क्या जीवन में रिश्तों से अधिक कुछ महत्वपूर्ण है ?

रिश्तों की कोई सीमा नहीं होती है । परन्तु बिना स्वार्थ के ही रिश्ते अच्छें कहलाते हैं वरन् रिश्तें टूटते देर नहीं लगती है । जीवन में रिश्तों के अतिरिक्त कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं होता है । परन्तु सम्पत्ति जैसे विवादों ने रिश्तों को तार - तार कर देता हैं । यह आदिकाल से होता आ रहा है । महाभारत व रामायण से अच्छे इसके उदाहरण हो नहीं सकते हैं । फिर भी इस ओर ध्यान कोई नहीं देता है । इसे हम इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी कहँ तो गलत नहीं कहँ सकते हैं । अब " आज की चर्चा " पर आये विचारों को भी देखते हैं : -
मानव  जीवन  की बुनियाद रिश्ता  है  परन्तु  इन  रिश्तो  से  ज्यादा  महत्वपूर्ण  इंसानियत  का  रिश्ता  है  परन्तु  सामान्य  तौर  पर  रिश्तो  के  जाल  मे  इंसान  इस  तरह  उलझ  जाता  है  कि  इंसानियत  का  फर्ज  पीछे  छूट  जाता  है  इसलिए  रिश्तो  मे  मिठास  विश्वास  लाने  के  लिए  सबसे  पहले  इंसानियत  का फर्ज  पूरा करना  आवश्यक  है 
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जीवन में रिश्तों से अधिक महत्वपूर्ण है इंसानियत ।इंसान  को अपने निज रिश्तों में प्राकृतिक रूप से आसक्ति होती है ।कभी कभी इन अंध आसक्ति में वह अपनी इंसानियत भूल जाता है , जो सही नहीं है ।अगर हममें सामर्थ्य है तो हमें रिश्तों से ऊपर उठकर इंसानियत का धर्म अवश्य निभाना चाहिए ।        - रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
जीवन  में  रिश्तों  से  बढ़कर  कुछ  है  तो  वो  है--देश, कर्तव्य  और  इंसानियत   ।  जन्म  से  पारिवारिक  रिश्ते  बनते  हैं  और  बड़े  होने  पर  अन्य  ।  कुछ  रिश्ते  जो  प्रेम,  विश्वास  पर  आधारित  होते  हैं  वे  जीवन  के  दुःख-दर्द  में  सहारा  बनते  हैं  ।  रिश्तों  के  बगैर  कभी-कभी  एकाकी  जीवन  की  कल्पना  से  मानव  सिहर  उठता  है  ।  सभी  रिश्ते  अपनी-अपनी  जगह  महत्वपूर्ण   होते  हैं , किसी  को  कम  नहीं  आंका  जा  सकता  मगर  भावनात्मक,  निस्वार्थ  रिश्तों  की  अहमियत  सर्वोपरि  है  ।  वैसे  तो  भीड़  में  लगभग  सभी   अकेले  होते  हैं  ।  परन्तु  मारवाड़ी  में  एक  कहावत  है-
" मूळी  पानड़ा  सूं  चोखी  लागै"  वैसे  ही  मानव  रिश्तों  से  परिपूर्ण  ही  अच्छे  लगते  हैं , इनसे  ही  खुशियों  का  अस्तित्व   है  वर्ना  अकेलेपन  का  दंश  झेलना  आसान  नहीं  होता  । 
         - बसन्ती पंवार 
          जोधपुर - राजस्थान 
जीवन है तो रिश्ते हैं; रिश्तों में मिठास है ,तो जीवन सफल है |वरना मनुष्य अकेले धरती पर आया है अकेले ही जाना है |हमारी यादें,व्यक्तित्व,कृतित्व हमारे बनाएँ रिश्तों के साथ रह जाते हैं |जीवन में मानवता से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं चाहे वो इंसानों से हो ,पेड़ -पौधों या पशु -पक्षी से हो|एक अबोध पशु भी रिश्ते को वफ़ादारी से निभाता है |दिखावे  या मतलबी रिश्तों की डोर कमजोर होती है|आजकल रिश्तों की पवित्रता खोती जा रही है|सुकून और ख़ुशी का जीवन जीने के लिए ज़िन्दगी में रिश्तों की क़दर करना चाहिए |जो हमारे जीवन को महत्वपूर्ण बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं |
                              - सविता गुप्ता 
                             राँची - झारखंड
रिश्ते असीमित हैं ।ये हमारी भावनाओं से जुड़े होते हैं और जीवन में महत्वपूर्ण स्थान भी रखते हैं ।कहते हैं एक चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, उसी प्रकार मनुष्य अकेला कभी नहीं रह सकता क्योंकि वह एक सामाजिक प्राणी है और वह अनेक रिश्तों से स्वतः ही जुड़ता चला जाता है ।माता-पिता, भाई-बहन, मित्र आस-पड़ोस, सगे संबंधी और नजाने कितने ही लोग हैं जो हमारे संपर्क में आते हैं, जाने-अनजाने कई ऐसे लोग होते हैं जिनसे हम प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से भावनात्मक रूप से जुड़े रहते हैं और वे हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन जाते हैं ।मानवता, दया, परोपकार, ममता ,त्याग आदि ऐसी भावनाएँ हैं जो हमारे रिश्तों को स्थाई बना देती हैं ।जीवन रिश्तों के बिना कुछ भी नहीं ।व्यक्ति चाहे कितना भी कामयाब हो जाए उसे अपने सुख-दुख साझा करने के लिए अपनों की ही जरूरत होती है ।दुनिया में सौहार्दपूर्ण वातावरण यदि कायम है तो वह एक मात्र आपसी प्रेम,भाईचारे के कारण ही है, इसलिए जीवन में रिश्ते से महत्वपूर्ण कुछ नहीं है ।
रिश्ते बनाएँ, स्वार्थी न बनें ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
यह बात बिल्कुल सही है कि जीवन रिश्तों का ही नाम है और उससे महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है, परंतु हमें यहाँ रिश्तों का मर्म समझना होगा। आमतौर पर हम दैहिक और भौतिक संबंधों को ही रिश्ता मान लेते हैं जो सही नहीं है। हमें इससे ऊपर उठकर उन शाश्वत रिश्तों के बारे में सोचना होगा।
   सबसे पहले आत्मा के साथ परमात्मा का रिश्ता जिसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। रूह से रूह का रिश्ता, इंसानियत का रिश्ता भावनात्मक रिश्ता... इन रिश्तों को अगर सही मायने में रिश्ता मानें तो इस जीवन में रिश्तों से महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं।
        -  गीता चौबे
        रांची - झारखण्ड
जीवन के साथ हमें अनेक रिश्ते वरदान स्वरुप मिलते हैं ।ये पारिवारिक रिश्ते होतें हैं ।जैसे -जैसे हम बढ़ते हैं हमारे कई रिश्ते बन जाते हैं ।हर रिश्ते को हम खूबी से  निभाते हैं ।लेकिन कभी -कभी रिश्तों और कर्तव्यों के बीच टकराव की स्थिती आ जाती है ।उस समय हमें चुनाव करना होता है कि हमारे लिए क्या महत्वपूर्ण है ।मेरे विचार से उस वक्त हमें अपने कर्तव्यों का चुनाव करना चाहिये ।समय लगेगा लेकिन रिश्ते और कर्तव्यों दोनों की डोर हमारे हाथ होगी ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
जीवन मे रिश्ता होना महत्वपूर्ण हैं। रिश्ता ऐसा हो जिसमें हम एक दूसरे को अपना सुख -दुख बता सके। हर पल  एक दूसरे के काम आए। आपस मे प्रेम, भाईचारा, दया, ममता और समर्पण हो। इंसान अकेला नहीं रह सकता ,उसे जीने के लिए एक दूसरे का सहयोग अति आवश्यक होता हैं। ऐसे में रिश्तों की अहमियत बढ़ जाती हैं। रिश्तों से ऊपर हमारा देश हैं।
       - प्रेमलता सिंह
        पटना - बिहार
जीवन का आरम्भ ही रिश्तों से होता है ।शिशु का मां से फिर परिवार समाज व देश जुड जाता है रिश्ते किस प्रकार निभाये जाता हैं उनमें अपनापन कितना है तथा यह कितना स्थायित्व लिए हैं यह कई बार रिश्तों से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
पहली नजर में रिश्ते का अर्थ हम पारिवारिक रिश्ते से लेते हैं। छोटे बच्चों को भी इन रिश्तों की पहचान करवाते हुए इनका महत्व बतलाते हैं। परंतु कुछ रिश्ते खून के रिश्तों से बढ़कर सगे और प्रिय हो जाते हैं क्योंकि उनका आधार प्रेम और विश्वास होता है।  कई बार रेलगाड़ी या बस में सफर करते हुए चंद घंटों में ही गहरे रिश्ते जुड़ जाते हैं। सामाजिक प्राणी होने के कारण मनुष्य रिश्तों से अलग होकर नहीं रह सकता। यदि दिल में इंसानियत का जज्बा हो तो हर रिश्ता महत्वपूर्ण हो जाता है। किसी के साथ यदि हम बहुत जल्दी दिल मिला लेते हैं तो लगता है --
मेरा तुझसे है पहले का नाता कोई 
यूं ही नहीं दिल लुभाता कोई... 
कहने का मतलब कि सरल, साफ, मीठे, निःस्वार्थ रिश्तों का जीवन में होना आवश्यक है। 
- डाॅ सुरिन्दर कौर नीलम 
राँची -झारखंड
जीवन विशेष भी है और विचित्र भी। यह विविधताओं को लिये होता है। जीवन में भावनाओं का समुद्र भी है और अभिलाषाओं का भी। जीवन के साथ कुछ रिश्ते बने हुये आते हैं और कुछ यहीं बनते हैं। दोनों प्रकार के रिश्ते आत्मीय होते हैं,जिनमें प्रेम और विश्वास निहित होता है। जीवन में इन रिश्तों को निभाना और स्थिर रखना महत्त्वपूर्ण है पर साधे रखना बहुत ही कठिन है। जीवन अकेले रिश्ते निभाने के लिये ही नहीं है, जिजीविषा के लिये और भी बहुत काम करना पड़ते हैं। जो महत्वपूर्ण होते हैं।सभी कार्य निष्ठा से निभाने वाले ही सफल और श्रेष्ठ माने जाते हैं।
साराशं यह है कि रिश्तों के अलावा भी जीवन में अनेक महत्वपूर्ण और आवश्यक कार्य हैं। कार्य कोई भी हो सभी को महत्वपूर्ण मानते हुये सच्चाई और पवित्रता से निभाना ही सफलता है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
मनुष्य के जीवन में रिश्तों का अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान है। ये रिश्ते भी कई प्रकार के होते हैं। सर्वप्रथम तो इंसानियत का रिश्ता जिसके अंतर्गत मानव - मानव का रिश्ता, मनुष्य का अन्य जीव जंतुओं से रिश्ता तथा मनुष्य और प्रकृति का रिश्ता। इन रिश्तों को सँवारना और सहेज कर रखना हर किसी के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है। ये सारे रिश्ते हमारे जीवन का आधार हैं। लेकिन इन सबसे भी ऊपर एक रिश्ता है जो है परमात्मा के साथ हमारा रिश्ता। जब हम अपने दैहिक और जैविक रिश्तों का निर्वहन भलीभाँति कर लेते हैं तब परमात्मा के साथ हमारा ये रिश्ता स्वयमेव ही सुदृढ़ हो जाता है और हमारे जीवन को सद्गति की प्राप्ति होती है।
              - रूणा रश्मि
            राँची - झारखंड
हां, ईश्वरीय सत्ता का ज्ञान, ईश्वरीय प्रेम, ईश्वरीय शक्ति। यही सब कुछ जीवन और तद् जन्य रिश्तो का निमित्त है। "एकोऽहम् बहुस्यामा"   परमेश्वर का पसंदीदा खेल है। श्री कृष्ण ने गीता में स्वयं कहा भी है --कि मैं ही पृथ्वी में प्रविष्ट होकर अपनी शक्ति के समस्त प्राणियों को धारण करता हूं ; लीला करता हूं। प्राणियों में मानव और पशु दोनों ही में जीवन है पर रिश्तो का ज्ञान मात्र मनुष्य को ही होता है। मनुष्य- जीवन बुद्धिमत्ता से पूर्ण है, जो ज्ञान की पराकाष्ठा और मानवीय उदात्त गुणों का पारखी भी है। जहां वह इहलोक से साधारण मानव- जीवन को जीते हुए ईश्वरीय विधान के  अनुकूल सत्कर्म करते हुए,  सामाजिक जीवन जीते हुए, देवत्व को प्राप्त कर सकता है ।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
" कर्म एवं कर्तव्य" सर्वप्रथम  है। जिस देश के हम वासी हैं उसके प्रति हमारी कर्तव्य निष्ठा अन्य सभी रिश्तों  से ऊपर है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो स्वाभाविक है उसकी जिंदगी की बुनियाद रिश्तों पर हीं आधारित होती है । निज रिश्ते,,दूर के रिश्ते, दोस्त, पड़ोसी सबके साथ उसका रिश्ता आजीवन चलता रहता है ।सब की समय समय पर अहमियत होती है । सब का सही सामांज्सय स्थापित कर निर्वाह करता है तो व्यक्ति का जीवन आनंदित हो जाता है।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
सामाजिक प्राणी होंने के नाते मनुष्य जीवन के लिए रिश्तें अति महत्वपूर्ण हैं |रिश्तों की पवित्रता और गर्माहट के बिना जिंदगी के सफर को हँसकर काटना सम्भव नहीं हो सकता |इन महत्वपूर्ण रिश्तों में माता, पिता, दादी, दादा, नानी, नाना, बुआ, भाई, मौसी ताऊ, चाचा, मामा के रिश्ते खून के नजदीकी रिश्तों की प्रीत भरी रिमझिम फुहारों से जिंदगी कुछ खट्टे, कुछ मीठे रस घोलती गुजरती रहती है | व्यक्ति के खुशी और गम के अंधेरों में घिरने पर यह स्नेहिल रिश्ते ही संबल के रूप में साथ खड़े मिलते हैं |चूँकि सुख दुःख प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में दिन रैन की तरह आते जाते रहते हैं | खुशियों की घडियों के पल तो पल क्षण के समान व्यतीत हो जाते हैं | किंतु जब दैववश व्यक्ति किसी दुविधा में घिरकर छटपटाता है तो  इन रिश्तों के मधुर प्यार के अपनेपन के कारण ही व्यक्ति निराशा,हताशा,मानसिक,शारीरिक व्याधियों जैसे  दुखद क्षणों का डटकर सामना करता है | इन अमूल्य रिश्तों के हर पल साथ खड़े रहने के कारण व्यथित व्यक्ति शीघ्र ही कुहासे भरी अँधियारी अमावस के बाद नवीन सूर्य की किरणों का स्वागत करने के लिए शारीरिक, मानसिक दुर्बलता को त्यागकर उन्नतिशील पथ पर अग्रसर होता रहता है | रिश्तों के मधुर प्रेम के अतुलनीय प्रसंग में गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरित मानस का एक सटीक उदाहरण देखिये~
 त्रेतायुग में भगवान श्रीराम को उनके पिता दशरथ के वचनानुसार वनवास काल दिया गया था |वन जाते समय उनके अनुज भ्राताश्री लक्ष्मण ने श्रीराम के भ्रातप्रेम स्वरूप अपनी पत्नी उर्मिला की चिंता किये बिना अपने बड़े भाई श्रीराम के साथ वनवास को चले गए थे |
उधर राम के दूसरे भरत भाई ने राजगद्दी मिल जाने के बाद भी उसे ठुकरा दिया | अपने बड़े भाई श्रीराम के वियोग में उनकी खडाऊं को राजगद्दी पर रखकर राजकाज चलाया | वनवास काल में भगवान श्रीराम ने अपने अनुज लक्ष्मण के साथ मिलकर राक्षसों का संहार किया | लंकाधिपति असुर रावण का विनाश कर वनवास काल की यात्रा पूर्ण की |यह प्रसंग ऐसे भातृप्रेम का अनूठा उदाहरण है | कि आज कलिकाल में भी टूटते परिवार और रोते, कराहते रिश्तों के लिए ये अत्यंत महत्वपूर्ण शिक्षा है | 
- सीमा गर्ग मंजरी 
मेरठ - उत्तर प्रदेश
जीवन मे रिश्ते को बनाए रखने के लिए मनुष्य को अपने आपसी प्रेम विश्वास को एक दूसरे के साथ बनाए रखने होगा।
रिश्ते की बात करे तो  बच्चों का रिश्ता जीवन में सबसे महत्वपूर्ण होता है । माता-पिता का स्थान जीवन में कभी कोई और नहीं ले सकता । बच्चे, मां-बाप के कर्जदार होते हैं क्योंकि यह जिंदगी मां-बाप द्वारा ही मिली है। माता-पिता बच्चों को चलना सिखाते हैं, जब कभी भी बच्चे अगर चलते-चलते गिर जाए तो फिर हमारे माता-पिता ही हमें गिर कर उठना भी सिखाते हैं। अगर बच्चे कभी भी जीवन में कोई गलती करें तो मां-बाप ही उन्हें उस गलती को सही करने की सीख देते हैं।
- लक्ष्मण कुमार
सिवान - बिहार
रिश्ते का अर्थ होता है नाता जो पारिवारिक लोगों के बीच जन्मजात होता है । जबकि सम्बंध निर्मित होते हैं  जैसे पति -पत्नी के बीच या दोस्तों के बीच या एक समान विचारधारा वाले लोगों के बीच । रिश्ते अक्सर आवश्यकता के अनुसार बनते बिगड़ते रहते हैं । उनमें जब विश्वास की जगह स्वार्थ की भावना आ जाती है तो उसे टूटने में देर नहीं लगती है । मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जिसका कार्य व्यवहार रिश्तों पर ही टिका होता है । ये बात सही है कि सबसे महत्वपूर्ण कर्म होते हैं जो मानवता का संबर्द्धन करते हैं । जब हम नेक कार्य करते हैं तो स्वतः ही बहुत से लोग हमसे जुड़कर एक अनजाने रिश्ते में बंध जाते हैं और ये प्रकृतिप्रदत्त  रिश्तों से महत्वपूर्ण हो जाते हैं । समाज को एक सूत्र में बाँधने हेतु रिश्तों की डोर होनी चाहिए किन्तु केवल इस आधार पर हम रिश्तेदारों की अनावश्यक मदद करें कि हमारे सगे सम्बंधी हैं  ये किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता है ।अंततः ये कहा जा सकता है कि मानव धर्म रिश्तों से भी अधिक महत्वपूर्ण होता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
आज की चर्चा  के इस शीर्षक में ' कुछ ' में कई संभावनाओं के द्वार खुलते नजर आ रहे हैं । जो अपने आप में बहुत कुछ कह रहा है । मेरे लिए यह कहीं  नकारात्मकता का  भी पक्ष  है और साकारत्मक  भी है ।
  मेरे लिए साकारत्मक रूप  ऐसा है जो मानव को मानव से जोड़ता है . जो  मानवीय धर्म का प्रकाश है . जिसका उद्देश्य असभ्यता , अमानवीयता , अन्धकार , अज्ञान , अत्याचार , अनाचार , अनैतिकता , व्यभिचार को नष्ट करना है . जो इंसानियत का प्रकाश फैलाता हो ।
 एक मिसाल मैं संबंधों की पेश कर रही हूँ ।
     2017 में भाई बीजेन्द्र जैमिनी जी की लघुकथा प्रतियोगिता की सूचना मैंने फेस बुक पर पढ़ी थी । मैंने इसे पढ़ कर अपनी लघुकथा स्पर्धा के लिए रजिस्टर डाक से भेज दी । कई महीनों के बाद  परिणाम  मेरा प्रथम आने का पता लगा । डाक से 1100 रूपये का चेक और प्रमाण पत्र  आया । इस कलम के रिश्ते ने मुझे हमेशा के लिए बीजेन्द्र भाई से जोड़ दिया । यह रिश्ता खून का रिश्ता नहीं है ।सच्चा रिश्ता है । लेकिन दैवीय रिश्ता मैं मानती हूँ ।  जिनके साथ मैं अपने दुख , सुख भी पारिवारिक रिश्ते की तरह बाँटती हूँ ।यह मेरा सुविचार है - 
     समय , सत्ता , संपत्ति  साथ दें या न दें लेकिन सच्चे संबंध रिश्ते  सदा साथ देते हैं ।आज हमारे समाज में अधिकतर स्वार्थी रिश्तों का बोलवाला है । 21 वीं सदी का मानव भौतिक संपन्नता से स्वार्थों से लिप्त है ।  परिवार में रिश्ते टूटते हुए नजर आते हैं ।जो  फेसबुक , इंस्टाग्राम , व्हाट्सएप के रिश्तों को लाइक करते हैं । माता -पिता से अपने विचार नहीं बांटते बल्कि उन अजनबियों से अपने मन की बात करते हैं । एक उदाहरण  फेसबुक पर खुलेपन के रिश्ता के नकारात्मक पहलू को व्यक्त कर रही हूँ -
  एक दस साल की लड़की की दोस्ती 40 वर्षीय  स्त्री से हो जाती है और उसे बात ही बातों में पता लग जाता है ।यह इकलौती  है । माता -पिता नोकरी करते हैं । सुबह से निकले रात को घर आते हैं  । उस स्त्री ने मीठी -मीठी बात कर अपने जाल में उसे फंसा लिया । अब  टीनएज लड़की को  उसकी बातें , सीख अच्छी लगने  लगी और उस पर वह भरोसा करने लगी । एक दिन उस स्त्री ने उसे कपड़े उतारने को कहा और उसे अंगों के बारे बताने लगी । उधर उस स्त्री ने उसकी पोनग्राफी बना के विंडो पर  डाल दी । जब उसके दूर के चचरे भाई ने देखा तो हक्का -बक्का हो गया । उसे दुख हुआ । माता -पिता को पता लगा ।अब यह कितना उस स्त्री के साथ  शर्मसार , घिनोना स्वार्थी  रिश्ता और उस बेटी की नादानी ।दौलत के लिए महत्त्वकाक्षाओं की दौड़ में मानव संबंधों को भूला बैठा है । दौलत नहीं औलाद , संबन्ध जीवन में काम आते हैं । माँ -पिता को संतान वृद्धाश्रम में भेज रही है ।संबंधों से समाज में परिवार में सदभावना का  प्रकाश फैलाएँ    । स्नेह संबंध , आत्मीयता का रिश्ता और मानवीय तत्व को जोड़ता है   ।अंत में मैं कहती हूँ 
संबंधों की डोर को जगत से बाँध कर मैं गठबंधन करती हूँ।
दोहे में कहती हूँ :-
खिचड़ी जैसे हम   मिलें  , हो जन -मन में प्यार।
   जोड़ें  इंसानियत  के ,  रिश्ते से संसार ।।
                                -डा मंजु गुप्ता 
                                मुंबई - महाराष्ट्र
जीवन मे रिश्तों से महत्वपूर्ण यदि कुछ है तो मेरी दृष्टि में केवल राष्ट हित ही हो सकता है ।अन्यथा दुनिया मे रिश्तों के अलावा और कुछ महत्वपूर्ण नही है ।जीवन में रिश्ते ही है जो जीवन मे जीने के लिए बहुत बड़ा कारण है ।रिश्ते ही जीवन मे महक भरते है ।रंग भरते है ।जीवन मे बहारे लाते है ।रिश्तों के बिना जीवन पशु के समान है ।बिन रिश्तों के जीवन मे एकाकीपन आ जाता है और व्यक्ति स्वहित की भावना में लिप्त हो जाता है ।रिश्ते ही जीवन मे मिठास जीने की ललक प्रदान करते है ।रिश्ते होंगे तभी परिवार होगा।माता,पिता ,बहन ,भाई,बुआ,चाचा ,मामा ,दादा दादी आदि।से ही परिवार और समाज का निर्माण होता है ।और इनसे ही संस्कारो का गुणों का भी निर्माण होता है ।अतः मेरे विचार से जीवन मे रिश्तों से महत्वपूर्ण केवल देश ही हो सकता है बाकी कुछ नही हो सकता।
- बबिता चौबे शक्ति
दमोह - मध्यप्रदेश
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान, कितना बदल गया इंसान..... 
बदला हुआ इंसान और बदली हुई इंसानियत के झंझावत में रिश्तों से भी अधिक उसमें जीवंतता प्रेम, सहानुभूति, समर्पण और अपनापन नितांत आवश्यक है. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैऔर रिश्ते सामाजिक संबंधों के आधार हैं तथापि रिश्तों में कड़वाहट मनुष्य में मानसिक अशांति पैदा करती है. रिश्तों में अहसास रूपी मनकों की माला ही रिश्तों को एक दूसरे से जोड़े रख सकती हैक्योंकि रिश्ते कभी समझौते के सौदागर नहीं होते हैं. कहा गया है -"अशांतस्य कुतः सुखम "अतः जीवन में "रूठे सुजन मनाइये, जो रूठे सौ बार. रहिमन पुनः पुनः पोइए, जैसे मुक्ताहार ll रिश्ते बनाने से ज्यादा निभाना जरूरी होता है. रिश्ते वो होते हैं -आँसू हो गैरों केऔर आँखे हो हमारी. और ऐसे आँसुओ को संभाल कर रखना.खुशबुओं को संभाल कर रखना क्योंकि वक्त पूछेगा जिन्दगी क्याहै? कुछ लम्हों को संभाल कर रखना. आज के परिवेश में -रिश्ते सहना भी एक जिम्मेदारी हैचाहे जितनी भी जंग जारी है. कितनी नाजुक हैं घड़ी की सुइयां और ये वक्त कितना भारी है.
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
रिश्ते बहुत महत्वपूर्ण थाती है । लेकिन अपने अहम से नहीं । रिश्तेदार हमेशा सहयोग करते हैं। मित्र तो बाहर के कामों में साथ दे सकते हैं , लेकिन रिश्तेदार हर कदम पर साथ दिखते हैं । लेकिन उनमें अपने अहम बीच में नहीं आने चाहिए ।  निभानी है तो निभानी है। रिश्ते भावनात्मक सहयोग और शक्ति भी बन जाते हैं ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
शरीर में प्राण की तरह, हृदय में धडकन की तरह, आँखों में रोशनी की तरह जीवन में रिश्ते होते हैं। रिश्ते रूह है हम सब की।  यह भी दो तरह के होते हैं ।ईश्वर प्रदत खून के ,और मनक्षसे बनाए दोस्ती के।भरसक यह कोशिश करनी चाहिए कि रिश्ते बने रहें ।उस के लिए यदि कोई कुर्बानी ,भुमि देनी पडे़ तो स्वीकार कर लैनी चाहिए। रिश्ते हर इंसान की पहली और आखरी जरूरत है ।।
- ड़ा.नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
"अंगुलियाँ ही निभा रही हैं आजकल 'रिश्ते 'जुबाँ से निभाने का आजकल है वक़्त किस पे .
                         सब 'टच 'पर व्यस्त हैं ,
                           पर 'टच 'में नहीं कोय .
कहे "प्रदीप "भाई सब चलदूरभाष  छोड़ -छाड़ रिश्तों की सुध लेय .
                                   - प्रदीप निर्बाण
                                  अटेली - हरियाणा
हमारे जीवन में रिश्तों का विशेष महत्व है हम पैदा ही रिश्तो में बंध कर होते है । जो ईश्वर ने हमें दिये है पैदा होने के साथ तमाम रिश्ते बन जाते है । माँ , पिता , भाई , बहन , चाचा , चाची , बुआ , फुफा , मामा -मामा , आदि बहुत से रिश्ते ...
रिश्ते जीवन की रुह है हमारी और हमारे जीवन का सहारा भी
*रिश्तों का स्वाद हर रोज बदलता  है*
*मीठा, नमकीन या खारा..
*बस ये इस बात पर निर्भर करता है*
*कि हम प्रतिदिन*
*अपने रिश्ते में क्या मिला रहे है !
   *रिश्तों का क्षेत्रफल*
*भी कितना अजीब है*   
    *लोग लंबाई, चौड़ाई*
        *तो नापते है....*
             *लेकिन*
*गहराई तो कोई देखता ही नहीं...
रिश्तों की गहराई जिस दिन समझ आ जायेगी रिश्तों को निभाना भी आ जायेगा । रिश्तों हमारे जीवन में उतने ही अहम है जितनी साँसें 
*रिश्तों" की कदर भी* पैसों की तरह ही* करनी चाहिए*क्यों कि*दोनों को कमाना* मुश्किल है*पर गँवाना आसान*
   - डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
यदि सही मायने में देखा जाए तो जीवन में रिश्तों से अधिक कुछ महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन यदि बात सच्चाई और ईमानदारी की आए तो सच के आगे कोई भी रिश्ता मायने नही रखता। क्योंकि यदि इंसान सच बोलने की ही हिम्मत नही रखता हो तो वह इंसान क्या रिश्ते निभाएंगा। यदि रिश्तों में सच्चाई होती है तो वह रिश्ते ताउम्र चलते है। दुनिया की बड़ी-से-बड़ी दिवारें भी उस रिश्ते को तोड़ नहीं सकती है। विना रिश्तों के व्यक्ति का जीवन शून्य है। 
            - नीरू देवी
           इन्द्री (करनाल) हरियाणा



" मेरी दृष्टि में " जीवन में रिश्तों की मधुरता बहुत ही आवश्यक है । रिश्तों के बिना जीवन तो नरंक के सामान होता है  । फिर भी रिश्तों से अधिक कुछ तो होता होगा ? आपने इस ओर कभी ध्यान दिया है । मैंने दिया है । वह है कर्म ! जो इस जीवन के साथ आपके साथ जाऐगा । वह अगले जन्म का भाग्य होगा । ऐसा मैं नहीं दुनिया के सन्त लोग कहतें हैं । अत: जीवन में रिश्तों के साथ - साथ कर्म पर भी ध्यान देना चाहिए ।
                                                      - बीजेन्द्र जैमिनी


शिव कुमार , बीजेन्द्र जैमिनी , कुलजीत सिंह
दिनांक : 06 दिसम्बर 1992
कमल की शादी ( कुलजीत का भाई )





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