मनुष्य अपने द्वारा दिये गये उपहारों का आंकलन अपनी खुशीयों से करता है !उपहार एैसा होना चाहिए जो उसके काम आए !एक गरीब पंण्डित को धोती कुर्ता ,आटा, दाल, चावल, धी ,तेल ,शक्कर दिया जाय तो उसकी आंखों में खुशी चमकती है वह उपहार सार्थक है ! ठण्ड से ठिठुरते अनाथ गरीब बच्चे को उपहार स्वरुप गरम कपड़े दें तो उपहार सार्थक है ! किंतु किसी बच्चे के जन्मदिन पर खिलौने की जगह  सोने की अंगूठी दी जाय तो क्या बच्चा खुश होगा नहीं....प्रतिष्ठा की आड़ में दिया उपहार अहंकार को इंकित करता है उसमें केवल वह अपनी खुशी ढूढ़ता है अत: केवल उपहार बांटने का नाम ही खुशीयां नहीं है अपितु उपहार से दूसरों को खुशी मिलने का नाम है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
उपहार का आदान प्रदान बहुत पुरातन समय से चलता आ रहा है जब उपहार दिल से दिया जाता है और सम्मान और प्यार से स्वीकार किया जाता है तो उपहार अवश्य खुशियां बांटता है 
जब उपहार मात्र औपचारिक्ता निभाने के लिए दिया जाता है तो यह खुशियां बांटने के बजाय चिंतन का विषय बन जाता है 
लेनेवाला तब मौका तलाशता है की हिसाब कब और कैसे बराबर किया जाए 
- नंदिता बाली 
सोलन - हिमाचल प्रदेश
हमारी प्राचीन परम्परा रही है कि किसी भी खुशी के मौके पर हम आशीर्वाद स्वरुप कुछ उपहार ले कर जाते हैं, और इस परंपरा को एक - दूसरे के साथ सामर्थ्य के अनुरूप निभाते हैं। जैसे - शादी-ब्याह, किसी बच्चे की छठी,
इत्यादि। गाँवों और कस्बों में तो मुंडन, जनेऊ के आयोजन में लोगों द्वारा दिए उपहारों को सबके समक्ष दिया जाता है और लिस्ट बना कर रखते है। फिर उसी के अनुसार उनकी बिदाई भी की जाती है। इसी तरह से उपहार में प्यार और अपनेपन का समावेश में होना चाहिए। इसे दिखावा और आडंबर के स्वरूप नहीं लेना चाहिए।
- कल्याणी झा
रांची - झारखंड
उपहार  आत्मीयता  का  परिचय  देता है उम्र चाहे कोई  भी  हो उपहार  लेने  देने  मे  एक  आनंद  की  अनुभूति  होती है इससे  सम्बन्ध  मजबूत  बनते है पर  अपेक्षा  कभी  नही  रखे।उपहार  की  कोई  कीमत  नही  है यह तो अनमोल  है ।उम्र  के साथ  साथ  उपहार  के  रूप  बदलते  रहते  है 
इन्सान  के  स्वभाव  के  दो पहलू  है सकारात्मक  और  नकारात्मक  सकारात्मक इन्सान  कीमत सोच  मे ही खुशिया  होती  है लेकिन  नकारात्मक  कीमत बात  ही अलग  है  वे कीमत  को आकते  है उसमे  अहंकार  कीमत भावना  भरी  रहती  है   पर सामान्य  तौर  पर  उपहार  से खुशी  ही मिलती  है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन


कवि नरेश लाभ को सम्मानित करते हुए बीजेन्द्र जैमिनी 
बीच में रमेशचंद पुहाल 


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