क्या अज्ञानता से उपजता है अपराध ?

अपराध का सीधा सम्बन्ध अज्ञानता से ही है । अज्ञानता के कारण ही भविष्य के बारे में नहीं सोचते हैं । आज का जीवन संधर्ष भरा है । समय समय पर  अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है । अज्ञानता के कारण अपराध की दुनियां में प्रवेश कर जाता है । ऐसा अक्सर देखा गया है । फिर भी अनुभव सबके अपने अपने है । देखते हैं आये हुये विचारों को : -
अज्ञानता अपराध कारण नहीं हो सकती हां कुछ अपराध करने के बाद अज्ञअज्ञानी बनने का प्रयास करते अवश्य देखे गए हैं ।अपराध मानव की मनोदशा कहीं पर हीन भावना कुण्ठा और बदले की इच्छा जन्म देने के कारणों में हो सकते हैं ।व्यक्ति परिवार समाज व देश के कुछ द्वेष घृणा भेदभाव के कारण भी अपराध कराते हैं वहीं कुछ अपनी अल्पबुद्धि से दूसरों के हाथ का खिलौना बन अपराध कर बैठते हैं ।कुल मिलाकर अपराध का  अज्ञान या ज्ञान से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं है ।
- शशांक मिश्र भारती 
शाहजहांपुर - उत्तर प्रदेश
अज्ञानता अपराध की जननी नही है।अपराध के अपने कारण अलग अलग है कभी हालात कभी  दुर्भावना तो कभी प्रतिशोध इत्यादि।हाँ यह हो सकता है कि कई बार अज्ञानी अपराध हेतु उठाये गए कदम के दूरगामी परिणामो को न समझ सके और कानूनी दांवपेच में स्वयं को न चाहते हुए भी उलझा ले लेकिन ये किसी आपराधिक प्रकृति का 
पोषक या जनक का पर्याय नही महज अपने पैर पर आप कुल्हाड़ी मारने वाली बात होती है अपराध के प्रकार सामाजिक आर्थिक या राजनैतिक विद्वेष से जुड़े हो सकते हैं।जिनमे पूर्वाग्रह से ग्रसित भाव उसका जनक होता है ज्यादा शिक्षित लोग ही  ज्यादातर प्रायोजित अपराध करते है और साक्ष्य छुपाने हेतु तकनीकी प्रयोग भी। साईबर अपराध,बैंक डकैती इन सब मे अज्ञानता का क्या काम?
- रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर - छत्तीसगढ़
यदि ज्ञान का तात्पर्य उच्च शिक्षा से है तब ये बात गलत है। अपराध तो एक तुच्छ और विकृत मानसिकता का परिणाम है। इसका संबंध ज्ञानी या अज्ञानी होने से नहीं है। एक से बढ़कर एक ज्ञानी मनुष्य भी अपराधिक क्रियाकलापों में लीन होता है। वहीं अज्ञानी भी सदाचारी होते हैं। हाँ, अज्ञानी मनुष्य कभी कभी किसी के बहकावे में आकर अपराध अवश्य कर बैठते हैं किन्तु इस अपराध का श्रेय भी अपराध के लिए प्रेरित करने वाले उस मनुष्य को ही जाता है जो ज्ञानी भी हो सकता है या अज्ञानी भी।
                  हाँ, मनुष्य के आसपास का परिवेश और उसकी नैतिक शिक्षा अवश्य इसके लिए उत्तरदायी हो सकती है।
              -  रूणा रश्मि
             राँची - झारखंड
अपराध कभी भी अज्ञानता से नहीं उपजता ।एक अनपढ़ व्यक्ति भी सही गलत का ज्ञान रखता है और अपराध करने से पूर्व उसकी भूमिका अवश्य बनाता है ।कई दिनों तक मस्तिष्क में पल रहे नकारात्मक विचार जब चरम सीमा तक पहुंच जाते हैं तब अपराध को अंजाम दिया जाता है ।अनेक उदाहरण हैं कि अपराधियों के सबूतों और विचारों से ये ही स्पष्ट होता है कि कोई बदला लेने के लिए, तो कोई वैमनस्य से तो कोई अपनी कमजोरी, हवस पूरी करने के लिए जानबूझकर अपराध करता है ।कुंठित, कमजोर, अभावग्रस्त, नाकामी,ईर्षा,वैमनस्य एवं नकारात्मक सोच का व्यक्ति ही अपराध के द्वारा सब हासिल करना चाहता है ।जो लोग जघन्य अपराध करते हैं उन्हें हम अज्ञानी कैसे मान सकते हैं ।13-14 वर्ष का बालक भी यदि कोई अपराध करता है तो वह भी किसी बड़े को देखकर या उकसाने पर होश में रहकर ही करता है ।इसलिए कोई भी अपराध अज्ञानता से नहीं उपजता ।
- सुशीला शर्मा
जयपुर - राजस्थान
अज्ञानता से अपराध उपजता है, यह आंशिक रूप से सत्य हो सकता है लेकिन पूर्ण रूप से नहीं ।कोई अपराध करने के लिए जिम्मेदार आपराधिक मानसिकता होती है ,न कि अज्ञानता ।बौद्धिक ज्ञान से अच्छे और बुरे कर्मो की पहचान जरूर होती है ।
  - रंजना वर्मा
रांची - झारखण्ड
बाल्यावस्था में कभीयह  हो सकता है ।अन्जाने में .. 
पर हर समय नहीं अपराध कई बार अंजाने में लापरवाही से हो सकता है पर वह अपराधनही दर्घटना होती है । 
कोई भी अपराध करने के पहले साज़िश रची जाती   है प्लानबनते है । अपराध करने वाली मानसिकता अपराधिक होती है साधरण व्यक्ति अपराध कर ही नहीं सकता ।
बड़ा कलेजा व शातिर दिमाग़ चाहिये अपराध करने के लिये 
अपराध करने वाले  बार बार अपराध पर अपराध करते है । सीधा साधा जीवन वो जी नहीं सकते । बचपन से ही उनमें यह प्रवृति होती है हाँ कुछ अपवाद होते हो जो किसी मजबूरी वश अपराधी बन जाते है । 
मूलत: कुछ जन्मजात अपराधी मानसिकता के होते है 
- डा. अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
अपराध वहाँ होते हैं जहाँ नैतिक मूल्यों की उपेक्षा होती है। प्राचीन समय में नैतिक शिक्षा पर अत्यधिक जोर दिया जाता था जिसका चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान हुआ करता था।यही कारण था कि उस समय अपराध कम होते थे, परंतु आज नैतिक शिक्षा का अभाव है। इस नैतिक अज्ञानता के कारण आपराधिक प्रवृति उत्पन्न हो रही है। मेरी राय में आपराधिक घटनाओं को रोकने के लिए नैतिक शिक्षा अनिवार्य की जानी चाहिए।
          - गीता चौबे
          राँची - झारखंड
अज्ञानता ही अपराध की उपज का एकमात्र कारण है यह कहना उचित नहीं होगा, मुझे तो लगता है कि बहुत ज्यादा ज्ञान जब प्राप्त हो जाता है पर उसे सही दिशा नहीं मिल पाती है तब अपराध उपजता है।
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
अपराध या अपराधी का ज्ञान या अज्ञान से कोई लेना देना नहीं है |अपराध तो अपराध होता है |आज कल अपराध करने में आधुनिक  तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है |देश मे बड़े बड़े स्कैम ,हाईटैक बाबाओं का अपराध किसी से छुपा नहीं है|डकैती ,हत्या ,दंगा -फ़साद आदि अनगिनत अपराध सोच समझकर पूरे योजना बना कर किया जाता है|
         अज्ञानतावश अपराध ,कई बार ग़लत संगत या बहकावे में आकर किया जाता है|जिसे सुधारा जा सकता है|
        - सविता गुप्ता 
            राँची - झारखण्ड
अपराध अज्ञानता से नहीं बल्कि इसके लिए कुछ अन्य कारक जिम्मेदार हैं जैसे - सामाजिक विषमताएं ,  राजनीतिक प्रतिद्वंदिता अहमन्यता, प्रतिशोध , मानसिक कुंठाएं और मात्र स्वयं का वर्चस्व स्थापित करने हेतु अनुचित उपायों द्वारा सीमातिक्रमण की  प्रवृत्ति, यह सारी स्थितियां अज्ञानता से तो कोसों दूर होती हैं बल्कि दूषित मनोवृति के लोग निर्भय होकर यदा-कदा शायराना अंदाज में अपराधों को जन्म देते हैं। ग्रामसिंहों से सफेदपोश और डॉन बनने  जैसे अपराधियों के अपराधों से भला कौन नहीं परिचित है । अतः आज के  भौतिक युग में पढ़े- लिखे स्वार्थी लोग भी हर क्षेत्र में अपने को स्थापित कर" अहम् ब्रह्मास्मि" समझ करके अपराध जगत से जुड़ते जाते हैं ।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
अभाव और  लोभ अपराध का मुख्यतः जन्मजात कारण रहा है। अभाव ग्रस्त ज्ञानी व्यक्ति भी अपने जरूरतों की पूर्ति के लिए अपराध के मार्ग पर पग बढा देता है। वह अंजाम की परवाह नहीं करता। लोभ भी व्यक्ति को अपराध के दलदल में फंसा देता है।लोभी व्यक्ति चाहे विद्वान हो या अज्ञानी अत्यधिक चाहत में अपराध करने को आतुर हो जाता है। वह किसी भी किमत पर अपनी मनचाही वस्तु को प्राप्त करना चाहता है। अपराध व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करता है।इसके लिए अज्ञानता  बाध्य नहीं है।
         -  रीतु देवी "प्रज्ञा"
       दरभंगा - बिहार
ज्ञान की कमी को भी अज्ञानता कहते हैं और अशिक्षित होना भी अज्ञानता का कारन बन जाता है अपराधों के अनेक कारन हो सकते हैं व्यक्ति और स्थिति के अनुसार अपराधी क्षणिक आवेश मैं अपराध कर बैठता है जिसका पछतावा बड़ी देर बाद होता है 
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
अज्ञानता  से  अपराध  उपजता  नहीं  बल्कि  उससे जाने  अनजाने  अपराध  होने  की  संभावना  मात्र  होती  है  । अपराध  के  कई  कारण  होते  हैं  यथा--जन्मजात  प्रवृत्ति,  संस्कार,  क्रोध,  कुंठित  मानसिकता,  आसपास  का  वातावरण,  संगी-साथी,  वैमनस्य, हताशा,  निराशा,  बेकाबू  संवेग,  असीमित  आकांक्षाएं, लालच,  अति  संवेदनशीलता  या  संवेदनहीनता,  आत्मविश्वास  की  कमी  आदि  होते  हैं ।  अज्ञानी  अज्ञानतावश  अपराध  करता  है  तो  ज्ञानी  कई  बार  सोची-समझी  साजिश  के  तहत  अपराध  को  अंजाम  देता  है  ।  कई  बार  आवेश  में  आकर  भी , वो  सब  कर  देता  जो  वह  कभी  भी  करना  नहीं  चाहता  । 
        - बसन्ती पंवार 
        जोधपुर - राजस्थान 
मेरे विचार से अपराध का उपजना व्यक्ति विशेष की मानसिकता और किसी कारण विशेष पर निर्भर     करता है न हीं ज्ञान या अज्ञाणता अपराध का  कारण होता है । जैसे रावण कितना प्रखण्ड विद्वान व्यक्ति होकर भी बदले की आवेश में इतना बड़ा अपराध कर बैठता है । 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
अपराध करने के लिए ग्यान अग्यान कोई मायने नहीं रखता ! इसमें यदि व्यक्ति घर के वातावरण ,नैतिक शिक्षा , परिस्थितियां और मानसिक विकार  से ग्रस्त है तो भी वह अपराध कर सकता है !  व्यसन की आदत से भी अपराध हो सकते हैं चाहे फिर वह ग्यानी क्यों न हो ! आजकल भौतिक सुख सुवीधा के शिकंजे में सभी फंस गए हैं और इस आधुनिक चमक दमक की लालसा में उसे प्राप्त करने की आकांक्षा न मिलने पर उसे अपराध की तरफ प्रेरित कर लेती है ! कम समय में कैसे धनी बन सकता है यह भी अपराध की राह लेता है !  हा"! कभी कभी अपनी अग्यानता से किसी जुर्म के अपराध में फंस  जाता है ! अपराध ज्यादातर सामाजिक विषमताएं  आपसी रंजिश ,अहंकार और बदले की भावना से होते हैं !ग्यानी नई नई टेक्निक का उपयोग कर अपराध करता है किंतु अपराध तो अपराध है !अत: अग्यांता ही अपराध की उपज नहीं है कोई भी हो सकता है !
-चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
अपराध को किसी एक वजह से बाधना ठीक नहीं होगा। अपराध के लिये तात्कालिक परिस्थिति और मनःस्थिति भी जिम्मेदार हो सकती हैं। शिक्षित हों या अशिक्षित दोनों वर्ग के  लोग अपराध करते देखे गये हैं ।
  अपराध का क्षेत्र व्यापक है। इसमें बदला, चाहत, जरूरत, नीयत,  लोभ, सुरक्षा, सहनशीलता  की पराकाष्ठा, क्रोध, नशा , संगत, सनक  आदि अनेक वजह हैं, जिनके अचानक आवेश और आवेग में एक तात्कालिक मनोवेग पैदा होता है और बिना चिंतन ,मनन और परिणाम की फिक्र किये वह तात्कालिक पूर्ति के लिये अपराध कर डालता है।
  वजह कोई भी हो,अपराधी को जब तक उसके किये की सजा निश्चित ही और शीघ्रता से नहीं मिलेगी तब तक अपराधियों में खौफ नहीं आयेगा और अपराध में कसावट नहीं आ पायेगी।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव 
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
 जी, अज्ञानता बहुत हद तक अपराध के लिए जिम्मेदार है। ज्ञानी के पास मनुष्य का सबसे बड़ा गुण विवेक होता है। अज्ञानी व्यक्ति विवेक शून्य होता है। सही - गलत या ऊँच - नीच से उसका कोई सरोकार नहीं होता है। उसकी सोच अपने सीमित दायरे में ही रहती है कहावत भी है कि मूर्ख को दो पैसे तो दे दो पर उसे ज्ञान देने की कोशिश मत करो। हा, ये अलग बात है कि कभी-कभी परिस्थिति और सामाजिक परिवेश भी इंसान को अपराध की राह पर धकेल देती है। पर व्यक्ति अगर ज्ञानी है, तो इन परिस्थितियों से निकलने की कोशिश जरुर करता है।
                                                 -  कल्याणी झा
                                                  राँची - झारखंड
नहीं । आपराधिक प्रवृत्ति मानसिकता है । सोच गलत है । यह पारिवारिक माहौल से उपजती है या गलत दोस्ती की देन है । अज्ञानता मिथक को बढ़ावा देता है । दूसरा कारण लालच है । ज्यादा पैसा जल्दी पाने की ललक भी अपराध को न्योता देती है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
अपराध क्या है? मोटे तौर पर अपराध एक समाजविरोधी क्रिया है। आज हम देखते हैं कि शिक्षित हो या अशिक्षित, साक्षर हो या निरक्षर, अमीर हो या गरीब, स्त्री हो या पुरुष, युवा हो या वृद्ध या कि बच्चा... कभी भी, किसी भी तरह, कहीं भी समाज विरोधी क्रिया में संलिप्त मिल सकते हैं। ज्ञान से तात्पर्य क्या है? शिक्षा, अनुभव या नैतिक मूल्य? यदि ज्ञान पुस्तकीय, सामाजिक या सिर्फ शैक्षिक हो तो परिस्थितिवश व्यक्ति अपराध की ओर प्रवृत्त हो सकता है। यदि ज्ञान नैतिकता से जुड़ा हो, उस स्थिति में मनुष्य अपराध की दिशा में जानें के पहले दस बार सोचेगा। मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि व्यक्ति की सामाजिक, आर्थिक और मानसिक स्थिति और परिस्थितियाँ उसे अपराध की ओर धकेल सकती हैं। आज के भौतिक युग में लालच अपराध के मूल में है और साम दाम दण्ड और भेद मनुष्य के वे ज्ञान चक्षु हैं जो कभी अपराध करवाते हैं तो कभी अपराधी को बचाते भी हैं।
- डॉ वन्दना गुप्ता
     उज्जैन - मध्यप्रदेश
सामान्य रूप से अपराध का अर्थ होता है समाजिक नियमों का उल्लंघन । समाज के सुचारु संचालन हेतु कुछ नियम व  मापदंड होते हैं, जो व्यक्ति उन्हें तोड़ता है  उसे अपराधी माना जाता है ।
अपराध कई प्रकार के होते हैं कुछ सामान्य श्रेणी के होते हैं जिन्हें करने वाले या तो अज्ञानतावश कर देते हैं या कि    डर का वातावरण निर्मित करने हेतु अपराधी उसे प्रायोजित करते हैं । वहीं कुछ जघन्य अपराध भी होते हैं जिसे मानसिक विकृत लोग अंजाम देते हैं । इसमें  वो पढ़ा लिखा है या अनपढ़ है , यह कोई निश्चित नहीं  होता है । हाँ व्यक्ति की परवरिश व वातावरण अवश्य ही मनोभावों को प्रभावित करता है ।
आजकल तो सायबर क्राइम हो रहें जिसे अंजाम देने वाले पढ़े लिखे युवा होते हैं जो बेरोजगारी के चलते राह भटक कर ऐसे कार्यों की ओर प्रवत्त होते हैं ।
आम जीवन में ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जहाँ सामान्य लोगों ने बड़े - बड़े अपराध होने से पहले ही रोक दिए जबकि दूसरी ओर पाश इलाकों में कोई किसी की ओर ध्यान ही नहीं देता और बड़ी - बड़ी घटनाएँ करके अपराधी भाग जाते हैं ।
अंततः यही कहा जा सकता है कि अज्ञानता से अपराध का कोई लेना देना नहीं होता है । व्यक्ति के संस्कार व परिस्थितियाँ इसके लिए काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं ।
- छाया सक्सेना
 जबलपुर - मध्यप्रदेश
कुछ व्यक्ति जल्द ऐशो आराम पाने के लालच में अपराध की दुनिया प्रवेश कर जाते है। कुछ लोग परिस्थितियों के कारण तो, कुछ लोग अपने वर्चस्व कायम करने के लिए अपराध की दुनिया मे चले जाते हैं। इसमें पढ़े -लिखे लोग भी संलिप्त होते हैं। लोग भूलबस या अज्ञानता बस भी अपराध करते हैं। व्यक्ति अगर गलती करने से पहले इसका परिणाम सोच ले तो कभी ग़लती करने का सोचेगा भी नहीं।
  -  प्रेमलता सिंह 
 पटना - बिहार
अज्ञानता का अपराध से कोई लेना देना नही है।
अशिक्षित व्यक्ति भी शिष्टाचार का पालन करता है जबकि शिक्षित व्यक्ति आवश्यक नही की शिष्ट हो।
आज देश मे कई ऐसे उदाहरण देखे जा सकते हैं निजी स्वार्थ सिद्धि के लिए बड़े बड़े स्तर पर शिक्षित और समझदार व्यक्ति हिंसक आंदोलनों को प्रायोजित कर रहे हैं।
वो सब जानते हैं कि जो कर रहे हैं या करवा रहे हैं वह सर्वथा अनुचित है तथापि वे सलंग्न हैं।
अतः ज्ञान या अज्ञानता का अपराध से कोई लेना देना नही है।
अब बात आती है कि अपराध का जन्म कैसे होता है , अपराध परिस्थितियां पैदा करती हैं।
आर्थिक प्रतिकूलता , मानसिक प्रतिकूलता , सामाजिक प्रतिकूलता की स्तिथि में ही अपराध जन्म लेते हैं।
- कवि विकास शुक्ल प्रचण्ड
शिवपुरी - मध्यप्रदेश


कुछ विचार Twitter पर भी दिये गये हैं । पढने के लिए लिकं को क्लिक करें :-



हरियाणा प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा सम्मानित होते हुए बीजेन्द्र जैमिनी
दिनांक 14 सितम्बर 2014
हिन्दी दिवस समारोह

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )