क्या व्यावहारिकता के नाम पर आदर्शों की बलि देना उचित है ?

जीवन म़ें आदर्शों का बहुत बड़ा योगदान है । बिना आदर्शों के जीवन में पहचान नहीं बनती है । इसलिए जीवन में आदर्श बहुत जरूरी है । कई बार व्यावहारिकता के आधार पर आदर्श  खरे नहीं उतरते हैं । इस को प्रमुख कारण आदर्श किसी पम्परा पर आधारित होता है । इसलिए व्यावहारिकता के आधार पर आदर्शों की बलि देने की स्थिति आ जाती है । फिर भी आदर्श तो आदर्श हैं । आज की चर्चा पर आये विचारों का भी अध्ययन करते हैं :- 

हमारे व्यवहार में ही हमारे आदर्शो की झलक लिप्त होती है।
अक्सर हमने लोगों से यह कहते सुना अमुक व्यक्ति बहुत व्यवहारिक है ये  ही तो उसके संस्कारों व आदर्शो का परिचायक है ।अतः हम कह सकते हैं कि ये दोनों ही एक दूसरे के पर्याय हैं इन्हें पूरी तरह से अलग  नही किया जा सकता। हाँ व्यवहारिक रूप में यह संभव नही के नाम पर आदर्श का पूरी तरह से गला घोंट देना मात्र अपनी व्यकिगत सोच की परिभाषा है वरना दोनोमे सुंदर सामंजस्य किया जा सकता है ठीक उसी कहावत की तरह  कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे।
- रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर - छत्तीसगढ़
सर्वप्रथम ये जानना जरूरी है कि  व्यवहारवाद व आदर्शवाद क्या हैं ।  व्यवस्थित जीवन शैली हेतु जो नियम निर्धारित किये जाते हैं वे आदर्श का प्रतिमान स्थापित करके जीवन मूल्य बन जाते हैं  तो दूसरी ओर यथार्थवादी अपने अनुभवों से जीवन को जीते हुए उसमें आवश्यक परिवर्तन समय - समय पर कर लेते हैं । परिस्थितियों के अनुसार बदलाब करना ही पड़ता है । केवल आदर्श पर चल पाना वास्तव में असंभव तो नहीं पर कठिन अवश्य होता है ।
आदर्शवादी ये मानता है कि किसी भी वस्तु का अस्तित्व हमारे ज्ञान पर निर्भर करता है जबकि व्यवहारवादी हर वस्तु का स्वतंत्र अस्तित्व मानते हैं उनके अनुसार ऐसी अनेक चीजें हैं जिनकी जानकारी उन्हें नहीं है पर इसका अर्थ ये नहीं है कि उसका स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है , इसके लिए हमें ज्ञानार्जन करना होगा तभी सारी स्थिति स्पष्ट हो सकती है ।
अब प्रश्न उठता है कि क्या व्यवहारिकता के नाम पर आदर्शों कि बलि देना उचित है तो इसका स्पष्ट उत्तर है कि जीवन में मूल्यों का होना बहुत जरूरी है जब तक हम कोई मापदंड निर्धारित नहीं करेंगे तब तक लोग व्यवहारिकता के नाम पर अपने-अपने स्वार्थों की पूर्ति करते रहेंगे ।
आदर्शों को भी देश, काल व परिस्थितियों के अनुसार समय-समय पर जीवन मूल्यों के अनुसार अपना मूल्यांकन करते रहना चाहिए जिससे उसकी उपयोगिता बनी रहे ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर (म.प्र.)
एक आदर्श व्यक्ति अपने सिद्धांत और व्यवहार दोनों का ध्यान रखता है !उसमे सत्यनिष्ठा और व्यवहार कुशलता एवं आत्म विश्वास होता है!आदर्श व्यक्ति सदा अनुशासन और समय को लेकर चलता है ! बचपन से ही यह गुण दिये जाते हैं! विद्यार्थी जीवन में तो पूर्ण रुप से पाठ पढाया जाता है अत: बडे़ होकर वे व्यवहार कुशल होते हैं !हां कुछ लोग अपवाद भी होते हैं जो व्यवहार में आने वाले नियमों का उल्लंघन करते हैं और उनके इसी व्यवहार से गैर जिम्मेदाराना के रुप में पहचाने जाते हैं !
आज जो स्थिति है उसमें व्यवहारिकता को देखते हुए हमें संयम से आदर्श का पालन करना होगा !
आदर्श की बलि न दे व्यवहार में कुछ बदलाव करना चाहिए एवं अनुशासन के नियम पुख्त करने होंगे !
- चन्द्रिका व्यास 
आदर्श ईश्वर के प्रतिरूप  या ईश्वरीय व्यवस्था के अनुकूल होते हैं।यह सामाजिक सुदृढ़ व्यवस्था के समुन्नत और सार्थक मानव जीवन के उत्कृष्ट मानदंड भी होते हैं।सदियों से हमारी व्यवहारिक संस्कृति में ऋषियों ने श्रेष्ठतम जीवन- मूल्यों से गुँथे आदर्शों को एवं व्यक्तित्व के विकास के  प्रेरक के रूप देखा है और जिया भी  है।जो कि  रामायण- तुल्य जीवन का  ही आदर्श है;  जिसमें सर्व लोक मंगल का भाव और भारतीय जीवन दर्शन है। वहीं दूसरी ओर अतिवादिता , बुद्धिवादिता सुखवादिता का जीता जागता  व्यवहारिक सत्य का दिग्दशॆक महाभारत भी है ; जहां स्वार्थ ,स्वार्थ, छल,कपट,दम्भ, लोलुपता और दिखावा ही दिखावा और जिसका अंत भी  भयावह है। अत: आदर्शपरक  व्यवहार ही उचित है ।
- डॉ रेखा सक्सेना
व्यावहारिकता अपनी जगह है आदर्शों का अपना स्थान है आदर्शों के साथ ही व्यक्ति व उसके समाज की महत्ता है पहचान है ।व्यावहारिकता अपनी स्थिति में ठीक है उसको आदर्शों के रास्ते नहीं लाना है ।क्योंकि बिन आदर्श जीवन का क्या औचित्य और क्या परिणति ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
व्यावहारिकता  और  आदर्श  एक  ही  सिक्के  के  दो पहलू  हैं  ।  दोनों  में  से  एक  की  बलि  दोनों  के  लिए  ही हानिकारक  है  ।  व्यवहार  जहां   व्यक्ति  के  सभी  पहलुओं  को  बाहर  से  दर्शाता  है  वहीं  आदर्श  उसके  भीतर......उसकी   सोच  में.......उसके  संस्कारों  में  विद्यमान  रहते  हैं,  जिन  पर  चलकर  ही  मानव  व्यावहारिक .......आदर्शवादी  बनता  है......किसी  के  लिए  अनुकरणीय  बनता  है  ।  अतः  व्यावहारिकता  के  नाम  आदर्शों   की  बलि  नहीं  दी  जा  सकती  । 
       - बसन्ती पंवार 
      जोधपुर ( राजस्थान )
बिना आदर्श के व्यक्ति दिशा विहीन हो जाता है। जीवन मे आदर्श बेहद जरूरी है। जो इंसान आदर्श पर चलता हैं वही इंसान अच्छा इंसान बनने के साथ- साथ उच्च मुकाम भी प्राप्त करता हैं। जहाँ तक व्यवहार की बात है उसके आदर्श (संस्कार) पर निर्भर करता हैं कि वो अच्छा व्यवहार करेगा या बुरा।
         -  प्रेमलता सिंह,
          पटना -बिहार
आदर्श और व्यवहारिकता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।
व्यवहारिकता की अधिकांश बातें आदर्शों में समाहित रहती हैं ।कुछ अपवादों में आदर्शों और व्यवहारिकता का टकराव हो जाता है ।ऐसे में व्यक्ति को नियमों और आदर्शों से समझौता नहीं करना चहिये ।ऐसे मामलों में व्यवहारिकता आड़े नहीं आनी चहिये ।।
- सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हि प्र
व्यावहारिकता के नाम पर आदर्शों की बलि देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मनुष्य अपने आदर्शों से ही अच्छा व्यावहारिक बनता है ।विनम्रता, सहनशीलता, दया, सहयोग, ममता, अपनत्व, आदर,सत्यवद् ये समस्त गुण ही हैं जिन्हें हम अपने आदर्श बनाते हैं और और उन्ही के आधार पर दूसरों से व्यवहार करते हैं ।ये आदर्श ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान बनाते हैं ।व्यावहारिकता के लिए हमें अपने आदर्शों की बलि देने की आवश्यकता नहीं बल्कि हमारे आदर्श कई बार दूसरे लोग भी अनुसरण करने लगते हैं ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
जी बिल्कुल नही,व्यवहारिकता के नाम पर हमें आदर्शो की बलि बिल्कुल नही देनी चाहिए,क्योकि हमारे आदर्श ही हमारी पहचान है, यदी हम अपने आदर्शों की बलि देते हैं, तो हमारा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा,मन का मनोबल ही श्रेष्ठ रहता है, अतः ऐसा करना कदापि उचित नही है।
- वन्दना पुणतांबेकर
   इंदौर - मध्यप्रदेश
व्यावहारिकता के नाम पर आदर्शों की बलि क्यों दी जाये 
मनुष्य के हाव भाव बातचीत से उसका पूरा व्यक्तित्व झलकता है । आदर्शवादी , और सिद्धांत वादी मानव कभी अपने व्यवहार में बनावटी पन नहीं लायेगा । अपने ंअस्तित्व को कोई नहीं मिटाता अपनी पहचान की कोई बलि नहीं देना चाहता है । 
हाँ कुछ लोग हैं जो अच्छाई का नक़ाब पहने होते है वो जरुर 
झूठा ढोंग रच सकते हैं आदर्शों का क्यो की उनका कोई आदर्श नहीं होता बिन पेंदे के लोटे होते है ।और लोग बिन कहे ही सब समझ जाते है। आदर्श वादी का अपनी एक अलग पहचान होती है वह कभी समझौता नहीं करता । सिद्धांत सिद्धांत होते है । बदल गये तो क्या ? और व्यावहारिकता में और अंदर और वह दोहरा चरित्र है । जो होना नही चाहियें । हमारा व्यवहार ही हमारे अस्तित्व की पहचान है । 
- डा. अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
व्यावहारिकता के नाम पर आदर्शों की बलि देना सर्वथा अनुचित है ।आर्दश सर्वोपरि है ।अपने आदर्शों के साथ व्यवहारिक होने की कोशिश करनी चाहिए ।उदाहरणस्वरूप  ट्रैफिक सिगनल यदि लाल हो तो हमें रूकना चाहिए,चाहे वहाँ ट्रैफिक पुलिस मौजूद हो, न हो या अन्य लोग अपनी सुविधानुसार नियम की अनदेखी कर बिना रूके सरपट निकल जा रहे हों  ।नियम पालन आदर्श है तथा सभी के हित के लिए है ,धीरे धीरे यह अनुकर्णीय होता जायेगा,क्योंकि अधिकांश लोग नियम पालन करना चाहते हैं किन्तु देखा देखी गलत व्यवहारिकता को भी अपनी सुविधा के लिए अपना लेते हैं 
        - रंजना वर्मा
     रांची - झारखण्ड
व्यावहारिकता के नाम पर आदर्शों की बली देना उचित है?प्रश्न हमें सोचने पर मजबूर कर देता है कि कैसे कोई व्यक्ति अपने आदर्शों को ताक पर रखकर असभ्य व्यवहार करता है |आदर्श और व्यवहार दोनों एक दूसरे के पर्याय है|
      लेकिन कई परिस्थितियों में हमें अपने आदर्शों की बली ,मजबूरी या समय के हालात को देखते हुए चढ़ाने पर विवश कर देती है |वहाँ हम एक गाल पर तमाचा खाकर दूसरा गाल नही बढ़ा सकते |उचित तो ये ही है कि आदर्शों को व्यावहारिकता में ही ढाला जाए|
                - सविता गुप्ता 
                   राँची - झारखण्ड
हर युग में आदर्शो की स्थापना हुई 
।आदर्शो को व्यवहारिकता ने निगल लिया ।व्यवहारिकता से बचना होगा, ताकि आदर्शो की रक्षा हो सके ।क्यों कि आदर्श कभी व्यक्ति गत नहीं होते, वे समाज सापेक्ष होते हैं ।व्यवहारिकता ने बहुत नुकसान किया है आदर्शो का ।
- डॉ आशा सिंह सिकरवार 
अहमदाबाद - गुजरात
आदर्शों की बलि देना किसी भी कीमत पर उचित नहीं है। आदर्श ही तो हमारे धरोहर हैं और अपनी धरोहर को मिटाना स्वयं को मिटा देना हुआ। हमारे आदर्श ही हमें मजबूती से टिके रहने का संबल बनते हैं, हमारे अंदर एक सुदृढ़ आत्मविश्वास जगाते हैं। व्यवहारिकता के नाम पर आदर्शों की बलि देना कतई उचित नहीं है।
             - गीता चौबे
            रांची - झारखंड
'आदर्श ' शब्द व्यापक और इतना विशेष है कि उसमें संस्कार, संस्कृति , सहिष्णुता,सद्भाव सबकुछ सन्निहित है,ऐसे में उसे व्यवहारिकता के पैमाने पर तौलना अनुचित होगा। आदर्शवान इतना असंयमी और अविवेकी नहीं हो सकता और न ही उसका सामाजिक प्रभाव इतना कमजोर होगा कि व्यवहारिकता को लेकर उसकी छवि धूमिल हो। आदर्शवान के 'आदर्श' में उसकी व्यवहारिकता भी सम्मिलित है। अतः मेरा ऐसा मानना है कि इससे 'आदर्श ' पर बलि देने जैसी कोई बात नहीं है। व्यवहारिकता ,सामाजिक व्यवस्था का अंग है। 
      हाँ, प्रगाढ़ता या मैत्रीपूर्ण संबंध जरूर सवालिया निशान खड़े कर सकते हैं। इसका ध्यान रखना होगा। जब तक व्यवहारिकता महज सामान्य और औपचारिक है तभी तक बचाव की स्थिति में है, सुरक्षित है,।        इससे तनिक भी परे हुये और जरा भी घनिष्ठता नजर आयी कि आदर्शों की बलि सुनिश्चित।  
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
नहीं । आदर्शों के अपने दायरे निश्चित हैं और व्यवहारिकता दिमाग द्वारा सही ठहराए जाने वाला कार्य है, जो समाज और समय के अनुसार किया जाता है । उसमें आदर्शों को छोड़ने की अनुमति नहीं है। इसलिए आदर्श और व्यवहारिकता पर्याय बन सकते हैं विलोम नहीं । बल्कि दोनों मिलकर श्रेष्ठता प्रदान कर सकते हैं ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार 
आदर्श सर्वोच्च स्थान पर है और व्यवहारिकता के लिए तीन चार सीढ़ियां उतरना पड़ता है न चाहते हुए भी आदर्शवादी व्यक्ति को समाज से कदम मिलने की खातिर व्यावहारिक होना पड़ता है व इस क्रिया मैं आदर्शों की बलि चढ़ती है , चाहे थोड़ी या अधिक 
- नंदिता बाली 
सोलन - हिमाचल प्रदेश



हरियाणा यूनियन आँफ जर्नलिस्ट  के प्रदेश अध्यक्ष संजय राठी का अभिनंदन करते हुए बीजेन्द्र जैमिनी 


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